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पूनम का गंदा खेल : हुस्न और हवस में किया ये खूनी कारनामा

गुना के कैंट इलाके के उस घर को शहर का हर बाशिंदा जानता था कि वह पूनम दुबे उर्फ पक्का का है. पूनम उर्फ पक्का अधेड़ावस्था में दाखिल होने के बाद भी निहायत  खूबसूरत और सैक्सी महिला थी. वह सभ्य समाज की एक ऐसी महिला थी, जो किन्हीं वर्जनाओं में नहीं जीती थी, बल्कि अपनी शर्तों और मरजी से काम करते हुए खुद अपने उसूल गढ़ती थी.

एक मामूली खातेपीते अग्रवाल परिवार में जन्मी पूनम उर्फ पक्का के कदम जवानी की दहलीज पर रखते ही बहकने लगे थे. परिवार और सामाजिक संस्कारों की बेडि़यां उन्हें बांध नहीं पाईं. वह एक ऐसी बहती नदी की तरह थी, जिस का बहाव अपने साथ बहुत कुछ बहा ले जाता है. उसे अपनी खूबसूरती का अहसास अच्छी तरह था. जब भी वह शहर की गलियों और चौराहों से गुजरती, लोगों की निगाहें उस के हसीन और गठीले बदन से चिपक जाती थीं.

पूनम का रहने का अपना अलग स्टाइल था. कभी वह जींसटौप में नजर आती तो कभी सलवारसूट में और कभीकभार वह साड़ी भी पहन लेती थी. होठों पर गहरी सुर्ख लिपस्टिक  उस का ट्रेड मार्क थी. इस हालत में वह दूसरी लड़कियों की तरह शरमातीझिझकती नहीं थी. शायद यही वजह थी कि हर कोई उसे हासिल कर लेना चाहता था, लेकिन 2-4 घंटे के लिए, हमेशा के लिए उस के साथ शादी के बंधन में बंधने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा था.

पूनम एक बदनाम लड़की थी. बहुत कम उम्र में बगैर कोई तपजप किए उसे बाजार में प्रचलित यह ज्ञान मुफ्त में मिल गया था कि दुनिया नश्वर है और शरीर एक साधन, साध्य नहीं. लिहाजा अपने हुस्न का इस्तेमाल करने में उस ने कंजूसी नहीं बरती. इस का मतलब यह भी नहीं था कि उसे उस ने यूं ही हर किसी पर लुटा दिया. पूनम का शरीर सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए था, जिन की जेब में उस की कीमत देने लायक पैसा होता था.

शुरू में पूनम खुलेआम यह सब नहीं करती थी. गुना मध्य प्रदेश का छोटा सा शहर है, जहां के लोग एकदूसरे के बारे में आमतौर पर सब कुछ जानते हैं. संबंध न बिगड़े, इस डर या लिहाज से कुछ लोग भले ही न बोलें, पर चौराहों पर दिलचस्प विषयों पर चर्चा करने का मौका कोई नहीं छोड़ता. पूनम के मामले में भी ऐसा ही था.

पूनम चौराहों की चर्चा का एक अहम किरदार बन चुकी थी, जिस के बारे में खुलेआम पहली बार तब कुछ कहा गया था, जब सालों पहले उस ने अपने मुंहबोले भाई अजय दुबे से शादी कर ली थी. अजय उस के भाई का दोस्त था, जिसे वह राखी बांधती थी. यही वजह थी कि अजय से शादी की बात जिस ने भी सुनी, कलयुगी रिश्तों को कोसते हुए यही कहा कि ‘क्या जमाना आ गया है, जिसे भैया मानती थी, उसी को सैंया बना लिया, लानत है.’

पूनम को इन बातों से कोई लेनादेना नहीं था. मुंहबोले अंतरजातीय भाई से प्यार हो गया तो उस ने दुनियाजमाने को धता बताते हुए उस से शादी करने का भी दुस्साहस कर डाला, जो एक लिहाज से बहुत ज्यादा गलत बात नहीं थी.

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गोलगप्पे बेच कर घर चलाने वाले अपने पिता का घर छोड़ कर वह पति के घर आ गई. मांबाप और भाईबहन का सिर समाज के सामने झुका कर पूनम को बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ. जिसे वह प्यार मान बैठी थी, वह दरअसल एक उम्र का आकर्षण भर था. पानी के बुलबुले और बियर के झाग जैसा, जो जल्दी ही बिखर गया. लेकिन वह रही पति के घर में ही, जिस से उस के एक बेटा भी हुआ, जिस का नाम उस ने किशोर रखा.

महत्त्वाकांक्षी पूनम और उस की आदतों से अजय ने समझदार, पर विवश पुरुष की तरह समझौता सा कर लिया था. कहने को तो वह नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड में ठेकेदारी करता था, पर उस की शानोशौकत की एक बड़ी वजह पत्नी की कमाई थी. पैसों के बाबत पूनम कोई मेहनतमजदूरी वाला काम या नौकरी नहीं करती थी. फिर भी पैसा उस पर बरसता था.

शहर के रसूखदारों, नेताओं, व्यापारियों और पुलिस वालों का पूनम के घर आनाजाना आम बात थी. उस के घर में किसी को किसी बात की मनाही नहीं थी. सफेदपोश लोगों से गुलजार पूनम के घर में महफिलें जमती थीं. जाम छलकते थे और वह सब कुछ होता था, जिस की समाज और कानून के लिहाज से मनाही है.

फिर भी किसी की हिम्मत या मजाल नहीं थी कि पूनम को कुछ कहे, क्योंकि कानून के रखवालों, सत्ता के दलालों और नामी गुंडेमवालियों के पांव पूनम की चौखट पर अपनी छाप छोड़ते रहते थे. कभी जिस जिंदगी के ख्वाब अजय ने कमसिन पूनम के साथ जीने के देखे थे, वे पूनम की मरजी की बलि चढ़ गए थे, इसलिए उस ने खुद को पूनम के अनुसार ढाल लिया था. वह देखता सब कुछ था, पर बोलता कुछ नहीं था.

इधर कुछ दिनों से पूनम महसूस करने लगी थी कि उस में शायद अब पहले सा आकर्षण नहीं रहा. इस की वजह उस की ढलती उम्र है, यह भी उस की समझ में आने लगा था. पहले के मुकाबले आमदनी कम हो चली थी. चहेतों की तादाद भी घट रही थी. उसे पहली बार भविष्य की चिंता हुई. एक दिन वह बूढ़ी हो जाएगी, तब क्या होगा? अब तक मर्दों की यह फितरत उस की समझ में आ चुकी थी कि मर्द जवान रहने तक ही पैसा लुटाते हैं, उस के बाद कन्नी काटने लगते हैं.

पूनम का युवा हो चला बेटा किशोर भी मां के नक्शेकदम पर चलने लगा था, जिस की कोई खास चिंता उसे नहीं थी. किशोर नौवीं क्लास से ज्यादा नहीं पढ़ सका था और 17 साल की उम्र में ही जाम छलकाने लगा था. वह अय्याशी भी करने लगा था, जिस पर ऐतराज जताने वाला कोई नहीं था. घर में क्या होता है, यह किशोर को मालूम ही नहीं था, बल्कि वह खुद भी उस माहौल का हिस्सा बन चुका था.

जिस आजादी और अय्याशी के सपने इस उम्र में लड़के देखा करते हैं, वह किशोर को तोहफे के रूप में मिली थी. पढ़ाई का दबाव नहीं, कोई रोकटोक नहीं, उलटे हर वह सहूलियत उसे मिल रही थी, जो आमतौर पर इस उम्र में नहीं मिलनी चाहिए. पूनम की जिंदगी एक आम गृहस्थ औरत की जिंदगी नहीं थी. ठीक उसी तरह किशोर की जिंदगी आम किशोरों जैसी नहीं थी, जो इस उम्र में कुछ बन जाने के सपने देखते हैं, संघर्ष करते हैं और अनुशासन में रहते हैं.

जिंदगी से लापरवाह और आवारा किशोर को इस बात का अंदाजा हो चला था कि मां इन दिनों पैसों और भविष्य को लेकर चिंतित रहने लगी है. यह उस के लिए भी चिंता की बात थी कि बगैर कुछ किएधरे पैसे आने बंद हो गए तो उस की आजादी और अय्याशी दोनों खत्म हो जाएंगे.

कहने वाले गलत नहीं कहते कि एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुदबखुद खुल जाता है. यही पूनम के साथ हुआ. अभी उस की आमदनी कम हुई थी, बंद नहीं हुई थी. इसलिए वह एक झटके में इतना कमा लेना चाहती थी कि बुढ़ापे तक आराम से खा सके. उस पर न्यौछावर होने वाले हमउम्रों की तादाद कम होने लगी तो एक दिन उस के खुराफाती दिमाग में करामाती आइडिया आया. इस आइडिया या शिकार का नाम था हेमंत मीणा.

किशोर के जो इनेगिने दोस्त बेधड़क उस के घर आया करते थे, हेमंत उन में से एक था. 2 साल पहले ही हेमंत की किशोर से दोस्ती हुई थी, जो देखते ही देखते ऐसी परवान चढ़ी कि हेमंत किशोर के घर का एक हिस्सा बन गया. यहां उसे हर तरह की छूट थी. पूनम को वह आंटी कहता था और मां की तरह उस का सम्मान करता था.

17 साल के हेमंत के पिता अंतर सिंह मीणा गुना के सिंचाई विभाग में कार्यालय अधीक्षक जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं. हेमंत उन का एकलौता बेटा होने के कारण जान से भी ज्यादा प्यारा था. उन की 2 संतानें सांप के काटने से मर चुकी थीं, इसलिए वह और उन की पत्नी, दोनों हेमंत पर जान छिड़कते थे. उस की महंगी से महंगी फरमाइश पलक झपकते पूरी करते थे.

अंतर सिंह जानते थे कि पूनम की छवि अच्छी नहीं है, इस के बावजूद पुत्रमोह के चलते वह हेमंत की किशोर से दोस्ती के बारे में कभी कुछ कह नहीं पाए. हेमंत में कोई गलत आदत या ऐब नहीं था, इसलिए उसे ले कर वह बेफिक्र थे.

वह जानते थे कि घर के अलावा अगर वह कहीं जाता है तो अपने दोस्त किशोर के यहां ही जाता है. लेकिन कोई गलत आदत उस ने नहीं पाली है.

यहीं अंतर सिंह मात खा गए. खेलीखाई पूनम को अपने भविष्य की चिंता का निराकरण हेमंत में नजर आया. उसे पता था कि अंतर सिंह के पास पैसों की कमी नहीं है और वह अपने एकलौते बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. उसे लगा कि यही मौका है, जब वह एक लंबी छलांग लगा कर इस नन्हे से खरगोश का शिकार कर के जिंदगी आराम से गुजार सकती है.

कुछ ही दिनों में जाने क्या हुआ कि हेमंत किशोर की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आने लगा. मौका देख कर एक दिन पूनम ने नौसिखिए हेमंत को जब आदम और हौवा वाले सेब का फल चखाया तो वह उस का दीवाना हो गया. इस उम्र में सैक्स की लत अगर पेशेवर और तजुर्बेकार हाथों से लगे तो अंजाम क्या होता है, यह हर कोई जानता है.

बहुत जल्द हेमंत पूनम के जिस्म के समंदर में गोते लगाने लगा. यह उस के लिए एक नया और सुखद अहसास था. आंटी बेतकल्लुफ हो कर तरहतरह से उसे एक ऐसा सुख दे रही थी, जिस के बारे में वह सुनता भर आया था.

हेमंत के अलावा किशोर के जो दोस्त नियमित उस के घर आते थे, उन में लोकेश लोधा, ऋतिक नामदेव और नदीम (बदला हुआ नाम) प्रमुख थे. ये सभी पूनम की मौजूदगी में ही महफिल जमा कर बीयर पीते, सिगरेट फूंकते. पूनम इन के लिए स्नैक्स वगैरह का इंतजाम करती थी.

इन दोस्तों की अपनी अलगअलग दुखद कहानियां थीं. लोकेश के पिता नीरज सिंह कैंसर से पीडि़त थे तो ऋतिक के पिता शिवराज पेशे से इलैक्ट्रिशियन थे, जिन का अपनी पत्नी से अलगाव हो चुका था. ऋतिक की मां इंदौर जा कर रहने लगी थी. इन का साथी नदीम जो किशोर की संगति में पड़ कर राह भटक चुका था, उस के मातापिता शिक्षक हैं, इसलिए पढ़ाईलिखाई में वह काफी होशियार था. हाईस्कूल की परीक्षा में 90 प्रतिशत अंकों के साथ उस ने स्कूल में टौप किया था.

नई उम्र के इन लड़कों की महफिल के बारे में कैंट तो कैंट, पूरे गुना के लोग जानते थे, पर मामला और घर चूंकि पूनम का था, इसलिए सभी खामोश रहते थे. महफिल के दौरान ही हेमंत की निगाहें पूनम के गदराए बदन और नाजुक अंगों को छूने लगीं तो वह मुसकरा कर उस की आग को और हवा देने लगी थी, जिस से वक्त पर बकरा हलाल करने में आसानी रहे.

हेमंत अब तक सोचनेसमझने की ताकत खो बैठा था. चूंकि नया खून था, इसलिए रोजरोज उबलता था और रोजरोज उस उबाल को पूनम कुछ इस तरह ठंडा करती थी कि हेमंत को सिवाय उस के कुछ सूझता ही नहीं था.

शिकार को जाल में पूरी तरह फंसा देख पूनम ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. वह हेमंत के आगे पैसों का रोना रोती तो हेमंत तुरंत अपनी जेब खाली कर देता. धीरेधीरे वह घर से भी पैसे चुरा कर लाने लगा. इस पर भी पूनम पैसों का रोना रोती तो वह अपनी इस अधेड़ प्रेमिका के लिए अपनी मां के जेवरात चुरा कर लाने लगा. उस ने मंगलसूत्र जैसी सुहाग की निशानी भी घर से चुरा कर पूनम के हवाले कर दी थी.

मुमकिन है, अंतर सिंह और उन की पत्नी को इस बात का अंदाजा रहा हो, पर वे चुप रहे हों कि घर से पैसे गायब हो रहे हैं, लेकिन हेमंत की इच्छाएं पूरी करने में वह हिचकिचाए कभी नहीं, न ही उस से कभी पूछताछ की.

बीती 17 मई को हेमंत ने मांबाप से मोटरसाइकिल खरीदने के लिए 40 हजार रुपए मांगे तो उन्होंने झट से उस के हाथ में पैसे थमा दिए. बेटे के चेहरे पर पसरी खुशी ही उन का मकसद रह गई थी, इसलिए उन्होंने उस की यह इच्छा भी पूरी कर दी.

हेमंत रुपए ले कर घर से निकला तो लौट कर नहीं आया. जब काफी रात हो गई तो अंतर सिंह को चिंता हुई. पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से पहले उन्होंने पूनम के घर जाना ठीक समझा, क्योंकि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि हेमंत किशोर के साथ होगा. जब किशोर ने अनभिज्ञता जाहिर की तो उन की पेशानी पर बल पड़ गए और उन का मन शंका से भर उठा. तुरंत वह थाना कैंट गए और हेमंत की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

किसी पर शक, पुलिस के इस चलताऊ और रूटीन सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि हेमंत का पूनम के यहां काफी आनाजाना था. अभी तक किसी ने फिरौती नहीं मांगी थी, इसलिए उन की चिंता बढ़ती जा रही थी. मामला चूंकि पूनम का था, इसलिए पुलिस वाले अंजान बन कर खामोश रहे.

अगले दिन 18 मई को अंतर सिंह सीधे एसपी औफिस जा पहुंचे और एसपी अविनाश सिंह को सारी बात बताई. हेमंत का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. अविनाश सिंह ने थाना कैंट के थानाप्रभारी आशीष सप्रे को निर्देश दिया तो अंतर सिंह द्वारा जताए शक के आधार पर उन्होंने किशोर को थाने बुलवा लिया.

किशोर से पूछताछ की गई तो बड़ी मासूमियत से उस ने यह तो स्वीकार कर लिया कि हेमंत उस के घर काफी आताजाता था, पर वह कहां गया, यह उसे नहीं मालूम. इस पर पुलिस वालों ने यह धारणा कायम कर ली कि कहीं हेमंत खुद ही तो नहीं गायब हो गया? इस थ्यौरी में कोई खास दम नहीं था, लेकिन काफी खोजबीन के बाद भी हेमंत का कोई सुराग न मिलना दुश्चिंताएं बढ़ा रहा था. अगर उस का अपहरण हुआ था तो फिरौती मांगी जानी चाहिए थी, जो अब तक नहीं मांगी गई थी.

48 घंटे तक अंतर सिंह और उन की पत्नी की जान हेमंत को ले कर हलक में अटकी रही. 19 मई को अंतर सिंह के मोबाइल पर हेमंत का नंबर डिसप्ले हुआ तो एकबारगी वह खुशी से झूम उठे कि बेटे का फोन है. उन्होंने तुरंत फोन रिसीव किया, पर दूसरी ओर से अंजान सी आवाज आई कि हेमंत उस के कब्जे में है और अगर वह उसे सहीसलामत वापस चाहते हैं तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लें.

फोन करने वाले ने इतना कह कर तुरंत फोन काट दिया तो अंतर सिंह ने एसएमएस के जरिए रुपए देने के लिए हामी भर दी. इस के बाद उन्होंने न जाने कितनी बार हेमंत के फोन पर फोन किए, पर वह पहले की तरह स्विच औफ बताता रहा. अब तक गुना में हेमंत की गुमशुदगी को ले कर खासा हल्ला मच चुका था और हर कोई पूनम और किशोर को संदेह की नजरों से देख रहा था.

लेकिन फिरौती वाले इस फोन ने सब के दिमाग के फ्यूज उड़ा दिए, क्योंकि वे दोनों अपने घर पर थे. अंतर सिंह ने तुरंत इस फोन के बारे में पुलिस को बताया. अंधेरे में हाथपांव मार रही पुलिस को एक दिशा मिल गई. पुलिस ने जब हेमंत का नंबर ट्रैकिंग पर रखा तो उस की लोकेशन इंदौर की मिली. इस से अंदाजा लग गया कि हेमंत का अपहरण कर के उसे इंदौर में रखा गया है. पुलिस की एक टीम तुरंत इंदौर रवाना हो गई.

इस दौरान थानाप्रभारी आशीष सप्रे इस खोजबीन में लगे रहे कि शायद किसी की अंतर सिंह से कोई दुश्मनी रही हो और उस ने बदला लेने के लिए हेमंत का अपहरण कर लिया हो. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. इस के बाद उन्होंने अपना सारा ध्यान इंदौर पर फोकस कर लिया. अब तक पुलिस की यह थ्यौरी भी दम तोड़ चुकी थी कि हेमंत खुद कहीं गायब हो गया होगा.

उम्मीद थी कि अपहर्त्ता दोबारा फोन करेंगे कि पैसे कब, कहां और कैसे देने है? परंतु हफ्ते भर तक कोई फोन नहीं आया तो फिर से मामला उलझ गया. इंदौर गई पुलिस टीम के हाथ भी कुछ नहीं लगा. वह खाली हाथ लौट आई. चूंकि फोन हेमंत का ही इस्तेमाल किया गया था, इसलिए गुत्थी और उलझ गई थी कि अपहर्त्ता कौन हो सकते हैं?

जब हफ्ते भर कोई फोन नहीं आया तो अंतर सिंह के साथसाथ पुलिस वालों की चिंताएं और परेशानियां बढ़ गईं. अंतर सिंह के दिमाग में तरहतरह के खयाल आ रहे थे, जिन में एक यह भी था कि कहीं उन के पुलिस में जाने की बात अपहर्त्ताओं को पता न चल गई हो, जिस से डर कर उन्होंने फोन न किया हो?

कहीं ऐसा न हो कि हेमंत को… इस से आगे और ज्यादा सोच कर वह कांप उठते थे. 50 लाख की रकम उन के लिए बड़ी जरूर थी, लेकिन रकम दे कर भी क्या गारंटी थी कि बदमाश हेमंत को छोड़ ही देंगे? अब पतिपत्नी और रिश्तेदारों सहित परिचित भी हेमंत के सहीसलामत वापस आने की दुआ मांगने लगे थे. सभी उसे अपनेअपने स्तर से ढूंढ रहे थे और अपहर्त्ताओं के अगले कदम या फोन का इंतजार कर रहे थे, जोकि फिर कभी नहीं आया.

इस मामले में अब करने को कुछ नहीं रह गया था, सिवाय इंतजार के. 26 मई को थाना कैंट पुलिस को पटेलनगर इलाके की रेलवे क्रौसिंग के पास एक किशोर की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. पुलिस मौके पर पहुंची और जांच शुरू कर दी. लाश अधजली थी. जलने के निशान ताजा थे, इसलिए अंदाजा लगाया गया कि बीती रात ही उस की हत्या कर के लाश को जलाने की कोशिश की गई थी.

थाने आ कर पुलिस अपनी खानापूर्ति कर रही थी कि तभी बदहवास सा एक आदमी अपने बेटे के लापता होने की रिपोर्ट लिखाने आया. पुलिस को शक हुआ कि कहीं मृतक ही तो उस का बेटा नहीं है, लिहाजा वह उस आदमी को ले कर घटनास्थल पर पहुंची. लाश देखते ही वह आदमी सकते में आ गया. रोते हुए उस ने बताया कि यह लाश उस के बेटे ऋतिक की है.

पूछताछ में चौंकाने वाली यह बात सामने आई कि ऋतिक पिछली रात अपने जिगरी दोस्त किशोर दुबे के साथ गया था. किशोर दुबे यानी गुना की रसूखदार महिला पूनम का बेटा. इस से पुलिस वालों के कान खड़े हो गए, क्योंकि हेमंत की गुमशुदगी के बारे में उस के पिता अंतर सिंह ने पूनम और उस के बेटे पर शक जताया था.

पुलिस वालों ने बिना समय गंवाए पूनम के घर छापा मारा तो किशोर घर पर ही मिल गया. उस से ऋतिक के बारे में पूछताछ की गई तो शुरू में तो वह गुमराह करने वाली कहानियां सुनाता रहा. टीआई आशीष सप्रे सख्ती से भी पेश आए, पर वह अपनी ‘मैं कुछ नहीं जानता’ वाली रट से टस से मस नहीं हुआ.

अब तक काफी कुछ उगते सूरज की तरह नजर आने लगा था, जो किसी बड़े हादसे की तरफ इशारा कर रहा था. हादसा क्या था, इस बाबत जरूरी था कि किशोर अपना मुंह खोले, जो उस ने मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ने पर खोला. और जब उस ने मुंह खोला तो पुलिस वालों की बोलती बंद हो गई.

किशोर ने जो बताया, वह दिल दहला देने वाला था. उस ने न केवल ऋतिक की, बल्कि हेमंत और लोकेश लोधा की भी हत्या की थी. उस ने माना कि चूंकि हेमंत के उस की मां से नाजायज संबंध थे, इसलिए वह उस से नाराज था. बेटा कैसा भी हो, जाने क्यों अपनी मां के प्रेमी को बरदाश्त नहीं कर पता. फिर यहां तो मां का महबूब उस का पक्का दोस्त था. किशोर ने अपना अपराध स्वीकार कर के पुलिस को जो बताया, वह इस प्रकार था—

उस ने अपने दोस्तों ऋतिक, लोकेश और नदीम के साथ मिल कर हेमंत के अपहरण की योजना बनाई. चारों को पता था कि हेमंत के पिता के पास काफी पैसा है, इसलिए वह उसे छुड़ाने के लिए मुंहमांगी रकम दे देंगे, जिसे वे चारों आपस में बांट कर ऐश की जिंदगी जिएंगे.

हेमंत का अपहरण कर के लोकेश को उस का फोन दे कर इंदौर भेजा गया, जहां से उस ने फिरौती के लिए फोन किया. लोकेश अपना काम कर के गुना वापस आ गया, इसलिए पुलिस इंदौर में हाथपांव मार कर वापस आ गई.

हेमंत को अपने दोस्तों की हरकतों पर शक हुआ तो वह घर जाने की जिद करने लगा. जबकि वह रोकने पर अकसर किशोर के घर रुक जाया करता था. लेकिन अपने सिर पर मंडराते खतरे को भांप कर वह रोकने पर भी नहीं रुक रहा था. इस के बाद किशोर और उस के दोस्तों की मजबूरी यह हो गई कि हेमंत की जिद का कोई इलाज किया जाए.

हेमंत को उलझाए रखने के लिए किशोर और नदीम उसे बीयर पिलाने खेजरा रोड ले गए. नशा चढ़ने के बाद किशोर ने हेमंत से उस के और मां के संबंधों के बारे में पूछा तो वह भड़क उठा. इस पर नाराज हो कर किशोर ने पूरी ताकत से उस के सिर पर बीयर की बोतल दे मारी. वार इतना तेज था कि उसी एक वार में हेमंत का सिर फट गया और उस की मौत हो गई.

अब समस्या लाश को ठिकाने लगाने की थी. किशोर और नदीम शहर के पैट्रोल पंप से पैट्रोल खरीद कर लाए और हेमंत की लाश जला दी. दूसरी ओर लोकेश और ऋतिक इंदौर से लौटे तो हेमंत की हत्या की बात सुन कर वे घबरा गए, क्योंकि हत्या उन की योजना में शामिल नहीं थी. किशोर और नदीम के सामने दोनों ने हेमंत की हत्या पर ऐतराज जताया और सब कुछ पुलिस को बताने की बात कही.

यह किशोर के लिए नया सिरदर्द था, इसलिए उस ने सारी बात पूनम को बताई. शायद उसे सब कुछ पहले से ही पता था. एक तरह से यह अपरहण उस की सलाह पर ही किया गया था. उस ने लोकेश और ऋतिक की जिद से छुटकारा पाने के लिए एक और खतरनाक साजिश रच डाली. इसी योजना के तहत उस ने उन दोनों को हेमंत की तरह लोकेश को भी ठिकाने लगाने को कहा.

26 मई को किशोर और नदीम लोकेश को ऊमरी रोड जंगल में ले गए और वहां उस की हत्या कर लाश को जला दिया. अब बारी ऋतिक की थी. उसे भी दोनों अगले दिन 27 मई को गुलाबगंज की रेलवे क्रौसिंग पर ले गए और गला घोंट कर कत्ल कर दिया.

पिछली 2 हत्याओं की तरह उन्होंने ऋतिक की लाश पर भी पैट्रोल छिड़क कर उसे भी जला दिया. लोकेश की लाश की तरह ऋतिक की भी लाश पूरी तरह नहीं जल पाई थी. किशोर शाम को ऋतिक को उस के घर से बुला कर लाया था. जब वह घर नहीं लौटा तो उस के पिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी थी. अगर तुरंत उस की शिनाख्त न हुई होती तो गुना का यह ट्रिपल मर्डर केस शायद इतनी जल्दी नहीं सुलझ पाता.

किशोर और नदीम के साथ पूनम को भी गिरफ्तार कर लिया गया था, जिस ने शुरू में तो रसूखदारों से अपने संबंधों की धौंस दे कर बचने की कोशिश की. यही नहीं, अपने हुस्न का जाल भी टीआई आशीष सप्रे पर फेंका.

गुना में एक के बाद एक कर के 3 किशोरों की लाशें मिलने से शहर में सनसनी मच गई थी. पूनम का असली चेहरा भी उजागर हो चुका था, लेकिन वे चेहरे जरूर पुलिस वालों की ढील या मेहरबानी से, कुछ भी कह लें, ढके रहेंगे, जिन्हें फोन कर के पूनम ने खुद को बचाने की गुहार लगाई थी.

अब तीनों जेल में हैं. पुलिस ने पुख्ता सबूत जुटा कर मामला अदालत को सौंप दिया है. जो गहने हेमंत ने घर से चुरा कर पूनम को दिए थे, वे उस ने एक सुनार के यहां 25 हजार रुपए में गिरवी रख दिए थे. पुलिस ने गहने बरामद कर लिए हैं. इस के अलावा बीयर और पैट्रोल की बोतलें भी बरामद कर ली गई हैं.

पुलिस ने जब पूनम को रिमांड पर लिया तो उस का कोई चाहने वाला तो दूर, घर वाले भी मिलने नहीं आए. पुलिस ने अजय दुबे पर दबाव डाला तो वह कतई घबराया हुआ नहीं था. उलटे उस ने बड़ी बीतरागी भाव से बताया कि उस ने हमेशा पत्नी और बेटे को गलत राह पर चलने से रोकने की कोशिश की, पर मांबेटे ने उस की एक नहीं सुनी. पूनम के लालच और वासना ने 3 घरों के चिराग हमेशा के लिए बुझा दिए और खुद के बेटे की भी जिंदगी बरबाद कर दी.

मेरा कसूर क्या था : आखिर शाहीन की क्या गलती थी

3 जुलाई, 2017 की रात कोई 10 बजे अफजल का परिवार खापी कर सोने की तैयारी कर रहा था कि उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उस समय मोबाइल अफजल की बीवी नूरी के पास था. नूरी ने देखा, फोन हाशिम का है. हाशिम उस का सगा भाई था. भाई का नंबर देख कर उस ने जैसे ही फोन रिसीव किया, दूसरी ओर से हाशिम ने घबराए स्वर में कहा, ‘‘बाजी, मेरी कार का ऐक्सीडेंट हो गया है. तुम्हारी भाभी की हालत बहुत नाजुक है. आप लोग जितनी जल्दी हो सके, आ जाइए.’’

इस के बाद हाशिम ने बहन को वह जगह बता दी, जहां ऐक्सीडेंट हुआ था. बहन को ऐक्सीडेंट की बात बता कर हाशिम ने अपने घर वालों को भी फोन कर के ऐक्सीडेंट की बात बता दी थी. भाई की बात सुन कर नूरी हक्काबक्का रह गई. उस ने तुरंत यह बात अफजल और घर के अन्य लोगों को बताई.

अफजल ने हाशिम के ऐक्सीडेंट की बात रिश्तेदारों को बताई और नूरी को साथ ले कर चल पड़ा. ये लोग वहां पहुंचते, जहां ऐक्सीडेंट हुआ था, उस के पहले ही हाशिम खुद कार चला कर एक निजी अस्पताल पहुंच गया था. डाक्टरों ने उस की पत्नी यानी शाहीन को तो मृत घोषित कर दिया था, जबकि उसे भरती कर के उस का इलाज शुरू कर दिया था.

भरती होने से पहले हाशिम ने घर वालों को शाहीन के खत्म होने की बात बता दी थी. हाशिम की कार को ही देख कर लगता था कि उस की किसी चीज से जबरदस्त टक्कर हुई थी. उस की कार का शीशा बुरी तरह से टूटा हुआ था. इस में उस की पत्नी शाहीन की मौत हो गई थी, जबकि उस के सिर में मामूली चोट आई थी.

शाहीन की मौत की खबर सुन कर उस के घर में मातम छा गया था. वह 3 भाइयों की एकलौती बहन थी. वह 3 महीने की थी, तभी उस की मां की मौत हो गई थी. शाहीन के अब्बू नसीम और भाइयों ने जैसेतैसे पालपोस कर उसे बड़ा किया था. यही वजह थी कि उस की मौत की खबर से उस के घर में कोहराम मच गया था.

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ऐक्सीडेंट का मामला होने के बावजूद न तो हाशिम ने और न ही उस के घर वालों ने इस बात की सूचना पुलिस को दी थी. रिश्तेदारों के कहने पर शाहीन के घरवालों ने भी ऐक्सीडेंट मान कर बिना पोस्टमार्टम कराए ही 3 जुलाई, 2017 को उत्तराखंड के काशीपुर के मोहल्ला करबला बस्ती अल्लीखां स्थित रहमत शाह बाबा वाले कब्रिस्तान में शाहीन की लाश को दफना दिया था.

लेकिन शाहीन को दफन कर सभी घर आए तो उन्हें एक बात परेशान करने लगी कि शाहीन की मौत ऐक्सीडेंट से हुई थी तो उस का शरीर नीला क्यों पड़ गया था? नसीम अहमद अपनी लाडली बेटी शाहीन का जनाजा उठते देख फूटफूट कर रो पड़े थे. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन की जवान बेटी की मौत इस तरह होगी.

घर आ कर नसीम अहमद और उन के बेटे इसी बात को ले कर परेशान थे. अब उन्हें इस बात का अफसोस होने लगा था कि उन्हें जल्दबाजी में शाहीन को दफनाना नहीं चाहिए था. उन्हें संदेह हुआ तो सब ने निर्णय लिया कि शाहीन की मौत की सच्चाई का पता लगाना जरूरी है. उन्होंने तय किया कि पुलिस की मदद से लाश कब्र से निकलवा कर उस का पोस्टमार्टम कराया जाए.

फिर क्या था, अगले दिन अफजल घर वालों के साथ काशीपुर कोतवाली पहुंचा और बहन की हत्या की आशंका प्रकट करते हुए बहनोई हाशिम अली के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. उस ने पुलिस को बताया कि मौत के बाद शाहीन का शरीर नीला पड़ गया था, इसलिए उन्हें लगता है कि उस की मौत कार ऐक्सीडेंट में नहीं, बल्कि किसी अन्य वजह से हुई है. इसलिए अब वह उस की लाश को कब्र से निकलवा कर पोस्टमार्टम कराना चाहता है.

मामले को गंभीरता से लेते हुए कोतवाली प्रभारी चंचल शर्मा ने एसडीएम विनीत तोमर से बात की तो उन्होंने लाश को कब्र से निकालने की अनुमति दे दी. अनुमति मिलते ही चंचल शर्मा, एसआई पी.डी. जोशी और अन्य पुलिसकर्मियों के साथ जा कर मृतका शाहीन के सगेसंबंधियों की मौजूदगी में कब्रिस्तान में दफनाई शाहीन की लाश निकलवा कर बारीकी से निरीक्षण किया तो उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नजर नहीं आया.

इस से साफ हो गया कि शाहीन की मौत ऐक्सीडेंट से नहीं, बल्कि किसी अन्य वजह से हुई थी. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

शक के आधार पर पुलिस ने उसी दिन मृतका शाहीन के पति हाशिम अली को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया. घटनास्थल पर कोई ऐसा सबूत नहीं मिला कि कार किसी वाहन से या किसी पेड़ से टकराई हो. कार का अगला हिस्सा बिलकुल सहीसलामत था, सिर्फ उस का आगे का शीशा टूटा हुआ था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार शाहीन की मौत 36 से 72 घंटे पहले हो चुकी थी, जबकि हाशिम के अनुसार, कार का ऐक्सीडेंट हुए हुए अभी 24 घंटे भी पूरे नहीं हुए थे.

इस के बाद हाशिम अली शक के दायरे में आ गया. पुलिस को अब विसरा रिपोर्ट का इंतजार था. विसरा रिपोर्ट आई तो उस में साफ लिखा था कि मृतका की मौत जहर से हुई थी. फिर तो साफ हो गया कि हाशिम अली ने बीवी की हत्या कर उस की मौत को ऐक्सीडेंट में दिखाने की कोशिश की थी.

इस के बाद पुलिस ने हाशिम अली को बाकायदा गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने घटनास्थल के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी तो हाशिम की करतूत का खुलासा हो गया. फिर तो हाशिम के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं रहा. उस ने शाहीन की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

काशीपुर के मोहल्ला कानूनगोयान में मोहम्मद नसीम अपने परिवार के साथ रहते थे. पत्नी की मौत के बाद उन के परिवार में 3 बेटे अशरफ, अफजल और जाकिर तथा एक बेटी शाहीन थी. जिस समय नसीम की पत्नी की मौत हुई थी, बच्चे छोटेछोटे थे. बेटी शाहीन तो मात्र 3 महीने की थी. इस के बावजूद उन्होंने दूसरी शादी नहीं की.

जैसेतैसे नसीम ने बच्चों को पाला. बेटे थोड़ा बड़े हुए तो उन के काम में हाथ बंटाने लगे. अशरफ और जाकिर इनवर्टर मरम्मत का काम करने लगे तो अफजल वैल्डिंग का काम करने लगा. शाहीन बड़ी हुई तो उस ने पढ़ने से साफ मना कर दिया, क्योंकि वह अब्बू और भाइयों की परेशानी देख रही थी, इसलिए पढ़ाई छोड़ कर उस ने घरगृहस्थी संभाल ली.

समय पर नसीम ने बेटों की शादी कर दी थी. घर में बहुएं आ गईं तो शाहीन का बोझ काफी कम हो गया. तीनों भाइयों की शादी होतेहोते शाहीन भी शादी लायक हो गई. नसीम उस के लिए लड़का ढूंढने लगे. काशीपुर के ही मोहल्ला अली खां में नसीम का साढू मोहम्मद अली रहता था. उस से नसीम के 2 रिश्ते थे. एक रिश्ते से वह उन का साढ़ू लगता था तो दूसरे रिश्ते से समधी. क्योंकि मोहम्मद अली की बेटी नूरी उन के बेटे अफजल से ब्याही थी.

ऐसे में ही कभी नसीम ने शाहीन की शादी की बात मोहम्मद अली से चलाई तो उस ने कहा, ‘‘अरे समधीजी, बेटी की शादी को ले कर इतना परेशान क्यों हो रहे हो? आप की बेटी के लायक एक लड़का मेरी नजर में है. आप जब चाहें, देख लें.’’

मोहम्मद अली का इतना कहना था कि नसीम लड़का देखने के लिए बेताब हो उठे. उन्होंने लड़का दिखाने को कहा तो मोहम्मद अली ने अपने बेटे हाशिम अली को बुला कर कहा, ‘‘हमारा हाशिम भी तो शादी लायक है, क्यों न आप अपनी बेटी की शादी इसी से कर दें.’’

हाशिम अली को देख कर नसीम को झटका सा लगा. उन्होंने कहा, ‘‘आप कह तो ठीक रहे हैं, लेकिन इस के लिए बच्चों से सलाह लेनी पड़ेगी. उस के बाद ही कोई निर्णय लूंगा.’’

नसीम ने बेटों से बात की तो सभी को यह रिश्ता ठीक लगा. हाशिम देखने में तो ठीकठाक था ही, वह रोजीरोजगार से भी था. उस की काशीपुर की मेनबाजार में जूतेचप्पलों की दुकान थी. उस की दुकान चलती भी ठीकठाक थी, इसलिए नसीम के बेटों ने हामी भर दी. इस के बाद दोनों परिवारों ने बैठ कर शाहीन और हाशिम अली की शादी तय कर दी.

शाहीन और हाशिम अली की शादी तय हो गई तो दोनों के घर वाले शादी की तैयारी में जुट गए. इस के बाद 28 जुलाई, 2007 को दोनों का निकाह हो गया तो शाहीन ससुराल आ गई.

शादी के कुछ दिनों बाद तक सब ठीकठाक चला. हाशिम शाहीन को दिल से प्यार करता था. कभी भी उस ने किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं दिया. उस की दुकान अच्छी चल रही थी, जिस से उसे अच्छी आमदनी हो रही थी. दुकान की ही कमाई से उस ने सैंट्रो कार भी खरीद ली थी.

आदमी की कमाई अच्छी हो तो वह पैसे भी खुले हाथों से लुटाता है. लेकिन अगर वही पैसा गलत कामों में लगने लगे तो कमाई का कोई मतलब नहीं रह जाता. ऐसा ही हाशिम अली के साथ हुआ. वह शराब पीने लगा. शराब के बाद उसे शबाब का शौक लग गया. गलत लोगों के साथ पड़ कर वह इस तरह बिगड़ गया कि दोनों हाथों से पैसे लुटाने लगा.

आए दिन हाशिम दोस्तों के साथ अय्याशी करने रामनगर जाने लगा. वहां वह महंगे होटलों में लड़कियों के साथ मौजमस्ती करता. इस से पैसे तो बरबाद हो रहे ही थे, दुकानदारी पर भी असर पड़ रहा था.

अब तक शाहीन के 2 बच्चे हो चुके थे, बेटी लाइवा और बेटा हमजा. पति की करतूतों का पता शाहीन को चला तो उसे बच्चों की चिंता सताने लगी. उस ने हाशिम अली को बहुत समझाया, पर पत्नी के समझाने का असर उस पर जरा भी नहीं हुआ. मजबूर हो कर शाहीन ने हाशिम की शिकायत अपने अब्बू और भाइयों से कर दी. नसीम ने हाशिम अली को अपने घर बुला कर समझाने की कोशिश की तो उस ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को झूठा बताया.

शाहीन ने सोचा था कि शिकायत करने से हाशिम अली डर कर सुधर जाएगा, लेकिन हुआ इस का उलटा. हाशिम अली शाहीन से खफाखफा रहने लगा. अब वह उस से ठीक से न बात करता और न उस के पास उठताबैठता. ठीक से दुकान पर न बैठने की वजह से कमाई भी कम हो गई थी. जबकि हाशिम अली के खर्च बहुत बढ़ गए थे.

इस स्थिति में मियांबीवी में तनाव रहने लगा. शाहीन का समझाना हाशिम अली को बुरा लगता था. इसी वजह से हाशिम ज्यादातर घर से बाहर ही रहने लगा. हाशिम को आपराधिक धारावाहिक काफी पसंद थे. बीवी की पाबंदियों से वह परेशान रहने लगा था. शाहीन अब उसे पत्नी नहीं, चुडै़ल नजर आने लगी थी. जिसे अब वह एक पल भी नहीं देखना चहता था.

शायद यही वजह थी कि आपराधिक धारावाहिक देखतेदेखते उस ने खुद अपराध करने का विचार कर लिया. वह जानता था कि अपराध का परिणाम अच्छा नहीं होता, लेकिन उसे लगता था कि वह इस तरह अपराध करेगा कि कोई उसे पकड़ नहीं पाएगा. यही सोच कर उस ने शाहीन को खत्म करने की योजना बना डाली.

योजना बना कर हाशिम शाहीन को अपने मकड़जाल में फंसाने लगा. अपना व्यवहार बदल कर वह शरीफ बन गया. वह शाहीन और बच्चों को प्यार करने का नाटक करने लगा. उस के इस बदलाव से शाहीन हैरान थी, लेकिन उसे खुशी भी थी. उस ने यह बात मायके वालों से बताई तो उन्हें भी खुशी हुई.

हाशिम में आए बदलाव को देख कर शाहीन के भाइयों ने उसे अलग मकान दिलाने का विचार किया. अफजल ने बहन के लिए पदमावती कालोनी में एक मकान खरीद दिया. बस इसी के बाद हाशिम ने षडयंत्र रचना शुरू कर दिया. शाहीन को विश्वास में ले कर उस ने समझाया कि कारोबार बढ़ाने के लिए उसे पैसों की जरूरत है. क्यों न वह अपने मकान पर कर्ज ले ले.

शाहीन ने इस बारे में अब्बू और भाइयों से सलाह ली तो हाशिम अली की बेहतरी के लिए सभी ने हां कर दी. इस के बाद हाशिम अली ने मकान पर 12 लाख रुपए कर्ज ले लिया.

हाशिम अली ने बिना किसी को बताए शाहीन का 8 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा करा दिया, जिस का नामिनी उस ने खुद को बनाया. इतना सब कर के वह निश्ंिचत हो गया. शाहीन को लग रहा था कि हाशिम अब पूरी तरह से सुधर गया है, जबकि वह कुछ और ही तैयारी कर रहा था.

संयोग से उसी बीच शाहीन ने हाशिम अली को किसी औरत से फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो दोनों में संबंध फिर बिगड़ गए. इस तरह हाशिम की योजना पर पानी फिर गया. शाहीन को कहीं से पता चला कि हाशिम के एक नहीं, कई औरतों से संबंध हैं तो दोनों के बीच तनाव काफी बढ़ गया.

अब रोज ही घर में क्लेश होने लगा. इस से हाशिम अली शाहीन को रास्ते का कांटा समझ कर उसे जल्दी निकालने की योजना बनाने लगा. उसे पूरा विश्वास था कि वह अपनी बनाई योजना में शाहीन को खत्म भी कर देगा और किसी को उस पर शक भी नहीं होगा. शाहीन के खत्म होते ही वह मालामाल हो जाएगा. उस के मकान और बीमे से मिलने वाली रकम से वह मौज करेगा.

अपनी उसी योजना के अनुसार, हाशिम अली दिल्ली माल लाने गया तो वहीं से जहर ला कर घर में रख लिया. अब वह मौके की तलाश में लग गया. 1 जुलाई, 2017 की रात किसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच बहस हो गई. हाशिम जानता था कि इस तरह उस की योजना सफल नहीं हो पाएगी. योजना को सफल बनाने के लिए उस ने शाहीन से माफी मांग कर कहा कि अब वह ऐसी गलती फिर कभी नहीं करेगा.

भोलीभाली शाहीन उसे अब तक न जाने कितनी बार माफ कर चुकी थी, इसलिए उस दिन भी माफ कर दिया. अगले दिन यानी 2 जुलाई, शनिवार को हाशिम अली शाहीन और बच्चों को कार से घुमाने ले गया. दरअसल घुमाने के बहाने वह ऐसी जगह देखने गया था, जहां अपनी योजना को अंजाम दे सके. पहले रामनगर रोड पर गया, उस के बाद वह दढि़याल वाली रोड पर गया.

अपना काम करने के लिए दढि़याल वाली रोड उसे ज्यादा उचित लगी, क्योंकि रात को वह सुनसान हो जाती थी. जगह देख कर वह वापस आ गया. घर आ कर शाहीन बच्चों और हाशिम अली को खाना खिला कर घर के काम निपटाने लगी.

उसी बीच हाशिम अली ने कोल्डड्रिंक की बोतल में दिल्ली से लाया जहर मिला कर रख दिया. काम निपटा कर शाहीन उस के पास आ कर बैठी तो उस ने प्यार जताते हुए फ्रिज से कोल्डड्रिंक की बोतल ला कर जहर वाली कोल्डड्रिंक शाहीन को थमा दी और दूसरी खुद ले ली.

जहर वाली कोल्डड्रिंक पी कर शाहीन का काम तमाम हो गया तो हाशिम ने उसे बिस्तर से उतार कर नीचे लेटा दिया और खुद बच्चों के पास जा कर लेट गया. सुबह 4 बजे उठ कर उस ने शाहीन की लाश को कार की डिक्की में रख कर अपने 5 साल के बेटे हमजा को बगल वाली सीट पर बैठा कर कहा कि उस की मम्मी रामनगर में है, वह उसे वहीं ले चल रहा है.

3 जुलाई, 2017 को पूरे दिन वह शाहीन की लाश को ठिकाने लगाने के लिए इधरउधर घूमता रहा, लेकिन दिन में उसे मौका नहीं मिला. रात 8 बजे वह दढि़याल वाली रोड पर पहुंचा तो सुनसान जगह पर कार रोक कर अंधेरे का फायदा उठाते हुए अगली सीट पर सो रहे बेटे को पिछली सीट पर लिटा दिया और कार की डिक्की खोल कर शाहीन की लाश को निकाल कर अगली सीट पर इस तरह बैठा दिया, जैसे वह सो रही हो.

इस के बाद हाशिम ने कार का अगला शीशा तोड़ दिया और कार को सड़क के किनारे इस तरह खड़ी कर दी, जैसे कोई वाहन वाला उस की कार को टक्कर मार कर चला गया हो. शाहीन मरी पड़ी थी. जरा सा झटका लगते ही उस का सिर टूटे शीशे से जा टकराया. अपनी योजना को अंजाम दे कर खुद को चोटिल दिखाने के लिए उस ने अपना सिर कार की बौडी पर पटक दिया.

इस तरह उस ने अपनी योजना को अंजाम दे दिया. घर वालों ने शव भी दफना दिया. लेकिन शाहीन के घर वालों को शक इस बात पर हुआ कि शाहीन की लाश नीली क्यों थी?

हाशिम को सुंदर और सुशील बीवी मिली थी. ससुराल भी अच्छी थी. उस के फूल से 2 सुंदर बच्चे भी थे. लेकिन शराब और शबाब के चक्कर में उस ने अपनी बसीबसाई गृहस्थी उजाड़ दी. पत्नी को मार कर वह जेल चला गया, जिस से उस के बच्चे अनाथ हो गए.

हाशिम के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने अपराध संख्या 350/2017 पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. शाहीन के बच्चे अब अपने मामा अफजल के पास हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नादान मोहब्बत का नतीजा : शिल्पी को आखिर क्या हासिल हुआ

उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के थाना छत्ता की गली कचहरी घाट में रामअवतार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की वह शादी कर चुका था, मंझली के लिए लड़का ढूंढ रहा था. सब से छोटी शिल्पी हाईस्कूल में पढ़ रही थी.

शिल्पी की उम्र  भले ही कम थी, पर उस की शोखी और चंचलता से रामअवतार और उस की पत्नी चिंतित रहते थे. पतिपत्नी उसे समझाते रहते थे, पर 15 साल की शिल्पी कभीकभी बेबाक हो जाती थी. इस के बावजूद रामअवतार ने कभी यह नहीं सोचा था कि उन की यह बेटी एक दिन ऐसा काम करेगी कि वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

कचहरी घाट से कुछ दूरी पर जिमखाना गली है. वहीं रहता था शब्बीर. उस का बेटा था इरफान, जो एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. इरफान के अलावा शब्बीर के 2 बेटे और थे.

शिल्पी जिमखाना हो कर ही स्कूल आतीजाती थी. वह जब स्कूल जाती तो इरफान अकसर उसे गली में मिल जाता. आतेजाते दोनों की निगाहें टकरातीं तो इरफान के चेहरे पर चमक सी आ जाती. इस से शिल्पी को लगने लगा कि इरफान शायद उसी के लिए गली में खड़ा रहता है.

शिल्पी का सोचना सही भी था. दरअसल शिल्पी इरफान को अच्छी लगने लगी थी. यही वजह थी, वह उसे देखने के लिए गली में खड़ा रहता था. कुछ दिनों बाद वह शिल्पी से बात करने का बहाना तलाशने लगा. इस के लिए वह कभीकभी उस के पीछेपीछे कालोनी के गेट तक चला जाता, पर उस से बात करने की हिम्मत नहीं कर पाता. जब उसे लगा कि इस तरह काम नहीं चलेगा तो एक दिन उस के सामने जा कर उस ने कहा, ‘‘मैं कोई गुंडालफंगा नहीं हूं. मैं तुम्हारा पीछा किसी गलत नीयत से नहीं करता. मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो?’’ शिल्पी ने पूछा.

‘‘बात सिर्फ इतनी है कि मैं तुम से दोस्ती करना चाहता हूं.’’ इरफान ने कहा.

‘‘लेकिन मैं तुम से दोस्ती नहीं करना चाहती. मम्मीपापा कहते हैं कि लड़कों से दोस्ती ठीक नहीं.’’ शिल्पी ने कहा और मुसकरा कर आगे बढ़ गई.

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इरफान उस की मुसकराहट का मतलब समझ गया. हिम्मत कर के उस ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘कोई जल्दी नहीं है, तुम सोचसमझ लेना. मैं तुम्हें सोचने का समय दे रहा हूं.’’

‘‘कोई देख लेगा.’’ कह कर शिल्पी ने अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई. किसी लड़के ने उसे पहली बार ऐसे छुआ था. उस के शरीर में बिजली सी दौड़ गई थी. शिल्पी उम्र की उस दहलीज पर खड़ी थी जहां आसानी से फिसलने का डर रहता है. इरफान पहला लड़का था, जिस ने उस से दोस्ती की बात कही थी, पर मांबाप और समाज का डर आड़े आ रहा था.

इरफान के बारे में शिल्पी ज्यादा कुछ नहीं जानती थी. बस इतना जानती थी कि वह जिमखाना गली में रहता है. उसे उस का नाम भी पता नहीं था. धीरेधीरे इरफान ने उस के दिल में जगह बना ली. मिलने पर इरफान उस से थोड़ीबहुत बात भी कर लेता. पर उसे प्यार के इजहार का मौका नहीं मिल रहा था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘चलो, ताजमहल देखने चलते हैं. वहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’

शिल्पी ने हां कर दी तो दोनों औटो से ताजमहल पहुंच गए. वहां शिल्पी को जब पता चला कि उस का नाम इरफान है तो उस ने कहा, ‘‘ओह तो तुम मुसलमान हो?’’

‘‘हां, मुसलमान हूं तो क्या हुआ? क्या मुसलमान प्यार नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, ठीकठाक कमाता भी हूं. और मैं वादा करता हूं कि जीवन भर तुम्हारा बनकर रहूंगा. तुम्हें हर तरह से खुश रखूंगा.’’

इरफान देखने में अच्छाखासा था और ठीकठाक कमाई भी कर रहा था, केवल एक ही बात थी कि वह मुसलमान था. पर आज के जमाने में तमाम अंतरजातीय विवाह होते हैं. यह सब सोच कर शिल्पी ने इरफान की मोहब्बत स्वीकार कर ली. उस दिन के बाद वह अकसर उस के साथ घूमनेफिरने लगी.

मोहल्ले वालों ने जब शिल्पी को इरफान के साथ देखा तो तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने रामअवतार को बताया कि वह अपनी बेटी को संभाले. वह एक मुसलमान लड़के के साथ घूमतीफिरती है. कहीं उस की वजह से कोई बवाल न हो जाए.

बेटी के बारे में सुन कर रामअवतार के कान खड़े हो गए. दोपहर में जब वह घर पहुंचा तो पता चला कि शिल्पी अभी तक घर नहीं आई है. पत्नी ने बताया कि वह रोज देर से आती है. कहती है कि एक्स्ट्रा क्लास चल रही है.

रामअवतार दुकान पर लौट गया. कुछ देर बाद पत्नी का फोन आया कि शिल्पी आ गई है तो वह घर आ गया. उस ने शिल्पी से पूछताछ की तो उस ने कहा कि वह किसी लड़के से नहीं मिलती. छुट्टी के बाद मैडम क्लास लेती हैं. इसलिए देर हो जाती है.

रामअवतार जानता था कि शिल्पी झूठ बोल रही है. वह खुद उसे पकड़ना चाहता था, इसलिए उस ने उस से कुछ नहीं कहा. कुछ दिनों तक शिल्पी से कोई टोकाटाकी नहीं हुई तो वह निश्ंिचत हो गई. वह इरफान के साथ घूमनेफिरने लगी. फिर एक दिन रामअवतार ने उसे इरफान के साथ देख लिया. उस ने शिल्पी को डांटाफटकारा ही नहीं, उस का स्कूल जाना भी बंद करा दिया.

बंदिश लगने से शिल्पी का प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया. वह उस से मिलने के लिए बेचैन रहने लगी, जिस से उसे अपने ही घर वाले दुश्मन नजर आने लगे. अब घर उसे कैदखाना लगने लगा था. उस का मन कर रहा था कि किसी तरह वह इस चारदीवारी को तोड़ कर अपने प्रेमी के पास चली जाए. एक दिन उसे वह मौका मिला तो वह इरफान के साथ भाग गई.

हिंदू लड़की को मुसलमान लड़का भगा कर ले गया था. इस बात पर इलाके में तनाव फैल गया. थाना छत्ता में 28 अगस्त, 2010 को रामअवतार की तरफ से शिल्पी को भगाने वाले इरफान के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया. इस के बाद पुलिस सक्रिय हो गई. जल्दी ही पुलिस ने दोनों को ढूंढ निकाला. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया. चूंकि शिल्पी नाबालिग थी, इसलिए अदालत ने उसे उस के पिता को सौंप दिया और इरफान को जेल भेज दिया.

प्रेमी के जेल जाने से शिल्पी बहुत दुखी थी. वह अपने पिता के खिलाफ खड़ी हो गई. मांबाप और रिश्तेदारों ने शिल्पी को लाख समझाने की कोशिश की, पर उस के दिलोदिमाग से इरफान नहीं निकला. शिल्पी की उम्र भले ही कमसिन थी, पर उस की मोहब्बत तूफानी थी. जबकि समाज और कानून की नजर में उस की मोहब्बत बेमानी थी, क्योंकि वह नाबालिग थी.

इरफान 3 महीने बाद जेल से बाहर आ गया. उस के जेल से बाहर आने पर शिल्पी बहुत खुश हुई. दोनों के बीच चोरीछिपे मोबाइल से बातचीत होने लगी. शिल्पी पर नजरों का सख्त पहरा था. उसे घर से निकलने की इजाजत नहीं थी. वह अपने प्रेमी से मिलने के लिए छटपटा रही थी, पर रामअवतार और उस की पत्नी माया सतर्क थे.

शिल्पी और इरफान साथसाथ रहने का मन बना चुके थे. मांबाप की लाख निगरानी के बावजूद एक दिन रात में शिल्पी प्रेमी के पास पहुंच गई. इरफान इस बार उसे ले कर इलाहाबाद चला गया. इरफान ने लव मैरिज के लिए हाईकोर्ट के वकीलों से बात की, लेकिन शिल्पी नाबालिग थी, इसलिए कोई मदद नहीं कर सका.

इस के बाद इरफान ने एक काजी की मदद से शिल्पी से निकाह कर लिया. शिल्पी दोबारा घर से भागी थी. इस बार किसी ने विरोध नहीं किया, पर रामअवतार परेशान था. वह मदद के लिए पुलिस के पास पहुंचा तो पुलिस ने इरफान के घर वालों पर दबाव डाला. करीब एक महीने बाद इरफान शिल्पी के साथ वापस आ गया. पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, शिल्पी अभी भी नाबालिग थी, लेकिन इस बार उस ने पिता के साथ जाने से इनकार कर दिया. तब अदालत ने उसे नारी निकेतन तो इरफान को जेल भेज दिया.

प्रेमी युगल को कानून ने एक बार फिर जुदा कर दिया. लेकिन उन की मोहब्बत जुनूनी हो गई थी. शिल्पी अब अपने बालिग होने का इंतजार कर रही थी. इस से तय हो गया कि बाहर आने के बाद दोनों साथसाथ रहेंगे. तब साथ रहने का उन के पास कानूनी अधिकार होगा.

14 महीने बाद जब शिल्पी नारी निकेतन से बाहर आई, तब तक इरफान भी जेल से छूट चुका था. हालांकि नारी निकेतन के दरवाजे पर शिल्पी के मांबाप मौजूद थे, लेकिन शिल्पी ने साफ कहा कि वह अपने शौहर के साथ जाएगी. बेबस मांबाप देखते ही रह गए और बेटी प्रेमी के साथ चली गई. क्योंकि अब वह बालिग थी और अपनी मरजी की मालिक थी.

मांबाप के प्रति उस के मन में प्यार नहीं, नफरत थी. जिन के कारण उसे नारी निकेतन में रहना पड़ा तो प्रेमी को जेल में. शिल्पी जब नहीं मानी तो मांबाप ने भी उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. अब वह इस दर्द को भूलना चाहते थे कि बेटी ने समाज में उन्हें कितना जलील किया था.

शिल्पी ने अपनी दुनिया प्रेमी के साथ बसा ली थी. उस ने कभी भी नहीं जानना चाहा कि उस के कारण मांबाप का क्या हाल हुआ. किस तरह से वो अपनी तारतार हुई इज्जत के साथ जी रहे थे.

धीरेधीरे प्यार का नशा उतरने लगा और शिल्पी को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन वह पिता के घर पहुंच गई. मां का दिल पिघल गया, उस ने उसे गले से लगा लिया. उस दिन के बाद शिल्पी चोरीछिपे पिता के घर जाने लगी.

इरफान का काफी पैसा पुलिसकचहरी और इधरउधर की भागदौड़ में खर्च हो गया था. उस ने फिर से जूता फैक्ट्री में काम शुरू कर दिया था, लेकिन शिल्पी की ख्वाहिशें बढ़ रही थीं. उस का खयाल था कि शादी के बाद शौहर उसे एक रंगीन दुनिया में ले जाएगा, पर उस ने महसूस किया कि जिंदगी उतनी रंगीन नहीं है, जैसा कि उस ने सोचा था. उस की चाहतों की उड़ान बहुत ऊंची थी. उसे लग रहा था कि इरफान ने जो खुशियां देने का वादा किया था, वह पूरा नहीं कर पा रहा है.

एक दिन उस ने इरफान से कहा, ‘‘जब तक तुम प्रेमी थे, तब तक मोहब्बत से लबरेज थे. लेकिन अब जब शौहर हो गए हो तो लगता है कि तुम्हारी मोहब्बत भी ठंडी पड़ गई है.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारी मोहब्बत में मैं 2-2 बार जेल गया हूं. पुलिस के जुल्म सहे हैं. अब तुम मुझे ही ताने दे रही हो.’’ इरफान ने कहा.

‘‘मैं भी तो तुम्हारी खातिर नारी निकेतन में रही. मांबाप का घर छोड़ा, आज भी उन की उपेक्षा सह रही हूं.’’ शिल्पी ने तुनक कर कहा.

इसी तरह के छोटेछोटे झगड़ों में एक दिन इरफान ने उसे 2 तमाचे जड़ दिए तो शिल्पी हैरान रह गई पहले तो वह कहता था कि उसे फूलों की तरह रखेगा, उस ने उस पर हाथ उठा दिया. उस ने कहा कि अगर उसे पता होता कि उस की मोहब्बत इतनी कमजोर होगी तो वह उसे कभी स्वीकार न करती.

शिल्पी को लगा कि उस ने गलती कर दी है. लेकिन अब उसे जिंदगी इरफान के साथ ही गुजारनी थी. आखिर हिम्मत कर के वह मायके गई और रोरो कर मां को अपना दुख सुनाया. उस ने कहा कि इरफान पर काफी कर्जा हो गया, जिस से वह तनाव में रहता है. मां ने बेटी का दुख सुना और उसे माफ भी कर दिया. लेकिन जब रामअवतार को पता चला कि बेटी घर आई थी तो वह गुस्से से भर उठा. उस ने पत्नी से साफ कह दिया कि जिस आदमी को उस ने दामाद माना ही नहीं, वह उस की मदद कतई नहीं कर सकता.

घर में अब आए दिन झगड़े होने लगे थे. ससुराल में शिल्पी का कोई हमदर्द नहीं था. मायके वाले भी नहीं अपनाएंगे, शिल्पी यह भी जानती थी. वह तनाव में रहने लगी. उसे लगने लगा कि जिंदगी कैद के सिवाय कुछ नहीं है.

इरफान की समझ में आ गया कि मोहब्बत का खेल बहुत हो चुका है. उसे जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए पैसे की जरूरत थी, जिस के लिए मेहनत जरूरी थी. बेटी ने भले ही परिवार को दर्द दिया था, पर ममता मरी नहीं थी. मांबाप बेटी के लिए परेशान थे, पर वह उसे अपनाना नहीं चाहते थे.

12 दिसंबर, 2016 को रामअवतार को किसी ने फोन कर के बताया कि शिल्पी को मार दिया गया है. बेटी की मौत की खबर से रामअवतार सदमे में आ गया. उस ने तुरंत माया को यह खबर सुनाई और पत्नी के साथ शब्बीर के घर पहुंच गया, जहां मकान की ऊपरी मंजिल पर बेटी का शव पलंग पर पड़ा था. उस के गले पर जो निशान थे, उस से साफ लग रहा था कि उसे गला घोंट कर मारा गया है. बेटी की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगा.

पुलिस को भी खबर मिल गई थी. थाना छत्ता के थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह मय फोर्स के घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने रामअवतार से पूछताछ की तो उस ने बताया कि करीब सवा महीने पहले बेटी को फोन कर के बताया था कि इरफान उसे मारतापीटता है और मायके से पैसा लाने को कहता है.

बेटी ने परिवार को बड़ा जख्म दिया था, इस कारण वह बेटी से नाराज था. इसलिए उस समय उसने उस से ज्यादा बात नहीं की थी. वह यह नहीं जानता था कि इरफान उसे जान से ही मार डालेगा.

इरफान और उस के घर वाले फरार हो चुके थे. पुलिस ने रामअवतार और मोहल्ले वालों की मौजूदगी में घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

रामअवतार की तरफ से थाना छत्ता में शब्बीर और उस के बेटों इरफान, जमीर, फुरकान व शाहनवाज के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि शिल्पी की मौत दम घुटने से हुई थी. इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि यह हत्या का मामला था. पुलिस अब आरोपियों के पीछे लग गई. पुलिस ने आरोपियों के कई ठिकानों पर छापे मारे, लेकिन कोई भी हाथ नहीं लगा.

घटना के हफ्ते भर बाद शब्बीर पुलिस की गिरफ्त में आ गया. इस के बाद धीरेधीरे सभी आरोपी पकड़े गए. शब्बीर ने बताया था कि उस ने बहू को नहीं मारा. अगर उसे कोई परेशानी होती तो वह बेटे का विवाह हिंदू लड़की से न होने देता. उस ने उसे सम्मान के साथ घर में रहने की जगह दी.

शब्बीर के अनुसार शिल्पी की मौत में उस का कोई हाथ नहीं है. इरफान शिल्पी के साथ ऊपर के कमरे में रहता था. जबकि अन्य लोग नीचे रहते थे. चूंकि रिपोर्ट नामजद दर्ज कराई गई थी, इसलिए पुलिस ने उस का बयान ले कर उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने एकएक कर के सभी को जेल भेज दिया.

सिर्फ इरफान पुलिस की गिरफ्त से दूर था. पुलिस ने उस की भी सरगर्मी से तलाश शुरू की तो जून, 2017 में उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन उस ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया. उस का कहना था कि वह शिल्पी से मोहब्बत करता था. शिल्पी को खुश रखने के लिए वह मेहनत कर के पैसा कमा रहा था. उस ने खुद ही फांसी लगा कर जान दी है.

इरफान भी जेल चला गया. शिल्पी मोहब्बत में इस कदर बागी हुई कि अपनों के मानसम्मान की भी परवाह नहीं की, पर उस को यह नहीं मालूम था कि समाज के नियमों को तोड़ने वालों को समाज माफ नहीं करता.

रामअवतार भले बेटी से नाराज था, पर अपनी गुमराह बेटी को उस की मौत के बाद माफ कर चुका है, अब वह बेटी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है. वह नादान बेटी को गुमराह करने वालों को माफ नहीं करना चाहता बल्कि उन्हें सजा दिलाना चाहता है.

इन उपायों को आजमाएं और बालों को पतला होने से बचाएं

बालों का झड़ना ही समस्या नहीं है, बल्कि उन का पतला हो जाना भी एक बड़ी समस्या है और यह पुरुष और महिला दोनों की उम्र हो जाने पर होती है, लेकिन यही समस्या अगर कम उम्र में होने लगे, तो चिंता का विषय बन जाती है. पुरुष अधिकतर बालों के झड़ने की समस्या से परेशान होते हैं, जबकि ज्यादातर महिलाएं हेयर लौस से. हेयर लौस का अर्थ है बालों का पतला होना, क्योंकि हेयर थिनिंग से बालों का वौल्यूम धीरेधीरे घटता जाता है. इस से प्रत्येक बाल के व्यास में धीरेधीरे कमी आ जाती है. हालांकि यह प्रक्रिया बहुत धीमे होती है. लेकिन कुछ ही दिनों में बालों का करीब 15% वौल्यूम घट जाता है, क्योंकि झड़े बालों की जगह मजबूत बाल नहीं उग पाते. अगर बालों का झड़ने या पतला होने को रोका न जाए तो समस्या दिनबदिन गंभीर होती जाती है

इस बारे में ओजोन ग्रुप की हेयर ऐक्सपर्ट डा. उमा सिंह बताती हैं, ‘‘हेयर थिनिंग की समस्या अधिकतर बालों को सही पोषक तत्त्वों के न मिलने, हारमोनल बदलाव होने, मानसिक तनाव के बढ़ने और मैटोबोलिक असंतुलन की वजह से होती है. ऐंड्रोजोनिक थिनिंग जो अधिकतर पुरुष हारमोंस होते हैं, जेनेटिकली यह जन्म के बाद से निर्धारित होते हैं. लेकिन अगर किसी महिला में ये हारमोंस थोड़े से भी हों, तो ये हेयर फौलिकल को मजबूत करने में असमर्थ होते हैं, जिस से बाल पतले हो कर आसानी से झड़ने लगते हैं.’’

उचित पोषण जरूरी

बालों के पतला होने में हेयर कलरिंग, हाईलाइटिंग आदि सभी जिम्मेदार होते हैं. बारबार ऐसी चीजों के प्रयोग से स्कैल्प की सतह कमजोर हो जाती है, जिस से बाल झड़ते हैं. ऐसे में अगर किसी ने बालों के साथ इस तरह के प्रयोग किए हैं तो उसे अपने बालों का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है

हेयर थिनिंग में मानसिक तनाव का काफी योगदान होता है इसलिए महिलाएं हों या पुरुष सभी को इस से बचना चाहिए ताकि बालों का वौल्यूम ठीक रहे. इसे ठीक करने के कई उपाय आजकल बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें डाक्टर की सलाह के बिना नहीं अपनाना चाहिए:

अगर बात करें खानपान की तो पोषण युक्त आहार बालों के लिए हमेशा जरूरी है, जिस में विटामिंस और मिनरल्स अधिक मात्रा में हों. मौसमी और ताजा फल, सब्जियां, अंकुरित दालें, अंडे, सूखा मेवा आदि सभी संतुलित मात्रा में खाने चाहिए ताकि बालों की जड़ें मजबूत रहें और हमेशा नए बाल उगने में आसानी हो. इस के अलावा नियमित वर्कआउट, सही मात्रा में पानी पीना, नींद पूरी करना आदि सब आप की दिनचर्या में शामिल होना चाहिए. इन सब के बाद भी अगर आप के बाल झड़ते हों तो तुरंत ऐक्सपर्ट की सलाह लें.

पुरुषों में अधिक समस्या

महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा कम गंजेपन की शिकार क्यों होती हैं? पूछे जाने पर डा. उमा बताती हैं, महिलाओं को अगर बाल झड़ने की शिकायत होती है, तो वे शारीरिक और भावनात्मक रूप से परेशान हो जाती हैं. इतना ही नहीं, उन की सैल्फ ऐस्टीम भी कम हो जाती है. इस से उन के अंदर असुरक्षा की भावना अधिक होती है, ऐसे में वे इसे रोकने का प्रयास करती रहती हैं. पुरुषों में गंजेपन की वजह उन के हारमोंस और जीन्स हैं, जिस से उन के बाल झड़ जाते हैं. अत: बालों की सतह को हमेशा हर्बल उत्पाद से साफ रखें, जिस में औयल, शैंपू, कंडीशनर और हेयर सीरम का बहुत बड़ा सहयोग होता है. इस से स्कैल्प की कमजोर सतह को बल मिलता है और नए बालों के मजबूत होने के साथसाथ वौल्यूम भी बढ़ता है.

बालों को सही वौल्यूम और स्ट्रैंथ देने के लिए सही खानपान और लाइफस्टाइल का पालन करना जरूरी है ताकि बाल अगर अपनी मजबूती खोते भी हैं, तो सही खानपान से दोबारा ठीक हो जाएं. इस के लिए आप घर पर भी ये नुसखे अपना सकती हैं.

– 2-3 बड़े चम्मच मेथी के दोनों को रात भर भिगोए रखें. सुबह उन का पेस्ट बना लें. उसे बालों और स्कैल्प पर लगा लें. 30 मिनट लगाए रखने के बाद बालों को कुनकुने पानी से धो लें.

– 1 बड़ा चम्मच आंवले के चूर्ण को 2 बड़े चम्मच नारियल के तेल में मिला कर आंच पर गरम कर छान लें. इस मिक्सचर से स्कैल्प की मसाज करें. इसे रात भर लगाए रखें. सुबह शैंपू कर लें.

– अपनी स्कैल्प की हमेशा कोल्ड प्रैस्सड कैस्टर औयल से मसाज करें, इस से बालों की थिकनैस बढ़ती है. यह औयल बालों के झड़ने को भी कम करता है.

– अंडे की सफेदी को दही में मिला कर पैक बना कर बालों में लगाएं. इस से बालों को प्रोटीन मिलता है.

अपनी सुरक्षा अपने हाथ, सावधानियों को जानिए और सुरक्षित रहिए

हमें हत्याओं के लिए आतंकवादियों की क्या जरूरत है? हमारे निहत्थे, निर्दोष, आम लोगों को मारने के लिए हमारी रेलें, हमारे अस्पताल, हमारे हिंदू मेले, सिनेमाघर और अब रेस्तरां ही काफी हैं. मुंबई के कमला मिल कंपाउंड में बने  एक रेस्तरांबार में आग लगने से फंस गए लोगों में से 14 की तो मृत्यु हो चुकी है और लगभग 50 गरीब घायल हैं. पाकिस्तानियों को दोष देने से पहले हमें यह परखना होगा कि हम खुद अपनी सुरक्षा के प्रति कितने जागरूक हैं.

कमला मिल कंपाउंड में मकानों की छतों पर बने रेस्तराओं को नियम से बनाया गया था यह विवाद बेबुनियाद है. सरकारी अफसर कोई आसमान से टपके दूत नहीं हैं कि उन की मुहर लगने से हादसे ही नहीं होंगे. रेलों, बांधों, सड़कों, पुलों की दुर्घटनाएं साफ करती हैं कि सरकार जो कुछ चलाती है, वह उस के नियमों से बना होता है पर जानलेवा होता है.

आम नियोजक हादसों के प्रति कितना जागरूक है, यह देखना जरूरी है. ज्यादातर लोग कच्चे, अधपक्के मकानोंभवनों में रहने के इतने आदी हो चुके हैं कि उन्हें नियमों और गैरनियमों की चिंता ही नहीं होती है.

मुंबई के बैलार्ड एस्टेट इलाके में 100-150 साल पुराने भवन हैं जो कब के पुनर्निर्मित हो जोने चाहिए थे पर किराएदारों के जमे रहने के कारण खाली नहीं हो पा रहे. मुंबई शहर की अधिकतम पटरियों पर खोमचे लगे हैं और सड़क के किनारे पार्किंग बनी है. आम जनता मजे में सड़क के बीचोंबीच चलती है और वाहनों से छूती चलती है.

क्या सड़क पर चलने के लिए भी मुंबई म्यूनिसिपल कौरपोरेशन से अनुमति लेनी होगी? यह काम जनता को खुद करना होगा.

वन अबब रेस्तरां में जाने वाले कोई बेचारे गरीब नहीं थे कि सलमान खान की गाड़ी से कुचले जाएं. वे मोटा पैसा खर्च कर के आए थे और आलीशान बने एअरकंडीशंड रेस्तरां में बैठे थे. उन्हें अपनी सुरक्षा का खयाल नहीं था क्या? क्यों हम भेड़चाल में चलते हैं और फिर जोखिम लेते हैं?

सुरक्षा नियमों या नियमों के पालन से नहीं आती. सुरक्षा का वैध और अवैध निर्माण से भी कोई मतलब नहीं है. अपनी जान की सुरक्षा के प्रति सतर्क रहना हरेक का अपना काम है पर जब शहर की दोतिहाई आबादी हर रोज 1 मिनट रुकने वाली लोकल ट्रेन में घुसने की और निकलने की अभ्यस्त हो तो उस की सुरक्षा ग्रंथि कब की कुंद हो चुकी होती है.

कमला मिल कंपाउंड की तो छोडि़ए, मुंबई का तो चप्पाचप्पा असुरक्षित है. हर घर, हर स्कूल, हर दफ्तर खतरे में है. पर फिर भी लोग जी रहे हैं, जान हथेली पर रख कर, क्योंकि जान तो है, मरने की सोचने की भी मुंबई में किसी को फुरसत नहीं.

दांपत्य की तकरार, बिगाड़े बच्चों के संस्कार

वैवाहिक बंधन प्यार का बंधन बना रहे तो इस रिश्ते से बढि़या कोई और रिश्ता नहीं. परंतु किन्हीं कारणों से दिल में दरार आ जाए तो अकसर वह खाई में परिवर्तित होते भी देखी जाती है. कल तक जो लव बर्ड बने फिरते थे, वे ही बाद में एकदूसरे से नफरत करने लगते हैं और बात हिंसा तक पहुंच जाती है.

अतएव पतिपत्नी को परिवार बनाने से पहले ही आपसी मतभेद सुलझा लेने चाहिए और बाद में भी वैचारिक मतभेदों को बच्चों की गैरमौजूदगी में ही दूर करना उचित है ताकि उन का समुचित विकास हो सके.

छोटीछोटी बातों से झगड़े शुरू होते हैं. फिर खिंचतेखिंचते महाभारत का रूप ले लेते हैं. ज्यादातर झगड़े खानदान को ले कर, कमतर अमीरी के तानों, रिश्तेदारों, अपनों के खिलाफ अपशब्द या गालियों, कमतर शिक्षा व स्तर, कमतर सौंदर्य, बच्चे की पढ़ाई व परवरिश, जासूसी, व्यक्तिगत सामान को छूनेछेड़ने, अपनों की आवभगत आदि को ले कर होते हैं. यानी दंपती में से किसी के भी आत्मसम्मान को चोट पहुंचती है तो झगड़ा शुरू हो जाता है, फिर कारण चाहे जो भी हो.

नीचा दिखाना

चाहे पति हो या पत्नी कोई भी दूसरे को आहत कर देता है. नीता बताती है कि उस का पति हिमांशु आएदिन उस के मिडिल क्लास होने को ले कर ताने कसता रहता है. उसे यह बिलकुल बरदाश्त नहीं होता और फिर वह भी उस के बड़े स्तर वाले खानदान की ओछी बातों की लंबी लिस्ट पति को सुना देती है. तब हिमांशु को यह सहन नहीं होता और कहता है कि खबरदार जो मेरे खानदान के बारे में एक भी गलत बात बोली.

इस पर नीता कहती है कि बोलूंगी हजार बार बोलूंगी. मुझे कुछ बोलने से पहले अपने गरीबान में झांक लेना चाहिए.

बस इसी बात पर हिमांशु उस के गाल पर चांटा रसीद कर देता है. उस के मातापिता को गालियां भी दे देता. फिर तो नीता भी बिफरी शेरनी सी उठती और उस पर निशाना साध किचन के बरतनों की बारिश शुरू कर देती. 5 साल का उस का बेटा मोनू परदे के पीछे छिप कर सब देखने लगता. इस तरह रोज उस में कई बुरे संस्कार पड़ते जा रहे थे जैसेकि कैसे किसी को नीचा दिखा कर चोट पहुंचाई जा सकती है, कैसे मारापीटा जा सकता है, कैसे सामान फेंक कर भी चोट पहुंचाई जा सकती है, कैसे गालियों से, कैसे चीखते हुए किसी को गुस्सा दिलाया जा सकता है.

बात काटना या अनदेखी करना

बैंककर्मी सुदीप्ता हमेशा एलआईसी एजेंट अपने पति वीरेश की बात काट देती है. पति जो भी कुछ कह रहा हो फौरन कह देती है कि नहीं ऐसा तो नहीं है. कई बार सब के सामने वीरेश अपमान का घूंट पी लेता है. कई बार गुस्सा हो कर हाथ उठा देता है तो वह मायके जा बैठती. बच्चों का स्कूल छूटता है छूटे उसे किसी बात का होश नहीं रहता. अपने ईगो की संतुष्टि एकमात्र उद्देश्य रह जाता है.

गृहिणी छाया के साथ ठीक इस के विपरीत होता है. अपने को अक्लमंद समझने वाला उस का प्रवक्ता पति मनोज सब के सामने उस का मजाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. उस के गुणों की अनदेखी करता है. उस की कितनी भी सही बात हो नहीं मानता. उस की हर बात काट देता है. उस के व्यवहार से पक चुकी छाया विद्रोह करती तो मारपीट करता. एक दिन लड़ते हुए मनोज बुरी तरह बाल खींच कर उसे घसीटते हुए किचन तक ले आया. अपने को संभालती हुई छाया दरवाजे की दीवार से टकरा गई और माथे से खून बहने लगा. तभी उस की नजर किचन में रखे चाकू पर पड़ी तो तुरंत उसे उठा कर बोली, ‘‘छोड़ दो वरना चाकू मार दूंगी.’’

‘‘तू मुझ पर चाकू चलाएगी… चला देखूं कितना दम है,’’ कह मनोज ने छाया को लात मारी तो चाकू उस की टांग में घुस गया.

टांग से खून बहता देख छाया घबरा उठी. मम्मीपापा की तेजतेज आवाजें सुन कर अपने कमरे में पढ़ रही उन की बेटी तमन्ना वहां आ गई. पापा की टांग से खून निकलता देख वह तुरंत फर्स्टएड बौक्स उठा लाई. फिर पड़ोसिन रीमा आंटी को बुलाने उन के घर पहुंच गई.

तब रीमा का बेटा तमन्ना को चिढ़ाते हुए बोला, ‘‘तेरे मम्मीपापा कितना लड़ते हैं. रोज तुम्हारे घर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आती रहती हैं. झगड़ा सुलटाने रोज मेरी मम्मी को बुलाने आ जाती है. आज मम्मी घर पर हैं ही नहीं. अब किसे बुलाएगी?’’

तमन्ना रोती हुई अपने घर लौट आई. बच्चों में फैलती बदनामी से उस ने धीरेधीरे उन के साथ पार्क में खेलने जाना छोड़ दिया. उस के व्यक्तित्व का विकास जैसे रुक गया. सदा हंसनेचहकने वाली तमन्ना सब से अलगथलग अपने कमरे में चुपचाप पड़ी रहती.

जिद, जोरजबरदस्ती

पतिपत्नी के मन में एकदूसरे की इच्छा का सम्मान होना चाहिए अन्यथा जोरजबरदस्ती, जिद झगड़ा पैदा कर सकती है. फिर झगड़े को तूल पकड़ कर हिंसा का रूप धारण करने में देर नहीं लगती, जिस का खमियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है, क्योंकि जिद जोरजबरदस्ती उन के संस्कारों में घर कर जाती है और वे प्रत्येक काम में इस के उपयोग द्वारा आसानी से सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहते हैं और फिर सफल न होने पर हिंसक भी बन जाते हैं.

शक अथवा जासूसी करना

पतिपत्नी में एकदूसरे पर विश्वास बहुत महत्त्व रखता है. बातबात पर संदेह, जासूसी उन में मनमुटाव को बढ़ाती है. वे जबतब बच्चों की उपस्थिति में भी घरेलू हिंसा करने लगते हैं. पतिपत्नी में से किसी एक की बेवफाई भी अकसर दूसरे को घरेलू हिंसक बना देती है. अतएव जरा भी संदेह हो तो परस्पर खुल कर बात करें और बिना हिंसा किए बच्चों का ध्यान रखते हुए सही निर्णय लें.

पैसा और प्रौपर्टी

मीनल प्राइवेट कंपनी में अच्छी जौब पर है. सैलरी भी अच्छी है. उस ने पति शैलेश से छिपा कर कई एफडी करा रखी हैं. पति शैलेश की इनकम भी अच्छीखासी है. हाल ही में उस ने एक प्रौपर्टी मीनल के नाम और एक बच्चों के नाम बनाई. अचानक शैलेश के पिता को हार्टअटैक आ गया. तुरंत सर्जरी आवश्यक बताई गई. शैलेश के पास थोड़े पैसे कम पड़ रहे थे. कुछ समय पहले 2 प्रौपर्टीज जो खरीदी थी. शैलेश ने मीनल से सहयोग के लिए कहा तो पहले तो उस ने अनसुनी कर दी. फिर बोली, ‘‘बेटे के नाम से जो शौप ली है उसे बेच क्यों नहीं देते? मेरे इतने खर्चे होते हैं… मेरे पास कहां से होंगे पैसे?’’

‘‘4-5 लाख के लिए 25 लाख की शौप बेच दूं? घर का सारा खर्च मैं ही उठाता हूं. तुम अपना खर्च कहां करती हो?’’

शैलेश पत्नी के दोटूक जवाब पर हैरान था. वह उस की नीयत समझने लगा. उस ने शौप नहीं बेची कहीं से ब्याज पर पैसों का बंदोबस्त कर लिया, साथ ही मकान भी उस के नाम से हटा कर अपने नाम करने की बात कही तो पत्नी ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. फिर झगड़ा शुरू हो गया और बात हिंसा तक उतर आई.

घरेलू हिंसा से बच्चों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है, जिस से वे अकसर मांबाप के इन हथकंडों को अपनाने लगते हैं और बिगड़ैल, असंस्कारी बनते जाते हैं. बड़े हो कर अकसर वे परिवार व समाज के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाते तो अंतर्मुखी, उपद्रवी, गुस्सैल, झगड़ालू प्रवृत्ति के बन जाते हैं और कोई भी गलत कदम उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं. तब उन्हें रोक पाना बेहद मुश्किल हो जाता है.

बात बहुत न बिगड़ जाए और तीर कमान से न निकल जाए इस के लिए पतिपत्नी को बहुत सूझबूझ से काम लेते हुए अपने मतभेदों, मसलों को अकेले में बैठ कर आपस में आराम से सुलझा लेना ही श्रेयस्कर है. पतिपत्नी ने सिर्फ विवाह ही नहीं किया, घरपरिवार भी बनाया है, बच्चे पैदा किए हैं, परिवार बढ़ाया है, तो अपने इतने हिंसक आचारविचार पर अंकुश लगाना ही होगा. मातापिता का अपने आचारव्यवहार पर संयम रखना बच्चों वाले घर की पहली शर्त है. उन्हें अपने बच्चों के समुचित विकास, संस्कारी व्यक्तित्व और उन्नत भविष्य के लिए इतना बलिदान तो करना ही होगा.

प्लेन के ऊपर बैठ इश्क फरमाते दिखे परिणीति और अर्जुन

बौलीवुड अभिनेता अर्जुन कपूर अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा ‘नमस्ते इंग्लैंड’ में एक बार फिर साथ दिखाई देने वाले हैं. इस फिल्म में अर्जुन और परिणीति तीसरी बार एक साथ काम करने जा रहे हैं. इससे पहले यह जोड़ी फिल्म ‘इश्कजादे’ में नजर आ चुकी है और दोनों ने हाल ही में दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘संदीप और पिंकी फरार’ की शूटिंग भी पूरी कर ली है.

फिल्म ‘नमस्ते इंग्लैंड’ की रिलीज डेट की घोषणा तो काफी पहले ही हो गई थी और अब उसका पहला पोस्टर भी रिलीज कर दिया गया है. अर्जुन कपूर ने फिल्म का पहला पोस्टर रिलीज करते हुए ट्वीट किया- ‘नमस्ते इंग्लैंड! मैं और परिणीति एक बार फिर एकसाथ. समय आ गया है हमारे साथ पंजाब से इंग्लैंड तक उड़ने का.

पोस्टर में लिखा है- लंदन जाना है लीगल इल्लीगल सब चलता है. पोस्टर में परिणीति हरे रंग के सलवार कमीज में दिख रही हैं.

इससे पहले परिणीति ने फिल्म के क्लैपबोर्ड की तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा था- ‘नमस्ते इंग्लैंड. अपनी उत्सुकता पर काबू नहीं रख सकती. अर्जुन कपूर, संजना बत्रा, आरती नायर.’

आपको बता दें कि ‘नमस्ते इंग्लैंड’ पंजाब और कनाडा में फिल्माई जाएगी. फिल्म को विपुल अमृतलाल शाह ने डायरेक्ट किया है. फिल्म इस साल 7 दिसबंर को रिलीज होगी. फिल्म की शूटिंग आज से अमृतसर में शुरू हो गई. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अमृतसर के बाद टीम लुधियाना और पटियाला भी शूटिंग के लिए जाएंगी. इसके बाद ढाका, बांग्लादेश का रुख किया जाएगा, उसके बाद एक हिस्से की शूटिंग बेल्जियम के ब्रसेल्स में भी की जाएगी. इसके अलावा फिल्म के कुछ सीन को लंदन और मुंबई के कुछ हिस्सों में शूट किया जाएगा.

यह अनोखा सिम 165 देशों में करेगा काम, जानें खासियत

सिम कार्ड मुहैया कराने वाली कंपनी चैट सिम ने गुरुवार को इटली के मिलान में अपने सबसे नए चैट सिम 2 सिम कार्ड को लौन्च कर दिया. कंपनी के इस सिम कार्ड को लेकर कहा जा रहा है कि इसमें यूजर्स अनलिमिटेड इंटरनेट सर्फिंग और मैसेजिंग कर सकेंगे. खास बात है कि इसके लिए उन्हें किसी प्रकार का शुल्क नहीं देना पड़ेगा और न ही इसके लिए किसी प्रकार की सीमा होगी.

चैट सिम के वार्षिक प्लान के तहत यूजर्स के पास तकरीबन 165 देशों तक में मैसेज भेजने की सुविधा होगी. चैट सिम 2 बार्सिलोना में 26 फरवरी से एक मार्च तक चलने वाले ‘मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस 2018’ में पेश किया जाएगा. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि इसी कार्यक्रम में चैट सिम के बाकी फीचर्स से पर्दा उठेगा. चैट सिम 2 में अनलिमिटेड पैक्स जीरो रेटिंग कौन्सेप्ट पर चलते हैं. बता दें कि इससे पहले कंपनी ने चैट सिम लौन्च किया था, जिसमें कुछ बंदिशें थीं.

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यूजर्स को इसमें फोटो, वीडियो भेजने और वौइस कौलिंग करने के लिए कुछ मल्टीमीडिया क्रेडिट्स खरीदने पड़ते थे. हालांकि, चैट सिम 2 को लेकर कंपनी का दावा है कि यूजर मूल प्लान के अंतर्गत ही इंटरनेट सर्फिंग और बाकी मोबाइल ऐप्लीकेशंस का इस्तेमाल कर सकेंगे.

कंपनी के अनुसार, चैट सिम 2 दुनिया भर के तकरीबन 250 टेलीकौम औपरेटर्स के साथ काम करेगा, जिसकी पहुंच 165 से अधिक देशों तक है. सिम कार्ड के साथ आने वाले प्लान में लोग कुछ चुनिंद ऐप्लीकेंशस के जरिए अनलिमिटेड चैट कर सकेंगे, जिनमें व्हाट्सऐप, फेसबुक मैसेंजर, वी चैट, टेलीग्राम, लाइन और हाइक जैसे ऐप्स शामिल हैं. यह सिम आईफोन औपरेटिंग सिस्टम, एंड्रायड और विंडो फोन व टैबलेट्स पर काम करेगा. फिलहाल भारत में इसकी कीमत क्या होगी, इसके बारे में अभी तक किसी प्रकार की जानकारी नहीं सामने आई है.

मारुति की इन कारों पर 59 हजार तक की मिल रही है छूट

देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने अपनी कारों पर बंपर डिस्काउंट का ऐलान किया गया है. यदि आप ईयर एंडिंग डिस्काउंट में कार नहीं ले पाए तो आप भी इस मौके का फायदा उठा सकते हैं और सस्ते में कार को अपने घर लाकर होली की खुशियों को दोगुना कर सकते हैं.

ये औफर कंपनी की तरफ से फेबुलस फरवरी औफर्स (FABULOUS FEBRUARY OFFERS) के तहत दिया जा रहा है. ये डिस्काउंट चार कारों पर 45 हजार से लेकर 59 हजार रुपये तक का है. आपको बता दें कि ये औफर चालू वित्त वर्ष में अपनी इन्वेंट्री खाली करने के लिए कंपनी की तरफ से दिए जाते हैं. आगे पढ़िए किस कार पर कितना डिस्काउंट मिल रहा है.

मारुति आल्टो 800

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मारुति की सबसे ज्यादा बिकने वाली मारुति औटो 800 कंपनी की तरफ से पूरे 45 हजार रुपये का डिस्काउंट दिया जा रहा है. इसके अलावा यदि आप सरकारी कर्मचारी (रिटायर्ड या मौजूदा) हैं तो कंपनी की तरफ से आपको 5100 रुपये की अतिरिक्त छूट मिलेगी. कार की राजधानी दिल्ली में एक्स शोरुम कीमत 2.51 लाख रुपये से शुरू होती है. आल्टो 800 पेट्रोल और CNG दोनों वर्जन में उपलब्ध है. कंपनी का दावा है कि 800 सीसी इंजन वाली इस कार का पेट्रोल मौडल 24.70 किमी प्रति लीटर का माइलेज देता है. वहीं इसका CNG मौडल 33.44 किमी प्रति किग्रा का माइलेज देता है.

सेलेरियो

मारुति की सेलेरियो की बाजार में काफी पसंद की जाने वाली कार है. दमदार लुक के कारण इस कार ने बाजार में तेजी से अपनी पकड़ बनाई है. इस कार पर कंपनी की तरफ से 50 हजार रुपये तक का डिस्काउंट दिया जा रहा है. आल्टो 800 और मारुति के10 की ही तरह इस पर भी सरकारी कर्मचारियों को 5100 रुपये का एक्सट्रा डिस्काउंट मिलेगा. दिल्ली में 4.2 लाख रुपये के बेसिक प्राइज पर मिलने वाली इस कार में 998 सीसी का इंजन है. कंपनी का दावा है कि कार का पेट्रोल इंजन 23.10 किमी प्रति लीटर का माइलेज देता है.

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आल्टो के10

मारुति आल्टो के10 (Alto K10) पर कंपनी की तरफ से 52 हजार रुपये का डिस्काउंट औफर किया जा रहा है. इस पर सरकारी कर्मचारियों (रिटायर्ड या मौजूदा) को 5100 रुपये की अतिरिक्त छूट मिलेगी. कार की दिल्ली में एक्स शोरुम कीमत 3.30 लाख रुपये से शुरू होती है. 998cc के इंजन वाली इस कार का पेट्रोल वर्जन 24. 07 किमी प्रति लीटर का माइलेज देता है जबकि सीएनजी इंजन 32.26 किमी प्रति किग्रा का माइलेज देता है. CNG मोड पर यह कार 31.76 किमी प्रति किलोग्राम का माइलेज देती है.

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मारुति वैगन-आर

अच्छे स्पेस वाली मारुति वैगन-आर खरीदने पर आप 59 हजार रुपये का डिस्काउंट पा सकते हैं. इसके आलावा सभी कारों की तरह 5100 रुपये तक का स्पेशल डिस्काउंट सरकारी कर्मचारियों (रिटायर्ड व कार्यरत) को दिया जा रहा है. 998 सीसी के इंजन से लैस यह कार पेट्रोल और सीएनजी वेरिएंट दोनों में उपलब्ध है. दिल्ली में 4.15 लाख रुपये एक्स शोरुम प्राइज वाली इस कार का पेट्रोल मौडल 20.51 किमी प्रति लीटर का माइलेज देता है. वहीं सीएनजी मौडल 26.6 किमी प्रति किलोग्राम का माइलेज देता है.

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महिंद्रा और टाटा पर भी डिस्काउंट

महिंद्रा भी थार को छोड़कर अन्य गाड़ियों पर छूट औफर कर रही है. महिंद्रा ने KUV100 पर 10,000 रुपये का एक्सचेंज बोनस और इसी कार के K8 वेरिएंट पर 28,000 रुपये तक के डिस्काउंट की घोषणा की है. इसके अलावा कुछ मौडल पर वेरिएंट के हिसाब से 12 हजार से 28 हजार रुपये तक की एक्सेसरीज दी जा रही है. टाटा मोटर्स हैचबैक कार बोल्ट पर 30,000 रुपये तक का कैश डिस्काउंट और 15,000 रुपये का एक्सचेंज बोनस दे रही है.

मेरी उम्र 28 वर्ष है, पिछले 4 वर्षों से पेरैंट्स से दूर रह रही हूं. अब उन्होंने घर में घुसने से मना कर दिया तो? क्या करूं.

सवाल
मेरी उम्र 28 वर्ष है, मैं पिछले 4 वर्षों से पेरैंट्स से दूर रह रही हूं क्योंकि मेरी उन से हमेशा लड़ाई होती रहती थी. मुझे रोकटोक बिलकुल भी पसंद नहीं है. पिछले दिनों मुझे खबर मिली कि मां की तबीयत काफी खराब है, जिस से पिता काफी परेशान हैं. ऐसे में घर के हालात को देखते हुए मेरा उन से मिलने का बहुत मन करता है. लेकिन बस यही सोच कर पीछे हट रही हूं कि मै किस मुंह से उन से मिलने जाऊंगी. कहीं उन्होंने मुझे घर में घुसने से ही मना कर दिया तो? आप ही बताएं, मैं क्या करूं?

जवाब
भले ही आप उन से हमेशा लड़ती रहती हों जिस के कारण आप ने घर से दूर जाने तक का फैसला कर लिया हो, लेकिन आप की बातों से लग रहा है कि आप आज भी उन से बहुत प्यार करती हैं. तभी, आप से उन का दर्द नहीं देखा जा रहा. ऐसे में आप बिना सोचेसमझे उन से मिलने पहुंच जाएं और अपनी गलती के लिए उन से माफी मांगें. यकीन मानिए आप को देखने मात्र से ही वे आप को माफ करने के लिए तैयार हो जाएंगे. वहां रह कर आप काम में हाथ बंटाएं और फिर कभी भूल कर भी घर से दूर जाने की बात मन में मत लाइए.

अकसर इस उम्र में हम सपनों की दुनिया में ज्यादा जीने लगते हैं. हमें लगने लगता है कि हम अकेले ही सबकुछ संभाल लेंगे लेकिन जब हकीकत से वास्ता पड़ता है तब समझ आता है कि भले ही हम कितनी भी ऊंचाइयों को छू लें लेकिन अपनों का साथ हमेशा जरूरी होता है. इसलिए कभी भी अपनों से दूर जाने की बात मत सोचिए.

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किशोर माता पिता का दूसरों से झगड़ा अपने पर न लें

पौराणिक उपन्यास महाभारत जिस में भाईभाई जमीनजायदाद के लिए युद्ध के मैदान में आ कर एकदूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, में एक किशोर पात्र है अभिमन्यु, जो कौरवों के बनाए चक्रव्यूह में घिर जाता है और अपनी नासमझी के चलते मारा जाता है. जाहिर है वह वीर नहीं बल्कि बेवकूफ था, जिस ने अपने पिता अर्जुन और उस के भाइयों की लड़ाई लड़ी. कम उम्र के चलते अभिमन्यु में जोश तो था पर उसे यह मालूम नहीं था कि अपने से बड़ों से लड़ा कैसे जाना है. कथानक को दिलचस्प बनाने के लिए लेखक ने इस उपन्यास में एक ऐसे चक्रव्यूह की कल्पना की है, जिस में से निकलना असंभव था पर अभिमन्यु इस में गया और इस चक्रव्यूह भेदन में मारा गया.

आज का हर किशोर खुद को इसी तरह के किसी चक्रव्यूह में घिरा पाता है. जब उस के मम्मीपापा की लड़ाई किसी और से हो जाती है और अधिकांश किशोर स्वाभाविक बात है मांबाप का झगड़ा लड़ना अपनी जिम्मेदारी समझने लगते हैं.

भोपाल के 14 वर्षीय उत्कर्ष का किस्सा एक उदाहरण है कि बच्चों को मांबाप के बाहरी झगड़ों में क्यों नहीं पड़ना चाहिए. अब से एक साल पहले उत्कर्ष अपने मम्मीपापा के साथ पुरी घूमने जा रहा था. पुरी पहुंचने के लिए उन्हें बीना जंक्शन से ट्रेन बदलनी थी. बीना स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करतेकरते उत्कर्ष मन ही मन पुलकित हो रहा था कि पुरी और चिलका झील जो डौलफिन मछलियों के लिए जानी जाती है, घूमने में कितना मजा आएगा. वह भी तब जब पापा ने सारा टूर प्लान कर रखा है और भुवनेश्वर सहित ओडिसा के दूसरे पर्यटन स्थलों पर भी ठहरने के लिए होटल बुक करा रखे हैं.

अभी उत्कर्ष खयालों की दुनिया में खोया अपने टूर के रोमांच के बारे में सोच ही रहा था कि प्लेटफौर्म पर बेखयाली में चलते उस के पापा एक अन्य मुसाफिर से टकरा गए. उस मुसाफिर ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘अंधे हो गए हो क्या?’’

उत्कर्ष के पापा भी ताव में आ गए और बोले, ‘‘अंधा मैं हूं या आप, देख कहीं रहे हैं और चल कहीं रहे हैं. आप को भी देख कर चलना चाहिए.’’

बस, देखते ही देखते खासा तमाशा खड़ा हो गया और उस मुसाफिर ने उत्कर्ष के पापा का गरीबान पकड़ लिया. इस पर उत्कर्ष को भी गुस्सा आ गया और उस ने जोरदार घूंसा पापा का गरीबान पकड़े मुसाफिर के पेट पर दे मारा, जिस से वह गिर गया. इस झगड़े के कारण वहां काफी भीड़ जमा हो गई और उन्हें हल्ला मचाने का खासा मौका और बहाना मिल गया. कोई चिल्लाया, ‘अरे देखो, कहीं मर तो नहीं गया.’ एक ने कहा कि आजकल के लड़कों की हिम्मत तो देखो सरेआम गुंडागर्दी करने लगे हैं.

भीड़ बढ़ी और नीचे पड़ा मुसाफिर उठा नहीं तो उस के पापा भी घबरा गए. उन्होंने मारे गुस्से के एक जोरदार थप्पड़ उत्कर्ष के गाल पर दे मारा कि तुझे क्या जरूरत थी बीच में पड़ने की. तभी हल्ला सुन कर पुलिस के 2 सिपाही भी लठ बजाते वहां आ गए. जैसेतैसे वह मुसाफिर होश में आया तो पुलिस वाले ने सभी को थाने चलने का हुक्म सुना दिया. पुलिस को देख भीड़ काई की तरह छंट गई, लेकिन थोड़ी देर बाद उत्कर्ष मम्मीपापा सहित रेलवे पुलिस के थाने में बैठा हुआ था. वह मुसाफिर माहौल अपने पक्ष में देख पहले से ही आक्रामक हो गया था और बारबार कह रहा था कि इन दोनों ने मुझे मारा जबकि गलती मेरी नहीं थी. आप मेरी रिपोर्ट लिखिए.  वहां मौजूद इंस्पैक्टर ने दोनों पक्षों की बातें सुनीं और फिर फटकार लगाई कि आप लोग खुद देखसमझ लीजिए. देखने में तो आप पढ़ेलिखे और शरीफ नजर आते हैं, पर स्टेशन पर गुंडेमवालियों की तरह झगड़ते हैं और शांति भंग करते हैं. मामला दर्ज हुआ तो दिक्कत आप लोगों को ही होगी, हमें नहीं.

फिर वह पुलिसकर्मी उत्कर्ष से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘और… साहबजादे, इस उम्र में आप के ये तेवर हैं तो बड़े हो कर डौन बनेंगे क्या, अपने पंख ज्यादा मत फड़फड़ाओ नहीं तो किसी दिन बुरे फंसोगे.’’

उत्कर्ष ने पहली बार थाना देखा था, जिस से वह सहम उठा था. उधर पापा परेशान थे कि इस बिन बुलाई मुसीबत से छुटकारा कैसे पाया जाए. उन से भी बुरी हालत मम्मी की थी जो पहले भीड़ और अब थाने का माहौल देख कर कांपने लगी थीं.

इस तरह की बातों में घंटा भर गुजर गया और आखिरकार कुछ लेदे कर और उत्कर्ष के पापा द्वारा उस मुसाफिर से माफी मांगने पर बगैर रिपोर्ट लिखे मामला सुलट गया, लेकिन इस बीच उन की पुरी जाने वाली उत्कल ऐक्सप्रैस भी निकल चुकी थी.

उत्कर्ष का सारा मजा किरकिरा हो गया. मम्मीपापा का भी मूड खराब हो गया था इसलिए वे यात्रा रद्द कर वापस भोपाल आ गए. एक संभावित मजा तो किरकिरा हुआ ही साथ ही पैसों की भी बरबादी हुई सो अलग और मानसिक यंत्रणा भी भुगतनी पड़ी.

इस घटना से कई बातें और वजहें समझ आती हैं, जिन के चलते यह कहा जा सकता है कि मांबाप के बाहरी झगड़ों में बच्चों को क्यों नहीं पड़ना चाहिए, फिर वे झगड़े चाहे कैसे भी हों यह बात खास माने नहीं रखती.

मांबाप कमजोर पड़ते हैं

मांबाप बच्चे की सुरक्षा के प्रति कितने गंभीर होते हैं, यह बात काफी बड़े हो जाने और कभीकभी तो खुद पिता बनने के बाद समझ आती है. कोई मांबाप नहीं चाहता कि उन के बच्चे को जरा सी भी चोट लगे, फिर हाथापाई में तो बड़ी चोट की आशंका रहती है.

जब मांबाप ऐसे किसी हादसे से जूझ रहे हों और बच्चा बीच में कूद पड़े तो उन की हालत पतली हो जाती है और वे लड़ाई में कमजोर पड़ने लगते हैं. उन का सारा ध्यान बच्चे की हिफाजत में लग जाता है या फिर उसे रोकने में, ऐसे में फायदा सामने वाले को ही मिलता है.

नासमझी भारी पड़ती है

गुस्से में किसी पर हमला करना नादानी वाली बात है, अगर वाकई चोट ज्यादा लग जाए तो कोई ऐसा हादसा भी हो सकता है, जिस की उम्मीद बच्चे नहीं कर पाते. ऐसा इसलिए कि वे बचाव कम हमला ज्यादा करते हैं, जो इस उम्र का तकाजा भी है, लेकिन बात आखिरकार है तो बेवकूफी वाली.

बढ़ता है झगड़ा

बच्चे सोचते हैं कि वे मांबाप की तरफदारी कर उन की हिफाजत कर रहे हैं, जबकि झगड़े के दौरान उन के बीच में कूदने से झगड़ा और बढ़ जाता है. झगड़ रहे लोग अपनी भड़ास निकल जाने के बाद समझौते के मूड में आ जाते हैं, पर यदि बच्चा बीच में कूद पड़े तो झगड़ा बजाय कम होने के और बढ़ता है.

किसी का फायदा नहीं

लड़ाईझगड़े तात्कालिक हों या दीर्घकालिक इन से किसी का फायदा या भला नहीं होता. यह एक अप्रिय स्थिति भर है जिसे समझबूझ से टाला जा सकता है, लेकिन बच्चों के बीच में पड़ने से मांबाप को ज्यादा मुश्किलें उठानी पड़ती हैं.

7वीं के छात्र शाश्वत के मांबाप का झगड़ा आएदिन पड़ोसियों से कचरा फेंकने को ले कर होता रहता था. एक दिन विवाद बढ़ा तो शाश्वत ने भी पड़ोसी अंकल को खरीखोटी सुना दी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई तो उन्होंने एक तमाचा उस के गाल पर लगा दिया, जिस से शाश्वत के कान का परदा फट गया. बाद में क्या हुआ यह ज्यादा अहम बात नहीं पर शाश्वत को लंबे इलाज से हो कर गुजरना पड़ा और आज भी वह थप्पड़ याद कर सहम उठता है यानी झगड़े सभी के लिए खासतौर से बच्चों के लिए तो नुकसानदेह साबित होते हैं.

शर्मिंदगी बहादुरी की

कई बार बच्चे उग्र हो कर मांबाप का पक्ष लेते हैं, लेकिन इस से मांबाप को कोई खुशी नहीं मिलती उलटे शर्मिंदगी ही उठानी पड़ती है. जब विवाद या झगड़ा मामूली हो और उन्हें यह सुनना पडे़ कि आप ने तो बच्चे को संस्कार ही नहीं दिए अभी से गुंडा बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं, क्या? और दम है तो खुद सामने आओ, बच्चों को क्यों आगे करते हो. ऐसी बातें किसी भी मांबाप को शर्मिंदा करने वाली होती हैं.

बात गलत कहीं से नहीं है, हर बच्चा मांबाप को बहुत चाहता है और उन के झगड़ों को अपना समझता है, लेकिन इन्हें वह अपने ऊपर ले कर गलती करता है. वह यह नहीं सोच पाता कि उस के झगड़े में पड़ने से झगड़ा सुलझने के बजाय और बढ़ना तय है. सभी मांबाप बच्चों से शिष्ट और शालीन होने की उम्मीद रखते हैं पर हालात के चलते वे अशिष्ट हो जाएं यह पसंद नहीं करते.

बच्चों का यह सोचना भी गलत है कि उन के झगड़े में पड़ने से मांबाप खुश होंगे या फिर उन्हें शाबाशी देंगे, और न ही उन के ऐसा करने से उन्हें किसी तरह का सहारा मिलेगा, उलटे वे बच्चे के भविष्य को ले कर दुखी और आशंकित हो उठते हैं.

ऐसे में बच्चों को चाहिए कि वे मांबाप के बाहरी मामलों में दखल न दें, उन की लड़ाई चाहे वह कैसी भी हो उन्हें लड़ने दें, अपनी तरफ से कोई सिरदर्दी उन के लिए खड़ी न करें, जिस के चलते उन्हें हार कबूल करनी पड़े, नीचा देखना पड़े या फिर अस्पतालों, थानों और अदालतों के चक्कर काटने पड़े.

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