अच्छी और ब्रैंडेड कंपनी का जूता नया होने पर भी नहीं काटता लेकिन घटिया और लोकल कंपनी का जूता 2-4 दिनों तो क्या, जिंदगीभर पैर कुतरता रहता है. यह और इस के साथ यह बात भी शायद केंद्रीय पैट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान नहीं जानते कि देश के 75 फीसदी लोग पैसे की तंगी के चलते घटिया या अच्छा तो दूर, जूता ही नहीं पहनते. बचे 25 फीसदी में से भी अधिकतर लोग काटने वाले जूते को फेंक देते हैं.
इंदौर में धर्मेंद्र प्रधान जीएसटी को ले कर बचाव की मुद्रा में आते पुराने ज्ञान की यह बात दोहरा बैठे कि नया जूता भी 3 दिन काटता है, फिर चौथे दिन सैटल हो जाता है. यही जीएसटी में होगा कि यह व्यापार का हिस्सा हो जाएगा.
जैसे ब्रह्मा का एक दिन मानव के हजारों साल के बराबर होता है वैसे ही मंत्रियों के 3 दिन 300 सालों से कम नहीं होते. इस लिहाज से व्यापारियों को चाहिए कि जीएसटी का जूता पैर में फिट होने के लिए वे अनंतकाल तक इंतजार करें या फिर जूता कंपनी को फेंक दें.
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