Download App

टीवी व स्मार्टफोन नहीं पेरैंट्स हैं जिम्मेदार

साल के आखिरी महीने यानी दिसंबर 2017 में दिल्ली से सटे गौतमबुद्घनगर के ग्रेटर नोएडा में गौड़ सिटी सोसायटी में 15 वर्षीय किशोर बेटे ने अपनी मां और बहन की सिर्फ इस बात पर हत्या कर दी कि उसे पढ़ाई पर मां की डांट और छोटी बहन को मिल रहे ज्यादा प्यार पर बहुत गुस्सा आता था. जरा सोचिए, क्या एक 15 साल का मासूम मन इतना हिंसक हो सकता है कि अपने ही घर में यह खूनी खेल खेले. सच तो यही है, यही हुआ है. लेकिन सवाल है, क्यों?

पेन स्टेट शेनंगो में मानव विकास और परिवार पर किए गए अध्ययन के सहयोगी प्रोफैसर विलियम मैकग्यूगन के मुताबिक, जो मातापिता अपने बच्चों को नजरअंदाज करते हैं वे बच्चे हिंसक प्रवृत्ति के होते हैं. और यह बात दुनिया के हर देश, हर परिवार व समाज पर लागू होती है. आज परिवार और पेरैंट्स के सामने भी यही समस्या सब से बड़ी बन कर उभरी है कि उन के बच्चे हिंसक होते जा रहे हैं. गौड़ सिटी वाले मामले में भी जाहिर है बच्चे को लगता था कि उस की मां उसे नजरअंदाज करती थी. इस का मतलब उपरोक्त अध्ययन बिलकुल सही इशारा कर रहा है कि अगर बच्चे पेरैंट्स द्वारा नजरअंदाज किए जाएंगे तो इस के परिणाम हिंसक होंगे.

पेरैंट्स की गलती

अभिभावक और बाल मनोवैज्ञानिक तकनीक, स्मार्टफोन और इंटरनैट के सिर सारा दोष यह कह कर मढ़ देते हैं कि जब से ये गैजेट और इंटरनैट बच्चों के हाथ आया है, तभी से बच्चे हिंसक व गुस्सैल होते जा रहे हैं. हो सकता है किसी हद तक यह बात सच हो लेकिन फिर भी यह अधूरा सच होगा क्योंकि जब बच्चे का जन्म होता है और वह धीरेधीरे बढ़ता है तब तक उसे तकनीक और इंटरनैट की दुनिया से कोई वास्ता नहीं होता. लेकिन जब वह खिलौने, चित्र और आवाजें पहचानने लगता है तो अभिभावक उस के साथ समय बिताने के बजाय उसे टीवी के कार्टून्स, इंटरनैट के वीडियो और स्मार्टफोन के संसार से परिचित करा देते हैं. हां, सिर्फ परिचय के लिए ही नहीं कराते, बल्कि दैनिक स्तर पर उन्हें उस की लत लगा देते हैं ताकि उन्हें अपने कामों की फुरसत मिल सके.

lifestyle

जब यह लत बच्चे के मन को घेर रही होती है, उस समय पेरैंट्स यह सोच कर खुश हो रहे होते हैं कि उन का बच्चा मोबाइल में बिजी हैं और उन्हें अपने लिए या औफिस के काम के लिए समय मिल रहा है. हालांकि, जब वे बच्चे के साथ थोड़ा सा समय साथ बिताने के लिए उस से गैजेट छीनना चाहते हैं तब वह रोनेचिल्लाने लगता है. और अब वह उन के बिना खेलने से भी इनकार कर देता है. तब जा कर पेरैंट्स को इस बात का एहसास होता है कि उन्होंने बच्चे को समय न दे कर बड़ी भूल की है.

आत्महत्या और यौनशोषण

जब बच्चों को चिकित्सक या काउंसलर की जरूरत पड़ने लगे तो समझ जाइए कि हालत इस से भी बदतर हो सकती है. मोबाइल गेम्स एडिक्शन उसे हिंसक कृत्यों, आत्महत्या या यौनशोषण का शिकार भी बना सकती है.

अमेरिका में हुई सैंटर्स फौर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवैंशन की रिसर्च बताती है कि किशोर उम्र के बच्चों में आत्महत्या की दर 2 दशकों तक गिरने के बाद 2010 से 2015 के बीच बढ़ गई.

ये संकेत बताते हैं कि इंटरनैट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का बढ़ता इस्तेमाल इस की एक वजह हो सकती है. 17 साल की काइतलिन हर्टी अमेरिका के कोलोराडो हाईस्कूल की सीनियर छात्र है, उस के मुताबिक, ‘‘कई घंटों तक इंस्टाग्राम की फीड को देखने के बाद मुझे मेरे बारे में बहुत बुरा महसूस हुआ, मैं खुद को अलगथलग महसूस कर रही थी.’’ जाहिर है यह अकेलापन ही कई बार अवसाद या आत्महत्या की मनोदशा की ओर ढकेल देता है.

क्लिनिकल साइकोलौजिकल साइंस जर्नल में छपी रिसर्च के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 36 फीसदी किशोरों ने अत्यंत निराशा व दुख की अवस्था का सामना करने के साथ ही आत्महत्या पर विचार करने की बात भी मानी. रिसर्च यह साफ करती है कि जो लोग सोशल मीडिया का कम इस्तेमाल करते हैं उन के मुकाबले इन लड़कियों के तनाव में रहने की प्रवृत्ति 14 प्रतिशत ज्यादा दिखाई दी.

रिसर्च की लेखिका ज्यां ट्वेंगे सैन डिएगो की यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की प्रोफैसर हैं. उन का कहना है, ‘‘हमें यह सोचना बंद करना होगा कि मोबाइल फोन नुकसानदेह नहीं है. यह कहने की आदत बनती जा रही है कि अरे, ये तो सिर्फ अपने दोस्तों से संपर्क रख रहे हैं. बच्चों के स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर नजर रखना जरूरी है और साथ ही, उसे उपयुक्तरूप से सीमित करना भी.’’

इंटरनैट के सहारे बढ़ता बालशोषण भी एक बड़ी समस्या है. एंटीवायरस मेकर्स कंपनी मैकऐफी की ओर से कराए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि इंटरनैट पर छोटे बच्चों के शिकारी खुलेआम घूम रहे हैं. वे लोग ऐसे बच्चों को बहलाफुसला कर उन से अपना मतलब साधते हैं. इंटरनैट पर दोस्ती बढ़ाने के बाद उन का यौनशोषण किया जाता है और कई मामलों में इसी के जरिए अपहरण भी कर लिया जाता है.

lifestyle

दरअसल, अब बच्चों के पास स्मार्टफोन से ले कर आईपैड तक हैं जिन से सोशल नैटवर्किंग साइटों पर लौगइन किया जा सकता है. बच्चे इन उपकरणों की सहायता से चौबीसों घंटे इंटरनैट से जुड़े रहते हैं. इन सब से बचने के लिए पेरैंट्स को बच्चे के साथ लगातार संवाद बरकरार रखना जरूरी है. वरना, वे वर्चुअल दुनिया में खो कर आत्महत्या या यौनशोषण की ऐसी अंधेरी गली में खो जाएंगे जहां से वापस आना उन के लिए आसान नहीं होगा.

पढ़ने की आदत डालें

इंटरनैट के आगे बेबस होने के बजाय अगर अभिभावक ठान लें तो बच्चों को इंटरनैट के संसार से बाहर कर उन्हें किताबी दुनिया में ला सकते हैं. इस के लिए उन में पढ़ने की आदत विकसित करनी होगी क्योंकि किताबें किसी भी बच्चे के मन को दूषित नहीं करती हैं, न ही भटकाती हैं.

जब पत्रिका और अखबार घर पर बच्चे पढ़ते हैं तो उन्हें सिर्फ सार्थक जानकारियां मिलती हैं और वे रचनात्मक बातें सीखते हैं लेकिन अब मोबाइल हाथ में होने से उन से किताबें व पत्रिकाएं छीन ली गई हैं. अगर अभिभावक चाहें तो उन्हें फिर से किताबों के रोचक संसार से जोड़ सकते हैं. इस से वे सकारात्मक और ज्ञानवर्धक बातें ही सीखेंगे और नुकसानदेह तकनीकी दखल उन की जिंदगी से दूर होगा.

टैक्नो नजर जरूरी

अगर बच्चे गैजेट की दुनिया से बाहर ही नहीं आना चाहते हैं और इंटरनैट के मोह में पूरी तरह फंस चुके हैं तो उन्हें इस से बचाने के लिए आप को टैक्नोसेवी होना पड़ेगा और कुछ सिक्योरिटी फिल्टर लगाने होंगे ताकि वे गलत दिशा में न भटकें. कई बार बच्चे पेरैंट्स को तकनीकी भाषा के जाल में फंसा कर यह समझा देते हैं कि वे स्मार्टफोन पर स्कूल का प्रोजैक्ट या पढ़ाई कर रहे हैं. इसलिए पेरैंट्स भी अपडेट रहें तकनीकी मोरचे पर बच्चों का मार्गदर्शन करने के लिए.

यह बात सच है कि कई बार जानकारियां जमा करने के लिए इंटरनैट की जरूरत पड़ जाती है और अब बच्चे लाइब्रेरी में जा कर इनसाइक्लोपीडिया या मोटीमोटी किताबों में जानकारी खोजने के बजाय एक क्लिक पर हासिल कर लेना ज्यादा समझदारी का काम समझते हैं.

सब से सही तो यह रहेगा कि जब वे गैजेट का इस्तेमाल करें, आप उन के साथ ही बैठें. छोटी आयु के बच्चों को मातापिता या अन्य किसी बड़े पारिवारिक सदस्य के साथ बैठा कर ही सर्फिंग करानी चाहिए और उन को एक निश्चित समय तक ही इन का प्रयोग करने दें. इंटरनैट पर कई तरह के फिल्टरिंग और ब्लौकिंग सिस्टम भी हैं, जिन में सुविधा होती है कि आप ऐच्छिक साइट्स ही खोल सकें और अनचाही व अनुपयोगी वैबसाइट्स सर्फ ही न की जा सकें.

बेशक बच्चों की शैक्षिक यात्रा में आज कंप्यूटर, इंटरनैट और स्मार्टफोन जरूरी टूल्स बन चुके हैं लेकिन जानकारियों के अथाह सागर और मनोरंजन के सोर्स के रूप में इंटरनैट बच्चों के लिए कहीं घातक न हो जाए, इस के लिए तो पेरैंट्स को ही सजग रहना होगा.

हर चीज के अच्छे और बुरे दोनों पहलू होते हैं. अगर अच्छे पहलू को आप फौलो करते हैं, तो आप को उस का सही फायदा मिलता है और अगर बुरे पहलू को फौलो करते हैं, तो नुकसान और भटकाव के अलावा आप को कुछ नहीं मिलता.

आजकल के बच्चों में स्मार्टफोन और सोशल मीडिया की आदत को देखते हुए यह लाइन उन पर बिलकुल फिट बैठती है. अभिभावक होने के नाते अब बेहतरी इसी में है कि बच्चे को समय दें और उन के साथ कदम से कदम मिला कर तकनीकी चुनौतियों का सामना करें.

वर्चुअल जगत का मनोवैज्ञानिक पहलू

मैंटल हैल्थ व बिहेवियर साइंस से जुड़े विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कच्ची उम्र के बच्चे, जो सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते, इंटरनैट के जंगल में भटक जाते हैं. स्मार्टफोन में दिखने वाली असीमित सामग्री बच्चों के मन में उथलपुथल पैदा कर देती है. बच्चे व युवा इन जानकारियों का इस्तेमाल रचनात्मक कार्यों में न के बराबर कर पाते हैं और सारा दिन फेसबुक, ट्विटर, स्काइप व सब से गंभीर पोर्नोग्राफिक साइटों को ब्राउज करने में लगे रहते हैं.

कोई क्लास बंक करता है तो कोई औनलाइन गेम खेलने व इंटरनैट ब्राउज करने में समय बिताता है. और तो और, सड़क पर भी वह मोबाइल पर गेम खेलने में व्यस्त रहता है. कई बार तो बच्चे अपने पेरैंट्स के साथ मनोचिकित्सक या डाक्टर के पास जाते हैं तो पता चलता है कि वे तो पूरी तरह वर्चुअल दुनिया में खोए हैं.

पेरैंट्स को समझना चाहिए कि बच्चों को इंटरनैट की दुनिया में धकेलने की गलती उन्होंने की है. और अब चिकित्सक या काउंसलर की जरूरत पड़ी है तो इस के लिए वे ही जिम्मेदार हैं. बेहतर यही है कि बच्चों को मोबाइल से दूर रखें. सप्ताह में एक दिन सिर्फ छुट्टी के दिन ही मोबाइल उन के हाथ में दें. मोबाइल सिर्फ फोन या शब्दकोष की तरह इस्तेमाल हो. बच्चा इंटरनैट पर क्या ब्राउज करता है, उस पर भी नजर रखें. बच्चों को तकनीक का सही इस्तेमाल करना सिखाएं. उन्हें किताबें या कहानियों को पढ़ना सिखाएं.

पेरैंट्स बच्चों के साथ समय बिताने से बचने के लिए उन्हें स्मार्टफोन व तकनीक का लालच दे कर उस में उलझा देते हैं, बाद में यही गैजेट्स लत बन कर उन्हें अपनी चपेट में ले लेते हैं.

इंटरनैट व स्मार्टफोन के जंगल

बच्चों के हिंसक प्रवृत्ति के होने का एक पहलू यह भी है कि आजकल के पेरैंट्स ही बच्चों को टीवी, हिंसक गेम्स, स्मार्टफोन की असीमित दुनिया व इंटरनैट के जंगल में भटकने के लिए छोड़ते हैं जिस के परिणाम आज हादसों की शक्ल में सामने आ रहे हैं. कभी वे ब्लू व्हेल्स जैसे हिंसक गेम्स की चपेट में आ कर आत्महत्या कर रहे हैं तो कहीं चैटिंग और पोर्न के जाल में फंस कर अपने मासूम मन के अलावा अपने भविष्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं.

इंटरनैट में लिप्त बच्चों का बचपन रचनात्मक कार्यों की जगह स्मार्टफोन और इंटरनैट के जंगल में गुम हो रहा है. सूचना तकनीक से बच्चे और युवा इस कदर प्रभावित हैं कि एक पल भी वे स्मार्टफोन से खुद को अलग रखना गवारा नहीं समझते. इन पर हर समय एक तरह का नशा सा सवार रहता है. इसे ‘इंटरनैट एडिक्शन डिसऔर्डर’ भी कहा जाता है.

VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

एग फ्रीजिंग कैंसर रोगियों के लिए वरदान

भारत में हर साल करीब 1.25 करोड़ लोग कैंसर से पीडि़त पाए जाते हैं. इन में 5,99,000 से अधिक महिलाएं होती हैं. आंकड़े दर्शाते हैं कि इन में से करीब 50 प्रतिशत कैंसर रोगियों की उम्र 50 वर्ष से कम होती है.

युवा कैंसर रोगियों की इस तेजी से बढ़ती संख्या से उन की प्रजनन क्षमता को संरक्षित रखने को ले कर चिंता व्यक्त की जाने लगी है. अब तक तो किसी कैंसर पीडि़त को ले कर चिकित्सकों का मुख्य फोकस इस पर होता था कि कैंसर कोशिकाओं को हटा कर किसी तरह से मरीज की जान बचाई जाए. प्रजनन और बच्चे पैदा करने की क्षमता आदि के बारे में कम ही ध्यान दिया जाता था. परंतु, प्रौद्योगिकी में सुधार और चिकित्सा में प्रगति होने के साथ अब मरीज की जान बचाने के अलावा यह भी देखा जाने लगा है कि इलाज के बाद उस व्यक्ति को संतानोत्पत्ति योग्य भी बनाया जाए.

कैंसर रोगी अब अकसर बचा लिए जाते हैं और चिकित्सकीय प्रगति इस बीमारी पर भारी पड़ने लगी है. ऐसे में कैंसर से बचाए जा चुके लोग अब संतानोत्पत्ति और पारिवारिक जीवन के बारे में सोच सकते हैं.

कैंसर और बांझपन का खतरा

एक कैंसर रोगी के बांझपन का खतरा कैंसर के प्रकार और उसे दिए जा रहे विशेष उपचार पर निर्भर करता है. विभिन्न प्रकार के कैंसर और उन के उपचार, जैसे- कीमोथेरैपी, रेडिएशन थेरैपी, सर्जरी, टारगेटेड और जैविक (इम्यून) चिकित्सा, बोन मैरो या स्टेम सैल प्रत्यारोपण आदि गर्भधारण करने में रोगी की क्षमता को विभिन्न तरह से प्रभावित कर सकते हैं. ऊसाइट (प्रजनन में शामिल जर्म सैल) पर विषैले प्रभाव के कारण कीमोथेरैपी एक कैंसर रोगी की प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है.

रोगी की आयु, दवाओं की मात्रा और उन के प्रकार के आधार पर नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है. कीमोथेरैपी में प्रयोग होने वाली मेथोट्रेक्जेट जैसे एंटीमेटाबोलाइट्स से बांझपन का कम खतरा होता है, जबकि साइक्लोफौस्फेमाइड जैसे एल्काइलेटिंग एजेंटों से यह खतरा बढ़ जाता है. रेडिएशन थेरैपी से बांझपन का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन ओवरी ट्रांसपोजीशन जैसी विधियां सुरक्षित हैं, जिन में ओवरीज को सर्जरी के जरिए रेडिएशन वाले क्षेत्र से अस्थायी तौर पर हटा दिया जाता है. जोखिम को कम करने के लिए रेडिएशन शील्डिंग का प्रयोग किया जाता है. यदि प्रजनन अंग में कोई बदलाव न हुआ हो, तो कैंसर की सर्जरी में आमतौर पर बांझपन का खतरा कम ही रहता है.

स्तन कैंसर या अन्य किसी कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली हार्मोन थेरैपी एक महिला की बच्चे पैदा करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है. टेमहृक्सीफैन लेने वाली महिलाएं गर्भवती हो सकती हैं, लेकिन इस से शिशु में जन्मजात दोष हो सकते हैं, इसलिए इसे लेते समय प्रभावी बर्थ कंट्रोल का उपयोग करने की सलाह दी जाती है. अन्य हार्मोन चिकित्साएं अंडे बनने की प्रक्रिया को पूरी तरह से रोक सकती हैं क्योंकि ऐसी महिला रोगी को एक तरह से अस्थायी रजोनिवृत्ति या मेनोपौज की स्थिति में रखा जाता है. कुछ नए उपचारों के बांझपन संबंधी जोखिम अस्पष्ट रहते हैं. यह सच है कि कई टारगेटेड उपचार एंजाइमों को रोकते हैं, लेकिन उन सभी एंजाइमों की प्रतिक्रिया के बारे में अधिक जानकारी नहीं है.

क्या होती है एग फ्रीजिंग

युवा कैंसर रोगियों के लिए एग फ्रीजिंग तकनीक किसी वरदान से कम नहीं है, विशेषकर उन के लिए जो विवाह योग्य हैं. यह एक सामान्य तथ्य है कि कीमोथेरैपी, रेडिएशन थेरैपी और सर्जरी आदि के दौरान कैंसर पीडि़त स्त्रियों के डिंब या एग्स नष्ट हो जाते हैं जिस से प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. इसलिए, कैंसर की प्रकृति, इलाज की विधि, और संबंधित खतरों को ध्यान में रखते हुए एक युवा महिला रोगी को एग फ्रीजिंग की सलाह दी जा सकती है.

क्या है प्रक्रिया

क्रायोप्रिजर्वेशन महिलाओं में प्रजनन क्षमता को बरकरार रखने की एक जांचीपरखी विधि है और इस में काफी हद तक सफलता मिल जाती है. यह ऐसे मरीजों के लिए लाभकारी विधि है जिन्होंने अभी अपने परिवार की योजना नहीं बनाई है, लेकिन आगे ऐसी इच्छा रखते हैं. इस प्रक्रिया में शुक्राणुओं के संपर्क से बचे परिपक्व एग्स को अलग कर शीतलन हेतु सुरक्षित कर लिया जाता है. इस प्रक्रिया को एग बैंकिंग भी कह सकते हैं.

फ्रोजन एग को बाद में एक शुक्राणु से निषेचित करा कर उस महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है, जो शिशु को जन्म देने की इच्छुक है. हालांकि, कुछ मामलों में, जो कैंसर एस्ट्रोजन पर निर्भर हैं, इस विधि को विशेष सावधानी से प्रयोग में लाया जाता है, ताकि घूम रहा एस्ट्रोजन कैंसर को आगे न फैला दे.

उदाहरण के तौर पर, यदि एक 32 वर्षीया अविवाहित महिला को स्तन कैंसर है. उस की कीमोथेरैपी से पहले ही 18 अंडे फ्रीज किए हुए थे. वह 3 साल बाद वापस लौटती है और इस बार उस की शादी हो चुकी है. उस का गर्भाशय तैयार था, अंडे डीफ्रीज किए गए, और उस के पति से प्राप्त शुक्राणुओं का उपयोग कर के अंडों को निषेचित यानी फर्टिलाइज किया गया. इस प्रक्रिया

को इंट्रोसिस्टोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (आईसीएसआई) कहते हैं. इस से 8 भू्रण प्राप्त किए गए और 3 को उस महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया गया. अन्य भू्रणों को फ्रीज कर दिया गया. इस तरह से वह गर्भवती हो गई और अब उस के एक वर्ष का लड़का है. यदि वह दूसरे बच्चे के लिए फिर क्लिनिक आती है, तो फ्रीज किए गए बाकी भू्रण प्रयोग किए जा सकते हैं. यह किसी वैज्ञानिक उपलब्धि से कम नहीं है, जिस की सुविधा 5 वर्षों पहले तक हमारे देश में नहीं थी.

कैंसर के इलाज और रेडिएशन थेरैपी लेने के बाद किसी की प्रजनन क्षमता के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. इसलिए, एग फ्रीजिंग तकनीक के सहारे, ठीक हो चुके ऐसे कैंसर रोगियों से संतानोत्पत्ति की अपेक्षा की जा सकती है जिन की प्रजनन क्षमता भले ही खत्म हो चुकी हो. यह तकनीक निश्चिततौर पर कैंसरपीडि़त युवा महिलाओं के लिए एक वरदान की तरह है.

(लेखक ब्लूम आईवीएफ ग्रुप के मैडिकल डायरैक्टर हैं.)

VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

चिकित्सा शिक्षा में सुधार की जरूरत

अमेरिका में अब मैडिकल कालेजों में लड़कियों की संख्या लड़कों से ज्यादा हो गई है. अश्वेत, लैटिनो भी बढ़ने लगे हैं. अब तक अमेरिकी चिकित्सा क्षेत्र मेल डौमिनेटेड और व्हाइट डौमिनेटेड था. अब नए कालेज भी खुल रहे हैं और विविधता भी आ रही है जबकि मैडिकल शिक्षा महंगी है और स्टूडैंट लोन के बल पर पढ़ाई की जाती है.

भारत में चिकित्सा शिक्षा लड़खड़ा रही है. पहले जब तक सरकारी थी, पर्याप्त डाक्टर नहीं मिल रहे थे. अब प्राइवेट हो गई है तो पढ़ाने की मंडी की तरह हो गई है, जहां दाखिले से ले कर अंतिम परिणामों तक बोलियां लगती हैं.

दुनिया की नई मांग चिकित्सा सुविधाओं की है. सब से ज्यादा लाभदायक उद्योग चिकित्सा क्षेत्र ही है. समृद्ध देशों में मकानों और नौकरियों की कमी नहीं, अपने बढ़ते बुढ़ापे में देखभाल और दवाओं की कमी खल रही है. महिला डाक्टर ये रोल ज्यादा अच्छी तरह से अदा कर सकती हैं.

भारत का चिकित्सा क्षेत्र अमेरिका की ओर बहुत देखता है और ज्यादातर सफल डाक्टरों के पीछे उन के अमेरिकी अनुभव रहते हैं, जहां नई सोच और नई तकनीकों पर प्रयोग होते रहते हैं. वहां किसी भी तरह का सुखद बदलाव यहां असर डालता ही है और अमेरिकी मैडिकल कालेजों का बदलता रंग भारत की औरतों को भी प्रोत्साहित करेगा.

VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

इंटरनैट के नैट में फंसती औरतें

दुनिया भर में इंटरनैट टैक्नोलौजी का इस्तेमाल कर घरेलू चीजों को घर बैठे पहुंचाना असल में औरतों की शौपिंग की मूलभूत स्वतंत्रता और घूमने के अधिकार पर गहरा आघात है. मगर औरतें हैं कि यह समझ ही नहीं रहीं और न ही सोच पा रही हैं. वे सोच रहीं कि घर बैठे चीजें मिल रही हैं तो उन की आफत टली.

यही आफत तो औरतों का घर से निकलने का एक अनूठा उपाय था, जो पिछले 100 वर्षों में बड़ी मुश्किल से उन्हें मिला हुआ था वरना अनाज या सब्जी मंडी से सामान आदमी लाया करते थे. दूसरा फुटकर सामान फेरी वाले घरघर पहुंचाया करते थे. साडि़यां, जेवर सेठ व्यापारी घर ले जा कर ही दिखाया करते थे. अमेरिका में पिछली सदी में सेल्समैन पीठ पर 100-100  किलोग्राम वजन के संदूक उठा कर घरघर जाते थे और कढ़ाई की गई शौलों से ले कर कांच की मूर्तियां तक बेचा करते थे.

यह अधिकार तो बड़ी मुश्किल से मिला था कि औरतें सजधज कर खुद बाजारों में निकल सकती थीं और नई चीजों को देखने के बहाने अपने नए कपड़ों और जेवरों की नुमाइश भी कर आती थीं. आतेजाते कुल्फी और चाट का मजा भी पता चल जाता था. अब तो हर चीज की होम डिलिवरी है.

यह होम डिलिवरी या औनलाइन शौपिंग वैसी ही है जैसेकि लड़की को 10 फोटो दिखा कर कहा जाए कि इन में से एक को चुन लो, शादी कर लो, बच्चे पैदा करो और पूरी जिंदगी यों ही बंद माहौल में गुजार दो. औनलाइन शौपिंग सुविधा हो या न हो पर यह औरतों की महत्त्वपूर्ण स्वतंत्रता को छीन रही है.

डर यह है कि भीरु और अदूरदर्शी औरतें औनलाइन शौपिंग न अपना लें और कहीं इतना न अपना लें कि शोरूम और मौल ही बंद हो जाएं और अकेला तरीका औनलाइन शौपिंग रह जाए.

ठीक है, औनलाइन शौपिंग में पैसे बचते हैं पर ये पैसे बचाना भी किस काम का होगा जब बाहर निकलने की जरूरत ही न हो. औनलाइन पर तो सभी जा सकती हैं, इसलिए किसी के पास ऐक्सक्लूसिव सामान न होगा.

सब एक सा पहनेंगी, औनलाइन सस्ता, बिना क्वालिटी परखे सामान बरतेंगी और यदि किसी किट्टी पार्टी में मिली भीं तो वह किट्टी पार्टी औनलाइन बुकिंग पर व्हाट्सऐप संदेशों के जरीए बुक होगी.

खुद की महकती, मदमाती आवाज का इस्तेमाल भी यह मुआ औनलाइन कंप्यूटर या मोबाइल छीन लेगा. कल्पना कीजिए मुंह बंद, नाइटी में सारा दिन कैद, इंटरनैट के नैट में फंसी औरतों की आजादी होगी कहां?

VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

धर्म की आड़ में डराने की साजिश

हमारे समाज में फैले ज्यादातर अंधविश्वासों की जड़ में फुजूल के डर हैं और वे सारे डर ढोंगीपाखंडियों की देन हैं. दरअसल, जन्म से ही बारबार ऐसी घुट्टी पिलाई जाती है कि लोग आंखें मूंद कर ऊलजुलूल बातों पर भरोसा करने लगते हैं.

ज्यादातर लोगों में तालीम, सूझबूझ व नए नजरिए की कमी है, इसलिए 21वीं सदी में भी बहुत से लोगों की सोच बहुत पीछे व नीचे है. नतीजतन, वे रोजमर्रा के मसलों को खुद नहीं सुलझा पाते. कर्ज, गरीबी, बीमारी व बेकारी को भी वे अपने पापों का फल या बदकिस्मती का नतीजा मान कर बाबाओं व तांत्रिकों की शरण में जाते रहते हैं.

शातिर लोग आम जनता की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हैं. भाग्य, भगवान, पाप, अपशकुन, ग्रह चाल, दिशाशूल, शनि की साढ़ेसाती, राहूकेतु मारकेश, मूल, पंचक, भद्रकाल सर्पयोग, पितृदोष और वास्तुदोष में ऊलजुलूल खराबी बताते हैं, इसलिए कई तरह के डर लोगों के मन में जानबूझ कर डाले जाते हैं ताकि उन्हें मनमाने तरीके से भुनाया जा सके.

कई पुश्तों से इसी घंधे में लगे एक शख्स ने बताया कि असल बात तो यह है कि बगैर डर के तो कभी कोई अपनी जेब से कुछ निकालता ही नहीं इसलिए बच्चों का पेट पालने के लिए कुछ न कुछ जुगाड़ तो करना ही पड़ता है.

इसी गरज से धर्म का प्रचार करने वालों ने सदियों से लोगों को झांसा देने, डराने व उस डर को भुनाने की तमाम साजिशें रची हैं. कथाओं, प्रवचनों, किताबों व तसवीरों के जरीए तमाम तरह के झूठे किस्सेकहानियां फैलाई गईं. जीने से मरने तक में कर्मकांड कराने को बेहद जरूरी बताया गया. ग्रह शांति के उपाय, दानपुण्य, तीर्थ, पूजापाठ, गंडेतावीज, यंत्र, तंत्र और मंत्र बनाए गए.

गौरतलब है कि बुरा होने के डर से बचने के लिए पांखडियों द्वारा जो भी उपाय बताए जाते हैं, उन में से कोई भी ऐसा नहीं होता जो बगैर पैसा खर्च किए मुफ्त में पूरा होता हो. पूजापाठ व गंडेतावीज जैसे ज्यादातर उपाय बहुत खर्चीले होते हैं, फिर भी लोग डर के मारे उन्हें करतेकराते रहते हैं इसलिए धर्म का प्रचार करने वालों की दुकानें चलती रहती हैं.

नतीजतन, बहुत से कम पढ़ेलिखे, कमजोर, पिछड़े व भोलेभाले भक्तों का खुद पर यकीन ही नहीं रहा. वे मानने लगते हैं कि जो कुछ भी होता है वह सब भगवान की मरजी से होता है. एक पत्ता भी हिलता है तो ऊपर वाले की मरजी से ही हिलता है. उसी की मेहर पाने के चक्कर में फंस कर वे अपनी जेब हलकी करते रहते हैं और डराने वाले अपना घर भरते रहते हैं.

डर के चक्कर में वक्त की बरबादी व माली नुकसान ही नहीं होता बल्कि जहांतहां जवान औरतें ढोंगी संतमहंतों व बाबाओं वगैरह के चक्कर में फंस कर अपनी इज्जतआबरू गंवाती रहती हैं और बाद में पछताती हैं.

कुलमिला कर इस गोरखधंधे में फायदा डरा कर लूटने वाले मक्कारों का होता है और हर तरह से नुकसान डरपोक लोगों का होता है.

बढ़ती गई साजिश

लोगों के मन में डर बिठाने का गोरखधंधा इतने जोरों से फलफूल रहा है कि हमारे समाज में हिम्मती लोग उंगलियों पर गिनने लायक रह गए हैं. ज्यादातर पढ़ेलिखों के मन में भी तरहतरह के डर समाए रहते हैं इसलिए आने वाले हादसों व बुरे वक्त से बचने के लिए लोग अपनी उंगलियों में तरहतरह की अंगूठियां पहने रहते हैं.

किसी को डराने के मामले में काले रंग को सब से ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. मसलन किसी ने भी आज तक यमराज को नहीं देखा, लेकिन तसवीरों में उन्हें बड़ीबड़ी मूंछों वाला, काले रंग का, डरावना व भैंसे पर सवार दिखाया जाता है.

लोगों के मन में सब से ज्यादा डर शनि की खराब दशा होने का डाला जाता है ताकि खूब दान मिले व चढ़ावा आए.

नतीजतन, जहांतहां सड़क किनारे शनिदेव के काले मंदिर भी खूब धड़ल्ले से बन, बढ़ व फलफूल रहे हैं. शनिदान का उपाय करने के लिए उकसाया जाता है और आखिरकार लोग डर कर ठगों के झांसे में आ ही जाते हैं.

बेहिसाब हैं डर

धर्म के ठेकेदारों ने अपने फायदे के लिए तमाम तरह की गलतफहमियां लोगों के दिमाग में भर रखी हैं. ज्यादातर लोग उन से उबर ही नहीं पाते इसलिए उन को हर कदम, हर बात व हर काम में डर ही डर बना रहता है. बिल्ली रास्ता काट जाए तो हादसे का डर, बिल्ली मर जाए तो पाप लगने का डर और चलते समय अगर कोई छींक दे तो बुरा होने का डर सताने लगता है.

डर के साए में रह कर जीने से तरक्की रुकती है. उपाय कर के डर से नजात पाने के चक्कर में लोग लुटते रहते हैं. हमारे समाज में जानबूझ कर ऐसा माहौल बनाया गया है जिस से लोग फुजूल की बातों में उलझ कर डरे रहें, उन की ऊलजुलूल बातों को मानते रहें और अपनी हिफाजत व बचने के लिए पंडेपुजारियों को चढ़ावा चढ़ाते रहें.

हर किसी की जिंदगी में छोटेबड़े कई तरह के मसले आतेजाते रहते हैं. धर्म के धंधेबाजों ने हर मसले को कर्मों का फल व पिछले जन्मों के पाप से जोड़ रखा है ताकि दिमाग कुंद रहे. ऐसे तमाम लोग हैं जो अपने मसलों को सुलझाने के लिए पंडेपुजारियों के पास जाते हैं. यहीं से डराने व उपायों के नाम पर ठगने की शुरुआत होती है.

यह है नुकसान 

डर के इस गोरखधंधे से बहुत से सामाजिक व माली नुकसान हैं. डर के चलते ही हमारे समाज में तमाम तरह की रूढि़यां आज भी बरकरार हैं. लोगों के मन में डाले गए इस डर की वजह से ही अनगिनत दाढ़ीचोटी वाले मौज मार रहे हैं. इन की वजह से ही गरीब और गरीब हो रहे हैं.

जहांतहां भटकने, चढ़ावा चढ़ाने, दान कर के ग्रह की दशा सुधारने व पंडेपुजारियों को हलवापूरी खिलाने से कभी कोई मसला हल नहीं होता. डर कर भागने से कभी किसी की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आ सकता है.

सोचने की बात है कि यदि ऐसा कुछ होता तो दुनिया में कहीं भी कोई गरीब, बीमार व परेशान नहीं होता इसलिए सच को समझना जरूरी है.

आज विज्ञान का जमाना है. नए नजरिए से हर बात को तर्क की कसौटी पर कसना और परखना बेहद जरूरी है. पुरानी, गलीसड़ी, बेकार व बेमतलब की बातों को पीछे छोड़ें. उन से नाता तोड़ें. फुजूल के खौफ अपने मन में कभी न पालें. डराने वालों से दूर रहें. साथ ही उन्हें भूल कर भी बढ़ावा न दें. तालीम, चौकसी और जागरूकता ही इनसान को हिम्मती बनाती है.

VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

अंधविश्वास के नाम पर बलि चढ़ते लोग

राजस्थान तो जैसे अंधविश्वास में ही जीता रहा है. गांवढांबी की बात तो छोड़ो, शहरी पढ़ेलिखे भी अंधविश्वास में जी रहे हैं. कसबों और शहरों में हर शनिवार को दुकान, मकान, गाड़ी में नीबूमिर्च टांगने का अंधविश्वास जोरों पर है.

लोगों की सोच है कि इस से नजर नहीं लगती और धंधा सही होता है. मगर वे लोग यह भूल जाते हैं कि बड़ीबड़ी कंपनियां, होटल व दफ्तरों में नीबूमिर्च नहीं बांधे जाते तो क्या उन का धंधा नहीं चलता?

जो लोग शनिदेव के नाम पर नीबूमिर्च हर शनिवार को बेचते हैं, उन की बल्लेबल्ले है. वे लोग इस के 10 रुपए लेते हैं. साथ ही, सरसों का तेल भी लेते हैं.

एक किलो हरी मिर्च व एक किलो नीबू तकरीबन सौ रुपए में आता है. इन को बांध कर बेचने से ऐसे लोग एक हजार से 15 सौ रुपए कमाते हैं और तेल अलग से मिलता है. वह तेल दुकान पर बेच देते हैं.

कहने का मतलब है कि इस धंधे से जुड़े लोग हर शनिवार को 2 हजार रुपए कमाते हैं. अगर महीने में 4 शनिवार हैं तो 8 हजार रुपए कमा लेते हैं, सिर्फ 4 दिन में.

इन्हीं की तरह बाबा लोग जटा बढ़ा कर, तिलक लगा कर झोलीझंडा लिए राजस्थान के गांवढांणी से ले कर शहरों तक में दानदक्षिणा लेते दिख जाते हैं.

ये लोग भोलेभाले लोगों को ऊपर वाले के नाम पर डरा कर और अच्छे दिन का झांसा दे कर लूटते फिरते हैं.

SOCIETY

जैसलमेर शहर में सैकड़ों ऐसे बाबा दिख जाएंगे जो दिनभर भीख के नाम पर लोगों की जेबें हलकी करते हैं. इन बाबाओं का ठिकाना गड़सीसर सरोवर के पास है. वहां रात में ये भगवाधारी बाबा दारूमीट की दावत उड़ाते दिख जाते हैं. हर रोज यहां ऊपर वाले के नाम पर लिए गए पैसे से पार्टी होती है.

इन बाबाओं के साथ ही कई दिव्यांग भी होते हैं जो दिनभर सड़कों पर घिसटघिसट कर भीख मांगते हैं. वे भी इन बाबाओं के साथ मुर्गमुसल्लम और दारू में उड़ा देते हैं. सुबह होने पर ये लोग फिर भीख मांगने निकल पड़ते हैं.

राजस्थान में रामदेवरा, जसोल, देशनोक,  केलादेवी, गोगामेड़ी, खाटू श्यामजी, पुष्कर और ख्वाजा गरीब नवाज अजमेर में 12 महीने मेला लगता है. इन जगहों पर जाने वाले लोगों की जेबें कोई जूतों की रखवाली के नाम पर, तो कोई तालाब में मिट्टी निकालने के नाम पर, तो कोई रामरसोड़ा व पानी की प्याऊ के नाम पर और कोई गायों के चारेपानी के नाम पर ढीली करता है.

रामदेवरा में हर साल लाखों लोग आते हैं. राजस्थान में यह इलाका जैसलमेर जिले में पड़ता है. भादवा मेले में हर साल यहां तकरीबन 25-30 लाख लोग आते हैं.

रामदेवरा मंदिर के बाहर जूते खोलते हैं, तब वहां पर पहले से बैठे लोग कहते हैं कि आप आराम से दर्शन कर के आओ. हम जूतों की रखवाली करते हैं.

दर्शन के बाद जब लोग जूते लेने वापस आते हैं तो जूतों की रखवाली के नाम पर पैसे मांगे जाते हैं और खुशीखुशी लोग देते भी हैं.

इस के बाद वहां पर डायरियां ले कर घूम रहे धर्म के ठेकेदार तालाब से मिट्टी निकालने के नाम पर, रामरसोड़ा, प्याऊ और गायों के लिए चारापानी के नाम पर रुपए वसूलते हैं. पैसा न देने पर मारपीट तक की जाती है.

रामदेवरा मंदिर के बाहर जूतों की रखवाली कर रही कमला देवी ने कहा कि वह दिनभर में 4-5 हजार रुपए कमाती है. यह मेला 10 दिन तक चलता है और कमला देवी 10 दिन में तकरीबन 40 हजार रुपए कमाती है. उस का पति, बेटा, बेटी भी इसी काम में लगे होते हैं.

उन का कहना है कि हम जूतों की रखवाली करते हैं और लोग प्यार से 10-12 रुपए देते हैं. हम किसी से छीनते नहीं हैं. मगर वहां का नजारा देखें तब पता चले कि कैसे लूटा जाता है.

गांवोंढांणियों में तो अंधविश्वास इस कदर हावी है कि लोग बीमार पड़ने पर अस्पताल जाने के बजाय भोपों, तांत्रिकों की शरण में जाते हैं. भोपे उन्हें झूठ कहते हैं कि उन से फलां देवता रूठा है या फिर कहते हैं कि उन के स्वर्गवासी पिता, दादा, माता या कोई उन्हें परेशान कर रहा है. उस की आत्मा शांत नहीं है. ऐसे में भोपा उन के मरे हुए दादा, माता या पिता की मूर्ति बनवा कर उन के घर या खेत में लगवा देते हैं.

वहां रात्रि जागरण के अलावा दारूबकरे की दावत उड़ाई जाती है. अगर फिर भी उस परिवार की तकलीफ दूर नहीं होती तो भोपा कहता है कि मूर्ति सही नहीं चढ़ी. दोबारा पूरी कार्यवाही करनी पड़ेगी. फिर भी सही नहीं होता तो कहता है कि अब आप किसी और भोपे के पास जाओ.

भोपे न केवल झाड़फूंक करते हैं बल्कि भूतप्रेत को रोटी तक डलवाते हैं. मगर क्या विज्ञान के समय में यह अति नहीं है? कभी किसी ने भूतप्रेत देखा है? नहीं न…? तो उन से डरना कैसा? मगर लोग तो अंधविश्वास से बाहर निकलना ही नहीं चाहते. अनपढ़ ही नहीं पढ़ेलिखे भी भोपों के चक्कर में पड़े हैं.

जोधपुर जिले के एक गांव में तो कुछ महीने पहले एक भोपे ने एक औरत का दुख दूर करने के नाम पर मंदिर में ले जा कर बलात्कार तक कर दिया था.

उस महिला की रिपोर्ट पर उस बलात्कारी भोपे को पुलिस ने पकड़ लिया था. वह आज भी जेल में है. ऐसे भोपों से सावधान रहें. अगर भोपों के पास कुछ ताकतें होतीं तो वे खुद अपने घर में क्यों दुखी होते?

अजमेर जिले के केकड़ी कसबे में शर्मनाक घटना हुई. 40 साला कन्या देवी के पति की मौत क्या हुई, परिवार के लोग ही जान के दुश्मन बन गए. उसे डायन बताया गया. फिर शुरू कर दिया जोरजुल्म ढाने का दौर. लोहे की चेन से बुरी तरह पीटा गया. कपड़े उतरवा कर महल्ले में घुमाया गया. आंख और हाथ दोनों ही अंगारों से दाग दिए गए. इस से भी मन नहीं भरा तो धधकते अंगारों पर बिठा दिया गया. बुरी तरह से घायल कन्या देवी की अगले दिन मौत हो गई.

इस वारदात पर परदा डालने के लिए उन्हीं लोगों ने अंतिम संस्कार भी कर दिया. इस के बाद जो हुआ, वह और भी चौंकाने वाला था.

पंचपटेलों ने इस मौत के लिए जिम्मेदार लोगों के सारे गुनाह माफ कर दिए. कहा कि पुष्कर सरोवर में डुबकी लगाओ और गायों के लिए एक बोरी अनाज, एक ट्रैक्टर चारा और 5 टैंकर पानी दे कर ‘पाप मुक्त’ हो जाओ.

दूसरी ओर पीडि़त परिवार से कहा गया कि किसी को इस बारे में बताया तो समाज से बाहर कर देंगे.

गनीमत यह रही कि कन्या देवी के भतीजे महादेव ने 12 अगस्त, 2017 को यह मामला केकड़ी थाने तक पहुंचा दिया. शिकायत में डायन बता कर मारने का आरोप लगाया गया है.

केकड़ी के थानाधिकारी हरीराम कुमावत ने शिकायत मिलने के बाद जांच एसआई को सौंप दी है.

अजमेर एसपी राजेंद्र सिंह के संज्ञान में मीडिया इस घटना को लाई तो उन्होंने निष्पक्ष जांच कर आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का आदेश दिया.

इस मामले में राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा के निर्देश पर आयोग की टीम 14 अगस्त को कांदेड़ा, केकड़ी पहुंची और कन्या देवी के बेटे कालूराम और आसपास के लोगों से जानकारी ली. इस के बाद केकड़ी थाना पहुंच कर डीएसपी राकेशपाल सिंह और सीआई हरिराम कुमावत से बात की.

इस मामले में 2 औरतों समेत 5 और लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. जांच कर रहे एसआई शंकरलाल ने बताया कि आरोपी चंद्रप्रकाश, सोनिया, पिंकी, गोपीचंद, महावीर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें 3 दिन की रिमांड पर लिया गया. इस मामले में शामिल मनोहर को तलाशा जा रहा है.

3 अगस्त को कांदेड़ा, केकड़ी में कन्या देवी को उसी की ससुराल के लोगों ने डायन बता कर इतना मारापीटा कि उस की मौत हो गई. उस समय उस का 15 साला बेटा कालूराम घर पर था, जिसे कमरे में बंद कर दिया गया था.

कालूराम की सिक्योरिटी को ले कर महिला आयोग की टीम ने पुलिस से बात की. कालू की जिम्मेदारी चाइल्ड हैल्पलाइन को दी गई है.

राजस्थान सरकार ने सवा 2 साल पहले अप्रैल, 2015 में डायन प्रताड़ना निवारण कानून भी बना दिया, इस के बावजूद राजस्थान में डायन के नाम पर औरतों पर जुल्म ढाने के 37 मामले सामने आ चुके हैं.

पिछले 20 सालों में डायन बता कर औरतों को सताने के 162 मामले सामने आ चुके हैं, वो भी केवल 5 जिलों में.

कानून के माहिरों का मानना है कि यह कानून असरदार तरीके से लागू हो, इस के लिए जरूरी है कि पुलिस ऐसे मामलों में सख्त और तेज ऐक्शन ले. लापरवाही बरतने वाले पुलिस अफसरों पर कड़ी कार्यवाही करे. इस कानून की जानकारी के लिए सरकार समयसमय पर कैंपेन चलाए.

डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम 2015 में किसी भी औरत को डायन करार देने वाले शख्स को 5 साल की सजा और 50 हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है. साथ ही, किसी भी औरत के खिलाफ लोगों को उकसाने और जायदाद पर कब्जा करने पर 3 साल से 7 साल तक की सजा का प्रावधान है. इस दौरान औरत के मरने पर आजीवन कारावास और एक लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है.

कन्या देवी के कातिलों को भी क्या आजीवन कारावास की सजा होगी, यह देखना होगा.

VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

जिसने लूटा वही बना सुहाग

जिस लड़की ने कुछ महीने पहले ही अपने करोड़पति बौयफ्रैंड पर बहका कर जिस्मानी संबंध बनाने, मारपीट करने और जातिसूचक गाली देने का आरोप लगा कर हंगामा खड़ा किया था, उस के ही गले में वरमाला डाली और उस के नाम का सिंदूर अपनी मांग में भर लिया.

बिहार के इस हाईप्रोफाइल केस में लड़का एक रिटायर्ड आईएएस अफसर का बेटा और करोड़पति औटोमोबाइल कारोबारी निखिल प्रियदर्शी है, वहीं लड़की बिहार के पूर्व मंत्री की बेटी सुरभि है.

9 महीने तक चले इस हंगामे के बाद दोनों ने शादी रचा कर मामले को ठंडा तो कर दिया, पर इस मामले में सुरभि ने निखिल के साथसाथ बिहार कांग्रेस के उपाध्यक्ष पर भी जिस्मानी शोषण का आरोप लगाया था.

इस आरोप में पिता समेत जेल जाने के बाद निखिल ने अदालत में समझौता याचिका दायर की और आरोप लगाने वाली सुरभि से शादी करने की बात कही थी. उस ने याचिका में कहा था कि सुरभि से अब उस का कोई झगड़ा नहीं है और दोनों शादी करने के लिए राजी हैं.

कोर्ट के आदेश के बाद 6 नवंबर, 2017 को पटना के रजिस्ट्रार के सामने निखिल और सुरभि ने शादी रचा ली.

इस शादी के पीछे एक लंबी कहानी है. 22 दिसंबर, 2016 को सुरभि ने निखिल, उस के भाई मनीष और पिता कृष्ण बिहारी प्रसाद के खिलाफ पटना के एससीएसटी थाने में एफआईआर दर्ज की थी. उस के बाद 8 मार्च, 2017 को पीडि़ता ने बुद्धा कालोनी थाने में उस की पहचान उजागर करने, एक करोड़ रुपए और औडी कार मांगने की बातों को सोशल मीडिया पर वायरल करने को ले कर निखिल और ब्रजेश पांडे पर एफआईआर दर्ज कराई थी.

सीआईडी की सुपरविजन रिपोर्ट में मुख्य आरोपी निखिल को कुसूरवार करार दिया गया था. अनुसूचित जाति थाने के आईओ द्वारा की गई जांच में सीआईडी के डीएसपी ने सुपरविजन किया था.

सीआईडी के एडीजे विनय कुमार ने सुपरविजन की समीक्षा करने के बाद निखिल के खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोप को सही पाया था.

आईजी (कमजोर वर्ग) अनिल किशोर यादव ने भी कहा था कि निखिल पर लगे आरोप सही पाए गए हैं.

निखिल को करीब से जानने वाले बताते हैं कि पावर, पैसा, पौलिटिक्स और पुलिस से निखिल की खूब यारी थी. निखिल एक नामी कार कंपनी के शोरूम का मालिक है. उस के बूते उस ने नेताओं और अफसरों के बीच खासी पैठ बना रखी थी. रसूखदारों से मिलना, उन के साथ उठनाबैठना और पार्टियां करने में उसे खूब मजा आता था. इन सब पर वह जम कर पैसा खर्च करता था.

यौन उत्पीड़न और सैक्स रैकेट चलाने के साथ ही बैंकों से लेनदेन को ले कर भी निखिल के खिलाफ कानूनी मामला चल रहा है. कुछ बैंकों से करोड़ों रुपए के लोन लेने के मामले में वह डिफौल्टर करार दिया गया है और बैंकों ने उस पर केस कर दिया है. बैंकों को रुपए लौटने के मामले में निखिल हाथ खड़े कर चुका है.

मुंबई हाईकोर्ट के आदेश पर निखिल प्रियदर्शी के बेली रोड पर बने कार शोरूम को सील कर दिया था.

टाटा कैपिटल फाइनैंशियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने निखिल की जायदाद जब्त करने का आदेश पुलिस को दिया था. टाटा कैपिटल का करोड़ों रुपए का लोन निखिल नहीं चुका रहा था. सगुना मोड़ के पास बना उस का दूसरा शोरूम पहले ही जब्त किया जा चुका है.

निखिल समेत कांग्रेस नेता ब्रजेश पांडे और संजीत शर्मा पर सुरभि ने बलात्कार और सैक्स रैकेट चलाने का आरोप लगाया था. निखिल ऊंचे ओहदे पर बैठे कई नेताओं और अफसरों को लड़कियां सप्लाई किया करता था.

सुरभि ने एसआईटी को बताया था कि शादी का झांसा दे कर निखिल उसे महंगी गाडि़यों में घुमाता था. एक दिन वह उसे बोरिंग रोड इलाके के एक फ्लैट में ले गया. उसे कोल्ड ड्रिंक पीने के लिए दी. उसे पीने के बाद वह बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद जब उसे थोड़ा होश आया तो देखा कि ब्रजेश पांडे और संजीत शर्मा उस के साथ गलत हरकतें कर रहे थे. बाद में उस ने निखिल को फटकार लगाई और उस पर शादी करने का दबाव बनाया तो निखिल ने उस के साथ मारपीट की.

सुरभि ने मार्च महीने में पुलिस को दिए बयान में कहा था कि वह निखिल से प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. निखिल ने उसे शादी करने का भरोसा दिया था, पर उस के बाद वह लगातार टालमटोल कर रहा था.

पहले तो कई महीनों तक शादी का झांसा दे कर निखिल ने उस के साथ जिस्मानी संबंध बनाए. उस के बाद उसे गलत कामों को करने पर जोर देने लगा. वह अपने दोस्तों के सामने उस के जिस्म को परोसना चाहता था.

एक दिन बोरिंग रोड के एक फ्लैट में ब्रजेश पांडे के सामने सुरभि को परोसने की कोशिश की. ब्रजेश ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. जब पीडि़ता ने उस का विरोध किया तो उस के साथ मारपीट की गई.

सुरभि ने पुलिस को बताया था कि निखिल उस के साथ गलत हरकतें करता था. पहले वह इस बारे में खुल कर कुछ नहीं कह पाती थी, क्योंकि परिवार की बदनामी का डर था. अब उस का परिवार उस के साथ खड़ा है तो वह खुल कर बोल सकती है.

सुरभि ने बताया कि ब्रजेश उसे अपने साथ दिल्ली ले जाना चाहता था. उस ने कई बार उसे दिल्ली चलने को कहा. रुपयों का लालच भी दिया, लेकिन उस ने निखिल के साथ जाने से इनकार कर दिया.

निखिल गांजा पीता था और ज्यादा डोज लेने के बाद वह जानवरों की तरह बरताव करने लगता था. वह उस के जिस्म को नोचनेखसोटने लगता था.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, फेसबुक और ह्वाट्सऐप के जरीए लड़कियों से चैटिंग करना निखिल का शौक था. कई लड़कियों को वह सैक्स के घिनौने खेल में जबरन उतार चुका था. लड़कियों को परोस कर उस ने सत्ता के गलियारों और पुलिस महकमे में अपनी गहरी पैठ बना रखी थी.

दिखावे के तौर पर तो निखिल कारों का कारोबार करता था, लेकिन लग्जरी कारों के साथसाथ खूबसूरत लड़कियां भी उस की कमजोरी थीं. अफसरों और नेताओं को औडी और जगुआर जैसी महंगी कारों में घुमा कर उन से दोस्ती गांठने में वह माहिर था.

सुरभि ने जब निखिल पर यौन शोषण का आरोप लगा कर केस दर्ज किया था तो निखिल फरार हो गया था. एसआईटी ने उस की खोज में देश के कई राज्यों में छापामारी की. उसे पता था कि पुलिस उस की खोज में भटक रही है, इसलिए वह लगातार अपने ठिकाने बदलता रहा.

साढ़े 3 महीने तक फरार रहने और पुलिस की आंखों में धूल झोंकने वाला निखिल प्रियदर्शी और उस के रिटायर आईएएस पिता कृष्ण बिहारी प्रसाद को 14 मार्च को उत्तराखंड से गिरफ्तार किया गया था.

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के लक्ष्मण झूला थाने के चीला ओपी इलाके से उन्हें सुबहसुबह दबोचा गया. बिहार पुलिस को निखिल के उत्तराखंड में होने की सूचना मिली थी.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने पौड़ी गढ़वाल जिले के एसएसपी और अपने बैचमेट मुख्तार मोहसिन को फोन कर उन्हें निखिल के बारे में सूचना दी. उस के बाद ही उत्तराखंड पुलिस निखिल की खोज में लग गई थी. चीला इलाके में गाड़ी चैकिंग के दौरान निखिल अपनी औडी गाड़ी के साथ पकड़ा गया. गाड़ी में उस के पिता भी बैठे हुए थे.

पुलिस ने बताया कि निखिल और उस के पिता के पास पहचानपत्र था. इस वजह से वे किसी होटल में नहीं रुक पा रहे थे. तकरीबन 3 महीने तक बापबेटे ने दिनरात औडी कार में ही गुजारे. वे किसी पब्लिक प्लेस पर कार खड़ी कर के आराम किया करते थे. सार्वजनिक शौचालय में फ्रैश होते और उस के बाद फिर से कार से ही आगे की ओर बढ़ जाते थे.

अब शादी करने के बाद निखिल और सुरभि की नई जिंदगी क्या करवट लेगी, यह देखने वाली बात होगी.

VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

सावधान : RBI के नाम से चल रही है फर्जी वेबसाइट

अगर आप भी रिजर्व बैंक की वेबसाइट का इस्तेमाल करते हैं तो ये खबर आपके लिए जानना बहुत जरूरी है. दरअसल, बात ये है कि रिजर्व बैंक के नाम पर एक फर्जी वेबसाइट चल रही है, जो लोगों से उनकी बैंकिग डिटेल मांग रहे है. अगर कोई बैंकिग वेबसाइट आपके बैंक खाते की डिटेल मांगे तो न दें. रिजर्व बैंक ने इसके बारे में चेतावनी जारी करते हुए फर्जी वेबसाइट का यूआरएल भी शेयर किया है.

रिजर्व बैंक के चीफ जनरल मैनेजर जोस जे कट्टूर की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि कुछ अज्ञात लोगों ने www.indiareserveban.org  यूआरएल से रिजर्व बैंक औफ इंडिया की फर्जी वेबसाइट बनाई हुई है. फर्जी वेबसाइट का ले आउट भी रिजर्व बैंक की ओरिजलनल वेबसाइट की तरह ही है. इसलिए यूजर थोड़ा ध्यान से यूआरएल चेक करें.

असली वेबसाइट के जैसी दिखती है फर्जी वेबसाइट

यह वेबसाइट एक दम आरबीआई की असली वेबसाइट के जैसी दिखती है. फर्जी वेबसाइट के होम पेज पर बैंक वेरीफिकेशन विद औनलाइन अकाउंट होल्‍डर्स नाम से सेक्शन बनाया गया है. ऐसा माना जा रहा है कि यह कौलम बैंकिग कस्‍टमर की गोपनीय और पर्सनल डिटेल हासिल करने के लिए बनाया गया है. शीर्ष बैंक ने अपना असली यूआरएल भी शेयर किया है. यह है RBI का असली पता- https://www.rbi.org.in..

कोई बैंकिंग डिटेल मांगे तो न दें

भारतीय रिजर्व बैंक यह बात कई बार स्पष्ट कर चुका है कि वह कस्टमर के बैंक अकाउंट से जुड़ी कोई जानकारी नहीं मांगता है. इसी बात पर आरबीआई दोबार ये कहा है कि वह किसी इंडीविजुअल से बैंक अकाउंट डिटेल, पासवर्ड जैसे जानकारियां कभी नहीं मांगता है. रिजर्व बैंक ने आम लोगों को चेतावनी दी है कि ऐसी वेबसाइट को औनलाइन कोई जानकारी देना उनके लिए वित्‍तीय तौर पर नुकसानदेह हो सकता है. उनकी डिटेल का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है.

मोबाइल एप के जरिए भी धोखाधड़ी

हाल ही में नकली वेबसाइट बनाकर क्रेडिट कार्ड ठगी करने वाले गैंग का पर्दाफाश हुआ था. वहीं 2015 में एक ऐसा ऐप सामने आया था जो अकाउंट के बैलेंस की जानकारी देने का दावा करता था. इस ऐप पर आरबीआई का लोगो बना हुआ था और इसी लोगो के साथ लिखा हुआ था ‘औल बैंक बैलेंस इंक्वायरी नंबर’. इस ऐप पर कुछ बैंको के कस्टमर केयर के नंबर की सूचीबद्ध किए गए थे. आरबीआई ने एक बार फिर से इसी तरह की धोखाधड़ी से बचने के लिए चेतावनी दी है.

VIDEO : सर्दी के मौसम में ऐसे बनाएं जायकेदार पनीर तवा मसाला…नीचे देखिए ये वीडियो

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

बर्थडे स्पेशल : जानिये क्रिकेट इतिहास के सबसे तेज गेंदबाज की कहानी

क्रिकेट के जिन फैंस ने 90 और 21वीं सदी के शुरुआती सालों के क्रिेकेट को देखा है, उन्हें पता है कि क्रिकेट की पिच पर तेज गेंदबाज ग्लेन मैक्ग्रा का खौफ किस कदर बल्लेबाजों के सिर पर चढ़कर बोलता था. दुनिया में ग्लेन मैक्ग्रा की बौल का सामना करने से दुनिया के अच्छे से अच्छे बल्लेबाजों के पसीने छूटते थे. क्रिकेट में उनसे ज्यादा विकेट किसी भी तेज गेंदबाज ने नहीं लिए. लेकिन मैक्ग्रा के लिए क्रिकेट की शुरुआत इतनी आसान नहीं थी.

9 फरवरी 1970 को न्यू साउथ वेल्स में जन्मे ग्लेन मैक्ग्रा की सचिन तेंदुलकर से प्रतिद्वंद्विता किसी से छिपी नहीं थी. उन्होंने सचिन को कई बार आउट किया तो सचिन ने भी कई मैचों में उनकी जमकर खबर ली. अपने 124 टैस्ट मैचों के करियर में मैक्ग्रा ने 563 विकेट लिए. वह दुनिया में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले खिलाड़ी हैं. आज हम आपको उनके क्रिकेट जीवन से जुड़ी कुछ बाते बताने जा रहे हैं जो आपको हैरान कर देंगे.

sports

उनके क्रिकेट करियर से जुड़े पहलू

  • मैक्ग्रा क्रिकेटर बनना ही नहीं चाहते थे. वह बास्केटबौल खेलना चाहते थे, लेकिन औस्ट्रेलिया के महान खिलाड़ी और धावक मेलिंडा गेंसफोर्ड ने उन्हें क्रिकेट के लिए बास्केटबौल छोड़ने के लिए कहा. इस तरह से मैक्ग्रा का क्रिकेट करियर शुरू हुआ.
  • जब वह युवा थे, तो उन्हें उनके साथी उनकी खराब बॉलिंग के कारण उन्हें बॉल भी नहीं करने देते थे, वह उस समय बॉल को सही ढंग से सीम भी नहीं करा पाते थे.
  • शुरुआत में मैक्ग्रा की बौलिंग इतनी कमजोर थी कि वह बौल को स्टंप पर हिट ही नहीं कर पाते थे. तब उन्हें बौलिंग सिखाने के लिए विकेट की जगह ड्रम का इस्तेमाल किया गया. इसके बाद उन्होंने बौलिंग स्टार्ट की. और जी तोड़ प्रैक्टिस करने लगे.
  • औस्ट्रेलिया में ग्रेड क्रिकेट खेलने के लिए मैक्ग्रा सिडनी आ गए. उन्हें यहां बीच केरावेन में रहना पड़ा. जीवन यापन के लिए एक बैंक में काम किया. लेकिन अपने ऊपर भरोसा इतना था कि बैंक में विड्राल स्लिप पर साइन कर अपने कलीग को देते और कहते मैं एक दिन बहुत फेमस आदमी बनूंगा.
  • पहली बार 1993 में जब औस्ट्रेलियाई टीम में सिलेक्शन हुआ तो लगा सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन हुआ नहीं. पहला टेस्ट न्यूजीलैंड के खिलाफ खेला. लेकिन पहले 8 टेस्ट में कुछ कमाल नहीं कर सके. टीम से बाहर कर दिए गए. लेकिन वह अपने प्रयास से कभी पीछे नहीं हटे. 1994-95 में वेस्ट इंडीज के दौरे पर उन्हें फिर से टीम में चुना गया. यहां से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. और बन गए दुनिया के सबसे कामयाब तेज गेंदबाज.
  • आंकड़ों के हिसाब से भी बात करें तो ग्लेन मैक्ग्रा दुनिया के अब तक सबसे कामयाब और खतरनाक तेज गेंदबाज हैं. उनके नाम पर टेस्ट क्रिेकेट में 563 विकेट दर्ज हैं. उनसे आगे सिर्फ तीन स्पिनर, मुरलीधरन, शेन वार्न और अनिल कुंबले हैं.
  • इंग्लैंड टीम के कप्तान माइक अथर्टन को मैक्ग्रा ने 19 बार आउट किया. टेस्ट क्रिकेट में एक बौलर ने किसी भी बल्लेबाज को इतनी बार आउट नहीं किया है. ब्रायन लारा उन्होंने 13 बार टेस्ट क्रिकेट में आउट किया.
  • 2007 में वर्ल्डकप जिताने के बाद उन्होंने तब क्रिकेट को अलविदा कहा, जब वह पीक पर थे. वर्ल्डकप में उन्हें मैन औफ द टूर्नामेंट का खिताब दिया गया. वनडे क्रिकेट में मैक्ग्रा ने 250 मैचों में 381 विकेट लिए.
  • VIDEO : सर्दी के मौसम में ऐसे बनाएं जायकेदार पनीर तवा मसाला…नीचे देखिए ये वीडियो

    ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

ऐसे करें स्मार्टफोन पर होने वाली हर हरकत को रिकौर्ड

क्या आप भी अपने स्मार्टफोन की डिस्प्ले पर होने वाली हर हरकत पर नजर रखना चाहते हैं? उसे रिकौर्ड करना चाहतें है? लेकिन ऐसा करने के लिए आपके फोन पर कोई भी विकल्प नहीं है? तो आपको बता दें कि अब ऐसा बड़ी आसानी से हो सकता है. इसके लिए आपको अलग से कोई सर्विस लेने की जरूरत नहीं है और न ही किसी भी तरह का कोई खर्चा करने की जरूरत है और ना ही अलग से कोई डिवाइस खरीदने की जरूरत है.

ऐसा इसलिए क्योंकि गूगल प्ले स्टोर पर कई एप्स मौजूद हैं, जिन्हें डाउनलोड करके आप अपने फोन की स्क्रीन को रिकौर्ड कर सकते हैं. इस तरह आप अपने व्हाट्सऐप वीडियो कौल से लेकर मैसेंजर टेक्स्ट को वीडियो फौर्मेट में सेव कर पाएंगे.

DU Recorder, AZ Screen Recorder, HD Screen Recorder और Rec.(Screen Recorder) जैसे ऐप्स से आप अपने स्मार्टफोन की स्क्रीन को रिकौर्ड कर सकते हैं. ये सभी ऐप डिस्प्ले पर होने वाली हर हरकत को रिकौर्ड करने में सक्षम है. हम आपको इन्ही ऐप्स में से एक Rec.(Screen Recorder) के बारे में बताने जा रहे हैं कि ये काम कैसे करता है.

तो चलिए जानके हैं कि कैसे ऐप को स्मार्टफोन पर इंस्टौल करना है और कैसे इससे वीडियो को रिकौर्ड करना है.

– सबसे पहले गूगल प्ले स्टोर पर जाकर Rec. Screen Recorder ऐप को अपने फोन पर डाउनलोड करें और इंस्टौल कर लें.

– ऐप को ओपेन करने पर आपको कई विकल्प दिखाई देंगे. इनमें वीडियो का साइज, बिट रेट, टाइम और फाइल नेम दिखाई देगा.

– अपने मुताबिक ऐप की सेटिंग्स कर लें. ऐप की सेटिंग्स के बाद रिकौर्ड बटन पर क्लिक करें.

– ऐप आपसे फोटो, मीडिया और फाइल्स एक्सेस करने की इजाजत मांगेगा. Ok  के विकल्प पर टैप करें.

– इसके बाद ऐप आपके स्मार्टफोन की स्क्रीन की हर हरकत को रिकौर्ड करने की इजाजत मांगेगा. इसके लिए Start Now बटन पर टैप करें .

– अब यह ऐप आपके फोन की स्क्रीन पर चलना शुरू हो जाएगा और आपके डिस्प्ले पर होने वाली सारी हरकत को रिकौर्ड करना शुरू कर देगा.

VIDEO : सर्दी के मौसम में ऐसे बनाएं जायकेदार पनीर तवा मसाला…नीचे देखिए ये वीडियो

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें