अगर आपने बैंक से कर्ज ले रखा है तो आपको थोड़ा सा सतर्क हो जाने की आवश्यकता है, क्योंकि कर्ज नहीं लौटाने वालों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी गई है. सरकार ने बैंकों से ऐसे कर्जदारों के नाम सार्वजनिक करने को कहा है जिन्होंने जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाया है. जानकारी के लिए बता दें कि सरकार ने जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वालों के खिलाफ शिकंजा कसते हुए बैंको को निर्देश दिया है कि ऐसे कर्जदाताओं यानी कि विलफुल डिफौल्टरों की तस्वीर और बाकी डिटेल अखबारों में छापी जाए.
वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों को पत्र लिखकर ऐसे चूककर्ताओं की तस्वीर प्रकाशित कराने को लेकर निदेशक मंडल की मंजूरी लेने को कहा है. सूत्रों ने वित्त मंत्रालय के परामर्श के हवाले से कहा, ‘कर्ज देने वाले संस्थान अपने निदेशक मंडल की मंजूरी से नीति तैयार करेंगे. इसमें जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वालों की तस्वीर प्रकाशित कराने को लेकर मानदंड बिल्कुल स्पष्ट होंगे.
बता दें कि दिसंबर 2017 तक विलफुल डिफौल्टर, जिनके पास क्षमता है लेकिन फिर भी लोन नहीं चुका रहे हैं, की संख्या 9063 हो गई है. वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल ने लोकसभा में प्रश्नों के लिखित जवाब में कहा कि ऐसे मामलों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की फंसी राशि 1,10,050 करोड़ रुपये है. ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई तेज करते हुए सरकार ने पिछले सप्ताह बैंकों को उन कर्जदारों का पासपोर्ट ब्योरा लेने को कहा जिनके ऊपर 50 करोड़ रुपये या उससे अधिक बकाया है. पासपोर्ट के ब्योरे से बैंकों को देश छोड़कर विदेश भागने वालों के खिलाफ समय पर कार्रवाई करने तथा संबद्ध प्राधिकरणों को इस बारे में सूचित करने में मदद मिलेगी.
इसके अलावा वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 50 करोड़ रुपये से अधिक के सभी फंसे कर्ज( एनपीए) वाले खातों की जांच करने तथा उसके अनुसार सीबीआई को रिपोर्ट करने को कहा है. साथ ही मंत्रालय ने बैंकों से 250 करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज पर नजर रखने और मूल शर्तों के उल्लंघन पर उसकी रिपोर्ट करने को कहा है. यह छह सूत्रीय सुधार उपायों का हिस्सा है.
उल्लेखनीय है कि नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या और जतिन मेहता समेत कई बड़े चूककर्ता देश छोड़कर बाहर चले गये हैं और जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करने से इनकार किया है. इससे वसूली प्रक्रिया प्रभावित हुई है.
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चाइनीज मोबाइल निर्माता कंपनी शाओमी (Xiaomi) एक और सस्ते फोन को आज लौन्च करेगी. यह कंपनी का बजट स्मार्टफोन होगा, अभी तक शाओमी की तरफ से पेश किए गए सभी बजट स्मार्टफोन को काफी पसंद किया गया है. कंपनी की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार शाओमी रेडमी 5 (Redmi 5) को 14 मार्च को लौन्च करेगी. लौन्चिंग के बाद यह एक्सक्लूसिवली ई-कौमर्स वेबसाइट अमेजन पर मिलेगा. इसके अलावा यह आप इसे Mi.com और एमआई के होम स्टोर से भी खरीद सकते हैं.
शाओमी की तरफ से रेडमी 5 (Redmi 5) को दोपहर 3 बजे लौन्च किया जाएगा. रेडमी 5 और रेडमी 5 प्लस को कंपनी चीन के बाजार में पिछले साल ही लौन्च कर चुकी है. यह स्मार्टफोन एंड्रायड 7.0 नोगट औपरेटिंग सिस्टम पर रन करता है और इसमें नैनो ड्युल सिम सपोर्ट की सुविधा है.
5.7 इंच की एचडी डिस्पले
फीचर्स की बात करें तो रेडमी 5 में 720×1440 पिक्सल रिज्यूलूशन वाली 5.7 इंच की एचडी डिस्पले होगी. डिस्पले में कंपनी ने कोरनिंग गोरिल्ला ग्लास का इस्तेमाल किया है. फोन में क्वालकम स्नैपड्रैगन 450 प्रोसेसर दिया है. फोन 2GB, 3GB और 4GB रैम के औप्शन में आएगा. इसमें इंटरनल स्टोरेज के लिए 16 GB और 32 जीबी का विकल्प है.
12 मेगापिक्सल का कैमरा
यूजर्स फोन की इंटरनल मेमोरी को माइक्रोएसडी कार्ड के माध्यम से बढ़ा सकते हैं. कैमरे की बात करें तो रेडमी 5 में एलईडी फ्लैश के साथ 12 मेगापिक्सल का रियर और सेल्फी फ्लैश के साथ 5 मेगापिक्सल का फ्रंट कैमरा होगा. फोन में फिंगर प्रिंट सेंसर के साथ 3,300 mAh की बैटरी होगी.
8,000 रुपये हो सकती है कीमत
कंपनी की तरफ से इसे 8,000 रुपये की कीमत में लौन्च करने की उम्मीद की जा रही है. इससे पहले शाओमी ने किफायती कीमत वाले Mi TV 4A को भी भारतीय बाजार में लौन्च किया था. यह टीवी 32 इंच और 43 इंच के दो विकल्प में मिलेगा. 32 इंच वाला टीवी 13,999 रुपये और 43 इंच वाला टीवी 22,999 रुपये में मिल रहा है. इन दोनों ही टीवी की सेल कंपनी की तरफ से 13 मार्च को शुरू कर दी गई है.
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अपनी खूबसूरती को बढ़ाने के लिए हाईलाइट करें अपने चेहरे के उन फीचर्स को जिन की तारीफ लोग ज्यादा करते हैं. इस के लिए फौलो करें इन सिंपल टिप्स को:
आईज हाईलाइटिंग: चेहरे के मेकअप के साथसाथ आंखों का मेकअप भी बहुत जरूरी है. अगर आप अपनी आंखों को सही तरह से हाईलाइट कर लेती हैं, तो आधा मेकअप वैसे ही पूरा हो जाता है. आईशैडो आंखों को हाईलाइट करने और उन्हें सुंदर बनाने में बड़ी भूमिका निभाती है.
आंखों को हाईलाइट करने के लिए सही ब्रश का चुनाव भी आवश्यक है. आंखों के कोनों को बारीक करने के लिए पतले तथा नुकीले ब्रश की जरूरत होती है. आंखों की क्रीज के लिए भी सौम्य तथा कठोर डोम ब्रश की आवश्यकता होती है. अगर आप पलकों के काफी पास आईशैडो लगा रही हैं, तो इस के लिए एक नर्म पैंसिल ब्रश का प्रयोग करें.
आईशैडो तो ज्यादातर महिलाएं प्रयोग करती हैं, पर इसे लगाने का तरीका हर किसी को पता नहीं होता. ब्रश स्ट्रोक्स सही होने चाहिए ताकि आईशैडो नैचुरल लगे. अगर आप गलत या उल्टे ब्रशस्ट्रोक्स लगाती हैं तो पूरा मेकअप बिगड़ सकता है. आईशैडो को इस तरह लगाएं कि आंखों की लाइनिंग तथा पलकें एक ही रेखा में रहें.
आप को इस के विभिन्न शेड्स के बारे में पता होना चाहिए. सब से पहले सब से हलका रंग प्रयोग में लाएं. उस के बाद बीच का रंग लगाएं, जोकि आप के द्वारा प्रयोग किए गए हलके रंग से 1 शेड गाढ़ा होना चाहिए. फिर एक समतल ब्रश का प्रयोग कर इन्हें पूरी आंखों पर फैलाएं. आंखों की क्रीज पर ज्यादा न जाएं.
कई महिलाओं की आईब्रोज हलकी होती हैं. ऐसे में उन्हें आईब्रोज को डार्क करना पसंद होता है. अगर आप अपनी उम्र से कम दिखना पसंद करती हैं तो आईब्रोज को हाईलाइट न करें. इस से आप को माथे का हिस्सा एकदम उभरा हुआ और बनावटी नहीं लगेगा. नैचुरल लुक में रहें.
चीक्स हाईलाइटिंग: चीक्स हाईलाइटिंग में लाइट कलर के मेकअप प्रोडक्ट्स फेस को स्लीक लुक देने में मदद करते हैं. चीकबोंस हाईलाइटिंग का बैस्ट तरीका चेहरे के उस हिस्से को हाईलाइट करना है, जो मुंह के कोने से शुरू हो कर इयर्स के ऊपर तक जाता है. परफैक्ट हाईलाइटिंग के लिए अच्छे ब्रश की मदद से शेड को मुंह के पास हलका छोड़ते हुए इयर्स के पास डार्क किया जाना चाहिए. चीकबोंस हाईलाइटिंग का बैस्ट इंपैक्ट तब आता है जब आप फिश फेस बनाते हुए गालों को अंदर कर लेते हैं.
चीक्स हाईलाइटिंग में चेहरे को लालिमा देने वाला ब्लश आप के चेहरे को तुरंत फ्रैश लुक दे सकता है, बशर्ते आप को इस के प्रयोग करने का सही प्रोसीजर पता हो. यहां आप को चूजी होना पड़ेगा, क्योंकि हर स्किन टाइप पर हर तरह का ब्लश सूट नहीं करता. ड्राई स्किन के लिए क्रीम ब्लश अच्छा होता है तो औयली स्किन के लिए पाउडर ब्लश, ब्लश के लिए राउंडेड क्लीन ब्रश का ही प्रयोग करें और हाईलाइटिंग को अपने चेहरे का नैचुरल पार्ट बनाने के लिए इसे ब्लैंड करना न भूलें.
माथे और नोज की हाईलाइटिंग: माथे की हाईलाइटिंग के लिए माथे के बीच में नोज के एज के ऊपर का हिस्सा हाईलाइट किया जाता है. एक अन्य उलटे ट्राइऐंगल की तरह दिखने वाली रचना कर के अपनी भौंहों के बीच के हिस्से को हाईलाइट करें. ऐसा करते हुए ध्यान रखें कि इसे ऊपर की ओर अपनी हेयरलाइन से मिलाएं.
फिर नोज हाईलाइटिंग के लिए माथे से अपनी नाक के मध्य भाग तक एक पतली और लंबी नीचे तक जाती हुई लाइन बनाने के लिए पतले ब्रश का प्रयोग करें. इस लाइन को बहुत मोटा न बनाएं वरना आप की नाक बहुत चौड़ी दिखेगी.
लिप्स हाईलाइटिंग: अगर होंठ फ्लैट हों तो उन्हें लिप मेकअप से हाईलाइट करना चाहिए. इस के लिए लिपस्टिक से एक टोन डार्क शेड के लाइनर से आउटलाइन बनाएं और उस में लिपस्टिक लगाएं. अब लिप को हाईलाइटर से फिनिश करें. फ्लैट होंठों के लिए आउट लाइन बनाएं पर इस बात का ध्यान रखें कि यह लिपस्टिक से पूरी तरह फिल हो जाएं वरना आप का लुक बिगड़ सकता है.
चिन हाईलाइटिंग: थोड़ा सा हाईलाइटिंग पाउडर ठोड़ी पर भी डस्ट करें. इस के लिए एक बड़े फ्लप्पी ब्रश का प्रयोग करें. यह होंठों पर बड़ा आकर्षक लगेगा और आप का चेहरा अधिक लंबा दिखाई देगा. अगर आप की ठोड़ी पहले से ही बहुत नुकली है, तो आप इस स्टैप को छोड़ सकती हैं या फिर बहुत पतली लाइन बना सकती हैं.
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घुमंतू मिजाज के लोगों के लिए किसी भी स्थान पर जाना महज शौक या छुट्टियां बिताना ही नहीं रह गया है बल्कि वे ऐसी एकांत जगहों पर जाने की तलाश में रहते हैं, जहां पर्यटकों की आवाजाही कम हो, क्योंकि ऐसी जगहों के बारे में वे खुद नईनई बातें जानने के इच्छुक रहते हैं. हम बात कर रहे हैं देशविदेश के ऐसे टूरिस्ट स्पौट्स की जो अपनी दिलचस्प कहानियों और इतिहास से हमेशा लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते रहे हैं. आप यहां जाएं या नहीं लेकिन यहां की जानकारी अवश्य रखें.
जहां दिल बोले मरहबा (इस्तांबुल तुर्की)
इस्तांबुल के रौयल हमाम और मसाज सैंटरों से आती आरोमा की भीनीभीनी खुशबू और बाजारों में तुर्की आर्ट से बनी पौटरी और मसालों की महक यहां आने वालों को रोक कर रखने के लिए काफी है. यहां सैंट सोफिया का प्रसिद्घ कैथेड्रल है, ब्लू मसजिद है जिसे अहमदिया मसजिद के नाम से भी जाना जाता है.
स्वाद के शौकीनों के लिए तुर्की व्यंजन बहुत स्वादिष्ठ हैं. पर्यटकों में कबाब (सींक कबाब की एक किस्म), डोलमा (अंगूर के पत्तों में कई गोभी पत्ते) और मांटी बहुत लोकप्रिय हैं. एक बड़ी ट्रे में रखे सभी तरह के स्नैक्स के साथ व्यंजन परोसे जाते हैं जिन में बल्बसस सूप, सिटलाच और बाक्लाव किसी के भी मुंह में पानी लाने के लिए काफी हैं.
खाने के बाद टूरिस्ट यहां तुर्की चाय और एरन कौफी का स्वाद लेना नहीं भूलते. इस्तांबुल दुनिया का एकमात्र शहर है जो 2 महाद्वीपों पर स्थित है, इस के साथ ही यह विश्व के टौप 5 टूरिस्ट प्लेस में से एक है. हनीमून कपल्स और एकला घुमंतुओं का यहां सालभर जमावड़ा लगा रहता है. यहां पर यूरोप और एशिया का मिलन होता है. यहां पुराने आर्किटैक्चर के साथ मौडर्न लीविंग स्टाइल भी है. यहां की रातें रंगीन होती हैं. बौलीवुड की 2 प्रमुख फिल्मों ‘एक था टाइगर’ और ‘मिशन इस्तांबुल’ में इस शहर की खूबसूरती को बड़े सुंदर ढंग से कैमरे में कैद किया गया है.
एक्सोचिमिल्को (मैक्सिको)
फ्लोटिंग बोट की मस्ती और हौरर आईलैंड का रहस्य
घुमक्कड़ी और कुछ थ्रिलर की चाहत रखने वालों के लिए मैक्सिको सिटी के पास एक्सोचिमिल्को बिलकुल परफैक्ट जगह है. चारों तरफ से नहरों से घिरी इस जगह को फ्लोर्टिंग गार्डन के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इन नहरों में अनगिनत फ्लैट बौटम ट्रैडिशनल बोट्स तैरती रहती हैं. इन्हें स्थानीय भाषा में ट्राजिनेरा कहा जाता है. रंगबिरंगी और आकर्षक कलाकृतियों से सजीधजी इन बोटों में टूरिस्टों को घुमाने के अलावा फ्लोटिंग शौपिंग का भी काम होता है.
यह जगह पर्यटकों खासकर यंगस्टर की पसंदीदा जगह बनती जा रही है. जिस कैनाल से हो कर यह बोट जाती हैं उस के दोनों तरफ हरियाली और गार्डन हैं, जो बोट में बैठे टूरिस्टों का दिल भी बागबाग कर देते हैं.
इस के पास ही एक छोटा सा आइलैंड है, जिसे ‘ला इसला दे ला मुनिकास’ के नाम से जाना जाता है. इस आइलैंड को डौल्स आइलैंड भी कहा जाता है, क्योंकि यहां आप को पेड़ से लटकी हजारों डरावनी डौल्स देखने को मिलेंगी. हौरर और थ्रिलर के शौकीन यंगस्टर का यह सब से फेवरेट डैस्टिनेशन है.
1990 में कैनाल की सफाई के दौरान इस आइलैंड में हजारों की संख्या में पेड़ से लटकी हुई डौल्स देखी गईं. लोग इसे तैरता हुआ आइलैंड के नाम से भी जानते हैं जिसे मैक्सिको में चिनमपा कहा जाता है. इस अजीबोगरीब आइलैंड के पीछे की कहानी और भी डरावनी है. लोगों का कहना है कि सैंटाना बार्रेरा नामक व्यक्ति इस द्वीप पर रहने आया था. उस के बाद लोग इस द्वीप पर आने लगे, जिन में एक बच्ची भी शामिल थी. एक दिन उस बच्ची की वहां पानी में डूबने से मौत हो गई. ठीक उसी जगह सैंटाना बार्रेरा को कुछ दिनों बाद एक डौल मिली, जिस को उस ने पेड़ पर टांग दिया. यह किस्सा चलता रहा. उसे ऐसी कई डौल्स मिलीं और उन सभी को सैंटाना ने पेड़ों पर लटका दिया. इस किस्से के चलते आज उस द्वीप में हजारों डौल्स हैंड्स पेड़ से लटके हैं. इस आइलैंड में रात को रुकने से लोग कतराते हैं क्योंकि हजारों लटकती ये डौल्स रात को बड़ी भयानक लगती हैं.
कला पारखियों का अड्डा (लूव्र म्यूजियम पेरिस)
प्रिशियस कलाकृतियों और क्रिएटिविटी के चाहने वालों को यहां आ कर निराश होना पड़ता है, खासकर उन नौजवानों को जो आर्ट और संस्कृति में ज्यादा दखल देते हैं. उन के लिए पेरिस का लूव्र म्यूजियम रिसर्च सैंटर है. हजारों की तादाद में कई यूनिवर्सिटीज के स्कौलर इस म्यूजियम के आसपास चक्कर लगाते दिख जाएंगे. इस म्यूजियम में कई बेशकीमती मूर्तियों व पेंटिंग्स के अलावा वर्ल्ड फेमस आर्टिस्ट लियोनार्डो द विंची की ओरिजनल पेंटिंग मोनालिसा रखी हुई है.
यह ऐतिहासिक म्यूजियम सीन नदी के किनारे स्थित है, पहले यह पेरिस के राजाओं का महल लूव्र पैलेस था जिसे बाद में म्यूजियम में बदल दिया गया. इस म्यूजियम को पर्यटकों की पहली पसंद माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अन्य म्यूजियमों की तुलना में लूव्र म्यूजियम में आने वाले पर्यटकों की संख्या सब से ज्यादा है.
नैचुरल ब्यूटी के साथ नाइट लाइफ का फन (नीदरलैंड्स)
नीरदलैंड्स एक ऐसा देश है जहां विशाल पवनचक्कियां और चारों तरफ फूलों की लंबी कतारें हैं. यहां के लोगों में साइकिल चलाने का जबरदस्त क्रेज है. इस देश का क्षेत्रफल भी काफी कम है. आप 35 से 45 किलोमीटर के दायरे में राजधानी एम्सटर्डम पूरी तरह से घूम सकते हैं. यह नीदरलैंड्स की राजधानी है और दुनिया के सब से रंगीन शहरों में शुमार है.
यहां आप खूबसूरत म्यूजियम, शानदार पब, अच्छे रेस्तरां के साथसाथ सुंदर फूलों की मार्केट का जायजा भी ले सकते हैं. यह शहर कईर् खूबसूरत नहरों से जुड़ा है. यदि आप यहां आएं तो क्रूज में सैर करना न भूलें. नहरों के दोनों तरफ ट्यूलिप के फूल खिले रहते हैं. नाइट में आप वाइन क्रूज का लुत्फ भी उठा सकते हैं. यहां सैक्स टौयज, शौप्स और सैक्स म्यूजियम से ले कर सैक्सवर्कर तक को सरकार द्वारा लाइसैंस मिला है, जिस का यह लोग सरकार को टैक्स भी देते हैं.
एशिया का सब से स्वच्छ गांव
मेघालय में एक ऐसा भी गांव है जहां 100 प्रतिशत साक्षरता के अलावा 100 प्रतिशत स्वच्छता भी है. यहां का मावल्यान्नौंग गांव ऐसा इकलौता गांव है जो एशिया का सब से साफसुथरा गांव है. यहां सभी पढे़लिखे लोग हैं. इतना ही नहीं, इस गांव में ज्यादातर लोग सिर्फ अंगरेजी में ही बात करते हैं. इस गांव को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एशिया के सब से साफ गांव का पुरस्कार भी मिल चुका है.
यहां टूरिस्ट के लिए कई अमेजिंग स्पौट्स हैं, जैसे वाटरफौल, लिविंग रूट ब्रिज (पेड़ों की जड़ों से बने पुल) और बैलेंसिंग रौक्स (पहाडि़यों के बीच ऐसे रौक जिन से आनेजाने के लिए संतुलन बना रहता है.) भी हैं. यहां आने वाले लोगों के लिए ये आकर्षण का खास केंद्र हैं. इस गांव को पर्यटकों के लिए विकसित किया जा रहा है. जहां होम स्टे और ट्रैडिशनल फूड का लुत्फ आप किसी भी घर या ताड़ के पेड़ों से बने छोटे से रैस्टोरैंट में उठा सकते हैं. सड़कों के दोनों तरफ फूलों की क्यारियां हैं और जगहजगह बांस की बनी डस्टबिन लगी हैं. आप इस खूबसूरत गांव में घूम सकते हैं पर ध्यान रहे कि इस की सुंदरता को किसी तरह का नुकसान न हो.
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बीते दिनों रामपुर में सुबह देर से उठने पर एक औरत के पति ने उसे तीन तलाक दे दिया. सुप्रीम कोर्ट में रोक लगने के बाद भी देशभर में तीन तलाक के सैकड़ों मामले सामने आए हैं.
मुरादाबाद की रहने वाली वरिशा को उस के पति ने मनमुताबिक दहेज न देने के चलते तीन तलाक देने की धमकी दी है. वरिशा ने आरोप लगाया कि उन से एक कार और 10 लाख रुपए नकद अपने मायके से लाने को कहा गया.
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त, 2017 को तीन तलाक को गैरकानूनी करार दिया था. माना जा रहा था कि तीन तलाक पर रोक लगेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका है. मुसलिम तबके में तलाक के मामलों को देखें तो 4 तलाकशुदा औरतों की तुलना में सिर्फ एक मर्द ही तलाकशुदा है.
जनगणना के आंकड़े भी यही बताते हैं कि 2001 से 2011 के बीच मुसलिम औरतों को तलाक देने में 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. जब तलाक के आंकड़ों की बात चली है तो फिर तलाकशुदा औरतों की हालत पर गौर करने के लिए 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर दूसरे नजरिए से भी नजर डालनी होगी.
2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, प्रति एक लाख मुसलिमों में 1590 तलाकशुदा मर्द हैं, जबकि हिंदू मर्दों में यह आंकड़ा 1470 प्रति लाख है. फर्क बहुत कम है.
देश में प्रति एक लाख औरतों में से महज 3100 औरतें तलाकशुदा हैं, लेकिन इन में बगैर तलाक के छोड़ी हुई औरतें भी शामिल हैं.
आंकड़े बताते हैं कि मुसलिम औरतों में प्रति एक लाख में 5630 औरतें तलाकशुदा हैं, जबकि हिंदू औरतों में यह आंकड़ा केवल 2600 ही बताया जाता है.
इस से साफ जाहिर है कि मुसलिम समाज में तलाकशुदा औरतों की आबादी तलाकशुदा मर्दों के मुकाबले साढ़े 3 गुना ज्यादा है.
आंकड़ों की जबानी देशभर में तलाकशुदा औरतों की आबादी में सब से ज्यादा 39 फीसदी 20 से 34 साल की उम्र की हैं, जबकि मुसलिम समुदाय में इस उम्र सीमा की सब से ज्यादा तलाकशुदा औरतें हैं.
तलाकशुदा औरतों में 43.9 फीसदी औरतें 20 से 34 साल की उम्र की हैं, जबकि इसी उम्र सीमा में सिख समुदाय में 42.2 फीसदी, बौद्ध समुदाय में 40 फीसदी, हिंदू समाज में 37.6 फीसदी, ईसाई समाज में 33.5 फीसदी और जैन समाज में 25.5 फीसदी औरतें हैं.
तलाकशुदा औरतों में 19 साल से कम उम्र की औरतें 3.2 फीसदी हैं. इस में भी मुसलिम औरतों की हिस्सेदारी सब से ज्यादा 3.9 फीसदी है.
हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई समुदाय में तलाक अदालत के जरीए ही हो सकता है. लिहाजा, इन समुदायों में तलाक पर इतना बवाल नहीं मचता, लेकिन मुसलिम समाज में जबानी तलाक को मंजूरी है और आसान होने के चलते इसी का चलन भी ज्यादा है.
इन आंकड़ों से साफ है कि एक बार में तीन तलाक रोकने के लिए एक सख्त कानून बनाए जाने की जरूरत पहले से महसूस की जा रही थी. एक बार में तीन बार तलाक यानी तलाक ए बिद्अत को जुर्म ऐलान करने और सजा तय करने संबंधी विधेयक गुरुवार, 28 दिसंबर, 2017 को लोकसभा में तकरीबन 6 घंटे की लंबी बहस के बाद पास हो गया. पर अब राज्यसभा में अटक गया है.
लोकसभा में पेश तीन तलाक बिल के मुताबिक, अब जबानी, लिखित या किसी इलैक्ट्रौनिक तरीके जैसे व्हाट्सऐप, ईमेल और एसएमएस से एकसाथ तीन तलाक देना गैरकानूनी व गैरजमानती भी होगा. इस कानून में एक बार में तीन तलाक कहना अपराध होगा और कुसूरवार को 3 साल की सजा होगी. इस में औरत अपने नाबालिग बच्चों की सिक्योरिटी और गुजारा भत्ते का दावा भी कर सकेगी.
यकीनी तौर पर यह बिल जकिया हसन, उत्तराखंड की सायरा बानो, फरहत नकवी, यासमीन, नगमा जैसी सैकड़ों मुसलिम औरतों की जद्दोजेहद और लंबी कोशिश की जीत है.
दरअसल, मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड अगर समय के साथ तीन तलाक को खत्म करने की कोशिश करता तो आज अदालत को दखल नहीं देना पड़ता और सरकार को बिल नहीं लाना पड़ता.
बंगलादेश, मिस्र, मोरक्को, इराक, इंडोनेशिया, मलयेशिया, सूडान, संयुक्त अरब अमीरात, जौर्डन, कतर, श्रीलंका व पाकिस्तान समेत 22 मुसलिम देशों में बहुत पहले से ही तीन तलाक को कानून बना कर रोका जा चुका है.
मिस्र ने साल 1929 में ही इस पर रोक लगा दी थी. लेकिन भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक देश में तीन तलाक का जारी रहना चिंता की बात थी. इसीलिए देश की सब से बड़ी अदालत ने कई मुसलिम औरतों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए तीन तलाक को गैरकानूनी करार दे कर लाखों मुसलिम औरतों की आबरू की हिफाजत की थी और सरकार से इस पर कानून बनाने के लिए कहा था.
तीन तलाक के खिलाफ आए बिल पर जब कानून बन जाएगा तो इस से मुसलिम औरतों की आबरू की हिफाजत होगी, उन्हें कानूनी सिक्योरिटी मिलेगी और इज्जत से जीने का हक मिलेगा. साथ ही, उन के पास तीन तलाक के खिलाफ एक कानूनी हथियार होगा.
अब यह भी दिलचस्प है कि इस कानून का असर क्या होगा? मुसलिम औरतों को अब अगर कोई तीन तलाक देता है तो उन के सामने क्या रास्ता होगा? इस से उन की जिंदगी में क्याकुछ बदलेगा. तीन तलाक विरोधी कानून लागू होने के बाद अगर कोई पति अपनी पत्नी को एक समय में तीन बार तलाक देने की बात कहता है तो पत्नी कानून की शरण में जा कर इंसाफ की लड़ाई लड़ सकेगी यानी यह कानून मुसलिम औरतों को कानूनी ताकत देगा.
तीन तलाक का बनने वाला नया कानून पीडि़त औरत को मजिस्ट्रेट के पास जाने का मौका देगा. इस से वह औरत अपने साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ सकेगी.
एकसाथ तीन तलाक देने वाले को एक साल से 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है. इस के लिए पत्नी को कोर्ट में यह साबित करना पड़ेगा कि उस के पति ने उसे एक समय में तीन तलाक दिया है.
तीन तलाक पीडि़त पत्नी और बच्चों को इज्जत की जिंदगी जीने के लिए गुजारा भत्ता मिलेगा. साथ ही, पत्नी अपने नाबालिग बच्चों की सिक्योरिटी की भी हकदार है. लेकिन इसी के साथ कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि पति जब जेल में होगा तो पत्नी और बच्चों का खर्च कौन देगा? जब तीन तलाक गैरकानूनी है तो सजा क्यों और कैसी? और किसी तीसरे की शिकायत पर केस कैसे? क्या इस से तीन तलाक रुक जाएगा? यह हिंदू सरकार की मनमानी है.
शरीअत में तलाक ए अहसन और तलाक ए हसन नाम से शादी खत्म करने के 2 और रास्ते हैं. इस के तहत एक तय समय के अंतराल के बाद तलाक कहने का प्रावधान है और सुलह की गुंजाइश रखी गई है.
तलाक की यह प्रक्रिया काजी या मौलवी की देखरेख में गवाहों के साथ होती है. इसीलिए मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड के इन दावों में कोई दम नहीं है कि इस के जरीए सरकार शरीअत में दखल देना चाहती है.
देश के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में कहा कि यह केवल तलाक बिद्अत को ले कर है.
बिल पेश होने के बाद जिस तरह से मुसलिम औरतों ने खुशी जाहिर की है और बड़ी तादाद में वे कानून मंत्री से मिलने उन के घर गईं, उस से लगता है कि तीन तलाक के खिलाफ कठोर कानून यकीनी तौर पर जरूरी है.
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उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले का उमरी खुर्द गांव. वहां के एक लड़के ने एक दिन कागज पर एक बौडी बिल्डर की तसवीर बनाई और लिखा ‘वर्ल्ड चैंपियन’. उस ने वह तसवीर अपनी मौसी की बेटी राधा को थमा दी और कहा कि एक दिन मेरे नाम के आगे ऐसा लिखा होगा. राधा उस लड़के के सपने पर मुसकराई. बात आईगई हो गई.
कौन था वह लड़का जिस के मन में बौडी बिल्डर बनने का फुतूर इस हद तक सवार था कि वह तसवीर बना कर उस ने खुद को ही चैलेंज दे दिया था? क्या वह अपने इस जुनून को पूरा कर पाया?
हां, उस लड़के यतींद्र सिंह ने न सिर्फ अपनी कही बात का मान रखा, बल्कि आज वह जिस मुकाम पर है, लोग उस के गठीले बदन को देख कर दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं.
पेश हैं, बौडी बिल्डिंग में कई नैशनल व इंटरनैशनल मैडल जीतने वाले यतींद्र सिंह से हुई बातचीत के खास अंश:
ऐसी कौन सी वजह थी कि आप बस बौडी बिल्डर ही बनना चाहते थे?
मैं सहारनपुर में एक संयुक्त परिवार में रहा हूं. 7वीं क्लास में मुझे होस्टल वाले एक स्कूल में पंजाब भेज दिया.
वहां सब बच्चों की लंबाई मुझ से ज्यादा थी और शरीर भी गठीले थे. मैं दुबलापतला था और कद में भी काफी छोटा था.
समय बीतने लगा और मैं 10वीं क्लास में पहुंच गया. तब हमारे स्कूल में जिम के लिए सामान आया था. लेकिन जो जिम बनाया गया उस में वे ही बच्चे कसरत कर सकते थे जो 11-12वीं क्लास के थे और जिन्हें स्कूल की तरफ से वेट लिफ्टिंग करने की इजाजत मिली हुई थी.
एक दिन मैं किसी को बिना बताए जिम में चला गया. मैं अभी मशीनें देख ही रहा था कि पता नहीं कहां से हमारे वार्डन वहां आ गए और उन्होंने बिना मुझ से पूछे ही डंडे से मारना शुरू कर दिया.
उस दिन के बाद मैं ने सोच लिया था कि अब इस स्कूल में नहीं रहना है और अब मैं सिर्फ ऐक्सरसाइज ही करूंगा. लेकिन मां के कहने पर मैं ने वहीं से 10वीं का इम्तिहान दिया और रिजल्ट आने के बाद वापस सहारनपुर आ गया. वहां मैं ने एक जिम जौइन किया और असद नफीस कोच से मिला. उन्होंने मेरी जिंदगी बदल दी.
कोच असद नफीस की मेहनत कैसे रंग लाई?
तब मेरी उम्र तकरीबन 16 साल थी. वे मेरे पहले प्रोफैशनल ट्रेनर थे. ट्रेनिंग के 6 महीने के अंदर ही मेरी स्कूल की कमीज टाइट होने लगी थी. यह सब इसलिए मुमकिन हुआ था क्योंकि मैं ने अपने ट्रेनर की कही हर बात मानी थी. अपने खानपान पर बहुत ध्यान दिया था. मैं ने खाने का जो समय बांध रखा था उसी समय खाता था, चाहे कुछ भी हो जाए.
क्या आप के इस रूटीन से स्कूल वालों को कोई दिक्कत नहीं हुई?
टीचरों ने प्रिंसिपल को शिकायत कर दी थी कि यह तो हर थोड़ी थोड़ी देर में खाता रहता है. पर पता नहीं क्यों, शायद मेरे जुनून को देख कर उन्होंने मुझे इजाजत दे दी थी.
उन्हीं दिनों की बात है. एक दिन मेरे ट्रेनर असद नफीस ने कहा कि हम जिम का एक कंपीटिशन करा रहे हैं, तू भी हिस्सा ले ले.
उस कंपीटिशन को देखने लोग भी कम आए थे. वहां मैं विजेता बना था. मैं ने सहारनपुर के एक नामी जिम के सब से अच्छे लड़के को हराया था. मुझे बतौर इनाम एक शील्ड मिली थी.
आपकी इस जीत पर घर वालों का कैसा रवैया रहा?
पिताजी को अच्छा लगा था. कुछ लोगों ने मेरी जीत को नजरअंदाज भी किया. किसी ने तो इतना तक कह दिया था कि ऐसी शील्ड तो बाजार में 100-100 रुपए में मिल जाती हैं. शायद वे नहीं चाहते थे कि मैं आगे बढ़ूं, क्योंकि आज अगर इस का मनोबल बढ़ा दिया तो कल यह हमारे बच्चों से आगे निकल जाएगा.
क्या इस बात का आप पर बुरा असर पड़ा था?
‘ऐसी शील्ड तो 100-100 रुपए में आती हैं’ वाली बात मेरे मन से नहीं निकल पा रही थी, इसलिए तब से ले कर आज तक मैं शील्ड ही इकट्ठा कर रहा हूं. मैं तो कहूंगा कि हमें अपने सपने को हर सांस में जीना चाहिए.
बहुत से नौजवान 3-4 महीने में अपनी बौडी बना लेना चाहते हैं. इसका क्या नुकसान है?
3-4 महीने में बौडी बनाने की सोच में नौजवानों की कोई गलती नहीं होती?है. वे तो चाहेंगे कि आज जिम जौइन किया और कुछ ही दिनों में उन के मनमुताबिक रिजल्ट भी मिलने लग जाए. इस के लिए वे बाजार में मिलने वाली ताकत बढ़ाने वाली दवाओं के बारे में अपने कोच से पूछते हैं.
यहां कोच की जिम्मेदारी बनती है कि ट्रेनिंग ले रहे नौजवानों को क्या सीख देनी है. चंद रुपए के लालच में नौजवानों को शौर्टकट रास्ता न सुझाएं.
क्या कोई शाकाहारी भी अच्छा बौडी बिल्डर बन सकता है?
जी हां, बिलकुल बन सकता है. कुछ भी हासिल करने के लिए हमारा दिमागी तौर पर मजबूत होना बहुत जरूरी है. मन से यह बात निकाल दें कि क्योंकि मैं शाकाहारी हूं तो अच्छा बौडी बिल्डर नहीं बन सकता.
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दिल्ली हाईकोर्ट ने ‘पद्मावत’ फिल्म के सतीप्रथा को महामंडित करने के आरोप में दर्ज एक याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि याचिकाकर्ता को क्या दूसरी संगीन सामाजिक विकृतियां नहीं दिखाई दे रही हैं जो उस ने इस तरह की फालतू याचिका दर्ज की है. हमारे यहां न्यायालयों में सार्वजनिक मामलों की आड़ में जम कर जनहित याचिकाएं और प्राथमिकियां देशभर में दर्ज कराई जा रही हैं. खाली बैठेठाले वकील और आनंद लेने वाले उन के क्लाइंट बड़े नामों के खिलाफ याचिकाएं या प्राथमिकियां दर्ज करा देते हैं.
आधेअधूरे तथ्यों वाली ये याचिकाएं या प्राथमिकियां चाहे कितनी ही कमजोर क्यों न हों, लेकिन फिर भी ये फिल्म निर्माता, प्रसिद्ध व्यक्ति या लेखक, प्रकाशक, संपादक के लिए परेशानी खड़ी कर देती हैं. याचिकाकर्ता या शिकायतकर्ता तो अपने शहर में मामला दर्ज करता है पर जिसे सफाई देनी होती है उसे सैकड़ों मील से आना पड़ता है. कई बार वारंट, गैरजमानती वारंट तक जारी कर दिए जाते हैं. इस के चलते क्रिएटिव व्यक्ति अपना काम छोड़ता है जबकि निठल्ला ठट्ठा मार कर हंसता है.
अफसोस यह है कि अदालतों में इस तरह के ज्यादातर मामलों में फैसला 10-15 वर्षों में आता है और इतने साल बाद यदि मामला खारिज हो तो शिकायतकर्ता का कुछ नहीं बिगड़ता. आपराधिक प्राथमिकी वाले शिकायतकर्ता शुरू में ही गायब हो जाते हैं या किसी ऐरेगैरे वकील पर छोड़ देते हैं. वहीं, दूसरे पक्ष को बारबार अदालत में सिर्फ हाजिरी के लिए खड़ा होना पड़ता है.
यह कहना तो सही है कि न्याय मिलता है पर कानून और अदालत के साथ खिलवाड़ करने वाले को क्या उसी मामले में वही न्यायालय सजा देता है? आमतौर पर न्यायालय मामला खारिज करते हुए कानून का पहिया चलाने वाले को कोई दंड नहीं देता. आजकल कभीकभार 20-25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाने लगा है पर यदि वह व्यक्ति न दे तो बहुत ही कम नियम हैं उस से पैसा वसूलने के. जिसे जुर्माने का पैसा मिलना होता है वह वसूलने के लिए और खर्च करने को तैयार नहीं होता.
कानून व अदालतों से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ सख्ती बरती जानी चाहिए ताकि व्यर्थ के मुकदमे दायर न हों. फालतू की याचिकाओं और प्राथमिकियों पर पहले ही दिन अदालत को दूसरे पक्ष के नोटिस दिए बिना फैसले सुनाने की परंपरा प्रारंभ करनी चाहिए और केवल संगीन मामले, जिन में जिम्मेदार व्यक्ति या संस्थाएं अदालत में गुहार लगाने आए हों, स्वीकार किए जाने चाहिए.
अदालतों से न्याय मिल जाता है पर कठिनाई कानून के फैसलों से नहीं, प्रक्रिया से है जिस के दौरान अब लाखों खर्च होते हैं और कई बार जेल तक जाने की नौबत आ जाती है. दरअसल, मौलिक स्वतंत्रताओं को जर्जर करने में सरकार से ज्यादा अब आम व्यक्ति जिम्मेदार साबित हो रहा है.
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भाजपा में ‘बाहरी नेता’ बनाम ‘पार्टी कार्यकर्ता’ के बीच चल रहा द्वंद सतह पर आ गया है. उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल अपने पूरे कुनबे के साथ सपा की साइकिल की सवारी को छोड़कर कमल के फूल की खुशबू लेने आ गये हैं. नरेश अग्रवाल ऐसे नेताओं में हैं, जिन्होंने दलबदल की हर परिधि को तोड़ दिया है. कांग्रेस से लेकर सपा-बसपा हर जगह वह रहे हैं. उनके बारे में एक कहावत है कि ‘जिसकी सत्ता उसके नरेश’.
नरेश अग्रवाल ने विधानसभा चुनाव के समय भी सपा का साथ न देकर भाजपा का साथ दिया था. सपा में रहते भीतरघात देने का प्रभाव यह रहा कि भाजपा ने उनको पार्टी में शामिल कर लिया. नरेश अग्रवाल सपा में परिवारवाद विवाद के बाद से ही भाजपा में अपनी जगह सुरक्षित करने में लगे थे. नरेश अग्रवाल के करीबी संबंध भाजपा और संघ के कुछ नेताओं से हैं. ऐसे में उनके लिये भाजपा में जाने की राह बनाना मुश्किल नहीं था.
भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में नरेश अग्रवाल की जरूरत को महत्व देते उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के समय उनको पार्टी में शामिल कर लिया. भाजपा हाई कमान को यह लग रहा था कि पार्टी कार्यकर्ता राज्यसभा चुनाव के महत्व को समझते हुये नरेश अग्रवाल के पार्टी में आने को स्वीकार कर लेंगे. नरेश अग्रवाल के मसले में भाजपा अपने कार्यकर्ताओं की भावनाओं का सही आकलन नहीं कर पाई.
दिल्ली में जैसे ही नरेश अग्रवाल भाजपा में शामिल हुये उत्तर प्रदेश में भाजपा का हाजमा खराब हो गया. पार्टी के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर इसका विरोध करने लगे. विरोध की वजह यह थी कि नरेश अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘तेली’ कहा था तो राम को ‘रम’ में बसा बताया था.
भाजपा में नरेश का विरोध शामिल होने वाले मंच से ही शुरू हो गया. भाजपा में शामिल होने की वजह बताते नरेश अग्रवाल ने फिल्म अभिनेत्री और सपा की राज्यसभा उम्मीदवार जया बच्चन को लेकर ओछी टिप्पणी कर दी. मंच पर ही पार्टी नेता संबित पात्रा ने इसे नरेश का व्यक्तिगत बयान बता कर पल्ला झाड़ने की कोशिश की. शाम होते होते जया बच्चन पर की गई टिप्पणी ने शोले को रूप ले लिया. पहले भाजपा की वरिष्ठ महिला नेता सुषमा स्वराज और उसके बाद केन्द्र सरकार में मंत्री स्मृति इरानी ने इसकी आलोचना कर दी.
इससे पार्टी के नीचे स्तर के कार्यकताओं का मनोबल बढ़ा और सोशल मीडिया के फोरम पर नरेश अग्रवाल का विरोध शुरू हो गया. दिल्ली से लेकर लखनऊ तक भाजपा का कोई नेता मुंह खोलने को तैयार नहीं है.
मोदी को ‘तेली’ और ‘राम’ को रम
नरेश अग्रवाल ने सपा में रहते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘तेली’ कहा था. मोदी को तेली कहते हुये नरेश अग्रवाल ने कहा था ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो तेली हैं. वह बनिया नहीं हैं. सिर्फ बनिया यानि वैश्य ही व्यापार कर सकता है.’ जातिगत व्यवस्था को देखें तो बनिया बिरादी में तेली को निम्न स्तर का माना जाता है. कहावतों में भी कहा गया है ‘कहां राजा भोज कहां गंगू तेली’. नरेश अग्रवाल ने खुद को उंची श्रेणी का बनिया बताते हुये नरेन्द्र मोदी को तेली कहा था. नरेश अग्रवाल का यही बयान अब उनके गले की फांस बन गया है. इस बयान से ही भाजपा नेताओं की बोलती बंद है और कार्यकर्ता गुस्से में हैं. नरेश अग्रवाल ने केवल नरेन्द्र मोदी को ही तेली नहीं कहा, हिन्दुत्व का झंडा उठाये भाजपा के मर्म यानि राम पर भी करारी चोट की थी.
नरेश अग्रवाल ने कहा था कि ‘कुछ लोग हिन्दू धर्म के ठेकेदार बन गये हैं. बीजेपी और वीएचपी जैसे लोग जो हमारा सार्टीफिकेट लेकर नहीं आयेगा वो हिन्दू नहीं है. इनकी ‘व्हिस्की में बिष्णु बसे, रम में बसे श्रीराम, जिन में माता जानकी और ठर्रे में हनुमान, सियापति रामचन्द्र की जय’. बात केवल धर्म की आलोचना तक ही सीमित नहीं रही. नरेश अग्रवाल ने पाकिस्तान और भारत के सैनिकों पर भी ऐसा बयान दिया था जो आज उनके गले में फंस गया है.
संसद के सदन में कुलभूषण जाधव पर बोलते नरेश अग्रवाल ने कहा था कि ‘आज पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को आंतकवादी अपने देश में बोला है. उस हिसाब से जाधव के साथ व्यवहार करेगा. हमारे देश में भी आतंकवादियों के साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहिये’. भारतीय सैनिकों पर टिप्पणी करते नरेश अग्रवाल ने कहा कि ‘अगर आतंकवादी ऐसा हाल कर रहे हैं तो पाकिस्तान की फौज आयेगी तो क्या हालत होगी?’
नरेश अग्रवाल अपने इन बयानों को सच नहीं मानते. उनका कहना है कि उनकी बातों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया. उनके विरोधियों ने साजिश के तहत यह बातें फैलाई. नरेश अग्रवाल के यह पुराने बयान हैं. जिन पर भाजपा के हर नेता और कार्यकर्ता ने नरेश अग्रवाल को खूब कोसा था. अब वहीं नरेश अग्रवाल पार्टी में हैं तो भाजपा के लोग उनको हजम नहीं कर पा रहे.
जया बच्चन पर नये बयान और केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी के बयान के बाद पुराने बयान भी मुंह फाड कर खड़े नजर आ रहे हैं. भाजपा अपने लोगों को यह समझाने में लगी है कि उत्तर प्रदेश में राज्यसभा सीटों में दूसरे दलों के विधायकों से टिकट दिलाने में नरेश की महत्वपूर्ण भूमिका है. कार्यकर्ता पार्टी के इस तर्क से सहमत नहीं है.
दलबदल की धुरी हैं नरेश अग्रवाल
नरेश अग्रवाल ने अपना राजनैतिक कैरियर 1980 में कांग्रेस से शुरू किया था. वह 7 बार विधायक रहे. 1997 में जब मायावती-कल्याण सिंह विवाद हुआ और भाजपा को सदन में बहुमत चाहिये था, तब नरेश अग्रवाल ने लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाकर दलबदल कर कल्याण सिंह को बहुमत दिलाने में मदद की. कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह के मंत्रिमडल में वह मंत्री रहे. उनकी कार्यशैली से नाराज राजनाथ सिंह ने 2001 में नरेश अग्रवाल को बर्खास्त किया था.
2003 में जब मायावती को हटाकर मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो नरेश अग्रवाल सरकार में मंत्री बने. 2004 से 2007 तक वह परिवहन मंत्री रहे. 2008 में वह सपा का साथ छोड़ कर बसपा के साथ हो गये. बसपा में पार्टी के महासचिव बन गये. तब नरेश ने पहली बार 2009 के लोकसभा चुनाव में मायावती को प्रधानमंत्री घोषित कर दिया था. 2012 के विधानसभा चुनाव के पहले नरेश अग्रवाल सपा में वापस शामिल हो गये और अपने बेटे नितिन अग्रवाल को विधायक बनाने में सफल रहे. नितिन बाद में अखिलेश मंत्रिमडल में मंत्री भी बने. बसपा और सपा से नरेश अग्रवाल राज्यसभा सदस्य बने थे.
हरदोई जिले की राजनीति में नरेश अग्रवाल और अशोक वाजपेई के बीच सहज रिश्ते नहीं है. सपा में दोनों के बीच गहरी खाई थी. नरेश अग्रवाल का प्रभाव अधिक था, जिसकी वजह से अशोक वाजपेई सपा को छोड़ कर भाजपा में शामिल हुये थे. अब नरेश के भी भाजपा में शामिल होने से अशोक वाजपेई फिर से खुद को असहज अनुभव करेंगे. नरेश अग्रवाल का पूरा परिवार राजनीति में है. जिसका प्रभाव हरदोई जिले में राजनीति करने वाले दूसरे नेताओं पर भी पड़ेगा. नरेश अग्रवाल को लेकर केवल भाजपा कार्यकर्ता ही असहज नहीं है, संघ और दूसरे संगठन भी कुछ बोलने की हालत में नहीं है.
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फिल्मों के साथ-साथ आजकल टीवी इंडस्ट्री भी काफी सक्रीय हो गई है. टीवी के कलाकार अपने फैंस के बीच काफी पौपुलर हो रहे हैं. बात करते हैं दर्शकों के फेमस टीवी सीरियल ‘तू आशिकी’ की. इस सीरियल में दिखाई जा रही पंक्ति और अहान की लवस्टोरी दर्शकों को बेहद पसंद आ रही हैं. थोड़े से समय में इस युवा जोड़ी ने अच्छी-खासी पौपुलैरीटी हासिल कर ली है. शो में पंक्ति के किरदार में जन्नत जुबैर रहमानी और अहान के किरदार में रित्विक अरोड़ा नजर आ रहे हैं.
शो में इनदिनों दिखाया जा रहा है कि अहान, पंक्ति के सिंगर बनने के सपने को पूरा करने के लिए उसका पूरा साथ दे रहा है. ऐसे में दोनों के बीच कुछ रोमांटिक सीन भी फिल्माये जाने थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अहान और पंक्ति के बीच एक किसिंग सीन की प्लानिंग भी हुई थी. 16 साल की टीवी एक्ट्रेस जन्नत जुबैर रहमानी को उनके सीरियल ‘तू आशिकी’ के को-स्टार ऋत्विक अरोड़ा को किस करने को कहा गया, लेकिन जन्नत की मां ने शो में फिल्माये जानेवाले किसिंग सीन से ऐतराज जताया वो इस बात के लिए बिल्कुल भी राजी नहीं हुई.
मेकर्स चाहते थे कि सीरियल में पंक्ति (जन्नत जुबैर रहमानी) और अहान (ऋत्विक अरोड़ा) के बीच किसिंग सीन फिल्माया जाए, लेकिन जन्नत की मम्मी को यह पसंद नहीं आया और उन्होंने प्रोड्यूसर्स से बात करके इस सीन को हटाने की मांग की. बात न मानने पर जन्नत की मां और प्रोड्यूसर्स के बीच काफी बहसबाजी हुई और सिरियल के सेट पर जमकर हंगामा भी हुआ.
बता दें कि जन्नत सिर्फ अभी 16 साल की हैं. इसीलिए शायद उनकी मां नहीं चाहतीं कि वो इतनी कम उम्र में ऐसे सीन करें, क्योंकि इस तरह के सीन्स से जन्नत पर गलत असर पड़ेगा और लोगों के दिमाग में भी उसकी एक गलत इमेज बनेगी. खबरें तो यह भी है कि जन्नत की मां ने शो साइन करते वक्त नो किसिंग क्लौज भी डलवाया था. गौरतलब है कि जन्न्त ने सीरीयल ‘फुलवा’ में फुलवा के बचपन का किरदार निभाया था. इसके अलावा वे सावधान इंडिया, भारत का वीर पुत्र- महाराणा प्रताप जैसे सीरियल्स में नजर आ चुकी हैं.
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भारतीय रेलवे ने अपनी एक महत्वपूर्ण सेवा को बंद कर दिया है. रेलवे की इस सेवा को बंद करने का सीधा असर यात्रियों पर पड़ेगा. नए फैसले के तहत रेलवे ने आई टिकट (i ticket) की बिक्री को बंद कर दिया है. रेलवे की इस सुविधा के तहत यात्री पेपर टिकट को औनलाइन ले सकते थे. एक खबर के अनुसार IRCTC ने अपनी वेबसाइट के माध्यम से i-Ticket बुकिंग को हटाने का फैसला लिया है. नया नियम 1 मार्च से लागू हो गया है.
दिए गए पते पर डिलीवर करते थे टिकट
इस सुविधा को आईआरसीटीसी ने साल 2002 में शुरू किया था. इसके अंतर्गत IRCTC की वेबसाइट से रेलवे काउंटर की तरह पेपर टिकट जेनरेट किया जा सकता था. टिकट की बुकिंग होने के बाद रेलवे की तरफ से इस टिकट को यात्री के दिए गए पते पर डिलीवर कर दिया जाता था. इसके लिए रेलवे की तरफ से स्लीपर/ सेकंड क्लास के लिए 80 रुपये और एसी के लिए 120 रुपये प्रति टिकट लिए जाते थे.
दो से तीन दिन पहले करनी होती थी बुकिंग
चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलुरू, मैसूर, मदुरै, कोंयबटूर में आई टिकट को यात्रा की तिथि से दो दिन पहले भी बुक किया जा सकता था. अन्य शहरों में इसे तीन दिन पहले बुक करना होता था. एक रेलवे अधिकारी ने बताया कि साल 2011 में मोबाइल में आए मैसेज को रेलवे टिकट के तौर पर मान्य करने के बाद आई-टिकट को मंगाने वालों की संख्या में कमी आई है. इसके तहत मोबाइल में टिकट बुकिंग का मैसेज और फोटो आईडी दिखाने पर आप ट्रेन में यात्रा कर सकते हैं.
रेलवे का इको फ्रेंडली स्टेप
रेलवे अधिकारी ने बताया कि आई टिकट की सुविधा ऐसे यात्रियों के लिए शुरू की गई थी जो ई-टिकट का प्रिंट आउट नहीं ले पाते थे या ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. आईआरसीटीसी की तरफ से आई-टिकट की सुविधा को बंद करने के कदम को इको फ्रेंडली स्टेप बताया जा रहा है. कागज के प्रयोग को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है.
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