अगर आप ट्विटर का इस्तेमाल करते हैं तो आपके लिए एक अच्छी खबर है. दरअसल ट्विटर अकाउंट पर ब्लू टिक कुछ ही लोगों को दिया जाता है. इसे कुछ लोग स्टेट्स सिंबल भी मानते हैं. लेकिन इन दिनों आ रही खबरों के अनुसार अब कंपनी सभी के लिए इस ब्लू टिक को देने की तैयारी कर रही है. इसके लिए वेरिफाइड ब्लू टिक के लिए अप्लाई करने के लिए यूजर्स को कारण बताना होगा कि उन्हें ब्लू टिक क्यों चाहिए.
ब्लू टिक वेरिफिकेशन को कंपनी ने साल 2009 में पहली बार लौन्च किया था. शुरुआत में ब्लू टिक केवल सेलिब्रिटीज, एथलीट और पब्लिक फीगर को मिल रहा था. उसके बाद ट्विटर का ब्लू टिक सिंगिंग, एक्टिंग, फैशन, गवर्मेंट, पौलिटिक्स, धर्म, पत्रकार, मीडिया, स्पोर्ट्स, बिजनेस और दूसरे बड़े क्षेत्रों के लोगों को भी दिया जाने लगा. ट्विटर पर ब्लू टिक इस बात का सबूत होता है कि यह अकाउंट उसी व्यक्ति का या कंपनी का है जिसका नाम लिखा है. यह इस बात का सबूत है कि अकाउंट फर्जी नहीं है. इस पर आने वाली चीजें उसी व्यक्ति या कंपनी आदि द्वारा ही दी गई हैं.
ट्विटर के सीईओ जैक डौर्सी का कहना है कि कंपनी अपने ब्लू चैक मार्क वेरिफिकेशन बैज को ज्यादा से ज्यादा यूजर्स को देने की तैयारी कर रही है. माइक्रो ब्लौगिंग साइट ट्विटर इस बार नए तरीके से अकाउंट वेरिफिकेशन शुरू करने की तैयारी कर रहा है. साथ ही उन्होंने कहा कि ‘हम दुनिया का सबसे विश्वसनीय प्लेटफौर्म बनना चाहते हैं और हम जानते हैं कि इसके लिए हमें बहुत काम करने की जरूरत होगी.’
ट्विटर के मुताबिक इसके लिए एक एकाउंट वेरिफाई किया जा सकता है अगर यह सार्वजनिक हित के एक अकाउंट के रूप में निर्धारित किया गया हो. हालांकि ट्विटर के सीईओ ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि इस वेरिफिकेशन के लिए यूजर्स को फेसबुक प्रोफइल, अपना फोन नंबर, ईमेल एड्रेस या फिर सरकार द्वारा जारी किया गया कोई फोटो पहचान पत्र आदि में से क्या देना होगा.
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हार्दिक पंड्या के पास आज सबकुछ है. टीम इंडिया में उन्होंने नाम कमाया और एक बेहतरीन मुकाम तक पहुंचे. लेकिन उनके साथ हमेशा से ऐसा नहीं था, हार्दिक पंड्या की पहले की जिंदगी देखें तो वह काफी संघर्ष भरी रही है. जब घर में खाने को पैसे नहीं रहते थे तो हार्दिक 300 रुपये के लिए गांव-गांव जाकर क्रिकेट खेला करते थे. आज हार्दिक के पास वो सब कुछ है जिसका उन्होंने सपना देखा था. मुंबई इंडियंस की ओनर नीता ने पंड्या भाईयों की इमोशनल स्टोरी लोगों को सुनाई, जिसे सुन पंड्या भी भावुक हो गए.
नीता अंबानी ने कहा, मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहती हूं. ये दो भाईयों की ऐसी कहानी है जो बहुत शानदार है. दो छोटे बच्चे गुजरात में रह रहे थे. जो बहुत छोटे परिवार से आते हैं. उस वक्त उनके घर में पैसा नहीं था. कई दिनों तक दोनों बच्चों को भूखा रहना पड़ता था. लेकिन उसकी वजह से वो रुके नहीं. अलग-अलग गांव की टीमों से खेलने के लिए वो गांव से गांव लोकल ट्रेन में सफर किया करते थे. कभी-कभी तो वो ट्रक में बैठकर घर लौटते थे.
A big thank you to Nita Bhabhi! Krunal & I are lucky to have received so much support from @mipaltan & the RIL family which has helped us achieve so much in such a short time. The entire Ambani family have always stood by us and supported us on and off the field, thank you ?? pic.twitter.com/hiRVacQjmX
उन्होंने कहा- वो इतनी मेहनत करते थे सिर्फ 300 रुपये के लिए. उस वक्त उन्हें पता भी नहीं था कि उनकी किस्मत बदलने वाली है. 2013 में बड़ोदा के लिए टी-20 टूर्नामेंट खेलते वक्त छोटा भाई स्पौट हुआ और रिलायंस वन टीम के लिए चुना गया. जहां उसने शानदार प्रदर्शन किया और मुंबई इंडियंस के लिए चुना गया. उस शख्स को आज पूरी दुनिया जानती है, जिसका नाम है हार्दिक पंड्या. उन्होंने कहा, आज भारतीय टीम के इस खिलाड़ी को पूरी दुनिया देख रही है और इनकी तारिफ कर रही है. इन्होंने अपने सपनों और मेहनत की वजह से अपने बलबुते पर आज इस मुकाम को हासिल किया है.
बता दें कि हार्दिक पंड्या ने अब तक 6 टेस्ट खेलते हुए 297 रन जड़े और 7 विकेट चटकाए हैं. वहीं 38 वनडे खेलते हुए 628 रन और 39 विकेट लिए और 30 टी-20 खेलते हुए 188 रन जड़े और 26 विकेट लिए हैं.
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निदास ट्रौफी ट्राई सीरीज के चौथे मैच में भारत ने श्रीलंका को 6 विकेट से हराकर फाइनल में प्रवेश कर लिया है. लंबे समय बाद श्रीलंका के खिलाफ भारतीय बल्लेबाज लोकेश राहुल को टीम में ऋषभ पंत की जगह शामिल किया गया, लेकिन वह इस मैच में कुछ खास असर नहीं छोड़ पाए. बारिश की वजह से मैच एक घंटे देरी से शुरू हुई, भारतीय कप्तान रोहित शर्मा ने टौस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया.
पहले बल्लेबाजी करते हुए श्रीलंका ने भारत के सामने 153 रनों का लक्ष्य रखा, जिसे दिनेश कार्तिक और मनीष पांडे की शानदार बल्लेबाजी की बदौलत भारत जीतने में कामयाब रहा. ओवरों की संख्या प्रति पारी 19 ओवर कर दी गई थी, श्रीलंका की तरफ से कुशल मेंडिस ने सबसे अधिक 55 रन बनाए. उन्होंने इस दौरान 3 चौके और 3 छक्के भी लगाए, वहीं लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम की शुरुआत खराब रही.
टीम के सलामी बल्लेबाज रोहित शर्मा और शिखर धवन जल्द ही आउट हो गए. इसके बाद सुरेश रैना और केएल राहुल ने टीम को संभालने की कोशिश की, रैना अच्छी शुरुआत एक बार फिर गलत शौट खेलकर आउट हो गए. रैना ने 15 गेंदों में 27 रनों की पारी खेली, इस दौरान वो दो चौके और दो छक्के लगाने में कामयाब रहे. रैना के आउट होने के बाद केएल राहुल भी हिट विकेट आउट हो गए. हालांकि, इसके बाद कार्तिक और पांडे ने नाबाद रहते हुए टीम को जीत दिलाने का काम किया.
श्रीलंका के खिलाफ हिट विकेट आउट होते ही केएल राहुल ने अपने नाम एक शर्मनाक रिकौर्ड जोड़ लिया. दरअसल, टी-20 में हिटविकेट होने वाले अब वो दुनिया के नौवें खिलाड़ी बन गए हैं. वहीं टी-20 में भारत की तरफ से इस तरह से आउट होने वाले राहुल पहले बल्लेबाज बन गए हैं. साल 2007 में वर्ल्ड कप के दौरान कीनिया के बल्लेबाज डेविड ओबुया सबसे पहली बार न्यूजीलैंड के खिलाफ हिट विकेट आउट हुए थे.
ओबुया के बाद कई खिलाड़ी इस फौर्मेट में इस तरह आउट हो चुके हैं. दक्षिण अफ्रीका के एबी डिविलियर्स, श्रीलंका के दिनेश चांदीमल, पाकिस्तान के मिसबाह उल हक और मोहम्मद हफीज जैसे बड़े बल्लेबाजों का नाम इस लिस्ट में शामिल है. बता दें कि ट्राई सीरीज में भारत अपना अगला मैच बांग्लादेश के खिलाफ बुधवार को खेलेगा.
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मौजूदा वित्त वर्ष खत्म होनेवाला है और 1 अप्रैल से नए वित्त वर्ष की शुरुआत हो जाएगी. ऐसे में जरूरी है कि कुछ काम को नया वित्त वर्ष आने के पहले पहले निपटा लिया जाए. इनमें मौजूदा वित्त वर्ष में हुए विभिन्न लाभ का हिसाब-किताब करने से लेकर टैक्स बचाने के लिए निवेश के पोर्टफोलियो का विश्लेषण करने तक, महत्वपूर्ण वित्तीय कार्य शामिल हैं. यहां हमने आपके लिए ऐसे ही कामों की सूची तैयार की है जिन्हें अप्रैल के पहले हफ्ते तक निश्चित रूप से निपटा दिया जाना चाहिए. आइये जानें इसके बारें में-
पोर्टफोलियो ट्रैकर साइन अप करें
कब तकः जितना जल्दी हो सके
बजट में ग्रैंडफादरिंग की व्यवस्था से इक्विटीज पर लौन्ग टर्म कैपिटल गेंस (एलटीसीजी) टैक्स का दर्द कम हुआ है, लेकिन एलटीसीजी का आकलन पेचीदा हो गया है. एलटीसीजी की गणना करने के लिए निवेशकों को याद रखना होगा कि 31 जनवरी 2018 को उनके शेयरों के दाम और म्यूचुअल फंड्स के नैट ऐसेट वैल्यू (एनएवी) क्या थे. आप डेटा मेंटेन करने के लिए एक्सेल शीट की मदद ले सकते हैं, लेकिन फ्री पोर्टफोलियो ट्रैकर साइन अप करना बेहतर विकल्प है. इससे एलटीसीजी की गणना का काम बेहद आसान हो जाएगा.
डेडलाइन से पहले टैक्स रिटर्न्स फाइल करें
कब तकः 31 मार्च से पहले
आपको ते मालूम ही होगा कि दो वर्षों के टैक्स रिटर्न्स फाइल करने की सुविधा अब खत्म हो चुकी है. इस वर्ष से आकलन वर्ष के अंदर ही टैक्स रिटर्न फाइल कर सकते हैं. इसका मतलब है कि आप 2015-16 और 2016-17 के रिटर्न्स 31 मार्च 2018 तक ही फाइल कर सकते हैं. इसके बाद टैक्स रिटर्न फाइल करने पर आपको जुर्माना देना पड़ेगा. अगर आपको टैक्स फाइलिंग को लेकर कोई उलझन है तो भी 31 जुलाई 2018 से पहले तक तो रिटर्न्स फाइल कर ही दें. अगर जरूरी हो तो फिर 31 मार्च 2019 से पहले तक रिवाइज्ड रिटर्न फाइल कर सकते हैं. जुर्माने से बचने की यह कारगर तरकीब है. देर से रिटर्न्स फाइलिंग का एक नुकसान लौस अजस्टमेंट को लेकर होता है. अगर आपको बिजनस लौस, शौर्ट या लौन्ग टर्म कैपिटल लौस आदि हुआ हो तो आपको समयसीमा के अंदर टैक्स रिटर्न्स फाइल करना होगा. वरना, अगले वित्त वर्ष में लौस कैरी फौरवर्ड करने का लाभ नहीं मिल पाएगा.
टैक्स बचाने के लिए निवेश करना शुरू कर दें
कब सेः अप्रैल का पहला सप्ताह
ज्यादातर लोग टैक्स सेविंग्स इन्वेस्टमेंट्स को वित्त वर्ष के आखिर तक टालते रहते हैं और अक्सर गलत जगह पैसे लगा देते हैं. इसके लिए जरूरी है कि आप वित्त वर्ष की शुरुआत में ही टैक्स प्लानिंग कर लें और निवेश की रकम का अंदाजा लगा लें. फिर जिन निवेशों पर इनकम टैक्स ऐक्ट के सेक्शन 80सी में टैक्स छूट प्राप्त है, उन पर विचार करें. मसलन, बच्चों के ट्युइशन फी, हाउजिंग लोन ईएमआई का मूलधन, इंश्योरेंस पौलिसी का सालना प्रीमियम आदि. इनमें निवेश के बाद जो पैसे बचें उन्हें इक्विटी और डेट इंस्ट्रूमेंट्स में डाल दें. इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स के लिए एसआईपी और ईएलएसएस शुरू कर सकते हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि जरूरी हो तो डेट इंस्ट्रूमेंट्स में एक निश्चित रकम डाल दें. इसके लिए 5 अप्रैल 2018 से पहले पीपीएफ जैसी स्कीम में पैसे लगा दें ताकि आपको कंपाउंडिंग का पूरा-पूरा लाभ मिल सके. इसके लिए आपको सालाना बोनस या अन्य साधनों से मिली मोटी रकम लगानी चाहिए. अगर आप मासिक आधार पर निवेश करना चाहते हैं तो हर महीने की 5 तारीख से पहले इन्वेस्ट कर दें ताकि पूरे महीने का ब्याज मिल जाए.
अपने इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो की समीक्षा करें
कब तकः अप्रैल का पहला सप्ताह
आपको सालाना या छमाही आधार पर अपना इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो जरूर रीव्यू करना चाहिए. एलटीसीजी के आगमन से यह और भी जरूरी हो गया है. रीव्यू का कतई मतलब नहीं कि आप पोर्टफोलियो में बदलाव करें ही. समीक्षा कई स्तरों पर की जा सकती है.
पहला- चेक करें कि क्या आपका फंड अलोकेशन सही है.
दूसरा- देखें कि कौन से शेयर और म्यूचुअल फंड्स में किसने अच्छा प्रदर्शन किया है. जिनका प्रदर्शन अच्छा है, उनका क्या? क्या उनसे निकल जाना चाहिए? एक्सपर्ट्स का कहना है कि एक साल का प्रदर्शन देखकर किसी म्यूचुअल फंड से निकल जाना समझदारी नहीं है, बल्कि इसके खराब प्रदर्शन के क्या कारण इसका पता लगाना चाहिए.
वार्षिक बोनस के लिए निवेश योजना बनाएं
कब तकः योजना अभी, निवेश बोनस मिलने के बाद
ज्यादातर लोगों को मार्च या अप्रैल महीने में बोनस की रकम मिल जाती है, लेकिन बहुत कम लोगों के पास इसके निवेश की योजना होती है. अगर आपने ऊंची ब्याज दर पर लोन ले रखी है, क्रेडिट कार्ड का बकाया आदि है तो बोनस के पैसे से सबसे पहले कर्ज चुकाएं. 3% प्रतिमाह की दर से ब्याज देना बुद्धिमानी नहीं है. बाकी रकम को खर्च और निवेश में बांट लें. एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि बोनस के पैसे के दम पर मौज-मस्ती नहीं करें.
TDS से बचने के लिए 15G, 15H फौर्म जमा करें
कब तकः अप्रैल का पहला सप्ताह
फिक्स्ड और रिकरिंग डिपौजिट में पैसे डालने वालों के लिए टैक्स डिडक्टेड ऐट सौर्स (टीडीएस) बड़ी चिंता होती है. अभी सालाना 10,000 रुपये से ज्यादा ब्याज की कमाई पर बैंक टीडीएस काट लेते हैं. इससे बचने का एक ही तरीका है- 15G या 15H फौर्म जमा करना. फौर्म 15H वरिष्ठ नागरिकों के लिए होता है जबकि 60 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के लिए फौर्म 15G है. चूंकि टीडीएस की गणना करते हुए बैंक एक साल में दिए गए पूरे ब्याज की जगह एक साल में दिए जाने योग्य ब्याज का आकलन करते हैं, इसलिए टीडीएस वित्त वर्ष के शुरू में ही कट जाता है. ऐसे में अप्रैल के पहले सप्ताह में ही उचित फौर्म भरना जरूरी है.
हालांकि, जिनकी इनकम इतनी है कि उन पर टैक्स लगना ही लगना है तो फौर्म 15G या 15H भरने की जरूरत नहीं है. अगर आपने अवैध रूप से फौर्म भर दिया तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट आप पर किसी भी वक्त ऐक्शन ले सकता है. सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में वरिष्ठ नागरिकों को ब्याज से कमाई की टैक्स फ्री लिमिट 10,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दी. ऐसे में ब्याज से 50,000 रुपये तक की सालाना की कमाई हो रही हो तो सीनियर सिटिजन फौर्म 15H जमा कर सकते हैं. ध्यान रहे कि सेक्शन 80TTB के तहत 50,000 की यह सीमा सभी बैंकों और पोस्ट औफिसों में जमा की गई रकम से मिले ब्याज को लेकर है.
वौलंटरी प्रविडेंट फंड की अनुमति दें
कब तकः अप्रैल का पहला सप्ताह
ब्याज दरों में हालिया कटौती के बावजूद एंप्लायीज प्रविडेंट फंड (ईपीएफ) डेट इन्वेस्टमेंट प्रौडक्ट्स में सबसे ज्यादा ब्याज दनेवाले इंस्ट्रूमेंट्स में शुमार है. ईपीएफ और पीपीएफ रिटर्न्स में अच्छा-खासा अंतर है और एक्सपर्ट्स के मुताबिक भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा. ईपीएफ निवेशकों को वौलंटरी प्रविडेंट फंड (वीपीएफ) के जरिए स्कीम में ज्यादा पैसे लगाने की अनुमति होती है. खास बात यह है कि इसमें पीपीएफ के 1.5 लाख रुपये की सीमा जैसी कोई ऊपरी सीमा नहीं होती है. ज्यादातर कंपनियां वीपीएफ शुरू करने के लिए वित्त वर्ष की शुरुआत में ही अनुमति देने की सुविधा देती है. ईपीएफ में संकट के वक्त पैसे निकालने की सुविधा है, लेकिन इसमें लौक-इन पीरियड होने के कारण वीपीएफ के जरिए इसमें अतिरिक्त पैसे डालने से पहले सोच लें क्योंकि सैद्धांतिक तौर पर ईपीएफ और वीपीएफ की रकम रिटायरमेंट के वक्त ही मिलती है. वहीं, पीपीएफ ज्यादा लचीला है. ऐसे में एक्सपर्ट्स का सुझाव है कि युवावस्था में इक्विटी औरियेंटिड ग्रोथ प्रौडक्ट्स में निवेश करें और अधेड़ उम्र में इसे वीपीएफ जैसे डेट औरियेंटिड प्रौडक्ट्स में शिफ्ट कर दें.
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सवाल मेरी उम्र 30 साल है. मुझे स्लीवलैस कपड़े पहनने का बड़ा शौक है, जिस के लिए मैं वैक्सिंग भी करवाती हूं. अब चूंकि मेरे अंडरआर्म्स की स्किन काली दिखाई देने लगी है, इसलिए मैं ऐसे कपड़े पहनने पर पहले जैसा कौन्फिडैंस महसूस नहीं कर पाती. बताएं मैं क्या करूं?
जवाब
अपनी अंडरआर्म्स की रंगत निखारने के लिए बेसन में खसखस व ऐलोवेरा पल्प मिला कर रोज अंडरआर्म्स पर स्क्रब करें. ऐलोवेरा व बेसन दोनों के नियमित इस्तेमाल से कालापन काफी हद तक कम हो जाता है. इस के साथ ही आप चाहें तो कच्चे पपीते के टुकड़े को भी अंडरआर्म्स पर रगड़ सकती हैं. कच्चे पपीते में पैपीन नामक ऐंजाइम पाया जाता है, जो रंग निखारता है.
इस के अलावा कालेपन को रिमूव करने के लिए यह जरूरी है कि आप घरेलू उपाय के साथसाथ क्लीनिकल उपचार भी लेती रहें. इस के लिए आप 20 दिन में 1 बार ब्लीच भी करवा सकती हैं. इस के इस्तेमाल से टैनिंग तो दूर होती ही है, साथ ही स्किन भी सौफ्ट हो जाती है.
अंडरआर्म्स की स्किन सैंसिटिव होती है, इसलिए हो सके तो वहां माइल्ड ब्लीच का ही इस्तेमाल करें. औक्सी ब्लीच सैंसिटिव स्किन के लिए अच्छा होता है, साथ ही निखार व ग्लो भी लाता है. इसी तरह मिल्क ब्लीच सैंसिटिव स्किन के लिए बेहतर तो है ही, साथ ही यह स्किन को सौफ्ट भी बनाता है जबकि प्रोटीन ब्लीच स्किन को पोषण देने के साथसाथ उसे रिजुविनेट भी करता है.
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डार्क अंडरआर्म्स से छुटकारा दिलाएंगे ये खास उपाय
अंडरआर्म्स शरीर का एक ऐसा हिस्सा है जो अक्सर ढ़का हुआ रहता है. जब तक अपने हाथों को ऊपर की तरफ ना उठाया जाए यह दिखाई नहीं देती. इन हिस्सों में महिला और पुरुष दोनों में ही समान रूप से बालों की मौजूदगी होती है. एक समय था जब लोगों को उनके डार्क या काले अंडरआर्म्स होने से कोई फर्क नहीं पड़ता था और ना ही कोई महिला इसके लिए किसी भी प्रकार का कोई उपाय आदि करती थी. अगर देखा जाये तो उन्हें इसके काले होने की न परवाह थी और न ही उन्हें इसके लिए कोई उपाय करने की जरूरत महसूस होती थी. लेकिन आज के समय में महिलाओं में काले आर्मपीठ की समस्या एक बड़ी चिंता का रूप ले रही है और वह पूरी तरह से अपने शरीर की सफाई और उसके लुक के प्रति सजग हो रही हैं.
आज के फैशन को दौर में स्लीवलेस कपड़े चलन में हैं. जब आप फैशनेबल और स्लीवलेस कपड़े पहनती हैं तब आपके कांख के काले होने की स्थिति और भी भद्दी नजर आती है, जिसकी वजह से आपको लोगों के समक्ष कई बार शर्मिंदगी महसूस हो सकती है.
इससे परेशान होकर आप कई तरह के क्रीम या उत्पादों का प्रयोग करती होंगी और अगर आप वाकई खुशकिस्मत हैं तो आपको इसका पूरी तरह से तो नहीं पर थोड़ा तो लाभ मिलता ही होगा. लेकिन अगर आप उन लोगों में से नहीं हैं तो इन उत्पादों के साइड इफेक्ट्स आपकी त्वचा को झेलने पड़ते हैं.
अगर आप भी इस परेशानी को से जूझ रही हैं तो हम आपके लिए ऐसे घरेलू नुस्खे लेकर आए हैं, जिसे इस्तेमाल कर आप जल्द ही अपनी इस समस्या से छुटकारा पा सकेंगी.
आइये जानते हैं कुछ घरेलू नुस्खों के बारे में जो इस प्रकार है-
चीनी
त्वचा में डेड स्किन के जमाव की वजह से भी कालेपन की समस्या आ सकती है. जिसे हटाने के लिए त्वचा को एक्सफोलिएट करने की जरूरत पड़ती है. डेड स्किन के जमाव को त्वचा से हटाने के लिए चीनी एक बढ़िया घरेलू उपाय है. एक चम्मच चीनी में एक चम्मच औलिव औइल मिला लें. फिर इसे प्रभावित जगह पर लगा कर हल्के हाथों से रगड़ें. इसके नियमित प्रयोग से त्वचा का कालापन दूर होने लगता है.
दूध
दूध के प्रयोग से त्वचा में निखार और कोमलता आती है. त्वटचा पर गाय के दूध का इस्तेमाल करना ज्यादा फायदेमन्द होता है. त्वचा में सफेद रंगत पाने के लिए गाय के दूध से त्वचा पर तब तक मसाज करे जब तक यह पूरी तरह सूख न जाए, अगर आप अधिक अच्छा परिणाम चाहती हैं तो दूध में कुछ केसर मिला सकती हैं.
बेसन पैक
बेसन का प्रयोग भी त्वचा के गहरे रंग को साफ करने के लिए किया जाता है. अपने कांख के सफेद रंगत के लिए बेसन में दही या नींबू का रस मिला कर पेस्ट तैयार कर लें और 10 से 15 मिनट तक अंडरआर्म्स में लगा कर रखें. इससे काले अंडरआर्म्स जल्द ही साफ हो जाएंगे.
नींबू
हम सभी जानते हैं की नींबू ब्लीच करने के साथ स्किन को साफ करने के काम आती है. इसकी मदद से दाग- धब्बे आदि भी दूर हो जाते हैं. नींबू के रस को सीधे त्वचा में लगा कर 10 मिनट तक रखें फिर सादे पानी से त्वचा को धो लें.
संतरे का छिलका और दही
संतरे के छिलकों को सूखा कर पाउडर बना लें. इसे दही में मिलाकर पेस्ट बनाएं और त्वचा में 10 मिनट तक लगा कर रखें. इससे त्वचा के रंग में निखार आता है.
प्युमिस स्टोन
अपनी डार्क आर्मपिट को पानी से गीला करके इसमें क्लिंजिंग मिल्क लगा लीजिये इसके बाद इसे अपने हाथ से रगड़ें और फिर प्युमिस स्टोन की मदद से हल्के हल्के रगड़ते हुये त्वचा को साफ करिये. इसकी मदद से डेड स्किन आसानी से निकल जाती है और त्वचा साफ दिखाई देती है.
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बौलीवुड एक्टर राजकुमार राव अपनी एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने अपनी एक्टिंग से कई लोगों को दीवाना बनाया है. राजकुमार हमेशा ही अपने अलग किरदारों के लिए जाने जाते हैं और इसी तरह के एक किरदार के साथ वह अपनी नई फिल्म में नजर आने वाले हैं. इस फिल्म में राजकुमार आतंकवादी उमर सईद शेख की भूमिका में दिखाई देंगे और उनकी यह फिल्म पिछले काफी वक्त से सुर्खियों में है. राजकुमार राव की इस नई फिल्म का नाम ‘ओमर्टा’ है और इसका निर्देशन हंसल मेहता ने किया है.
ओमर्टा के इस नए पोस्टर में राजकुमार राव नमाज अदा करते हुए दिखाई दे रहे हैं और किसी ने उन्हें अपनी गन प्वाइंट पर रखा हुआ है. पोस्टर में लिखा गया है- कोड औफ सायलेंस. इस फिल्म की कहानी आतंकवादी अहमद ओमर सईद शेख पर आधारित है. बता दें, ओमर सईद ने साल 2002 में वौल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार डेनियल पर्ल को पाकिस्तान में किडनैप करवाया था और उसकी हत्या करवा दी थी. विदेशी पत्रकार की हत्या करने के आरोप में ओमर को मौत की सजा भी सुनाई गई लेकिन को कभी फांसी नहीं दी जा सकी. वह आज भी जिंदा है.
आपको बता दें कि राजकुमार राव की इस फिल्म के नाम ‘ओमर्टा’ की बात करें तो यह एक इटेलियन शब्द है जिसका अर्थ ‘कोड औफ साइलेंस’ होता है. कोड औफ साइलेंस का इस्तेमाल फिल्म के पोस्टर में भी किया गया है. इसका मतलब ऐसी क्रिमिनल एक्टिविटी से है जिसके तहत आतंकवादी पुलिस को किसी भी तरह का सबूत देने या पुलिस की मदद करने से मना करते हैं.
इस शब्द का इस्तेमाल माफिया और आतंकवादी लोग करते हैं. उनकी भाषा में इसे एक तरह का वादा भी कहा जा सकता है. गौरतलब है कि इस फिल्म को टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2017 में काफी अच्छा रिव्यू मिला था. इसके बाद फिल्म ने बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल और मुंबई फिल्म फेस्टिवल में भी खूब सुर्खियां बटोरी. फिल्म को देश में 20 अप्रैल को रिलीज किया जाएगा और फिल्म का ट्रेलर दो दिन बाद रिलीज होगा.
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4 जून, 2017 को आधी रात तक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर ज्यादातर लोग सो गए थे. सिर्फ वही जाग रहे थे, जिन की गाड़ियां आने वाली थीं. स्टेशन के वेटिंग रूम में सोने वाले यात्रियों में सोनी और राम सिंह चौहान भी थे. ये मध्य प्रदेश के जिला सीधी के रहने वाले थे. इन्हें पंजाब के अमृतसर जाना था.
उन की गाड़ी सुबह की थी, इसलिए पतिपत्नी वेटिंग रूम में जा कर साथ लाया बिस्तर लगा कर अपने 5 महीने के बेटे कुलदीप उर्फ हर्ष के साथ सो गए थे. सुबह 3, साढ़े 3 बजे सोनी की आंखें खुली तो उस ने बगल में सो रहे बेटे को टटोला. बेटे को अपनी जगह न पा कर वह एकदम से हकबका कर उठी और इधरउधर देखने लगी. उसे लगा कि बेटा खिसक गया होगा. लेकिन बेटा कहीं दिखाई नहीं दिया. उस ने झकझोर कर बगल में सो रहे पति को जगाया, ‘‘हर्ष कहां है?’’
आंखें मलते हुए राम सिंह ने भी इधरउधर देखा. बेटा कहीं नहीं दिखाई दिया तो उसे समझते देर नहीं लगी कि उस के बेटे को कोई उठा ले गया है. जैसे ही उस ने यह बात सोनी से कही, वह रोनेचीखने लगी. फिर तो जरा सी देर में उन के पास भीड़ लग गई. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे, जबकि सोनी का रोरो कर बुरा हाल था. राम सिंह भी सकते में था कि अब वह क्या करे, बेटे को कहां खोजे?
थोड़ी ही देर में मासूम बच्चे की चोरी की बात पूरे रेलवे स्टेशन में फैल गई, जिस से वेटिंग रूम में खासी भीड़ लग गई थी. बच्चे के मांबाप की हालत देख कर सभी दुखी थे. लोग उन पर तरस तो खा रहे थे, लेकिन कुछ करने की स्थिति में नहीं थे. बच्चा चोरी की सूचना स्टेशन पर स्थित थाना जीआरपी को मिली तो जीआरपी की टीम बच्चे की खोजबीन में लग गई. लेकिन काफी मेहनत के बाद कोई सफलता नहीं मिली.
सुबह जीआरपी थानाप्रभारी मनोज सिंह ने चोरी गए बच्चे के पिता राम सिंह से तहरीर ले कर अज्ञात के खिलाफ बच्चे की चोरी का मुकदमा दर्ज कर बच्चा चोरी की जानकारी एसपी रेलवे इलाहाबाद दीपक भट्ट को दे दी. सूचना मिलते ही दीपक भट्ट स्टेशन पर पहुंचे और इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई.
सीसीटीवी फुटेज देखी गई तो उस में काले रंग की एक महिला सोनी और राम सिंह के बेटे कुलदीप उर्फ हर्ष को चुरा कर ले जाती साफ दिखाई दी. वह औरत बच्चे को ले कर सिविल लाइंस की ओर स्टेशन से बाहर निकली और पैदल ही अंधेरे में गायब हो गई थी. इस तरह पुलिस को बच्चा चुराने वाली औरत का फोटो मिल गया था.
इस के बाद दीपक भट्ट के आदेश पर थानाप्रभारी मनोज सिंह ने सीसीटीवी फुटेज से उस औरत का फोटो निकलवा कर पोस्टर छपवाए और पूरे शहर में सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करवा दिए. पोस्टर में पुलिस वालों के फोन नंबर के साथ बच्चे के बारे में सूचना देने वाले के लिए इनाम की भी घोषणा की गई थी.
इसी के साथ बच्चे की तलाश और उसे चुराने वाली औरत की गिरफ्तारी के लिए एक टीम गठित की गई, जिस में जीआरपी थानाप्रभारी मनोज सिंह, एसएसआई कैलाशपति सिंह, एसआई अंजनी सिंह, विनोद कुमार मौर्य, सर्विलांस प्रभारी सुबोध कुमार सिंह, एसआई मनोज कुमार और उदयशंकर कुशवाह को शामिल किया गया था.
पुलिस ने शहर के दारागंज रेलवे स्टेशन पर भी बच्चा चुराने वाली उस औरत के फोटो वाला पोस्टर चस्पा कराया था. स्टेशन पर ही चायपकौड़ा की दुकान लगाने वाले रामखेलावन (बदला हुआ नाम) ने वह पोस्टर देखा तो जीआरपी द्वारा पोस्टर में दिए गए फोन नंबर पर उस ने फोन किया. थानाप्रभारी मनोज सिंह ने फोन उठाया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, आप लोगों को बच्चा चुराने वाली जिस महिला की तलाश है, वह बच्चे को ले कर मेरी दुकान पर आई थी.’’
‘‘तुम ऐसा करो, तुरंत इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी थाने आ जाओ.’’ मनोज सिंह ने कुछ पूछने के बजाय सीधे कहा, ‘‘तुम्हें थाने आने में कोई परेशानी तो नहीं होगी?’’
‘‘नहीं साहब, अगर मेरी वजह से किसी का बच्चा मिल जाता है तो मुझे बड़ी खुशी होगी.’’ रामखेलावन ने कहा.
थोड़ी देर में रामखेलावन जीआरपी थाना पहुंच गया. पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि बच्चा चुराने वाली महिला सुबह मुंह अंधेरे उस की दुकान पर आई थी. उस के पास पैसे नहीं थे. उस ने कुछ खाने को मांगा तो उस की हालत पर तरस खा कर उस ने उसे पकौड़ा भी खिलाया था और चाय भी पिलाई थी. उस समय उस की गोद में एक बच्चा था, जिसे वह साड़ी के पल्लू से ढके थी.
रामखेलावन की सहानुभूति पा कर उस ने उसे एक मोबाइल नंबर दे कर कहा था, ‘‘भइया, आप ने मुझ पर इतनी मेहरबानी की है तो एक मेहरबानी और कर दीजिए.’’
‘‘बताओ और क्या चाहिए?’’ रामखेलावन ने पूछा.
इस के बाद उस महिला ने एक पर्ची देते हुए कहा, ‘‘इस कागज पर लिखे नंबर पर फोन कर के मेरी बात करा दीजिए. यह नंबर मेरे दामाद का है. आप मेरा इतना काम और कर दीजिए, आप की बड़ी मेहरबानी होगी.’’
रामखेलावन ने पर्ची पर लिखा फोन नंबर मिला कर फोन महिला को दे दिया था. उस ने क्या बात की, यह रामखेलावन नहीं जान सका था, क्योंकि वह अपनी दुकानदारी में लग गया था. फिर उसे क्या पता था कि वह औरत बच्चा चुरा कर ले जा रही है.
‘‘उस महिला ने जो मोबाइल नंबर तुम्हें दिया था, वह नंबर तो तुम्हारे मोबाइल में होगा?’’ मनोज सिंह ने पूछा.
‘‘जी साहब, वह नंबर अभी भी मेरे मोबाइल में है?’’ रामखेलावन ने कहा.
इस के बाद रामखेलान ने वह नंबर निकाल कर थानाप्रभारी को दे दिया. उन्होंने वह नंबर डायरी में नोट किया और रामखेलावन का आभार व्यक्त कर के उसे विदा कर दिया.
थानाप्रभारी ने यह सारी जानकारी एसपी दीपक भट्ट को दी तो उन्होंने तुरंत रामखेलावन से मिले मोबाइन नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया. चूंकि वह नंबर चल रहा था, इसलिए उस नंबर की लोकेशन मिल गई. वह नंबर जिला जौनपुर के गांव सुरेरी में चल रहा था.
रामखेलावन ने मनोज सिंह को यह भी बताया था कि महिला ने कहा था कि वह ज्ञानपुर रेलवे स्टेशन पर उतर कर अपने गांव जाएगी. किस गांव जाएगी, यह उस ने नहीं बताया था. पुलिस के लिए यह एक अहम सुराग था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो पता चला कि वह सुरेरी गांव के सिपाही के नाम है.
बच्चे की खोज के लिए गठित टीम 14 जून को जौनपुर के गांव सुरेरी पहुंच गई. पुलिस ने बच्चा चुराने वाली महिला का पोस्टर गांव वालों को दिखाया तो गांव का कोई आदमी उसे पहचान नहीं सका. पुलिस ने सिपाही के बारे में पता किया तो उस गांव में सिपाही नाम के कई लोग थे. लेकिन वह सिपाही नहीं मिला, जिस से महिला ने बात की थी.
जीआरपी टीम उसे फोन कर सकती थी, लेकिन पुलिस ने उसे इसलिए फोन नहीं किया था कि कहीं सिपाही भी इस खेल में शामिल न हो, उसे शक हो गया हो वह बच्चे को ले कर भाग सकता है. लेकिन जब उस सिपाही का पता नहीं चला, जिस से उस औरत ने बात की थी तो मजबूर हो कर पुलिस ने उसे फोन किया. वह गलत आदमी नहीं था, इसलिए उस ने पुलिस से बात ही नहीं की, बल्कि पुलिस टीम से मिलने भी आ पहुंचा.
जीआरपी ने जब उसे वह पोस्टर दिखाया तो उस ने बताया कि इस औरत का नाम करुणा है और यह उस की चाचिया सास है. यह भदोही के ज्ञानपुर में रहती है. लेकिन यह ज्यादातर मुंबई में रहती है, क्योंकि यह वहां किसी फैक्ट्री में नौकरी करती है.
इस के बाद जीआरपी टीम सिपाही को साथ ले कर उस की ससुराल पहुंची, जहां करुणा बच्चे के साथ मिल गई. लेकिन जैसे ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार करना चाहा, उस ने शोर मचा कर पूरा गांव इकट्ठा कर लिया.
उस का कहना था कि यह बच्चा उस का है और उस के बेटे को किसी और का बता कर पुलिस उस से छीन रही है. उस ने धमकी दी कि इस बात की शिकायत वह पुलिस अधिकारियों से करेगी. लेकिन जब पुलिस ने अपना पुलिसिया हथकंडा दिखाया तो वह शांत हो गई. इस की एक वजह यह भी थी कि गांव वालों की कौन कहे, उस की ससुराल वालों ने भी उस का साथ नहीं दिया था.
इस की वजह यह थी कि सभी को लगता था कि यह बच्चा उस का नहीं हो सकता. क्योंकि करुणा जहां गहरे रंग की थी, वहीं बच्चा काफी सुंदर था. जिस से लोगों को संदेह हो रहा था कि करुणा यह बच्चा कहीं से चोरी कर के लाई है.
करुणा की ससुराल वालों की मदद से पुलिस ने बच्चे को कब्जे में ले कर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पुलिस टीम उसे ले कर इलाहाबाद आ गई. बच्चे को उस के मांबाप राम सिंह और सोनी को सौंप कर करुणा से पूछताछ की गई तो उस ने बच्चा चोरी का अपना अपराध स्वीकार कर के जो कहानी सुनाई, वह पूरी कहानी इस प्रकार थी—
मुंबई के उपनगर ठाणे की रहने वाली करुणा का विवाह वहीं के विजय के साथ 8 साल पहले हुआ था. विजय से उसे एक बेटा भी हुआ. लेकिन बेटा पैदा होने के बाद ऐसा न जाने क्या हुआ कि बेटे को अपने पास रख कर विजय ने उसे घर से भगा दिया. पति के घर से भगाए जाने के बाद करुणा अलग रह कर एक कपड़ा फैक्ट्री में नौकरी करने लगी, जिस से उस का गुजरबसर आराम से होने लगा.
करुणा जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर का रहने वाला पिंटू भी नौकरी करता था. एक साथ काम करने की वजह से पहले दोनों में परिचय हुआ, उस के दोनों में प्यार हो गया. दोनों में शारीरिक संबंध बन गए तो आपसी रजामंदी से उन्होंने शादी कर ली.
पिंटू से विवाह के बाद करुणा को एक बेटी पैदा हुई, जो इस समय 7 साल की है. लेकिन उस की सास को बेटा चाहिए था. करीब 3 साल पहले पिंटू मुंबई से घर आ गया तो करुणा भी उस के साथ आ गई. लेकिन पिछले साल वह गर्भवती हुई तो अपने मायके ठाणे चली गई, जहां उस ने 4 महीने पहले बेटे को जन्म दिया. दुर्भाग्य से 2 महीने बाद ही उस के बेटे की मौत हो गई.
बेटा पैदा होने की बात तो उस ने पति और सास को बता दी थी, लेकिन उस की मौत की बात उस ने छिपा ली थी. उस की सास बारबार फोन कर के पोते को ले कर गांव आने को कह रही थी. पर करुणा के पास बेटा होता तब तो वह उसे ले कर आती. वह कोई न कोई बहाना बना कर टालती रही. अंत में उस की सास ने कहा, ‘‘तुम जब भी आना, मेरे पोते को ले कर आना, वरना मेरे यहां मत आना. तुम अपने मायके में ही रहना, यहां आने की जरूरत नहीं है.’’
सास की इस धमकी से करुणा परेशान हो उठी. वह सोचने लगी कि अब क्या करे? बिना बच्चे के वह ससुराल आ नहीं सकती थी. काफी सोचविचार कर उस ने कहीं से 4 महीने का बच्चा चुराने की योजना बनाई. जिसे ले जा कर वह ससुराल में जगह पा सके.
यही सोच कर करुणा 27 मई को मुंबई से चली तो अगले दिन इलाहाबाद आ गई. स्टेशन पर इधरउधर भटकते हुए वह 4 महीने के बच्चे की तलाश में लग गई. चूंकि वह शक्लसूरत और पहनावे से भिखारिन जैसी लगती थी, इसलिए उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. क्योंकि स्टेशन पर इस तरह के लोग पड़े ही रहते हैं. फिर वह सचमुच भीख मांग कर अपना पेट भर रही थी.
आखिर 4 जून, 2017 को उस की तलाश पूरी हुई. सोनी और राम सिंह के 4 महीने के बेटे पर उस की नजर पड़ी तो वह उसे ले कर चंपत हो गई.
पूछताछ के बाद मनोज सिंह ने करुणा के खिलाफ अपराध संख्या 448/2017 पर आईपीसी की धारा 363, 365 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. सोनी बेटे को पा कर बहुत खुश थी. वह बेटे को सीने से लगा कर बारबार पुलिस वालों को दुआएं देते हुए बेटे को दुलार रही थी.
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कुलदीप सिंह को गायब हुए पूरे 2 हफ्ते गुजर चुके थे. उस का फोन भी बंद बता रहा था. उस की पत्नी कमलजीत कौर से जब कोई उस के बारे में पूछता तो वह यही कह देती कि वह नौकरी के लिए नोएडा गया है. कुलदीप नौकरी के लिए गया है तो उस का फोन क्यों बंद है? यह बात उस की बहन सुखमिंदर की समझ में नहीं आ रही थी.
उस ने भाई को हर संभावित जगह पर तलाशा, पर उस का कुछ पता नहीं चला. जब वह हर जगह कोशिश कर के थक गई तो पति देविंदर सिंह को साथ ले कर थाना दोराहा पहुंच गई. यह 22 मई, 2017 की बात है.
सुखमिंदर ने थानप्रभारी अश्वनी कुमार को बताया कि 7 मई, 2017 को उस का भाई कुलदीप यह कह कर घर से गया था कि वह अपने दोस्त हरप्रीत के साथ नौकरी के लिए नोएडा जा रहा है. हरप्रीत तो लौट आया, पर कुलदीप का कुछ पता नहीं है. हरप्रीत का कहना है कि नौकरी की बात कर के कुलदीप उसे छोड़ कर न जाने कहां चला गया था. कुलदीप का फोन भी बंद है.
पुलिस ने सुखमिंदर की शिकायत पर कुलदीप की गुमशुदगी दर्ज कर के उस की तलाश शुरू कर दी.
पंजाब के जिला लुधियाना की तहसील दोराहा के गांव बिलासपुर के रहने वाले सज्जन सिंह के 2 बच्चे थे, बेटा कुलदीप सिंह और बेटी सुखमिंदर कौर. सीधेसादे और साधारण आर्थिक स्थिति वाले सज्जन सिंह बच्चों को अधिक पढ़ा नहीं पाए. बच्चे बड़े हुए तो उन्होंने दोनों की शादियां कर दी.
बेटी सुखमिंदर की शादी जिला संगरूर के गांव बादशाहपुर मंडियाला के रहने वाले देविंदर सिंह से की थी. वह अपने पति के साथ खुश थी. इस के बाद 30 सितंबर, 2007 को बेटे कुलदीप की शादी मलहोद के लिहल गांव के रहने वाले दर्शन सिंह की बेटी कमलजीत कौर के साथ कर दी थी.
शादी के बाद कुछ सालों तक तो कुलदीप और कमलजीत कौर ठीकठाक से रहे. उन के 2 बेटे भी हुए, गुरचरण सिंह और हर्षवीर सिंह. लेकिन बाद ही में दोनों के बीच तूतूमैंमैं होने लगी. इस की वजह यह थी कि कुलदीप के पास कोई स्थाई काम नहीं था. उस के पिता के पास जो थोड़ी जमीन थी, उसे उन्होंने बच्चों के पालनपोषण और उन की शादीब्याह के समय बेच दी थी. इसीलिए कुलदीप छोटामोटा काम कर के किसी तरह घर चला रहा था.
थानाप्रभारी अश्वनी कुमार ने एएसआई जसविंदर सिंह, तेजा सिंह, हवलदार लखवीर सिंह, सुरजीत सिंह, सिपाही गुरप्रीत सिंह और नवजीत सिंह की एक टीम बनाई और लापता कुलदीप सिंह और घर से गायब हरप्रीत की तलाश में लगा दी. कुछ मुखबिरों को भी उन्होंने कमलजीत कौर के चालचलन के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया था, क्योंकि सुखमिंदर कौर ने पुलिस को यह भी बताया था कि उस की भाभी कमलजीत कौर का चालचलन ठीक नहीं है.
इसीलिए अश्वनी कुमार कुलदीप की पत्नी कमलजीत कौर के चरित्र के बारे में जानना चाहते थे. पुलिस की जांच और मुखबिरों द्वारा दी गई सूचना से कमलजीत कौर के बारे में काफी चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. इस के बाद थानाप्रभारी ने कमलजीत कौर को पूछताछ के लिए सिपाही भेज कर थाने बुलवा लिया.
सिपाही जिस समय कमलजीत कौर के घर पहुंचे थे, वह कपड़े वगैरह बांध कर कहीं भागने की तैयारी में थी. सिपाही कमलजीत कौर को जिस समय थाने ले कर पहुंचे, इत्तफाक से उस समय एसपी नवजोत सिंह माहल भी थाना दोराहा आए हुए थे. अश्वनी कुमार ने महिला हवलदार सतजीत कौर की मदद से एसपी के सामने कमलजीत कौर से पूछताछ शुरू की. सख्ती से की गई पूछताछ में कमलजीत कौर ने स्वीकार कर लिया कि हरप्रीत से उस के नाजायज संबंध हैं.
कुलदीप सिंह के बारे में पूछने पर कमलजीत कौर ने बताया कि 7 मई को रात करीब 10 बजे हरप्रीत उसे यह कह कर अपने साथ ले गया था कि वह उस की नोएडा में नौकरी लगवा देगा. उस के बाद वे दोनों कहां गए, यह उसे पता नहीं है.
‘‘तुम्हारा पति 7 मई से लापता है और तुम ने न तो उसे ढूंढने की कोशिश की और न ही पुलिस को सूचना दी. तुम झूठ बोल रही हो. सचसच बताओ कि वह कहां है?’’ अश्वनी कुमार ने पूछा.
कमलजीत कौर पर सख्ती की गई तो उस ने कुलदीप के बारे में तो कुछ नहीं बताया, पर हरप्रीत के बारे में बता दिया कि वह कहां मिलेगा. पुलिस टीम तुरंत उस के बताए पते पर पहुंची, जहां वह एक दोस्त के घर छिपा बैठा था. पुलिस उसे हिरासत में ले कर थाने आ गई. थाने में कमलजीत कौर को बैठी देख कर उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई.
इस के बाद उस ने बिना किसी हीलहुज्जत के अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने अपने एक दोस्त रोशन के साथ मिल कर कुलदीप की हत्या 7 मई की रात कर दी थी. हत्या की योजना में कमलजीत कौर भी शामिल थी. इस के बाद पुलिस ने कमलजीत कौर से भी पूछताछ की. तो उस ने सारी सच्चाई बता दी.
पुलिस ने दोनों को उसी दिन लुधियाना की सक्षम अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड में की गई पूछताछ में कुलदीप सिंह के लापता होने से ले कर उस की हत्या तक की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—
2 बच्चों की मां होने के बावजूद कमलजीत कौर की सुंदरता में कोई कमी नहीं आई थी, बल्कि शरीर भर जाने से वह और ज्यादा सुंदर लगने लगी थी. उसे देख कर बिलकुल नहीं लगता था कि वह 2 बच्चों की मां है. वह हंसमुख स्वभाव की ऐसी खूबसूरत युवती थी, जिस की सूरत और शरीर से ही कामुकता झलकती थी.
गांव में शादी के एक समारोह में कमलजीत कौर की आंखें गांव के ही नौजवान हरप्रीत सिंह से लड़ गईं. हरप्रीत कमलजीत की सहेली का भाई था. हालांकि वह हरप्रीत को पहले से जानती थी, लेकिन उस दिन उन की जो आंखें लड़ी थीं, उन में चाहत थी.
समारोह के बाद जब हरप्रीत घर पहुंचा तो कमलजीत की याद में उसे नींद नहीं आई. अगले दिन वह मिठाई देने के बहाने कमलजीत के घर जा पहुंचा. कमलजीत भी जैसे पलकें बिछाए उसी का इंतजार कर रही थी. खुले दिल से अपनी बांहें फैला कर उस ने हरप्रीत का स्वागत किया. उस समय घर पर कोई नहीं था. कुलदीप अपने काम पर गया था और दोनों बच्चे स्कूल गए थे. घर पर अकेली कमलजीत कौर ही थी.
दुनिया भर के जितने भी नाजायज काम या अपराध होते हैं, वे एकांत मिलते ही अंगड़ाइयां लेने लगते हैं. कमलजीत और हरप्रीत के साथ भी उस दिन ऐसा ही हुआ. चाहत की आग दोनों ओर से बराबर लगी थी, जो एकांत मिलते ही भड़क उठी. दोनों ही दुनियाजहान से बेखबर एकदूजे की बांहों में समा गए. जब अलग हुए तो दोनों मर्यादा लांघ चुके थे.
समय के साथ कमलजीत कौर और हरप्रीत के नाजायज संबंध गहराते गए. स्थिति यह आ गई कि दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. दूसरी ओर कुलदीप को पता नहीं था कि उस की पीठ पीछे घर में पत्नी क्या गुल खिला रही है. बाद में जब कुलदीप को इस बात की खबर लगी, तब तक पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका था.
पत्नी की बेवफाई सुन कर कुलदीप का दिल टूट गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उस के प्यार में ऐसी क्या कमी रह गई, जो दोदो बच्चे होने के बावजूद कमलजीत को यह कदम उठाना पड़ा.
हरप्रीत अच्छी तरह जानता था कि कमलजीत कौर शादीशुदा औरत है. इस के बावजूद वह उसे जीजान से चाहता था. हरप्रीत दूसरी जाति का था, इस के बावजूद कमलजीत कौर एक दिन के लिए भी उस से जुदा नहीं होना चाहती थी. एक दिन उस ने रुआंसी हो कर कहा, ‘‘हरप्रीत, इस समय मेरी स्थिति 2 नावों पर सवारी करने जैसी है. इस स्थिति से अच्छा है मैं मर जाऊं.’’
हरप्रीत उस की बात समझ गया. उस ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, जल्दी ही मैं कोई रास्ता निकालता हूं.’’
‘‘तुम हमेशा यही कहते हो. आज साफसाफ बता दो कि तुम मुझे अपनाओगे या फिर मैं कोई और रास्ता देखूं?’’
‘‘इस का मतलब तो यह हुआ कि कुलदीप को रास्ते से हटाना पड़ेगा.’’
‘‘जो करना है, जल्दी करो.’’ कमलजीत कौर ने कहा.
फिर उसी दिन कुलदीप की हत्या की योजना बन गई. 7 मई, 2017 की शाम को जब कुलदीप घर लौटा तो कमलजीत कौर ने कहा, ‘‘हरप्रीत, तुम्हें दिल्ली के पास स्थि त नोएडा में 15 हजार रुपए महीने की नौकरी दिलवा रहा है. वह कह रहा था कि 10 हजार रुपए महीने ऊपर से भी बन जाया करेंगे.’’
‘‘अरे ऊपर की गोली मारो, हमारे लिए तनख्वाह ही बहुत है.’’ पत्नी की भावनाओं से अंजान कुलदीप उस की बातों में आ गया. कुछ देर बाद ही हरप्रीत आया और कुलदीप को अपने साथ ले कर चला गया.
हरप्रीत पहले उसे अपने घर ले गया. घर से उस ने अपनी काले रंग की पल्सर मोटरसाइकिल नंबर पीबी10जी ई6790 उठाई और उस पर कुलदीप को बैठा कर अपने दोस्त रोशन के घर पहुंचा. रोशन को साथ ले कर तीनों दोराहा अड्डे पर पहुंचे, जहां उन्होंने शराब पी.
योजना के अनुसार, उन्होंने कुलदीप को अधिक शराब पिलाई. उसी बीच कुलदीप ने हरप्रीत का मोबाइल फोन ले कर अपनी बहन सुखमिंदर कौर को फोन कर के बताया कि वह हरप्रीत के साथ नौकरी के लिए नोएडा जा रहा है. यह सुन कर सुखमिंदर कौर ने उसे हरप्रीत सिंह के साथ कहीं भी जाने से मना किया. उस समय कुलदीप नशे में था, इसलिए बहन की बातों पर उस ने ध्यान नहीं दिया.
कुलदीप को नशा चढ़ गया तो रोशन और हरप्रीत ने उसे मोटरसाइकिल पर बीच में बैठाया और सरहिंद नहर के ऊपर बने फिलोटिंग रेस्टोरेंट के किनारे नहर के साथसाथ काफी दूर तक ले गए. रात होने की वजह से वहां सन्नाटा पसरा था.
एक जगह मोटरसाइकिल रोक कर दोनों उतरे और नशे में धुत कुलदीप को भी उतार कर उस के गले में साथ लाई रस्सी लपेट कर कस दी. कुछ ही देर में कुलदीप की मौत हो गई. वह गिर गया तो उन्होंने उस की लाश उठा कर सरहिंद नहर में फेंक दी. इस के बाद रोशन अपने घर चला गया तो हरप्रीत कमलजीत कौर के पास.
6 दिनों बाद 13 मई को पटियाला की थाना पसियाना पुलिस ने कुलदीप की लाश नहर से बरामद कर की थी, पर शिनाख्त न होने की वजह से लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया था. दोराहा पुलिस कुलदीप की लाश खोजते हुए थाना पसियाना पहुंची तो उस ने 13 मई को एक लाश मिलने की जानकारी दी. जब उस लाश के फोटो सुखमिंदर कौर को दिखाए गए तो उस ने उस की पुष्टि अपने भाई कुलदीप के रूप में की.
हरप्रीत और कमलजीत से पूछताछ के बाद पुलिस ने तीसरे आरोपी रोशन को भी गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने उन की निशानदेही पर पल्सर मोटरसाइकिल, हत्या में प्रयुक्त रस्सी और 2 मोबाइल फोन बरामद कर लिए थे. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत गिरफ्तार कमलजीत कौर, हरप्रीत और रोशन को 24 मई, 2017 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी जेल में थे. उन की जमानतें नहीं हो सकी थीं.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
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न्यू आगरा के रहने वाले रामप्रसाद ने मंजू की शादी कर के यही सोचा था कि वह बेटी से मुक्ति पा गए हैं. लेकिन मंजू को न पति अच्छा लगा था, न उस के घर वाले. यही वजह थी कि एक बेटी पैदा होने के बाद भी वह ससुराल में मन नहीं लगा पाई और एक दिन बेटी को ले कर बाप के घर आ गई.
बेटी ससुराल वालों से लड़ाईझगड़ा कर के हमेशा के लिए मायके आ गई है, यह बात न तो रामप्रसाद को अच्छी लगी थी और न उन की पत्नी को. उन्होंने मंजू को ऊंचनीच समझा कर ससुराल भेजना चाहा तो उस ने साफ कह दिया कि उन्हें उस की चिंता करने की जरूरत नहीं है, वह कहीं नौकरी कर के अपना और बेटी का गुजारा कर लेगी.
मंजू ने यह बात कही ही नहीं, बल्कि कोशिश कर के नौकरी कर भी ली. उसे एक कंपनी में चपरासी की नौकरी मिल गई थी. इस के बाद वह निश्चिंत हो गई, क्योंकि उसे वहां से गुजारे लायक वेतन मिल जाता था. रहने के लिए पिता का घर था ही.
मंजू अपनी नौकरी पर औटो से आतीजाती थी. इसी आनेजाने में कभी मंजू की मुलाकात औटोचालक करन शर्मा से हुई तो दोनों में जल्दी ही जानपहचान हो गई.
करन अकसर मंजू को अपने औटो से लाने ले जाने लगा तो धीरेधीरे उन की यह जानपहचान दोस्ती में बदल गई. उस के बाद दोनों में प्यार हो गया. प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन यहां परेशानी यह थी कि दोनों ही शादीशुदा नहीं, बच्चे वाले थे.
मंजू तो खैर पति को छोड़ कर आ गई थी, लेकिन करन शर्मा तो पत्नी और बच्चों के साथ रह रहा था. इस के बावजूद वह मजा लेने के चक्कर में मंजू से प्यार कर बैठा.
करीब 7 साल पहले करन की शादी भावना से हुई थी. उस के 2 बच्चे थे बेटा ललित और बेटी आयुषि. भावना अपने इस छोटे से परिवार में खुश थी. प्यार करने वाला पति था तो सुंदर से 2 बच्चे. इन्हीं सब की देखभाल में उस का समय बीत जाता था.
लेकिन अचानक मंजू ने उस के प्यार में सेंध लगा दी थी. मंजू के ही चक्कर में पड़ कर करन देर से घर आने लगा. वह भावना को घर का खर्च भी कम देने लगा. इस की वजह यह थी कि अब वह अपनी कमाई का एक हिस्सा मंजू पर खर्च करने लगा था.
कुछ दिनों तक तो भावना की समझ में ही नहीं आया कि पति में यह बदलाव कैसे आ गया? लेकिन जब उस ने देखा कि करन देर रात तक न जाने किस से फोन पर बातें करता रहता है तो उसे संदेह हुआ. उस ने पूछा भी कि इतनी रात तक वह किस से बातें करता रहता है? करन ने लापरवाही से कह दिया कि उस का एक दोस्त है, उसी से वह बातें करता है.
आखिर बहाना कब तक चलता. भावना को लगा कि पति झूठ बोल रहा है तो उसे डर लगा कि पति कहीं किसी गलत रास्ते पर तो नहीं जा रहा है. भावना का डर गलत भी नहीं था.
उधर मंजू के दबाव में करन ने उस से नोटरी के यहां शादी कर ली थी. शादी के बाद मंजू मायके में नहीं रहना चाहती थी, इसलिए करन ने थाना सिकंदरा की राधागली में किराए पर एक कमरा ले लिया और उसी में दोनों पतिपत्नी के रूप में रहने लगे. मंजू की बेटी इच्छा भी उसी के साथ रह रही थी.
मंजू को लगता था कि वह करन को अपने प्यार की डोर में इस तरह से बांध लेगी कि वह अपनी ब्याहता पत्नी को भूल जाएगा. जबकि वास्तविकता यह थी कि करन 2 नावों की सवारी कर रहा था. वह मंजू से इस तरह मिल रहा था कि भावना को पता न चले, क्योंकि वह जानता था कि अगर उसे पता चल गया तो घर में तूफान आ जाएगा.
यही वजह थी कि करन रात में मंजू के यहां जाता तो कोई न कोई बहाना बना कर जाता था. लेकिन पति के बदले हावभाव से परेशान हो कर भावना ने उस की शिकायत ससुर से कर दी. राधेश्याम ने बेटे को डांटफटकार कर तरीके से रहने को कहा. भावना ने भी धमकी दी कि अगर वह ढंग से नहीं रहा तो वह बच्चों को छोड़ कर मायके चली जाएगी.
पत्नी की इस धमकी से करन डर गया, क्योंकि अगर पत्नी घर छोड़ कर चली जाती तो वह बच्चों को कैसे संभालता? आखिर पत्नी की धमकी के आगे करन ने सरेंडर कर दिया और मंजू से मिलनाजुलना कम कर दिया. उस के इस व्यवहार से मंजू को लगा कि वह परेशानी में फंस गई है, क्योंकि करन से शादी करने के बाद वह नौकरी भी छोड़ चुकी थी. अब वह पूरी तरह से करन पर ही निर्भर थी. मकान के किराए के अलावा घर के खर्चे की भी चिंता थी.
एक दिन ऐसा भी आया, जब करन का मोबाइल फोन बंद हो गया. मंजू परेशान हो उठी. करन के बिना वह कैसे रह सकती थी? वह मायके भी नहीं जा सकती थी. करन के घर का पता भी उस के पास नहीं था. आखिर औटो वालों की मदद से उस ने करन को खोज निकाला.
मंजू करन के घर पहुंच गई. उस ने करन से साथ चलने को कहा तो भावना भड़क उठी. मंजू को भलाबुरा कहते हुए भावना ने कहा कि करन उसे छोड़ कर कैसे जा सकता है. उस ने उस से ब्याह किया है. उस से उस के 2 बच्चे हैं.
मंजू और भावना में लड़ाई होने लगी. शोर सुन कर मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए. किसी ने थाना पुलिस को फोन कर दिया. सूचना पा कर थाना सिकंदरा के थानाप्रभारी ब्रजेश पांडेय करन के घर पहुंच गए. वह करन, मंजू और भावना को थाने ले आए.
तीनों की बातें सुन कर ब्रजेश पांडेय की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? एक आदमी ने मौजमस्ती के लिए 2 औरतों और 3 बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दिया था. करन को न मंजू छोड़ रही थी और न भावना. छोड़ती भी कैसे, दोनों का भविष्य अब उसी पर टिका था. इस परेशानी को ध्यान में रख कर थानाप्रभारी ब्रजेश पांडेय ने कहा कि करन एक महीने मंजू के साथ रहेगा और एक महीने भावना के साथ. जब तक वह जिस के साथ रहेगा, उस की कमाई पर उसी का हक होगा.
मंजू को यह समझौता कतई मंजूर नहीं था, क्योंकि उस का रिश्ता तो रेत की दीवार की तरह था, जो कभी भी ढह सकती थी. लेकिन भावना इस समझौते पर राजी थी. मंजू ने इस समझौते का विरोध करते हुए कहा कि एक दिन करन उस के साथ रहेगा और एक दिन भावना के साथ.
हालांकि इस समझौते का कोई कानूनी मूल्य नहीं था, फिर भी ब्रजेश पांडेय ने एक कागज पर लिखवा कर दोनों औरतों और करन के दस्तखत करवा लिए. इस समझौते से जहां मंजू ने राहत की सांस ली, वहीं भावना को मजबूरी में सौतन के लिए अपने पति का बंटवारा करना पड़ा.
करन ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा भी होगा, इसलिए अब वह परेशान था. उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था, लेकिन उस ने जो गलती की थी, अब उस का खामियाजा तो उसे भोगना ही था.
थानाप्रभारी ने जो समझौता कराया था, करन के घर वालों ने उस का सख्ती से विरोध किया. जब इस समझौते की खबर अखबारों में छपी तो सभी हैरान थे कि एक पुलिस अधिकारी ने ऐसा समझौता कैसे करा दिया? बात उच्चाधिकारियों तक पहुंची तो कोई बवाल होता, उस के पहले ही इंसपेक्टर ब्रजेश पांडेय का तबादला कर दिया गया.
कुछ भी हो, मंजू को लग रहा है कि उस की अपनी गृहस्थी बस गई है. करन अब एक दिन उस के साथ रहता है तो अगले दिन भावना के साथ. उस दिन वह जो कमाता है, उसे देता है जिस के साथ रहता है. लेकिन करन का लगाव भावना और अपने बच्चों के प्रति अधिक था, इसलिए अब वह मंजू पर उतना ध्यान नहीं देता, जितना देना चाहिए. इस से आए दिन उस का मंजू से झगड़ा होता रहता है.
करन ने जो गलती की है, अब वह उस का खामियाजा भोग रहा है. उसे भी कहां सुख मिल रहा है. कभी वह मंजू की ओर भागता है तो कभी भावना की ओर. परेशानी की बात तो यह है कि अभी इस समझौते को हुए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, खींचतान शुरू हो गई है. आगे क्या होगा, कौन जानता है.
आखिर एक आदमी की गलती से 2 औरतों और 3 बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ गया है. उस का भी क्या होगा, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है. यह समझौता भी कितने दिनों तक चलेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.
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नीरव मोदी और मेहुल चौकसी की हीरों का व्यापार करने वाली कंपनियों का बैंकों को मोटा चूना लगा कर विदेश भाग जाना इस देश के लिए नया नहीं है. समाज और सरकार से बेईमानी करना हमारी रगरगमें भरा है और हमारा धर्म हिंदू धर्म हरदम इस बेईमानी को सही ठहराने के उपाय बताता रहता है. देशभर के उद्योगपति यदि अकसर मंदिरों, आश्रमों, मठों, बाबाओं के चरणों में दिखते हैं तो इसीलिए कि वे अपने कुकर्मों से भयभीत रहते हैं. उन्हें जताया जाता है कि हर तरह के कुकर्म का प्रायश्चित्त धर्म में है – पैसा चढ़ाओ, मुक्ति पाओ.
कांग्रेस की सरकारें हों या भाजपा की, वे इसी को भुनाती रहती हैं. ईश्वर में स्पष्ट विश्वास न करने वाली कम्युनिस्ट व समाजवादी सरकारें भी कुंभ मेले, छठपूजा व इफ्तार पार्टियां कराती रहती हैं ताकि नेताओं को अपनी बेईमानियों को पाप को धोने का मौका मिलता रहे. ईमानदारी से भी लाखों, करोड़ों, अरबों रुपए कमाए जा सकते हैं, लेकिन यह सोच इस देश में है ही नहीं.
नीरव मोदी ने सरकारी बैंकों के माध्यम से पैसा लूटा क्योंकि सरकार ही मोटा पैसा बनाने का सर्वोत्तम सहारा है. हर बड़ी कंपनी को जरा सा कुरेदेंगे तो पता चलेगा कि या तो उस ने सरकार से सस्ते में जमीन और कर्ज लिया या मोटे पैसे देने वाले ठेके लिए. आधुनिक तकनीक विकसित कर रही इनफोसिस और टाटा कंसल्टैंसी जैसी कंपनियां सरकार के लिए कंप्यूटर सिस्टम बनाने में अरबों रुपए कमा रही हैं. आप को जो हर रोज कंप्यूटर पर बैठ कर व्यापार करने, भुगतान करने या खरीदारी करने के आदेश दिए जा रहे हैं वे इसलिए ताकि हार्डवेयर व सौफ्टवेयर कंपनियों को मोटा लाभ मिल सके.
नीरव मोदी ने पंजाब नैशनल बैंक के अधिकारियों को पटा कर 11,000 करोड़ रुपए का गबन किया है पर दूसरे बैंकों का जो लाखों करोड़ रुपए मारे गए कर्जों में फंसा है वह भी उसी तर्ज पर है. इन सब कंपनियों के मालिकों की नेताओं के साथ खूब बनती थी. इन नेताओं को शुरुआती दिनों में सरकार में पैर जमाने के लिए पैसा और पहुंच इन्हीं मालिकों ने मुहैया कराई थी. ‘एक पैसा दोगे, ऊपर वाला एक लाख देगा’ पंक्ति की तर्ज पर ही नीरव मोदी ने नेताओं को सहयोग दिया होगा. जब इस कांड का पता चलने लगा था तब भी दोनों मोदी देवास, स्विट्जरलैंड में साथसाथ थे और उन की ग्रुप फोटो खूब वायरल भी हो रही है.
नीरव मोदी जैसों की पोलपट्टी खुल नहीं रही थी क्योंकि मीडिया पर भी ये मेहरबान थे. इन के जरिए मीडिया वालों को काफी विज्ञापन मिलते हैं और पार्टियों में प्रवेश भी. सरकार की शह पर नीरव मोदी जैसे शातिर देशभर में भरे हैं जो ऊपर से व्यापार करते नजर आते हैं पर असल में हेराफेरी करने में लगे रहते हैं.
बैंकों ने अपने कुछ अधिकारियों पर जिम्मेदारी डाल कर इस नीरव मोदी कांड से बचना चाहा है क्योंकि वे जानते हैं कि आखिरकार सब मुक्त हो जाएंगे. यदि कुछ दिनों जेल में रहना भी पड़ा तो कोई बात नहीं. घर वालों को अरबों रुपए तो मिल ही जाएंगे. ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ के पीछे छिपा सच है, ‘पता ही न चलने दूंगा कि खाया या नहीं.’
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