वो पार्क की घास और कैंटीन का कोना
तेरा चुपके से आना, हलका सा मुसकराना
बैठ वहां पर मैं ने देखा था कभी
किरणें झांकती थीं डालियों के बीच से
तारीख लिखने का शौक था
हवा के झोंकों को
अभी भी खड़े ताक रहे हैं हम दोनों को
जहां दिलों की धड़कनें सोई पड़ी हैं
साये खामोश बैठे हैं वहां पर
वो लमहे जो न कभी सोए, न जागे
वो रोशनी डालियों पे छाई हुई
इश्क की रिमझिम तड़पती
निगाहों से गजल जनम लेती
शोले जगते हैं तुझे देख कर
तेरे चुपचाप कदम आते हैं
आहट को मुट्ठी में पकड़े
खौफ से डरे हुए
देख लो आजकल साये भी
अकेले चलते हैं
खयालों में सोच उतर आती है कभीकभी
तेरी निगाहों का इशारा सुन कर
झुक जाता आसमां
बिखर जाती लहरें
तेरे गालों पे इश्क नाम लिखता
तेरे सांसों की खुशबू
सारे आलम में उड़ जाती
पता नहीं कैसे आ जाता था
चमन नजदीक
मेरी बांहें गोरे बदन को लपेटे
होंठ ढूंढ़ लेते लबों की कंपन को
सितारे गवाह हैं
अब हम कभी जुदा न होंगे
हवा गीत गा रही है
तेरे दुपट्टे को पकड़ कर
बिखर गया है तेरा नगमा तेरे जिस्म पर
मेरी कलम की आंख में आ कर
सूरज आया था, आ कर चला गया
सितार की तार पर सुर बना, रंगत खिली
तेरी चूडि़यों में छन कर आई
मेरे हाथों ने भिगोए तेरे आंचल में सपने
पता नहीं कैसे याद आ गया
वो तेरा न आने का बहाना
नीचे जमीं पर देखना और कुछ न कहना
मेरी नज्मों का डालियों पर
जा कर सो जाना
याद आता है सभी, रात के घूंघट में.
– अमरजीत टांडा