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महानगर की एक रात

अनन्या ने अपने कपड़ों की ओर देखा. सिर से पांव तक ढकी हुई थी वह. इन का चयन उस ने जानबूझ कर किया था ताकि वह अपनी ओर से किसी को आमंत्रित देती न लगे. फिर उसे अपनी इस सोच पर क्रोध आया कि दुनिया की कौन सी लड़की इस बात के लिए किसी को आमंत्रण देती होगी.

अनन्या ने कार का शीशा कुछ नीचे कर लिया. इतना भर कि कांच में एक पतली लकीर दिखने लगी. उस पतली लकीर से आती हवा नश्तर की तरह उस का चेहरा चीरने लगी. वह ठंड से कांप उठी.

‘‘मैडम, खिड़की बंद कर दीजिए,’’ टैक्सी ड्राइवर की आवाज आई.

‘‘क्यों?’’ अनन्या अपनी आवाज जबरन कड़क कर बोली.

‘‘मैडम, ठंडी हवा आ रही है.’’

ड्राइवर की बात ठीक थी. लेकिन उस ने यह सोच कर अनसुना कर दिया कि अचानक चिल्लाने की जरूरत पड़ गई तो आवाज बाहर जा सकेगी. वह पतली लकीर डूबते को तिनके का सहारा साबित होगा.

थोड़ी देर बाद अनन्या की नजर बैक व्यू मिरर पर गई. ड्राइवर उसे ही देख रहा था. अनन्या ने अपना स्टोल गरदन में कस कर लपेट लिया. उसे क्यों देख रहा है? उस की आंखें उसे अजीब लगीं. बहुत अजीब. लाल डोरों से अटी हुईं. क्या उस ने शराब पी रखी है? उस ने गहरी सांस ली. भीतर की हवा नशीली थी, लेकिन उस के अपने परफ्यूम में सनी हुई. शराब की गंध का ओरछोर वह नहीं पा सकी थी.

वह सोच में डूबी थी कि ड्राइवर की आवाज फिर आई, ‘‘मैडम, खिड़की बंद कर लीजिए प्लीज.’’

ड्राइवर ने स्वैटर के नाम पर पतली सी स्वैटशर्ट पहन रखी थी. उस की आवाज में कंपकंपी भर गई थी. खाली सड़क पर 80 की स्पीड से भागती गाड़ी और जनवरी महीने की कड़ाके की ठंड. वह खिड़की बंद करने लगी कि उस की नजर एक बार फिर ड्राइवर पर गई. वह मुसकरा रहा था. हो सकता है यह उस के प्रोफैशन का हिस्सा हो, लेकिन उसे मुसकराते देख अनन्या उखड़ गई. आवाज में तेजी ला कर बोली, ‘‘खिड़की बंद नहीं होगी. मेरा दम घुटता है बंद गाड़ी में.’’

इस के बाद ड्राइवर कुछ नहीं बोला. उस की मुसकराहट भी बुझ गई. अब वह चुपचाप गाड़ी चला रहा था.

‘‘और कितनी दूर है?’’ अनन्या ने पूछा.

ड्राइवर ने सुना नहीं या सुन कर भी चुप रह गया, ये 2 बातें थीं और दोनों का अलगअलग अर्थ था. अनन्या का दिमाग अब अधिक सक्रिय हो चला था. मान लो उस ने सुन ही लिया तो जवाब क्यों नहीं दिया? हो सकता है उस के खिड़की खोलने से गुस्से में हो या वह बताना ही न चाहता हो. न बताने के भी बहुत कारण हो सकते थे जैसे वह वहां जा ही न रहा हो जहां उसे जाना है. यह खयाल उसे परेशान करने के लिए काफी था. उसे मालूम करना होगा कि वह सही रास्ते पर है या नहीं.

अनन्या सड़क को देखते हुए कोई पहचान खोज ही रही थी कि उसे झट से याद आया. फिर अपने ऊपर क्रोध भी आया कि यह विचार उस के मन में पहले क्यों नहीं आया. उस ने मोबाइल निकाला और गूगल मैप में अपना डैस्टिनेशन डाल दिया. उफ, अभी आधे घंटे का रास्ता और बचा है.

तभी उस की नजर सामने मैप पर भागती गाड़ी पर पड़ी. यह क्या? जो रास्ता मैप दिखा रहा है यह उस से क्यों उतर रहा है. मैप में तो 10 मिनट सीधे चलने के बाद बाएं मुड़ना है.

‘‘ऐ सुनो, यह किस रास्ते से ले जा रहे हो?’’

‘‘मैडम, दूसरे रास्ते पर काम चल रहा है,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी.

अनन्या ने मोबाइल की ओर देखा. मैप खुद को रीएडजस्ट कर रहा था, ‘‘गो स्ट्रेट फौर फाइव हंड्रेड मीटर देन टर्न राइट,’’ आवाज गूंजी तो अनन्या हड़बड़ा गई कि ड्राइवर ने सुना तो उसे मालूम हो जाएगा कि वह रास्ते से अनजान है और डरी हुई है. उस ने झट आवाज कम कर दी.

‘‘गूगल मैप चला रखा है मैडम आप ने?’’ ड्राइवर आवाज सुन चुका था.

अनन्या मोबाइल की आवाज कम कर चुपचाप बाहर देखती रही.

‘‘मैडम, इस गूगल से ज्यादा रास्ते हमें याद रहते हैं. अपना शहर है. गूगल तो फिर भी बहुत बार गलत जगह पहुंचा देता है, लेकिन मजाल है जो हम से कभी गलती हो जाए.’’

ड्राइवर बोलता जा रहा था, लेकिन अनन्या को इस बात में बिलकुल

दिलचस्पी नहीं थी. वह जल्द से जल्द होटल पहुंच जाना चाहती थी.  वह कभी बाहर, कभी गूगल मैप पर तो कभी कनखियों से ड्राइवर पर नजर रखे थी.

ड्राइवर ने म्यूजिक की आवाज बढ़ा दी, ‘वक्त है कम और लंबा है सफर, तू रफ्तार बढ़ा दे, मंजिल पर हमें पहुंचा दे…’ पुराने जमाने का गीत बज रहा था.

द्विअर्थी बोल गाड़ी का सन्नाटा तोड़ रहे थे. गाने के अश्लील बोलों ने अनन्या को खिजा दिया. बरसों पहले उस ने यह फिल्म टीवी पर देखी थी. अनिल कपूर और जूही चावला बेतुके गाने पर भद्दे तरीके से थिरक रहे थे. पापा ने अचानक आ कर टीवी बंद कर दिया. वह गुस्से में थे. आज वही गुस्सा उस के चेहरे पर परछाईं बन कर तैर रहा था.

‘‘म्यूजिक बंद करो,’’ उस के क्रोध को शायद ड्राइवर भांप गया था. इसलिए बिना कुछ कहे गाना बंद कर दिया.

अनन्या ने खिड़की से झांका. मुख्य सड़क को गाड़ी छोड़ चुकी थी. दूसरी कारें जो वहां उसे सुरक्षा देती लग रही थीं, वे भी इस सुनसान सड़क पर मौजूद नहीं थीं. लैंप पोस्ट थे पर या तो उन के बल्ब फ्यूज थे या फिर इस इलाके में बिजली नहीं थी. दूरदूर तक अंधेरा पसरा था. वहां मौजूद घर भी अंधेरे में सिमटे थे. नाइट बल्ब की क्षीण रोशनी की आशा भी किसी मकान से नहीं झांक रही थी.

अनन्या ने सोचा अपनी लोकेशन घर वालों और दोस्तों को भेज दे. लेकिन वे लोग तो दूसरे शहर में हैं. कोई मुसीबत आन पड़ी तो वे लोग भला क्या कर सकेंगे? फिर सोचा कि भेज देती हूं. कम से कम उन्हें मालूम तो होगा कि मैं कहां हूं. फिर उस ने मोबाइल उठाया, लेकिन मोबाइल में नैटवर्क नहीं था. इस नैटवर्क को भी अभी जाना था या यहां नैटवर्क रहता ही नहीं, सोचते हुए अनन्या की घबराहट और बढ़ गई.

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अब उसे सचमुच हवा की जरूरत महसूस हुई. उस ने खिड़की का कांच नीचे खिसकाना चाहा पर शायद ड्राइवर लौक लगा चुका था. कई बार बटन दबाने पर भी कांच नीचे नहीं हुआ. उस ने लौक क्यों किया होगा? उस ने ड्राइवर को देखा. ड्राइवर का एक हाथ गियर पर था और एक स्टीयरिंग संभाले था. उस के बाएं हाथ में स्टील का कड़ा था जो स्वैटशर्ट की आस्तीन से झांक रहा था. वह कोई धुन गुनगुना रहा था.

क्या ड्राइवर को कहना चाहिए कि लौक खोल दे. नहीं, अब वह ड्राइवर से कुछ नहीं कहेगी. जरूरत पड़ने पर सीधे कांच तोड़ देगी. पर किस चीज से?

उस ने कार में इधरउधर नजर घुमाई. कोई चीज दिखाई नहीं दी. सीट की जेब में हाथ डाला. उस में भी कुछ नहीं था. दूसरी सीट की जेब में हाथ डाला तो वहां कुछ था. एक छोटा बौक्स. क्या हो सकता है? क्या टूल बौक्स? सोचते हुए उस ने बौक्स बाहर निकाला. चमड़े का छोटा सा बौक्स.

उस ने ठहर कर ड्राइवर को देखने की कोशिश की. वह उसे देख तो नहीं रहा? नहीं, उस की नजरें सामने थीं. उसे जल्दी इसे खोल कर देख लेना चाहिए. क्या पता कुछ काम का मिल जाए. अत: उस ने मोबाइल की स्क्रीन की रोशनी में धीरे से बौक्स खोला तो देख कर झटका खा गई. उस की नसें झनझना उठीं. अंदर कंडोम के पैकेट थे. यह कितनी असंगत बात थी. पैसेंजर सीट के आगे कंडोम. अपना निजी सामान तो ड्राइवर आगे रखता है. कहीं किसी और सवारी का तो नहीं? हो भी सकता है और नहीं भी. वह फिर होने न होने के दोराहे पर खड़ी थी.

उस का मन हुआ अभी टैक्सी से उतर जाए, लेकिन बाहर का सन्नाटा देख कर वह सिहर उठी. कार की हैडलाइट की रोशनी छोड़ कर अब भी वहां अंधेरा था. दूर कहीं कुत्ते भूंक रहे थे.

तभी अचानक एक बाइक हौर्न देते हुए कार की बगल से गुजर गई. वह कुछ सोच

पाती उस से पहले ही बाइक पलट कर वापस आई. टैक्सी के पास आ कर धीमी हुई और फिर बाइक सवार फिकरा कस कर तेजी से आगे बढ़ गए. ड्राइवर ने एक क्षण उसे देखा और कांच चढ़ा दिया.

‘‘मैडम, अभी देखा न आप ने?’’ ड्राइवर ने सफाई देते हुए कहा.

अनन्या ने कुछ नहीं कहा पर अंदर से वह डर गई थी. अभी यहां उतरना किसी भी तरह सुरक्षित नहीं है. उस ने अपना पर्स टटोला. एक नेलकटर जिस में छोटा सा चाकू भी था उसे नजर आया. उस ने चाकू को बाहर निकाल कर नेलकटर अपनी हथेली में भींच लिया.

आमनासामना करने की नौबत आ गई तो इस चाकू की बदौलत कुछ मिनट तो मिलेंगे उसे संभलने को. कोई हथियार छोटा या बड़ा नहीं होता. असल बात है कि जरूरत के वक्त कितनी अक्लमंदी से उस का इस्तेमाल होता है. वह खुद को हिम्मत बंधा रही थी.

अचानक टैक्सी की रफ्तार कम हुई, तो अनन्या के मन में हजारों डर तैर गए कि क्या हुआ अगर इस के यारदोस्त अंधेरे से निकल

कर गाड़ी में आ बैठे या उसी को दबोच कर कहीं ले गए? कहीं बाइक सवार भी तो मिले हुए नहीं? अखबार में रोज छपने वाली खबरें उसे 1-1 कर याद आने लगीं. किसी में टैक्सी वाला सुनसान रास्ते पर ले गया तो किसी में चलती गाड़ी में ही…

उस का अकेले आना ही गलती थी. नहीं आना चाहिए था उसे अकेले. उस के पढ़लिख जाने से लोगों की सोच तो नहीं बदल सकती. लोग जिस सोच के गुलाम हैं उस का खमियाजा आज तक औरतों को ही भुगतना पड़ रहा है. उस ने अपने पर्स में रखा पैपर स्प्रे टटोला. पिछले साल और्डर किया था. तब से हमेशा साथ रखती है पर इस्तेमाल करने की नौबत अभी तक नहीं आई थी लेकिन आज जरा भी कुछ अजीब लगा तो वह इस के इस्तेमाल से हिचकेगी नहीं. सोचते हुए वह एक हाथ में पैपर स्प्रे दूसरे हाथ में नेलकटर थामे रही. उस ने तय किया अगली बार अकेले सफर करते हुए एक बड़ा चाकू साथ रखेगी. टैक्सी अब और धीरे चल रही थी.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने अपने डर पर काबू रख पूछा. उस की आवाज में न चाहते हुए भी अतिरिक्त सतर्कता थी.

‘‘कुछ नहीं मैडम. आगे मोड़ है. यह मोड़ ऐक्सीडैंट के लिए बहुत बदनाम है. एक बार मेरा भी ऐक्सीडैंट होतेहोते बचा था. तब से मैं यहां बहुत सावधान रहता हूं.’’

तभी ड्राइवर के फोन की घंटी घनघना उठी.

वह बोला, ‘‘म आउदै छु. 1 घंटा मां.’’

अनन्या अब कुछ और चौकन्नी हो उठी.

उधर से कुछ कहा गया, जिस के जवाब में ड्राइवर ने कहा, ‘‘म देख्छु. ठीक छ,’’ और फोन काट दिया.

कार में अचानक शांति छा गई थी.

‘‘नेपाल से हो?’’ अनन्या ने डर से नजात पाने को पूछ लिया.

‘‘नहीं, मैं नेपाल से नहीं हूं. मेरी पत्नी है वहां की. उसी के साथ थोड़ीबहुत नेपाली बोल लेता हूं. उसे अच्छा लगता है,’’ अंतिम वाक्य बोलते समय ड्राइवर की आवाज में कामना की परछाई उतर आई या फिर अनन्या को ऐसा महसूस हुआ.

‘‘उसे तेज बुखार है. बिटिया अलग भूख से रोए जा रही है. बस यही पूछ रही थी कि कितना समय लगेगा.

‘‘वैसे मेरा घर पास ही है, 2 गलियां छोड़ कर. आप कहें तो भाग कर ब्रैड का पैकेट पकड़ा आऊं. घर में कोई और है नहीं. बच्ची को छोड़ कर पत्नी कहीं जा नहीं सकती,’’ पूछते हुए वह झिझक रहा था.

‘नया पैतरा… कहीं इसीलिए तो यह इस रास्ते से नहीं आया… किसी बहाने गाड़ी रोको और…’ वह सोचने लगी. बोली कुछ नहीं. ड्राइवर ने भी दोबारा नहीं पूछा. वह गाड़ी चलाता रहा. लेकिन अब उस की गति बढ़ गई थी. वह चाहती थी कि कार की गति कम हो जाए पर वह अब उस से कोई संवाद नहीं करना चाहती थी. सीधे होटल पहुंचा दे सहीसलामत. उस ने मोबाइल में डायल स्क्रीन पर 100 टाइप किया. अब जरूरत होने पर सिर्फ डायल करना होगा.

तभी अचानक गाड़ी एक तेज झटके के साथ रुक गई. अनन्या का सिर किसी नुकीली

चीज से टकराया. दरवाजे के हैंडल से या पता नहीं किस चीज से… हाथ में कस कर थामी गई चीजें गाड़ी के किस कोने में गिरीं पता नहीं. उस ने अपना सिर दोनों हाथों में थाम लिया पर दर्द था कि उस पर हावी हुए जा रहा था. उस ने किसी तरह नजरें उठा कर देखा, रास्ता पूरी तरह सुनसान था. ड्राइवर बैल्ट हटा रहा था. उसे चोट नहीं लगी थी.

अब कहीं… उसे पुलिस को फोन करना ही होगा. मोबाइल उठाने के लिए उस ने अपना हाथ बढ़ाया तो देखा उस के दोनों हाथ खून से सन गए हैं. खून उस के सिर से होते हुए हाथों पर बह आया था. अब क्या होगा इस बात का डर बहते हुए खून के साथ मिल गया था.

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तभी ड्राइवर की आवाज आई, ‘‘मैडम, गाड़ी की रफ्तार तेज थी और अचानक गाय सामने आ गई… आप को तो पता है यहां जानवर किस तरह खुले घूमते हैं. ब्रेक लगाने पड़े. आप को चोट तो नहीं आई?’’

वह शायद उस के जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था पर दर्द, डर, गुस्से से उस का शरीर पस्त हो चला था. वह चाहते हुए भी कुछ नहीं बोल पाई.

ड्राइवर दरवाजा खोल पीछे आया. उस की हालत देख कर उस ने कुछ कहा तो अनन्या समझ नहीं पाई. वह पानी की बोतल लाया और उस के मुंह से लगा दी. कुछ पानी पीया गया, कुछ बाहर गिर कर उस के कपड़ों को भिगो गया. अब न उस के पास चाकू था, न पैपर स्प्रै, न मोबाइल, न ताकत. वह पूरी तरह से अशक्त पीछे की सीट पर पड़ी थी.

‘‘अरे, आप के सिर से तो खून बह रहा है…  ‘‘मैडम ऐसा करिए, आप थोड़ी देर लेट जाइए,’’ कहते हुए उस ने धीरे से उसे पीछे की सीट पर लिटा दिया.

क्या ऐसा करते हुए उस ने अनन्या की बांहों पर अतिरिक्त दबाव दिया था. सुन्न होते उस के दिमाग का कोई हिस्सा अतिरिक्त रूप से सतर्क हो उठा था. वह लेटना नहीं चाहती थी.

‘‘आप कहें तो आप को अस्पताल ले चलूं या आप के घर से किसी को बुला दूं? मोबाइल दीजिए अपना.’’

उसे इस आदमी के साथ कहीं नहीं जाना था. वह उसे धक्का देना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी पर न उस के हाथपांव काम कर रहे थे न आवाज. उस की चेतना खोने को थी कि उस ने देखा ड्राइवर उस के ऊपर झुक गया है. मोबाइल लेने को या शायद… आगे सब अंधकार में डूबा था.

उस की आंख खुली तो खुद को अस्पताल में बैड पर पाया. तारों के जंजाल से घिरी हुई थी. हाथ में ड्रिप लगी थी. उस ने सिर हिलाया तो उस में दर्द महसूस हुआ. उस ने बिस्तर के पास लगी घंटी बजाई.

नर्स भागते हुए आई. उसे होश में देख कर मुसकराते हुए पूछा, ‘‘हाऊ आर यू नाऊ यंग लेडी?’’

‘‘सिर में थोड़ा दर्द है,’’ अनन्या ने सिर को फिर हलका सा हिला कर देखा.

‘‘हां, वह अभी रहेगा. पेन किलर ड्रिप में डाल दी गई है. यू विल बी फाइन,’’ नर्स ने उस का गाल थपथपाया.

‘‘सिस्टर, कोई चिंता की बात तो नहीं है?’’ वह किसी तरह यही बोल पाई जबकि वह पूछना कुछ और चाहती थी.

‘‘नहींनहीं, चोट लगने के बाद आप बेहोश हो गई थीं, इसलिए सीटी स्कैन हुआ. सब नौर्मल है. डौंट वरी,’’ वह उस की पल्स रेट चैक कर रही थी, ‘‘बाकी बातें डाक्टर से पूछ लीजिएगा. ही विल बी अराइविंग सून. तब तक आप आराम करिए और हां, आप के घर भी इन्फौर्म कर दिया गया है,’’ उस का मोबाइल उसे पकड़ाते हुए नर्स ने कहा, ‘‘आप बात करना चाहें तो कर लीजिए. आप का बाकी सामान यहां रखा है,’’ मेज की तरफ इशारा करते हुए नर्स बोली.

अनन्या ने गरदन घुमा कर देखा. चाकू, पैपर स्प्रे, पर्स सब रखा था. कुछ भी मिसिंग नहीं था. कल रात की सारी घटना उसे याद आ गई.

‘‘कल टैक्सी वाला आप को यहां छोड़ गया था. जब तक आप के टैस्ट नहीं हो गए यहीं रहा,’’ नर्स ड्रिप की स्पीड एडजस्ट करते हुए कह रही थी.

अनन्या सुन कर चौंकी कि उस के घर पर तो उस की पत्नी और बच्ची भूखी थी.

‘‘रात की ड्यूटी पर मैं ही थी. बेचारा बहुत चिंतित था. खुद को जिम्मेदार मान रहा था,’’ नर्स जैसे उस की पैरवी कर रही थी.

अनन्या चुप थी. क्या कहती? वह शायद भला आदमी था. उस ने बिना वजह उस पर शक किया. माना दुनिया में अपराधी होते हैं पर सभी तो उस श्रेणी में नहीं आते. क्या कल वह एक निरपराध व्यक्ति को अपराधी सिद्ध करने पर तुली हुई थी? कहीं ड्राइवर भांप तो नहीं गया था कि वह उस के बारे में क्या सोच रही है. वह अचानक शर्मिंदगी के एहसास में डूब चली.

नर्स फिर आई और उसे 2 गोलियां खिला आराम करने की ताकीद कर चली गई.

पर अब अनन्या को आराम कहां. कल 1 घंटे में उस ने खुद को ही नहीं शायद ड्राइवर

को भी परेशान कर दिया था. बारबार खिड़की बंद करने का उस का अनुरोध अनन्या को याद आया. उस से गलती तो नहीं हो गई? क्या उसे फोन कर शुक्रिया कह देना चाहिए? लास्ट डायल में उस का नंबर होगा. उस ने फोन उठाया तो वह बंद था.

तभी नर्स भीतर आई तो अनन्या सहसा पूछ उठी, ‘‘सिस्टर, मेरे घर का नंबर कहां से लिया था आप ने? मेरे मोबाइल से?’’

‘‘नहीं, आप के वालेट में आप के हसबैंड का कार्ड था. वहीं से लिया,’’ कह क्षणभर रुकी. फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘आप का मोबाइल काम नहीं कर रहा था. शायद बैटरी डिस्चार्ज थी.’’

‘‘फोन आप ने किया था या ड्राइवर ने?’’

‘‘ड्राइवर ने ही किया था. फिर आप के पति की बात मुझ से करवाई थी.’’

‘‘ओह, अच्छा.’’

‘‘क्यों, कोई प्रौब्लम है?’’

‘‘नहीं, ऐसे ही पूछा.’’

क्या नर्स से इस बारे में पूछे या खुद देखे कि उस के शरीर पर कोई निशान तो नहीं? पर वह तो बेहोश थी. उस ने कुछ किया भी होगा तो जोरजबरदस्ती का निशान कहां से होगा?

इन्हीं सब चिंताओं में डूबी अनन्या नहीं देख पाई कब सामने उस की मां और सुहास आ कर खड़े हो गए. उसे तब मालूम हुआ जब मां ने उस का सिर सहलाया और सुहास ने प्यार से उस का हाथ थाम लिया. दोनों में से किसी ने नहीं कहा कि देर रात तक बाहर क्यों थी. किसी ने यह भी नहीं पूछा कि अनजान शहर में इतनी रात तक बाहर रहने का औचित्य क्या था. बस आए और प्यार से उसे बांहों में भर लिया.

‘‘अनन्या,’’ सुहास का कहा हुआ एक शब्द उसे सुकून दे गया. कितना प्यार करता है यह लड़का उसे. 4 साल की मुहब्बत के बाद कुछ महीने पहले दोनों ने शादी की है. वह तो शादी करना ही नहीं चाहती थी. उसे लगता था शादी उस के वर्क स्टाइल को सूट नहीं करती. सुहास ने उसे समझाया कि शादी स्कूल के टाइम टेबल जैसी नहीं होती कि हमें उसे फौलो करना ही पड़े. हम शादी के मुताबिक नहीं ढलेंगे, बल्कि शादी को अपने हिसाब से ढालना होगा. और हुआ भी यही. सुहास में कोई बदलाव नहीं आया. उन दोनों की प्राथमिकता उन का काम… एकदूसरे से प्रेम के अलावा कोई उम्मीद नहीं.

मां खिड़की के परदे हटाने गईं तो सुहास ने नजर बचा कर उसे चूम लिया. उस की इस

शरारत पर वह मुसकराए बिना न रह सकी.

‘‘मां, आप बैठिए. मैं पापा को देख कर आता हूं.’’

‘‘पापा भी आए हैं?’’ अनन्या ने महसूस किया कि उस का दर्द अचानक खत्म हो गया है.

‘‘हां, आए हैं. बाहर डाक्टर से बात कर रहे हैं. कल से बहुत चिंतित हैं.’’

‘‘वह तो भला हो टैक्सी ड्राइवर का जिस ने तुम्हें यहां पहुंचा कर हमें फोन कर दिया.’’

ड्राइवर का जिक्र आते ही अनन्या फिर सोच में डूब गई. वह अच्छा आदमी है, सब कह रहे हैं. लेकिन क्या इतना अच्छा आदमी है कि रात के सन्नाटे में किसी लड़की का फायदा न उठाए?

डाक्टर के हिसाब से सब ठीक था. वह सफर कर सकती थी. अनन्या भी अब घर जाना चाहती थी. शाम तक वे सब घर में थे. 3-4 दिनों के आराम के बाद अनन्या ने औफिस जाना शुरू कर दिया. लेकिन जो बात अनन्या के दिमागसे नहीं निकली थी वह यह थी कि उस रात उस के साथ कुछ हुआ या नहीं.

वह बारबार उस रात के वाकेआ को दिमाग में रिवाइंड कर देखती. कहां किस बात का क्या अर्थ निकल रहा है वह पोस्टमार्टम करती.

1-1 बात को कई प्रकार से परखती पर किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाती. आईने में हर कोण से अपने शरीर को परख चुकी थी. कोई निशान उसे नहीं मिला था. अजीब मनोस्थिति में जी रही थी. अपने हर अंग को छू कर देख चुकी थी.

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वह अकसर ऐप पर जाती और उस ड्राइवर की रेटिंग देखती. पूरे 5 सितारे. उस की तसवीर बड़ी कर देखती. हंसता हुआ उस का चेहरा किसी बलात्कारी का चेहरा नहीं लगता था. वह दुनियाभर के बलात्कारियों को गूगल पर सर्च करने लगी. उन के चेहरों का मिलान आम लोगों से कर के देखती कि क्या वे कहीं से अलग हैं. उन की आदतों पर उस ने लगभग रिसर्च ही कर डाली थी. ड्राइवर का नंबर कई बार निकाल कर देखती, लेकिन कभी मिला नहीं पाई.

अनन्या ने अपनेआप से कई बार सवाल किया कि क्या यह बात उस के लिए इतने माने रखती है? अगर हां तो क्यों? क्या वह भी शरीर को पवित्रता का परिचायक मानती है? नहीं, वह ऐसा तो नहीं मानती. क्या उस रात वह बलात्कार से डर रही थी या बलात्कार के दौरान हो सकने वाली हिंसा से? यह प्रश्न उस ने जबजब खुद से पूछा उस का जवाब उसे हर बार नैनोसैकंड से भी कम में मिला. बलात्कार से ज्यादा वह हिंसा उसे डराती है. हां, वह अपमान भी जो जबरन उस की इच्छा के विरुद्ध किसी के द्वारा उस की देह से खेलने पर होता है. लेकिन यहां न हिंसा थी, न उस की जानकारी में अपमान हुआ था. फिर वह उस रात को अपनी चेतना से भुला क्यों नहीं पा रही? वह पागल तो नहीं हो गई है?

वह रात इस सीमा तक उस पर हावी हो गई थी कि उस ने रात को औफिस में रुकना बिलकुल बंद कर दिया. कभी इमरजैंसी होती तो पहले ही सुहास को बता देती कि आज रात लेने आना है. सुहास जो उस के आत्मनिर्भर होने पर बहुत प्रसन्न रहता था, इस अचानक आए बदलाव का कारण नहीं जान पाया. हंसते हुए 1-2 बार इस बात को लक्षित भी किया उस ने, ‘‘क्यों मेरी झांसी की रानी, हुआ क्या है तुम्हें? इन दिनों अकेले नहीं आती हो? औफिस में देर तक रुकना भी कम कर दिया है?’’

उत्तर में अनन्या पीले पड़े चेहरे को छिपा कर कह देती, ‘‘क्यों, मेरा घर पर रहना

खटकने लगा है?’’ और फिर दोनों हंस देते.

क्या वह सुहास को बता दे? लेकिन वह खुद कुछ नहीं जानती तो सुहास को क्या बताएगी? नहींनहीं, कुछ नहीं किया होगा ड्राइवर ने. ऐसा करना ही होता तो अस्पताल क्यों ले जाता वह उसे या अपने अपराध को ढकने के लिए तो नहीं ले गया वह उसे अस्पताल? किसी बेहोश स्त्री के साथ… नहींनहीं वह शायद बिना किसी बात के फोबिक हो रही है. अब वह इस बारे में नहीं सोचेगी.

उस ने काम में मन लगने की कोशिश की, लेकिन नियत तारीख पर पीरियड्स नहीं आए तो मन में फिर खलबली मच गई. वह और सुहास तो हमेशा प्रोटैक्शन इस्तेमाल करते हैं… प्रैगनैंसी नहीं हो सकती. प्रैगनैंसी किट ला कर टैस्ट किया तो टैस्ट नैगेटिव रहा. पीरियड्स तो हमेशा नियमित रहे हैं. फिर क्या कारण हो सकता है? कुछ दिन और इंतजार के बाद भी जब पीरियड्स नहीं आए तो उसे डाक्टर के पास चले जाना ही उचित लगा.

गर्भवती होने की आशंका डाक्टर पहले ही दूर कर चुकी थीं. सारे लक्षण सुनसमझ कर उन्होंने कहा कि कभीकभी स्टै्रस की वजह से पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं. चिंता वाली कोई बात नहीं है.

अनन्या दुविधा में थी कि जब यहां तक आ ही गई है तो डाक्टर से ही क्यों न पूछ ले. सारी बातें साफ हो जाएंगी.

‘‘डाक्टर, आप से कुछ पूछना है,’’ वह झिझकते हुए बोली.

‘‘हां, पूछिए न,’’ डाक्टर को लगा कि सैक्स से संबंधित कोई समस्या होगी. अकसर इस उम्र की लड़कियां यही सब पूछती हैं.

‘‘डाक्टर, किसी ने हमारे साथ संबंध स्थापित किया हो यह कैसे मालूम हो सकता है?’’ सवाल पूछ कर वह खुद को बेवकूफ जैसा महसूस कर रही थी कि यह कैसा सवाल है. शायद वह अपनी बात ठीक से नहीं रख पाई है.

‘‘मेरा मतलब है कि कोई बेहोश हो और कोई उसी बेहोशी का फायदा उठा कर कुछ कर बैठा हो, यह कितने दिनों बाद तक मालूम हो सकता है?’’

‘‘आप का मतलब बिना कंसेंट के संबंध स्थापित करने से है. देखिए, यह बलात्कार के अंतर्गत आता है और रेप हुआ है या नहीं यह मालूम करने के बहुत से तरीके होते हैं. सब से पहले बल प्रयोग के निशान देखे जाते हैं. शरीर के प्रत्येक भाग की जांच की जाती है. इंटरनल इंजरी के लिए टैस्ट किए जाते हैं. फोरेंसिक जांच होनी हो तो पीडि़त के शरीर या कपड़ों से बलात्कार करने वाले के वीर्य का सैंपल लेने की कोशिश की जाती है. सैक्स के बाद योनि में कुछ कैमिकल बदलाव आते हैं उन की जांच की जाती है. ये सब जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है.’’

‘‘क्या आप के साथ कुछ हुआ है? कोई परेशानी है, तो आप मुझे बता सकती हैं.’’

‘‘डाक्टर, पिछले महीने मेरा ऐक्सीडैंट हुआ था, उस समय मैं टैक्सी में थी. ऐक्सीडैंट के बाद कुछ समय तक मैं अचेत रही थी. मन में एक डर बैठ गया है कि उस समय ड्राइवर ने मेरे साथ कुछ किया तो नहीं होगा?’’

‘‘ऐसा लगने की कोई खास वजह है या

यों ही?’’

‘‘उस की कुछ हरकतें, जो शक के दायरे में आती हैं और नहीं भी. मैं दुविधा में हूं.’’

‘‘देखिए, अब इतने समय बाद कुछ कहना असंभव है. चैकअप से भी कुछ मालूम नहीं हो सकेगा. आप को संदेह था तो उस समय ही कुछ करना चाहिए था. अब इन सब बातों का असर अपने जीवन पर मत होने दीजिए. इतने समय बाद इन बातों का कोई अर्थ नहीं रह जाता,’’ डाक्टर उस की मनोस्थिति समझ रही थीं, ‘‘हां, मैं आप को एचआईवी टैस्ट करवाने की सलाह जरूर दूंगी. क्या आप ने किसी से यह बात शेयर की है? किसी दोस्त से, अपने पार्टनर से या मातापिता से?’’

‘‘नहीं, मैं नहीं कर पाई.’’

‘‘अकेले इन बातों से जूझने से बेहतर है आप किसी को अपनी दुविधा बताइए. जिस पर आप को यकीन है आप उस से यह शेयर करिए. मोरल सपोर्ट बहुत सी मुश्किलों का हल होती है. स्ट्रैस के लिए दवा लिख देती हूं. आप को आराम आएगा. फिर भी कोई परेशानी हो तो जब चाहें मुझे कौल कर सकती हैं. यह रहा मेरा नंबर,’’ डाक्टर ने अपना कार्ड देते हुए कहा.

डाक्टर से बात कर के आज उसे काफी राहत महसूस हो रही थी. उस ने तय किया घर जा कर वह सुहास को सब बता देगी. उस से ज्यादा यकीन उसे किसी पर नहीं. मां भी पता नहीं कैसे रिएक्ट करें.

घर पहुंची तो सुहास बाहर था. आमनेसामने कहतेकहते कहीं वह हिम्मत न खो बेठे,

इसलिए उस ने तय किया कि  सारी बातें उसे मेल कर दी जाएं. वह कोई भी ब्योरा नहीं छोड़ना चाहती थी. वह विस्तार से लिख कर अपनी बात कहेगी.

मेल लिखतेलिखते कई घंटे हो चले थे. कितनी बार कुछ लिखती और फिर मिटा देती. कभी भाषा अनुरूप नहीं लगती तो कभी भाव. लिखतेलिखते उस रात के डर को वह फिर महसूस कर रही थी. कितनी बार उस की आंखें भीग गईं. वह सुहास को किसी तरह का शौक नहीं देना चाहती थी न ही वह चाहती थी कि उसे गलत समझा जाए. बहुत सतर्कता से लिख रही थी.

अंत में जब मेल पूरा हुआ तो बिना दोबारा पढ़े झट उस ने सैंड का बटन दबा दिया. वह मेल भेजने या नहीं भेजने के बीच किसी तरह की उलझन का दखल नहीं चाहती थी. क्यों उसे पहले खयाल नहीं आया कि अपनी तकलीफ किसी से साझा कर लेनी चाहिए? अब मेल भेजने के बाद अपना डर, संशय सब उसे बचकाना प्रतीत हो रहा था, एक बेसिरपैर की बात. मेल भेज कर वह चैन की नींद सो गई पूरे महीने के बाद.

घंटी की आवाज से उस की नींद टूटी. सुहास होगा. वह भागते हुए गई और दरवाजा खोल सुहास के सामने खड़ी हो गई. सुहास ने उसे अपनी छाती से लगा लिया. सुहास ने अपना सारा प्रेम उस आलिंगन में भर दिया. वह देर तक उसे भींचे खड़ा रहा. जब छोड़ा तब अनन्या का चेहरा हथेलियों में भर कर सहलाता रहा. अनन्या अपना विश्वास जीतता देख खुश थी. वह जानती थी सुहास ऐसी ही प्रतिक्रिया देगा.

‘‘पहले क्यों नहीं बताया?’’ सुहास की आवाज में चिंता थी.

‘‘बस नहीं बता पाई,’’ अनन्या उस के सीने में अपना चेहरा छिपाते हुए बोली.

‘‘पर तुम्हें बताना चाहिए था.’’

‘‘जानती हूं’

‘‘तुम अकेले ये सब…’’ सुहास की मजबूत आवाज अभी भी बिखरी हुई लग रही थी, ‘‘पहले बताती तो कुछ ऐक्शन लिया जा सकता था. कन्फर्म किया जा सकता था कि कुछ हुआ या नहीं,’’ वह शायद कहते हुए झिझक रहा था.

‘‘क्या तुम्हें फर्क पड़ता है सुहास?’’

तुम किसी बात की वजह से परेशान हो तो जाहिर तौर पर मुझे भी फर्क पड़ेगा.’’

‘‘अब तुम्हें बता देने के बाद मैं ठीक हूं.’’

‘‘क्या तुम चाहती हो उस से बात की जाए… टैक्सी ड्राइवर से?’’

‘‘नहीं, बात कर के क्या हासिल, तुम साथ हो तो मुझे अब उस से कोई मतलब नहीं,’’ अनन्या की आवाज में निश्चिंतता थी.

‘‘आ जाओ,’’ कहते हुए सुहास ने उसे फिर गले से लगा लिया कि ओह, उस की अनन्या… किस मानसिक स्थिति से गुजर रही होगी… अकेले. क्या वह उस का इतना सा भी विश्वास अर्जित नहीं कर पाया कि आते ही उसे कह देती.

सुहास के लिए यह रात लंबी थी. अनन्या के सो जाने के बाद भी वह करवटें

बदलता रहा. चाह कर भी उसे नींद नहीं आ रही थी. वैसा कुछ हुआ होगा या नहीं? अनन्या का डर ही होगा? कुछ होता तो ड्राइवर यों ही छोड़ कर चला आता? नहीं, जरूरी भी नहीं. छोड़ आता तो पुलिस केस बन जाता. सुहास की स्थिति वही हो चली थी जो पिछले 1 महीने से अनन्या की थी.

अनन्या के मेल के हिसाब से जब हादसा हुआ तब लगभग 12 बज रहे थे. ड्राइवर ने जब उसे फोन किया था तब रात के 3 बज रहे थे जबकि वह अनन्या से हादसे के समय ही मोबाइल मांग रहा था. इतनी देर का अंतराल क्यों रहा होगा? हो सकता है उस समय नैटवर्क न रहा हो या अनन्या का मोबाइल उस समय औफ हो गया हो, इसलिए उसे नंबर न मिला हो.

यह भी हो सकता है कि वह उस की हालत देख कर घबरा गया हो, इसलिए सीधे अस्पताल ले गया हो. लेकिन इतनी देर… रास्ता तो इतनी देर का नहीं. गूगल मैप उस के आगे खुला था और वह ऐक्सीडैंट वाली जगह से अस्पताल तक पहुंचने का वक्त माप रहा था. संशय और पीड़ा से उस की आंखें आहत थीं. वह किसी शून्य में खोया था. उस ने एक गहरी सांस छोड़ी. इतनी भारी आवाज जैसे किसी ने पत्थर बांध कर किसी को समंदर में फेंक दिया हो.

अनन्या की नींद उचट गई. सुहास को जागा देख उस से लिपट गई. सुहास ने भी उस का हाथ थाम लिया.

तभी अचानक सुहास को कुछ याद आया. यह बात उस की सोच में चुभ तो बहुत देर से रही थी पर वह उसे अनदेखा कर रहा था. लेकिन अब और नहीं हो सकेगा. बोला, ‘‘अनन्या, एक बात बताओ. तुम ने लिखा था कि तुम्हें सीट की जेब से कंडोम का बौक्स मिला था. वह तुम ने वापस वहीं रख दिया था या सीट पर रखा था?’’

अनन्या सोच में पड़ गई. कुछ देर सोच कर उस ने कहा, ‘‘नहीं, वापस तो नहीं रखा था. वह देख कर मैं लगभग सदमें की स्थिति में थी. वापस रखने का खयाल ही नहीं आया.’’

अब चुप रहने की बारी सुहास की थी.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘जब उस ने तुम्हारा सामान अस्पताल में जमा करवाया तो कंडोम वाला बौक्स क्यों छोड़ दिया? उसे मालूम था कि वह तुम्हारा नहीं है. मतलब वह उसी का था. हो सकता है उस ने जानबूझ कर वह वहां रखा हो.’’

हो भी सकता है और नहीं भी. कुछ होने की संभावना अब भी उतनी ही थी जितनी न होने की. जिस संदेह को अनन्या मन से निकाल देना चाहती थी वह और गहरा गया था.

शादीलाल की ससुराल यात्रा

शादीलाल जैसा सामान धरती पर कम ही मिलता है. साढ़े 4 फुट की उस चीज का पेट आगे निकला हुआ था और गंजे सिर पर गिनने लायक बाल थे. मुझे यकीन था कि उस की शादी नामुमकिन है, पर शायद वह अपने माथे पर कुछ और ही लिखा कर लाया था.

जी हां, जैसा हमारा प्यारा दोस्त शादीलाल था, ठीक वैसी ही उस की बीवी यानी मेरी भाभी आई थीं. वे भी करीब 37 साल की होंगी. शादीलाल की कदकाठी से ले कर मोटापा, लंबाई, ऊंचाई, निचाई, चौड़ाई सभी में जबरदस्त टक्कर देने वाली थीं.

मेरी भाभी का नाम पहले कुमारी सुंदरी था, पर अब श्रीमती सुंदरी देवी हो गया था.

पर भाभी का सुंदरी होना तो दूर, वे सुंदरी का ‘सु’ भी नहीं थीं, मगर ससुराल के नाम से बिदकने वाला मेरा यार गजब की तकदीर पाए हुए था. उस के 7 सगी सालियां थीं और सातों एक से बढ़ कर एक.

मैं भी शादी में गया था. सच कहता हूं कि मेरा ईमान भूचाल में जैसे धरती डोलती है, वैसे डोल गया था. अगर मेरी नकेल पहले से न कसी होती, तो मैं शादीलाल की सालियों के साथ इश्क कर डालता.

शादी में शादीलाल की सालियों ने उस की इतनी खिंचाई की थी कि वह ससुराल का नाम लेना ही भूल गया. शादी में उस से जूतों की पूजा कराई गई. धोखे में डाल कर सुंदरी देवी के पैर छुआए गए. सुंदरी देवी के नाम से झूठी चिट्ठी भेज कर उसे जनवासे से 7 फर्लांग दूर बुलवाया गया.

खैर, होनी को कौन टाल सकता था. आज शादीलाल की शादी को एक साल हो गया. सुंदरी देवी अपने मायके में थीं. वे न जाने कितनी बार वहां हो आईं, पर मेरे यार ने कभी वहां की यात्रा का नाम नहीं लिया.

वहां से ससुर साहब की चिट्ठी आई कि आप शादी के बाद से ससुराल नहीं आए. अब सुंदरी की विदाई तभी होगी जब आप खुद आएंगे, वरना नहीं.

यह वाकिआ मुझे तब पता चला, जब औफिस की बड़े बाबू वाली कुरसी पर शादीलाल को गमगीन बैठे देखा.

‘‘मेरे यार, क्या कहीं से कोई तार वगैरह आया है या गमी हो गई?’’ मैं ने घबरा कर पूछा.

शादीलाल ने अपना मुंह नहीं खोला. अलबत्ता, नाक पर मक्खी बैठ जाने पर भैंस जैसे सिर हिलाती है, वैसे न में सिर हिला दिया.

तब मैं ने पूछा, ‘‘क्या आप को सुंदरी देवी की तरफ से तलाक का नोटिस आया है? क्या वे बीमार हैं या सासससुर गुजर गए?’’

अब शादीलाल ने जो सिर उठाया, तो मेरा दिल बैठ गया. लाललाल आंखें आंसुओं से भरी थीं. चेहरा गधे सा मुरझाया था.

मैं ने उस के हाथ पर हाथ रखा, तो शादीलाल रो उठा और बोला, ‘‘देखो एकलौता राम, तुम मेरे खास दोस्त हो, तुम से क्या छिपाना. चिट्ठी आई है.’’

‘‘क्या कोई बुरी खबर है या कोई अनहोनी घटना घट गई?’’

‘‘नहीं, ससुरजी ने मुझे बुलाया है. इस बार वे साले के साथ सुंदरी को नहीं भेज रहे हैं. अब तो मुझे जाना ही होगा.’’

‘‘अरे, तो इस में घबराने की क्या बात है. ससुराल से बुलावा तो अच्छे लोगों को ही मिलता है. तुम तो

7 सालियों के आधे घरवाले हो, तुम जरूर जाओ.’’

‘‘नहीं यार, यही तो मुसीबत है. मैं उन सातों के मुंह में तिनके की तरह समा जाता हूं.’’

‘‘शादीलाल, तुम्हें क्या हो गया है? घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ मैं ने उसे हौसला बंधाया.

‘‘एकलौता राम, मुझे तुम्हीं पर भरोसा है. इस संसार में मेरा साथ देने वाले यार तुम्हीं हो. क्या तुम मेरे ऊपर एक एहसान करोगे?’’

‘‘कहो यार, मैं तो यारों का एकलौता राम हूं.’’

‘‘तुम को मेरे साथ मेरी ससुराल चलना होगा, वरना मेरी शैतान सालियां मुझे सतासता कर काढ़ा बना कर पी जाएंगी.’’

मैं ने शादीलाल को समझाना चाहा, पर वह मुझे अपनी ससुराल ले ही गया. इस तरह अब शादीलाल की ससुराल यात्रा और साथ में एकलौता राम की यादगार यात्रा शुरू हो गई.

87 किलोमीटर दूर ससुराल में पहुंचे, तो हमारी खूब खातिरदारी हुई. फिर सातों शैतान सालियों के कारनामे शुरू हो गए, जिन का हमें डर था.

थका होने की वजह से शादीलाल शाम 7 बजे से ही खर्राटे लेने में मस्त हो गया. तभी वे सातों आईं. उन्होंने मुंह पर उंगली रख चुप रहने का इशारा किया तो मैं समझ गया कि शादीलाल अब तो गया काम से.

मैं शादीलाल को जगाने के चक्कर में था कि 27 साला एक साली ने कहा, ‘‘आप खामोश रहिए, वरना आप की हजामत जीजा से भी बढ़ कर होगी.’’

मैं ने रजाई तानी और उस में झरोखा बना कर नजारा देखने लगा. शादीलाल के हाथों में एक साली ने नीली स्याही का पोता फेरा. दूसरी साली ने उस की नाक में कागज की सींक बना कर घुसा दी. नतीजतन, शादीलाल का हाथ नाक पर पहुंच गया और स्याही चेहरे पर ‘मौडर्न आर्ट’ बनाती गई.

मैं लिहाफ के अंदर हंसी नहीं रोक पा रहा था. आखिर में 6 सालियां बाहर चली गईं, केवल 7 साल की सुनीता बची, तो उस ने अपने जीजा के हाथों में उसी की हवाई चप्पलें उलटी कर के फंसी दीं और फिर उस के कानों में सींक घुमा कर भाग गई.

सींक से बेचैन हो कर शादीलाल ने अपने कानों पर हाथ मारे, तो चप्पलें गालों पर चटाक से बोलीं.

मैं ने किसी तरह झरोखा बंद किया. हंसहंस कर मेरा पेट हिल रहा था,

पर कान आहट ले रहे थे.

मेरा यार उठा. चप्पलें फेंकने की आवाज आई, फिर उस ने मेरी रजाई उठा दी. मैं तब भी हंस रहा था.

शादीलाल बरस पड़ा, ‘‘एकलौता राम, तू कर गया न गद्दारी. मेरी यह हालत किस ने की?’’

मैं ने आंख मलने का नाटक किया और पूछा, ‘‘क्या बात है यार?’’

‘‘बनो मत, मेरी हालत पर तुम हंस रहे थे.’’

‘‘क्या बात करते हो यार… मैं तो सपने में हंस रहा था. अरे, तुम्हारे चेहरे पर रामलीला का मेकअप किस ने किया?’’

‘‘उठ यार, मैं यहां पलभर भी नहीं ठहर सकता. वही कमबख्त सालियां होंगी,’’ उस ने आईने में अपना चेहरा देखते हुए कहा.

‘‘चलो ससुरजी के पास, मैं उन सब की शिकायत करता हूं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर यार, ससुरजी ऐसा टैक्नीकलर दामाद देखेंगे तो क्या कहेंगे? आखिर मैं क्या करूं? मैं इसीलिए यहां नहीं आता हूं. तुझे बचाव के लिए लाया था, पर तू भी बेकार रहा.’’

‘‘शादीलाल, क्या मैं रातभर जाग कर तुम्हारी खाट के चक्कर लगाऊंगा? तुम भी तो घोड़े बेच कर सो गए. वहां जग में पानी रखा है, मुंह धो डालो.’’

बेचारा शादीलाल मुंह धो कर लेट गया. मैं सोने की कोशिश में था कि तभी पायल की आवाज सुन कर चौंका.

जीरो पावर का बल्ब जल रहा था. मैं ने देखा, वह भारीभरकम औरत शायद श्रीमती शादीलाल थीं. मैं ज्यादा रात तक जागने पर मन ही मन झल्लाया और करवट बदल कर लेटा रहा. मुझे आवाजें सुनाई पड़ रही थीं.

‘‘अरे तुम, देखो हल्ला नहीं करना. मेरा यार एकलौता राम सोया हुआ है. तुम खुद नहीं आ सकती थीं. तुम्हारी बहनों ने मेरा मजाक बना दिया.’’

ठीक तभी बिजली जलने की आवाज सुनाई दी और सामूहिक ठहाके भी. मैं ने फौरन हड़बड़ा कर रजाई फेंकी. देखा तो दंग रह गया. शादीलाल की 6 सालियां खड़ी थीं. बेचारा शादीलाल उन्हें टुकुरटुकुर देख रहा था.

साली नंबर 5 गद्दा, तकिया व साड़ी फेंक कर फ्राक में खड़ी हो गई और बोली, ‘‘हम सातों को जीजाजी शैतान कह रहे थे.’’

‘‘अरे, मैं तो पहले ही समझ गया था. मैं तो नाटक कर रहा था,’’ शादीलाल ने झेंपते हुए साली नंबर 5 को देखा.

इस मजाक के बाद अगला मजाक सुबह ही हुआ. मैं और मेरा यार जब कमरे से बाहर आए, तो आंगन में सालियों से दुआसलाम हुई.

तभी एक साली ने कहा, ‘‘जीजाजी, क्या आप रात को बड़ी दीदी के कमरे में गए थे?’’

‘‘नहीं सालीजी, तुम्हारे होते हुए मैं वहां क्यों जाता?’’ कह कर शादीलाल ने उसे गोद में उठा लिया.

‘‘पर जीजाजी, आप बड़ी दीदी की चप्पलें पहने हैं और आप की चप्पलें तो दीदी के कमरे में पड़ी हैं.’’

शादीलाल ने घबरा कर पैरों की ओर देखा. पैरों में लेडीज चप्पलें ही थीं.

शादीलाल के हाथ से साली छूट गई, पर मैं ने उसे संभाल लिया. फिर ठहाका लगा, तो शादीलाल की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई.

सब से ज्यादा मजा उस समय आया, जब शादीलाल पेट हलका करने शौचालय में घुसा. तब मैं आंगन में खड़ाखड़ा ब्रश कर रहा था. सालियों ने जो टूथपेस्ट दिया था, उस का स्वाद कड़वा सा था और उस से बेहद झाग भी निकल रहा था.

तभी शौचालय के अंदर के नल का कनैक्शन, जिस से पानी जाता था, एक साली ने बाहर से बंद कर दिया.

मैं ने सोचा कि शादीलाल तो गया काम से. इधर मैं थूकतेथूकते परेशान था कि शादीलाल की सास ने कहा, ‘‘बेटा, तुम कुल्ला कर लो. इन शैतानों ने टूथपेस्ट की जगह तुम्हें ‘शेविंग क्रीम’ दे दी थी.’’

मेरे तो मानो होश ही उड़ गए. जल्दीजल्दी थूक कर भागा और सालियों के जबरदस्त ठहाके सुनता रहा.

शादीलाल एक घंटे बाद जब बिना पानी के ‘शौचालय’ से बाहर आया तो छोटी साली नाक दबा कर आई और बोली, ‘‘जीजाजी, फिर से अंदर जाइए. अब नल चालू कर दिया है.’’

शादीलाल दोबारा अंदर घुसा, फिर निकल कर नहाने घुस गया. उस का लगातार मजाक बनाया जा रहा था, पर वह ऐसा चिकना घड़ा था कि उस पर कोई बात रुकती नहीं थी.

2 दिन ऐसे ही सालियों की मुहब्बत भरी छेड़खानी में गुजरे. जब जाने का नंबर आया तो मेरे सीधेसादे यार शादीलाल ने सालियों से ऐसा मजाक किया कि सातों सालियां ही शर्म से पानीपानी हो गईं.

हुआ यों कि जब हमारे जाने का समय आया और रोनेधोने के बाद तांगे में सामान रख दिया गया, तब सालियां, उन की सहेलियां और महल्ले वालों की भीड़ जमा थी.

तभी शादीलाल ने कहा, ‘‘देखो सातों सालियो, मुझे यह बताओ कि कुंआरी लड़की को क्या पसंद है?’’

सातों सालियों ने न में सिर हिलाया. सब लोगों को यह जानने की बेताबी थी कि शादीलाल अब क्या कहेंगे. तभी शादीलाल ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘अरे, तुम लोगों को नहीं पता कि कुंआरी लड़कियों को क्या पसंद है?’’

‘नहीं,’ सातों सालियों ने एकसाथ फिर से वही जवाब दिया.

‘‘मुझे पहले ही तुम लोगों पर शक था,’’ शादीलाल ने नाटकीय लहजे में कहा.

उस समय सातों सालियों पर घड़ों पानी पड़ गया, जब उन की एक सहेली ने कहा, ‘‘तुम लोगों को जीजाजी ने बेवकूफ बना दिया. उन्हें तुम्हारे कुंआरे होने पर शक है. उन्होंने तुम सभी को शादीशुदा बना दिया है, क्योंकि तुम लोगों को कुंआरी लड़कियों की पसंद नहीं मालूम है.’’

और फिर तो सातों सालियों पर इतने जबरदस्त ठहाके लगे कि सभी दुपट्टे में मुंह छिपा कर अंदर भाग गईं.

 

कुदरत का कहर

मैं उत्तर भारत के एक छोटे से गांव का रहने वाला हूं. खेतीकिसानी हमारे पुरुखों की पहचान है. किसी के कम, तो किसी के ज्यादा है.

हम सब का मन अपने खेतों में लहलहाती फसलों की बालियों को देख कर बल्लियों उछलने लगता था. किसी को बेटी के ब्याह की, तो किसी को गहने की चाह. अच्छे कपड़ेलत्ते, घूमनाफिरना और न जाने क्याक्या… ढेर सारे सपने संजोए हुए थे, पर सब बालू की भीत जैसा ढह गया.

कालेकाले घनघोर बादलों की ऐसी घटाएं तो बरसात के मौसम में भी देखने को नहीं मिली थीं. किसानों की 6 महीने की पूंजी औंधे मुंह जमीन पर लेट गई. जिस का सारा दारोमदार खेती पर ही हो, उस की हालत तो जीतेजी मरने जैसी हो गई थी.

सुबह का समय था. गांव के पश्चिमी छोर से दिल को चीर देने वाली चीख के साथ कुहराम मच गया. पता चला कि कालीचरण अब इस दुनिया में नहीं रहा.

कालीचरण का कुलमिला कर 5 जनों का परिवार था. पत्नी, एक बड़ी बेटी, 2 छोटे बेटे और खुद वह. लड़की की इसी साल शादी होनी थी.

बहुत खोजबीन की थी, तब कहीं जा कर बात पक्की हो पाई थी. घर में खुशी का आलम था. इंतजार था तो गेहूं की फसल के कटने का. सारी तैयारियां हो चुकी थीं, पर मुट्ठी तो अभी भी खाली थी.

गरीब मजदूरकिसान का कोई बैंक बैलैंस, बीमा पौलिसी तो होती नहीं कि चैक भुनाया और सबकुछ निबटा दिया. किसानी से आस लगी थी. शादी का दिन नजदीक आता जा रहा था, पर कुदरत के कहर को दलित कालीचरण सह न सका.

ऐसा सदमा लगा कि उसे कन्यादान करने का सुख भी नहीं मिला. जमीनजायदाद थी नहीं, मजदूरी का ही सहारा था. वह खेतिहर मजदूर था.

2 एकड़ जमीन पर गेहूं की फसल लगी थी. फसल कटते ही जमीन मालिक की. अपनी होती तो जमीन रेहन ही रख देता, पर बंटाई की किसानी थी, तो फिर मुआवजे की क्या आस की जाए.

चैक तो जमीन वाले के ही नाम बनेगा. मुआवजे की तो छीछालेदर ही होनी थी. ऊपर वालों का, लेखपालपटवारी का, जमीन के मालिक का कमीशन. क्या बचता कालीचरण को… मरे नहीं तो और क्या करे.

किसी सिरफिरे ने एक टैलीविजन चैनल को फोन कर दिया. दोपहर तक सरकारी लीपापोती की शुरुआत हो गई. बड़ेबड़े सरकारी मुलाजिम पधारे.

डीएम, एसडीएम, तहसीलदार हमारे गांव में आए थे. वे सभी नए परिंदे थे. देखनेसुनने को पहली बार मिले थे.

एक अफसर ने गरज कर पूछा, ‘‘क्या बीमारी थी?’’

किसी के बताने से पहले ही दूसरा पूछ बैठा, ‘‘कितने दिन से थी?’’

‘‘नशा करता था?’’ तीसरा बोल पड़ा.

‘‘नहीं साहब,’’ कोई गांव वाला बोला.

‘‘क्या टीबी का मरीज था?’’ एक और अफसर ने पूछा.

‘‘नहीं साहब.’’

‘‘चुप बे… क्या नहींनहीं लगा रखा है. पता भी हैं तुझे बीमारी के लक्षण?’’

बोलने की रहीसही हिम्मत भी जवाब दे गई. पर हमें अच्छी तरह से मालूम था कि इस में हमारे छुटभए नेता पंडित जमनाप्रसाद का पूरा हाथ था, जिन के खेत में कालीचरण पिछले 2 साल से बंटाई पर खेती करता था.

इस आपदा में उन्हें अपना फायदा दिखा और उन्होंने कालीचरण को भयंकर बीमारियों के हवाले करने की पूरी कोशिश की. वे कामयाब भी रहे.

अगले ही पल धूल उड़ाती गाडि़यां शहर की ओर लौट गईं. हमारी जानकारी में कभी कालीचरण को सर्दीजुकाम के अलावा किसी दूसरी बीमारी की शिकायत नहीं हुई थी, पर सरकारी मुलाजिमों ने तो मुआवजे के बदले उसे बीमारियों का तोहफा ही दे डाला था. अब कालीचरण के परिवार को मुआवजा भी नहीं मिलेगा.

दरअसल, पंडित जमनादास अपने इलाके के नेताओं में अच्छी पहचान बनाए हुए थे और उन्हें जिताने में उन का पूरा सहयोग होता था. पिछली पंचवर्षीय योजना में वे प्रधान भी बने थे. उन की और भी बड़े लोगों में मजबूत पैठ थी, जिस से उन की दलाली खूब चलती थी.

पंडित जमनादास के बड़े भाई पंडित मोहनदास, जिन के 2 बेटे भी थे, बाहर रह कर कामधंधा करते थे.

पंडित मोहनदास अपने जमाने के नशेडि़यों में अव्वल नंबर पर थे. गांव की निचली जाति की कई लड़कियों को जवानी का पाठ पढ़ाने का जिम्मा उन्हीं का था. कुछ को तो उन्होंने साड़ी, जेवर, मोबाइल से लुभाया था, पर कुछ को जबरन बताया था कि जिंदगी का मजा क्या होता है.

2 नहर में कूदी थीं, एक ने जहर खाया था, पर बाकी उन्हें अपनी सेवा का सुख देती रही थीं, पर साथ ही बीमारियां भी. इस के चलते उन का शरीर भयंकर बीमारियों का अड्डा बन चुका था.

लिहाजा, हंसतेखेलते परिवार की शांति को बनाए रखने के लिए वे इस दुनिया से रुखसत हो गए.

पंडित जमनादास इस मौके का भी फायदा उठाने से नहीं चूके थे. आननफानन में रिपोर्ट लिखाई गई. लेखपाल को खिलायापिलाया. अपने बाप की काश्तकारी में आधे की हिस्सेदारी दिखाई गई. यह वही खेत था, जिस पर कालीचरण काश्तकारी करता था.

जो आदमी अपने शौच वगैरह के लिए भी नहीं सरक सकता था, उसे खेत तक चलाया गया और फसल की बरबादी को देख कर दम तोड़ते दिखाया गया.

आज महीने बाद मुआवजे का चैक लेने की बारी आई, तो पंडित मोहनदास का बड़ा बेटा लाइन में सब से आगे था, पर कालीचरण का परिवार जमीन में पड़ी बालियों में से सूखे दाने ढूंढ़ने की कोशिश में लगा था.

सैम पित्रोदा बन रहे सहारा, मोदी के पास मुद्दों का अभाव

कांग्रेस पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता सैम पित्रोदा के उस बयान से किनारा कर लिया है जिस में उन्होंने कहा कि ‘अमेरिका में इनहेरिटेंस टैक्स की व्यवस्था है. इस का मतलब है कि अगर किसी के पास 10 करोड़ डौलर की संपत्ति है तो उस के मरने के बाद बच्चों को केवल 45 फीसदी संपत्ति ही मिलेगी और बाकी 55 फीसदी सरकार ले लेगी. यह काफी दिलचस्प कानून है. यह कहता है कि आप अपने दौर में संपत्ति जुटाओ और अब जब आप जा रहे हैं, तो आप को अपनी धनसंपत्ति जनता के लिए छोड़नी होगी, सारी नहीं लेकिन उस की आधी, जो मेरी नजर में अच्छा है.’

उन्होंने कहा, ‘भारत में आप ऐसा नहीं कर सकते. अगर किसी की संपत्ति 10 अरब रुपए है और वह इस दुनिया में न रहे तो उन के बच्चे ही 10 अरब रुपए रखते हैं और जनता को कुछ नहीं मिलता. तो ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिस पर लोगों को बहस और चर्चा करनी चाहिए. मैं नहीं जानता कि इस का नतीजा क्या निकलेगा लेकिन जब हम संपत्ति के पुनर्वितरण की बात करते हैं, तो हम नई नीतियों और नए तरह के प्रोग्राम की बात करते हैं जो जनता के हित में है, न कि केवल अमीर लोगों के.’
सैम पित्रोदा के इस बयान की भाजपा ने आलोचना करते कहा कि कांग्रेस ने देश को बरबाद करने का फैसला कर लिया है. सैम पित्रोदा जो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं, अब 50 फीसदी टैक्स की वकालत कर रहे हैं. ऐसे में यह साफ है कि अगर कांग्रेस राज आता है तो लोगों ने अपनी कड़ी मेहनत से जो संपत्ति अर्जित की है वह उस का 50 फीसदी हिस्सा उन से छीन लेगा. सैम पित्रोदा अचानक अहम हो गए और पूरी भाजपा उन के पीछे पड़ गई.

प्रधानमंत्री ने बनाया मुद्दा

छत्तीसगढ़ में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘जब तक आप जीवित रहेंगे, तब तक कांग्रेस आप को ज्यादा टैक्स से मारेगी और जब जीवित नहीं रहेंगे, तब आप पर इनहेरिटेंस टैक्स का बोझ लाद देगी. पूरी कांग्रेस पार्टी को अपनी पैतृक संपत्ति मान कर जिन लोगों ने अपने बच्चों को दे दी, अब वो नहीं चाहते कि भारतीय अपनी संपत्ति अपने बच्चों को दें.

‘अब कांग्रेस का कहना है कि वो इनहेरिटेंस टैक्स लगाएगी. मातापिता से मिलने वाली विरासत पर भी टैक्स लगाएगी. आप जो अपनी मेहनत से संपत्ति जुटाते हैं, वो आप के बच्चों को नहीं मिलेगी. कांग्रेस का पंजा वो भी आप से लूट लेगा. कांग्रेस का मंत्र है, कांग्रेस की लूट जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी.’

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी सैम पित्रोदा के बयान के बाद पूरी तरह एक्सपोज हो गई है. सब से पहले कांग्रेस घोषणापत्र में सर्वे, मनमोहन सिंह का पुराना बयान जो कांग्रेस की लीगेसी है कि हम देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का मानते हैं, अब कांग्रेस का घोषणापत्र बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले सैम पित्रोदा का बयान कि संपत्ति के बंटवारे पर विचार होना चाहिए. अब जब प्रधानमंत्री जी ने यह मुद्दा उठाया तो राहुल गांधी, सोनिया गांधी और पूरी कांग्रेस बैकफुट पर आई है कि हमारा मकसद यह नहीं है.’

भाजपा प्रवक्ता अमित मालवीय ने ट्वीट कर के कहा है कि, ‘कांग्रेस ने भारत को बरबाद करने का फैसला किया है. सैम पित्रोदा संपत्ति का पुनर्वितरण करने के लिए 50 फीसदी इनहेरिटेंस (उत्तराधिकार) टैक्स की वकालत कर रहे हैं. इस का मतलब है कि जो कुछ भी आप ने अपनी कड़ी मेहनत से बनाया है उस का 50 फीसदी छीन लिया जाएगा. कांग्रेस अगर आती है तो इस के बावजूद कि हम ने कितना भी टैक्स दिया है, 50 फीसदी चला जाएगा.’

राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय महासचिव मलूक नागर ने कहा है, ‘सैम पित्रोदा की क्या दिमागी हालत है, उस के बारे में कुछ कह नहीं सकते.’

राहुल गांधी के बयान से शुरू हुई चर्चा

लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार में भाषण देते राहुल गांधी ने कहा था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो हम एक सर्वे कराएंगे जिस से पता लगाया जाएगा कि किस के पास कितनी संपत्ति है. उन के इस बयान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग तरह से पेश किया और कहा ‘कांग्रेस की निगाह मंगलसूत्र और स्त्रीधन पर है. ऐसा काम कांग्रेस मुसलमानों के लिए कर रही है. नरेंद्र मोदी के बयान से मुददा गरम हो गया. इस बारे में जब सैम पित्रोदा से पूछा गया तो उन्होंने इस के जवाब में अमेरिका में लगने वाले विरासत टैक्स का जिक्र किया.

भाजपा सैम पित्रोदा के बयान का सहारा ले कर कांग्रेस को घेरने का काम कर रही है. सैम पित्रोदा कांग्रेस के न तो रणनीतिकार है न ही कोई बड़े कांग्रेसी नेता. महंगाई, बेरोजगारी और जातीय जनगणना से जनता का ध्यान भटकाने के लिए भाजपा ने सैम पित्रोदा के बयान को सोशल मीडिया में ट्रैंड करना शुरू किया. अब सवाल उठता है, सैम पित्रोदा अचानक इतने अहम क्यों हो गए? कांग्रेस के साथ उन का क्या रिश्ता है? सैम पित्रोदा इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के चेयरमैन हैं.

बचाव में उतरी कांग्रेस

सैम पित्रोदा के बयान पर कांग्रेस के कम्युनिकेशन डिपार्टमैंट के प्रमुख जयराम रमेश ने कहा, ‘सैम पित्रोदा मेरे और दुनिया में कई लोगों के लिए एक मैंटर, दोस्त, फिलौसफर और मार्गदर्शक हैं. उन्होंने भारत के विकास में कई अहम योगदान दिए हैं. वे इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. पित्रोदा जिन मुद्दों के बारे में बोलने की इच्छा रखते हैं, उन पर स्वतंत्र रूप से अपनी राय रखते हैं.

‘बेशक, लोकतंत्र में हर शख्स के पास अपने निजी विचारों को रखने, उस पर चर्चा करने की आजादी है. इस का यह अर्थ नहीं है कि पित्रोदा के विचार हमेशा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रुख को बयां करते हैं. बहुत बार ऐसा नहीं होता. उन के बयान को सनसनीखेज तरीके से पेश करना और उन्हें बिना संदर्भ के पेश करना नरेंद्र मोदी के दुर्भावना और नुकसान पहुंचाने वाले उस चुनावी कैंपेन से ध्यान भटकाने की जानबूझ कर की गई कोशिश है जो केवल झूठ और ज्यादा झूठ के सहारे पर है.’
सैम पित्रोदा ने अपने बयान पर छिड़े विवाद पर कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मैं ने जो निजी तौर पर अमेरिका में इनहेरिटेंस टैक्स पर कहा उसे पीएम मोदी द्वारा कांग्रेस के घोषणापत्र को ले कर फैलाए जा रहे झूठ से ध्यान भटकाने के लिए गोदी मीडिया ने इस तरह तोड़मरोड़ कर पेश किया. पीएम के मंगलसूत्र और सोना छीनने वाला बयान स्पष्ट तौर पर वास्तविक नहीं हैं. किस ने कहा कि 55 फीसदी संपत्ति छीन ली जाएगी? किस ने कहा कि ऐसा कुछ भी भारत में किया जाएगा? बीजेपी और मीडिया इतना घबराया हुआ क्यों है?’

कर्नाटक में एक रैली को संबोधित करते प्रियंका गांधी ने कहा, ‘कैसीकैसी बहकीबहकी बातें की जा रही हैं कि कांग्रेस पार्टी आप का मंगलसूत्र, आप का सोना छीनना चाहती है. 70 सालों से ये देश स्वतंत्र हैं, 55 साल कांग्रेस की सरकार रही है, क्या किसी ने आप का सोना छीना, आप के मंगलसूत्र छीने. इंदिरा गांधी ने जब जंग हुई, अपना सोना इस देश को दिया. मेरी मां का मंगलसूत्र इस देश के लिए कुर्बान हुआ है. मंगलसूत्र का महत्त्व समझते तो वो ऐसी अनैतिक बातें न करते. किसान पर कर्ज चढ़ता है तो उस की पत्नी अपने मंगलसूत्र को गिरवी रखती है. बच्चों की शादी होती है या दवाई की जरूरत होती है तो महिलाएं अपने गहने गिरवी रखती हैं.’

मुद्दों से भटकाने की जुगत

लोकसभा के चुनावप्रचार में जैसे ही पहले चरण का मतदान खत्म हुआ, भाजपा के 3 स्टार प्रचारकों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के बयान बदल गए. राहुल गांधी के बयान को आधार बना कर मंगलसूत्र और मुसलमान के सहारे चुनावी प्रचार होने लगा. इस की वजह यह है कि 10 साल के कार्यकाल में 2014 से 2024 के दौरान मोदी सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया जिस को ले कर वे चुनावी प्रचार कर सकें. भाजपा के कार्यकाल में सड़क, एयरपोर्ट, वंदेमातरम ट्रेन और संसद जैसे काम हुए लेकिन चुनाव में इस की चर्चा नहीं हो रही है.

नरेंद्र मोदी के पास जब अपने कार्यकाल में बताने लायक कुछ नहीं. जो काम किए हैं वे अमीरों की नजर से किए हैं. अगर 84 करोड़ लोगों को खाने के लिए फ्री में राशन बांटना पड़ रहा है तो यह समझा जा सकता है कि देश के लोगों की हालत क्या है? आज किसान को 500 रुपए माह की किसान सम्मान निधि से संतोष करना पड़ रहा है, तो खुशहाल कौन हुआ है. आने वाले साल में मोदी सरकार का रोडमैप क्या है, इस को ले कर बात नहीं हो रही है?

मोदी के भाषणों में अपने से ज्यादा कांग्रेस की आलोचना है. इस से साफ है कि जनता में जो चुनावी निराशा दिख रही है वह नरेंद्र मोदी के लिए परेशानी की बात है. इसलिए ही कभी मंगलसूत्र, कभी मुसलमान तो कभी सैम पित्रोदा का सहारा लेना पड़ रहा है. भाजपा ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा के चुनाव जीते. वहां नए मुख्यमंत्री बनाए गए, उन के नाम की चर्चा भी चुनावों में नहीं हो रही है. अपनी बात कहने की जगह मोदी दूसरों की बातों का सहारा ले रहे हैं, जो उन की नाकामी को ही दिखाता है.

पार्टियों की डिक्टेटरशिप का शिकार ‘निर्दलीय उम्मीदवार’

गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी के मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया है. गुजरात के इतिहास में लोकसभा चुनावों में पहली बार ऐसा हुआ है. सूरत लोकसभा सीट पर 10 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे. भाजपा के मुकेश दलाल, बसपा के प्यारेलाल और कांग्रेस के नीलेश कुंभाणी के अलावा 7 प्रत्याशी निर्दलीय थे. इन में सुरेश पडसाला नीलेश कुंभाणी के डमी प्रत्याशी थे. सुरेश पडसाला और नीलेश कुंभाणी के प्रस्तावकों के हस्ताक्षरों को ले कर विवाद था. चुनाव आयोग ने जब प्रस्तावक बुलाने को कहा तो प्रस्तावक गुम हो गए. उस के बाद चुनाव आयोग ने सुरेश पडसाला और नीलेश कुंभाणी के नामांकनपत्र रद्द कर दिए.

कांग्रेस के प्रत्याषी सुरेश पडसाला और नीलेश कुंभाणी का नामांकन रद होने के बाद बसपा के प्यारेलाल सहित दूसरे निर्दलीय प्रत्याशियों ने अपने नामांकन वापस ले लिए. इस के बाद बचे मुकेश दलाल को चुनाव आयोग ने विजयी घोषित कर दिया. निर्दलीय उम्मीदवार बड़ी संख्या में चुनाव लड़ते हैं, इस के बाद भी चुनाव जीत नहीं पाते हैं. उस की वजहें हैं, चुनावों में पार्टीतंत्र का हावी होना, चुनावीखर्च बडा होना, निर्दलीय प्रत्याशी को चुनावचिन्ह देर से आंवटित करना आदि. जनता प्रत्याशी की जगह पार्टी का चुनावचिन्ह को देख कर वोट देती है. ऐसे में काबिल से काबिल प्रत्याशी भी चुनाव नहीं जीत पाता. यह लोकतंत्र के लिए घातक तो होता ही है, संविधान की भावना का भी हनन है जिस में उस ने निर्दलीय को बराबर का हक दिया है.

घटती जा रही निर्दलीय सांसदों की संख्या:

देश में पहली बार लोकसभा चुनाव 1952 में हुए थे. पहले आम चुनाव में कुल 37 निर्दलीय सांसद चुन कर लोकसभा पहुंचे थे. 1957 में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ कर 42 हो गई. 1962 के तीसरे लोकसभा में निर्दलीय सांसदों की संख्या में कमी आई. इस चुनाव में कुल 20 निर्दलीय प्रत्याशी ही सांसद बने. 1967 के चौथे लोकसभा में निर्दलीय सांसदों की संख्या 35 हो गई. 1971 के लोकसभा चुनाव एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या घट कर सिर्फ 14 हो गई.

इमरजैंसी के बाद 1977 में लोकसभा चुनाव हुआ. उस में निर्दलीय सांसदों का प्रतिनिधित्व फिर घट कर केवल 9 रह गया. 1980 के लोकसभा चुनाव में केवल 9 निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत नसीब हुई. लोकसभा चुनाव 1984 में एक बार फिर निर्दलीय सांसदों की संख्या बढ कर 13 हो गई. 1989 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय सांसदों की संख्या घट कर 12 रह गई. 1991 के लोकसभा चुनाव में तो केवल 1 निर्दलीय की जीत हो पाई. 1996 के लोकसभा चुनाव में 9 निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत हुई.

लोकसभा चुनाव 1998 में 6 निर्दलीय, लोकसभा चुनाव 1999 में भी 6 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. 2004 के लोकसभा चुनाव में 5 निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई. लोकसभा चुनाव 2009 में 9 निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत नसीब हुई. 2014 को लोकसभा चुनाव में  3 निर्दलीय उम्मीदवार ही सांसद बन पायें. लोकसभा के लिए 2019 में हुए चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों में से केवल 4 को ही सफलता मिली. इन में महाराष्ट्र के अमरावती से नवनीत राणा, कर्नाटक के मांड्या से सुमलता अंबरीश, दादरा और नगर हवेली से मोहनभाई सांजीभाई और असम के कोकराझार से नबा कुमार सरानिया बतौर निर्दलीय जीत कर संसद पहुंचे थे.

2024 में कौन मैदान में:

लोकसभा चुनाव 2024 में कई चर्चित चेहरे निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. बड़ी पार्टियों से टिकट नहीं मिलने के कारण कई उम्मीदवार इस बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं. बिहार में पूर्णिया सीट से पप्पू यादव कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना चाह रहे थे लेकिन टिकट नहीं मिलने पर वे निर्दलीय ही चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं. इस से लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की चिंता बढ़ गई है क्योंकि यह सीट इंडिया ब्लौक में आरजेडी के खाते में गई है.
भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार पवन सिंह भाजपा की ओर से मनपसंद सीट नहीं दिए जाने के कारण काराकाट लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी जंग में कूद पड़े हैं. राजस्थान की बाड़मेर सीट से रवींद्र सिंह भाटी बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में है. कर्नाटक में भाजपा से बगावत कर के एस ईश्वरप्पा ने शिमोगा सीट से निर्दलीय चुनाव लड रहे है. बागी निर्दलीय सियासी दलों का सिरदर्द बढ़ा रहे हैं.

संविधान ने दिया है निर्दलीयों को अधिकार:

निर्दलीय उम्मीदवारों को कोई वोटकटवा, तो कोई डमी उम्मीदवार कहता है. इन के चुनाव न लड़ने की मांग कई बार हो चुकी है. 2015 में लौ कमीशन ने सरकार से जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 4 और 5 में संशोधन की सिफारिश करते हुए यह कहा था कि सिर्फ पंजीकृत राजनीतिक दल के उम्मीदवारों को ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने की इजाजत दी जाए. आयोग का कहना था कि ज्यादातर निर्दलीय या तो डमी कैंडिडेट होते हैं या फिर गंभीरता से चुनाव नहीं लड़ते. निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत की संख्या को देखने पर पता चलता है कि लोग निर्दलीय उम्मीदवारों पर भरोसा नहीं कर पाते. लोगों को लगता है कि निर्दलीय उम्मीदवार उन के लिए कुछ खास करने की स्थिति में नहीं होते.

चुनाव सुधारों के लिए काम कर रहे लखनऊ के रहने वाले राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी आरआरपी के अध्यक्ष प्रताप चंद्रा कहते हैं, ‘असल में निर्दलीय चुनाव इसलिए नहीं जीत पाते क्योंकि उन को चुनावचिन्ह बहुत देर में आवंटित किया जाता है. निर्दलीय के पास पैसा, संगठन और संसाधन नहीं होते कि वह अपने चुनावचिन्ह को कम समय में मतदाताओं तक पहुंचा सके. चुनाव पर पार्टीतंत्र हावी है. पार्टी अपने सिंबल को देने के नाम पर ही प्रत्याशी के ऊपर डिक्टेटरशिप लगाती है. इस के कारण सांसद या विधायक की अपनी सोच और विचारधारा खत्म हो जाती है. वह अपने क्षेत्र की समस्या उठाने की जगह पार्टी की बात में ही हां में हां मिलाने लगता है.’

भारत में लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं, इन को मजबूत बनाने के ही लिए निर्दलीयों को चुनाव लडने का हक दिया गया था. सब के लिए राजनीतिक पार्टी बना कर चुनाव लडना संभव नहीं होता. पार्टी का स्थाई चुनावचिन्ह मिलने में कई दिक्कतें होती हैं. चुनावचिन्ह की इसी खासियत के कारण ही नेताओं को टिकट पाने के लिए धनबल से ले कर दूसरे काम करने होते हैं. उस की निष्पक्ष आवाज पार्टी के लिए गिरवी हो जाती है. वह पार्टी की विचारधारा के खिलाफ न बोल सकता है और न वोट कर सकता है. केवल एक चुनावचिन्ह की लोकप्रियता के कारण योग्य उम्मीदवार संसद और विधानसभा में नहीं पहुंच पाता है.

प्रताप चंद्रा कहते हैं, ‘जिसे आप अपना जनप्रतिनिधि समझते हैं वह असल में आप का नहीं, पार्टी का प्रतिनिधि होता है. जो सत्ता पक्ष का है वह अपनी सरकार की आलोचना नहीं कर सकता भले ही उस की सरकार उस के क्षेत्र की जनता के लिए अच्छा न कर रही हो. अगर वह पार्टी की जगह जनता की आवाज उठाएगा तो पार्टी उसे बाहर कर देगी. ऐसे में आप का जनप्रतिनिधि पार्टी का गुलाम बन कर काम करता है. जो समय उस को जनता की सेवा में लगाना चाहिए वह समय वह  पार्टी के बडे नेताओं की आवभगत में लगाता है. अगर प्रत्याशी का केवल चुनावचिन्ह का मोह खत्म हो जाए तो वह क्षेत्र की जनता की बात करेगा.’ चुनावचिन्ह के मसले में पार्टीतंत्र ने संविधान की मूल भावना को खत्म कर दिया है. चुनाव वही जीतेगा जिसे पार्टी अपना चुनावचिन्ह देगी वरना अच्छे से अच्छा उम्मीदवार भी चुनाव हार जाएगा. इस हार के डर से ही अच्छे उम्मीदवार चुनाव के मैदान में नहीं उतरते हैं. राजनीति राजनीतिक दलों की गुलामी में कैद हो कर रह गई है.

सेहत के लिए विटामिन जरूरी क्यों?

विटामिंस शरीर और सेहत के लिए बेहद जरूरी होते हैं. विटामिन को शरीर खुद पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न नहीं कर सकता. विटामिंस को खाने के माध्यम से ही प्राप्त किया जाता है. 13 तरह के विटामिंस शरीर के लिए जरूरी होते हैं. इन को प्राप्त करने के लिए सही डाइट लेने की जरूरत होती है.

विटामिंस को 2 हिस्सों में बांट सकते हैं. पहले हिस्से में वे विटामिंस होते हैं जो पानी में घुल जाते हैं. ये हमारी बौडी में स्टोर नहीं रहते. इस के अंतर्गत विटामिन सी, विटामिन बी 7, विटामिन बी 9, बी 3, बी 5, बी 2, बी 1, बी 6 और बी 12 आते हैं. ये बौडी में एनर्जी का उत्पादन करने के साथ ही साथ कोशिकाओं यानी बौडी सैल्स को बनाने का काम करते हैं.

दूसरे हिस्से में उन विटामिंस को रखते हैं जो बौडी के फैट में घुल जाते हैं. ये बौडी के फैट टिश्यूज में स्टोर रहते हैं. इन में विटामिन ए, डी, ई और के को रखा जाता है. इन का काम हड्डियों को मजबूती प्रदान करने के साथ सैल्स को हैल्दी रखना और आंखों की रोशनी को बचाए रखने का होता है. हर विटामिन का अलगअलग महत्त्व होता है.

हर विटामिन के महत्त्व को जान लेना जरूरी है, तभी पता चलता है कि ये हमारी बौडी के लिए कितने उपयोगी होते हैं. डाइटीशियन रानू सिंह कहती हैं, ‘‘विटामिंस का सब से बेहतर माध्यम भोजन ही होता है. इसलिए सही डाइट से इस की कमी को पूरा किया जा सकता है.’’

विटामिन ए

इस को रैटिनौल भी कहा जाता है. इस का काम दांतों, हड्डियों और स्किन को हैल्दी बनाए रखना होता है. शरीर में इस की कमी से नाइट ब्लाइंडनैस यानी रतौंधी हो सकती है. मीट, अंडे, चीज, क्रीम, फल, सब्जियां इस के प्रमुख स्रोत होते हैं.

विटामिन सी

इस को ऐस्कोबिक एसिड भी कहा जाता है. इस का काम शरीर में आयरन की कमी को पूरा करने में मदद करने के साथ टिश्यूज को हैल्दी बनाए रखना है. यह ऐंटी औक्सीडैंट गुणों से भरपूर होता है, इसलिए यह दांतों को भी स्वस्थ बनाए रखता है. शरीर में इस की कमी से स्कर्वी बीमारी होती है. पालक, पत्ता गोभी, टमाटर, शिमलामिर्च, आलू आदि में इस विटामिन की भरपूर मात्रा पाई जाती है.

विटामिन बी 6

इस का काम लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने के साथ ब्रेन फंक्शन को मैंटेन रखना है. शरीर में इस की कमी से नर्व डैमेज हो जाते हैं. फिश, ब्रैड, अंडे, सब्जियां, सोयाबीन, आलू आदि के सेवन से इस की कमी पूरी हो सकती है.

विटामिन बी 12

शरीर में इस का काम मैटाबोलिज्म बढ़ाते हुए रैड ब्लड सैल्स को बनाने के साथ सैंट्रल नर्वस सिस्टम को मैंटेन

रखना है. शरीर में इस की कमी से मेगालोब्लास्टिक एनीमिया हो जाता है. अंडे, मछली, लो फैट मिल्क, दही, चीज आदि इस के स्रोत हैं.

विटामिन डी

शरीर में इस का काम कैल्शियम की कमी को पूरा करना है. यह कैल्शियम और फास्फोरस के उचित रक्त स्तर को बनाए रखने में भी सहायक होता है. अंडे का पीला भाग, संतरा, सोया मिल्क, चीज, डेयरी प्रोडक्ट्स आदि इस के मुख्य स्रोत हैं.

विटामिन ई

शरीर में इस का काम लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करना है. शरीर में इस की कमी से नवजात शिशु हेमोलाइटिक एनीमिया का शिकार हो जाता है. कीवी, ऐवोकाडो, अंडा, दूध, नट्स, सब्जियां आदि इस के मुख्य स्रोत हैं.

विटामिन बी 7

इस को बायोटिन भी कहते हैं. शरीर में इस का काम प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के साथ ही साथ हार्मोन और कौलेस्ट्रौल का उत्पादन करना भी है. शरीर में इस की कमी से डर्मेटाइटिस और स्किन में जलन की परेशानी हो जाती है.

विटामिन बी 3

शरीर में इस का काम त्वचा को स्वस्थ रखने के साथसाथ नसों को सुचारु रूप से काम करने में मदद करना है. शरीर में इस की कमी को पूरा करने के लिए फिश, टमाटर, डेट्स, दूध, अंडे, ऐवोकाडो, गाजर, ब्रोकली, नट्स आदि का प्रयोग करें.

विटामिन बी 9

इस को फोलिक एसिड भी कहते हैं. शरीर में इस का काम विटामिन बी 12 के साथ काम कर लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करना है. यह शरीर में डीएनए के उत्पादन के लिए अति आवश्यक है. शरीर में इस की कमी से बच्चे में डिफैक्ट्स होने की संभावना रहती है, इसलिए गर्भावस्था से कुछ महीने पहले से ही महिलाओं को इसे लेने की सलाह दी जाती है. हरी सब्जियां, दालें, अंडे, ब्रोकली इस के मुख्य स्रोत हैं.

विटामिन बी 5

इस को पैंटोथेनिक एसिड भी कहा जाता है. शरीर में इस का काम मैटाबोलिज्म बढ़ाने के साथसाथ हार्मोन और कौलेस्ट्रौल के उत्पादन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना है. शरीर में इस की कमी से चक्कर आना, डिप्रैशन, पेट में दर्द की समस्या होती है. ऐवोकाडो, आलू, ब्रोकली, ओट्स, ब्राउन राइस इस के मुख्य स्रोत हैं.

विटामिन बी 2

इस को रिबौफ्लेविन भी कहा जाता है. शरीर में इस का काम विटामिन बी के साथ मिल कर कार्य करने के साथसाथ शरीर के विकास और लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में भी सहायता करना है. केला, दही, मीट, अंडे, मछली, बीन्स, दूध आदि इस के मुख्य स्रोत हैं.

विटामिन बी 1

शरीर में इस का काम कोशिकाओं को कार्बोहाइड्रेट की ऊर्जा में बदलने में सहायता करना है. शरीर में इस की कमी से बेरीबेरी होता है. ब्लैक बीन्स, मैक्रोनी, ब्रैड, बारले, ब्राउन राइस, कौर्न और मीट इस के मुख्य स्रोत हैं.

विटामिन के

शरीर में इस का काम हृदय की रक्षा करने, हड्डियों के निर्माण व इंसुलिन के स्तर को अनुकूलित करना है. ऐवोकाडो, कीवी, हरी पत्तेदार सब्जियां इस के मुख्य स्रोत हैं.

वह अकेली नहीं है : मौसमी और कबीर का क्या रिश्ता था?

मैट्रो और मोबाइल

इस में कोई शक नहीं कि मैट्रो ट्रेन हम सभी की जिंदगी को आसान बनाने में अतुलनीय योगदान दे रही है.  छात्रों का स्कूलकालेज आनाजाना, नौकरीपेशा लोगों का अपनेअपने दफ्तरों में आनाजाना बहुत ही आसान हो गया है. अकसर स्कूलकालेज व दफ्तरों में जाने वाले यात्रियों को समय से पहुंचने की जल्दी में बहुत भीड़ हो जाती है. भीड़ तो ठीक है मगर आजकल मोबाइल का चलतेचलते उपयोग करने का फैशन सा हो गया है. हरकोई मोबाइल में इतना व्यस्त रहता है कि उसे आसपास की गतिविधियों से कोई मतलब ही नहीं रहता, फिर चाहे कोई धक्का दे कर ही क्यों न निकल जाए.
मैट्रो के अंदर सीढ़ियों पर चढ़तेउतरते हर वक्त मोबाइल पर ही नजरें गड़ी रहती हैं जैसे इन्होंने मोबाइल बंद किया तो भूचाल आ जाएगा, धरती फट जाएगी, आसमान गिर जाएगा.  मैं भी एक दिन मैट्रो में सफर करने के इरादे से टोकन ले कर, सुरक्षा जांच कराते हुए प्लेटफौर्म पर जा पहुंचा. प्लेटफौर्म पर यात्रियों का झुंड देख कर एक बार तो मैं बुरी तरह घबरा उठा. लंबीलंबी पंक्तियों में खड़े हो कर मैट्रो आने का इंतजार करती भीड़ में मैं भी शामिल हो गया. कुछ ही देर में मैट्रो प्लेटफौर्म पर आ गई. लोगों को अंदर घुस कर सीट पाने की ऐसी  विकट लालसा मैं ने पहली बार देखी. मैट्रो से उतरने वाले यात्रियों को भी धकियाते हुए भीड़ अंदर वापस ले गई. कुछ लोग बड़बड़ाने लगे कि कैसे जाहिल लोग हैं, मैट्रो में भी सफर करना नहीं आता. पहले लोगों को उतरने देना चाहिए.
जैसेतैसे मैं भी पंक्ति में शामिल होने में सफल रहा. भीड़ स्टेशन दर स्टेशन बढ़ती ही जा रही थी.  लोग उतरते कम और चढ़ते ज्यादा रहे. मैट्रो में पैर तक रखने की जगह नहीं बची थी और यात्रियों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी.
एक स्टेशन पर मैट्रो रुकी तो भीड़ का ऐसा रैला आया जैसे सुनामी में अथाह पानी सबकुछ तहसनहस कर के आगे बढ़ता जाता है. मैट्रो के गेट तक बंद नहीं हो पा रहे थे. बारबार उद्घोषणा हो रही थी कि कृपया गेट खाली कर दें व मैट्रो को चलने दें, मगर एक बार जो मैट्रो में आ जाए वह एक कदम बाहर नहीं रखना चाह रहा था बल्कि अपने कदमों को अंदर की ओर ले जाने की कोशिश में न जाने कितने लोगों के जूतों को रौंदते हुए अंदर बढ़ने की नाकाम कोशिश कर रहा था. खैर, मैट्रो की सुरक्षा सेवा के कर्मचारियों ने कुछ लोगों को बाहर निकाल कर मैट्रो को चलवाया. मगर मैं उन लोगों को सैल्यूट करना चाहता हूं जो इतनी भीड़ में भी कंधों पर बोरे जैसा भारी बैग लिए और हाथों में मोबाइल को पकड़ कर अपना मनपसंद संगीत या फिल्म देखने की हिम्मत रखे हुए खुद को गिरने से संभाले हुए लेकिन दूसरे यात्रियों पर गिरतेपड़ते खड़े थे.
यात्रियों में आपस में गरमागरमी, कहासुनी का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था. पंक्तियों में खड़े लोग कभी बैठे हुए यात्रियों के ऊपर गिरते तो कभी वापस पीछे खड़े लोगों पर. इतनी भीड़ में एक शख्स पिट्ठू बैग कमर पर टिकाए हुए मोबाइल में गेम खेलने में मस्त भीड़ से बेखबर खड़ा था. जाहिर है, जब मोबाइल पर कुछ देखते हैं तो आंखों व मोबाइल के बीच में कुछ दूरी बनानी होती है जिस से आसानी से मोबाइल की स्क्रीन पर कुछ देखा जा सके, तो वह शख्स भी यही कर रहा था. किसी ने थोड़ा उसे धकियाया तो वह बैठे हुए यात्रियों के ऊपर झुक गया और गिरने से पहले ही उस के सामने बैठे यात्री ने वापस धक्का उसे दिया तो वह पीछे खड़े यात्री पर जा गिरा। वह चिल्लाया कि अरे भाई, जरा पीछे देख कर गिरो. तभी दूसरे यात्री ने कहा कि भाई, अपना मोबाइल बंद कर लो और खुद भी ठीक से खड़ा हो कर दूसरों को भी खड़ा रहने दो.
मगर वह ढीठ चिल्लाया कि आप को क्या प्रौब्लम है? मैं आप के ऊपर तो गिरा नहीं हूं न… उस की इस बात पर और कई यात्रियों को गुस्सा आया और कहा कि भाई, इतनी भीड़ है और तुम एक तो बैग कंधों पर टिकाए हुए हो जिस से पहले ही दूसरे लोगों को परेशानी हो रही है और उस पर मोबाइल पर गेम खेल कर अपने सहयात्रियों को तंग किए जा रहे हो और हम समझा रहे हैं तो उलटा लोगों को धमका रहे हो.
अपने खिलाफ काफी लोगों को बोलते देख कर वह थोड़ा सा सहमा मगर मोबाइल बंद नहीं किय. तभी किसी ने शरारत की और भीड़ को धक्का दे कर हंगामा बढ़ा दिया. खुद को संभालतेसंभालते लोगों ने अपने गुस्से को चरम सीमा तक बढ़ा दिया और एकदूसरे को असभ्य तरीके से बोलतेबोलते खुद को संभालने लगे. तभी उस यात्री को, जिस की वजह से यह सब हंगामा हुआ था नीचे झुक कर कुछ ढूंढ़ते हुए देखने लगा. वह बड़ी बेचैनी से घबराया हुआ सा बोले जा रहा था कि मेरा मोबाइल नीचे गिर गया है. तभी किसी ने चुटकी ली कि जब समझा रहे थे तो अकड़ दिखा रहा था अब मिल गया न मजा. इस पर वह बौखला कर बदतमीजी पर उतर आया.
अन्य यात्रियों ने कहा कि अरे, इस की इतनी बदतमीजियां क्यों सुन रहे हो. इसे उतारो अगले स्टेशन पर और सबक सिखाओ. इस बार भीड़ के भयंकर गुस्से व परिणाम को भांपते हुए वह थोड़ा नरम पड़ा और चुप हो कर अपने मोबाइल को ढूंढ़ने का प्रयास करने लगा. लेकिन भीड़ अपना मन उस की मालिश करने का बना चुकी थी. मगर उस की किस्मत अच्छी थी कि अगला स्टेशन आ गया. स्टेशन आते ही वह फिर से अपने मोबाइल ढूंढ़ने की कोशिश करने का बहाना बनाते हुए राकेट की गति से ट्रेन से बाहर निकल कर पलक झपकते ही आंखों से ओझल हो गया. इस तरह से एक अंतहीन, दुखद एवं कष्टकारी जैसे दिखने वाली यात्रा का सुखद अंत होने पर सभी यात्रियों ने चैन की सुखद सांस ली. मैट्रो का पहली यात्रा मेरे लिए एक यादगार बन गई और एक सबक दे गई कि चलते हुए या सफर करते हुए मोबाइल का उपयोग कभी भी कहीं भी दुर्घटना का शिकार बना सकता है.

क्या प्रैग्नैंसी में मौर्निंग सिकनैस चिंता का विषय है?

सवाल

मुझे प्रैग्नैंट हुए एक महीना हुआ है. हम ने घरवालों की मरजी के खिलाफ जा कर शादी की थीइसलिए अब मेरी देखभाल को कोई नहीं है. मेरे पति बहुत खुश हैं कि अब हमारी भी एक फैमिली होगी. पति की अच्छी जगह जौब लग गई है लेकिन फुलटाइम मेड रखना अभी हमारी पौकेट अलाऊ नहीं करती. मुझे खुद ही अपना ध्यान रखना होगा.

प्रैग्नैंसी में मौर्निंग सिकनैस के बारे में सोच कर ही मुझे डर लग रहा है. अभी तक तो मुझे कुछ ऐसा फील नहीं हुआ है.अगर होने लग जाएगा तो मैं क्या करूंगी. पति तो औफिस चले जाएंगेमैं घर में अकेली. मुझे कुछ हो गया तो सोचसोच कर घबरा जाती हूं. पति बहुत समझाते हैं कि जब भी कुछ फील हो तो उन्हें तुरंत कौल कर दूं. वे फौरन घर आ जाएंगेलेकिन मैं ही बहुत चिंता कर रही हूं. आप मेरी समस्या का समाधान करें.

जवाब

प्रैग्नैंसी में मौर्निंग सिकनैस बौडी टू बौडी डिपैंड करती है. कुछ को 6ठे सप्ताह से शुरू होती है, कुछ को 2 या 3 सप्ताह के बाद तो कुछ महिलाओं को प्रैग्नैंसीकी शुरुआत में ही मितली का अनुभव करना शुरू हो जाता है.

मितली आने का मतलब यह नहीं कि आप पूरे दिन ही ऐसा महसूस करेंगी. यह भी जरूरी नहीं है कि आप को सुबह के वक्त ही आएयह दूसरे समय भी आ सकती है. मौर्निंग सिकनैस एक संकेत है कि महिला के शरीर में गर्भावस्था के हार्मोन का स्तर काफी अधिक हो गया है.

मौर्निंग सिकनैस से बचने के लिए आप को हर आधे या एक घंटे के अंतराल पर थोड़ाथोड़ा पानी पीते रहना चाहिए ताकि आप खुद के शरीर को हमेशा हाइड्रेट रख सकें. साथ ही, दिन में 3 के बजाय थोड़ीथोड़ी मात्रा में 5 से 6 बार खाना खाने से भी मौर्निंग सिकईस में राहत मिलती है. इसीलिए यह आवश्यक है कि आप इस दौरान अपने खानपान पर खास ध्यान दें. अपनी डाइट में पोषक तत्त्वों को शामिल करें. भारी और चिकने भोजन से बचें. अदरक की चायनीबू पानी या पेपरमिंट की चाय पिएं.

प्रैग्नैंसी के 12-15 सप्ताह के बीच मौर्निंग सिकनैस की समस्या अपनेआप ही खत्म हो जाती है. मौर्निंग सिकनैस होना स्वस्थ प्रैग्नैंसी का एक समान्य हिस्सा है जिस से आप को जरा भी डरने या घबराने की आवश्यकता नहीं है. बस, नियमित रूप से अपनी गाइनी डाक्टर से चैकअप करवाते रहें और सलाह लेते रहें.

 

घर पर ऐसे बनाएं गुजराती स्टाइल की कढ़ी

कढ़ी आएं दिन हम अपने घर मं बनाते रहते हैं कुछ लोगों को कढ़ी खाना बहुत ज्यादा पसंद आता है. ऐसे में आज हम आपको गुजराती कढ़ी बनाने की विधि को बता रहे हैं. आइए जानते हैं घर पर आशान तरीके से गुजराती कढ़ी को कैसे बनाएं.

समाग्री

  • बेसन
  • खट्टा दही
  • गुड़
  • शक्कर
  • जीरा
  • राई
  • हींग
  • खड़ी लाल मिर्च
  • लौंग
  • अदरक
  • पानी
  • तेल
  • घी
  • धनिया

विधि

  • गुजराती कढ़ी बनाने के लिए सबसे पहले दही को अच्छे से  पानी में डालकर फेंटे, एक कटोरे में बेसन को डालकर अच्छे से मिलाए उसमें नमक, शक्कर और गुड़ को डाल लें. अब बेसन में फेटा हुआ खट्टा दही मिलाएं.
  • अब एक कड़ाही को गर्म करके उसमें जीरा औऱ हींग और राई को डालें, उसके बाद इसमें कुछ अपने पसंद के मसाले भी मिला दें. अब इसमं अदरक और हरी मिर्च का पेस्ट बनाकर डालें.
  • अब बेसन में दही को डालकर तड़के में चलाते रहें जब तक कड़ाही मं उबाल न आ जाए. उबाल आने में कम से कम 5 मिनट का समय लगता है.
  • पहले उबाल आने के बाद कढ़ा को कुछ दर तक पकने दें, उसके बाद धीमी आंच करके कढ़ी को पकाते रहें. अब इसमें कढ़ी को डालकर थोड़ी देर तक और चलाते रहें. कढ़ी को बीच- बीच में चलाते रहें. अब उसे अच्छा लुक देने के लिए कढ़ी को हरी धनिया की पत्ती से सजाए.
  • अब आप चाहे तो इस कढ़ी को रोटी या फिर चावल के साथ सर्व कर सकते हैं. इससे आपको स्वाद भी अच्छा मिलेगा.
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