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सिर्फ कंगना रनौत ही नहीं, ये सेलिब्रिटिज भी हुए हैं थप्पड़कांड के शिकार

आखिर कंगना को क्यों पड़ा थप्पड़

थप्पड़ मारने का कारण 4 साल पुराना ट्विट है. जी हां, यह ट्विट किसान आंदोलन के दौरान की है. कंगना रनौत ने एक ट्विट किया था, जिसमें उन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन से जुड़े 80 साल की बुजुर्ग महिला की गलत पहचान कर उन्हें बिलकिस बानो बताया था. कंगना ने इस बुजुर्ग महिला की तस्वीर ट्विट करते हुए लिखा था कि ” हा हा, ये वही दादी हैं, जिन्हें टाइम मैगजीन की 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की लिस्ट में शामिल किया गया था और यह 100 रुपये में उपलब्ध हैं.”
उस बुजुर्ग महिला का नाम मोहिंदर कौर है, जो दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में CAA प्रोटेस्ट के दौरान सुर्खियां बटोरी थीं.

मंथरा ने भी खाया है जोरदार थप्पड़

सिर्फ कंगना ही नहीं और भी कई सेलिब्रिटिज थप्पड़ खा चुके हैं.आपको ललिता पवार तो याद ही होंगी, जिन्होंने रामायण में मंथरा का किरदार निभाया था. इसके अलावा कई फिल्मों में भी कठोर सास के रूप में भी दिखी हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं, इस एक्ट्रेस को भी थप्पड़ खाने पड़े थे.

एक फिल्म ‘जंग ए आजादी’ की शूटिंग के दौरान ललिता पवार को चाटा खाना था और जिस एक्टर को चाटा मारना था वो पहली बार एक्टिंग कर रहे थे, ऐसे में उन्हें समझ नहीं आया और उन्होंने जोर से ललिता पवार के मुंह पर थप्पड़ मार दिया. उनकी बाईं आंख की नस भी फट गई थी.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी पड़े हैं थप्पड़

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी थप्पड़ खाने पड़े थे. साल 2019 में रोड शो के दौरान एक शख्स केजरीवाल के गाड़ी के सामने आया और उन्हें थप्पड़ मार कर चला गया. हालांकि अरविंद केजरीवाल के साथ को कई बार बदसलूकी का सामना करना पड़ा है. चुनाव रैली और प्रेस कांफ्रेस के दौरान केजरीवाल पर जूते, चप्पल भी फेंके गए हैं, यहां तक कि सीएम केजरीवाल पर स्याही से भी हमला हुआ है.

माला पहनने के बाद कन्हैया कुमार ने भी खाया है थप्पड़

दिल्ली लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कन्हैया कुमार ने भी थप्पड़ खाया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक एक शख्स कन्हैया कुमार को माला पहनाने के बहाने आया और थप्पड़ मारना शुरू कर दिया. उसने कन्हैया पर स्याही भी फेंकी. हालांकि कन्हैया के समर्थकों ने उस शख्स को पकड़ लिया और पिटाई भी की.

शक: ऋतिका घर जाने से क्यों मना करती थी?

ऋतिका हंसमुंख और मिलनसार स्वभाव की तो थी ही, पुरुष सहकर्मियों के साथ भी बेहिचक बात करती थी. साथ काम करने वाली लड़कियों के साथ शौपिंग पर भी चली जाती थी और वहां खानेपीने का बिल भी दे देती थी. लेकिन जब कोई लड़की उसके  घर जाने को कहती थी तो वो मना कर देती थी.

‘‘लगता है इस के घर में जरूर कुछ गड़बड़ है तभी यह नहीं चाहती कि कोई इस के घर आए और यह किसी के घर जाए,’’ आरती बोली.

‘‘मुझे भी यही लगता है, क्योंकि फिल्म देखने या रेस्तरां चलने को कहो तो तुरंत मान जाती है और बिल भरने को भी तैयार रहती है,’’ मीता ने जोड़ा, तो सोनिया और चंचल ने भी सहमति में सिर हिलाया.

‘‘इतनी अटकलें लगाने की क्या जरूरत है?’’ पास बैठे राघव ने कहा, ‘‘ऋतिका बीमार है, इसलिए आप सब उसे देखने के बहाने उस का घर देख आओ.’’

‘‘उस के पापा टैलीफोन विभाग के आला अफसर हैं और शाहजहां रोड की सरकारी कोठी में रहते हैं, इतनी जानकारी तो जाने के लिए काफी नहीं है,’’ मीता ने लापरवाही से कहा.

बात वहीं खत्म हो गई. अगले सप्ताह ऋतिका औफिस आ गई. उस के पैर में मोच आ गई थी, इसलिए चलने में अभी भी दिक्कत हो रही थी. शाम को उसे छुट्टी के बाद भी काम करते देख कर राघव ने कहा, ‘‘मैं ने आप का कोई काम भी पैंडिंग नहीं रहने दिया था, फिर क्यों आप देर तक रुकी हैं?’’

‘‘धन्यवाद राघवजी, मैं काम नहीं नैट सर्फिंग कर रही हूं.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘मजबूरी है. चार्टर्ड बस तक चल कर नहीं जा सकती और पापा को लेने आने में अभी देर है.’’

‘‘तकलीफ तो लगता है आप को बैठने में भी हो रही है?’’

‘‘हो तो रही है, लेकिन पापा मीटिंग में व्यस्त हैं, इसलिए बैठना तो पड़ेगा ही.’’

‘‘अगर एतराज न हो तो मेरे साथ चलिए.’’

‘‘इस शर्त पर कि आप चाय पी कर जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, अभी और्डर करता हूं.’’

‘‘ओह नो… मेरा मतलब है मेरे घर पर.’’

‘‘इस में शर्त काहे की… किसी के भी घर जाने पर चायनाश्ते के लिए रुकना पड़ता ही है.’’

ऋतिका ने पापा को मोबाइल पर आने को मना कर दिया. फिर राघव के साथ घर पहुंच गई. मां भी विनम्र थीं. कुछ देर बाद ऋतिका के पापा भी आ गए. वे भी राघव को ठीक ही लगे. कुल मिला कर घर या परिवार में कुछ ऐसा नहीं था जिसे ऋतिका किसी से छिपाना चाहे. बातोंबातों में पता चला कि वे लोग कई वर्षों से हैदराबाद में रह रहे थे और उन्हें वह शहर पसंद भी बहुत था.

‘‘इन की तो विभिन्न जिलों में बदली होती रहती थी, लेकिन मैं बच्चों के साथ हमेशा हैदराबाद में ही रही. बहुत अच्छे लोग हैं वहां के… अकेले रहने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई,’’ ऋतिका की मां ने बताया.

‘‘यहां तो अभी आप की जानपहचान नहीं हुई होगी?’’ राघव ने कहा.

‘‘पासपड़ोस में हो गई है. वैसे रिश्तेदार बहुत हैं यहां, लेकिन अभी उन से मिले नहीं हैं. ऋतु पत्राचार से एमबीए की पढ़ाई कर रही है, इसलिए औफिस के बाद का सारा समय पढ़ाई में लगाना चाहती है और हम भी इसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहते. मिलने के बाद तो आनेजाने का सिलसिला शुरू हो जाएगा न.’’

राघव को ऋतिका की सहेलियों से मेलजोल न बढ़ाने की बात तो समझ आ गई, लेकिन एमबीए करने की बात छिपाने की नहीं.

यह सुन कर कि राघव के मातापिता सऊदी अरब में और बहन अपने पति के साथ सिंगापुर में रहती है और वह यहां अकेला, ऋतिका की मां ने आग्रह किया, ‘‘कभी घर वालों की याद आए तो आ जाया करो बेटा, अच्छा लगेगा तुम्हारा आना.’’

‘‘जी जरूर,’’ कह राघव ऋतिका की ओर मुड़ा, ‘‘आप डिस्टर्ब तो नहीं होंगी न?’’

‘‘कभीकभार कुछ देर के लिए चलेगा,’’ ऋतिका शोखी से मुसकाराई, ‘‘मगर यह एमबीए वाली बात औफिस में किसी को मत बताइएगा प्लीज.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि चंद घंटों की पढ़ाई के बाद सफलता की कोई गारंटी तो होती नहीं तो

क्यों व्यर्थ में ढिंढोरा पीट कर अपना मजाक बनाया जाए. पास हो गई तो पार्टी कर के

बता दूंगी.’’

राघव ने औफिस में किसी को ऋतिका के घर जाने की बात भी नहीं बताई. कुछ दिनों के बाद ऋतिका ने उसे डिनर पर आने को कहा.

‘‘आज मेरे छोटे भाई ऋषभ का बर्थडे है. वह तो आस्ट्रेलिया में पढ़ रहा है, लेकिन मम्मी उस का जन्मदिन मनाना चाहती हैं पकवान बगैरा बना कर… अब उन्हें खाने वाले भी तो चाहिए… आप आ जाएं… पापा के औफिस और पड़ोस के कुछ लोग होंगे… मम्मी खुश हो जाएंगी,’’ ऋतिका ने आग्रह किया.

न जाने का तो सवाल ही नहीं था. ऋतिका ने अन्य मेहमानों से उस का परिचय अपने सहकर्मी के बजाय अपना मित्र कह कर कराया. उसे अच्छा लगा.

अगले सप्ताहांत चंचल ने सभी को बहुत आग्रह से अपने भाई की सगाई में बुलाया तो सब सहर्ष आने को तैयार हो गए.

‘‘माफ करना चंचल, मैं नहीं आ सकूंगी,’’ ऋतिका ने विनम्र परंतु इतने दृढ़ स्वर में कहा

कि चंचल ने तो दोबारा आग्रह नहीं किया,

लेकिन राघव ने मौका मिलते ही अकेले में

कहा, ‘‘अगर आप अकेले जाते हुए हिचक

रही हों तो मुझे आप ने मित्र कहा है, मित्र के साथ चलिए.’’

‘‘मित्र कहा है सो बता देती हूं कि मैं

इस तरह के पारिवारिक समारोहों में कभी

नहीं जाती.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि ऐसे समारोहों में ही सहेलियों की मामियां, चाचियां अपने चहेतों के लिए लड़कियां पसंद करती हैं. सहेलियों के भाई और उन के दोस्त तो ऐसी दावतों में जाते ही लड़कियों को लाइन मारने लगते हैं. वैसे सुरक्षित लड़के भी नहीं हैं, कुंआरी कन्याओं के अभिभावक भी गिद्ध दृष्टि से शिकार का अवलोकन करते हैं.’’

‘‘आप मुझे डरा

रही हैं?’’

‘‘कुछ भी समझ लीजिए… जो सच है वही कह रही हूं.’’

‘‘खैर, कह तो सच रही हैं, फिर भी मुझे तो जाना ही पड़ेगा, क्योंकि औफिस से आप के सिवा सभी जा रहे हैं.’’

कुछ रोज बाद राघव को एक दूसरी कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई. ऋतिका बहुत खुश हुई.

‘‘अब हम जब चाहें मिल सकते हैं… औफिस की अफवाहों का डर तो रहा नहीं.’’

राघव की बढि़या नौकरी मिलने की खुशी और भी बढ़ गई. मुलाकातों का

सिलसिला जल्दी दोस्ती से प्यार में बदल गया और फिर राघव ने प्यार का इजहार भी कर दिया.

ऋतिका ने स्वीकार तो कर लिया, लेकिन इस शर्त के साथ कि शादी सालभर बाद भाई के आस्ट्रोलिया से लौटने पर करेगी. राघव को मंजूर था क्योंकि उस के पिता को भी अनुबंध खत्म होने के बाद ही अगले वर्ष भारत लौटने पर शादी करने में आसानी रहती और वह भी नई नौकरी में एकाग्रता से मेहनत कर के पैर जमा सकता था.

भविष्य के सुखद सपने देखते हुए जिंदगी मजे में कट रही थी कि अचानक उसे टूर पर हैदराबाद जाना पड़ा. औफिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उसे वहां अपनी बहन को देने के लिए एक पार्सल दिया.

‘‘मेरी बहन और जीजाजी डाक्टर हैं, उन का अपना नर्सिंगहोम है, इसलिए वे तो कभी दिल्ली आते नहीं किसी आतेजाते के हाथ उन्हें यहां की सौगात सोहन हलवा, गज्जक बगैरा भेज देता हूं. तुम मेरी बहन को फोन कर देना. वे किसी को भेज कर सामान मंगवा लेंगी.’’

मगर राघव के फोन करने पर डा. माधुरी ने आग्रह किया कि वह डिनर उन के साथ करे. बहुत दिन हो गए किसी दिल्ली वाले से मिले हुए… वे उसे लेने के लिए गाड़ी भिजवा देंगी.

माधुरी और उस के पति दिनेश राघव से बहुत आत्मीयता से मिले और दिल्ली के बारे में दिलचस्पी से पूछते रहे कि कहां क्या नया बना है बगैरा. फिर उस के बाद उन्होंने अजनबियों के बीच बातचीत के सदाबहार विषय राजनीति और भ्रष्टाचार पर बात शुरू कर दी.

‘‘कितने भी अनशन और आंदोलन हो जाएं, कानून बन जाएं या सुधार हो जाएं सरकार या सत्ता से जुड़े लोग नहीं सुधरने वाले,’’ माधुरी ने कहा, ‘‘उन के पंख कितने भी कतर दिए जाएं, उन का फड़फड़ाना बंद नहीं होता.’’

‘‘प्रकाश का फड़फड़ाना फिर याद आ गया माधुरी?’’ दिनेश ने हंसते हुए पूछा.

राघव चौंक पड़ा. यह तो ऋतिका के पापा का नाम है. उस ने दिलचस्पी से माधुरी की ओर देखा, ‘‘मजेदार किस्सा लगता है दीदी, पूरी बात बताइए न?’’

माधुरी हिचकिचाई, ‘‘पेशैंट से बातचीत गोपनीय होती है, मगर वे मेरे पेशैंट नहीं थे,

2-3 साल पुरानी बात है और फिर आप तो इस शहर के हैं भी नहीं. एक साहब मेरे पास अबौर्शन का केस ले कर आए. पर मेरे यह कहने पर कि हमारे यहां यह नहीं होता उन्होंने कहा कि अब तो और कुछ भी नहीं हो सकेगा, क्योंकि वे टैलीफोन विभाग में चीफ इंजीनियर हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से हंसी रोक कर उन्हें बताया कि हमारे यहां तो प्राय सभी फोन, रिलायंस और टाटा इंडिकौम के हैं, सरकारी फोन अगर है भी तो खराब पड़ा होगा. उन की शक्ल देखने वाली थी. मगर फिर भी जातेजाते अन्य सरकारी विभागों में अपनी पहुंच की डुगडुगी बजा कर मुझे डराना नहीं भूले.’’

तभी नौकर खाने के लिए बुलाने आ गया. खाना बहुत बढि़या था और उस से भी ज्यादा बढि़या था स्नेह, जिस से मेजबान उसे खाना खिला रहे थे. लेकिन वह किसी तरह कौर निगल रहा था.

होटल के कमरे में जाते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा कि क्यों हुआ ऐसा उस के साथ? क्यों भोलीभाली मगर संकीर्ण स्पष्टवादी ऋतिका ने उस से छिपाया अपना अतीत? वह संकीर्ण मानसिकता वाला नहीं है.

जवानी में सभी के कदम बहक जाते हैं. अगर ऋतिका उसे सब सच बता

देती तो वह उसे सहजता से सब भूलने को कह कर अपना लेता. ऋतिका के परिवार का रिश्तेदारों से न मिलनाजुलना, ऋतिका का सहेलियों के घर जाने से कतराना और उन के परिवार के लिए सटीक टिप्पणी करना, डा. माधुरी के कथन की पुष्टि करता था.

लौटने पर राघव अभी तय नहीं कर पाया था कि ऋतिका से कैसे संबंधविच्छेद करे. इसी बीच अकाउंट्स विभाग ने याद दिलाया कि अगर उस ने कल तक अपने पुराने औफिस का टीडीएस दाखिल नहीं करवाया तो उसे भारी इनकम टैक्स भरना पड़ेगा.

राघव ने तुरंत अपने पुराने औफिस से संपर्क किया. संबंधित अधिकारी से उस की अच्छी जानपहचान थी और उस ने छूटते ही कहा कि तुम्हारे कागजात तैयार हैं, आ कर ले जाओ. पुराने औफिस जाने का मतलब था ऋतिका से सामना होना जो राघव नहीं चाहता था.

‘‘औफिस के समय में कैसे आऊं नमनजी, आप किसी के हाथ भिजवा दो न प्लीज.’’

‘‘आज तो मुमकिन नहीं है और कल का भी वादा नहीं कर सकता. वैसे मैं तो आजकल 7 बजे तक औफिस में रहता हूं, अपने औफिस के बाद आ जाना.’’

राघव को यह उचित लगा, क्योंकि ऋतिका 5 बजे की चार्टर्ड बस से चली जाएगी. अत: उस के बाद वह इतमीनान से नमनजी के पास जा सकता है.

6 बजे के बाद नमनजी कागज ले कर जब वह लौट रहा था तो लिफ्ट का इंतजार करती ऋतिका मिल गई.

‘‘तुम अभी तक घर नहीं गईं?’’ वह पूछे बगैर नहीं रह सका.

‘‘एक प्रोजैक्ट रिपोर्ट पूरी करने के चक्कर में रुकना पड़ा. लेकिन तुम कहां गायब थे रविवार के बाद से?’’

‘‘सोम की शाम को अचानक टूर पर हैदराबाद जाना पड़ गया, आज ही लौटा हूं.’’

‘‘अच्छा किया जाने से पहले घर नहीं आए वरना मम्मी न जाने कितने पार्सल पकड़ा देतीं अपनी सखीसहेलियों के लिए.’’

‘‘पार्सल तो फिर भी ले कर गया था बड़े साहब की बहन डा. माधुरी के लिए,’’ राघव ने पैनी दृष्टि से ऋतिका को देखा, ‘‘तुम तो जानती होगी डा. माधुरी को?’’

ऋतिका के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया और वह लापरवाही से कंधे झटक कर बोली, ‘‘कभी नाम भी नहीं सुना. पापा को फोन कर दूं कि वे सीधे घर चले जाएं मैं तुम्हारे साथ आ रही हूं. पहले कहीं कौफी पिलाओ, फिर घर चलेंगे.’’

राघव मना नहीं कर सका और फिर घर पर डा. माधुरी का नाम बता कर प्रकाश और रमा की प्रतिक्रिया देखने की जिज्ञासा भी थी.

रमा के चेहरे पर तो डा. माधुरी का नाम सुन कर कोई भाव नहीं आया, मगर प्रकाश जरूर सकपका सा गए. रमा के आग्रह के बावजूद

राघव खाने के लिए नहीं रुका और यह पूछने

पर कि फिर कब आएगा उस ने कुछ नहीं कहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मांबेटी सफल अदाकारा की तरह डा. माधुरी को न

जानने का नाटक कर रही थीं या उन्हें बगैर कुछ बताए प्रकाश साहब अबौर्शन की व्यवस्था करने गए थे.

कुछ भी हो ऋतिका को निर्दोष तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन चुपचाप सब

बरदाश्त भी तो नहीं हो सकता. यह भी अच्छा ही था कि अभी न तो सगाई हुई थी और न इस बारे में परिवार के अलावा किसी और को पता था, इसलिए धीरेधीरे अवहेलना कर के किनारा कर सकता है. रात इसी उधेड़बुन में कट गई.

सुबह वह अखबार ले कर बरामदे में बैठा ही था कि प्रकाश की गाड़ी घर के सामने रुकी. उन का आना अप्रत्याशित तो नहीं था, मगर इतनी जल्दी आने की संभावना भी नहीं थी.

‘‘रात तो खैर अपनी थी जैसेतैसे काट ली, लेकिन दिन को तो तुम्हें भी काम करना है और मुझे भी और उस के लिए मन का स्थिर होना जरूरी है, इसलिए औफिस जाने से पहले तुम से बात करने आया हूं,’’ प्रकाश ने बगैर किसी भूमिका के कहा, ‘‘यहीं बैठेंगे या अंदर चलें?’’

‘‘अंदर चलिए अंकल,’’ राघव विनम्रता से बोला और फिर नौकर को चाय लाने को कहा.

‘‘मैं नहीं जानता डा. माधुरी ने तुम से क्या कहा, मगर जो भी कहा होगा उसे सुन कर तुम्हारा विचलित होना स्वाभाविक है,’’ प्रकाश ने ड्राइंगरूम में बैठते हुए कहा, ‘‘और यह सोचना भी कि तुम से यह बात क्यों छिपाई गई. वह इसलिए कि किसी की जिंदगी के बंद परिच्छेद बिना वजह खोलना न मुझे पसंद है और न ऋतु को. मैं ने अपनी भतीजी रुचि को हैदराबाद में एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब दिलवाई थी. वह हमारे साथ ही रहती थी.

‘‘सौफ्टवेयर टैकीज के काम के घंटे तो असीमित होते हैं, इसलिए हम ने रुचि के देरसवेर आने पर कभी रोक नहीं लगाई और इस गलती का एहसास हमें तब हुआ जब रुचि ने बताया कि वह मां बनने वाली है, उस की सहेली का भाई उस से शादी करने को तैयार है, लेकिन कुछ समय यानी पैसा जोड़ने के बाद, क्योंकि उस की जाति में दहेज की प्रथा है और उस के मातापिता बगैर दहेज के विजातीय लड़की से उसे कभी शादी नहीं करने देंगे. पैसा जोड़ कर वह मांबाप को दहेज दे देगा.

‘‘फिलहाल रुचि को गर्भपात करवाना पड़ेगा. हम भी नहीं चाहते थे कि रुचि के मातापिता को इस बात का पता चले. अत: मैं ने गर्भपात करवाने की जिम्मेदारी ले ली. जिन अच्छे डाक्टरों से संपर्क किया उन्होंने साफ मना कर दिया और झोला छाप डाक्टरों से मैं यह काम करवाना नहीं चाहता था. बहुत परेशान थे हम लोग. तब हमें परेशानी से उबारा ऋतु और ऋषभ ने.

‘‘ऋतु को आईआईएम अहमदाबाद में एमबीए में दाखिला मिल गया था और ऋषभ भी अमेरिका जाने की तैयारी कर रहा था. दोनों ने कहा कि जो पैसा हम ने उन की पढ़ाई पर लगाना है, उसे हम रुचि को दहेज में दे कर उस की शादी तुरंत प्रशांत से कर दें. और कोई चारा भी नहीं था. मुझ में अपने भाईभाभी की नजरों में गिरने और लापरवाह कहलवाने की हिम्मत नहीं थी. अत: इस के लिए मैं ने अपने बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दिया.

‘‘खैर, रुचि की शादी हो गई, बच्चा भी हो गया और उस के बाद दोनों को ही बैंगलुरु में बेहतर नौकरी भी मिल गई. ऋतु ने भी पत्राचार से एमबीए कर लिया और ऋषभ भी आस्ट्रेलिया चला गया. इस में रुचि और प्रशांत ने भी उस की सहायता करी.’’

‘‘मगर मेरा हैदराबाद में रहना मुश्किल हो गया. लगभग सभी नामीगिरामी डाक्टरों के पास मैं गया था और उन सभी से गाहेबगाहे क्लब या किसी समारोह में आमनासामना हो जाता था. वे मुझे जिन नजरों से देखते थे उन्हें मैं सहन नहीं कर पाता था. मैं ने कोशिश कर के दिल्ली बदली करवा ली. सोचा था वह प्रकरण खत्म हो गया. लेकिन वह तो लगता है मेरी बेटी की ही खुशियां छीन लेगा.

‘‘तुम्हें मेरी कहानी मनगढं़त लगी हो तो मैं रुचि को यहां बुला लेता हूं. उस के बच्चे की उम्र और डा. माधुरी की बताई तारीखों से सब बात स्पष्ट हो जाएगी.’’

‘‘इस सब की कोई जरूरत नहीं है पापा.’’

अभी तक अंकल कहने वाले राघव के ऋतिका की तरह पापा कहने से प्रकाश को लगा कि राघव के मन में अब कोई शक नहीं है.

मेरी दादीसास काफी बुजुर्ग हैं, उन्हें खाने में क्या दूं ?

सवाल

मैं और मेरे पति बेंगलुरु में रहते हैं. मेरे सासससुर दिल्ली में रहते हैं. उन्हीं के साथ मेरी दादीसास भी रहती हैं. बुजुर्ग दादीसास मेरे पति से बहुत स्नेह रखती हैं. मेरे पति भी अपनी दादी से बहुत प्यार करते हैं. बहुत दिन से जिद कर रहे हैं कि वे दादी को अपने पास कुछ महीनों के लिए लेकर आएंगे. उन की खुशी मेरे पति के लिए बहुत माने रखती है. मुझे कोई दिक्कत नहीं है, बल्कि मुझे भी खुशी होगी पर मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि मैं उन के खानेपीने का कैसा खयाल रखूं. कैसा हैल्दी फूड उन्हें दूं जो उन्हें खाने में अच्छा भी लगे और वे खुश रहें?

जवाब

यह अच्छी बात है कि आप अपनी दादीसास के बारे में इतना कुछ सोच रही हैं. आप यह सोचें कि जैसे घर में कोई बच्चा आता है तो हमें उस का ध्यान रखना पड़ता है, उसी प्रकार घर के बुजुर्गों का भी काफी खास ध्यान रखना पड़ता है.

बुजुर्गों को खाने में कुछ भी नहीं दे सकते. देखना पड़ता है कि उन्हें ऐसी चीजें दें जो वे आसानी से चबा सकें क्योंकि उन के दांत कमजोर हो चुके होते हैं या नकली लगे होते हैं या फिर नहीं भी होते.

फिलहाल आप की दादीसास की क्या स्थिति है, आप जानती होंगी. हम आप की इतनी मदद कर सकते हैं कि उन्हें खाने में क्याक्या दे सकती हैं जो स्वादिष्ठ भी हो और हैल्दी भी. दलिया एक ऐसी चीज है जो नाश्ते और खाने दोनों समय खा सकते हैं. दूध वाला दलिया या नमकीन सब्जियों वाला दलिया भी बना कर उन्हें दे सकती हैं.

सूप ऐसी चीज है जिसे चबाना नहीं पड़ता और इस से पेट भी भर जाता है. टमाटर या मिक्स वैजिटेबल सूप उन्हें बना कर दे सकती हैं. मूंग की दाल का चीला उन्हें चटनी के साथ दें, वे मन से खाएंगी. साउथ इंडियन फूड सभी पसंद करते हैं. उन्हें इडली, उपमा, उत्तपम बना कर दे सकती हैं. ढोकला, खांडवी मुलायम होते हैं. घर में आसानी से बन भी जाते हैं. मीठे में उन्हें कभीकभी सूजी का हलवा, स्मूथी, खीर, कस्टर्ड बना कर दे सकती हैं. उन का खानेपीने का ध्यान रखने के साथसाथ उन के साथ बैठिए, बातें कीजिए, उन की दवाई, सेहत के बारे में पूछते रहिए. बुजुर्ग यही सब चाहते हैं. इसी में वे खुश रहते हैं.

 

संयुक्त परिवार में रहने के ये हैं लाभ

संयुक्त परिवार में रहने के लाभ:

1. चीजें शेयर करने की आदत

सयुंक्त परिवार में रहना कई तरह से फायदेमंद साबित होता है. यहां आप चीजों को शेयर करना सीखते हो. चाहे खाना हो, रूम हो, खिलौने हो, कार हो या आलमारी, आप अपनी चीज़ें दूसरों के साथ बांट कर आनंद लेने का हुनर बचपन से ही सीख जाते हो. आप को इस का फायदा भी मिलता है. यदि कोई चीज़ जो जरुरी है और आप के पास नहीं वह घर के दुसरे सदस्य के जरिये आसानी से उपलब्ध हो जाती है. कभीकभी जीवन का ऐसा दौर भी आता है जब आर्थिक परेशानी आप का रास्ता रोकने को तैयार हो जाता है. ऐसे समय में भी सयुक्त परिवार की बदौलत आप परेशानियों से आसानी से उबर सकते हैं.

2. बरबादी कम होती है.

एक शोध की मानें तो जो लोग अकेले रहते हैं वे संसाधनों की बर्बादी 50 % तक ज्यादा करते हैं. एक साथ रहने का सब से अधिक फायदा यह है कि आप संसाधनों को बर्बाद नहीं करते। जो लोग अकेले रहते हैं वे बिजली, पानी, गैस जैसी चीज़ें भी अधिक खर्च करते हैं। उन्हें अधिक किराया देना पड़ता है और हर चीज़ अलग से खरीदनी पड़ती है. यदि घर में कई लोग होते हैं और आपस में खर्चे भी बांट लेते हैं जिस से ओसत रूप से कम पैसे खर्च होते हैं। जाहिर है मनी मैनेजमेंट संयुक्त परिवार में अधिक देखने को मिलता है.

3. कम तनाव

अकेले रहने वालों को जीवन में अधिक तनाव का सामना करना होता है, जबकि संयुक्त परिवार में लोग अधिक खुशहाल रहते हैं। ए‍क साथ रहने का यह भी फायदा है कि आप अधिक हेल्दी और हैप्पी रहते हैं। क्यों कि आप अपने दुःख दर्द दूसरों से बाँट पाते हैं. दुःख के समय किसी अपने का साथ और सर पर प्यार भरा हाथ बहुत मायने रखता है.

4. सेफ्टी वौल्व

सयुंक्त परिवारों में अगर पति बेवफाई की ओर बढ़ता है या फिर वह पत्नी से मारपीट करता है तो ऐसे में घर के बाकी सदस्य पति को उस की गलत हरकतो के लिए समझाता है। ऐसे में परिवार महिलाओं के लिए एक तरह से सेफ्टी वौल्व की तरह काम करता है।

5. बच्चों के पालनपोषण में मदगार

बच्चों के पालनपोषण के लिए संयुक्त परिवार का माहौल अच्छा माना जाता है.बच्चे कब दादादादी बुआ चाचा के हाथों पल जाते है पता ही नहीं चलता. बच्चे के मानसिक विकास क्व लिए भी भरा पूरा परिवार अच्छा साबित होता है.

कैसे निभाएं सयुंक्त परिवार में

1. परिवार में एकदूसरे के प्रति प्यार और लगाव बना रहे इस के लिए सब से जरुरी है कि हम अपने बच्चों को बड़ों की इज़्ज़त करना सिखाएं। यह बात केवल बच्चों पर ही लागू नहीं होती बल्कि घर के बड़ों को भी इस बात का ख़याल रखना चाहिए कि वे अपने से बड़ों को पूरा सम्मान दे ताकि परिवार की कड़ियाँ आपस में जुड़ी रहे.

2. बच्चों के सामने कभी भी किसी से भी बद्तमीज़ी से या चिल्लाचिल्ला कर बात न करें। बच्चे वैसा ही सीखते हैं जैसा उन्हें घर का माहौल मिलता है. अपने बच्चों को सदैव बुज़ुर्गों के प्रति विनम्र और छोटे बच्चों के प्रति संवेदनशील होना सिखाएंऔर खुद भी ऐसा ही व्यवहार करें.

3. एकल परिवार में बच्चों को जरुरत से ज्यादा लाड़प्यार मिलता है जिस से वे कई बार ज़िद्दी हो जाते हैं. जितना हो सके अपने बच्चों को ज़मीन से जुड़े रहना सिखाएं।

4. बच्चों को अपने बचपन की कहानियां सुनाते हुए यह अहसास दिलाने का प्रयास करें कि कैसे आप खाने से ले कर कपड़ों तक को भाईबहनों के साथ साझा किया करते थे. इस से आप के बच्चे भी अपने चचेरे भाईबहनों के साथ प्रेमपूर्वक रहना सीखेंगे.

अगर आप हैं घर की बहू

अगर आप एक संयुक्त परिवार की बहू हैं तो आप को कुछ बातों का ख़याल जरूर रखना चाहिए तभी आप पूरे घर को बाँध कर रख सकेंगी और सब का प्यार पा सकेंगी ;

यदि किचन में आप की सास, देवरानी या जेठानी खाना बना रही हैं तो आप को उन की मदद जरूर करनी चाहिए. भले ही आप ऑफिस से थक कर आई हों या कहीं और बाहर से आ रही हों. कम से कम सामान्य शिष्टाचार के नाते ही सहयोग देने की पेशकश जरूर करें. स्वाभाविक है कि ऐसे में वे मना ही करेंगी लेकिन ऐसा करने पर आप के प्रति उन का रवैया जरूर और भी सकारात्मक और प्रेमपूर्ण हो जाएगा. आप की यह छोटी सी कोशिश परिवार के प्रति आप को जिम्मेदार दिखायेगा.

यदि घर में किसी बच्चे का बर्थडे है या कोई अच्छा रिजल्ट ले कर आया है तो आप का दायित्व बनता है कि आप उसे इस अवसर पर बधाई दें और उस की हौसलाअफजाई करें. घर में हो रहे छोटेमोटे उत्सवों के मौके पर घरभर में अपने प्रयासों से ख़ुशी की लहर फैलाएं.

अगर आप को घर के काम नहीं आते है तो घर की महिलाओं से वक्त मिलने पर बात करें, उन से घर के काम सीखने का प्रयास करें. ऐसा करते समय अपने मन में किसी भी तरह की हिचकिचाहट न रखें.

घर में होने वाले कामों, फैसलों पर खुल कर अपनी राय दें. उन्हें साफ़ तौर पर बताएं कि आप क्या चाहती हैं न कि बाद में पति से शिकायतबाजी करें.

अपने सासससुर के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें। घर में कोई बीमार हो तो हर संभव उस की मदद करें. ऐसी बातें न सिर्फ आप के पति को आकर्षित करेंगी बल्कि घर का हर सदस्य आप का दीवाना हो जाएगा.

बस तुम्हारी हां की देर है

अपनीशादी की बात सुन कर दिव्या फट पड़ी. कहने लगी, ‘‘क्या एक बार मेरी जिंदगी बरबाद कर के आप सब को तसल्ली नहीं हुई जो फिर से… अरे छोड़ दो न मुझे मेरे हाल पर. जाओ, निकलो मेरे कमरे से,’’ कह कर उस ने अपने पास पड़े कुशन को दीवार पर दे मारा.

नूतन आंखों में आंसू लिए कुछ न बोल कर कमरे से बाहर आ गई. आखिर उस की इस हालत की जिम्मेदार भी तो वे ही थे. बिना जांचतड़ताल किए सिर्फ लड़के वालों की हैसियत देख कर उन्होंने अपनी इकलौती बेटी को उस हैवान के संग बांध दिया. यह भी न सोचा कि आखिर क्यों इतने पैसे वाले लोग एक साधारण परिवार की लड़की से अपने बेटे की शादी करना चाहते हैं? जरा सोचते कि कहीं दिव्या के दिल में कोई और तो नहीं बसा है… वैसे दबे मुंह ही, पर कितनी बार दिव्या ने बताना चाहा कि वह अक्षत से प्यार करती है, लेकिन शायद उस के मातापिता यह बात जानना ही नहीं चाहते थे.

अक्षत और दिव्या एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों अंतिम वर्ष के छात्र थे. जब कभी अक्षत दिव्या के संग दिख जाता, नूतन उसे ऐसे घूर कर देखती कि बेचारा सहम उठता. कभी उस की हिम्मत ही नहीं हुई यह बताने की कि वह दिव्या से प्यार करता है पर मन ही मन दिव्या की ही माला जपता रहता था और दिव्या भी उसी के सपने देखती रहती थी.

‘‘नीलेश अच्छा लड़का तो है ही, उस की हैसियत भी हम से ऊपर है. अरे, तुम्हें तो खुश होना चाहिए जो उन्होंने अपने बेटे के लिए तुम्हारा हाथ मांगा, वरना क्या उन के बेटे के लिए लड़कियों की कमी है इस दुनिया में?’’

दिव्या के पिता मनोहर ने उसे समझाते हुए कहा था, पर एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि दिव्या मन से इस शादी के लिए तैयार है भी या नहीं.

मांबाप की मरजी और समाज में उन की नाक ऊंची रहे, यह सोच कर भारी मन से ही सही पर दिव्या ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी. वह कभी नहीं चाहेगी कि उस के कारण उस के मातापिता दुखी हों. कहने को तो लड़के वाले बहुत पैसे वाले थे लेकिन फिर भी उन्होंने मुंहमांगा दहेज पाया.

‘अब हमारी एक ही तो बेटी है. हमारे बाद जो भी है सब उस का ही है. तो फिर क्या हरज है अभी दें या बाद में’ यह सोच कर मनोहर और नूतन उन की हर डिमांड पूरी करते रहे, पर उन में तो संतोष नाम की चीज ही नहीं थी. अपने नातेरिश्तेदार को वे यह कहते अघाते नहीं थे कि उन की बेटी इतने बड़े घर में ब्याह रही है. लोग भी सुन कर कहते कि भई मनोहर ने तो इतने बड़े घर में अपनी बेटी का ब्याह कर गंगा नहा ली. दिल पर पत्थर रख दिव्या भी अपने प्यार को भुला कर ससुराल चल पड़ी. विदाई के वक्त उस ने देखा एक कोने में खड़ा अक्षत अपने आंसू पोंछ रहा था.

ससुराल पहुंचने पर नववधू का बहुत स्वागत हुआ. छुईमुई सी घूंघट काढ़े हर दुलहन की तरह वह भी अपने पति का इंतजार कर रही थी. वह आया तो दिव्या का दिल धड़का और फिर संभला भी़  लेकिन सोचिए जरा, क्या बीती होगी उस लड़की पर जिस की सुहागरात पर उस का पति यह बोले कि वह उस के साथ सबंध बनाने में सक्षम नहीं है और वह इस बात के लिए उसे माफ कर दे.

सुन कर धक्क रह गया दिव्या का कलेजा. आखिर क्या बीती होगी उस के दिल पर जब उसे यह पता चला कि उस का पति नामर्द है और धोखे में रख कर उस ने उसे ब्याह लिया?

पर क्यों, क्यों जानबूझ कर उस के साथ ऐसा किया गया? क्यों उसे और उस के परिवार को धोखे में रखा गया? ये सवाल जब उस ने अपने पति से पूछे तो कोई जवाब न दे कर वह कमरे से बाहर चला गया. दिव्या की पूरी रात सिसकतेसिसकते ही बीती. उस की सुहागरात एक काली रात बन कर रह गई.

सुबह नहाधो कर उस ने अपने बड़ों को प्रमाण किया और जो भी बाकी बची रस्में थीं, उन्हें निभाया. उस ने सोचा कि रात वाली बात वह अपनी सास को बताए और पूछे कि क्यों उस के जीवन के साथ खिलवाड़ किया गया? लेकिन उस की जबान ही नहीं खुली यह कहने को. कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे कि करे तो करे क्या, क्योंकि रिसैप्शन पर भी सब लोगों के सामने नीलेश उस के साथ ऐसे बिहेव कर रहा था जैसे उन की सुहागरात बहुत मजेदार रही. हंसहंस कर वह अपने दोस्तों को कुछ बता रहा था और वे चटकारे लेले कर सुन रहे थे. दिव्या समझ गई कि शायद उस के घर वालों को नीलेश के बारे में कुछ पता न हो. उन सब को भी उस ने धोखे में रखा हुआ होगा.

पगफेर पर जब मनोहर उसे लिवाने आए और पूछने पर कि वह अपनी ससुराल में खुश है, दिव्या खून का घूंट पी कर रह गई. फिर उस ने वही जवाब दिया जिस से मनोहर और नूतन को तसल्ली हो.

एक अच्छे पति की तरह नीलेश उसे उस के मायके से लिवाने भी आ गया. पूरे सम्मान के साथ उस ने अपने साससुसर के पांव छूए और कहा कि वे दिव्या की बिलकुल चिंता न करें, क्योंकि अब वह उन की जिम्मेदारी है. धन्य हो गए थे मनोहर और नूतन संस्कारी दामाद पा कर. लेकिन उन्हें क्या पता कि सचाई क्या है? वह तो बस दिव्या ही जानती थी और अंदर ही अंदर जल रही थी.

दिव्या को अपनी ससुराल आए हफ्ते से ऊपर का समय हो चुका था पर इतने दिनों में एक बार भी नीलेश न तो उस के करीब आया और न ही प्यार के दो बोल बोले, हैरान थी वह कि आखिर उस के साथ हो क्या रहा है और वह चुप क्यों है. बता क्यों नहीं देती सब को कि नीलेश ने उस के साथ धोखा किया है? लेकिन किस से कहे और क्या कहे, सोच कर वह चुप हो जाती.

एक रात नींद में ही दिव्या को लगा कि कोई उस के पीछे सोया है. शायद नीलेश है, उसे लगा लेकिन जिस तरह से वह इंसान उस के शरीर पर अपना हाथ फिरा रहा था उसे शंका हुई. जब उस ने लाइट जला कर देखा तो स्तब्ध रह गई, क्योंकि वहां नीलेश नहीं बल्कि उस का पिता था जो आधे कपड़ों में उस के बैड पर पड़ा उसे गंदी नजरों से घूर रहा था.

‘‘आ…आप, आप यहां मेरे कमरे में… क… क्या, क्या कर रहे हैं पिताजी?’’ कह कर वह अपने कपड़े ठीक करने लगी. लेकिन जरा उस का ढीठपन तो देखो, उस ने तो दिव्या को खींच कर अपनी बांहों में भर लिया और उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा. दिव्या को अपनी ही आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उस का ससुर ही उस के साथ…

‘‘मैं, मैं आप की बहू हूं. फिर कैसे आप मेरे साथ…’’ वह डर के मारे हकलाते हुए बोली.

‘‘ बहू,’’ ठहाके मार कर हंसते हुए वह बोला, ‘‘क्या तुम्हें पता नहीं है कि तुम्हें मुझ से ही वारिस पैदा करना है और इसीलिए ही तो हम तुम्हें इस घर में बहू बना कर लाए हैं.’’

सुन कर दिव्या को लगा जैसे किसी ने उस के कानों में पिघला शीशा डाल दिया हो. वह कहने लगी, ‘‘यह कैसी पागलों सी बातें कर रहे हैं आप? क्या शर्मोहया बेच खाई है?’’

पर वह कहां कुछ सुननेसमझने वाला था. फिर उस ने दिव्या के ऊपर झपट्टा मारा. लेकिन उस ने अपनेआप को उस दरिंदे से बचाने के लिए जैसे ही दरवाजा खोला, सामने ही नीलेश और उस की मां खड़े मिले. घबरा कर वह अपनी सास से लिपट गई और रोते हुए कहने लगी कि कैसे उस के ससुर उस के साथ जबरदस्ती करना चाह रहे हैं… उसे बचा ले.

‘‘बहुत हो चुका यह चूहेबिल्ली का खेल… कान खोल कर सुन लो तुम कि ये सब जो हो

रहा है न वह सब हमारी मरजी से ही हो रहा है और हम तुम्हें इसी वास्ते इस घर में बहू बना कर लाए हैं. ज्यादा फड़फड़ाओ मत और जो हो रहा है होने दो.’’

अपनी सास के मुंह से भी ऐसी बात सुन कर दिव्या का दिमाग घूम गया. उसे लगा वह बेहोश हो कर गिर पड़ेगी. फिर अपनेआप को संभालते हुए उस ने कहा, ‘‘तो क्या आप को भी पता है कि आप का बेटा…’’

‘‘हां और इसीलिए तो तुम जैसी साधारण लड़की को हम ने इस घर में स्थान दिया वरना लड़कियों की कमी थी क्या हमारे बेटे के लिए.’’

‘‘पर मैं ही क्यों… यह बात हमें बताई, क्यों नहीं गईं. ये सारी बातें शादी के पहले…

क्यों धोखे में रखा आप सब ने हमें? बताइए, बताइए न?’’ चीखते हुए दिव्या कहने लगी, ‘‘आप लोगों को क्या लगता है मैं यह सब चुपचाप सहती रहूंगी? नहीं, बताऊंगी सब को तुम सब की असलियत?’’

‘‘क्या कहा, असलियत बताएगी? किसे? अपने बाप को, जो दिल का मरीज है…सोच अगर तेरे बाप को कुछ हो गया तो फिर तेरी मां का क्या होगा? कहां जाएगी वह तुझे ले कर? दुनिया को तो हम बताएंगे कि कैसे आते ही तुम ने घर के मर्दों पर डोरे डलने शुरू कर दिए और जब चोरी पकड़ी गई तो उलटे हम पर ही दोष मढ़ रही है,’’ दिव्या के बाल खींचते हुए नीलेश कहने लगा, ‘‘तुम ने क्या सोचा कि तू मुझे पसंद आ गई थी, इसलिए हम ने तुम्हारे घर रिश्ता भिजवाया था? देख, करना तो तुम्हें वही पड़ेगा जो हम चाहेंगे, वरना…’’ बात अधूरी छोड़ कर उस ने उसे उस के कमरे से बाहर निकाल दिया.

पूरी रात दिव्या ने बालकनी में रोते हुए बिताई. सुबह फिर उस की सास कहने लगी, ‘‘देखो बहू, जो हो रहा है होने दो… क्या फर्क पड़ता है कि तुम किस से रिश्ता बना रही हो और किस से नहीं. आखिर हम तो तुम्हें वारिस जनने के लिए इस घर में बहू बना कर लाए हैं न.’’

इस घर और घर के लोगों से घृणा होने लगी थी दिव्या को और अब एक ही सहारा था उस के पास. उस के ननद और ननदोई. अब वे ही थे जो उसे इस नर्क से आजाद करा सकते थे. लेकिन जब उन के मुंह से भी उस ने वही बातें सुनीं तो उस के होश उड़ गए. वह समझ गई कि उस की शादी एक साजिश के तहत हुई है.

3 महीने हो चुके थे उस की शादी को. इन 3 महीनों में एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब दिव्या ने आंसू न बहाए हों. उस का ससुर जिस तरह से उसे गिद्ध दृष्टि से देखता था वह सिहर उठती थी. किसी तरह अब तक वह अपनेआप को उस दरिंदे से बचाए थी. इस बीच जब भी मनोहर अपनी बेटी को लिवाने आते तो वे लोग यह कह कर उसे जाने से रोक देते कि अब उस के बिना यह घर नहीं चल सकता. उन के कहने का मतलब था कि वे लोग दिव्या को बहुत प्यार करते हैं. इसीलिए उसे कहीं जाने नहीं देना चाहते हैं.

मन ही मन खुशी से झूम उठते मनोहर यह सोच कर कि उन की बेटी का उस घर में कितना सम्मान हो रहा है. लेकिन असलियत से वे वाकिफ नहीं थे कि उन की बेटी के साथ इस घर में क्याक्या हो रहा है…दिव्या भी अपने पिता के स्वास्थ्य के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहती थी, इसलिए चुप थी. लेकिन उस रात तो हद हो गई जब उसे उस के ससुर के साथ एक कमरे में बंद कर दिया गया. वह चिल्लाती रही पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला. क्या करती बेचारी? उठा कर फूलदान उस दरिंदे के सिर पर दे मारा और जब उस के चिल्लाने की आवाजों से वे सब कमरे में आए तो वह सब की नजरें बचा कर घर से भाग निकली.

अपनी बेटी को यों अचानक अकेले और बदहवास अवस्था में देख कर मनोहर और नूतन हैरान रह गए, फिर जब उन्हें पूरी बात का पता चली तो जैसे उन के पैरों तले की जमीन ही खिसक गई. आननफानन में वे अपनी बेटी की ससुराल पहुंच गए और जब उन्होंने उन से अपनी बेटी के जुल्मों का हिसाब मांगा और कहा कि क्यों उन्होंने उन्हें धोखे में रखा तो वे उलटे कहने लगे कि ऐसी कोई बात नहीं. उन्होंने ही अपनी पागल बेटी को उन के बेटे के पल्ले बांध दिया. धोखा तो उन के साथ हुआ है.

‘‘अच्छा तो फिर ठीक है, आप अपने बेटे की जांच करवाएं कि वह नपुंसक है या नहीं और मैं भी अपनी बेटी की दिमागी जांच करवाता हूं. फिर तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा न? तुम लोग क्या समझे कि हम चुप बैठ जाएंगे? नहीं, इस भ्रम में मत रहना. तुम सब ने अब तक मेरी शालीनता देखी है पर अब मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि मैं क्या कर सकता हूं. चाहे दुनिया की सब से बड़ी से बड़ी अदालत तक ही क्यों न जाना पड़े हमें, पर छोड़ूंगा नहीं…तुम सब को तो जेल होगी ही और तुम्हारा बाप, उसे तो फांसी न दिलवाई मैं ने तो मेरा भी नाम मनोहर नहीं,’’ बोलतेबोलते मनोहर का चेहरा क्रोध से लाल हो गया.

मनोहर की बातें सुन कर सब के होश उड़ गए, क्योंकि झूठे और गुनहगार तो वे लोग थे ही अत: दिन में ही तारे नजर आने लगे उन्हें.

‘‘क्या सोच रहे हो रोको उसे. अगर वह पुलिस में चला गया तो हम में से कोई नहीं बचेगा और मुझे फांसी पर नहीं झूलना.’’ अपना पसीना पोछते हुए नीलेश के पिता ने कहा.

उन लोगों को लगने लगा कि अगर यह बात पुलिस तक गई तो इज्जत तो जाएगी ही, उन का जीवन भी नहीं बचेगा. बहुत गिड़गिड़ाने पर कि वे जो चाहें उन से ले लें, जितने मरजी थप्पड़ मार लें, पर पुलिस में न जाएं.

‘कहीं पुलिसकानून के चक्कर में उन की बेटी का भविष्य और न बिगड़ जाए,’ यह सोच कर मनोहर को भी यही सही लगा, लेकिन उन्होंने उन के सामने यह शर्त रखी कि नीलेश दिव्या को जल्द से जल्द तलाक दे कर उसे आजाद कर दे.

मरता क्या न करता. बगैर किसी शर्त के नीलेश ने तलाक के पेपर साइन कर दिए, पहली सुनवाई में ही फैसला हो गया.

वहां से तो दिव्या आजाद हो गई, लेकिन एक अवसाद से घिर गई. जिंदगी पर से उस

का विश्वास उठ गया. पूरा दिन बस अंधेरे कमरे में पड़ी रहती. न ठीक से कुछ खाती न पीती और न ही किसी से मिलतीजुलती. ‘कहीं बेटी को कुछ हो न जाए, कहीं वह कुछ कर न ले,’ यह सोचसोच कर मनोहर और नूतन की जान सूखती रहती. बेटी की इस हालत का दोषी वे खुद को ही मानने लगे थे. कुछ समझ नहीं आ रहा था उन्हें कि क्या करें जो फिर से दिव्या पहले की तरह हंसनेखिलखिलाने लगे. अपनी जिंदगी से उसे प्यार हो जाए.

‘‘दिव्या बेटा, देखो तो कौन आया है,’’ उस की मां ने लाइट औन करते हुए कहा तो उस ने नजरें उठा कर देखा पर उस की आंखें चौंधिया गईं. हमेशा अंधेरे में रहने और एकाएक लाइट आंखों पर पड़ने के कारण उसे सही से कुछ नहीं दिख रहा था, पर जब उस ने गौर से देखा तो देखती रह गई, ‘‘अक्षत,’’ हौले से उस के मुंह से निकला.

नूतन और मनोहर जानते थे कि कभी दिव्या और अक्षत एकदूसरे से प्यार करते थे पर कह नहीं पाए. शायद उन्हें बोलने का मौका ही नहीं दिया और खुद ही वे उस की जिंदगी का फैसला कर बैठे. ‘लेकिन अब अक्षत ही उन की बेटी के होंठों पर मुसकान बिखेर सकता था. वही है जो जिंदगी भर दिव्या का साथ निभा सकता है,’ यह सोच कर उन्होंने अक्षत को उस के सामने ला कर खड़ा कर दिया.

बहुत सकुचाहट के बाद अक्षत ने पूछा, ‘‘कैसी हो दिव्या?’’ मगर उस ने कोई जवाब

नहीं दिया. ‘‘लगता है मुझे भूल गई? अरे मैं अक्षत हूं अक्षत…अब याद आया?’’ उस ने उसे हंसाने के इरादे से कहा पर फिर भी उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

धीरेधीरे अक्षत उसे पुरानी बातें, कालेज के दिनों की याद दिलाने लगा. कहने लगा कि कैसे वे दोनों सब की नजरें बचा कर रोज मिलते थे. कैसे कैंटीन में बैठ कर कौफी पीते थे. अक्षत उसे उस के दुख भरे अतीत से बाहर लाने की कोशिश कर रहा था, पर दिव्या थी कि बस शून्य में ही देखे जा रही थी.

दिव्या की ऐसी हालत देख कर अक्षत की आंखों में भी आंसू आ गए. कहने लगा, ‘‘आखिर तुम्हारी क्या गलती है दिव्या जो तुम ने अपनेआप को इस कालकोठरी में बंद कर रखा है? ऐसा कर के क्यों तुम खुद को सजा दे रही हो? क्या अंधेरे में बैठने से तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी या जिसने तुम्हारे साथ गलत किया उसे सजा मिल जाएगी, बोलो?’’

‘‘तो मैं क्या करूं अक्षत, क्या कंरू मैं? मैं ने तो वही किया न जो मेरे मम्मीपापा ने चाहा, फिर क्या मिला मुझे?’’ अपने आंसू पोंछते हुए दिव्या कहने लगी. उस की बातें सुन कर नूतन भी फफकफफक कर रोने लगीं.

दिव्या का हाथ अपनी दोनों हथेलियों में दबा कर अक्षत कहने लगा, ‘‘ठीक है, कभीकभी हम से गलतियां हो जाती हैं. लेकिन इस का

यह मतलब तो नहीं है कि हम उन्हीं गलतियों को ले कर अपने जीवन को नर्क बनाते रहें… जिंदगी हम से यही चाहती है कि हम अपने उजाले खुद तय करें और उन पर यकीन रखें. जस्ट बिलीव ऐंड विन. अवसाद और तनाव के अंधेरे को हटा कर जीवन को खुशियों के उजास से भरना कोई कठिन काम नहीं है, बशर्ते हम में बीती बातों को भूलने की क्षमता हो.

‘‘दिव्या, एक डर आ गया है तुम्हारे अंदर… उस डर को तुम्हें बाहर निकालना होगा. क्या तुम्हें अपने मातापिता की फिक्र नहीं है कि उन पर क्या बीतती होगी, तुम्हारी ऐसी हालत देख कर. अरे, उन्होंने तो तुम्हारा भला ही चाहा था न… अपने लिए, अपने मातापिता के लिए,

तुम्हें इस गंधाते अंधेरे से निकलना ही होगा दिव्या…’’

अक्षत की बातों का कुछकुछ असर होने लगा था दिव्या पर. कहने लगी, ‘‘हम अपनी खुशियां, अपनी पहचान, अपना सम्मान दूसरों से मांगने लगते हैं. ऐसा क्यों होता है अक्षत?’’

‘‘क्योंकि हमें अपनी शक्ति का एहसास नहीं होता. अपनी आंखें खोल कर देखो गौर से…तुम्हारे सामने तुम्हारी मंजिल है,’’ अक्षत की बातों ने उसे नजर उठा कर देखने पर मजबूर कर दिया. जैसे वह कह रहा हो कि दिव्या, आज भी मैं उसी राह पर खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, जहां तुम मुझे छोड़ कर चली गई थी. बस तुम्हारी हां की देर है दिव्या. फिर देखो कैसे मैं तुम्हारी जिंदगी खुशियों से भर दूंगा.

अक्षत के सीने से लग दिव्या बिलखबिलख कर रो पड़ी जैसे सालों का गुबार निकल रहा हो उस की आंखों से बह कर. अक्षत ने भी उसे रोने दिया ताकि उस के सारे दुखदर्द उन आंसुओं के सहारे बाहर निकल जाएं और वह अपने डरावने अतीत से बाहर निकल सके.

बाहर खड़े मनोहर और नूतन की आंखों से भी अविरल आंसू बहे जा रहे थे पर आज ये खुशी के आंसू थे.

युवाओं में बढ़ता फ्लेवर हुक्के का क्रेज, जानें क्या है नुकसान

पुराने समय में गांवों से हुक्का लोग बड़े शोक से पीते थे. आज शहरों में इस चलन ने नए रूप के साथ फिर से शुरूआत की है. आज शहरों में पार्टी या फिर किसी खास महफिल में हुक्का ना हो तो पार्टी पूरी ही नहीं होती. दिल्ली, मुबंई जैसे शहरों में हुक्का बार की भरमार है. और यहां आपको किसी भी हुक्का बार में लड़के-लड़कियां हुक्का के कश लगाते मिल जाएंगे. कुछ लोग इस गलत फहमी में भी हुक्का पीते हैं कि इससे किसी तरह का कोई नुकसान नही होता.

सिगरेट से ज्यादा खतरनाक हुक्का

युनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया के रिपोर्ट के मुताबिक हुक्का सिगरेट से भी ज्यादा नुकसानदेह होता है. इसमें निकोटीन के साथ हशिश (एक तरह का ड्रग) का इस्तेमाल होती है. साथ ही इसमें फ्लेवर के लिए जिन फ्लेवर का इस्तेमाल किया जाता है वो भी सेहत के लिए नुकसानदेह होता है. कुछ लोगों को मानना है कि हर्बल हुक्का स्वास्थय के लिए हानिकारक नही होता. अगर आप भी कुछ ऐसा ही सोचते है तो यह बिल्कुल गलत है क्योंकि वो भी उतना ही नुकसान पहुंचाता है जितना बाकि हुक्का पीने से होता है.

सिगरेट के तंबाकू से ज्यादा खतरनाक हुक्का का तंबाकू

रिपोर्ट के मुताबिक हुक्का पीना इसलिए भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि जब भी कोई हुक्का पीता है तो वो लगभग 30 से 45 मिनट तक हुक्का पीता है. इतने समय तक लगातार कार्बन मोनोऔक्साइड शरीर के अंदर जाता है जो सिगरेट से ज्यादा खतरनाक होता है. रिपोर्टकर्ताओं के मुताबिक कार्बन मोनोऔक्साइड शरीर के लिए जहर जैसा काम करता है.

दिल के लिए खतरनाक है हुक्का

रिपोर्ट के मुताबिक फ्लेवर वाले तंबाकू से लेड और खतरनाक विषैले रसायन बनते है जो हार्ट के लिए खतरनाक साबित होते हैं. साथ ही हुक्का पीने वालों में दिल की बीमारियां होने के चांस बढ़ जाते है. हुक्का पीने वाले लोगों की धमनियां धीरे-धीरे सख्त हो जाती है. यह हार्ट टैक, स्ट्रोक और कार्डियो वैस्कुलर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण भी बनता है.

कैंसर का होता है खतरा

रिपोर्ट के अनुसार, जो लोग यह मानते है कि पानी से धुएं के गुजरने से प्रदूषक तत्व छन जाते हैं और फेफड़ों को नुकसान नहीं पहुंचता, वो गलत सोचते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक हुक्का पीने से मुंह, फेफड़ा और ब्लड कैंसर के पूरे चांस होते है. इसके अलावा यह हृदय रोग और धमनियों में थक्के जमने की समस्या की भी वजह बन सकता है.

हिंदू कायर नहीं

हिंदुओं का एक वर्ग समझता है कि यह विजय विधर्मियों की है, यह हार उन की है जो राम को वापस विशाल मंदिर में लाए थे. वे भ्रम में हैं. उस वर्ग को यह गलतफहमी है कि देश का कल्याण किसी देवीदेवता से हो सकता है. जिन देवीदेवताओं को पूज कर वह अपने और देश के कल्याण की तमन्ना कर रहा है, वही पुराण जहां से उस ने उन देवीदेवताओं के बारे में जाना है, वे देवीदेवता जीवनभर परेशान रहे, कष्ट भोगते रहे और न खुद सुख पा सके, न ही अपने साथ वालों को सुख दे सके.

यह माइंड कंडीशनिंग का कमाल है कि हम उन्हें पूजते हैं, उन के नाम पर लड़तेमरते हैं जिन्हें अपनों ने धोखा दिया, जिन्हें जिंदा सूली पर चढ़ाया गया, जिन के हाथों में कीलें ठोकी गईं. हर धर्म के पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में ही इस का स्पष्ट विवरण है.

इसलिए अफसोस यह न करिए कि हिंदू कौम गद्दार या कायर या विभाजित है. दुनिया के इस भौगोलिक श्रेत्र की जनता बेहद कर्मठ है, बेहद प्राकृतिक आपदाओं को झेलने लायक है, बेहद ज्ञानी है और सब से बड़ी बात यह कि संख्या में बेहद अधिक है. इस की कोई हानि कर सकता है तो इस के अपने ही लोग कर सकते हैं. गलत शासक, गलत नेता, गलत मार्गदर्शक, गलत पुजारी, गलत दक्षिणपंथी अपने पैसे या भक्ति के लालच में इस जनता को लूट सकता है, चूस सकता है, उस के प्रति क्रूर हो सकता है, चंद सिक्कों की खातिर विदेशी के हाथों बेच भी सकता है.

यहां मंदिर, यहां चौड़ा रास्ता, वहां आश्रम देश की जनता के लिए नहीं, उन स्थलों के दुकानदारों के लिए है. दर्द उन्हें तो होगा जिकी दुकानदारी कमजोर हो रही है. देश की जनता तो ऐसी है कि इसे 2 रोटी दोगे तो 200 रोटी पैदा कर देगी. फिजी, मौरिशस जैसे देश, जहां भारतवंशी ही हैं, भारत से कहीं ज्यादा उन्नत हैं. भारतीय मजदूरों ने पूरे रेगिस्तानी पश्चिमी एशिया के देशों को रेत से स्वर्ग बना डाला. यह जनता देश का कायापलट कर सकती है. इसे तो पौराणिकवादियों, दक्षिणपंथियों के चुंगल से बचाना है. हिंदू न कायर है न कामचोर है. वह सिर्फ पथभ्रष्ट है क्योंकि उस को पट्टी पढ़ाने वाले बेहद चालाक, चतुर और चालबाज हैं.

संविधान और मतदाता

4 जून, 2024 को देश की जनता, खासतौर पर गंगा, यमुना और सरयू के किनारे बसे सैकड़ों तीर्थों के राज्य उत्तर प्रदेश की जनता, के मतदान का जो फैसला आया, उस ने देश को उस गड्ढे में गिरने से बचा दिया है जिस में भारतीय जनता पार्टी और उस की पितामह संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने स्वार्थों के लिए जन्म से ही नहीं, उस से पहले से धकेल रही थी. यह गड्ढा है उस उच्च वर्णवाद का है जिस बारे में हमारे पौराणिक ग्रंथ भरे पड़े हैं और जिस काल्पनिक काल को इन ग्रंथों से पढ़पढ़ कर देश पर थोपने की तैयारी चल रही थी.

देश में कलम से लिखने का अधिकार देश के उन ज्ञानियों, ऋषियों, मुनियों के पास भी बहुत देर से आया था. पहले संस्कृत में बोले गए शब्द पीढ़ियों दर पीढिय़ों याद किए जाते थे, बाद में बौद्धकाल में जन्मी लिपि देवनागरी में उन्हें लिखा गया. इन ग्रंथों के आधार पर ही अंतिम हिंदू बड़े राजा मराठा पेशवाओं ने 50-60 साल राज किया जब घरेलू कारणों से मुगल साम्राज्य छिन्नभिन्न हो गया और एक साधारण किसान शिवाजी ने आज के महाराष्ट्र में अपना राज्य स्थापित किया. बाद में सत्ता पर कब्जा ब्राह्मण ज्ञानी पेशवाओं ने हथिया लिया और उस के बाद इस देश में सामाजिक परिवर्तनों का दौर समाप्त हो गया.

उस के बाद कांग्रेस के दौर में 1947 की आजादी के बाद जो सामाजिक बदलाव आए जिन्होंने बराबरी, स्वतंत्रताओं वाला राज्य स्थापित किया जो शास्त्रों के अनुसार नहीं संविधान के अनुसार चला, उस का श्रेय जवाहरलाल नेहरू को लगभग अकेले जाएगा. संविधान के अंतर्गत हिंदू विवाह कानून, हिंदू विरासत कानून, जमींदार उन्मूलन कानून, श्रम कानूनों, राज्यों में पैसों के बंटवारे के कानून, टैक्स वसूली के कभी कटु तो कभी सरल कानून, लोहे के कारखानों, बिजलीघरों, बांधों, नहरों, सडक़ों के जाल से जो शुरुआत हुई उस का पटाक्षेप 1998 में हुआ जब अटल बिहारी वापजेयी की सरकार बनी.

तब से ले कर 4 जून, 2024 तक देश में पौराणिक भय का माहौल बना रहा कि न जाने कब कौन से कोने से दुर्वासा ऋषि निकल आएं और देर रात को 10,000 शिष्यों को तुरंत खाना खिलाने की मांग करने लगें (महाभारत की कथा, वह भी तब कि जब पांडव जुए में हार कर जंगलों में मारेमारे फिर रहे थे) वरना भस्म करने का आदेश मौजूद है.
पिछले 10 सालों में हर लेखक, हर विचारक, हर आलोचक, हर इतिहासकार, हर न्यायविद और यहां तक कि हर वैज्ञानिक डरासहमा रहा है कि न जाने कब कौन दुर्वासानुमा अफसर दरवाजा खटखटा दे. समझदार पढ़ेलिखे लोग ही नहीं, देश के हर धर्म के अल्पसंख्यक बौद्ध, सिख, जैन, मुसलमान, ईसाई डरेसहमे रहे. सच को सच बोलने वाले, तथ्य को तथ्य की तरह पेश करने वाले, तर्क को तर्क की तरह कहने वालों के मुंह पर टेप लगा रहा था.

जो बोल रहे थे वे ही थे जो उस पौराणिक महिमा का गुणगान करने के विशेषज्ञ बन चुके थे, जिन्होंने सोच लिया था कि उन का ऋषियोंमुनियों वाला सा मुखिया अनंत है और देश को उसी पौराणिक गड्ढे में रहना होगा जिस का वर्णन हर पौराणिक ग्रंथ के हर पृष्ठ पर है.

इन पौराणिक ग्रंथों को साधारण भाषा में परिवर्तित करने वाले तुलसीदास के राज्य उत्तर प्रदेश में पौराणिक पार्टी को बड़ा झटका लगा और उस की 80 में से केवल 34 सीटें रह गईं. यह सुखद आश्चर्य है. यह आश्चर्य क्षण मंगुर है या इस का परिणाम लंबा निकलेगा और उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरा देश इस उस वाले गड्ढे से निकलने में सफल होगा या नहीं, कहना अभी संभव नहीं है.

उम्मीद जरूर बंधी है कि मोदी के नेतृत्व वाली, पहले मूर्तियों के आगे शाष्टांग पसर जाने वाली सरकार अब अपना शासन का काम करेगी, धर्मकर्म, पंडेपुजारियों और दक्षिणा की आस में बैठे दक्षिणापंथियों से अपने को बदलेगी या जनता उसे बदलेगी.

इन 10 सालों में देश ने प्रगति की है, इस में दो राय नहीं पर उस का मुख्य श्रेय उन 135 करोड़ कर्मठ मजदूरों को जाता है जिन्होंने देश में रह कर या देश से बाहर जा कर पैसा कमाया और न केवल सरकार को टैक्स दिया और सरकार के चलाए जा रहे धार्मिक आयोजनों में भी भरभर कर दान दिया. लेकिन यह साफ है कि तमाम प्रवचनों, प्रचार, भक्त चैनलों के धुआंधार कार्यक्रमों, रामायणों, महाभारतों के बारबार दोहराने के बावजूद देश की 50 से अधिक प्रतिशत तो वोट दे कर समझती रही कि उसे लगातार छला जा रहा है. उस से न केवल पैसा छीना जा रहा है बल्कि उस का सम्मान, उस के खेत, उस की उत्पादन और यहां तक कि उस की औरतें छीनी जा रही हैं.

4 जून, 2024 को आम चुनावों का जो पटाक्षेप हुआ उस ने एक नई आशा को जन्म दिया है कि देश में आपसी प्रेम, बराबरी, स्वतंत्रताओं, निष्पक्ष संस्थाओं, सहयोगी, क्रूर नहीं, शासन की उम्मीद को जिंदा रखेगी. थोड़े से प्रयास से वह क्रांति भी हो सकती है जिस के लिए कई देशों के इतिहास में करोड़ों को मरना पड़ा था. यह उस संविधान की देन है जिसे जवाहरलाल नहेरू की सरकार ने 1950 में लागू किया था. वह संविधान उस पैन की ताकत को वापस लौटाएगा क्या जिस की स्याही के नीले या काले रंग को भगवा रंग में बदला जा रहा था, सवाल फिर से खड़ा हो गया है क्योंकि संविधान की आत्मा को तो 10 सालों में हजारों बार कुचला गया है.

राम मंदिर मुद्दे का पटाक्षेप, अब सहायक दलों के सहारे नरेंद्र मोदी

80 के दशक में जब जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ. उस की राजनीति का केंद्र अयोध्या का राम मंदिर बना. अयोध्या में राम मंदिर का विवाद नया नहीं था. यह अदालत में चल रहा था. आजादी के बाद कांग्रेस इस मुद्दे को ले कर असमंजस में थी. कांग्रेस का एक धड़ा इस के समर्थन में था जबकि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सोच इस मुद्दे से दूर रहने की थी. जिस वजह से 80 के दशक तक यह मुद्दा फैजाबाद की कचहरी तक सीमित था. भाजपा को इस मुद्दे में जान दिख रही थी. आरएसएस इस आंदोलन की भूमिका बना चुका था. इस के लिए विश्व हिंदू परिषद और रामजन्मभूमि न्यास का गठन हो चुका था.

आरएसएस की सोच इस मुद्दे की लड़ाई को कोर्ट कचहरी से बाहर राजनीतिक रूप से लड़ने की थी. इस में भाजपा की भूमिका प्रमुख थी. आंदोलन को धार देने के लिए शिलापूजन और ईंट पूजन जैसे कार्यक्रम हुए. जनता का रूझान देख कर उस समय कांग्रेस के प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर अयोध्या मसले में दखल देने का दबाव बना. इस के बाद कांग्रेस ने मंदिर का ताला खुलवाने में प्रमुख भूमिका अदा की. उस समय भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी को इस की कमान सौंपी गई. उन के साथ कई प्रमुख नेताओं को लगाया गया. सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा की कमान उन के हाथ सौंपी गई.

इस के बाद प्रधानमंत्री बने चन्द्रशेखर ने भी अयोध्या विवाद को सुलझाने की कोशिश की. भाजपा और उस के साथी संगठनों ने इस मुद्दे को जिंदा रखने के लिए किसी भी तरह के समझौते से इंकार कर दिया. इस मुद्दे का असर था कि 1984 में लोकसभा की 2 सीट जीतने वाली भाजपा ने 1989 के लोकसभा चुनाव में 88 सीट मिल गई. दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में मंदिर मुद्दे ने कांग्रेस का नुकसान किया. नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस आखिरी मुख्यमंत्री बने इस के बाद आज तक कांग्रेस कभी उत्तर प्रदेश में सरकार नहीं बना पाई.

उत्तर प्रदेश में राममंदिर आंदोल बढ़ा. प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने कंमडल की इस राजनीति का मुकाबले करने के लिए मंडल कमीशन की मांगे मान लीं. इस को ‘मंडल बनाम कमंडल’ मुद्दे के रूप में जाना जाता है. 1990 में मुलायम सिंह यादव ने कार सेवकों को रोकने के लिए गोलियां चलवाई. जिस के बाद 1991 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव जीत कर सरकार बनाने में सफल हुई.

1992 में कार सेवकों ने राममंदिर पर कार सेवा करने के नाम पर ढांचा गिरा दिया. इस बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे भाजपा नेता कल्याण सिंह. जिस वजह से पुलिस ने बल प्रयोग नहीं किया. जिस से अयोध्या का विवादित ढांचा गिरा दिया गया. भाजपा की चारों राज्य सरकारें बर्खास्त हो गईं. इस के बाद राममंदिर मुद्दा वापस कोर्ट कचहरी के बीच सिमट गया. 1999 से 2004 की अटल सरकार पर दबाव बना पर कुछ हो नहीं पाया.

2009 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला मंदिर के पक्ष में आया. जिस को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. 10 साल बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को हल किया. मंदिर और मस्जिद बनाने का रास्ता खोल दिया. उस समय केंद्र की मोदी सरकार ने इसे लपक लिया और मंदिर बनाने की कवायद सरकार ने ले ली. रामजन्मभूमि ट्रस्ट केवल दिखावे के लिए था.

मोदी सरकार ने 2024 के लोकसभा चुनाव के केंद्र में राममंदिर को रख कर तैयारी शुरू की. इस की योजना यह थी कि चुनाव के पहले मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम हो पाए. भूमि पूजन से ले कर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम चुनावी और भव्य रखे गए. जिस से वोट लेने में मदद मिले. अयोध्या को भव्यरूप दिया गया. पूरा चुनाव इस तरह से तैयार किया गया कि एक तरफ मंदिर दर्शन करने वाले नेता थे दूसरी तरफ मंदिर दर्शन न करने वाले नेता. भाजपा को उम्मीद थी कि चुनाव में मंदिर दर्शन न करने वाले नेताओं को नकार देगी.

माहौल ऐसा बना था कि मंदिर दर्शन न करने वाले राहुल गांधी और अखिलेश यादव जैसे नेताओं का आत्मविश्वास हिल गया था. भाजपा को उम्मीद थी कि 2024 में उस की जीत में कोई दिक्कत नहीं आएगी. इसी आत्मविश्वास में 400 पार का नारा दे दिया. जब 4 जून को चुनाव परिणाम आए तो भाजपा को सब से करारी हार राम के उत्तर प्रदेश में मिली.

कांग्रेस को 2009 के मुकाबले लोकसभा चुनाव में सब से अधिक 6 सीट जीतने का मौका मिला. समाजवादी पार्टी को पहली बार लोकसभा चुनाव में 37 सीटे मिल गईं. सपा और कांग्रेस गठबंधन चुनाव लड़ा था. भाजपा का राममंदिर कार्ड पूरी तरह से फेल हो गया. पूरे देश में भाजपा को केवल 240 सीट मिलीं जो 2014 और 2019 के मुकाबले कम है.

2024 में भाजपा बहुमत से दूर है. एनडीए मुश्किल से 293 सीट जीत कर बहुमत के पास है. इस बार नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन की मोहताज है. ऐसे में नरेंद्र मोदी भले पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बराबरी कर लें मगर वे ऐसी सरकार की कमान संभालेंगे जिस पर उन का नियंत्रण अब काफी कम होगा. उन्हें अपने घटक दलों के रहमोंकरम पर रहना पड़ेगा. सुगबुगाहट भी है कि एनडीए के अंदर नरेंद्र मोदी के विरोध की हवा चल रही है. ऐसे में प्रधानमंत्री के लिए नरेंद्र मोदी का विकल्प देखा जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.

2024 की हार ने राजनीति से मंदिर मुद्दे का पटाक्षेप कर दिया है. अब एनडीए की सरकार बनी तो भी उसे अटल सरकार की तरह विवादित मुद्दों से दूर रहना होगा. जो अभी बिना सरकार बने देखने को मिलने लगा है. मोदी जैसे धार्मिक चेहरे को भी स्वीकार किया जाना सरल नहीं लग रहा है.

बिहार का छोरा चिराग पासवान बन गए हैं मोस्‍ट एलीजिबल बैचलर

राजनीतिक करियर में चिराग पासवान हो रहे हैं सफल

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास पासवान) के सुप्रीमो 41 साल के चिराग पासवान (Chirag Paswan) 5 सीट पर चुनाव लड़ा था, जिसमें वैशाली, हाजीपुर, जमुई, समस्तीपुर, वैशाली और खगड़िया शामिल हैं और सबसे दिलचस्प बात यह है कि चिराग ने इन पांचों सीटों पर जीत हासिल की है, लेकिन क्या आप जानते हैं, चिराग राजनीति ही नहीं फिल्मों में भी काम कर चुके हैं. आपको बता दें कि उन्होंने फिल्म ‘मिलें ना मिलें हम’ में काम किया है. यह फिल्म में साल 2011 में आई थी, लेकिन बौक्स औफिस पर फ्लौप हो गई. हालांकि बौलीवुड में उनका करियर कुछ खास काम नहीं किया, लेकिन इस लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों से यह साबित होता है कि चिराग पासवान राजनीति में अपना सिक्का जमा चुके हैं.

चिराग की फैन फौलोइंग हैं लड़कियां

चिराग पासवान की फैन फौलोइंग में सबसे ज्यादा लड़कियां शामिल हैं, इनकी पर्सनालिटी लड़कियों को काफी आकर्षित करती है, चिराग के बोलने की शैली भी काफी प्रभावित करती है. इनके पर्सनल लाइफ की बात करे, तो वो अब तक कुंवारे हैं, हालांकि इनके पिता रामविलास पासवान ने दो-दो शादियां की थी, चिराग दूसरी पत्नी के बेटे हैं.

एक समय था, परिणीति चोपड़ा से शादी करने तक राघव चड्ढा मोस्ट एलिजिबल बैचलर थे. कुछ सालों पहले सोशल मीडिया पर एक लड़की ने ट्विट किया था, उसने यह ट्टिट बिजली कटने से परेशान होकर लिखा था कि ”जब भी घर आओ लाइट ही नहीं होती.” इसके बाद आप पार्टी के समर्थक करना वाला एक शख्स ने लिखा , इस बार ‘आप’ को वोट दो और 24 घंटे मुफ्त बिजली पाओ.

उसके बाद उस लड़की ने जवाब में लिखा था, ‘मैं राघव चाहती हूं, बिजली नहीं.’  राघव चड्ढ़ा भी लड़कियों के बीच काफी पौपुलर हैं, शादी के बाद राघव और परिणीति ने खूब सुर्खियां बटोरीं.

कब  बसाएंगे चिराग अपना घर

चिराग पासवान की शादी की बात करे, तो एक इंटरव्यू में बातचीत के दौरान पूछा गया कि आपके दोनों परिवार बौलीवुड और राजनीति में सलमान खान और राहुल गांधी अब तक शादी नहीं की, तो क्या आप भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चलना चाहते हैं या उनकी शादी होने का इंतजार कर रहे हैं, इसके बाद चिराग ने हंसते हुए जवाब दिया और कहा कि ”इंतजार ही कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद चिराग ने ये भी कहा कि शादी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और मैं उसको हैंडिल भी नहीं कर सकता.”

चिराग की अफेयर के बारे में जानने के लिए लोगों को काफी दिलचस्पी होती है, हालांकि उनका नाम पंजाबी एक्ट्रेस नीरू बाजवा के साथ जुड़ा था. लेकिन इस साल चुनाव में चिराग की लौटरी लग गई और इस जीत के बाद भी आशा कर सकते हैं कि चिराग बैंडबाजा लेकर अपनी दुल्हनिया लेने जाएंगे.

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