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कुंडली मिलान के बाद भी जीवन अभिशप्त क्यों

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हमारे समाज में सुखी वैवाहिक जीवन का एकमात्र नुसखा कुंडली मिलान को माना जाता है. शादी के पूर्व लड़के और लड़की की जन्मकुंडली मिलाई जाती है. पंडितों और ज्योतिषियों ने हमारी विवाह परंपरा को कुंडली मिलान से ऐसा जोड़ा और जकड़ा है कि हिंदू विवाह इस के बिना संभव नहीं लगता. उन्होंने इस का खौफ पैदा कर रखा है. कुछ भविष्यवक्ता यहां तक कहते हैं कि वर और कन्या की कुंडली में यदि नाड़ी दोष है तो उस में से एक की मृत्यु अवश्यंभावी है. मंगल दोष कुंडली में हो तो यह भी बहुत हानि पहुंचाता है. ऐसे में हमारा धर्मभीरु समाज बिना कुंडली मिलान के शादी नहीं करता.

कुंडली मिलाने के बाद भी जीवन अभिशप्त

सवाल यह है कि जब पंडितों या ज्योतिषियों के द्वारा कुंडली मिलान करवा कर ही हमारे समाज में शादी होती है तो फिर क्या वजह है कि हम रोजरोज दहेज हत्या और प्रताड़ना की खबरें सुनते हैं? लड़कियों को क्यों मारापीटा जाता है? उन का पगपग पर अपमान क्यों होता है? वे ताउम्र घुटघुट कर जीने को मजबूर क्यों होती हैं?

कभी कोई मातापिता यह क्यों नहीं सोचते कि जब उन्होंने अपनी लाडली का विवाह कुंडली मिला कर किया था तब पति ने धक्के मार कर क्यों घर से निकाल दिया? जब कुंडली में नाड़ी और मंगल दोष नहीं था फिर क्यों बिटिया को मिट्टी का तेल डाल कर असमय मौत की नींद सुला दिया गया? सवाल यह भी है कि नाड़ी दोष या मंगल दोष निवारण के बाद क्यों कोई विवाहिता विधवा होती है और विधवा होने के बाद सारी उम्र अभिशप्त जीवन जीती है?

क्या कुंडली मिलाना जरूरी है

ज्योतिष और पंडित कहते हैं कि कुंडली में 36 गुण होते हैं. लड़का और लड़की दोनों के जितने ज्यादा गुण मिलेंगे उन का वैवाहिक जीवन उतना ही सुखी होगा. आमतौर पर वे मानते हैं कि यदि दोनों के 32 गुण मिल जाएं तो यह सर्वोत्तम होता है. लड़की को वह सब कुछ मिलेगा जिस की चाहत उसे होती है. 27 से अधिक गुण मिलना बेहद शुभ माना जाता है. 18 गुणों से ऊपर मिलने पर विवाह शुभ की श्रेणी में आता है.

यदि वर और कन्या की राशि एक हो तब भी विवाह को बेहद अच्छा और सफल बनने की भविष्यवाणी की जाती है. ऐसी मान्यता है कि एक राशि के लोगों का स्वभाव, विचारधारा, मानसिक स्तर सभी एक होते हैं. इसलिए उन के बीच किसी तरह का मनभेद, मतभेद नहीं होता.

लेकिन हकीकत यह है कि कुंडली मिला कर शादी करने के बाद भी जीवन में परेशानियां आती रहती हैं, जिन को लड़की को झेलना पड़ता है. इसलिए खुद से यह सवाल जरूर करना चाहिए कि क्या कुंडली मिलाना जरूरी है?

राशि एक फिर क्यों मतभेद

रेखा और विजय दोनों की राशि कन्या है. शादी के वक्त पंडित ने कहा कि दोनों की जोड़ी खूब सुखी रहेगी. दोनों के मातापिता गदगद थे. शादी खूब धूमधाम से हुई. शादी के मात्र ढाई महीने बीते होंगे कि रेखा ने एक रात फोन किया कि विजय ने उस पर हाथ उठाया. मातापिता दौड़ेदौड़े गए. वहां जा कर पता चला कि शादी के सप्ताह भर बाद से ही विजय रेखा के हर काम में मीनमेख निकालने लगा. उस के घर वाले भी उसी की सपोर्ट करते.

रेखा के मातापिता ने विजय को समझाना चाहा तो उस ने दोटूक कहा, ‘‘अपनी बेटी को समझाइए कि मेरी हर बात माने वरना ले जाएं यहां से.’’

अंतत: वही हुआ जो हमेशा होता है. बेटी को समझाया गया कि अपमान का कड़वा घूंट पी कर जिंदगी काटो. शादी के बाद मायके वालों का बेटी पर कोई अधिकार नहीं रहता. उस समय किसी के मन में यह खयाल नहीं आया कि कुंडली मिला कर शादी करने का क्या फायदा हुआ? एक राशि होने पर स्वभाव में इतना अंतर क्यों है? काश, कुंडली मिलाने की जगह वे लोग लड़के के स्वभाव के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेते तो यह नौबत नहीं आती.

मंगल निवारण के बाद अमंगल क्यों

ज्योतिषियों के अनुसार राधिका की जन्मकुंडली में मंगलदोष था. कुंडली मिलान करते समय नाड़ी दोष भी निकल आया. उस की कुंडली के दोष का निवारण किया गया. उस के बाद भी बहुत खोजबीन करने के बाद एक लड़के से उस की कुंडली मिली. शादी के 2 साल तक सब ठीकठाक चला. तीसरे साल एक दुर्घटना में लड़के की मौत हो गई. राधिका पर क्या बीती, यह किसी ने नहीं सोचा. ससुराल वालों ने यह लांछन लगा कर उसे और उस की दुधमुंही बच्ची को घर से निकाल दिया कि वह मनहूस है. उसी की वजह से उन के बेटे के साथ हादसा हुआ.

लड़की का ही दोष क्यों

कारण कोई भी हो लड़की को दोषी ठहरा दिया जाता है. उस समय लड़के वाले यह क्यों नहीं सोचते कि अब उन की बहू का क्या होगा? बजाय इस के कि ससुराल के लोग लड़की की हिम्मत बढ़ाएं, उस का सारा हौसला पस्त कर दिया जाता है.

शादी के पहले कुंडली मिलाने की बात होती है. माना जाता है कि इस से वैवाहिक जीवन हंसीखुशी गुजरेगा, लेकिन शादी के बाद चुनचुन कर दोष लड़की में निकाला जाता है. आपस में खटपट हो तो लड़की का स्वभाव खराब है, कोई हादसा हो जाए तो लड़की अपशकुनी है. वह पाखंड दूर करने की बात करे तो नास्तिक है. सोचविचार कर काम करे तो घमंडी है, अपने आगे किसी की नहीं सुनती.

अंतिम फैसला यह सुनाया जाता है कि उस की कुंडली में ही दोष है. शादी के खूबसूरत रिश्ते का कुंडली के नाम पर मखौल बना दिया जाता है. लड़की की भावनाओं का, हर पल झेलते उस के दर्द का, तिलतिल जलते अरमानों की फिक्र किसी को नहीं होती.

तर्क से नकारें कुंडली मिलान को

हिंदू धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म में कुंडली मिलान की चर्चा नहीं है. चीन, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन आदि तमाम देशों के लोग बिना कुंडली मिलान के शादी करते हैं. क्या उन के यहां शादियां सफल नहीं होतीं? क्या उन का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होता? यह हमें समझना होगा कि शादी 2 दिलों का रिश्ता होता है. यह पतिपत्नी की आपसी समझदारी, प्रेम और विश्वास पर टिका होता है. दोनों एकदूसरे की भावनाओं को समझें, एकदूसरे का सम्मान करें, तभी वैवाहिक जीवन की मधुरता और सफलता बनी रहेगी.

कुंडली मिलान पंडितों का काला धंधा है. समाज पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने और उस के नाम पर पैसे ऐंठने की भावना उन में प्रबल होती है. यही कारण है कि वे कुंडली मिलान को सुखी.

– डा. कविता कुमारी

मरहम नहीं है महरम : मुसलिम महिलाओं की शिक्षा की भी चिंता करे सरकार

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तीन तलाक नाम की कुप्रथा को खत्म करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वह वाहवाही और बधाई मिली जिस के वे वाकई हकदार थे, लेकिन उम्मीद से कम वक्त में उन्होंने यह ऐलान कर अपने ही किए पर पानी फेर लिया कि 45 की उम्र पार कर चुकी मुसलिम महिलाएं अब बगैर महरम के हज पर जा सकती हैं. मन की बात 2017 के आखिरी ऐपिसोड में की गई यह घोषणा कैसे एक कुरीति को बढ़ावा देती है, उस से पहले यह समझ लेना जरूरी है कि यह महरम आखिर है क्या और क्यों नरेंद्र मोदी के मन में इस तरह खटका कि वे इसे खत्म करने पर उतारू हो आए.

यह कैसा भेदभाव

इसलाम में निर्देश है कि महिलाएं बिना किसी पुरुष अभिभावक या संरक्षक के हज यात्रा नहीं कर सकतीं यानी हज करने के लिए महरम जरूरी है. इसलाम के ही मुताबिक महरम वह पुरुष होता है, जिस से मुसलिम महिला शादी नहीं कर सकती. मसलन पिता, बेटा, सगा भाई और नाति यानी नवासा. अभी तक मुसलिम महिलाएं इन में से किसी एक के साथ होने पर ही हज यात्रा कर सकती थीं.

अब बकौल नरेंद्र मोदी यह ज्यादती खत्म की जा रही है और 45 पार कर चुकीं 4 या उस से ज्यादा मुसलिम महिलाएं इकट्ठी हो कर हज पर जा सकती हैं. इस बाबत मोदी की पहल पर इन महिलाओं को लौटरी सिस्टम से मुक्त रखा जाएगा.

मोदीजी यह जान कर हैरान थे कि अगर कोई मुसलिम महिला हज करना चाहे तो वह बिना महरम के नहीं जा सकती थी और यह भेदभाव आजादी के 70 साल बाद भी कायम है. लिहाजा, उन्होंने इस रिवाज को ही हटा दिया.

गुलाम बनाए रखने की साजिश

तीन तलाक के नतीजों से उत्साहित नरेंद्र मोदी अब इसलाम में सीधे दखल देने पर उतारू हो आए हैं या फिर उन्हें वाकई मुसलिम बहनों की चिंता है, इस पर भले ही बहस की गुंजाइश मौजूद हो, पर यह बिना किसी लिहाज के दोटूक कहा जा सकता है कि हज उसी तरह किसी मुसलिम के भले की बात नहीं जिस तरह हिंदुओं की तीर्थयात्रा. इन दोनों का ही मकसद अपनेअपने अनुयायियों को दिमागी तौर पर गुलाम बनाए रखने की साजिश है. पाप, पुण्य, मोक्ष, स्वर्गनर्क वगैरह पर सभी धर्मगुरु और धर्मग्रंथ एक हैं, क्योंकि इन्हीं से उन की दुकानदारी चलती है.

बिना महरम हज की आजादी धार्मिक अंधविश्वासों के पैमाने पर देखें तो मुसलिम महिलाओं को मजहब और उस के ठेकेदारों के चंगुल में फंसाए रखने का टोटका है, जिस से मुसलमान औरतों को लगे कि अब उन का नरेंद्र मोदी से बड़ा हमदर्द और रहनुमा कोई नहीं. लेकिन इस फैसले ने एहसास करा दिया है कि मोदी चाहते यह हैं कि मुसलमान खासतौर से औरतें कहीं कठमुल्लाओं की पकड़ से आजाद

न हो जाएं, इसलिए उन्हें अब धर्म के नाम पर बहकाया जाए और औरतों की आजादी को बहाली के नाम पर एक बार फिर वाहवाही लूटी जाए.

औरत जाति का दुश्मन

हज या तीर्थ यात्रा से किस का क्या और कैसे भला होता है, इस की कोई तार्किक व्याख्या मोदी या फिर कोई दूसरा उदारवादी कर पाए तो बात समझ आए, लेकिन मोदी खुद विकट के धर्मभीरु और अंधविश्वासी हैं, जो बिना मंदिर में जाए चुनाव प्रचार भी शुरू नहीं करते और यही काम या बेवकूफी राहुल गांधी करने लगे, तो पूरा भगवा खेमा हायहाय करने लगता है.

हालिया गुजरात विधान सभा चुनाव इस के गवाह हैं कि वहां धर्म के नाम पर कैसेकैसे ड्रामे हुए, जिन में विकास वगैरह की बातें गुम हो कर रह गई थीं.

वाकई मोदी महिलाओं का भला चाहते हैं तो उन्हें हज और तीर्थयात्रा दोनों पर रोक लगाने का ऐलान करने की हिम्मत दिखानी चाहिए थी. वजह है धर्म, जो औरत जाति का सब से बड़ा दुश्मन है, जिस के तहत वे पांव की जूती और भोग्या भर हैं.

बदहाली की वजह

महिलाएं आजादी के 70 साल बाद भी क्यों सशक्त नहीं हो पा रहीं, यह बात प्रधानमंत्री के मन में आए और वे इस पर चिंतनमनन कर पाएं तो फिर उन्हें यह भी सोचने को मजबूर होना पड़ेगा कि कैसेकैसे बाबाओं ने उन के कार्यकाल में भी महिलाओं की इज्जत से आश्रमों में ही खिलवाड़ किया. मथुरा, वृंदावन की तरह खुद उन के लोकसभा क्षेत्र बनारस में भी लाखों विधवाएं पेट भरने के लिए भीख मांगने के अलावा दूसरे ऐसे काम करने को मजबूर हैं, जिन से उन में कोई गैरत नहीं रह जाती.

इस बदहाली की वजह धर्म और उस के स्त्री विरोधी मूलभूत सिद्धांत नहीं तो और क्या है. जिस दिन देश के सवा सौ नहीं तो सवा करोड़ लोग भी इस सवाल के जवाब में सड़कों पर आ खड़े होंगे उस दिन किसी महरम की जरूरत किसी हिंदुस्तानी औरत को नहीं रह जाएगी.

औरत कैसे और किस के साथ काबा, काशी जाए यह कोई मुद्दा नहीं. मुद्दा यह है कि आजाद भारत में कैसे महिलाएं दिल्ली और भोपाल की सड़कों पर आधी रात को तफरीह करने की अपनी ख्वाहिश पूरी कर पाएं, इस बाबत मंत्रालयों को निर्देश दिए जाएं.

शिक्षा से वंचित

धर्म स्थलों पर जाने को प्रोत्साहन और सहूलतें देने से औरतों को कोई भला नहीं होने वाला. उन का असली भला तो स्कूलों और यूनिवर्सिटियों में जाने से होगा. जाने कब किस प्रधानमंत्री के मन में यह बात आएगी. बात और मंशा चूंकि सियासी है, इसलिए किसी नेता को इस हकीकत पर अफसोस नहीं होता कि आजादी के 70 साल बाद भी एक फीसदी मुसलिम लड़कियां भी कालेज का दरवाजा नहीं देख पातीं.

बहुसंख्यक हिंदु युवतियां भी उच्च शिक्षा से वंचित क्यों हैं, इस पर सभी खामोश रहते हैं. हां, बात हज या तीर्थ की हो तो जो सरकारें खुद पुण्य कराने के लिए पानी की तरह पैसा बहाती हों, उन से क्या खा कर महिलाओं के भले या हितों की उम्मीद की जाए?

बड़ा सवाल : आखिर हर चीज के लिए क्यों तरसते हैं किसान

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किसान देश की रीढ़ हैं. अन्नदाता और भाग्य विधाता हैं. ऐसे जुमले अकसर किसानों को बहलानेफुसलाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. कर्ज माफी, फसल बीमा व किसानों की आमदनी दोगुनी करने के ऐलान इसलिए होते हैं ताकि किसानों का वोट बैंक न खिसके. लेकिन हकीकत में किसान हर कदम पर तरसते हैं और उन की हकीकत व बदहाली जगजाहिर है.

किसानों का शोषण कोई नई बात नहीं है. बरसों पहले हिंदी के जानेमाने लेखक मुंशी प्रेमचंद ने अपने दौर में किसानों की बदतर तसवीर दिखाई थी. अपनी लिखी ज्यादातर कहानियों व उपन्यासों में उन्होंने बताया था कि किसानों को किस तरह दमन की चक्की में पीसा जाता है, सामंतवादी और पंडेपुरोहित पिछड़े व गरीब किसानों को कैसे व कितना लूटते और तंग करते हैं.

जातिवाद की देन

दरअसल, हमारे समाज की बनावट व उस की बुनियाद जातियों पर टिकी है. गंवई इलाकों में तो आज भी बहुत से मसलों की जड़ समाज में फैला हुआ वह जातिवाद है जिस का खात्मा होता नजर नहीं आता. समाज का ढांचा जातिवाद के चंगुल में होने का ही नतीजा है कि अगड़े मौज मारते हैं और दलित व पिछड़े हाड़तोड़ मेहनत कर के भी अपने हकों को पाने के लिए तरसते रहते हैं.

अगड़े, अमीर, सेठसाहूकार, जमींदार, मुखिया वगैरह जमीनों के मालिक हैं लेकिन वे सिर्फ हुक्म चलाते हैं. बोआई से कटाई तक के सारे काम वे किसान और मजदूर करते हैं जिन्हें दबा कर नीचे व पीछे रखा जाता है. धर्म, अंधविश्वास व कर्ज की आड़ में उन का शोषण किया जाता है.

अगड़े व पंडेपुजारी बिना कुछ करेधरे मौज मारने को अपना हक समझते हैं. खूनपसीना बहा कर फसल उगाने का काम किसानों का और सफाई, खिदमत व ताबेदारी को दलितों व पिछड़ों का फर्ज बताया जाता है, ऊपर से हिस्सा, बेगारी, लगान, तकावी, चुंगी, महसूल, मंडी शुल्क, घटतौली, आढ़त व कटौती की आड़ में किसानों को लूटा जाता है.

खेती बनी घाटे का सौदा

सहकारी समितियां व मंडी समितियां किसानों को शोषण से बचाने और सहूलियतें देने की गरज से बनाई गई थीं लेकिन उन में से ज्यादातर पर अगड़ों का कब्जा है और वे भी किसानों को लूटने का अड्डा बन कर रह गई हैं खासकर 80 फीसदी किसान, जो छोटी जोत के, कम पढ़ेलिखे व गरीब हैं, की दिक्कतों का अंत ही नहीं है.

लगातार लागत बढ़ने से किसानों को मुनाफा तो दूर, उपज की वाजिब कीमत भी वक्त पर पूरी नहीं मिलती. ज्यादातर किसानों को खेती से गुजारा करने लायक आमदनी भी नहीं होती. मजबूरन उन्हें खेती व घरखर्च के लिए कर्ज लेना पड़ता है लेकिन माली तंगी के चलते वे उसे वक्त पर अदा नहीं कर पाते. ऊपर से बेहिसाब तकलीफों से तंग आने, कहीं कोई सुनवाई न होने व अपने हकों से बेदखल होने से बहुत से किसान इतने मायूस हो जाते हैं कि आखिर में उन्हें खुदकुशी करने को मजबूर होना पड़ता है.

ऊंट के मुंह में जीरा

किसानों को बाजार की लूट से बचा कर वाजिब कीमत दिलाने के मकसद से सरकार फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है. इस के लिए साल 1965 में कृषि मूल्य आयोग बनाया गया था.

20 साल बाद साल 1985 में उस का नाम बदल कर कृषि मूल्य लागत आयोग कर दिया गया. यह आयोग कुल 25 अहम फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करता है लेकिन किसान इस मोरचे पर भी भेदभाव के शिकार होते हैं.

कृषि उपज की सरकारी कीमतों में बढ़ोतरी न के बराबर होती है. पिछले 10 सालों में गेहूं की सरकारी कीमत तकरीबन 60 से 70 फीसदी व गन्ने की कीमत तकरीबन 80 फीसदी बढ़ी है जबकि सरकारी मुलाजिमों के वेतन भत्तों में 150 से 200 फीसदी व सांसदों के वेतन भत्तों में 400 फीसदी का भारी इजाफा हुआ है. महंगाई के मारे किसान उपज की वाजिब कीमत मांगते हैं लेकिन नक्कारखाने में तूती की आवाज नहीं सुनी जाती.

नतीजतन, किसान अपनी माली जरूरतें पूरी करने के लिए भी तरसते रहते हैं. हालात से तंग आ कर वे जहांतहां धरनाप्रदर्शन करते हैं लेकिन फिर भी किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती, किसानों की आवाज अनसुनी कर दी जाती है. साथ ही मंदसौर की तरह किसानों को लाठीडंडे व गोली खा कर जान भी गंवानी पड़ती है.

कोई रहमोकरम नहीं

किसानों व मजदूरों के शोषण का सिलसिला आज भी बरकरार है क्योंकि सरकारों में हमेशा ही किसान विरोधी लोग हावी रहे हैं. उद्योगव्यापार के मुकाबले किसानों को तरजीह नहीं दी जाती. उन्हें सिर्फ लगान देने वाला गुलाम समझा जाता रहा है. जातिवाद की इस देन के चलते किसान परेशान हो कर अपने हकों व हर चीज को तरसते हैं.

मसलन चीनी मिलों को गन्ना बेच कर किसान हर साल उस की वाजिब कीमत नकद व तुरंत पाने तक के लिए तरस जाते हैं. चीनी मिल मालिक हर साल किसानों को टरकाते हैं. वे गन्ने की कीमत व ब्याज के अरबों रुपए जबरन दबा कर बैठ जाते हैं और भुगतान करने के वक्त सुप्रीम कोर्ट तक चले जाते हैं. यह किसानों पर ज्यादती है.

उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर 20 नवंबर, 2017 को किसानों की गन्ना कीमत के तकरीबन 8 अरब, 53 करोड़, 88 लाख रुपए बकाया थे. इस में 23 करोड़, 85 लाख रुपए साल 2015 के, 39 करोड़, 71 लाख रुपए साल 2016 के व सब से ज्यादा 790 करोड़, 32 लाख रुपए साल 2017 के सीजन के बकाया हैं. मतलब, गन्ना किसान अपनी माली जरूरतें पूरी करने के लिए तरस रहे हैं, लगातार एडि़यां घिस रहे हैं लेकिन कोई नहीं सुनता.

देश में गन्ने के कुल रकबे का तकरीबन आधा हिस्सा अकेले उत्तर प्रदेश में है. चीनी मिलें गन्ने की कुल पैदावार का तकरीबन आधा हिस्सा ही खरीद पाती हैं इसलिए वहां लाखों किसान अपनी उपज खुद पावर कोल्हू में पेर कर गुड़ बनाते हैं लेकिन वे बिजली पाने को भी तरसते हैं, क्योंकि शहर जगमगाते हैं और गांवों को रोजाना 18 घंटे भी बिजली नहीं मिलती.

जो खेती करे सो मरे

बोआई से कटाई तक सूखा, बाढ़, कीड़े, बीमारी, आग, जानवर व चोरी जैसे जाखिमों के बाद जब फसल पक कर तैयार होती है तो मंडी में दलाल, बिचौलिए, आढ़ती व भ्रष्ट सरकारी मुलाजिम किसानों को चूना लगाने को तैयार रहते हैं. खरीद चाहे गन्ने की हो या गेहूं और धान की, खरीद के सैंटरों पर तौल, हिसाब व भुगतान में गड़बड़ी होना एक आम बात है.

इस मिलीभगत को दूर करने के कारगर इंतजाम नहीं किए जाते. गंवई इलाकों में सही तरीके से प्रचारप्रसार ही नहीं किया जाता. किसानों के फायदे की बातों को जानबूझ कर छिपाया जाता है इसलिए ज्यादातर किसानों को उन्हें दी जाने वाली छूट, सहूलियतों व माली इमदाद की कानोंकान खबर तक नहीं मिल पाती. छुटभैए नेता व भ्रष्ट मुलाजिम हिस्सा बांट लेते हैं और जरूरतमंद किसान देखते रह जाते हैं.

मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश के सहकारिता, पशुपालन, कृषि, गन्ना व बागबानी के महकमों में अजब हाल हैं. वहां किसी ओहदेदार को यह देखने की फुरसत ही नहीं है कि सरकारी स्कीमों का फायदा बरसों से लगातार व बारबार कुछ खास परिवार ही क्यों हड़प रहे हैं? मिलीभगत से फर्जी बैंक खाते खोल कर भ्रष्ट मुलाजिम गोलमाल कर देते हैं.

पड़ता खराब असर

लूटखसोट व बदइंतजामी की नदी भी ऊपर से नीचे की ओर बहती है इसलिए उस का असर किसानों की सहकारी संस्थाओं पर भी पड़ा है. नतीजतन, अब कारिंदे ही नहीं बल्कि चुने हुए संचालक व सभापति भी इस सब से अछूते नहीं हैं. किसानों की रहनुमाई करने के नाम पर वे भी बहती गंगा में हाथ धोते हैं.

ऐसे नुमाइंदों की भी कमी नहीं है जो भाईभतीजावाद करने, अपना घर भरने व अपना मतलब पूरा करने के लिए नियमकायदों को धता बताते हैं, संस्था

व किसानों को चूना लगाते हैं. इन सब गोरखधंधों से जेब चालबाजों की भरती है व माली नुकसान किसानों का होता है. किसानों पर पड़ रही इस मार का नतीजा है कि वे खेतीबारी करना छोड़ रहे हैं.

ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देशभर में गेहूं का क्षेत्रफल साल 2013-14 में कुल 304.73 लाख हैक्टेयर था जो साल 2015-16 में घट कर 302.27 लाख हैक्टेयर रह गया. इसी तरह धान का क्षेत्रफल 441.36 लाख हैक्टेयर से घट कर 433.88 हैक्टेयर, गन्ने का क्षेत्रफल 49.93 लाख हैक्टेयर से घट कर 49.53 लाख हैक्टेयर व तिलहनी फसलों का क्षेत्रफल 280.50 लाख हैक्टेयर से घट कर 261.34 लाख हैक्टेयर रह गया है.

अहम फसलों की बोआई का क्षेत्रफल कम होने का सीधा असर कुल पैदावार पर पड़ा है. साल 2013-14 में गेहूं का उत्पादन 958 लाख टन था जो साल 2014-15 में घट कर 935 लाख टन रह गया. इसी तरह धान का उत्पादन 1066 लाख टन से 1043 लाख टन व तिलहन का उत्पादन 327 लाख टन से घट कर 253 लाख टन रह गया.

किसानों के लिए चल रही स्कीमों में रुपया बहाने के बावजूद खेती में तरक्की की तसवीर बहुत धुंधली है. खेती के कचरे का बेहतर इस्तेमाल व उपज प्रोसैसिंग की नई तकनीक, नए बीज व नई मशीनें ज्यादातर किसानों की पहुंच से बाहर हैं इसलिए छोटे किसानों की जिंदगी में बदलाव नहीं दिखता है.

उपाय भी हैं

तालीम, एकजुटता, जागरूकता और तकनीकी ट्रेनिंग की कमी से किसानों को खेती, बागबानी, कोआपरेटिव, डेरी, मंडी, तहसील, चकबंदी वगैरह के दफ्तरों में जराजरा से काम के लिए धक्के खाने पड़ते हैं.

छोटेमोटे कर्ज अदा न करने पर भी हवालात, कुर्की व खेत बिकने तक की नौबत आ जाती है, ट्यूबवैल की बिजली कट जाती है इसलिए किसानों की दशा सुधारने के कारगर उपाय करने जरूरी हैं.

दरअसल, पैसे की तंगी से ज्यादातर किसान जीने, रहने, बच्चों की शादी व पढ़ाई तक के लिए हर चीज को तरसते रहते हैं. आज नेताओं व अफसरों को किसानों के मसले सुलझाने की चिंता, जरूरत व फुरसत नहीं है. अगर आगे भी यही सिलसिला जारी रहा तो किसान व उन के बच्चे खेती से मुंह मोड़ लेंगे तब मुश्किलें बेकाबू हो जाएंगी.

सरकारी, सहकारी व निजी सैक्टर में नए कदम उठाए जा सकते हैं. मसलन किसानों को पराली से बिजली, खाद व कागज की लुगदी वगैरह बनाने, डब्बाबंदी कर के उपज की कीमत बढ़ाने, इंटरक्रौपिंग से जमीन का बेहतर इस्तेमाल करने, खेती की लागत घटाने, प्रति हैक्टेयर उपज बढ़ाने वगैरह की तकनीक सिखाई जाए ताकि खेती का खर्च कम से कम व पैदावार ज्यादा से ज्यादा हो व खेती से किसानों की आमदनी बढ़ सके.

देश की खुशहाली के लिए खेती के सहायक कामधंधों और गांवों में फूड प्रोसैसिंग यूनिटों को बढ़ावा देना लाजिमी है. किसानों को खुद भी अकेले या मिल कर गांवों में छोटेबड़े कारखाने लगाने के लिए आगे आना चाहिए. सरकारों को इस में भरपूर सहूलियतें, छूट, माली इमदाद वगैरह किसानों को देनी चाहिए ताकि किसानों की दिक्कतें कम हो सकें और वे कदमकदम पर हर चीज के लिए तरसने को मजबूर न रहें.

इंटरव्यू : ऐसे करें तैयारी ताकि इंटरव्यू में बन जाए बात

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जीवन एक परीक्षा है और इस के लिए पहले से कोई भी किसी भी तरह की तैयारी नहीं करता. वह उस में पास या फेल होता रहता है. और इस तरह से वह जीवन को आगे ले जाता है. पर नौकरी पाने के लिए कोई भी हाथ पर हाथ धरे नहीं रह सकता. नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू देना पड़ता है.

इंटरव्यू के नाम से अच्छेअच्छों के पसीने छूट जाते हैं. यदि हम ने इंटरव्यू को हौवा समझ लिया तो इंटरव्यू तो हम दे देंगे पर उस में सफल होने की गारंटी हम खुद को भी नहीं दे पाएंगे.

आइए, जानें कुछ ऐसी बातें, जो हमारे इंटरव्यू की सफलता की गारंटी बन सकती हैं :

रिज्यूमे को प्रभावशाली बनाएं

इंटरव्यू देने जाने से पहले अपने रिज्यूमे का रिव्यू कर लें और अपनी योग्यता यानी स्किल्स को हाईलाइट करें क्योंकि यही आप को दूसरे एप्लिकैंट से अलग करता है.

इंटरव्यू में जाने से पहले रिज्यूमे में अपने कैरियर, एजुकेशन और रुचि के बारे में जो भी लिखा हो, उस को एक बार अच्छी तरह देख लें, क्योंकि जो भी आप रिज्यूमे में अपने बारे में लिखेंगे उसी के आधार पर इंटरव्यू लेने वाले आप से प्रश्न करेंगे.

आप इंटरव्यू के दौरान केवल अपने अनुभव और स्किल के बारे में ही बताएं. यह भी जताएं कि आप का अनुभव व स्किल कंपनी के कितने काम आ सकता है.

कंपनी की पूरी जानकारी रखें

आप जिस कंपनी में इंटरव्यू देने जा रहे हैं उस के विषय में जितनी अधिक जानकारी रखेंगे, आप के सिलैक्शन के चांसैज उतने ही अधिक होंगे. उस कंपनी के इतिहास, उस का कम्युनिटी में योगदान- चाहे वह स्थानीय या राष्ट्रीय या फिर अंतर्राष्ट्रीय और उस की राइवल कंपनीज के बारे में जितनी भी जानकारी आप जुटा सकते हैं, जुटाएं. उस कंपनी के उद्देश्य तथा उस की वैल्यूज क्या हैं? ये सारी बातें उस कंपनी की वैबसाइट, उस के सोशल पेजेस- लिंक्डइन, फेसबुक और उस के ब्लौग से जुटाई जा सकती हैं.

यह भी जरूर जानने की कोशिश करें कि हाल में इस कंपनी के बारे में लोकल, राष्ट्रीय और ट्रेड न्यूजपेपर में क्या छपा है? ट्रेड पत्रिकाओं में कंपनी के बारे में इनसाइड स्टोरी छपती हैं जिस से पता चल जाता है कि किसी कंपनी का बिजनैस सैक्टर में क्या प्रभाव है. ये सारी जानकारियां आप को दूसरे प्रतियोगियों से अलग करेंगी.

ये सारी बातें इंटरव्यू लेने वालों के सामने यही दर्शाएंगी कि आप इस कंपनी के लिए कितने जरूरी हो सकते हैं. ये सारी जानकारियां जुटाने पर आप का आत्मविश्वास और भी बढ़ेगा और जो जानकारी आप के पास उस कंपनी के विषय में होगी, वह निश्चितरूप से दूसरे प्रतियोगियों के पास नहीं होगी और यही बात आप को दूसरों से अलग करती है.

योग्यता संबंधित प्रश्नों के जवाब

आप से यह प्रश्न जरूर पूछा जाएगा कि आप की योग्यता या स्किल कंपनी के कैसे काम आ सकती है? आप से यह भी कहा जा सकता है कि आप अपनी स्किल्स को उदाहरण के साथ समझाएं कि कुछ सिचुएशन में आप कैसे रिऐक्ट करेंगे? आप की स्किल्स अकसर कुछ क्षेत्रों जैसे लोगों से बातचीत करना और उस से होने वाले प्रभाव और मैनेजमैंट से रिलेट जरूर करेंगे.

अपनी क्षमता को पहचानें

अपनी क्षमता को पहचानना भी जरूरी है क्योंकि ये आप ही हैं जो बता सकते हैं कि आप उस कंपनी के लिए कितने उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं, आप की क्षमताएं कंपनी के कैसे काम आ सकती हैं.

इंटरव्यूअर यह जानने की कोशिश करते हैं कि आप कैसे अपनी योग्यताओं का उपयोग कर दूसरों के साथ मिल कर समस्याओं को दूर कर सकते हैं. वे यह भी निश्चित करना चाहते हैं कि आप कैसे अपने काम के प्रति प्राउड फील करते हैं. इस तरह के प्रश्नों के जवाब वे तुरंत चाहेंगे जिस से वे एक जैन्यूइन रिस्पौंस पा सकें.

अगर आप का इंटरव्यू आप की क्षमताओं से हट कर आप की प्राथमिकताओं पर आधारित होने लगे तो घबराएं नहीं. यदि ऐसा होता है तो बेहतर है कि आप इंटरव्यूअर के सवालों को ऐंजौय करें. इस से आप बेहतर ढंग से इंटरव्यू का सामना कर सकेंगे.

प्रश्नों की तैयारी करें

इंटरव्यू के अंत में आप से यह जरूर कहा जा सकता है कि क्या आप कुछ पूछना चाहते हैं? यदि ऐसा है तो इसे एक अवसर मानें. इस से आप अपने इंटरव्यूअर को इंप्रैस भी कर सकते हैं. और साथ ही, उस कंपनी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जान सकते हैं. इसलिए जरूरी है कि आप ऐसे प्रश्न तैयार करें जिस से इंटरव्यूअर को लगे कि आप कुछ तैयारी कर के आए हैं.

ऐसे प्रश्नों को अवौयड करें जो आप के बारे में बहुत अधिक रिवील करते हों. ऐसे सवाल न पूछें जो इंटरव्यू के दौरान पूछे जा चुके हों. कंपनी के विषय में पूछें, जैसे कंपनी का विजन और वैल्यूज. ट्रेनिंग और डैवलपमैंट के अवसर. और जो इंटरव्यू ले रहे हैं उन की बैकग्राउंड और कंपनी के साथ उन के कार्य के बारे में. कंपनी के भविष्य की योजना के बारे में जानना यह दर्शाएगा कि आप इस कंपनी में काम करने को ले कर कितने गंभीर हैं.

फर्स्ट इंप्रैशन बेहतर बनाएं

यह मौका आप को केवल एक ही बार मिलता है. फर्स्ट इंप्रैशन इंटरव्यू के पहले मिनट में ही बन जाता है. आप का अपियरेंस और बौडी लैंग्वेज यह तय कर देते हैं. इस के लिए जौब के हिसाब से ड्रैस चुनें और स्मार्टली ड्रैसअप हो कर जाएं ताकि आप उत्साहित और कौन्फिडैंट नजर आएं.

जब आप से बैठने को कहा जाए तो सीधे बैठें और थोड़ा आगे की ओर झुकें जिस से लगे कि आप बातचीत के लिए तैयार हैं. पूरे इंटरव्यू के दौरान इंटरव्यूअर से सीधे आई कांटैक्ट रखें.

पौजिटिव रहें

आप की सोच पौजिटिव रहनी बेहद जरूरी है. आप अपने इंटरव्यू की तैयारी इस पौजिटिव सोच के साथ करें कि ये उक्त पोस्ट केवल आप के ही लिए बनी है. पर ओवर कौन्फिडैंट न हों. इंटरव्यू के दौरान पौजिटिवली बात करें जिस से कि आप के साथ इंटरव्यूअर को भी लगे कि आप सफल होना चाहते हैं.

इंटरव्यू के दौरान यह भी जानने की कोशिश करें कि इस जौब का वातावरण आप के काम के लिए अनुकूल है या नहीं? और यहां आप की योग्यता के लिए एक बेहतर भविष्य भी है या नहीं? इंटरव्यू देते समय यह कभी न दर्शाएं कि आप इस जौब के लिए डैस्परेट हैं, बल्कि यह जताएं कि आप की योग्यता इस कंपनी के लिए कितनी जरूरी है.

आखिर में याद रखें कि इंटरव्यू के दौरान न तो बहुत ज्यादा खामोश रहना उचित होता है, न जरूरत से ज्यादा बोलना. ओवरस्मार्ट या दब्बू न बनें, जितना पूछा जाए आत्मविश्वास से भर कर जवाब दें. जिस के विषय में जानकारी न हो, उस पर आड़ाटेढ़ा जवाब देने से अच्छा है कि सीधे तौर पर अपनी अनभिज्ञता जाहिर कर दें. जरूरी नहीं है कि हर सवाल का जवाब आप को पता हो. थके व बुझे चेहरे के साथ इंटरव्यूअर का सामना न करें.

अपनी पर्सनैलिटी की चमक व चेहरे पर मुसकान बरकरार रखें ताकि सामने वाले पर आप का इंप्रैशन सकारात्मक रहे. इस से आप के इंटरव्यू की सफलता के चांसेस बढ़ जाते हैं.

व्हाट्सऐप पर आने वाले हैं ये नये और जबरदस्त फीचर

VIDEO : इस तरह बनाएं अपने होंठो को गुलाबी

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अगर आप व्हाट्सऐप पर आने वाले गुड मौर्निंग, गुड नाइट के मैसेज से परेशान हैं तो अब आपको जल्द इस तरह के फोरवार्डिड और स्पैम मैसेज से छुटकारा मिल सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि व्हाट्सऐप एक ऐसे फीचर की टेस्टिंग कर रहा है, जिसमें आपको फोरवर्ड किए हुए मैसेज के ऊपर ‘फोरवार्डिड’ लिखकर आएगा. यानी, अगर आप हर दिन गुड मौर्निंग, गुड नाइट जैसे फोरवर्ड किए जाने वाले मैसेज पसंद नहीं करते, तो आपको राहत मिल सकती है. यह फीचर डब्ल्यूएबीटाइनफो की नजर में आया है, जो व्हाट्सऐप का अपडेट ट्रैकर है. दावा किया गया है कि यह फीचर व्हाट्सऐप बीटा में एंड्रायड वी2.18.67 वर्जन के लिए है.

इसके अलावा व्हाट्सऐप एक और नया फीचर लेकर आ रहा है, जिसका नाम स्टीकर है. इस फीचर को बीटा वर्जन पर जारी कर दिया गया है. यह फीचर पहले व्हाट्सऐप के विंडोज औपरेटिंग सिस्टम के लिए आया था. फिलहाल इन दोनों ही फीचर को बाइ डिफौल्ट डिसेबल रखा गया है. वेबसाइट के मुताबिक, व्हाट्सऐप पर अगर यूजर को किसी का फोरवार्डिड मैसेज मिलता है, तो अब उसे इस बात की जानाकरी दी जाएगी.

बता दें कि व्हाट्सऐप ने हाल ही में एंड्रायड और विंडोज फोन के लिए बीटा वर्जन में ग्रुप डिस्क्रिप्शन फीचर दिया था. इस फीचर को किसी कोड के जरिए इनेबल करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, यह यूजर को अपने आप दिखेगा. इस फीचर का मदद से व्हाट्सऐप ग्रुप का कोई भी सदस्य, डिस्क्रिप्शन को संपादित कर पाएगा. इस डिस्क्रिप्शन की शब्द सीमा 500 रखी गई है. इसे पब्लिक ग्रुप को और दिलचस्प और सहज बनाने के लिए जोड़ा गया है.

बता दें कि साल 2016 में व्हाट्सऐप ने इसमें चैट इनवाइट फीचर भी जोड़ा था. इसी महीने की शुरुआत में डब्ल्यूएबीटाइन्फो ने एंड्रायड बीटा में टीओएस भी देखा था. जिसके जरिए व्हाट्सऐप का डेटा फेसबुक पर शेयर किया जा सकता है.

इन ऐप्स के जरिए आप भी कमा सकते हैं एक्सट्रा इनकम

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स्टार्टअप लौंच करने का और अपनी कंपनी पर खुद के मालिकाना हक होने का सपना डिजिटल होते भारत में अब अधिकतर लोग देखते हैं. इसके साथ ही युवाओं समेत हर वर्ग में फ्रीलांस काम करना पहली पसंद बनता जा रहा है. तकनीकी माध्यमों में हो रही लगातार तरक्की ने इस भावना को और बल दिया है.

फ्रीलांसिग काम में युवाओं समेत हर वर्ग को काम चुनने से लेकर काम के घंटे तय करने की आजादी मिलती है. वहीं कुछ लोगों को वरीयता में फ्रीलांस काम पारिवारिक या शारीरिक मजबूरियों के कारण भी होता है. इन सभी वर्गों के लिए फ्रीलांसिंग एक बहुत अच्छा विकल्प है. आज हम आपको फ्रीलांस काम दिलाने वाली ऐसी ही कुछ ऐप के बारे में बताऐंगे, जो आपको घर बैठे काम करने के लिए ‘एक्सट्रा मनी’ दिलवा सकती हैं.

इन ऐप पर आप अपने काम की कीमत तय कर सकते हैं और आपको हायर करने वाला आपके प्रोजेक्टस देख कर आपको पेमेंट कर देता है. आप अपनी पसंद का काम चुनकर उसपर बिडिंग (काम देने वाले के बजट के अनुसार बोली) कर सकते हैं. काम देने वाले के बजट के अनुसार अगर आप की बोली कम औऱ उसके बजट में हुई तो आपको काम अलौट हो जाता है.

काम मिलने के बाद आपको इसे समय पर पूरा भी करना होता है. इन ऐप में जब आपका पेमेंट किया जाता है, तो कुछ पैसे कमिशन फी के तौर पर भी काटे जाते हैं. यहां आपको उन 5 ऐप के बारे में बताया जा रहा है, जिनको गूगल प्लेस्टोर में यूजर्स ने फीडबैक में ठीक-ठाक रेटिंग दी है.

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Efii – Freelancers Near Me

गूगल प्लेस्टोर पर 4.7 की रेटिंग पाने वाली एफी एक फ्रीलांसिंग ऐप है. इस ऐप में दुनियाभर से ‘काम देने वाले/Job Provider’ और ‘काम करने वाले लोग/Job Seeker’ जुड़े हुए हैं. इस ऐप में आपको दुनियाभर के किसी भी कोने से काम देने वाला मिल सकता है. इसके साथ ही आप भी किसी और को काम दे सकते हैं.

इस ऐप में यूजर को प्रीमियम व बेसिक सब्सक्रिप्शन के विकल्प मिलते हैं, जिसके आधार पर आपको काम जल्द से जल्द मिलने और अच्छी कमाई होने का दावा किया जाता है. इस ऐप में 20 विभिन्न कैटेगरी हैं, जिसमें लोकेशन के आधार पर काम के चयन जैसे फीचर दिए गए हैं. इस ऐप में यूजर को ब्लौगिंग, वौयसओवर, प्रमोशन, डिजिटल मार्केटिंग, वेब डिजाइनिंग से लेकर फोटोग्राफी और कंटेंट से लेकर प्रोडक्शन जैसे क्षेत्रों में काम मिलता है.

Fiverr – Freelance Services

गूगल प्लेस्टोर पर 4.6 की रेटिंग वाली यह फ्रीलांसिंग ऐप आपको 116 तरह की कैटिगरी में काम दिलाने का दावा करती है. इस ऐप पर आप अनुवाद, प्रोडक्शन, स्क्रिप्ट लेखन, वेबसाइट डिजाइनिंग और वौयसओवर जैसे कई फ्रीलांस काम पा सकते हैं या किसी को काम दे सकते हैं. इस ऐप पर आप जो काम करना चाहते हैं, उसका ब्यौरा भर देने पर काम देने वाला क्लाइंट आपसे संपर्क करता है.

Taskkers – Local Freelancer

इस ऐप को गूगल प्लेस्टोर पर 4.6 रेटिंग मिली हैं. इस ऐप के द्वारा आप देश-विदेश तक के लोगों के लिए काम करने का मौका पा सकते हैं. यह ऐप ब्लौगिंग, वौयसओवर, प्रमोशन, डिजिटल मार्केटिंग जैसे क्षेत्रों में काम दिलाने का दावा करता है. भारत में इस ऐप का औफिस गुजरात के सूरत शहर में है.

Truelancer.com – Search Jobs & Hire Freelancer

ट्रूलांसर डौट कौम ऐप को गूगल प्लेस्टोर पर 4.4 रेटिंग मिली हैं. यहां भी आप काम ढूंढ सकते हैं और दूसरों को काम दे सकते हैं. इस ऐप पर पेमेंट के औप्शन के लिए पेपाल, पेटीएम जैसे वौलेट माध्यमों का प्रयोग किया जाता है. यहां आप किसी वेब डिजाइनिंग से लेकर फोटोग्राफी और कंटेंट से लेकर प्रोडक्शन जैसे क्षेत्रों में काम चुन सकते हैं.

Freelancer – Hire & Find Jobs

इस फ्रीलांसिंग ऐप की गूगल प्लेस्टोर पर 4.1 रेटिंग है. इस ऐप के जरिए आपको अनुवाद, प्रोडक्शन, स्क्रिप्ट लेखन, वेबसाइट डिजाइनिंग और वौयसओवर जैसे कई फ्रीलांस काम मिल सकते हैं. फ्रीलांसर डौट कौम का औफिस औस्ट्रेलिया में है. यह ऐप एंड्रौयड और आईओएस दोनों पर उपलब्ध है.

वीडियो : इस गेंदबाज के बाउंसर ने दिलाई फिलीप ह्यूज की याद

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क्रिकेट के मैदान पर एक बार फिर बड़ा हादसा होते-होते बच गया. औस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज सीन एबौट की बाउंसर से बल्लेबाज घायल होकर नीचे गिर गया, जिसके बाद फिजियो को बुलाया गया. दरअसल, एबट ही वो गेंदबाज हैं जिनकी गेंद पर उभरते औस्ट्रेलियाई बल्लेबाज फिलिप ह्यूज की मौत हो गई थी.

फिलिप ह्यूज की मौत के बाद एबौट खुद उस घटना को अभी तक भूल नहीं पाए हैं. शेफील्ड शील्ड में न्यू साउथ वेल्स की तरफ से खेलते हुए एबौट ने विक्टोरियन बल्लेबाज विल पुकोस्की को अपनी तेज बाउंसर से घायल कर दिया. एबौट की गेंद इतनी तेज थी कि वो हेल्मेट से टकराने के बाद भी काफी दूर तक चली गई.

इस मंजर को देख एबौट और आस-पास मौजूद खिलाड़ियों का ध्यान फिलिप ह्यूज के साथ हुए उस दर्दनाक हादसे की ओर चला गया, जिसमें उनकी मौत हो गई थी. बता दें कि एबट की बाउंसर की वजह से ही फिलिप ह्यूज की जान गई थी. खिलाड़ियों ने विल पुकोस्की को जब मैदान पर गंभीर अवस्था में गिरते हुए देखा तो तुरंत फिजियो को बुलाया गया.

पुकोस्की काफी देर तक उठ नहीं पाए और मैदान पर खिलाड़ियों ने उनको चारों ओर से घेर लिया. दोनों टीमों के खिलाड़ी उनकी सलामती की दुआ करने लगे. हालांकि, थोड़ी देर बाद फिजियो उन्हें होश में लाने में कामयाब रहे और इसके बाद वह पुकोस्की को लेकर मैदान से बाहर ड्रेसिंग रूम चले गए. पुकोस्की की हालत को देखकर गेंदबाज एबौट काफी परेशान नजर आए.

वो अपनी अगली गेंद डालने से पहले काफी समय तक सोच में डूबे नजर आए. नंवबर 2014 को उन्हीं की गेंद ह्यूज के गले में लगी थी, जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी. हालांकि, पुकोस्की पूरी तरह से सुरक्षित हैं. आने वाले समय में पुकोस्की औस्ट्रेलिया की तरफ से खेलते नजर आ सकते हैं. घरेलू सीजन में वह कमाल के फौर्म में नजर आ रहे हैं, अगर वह अपने इस फौर्म को यूं ही बरकरार रखते हैं तो जल्द ही उनका नाम बड़े क्रिकेटरों के लिस्ट में होगा.

‘मेंटल है क्या’ में अनोखे अंदाज में दिखेंगे राजकुमार राव और कंगना

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बौलीवुड एक्टर राजकुमार राव और एक्ट्रेस कंगना रनौत दोनों ही बड़े पर्दे के ऐसे कलाकार हैं जो अपने किरदार में जान डाल देते हैं. डायरेक्टर विकास बहल ही हैं जिन्होंने इस जोड़ी को बड़े पर्दे पर एक साथ उतारा था. दोनों पहली बार फिल्म ‘क्वीन’ में एक साथ नजर आए थे और अब यह जोड़ी एक बार फिर बड़े पर्दे पर साथ नजर आने वाली है और इस बार दोनों फिल्म ‘मेंटल है क्या’ में नजर आएंगे. इस फिल्म को एकता कपूर के बालाजी प्रोडक्शन द्वारा प्रोड्यूस किया जा रहा है.

कुछ देर पहले ही बालाजी मोशन पिक्चर्स ने फिल्म के फर्स्ट लुक को शेयर करते हुए फिल्म की जानकारी दी है. मेकर्स द्वारा एक कंगना की फोटो और एक राजकुमार राव की फोटो शेयर की गई है. इन तस्वीरों में दोनों अजीब से चेहरे बनाते हुए नजर आ रहे हैं. इस फिल्म का निर्देशन प्रकाश कोलेवमूडी करेंगे. बता दें, प्रकाश द्वारा निर्देशित तेलुगु फिल्म बोमालता के लिए वह राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं. ‘मेंटल है क्या’ की कहानी कनिका ढिल्लन ने लिखी है.

पहली तस्वीर कंगना की है. इस तस्वीर में कंगना के बाल छोटे नजर आ रहे हैं और वह आंखो से मस्ती करते हुए दिखाई दे रही हैं. वहीं दूसरी तस्वीर राजकुमार राव की है और इस तस्वीर में राजकुमार अपनी आंखों पर उंगली रखे हुए दिख रहे हैं और उनकी उंगली पर आंखे बनी हुई हैं. बता दें, दोनों की यह तस्वीरें फिल्म के टाइटल की साफ झलक दिखा रही हैं. बता दें, ‘मेंटल है क्या’ साइकोलोजिकल थ्रिलर फिल्म है और इसमें राजकुमार और कंगना का अलग अंदाज नजर आएग.

एमएसएमई की परिभाषा बदली

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सरकार ने कारोबार को और पारदर्शी बनाने के लिए अति लघु, लघु तथा मझोले उद्योग (एमएसएमई) की नई परिभाषा तय की है. इन तीनों श्रेणियों के उद्यमियों को अब नई परिभाषा के तहत परखा जाएगा और उसी आधार पर उन की श्रेणी तय की जाएगी. अब उन्हें उनके सालाना कारोबार के आधार पर वर्गीकृत किया जाएगा.

नई परिभाषा के तहत सालाना 5 करोड़ रुपए तक के कारोबार वाला उद्योग अति लघु श्रेणी, 5 से 75 करोड़ रुपए तक के राजस्व अर्जन करने वाले कारोबारी लघु तथा 75 करोड़ से 250 करोड़ रुपए तक का काम करने वाले मझोले श्रेणी के कारोबारी होंगे.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एमएसएमई के लिए 250 करोड़ रुपए तक के कारोबार पर 25 प्रतिशत कौर्पाेरेट टैक्स का प्रस्ताव किया है. पहले यह कर 30 प्रतिशत था. इस से पहले रिजर्व बैंक ने एमएसएमई के लिए रिपेमैंट की अवधि 90 दिन से बढ़ा कर 180 दिन कर दी है.

सरकार मानती है कि इस से उद्यमिता क्षेत्र में पारदर्शिता आएगी और आसान कारोबार की कार्यशैली को बढ़ावा मिलेगा. इस के अलावा इन उद्योगों में निरीक्षण आदि का झंझट भी साफ हो जाएगा. पहले अपने संयंत्र पर 25 लाख रुपए तक का निवेश करने वाले उद्यम अति सूक्ष्म, 25 लाख से 5 करोड़ रुपए तक का निवेश करने वाले लघु तथा 10 करोड़ रुपए तक का निवेश करने वाली उद्यम मझोले उद्योग की श्रेणी में आते थे. पहले निरीक्षण करने के लिए इन कंपनियों का वर्गीकरण किया जाता था जिस में तरहतरह के घपले होते थे और एक तरह का इंस्पैक्टरराज कायम रहता था, लेकिन अब सबकुछ वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी में दी गई सूचनाओं के आधार पर स्वत: निर्धारित हो जाएगा. इस से पारदर्शिता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा.

जीएसटी में उद्यमी द्वारा दिए गए आंकड़ों को उस के उद्यम की श्रेणी का आधार माना जाएगा. एमएसएमई का निर्धारण अब उन के सालाना राजस्व के आधार पर होगा.

फोन के चोरी या गुम हो जाने पर ऐसे करें व्हाट्सऐप डाटा रिकवर

VIDEO : सिर्फ 1 मिनट में इस तरह से करें चेहरे का मेकअप

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फोन का खोना या फिर चोरी हो जाना आज के समय के किसी बुरे सपने से कम नहीं है. फोन का डाटा, बैंक अकाउंट के डिटेल्स, डिजिटल वौलेट, फोटो, चैट, ईमेल ये सारी चीजें किसी भी गलत हाथ में लग सकती हैं. फोन का खोना मतलब आपके कई जानकारियों का खो जाना है. ऐसे में अगर आपका फोन खो गया है, तो इस बात का ध्यान देना जरूरी है कि आपके फोन का डाटा चोरी न हो सके. हम आपको उन तरीकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी मदद से फोन के खो जाने के बाद आप अपने व्हाट्सऐप अकाउंट को रिकवर कर सकते हैं.

सिम को लौक करें

फोन के चोरी होते ही सबसे पहले अपने मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर को फोन करें. ऐसा करने पर अब कोई भी आपके अकाउंट को औथेंटिकेट नहीं कर पाएगा. ऐसा इसलिए भी करना जरूरी है क्योंकि किसी भी कौल या मैसेज के लिए जरूरी है कि आपका फोन किसी अकाउंट से जुड़ा हो. ये अकाउंट आपके नंबर के जुड़े होते हैं. अगर आप अपना नंबर डिएक्टिव करा लेंगे तो सारे अकाउंट काम करना बंद कर देंगे.

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दूसरे हैंडसेट पर अपने अकाउंट को चलाएं

सिम लौक होने के बाद आप अपने व्हाट्सऐप अकाउंट को दूसरे हैंडसेट पर चला सकते हैं. इसके लिए जरूरी है कि आप अपने फोन नंबर का दूसरा सिम एक्टिवेट कराएं. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि व्हाट्सऐप एक बार में एक ही नंबर पर काम करता है.

व्हाट्सऐप टीम की मदद लें

फोन खोने पर आप एक और तरीके का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप व्हाट्सऐप टीम को ई मेल कर सकते हैं. ध्यान रखें कि अपने ई मेल के सब्जेक्ट में ‘Lost/stolen: Deactivate my account’ लिखें. सब्जेक्ट में अपने मोबाइल नंबर को टेक्स्ट के बाद लिखना न भूलें. मोबाइन नंबर के शुरू में अपने देश के कोड को लिखना न भूलें. याद रखें नंबर वहीं डाले जो आपने स्मार्टफोन में इंटर किया था.

इसलिए जरूरी है व्हाट्सऐप टीम की मदद

व्हाट्सऐप अकाउंट को वाई फाई की मदद से एक्सेस किया जा सकता है. वाईफाई होने पर सिम कार्ड की जरूरत नहीं पड़ती है. इसलिए जरूरी है कि व्हाट्सऐप टीम को मेल करके अपने अकाउंट को डिएक्टिवेट करा लें. व्हाट्सऐप टीम द्वारा अकाउंट डिएक्टिवेट करने के 30 दिनों के भीतर आप इसे वापिस एक्टिवेट करा सकते हैं, लेकिन 30 दिनों के बाद आपका अकाउंट हमेशा के लिए डिलीट हो जाएगा. जिस दौरान आपका अकाउंट डिएक्टिवेट होगा आपके अकाउंट पर आया मैसेज पेंडिंग में रहेगा और 30 दिनों बाद ये हमेशा के लिए डिलीट हो जाएगा. इसलिए आप अपने फोन के कौन्टेक्ट को गूगल ड्राइव पर पहले से सेव कर लें.

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