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ऐसे निभाएं 2 बीवियों के साथ

यकीन नहीं होता कि यह वही बबलू है जिस ने तकरीबन 14 साल पहले अपनी माशूका पार्वती (बदला हुआ नाम) और उस के घर वालों को खुलेतौर पर धौंस दी थी कि अगर उस की शादी पार्वती से न हुई तो वह खुदकुशी कर लेगा.

बबलू पर मरमिटने वाली पार्वती को तो अपने आशिक की यह अदा पसंद आई थी. साथ ही, उस के घर वाले भी बबलू का जुनून देख कर झुक गए थे और उन्होंने इन दोनों की शादी के बाबत ज्यादा नानुकर नहीं की.

तब बबलू भोपाल के बरखेड़ा में शराब की एक दुकान पर काम करता था और बांका जवान था. पार्वती के घर वालों को इसी बात पर एतराज था कि शराब की दुकान पर काम करने वाला मुलाजिम अच्छा आदमी नहीं हो सकता. वह कोई और गलत काम करे न करे, पर खुद तो जरूर शराबी होगा.

लेकिन बबलू उम्मीद से परे औरों से बेहतर शौहर साबित हुआ. अपनी बीवी का वह पूरा खयाल रखता था और अपने भीतर के आशिक को उस ने मरने नहीं दिया था.

पार्वती भी खुद को खुशकिस्मत समझती थी जो उसे इतना प्यार करने वाला शौहर मिला. दोनों खुश थे. यह खुशी उस वक्त और दोगुनी हो गई जब उन के यहां शादी के 3 साल बाद बेटा और फिर उस के भी 2 साल बाद एक प्यारी सी बेटी हुई.

शादी के बाद ही बबलू को भोपाल के नजदीक बैरसिया की एक शराब की दुकान में काम मिल गया था जिसे शराब बनाने वाली एक नामी कंपनी चलाती थी. बबलू चूंकि मेहनती और ईमानदार सेल्समैन था इसलिए उस की खासी पूछपरख थी. कंपनी के अफसरों की निगाह में वह जल्द ही चढ़ गया था. लिहाजा उसे तरक्की भी मिलने लगी थी और तनख्वाह बढ़ने के साथसाथ दूसरी सहूलियतें भी मिलने लगी थीं.

शादी के बाद

14 साल कब कैसे पंख लगा कर उड़ गए, इस का एहसास पार्वती को नहीं हुआ. हां, बच्चे हो जाने के बाद उस में कुछ बदलाव जरूर आए थे लेकिन बबलू के प्यार के आगे वे बेमानी थे.

काम में लगन और मेहनत के चलते तकरीबन 4 साल पहले कंपनी ने बबलू को मैनेजर बना कर दमोह भेजा तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. मैनेजरी अपनेआप में एक रुतबे वाली पोस्ट होती है जिसे हासिल करना बबलू का सपना भी था.

बच्चों की पढ़ाई के चलते बबलू अकेला ही दमोह चला गया था और वहां किराए का मकान ले कर रहने लगा था. पार्वती भी पति की तरक्की से खुश थी.

जब सच सामने आया

बीती 29 नवंबर, 2017 को भोपाल के महिला आयोग में खड़ी पार्वती ने अपनी शिकायत में बताया था कि बबलू ने दमोह जा कर रचना (बदला हुआ नाम) नाम की लड़की से शादी कर ली है और अब बबलू उस से और बच्चों से कोई वास्ता नहीं रखता.

पार्वती की मानें तो वह खुद हकीकत जानने के लिए दमोह गई थी. वहां उस ने देखा कि बबलू और रचना साथसाथ रहते हैं और उन्होंने शादी भी कर ली है.

इस पर पार्वती ने एतराज जताया तो बजाय शर्मिंदा होने के बबलू ने उसे खूब मारापीटा और यह कहते हुए भगा दिया कि जो करना है सो कर ले.

रचना ने भी पार्वती को दुत्कारते हुए कहा कि अब बबलू उस का शौहर है.

इस पर पार्वती ने कानूनी कार्यवाही करने की बात कही तो रचना भी शेरनी की तरह दहाड़ते हुए बोली, ‘‘जा, पहले हम दोनों की शादी के सुबूत तो हासिल कर ले, फिर कानूनी ज्ञान बघारना.’’

इस पर घबराई और सकपकाई पार्वती ने अपने सासससुर से गुहार लगाई तो उन्होंने भी साफसाफ कह दिया कि अब रचना ही उन की बहू है क्योंकि बेटा उसी को अपनी बीवी मानता है. वे इस में कुछ नहीं कर सकते. पार्वती से नाता तोड़ चुके सासससुर भी अब रचना और बबलू के साथ रहने लगे थे.

इंसाफ के लिए महिला आयोग के दफ्तर में पार्वती आई तो वहां मौजूद अफसरों ने उस की दरख्वास्त यह कहते हुए रख ली कि वे उस के साथ हुई इस ज्यादती पर कार्यवाही करेंगे और जल्द ही पुलिस के जरीए बबलू को भोपाल बुलवाएंगे जिस से पूरी बात का खुलासा हो सके.

खुलासे को बचा क्या

बबलू ने दूसरी शादी कर ली है या फिर बगैर शादी किए ही रचना के साथ शौहर की तरह रह रहा है, इन दोनों बातों में फर्क इतना भर है कि अगर पार्वती अपने शौहर की दूसरी शादी होना साबित कर देती है तो उसे कानूनन सजा हो सकती है और अगर नहीं कर पाती है जिस की कि उम्मीद ज्यादा है तो बबलू का कुछ नहीं बिगड़ना.

यह बात ऐसे मामलों को देखते हुए कतई चर्चा या बहस की नहीं है कि पहली बीवी के रहते कोई मर्द या शौहर दूसरी शादी क्यों करता है. वजह, ऐसा पहले भी इफरात से होता था लेकिन अब उजागर ज्यादा होने लगा है.

दूसरी शादी की वजहें कुछ भी हों पर यह भी साफ है कि मर्द अकसर दूसरी शादी छिपाने में गच्चा खा जाते हैं और दोनों बीवियों को एकसाथ खुश नहीं रख पाते.

दिलचस्प बात यह है कि दूसरी बीवी पहली को अपने शौहर की बीवी नहीं मानती तो दूसरी के बारे में तो यह कहावत लागू होती है कि सौत तो पुतले की भी नहीं सुहाती, फिर जीतीजागती सौतन कैसे कोई बीवी बरदाश्त कर लेगी.

ऐसे में आफत शौहर की आती है जो पहली और दूसरी दोनों के होने के चक्कर में किसी एक को छोड़ने पर मजबूर हो जाता है और वह अकसर पहली ही होती है. इस का यह मतलब नहीं है कि हर मामले में पहली में ही कोई खोट हो, लेकिन इस बात से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि पहली या तो लापरवाह हो जाती है, पहले सी खूबसूरत और जवान नहीं रह जाती या फिर शौहर के जज्बातों की कद्र नहीं कर पाती.

क्या करें ऐसे शौहर

अगर साबित न हो तो दूसरी शादी कतई गुनाह नहीं लेकिन बबलू जैसे शौहर अगर थोड़ी अक्ल और समझदारी से काम लें तो बेवजह के हंगामे और पुलिस व कोर्टकचहरी के पचड़े से बच सकते हैं.

जब ऐसी नौबत आ ही जाए कि पहली बीवी के रहते दूसरी औरत से शादी करनी पड़े तो शौहर की हालत सांपछछूंदर सरीखी हो जाती है. इस से बचने के लिए बेहतर है कि वह दोनों बीवियों समेत बच्चों के बीच ऐसा तालमेल बिठाए कि सांप भी न मरे और लाठी भी न टूटे.

दूसरी शादी के बाद अगर पहली बीवी को सबकुछ सचसच बता दिया जाए तो क्या बात बन सकती है? जाहिर है कि इस सवाल का जवाब हर कोई न में ही देगा. इसी न के डर से शौहर पहली बीवी को सच बताने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते.

यहां बेहतर मिसाल मशहूर फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र की ली जा सकती है जिन्होंने पहली बीवी प्रकाश कौर के रहते दूसरी शादी फिल्म हीरोइन हेमामालिनी से कर ली थी. हालांकि कहा जाता है कि इस बाबत धर्मेंद्र ने इसलाम धर्म कबूल कर लिया था पर आज उन की दोनों बीवियां अपनीअपनी जगह खुश हैं.

अपने दोनों बेटों सनी देओल और बाबी देओल का कैरियर संवारने में धर्मेंद्र ने कोई कसर नहीं छोड़ी तो हेमामालिनी से पैदा हुई बेटियां ईशा और आहना पर भी प्यार लुटाया और उन की जिम्मेदारी से भागे नहीं.

पत्नी और बच्चों को सच बता कर और भरोसे में ले कर बात बन सकती है. आमतौर पर दूसरी शादी पहली शादी के 10-12 साल बाद ही शौहर करते हैं, तब तक पहली पत्नी से हुए बच्चे बड़े होने लगते हैं. उन का हक न मारा जाए, इस बाबत शौहर को चाहिए कि जितना मुमकिन हो दूसरी शादी का राज छिपा कर रखे.

बबलू अगर एहतियात से काम लेता तो शायद पार्वती को इतना गुस्सा नहीं आता. कोई भी औरत धोखा खाने से ज्यादा तिलमलाती है, उलट उस का शौहर अगर खुद अपनी मजबूरी गिड़गिड़ाते हुए उसे बताता है तो वह पसीज कर समझौता करने को तैयार भी हो जाती है.

इस बात को ऋषि कपूर, फराह और राधिका की साल 1986 में आई फिल्म ‘नसीब अपनाअपना’ में बेहतर ढंग से दिखाया गया था. ऋषि कपूर निपट गंवार और बेढंगी रहने वाली राधिका को छोड़ शहर में आ कर तेजतर्रार और स्मार्ट फराह से शादी कर लेता है. जब राधिका शहर आती है तो वह उसी के घर में नौकरानी बन कर रहने लगती है. सिर्फ इसलिए कि पति हरदम उस की आंखों के सामने रहे. शौहर की मजबूरी समझते हुए वह उस की दूसरी शादी पर कोई एतराज नहीं जताती, उलटे उसे बचाने की कोशिश में लगी रहती है.

फिल्म की बात और थी. सच में ऐसी बीवियां मिलना नामुमकिन है, पर ऐसी तो अब भी मिल ही जाती हैं जिन्हें यह समझ आ जाता है कि लड़ाईझगड़े से एक उम्र और हद के बाद कुछ हासिल नहीं होना. शौहर अभी जितना उन के हिस्से में है उस के बाद तो उतना भी नहीं रह पाएगा. पार्वती और बबलू के मामले में यही होने की उम्मीद ज्यादा लग रही है.

बबलू अगर दमोह में रचना के साथ संभल कर रहता तो झगड़े की नौबत ही नहीं आ पाती. एकाध बच्चा दूसरी बीवी से हो जाए तो भी पहली बीवी के तेवर ज्यादा तीखे नहीं रह जाते.

ऐसे में शौहर को चाहिए कि वह पहली बीवी की तरफ से एकदम लापरवाह न हो बल्कि वक्त निकालते हुए उस के साथ भी रहे और खर्च भी बराबर उठाता रहे. कोई ऐसी हरकत उसे नहीं करनी चाहिए जिस से पहली बीवी को उस पर शक हो.

यह हालांकि मुश्किल काम है पर हजारोंलाखों शौहर इसे कामयाबी से कर रहे हैं. भोपाल के नजदीक मंडीदीप की एक फैक्टरी में काम करने वाले देव कुमार (बदला हुआ नाम) की पहली बीवी और उस से हुए बच्चे विदिशा के एक गांव में रहते हैं जबकि दूसरी बीवी भोपाल में उस के साथ रहती है.

तकरीबन 34 साला देव कुमार हर शनिवार और रविवार को गांव जा कर अपनी पहली बीवी के साथ रहते हैं जो उन के मांबाप का खयाल रखती है.

तीजत्योहार पर भी देव कुमार बराबरी से दोनों बीवियों के साथ मनाते हैं. इस साल करवाचौथ पर फोन पर उन्होंने पहली बीवी को बता दिया था कि छुट्टी न मिलने से नहीं आ पाएंगे पर दीवाली की छुट्टी ले रखी है. बाद में दीवाली उन्होंने गांव जा कर मनाई तो किसी ने कोई शिकायत भी नहीं की.

ऐसा कब तक चलेगा? इस सवाल पर देव कुमार का कहना है, ‘‘पता नहीं कब तक, पर मेरी कोशिश यही रहती है कि सबकुछ ऐसे ही चलता रहे.

इस बाबत ऐक्टिंग भी करनी पड़ती है और खर्च भी ज्यादा होता है. पर खुद को जानपहचान वाले लोगों और नातेरिश्तेदारों से छिपाए और बचाए रखना इस से भी बड़ी चुनौती है. इस पर अब तक तो मैं खरा उतरता रहा हूं.’’

देव कुमार नहीं चाहते कि राज खुले और पहली बीवी को दुख हो क्योंकि वे उसे भी चाहते हैं. राज खुलने पर भी वह खास कुछ नहीं कर पाएगी, यह अंदाजा भी उन्हें है. लेकिन अपनी तरफ से वे एहतियात बरतते हैं तो यह उन की खूबी ही कही जाएगी.

पहली बीवी के रहते दूसरी बीवी से निभाना कोई मुश्किल काम नहीं है. इस के लिए 2 जरूरी बातें हैं कि दूसरी खुशीखुशी साथ दे और दोनों के बीच की दूरी ज्यादा से ज्यादा हो.

फंदा न बन जाए दूसरी बीवी

शौहरों को दूसरी शादी करते वक्त यह देखना और जरूरी है कि कहीं दूसरी वाली किसी खुदगर्जी या लालच के चलते तो उस के साथ शादी नहीं कर रही है. इस के अलावा उस का मिजाज समझना भी जरूरी है.

ऐसा इसलिए कि ऐसे मामले भी आएदिन उजागर होते रहते हैं जिन से दूसरी बीवी से भी शौहरों की पटरी ज्यादा नहीं बैठी.

पेशे से भोपाल के वीडियोग्राफर सुरेंद्र सिंह ने 1 अक्तूबर, 2017 को फांसी के फंदे से लटक कर जान दे दी थी. इस की वजह दूसरी बीवी का 2 साल से मायके में रहना था जो बारबार बुलाने पर भी घर नहीं आ रही थी. पहली बीवी की अनदेखी कर के अगर दूसरी के चक्कर में यों बेवक्त जान देनी पड़े तो शादी घाटे का सौदा ही साबित होती है, इसलिए बतौर एहतियात इन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए:

* दूसरी शादी जल्दबाजी और हड़बड़ाहट में नहीं करनी चाहिए.

* दूसरी होने वाली बीवी के गुजरे कल के बारे में जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए.

* यह देख लें कि दूसरी औरत किसी लालच के चलते तो आप से शादी नहीं कर रही. यह भी देख लें कि कहीं आप भी किसी खुदगर्जी या लालच के चलते तो उस से शादी नहीं कर रहे. ऐसे रिश्तों की उम्र ज्यादा नहीं होती.

* दूसरी शादी में भी उम्र का अंतर काफी माने रखता है. उम्र में ज्यादा छोटी और ज्यादा बड़ी बीवी से निभा पाना मुश्किल काम होता है.

* वह सच्चा प्यार करती है या नहीं, इसे मापने का कोई पैमाना नहीं है, फिर भी हर लैवल पर उसे परखना जरूरी है.

* ज्यादा खर्चीली, गुस्सैल या बिगड़ैल औरत से शादी करने से कोई फायदा नहीं होता. महज खूबसूरती और जिस्म का लगाव हो तो दूसरी शादी कामयाब नहीं होती.

* यह जरूरी है कि दोनों बीवियों में से किसी एक को सचाई बता दी जाए जिस से झगड़ा होने पर कोई तो आप के साथ खड़ी हो.

* अगर पहली को नहीं छोड़ सकते तो दूसरी के सामने यह बात साफ कर देनी चाहिए और अपनी आमदनी, जायदाद व पैसों के बाबत भी साफसाफ बता देना चाहिए कि आप किस को कितना हिस्सा देंगे.

जिंदगी के प्रति आप के नजरिए को बदल देती है प्रैगनैंसी

गर्भावस्था महिलाओं के लिए वह समय होता है जब वे शिशु की सुरक्षा के लिए अपने खानेपीने और स्वास्थ्य का हर संभव ध्यान रखती हैं. गर्भवती महिलाएं हमेशा खुश रहने और अपना ज्यादा से ज्यादा ध्यान रखने की कोशिश करती हैं.

कुछ महिलाओं के लिए गर्भावस्था तकलीफदेह हो सकती है जैसे उन्हें मौर्निंग सिकनैस, पैरों में सूजन, चक्कर और मितली आना आदि परेशानियां हो सकती हैं. मगर आमतौर पर गर्भावस्था हमेशा महिलाओं में सकारात्मक बदलाव ले कर आती है. इस से उन के शरीर और दिमाग दोनों में संपूर्ण रूप से सकारात्मक बदलाव आते हैं.

शरीर पर गर्भावस्था के सकारात्मक प्रभाव

– गर्भावस्था का अर्थ है कम मासिकस्राव, जिस से ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोन का संपर्क सीमित हो जाता है. ये हारमोंस स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं, क्योंकि ये कोशिकाओं की वृद्धि को प्रेरित करते हैं और महिलाओं के स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं. साथ ही गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान ब्रैस्ट सैल्स में जिस तरह के बदलाव होते हैं, वे उन्हें कैंसर कोशिकाओं में बदलने के प्रति अधिक प्रतिरोधक बना देते हैं.

– गर्भावस्था के दौरान पेल्विक क्षेत्र में रक्तसंचार बढ़ जाता है, प्रसव और डिलिवरी से गुजरने के बाद महिलाओं को खुद में एक नई ताकत महसूस होती है.

दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव

– बच्चा होने से औटोइम्यून डिसऔर्डस जैसे मल्टीपल स्केल्रोसिस के होने का खतरा कम हो जाता है.

– गर्भावस्था सकारात्मक व्यवहार ले कर आती है और महिला को मजबूत बनाती है. इस से जीवन में आने वाले बदलावों से लड़ने में आसानी हो जाती है, साथ ही नकारात्मक सोच व चिंता से भी बचाव होता है.

शिशु के जन्म के बाद सकारात्मक प्रभाव

– अधिकांश महिलाओं ने पाया है कि पहले बच्चे के जन्म के बाद उन की मासिकस्राव से जुड़ी तकलीफें काफी कम हो गई हैं.

– प्रसव के बाद अधिकांश महिलाओं के स्वास्थ्य में सकारात्मक बदलाव आते हैं और वे शराब, धूम्रपान जैसी बुरी लतें छोड़ देती हैं.

– एक मां अपने आसपास खुशियों का खजाना देख कर खुशी और उत्साह से भर जाती है. जब भी मां अपने बच्चे को गोद में लेती या उसे स्तनपान कराती है तो औक्सीटोसिन हारमोन इस गहरे रिश्ते को जोड़ने में अहम भूमिका निभाता है. यह बहुत ही ताकतवर होता है, जिस की वजह से कोई भी कुछ घंटों के लिए और कई बार कुछ दिनों के लिए भी चिंता को भूल सकता है.

– शिशु के जन्म के बाद त्वचा चमकदार और बाल चमकीले हो जाते हैं, साथ ही कीलमुंहासों की समस्या से भी मुक्ति मिल जाती है.

कुछ इस तरह प्यार से संभाले रिश्तों की डोर

भारत में तलाक के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है. 10 साल पहले जहां भारत में 1 हजार लोगों में 1 व्यक्ति तलाक लेता था, वहीं अब यह संख्या 1,000 पर 13 से ज्यादा हो गई है. तलाक याचिकाएं पहले से दोगुनी मात्रा में जमा हो रही हैं. खासकर मुंबई, बैंगलुरु, कोलकाता, लखनऊ जैसे बड़े शहरों में यह ट्रैंड ज्यादा देखने को मिल रहा है. इन शहरों में मात्र 5 सालों में तलाक फाइल करने के मामलों में करीब 3 गुना वृद्धि दर्ज की गई है.

2014 में मुंबई में तलाक के 11,667 केस फाइल किए गए जबकि 2010 में यह संख्या 5,248 थी. इसी तरह 2014 में लखनऊ और दिल्ली में क्रमश: 8,347 और 2000 केस फाइल किए गए जबकि 2010 में यह संख्या क्रमश: 2,388 और 900 थी.

तलाक के मामलों में इस बढ़ोतरी और दंपती के बीच बढ़ते मतभेदों की वजह क्या है? क्यों रिश्ते टिक नहीं पाते? ऐसे क्या कारण हैं जो रिश्तों की जिंदगी छोटी कर देते हैं?

इस संदर्भ में अमेरिका के मनोवैज्ञानिक और मैरिज ऐक्सपर्ट जौन गौटमैन ने 40 सालों के अध्ययन और अनुभवों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि मुख्य रूप से 4 ऐसे कारक हैं, जिन की वजह से दंपती के बीच संवादहीनता की स्थिति पैदा होने लगती है. इस स्थिति के 6 सालों के अंदर उन का तलाक हो जाता है.

आलोचनात्मक रवैया : वैसे तो कभी न कभी सभी एकदूसरे की आलोचना करते हैं पर पतिपत्नी के बीच यह आम बात है. समस्या तब पैदा होती है जब आलोचना करने का तरीका इतना बुरा होता है कि चोट सीधे सामने वाले के दिल पर लगती है. किसी भी हाल में एक जना दूसरे को गलत साबित करने के प्रयास में लग जाता है. उस पर इलजामों की बौछार करने लगता है. ऐसे में कई दफा पतिपत्नी एकदूसरे से इतनी दूर चले जाते हैं कि फिर लौटना कठिन हो जाता है.

घृणा : जब आप के मन में जीवनसाथी के लिए घृणा और तिरस्कार के भाव उभरने लगें तो समझ जाएं कि अब रिश्ता ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं. घृणा प्रदर्शन के तहत ताने देना, नकल उतारना, नाम से पुकारना जैसी कितनी ही हरकतें शामिल होती हैं, जो सामने वाले को महत्त्वहीन महसूस कराती हैं. इस तरह का व्यवहार रिश्तों की जड़ों पर चोट करता है.

बचाव करने की आदत : जीवनसाथी पर इलजाम लगा कर खुद को बचाने का रवैया जल्द ही रिश्तों के अंत की वजह बनता है. पतिपत्नी से अपेक्षा की जाती है कि वे हर स्थिति में एकदूसरे का सहयोग करें. मगर जब वे एकदूसरे के ही विरोध में खड़े होने लगें तो उन का रिश्ता कोई नहीं बचा सकता.

संवादहीनता : जब व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति उदासीनता की चादर ओढ़ लेता है, संवाद खत्म कर देता है और उस की बातों को नजरअंदाज करने लगता है, तो दोनों के बीच आई यह दीवार रिश्ते में मौजूद रहीसही जिंदगी भी खत्म कर देती है.

कुछ और कारण

क्वालिटी टाइम: इंस्टिट्यूट फौर सोशल ऐंड इकोनौमिक चेंज, बैंगलुरु द्वारा की गई एक रिसर्च के अनुसार पतिपत्नी के अलगाव का सब से प्रमुख कारण ड्युअल कैरियर कपल (पतिपत्नी दोनों का कामकाजी होना) की लगातार बढ़ती संख्या है. इस रिसर्च में यह बात सामने आई है कि 53% महिलाएं अपने पति से झगड़ती हैं, क्योंकि उन के पति उन के साथ क्वालिटी टाइम नहीं बिताते, वहीं 31.7% पुरुषों को अपनी कामकाजी पत्नियों से शिकायत है कि उन के पास परिवार के लिए समय नहीं है.

सोशल मीडिया: हाल ही में अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि सोशल मीडिया में अधिक समय देने की प्रवृत्ति और तलाक दर में पारस्परिक संबंध है.

जितना ज्यादा व्यक्ति सोशल मीडिया में ऐक्टिव होता है, परिवार टूटने का खतरा उतना ही ज्यादा होता है.

इस की मुख्य रूप से 2 वजहें हो सकती हैं. पहली यह कि सोशल मीडिया में लिप्त रहने वाला व्यक्ति पत्नी को कम समय देता है. वह सारा समय नए दोस्त बनाने व लाइक्स और कमैंट्स पाने के चक्कर में लगा रहता है. दूसरी यह कि ऐसे व्यक्ति के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स होने के चांसेज बढ़ जाते हैं. सोशल मीडिया पर फ्रैंडशिप ऐक्सैप्ट करना और उसे आगे बढ़ाना बहुत आसान होता है.

धर्म का असर रिश्तों पर

सामान्यतया रिश्तों में कभी खटास और कभी मिठास का दौर चलता ही रहता है. मगर इस का मतलब यह नहीं कि आप अपनी गलतियों पर ध्यान न दें और समाधान के लिए पंडेपुजारियों के पास दौड़ें. पंडेपुजारी पतिपत्नी के रिश्ते को 7 जन्मों का बंधन बताते हैं. रिश्तों को बचाने के लिए वे सदा स्त्री को ही शिक्षा देते हैं कि वह दब कर रहे, आवाज न उठाए.

दरअसल, धर्मगुरुओं की तो मंशा ही होती है कि व्यक्ति 7 जन्मों के चक्कर में फंसा रहे और गृहकलेषों से बचने के लिए तरहतरह के धार्मिक अनुष्ठानों व क्रियाकलापों में पानी की तरह पैसा बहाता रहे.

स्त्रियां ज्यादा भावुक होती हैं. जपतप, दानपुण्य में विश्वास करती हैं. इसी का फायदा उठा कर धर्मगुरु उन से ये सब करवाते रहते हैं ताकि उन्हें चढ़ावे का फायदा मिलता रहे.

हाल ही में एक परिवार इसलिए बरबाद हो गया क्योंकि गृहक्लेष से बचने के लिए घर की स्त्री ने तांत्रिक का दरवाजा खटखटाया.

गत 25 मई को दिल्ली के पालम इलाके में एक बेटे ने अपनी मां की चाकू घोंप कर बेरहमी से हत्या कर दी. 63 साल की मां यानी प्रेमलता अपने बेटेबहू के साथ रहती थी. हर छोटीबड़ी समस्या के समाधान के लिए वह तांत्रिकों और ज्योतिषियों के पास जाती. घर में आएदिन होने वाले झगड़ों के निबटारे के लिए भी वह तांत्रिक के पास गई और फिर उस के बताए उपायों को घर पर आ कर आजमाने लगी. यह सब देख कर बहू को लगा कि वह जाटूटोना कर रही है अत: उस ने यह बात पति को बताई. फिर इसी बात को ले घर में खूब झगड़ा हुआ और बेटे ने सब्जी काटने वाले चाकू से मां पर हमला कर दिया.

मजबूत बनाएं रिश्ता

रिश्ते बनाना बहुत सहज है पर उन्हें निभाना कठिन. जौन गौटमैन के मुताबिक रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए कपल्स को इन बातों का खयाल रखना चाहिए:

लव मैप का फंडा : लव मैप मानव मस्तिष्क का वह हिस्सा है जहां व्यक्ति अपने जीवनसाथी से जुड़ी हर तरह की सूचना जैसे उस की परेशानियों, उम्मीदों, सपनों समेत दूसरे महत्त्वपूर्ण तथ्यों व भावनाओं को इकट्ठा रखता है. गौटमैन के मुताबिक दंपती लव मैप का प्रयोग एकदूसरे के प्रति अपनी समझ, लगाव और प्रेम प्रदर्शित करने में कर सकते हैं.

साथ दें सदा : जीवनसाथी के जीवन से जुड़े हर छोटेबड़े मौके पर उस के साथ खड़े रहें. पूरे उत्साह और प्रेम के साथ उस के हर दुखसुख के भागीदार बनें.

महत्त्व स्वीकारें : किसी भी तरह का फैसला लेते वक्त या कोई भी महत्त्वपूर्ण काम करते समय जीवनसाथी को भूलें नहीं. उस की सहमति अवश्य लें.

तनाव करें दूर : पतिपत्नी के बीच तनाव लंबे समय तक कायम नहीं रहना चाहिए, जीवनसाथी आप की किसी बात से आहत है तो मीठे शब्दों का लेप जरूर लगाएं. एकदूसरे के साथ सामंजस्य बनाए रखें. कंप्रोमाइज करना सीखें.

दूरी न दें बढ़ने : कई दफा पतिपत्नी के बीच का विवाद इतना गहरा हो जाता है कि पास आने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं. साथी स्वयं को अस्वीकृत महसूस करता है. दोनों इस बारे में बात तो करते हैं पर कोई सकारात्मक समाधान नहीं निकाल पाते. हर वादविवाद के बाद वे और ज्यादा कुंठित महसूस करते हैं.

गौटमैन कहते हैं कि कभी ऐसा मौका न आने दें. पतिपत्नी के बीच विवाद इसलिए बढ़ता है क्योंकि उन की बातचीत में मधुरता, उत्साह और लगाव का अभाव होता है. वे समझौता नहीं करना चाहते. इसी वजह से भावनात्मक रूप से भी एकदूसरे से दूर हो जाते हैं. यह दूरी कितनी भी बढ़ जाए पर एक कपल को यह जरूर पता लगाना चाहिए कि विवाद के मूल में क्या है और उसे कैसे दूर किया जाए.

पार्टनर को अच्छा महसूस कराएं : पतिपत्नी को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि उस के जीवनसाथी को क्या पसंद है, वह किस बात से खुश होता है. समयसमय पर जीवनसाथी के साथ बीते खुशनुमा लमहों का जिक्र करें ताकि वही प्यार आप फिर से महसूस कर सकें.

श्रीदेवी का अभिनेत्री बनना महज एक इत्तफाक

अपने दमदार अभिनय से लगभग चार दशक तक बौलीवुड में अपना एकाधिकार जमाए रखने वाली और महिला सुपरस्टार से सम्मानित श्रीदेवी का 54 वर्ष की उम्र में दुबई में हृदय गति रूक जाने से निधन हो गया. श्रीदेवी अपने पारिवारिक सदस्य मोहित मारवाह की शादी के समारोह में शामिल होने के लिए अपने पति बोनी कपूर व बेटी खुशी के साथ दुबई गई थीं और आज ही वापस लौटने वाली थीं. लेकिन अचानक उनकी तबियत खराब हुई और अस्पताल ले जाने पर पता चला कि हृदय गति रूक जाने से उनका निधन हो गया. श्रीदेवी का पार्थिव शरीर मुंबई लाया जा रहा है. उनका अंतिम संस्कार मुंबई में ही संपन्न होगा.

13 साल की उम्र में तमिल फिल्म में वयस्क किरदार निभाने के बाद श्रीदेवी ने हिंदी, तमिल, तेलगू की 300 फिल्में की. उनकी करियर की 300 वीं फिल्म 7 जुलाई 2017 को प्रदर्शित हुई थी. ‘‘सोलहवां सावन’’, ‘हिम्मतवाला’’, ‘‘सदमा’’, ‘‘तोहफा’’, ‘ ‘नगीना’’, ‘‘चालबाज’’, ‘‘लम्हे’’, ‘खुदा गवाह’ उनकी कुछ अति चर्चित फिल्में रही हैं. श्रीदेवी एकमात्र ऐसी अदाकारा रही हैं, जिन्हें बौलीवुड में सुपरस्टार का दर्जा मिला था. श्रीदेवी से पहले और श्रीदेवी के बाद आई किसी भी अभिनेत्री को यह तमगा नसीब नहीं हुआ. इतना ही नही यह उनके दमदार अभिनय का ही कमाल था कि उन्हे 2013 में “पद्मश्री’’ से नवाजा गया था.

सिवाकाशी, तमिलनाड़ु में 13 अगस्त 1963 में जन्मी श्रीदेवी के अभिनय से जुड़ने की बड़ी अजीबोगरीब कहानी रही. उन्होंने सबसे पहले चार साल की उम्र में बाल कलाकार के रूप में एक छोटी सी भूमिका निभाई थी, पर तब उन्हें अहसास नहीं था कि वह अभिनय को करियर बनाएंगी. लेकिन जब वह तेरह साल की उम्र में मदुराई से चेन्नई आईं, तो उनकी किस्मत बदल गई.

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खुद श्रीदेवी ने मुझसे अपने अभिनेत्री बनने की बात को इत्तफाक की संज्ञा देते हुए बताया था- ‘‘मेरा फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ना भी एक इत्तफाक/एक्सीडेंट था. क्योंकि मेरे माता पिता फिल्मों से नहीं हैं. हमारा परिवार बहुत दकियानूसी व रूढ़िवादी परिवार रहा है. मेरी मां गृहिणी थी, मेरे पिता वकील, ऐसे में फिल्म तो बहुत दूर की बात थी. लेकिन मेरी डेस्टिनी मुझे फिल्मों में ले आई. अन्यथा मैं चेन्नई या मदुराई में पड़ी होती. वास्तव में पढ़ाई करने के लिए मैं मदुराई से चेन्नई आई थी. यहां मेरे पिताजी वकालत कर रहे थें. मेरे अंकल एमएलए थें. एक दिन मेरे अंकल को एक समारोह में जाना था, पर वह जा नहीं पा रहे थे. तो उन्होंने मेरे पिता से कहा कि वह चले जाएं. मैं अपने पिता के बहुत करीब थी. तो मैंने उनसे कहा कि मैं भी चलूंगी. उन्होंने कहा चलो. उस समारोह में एक अति लोकप्रिय व नामचीन गीतकार मिल गएं. उन्होंने मेरे पिता से पूछा कि क्या आप अपनी बेटी को एक फिल्म में अभिनय करवाना पसंद करेंगे? मेरे पिता ने मेरी तरफ देखा और फिर गीतकार से कहा कि मैं घर जाकर इस बारे में सोचूंगा, अभी मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता. दूसरे दिन सुबह मेरे पिता ने मम्मी से रातवाली बात बताई. उनकी बात पूरी होते होते हमारे घर के दरवाजे पर एक गाड़ी आकर रूकी, जो कि मुझे फिल्म के सेट पर ले जाने के लिए आई थी. मेरी मम्मी उत्साहित व खुश हो गईं. उन्होंने कहा जा बेटी जा, उस वक्त मेरे पिताजी भी कुछ बोल नहीं पाए और मैं सेट पर चली गई. जबकि मेरे पिताजी चाहते थे कि मैं पढ़ लिखकर उन्हीं की तरह मशहूर वकील बनूं. उस दिन मैं अभिेनेत्री बन गई थी, और मेरी पहली तमिल फिल्म 1976 में “मूंद्रू मुदीचू’’ आयी थी. उस वक्त मैं सिर्फ तेरह वर्ष की थी और युवा किरदार निभाया था.’’

यह भी रहा अजीब इत्तफाक

मशहूर अभिनेता बोनी कपूर से श्रीदेवी ने 1996 में विवाह रचाया था. उस वक्त बोनी कपूर शादीशुदा थें. उनकी पहली पत्नी मोना शोरी कपूर जिंदा थीं और उनके बेटे अर्जुन कपूर भी थें, जो कि आज एक सफल अभिनेता माने जाते हैं. पर बोनी कपूर और श्रीदेवी के बीच ऐसा प्यार पनपा था कि उन्होंने कई तरह के विराधों के बावजूद 1996 में शादी कर ली थी.

बोनी कपूर की पहली पत्नी और अभिनेता अर्जुन कपूर की मां मोना शोरी कपूर का 25 मार्च 2012 को निधन हुआ था. उस वक्त तक अभिनेता अर्जुन कपूर अपने करियर की पहली फिल्म ‘‘इश्कजादे’’ की शूटिंग खत्म कर चुके थे और उन्हें अपनी फिल्म के प्रदर्शित होने का इंतजार था. मगर मोना शोरी कपूर अपने बेटे अर्जुन कपूर की पहली फिल्म के पर्दे पर आने से पहले ही इस दुनिया से विदा हो गई थीं. फिल्म ‘इश्कजादे’ लगभग डेढ़़ माह बाद 11 मई 2012 को सिनेमाघरों में पहुंची थी.

और अब बोनी कपूर की दूसरी पत्नी श्रीदेवी का निधन 24 फरवरी 2018 को हुआ है, जबकि उनकी बेटी जान्हवी कपूर के करियर की पहली फिल्म ‘‘धड़क’’ की शूटिंग अभी पूरी हुई है. यह फिल्म 20 जुलाई 2018 को प्रदर्शित होनी है. यानी कि श्रीदेवी भी अपनी बेटी के करियर की पहली फिल्म के सिनेमाघर में आने से पहले ही इस संसार से चली गईं.

श्रीदेवी ने अनिच्छा से जान्हवी को अभिनेत्री बनने की इजाजत दी थी

श्रीदेवी की बड़ी बेटी जान्हवी कपूर की पहली फिल्म ‘‘धड़क’’ की शूटिंग लगभग पूरी हो चुकी है और वह अभिनेत्री बन चुकी हैं. मगर हर किसी को पता है कि श्रीदेवी कभी नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटी जान्हवी कपूर फिल्मों से जुड़े या अभिनेत्री बने. खुद श्रीदेवी ने हमसे हुई बातचीत में कहा था – ‘‘यह सच है कि जब मेरी बेटी ने कहा कि उसे फिल्मों में हीरोइन बनना है, तो मैं थोड़ी सी घबराई हुई थी. उसे इजाजत देने को लेकर मेरे अंदर एक हिचक थी. जबकि मैं समझती हूं कि आज मैं जो कुछ हूं, वह फिल्म इंडस्ट्री की वजह से हूं. फिल्म इंडस्ट्री की वजह से ही मैंने नाम कमाया है. लेकिन समय का अंतराल बहुत कुछ मायने रखता है. जब मैं हीरोईन बनी थी, उस वक्त हम घोड़े की तरह काम कर रहे थे. आपको पता होगा कि घोड़ो की दोनों आंखों के बगल में पट्टियां बांधी जाती हैं, जिससे घोड़ा एकदम सीधा देखते हुए सरपट दौड़ता रहे. तो हम भी एक ढर्रे पर काम कर रहे थे. आज की तरह शूटिंग, डबिंग, पार्टियां, मस्ती करना, यह सब नहीं होता था. बल्कि उस वक्त हमारे उपर बंदिश होती थी कि हमें जो काम करना है, उसे पूरी तरह ईमानदारी से करना है.’’

श्रीदेवी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा था- ‘‘दूसरी बात मेरी मां मुझे बहुत प्रोटेक्ट करती थी. उसी तरह मैं भी अपनी बेटियों को बहुत प्रोटेक्ट करती हूं. आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन हकीकत यह है कि मैंने 300 फिल्मों में अभिनय कर लिया. मगर मैंने अपनी बेटियों को बहुत कम फिल्में दिखायी हैं. छह साल की उम्र तक तो उन्हें यही नही पता चला कि मैं अभिनेत्री हूं. 6 साल की उम्र के बाद जब वह मेरे साथ एयरपोर्ट पर पहुंची और लोगों ने मुझसे औटोग्राफ मांगा, तब मुझे उन्हें बताना पड़ा कि मैं फिल्मों में अभिनय करती हूं. लेकिन मैंने उनसे कह दिया था कि मैं उन्हें अपनी कोई फिल्म नही दिखाउंगी. ’’

तृष्णा : भाग 2

एक शाम चाय पीते हुए इरा ने कहा, ‘‘सुनो, विमलेशजी कह रही थीं कि इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट औफ फिजिकल एजुकेशन से 2-3 लोग आए हैं, वे सुबह 1 घंटे ऐक्सरसाइज करना सिखाएंगे और उन के लैक्चर भी होंगे. मुझे लगता है, शायद मेरे कई प्रश्नों का उत्तर मुझे वहां जा कर मिल जाएगा. अगर कहो तो मैं भी चली जाया करूं, 15-20 दिनों की ही तो बात है.’’

उदय ने चाहा कि कहे, ‘तुम कहां विमलेश के चक्कर में पड़ रही हो. वह तो सारा दिन पूजापाठ, व्रतउपवास में लगी रहती है. यहां तक कि उसे इस का भी होश नहीं रहता कि उस के पति व बच्चों ने खाना खाया कि नहीं?’ लेकिन वह चुप रहा.

थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘ठीक है, सोच लो, तुम्हें ही समय निकालना पड़ेगा. ऐसा करो, 15-20 दिन तुम मेरे साथ औफिस न चलो.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं है, मैं कर लूंगी,’’ इरा उत्साहित थी.

इरा अब ऐक्सरसाइज सीखने जाने लगी. सुबह जल्दी उठ कर वह उदय और चंदन के लिए नाश्ता बना कर चली जाती. उदय चंदन को ले कर टहलने निकल जाता और लौटते समय इरा को साथ ले कर वापस आ जाता. फिर दिनभर औफिस में दोनों काम करते.

शाम को घर लौटने पर कभी उदय कहता, ‘‘आज तुम थक गई होगी, औफिस में भी काम ज्यादा था और तुम सुबह 4 बजे से उठी हुई हो. आज बाहर खाना खा लेते हैं.’’

लेकिन वह न मानती.

अब वह ऐक्सरसाइज करना सीख चुकी थी. सुबह जब सब सोते रहते तो वह उठ कर ऐक्सरसाइज करती. फिर दिन का सारा काम करने के बाद रात में चैन से सोती.

एक दिन इरा ने उदय से कहा, ‘‘ऐक्सरसाइज से मुझे बहुत शांति मिलती है. पहले मुझे छोटीछोटी बातों पर गुस्सा आ जाता था, लेकिन अब नहीं आता. कभी तुम भी कर के देखो, बहुत अच्छा लगेगा.’’

उदय ने हंस कर कहा, ‘‘भावनाओं को नियंत्रित नहीं करना चाहिए. सोचने के ढंग में परिवर्तन लाने से सबकुछ सहज हो सकता है.’’

चंदन की गरमी की छुट्टियां हुईं. सब ने नेपाल घूमने का कार्यक्रम बनाया. जैसे ही वे रेलवेस्टेशन पहुंचे, छोटेछोटे भिखारी बच्चों ने उन्हें घेर लिया, ‘माई, भूख लगी है, माई, तुम्हारे बच्चे जीएं. बाबू 10 रुपए दे दो, सुबह से कुछ खाया नहीं है.’ लेकिन यह सब कहते हुए उन के चेहरे पर कोई भाव नहीं था, तोते की तरह रटे हुए वे बोले चले जा रहे थे. इस से पहले कि उदय पर्स निकाल कर उन्हें पैसे दे पाता, इरा ने 20-25 रुपए निकाले और उन्हें दे कर कहा, ‘‘आपस में बराबरबराबर बांट लेना.’’

काठमांडू पहुंच कर वहां की सुंदर छटा देख कर सब मुग्ध रह गए. इरा सवेरे उठ कर खिड़की से पहाड़ों पर पड़ती धूप के बदलते रंग देख कर स्वयं को भी भूल जाती.

एक रात उस ने उदय से कहा, ‘‘मुझे आजकल सपने में भूख से बिलखते, सर्दी से ठिठुरते बच्चे दिखाई देते हैं. फिर मुझे अपने इस तरह घूमनेफिरने पर पैसा बरबाद करने के लिए ग्लानि सी होने लगती है. जब हमारे चारों तरफ इतनी गरीबी, भुखमरी फैली हुई है, हमें इस तरह का जीवन जीने का अधिकार नहीं है.’’

उदय ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘तुम सच कहती हो, लेकिन स्वयं को धिक्कारने से समस्या खत्म तो नहीं हो सकती. हमें अपने सामर्थ्य के अनुसार ऐसे लोगों की सहायता करनी चाहिए, लेकिन भीख दे कर नहीं. हो सके तो इन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करना चाहिए. अगर हम ने अपनी जिंदगी में ऐसे 4-6 घरों के कुछ बच्चों को पढ़नेलिखने में आर्थिक या अन्य सहायता दे कर अपने पैरों पर खड़ा होने का मौका दिया तो वह कम नहीं है. तुम इस में मेरी मदद करोगी तो मुझे अच्छा लगेगा.’’

इरा प्रशंसाभरी नजरों से उदय को देख रही थी. उस ने कहा, ‘‘लेकिन दुनिया तो बहुत बड़ी है. 2-4 घरों को सुधारने से क्या होगा?’’

नेपाल से लौटने के बाद इरा ने शहर की समाजसेवी संस्थाओं के बारे में पता लगाना शुरू किया. कई जगहों पर वह स्वयं जाती और शाम को लौट कर अपनी रिपोर्ट उदय को विस्तार से सुनाती.

कभीकभी उदय झुंझला जाता, ‘‘तुम किस चक्कर में उलझ रही हो. ये संस्थाएं काम कम, दिखावा ज्यादा करती हैं. सच्चे मन से तुम जो कुछ कर सको, वही ठीक है.’’

लेकिन इरा उस से सहमत नहीं थी. आखिर एक संस्था उसे पसंद आ गई. अनीता कुमारी उस संस्था की अध्यक्ष थीं. वे एक बहुत बड़े उद्योगपति की पत्नी थीं. इरा उन के भाषण से बहुत प्रभावित हुई थी. उन की संस्था एक छोटा सा स्कूल चलाती थी, जिस में बच्चों को निशुल्क पढ़ाया जाता था. गांव की ही कुछ औरतों व लड़कियों को इस कार्य में लगाया गया था. इन शिक्षिकाओं को संस्था की ओर से वेतन दिया जाता था.

समाज द्वारा सताई गई औरतों, विधवाओं, एकाकी वृद्धवृद्धाओं के लिए भी संस्था काफी कार्य कर रही थी.

इरा सोचती थी कि ये लोग कितने महान हैं, जो वर्षों निस्वार्थ भाव से समाजसेवा कर रहे हैं. धीरेधीरे अपनी मेहनत और लगन की वजह से वह अनीता का दाहिना हाथ बन गई. वे गांवों में जातीं, वहां के लोगों के साथ घुलमिल कर उन की समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करतीं.

इरा को कभीकभी महसूस होता कि वह उदय और चंदन के साथ अन्याय कर रही है. एक दिन यही बात उस ने अनीता से कह दी. वे थोड़ी देर उस की तरफ देखती रहीं, फिर धीरे से बोलीं, ‘‘तुम सच कह रही हो…तुम्हारे बच्चे और तुम्हारे पति का तुम पर पहला अधिकार है. तुम्हें घर और समाज दोनों में सामंजस्य रखना चाहिए.’’

इरा चौंक गई, ‘‘लेकिन आप तो सुबह आंख खुलने से ले कर रात देर तक समाजसेवा में लगी रहती हैं और मुझे ऐसी सलाह दे रही हैं?’’

‘‘मेरी कहानी तुम से अलग है, इरा. मेरी शादी एक बहुत धनी खानदान में हुई. शादी के बाद कुछ सालों तक मैं समझ न सकी कि मेरा जीवन किस ओर जा रहा है? मेरे पति बहुत बड़े उद्योगपति हैं. आएदिन या तो मेरे या दूसरों के यहां पार्टियां होती हैं. मेरा काम सिर्फ सजसंवर कर उन पार्टियों में जाना था. ऐसा नहीं था कि मेरे पति मुझे या मेरी भावनाओं को समझते नहीं थे, लेकिन वे मुझे अपने कीमती समय के अलावा सबकुछ दे सकते थे.

‘‘फिर मेरे जीवन में हंसताखेलता एक राजकुमार आया. मुझे लगा, मेरा जीवन खुशियों से भर गया. लेकिन अभी उस का तुतलाना खत्म भी नहीं हुआ था कि मेरे खानदान की परंपरा के अनुसार उसे बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया. अब मेरे पास कुछ नहीं था. पति को अकसर काम के सिलसिले में देशविदेश घूमना पड़ता और मैं बिलकुल अकेली रह जाती. जब कभी उन से इस बात की शिकायत करती तो वे मुझे सहेलियों से मिलनेजुलने की सलाह देते.

‘‘धीरेधीरे मैं ने घर में काम करने वाले नौकरों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. शुरू में तो मेरे पति थोड़ा परेशान हुए, फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा. वहां से यहां तक मैं उन के सहयोग के बिना नहीं पहुंच सकती थी. उन्हें मालूम हो गया था कि अगर मैं व्यस्त नहीं रहूंगी तो बीमार हो जाऊंगी.’’

इरा जैसे सोते से जागी, उस ने कुछ न कहा और चुपचाप घर चली आई. उसे जल्दी लौटा देख कर उदय चौंक पड़ा. चंदन दौड़ कर उस से लिपट गया.

उदय और चंदन खाना खाने जा रहे थे. उदय ने अपने ही हाथों से कुछ बना लिया था. चंदन को होटल का खाना अच्छा नहीं लगता था. मेज पर रखी प्लेट में टेढ़ीमेढ़ी रोटियां और आलू की सूखी सब्जी देख कर इरा का दिल भर आया.

चंदन बोला, ‘‘मां, आज मैं आप के साथ खाना खाऊंगा. पिताजी भी ठीक से खाना नहीं खाते हैं.’’

इरा ने उदय की ओर देखा और उस की गोद में सिर रख कर फफक कर रो पड़ी, ‘‘मैं तुम दोनों को बहुत दुख देती हूं. तुम मुझे रोकते क्यों नहीं?’’

उदय ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है और पति होने का अधिकार मैं जबरदस्ती तुम से नहीं लूंगा, यह तुम जानती हो. जीवन के अनुभव प्राप्त करने में कोई बुराई तो नहीं, लेकिन बात क्या है तुम इतनी परेशान क्यों हो?’’

इरा उसे अनीताजी के बारे में बताने लगी, ‘‘जिन को आदर्श मान कर मैं अपनी गृहस्थी को अनदेखा कर चली थी, उन के लिए तो समाजसेवा सूने जीवन को भरने का साधन मात्र थी. लेकिन मेरा जीवन तो सूना नहीं. अनीता के पास करने के लिए कुछ नहीं था, न पति पास था, न संतान और न ही उन्हें अपनी जीविका के लिए संघर्ष करना था. लेकिन मेरे पास तो पति भी है, संतान भी, जिन की देखभाल की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है, जिन के साथ इस समाज में अपनी जगह बनाने के लिए मुझे संघर्ष करना है. यह सब ईमानदारी से करते हुए समाज के लिए अगर कुछ कर सकूं, वही मेरे जीवन का उद्देश्य होगा और यही जीवन का सत्य भी…’’

अब हिंदी में बोलेगा गूगल असिस्टेंट

क्या आपको पता हैं कि गूगल एक नया फिचर लेकर आ रहा है, इस नये फिचर की वजह से इस साल के अंत तक गूगल हिंदी में बोलने लगेगा, गूगल ने खुद इस बात जानकारी दी है कि गूगल का डिजिटल असिस्टेंट सौफ्टवेअर इस साल के अंत तक 30 से ज्यादा भाषाओं में उपलब्ध होगा. गूगल ने इस बाबत जानकारी अपनी एक ब्लौग पोस्ट में दी है.

क्या है गूगल असिस्टेंट सौफ्टवेअर

गूगल असिस्टेंट एक आर्टिफिशल इंटेलिजेंस पर आधारित सौफ्टवेअर है जो डिवाइस के स्पीकर्स से कनेक्ट रहता है. खबरों के मुताबिक अब इस सौफ्टवेअर में कई भाषाओं को सपौर्ट करने की क्षमता जोड़ी जाएगी. इसके बाद अंग्रेजी के अलावा कोई और भाषा बोलने वाले लोग भी इसका इस्तेमाल कर सकेंगे.

गूगल के वाइस प्रेजिडेंट निक फौक्स ने अपनी ब्लौग पोस्ट में बताया गया है, ‘इस साल के अंत तक गूगल असिस्टेंट 30 से ज्यादा भाषाओं में उपलब्ध होगा. इसके बाद इसकी पहुंच 95 पर्सेंट ऐंड्रायड यूजर्स तक होगी. अगले कुछ महीनों में हम ऐंड्रायड और आईफोन्स के लिए गूगल असिस्टेंट को डैनिश, डच, हिंदी, इंडोनेशियन, नौर्वियन, स्वीडिश और थाई लाने जा रहे हैं. इसके बाद इस साल में अन्य भाषाओं में भी गूगल असिस्टेंट लाया जाएगा.’

फौक्स ने बताया है कि पहले इसमें मल्टीलिंगुअल औप्शन केवल इंग्लिश, फ्रेंच और जर्मन में उपलब्ध होगा. इसके बाद समय के साथ यह अन्य भाषाओं को भी सपौर्ट करने लगेगा. अभी गूगल को आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के मामले में ऐमजौन, माइक्रोसौफ्ट, ऐपल, सैमसंग और अन्य कंपनियों से तगड़ा कौम्पिटिशन मिल रहा है. ऐमाजौन ने ऐलेक्सा पावर्ड स्पीकर्स के जरिए इस मामले में बढ़त ले ली है. इसलिए गूगल ने यह कदम ऐमाजौन के ऐलेक्सा पावर्ड हार्डवेअर से मुकाबला करने के लिए उठाया है. ऐलेक्सा अभी तक केवल इंग्लिश में काम करता है जबकि गूगल असिस्टेंट अभी तक 8 भाषाओं को सपौर्ट कर रहा है और अब इसमें इजाफा हो जाएगा.

कोहली को नहीं मिली क्रिकेट रैंकिंग लिस्ट के टौप 10 में जगह

भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली पिछले कुछ समय से गजब की लय में बल्लेबाजी कर रहे हैं. वह जब भी मैदान पर उतरते हैं तो रनों की तो जैसे बारिश सी होने लगती है और हर बार वो कोई ना कोई रिकौर्ड तोड़ डालते हैं. विराट क्रिकेट के हर फौर्मेट में जबर्दस्त प्रदर्शन करते हैं जिससे उनकी टीम की जीत तय हो जाती है. दक्षिण अफ्रीका दौरे पर विराट कोहली ने वनडे सीरीज के दौरान कई रिकौर्ड अपने नाम किए. आईसीसी की ताजा वनडे रैंकिंग में विराट कोहली नंबर वन पर मौजूद हैं, लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि फेडरेशन औफ इंटरनेशनल क्रिकेटर्स एसोसिएशन (फिका) के टौप 10 खिलाड़ियों में विराट को जगह नहीं मिली है.

पहली बार टी20 प्लेयर परफौर्मेंस इंडेक्स जारी करने वाली फिका ने टौप 10 क्रिकेटर्स में विराट कोहली को शामिल नहीं किया है. इस लिस्ट में विराट 13 वें स्थान पर हैं.

दरअसल, यहां खिलाड़ियों के चुनाव करने का तरीका थोड़ा अलग है, तो आइये जानते हैं कि कैसे तैयार हुआ टी20 प्लेयर परफौर्मेंस इंडेक्स-

FICA ने ‘द क्रिकेटर’ और क्रिकेट आर्काइव के कुछ विशेषज्ञों के साथ मिलकर 18 महीनों में ये परफौर्मेंस इंडेक्स तैयार किया है. इस इंडेक्स को तैयार करते वक्त बहुत सी बातों को ध्यान में रखा गया. जैसे कि 180 के लक्ष्य का पीछा करते हुए 100 के स्ट्राइक रेट से बनाए गए. स्पेशलिस्ट लोगों ने इंडेक्स के लिए स्ट्राइक रेट, टीम के स्कोर में कितना फीसदी योगदान रहा, बाउंड्री स्ट्राइक रेट जैसी बातों को भी शामिल किया.

ये बात बेहद हैरत में डालती है कि विराट कोहली इन सभी मामलों में 12 बल्लेबाजों से पीछे छूट गए. जबकि विराट कोहली दुनिया के सबसे बेहतरीन टी20 बल्लेबाजों में से एक हैं. वो इकलौते खिलाड़ी हैं जो 2 हजार टी20 रनों के करीब हैं और उनका औसत भी 50 से ज्यादा है. टी20 रैंकिंग में भी वो तीसरे पायदान पर हैं.

आईसीसी की ताजा रैंकिंग में कोहली का नाम टेस्ट में नंबर दो, तो वहीं टी20 में नंबर तीन पर मौजूद है. हालांकि, फिका के इस लिस्ट में कोहली कई दिग्गजों से पीछे हैं. FICA की लिस्ट में नंबर 1 पर हैं औस्ट्रेलियाई बल्लेबाज ग्लेन मैक्सवेल. मैक्सवेल के अलावा क्रिस गेल, एबी डी विलियर्स, डेविड वार्नर, शाहिद अफरीदी, क्रिस मारिस, शोएब मलिक और शेन वाटसन को भी विराट से आगे रखा गया है.

कास्टिंग काउच पर बोली रवीना टंडन, कहा मुझसे मेरे हीरो भी डरते थे

बौलीवुड एक्ट्रेस रवीना टंडन कास्टिंग काउच जैसे गंभीर मुद्दे पर बयान देने की वजह से चर्चा में आ गईं हैं. उन्होंने एक टीवी शो के दौरान कहा कि यह उन्हीं के साथ होता है जो समझौता कर लेता है. उन्होंने साथ ही इस मामले में दोनों तरफ के लोगों को जिम्मेदार बताया. रवीना ने कहा कास्टिंग काउच किसी पर जोर देकर नहीं होता है. यह दोनों तरफ की भागीदारी से ही हो सकता है. उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि जो लोग काम के लिए डेसप्रेट होते हैं यह उन्हीं के साथ ज्यादातर होता है. रवीना को बौलीवुड में उनके बिंदास स्टाइल के लिए जाना जाता है.

रवीना ने हाल ही में टौक शो चौपाल का हिस्सा बनीं. वह पिछले काफी समय से भारतीय सिनेमा का हिस्सा रही हैं इसलिए उनसे इंडस्ट्री के गंभीर मुद्दे पर बात की गई. शो के होस्ट ने जब रवीना से कास्टिंग काउच पर उनकी राय जाननी चाही तो उन्होंने कहा, ‘सच कहूं तो मेरे साथ ये कभी हुआ नहीं है.

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यहां कास्टिंग काउच और एक सहकर्मी के रिलेशनशिप और यौन उत्पीड़न के बीच में फर्क समझना होगा. कास्टिंग काउच तब होता है जब आप पर प्रेशर हो कि जब तक आप मुझे खुश नहीं करेंगे तब तक मैं आपको खुश नहीं करूंगा. दुर्भाग्य से लेकिन ऐसा कुछ कभी मेरे साथ नहीं हुआ. ज्यादातर तो मेरी फिल्म के हीरो भी मेरे से डरा करते थे. सौभाग्य से मैंने कभी इसका सामना नहीं किया’.

रवीना ने आगे कहा, ‘ज्यादातर यह उन्हीं के साथ होता है जो काम के लिए बहुत डेसप्रेट होते हैं या ओवर एम्बीशियस होते हैं. उन्हें लगता है कि बस इसी तरह से सफलता पाई जा सकती है. मैं इसमें दोनों पक्षों को समान भागीदार मानती हूं. यह समान रूप से आपके काम को लेकर आतुर होने की वजह से ही होता है’.

यहां रवीना से यह भी जानने की कोशिश की गई कि क्या कास्टिंग काउच का सामना फिल्मी बैकग्राउंड से जुड़े लोगों को भी करना पड़ता है या जो बाहर से आते हैं उन्हें ही इसे लिए अप्रोच किया जाता है. रवीना ने इस पर कहा, ‘ऐसा बिल्कुल नहीं है कि यह सिर्फ छोटे शहर के या बाहर से आए लोगों के साथ होता है. इसक सामना हर लेवल के लोगों को करना पड़ता है. यह हर किसी के साथ हो सकता है, लेकिन यह आप पर है कि आप क्या चाहते हैं’.

पीएनबी के बाद अब एक और बैंक में हुआ बड़ा घोटाला

नीरव मोदी के पीएनबी को 11,400 करोड़ रुपये का चूना लगाने के बाद धोखाधड़ी के एक के बाद एक कई मामले सामने आ रहे हैं. अब बैंक औफ महाराष्ट्र ने दिल्ली के कारोबारी अमित सिंगला और अन्य पर लोन धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया है. सीबीआई ने इस मामले को दर्ज कर लिया है. बैंक औफ महाराष्ट्र की तरफ से सीबीआई से की गई शिकायत में बताया गया कि सिंगला की आशीर्वाद चेन कंपनी ने बैंक से 9.5 करोड़ रुपये का लोन लिया था.

इससे पहले शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र स्थित ओरिएंटल बैंक औफ कौमर्स में करीब 389.95 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का मामला सामने आया है. मामले में दिल्ली के हीरा निर्यातक कंपनी के खिलाफ केस दर्ज किया गया है. हरियाणा स्थित गुरुग्राम के सेक्टर-32 स्थित ओबीसी बैंक के ब्रांच से यह फर्जीवाडा हुआ है. लिहाजा बैंक के एजीएम स्तर के अधिकारी ने इस मामले की जानकारी सीबीआई को लिखित तौर पर दी और सीबीआई ने मामला दर्ज करके तफ्तीश शुरू कर दी है.

सीबीआई ने द्वारका दास सेठ इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ इस कथित धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है. सार्वजनिक क्षेत्र के ओरिएंटल बैंक औफ कामर्स ने छह महीने पहले सीबीआई से शिकायत की थी. उसी पर कार्रवाई करते हुए जांच एजेंसी ने कंपनी और उसके सभी निर्देशकों सभ्य सेठ, रीता सेठ, कृष्ण कुमार सिंह, रवि सिंह तथा एक अन्य कंपनी द्वारका दास सेठ सेज इनकारपोरेशन के खिलाफ मामला दर्ज किया है.

इस फर्जीवाड़े की गंभीरता को देखते हुए CBI ने दिल्ली के ज्वेलर समेत कई लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है. दिलचस्प बात यह है कि बैंक ने 31 मार्च 2014 को कंपनी को NPA के लिस्ट में भी डाल दिया था, लेकिन उसके बाद भी यह खेल जारी रहा. NPA की लिस्ट में शामिल होने के बावजूद कंपनी को करोडों का लोन मिलता रहा.

कंपनी ने 2007 से 2012 के दौरान ओरिएंटल बैंक औफ कामर्स से विभिन्न क्रेडिट सुविधाएं लीं. इस दौरान यह क्रेडिट राशि 389.95 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. बैंक ने अपनी शिकायत में कहा है कि कंपनी सोना और अन्य बेशकीमती जवाहरात खरीदने को अन्य लेनदारों को भुगतान करने के लिए लेटर्स औफ क्रेडिट (एलओसी) का इस्तेमाल कर रही थी तथा फर्जी लेनदेन के सहारे देश के बाहर सोना और धन भेज रही थी. सीबीआई की एफआइआर में भी यह बात दर्ज है. यह कंपनी अब मुखौटा कंपनियों के नाम पर भी व्यापारिक लेन-देन में लिप्त पाई गई है.

नीरव मोदी की ब्रांडिड घड़ियां जब्त की

दूसरी ओर पंजाब नेशनल बैंक में कथित फर्जीवाड़ा मामले में अपनी जांच विस्तारित करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शुक्रवार (23 फरवरी) को नीरव मोदी की पत्नी एमी को पूछताछ के लिए समन भेजा और साथ ही नीरव की बैंकों में जमा राशि तथा शेयरों सहित लगभग 44 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त कर ली. ईडी ने अरबपति हीरा आभूषण कारोबारी से जुड़ी एक वर्कशाप से बड़ी संख्या में आयातित घड़ियां भी जब्त कर लीं.

ईडी के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने धनशोधन रोकथाम कानून के तहत नीरव मोदी समूह के 30 करोड़ रुपये के बैंक खातों और 13.86 करोड़ रुपये के शेयरों पर ताजा जब्ती आदेश जारी किया है. उन्होंने कहा कि नीरव की पत्नी एवं अमेरिकी नागरिक एमी को सम्मन जारी करते हुए केंद्रीय जांच एजेंसी ने नीरव के रिश्तेदार एवं गीतांजलि जेम्स के प्रमोटर मेहुल चोकसी को पूछताछ के लिए 26 फरवरी को मुंबई स्थित ईडी कार्यालय बुलाया है.

पूछताछ के लिए दी गई 22 फरवरी की तारीख पर आने में विफल रहे नीरव को भी इसी दिन यानी कि 26 फरवरी को एजेंसी के समक्ष पेश होने के लिए सम्मन जारी किया गया है. अधिकारियों ने बताया कि एजेंसी ने पिछले हफ्ते विभिन्न स्थानों पर नीरव से जुड़ी संपत्तियों पर छापेमारी के बाद बड़ी संख्या में आयातित घड़ियां, स्टील की 176 अल्मारियां, 158 बौक्स और 60 कंटेनर जब्त किए हैं.

आज ही के दिन वनडे में दोहरा शतक जड़ने वाले पहले खिलाड़ी बने थे सचिन

टी20 क्रिकेट के आने के बाद वनडे क्रिकेट में काफी बदलाव आ गए हैं एक जमाने में 50 ओवर के मैच की एक पारी में 400 रन बनाना नामुमकिन लगता था. इसी तरह वनडे में किसी एक खिलाड़ी का 200 रन बनाना भी नामुमकिन लगता था. लेकिन आज वनडे में दोहरा शतक जमाने वाले कई खिलाड़ी हैं. भारत के रोहित शर्मा तो इस काम को तीन बार अंजाम दे चुके हैं. लेकिन वनडे क्रिकेट में सबसे पहले 200 रन आज यानि 24 फरवरी को ही बनाए गए थे और यह उपलब्धि किसी और ने नहीं, बल्कि भारत में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले खिलाड़ी ने हासिल की.

जी हां, आज ही के दिन साल 2010 में सचिन तेंदुलकर ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ग्वालियर वनडे में क्रिकेट इतिहास में पहली बार वनडे में 200 रन का व्यक्तिगत स्कोर बनाने का कारनामा किया था. इस समय पूरी दुनिया में सचिन उन गिने चुने खिलाड़ियों में सबसे आगे चल रहे थे जिनसे सभी को उम्मीद थी कि वे 200 रन बना देंगे. और 2010 में सचिन तेंदुलकर ने इसे कर दिखाया.

उस समय दक्षिण अफ्रीका की टीम भारत के दौरे पर आई हुई थी. आज ही के दिन ग्वालियर में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच दूसरा वनडे खेला जा रहा था. तीन मैचों की सीरीज का पहला मैच भारत ने केवल एक रन से जीता था. भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने टौस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला लिया. भारत की ओर से पारी की शुरुआत सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग ने की थी लेकिन भारत ने सहवाग का विकेट जल्दी ही खो दिया.

सहवाग केवल 11 गेंदों में 9 रन ही बना सके. लेकिन सचिन कुछ और ही इरादे से बल्लेबाजी करने उतरे थे. चौथे ओवर में 25 के स्कोर पर सहवाग के आउट होने के बाद दिनेश कार्तिक के साथ सचिन ने अपने शानदार शौट्स खेलना शुरु कर दिया और दोनों ने 194 की साझेदारी कर 34वें ओवर में भारत का स्कोर 219 तक पहुंचा दिया.

हालांकि कार्तिक 85 गेंदों पर 79 रन बना कर आउट हो गए, जबकि तब तक सचिन ने अपना शतक भी पूरा कर लिया था. आमतौर पर ऐसी स्थिति में टीमें बड़े स्कोर की ओर तो बढ़ती दिखाई देती हैं पर ऐसा हो नहीं पाता, लेकिन सचिन दूसरी इबारत लिखने को तैयार थे.

सचिन का साथ देने आए युसुफ पठान ने रन गति को धीमा पड़ने नहीं दिया और दोनों ने तेजी से रन बनाते हुए 42वें ओवर में ही भारत का स्कोर 300 रन पर पहुंचा दिया. पठान केवल 23 गेंदों पर ही 36 रन बनाकर आउट हुए. इसके बाद कप्तान धोनी ने आते ही ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करते हुए सचिन का भरपूर साथ दिया. सचिन ने पचासवें ओवर की तीसरी गेंद पर अपना स्कोर 200 पर पहुंचा कर इतिहास रच दिया. इस पारी में सचिन ने केवल 147 गेंदों का ही सामना किया और 25 चौके और तीन छक्के लगाए.

इस मैच में भारत ने कुल 401 रन बनाए थे और दक्षिण अफ्रीका को भारत ने 153 रन से हराकर ऐतिहासिक जीत हासिल कर ली थी. बताने की जरूरत नहीं भारतीय पारी के आधे रन बनाने वाले सचिन तेंदुलकर ही इसमें मैन औफ द मैच रहे थे.

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