सरकार ने महिलाओं को धर्म के जाल में उलझाए रखने के लिए बिंदी पर लगे जीएसटी को तो कम कर दिया पर जिस तरह से सैनिटरी पैड से जीएसटी हटाने की मांग हो रही थी उसे नजरअंदाज कर दिया है. सैनिटरी पैड महिलाओं की हैल्थ और हाइजीन के लिए सब से अहम है. ऐसे में जरूरी है कि इस पर लगे टैक्स को खत्म किया जाए ताकि यह सस्ता हो और ज्यादा से ज्यादा महिलाएं इस का प्रयोग कर सकें.
महिलाओं की सुरक्षा और सेहत की बात करें तो माहवारी सुरक्षा सब से प्रमुख विषय है. आज भी भारत में 70 फीसदी महिलाएं माहवारी के दौरान सैनिटरी पैड का प्रयोग नहीं करती हैं. इस की जगह गंदे घरेलू कपड़ों का प्रयोग माहवारी के समय करती हैं. सैनिटरी पैड के अलावा महावारी के दिनों में कुछ भी प्रयोग करना सेहत के लिए खतरा होता है. इस से संक्रमण फैलता है. कई बार यह संक्रमण इतना बढ़ जाता है कि महिला बांझपन का शिकार हो सकती है. माहवारी के दौरान फैलने वाले संक्रमण से माहवारी के समय रक्तस्राव अधिक हो सकता है, जिस से महिलाओं में ऐनीमिया का रोग बढ़ सकता है.
प्रयोग को बढ़ावा
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में महिलाओं की स्वास्थ्य सुरक्षा को देखते हुए सैनिटरी नैपकिन के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए. केंद्र सरकार से महिलाओं को यह उम्मीद थी कि सैनिटरी पैड के प्रयोग को देखते हुए इस पर लगने वाले टैक्स को सरकार जीएसटी में कम करेगी.
सैनिटरी नैपकिन के कम प्रयोग का सब से प्रमुख यह कारण है कि इस की कीमत ज्यादा है. बाजार में इस की कीमत क्व20 प्रति पैकेट से शुरू हो कर क्व120 प्रति पैकेट तक है. एक पैकेट में
5 से 8 पैड होते हैं. महिलाओं में माहवारी का समय 3 से 5 दिन तक रहता है. कुछ में यह 7 दिन तक भी हो जाता है. माहवारी में 2-3 पैकेट तक प्रयोग में आते हैं. ऐसे में क्व60 से ले कर क्व300 तक का खर्च सैनिटरी पैड्स पर हर माह आता है.
कम हो कीमत
माहवारी के अलावा बच्चा होने के बाद होने वाले रक्तस्राव को रोकने के लिए भी सैनिटरी पैड का प्रयोग बढ़ जाता है. नेहा तिवारी कहती हैं कि गांवों और कसबों की ज्यादातर महिलाएं सैनिटरी पैड के खर्च को नाहक समझती हैं. मगर अब लोगों के लगातार प्रयास से वे यह तो समझने लगी हैं कि इस का प्रयोग जरूरी है पर इस के खर्च को वे फुजूलखर्ची समझती हैं. ऐसे में अगर इस की कीमत कम हो जाए तो महिलाएं इस का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर सकती हैं. शादी के बाद कुछ दिन तक शहरों में महिलाएं सैनिटरी पैड का प्रयोग करती हैं. पर बाद में पढ़ीलिखी महिलाएं भी इस का प्रयोग बंद कर देती हैं. इस पर हर माह क्व100-200 उन्हें अखरने लगता है.
सैनिटरी पैड की कीमत को कम करने का प्रयास हर स्तर पर हो रहा है. सरकारों ने सस्ते सैनिटरी पैड बनाए, जो क्व10 से क्व20 प्रति पैकेट ही बिकते हैं पर समस्या यह है कि ये हर जगह नहीं मिलते. फिर सस्ते होने के कारण इन की क्वालिटी भी बेहतर नहीं होती, जिस से माहवारी में रक्तस्राव को रोकने में ये असफल होते हैं. ऐसे में महिलाओं को औसतन क्व30 से अधिक कीमत वाले पैकेट ही लेने पड़ते हैं.
जानकार कहते हैं कि सस्ते पैड्स की सिलाई भी अच्छी नहीं होती, जिस से वे खुल जाते हैं. इन में रक्त सोखने वाला मैटीरियल भी बेहतर नहीं होता, जिस से ये ज्यादा उपयोगी नहीं रहते हैं. ऐसे में महिलाएं केंद्र सरकार से यह उम्मीद कर रही थीं कि जीएसटी में सैनिटरी पैड पर टैक्स कम होगा, जिस से यह सस्ता हो सके पर केंद्र सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और इस पर जीएसटी की दर 12 फीसदी ही रखी. अजीब बात यह है कि काजल, बिंदी और सिंदूर पर टैक्स कम करने वाली सरकार को सैनिटरी पैड की उपयोगिता नजर नहीं आई.
हैल्थ और हाइजीन के लिए हैं खास
जीएसटी को घटाने को ले कर महिलाएं अलगअलग स्तर पर प्रयास कर रही हैं. इसे ले कर सोशल मीडिया पर एक कैंपेन भी चली, दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल हुई. इस पर सरकार ने अपने बयान में कहा कि सैनिटरी पैड बनाने में जो मैटीरिल लगाया जाता है वह विदेशों से आता है, जिस के चलते सैनिटरी पैड पर टैक्स में बदलाव संभव नहीं हो सकता है.
जानकार सवाल करते हैं कि जब काजल, बिंदी पर टैक्स कम हो सकता है जोकि बहुत जरूरी और सेहत से जुड़ी चीजें नहीं है तो फिर सैनिटरी पैड पर जीएसटी कम क्यों नहीं हो सकता? हैरानी इस बात की भी है कि एक तरफ जहां केंद्र सरकार साफसफाई को बढ़ावा देना चाहती है तो वहीं दूसरी तरफ महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए सब से जरूरी सैनिटरी पैड पर वह जीएसटी कम करने को तैयार नहीं है. ऐसे में यह साफ है कि सरकार को महिलाओं की सेहत व हाइजीन का कोई खयाल नहीं है.
सफल नहीं होगा सफाई का संदेश
सैनिटरी पैड का प्रयोग 13 साल से ले कर 50-55 साल तक की महिलाएं करती हैं. यह हर माह की जरूरत है. एक तरफ इस का प्रयोग बढ़ाने के लिए तमाम तरह के जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार ने इस पर जीएसटी 12 फीसदी कर रखा है. अगर सरकार इसे कम करे तो ज्यादा से ज्यादा महिलाएं इस का प्रयोग कर सकेंगी और खुद को स्वस्थ रख सकेंगी. जब तक हर महिला सैनिटरी पैड का प्रयोग करना शुरू नहीं करेगी तब तक घरघर में शौचालय बना कर सफाई देने का संदेश भी सफल नहीं होगा. गांवों और कसबों में महिलाएं केवल शौच के लिए ही खेतों में नहीं जातीं माहवारी के समय प्रयोग किए जाने वाले गंदे कपड़ों को भी फेंकने जाती हैं. माहवारी से गंदे हुए कपड़ों की जगह पर सैनिटरी पैड का डिस्पोजल करना आसान होता है.
हस्तक्षेप करे सरकार
महिला स्वास्थ्य की दिशा में काम कर रही रागिनी उपाध्याय कहती हैं कि 35 साल के बाद बहुत सारी महिलाओं की बच्चेदानी में कई ऐसी बीमारियां फैलने लगी हैं जो माहवारी में रक्तस्राव को बढ़ा देती हैं. इसे रोकने के लिए जब गंदे कपड़ों का प्रयोग किया जाता है तो बच्चेदानी के कैंसर तक की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में यह जरूरी है कि महिलाएं ज्यादा से ज्यादा सैनिटरी पैड का प्रयोग करें. अगर सरकार सैनिटरी पैड पर लगे 12 फीसदी जीएसटी को माफ कर दे तो पैड की कीमत आधी रह जाएगी, जिस से महिलाएं इस का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर सकेंगी. उन की हैल्थ और हाइजीन के लिए यह बहुत जरूरी है.
VIDEO : रोज के खाने में स्वाद जगा देंगे ये 10 टिप्स
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
नीना बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी. मातापिता ने उस के सपनों को पंख दिए. उस का सिलैक्शन मैडिकल में हो गया. वहीं उस की मुलाकात समीर से हुई. मैडिकल फाइनल में नीना टौप कर गई. पढ़ाई पूरी करने के बाद घर वालों की रजामंदी से दोनों ने शादी रचाई. नीना की हसरत थी कि वह क्लीनिक खोले. उस में 2-3 साल लग गए. इसी बीच, उस की गोद में रोहन आ गया.
सासससुर का कोई दबाव नहीं था लेकिन इस बात का जिक्र वे हमेशा करते कि बच्चों के सही पालनपोषण के लिए मां का घर पर रहना जरूरी है. 2 वर्ष बाद निधि का जन्म हो गया. नीना कशमकश में थी. बच्चों के लिए समय कम पड़ रहा था. उस ने समीर से बात की. दोनों ने मिल कर निर्णय लिया कि फिलहाल नीना कैरियर से ज्यादा बच्चों पर ध्यान दे. यह ज्यादा सही रहेगा. सासससुर ने न सिर्फ बहू के फैसले का स्वागत किया बल्कि वे सब के सामने बहू के त्याग की प्रशंसा करते.
ऐसा ही कुछ बैंककर्मी विजयलक्ष्मी के साथ हुआ. उस ने और राकेश ने एकसाथ बैंक जौइन किया. दोनों की अरेंज मैरिज थी. बच्चों के जन्म के बाद विजयलक्ष्मी ने फैसला किया कि वह प्रमोशन नहीं लेगी. बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए किसी एक को स्थायी रहना होगा. भले ही उस ने जौब नहीं छोड़ी लेकिन इस निर्णय के कारण वह कभी आगे नहीं बढ़ सकी. उस के जूनियर बौस होते गए. उस के पति राकेश आज जीएम हैं और वह आज तक उसी टेबल पर कलम घिस रही है.
ये 2 उदाहरण बानगी मात्र हैं. हमारे आसपास ऐसे बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे, जहां लड़कियों ने शादी के बाद घरपरिवार की जिम्मेदारी के लिए अपनी जौब को तिलांजलि दे दी. ऊपरी तौर पर देखने से लगता है कि वे स्वयं अपनी नौकरी छोड़ती हैं, लेकिन गहराई से विचार करें तो पता चलता है उन पर प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष रूप से मानसिक दबाव डाला जाता है कि वे जौब को बाय कह दें. एक ऐसा वातावरण बनाया जाता है कि वे जौब छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं.
जिस जौब को हासिल करने में महिलाएं दिनरात संघर्ष करती हैं, मेहनत करती हैं, उसे एक झटके में छोड़ना भला वे क्यों चाहेंगी? जौब उन का बचपन का सपना होता है, उन की महत्त्वाकांक्षा होती है, कितनी विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए वह इसे हासिल करती हैं. ऐसे में किसी की दिली चाहत होगी कि वह लगीलगाई नौकरी छोड़े या फिर बिना प्रमोशन जिंदगी गुजार दे.
शादी के बाद नौकरी छोड़ने के लिए 3 कारण ज्यादा जिम्मेदार होते हैं, बच्चों की परवरिश, पति के अच्छे कैरियर के लिए उस के जौब की कुर्बानी और ससुराल वालों की नापसंदगी. ये कारण इस कदर लड़कियों पर हावी हो जाते हैं कि उन्हें अपनी नौकरी छोड़ने का निर्णय लेना पड़ता है. यह निर्णय भविष्य में उन पर भारी भी पड़ सकता है. कई बार कुछ ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं कि कैरियर को ठोकर मारने वाली महिलाएं बेबस और लाचार हो जाती हैं. उस समय उन्हें लगता है, काश, जौब न छोड़ी होती.
खुद को कमजोर न पड़ने दें
जौब छोड़ने का निर्णय लेने से पहले खुद से सवाल करें कि क्या जौब छोड़ना जरूरी है? इस बात को गांठ बांध लीजिए कि जौब मिलना आसान नहीं होता. बहुत सारी प्रतियोगिताओं से गुजरते हुए यह प्राप्त होता है और छोड़ने के बाद हासिल नहीं होता. आप पलपल आगे बढ़ती दुनिया से काफी पीछे छूट जाती हैं. आप जौब नहीं छोड़ने की बात पर दृढ़ रहिए. खुद को कमजोर मत पड़ने दीजिए. क्या कोई पुरुष अपने कैरियर का परित्याग सिर्फ इसलिए करता है कि उस की पत्नी आगे बढ़े.
विजयलक्ष्मी ने सिर्फ बच्चों के लिए प्रमोशन नहीं छोड़ा था. यह बात भी थी कि पति का कैरियर निर्विघ्न आगे बढ़े. उस के लिए विजयलक्ष्मी का त्याग जरूरी हो गया. अब जब पति जीएम हो गए हैं, बच्चे विदेश में बस गए हैं, कहती हैं, पति पर गर्व होता है लेकिन कभीकभी अकेले में लगता है आज मैं भी जीएम होती अगर… विजयलक्ष्मी के अधूरे वाक्य में वह दर्द बिना है जो वे चाह कर भी कभी व्यक्त नहीं कर पातीं. वक्त फिसल गया. पीठ पीछे औफिस में यह चर्चा भी होती.
महिलाओं में इतनी काबिलीयत कहां, देखो इस के पति को, दोनों ने साथसाथ नौकरी शुरू की और आज वह जीएम हैं. विजयलक्ष्मी की काबिलीयत पर धूल जम गई है. त्यागसमर्पण सब हाशिए पर आ गया है. अब उंगली सीधेसीधे उस की योग्यता पर उठती है. फिर उसे हासिल क्या हुआ? समाज महिलाओं को हमेशा कमतर आंकता है, यह तनाव भी महिलाओं को झेलना पड़ता है.
दबाव में निर्णय न लें
हम अपने को चाहे जितना मौडर्न मान लें लेकिन कड़वी सचाई यही है कि आज भी कामकाजी महिलाओं को खुले दिल से स्वीकार नहीं किया जाता. लड़की और लड़के की नौकरी को एकसमान नहीं समझा जाता. ससुराल वाले बहू की कमाई पर नजर रखते हैं. कई परिवारों में बहू के सारे पैसे भी ले लिए जाते हैं और दूसरी ओर यह भी सुनाया जाता है कि बेटा अच्छाखासा कमा रहा है, तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है?
कई घर वाले बच्चों की जिम्मेदारी लेने से भी इनकार कर देते हैं, ‘इस उम्र में हम से बच्चे नहीं संभलते. बच्चों की जिम्मेदारी से बचने के लिए नौकरी करती है.’ समाज में यह कहने वाले भी मिल जाएंगे, ‘घर और बच्चों को छोड़ कर नौकरी करने की क्या जरूरत है भला? पति इतने अच्छे ओहदे पर है. घरमकान, बैंकबैलेंस है. सिर्फ अपने शौक के लिए घरपरिवार की तिलांजलि दे रही है.’
एक लड़की जब नौकरी कर रही होती है, उसे ढेर सारे दबाव के बीच काम करना होता है. ऐसे ही किसी कमजोर पल में वह नौकरी छोड़ने का मन बनाती है. लेकिन जौब छोड़ने का निर्णय कभी किसी तरह के दबाव में न लें. आप खुद से विचारें कि क्या जो महिलाएं काम कर रही हैं, वो घरपरिवार के प्रति जिम्मेदार नहीं हैं? क्या वे अपने घर को अच्छे से मेंटेन नहीं कर पा रही हैं? यदि आप इस पर कुछ विचार करेंगी तो पाएंगी कि कई मामलों में कामकाजी महिलाएं
बच्चों की परवरिश और पारिवारिक जिम्मेदारी घरेलू महिलाओं से बेहतर निभा रही होती हैं.
आप के आसपास और पहचान वालों में ऐसी कई कामकाजी महिलाएं मिल जाएंगी. आप उन्हें अपना रोल मौडल चुनें और बेफिक्र हो कर जौब करती रहें.
भविष्य की सोचें
एक झटके में नौकरी छोड़ने का फैसला भविष्य में भारी पड़ सकता है. इस मामले में कुछ बातों को नजरअंदाज करना चाहिए, जैसे घर के लोगों के ताने या बेरुखी, रोकटोक. कुछ बातों को मैनेज करना सीखें, बच्चों के लिए अतिरिक्त ट्यूटर रखें, घर के बड़ेबुजुर्गों को उन के हिसाब से खुश रखने की कोशिश करें ताकि बच्चों की देखभाल होती रहे.
जौब छोड़ने में जल्दीबाजी न करें. यह भी सोचें कि आप के जौब छोड़ने पर घर की आर्थिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा. बच्चे जब छोटे होते हैं, उन की फीस और अन्य खर्चे कम होते हैं. जैसेजैसे वे बड़े होते जाते हैं, खर्च बढ़ता जाता है. सिर्फ एक सदस्य की आमदनी से घर की स्थिति डांवांडोल हो सकती है.
मीता एक प्रकाशन विभाग में काम करती थी. उस को कामकाजी होने के ताने ससुराल वाले देते थे. उस के बच्चों की कोई केयर नहीं करता. कई बार वे स्कूल से आ कर भूखे सो जाते. उस के दोनों बच्चे जब 8-10 साल के थे, उस ने जौब छोड़ दी. अब वे कालेज जाने लगे हैं. मीता अपने होनहार बेटों का दाखिला इंजीनियरिंग और मैडिकल में इसलिए नहीं करा सकी, क्योंकि उस के पास बच्चों की महंगी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे. एक दिन उस के बेटों ने किसी बात पर उलाहना दे दी, ‘‘तुम्हें जौब छोड़ने की क्या जरूरत थी मां, तुम्हें हमारे भविष्य के बारे में भी सोचना चाहिए था.’’
अन्य विकल्पों पर विचार करें
जौब छोड़ना आप की समस्या का समाधान नहीं है. तत्काल आप को किसी परेशानी से छुटकारा मिलता नजर आएगा लेकिन बाद में कईकई समस्याएं सिर उठाने लगेंगी. जैसे हर परिस्थिति का सामना आप डट कर करती हैं, वैसे ही इस का सामना भी मजबूत हो कर करें. पूरी तरह नौकरी छोड़ने से बेहतर है आप उन औप्शंस पर ध्यान दें जिन्हें आप वर्तमान नौकरी छोड़ने के बाद कर सकती हैं.
पूजा शर्मा पटना में बुटीक चलाती हैं. उन की बुटीक की शहर में एक पहचान है. लेकिन 10 साल पहले वे शिक्षिका थीं. पति और ससुराल वाले चाहते थे कि वे घर पर रहें. उन की 3 बेटियां हैं. अभी तीनों बेंगलुरु में पढ़ रही हैं. जब वे छोटी थीं, उन्हीं के स्कूल में वे शिक्षिका थीं.
बेटियों के हिसाब से शेड्यूल तय था. जब वे बड़ी हो गईं, घर में ही पूजा ने अपना बुटीक खोल लिया. शादी के पहले उन की इस में रुचि थी. वे कहती हैं, ‘‘अगर दबाव में आ कर नौकरी छोड़ देती तो शायद ही मैं बुटीक खोल पाती. हो सकता है मैं अपना आत्मविश्वास खो देती. समय बदल गया. अब घर के लोग भी खुश हैं. मुझे भी खुद पर गर्व होता है कि मैं ने कई लोगों को रोजगार दिया है.’’
आत्मनिर्भरता पर गर्व करें
अपने आत्मनिर्भर होने पर पूजा शर्मा की तरह गर्व करें. अपना नजरिया बदलें. यह जरूरी नहीं कि आप बिजनैस वुमन बन कर ही किसी को रोजगार दे सकती हैं, यदि आप एक अदद नौकरी करती हैं, फिर भी कई लोगों को टुकड़ोंटुकड़ों में आत्मनिर्भर बना सकती हैं. घरेलू महिलाएं आमतौर पर बाई रखती हैं लेकिन ज्यादातर कामकाजी महिलाएं बाई के अतिरिक्त बच्चों की देखभाल और खाना बनाने वाली मेड भी रखती हैं. खुद को और घर को मेंटेन करने के लिए धोबी रखना या कपड़ा आयरन करवाना उन की मजबूरी होती है. कामकाजी होने के कारण वे स्वयं सारे खर्च वहन करती हैं. इस पर किसी की ज्यादा बंदिश नहीं होती. आप तभी ऐसा कर सकती हैं जब तक आप जौब में हैं, आत्मनिर्भर हैं. आप कभी इस तरह सोच कर देखिए, दिल को तसल्ली मिलेगी.
सम्मान से समझौता क्यों
जौब कोई भी हो, लोगों की नजर में आप के लिए सम्मान होता है. यदि आप शिक्षिका हैं तो हजारों विद्यार्थी और उन के गार्जियन आप को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं. पत्रकार हैं तो समाज के हर तबके में आप का रुतबा होता है. बड़ेबड़े पदाधिकारी भी आप का सम्मान करते हैं. लेखिका हैं तो लोग आप की बातों को वजन देते हैं. इसी तरह वकील, कलाकार, डाक्टर, बैंककर्मी आदि जितने भी पेशे हैं, सब आप को सम्मान दिलाते हैं.
सागरिका को पत्रकारिता से जुड़े 6 महीने ही हुए हैं. वह गर्व से कहती हैं, ‘मुझे कोई मैडम बुलाता है तो बहुत खुशी होती है. लगता है मेरा कोई अपना वजूद है.’ गांठ बांध लीजिए, यह सम्मान आप को आप का काम दिलाता है. नौकरी छोड़ने का मतलब है, आप को अपने सम्मान से समझौता करना होगा. लोग आप की काबिलीयत का सम्मान करते हैं. नौकरी छोड़ने के साथ आप का रुतबा और सम्मान जाता रहेगा.
कामना सिन्हा एक मल्टीनैशनल कंपनी में मार्केटिंग हेड थी. उस ने अंतरजातीय विवाह किया. शुरू के 3-4 साल ठीक रहे. पतिपत्नी की पोस्टिंग अलगअलग जगह पर होती है, वे एडजस्ट कर लेते. बेटी होने के बाद कामिनी ने नौकरी छोड़ने का फैसला लिया. अब बेटी 8 साल की है. पति के साथ कैरियर शुरू करने वाली कामिनी अब हाउसवाइफ है और पति कैरियर में बहुत ऊंची छलांग लगा चुका है. कामिनी मानती है, ‘वैसे तो मुझे कोई मलाल नहीं लेकिन कभीकभी लगता है मेरा सम्मान कहीं खो गया है.’
याद करें अपना संघर्ष
यदि आप जौब छोड़ने का मन बना रही हैं तो उस संघर्ष को याद कीजिए जिस के कारण आप की रातों की नींद उड़ी थी, दिन का चैन खोया था. अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होती है. सारा फोकस पढ़ाई पर होता है. आंखें मींचमींच कर पढ़ना पड़ता है. जब लोग रातों को चैन की नींद सो रहे होते हैं या पार्टी एंजौय कर रहे होते हैं तब अपने विषय के सवालों से घिरी आप जवाब ढूंढ़ रही होती हैं. जौब सिर्फ पढ़ाई से नहीं मिलती है और भी परेशानी साथसाथ चलती है. संघर्ष कई स्तरों पर हो सकता है.
मध्यवर्गीय परिवारों में आज भी रूढि़वादिता है. कुछ लोग बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं लेकिन उसे जौब नहीं करने देते. ऐसे में जौब की परमीशन लेने में लड़कियों को कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, वह उन्हें ही पता होता है.
स्वाति एमबीए फाइनल ईयर में थी, तभी उस का कैंपस सेलैक्शन हो गया. यह खुशखबरी ले कर वह घर पहुंची लेकिन कोई ज्यादा खुश नहीं हुआ. पापा ने नौकरी के लिए सीधेसीधे मना कर दिया. उन का मानना था कि अच्छी पढ़ाई अच्छे घर में शादी की गारंटी है. स्वाति अड़ गई.
कालेज के टीचरों ने आ कर उस के पापा को कई स्तरों पर समझाया तब उन्होंने हां की. लेकिन शादी के 2 साल बाद ही स्वाति ने जौब छोड़ दी. वही परंपरावादी कारण, ससुराल वालों के ताने, हमारे पास इतना बैंकबैलेंस है, फिर बहू को काम करने की क्या जरूरत है? जौब छोड़ने के पहले स्वाति ने स्वयं यह नहीं सोचा कि कितनी बाधाएं पार कर उस ने उसे पाया था.
लड़कियों को जौब में जाने से पहले कई स्तरों पर संघर्ष करना पड़ता है. कभीकभी ऐसा होता है कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती. एकएक पैसे का किसी तरह जुगाड़ कर पढ़ाई पूरी होती है. कभी भाइयों की तुलना में खुद को साबित करना पड़ता है. और भी कितनी तरह के संघर्ष करने पड़ते हैं.
उन का संघर्ष सिर्फ पारिवारिक स्तर पर नहीं होता, जौब शुरू करने के बाद औफिस में भी उन्हें खुद को बेहतर प्रेजैंट करने के लिए कड़ी मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है. आश्चर्य है कि नौकरी छोड़ते वक्त इन बातों पर वे गौर नहीं करतीं. यदि वे अपना संघर्ष याद करेंगी तो निश्चितरूप से जौब नहीं छोड़ेंगी.
सब को समझाएं
पहले खुद समझें कि नौकरी छोड़ना न तो आप के हित में है न परिवार के. उस के बाद उन्हें समझाएं जो आप पर जौब छोड़ने के लिए दबाव डाल रहे हैं. आप उन्हें समझाएं कि घर की जिम्मेदारी से भागने के लिए आप जौब नहीं कर रहीं बल्कि आप अपनी जिम्मेदारी और अच्छे से निभा सकें, इसलिए जौब कर रही हैं. घर की आर्थिक मजबूती और बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए नौकरी करना बहुत जरूरी है. इस महंगाई के जमाने में एक आदमी की आमदनी से आगे कई तरह की परेशानियां सिर उठाएंगी.
आज हमारा लाइफस्टाइल बदल चुका है. रहनसहन का स्तर ऊंचा उठ चुका है. आज की पीढ़ी यानी हमारे बच्चे गुजारा करने या समझौता करने के मूड में कतई नहीं हैं, इसलिए जौब करना बेहद जरूरी है. यह भविष्य को सुरक्षित करता है. नौकरी छोड़ने से परिवार में कई मुश्किलें आएंगी. अपनी बात समझाने के लिए उन महिलाओं का जिक्र अवश्य करें जिन के जौब छोड़ने से परिवार में आर्थिक संकट उत्पन्न हुए और कई तरह की परेशानियां आईं.
नौकरी छोड़ना विकल्प नहीं
मधु कौल सैंटर में काम करती थी. ससुराल वालों की नजर में यह अच्छा जौब नहीं था. वे मधु पर नौकरी छोड़ने का दबाव डालने लगे. किसी तरह ढाईतीन साल उस ने नौकरी की. आखिरकार बेटे के जन्म के बाद उसे जौब छोड़नी पड़ी. बाद में उस की 2 बेटियां हुईं. प्राइवेट नौकरी करने वाला पति एक हादसे का शिकार हो गया.
मधु पूरी तरह टूट गई. उसे काम छोड़े 8 साल हो गए थे. कौल सैंटरों में फ्रैशरों की डिमांड थी. अन्य नौकरी के लिए उस के पास कोई ऐक्सपीरियंस नहीं था. उस के साथ कौल सैंटर में काम शुरू करने वाली लड़कियां आज कैरियर के अच्छे मुकाम पर थीं और वह एक मामूली जौब के लिए एडि़यां घिस रही है.
मधु ने अपनी जौब नहीं छोड़ी होती तो आज उसे ये दिन नहीं देखने पड़ते, बच्चे दानेदाने को मुहताज नहीं होते. दयनीय स्थिति से गुजरती मधु उस घड़ी को कोसती है जब उस ने जौब छोड़ने का निर्णय लिया था. उसे अब लगता है, नौकरी छोड़ना विकल्प नहीं था.
आत्मनिर्भर होना आप का गौरव है, आप का आत्मसम्मान है, आप का सुरक्षित भविष्य है. लगीलगाई नौकरी छोड़ना किसी एंगल से बुद्धिमानी का कार्य नहीं है. ऐसा करने से किसी समस्या का समाधान नहीं होगा.
इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि आप के जौब छोड़ने से परेशानी समाप्त हो जाएगी. समस्याएं नए सिरे से सिर उठाने लगती हैं और उस समय आप के पास अपनी जौब का संबल भी नहीं होता. जिंदगी कठिन होती जाती है. इसलिए खुद भी जौब न छोड़ने का निर्णय लें और दूसरों को जौब में रहने के फायदे और छोड़ने के नुकसान समझाएं.
VIDEO : रोज के खाने में स्वाद जगा देंगे ये 10 टिप्स
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
हवाईयात्रा के दौरान कुछ ऐसी बातें होती हैं जिन से सामान्यतया हम अनभिज्ञ रहते हैं. ये बातें पायलट या फ्लाइट अटेंडैंट हमें नहीं बताते हैं. उदाहरणस्वरूप, ऐसी कुछ बातें निम्न हैं :
– इमरजैंसी में पायलट अपनी खिड़की के रास्ते बाहर निकल सकता है.
– पायलट के लिए ऊपर के कंपार्टमैंट में रस्सी भी होती है. कमर्शियल वायुयान में पैराशूट या इजैक्शन सीट नहीं होती है. पायलट को जब पता चलता है कि अब जहाज का बचना असंभव है और यह क्रैश होने जा रहा है तो फिर भी वह जहाज को बचाने के लिए अंत समय तक पूरी कोशिश करता है.
– पायलट पर एक तरह से दबाव रहता है कि ईंधन जरूरत से ज्यादा न रखा जाए क्योंकि ऐक्स्ट्रा ईंधन के बोझ को ले कर उड़ने में ज्यादा ईंधन की खपत भी होती है. खराब मौसम या इमरजैंसी में अचानक नजदीकी हवाईअड्डे पर उतरने का विकल्प संभव होता है, इसलिए जरूरत से ज्यादा ईंधन न रख कर एक तरह से बचत करते हैं.
– ‘वाटर लैंडिंग’ ऐसी कोई चीज नहीं है, इसे ‘ओशन क्रैशिंग’ कहा जाता है. दरअसल, इसे डिचिंग कहते हैं जब इमरजैंसी में जहाज को पानी में उतारा जाता है.
– जहाज के उड़ते समय या जमीन पर उतरते समय लाइट को धीमी रखने
का निर्देश दिया जाता है. ऐसा इसलिए कि फ्लाइट अटेंडैंट इमरजैंसी में ठीक से बाहर देख सके कि किस तरफ के आपातकालीन द्वार से विमान को खाली कराना सही होगा.
– विमान का एक इंजन फेल होने पर पायलट विमान को लैंड करा सकता है और अकसर इसे तकनीकी समस्या बताते हैं. यहां तक कि इस की भनक कभी फ्लाइट अटेंडैंट को भी नहीं लगती जब तक कि धुआं या आग की लपटें न दिखाई दें.
– पायलट ठीक से सो नहीं पाते या 2 उड़ानों के बीच सोने का समुचित अवसर नहीं मिलता, फिर भी वे चेहरे पर मुसकान बनाए रखते हैं ताकि यात्री और फ्लाइट अटेंडैंट सहज रहें.
– यदि पायलट फ्लाइट अटेंडैंट को बैठने के लिए कहते हैं तो अकसर इस का अर्थ है कि आगे वायुमंडल में तूफान या उथलपुथल है.
– चाय या कौफी के लिए भी पानी उसी टंकी से आता है जिस से शौचालय में सप्लाई होता है और इस पानी में बैक्टीरिया नौर्मल पानी की तुलना में कई गुणा ज्यादा होते हैं.
– पायलट्स कौकपिट में अपनी टोपी नहीं पहनते हैं.
– पायलट्स को अपनी पढ़ाई और ट्रेनिंग पर लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं.
– विमान सीधे रनवे पर लैंड नहीं करता बल्कि कुछ दूर हवा में रहने के बाद ही धरती को छूता है. लैंडिंग के समय पिछला चक्का ही पहले धरती को छूता है.
– कभीकभी कौकपिट में लैपटौप, सैलफोन या अन्य कारणों से पायलट का ध्यान हट जाता है और विमान अपने गंतव्य से आगे निकला जाता है.
– विमान अपने पीछे आकाश में लंबे बादल की पूंछ छोड़ता जाता है उसे कौंट्रेल कहते हैं.
– कभी वायुयान का वैस्ट वाटर वायुमंडल में लीक कर जाता है और यह बर्फ बन जाता है जिसे ब्लू आइस कहते हैं. यह जहाज के नीचे अकसर चिपका रह जाता है. इस का ब्लू रंग इस में मिले कीटनाशक के कारण होता है. कभीकभी लैंडिंग के समय जब यह बर्फ बाहर की गरम हवा के संपर्क में आती है तो पिघल कर धरती पर गिरती है. ऐसी कई घटनाएं रिहायशी इलाकों में हुई हैं जिन से घरों की छतों को काफी नुकसान हुआ है.
VIDEO : रोज के खाने में स्वाद जगा देंगे ये 10 टिप्स
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
हाल ही में हुए अंडर-19 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम ने चौथी बार इस खिताब को अपने नाम किया. जहां एक तरफ अंडर-19 वर्ल्ड कप के टीम की तारिफे हो रही है, वहीं दूसरी तरफ भारतीय टीम के तेज गेंदबाज अनुकूल राय पर आरोप लगाया गया है कि वे 19 साल से ज्यादा उम्र के हैं और 2017 में BCCI की तरफ से एज वेरिफिकेशन प्रोसेज (AVP) टेस्ट में दोषी पाए गए थे.
आईपीएल स्पौट फिक्सिंग केस के पिटिशनर आदित्य वर्मा ने BCCI के कार्यवाहक सचिव अमिताभ चौधरी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है कि उन्होंने ओवरएज अनुकूल राय को अंडर-19 वर्ल्ड कप में खिलाने के लिए फर्जीवाड़ा किया था. वर्मा ने आईसीसी के चेयरमैन शशांक मनोहर और भारतीय क्रिकेट को चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त कमिटी औफ ऐडमिनिस्ट्रेटर (COA) के प्रमुख विनोद राय को इस बारे में खत लिखा है.
आदित्य वर्मा ने आईसीसी और बीसीसीआई को लिखे खत में कहा कि, ”अनुकूल राय 2017 में BCCI के AVP (एज वेरिफिकेशन प्रोसेस) टेस्ट में दोषी पाए गए थे. उस वक्त चौधरी ने अपनी ताकत का इस्तेमाल कर अनुकूल राय को घरेलू क्रिकेट टूर्नामेंट में झारखंड की अंडर-19 टीम में शामिल कराया था. JSCA के प्रेसिडेंट होने के नाते चौधरी और सेक्रटरी होने के नाते राजेश वर्मा अच्छी तरह जानते थे कि JSCA के 33 खिलाड़ी 2013 में AVP टेस्ट में ओवरएज पाए गए थे. अनुकूल राय भी उस लिस्ट में शामिल थे और उन्हें 2016 के बाद अंडर-19 में खेलने की इजाजत नहीं थी, लेकिन बीसीसीआई का सचिव और जूनियर सिलेक्शन कमिटी का संयोजक होने के नाते चौधरी ने उन्हें टीम में शामिल करा लिया.”
वर्मा ने आगे लिखा कि, ”अमिताभ चौधरी बीसीसीआई के ऐक्टिंग सेक्रटरी हैं और हर कोई जानता है कि वह इंडियन क्रिकेट बोर्ड में सबसे बड़े कानून तोड़ने वाले हैं. मैंने चौधरी के गैरकानूनी कृत्यों के बारे में COA को कई खत लिखे लेकिन किसी का भी जवाब नहीं मिला. आदित्य वर्मा ने यह भी आरोप लगाया कि बीसीसीआई में सीईओ राहुल जौहरी समेत हर कोई चौधरी के इशारे पर नाच रहा है. वर्मा ने कहा कि वह इस मामले में विनोद राय से इंसाफ चाहते हैं.
बता दें कि झारखंड के अनुकूल राय अंडर-19 वर्ल्ड कप 2018 को जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे. उन्होंने टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 14 विकेट चटकाए हैं.
VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
अगर आप अपने बैंक अकाउंट की डिटेल प्राप्त करने के लिए भाग दौड़ करते हैं, बैंक या एटीम पर जाते हैं तो अब आपको ऐसा करने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है और ना ही किसी भी तरह का कोई ऐप अपने फोन में डाउनलोड करने की जरूरत है. ऐसा इसलिए क्योंकि अब आप बड़ी ही आसानी से और बिना किसी परेशानी के घर बैठे अपने अकाउंट से संबंधित सभी डिटेल्स प्राप्त कर सकते हैं, वो भी फोन में किसी भी तरह का ऐप डाउनलोड किये बिना. आप सोच रहे होंगे कि कैसे? तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ऐसा करने के लिए आपको बस कुछ आसान से कोड्स डायल करने होंगे. ये USSD कोड्स हैं. जो हर बैंक के लिये अलग-अलग हैं.
आपका अकाउंट चाहे जिस भी बैंक में हो उसका ऐप डाउनलोड किये बिना इन USSD कोड्स को डायल कर आप अपने बैंक अकाउंट की डिटेल्स की जानकारी ले सकते हैं. ये USSD कोड्स हर बैंक के लिये अलग-अलग हैं. इन कोड्स को डायल करने के बाद मोबाइल बैलेंस की तरह ही बैंक अकाउंट की जानकारी प्राप्त की जा सकती है. जब आप इन कोड़्स का इस्तेमाल पहली बार करेंगे तो आपको कुछ डिटेल्स के साथ इसमें रजिस्टर करना होगा.
जानें किस बैंक के लिये है क्या USSD कोड-
पंजाब नेशनल बैंक में अगर आपका अकाउंट है तो आपको *99*42# कोड डायल करना होगा. कोड डायल करने के बाद आप निर्देशों का पालन करेंगे और आपके बैंक अकाउंट की डिटेल्स आपके सामने होगी.
YES बैंक के कस्टमर *99*66# कोड डायल कर के बैंक अकाउंट की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
अगर आपका बैंक अकाउंट SBI में है तो आपको *99*41# कोड डायल करना होगा.
UCO बैंक के लिए *99*56# कोड डायल करना होगा.
HDFC बैंक के लिए *99*43# कोड डायल करना होगा.
जिन लोगों को ICICI बैंक की जानकारी प्राप्त करनी है उन्हें *99*44# कोड डायल करना होगा.
AXIS बैंक के कस्टमर *99*45# डायल कर के बैंक अकाउंट की डिटेल्स पता कर सकते हैं.
केनरा बैंक में जिन लोगों का अकाउंट है उन्हें *99*46# कोड डायल करना होगा.
VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
क्या आपको पता है की अब पेटीएम के जरिए आप मुंबई के डब्बावालों को पेमेंट कर सकते हैं, अगर नहीं पता तो चलिये हम आपको बताते हैं, अब पेटीएम के जरिए भी डब्बावाला भोजन के लिए भुगतान कर सकेंगे. पेटीएम पेमेंट्स बैंक ने मुंबई के डब्बावाला एसोसिएशन के साथ मिलकर नकदी में भुगतान की समस्या को दूर करने के मद्देनजर भागीदारी में काम करने का फैसला लिया है.
पेटीएम पेमेंट्स बैंक की प्रबंध निदेशक व सीईओ रेणु सत्ती ने कहा, “मुंबई के डब्बावाला ने विश्वस्तरीय सप्लाई चेन मैनेजमेंट की मिसाल स्थापित कर दुनिया में अपनी पहचान बनाई है. हमें खुशी है कि हम उनके मजबूत नेटवर्क को अपना पेटीएम क्यूआर कोड व बैंकिंग सेवा मुहैया करा रहे हैं . इस भागीदारी का लाभ दो लाख से ज्यादा मुंबईकरों को मिलेगा, जो पेटीएम के जरिए अब डब्बावालों को भुगतान कर पाएंगे.
मुंबई में डब्बावालों का एक मजबूत नेटवर्क
उन्होंने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि मुंबई में डब्बावालों का एक मजबूत नेटवर्क है, जो रोजाना दो लाख मुंबईकरों को घर का पका भोजन डिलीवर करते हैं. डब्बावाला एसोसिएशन से करीब 5,000 डब्बावाले जुड़े हैं, जो अब पेटीएम क्यूआर कोड के जरिये अपने उपभोक्ताओं से भोजन के बदले में भुगतान स्वीकार कर पाएंगे. साथ ही, पेटीएम पेमेंट्स बैंक में बैंक अकाउंट्स खोलकर वे बैंकिंग के साथ ही अन्य वित्तीय सेवाओं का लाभ भी उठा सकेंगे .
पेटीएम का एटीएम
डब्बावाले बैंकिंग आउटलेट्स ‘पेटीएम का एटीएम’ में जाकर व्यक्तिगत बैंकिंग का लाभ उठा सकते हैं. जहां वे नकदी जमा कर सकते हैं और निकाल भी सकते हैं. बचत खाते की जमा पर उनको 4 प्रतिशत ब्याज मिलेगा और धन प्रबंधन खाते की जमा पर व्याज दर 6.85 प्रतिशत मिलेगा. मुंबई के डब्बावाला के साथ-साथ पेटीएम इकोसिस्टम में बैंक का मिशन देश की 50 करोड़ आबादी को मुख्य धारा की अर्थव्यवस्था में लाना है .
डब्बावाला एसोसिएशन की ओर से कहा गया कि नकदी स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल हो रहा था, लेकिन अब पेटीएम क्यूआर-बेस्ड मोबाइल पेमेंट्स से इस समस्या का हल हो गया है. एसोसिएशन ने कहा, “भारत तेजी से डिजिटल फस्र्ट इकोनौमी की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में हम भारत के सबसे बड़े डिजिटल बैंक से जुड़कर बेहद उत्साहित महसूस कर रहे हैं.
VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
फेसबुक के स्वामित्व वाली मैसेजिंग सेवा कंपनी व्हाट्सएप भारत में नए भुगतान फीचर का परीक्षण कर रही है, जो आपको व्हाट्सएप के जरिए धन भेजने में सक्षम बनाएगी. जी हां, बहुत जल्द इसका इस्तेमाल कर आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को मैसेज के साथ ही साथ पैसे भी भेज वा हासिल कर सकेंग. व्हाट्सएप भारत में अपने यूपीआई बेस्ड पेमेंट फीचर्स के टेस्टिंग मोड की शुरूआत भी कर चुका है.
टेकक्रंच ने कंपनी की योजनाओं से परिचित सूत्रों के हवाले से बताया कि यह फीचर फिलहाल बीटा मोड में है और इसलिए इसकी सार्वजनिक रूप से घोषणा नहीं की गई है, क्योंकि यह अभी व्यापक स्तर पर उपलब्ध नहीं है. जब यह फीचर लौन्च होगा तो नया व्हाट्सएप ई-वालेट प्लेटफौर्म पेटीएम और पेमेंट फीचर वाले मैसेजिंग सेवाओं को कड़ी चुनौती देगा. खासतौर से गूगल द्वारा हाल में लौन्च किए गए तेज वालेट को इससे कड़ी चुनौती मिलेगी.
यह भुगतान सेवा यूपीआई (यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) के माध्यम से काम करेगी और कई बैंकों का इसे समर्थन मिलेगा, जिनमें भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक और ऐक्सिस बैंक शामिल हैं. बीटा परीक्षकों ने पाया है कि व्हाट्सएप का इंटरफेस समर्थन वाले बैंकों की बड़ी सूची दिखा रहा है और व्हाट्सएप के सेटिंग्स मेन्यू में पेमेंट फीचर का विकल्प दिया गया है.
कैसे भेज सकेंगे पैसे
इस फीचर को अटैचमेंट मेन्यू के जरिये चैट विंडो में एक्सेस किया जा सकता है. बताया जा रहा है कि यह विकल्प इसके साथ गैलरी, वीडियो और डौक्यूमेंट में भी उपलब्ध होगा. इसमें पेमेंट्स पर क्लिक करते ही डिस्कलेमर विंडो खुल जाएगा. इसके बाद बैंकों की लिस्ट आएगी और आप उनमें से अपने बैंक का चुनाव कर सकते हैं.
अपने बैंक अकाउंट पर क्लिक करते ही यह यूपीआई से कनेक्ट हो जाएगा. अगर आपने अब तक यूपीआई प्लेटफौर्म का इस्तेमाल नहीं किया है तो आपसे authentication पिन क्रिएट करने के लिए कहा जाएगा. अगर यूपीआई अकाउंट नहीं है तो इसे बनाने के लिए कहा जाएगा.
आप यूपीआई ऐप या अपने बैंक की वेबसाइट के जरिये यह अकाउंट बना सकते हैं. हालांकि पैसा भेजने और पाने वाले दोनों के पास व्हाट्सएप पेमेंट फीचर होना चाहिए.
फिलहाल यह आईओएस एंड्रौयड पर चुनिंदा व्हाट्सएप बीटा यूजर्स के लिए उपलब्ध है. इसका इस्तेमाल कर वे सरकार के यूपीआई स्टैंडर्ड का इस्तेमाल कर पैसा भेज और मंगा सकते हैं. यह फीचर ios के लिए व्हाट्सएप वर्जन 2.18.21 पर और एंड्रौयड के लिए 2.18.41 पर उपलब्ध होगा. माना जा रहा कि इस नए फीचर्स के इस्तेमाल से देश में डिजिटल पेमेंट को काफी रफ्तार मिलेगी.
VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
इन दिनों कई छोटे पर्दे के कलाकार बौलीवुड में एंट्री के लिए तैयार हैं. जहां अंकिता लोखंडे फिल्म ‘मणिकर्णिका’ में नजर आएंगी तो वहीं मौनी रौय फिल्म ‘गोल्ड’ से अपना डेब्यू करने को तैयार हैं. इस कड़ी में अब टीवी सीरियल ‘ससुराल सिमर का’ से मशहूर हुई अदाकारा दीपिका कक्कड़ का भी नाम जुड़ गया है.
बता दें, दीपिका बहुत ही जल्द बौलीवुड में जेपी दत्ता की अगली फिल्म ‘पलटन’ से अपना डेब्यू करने जा रही हैं. इस बात की जानकारी खुद दीपिका ने अपने इंस्टाग्राम पर दी है. दीपिका इंस्टाग्राम पर पलटन का पोस्टर शेयर करते हुए लिखा, ‘इससे बेहतर और क्या हो सकता है कि मेरी पहली फिल्म जेपी दत्ता के साथ है. पलटन का हिस्सा बनना बहुत ही सम्मान की बात है.’
जेपी दत्ता ने एक बयान में पलटन के बारे में कहा था फिल्म उन रिश्तों के बारे में है जो जवान पीछे छोड़ जाते हैं और इससे परिवारों पर कैसा असर पड़ता है बौर्डर में जवानों के प्यार के बारे में दिखाया गया था लेकिन पलटन में उनके पैरेंट्स और भाई-बहनों के बारे में भी दिखाया जाएगा इसके साथ ही युद्ध के समय जवानों के भाईचारे को भी फिल्म में दिखाया जाएगा.
जवानों की जिंदगी पर आधारित इस फिल्म में हर्षवर्धन राणे, अर्जुन रामपाल, गुरमीत चौधरी, सिद्धांत कपूर, सोनल चौहान और ईशा गुप्ता जैसे स्टार्स नजर आएंगे. इससे पहले जेपी दत्ता ‘बौर्डर’ और ‘एलओसी करगिल’ जैसी फिल्में बना चुके हैं.
बता दें दीपिका ने 2011 से 2017 तक ‘ससुराल सिमर का’ में लीड कैरेक्टर सिमर का किरदार निभाया था. ये सीरियल सुपरहिट रहा था, और सिमर के किरदार को बहुत पसंद भी किया गया था. दीपिका कक्कड़ शोएब इब्राहिम को डेट कर रही हैं दोनों साथ में ससुराल सिमर का में काम करते थे. इन दिनों दीपिका ‘एंटरटेनमेंट की रात’ में नजर आ रही हैं, और दर्शकों को हंसाने का काम कर रही हैं. ‘पलटन’ की शूटिंग इन दिनों चंडीगढ़ में चल रही है. फिल्म में सोनल चौहान और ईशा गुप्ता भी हैं.
VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
अपनी बल्लेबाजी से दुनिया के दिग्गज गेंदबाजों को दहशत में रखने वाले वेस्टइंडीज के क्रिकेटर क्रिस गेल लग्जरी लाइफ जीते हैं. आपने उन्हें अक्सर महंगी गाड़ियों में घूमते देखा होगा. गेल के पास मर्सडीज, औडी और फरारी समेत विंटेज रौल्स रौयस जैसी बेशकीमती कार हैं. गेल आज करोड़ों के घर में रहते हैं लेकिन कभी उनके पास रहने की टीन का घर होता था. उनके पास खाने के लिए पैसे तक नहीं होते थे. तंग हालत के चलते गेल पढ़ाई तक पूरी नहीं कर सके.
गेल खुद अपनी औटोबायोग्राफी में इस बात का खुलासा कर चुके हैं कि बचपन में उन्होंने खाली बोतलों को कचरे से बीनकर उन्हें बेचा. इतना ही नहीं उन्होंने एक वक्त के खाने के लिए कई बार चोरी भी की.
तिहरा शतक ठोक जब लारा को कर दिया था चिंतित
गेल ने ‘सिक्स मशीन: आई डोंट लाइक क्रिकेट…आई लव इट’ किताब में लिखा है, ‘जब ब्रायन लारा उस मैच में चार रन पर आउट हो गए थे तब वह ड्रेसिंग रूम में बैठकर किताब पढ़ रहे थे. थोड़ी थोड़ी देर में वह बालकनी में जाकर स्कोरबोर्ड देखते और फिर आकर बैठ जाते. रामनरेश सरवन उन्हें देख रहा था. जितनी बार ब्रायन बाहर आकर मेरा स्कोर देखते, उनकी चिंता बढ़ जाती.
जब मैं लंच और चाय के दौरान आया तो उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा. कोई सलाह नहीं दी कि ऐसे ही खेलते रहो या टीम के लिए बड़ा स्कोर बनाओ. जब मैं वापस गया तो फिर वह कुछ देर ड्रेसिंग रूम में और कुछ देर बालकनी में आकर मेरा स्कोर देखने लगे.’ हालांकि गेल 317 रन पर आउट हो गए और लारा का 400 रन का रिकौर्ड नहीं तोड़ सके.
बाएं हाथ के इस बल्लेबाज के अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन पर अगर नजर डालें, तो उन्होंने 103 टेस्ट मैचों की 182 पारियों में 11 बार नाबाद रहते हुए 7215 रन बनाए हैं. इस दौरान गेल ने 15 शतक, 2 दोहरे शतक और 37 अर्धशतक जड़े. गेल का टेस्ट में सर्वाधिक स्कोर 333 रहा है. वहीं 275 वनडे मुकाबलों में गेल 85.57 के स्ट्राइक से 9420 रन बना चुके हैं. इस दौरान गेल 22 शतक और 48 फिफ्टी लगा चुके हैं. गेल टी20 के शानदार बल्लेबाज माने जाते हैं और ये उन्होंने इस फौर्मेट में 2 शतक लगाकर साबित भी किया है. गेल ने टी20 में 2 शतक और 13 अर्धशतक की मदद से 1589 रन बनाए हैं.
हालांकि गेल फिलहाल किग्स इलेवन पंजाब के लिये आइपीएल में खेल रहे हैं, नीलामी के दौरान तो ऐसा लग रहा था कि इस साल आईपीएल क्रिस गेल के बगैर ही खेला जाएगा. पहले दो दिन क्रिस गेल के अनसोल्ड जाने के बाद उनके फैंस भी निराश हो गए थे, लेकिन अंतिम समय में उन्हें बेस प्राइज पर पंजाब द्वारा खरीद लिया गया. पंजाब की टीम ने गेल की तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा, ”पंजाब आने के लिए क्रिस गेल तो बहुत पहले से ही तैयार बैठे हैं”.
VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.
संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘पद्मावत’’ के सिनेमाघरों में प्रदर्शन की तारीख बदलने की वजह से 2018 में प्रदर्शित होने वाली सभी फिल्मों का गणित गड़बड़ा गया है. फिल्म ‘पद्मावत’ पहले 01 दिसंबर 2017 को प्रदर्शित होनी थी, मगर विवादों के चलते यह फिल्म 25 जनवरी को प्रदर्शित हुई, जिसके बाद ‘पैडमैन’‘ अय्यारी’, ‘परमाणु’, ‘परी’ सहित दो दर्जन से अधिक फिल्मों के सिनेमघरों में पहुंचने की तारीखें बदल गयी.
अब खबर है कि वासु भगनानी ने अपनी ‘‘पूजा इंटरटेनमेंट’’ के बैनर तले बनी आलिया सेन शर्मा निर्देशित रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘दिल जंगली’’ को सोलह फरवरी की बजाय नौ मार्च को प्रदर्शित करने का फैसला लिया है. फिल्म ‘‘दिल जंगली’’ में तापसी पन्नू के संग साकिब सलीम की जोड़ी है.
‘‘पूजा इंटरटेनमेंट’’ से जुड़े सूत्रों के अनुसार पहले ‘अय्यारी’ 25 जनवरी को प्रदर्शित होने वाली थी, उस वक्त ‘‘दिल जंगली’’ को 16 फरवरी को प्रदर्शित करने का फैसला किया गया था. फिर ‘अय्यारी’ को नौ फरवरी को प्रदर्शित होना था, तब भी ‘दिल जंगली’ की तारीख नहीं बदली गयी. लेकिन अब जबकि ‘‘अय्यारी’’ सोलह फरवरी को प्रदर्शित हो रही है, तो फिल्म ‘‘दिल जंगली’’ को 9 मार्च को प्रदर्शित करने का निर्णय लिया गया, जिससे दोनो फिल्मों को नुकसान की बजाय फायदा हो सके. सूत्रों के अनुसार फिल्म ‘दिल जंगली’ के निर्माताओं का मानना है कि एक फिल्म का भविष्य दर्शक ही तय करते हैं, इसलिए वह नहीं चाहते हैं कि दोनों फिल्में आपस में टकराएं.
बहरहाल, वासु भगनानी के इस निर्णय पर खुशी का इजहार करते हुए फिल्म ‘‘अय्यारी’’ के निर्माता जयंतीलाल गाड़ा ने कहा है- ‘‘इस इंडस्ट्री में एक दूसरे की मदद कम लोग ही करते हैं, पर एकजुटता लंबा रास्ता तय करती है. हम वासु भगनानी और पूजा इंटरटेनमेंट की सराहना करते हैं कि उन्होने ‘दिल जंगली’ के प्रदर्शन की तारीख आगे खिसका दी. सभी फिल्मों को फलने फूलने के लिए सिनेमाघरों में सही जगह की जरुरत होती है. पर इस बात को कोई समझ नही पा रहा है. हम फिल्म निर्माताआओं की तुलना में अधिक सराहना करते हैं.’’
इसी मसले पर वासु भगनानी कहते हैं- ‘‘एक निर्माता और फिल्मकार के लिए उसकी फिल्म उसका प्रिय बच्चा होता है. और हम अपने बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ चाहते हैं. एक निर्माता की हैसियत से मैं बौक्स औफिस के दबावों को बेहतर ढंग से समझता हूं. जरुरी है कि दूसरे निर्माता भी इस तथ्य को समझें. सभी फिल्म को पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए, इसीलिए हमने अपनी फिल्म को 9 मार्च को लाने का फैसला किया है. जिससे हमारी फिल्म के साथ ही सभी फिल्मों को दर्शक मिल सकें.’’
VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTubeचैनल.