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व्हाट्सऐप के इन नए फीचर्स को ट्राई किया क्या..!

इंस्टैंट मैसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप अपने यूजर्स के लिए कई नई फीचर की सौगात ले कर आई है. पिछले कुछ दिनों में व्हाट्सऐप ने एक-एक करके पांच नये फीचर्स लांच किये हैं. इसमें गलती से भेजे गये मैसेज को हटाने से लेकर लाइव लोकेशन जैसे फीचर्स शामिल हैं. आइए जानें व्हाट्सऐप के ऐसे ही नये फीचर्स के बारे में, जो दिलचस्प होने के साथ-साथ आपके लिए काम के भी साबित हो सकते हैं.

डिलीट फौर एवरीवन (Delete for Everyone)

इस फीचर के जरिये आप व्हाट्सऐप पर भेजे हुए मैसेज वापस ले सकेंगे. मैसेज डिलीट करते समय आपको 3 औप्शन मिलेंगे. Delete For Me, Cancel और Delete For Everyone. इसमें, Delete For Me पर क्लिक करने पर आपके ऐप से मैसेज डिलीट होगा लेकिन आपने जिन्हें मैसेज भेजा है, उसके ऐप से नहीं. वहीं, Delete for Everyone पर क्लिक करने पर आपके और आपने जिन्हें मैसेज भेजा है, दोनों के ऐप से मैसेज डिलीट हो जायेगा.

टू स्टेप वेरीफिकेशन (Two Step Verification)

इसकी मदद से यूजर का व्हाट्सऐप अकाउंट और ज्यादा सुरक्षित रहता है. इसे एक्टिवेट करने के बाद यूजर जब भी व्हाट्सऐप पर अपने फोन नंबर को रजिस्टर करते हैं, तो 6 अंकों के पिन की जरूरत पड़ती है. यह पिन यूजर को खुद बनाना होता है. यह बीच में भी कभी पूछा जा सकता है.

लाइव लोकेशन (Live Location)

व्हाट्सऐप पर अपने कान्टैक्ट्स के साथ लोकशन शेयर करने का फीचर पहले पहले भी उपलब्ध था, लेकिन वह रियलटाइम नहीं होता था. Live Location के नए फीचर के जरिये आप अपने कान्टैक्ट्स के साथ अपनी रियलटाइम लोकेशन शेयर कर सकते हैं. इससे आपकी लोकेशन की अपडेट लगातार मिलती रहेगी. इसके लिए आपको व्हाट्सऐप चैट में जाकर Attach आइकन पर क्लिक करना होगा. यहां लोकेशन शेयर करते हुए आपसे समय सीमा पूछी जायेगी. समय सीमा में 15 मिनट, 1 घंटा और 8 घंटा के तीन विकल्प दिये जायेंगे.

मीडिया शेयरिंग (Media Sharing)

व्हाट्सऐप पर आप एक साथ 30 तक फोटो भेज सकते हैं साथ ही, पहले कुछ चुनिंदा प्रकार की फाइल ही व्हाट्सऐप पर भेजी जा सकती थी, लेकिन अब MP3 और APK files सहित अधिकांश फाइल्स शेयर की जा सकती हैं.

मुझे डांस करने में कोई दिक्कत नहीं है : राज कुमार राव

2017 में राज कुमार राव की ‘ट्रैप्ड, ‘बरेली की बर्फी, ‘न्यूटन, ‘बहन होगी तेरी’ जैसी विविधतापूर्ण फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं. इनमें से कुछ ने जबरदस्त सफलता बटोरी, तो कुछ किसी तरह लागत वसूल कर पायीं. मगर राज कुमार राव की शोहरत में बढ़ोत्तरी ही हुई है. राज कुमार राव इन दिनों काफी उत्साहित हैं. एक तरफ इस बात को लेकर वह उत्साहित है कि उनकी फिल्म “न्यूटन” को आस्कर अवार्ड के लिए भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के तौर पर भेजा गया है, तो वहीं वह दस नवंबर को प्रदर्शित हो रही निर्माता विनोद बच्चन और निर्देशक रत्ना सिंहा की फिल्म “शादी में जरुर आना” को लेकर, जो कि एक रोमांटिक कामेडी फिल्म है.

यदि राज कुमार राव के करियर पर दृष्टिपात किया जाए, तो पता चलता है कि ‘शाहिद’, ‘अलीगढ़’ , ‘न्यूटन’जैसी फिल्मों में यथार्थ परक व संजीदा किस्म के किरदारों को निभाकर कलाकार के तौर पर अपनी एक अलग पहचान बनाने के बाद अब वह‘बरेली की बर्फी’, ‘बहन होगी तेरी’और ‘शादी में जरुर आना’जैसी रोमांटिक कामेडी फिल्मों में एक अलग तरह के किरदार निभा रहे हैं.

न्यूटनको आस्कर अवार्ड दिलाने के लिए आपकी तरफ से क्या प्रयास किए जा रहे हैं?

हमें इसके लिए काफी मेहनत करनी है. हमारी पूरी टीम इस पर काम कर रही है. हम फिल्म के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए लास एंजेल्स में ज्यादा से ज्यादा फिल्म के शो करने जा रहे हैं. हमें पूरी उम्मीद है कि हमें सफलता मिलेगी. अभी मैं शिकागो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल से वापस आया हूं. वहां पर “न्यूटन” को काफी पसंद किया गया. वहां पर तमाम अमरीकन फिल्मकार भी थे. उनका मानना था कि लंबे समय बाद भारत से ऐसी फिल्म आयी है. वास्तव में लोकतंत्र भारत के अलावा कई अन्य देशो में भी है. हर देश में लोकतंत्र के चलते कुछ समस्याएं भी हैं. इसलिए लोग इस फिल्म के साथ रिलेट कर रहे हैं. एक इंसान जो कि सिस्टम में रहकर इमानदारी से काम करता है, साथ में ही वह अपने सिस्टम को भी फालो करता है. दर्शक ऐसी दुनिया को देख पा रहा है, जिसके बारे में सुना था. झारखंड और नक्सल प्रभावित इलाका, जहां पर चुनाव कराना आसान नहीं.

करियर के इस मुकाम पर किस तरह की अनुभूति हो रही है?

अनुभूति तो पहले वाली ही है. जब तक अच्छी कहानियां, अच्छी फिल्में मिल रही हैं, तभी तक अनुभूति है. हां! अब लोग ज्यादा पहचानने लगे हैं, इसके चलते मटेरियालिस्टिक चीजें बढ़ गयी हैं. सुख सुविधाएं बढ़ गयी हैं, पर मेरे लिए सबसे बड़ी महत्ता तो अच्छे काम की ही है.

सफलता के साथ फिल्मों के आफर की संख्या बढ़ती है. ऐसे में सही चुनाव करना कितना कठिन हो जाता है?

यह सच है. पहले चुनने के लिए आप्शन कम थे, पर अब आप्शन ज्यादा होते हैं. दूसरी बात अब अच्छी कहानी के आफर ज्यादा आते हैं. लोगों का मुझ पर विश्वास बढ़ गया है. पहले जो लोग हमारे साथ काम नहीं करना चाहते थे, वह अब काम करना चाहते हैं, तो इस तरह हमारे लिए काम करने का दायरा बढ़ जाता है.

आप अपने करियर में एक खास तरह की फिल्में ही कर रहे हैं.कमर्षियल फिल्मों से अभी भी आप दूर हैं?

मुझे लगता है कि अब कमर्शियल फिल्मों की परिभाषा बदल चुकी हैं. अब‘पिकू’,‘हिंदी मीडियम’, ‘ट्वायलेट एक प्रेम कथा’,‘शुभ मंगल सावधान’, ‘दंगल’,‘जुड़वा 2’ जैसी फिल्में कमर्शियली सफलता दर्ज करा रही हैं. इससे कमर्शियल फिल्मों की परिभाषा बदल रही है. ‘दंगल’आम कमर्शियल फिल्म नही है. यह गांव की कहानी है, जिसमें आमीर खान ने दो बेटियों के पिता की भूमिका निभायी है.तो अब कमर्शियल सिनेमा की धारणा बदल रही है.

सिनेमा में यह जो बदलाव आ रहा है, वह आप सभी उभरते कलाकारों के लिए फायदेमंद हो रहा है?

यह फायदेमंद है. दर्शक भी हमसे जुड़ रहे हैं. वह हमारे किरदारों में खुद को देखते हैं. यह अच्छी बात है.

मगर कमर्शियल सिनेमा में संगीत व नृत्य की बहुतायत होती है. क्या सिनेमा में आ रहे बदलाव के साथ यह सब खत्म हो जाएगा?

मुझे ऐसा कुछ नही लगता. देखिए, मैं तो खुद को नृत्य में सक्षम भी पाता हूं. मुझे तो डांस बहुत पसंद है. मुझे डांस से परहेज नही है, पर फिल्म में कहानी महत्वपूर्ण होनी चाहिए. उसके बाद उसके इर्द गिर्द संगीत व नृत्य को रखा जा सकता है.

पर आप इन दिनों संजीदा किरदारों की बजाय रोमांटिक कामेडी फिल्मों में ज्यादा नजर आ रहे हैं. यह बदलाव सोचा समझा है?

बिलकुल नहीं..मैं अपनी ईमेज बदलने का कोई प्रयास नही कर रहा. मेरे लिए कहानी  किरदार अहम होते हैं, पर जो फिल्में कर रहा हूं, उनसे रिलेट कर रहा हूं. मेरी परवरिश गुड़गांव में हुई है. जहां हम सभी एक दूसरे से परिचित होते हैं. ऐसे में वहां पर रोमांस का मतलब है काफी डे में बैठकर एक ही कोका कोला की बोतल से कोका कोला पीना या काफी मग बदलना. इसी तरह का रोमांस लोगों को फिल्म “शादी में जरुर आना” में नजर आएगा.

फिल्म शादी में जरुर आनाक्या है?

यह एक ड्रामा लव स्टोरी है, साथ में कामेडी भी है. कहानी कानपुर व इलाहाबाद में स्थित रोचक कहानी है. बतौर निर्देशक रत्ना सिन्हा की यह पहली फिल्म है. निर्माता विनोद बच्चन से सभी वाकिफ हैं. हमारे साथ पहली बार इस फिल्म में कृति खरबंदा हैं. एक लंबे समय बाद ऐसी प्रेम कहानी आ रही है, जिसमें सादी वाले दिन ही किरदार बदल जाते हैं. “बरेली की बर्फी” में भी किरदार में बदलाव आता है, पर उसमें कौमिक मसला था. जबकि इस फिल्म में कुछ और ही मसला है.

कृति खरबंदा के साथ आपकी यह पहली फिल्म है. क्या अनुभव रहे?

बहुत अच्छे अनुभव रहे. वह काफी सिंसियर कलाकार हैं. मेहनती हैं. मैं भी ऐसा ही हूं, इसलिए हमारी अच्छी ट्यूनिंग बन गयी.

रत्ना सिन्हा को लेकर क्या कहेंगे?

वंडरफुल, शांत व अनुभवी निर्देशक हैं. मैने उनके द्वारा निर्देशित कुछ म्यूजिक वीडियो देखे हैं. उनके एक म्यूजिक वीडियों में तेा निर्देसक हंसल मेहता ने अभिनय किया था. हंसल मेहता ने भी मुझसे रत्ना सिंहा का जिक्र किया था.

हंसल मेहता की कौन सी खूबी आपको बार बार उनके साथ काम करने लिए प्रेरित करती है?

जिस तरह की कहानियां वह कह रहे हैं, वह मुझे उनके साथ जोड़ती है. वह निडर निर्देशक हैं. कहानी को लेकर समझौता वादी नही है. मैं भी काम में समझौता पसंद नहीं करता. अब हमने एक साथ इतना काम कर लिया है कि परिवार जैसे संबंध हो गए हैं.

हंसल मेहता के निर्देशन में आप एक फिल्म ‘‘ओमार्टाकर रहे हैं, जो कि एक आतंकवादी की कहानी है. क्या ऐसे इंसान की कहानी को परदे पर लाना जायज मानते हैं?

जब तक हम उसे हीरो बनाकर नहीं दिखा रहे हैं, तब तक उसकी कहानी को बयां करना गलत नहीं है. आतंकवाद दुनिया का सच है. आतंकवाद से पूरी दुनिया जूझ रही है. यह कहानी सिर्फ आतंकवाद पर नहीं है, बल्कि कहानी यह है कि एक स्मार्ट लड़का आतंकवाद का रास्ता क्यों चुनता है? उसकी यात्रा क्या है. हमने अब तक आतंकवाद को इस नजरिए से देखा है कि एक आतंकवादी ने कहां कितने लोगों को मौत के घाट उतारा, पर इस फिल्म में हम आतंकवाद को दूसरे नजरिए से देख रहे हैं. यह जानना जरुरी है कि आखिर आतंकवाद से छोटे छोटे लड़के क्यों जुड़ रहे हैं. बांगला देश में तो पढ़े लिखे स्टूडेंटों ने यह काम किया. सिर्फ आतंकवादियों पर बम फेंक देने से आतंकवाद खत्म नहीं होगा. इसकी जड़ में जाकर वजह समझनी होगी. आखिर बच्चे इस रास्ते से क्यों जुड़ रहे हैं.

इस फिल्म में अभिनय करने से पहले आपने अपनी तरफ से कुछ शोध कार्य किया होगा, तो आपको इसकी वजह क्या समझ में आयी?

युवा पीढ़ी के लोग कुछ समस्याओें के चलते दिशाहीन हो जाते हैं. उसके बाद कुछ लोग उनके इसी दिशाहीन स्थिति का फायदा उठाते हैं.

प एक अंग्रेजी भाषा की फिल्म “5 वेंडिंग” कर रहे थे?

जी हां! नरगिस फाखरी के साथ यह फिल्म कर रहा हूं. इसकी भारत की शूटिंग खत्म हो गयी है. तीन दिन का अमरीका में शूटिंग का काम बाकी है, बहुत जल्द जाकर पूरा करना है. मुझे बहुत मजा आया इस फिल्म को करने में, इसमें भारत को बहुत अलग अंदाज व नजरिए से दिखाया गया है.

आप एक बंगला फिल्म ‘‘अमी सायरा बानोभी कर रहे हैं?

मैं यह फिल्म तीन वर्ष पहले कर रहा था. हमने आधी फिल्म की शूटिंग कर ली थी. उसके बाद निर्माता व निर्देशक के बीच झगड़े हो गए और फिल्म बंद हो गयी. अब इसे पूरा करना मुश्किल है.

एक फिल्म शिमला मिर्चकर रहे थे?

मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इस फिल्म का क्या हो रहा है. आप खुद इसके निर्माता से बात करें, तो शायद आपको कुछ पता चले.

आप ऐश्वर्या राय बच्चन के साथ फिल्म फन्ने खांकर रहे हैं. इस फिल्म को लेकर कई तरह की खबरें आती रहती हैं?

शूटिंग चल रही है. हमारे व अनिल कपूर के सीन फिल्माए जा रहे हैं. ऐश्वर्या राय भी जल्द शूटिंग करने वाली हैं.

आपने जिन किरदारों को निभाया है, उनमे से किस किरदार ने आपकी निजी जिंदगी पर असर किया और उससे आपने कैसे छुटकारा पाया?

जब हम‘शाहिद’,‘अलीगढ़’ या ‘ओमार्टा’ जैसी फिल्मों के किरदारों को निभाने के लिए शूटिंग करते हैं, तो स्वाभाविक तौर पर इनका असर हमारे दिमाग पर होता है. सबसे पहले हम उसे जीना शुरू करते हैं, पर हमें यह भी पता होता है कि यह बहुत जल्द खत्म होना है. तो इसका प्रोसेस यही है कि जब तक शूटिंग चलनी है, तब तक किरदार में रहिए, फिर उसे भूल जाइए. उसके बाद हम अगली फिल्म के किरदार की तैयारी में लिप्त होते हैं, तो पिछला भूलना ही होता है.

कोई किरदार लंबे समय तक आपके साथ चिपक गया हो?

फिल्मों में अलग अलग किरदार निभाते हुए इंसान के तौर पर मैंने काफी सीखा और ग्रो हुआ हूं. फिल्म‘अलीगढ़’करते हुए हमने सीखा कि समलैंगिक इंसान के साथ क्या हो सकता है. उनकी तो मौत ही हो गयी थी. तो मुझे प्रोफेसर का दर्द समझ में आया. फिल्म‘सिटी लाइट’करके माइग्रेशन का दर्द समझ में आया. ‘न्यूटन’करने के बाद मेरी समझ में आया कि छत्तीसगढ़ में किस तरह का समुदाय रह रहा है, जिसके बारे में हम क्या दुनिया के कम लोग ही जानते हैं. ऐसे इलाके में चुनाव कराना कितना कठिन काम होता है, यह समझ में आया. यह अपने आप में जोखिम भरा काम हो सकता है, पर लोग चुनाव करवा रहे हैं. ‘ओमार्ट’ करके समझ में आया कि लोग आतंकवाद की राह क्यों पकड़ रहे हैं. मेरी राय में हर फिल्म के साथ इंसान के तौर पर हम काफी ‘ग्रो’होते हैं. यही हमारे सिनेमा की खूबसूरती है.

आधार को सिम से लिंक कराने की ये है अंतिम तारीख, जानिए पूरी प्रक्रिया

ग्राहको को 6 फरवरी 2018 तक अपना मोबाइल नंबर आधार से लिंक कराना होगा. अगर ऐसा नहीं किया गया को आपकी मोबाइल सेवाएं बंद हो सकती हैं. इस मामले को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है.

इसमें कहा गया है कि मोबाइल ग्राहक को ई-केवाईसी वेरिफिकेशन के तहत 6 फरवरी तक अपना फोन आधार के साथ लिंक करवाना अनिवार्य है. वहीं, नए बैंक अकाउंट खुलवाने के लिए भी आधार अनिवार्य है.

सरकार नहीं बदल सकती अंतिम तारीख

सरकार ने कहा है कि मोबाइल नंबर को आधार से लिंक कराने की अंतिम तारीख (6 फरवरी) सरकार नहीं बदल सकती है क्योंकि इसे सुप्रीम कोर्ट ने तय किया है. साथ ही यह भी बताया कि आधार को अपने बैंक खातों के साथ लिंक कराने की आखिरी तारीख 31 मार्च कर दी गई है. आपको बता दें कि इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से 4 हफ्तों में जवाब मांगा था जिसमें पूछा गया था कि आधार को मोबाइल नंबर से क्यों लिंक कराया जाना चाहिए.

सरकार ने आधार को बताया सुरक्षित

सरकार ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में साइबर हमलों से कई देश प्रभावित हुए हैं. लेकिन UIDAI और इसके किसी भी सर्वर पर हैकिंग या डाटा लीक होने की कोई भी घटना सामने नहीं आई है.

ध्यान रखें ये जरूरी बातें

सबसे जरूरी बात यह है कि आपका मोबाइल नंबर आधार से किसी भी तरह से घर बैठे लिंक नहीं होगा. ऐसे में अगर कोई दावा करे कि वो आपका नंबर आधार से लिंक करा देगा तो इसे नहीं मानें।

ऐसा इसलिए क्योंकि आधार से मोबाइल नंबर लिंक करने के लिए आपकी बायोमेट्रिक डिटेल्स की जरूरत होगी और इसके लिए आपका होना जरूरी है.

इसके बाद जैसे ही आपको आपके सेवा प्रदाता का एसएमएस मिले कि आप अपना E-KYC अपडेट करा लें, वैसे ही आप कंपनी स्टोर पर चले जाएं. अगर आपको अब तक कोई एसएमएस नहीं आया है तो इस बारे में कस्टमर केयर कौल कर के पता करें.

कंपनी स्टोर जाकर एग्जीक्यूटिव को अपना मोबाइल नंबर और आधार कार्ड की डिटेल्स दें. वेरिफिकेशन के बाद आपके मोबाइल पर एक वेरिफिकेशन कोड आएगा. इसे एग्जीक्यूटिव को बताकर कन्फर्म करें. इसके बाद आपकी बायोमेट्रिक डिटेल्स ली जाएंगी.

24 घंटे के भीतर आपको एक और वेरिफिकेशन कोड आएगा. आपको इस मैसेज का जवाब Yes (Y) में देना होगा. इस तरह आपका आधार आपके मोबाइल नंबर से लिंक हो जाएगा.

कोहली जैसे दिखते हैं वैसे हैं नहीं, यकीन नहीं आता तो देखिए ये वीडियो

टीम इंडिया के वन डे कप्तान विराट कोहली मैदान में अपने आक्रामक अंदाज के लिए जाने जाते हैं. यही कारण है कि कई लोग उन्हें अक्खड़ और घमंडी स्वभाव का समझते हैं, लेकिन कोहली जैसे बाहर से दिखते हैं. असल में वैसे हैं नहीं, वह अंदर से बेहद नर्म हैं. आम हम आपको कोहली से जुड़े कुछ ऐसे ही वाकये बता रहे हैं, जो जानने के बाद उनके प्रति आपकी सोच बदल जाएगी.

जब पाकिस्तानी खिलाड़ी को दिया था बल्ला

भारत और पाकिस्तान के मैच से पहले नेट प्रैक्टिस का मौका था. मैदान में एक तरफ टीम इंडिया प्रैक्टिस कर रही थी, तो दूसरी ओर पाकिस्तानी खिलाड़ी पसीना बहा रहे थे. इसी बीच में शाहिद अफरीदी कोहली से कुछ बात कर रहे होते हैं, जिसके बाद कोहली पाकिस्तानी खिलाड़ी मो. आमिर को अपने बल्लों में से एक बल्ला दे देते हैं. विपक्षी टीम का खिलाड़ी आता है और उनसे बल्ला लेकर प्रैक्टिस करने चला जाता है.

मैच से पहले नन्ही फैन से मिलाया हाथ

कोहली ने एक अन्य मौके पर अपना बड़प्पन तब दिखाया था, जब मैच से पहले नन्ही फैन कोहली-कोहली पुकार रही थी. वह कोहली से मिलना चाहती थी और उनका औटोग्राफ लेना चाहती थी. कोहली उसकी आवाज सुनकर उसके पास पहुंचते हैं और उससे हाथ मिलाते हैं.

कोहली को करीब पा छलक आए खुशी के आंसू

विराट एक मौल में गए हुए होते हैं, जहां भीड़ उन्हें घेरे हुए होती है. तमाम लोग कोहली संग फोटो खींचने और सेल्फी लेने में जुटे होते हैं. इसी दौरान एक लड़की उनसे औटोग्राफ मांगती है, वह कागज पर साइन कर ही रहे होते हैं कि वह जोर-जोर से खुशी के मारे रोने लगती है. कहती है, विराट आई लव यू. कोहली भी उसे गले लगा लेते हैं. इसके अलावा मौके और भी देखिए वीडियो में.

अपनी फिल्म को लेकर क्यों डरे हुए हैं रणवीर सिंह

फिल्म ‘पद्मावती’ में बौलीवुड स्टार रणवीर सिंह द्वारा निभाए गए रणवीर सिंह के किरदार की जहां चारों तरफ तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं वहीं खुद रणवीर अपने इस रोल को करने के बाद काफी डरे हुए हैं. बकौल रणवीर उन्होंने बहुत रिस्क लेते हुए यह रोल किया है और वह इस रोल को निभाने के बाद काफी डरे हुए हैं.

पिंकविला की एक रिपोर्ट के मुताबिक रणवीर ने कहा- मैं बहुत ज्यादा डरा हुआ हूं. मैं एक विलेन का रोल निभा रहा हूं. जब मैं फिल्म देखता हूं तो लगता है कि क्या मैं अपने किरदार की हत्या कर दूंगा. रणवीर ने कहा- यह एक खतरनाक कदम है. यही वजह है कि मैंने फिल्म साइन करने से पहले बहुत ज्यादा वक्त लिया था.

रणवीर ने बताया- लीड रोल करने वाले अभिनेता के लिए इस मुकाम पर आकर इस तरह का किरदार करना थोड़ा जटिल फैसला है. यह एक बुरा किरदार है. वह बहुत बुरा है. मेरे एक सीनियर हैं जिन्हें मैं इंडस्ट्री के सबसे उम्दा कलाकारों में से एक मानता हूं. उन्होंने मुझे बताया कि भारतीय जनता किस तरह सोचती है.

यदि वह आपके किरदार को पसंद करते हैं तो वह आपको भी प्यार करेंगे. और इसी तरह यदि उन्हें आपका किरदार गंदा लगा तो वह शायद अपनी नफरत को भी एक अभिनेता के तौर पर आप में ट्रांसफर कर दें. फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली के बारे में बात करते हुए रणवीर ने कहा- मैंने तय किया कि यदि निगेटिव रोल करना ही है तो मैं संजय सर के साथ करूंगा.

रणवीर सिंह, शाहिद कपूर और दीपिका पादुकोण स्टारर फिल्म ‘पद्मावती’ का ट्रेलर लोगों को खूब पसंद आ रहा है. अब तक इस ट्रेलर को 2डी में 50 मिलियन से ज्यादा व्यूव्ज मिल चुके हैं. फिल्म 1 दिसंबर को रिलीज के लिए बिल्कुल तैयार है. रणवीर अपनी इस फिल्म को लेकर बहुत एक्साइटेड हैं. रणवीर ने खुद को 2 डी ट्रेलर में तो देखा था जिसमें वह गजब लग रहे थे.

अमेरिका और अपराध : दुनियाभर के लिए खतरे का सूचक

अमेरिकी समाज को जोड़ने वाला गोंद अब पिघल चुका है. यह लास वेगास में 59 साल के स्टीफन पैडोक द्वारा एक होटल की 32वीं मंजिल से एक संगीत कंसर्ट में आए निहत्थे लोगों पर सैकड़ों गोलियां बरसाने से साबित हो रहा है.

स्टीफन पैडोक पिछले हत्यारों की तरह न गरीब था, न सिरफिरा युवा, वह करोड़पति था और लाखों रुपयों की बंदूकें उस के पास से मिली हैं. वह हाल में मुसलमान बना पर अब तक यह सुबूत नहीं मिला कि उसे किसी ने उकसाया. उस का भाई, जो उस का बिजनैस पार्टनर भी था, अचंभित है कि स्टीफन ने ऐसा, इतने सुनियोजित ढंग से क्यों किया.

स्टीफन ने अपने कृत्य के लिए न केवल मनपसंद होटल चुना, उस ने कौर्नर का रूम भी लिया और वह एकएक कर के कई बंदूकें कमरे में ले आया. उस ने बंदूकों को मशीनगनों में तबदील किया. वह तकनीक में दक्ष था और उस के 2 हवाईर्जहाज थे. वह दक्ष पायलट भी था. उस के मन में किसी के प्रति घृणा थी, यह जांच करने वाले अभी पता नहीं कर पाए हैं.

अमेरिकी समाज अब गहरे, गंदले पानी में डूब रहा है. अमेरिका अपराध का साम्राज्य तो था पर वहां की स्वतंत्रता, नागरिक भावना, कर्तव्यनिष्ठा, मेहनत, अद्भुत खोजी प्रवृत्ति के आगे अपराधी तत्त्व वहां के समाज पर हावी न हो पाए. अमेरिका में अपने समाज के दुर्गुणों को जगजाहिर करने की अद्भुत प्रतिभा थी जिस से वह गलतियों को ठीक कर सकता था.

लगता है, समाज को तोड़ने में मोबाइल क्रांति ने नया काम किया है. पिछले दशकों में जिस तरह से अमेरिका ने साइंस फिक्शन के नाम पर हत्याअपराध को अपनाया है, साहित्य के नाम पर झूठे चमत्कारों से पटी हैरी पौटर शृंखला को अपनाया है, आमजन ने गंभीर समाचारपत्रों को नकारा है, प्लेबौय से भद्दे पौर्न को अपनाया है उस से यह लग रहा है कि अमेरिका भटक रहा है.

अभी भी अमेरिका दुनिया का सब से अमीर देश है. पर जो नैराश्य अमेरिका में है, जिस का नतीजा डोनाल्ड ट्रंप जैसा महामूर्ख खब्ती राष्ट्रपति है, वह शायद किसी और बड़े देश में नहीं है. अमेरिका में इसलामी आतंकवादियों ने वह नहीं किया जो उस के खुद के लोग कर रहे हैं. वहां हिंसा और मनमानी रोज की आदत बन रही है.

अमेरिकियों ने उसी तरह से इंटरनैट का दुरुपयोग किया है जैसा आणविक शक्ति का नागासाकी और हीरोशिमा पर बम फेंक कर किया था. आम आदमी अमेरिका में आज अकेले पड़ रहे हैं, कुढ़ रहे हैं, मानसिक बीमार हैं और उन में से कुछ स्टीफन पैडोक बन रहे हैं. अमेरिका की आत्मआलोचना और स्वयंउपचार की कला भी लुप्त हो रही है. जो लास वेगास में हुआ, वह दुनियाभर के लिए खतरे का सूचक है.

सही पकड़े हैं : सुशीला ने कमर कस ली रत्ना को रंगेहाथों पकड़ने की

‘‘अदिति, हम कह रहे थे न, तेरी मेड ठीक नहीं लगती, थोड़ी नजर रखा कर उस पर, मगर तू है एकदम बेपरवाह. किसी दिन हाथ की बड़ी सफाई दिखा दी उस ने तो बड़ा पछताएगी तू. हम सही पकड़े हैं.’’ 4 दिनों से बेटी के घर आईं सुशीला उसे दस बार सचेत कर चुकी थीं.

‘‘अरे मां, रिलैक्स, आप फिर शुरू हो गईं, सही पकड़े हैं. कुछ नहीं कोई ले जाता, ले भी जाएगा तो ऐसा क्या है, खानेपीने का सामान ही तो है. हर वक्त उस पर नजर रखना अपना टाइम बरबाद करना है. आप भी न, अच्छा, मैं जाती हूं. 1 घंटा लग जाएगा मुझे. प्लीज, रत्ना (मेड) को अपना काम करने देना. वह चाय बना लाए तो मम्मीजीपापाजी के साथ बैठ कर आराम से पीना. आज छुट्टी है, बंटू, मिंकू और आप के दामाद तरुण की भी. वे देर तक सोते हैं, जगाना नहीं.’’

अदिति चली गई तो सुशीला ने गोलगोल आंखें नचाईं, ‘हमें क्या करना है जैसी भी आदत डालो, हम तो कुछ भी सब के भले के लिए ही कहते हैं.’

मेड थोड़ी देर बाद चाय टेबल पर रख गई. सुशीला भी अदिति के सासससुर तारा और तेजप्रकाश संग बैठ चाय की चुस्कियां लेने लगीं, पर शंकित आंखें मेड की गतिविधियों पर ही चिपकी थीं.

‘‘आजकल लड़कियां काम के लिए बाहर क्या जाने लगीं, घर के नौकरनौकरानी कब, क्या कर डालें, कुछ कहा नहीं जा सकता. हमें तो जरा भी विश्वास नहीं होता इन पर. निगाह न रखो तो चालू काम कर के चलते बनते हैं,’’ सुशीला बोल पड़ीं.

‘‘ठीक कह रही हैं समधनजी. लेकिन मैं पैरों से मजबूर हूं. क्या करूं, पीछेपीछे लग कर काम नहीं करा पाती और इन्हें तो अपने अखबार पढ़नेसुनने से ही फुरसत नहीं,’’ तारा ने पेपर में आंखें गड़ाए तेजप्रकाश की ओर मुसकराते हुए इशारा किया. तेजप्रकाश ने पेपर और चश्मा हटा कर एक ओर रख दिया और सुशीला की ओर रखे बिस्कुट अपनी चाय में डुबोडुबो कर खाने लगे.

‘‘आप तो बस भाईसाहब. भाभीजी तो पांव से परेशान हैं पर आप को तो देखना चाहिए. मगर आप तो बैठे रहते हो जैसे कोई घर का बंदा अंदर काम कर रहा हो. हम आप को एकदम सही पकड़े हैं,’’ सुशीला कुछ उलाहना के अंदाज में बोलीं. उन की आंखें चकरपकर चारों ओर रत्ना को आतेजाते देख रही थीं. रत्ना कपप्लेट ले जा चुकी थी. ‘काफी देर हो चुकी, पता नहीं क्या कर रही होगी,’ उन्हें और बैठना बरदाश्त नहीं हुआ. वे उठ खड़ी हुईं और उसे किचन में पोंछा लगाते देख यहांवहां दिखादिखा कर साफ करवाने लगीं.

‘‘ढंग से किया कर न, कोई देखता नहीं तो क्या मतलब है, पैसे तो पूरे ही लेती हो न?’’ उन का बारबार इस तरह से बोलना रत्ना को कुछ अच्छा नहीं लगता.

‘‘और कोई तो ऐसे नहीं बोलता इस घर में, अम्माजी आप तो…’’ रत्ना हाथ जोड़ कर माथे से लगा लिया करती. कभी अकेले में अन्य सदस्यों से शिकायत भी करती.

10 बज गए, मिंकी और बंटू का दूध और सब का नाश्ता बना मेज पर रख कर रत्ना चली गई तो सुशीला ढक्कन खोलखोल कर सब चैक करने लगीं.

‘‘अरे, दूध तो बिलकुल छान कर रख दिया पगलेट ने, जरा भी मलाई नहीं डाली बच्चों के लिए. ऐसे भला बढ़ेंगे बच्चे.’’ वे दोनों गिलास उठा कर किचन में चली आईं.

दूध के भगौने में तो बिलकुल भी मलाई नहीं थी. ‘जरूर अपने बच्चों के लिए चुरा कर ले जाती होगी, कोई देखने वाला भी तो नहीं, बच्चों का क्या, वैसे ही पी जाते होंगे,’ सुशीला मन ही मन बोलीं. तभी प्लेटफौर्म पर वाटर डिस्पोजर की आड़ में से झांक रहे मलाई के कटोरे पर उन की नजर पड़ी. वे भुनभुनाईं, ‘सही पकड़े हैं, महारानीजी हड़बड़ी में ले जाना भूल गई.’ उन्होंने गोलगोल आंखें घुमाईं और एक चम्मच मलाई मुंह में डाल कर बाकी मलाई दूध के गिलासों में बांटने जा रही थीं कि तेजप्रकाश आ पहुंचे, कटोरा हाथ में लेते हुए बोले, ‘‘अरे, क्या करने जा रही थीं बहनजी. बच्चे तो मलाई डला दूध मुंह भी नहीं लगाएंगे, थूथू करते रहेंगे. मौडर्न बच्चे हैं.’’

‘‘तभी तो रत्ना की ऐश है. मलाई का कटोरा छिपा कर अपने घर ले जा रही थी, पर भूल गई. हम सही पकड़े हैं.’’

‘‘अरे, नहीं बहनजी, मैं ने ही उस से कह रखा है, हफ्तेभर बाद तारा सारी इकट्ठी मलाई का घी बनाती है. घर के घी का स्वाद ही और है. आप तारा के पास बैठिए, मैं इसे डब्बे में डाल कर आता हूं.’’

‘‘यह भी ठीक है,’’ वे बालकनी में तारा के पास आ बैठीं.

‘‘हम से तो यह खटराग कभी न हुआ.’’

‘‘कैसा खटराग?’’

‘‘यह देशी घी बनाने का खटराग, भाईसाहब बता रहे हैं, हफ्ते में एक बार आप बना लेती हैं.’’

‘‘हां, इस बार ज्यादा दिन हो गए. दूध वाला अब सही दूध नहीं ला रहा, इतनी मलाई ही नहीं आती.’’

‘‘अरे नहीं, आज भी मलाई से तो पूरा कटोरा भरा हुआ था. हमें तो लगता है आप की रत्ना ही पार कर देती होगी, कल से चौकसी रखते हैं, रंगेहाथ पकड़ेंगे.’’

बंटू, मिंकी और तरुण भी ब्रश कर के आ गए थे. ‘गुडमौर्निंग दादू, दादी, नानी, सही पकड़े हैं,’ कहते हुए बंटू, मिंकी उन से लिपट कर खिलखिला उठे.

‘‘गुडमौर्निंग टू औल औफ यू. आइए, चलिए सभी नाश्ता करते हैं, अदिति पहुंच ही रही होगी. चलोचलो बच्चो…’’ तरुण ने मां को सहारा दिया और डायनिंग टेबल तक ले आया.

‘‘भाईसाहब तो फीकी चाय पीते होंगे?’’ सुशीला ने केतली से टिकोजी हटाते हुए पूछा.

‘‘बहनजी, बस 2 चम्मच चीनी,’’ स्फुट स्वरों में बोल कर कप में डालने का इशारा किया तेजप्रकाश ने.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं मम्मीजी, पापा को शुगर बरसों से है, कंट्रोल कर के रखा है, तब भी बौर्डर पर ही है. एक बार इन्हें दिल में बहुत जोर का दर्द उठा, डाक्टर के पास गए नहीं, पर प्रौमिस किया कि अब से मक्खन, चीनी नहीं खाएंगे. बस, तब से मक्खन वगैरा भी बंद. मां को तो शुगर नहीं है पर वे एहतियात के तौर पर अपनेआप ही नहीं लेतीं. आप बैठिए मम्मीजी, मैं निकालता हूं,’’ तरुण ने कहा.

‘‘अरे गैस थी, खाली पेट में वही चढ़ गई थी. खामखां लोगों ने एनजाइना समझ लिया और जबरदस्ती प्रौमिस ले लिया,’’ तेजप्रकाश ने सफाई दी.

‘‘ऐसे कैसे? शुक्र मनाइए कि खयाल रखने वाला परिवार मिला है, भाईसाहब. इतना लालच ठीक नहीं. जबान पर तो कंट्रोल होना ही चाहिए एक उम्र के बाद. वैसे भी, हमें इस उम्र में खुद भी अपना ध्यान रखना चाहिए,’’ सुशीला ने शुगरपौट तरुण की ओर बढ़ा दिया. तेजप्रकाश ने चीनी की ओर बढ़ता हुआ अपना हाथ मन मसोस कर पीछे खींच लिया.

‘‘तब तो चीनी का बहुत कम ही खर्चा आता होगा यहां. मिंकू, बंटू को देख रही हूं दूध में चीनी नहीं लेते पर सुबह से कई सारी चौकलेट खाने से उन का शुगर का कोटा पूरा हो जाता होगा, दामादजी भी बस आधा चम्मच, अदिति तो पहले ही वेट लौस की ऐक्सरसाइज व डाइट पर रहती है,’’ सुशीला सस्मित हो उठीं.

जिम से लौटी अदिति ने भी हाथ धो कर टेबल जौइन कर लिया, ‘‘अरे मम्मी, कहां हिसाबकिताब ले कर बैठ गईं. चीनी हो या चावल, अपनी रत्ना बड़ी परफैक्ट है, सब हिसाब से ही लाती, खर्च करती है. हम तो कभीकभी ही दुकान जा पाते हैं, उसी ने सब संभाला हुआ है.’’ वह चेयर खींच कर आराम से बैठ गई और कप में अपने लिए चाय डाल कर चीनी मिलाने लगी. तभी तेजप्रकाश ने उस से इशारे से रिक्वैस्ट की तो उस ने चुपके से आधा चम्मच चीनी तेजप्रकाश के कप में मिला दी.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, सिर पर बिठा कर रखो महारानीजी को. एक दिन वही ऐसा गच्चा देगी तब समझ में आएगा. और भाईसाहब ने 2 शुगरफ्री डाले हैं. तू ने उन के कप में चीनी क्यों मिलाई अदिति?’’ सुशीला बोली थीं.

‘‘अरे मम्मी, अभी पापाजी का सबकुछ नियंत्रण में है, बिलकुल फिट हैं. काफी वक्त से कोई दर्द भी उन्हें दोबारा नहीं हुआ. बैलेंस के लिए सबकुछ थोड़ाथोड़ा खाना सही है. लाल और हरीमिर्च भी तो आप मानती नहीं, बहुत सारी खाती रही हैं खाने में ऐक्स्ट्रा नमक के साथ, वह क्या है? खाने के बाद एक चम्मच मलाईचीनी, रबड़ीचीनी या मक्खनचीनी के बिना आप का पेट साफ नहीं होता, वह क्या है? जबकि डाक्टर की रिपोर्ट है आप के पास. आप को सब मना है. बीपी भी है और आप को हार्ट प्रौब्लम भी. अच्छा है कि आप मेरे पास हैं, सब बंद है.’’

‘‘अरे तू हमारी कहां ले बैठी, वह तो 4-5 साल पहले की बात है. मुंह बंद कर, चुपचाप अपना नाश्ता कर,’’ सुशीला ने आंखें नचाते हुए अदिति को कुछ ऐसे डांटा कि सभी मुसकरा उठे.

ब्रेकफास्ट के बाद, तरुण और अदिति स्टोर जा कर महीनेभर का कुछ राशन और हफ्तेभर की सब्जी व फल ले आए. सुशीला डायनिंग टेबल पर फैले विविध सामानों को किचन में ले जा कर सहेजती रत्ना को बड़े गौर से देख रही थीं. रत्ना दोबारा लंच बनाने आ चुकी थी.

सुशीला की तेज नजरें सप्ताह बाद ही तेजी से खत्म हो रहे सामनों का लेखाजोखा किए जा रही थीं. खास चीनी, मक्खनमलाई, देशी घी, चाय, कौफी, मिठाई, बिस्कुट्स, नमकीन की खपत पर उस का शक 15 दिनों के भीतर यकीन में बदलने लगा.

एक दिन रंगेहाथ पकड़ेंगे रत्ना महारानी को. अदिति तो उस के खिलाफ सुनने वाली नहीं, तरुण को झमेले में पड़ना नहीं, भाभीजी को तो धर्मकर्म से फुरसत नहीं और भाईसाहब के तो कहने ही क्या. वे कहते हैं, ‘रत्ना के सिवा कौन ऐसा करेगा, वह काम समझ चुकी है, उस के बिना घर कैसे चलेगा, इसलिए उसे बरदाश्त तो करना ही होगा, कोई चारा नहीं. नजरअंदाज करें, बस.’

यह भी कोई बात हुई भला? बच्चों को पकड़ती हूं अपने साथ इस चोर को धरपकड़ने के मिशन में. अगले हफ्ते से ही बच्चों की गरमी की छुट्टियां शुरू होने वाली हैं. वे चोरसिपाही के खेल में खुशीखुशी साथ देंगे. तब तक हम अकेले ही कोशिश करते हैं, सुशीला ने दिमाग दौड़ाया.

रत्ना दिन में 3 बार काम करने आती थी. सुबह सफाई करती, बरतन मांजती और फिर नाश्ता बनाती. फिर 12 बजे आ कर लंच बनाती. और फिर शाम को आ कर बरतन साफ करती. शाम का चायनाश्ता, डिनर बना जाती. रत्ना के आने से पहले सुशीला तैयार हो जाती और उस के आते ही दमसाधे उस पर निगाह रखने में जुट जाती.

हूं, सही पकड़े हैं, जाते समय तो बड़ा पल्ला झाड़ कर दिखा जाती है कि देख लो, जा रहे हैं, कुछ भी नहीं ले जा रहे, पर असल में वह अपना डब्बाथैला बाहर ऊपर जंगले में छिपा जाती है. काम करते समय मौका मिलते ही इधर से उधर कुछ उसी में सरका जाती है. सुशीला ने जाते वक्त उसे थैलाडब्बा जंगले से उठाते देख लिया था. कल चैक करेंगे, थैले में क्या लाती है और क्या ले जाती है,’ वह स्फुट स्वरों में बुदबुदा रही थी.

दूसरे दिन रत्ना जैसे ही आई, सुशीला मौका पाते ही बाहर हो ली. जंगले पर हाथ डाला और सामान उतार कर चैक करने लगी.

‘यह तो पहले ही इतना भरा है. दूध, कुछ आलूबैगन, 2-4 केले, आटा, थोड़ी चीनी उस ने फटाफट सामान का थैला फिर से ऊपर रख दिया और अंदर हो ली. पिछले घर से लाई होगी, आज ले जाए तो सही,’ सुशीला सोच रही थीं. रत्ना झाड़ू ले कर बाहर निकल रही थी, उस से टकरातेटकराते बची.

‘‘क्या है, थोड़ा देख कर चला कर, कोई घर का बाहर भी आ सकता है,’’ कह कर सुशीला अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराई, जैसे अब तो जल्द ही उस की करनी पकड़ी जाने वाली है.

‘‘जी अम्माजी,’’ वह अचकचा गई, उस अर्थपूर्ण मुसकराहट का अर्थ न समझते हुए वह मन ही मन बुदबुदा उठी, ‘अजीब ही हैं अम्माजी.’

तेजप्रकाश आधा कटोरा मलाई खा कर प्रसन्न थे कि चलो, अच्छा है कि बहनजी का रत्ना पर शक यों ही बना रहे. जब सब सो रहे होते, वे अपनी जिह्वा और उदर वर्जित मनपसंद चीजों से तृप्त कर लिया करते. हालांकि, सुशीला की जासूसी से उन के इस क्रियाकलाप में थोड़ी खलल पैदा हो रही थी.

‘गनीमत यही हुई कि मैं ने सुशीला बहनजी और बच्चों की प्लानिंग सुन ली,’ तेजप्रकाश सतर्क हो मन ही मन मुसकरा रहे थे.

‘बच्चों की छुट्टियां क्या शुरू हुईं, जासूसी और तगड़ी हो गई. मक्खनमलाई, मीठा खाना दुश्वार हो गया. अभी तक तो एक ही से उन्हें सावधान रहना था, अब तीनतीन से,’ तेजप्रकाश के दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे. सोचा, क्यों न बच्चों को अपनी ओर कर लिया जाए. और जो सब से छिपा कर सुशीला बहनजी अपने बैग से लालमिर्च का अचार और हरीमिर्च, नमक, खटाई अलग से खाती हैं, उस तरफ लगा देता हूं. अभी तक तो मैं ने नजरअंदाज किया था पर ये तो रत्नारत्ना करतेकरते अब मुझ तक ही न पहुंच जाएं, इसलिए जरूरी है कि मैं बच्चा पार्टी को इन की ओर ही मोड़ दूं. यह ठीक है. यह सब सोचते हुए तेजप्रकाश के चेहरे पर मुसकान फैल गई. वे शरारती योजना बुनने में लग गए.

‘‘बंटू, मिंकू इधर आओ,’’ तेज प्रकाश ने उन्हें धीरे से बुलाया. सुशीला कमरे में बैठी थीं. तारा के पैरों की मालिश वाली मालिश कर रही थी. तरुण, अदिति और रत्ना जा चुके थे.

‘‘मामा वाली चौकलेट खानी है?’’ बच्चों ने उतावले हो कर हां में सिर हिलाया.

‘‘यह जो नानी का बैग देख रहे हो, जिस में नंबर वाला लौक पड़ा है. इस में से नानी रोज निकाल कर कुछकुछ खाती रहती हैं, मुझे तो लगता है बहुत सारी इंपौर्टेड चौकलेट अभी भी हैं, जो आते ही इन्होंने तुम्हें दी थीं. तुम्हारे मामा ने तुम लोगों के लिए दी थीं इन्हें. पहले खाते हुए पकड़ लेना, फिर मांगना.’’ वे जानते थे कि बहनजी को स्वयं कहना कतई श्रेयस्कर नहीं होगा, अतएव खुद नहीं कहा.

‘‘सही में दादू, पर उन्होंने तो कहा था खत्म हो गई हैं,’’ दोनों एकसाथ बोले.

‘‘वही तो पकड़ना है. अब से जरा आतेजाते नजर रखना.’’

‘‘ओए मिंकू, मजा आएगा. अब तो दोदो मिशन हो गए. अपनीअपनी टौयगन निकाल लेते हैं, चल…’’ दोनों उछलतेकूदते भाग जाते हैं. तेजप्रकाश मुसकराने लगे.

सुबह से दोनों बच्चों की धमाचौकड़ी होने लगती. दोनों छिपछिप कर जासूस बने फिरते. सुशीला अलग छानबीन में हैरानपरेशान थीं. आखिर मक्खनमलाई डब्बे से, कनस्तर से चीनी, मिठाई फ्रिज से, सब कैसे गायब हुए जा रहे हैं. रत्ना है बड़ी चालाक चोरनी.

रत्ना पर बेमतलब शक किए जाने से, उस की खुंदस बढ़ती ही जा रही थी. वह चिढ़ीचिढ़ी सी रहती. लगता, बस, किसी दिन ही फट पड़ेगी कि काम छोड़ कर जा रही है. कई बार अम्माजी डब्बे खोलखोल कर दिखा चुकी हैं कि ताजी निकाली सुबह की कटोराभर मलाई आधी से ज्यादा साफ, मक्खन पिछले हफ्ते आया था, कहां गया? परसों ही  2 पैकेट मिठाई के रखे थे, कहां गए? महीनेभर की चीनी 15 दिनों में ही खत्म. कितनी जरा सी बची है? मैं तो नहीं खाती, ले जाती नहीं, पर सही में ये चीजें जाती कहां हैं? वह भी सोचने लगी. कैसे पकड़ूं असली चोर, और रोजरोज के शक से जान छूटे. वह भी संदिग्ध नजरों से हर सदस्य को टटोलने लगी.

उस दिन रत्ना घर की चाबी प्लेटफौर्म पर छोड़ आई, आधे रास्ते जा कर लौटी तो तेजप्रकाश को फ्रिज में मुंह डाले पाया. वे मजे से एक, फिर दो, फिर तीन गपागप मिठाइयां उड़ाए जा रहे थे. उस का मुंह खुला रह गया. वह एक ओट में छिप कर देखने लगी. जब वह मिठाइयों से तृप्त हुए तो मलाई के कटोरे को जल्दीजल्दी आधा साफ कर, बाकी पहले की इकट्ठी मलाई के डब्बे में उलट कर अगलबगल देखने लगे. मूंछों पर लगी मलाई को देख कर रत्ना को हंसी आने लगी. जिसे एक झटके में उन्होंने हाथों से साफ करना चाहा.

‘‘सही पकड़े हैं…बाबूजी आप हैं और अम्माजी तो हमें…’’ वह हैरान हो कर मुसकराई.

तेजप्रकाश दयनीय स्थिति में हो गए, चोरी पकड़ी गई. याचना करने लगे थे. ‘‘सुन, बताना मत री किसी को. सब की डांट मिलेगी सो अलग, चैन से कभी खाने को नहीं मिलेगा. यदि बीमार होऊं तो परहेज भी कर लूं, पहले से क्या, इतनी सी बात किसी के पल्ले नहीं पड़ती,’’ उन्होंने बड़ी आजिजी से कहा.

रत्ना उन की हालत देख कर हंसने लगी, ‘‘ठीक है, नहीं कहूंगी बाबूजी, पर एक शर्त है, अम्माजी को तो आप समझाओ कैसे भी कर के, हर वक्त वे मेरे पीछे पड़ी रहती हैं.’’

‘‘तू चिंता मत कर उस का बंदोबस्त हो जाएगा.’’

उन के दिमाग में शरारती योजना घूम ही रही थी पर अब बच्चों को नहीं शामिल कर सकते, बच्चे तो सब को ही बता देंगे. फिर मैं सुशीला बहन को ब्लैकमेल कैसे कर पाऊंगा कि रत्ना को इन से बचा सकूं और रत्ना से अपने को. वरना तरुण, अदिति, तारा सब तक मेरी बात पहुंच गई तो मेरा जीना मुहाल हो जाएगा. सिर्फ परहेजी खाना, उफ्फ… क्यों बढि़याबढि़या मिठाईरबड़ी न खाऊं, मरे हुए सा सौ साल जियूं इसलिए… तो जीने का फायदा क्या?’

मनपसंद चीजों का दिमाग में खुला इंसायक्लोपीडिया देशी घी के बेसन के लड्डू, चमचम, रसमलाई… उन्हें बेचैन किए जा रहा था.

‘कुछ भी हो, सुशीला बहन को मुझे जल्दी, अकेले ही रंगेहाथ पकड़ना होगा. वरना रत्ना, बहनजी से तंग आ कर सब को मेरा सच बता देगी और मैं सूक्ष्म फलाहारी, परहेजी बाबा बन कर कहीं का नहीं रहूंगा.’ दिन में खाने के बाद एक घंटे बच्चों का सोने का टाइम और रात के खाने के बाद 9 बजे के बाद का समय, जब सुशीला बहन सब से नजरें बचा, अपना मिर्चखटाईर् का शौक पूरा करती होंगी क्योंकि नाश्ता भले ही साथ कर लेती हैं पर आदत का बहाना बता कर रात के खाने का अपना अलग ही टाइम बना रखा है, तभी पकड़ता हूं. अपने को बचाने का यही एक चारा है,’ तेजप्रकाश दिमाग की धार तेज किए जा रहे थे.

आखिरकार दूसरे दिन ही सुशीला जैसे ही अपना खाना परोस कर कमरे में ले गईं, तेजप्रकाश दबेपांव उन के पीछे हो लिए. सुशीला ने पास पड़े स्टूल पर अपना खाना, पानी रखा, दरवाजा भेड़ा और परदा खींच कर तसल्ली से बैग का लौक खोल कर पसंदीदा लालमिर्च का अचार बड़े प्रेम से निकाला और साथ में चटपटी पकी इमली भी. प्लेट में नमक के ऊपर सजी बड़ीबड़ी 2 हरीमिर्चें देख परदे के पीछे खड़े तेजप्रकाश के मुंह से सीसी निकल रही थी, उस पर से यह और कि कैसे खा पाती हैं ये सब.’

सुशीला के खाना शुरू करते ही तेजप्रकाश सामने आ गए, ‘‘सही पकड़े हैं बहनजी, इतना सारा मिर्चखटाई. अदिति सही कहती है इतना मना है आप को पर चुपकेचुपके… बहुत गलत बात है.’’ वे उन का तकियाकलाम बोल कर उन्हीं के अंदाज में आंखें नचा रहे थे. सुशीला उन्हें सामने पा घबरा कर कातर हो उठीं. लिहाजन, तेजप्रकाश उन के कमरे में कभी वैसे आते न थे.

‘‘अअआप भाईसाहब, यहां, कैसे, बब…बैठिए. प्लीज, अदिति को कुछ मत कहिएगा,’’ वे खिसियाई सी बोलीं.

‘‘सही तो नहीं, पर इस उम्र में मन का खाएगा नहीं, तो आदमी करे क्या?’’

इस बात पर सुशीला थोड़ी हैरान हुईं, फिर सहज हो कर मुसकराती हुई बोलीं, ‘‘आप भी ऐसा ही मानते हैं. मैं तो घबरा ही गई थी. आप प्लीज, बताना नहीं किसी को.’’

‘‘ठीक है, नहीं बोलूंगा, पर एक शर्त है. आप भी मेरे बारे में नहीं कहेंगी किसी से.’’

‘‘पर क्या?’’ वे सोच में पड़ गईं, ऐसा क्या है जो…

‘‘दरअसल, वह जो आप मलाई, मिठाई, चाय, चीनी सब के गायब होने के पीछे रत्ना को कारण समझती हैं, वह रत्ना नहीं, बल्कि मैं हूं.’’

‘‘क्या?’’ सुशीला का मुंह खुला रह गया. फिर वे मुंह दबा कर हंसने लगीं.

‘‘तारा, तरुण, अदिति सब मेरी जान खा जाएंगे, प्लीज.’’

‘‘फिर ठीक.’’ वे चटखारे ले कर अपना खाना खाने लगीं.

‘‘आप खाओगे?’’

‘‘नहीं बहनजी, आप मजे लो, मैं रसोई में जा कर अपनी तलब पूरी करता हूं, खौला कर स्ट्रौंग चाय बनाता हूं.’’

‘‘इस समय?’’

‘‘आप पियोगी, बहुत बढि़या पकाने वाली मसालेदार मीठी कड़क?’’ उन के चेहरे पर राहत की मुसकान थी.

‘‘अरे नहीं, आप ही मजे लो,’’ कहती हुई उन्होंने लालमिर्च, अचार मुंह में भर लिया और हंसने लगीं.

‘‘यह भी खूब रही. और हां, बच्चों को जो चोर पकड़ने के लिए लगाया है, मना कर देना.’’

मुसकराते हुए तेजप्रकाश राहत से रसोई की ओर बढ़ गए. सोचते जा रहे थे कि ‘मैं भी कल बच्चों को कोई कहानी बना कर बहनजी को पकड़ने से मना कर दूंगा.’

इधर आंखें बंद किए बंटू और मिंकू दादू की स्टोरी से आज सो नहीं पाए थे. दादू उन्हें सोया जान कर अपने रूम में चले गए. काफी देर तक यों ही पड़े रहे. खट से हलकी सी आवाज क्या हुई, आंखें खोल कर दोनों ने एकदूसरे को कोहनी मारी.

‘‘उठ न, नींद नहीं आ रही. कोई है, लगता है.’’

‘‘हां, दादू की कहानी आज बहुत शौर्ट थी.’’

‘‘दादू तो सोने गए, अब क्या करें?’’

‘‘सब सो गए हैं लगता है, रसोई में छोटी लाइट जल रही है. चल चोर को पकड़ते हैं.’’ दोनों पलंग से उतर कर अपनीअपनी टौयगन थाम लीं और सधे कदमों से कहतेफुसफुसाते हुए नन्हे जासूस मिशन पर चल पड़े.

‘‘तू इधर से जा बंटू, मैं उधर से, अकेला डरेगा तो नहीं?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं.’’

‘‘अच्छा, तो यह मम्मी का स्टौल पकड़, अगर चोरी करते कोई दिखे, पीठ पर गन लगाना और झट से स्टौल में फंसा कर चिल्लाना. सही पकड़े हैं नानी के जैसे. खूब मजा आएगा.’’

‘‘रात के एक बज रहे थे. ताली मार कर दोनों अलगअलग दिशाओं में चल पड़े.

तेजप्रकाश और सुशीला स्वाद व खुशबू का पूरा मजा ले भी न पाए कि बच्चों ने अलगअलग पर लगभग एकसाथ उन्हें धर पकड़ा और खुशी से चिल्लाए, ‘‘सही पकड़े हैं दादू…, पापा…, मम्मी…सही पकड़े हैं नानी…, मम्मी… पापा…, सब जल्दी आओ.’’

घबराए से तेजप्रकाश किचन में मलाई की चोरी बयान करती अपनी मूंछों के साथ खौलती मसालेदार कड़क चाय को देख रहे थे तो कभी सामने गुस्से में खड़े तरुण को और सुशीला अपने खुले हुए बैग से झांकती लालमिर्च, अचार और मसालेदार इमली की खुली शीशियों को, तो कभी आगबबूला हुई नजरों से उन्हें देखती अदिति को देख कर नजरें चुरा रही थीं.

‘‘अदिति, देखो अपने लाड़ले पापाजी क्या कर रहे हैं, बड़ा विश्वास है न तुम्हें इन पर?’’

‘‘शांत हो जाओ तरु, आगे से ऐसा नहीं होगा.’’

‘‘और तुम अपनी चहेती मम्मीजी को देखो, डाक्टर ने सख्त मना किया है पर मानना ही नहीं, बच्ची बनी हुई हैं, मुझ से छिपा कर रखा था, छिपा कर, देखो ये…’’ वह एक हाथ में शीशी दूसरे से मम्मीजी को थामे रसोई में आ गई.

‘‘अदिति, सुन तो, अब ऐसा नहीं होगा.’’

तेजप्रकाश और सुशीला के हाथ बरबस अपनेअपने कानों तक चले गए, ‘‘देखो, इस बार हम सही पकड़े हैं… पर अपनेअपने कान…’’ सुशीला ने गोलगोल आंखें नचा कर कुछ यों कहा कि तरुण, अदिति की हंसी छूट गई.

‘‘कोई हमें भी तो बताए क्या हुआ,’’ दादी तारा की आवाज सुन बंटू, मिंकू भागे कि उन्हें कौन पहले बताएगा कि आज वे कैसे दादू, नानी की चोरी सही पकड़े हैं.

दोहरा शतक जड़ इस महिला खिलाड़ी ने की सचिन की बराबरी

मुंबई की जेमिमा रोड्रिग्ज ने अंडर-19 एकदिवसीय महिला क्रिकेट टूर्नामेंट में 163 गेंद में 202 रन की तूफानी पारी खेली. दायें हाथ की 16 वर्षीय बल्लेबाज जेमिमा ने यह शानदार प्रदर्शन औरंगाबाद में सौराष्ट्र के खिलाफ 50 ओवर के घरेलू मैच में किया.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारत की तरफ से तीन बल्लेबाजों ने वनडे में दोहरा शतक लगाने का कमाल किया है. दुनिया में सबसे पहले ये उपलब्धि सचिन तेंदुलकर ने अपने नाम की थी जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ग्वालियर में 200 रन की पारी खेली थी. इसके बाद वीरेंद्र सहवाग ने वेस्टइंडीज के खिलाफ इंदौर के होलकर स्टेडियम में वनडे का दूसरा दोहरा शतक जमाया था.

सचिन-सहवाग के बाद रोहित शर्मा तो दो-दो वनडे में दोहरा शतक लगाने का कमाल कर चुके हैं. लेकिन जेमिमा रोड्रिग्ज ने 16 साल की उम्र में इस काम को अंजाम देकर सभी को हैरान कर दिया.

जेमिमा से पहले इस स्तर के टूर्नामेंट में सिर्फ स्मृति मंधाना ही ऐसी महिला खिलाड़ी हैं जिन्होंने दोहरा शतक जड़ा है. स्मृति ने गुजरात टीम के खिलाफ 2013 में दोहरा शतक लगाया था.

जेमिमा अंडर-19 में पहली बार तब चुनी गई थीं जब उनकी उम्र सिर्फ 13 साल की थी. वह इस टूर्नामेंट में अब तक दो शतक लगा चुकी हैं और अंडर-19 सुपर लीग में उनका औसत 300 से ज्यादा है. उन्होंने बेहद कम उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. शीर्ष क्रम की बल्लेबाज बनने से पहले उन्होंने एक गेंदबाज के रूप में अपनी शुरुआत की थी. वह अब पारी की शुरुआत करती हैं या तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी करने उतरती हैं. इस प्रतिभाशाली लड़की ने अपने चौथे जन्मदिन के बाद ही प्लास्टिक की गेंद को छोड़कर कठोर लाल गेंद से खेलना शुरू कर दिया था.

मुंबई अंडर 19 के कोच जयेश डाडरकर अपनी प्रतिभाशाली खिलाड़ी के लिए कहते हैं, ‘आप बस देखते जाएं.. वह टीम इंडिया में खेलने की प्रतिभा रखती है.’ मुंबई के कोच की बात किसी लिहाज से गलत भी नहीं लगती क्योंकि जेमिमा का प्रदर्शन लगातार अच्छा रहा है. वेस्ट जोन अंडर 19 टूर्नामेंट में गुजरात के खिलाफ इस तूफानी खिलाड़ी ने 178 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेली.

कोच जयेश कहते हैं, ‘पिछले साल भी वह कप्तान थीं और टीम नैशनल अंडर 19 विमिंज टाइटल पर कब्जा जमाया था.’ कोच बार-बार जोर देकर कहते हैं कि जेमिमा में दोहरा शतक लगाने की काबिलियत है. जयेश ने बताया कि जब उसने 178 रनों की पारी खेली तो मैंने उसे यकीन दिलाया कि वह 200 रन भी बना सकती है. मुझे खुशी है कि उसने यह रिकार्ड बनाया.

अपने प्रदर्शन के बारे में जेमिमा कहती हैं, ‘गुजरात के खिलाफ 178 रन बनाने के बाद मुझे लगा कि 200 रन बनाना कोई असंभव रिकार्ड नहीं है. मेरा लक्ष्य था कि बिना कोई गलती किए लगातार खेलते रहना और आखिरकार मैंने 202 रनों की पारी खेली.’ इस पारी में जेमिमा ने 21 चौके भी लगाए.

कारपोरेट कंपनियां भारतीय सिनेमा का बहुत बड़ा नुकसान कर रही हैं : विनोद बच्चन

‘‘रेन’’, ‘‘तनु वेड्स मनु’’, ‘‘जिला गाजियाबाद’’ के बाद अब दस नवंबर को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘शादी में जरूर आना’’ के निर्माता विनोद बच्चन इस बात लेकर अपनी पीठ थपथपाते हैं कि वह बौलीवुड के ऐसे सिंगल प्रोड्यूसर हैं, जिन्होंने कारपोरेट के आगे घुटने टेकने की बजाय देसी सिनेमा को बढ़ावा देने वाली फिल्मों का निर्माण किया. विनोद बच्चन की राय में कारपोरेट कल्चर ने भारतीय सिनेमा को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया. हाल ही में उनके आफिस में हुई विस्तृत बातचीत इस प्रकार रही.

आप किसी भी फिल्म का निर्माण करने का निर्णय किस आधार पर लेते हैं?

मेरा बचपन छोटे शहरों की सभ्यता व संस्कृति में बीता है. तो मैं कहानी चुनते समय यही देखता हूं कि क्या विनोद बच्चन यह कहानी परदे पर देखना चाहेगा. तीस चालिस साल पहले मैं जिस तरह की फिल्में देखना पसंद करता था, वही फिल्में आज का हर आम भारतीय दर्शक देखना पसंद करता है. अस्सी प्रतिशत भारतीय छोटे छोटे शहरों मे रहते हैं. उनकी रोजमर्रा की जिंदगी की कहानी, रोजमर्रा की समस्याएं, अपने बच्चों को दूसरे शहरों में पढ़ाना उनके लिए कितना मुश्किल होता है. यही सब हमारी फिल्म की कहानी का हिस्सा होता है. यह कहानियां मुझे हमेशा दिल को छूती हैं. मैं हमेशा इसी तरह की कहानी को बनाना पसंद करता हूं.

मसलन ‘तनु वेड्स मनु’ की पटकथा दो वर्ष तक घूमती रही. कई कारपोरेट वालों ने सुनी, पर किसी की भी समझ में यह कहानी नहीं आयी. जिस दिन मैंने कहानी सुनी, मैंने उसी वक्त कहा कि हम इसे बनाएंगे. मैं उत्तर भारत से आज भी जुड़ा हुआ हूं. मेरे दिलो दिमाग में वही रंग बसा हुआ है, जो कि अस्सी करोड़ लोगों का दिल व रंग है.

यह कारपोरेट कंपनियां सिनेमा का भला कर रही हैं या नुकसान?

यह सिनेमा का बहुत बड़ा नुकसान कर रही हैं. कारपोरेट कल्चर आने से बहुत सी चीजें बदल गयीं. कारपोरेट कल्चर का आना बुरा नही है. मगर सवाल यह है कि जिसे कुर्सी पर बैठाया गया है, उसे सिनेमा की कितनी समझ है. महज विदेशी युनिवर्सिटी से एमबीए कर लेने व हौलीवुड फिल्में देखते रहने से आप भारतीय सिनेमा का भला नहीं कर सकते. इन कारपोरेट कंपनियों ने पब्लिक यानी कि आम जनता के धन को पानी की तरह बडे़ बड़े कलाकारों को बांटना शुरू किया और धड़ाधड़ ऐसी फिल्में बनायीं, जिनमें भारतीय दिल नहीं था जो भारतीय कहानी नही थी.

कारपोरेट वालों को समझना पड़ेगा कि कुर्सी पर बैठे इंसान को सिनेमा की कितनी समझ है. सिनेमा बनाना, पटकथा चुनना और मैनेजमेंट करने में बड़ा अंतर है. कई बड़े निर्देशक के बेटे भी देसी सिनेमा नही सोच पा रहे हैं, क्योंकि वह ऐसे माहौल में नहीं पले बढ़े हैं.

कारपोरेट कंपनियों की वजह से सिंगल निर्माता को काफी नुकसान हुआ पर अब एक बार फिर धीरे धीरे सिंगल निर्माता उभर रहा है और अच्छी फिल्में बना रहा है. फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ सिंगल निर्माता की ही देन रही है. आस्कर में जा रही फिल्म ‘न्यूटन’ भी सिंगल निर्माता ने बनायी है. यह वह सिनेमा है, जो कि कंटेंट पर आधारित है. आज की तारीख में कंटेंट प्रधान सिनेमा ही चल रहा है. पहले लोगों ने हौलीवुड फिल्मों की नकल कर फिल्म बनायी. वह चल गया. पर अब वह सिनेमा नहीं चल रहा. अब अमेजन, नेटफ्लिक्स, गूगल आ गया है. पूरे विश्व का सिनेमा अब लोगों के घरों में पहुंच गया है. इसलिए नकल वाला सिनेमा नहीं चल रहा है. हमारा सिनेमा इसलिए चलता है, क्योंकि वह हमारे देश की सभ्यता, संस्कति आदि को छू रहा है. आप भारतीय सिनेमा का इतिहास उठाकर देख लीजिए जितने भी कलाकार सुपरस्टार बने हैं, उन सभी ने किसान, मजदूर, कुली, टांगे वाला, रिक्शा चलाने वाला के किरदार निभाए हैं. यानी कि जिन कलाकारों ने मध्यम वर्गीय की रूह को छुआ है, वही सुपरस्टार बने हैं. वही सफल हुए हैं. बीएमडब्लू मर्सडीज में बैठे इंसान के पास सिनेमा देखने की फुरसत कहां है.

आप कह रहे हैं कि कारपोरेट कंपनियों ने सिंगल निर्माताओं को खत्म किया. पर एक वक्त वह था, जब हर सिंगल निर्माता खुद ब खुद इन कारपोरेट कंपनियों के पास भाग रहा था?

हालात ऐसे थे. देखिए, अच्छा सिनेमा या बुरा सिनेमा बनता बाद में है पहले यह तय होता है कि आप बना क्या रहे हो? उसमें पैसा कौन लगाएगा? कलाकारों की कीमत कौन चुकाएगा? कारपोरेट कंपनियों ने कलाकारों की जो कीमत अचानक बढ़ा दी थी, वह चुकाना सिंगल निर्माता के वश की बात ही नहीं थी. देखिए, मेरे जैसे सिंगल प्रोड्यूसर के पास सौ करोड़ की फिल्म बनाने का साहस कहां से आएगा? स्टार पचास करोड़ मांगेगा, तो हम कहां से देंगे. कारपोरेट कंपनियों के पास तो जनता का पैसा है. इसलिए सिंगल प्रोड्यूसर को मजबूरन कारपोरेट कंपनियों के पास जाना पड़ा. कारपोरेट कंपनियों के पास जनता का पैसा पड़ा है. उन्हें उस जनता को दिखाना है कि वह इतने बड़े स्टार को लेकर फिल्म बना रहे हैं. मुझे नहीं लगता कि आज की तारीख में कोई भी कारपोरेट कंपनी फिल्म निर्माण में सफल है. कागज पर यह कंपनियां चल रही हैं अन्यथा बुरी तरह से असफल हैं. कलाकार को पैसे मिल रहे हैं, तो वह खुश है. फिर चाहे एक फिल्म असफल हो या दस, कलाकार को इससे क्या फर्क पड़ता है. उसकी अपनी दुकान चल रही है. कलाकार लालची व स्वार्थी हो गए हैं. मेरी राय में पैसा देने वाले को सोचना चाहिए कि वह क्या कर रहा है.

आप फिल्म बनाने से पहले क्या सोचते हैं?

मैं स्टार को दिमाग में रखकर फिल्म बनाने की बात नहीं सोचता. मैं सबसे पहले कंटेंट व कहानी पर ध्यान देता हूं. मैं नए निर्देशक व नए कलाकार को फिल्म से जोड़ने पर यकीन करता हूं. हमने नए निर्देशकों को सफल बनाया है. आज आनंद एल राय बड़े निर्देशक हैं. वह बेहतरीन निर्देशक हैं पर ‘तनु वेड्स मनु’ से पहले कारपोरेट कंपनियों को उनकी प्रतिभा, वह क्या बनाना चाहते हैं, यह समझ में नही आ रहा था. वह कई कारपोरेट कंपनियों के पास ‘तनु वेड्स मनु’ को लेकर जा चुके थे पर सब भाग गए थे. कहानी सुनकर आपकी समझ में आना चाहिए कि यह कहानी कौन देखना चाहेगा और हमें सिनेमा किसके लिए बनाना है. यदि हम मध्यम वर्गीय के पास पहुंचते हैं, तो वह सिनेमा देखते हैं और दुआ भी देते हैं.

अपनी फिल्म ‘‘शादी में जरूर आना’’ को लेकर क्या कहेंगे?

हमारी यह फिल्म पारिवारिक मनोरंजक फिल्म है, जो कि हर आम इंसान के दिल को छुएगी. फिल्म में शादी की बात की गयी है. बेटी को पढ़ाने व आगे बढ़ाने की भी बात की गयी है. यह फिल्म छोटे शहरो के मध्यम वर्गीय इंसान के सपनों की बात करती है. आपको भी यह फिल्म पसंद आएगी.

अब आईफोन x की खरीद पर एयरटेल दे रहा है 10 हजार कैशबैक

भारती एयरटेल ने कहा कि आईफोन एक्स (iPhone X) की औनलाइन बिक्री एयरटेल के हाल में लौन्च किए गए औनलाइन स्टोर में शुक्रवार को शाम 6 बजे से शुरू होगी. आईफोन एक्स 64जीबी की कीमत 89,000 रुपए है और 256 जीबी मौडल की कीमत 1,02,000 रुपये है.

भारती एयरटेल के निदेशक (उपभोक्ता कारोबार) और मुख्य विपणन अधिकारी राज पुदीपेदी ने कहा कि हमारे ग्राहक एयरटेल औनलाइन स्टोर पर आईफोन एक्स की होम डिलीवरी का और्डर कर सकते हैं. हमें अपने औनलाइन स्टोर पर शानदार प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं और हमें पूरा यकीन है कि अब आईफोन एक्स (iPhone X) से इसमें और वृद्धि होगी.

सिटीबैंक क्रेडिट कार्ड से आईफोन एक्स खरीदने वाले ग्राहकों को 10,000 रुपए का कैशबैक भी मिलेगा. यह कैशबैक औफर 3 नवंबर को शाम 6 बजे से 4 नवंबर को सवेरे 7 बजे के दौरान ही उपलब्ध होगी. बयान में कहा गया कि एयरटेल औनलाइन स्टोर पर आईफोन एक्स (iPhone x) केवल एयरटेल पोस्टपेड ग्राहकों के लिए अनलौक्ड डिवाइस के तौर पर, पहले आओ, पहले पाओ आधार पर और पूरा भुगतान करने पर ही मिलेगा.

कंपनी की तरफ से कहा गया कि एयरटेल के प्रीपेड और नौन-एयरटेल ग्राहक इस औफर का लाभ उठाने के लिए एयरटेल के पोस्टपेड ग्राहक के तौर पर अपग्रेड हो सकते हैं और हाई स्पीड डाटा और अनलिमिटेड कौलिंग सुविधा के लिए उपलब्ध विभिन्न प्लान में से मनपसंद चुन सकते हैं.

आईफोन एक्स ग्लास डिजाइन में 5.8 इंच सुपर रेटिना डिसप्ले, ए11 बायोनिक चिप, वायरलैस चार्जिग और डुअल 12 मैगापिक्सल रियर कैमरा तथा डुअल औप्टिकल इमेज स्टेबलाइजेशन के साथ उपलब्ध है. iPhone X को 27 अक्टूबर से औनलाइन और औफलाइन स्टोर्स पर प्री बुक किया जा रहा है.

iPhone X के कंपनी ने दो मौडल लौन्च किए थे. एक 64GB इंटरनल मेमोरी और दूसरा 256GB इंटरनल मेमोरी के साथ बाजार में आया है. 64GB वाले मौडल की भारत में कीमत 89,000 रुपए और 128GB मैमोरी वाले मौडल की कीमत 1,02,000 रुपए है. यह फोन सिल्वर और स्पेस ग्रे कलर में सेल किया जाएगा.

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