सात जन्मों के शादी के रिश्ते को हमारे समाज का सब से पवित्र और अहम रिश्ता माना जाता है, लेकिन आज के समय में यह रिश्ता अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. शादी जो प्यार, अपनेपन और विश्वास का रिश्ता होता था, आज की मौडर्न लाइफ में लोगों की इस रिश्ते को ले कर सोच बदल रही है. जो कपल शादी के फेरों के वक्त हमेशा एकदूसरे के साथ रहने, हर सुखदुख में साथ देने की कसमें खाते हैं वही शादी के कुछ समय बाद ही छोटीछोटी वजहों से अपनी शादी को अलविदा कह रहे हैं और तलाक के काफी ज्यादा केस देखने को मिल रहे हैं. आज स्थिति ऐसी हो गई है कि मन का खाना न खिलाने, घूमने न ले जाने और शौपिंग न करवाने जैसी छोटीछोटी बातों पर लड़ाइयां शुरू हो जाती हैं और उन्हें सुलझाने की जगह बहस की चिनगारी को हवा दी जाती है और फिर बात रिश्ते को खत्म करने तक आ जाती है.

पहले के जमाने में ऐसा नहीं हुआ करता था. पहले के पुरुषों और महिलाओं दोनों में धैर्य व एकदूसरे के लिए प्यार हुआ करता था. लेकिन अब रिश्तों में सहनशीलता खत्म होती जा रही है. अब रिश्ता तोड़ने से पहले अपने रिश्ते को एक चांस देने का सब्र तक भी लोगों में नहीं बचा है. वर्तमान में कोई किसी के सामने झुकना पसंद नहीं करता. अब जब तक दोनों एकदूसरे के मनमुताबिक चलते हैं तब तक उन का रिश्ता टिकता है. जिस दिन दोनों में से कोई भी एक पार्टनर दूसरे की मरजी के खिलाफ उस से अलग जाता है, सामने वाले को वह बरदाश्त नहीं होता और रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच जाता है.

दो लोग एकजैसे नहीं हो सकते

जब एक घर के दो बच्चे एकजैसे नहीं हो सकते तो शादी के रिश्ते में एक होने वाले दो अलगअलग परिवारों के कोई भी दो इंसान एकजैसे कैसे हो सकते हैं. दोनों की आदतें, सोचने और जीने का तरीका अलग हो सकता है. ऐसे में एकदूसरे में मीनमेख निकालने के बजाय एकदूसरे में खूबियां ढूंढना सही रास्ता है. एक पार्टनर को दूसरे को बदलने के बजाय उस की अच्छाइयों को देखते हुए उसे उसी रूप में स्वीकारना चाहिए जैसा वह है. इस से रिश्ते में अपेक्षाएं कम होती हैं और रिश्ते की उम्र बढ़ती है.

उम्मीदों पर लगाएं लगाम

किसी भी पतिपत्नी में अलगाव की सब से बड़ी वजह एकदूसरे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें करना होता है. जब उम्मीदें इतनी बढ़ जाती हैं कि उन्हें पूरा कर पाना संभव नहीं हो पाता, तो कपल का एकसाथ रहना मुश्किल हो जाता है. इस के अलावा शादी के रिश्ते में जब दोनों ही खुद को सही और दूसरे साथी को गलत साबित करने की होड़ में लग जाते हैं तो भी रिश्ते में खटास बढ़ने लगती है और रिश्ता तलाक या अलगाव की चौखट तक पहुंचने लगता है.

शादी का रिश्ता कैसे निभाएं, यह कोई नहीं सिखा रहा

आज शादी के रिश्तों के टूटने की सब से बड़ी वजह यह है कि शादी का रिश्ता कैसे निभाएं, यह कोई नहीं सिखा रहा- न लड़की के परिवारवाले, न लड़के के परिवारवाले, न समाज, न सोशल मीडिया ही. अगर पहले की बात करें तो यह सिखाने का काम पत्रपत्रिकाएं करती थीं.

हम हाथ पकड़ कर जैसे एबीसीडी अल्फाबेट सीखते हैं वैसे ही अपनी शादी को बचाना भी सीखना चाहिए. आज पति यह तो चाहते हैं कि पत्नियां उन की आर्थिक जिम्मेदारी शेयर करें लेकिन वे घर की जिम्मेदारी में हाथ बंटाने से झिझकते हैं जो कि गलत है. जब लड़कियां दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हैं तो लड़कों को भी घर के कामों में हाथ बंटाना सीखना होगा. इसी तरह अब लड़कियां जैसे जीवन की बाकी स्किल्स को सीख रही हैं तो उन्हें वैवाहिक जीवन कैसे चलाएं, यह भी सीखना होगा. वैवाहिक रिश्ते को बचाने के लिए अगर जरूरत पड़े तो मैरिज काउंसलर के पास भी जाएं. शादी कैसे चलाएं, यह शिक्षा दोनों पार्टनरों को मिलनी चाहिए.

अपने रिश्ते को बचाने की हर संभव कोशिश करें

पति हो या पत्नी, रिश्ता तोड़ने से पहले उन्हें एक बार इस बारे में जरूर सोचना चाहिए कि अगर उन्होंने शादी तोड़ी या उसे बचाने की कोशिश नहीं की तो उन्हें ही भुगतना पड़ेगा. तलाक के बाद आसानी से उन्हें कोई दूसरा मिलने वाला नहीं है. इसलिए पतिपत्नी दोनों एकदूसरे को संभाल कर रखें. कई बार जल्दबाजी में लिए गए फैसले से बाद में पछतावे के सिवा कुछ हासिल नहीं होता.

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