‘‘रेन’’, ‘‘तनु वेड्स मनु’’, ‘‘जिला गाजियाबाद’’ के बाद अब दस नवंबर को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘शादी में जरूर आना’’ के निर्माता विनोद बच्चन इस बात लेकर अपनी पीठ थपथपाते हैं कि वह बौलीवुड के ऐसे सिंगल प्रोड्यूसर हैं, जिन्होंने कारपोरेट के आगे घुटने टेकने की बजाय देसी सिनेमा को बढ़ावा देने वाली फिल्मों का निर्माण किया. विनोद बच्चन की राय में कारपोरेट कल्चर ने भारतीय सिनेमा को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया. हाल ही में उनके आफिस में हुई विस्तृत बातचीत इस प्रकार रही.

आप किसी भी फिल्म का निर्माण करने का निर्णय किस आधार पर लेते हैं?

मेरा बचपन छोटे शहरों की सभ्यता व संस्कृति में बीता है. तो मैं कहानी चुनते समय यही देखता हूं कि क्या विनोद बच्चन यह कहानी परदे पर देखना चाहेगा. तीस चालिस साल पहले मैं जिस तरह की फिल्में देखना पसंद करता था, वही फिल्में आज का हर आम भारतीय दर्शक देखना पसंद करता है. अस्सी प्रतिशत भारतीय छोटे छोटे शहरों मे रहते हैं. उनकी रोजमर्रा की जिंदगी की कहानी, रोजमर्रा की समस्याएं, अपने बच्चों को दूसरे शहरों में पढ़ाना उनके लिए कितना मुश्किल होता है. यही सब हमारी फिल्म की कहानी का हिस्सा होता है. यह कहानियां मुझे हमेशा दिल को छूती हैं. मैं हमेशा इसी तरह की कहानी को बनाना पसंद करता हूं.

मसलन ‘तनु वेड्स मनु’ की पटकथा दो वर्ष तक घूमती रही. कई कारपोरेट वालों ने सुनी, पर किसी की भी समझ में यह कहानी नहीं आयी. जिस दिन मैंने कहानी सुनी, मैंने उसी वक्त कहा कि हम इसे बनाएंगे. मैं उत्तर भारत से आज भी जुड़ा हुआ हूं. मेरे दिलो दिमाग में वही रंग बसा हुआ है, जो कि अस्सी करोड़ लोगों का दिल व रंग है.

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