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गरीबी से लड़कर यह भारतीय क्रिकेटर बना स्टार बौलर

क्रिकेट भले ही ऐसा खेल है, जिसमें खिलाड़ियों को शोहरत और पैसा जमकर मिलता है मगर वो खिलाड़ी किन परिस्थितियों से निकलकर इस मुकाम तक पहुंचा है इसका अंदाजा किसी को नहीं होता. 25 अक्टूबर 1987 को नागपुर में तिलक यादव के घर 3 बच्चों के बाद जन्मे उमेश तंग हालात में पले-बढ़े. तिलक यादव यूं तो मूलत: यूपी के थे लेकिन कोयला खदान में बतौर मजदूर काम करने के चलते अपने परिवार के साथ नागपुर के एक गांव में गुजर-बसर कर रहे थे.

पिता की इच्छा थी कि 2 बेटी और 2 बेटों में से कोई एक संतान कौलेज में पढ़े लेकिन माली हालात ऐसे थे कि चाहने के बावजूद ये ना हो सका. घर का खर्च ही बेहद मुश्किल से निकल पा रहा था ऐसे में उमेश का कौलेज में पढ़ने का सपना महज ख्वाब ही बनकर रह गया. उमेश प्रतिभावान थे, तो क्रिकेट में हाथ आजमाया. पिता को अपना फैसला बताया और विदर्भ की ओर से खेलने लगे.

उमेश यादव ने जब 20 वर्ष की उम्र में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उन्होंने आगाज किया था तो उन्हें लाल रंग की एसजी टेस्ट गेंद से खेलने का अंदाजा नहीं था लेकिन भारत के इस प्रमुख तेज गेंदबाज ने कहा कि वह शुरू से ही जानते थे कि अपनी रफ्तार हासिल करने की क्षमता से उच्च स्तर पर आगे बढ़ने में मदद मिलेगी.

सन् 2008 में उमेश यादव को रणजी में खेलने का सुनहरा मौका मिला, जिसे उन्होंने बखूबी भुनाते हुए 75 रन देकर 4 विकेट अपने नाम किए. इसके चलते दलीप ट्रौफी में चांस मिला और 2010 में किस्मत ने जोर मारा तो उमेश यादव को दिल्ली डेयरडेविल्स की ओर से 18 लाख रुपए में आईपीएल के लिए खरीद लिये गयें.

यहां से परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ हद तक सुधरने लगी. आईपीएल में शानदार प्रदर्शन के आधार पर उमेश यादव को 2010 में ही वनडे और अगले साल टेस्ट में डेब्यू का मौका मिला. हालांकि पिता चाहते थे कि उमेश पुलिस में भर्ती हो मगर किस्मत को यही मंजूर था.

फिर धिरे धिरे कर उमेश यादव की बौलिंग की लोग मिसाल देने लगे और देखते ही देखते एक गरीब परिवार का उमेश जिसकेपास अपनी पढ़ाई तक के पैसे नहीं थे वह उमेश से उमेश यादव यानी भारतीय क्रिकेट टीम का स्टार बौलर बन गया.

आदित्य रौय कपूर होंगे मोहित सूरी की नई फिल्म के हीरो

‘‘एक विलेन’’ जैसी सफलतम फिल्म के निर्देशक लंबे समय से अपनी नई संगीतमय फिल्म को शुरू करने के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं, मगर बात ही नही बन पा रही थी. वास्तव में मोहित सूरी अपनी इस फिल्म के साथ फरहान अख्तर को जोड़ना चाहते थे, मगर फरहान अख्तर ने उनकी इस फिल्म को करने से साफ साफ मना कर दिया था.

यह एक अलग बात है कि इस बात को स्वीकार करने के लिए मोहित सूरी तैयार ही नही है. वह एक ही राग अलापते रहे कि फरहान अख्तर से उनकी बातचीत चल रही है. मगर अब खुद मोहित सूरी ने इंस्टाग्राम पर संगीतकार मिथुन के साथ तस्वीर डालकर अपनी इस फिल्म की शुरूआत करने की सूचना दे दी है.

फरहान अख्तर के अति करीबी सूत्र बताते हैं कि इस संगीतमय फिल्म के हीरो के तौर पर मेाहित सूरी ने ‘आशिकी 2’ फेम अभिनेता आदित्य रौय कपूर को जोड़ा किया है. आदित्य रौय कपूर के अतिनजदीकी सूत्र भी इस बात को कबूल करते हैं कि मोहित सूरी ने आदित्य रौय कपूर के पास अपनी इस फिल्म की पटकथा भेजी थी, जिसे पढ़ने के बाद आदित्य रौय कपूर ने इस फिल्म को करने के लिए हामी भर दी है. अब सिर्फ कौन्ट्रैक्ट के पेपर पर हस्ताक्षर होने बाकी है.

मगर मोहित सूरी इस बारे में कुछ भी कहने को तैयार नही है. वह इंस्टाग्राम पर जाकर यह स्वीकार करते हैं कि उन्होने अपनी म्यूकिजल फिल्म की शुरूआत संगीतकार मिथुन के साथ गीत को रिकार्ड करके कर दी है. आखिर मोहित सूरी की इस चुप्पी का राज क्या है?

पेंशन धारक जल्द जमा कराएं अपना जीवन प्रमाण पत्र वरना नही मिलेगी पेंशन

पेंशनधारकों के लिए बड़ी खबर है कि बैंक आपका पैसा रोक सकता है. देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक SBI ने एक जरूरी फरमान जारी किया है. अगर आपका पेंशन अकाउंट है और आपने बैंक में लाइफ सर्टिफिकेट जमा नहीं कराया है तो बैंक आपका पैसा रिलीज नहीं करेगा.

बैंक ने अपने सभी पेंशन खाताधारकों को नवंबर अंत तक अपना लाइफ सर्टिफिकेट जमा करने को कहा है. अगर सर्टिफिकेट जमा नहीं होगा तो पेंशनर्स अपनी पेंशन अकाउंट से नहीं निकाल पाएंगे. आपको बता दें कि नवंबर महीने के अब सिर्फ 9 दिन ही बचे हैं. लिहाजा पेंशनर्स को अगले 9 दिन के अंदर अपना सर्टिफिकेट जमा कराना होगा.

बैंक में 36 लाख पेंशन खाते

SBI देश का सबसे बड़ा बैंक है और देशभर में सबसे ज्यादा पेंशन खाते इसी बैंक के पास हैं. बैंक के मुताबिक उसके पास करीब 36 लाख पेंशन खाते हैं और 14 सेंट्रेलाइज्ड पेंशन प्रोसेसिंग सेल भी हैं. हर साल साल के अंत में पेंशनधारको को बैंक जाकर अपना जीवन प्रमाण पत्र देना होता है ताकि बैंक उनके पेंशन के पैसे को आसानी से रीलीज कर सके.

ट्विट के जरिए दी जानकारी

SBI ने ट्विट के जरिए जानकारी दी है कि अगर नवंबर में जीवन प्रमाण पत्र जमा नहीं कराता है तो नवंबर के बाद उसकी पेंशन रोक दी जाएगी. यानी की जन लोगो को बैंको द्वारा पेंशन योजन का लाभ मिलता है, उनका पेंशन रोक दिया जाएगा और उन्हे पेंशन नही मिलेगी. इसलिये भारतीय स्टेट बैंक ने यह जानकारी ट्वीट कर दी.

क्या है नियम

नियमों के मुताबिक नवंबर में सभी पेंशन धारको को जीवन प्रमाण पत्र जमा कराना जरूरी होता है. सिर्फ SBI के पेंशन खाताधारकों के लिए ही यह नियम नहीं है, बल्कि दूसरे बैंकों के पेंशन खाताधारकों के लिए भी है. अगर आपका पेंशन खाता किसी दूसरे बैंक में है तो उस बैंक में भी नवंबर के दौरान जीवन प्रमाण पत्र जमा कराना जरूरी है.

कांग्रेस की कृष्ण कंपनी

गुजरात चुनाव में हर कोई और खरबों का कारोबार करने वाले सटोरिए भी, अभी हिचकते हुए ही सही, इस बात पर सहमत हो रहे हैं कि वहां भाजपा की हालत खस्ता है और वक्त गुजरते भावों में उतारचढ़ाव आएगा. भाजपा की खस्ता हालत का फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा, यह भी पूरे आत्मविश्वास से कहने में लोग हिचक रहे हैं तो इस की न दिखने वाली एक वजह अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को जीत दिलाने वाली दुनिया की नामी लीडिंग कंपनी कैंब्रिज एनालिटिक्स से कांग्रेस का खटाई में पड़ा करार भी है.

यह कंपनी चुनावी रणनीति बनाने और आक्रामक प्रचार अभियान का खाका खींचने के लिए मशहूर है.

कांग्रेस से 3 दौर तक एनालिटिक्स की मीटिंगें हुईं पर फीस पर आ कर बात अटक गई. 3 मीटिंगों में सार निकला कि अगर पूरा विपक्ष एकजुट हो कर लड़े तो ही भाजपा को पटखनी दी जा सकती है. अध्यक्ष बनने जा रहे राहुल गांधी इतने पैसों का तो इंतजाम एक दफा कर सकते हैं पर पूरे विपक्ष को एकजुट कर पाने की क्षमता उन में नहीं है.

रात के घूंघट में

वो पार्क की घास और कैंटीन का कोना

तेरा चुपके से आना, हलका सा मुसकराना

बैठ वहां पर मैं ने देखा था कभी

किरणें झांकती थीं डालियों के बीच से

तारीख लिखने का शौक था

हवा के झोंकों को

अभी भी खड़े ताक रहे हैं हम दोनों को

जहां दिलों की धड़कनें सोई पड़ी हैं

साये खामोश बैठे हैं वहां पर

वो लमहे जो न कभी सोए, न जागे

वो रोशनी डालियों पे छाई हुई

इश्क की रिमझिम तड़पती

निगाहों से गजल जनम लेती

शोले जगते हैं तुझे देख कर

तेरे चुपचाप कदम आते हैं

आहट को मुट्ठी में पकड़े

खौफ से डरे हुए

देख लो आजकल साये भी

अकेले चलते हैं

खयालों में सोच उतर आती है कभीकभी

तेरी निगाहों का इशारा सुन कर

झुक जाता आसमां

बिखर जाती लहरें

तेरे गालों पे इश्क नाम लिखता

तेरे सांसों की खुशबू

सारे आलम में उड़ जाती

पता नहीं कैसे आ जाता था

चमन नजदीक

मेरी बांहें गोरे बदन को लपेटे

होंठ ढूंढ़ लेते लबों की कंपन को

सितारे गवाह हैं

अब हम कभी जुदा न होंगे

हवा गीत गा रही है

तेरे दुपट्टे को पकड़ कर

बिखर गया है तेरा नगमा तेरे जिस्म पर

मेरी कलम की आंख में आ कर

सूरज आया था, आ कर चला गया

सितार की तार पर सुर बना, रंगत खिली

तेरी चूडि़यों में छन कर आई

मेरे हाथों ने भिगोए तेरे आंचल में सपने

पता नहीं कैसे याद आ गया

वो तेरा न आने का बहाना

नीचे जमीं पर देखना और कुछ न कहना

मेरी नज्मों का डालियों पर

जा कर सो जाना

याद आता है सभी, रात के घूंघट में.

– अमरजीत टांडा

आदमी सड़क का

भोपाल के जो लोग पहली बार मुंबई जाते हैं उन के मुंह से भोपाली भाषा में निकल ही जाता है कि अमा खां, यहां तो अपने तालाब से भी बड़ा तालाब है यानी समुद्र. दरअसल, तुलना करने का हरेक का अपना पैमाना होता है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अमेरिका गए तो कुछ बोलने की छटपटाहट में कह बैठे कि यहां से बेहतर तो हमारे एमपी की सड़कें हैं. बस, इतना कहना भर था कि सूबे की सड़कों की चीरफाड़ आम और खास लोगों ने करते शिवराज का इतना और ऐसा मजाक बना डाला कि उन का बोलना दूभर हो गया.

लोगों ने झूठा फख्र बदहाल सड़कों पर न करते सड़कों की सचाई वायरल की तो विदिशा के शेरपुरा महल्ले को भी नहीं बख्शा, जहां शिवराज सिंह का घर है.

जीएसटी का जूता

अच्छी और ब्रैंडेड कंपनी का जूता नया होने पर भी नहीं काटता लेकिन घटिया और लोकल कंपनी का जूता 2-4 दिनों तो क्या, जिंदगीभर पैर कुतरता रहता है. यह और इस के साथ यह बात भी शायद केंद्रीय पैट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान नहीं जानते कि देश के 75 फीसदी लोग पैसे की तंगी के चलते घटिया या अच्छा तो दूर, जूता ही नहीं पहनते. बचे 25 फीसदी में से भी अधिकतर लोग काटने वाले जूते को फेंक देते हैं.

इंदौर में धर्मेंद्र प्रधान जीएसटी को ले कर बचाव की मुद्रा में आते पुराने ज्ञान की यह बात दोहरा बैठे कि नया जूता भी 3 दिन काटता है, फिर चौथे दिन सैटल हो जाता है. यही जीएसटी में होगा कि यह व्यापार का हिस्सा हो जाएगा.

जैसे ब्रह्मा का एक दिन मानव के हजारों साल के बराबर होता है वैसे ही मंत्रियों के 3 दिन 300 सालों से कम नहीं होते. इस लिहाज से व्यापारियों को चाहिए कि जीएसटी का जूता पैर में फिट होने के लिए वे अनंतकाल तक इंतजार करें या फिर जूता कंपनी को फेंक दें.

पाप और पूजा

वह नेता भाजपा का हो ही नहीं सकता जो हफ्ते में कम से कम एक बार पाप, पुण्य, मुक्ति और मोक्ष की बात न करे. बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने इन संस्कारों को निभाते राबड़ी देवी के बारे में धार्मिक बाबाओं सरीखी एक बात कह ही दी कि पाप की कमाई से कोई पूजा सफल नहीं होती. राबड़ी देवी और लालू यादव के परिवार को पापी कहने का यह परंपरागत तरीका था.

सुशील मोदी की नजर में पापी होने के चलते राबड़ी देवी छठ पूजा की हकदार नहीं थीं. सभी जानते हैं कि धर्म में पापमुक्ति के कई विधान और उपाय भी वर्णित हैं जिन में से सब से आसान है दान, वह भी अगर ब्राह्मण को दिया जाए.

इस तरह बेहतर यह होगा कि सुशील ही राबड़ी को बता दें कि पाप की कमाई का कितना हिस्सा कहां दान करने से पापमुक्ति मिल सकती है. एक पापमुक्ति का केंद्र उन की अपनी पार्टी है जहां समर्थन दान करने से पिछले सारे पाप धुल जाते हैं. नारायण राणे और रीता बहुगुणा ने इसी तरह पाप धोए हैं. गुजरात के नरेंद्र पटेल भी यही कर रहे थे पर फिर पाप की गठरी से बहक गए.

ई-रिकशा की सफलता के बाद ई-बसों का परीक्षण

इलैक्ट्रिक वाहन भविष्य की परिवहन व्यवस्था का हिस्सा नजर आ रहे हैं. ईंधन की बढ़ती कीमत और वाहनों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि से ईंधन अब बड़ी समस्या बन रहा है. इन दिनों सामान्य चल रही तेल की कीमत विश्व बाजार में पहले 120 डौलर प्रति बैरल तक के स्तर तक पहुंच चुकी है. इस छलांग को ईंधन की कमी के कारण भविष्य में उस की तीव्र कीमत का संकेत माना जा सकता है और इस से सबक लेते हुए वैकल्पिक ऊर्जा पर ध्यान दिया जाना चाहिए. इस दृष्टि से अक्षय ऊर्जा भविष्य की ऊर्जा है और इलैक्ट्रिक वाहन उस का हिस्सा हैं.

इलैक्ट्रिक वाहनों में ई-रिकशा सब से कामयाब साबित हुआ है. बैटरी बसें कम दूरी के लिए अच्छी विकल्प बन रही हैं और ई-आटो भी नागपुर जैसे शहरों में सुविधाजनक साबित हो रहे हैं.

टाटा मोटर्स ने अब लंबी दूरी के लिए ई-बसों का परीक्षण चंडीगढ़ तथा शिमला में सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद अब असम में राज्य परिवहन निगम के साथ किया है. ये इलैक्ट्रिक बसें 26 से 34 यात्रियों की क्षमता वाली हैं. इन बसों की लंबाई 9 मीटर है. ये बसें एक बार चार्र्ज की गई बैटरी से 160 किलोमीटर तक चल सकती हैं.

टाटा मोटर्स देश में पहली बस निर्माता कंपनी है जिस ने ई-बसों का परीक्षण सफलता से पूरा किया है. ई-बसों के सड़कों पर उतरने से पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकेगा और सस्ती दर पर बसों का संचालन किया जा सकता है.

ई-रिकशा एक तरह की क्रांति साबित हुई है और अब ई-बसों के भी इसी तरह से सफल होने की उम्मीद की जा सकती है.

जीवन की मुसकान

घटना उस समय की है जब हम भ्रमण पर जैसलमेर गए थे. वहां हम ने लोंगोवाल ग्राम देखने का विचार किया. वह भारत-पाकिस्तान युद्ध के कारण सुर्खियों में था. सड़क सही न होने की जानकारी के बावजूद हम वहां जाने की उत्सुकता नहीं रोक पा रहे थे.

हम मुश्किल से 2-3 किलोमीटर ही आगे गए होंगे कि हमारी कार के पहिये रेत में धंस गए. हम 9 सदस्य कार में सवार थे. सब ने प्रयत्न किया पर व्यर्थ. अंधेरा होने को था, आसपास सिर्फ रेत का समंदर.

हम सभी डरे हुए थे. तभी 15-20 मिनटों के बाद बीएसएफ का ट्रक आता दिखा. बीएसएफ के जवानों ने हमारी कार को ट्रक से खींच कर निकाला. आज भी उन जवानों को याद कर सिर सम्मान से झुक जाता है.

मिथलेश गोयल

*

मैं परिवार सहित अपनी कार द्वारा वैष्णोदेवी से वापस होशियारपुर, पंजाब आ रही थी. पठानकोट के निकट कंडवाल में हमारी कार की टक्कर सामने से आ रहे ट्रक से हुई. मैं चेतनाशून्य हो गई. 5 दिनों बाद मुझे होश आया तो मैं ने खुद को दयानंद मैडिकल अस्पताल, लुधियाना में पाया. तब मुझे पता लगा कि हमारी कार के पीछे चंडीगढ़ के कोई सज्जन कार में आ रहे थे. उन्होंने शोर मचा कर लोगों को इकट्ठा किया. हमारी कार के ड्राइवर की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई थी. उन सज्जन ने हमारी कार के शीशे तोड़ कर हम सभी घायलों को बाहर निकाल, हमारे मोबाइल के सिमकार्ड से फोन नंबर देख कर हमारे रिश्तेदारों को होशियारपुर में सूचित किया और स्थानीय पुलिस को भी घटना की सूचना दी.

उन्होंने हम सभी घायलों को पठानकोट अस्पताल अपनी गाड़ी द्वारा पहुंचाया. रास्ते में मेरे पति और मेरा बेटा दम तोड़ गए और मेरी तथा मेरी बेटी की नाजुक हालत देख कर पठानकोट अस्पताल के डाक्टरों ने हमें दयानंद मैडिकल कालेज, लुधियाना के लिए रैफर कर दिया.

कंडवाल पुलिस चौकी के एएसआई तथा उन सज्जन व्यक्ति ने हमें लुधियाना भेजने के लिए ऐंबुलैंस की व्यवस्था की. इस दुर्घटना के कई दिनों बाद

तक वे दोनों फोन द्वारा मेरे परिजनों से मेरी बेटी और मेरी कुशलक्षेम पूछते रहे. स्वार्थ और भौतिकवाद के इस युग में उन दोनों व्यक्तियों के मानवीय व्यवहार को देख कर हम नतमस्तक हो गए.

पूजा वशिष्ट

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