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वोट और नोट में उलझी दिल्ली

रिहायशी इलाकों में दुकानें चलाने का चलन कोई नया नहीं है. सदियों से कामगारों व दुकानदारों के घर, दुकानें अथवा कारखाने एक ही जगह होते थे. जब तक अरबनाइजेशन तेज न थी, यह पद्धति सुविधाजनक भी थी और सुरक्षात्मक भी. धीरेधीरे व्यापार व उद्योगधंधे बढ़ने से कारखाने, मार्केटें अलग बनने लगीं और घरों को अलग करा जाने लगा ताकि औरतें और बच्चे बाजारों और मजदूरों से अलग रहें. प्राकृतिक संरक्षण से वंचित शहरियों को यह सुरक्षित लगा कि रिहायशी इलाकों में दूसरों का दखल न हो.

हाल के सालों में शहरी जमीन की बढ़ती किल्लत और कीमत के कारण दुकानदारी रिहायशी इलाकों में घुसपैठ करने लगी है. हमारी नौकरशाही को उस में चांदी ही चांदी नजर आई. उस ने दुकानों को कहीं भी खोलने की मूक इजाजत देनी शुरू कर दी ताकि हर महीने कुछ अतिरिक्त कमाई अफसर व इंस्पैक्टर कर सकें. दिल्ली शहर तो लगभग पूरा नष्ट ही हो गया है. कुछ इलाकों को छोड़ कर यहां विशुद्ध रिहायशी कालोनियां न के बराबर रह गई हैं. 20-25 साल पुरानी कालोनियों में ढेरों दफ्तर और दुकानें नजर आ जाएंगी.

यह औरतों और बच्चों के हकों पर हमला है. कुछ लोग पैसा कमाने के लिए अपना घर दुकान में बदल दें या दुकानदार को बेच दें तो यह उन के संपत्ति के हक का दुरुपयोग है. यह पड़ोसियों के सुख व शांति के साथ जीने के हक को छीनता है. सुप्रीम कोर्ट पिछले कई सालों से दुकानदारों की इस भयंकर बमबारी से शहरियों को बचाने की कोशिश कर रहा है पर दुकानदार एकजुट हो जाते हैं और अफसरों व नेताओं को खरीद कर वे मनमाने फैसले करा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में एक कमेटी बना रखी है, जो दिल्ली जैसे विशाल शहर में लाखों दुकानों पर छापेमारी कर सीलिंग कर रही है पर हर तरह का हड़कंप मचाने के बावजूद अब तक मुश्किल से 3000 दुकानदफ्तर बंद कर पाई है.

यह ठीक है कि दिल्ली के मकानों के कानून बहुत जटिल हैं पर वे जटिल इसलिए हैं कि सरकारशाही चाहती है कि लोगों को कानून तोड़ने को मजबूर होना पड़े ताकि वह ऊपरी कमाई कर सके. नगर निगमों व डीडीए के हर अफसर को करोड़ों मिलते हैं या तो अवैध दुकानों को अनुमति देने पर या आंख मूंद लेने पर. वे कानूनों को लचीला बनाने को ही तैयार नहीं.

दिल्ली की सब से महंगी खान मार्केट में बनी पहली व दूसरी मंजिल केवल रिहायशी थी. सही था यह फैसला. आज शायद ही वहां कोई परिवार रहता हो. आसपास के मकानों के लिए राशनपानी मुहैया कराने के लिए बनी खान मार्केट का स्वरूप ही बदल गया है, बिना अनुमति के. यह अन्याय है उन पर जिन्होंने ‘खान मार्केट में नीचे दुकान होगी और ऊपर घर’ सोच कर दुकान ली थी.

कानून सब को बराबर देखे. आजकल कानून इसलिए बनता और बदलता है, क्योंकि जनता का एक वर्ग दूसरे वर्ग की कीमत पर कोई सहूलत चाहता है. सुप्रीम कोर्ट अभी तक तो दिल्ली की रिहायशी कालोनियों को केवल रहने लायक रखने में लगा है पर कब वह भी हथियार डाल दे पता नहीं.

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युवाओं को लुभाता पुराने गीतों का नया वर्जन

साल की शुरुआत में ही डीजे शेजवुड ने सदाबहार गाने ‘परदे में रहने दो’ का रीमिक्स वर्जन पार्टी लवर यूथ के लिए लौंच कर दिया है और इसे जम कर डाउनलोड भी किया गया. इस के अलावा हनी सिंह भी हंसराज हंस के गानों को रीमिक्स कर अपना कमबैक कर चुके हैं.

आमतौर पर नई पीढ़ी पुराने गीतों को पसंद नहीं करती. उन गीतों का स्लो म्यूजिक उन्हें पसंद नहीं आता. पर जब वही गीत नए अंदाज में, नए धमाकेदार म्यूजिक के साथ, नई आवाज में सुनते हैं तो युवकयुवतियां इन गीतों के साथसाथ गुनगुनाते नजर आते हैं. वैसे देखा जाए तो पुराने गीतों का कोई मुकाबला नहीं. वे गीत हमेशा से सदाबहार हैं और रहेंगे. पुराने गीतों के सुर व बोल ही अलग थे.

उन गीतों में भावों का समावेश होता था. ऐसा लगता है जैसे गीतकार ने अपनी सारी भावनाएं उस गीत के शब्दों को माला के मोती की तरह पिरो दिया है. उन गीतों में जो शब्द इस्तेमाल हुए हैं, ऐसा लगता है जैसे हर एक शब्द संगीत से भरपूर है. यह बात और है कि उस वक्त का म्यूजिक इतनी अच्छी क्वालिटी का नहीं था. कभीकभी तो वह म्यूजिक कर्कश लगने लगता है.

वर्तमान में भारत में म्यूजिक में नएनए प्रयोग हो रहे हैं जिस से हमारा म्यूजिक दिनोंदिन निखरता जा रहा है. सब से पहले आरडी बर्मन ने शुरुआत की थी. उन्होंने अपने पिता एसडी बर्मन की छाया से बाहर निकल कर सलिल चौधरी, नौशाद, कल्याणजीआनंदजी और शंकरजयकिशन जैसे पुराने संगीतकारों के संगीत को नया सुरताल दिया. वहीं गुलजार ने शब्दों को अपने एक अलग ही स्वरूप में ढाल कर गीतों की पुरानी परंपरा को बदला.

भूले हुए गीत फिर होंठों पर

कई पुराने गीत ऐसे हैं जिन्हें भुला दिया गया है, जैसे ‘तीसरी कसम’ फिल्म का गीत ‘चलत मुसाफिर मोह लिया रे…’ की तर्ज पर जब नए फ्यूजन में ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ का गीत बनाया गया तो नई पीढ़ी को बहुत पसंद आया. इस के अलावा ‘‘तम्मातम्मा…’ के नए सुरसंगीत की लयताल के साथ सभी एक बार फिर झूम उठे.

फिल्म ‘रईस’ में सनी लियोनी पर फिल्माया गया गाना ‘लैला मैं लैला…’ ने जीनत अमान की कातिल अदाओं की याद दिला दी.

श्रद्धा कपूर और आदित्य राय कपूर पर फिल्माया गया ‘बांबे’ फिल्म का गाना ‘हम्माहम्मा…’ भी हिट लिस्ट में आ गया.

इसी तरह ‘ऐसे न मुझे तुम देखो…’, ‘पलपल दिल के पास…’ जैसे गीत, जो अपने जमाने के हिट गीतों में से हैं, नए संगीत का नया जामा पहन कर फिर हिट हो गए. ‘फोर्स 2’ में सोनाक्षी सिन्हा और जौन अब्राहम पर ‘मिस्टर इंडिया’ का गाना ‘काटे नहीं कटते…’ का रीमिक्स बना. ‘त्रिदेव’ फिल्म का गीत ‘ओएओए…’ भी हिट रीमिक्स की लिस्ट में रहा.

इस में हर्ज ही क्या है

गीतकार पंछी जालौनवी कहते हैं कि अगर पुराने अच्छे गानों से युवा पीढ़ी को रूबरू कराया जा रहा है तो इस में बुरा क्या है? इसे लोकप्रिय पुराने गानों में नई संजीवनी भरने की कवायद के तौर पर देखना ज्यादा बेहतर होगा. अगर रीमिक्स के रूप में नई पीढ़ी को पुराने गीतों का नया वर्जन पसंद आ रहा है, तो रीमिक्स बनाने में हर्ज ही क्या है?

‘दीवार’ फिल्म का गीत ‘कह दूं तुम्हें या चुप रहूं…’ जैसे गीत को यदि नया रूप दे कर इमरान हाशमी और ईशा गुप्ता पर फिल्माया न गया होता तो शायद ही कभी नई पीढ़ी यह गाना सुन पाती, क्योंकि आज की पीढ़ी नया और नया चाहती है, चाहे पुराने को नया बनाया गया हो.

नुसरत फतेह अली खान का गाया गीत ‘मेरे रश्के कमर…’ आज नए वर्जन में कुछ ज्यादा ही सुरीला लगता है. जो लोग नुसरत अली और उन के गाए गीतों को भूल चुके थे, उन के दिल में भी एक बार फिर नुसरत की शानदार आवाज में गाए हुए गीतों का जादू जाग उठा.

क्लासिक गीतों से रूबरू होते युवा

यश चोपड़ा की 1973 में रिलीज हुई फिल्म ‘दाग’ का गीत ‘नी मैं यार मनाना नी…’ पर एक म्यूजिक वीडियो बनाया गया है जिस में वाणी कपूर थिरकती नजर आती हैं. इस गाने का रीमिक्स वर्जन यशिता शर्मा की आवाज में है. वैसे लताजी अपने गीतों के साथ छेड़छाड़ पसंद नहीं करतीं और उन्होंने हमेशा से रीमिक्स का विरोध ही किया है पर यही गीत पुराने म्यूजिक के साथ यदि युवाओं को सुनाया जाए तो शायद उन्हें पसंद नहीं आएगा.

पुराने क्लासिक गीतों का नया वर्जन बनाने से युवा पीढ़ी कम से कम क्लासिक गीतो से रूबरू तो हो रही है. पुराने कालजयी गीत जब नए अंदाज में, नई आवाज में, नए संगीत के साथ पेश किए जाते हैं तो ये गीत बरबस ही युवाओं को लुभाते हैं. और तो और पुरानी पीढ़ी को भी अपने जमाने के गीत फिर से याद आ जाते हैं और इन गीतों को सुन कर उन की भी पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं. क्लासिक में नए रैप और नए संगीत का फ्यूजन युवाओं को बहुत पसंद आ रहा है.

कैसे आजकल की यूथ पार्टी का एंथम सौंग ‘सात समंदर पार…’ बना हुआ है. इस दौड़ में कब कौन सा गीत लाबिस्टर बन जाए, यह युवाओं को भी पता नहीं होता. इसलिए पुराने गीतों की रीमिक्स वर्जन का दौर चल निकला है. ये ट्रैंड सस्ता होने के साथ शौर्टकट पौपुलरिटी का टूल भी बन चुका है, जहां प्रचार के लिए जोर और पैसा नहीं लगाना पड़ता.

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व्हाट्सऐप की राह पर चलेगा फेसबुक मैसेंजर ऐप?

हाल ही में आए डाटा लीक की खबरों ने फेसबुक को चिंता में डाल दिया है. इस तरह की तमाम खबरे आने के बाद से ही कंपनी इस मुसीबत से बाहर निकलने का रास्ता तलाश रही है और हर रोज नए-नए फैसले ले रही है. अभी हाल ही में फेसबुक की पौलिसी को लेकर भी कई बड़े बदलाव किए गए हैं. वहीं अब एक रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि व्हाट्सऐप की तरह ही जल्द ही फेसबुक मैसेंजर पर भेजे गए मैसेज को भी वापस लिया जा सकेगा.

रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक मैसेंजर ऐप में व्हाट्सऐप की तरह ही अनसेंड (unsend) फीचर देने की तैयारी में है. इस फीचर के आ जाने के बाद मैसेंजर के यूजर्स भी अपने द्वारा भेजे गए मैसेज को वापस ले सकेंगे. ये फीचर मैसेंजर के यूजर्स को काफी राहत दे सकते हैं. वैसे भी कंपनी को मैसेज वापस लेने वाली तकनीक का अनुभव तो है ही, क्योंकि कुछ दिन पहले ही फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सऐप में इस फीचर को दिया गया है.

बता दें कि अभी हाल ही में कंपनी ने स्वीकारा है कि मार्क जुकरबर्ग द्वारा भेजे गए पुराने फेसबुक मैसेज को मैसेंजर से चुपके से डिलीट किया जा रहा है. फेसबुक द्वारा उठाए गये इस कदम से उम्मीद की जा रही है कि मार्क जुकरबर्ग के मैसेज का डिलीट होना इस नए फीटर के टेस्टिंग का ही एक हिस्सा है. हालांकि फेसबुक ने इस मामले पर अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है.

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अब औनलाइन होंगी पोस्ट औफिस सेवाएं, 34 करोड़ खाता धारकों को मिलेगा फायदा

पोस्ट औफिस के खाताधारकों को जल्द ही डिजिटल बैंकिंग सेवा मिलेगी. देश के करीब 34 करोड़ बचत खाता धारकों को यह फायदा मई से सारी सेवाएं औनलाइन उपलब्ध हो जाएगी. दरअसल, सरकार ने इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (IPPB) से इन खातों को लिंक करने की मंजूरी दे दी है. जिसके बाद से बचत खाताधारकों को डिजिटल बैंकिंग मिलने का रास्‍ता साफ हो गया है.

क्या और किसे होगा फायदा

पोस्ट औफिस में डिजिटल बैंकिंग सेवा शुरू होने से यहां के खाताधारक अपने अकाउंट से किसी भी बैंक खाते में पैसे ट्रांसफर कर सकेंगे. इससे पोस्‍ट औफिस के 34 करोड़ बचत खाता धारकों को फायदा होगा. आपको बता दें, पोस्ट औफिस में कुल 34 करोड़ बचत खाताधारक हैं. इनमें से 17 करोड़ पोस्ट औफिस सेविंग्स बैंक अकाउंट्स हैं. बाकी बचत खातों में मंथली इनकम स्कीम और रेकरिंग डिपौजिट शामिल हैं.

पूरी तरह वैकल्पिक सर्विस : पोस्‍ट औफिस के बचत खाताधारकों को डिजिटल बैंकिंग सर्विस उनकी मर्जी के अनुसार ही मिलेगी. यानी सर्विस पूरी तरह वैकल्पिक होगी. यदि खाताधारक यह सर्विस लेना चाहता है तो उसे अकाउंट को आईपीपीबी अकाउंट से लिंक किया जाएगा.

देश में बनेगा सबसे बड़ा बैंकिंग नेटवर्क: सरकार के इस कदम से पोस्ट औफिस देश का सबसे बड़ा बैंकिंग नेटवर्क बनकर उभरेगा. इंडिया पोस्‍ट की योजना के तहत सभी 1.55 लाख पोस्‍ट औफिस शाखाओं को आईपीपीबी से लिंक करना है. इंडिया पोस्‍ट कोर बैंकिंग सर्विस शुरू कर चुका है, लेकिन इसके तहत मनी ट्रांसफर की सुविधा पोस्‍ट औफिस सेविंग्‍स बैंक (पीओएसबी) अकाउंट्स के बीच ही मिलती है.

NEFT, RTGs की मिलेगी सुविधा: आधिकारिक सूत्र ने बताया, ‘IPPB को रिजर्व बैंक औफ इंडिया संभालता है. वहीं, पोस्ट औफिस की बैंकिंग सर्विसेज वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आती हैं. IPPB कस्टमर्स NEFT, RTGS और अन्य मनी ट्रांसफर सर्विसेज इस्तेमाल कर पाएंगे जो अन्य बैंकिंग कस्टमर्स करते हैं. एक बार पोस्ट औफिस सेविंग्स अकाउंट्स IPPB से लिंक हो गए, तब सभी कस्टमर्स दूसरे बैंकों की तरह ही कैश ट्रांसफर की सभी सर्विसेज इस्तेमाल कर पाएंगे.’

650 आईपीपीबी ब्रांचेज मई में शुरू होंगे: इंडिया पोस्‍ट का प्‍लान सभी 650 आईपीपीबी ब्रांचेज को शुरू करना है. सभी 650 ब्रांचेज जिलों के छोटे पोस्‍ट औफिसेस कनेक्‍ट होंगे. आईपीपीबी ब्रांच और सभी एक्‍सेस प्‍वाइंट पोस्‍ट नेटवर्क से लिंक होंगे. करीब 1.55 लाख पोस्‍ट औफिसेस हैं. इनमें से 1.3 लाख ब्रांच ग्रामीण क्षेत्रों में हैं. इस तरह, 1.55 लाख ब्रांच के साथ इंडिया पोस्‍ट भारत का सबसे बड़ा बैंकिंग नेटवर्क बन जाएगा.

ऐप से भी पेमेंट का मिलेगा विकल्प: सूत्रों ने बताया कि दूसरे फेज में सितंबर से पोस्‍ट औफिस में खाताधारकों को अपने आईपीपीबी अकाउंट से सुकन्‍या समृद्धि, रेकरिंग डिपौजिट, स्‍पीड पोस्‍ट जैसे प्रोडक्‍टस के लिए पेमेंट का औप्‍शन मिलेगा. इसके अलावा, आईपीपीबी जल्‍द ही मर्चेंट्स का रजिस्‍ट्रेशन शुरू करेगा, जो कि उसके कमस्‍टर्स का पेमेंट ऐप के जरिए कर सकेंगे. आईपीपीबी जल्‍द ही अपना ऐप बेस्‍ड पेमेंट सिस्‍टम लाएगा. इसके जरिए ग्रॉसरी, टिकट आदि का पेमेंट हो सकेगा.

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राधिका मदन ने 60 लड़कियों को पछाड़ इस फिल्म में बनाई जगह

जहां तमाम न्यूकमर्स को अच्छे निर्माता-निर्देशकों के साथ काम करने का मौका पाने के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है वहीं राधिका मदन ने यह मौका काफी जल्दी पा लिया है. राधिका जल्द ही राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘छुरियां’ में लीड रोल प्ले करती नजर आएंगी.

राधिका एक नौन फिल्मी बैकग्राउंड से हैं और सिनेमा जगत में उनका कोई गौडफादर नहीं है. वह भले ही एक युवा कलाकार हैं लेकिन उनके काम में वह बात है कि वह इस दिग्गज फिल्म निर्माता-निर्देशक को इंप्रेस कर पाने में कामयाब रही हैं.

Ek shor hai mujhme jo khamosh bohat hai. @sashajairam’s photography.

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बता दें कि विशाल जिस फिल्म के लिए शूट करने जा रहे हैं यह असल में 2 बहनों की दिलचस्प कहानी है. इसके लिए उन्हें एक नए चेहरे की तलाश थी और इसके लिए विशाल ने हजारों चेहरों में से फाइनल की गई कुल 60 लड़कियों का औडीशन लिया था. राधिका इन सब में से अलग और बेहतर कर पाने में कामयाब रहीं जिसके बाद विशाल ने उन्हें फाइनल करने का फैसला किया. एक इंटरव्यू में बातचीत के दौरान विशाल ने राधिका के काम के बारे में कहा- वह शानदार हैं. इस महीने के आखिर तक फिल्म पर काम शुरू कर दिया जाएगा.

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जहां तक बात है राधिका की तो उन्होंने तो फिल्म की शूटिंग के लिए तैयारियां शुरू भी कर दी हैं. विशाल भारद्वाज के बारे में बता दें कि वह हाल ही में पाकिस्तान के बारे में किए गए अपने एक कथन के चलते काफी चर्चा में रहे थे. पाकिस्तान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2018 में भारतीय कलाकारों के साथ शिरकत करने पहुंचे विशाल ने कराची में कहा- मैं पाकिस्तान से प्यार करता हूं. जब भी मैं यहां आता हूं, मुझे वापस आने की एक और नई वजह मिल जाती है. विशाल करीब 5 साल बाद वापस पाकिस्तान गए थे. उन्होंने कहा- मुझे यहां हर बार सब कुछ पहले जैसा ही लगता है.

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हर फिल्म ने मेरे अंदर के कलाकार को विकसित किया : राज कुमार राव

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता राज कुमार राव ने महज गुड़गांव से बौलीवुड तक की लंबी यात्रा नहीं तय की है, बल्कि उन्होंने अपने करियर में भी काफी संघर्ष कर स्टारडम हासिल किया है. मगर इस स्टारडम से उनके अंदर कोई बदलाव नहीं आया. वह आज भी उसी पुराने अंदाज में मिलते हैं. 2017 उनके करियर के दृष्टिकोण से उनके लिए सर्वश्रेष्ठ वर्ष रहा. गत वर्ष ही उनके अभिनय से सजी फिल्म ‘न्यूटन’ को भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप में आस्कर में भेजा गया था. गत वर्ष प्रदर्शित उनकी हर फिल्म ने सफलता के नए आयाम बनाए थे. उन्हें उम्मीद है कि 2018 में भी ऐसा ही होगा. फिलहाल वह हंसल मेहता निर्देशित फिल्म ‘‘ओमेर्टा’’ को लेकर अति उत्साहित हैं.

अब आपको बौलीवुड ने स्वीकार कर लिया है. मगर क्या आपको गुड़गांव से मुंबई पहुंचने का संघर्ष याद आता है?

बौलीवुड ने मुझे अंततः अपना बना लिया है और अब मुंबई ही मेरा घर है. मुझे नहीं लगता कि जो आजादी, जो स्वतंत्रता मुझे मुंबई में मिल रही है, वह मुझे कहीं और मिल पाएगी. मगर मुझे आज भी याद है कि मैं पहली बार 16 साल की उम्र में मुंबई टीवी के एक नृत्य प्रधान शो के लिए आडीशन देने के लिए दो दिन के लिए आया था. मैं शाहरूख खान की फिल्में देखकर प्रभावित था. इसलिए मन्नत के सामने भी कुछ देर खड़ा रहा था, पर यह बात मैंने आज तक शाहरूख खान को नहीं बतायी. पर शाहरूख खान को पता है कि मैं उनसे कितना प्यार करता हूं, एक इंसान के तौर पर मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक हूं. मैं उनकी यात्रा के साथ खुद को जोड़ पाता हूं, क्योंकि वह भी दिल्ली से आए थे और अपनी मेहनत के बल पर सुपर स्टार बने हैं.

मुंबई पहुंचने के बाद आपके दिमाग में क्या ख्याल आया था?

मुझे मुंबई अति खर्चीला शहर महसूस हुआ था. मुंबई में मैं एक छोटे से मकान का जो मैं किराया दे रहा था, उतने में तो मैं गुड़गांव में बंगला ले लेता. मुंबई में ट्रैफिक भी बहुत है. भीड़भाड़ बहुत है. इसके बावजूद मैंने तय कर लिया था कि मुंबई नहीं छोड़ूंगा. अब यहीं संघर्ष करना है.

बौलीवुड में संघर्ष के दौरान आपके करियर का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट क्या रहा?

मेरे अभिनय करियर की शुरुआत एकता कपूर की निर्मित फिल्म ‘‘लव सेक्स और धोखा’ से हुई थी. फिर मैंने उन्ही के साथ एक फिल्म ‘‘रागिनी एमएमएस’ भी की थी. मैंने ‘शैतान’, ‘गैंग आफ वासेपुर 2’, ‘तलाश’ और ‘द आनर लाइज विदिन’ में छोटे छोटे किरदार निभाए और तब मुझे अहसास हुआ कि मुझे छोटे किरदार निभाने से बचना होगा. वैसे भी एक कलाकार अति भूखा होता है. फिल्म ‘गैंग आफ वासेपुर 2’ के ही वक्त मेरी मुलाकात निर्देशक हंसल मेहता से हुई. उन्होंने मुझे फिल्म ‘‘शाहिद’’ में शीर्ष भूमिका निभाने का अवसर प्रदान किया. यह मेरे करियर का टर्निंग प्वाइंट रहा. उसके बाद हम दोनों की साथ यात्रा शुरू हुई, जो कि अभी भी जारी है.‘शाहिद’ में मैने पहली बार बड़ा किरदार निभाया. अब मैंने हंसल मेहता के निर्देशन में चौथी फिल्म ‘‘ओमेर्टा’’ की है.

आपके करियर की पहली फिल्म ‘‘लव सेक्स और धोखा’’ का कंटेंट लोगों को शाक देने वाला है. इस फिल्म को देखकर आपके परिवार के लोगों की क्या प्रतिक्रिया थी?

मेरे परिवार के करीब 20 सदस्यों ने मेरी मौजूदगी में ही फिल्म ‘लव सेक्स और धोखा’ देखा था. मैंने उन लोगों को पहले से ही फिल्म के दृष्य को लेकर सचेत कर दिया था. मुझे नहीं पता कि यह सही था या गलत, पर सेंसर बोर्ड ने उस सीन को ब्लर कर दिया था. पर मुझे इतना जरूर पता है कि मेरे परिवार वालों को थोड़ा आकवर्ड जरूर लगा होगा. पर मुझे नही लगता कि इस बारे में उन लोगों ने आपस में एक दूसरे से भी कोई बात की होगी. वह लोग तो अपने बेटे की खुशी को लेकर उत्साहित थे.

जब आपने अपने करियर की पहली फिल्म ‘‘लव सेक्स धोखा’’ की थी, क्या उस वक्त यह अहसास था कि आप एक कलाकार के तौर पर अपनी अलग पहचान बना सकेंगे?

सच कहूं, तो जब मुझे फिल्म ‘लव सेक्स धोखा’ मिली थी, उस वक्त मैंने कुछ नहीं सोचा था. उस वक्त मेरे दिमाग में एक ही चीज थी कि फिल्म मिली है, कर लो. पहली बात तो पहली फिल्म का मिलना अपने आप में एक सुखद अहसास होता है. पर कलाकार के तौर पर मैं हमेशा विविधता पूर्ण काम करना चाहता था. मुझे खुशी है कि ‘लव सेक्स धोखा’ के बाद मुझे ‘सिटी लाइट्स’, ‘शाहिद’, ‘अलीगढ़’, ‘शादी में जरुर आना’, ‘न्यूटन’ और ‘ओमेर्टा’ जैसी अलग अलग तरह की फिल्में मिली, जिन्होंने मेरे अंदर के कलाकार को विकसित किया. मेरी कोशिश हमेशा यही रही है कि अच्छे लोगों के साथ अच्छा काम करना है.

फिल्म ‘‘ओमेर्टा’’ को लेकर क्या कहेंगे?

यह फिल्म अहमद उमर सईद शेख की कहानी है, जो कि पाकिस्तानी मूल का है, मगर उसकी परवरिश और शिक्षा दीक्षा लंदन में हुई है. एक अच्छे मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का है. लेकिन 1994 में कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जो उसका ब्रेन वाश कर देती है. सीरिया व बोसनिया वगैरह में उन दिनों जो कुछ हो रहा था और जो बदलाव हुए, उससे उमर ने एक गलत राह पकड़ ली. उसके बाद कंधार हाईजैक, डैनियल पर्ल की हत्या सहित कई आतंकवादी गतिविधियों से किस तरह से उसका जुड़ाव रहा, उसकी यही कहानी है.

अब तक सिर्फ भारत ही नहीं पूरे विश्व में किसी ने भी सिर्फ एक आतंकवादी को लेकर कोई फिल्म नहीं बनायी. जबकि आतंकवाद को लेकर सैकड़ों फिल्में बनायी गयीं. पर किसी ने भी एक आतंकवादी की जिंदगी को परदे पर लाने की कोशिश नहीं की.

आखिर एक सभ्य परिवार का शिक्षित लड़का गलत राह क्यों पकड़ता है?

सही शिक्षा, सही मार्गदर्शन के अभाव के चलते यह सब हो रहा है. शायद आप सही लोगों के साथ उठते बैठते नहीं हैं, इसलिए आप गलत राह पकड़ लेते हैं. जो गलत राह पर चल रहे हैं, वह तो ऐसे लड़कों कि तलाश में रहते हैं, जिनका वह आसानी से ब्रेन वाश कर सकें. इसलिए जरूरी है कि आपकी शिक्षा सही हो, आपका मागदर्शन व दिशा सही हो. मैंने एक फिल्म ‘शाहिद’ की थी. जिसमें शाहिद आजमी नामक युवक की कहानी थी. वह भी पढ़ा लिखा था, पर वह भी विक्टिम/पीड़ित बना. जब उसे सही गलत का अहसास हुआ, तो वह वापस सही राह पर आ गया था. पर सही राह पर चलने की वजह से 32 वर्ष की अल्प आयु में ही उसकी हत्या कर दी गयी थी. पर यदि सही शिक्षा,  सही मार्गदर्शन मिल जाए, तो युवक गलत राह छोड़ कर सही राह पर आ जाते हैं.

क्या यह फिल्म शाहिद का विस्तार है?

‘शाहिद’ का विस्तार तो नहीं है. पर हमराही जरूर है. एक ही जगह से दोनों लोग निकले, पर कैसे दोनों ने अलग अलग राह चुनी.

किसी जिंदा इंसान, जिसे तमाम लोग जानते हों, उस किरदार को निभाते समय कितना दबाव होता है?

कोई दबाव नहीं होता. क्योंकि हम अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी से फिल्म बनाते हैं. देखिए, अहमद उमर सईदशेख या उसको करीब से जानने वाले किसी भी इंसान से हम नहीं मिले. लेकिन उमर के बारे में समाचार पत्रों, किताबों में जो कुछ छपा है, डाक्यूमेंट्री फिल्मों और वीडियो में जो कुछ मौजूद है, उस आधार पर अपने इस चरित्र को गढ़ा है. अब देखना यह है कि फिल्म देखकर दर्शक क्या कहते हैं?

हंसल मेहता के साथ आपकी अच्छी ट्यूनिंग हो गयी है?

हमारे बीच अच्छी म्यूच्युअल अंडरस्टैडिंग भी है. म्यूच्युअल प्रशंसा भी है. निजी मसला है. पारिवार का संबंध है. हम दोनों एक दूसरे के परिवार का हिस्सा बन चुके हैं. फिल्में भी साथ में बनाते हैं. हंसल मेहता के संग मेरा रिश्ता सिर्फ फिल्म वाला नहीं, बल्कि बहुत निजी हो गया है.

दूसरे निर्देशकों से हंसल मेहता कितने अलग हैं?

देखिए, हर निर्देशक का वीजन और काम करने का तरीका अलग होता है. हंसल मेहता के काम करने का अलग तरीका है, उनका अपना एक अलग प्रोसेस है. मेरे व हंसल मेहता के बीच विश्वास का प्रगाढ़ रिश्ता है. वह मुझे सेट पर बहुत छूट देते हैं. मैं उनके साथ काम करते हुए काफी इंज्वाय करता हूं.

आपने एक नम्रता गुजराल के निर्देशन में एक फिल्म ‘‘ 5 वेडिंग्स’’ की है, जो कि कान फिल्म फेस्टिवल में जा रही है. इससे आप खुश होंगे?

जी हां! खुश तो हूं, पर अपनी व्यस्तता के चलते मैं खुद कान नहीं जा पाउंगा.

नम्रता गुजराल के साथ काम करने के क्या अनुभव रहे?

नम्रता गुजराल मूलतः भारतीय हैं, पर कई वर्षो से वह अमरीका में रह रही हैं. बहुत अच्छी महिला हैं. जिंदगी को लेकर उनकी एक सकारात्मक सोच है. उनके साथ काम करके मजा आया. वह फनलविंग हैं. मेरे करियर में यह पहली बार हुआ, जब मुझे किसी अंग्रेजी भाषा की फिल्म में काम करने का मौका मिला.

आप एक रोमांचक फिल्म ‘‘स्त्री’’ कर रहे हैं. इस फिल्म को लेकर कुछ कहना चाहेंगें?

बहुत ही अलग फिल्म है. बहुत फन है. हम इसे भोपाल के पास चंदेरी में फिल्मा रहे हैं. अभी कल ही वहां से शूटिंग करके वापस आया हूं. दो दिन बाद वापस जाना है. इस फिल्म की शूटिंग करने में बहुत मजा आ रहा है. इस अलग तरह की फिल्म में आपको मेरा एक अलग अवतार नजर आएगा. श्रृद्धा कपूर कमाल की एक्ट्रेस हैं, जो इस फिल्म में मेरे साथ हैं.

आप ‘‘मेंटल है क्या’’ भी कर रहे हैं?

जी हां! ‘क्वीन’ के साथ कंगना रानौट के साथ मेरी यह दूसरी फिल्म है. बहुत मजेदार फिल्म है.

सोशल मीडिया को लेकर क्या सोच है. क्या लिखते हैं?

सोशल मीडिया एक पावरफुल माध्यम है. मैं बहुत ज्यादा कुछ लिखता नही हूं. कभी कभार मन में कोई विचार आता है, तो लिख देता हूं.

पर क्या सोशल मीडिया से दर्शक मिलते हैं?

ऐसा सोचना ही नही चाहिए. बाक्स आफिस के दर्शक सोशल मीडिया से नहीं आते. उसके लिए हमें उन तक अपनी फिल्म की बात पहुंचानी पड़ती है. जब माउथ पब्लिसिटी होती है, तभी फायदा होता है.

शादी कब कर रहे हैं?

अभी बहुत वक्त है. फिलहाल करियर को संवारने में व्यस्त हूं. समय ही नहीं है.

सिनेमा को लेकर आपकी सोच क्या है?

सिनेमा अच्छे बदलाव से गुजर रहा है. मेरी खुश किस्मती है कि मैं बदलाव के इस दौर में सिनेमा से जुड़ा हूं. उम्मीद करता हूं कि बदलाव और अच्छे के लिए होगा.

स्टूडियो सिस्टम को लेकर क्या सोचते हैं?

जब मैं फिल्मों से जुड़ा, तो स्टूडियो सिस्टम था. तो उससे पहले किस तरह से काम होता था, मुझे पता नहीं, इसलिए मैं कुछ कह नहीं सकता.

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मौडलिंग छोड़ मनिका बत्रा ने देश को दिलाया स्वर्ण पदक

21वें कौमनवेल्थ गेम्स में भारत का डंका जमकर बोल रहा है. वेटलिफ्टिंग के बाद अब टेबल टेनिस में भी वतन को गोल्ड मेडल मिला है. रविवार का दिन भारत के लिए बेहद खास रहा. महिला टेबल टेनिस टीम ने सिंगापुर को हराकर गोल्ड मेडल पर कब्जा किया. इस तरह भारत के नाम अब तक कुछ आठ गोल्ड मेडल हो गए हैं.

टेबिल टेनिस टीम की इस शानदार जीत में दिल्ली की 22 वर्षीय मनिका बत्रा का रोल सबसे अहम रहा. जिन्होंने पहले मुकाबले में लीड लेने के बाद चौथे और निर्णायक मुकाबले में विरोधी को परास्त कर भारत का मान बढ़ाया.

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आज देशभर में मनिका बत्रा की चर्चा है. लेकिन ये मुकाम हासिल करने के लिए उन्हें बहुत कुछ दांव पर लगाना पड़ा है. यहां तक कि उन्होंने अपने गेम पर फोकस करने के लिए कौलेज, मौडलिंग और कौलेज की मस्तियां सब कुछ छोड़ दिया.

अपने दिए एक इंटरव्यू में मनिका बत्रा ने बताया था कि कैसे उन्होंने टेबिल टेनिस पर पूरा ध्यान केंद्रित करने के लिए कौलेज क्लास तक छोड़ीं.

सिर्फ एग्जाम के लिए जाती थीं कौलेज

मनिका बत्रा ने बताया था कि वह एक महीने में सिर्फ एक बार ही कौलेज जा पाती हैं. इतना ही नहीं, वह सिर्फ एग्जाम के लिए ही कौलेज जा पाती थीं. हालांकि, बाद में जब उन्हें लगा कि ये सही नहीं है तो उन्होंने रेगुलर कौलेज छोड़ दिया और ओपन से पढ़ाई शुरू कर दी.

सिर्फ कौलेज ही नहीं उन्होंने बताया कि कौलेज के फेस्ट और यहां तक कि फ्रैशर्स पार्टी में भी वो कभी अपने गेम के चलते शामिल नहीं हो पाईं.

मौडलिंग का शौक भी छोड़ा

मनिका को स्कूल टाइम से ही मौडलिंग का शौक था. दिल्ली के नारायणा इलाके की रहने वाली मनिका की हाइट 5 फीट 9 इंच है और स्कूल के बाद उन्होंने कौलेज टाइम में भी मौडलिंग की. लेकिन जब उन्हें लगा कि मौडलिंग के चलते टेबिल टेनिस पर पूरा फोकस नहीं हो पा रहा है, तो उन्होंने सबकुछ छोड़कर अपने गेम को चुना और आज उन्होंने दुनिया में देश का मान बढ़ाते हुए गोल्ड मेडल जीतने में अहम भूमिका निभाई.

ये रहा मैच का स्कोर

फाइनल के पहले सिंग्लस मुकाबले में देश की स्टार खिलाड़ी मनिका बत्रा ने तियानवेई फेंग को 11-8, 8-11, 7-11, 11-9, 11-7 से मात देकर भारत को 1-0 से आगे कर दिया. दूसरे एकल मुकाबले में भारत की मधुरिका पाटकर को मेंगयू यू ने 13-11, 11-2, 11-6 से मात देकर मुकाबला 1-1 से बराबरी पर ला दिया.

इसके बाद तीसरा मैच डबल्स मुकाबलों में मौमा दास और मधुरिका की जोड़ी ने यिहान झू और मेंगयू की जोड़ी को 11-7, 11-6, 8-11, 11-7 से मात दे एक बार फिर भारत को बढ़त दिला दी. चौथे और अंतिम एकल मुकाबले में  मनिका ने यिहान झू को 11-7, 11-4, 11-7 से मात दे भारत की झोली में स्वर्ण पदक डाला.

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इलेक्ट्रिक एसयूवी कार लौन्च करने की तैयारी में है महिंद्रा

औटो एक्सपो 2018 में महिंद्रा ने KUV100 और XUV500 के इलेक्ट्रिक वर्जन को पेश किया था. इसके बाद यूपी इनवेस्टर्स समिट में भी कंपनी के मालिक आनंद महिंद्रा ने इलेक्ट्रिक कारों पर फोकस करने के लिए इनवेस्टेमेंट की बात कही थी. कंपनी इन दोनों गाड़ियों को अगले साल लौन्च करने वाली है. हालांकि KUV100 को इसी साल के आखिर में भी लौन्च किया जा सकता है. महिंद्रा की पहले से ही भारतीय बाजार में इलेक्ट्रिक कार मौजूद है. कंपनी e2O Plus और E-Verito के साथ eSupro की भारत में सेल कर रही है. अब कंपनी बड़ी कार भी इसमें शामिल करने की प्लानिंग कर रही है.

कंपनी इसके लिए 500 करोड़ रुपए पहले ही खर्च कर चुकी है. इसके साथ ही कंपनी अब केवल नए मौडल्स ही नहीं चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को भी डिवेलप करने की प्लानिंग कर रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ईको-फ्रेंडली KUV में 72 वोल्ट LFP (लिथियम आयरन फोस्फेट) बैटरी पैक लगाई जाएगी, जो 40.2hp की पावर जनरेट करेगा. यह 5 सीटर एसयूवी एक बार फुल चार्ज होने पर 120 किलोमीटर चलेगी. वहीं KUV 100 की टौप स्पीड 100 किलोमीटर प्रति घंटा होगी.

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टाटा मोटर्स जल्द अपनी नैनो का इलेक्ट्रिक वर्जन लौन्च करने वाली है. मार्च 2018 में टाटा नैनो की एक भी यूनिट एक्सपोर्ट नहीं हुई है. अब माना जा रहा है कंपनी इसका मौजूदा वेरिएंट बंद करके इलेक्ट्रिक वर्जन लौन्च करने जा रही है. कंपनी की यह नई कार नियो नाम से आएगी. साल 2010 में टाटा मोटर्स ने अपनी पहली नैनो इलेक्ट्रिक कौन्सेप्ट कार को जेनेवा मोटर शो में दिखाया था. सूत्रों ने दावा किया कि पहला 400 नियो अग्रणी टैक्सी एग्रीगेटर कंपनियों के लिए होगी और उन्हें जल्द ही यह सौंपा जाएगा.

48 वोल्ट वाली नियो की असेंबलिंग व मार्केटिंग जेयम औटो करेगी और यह एक बार चार्ज होने पर एसी के साथ 150 किलोमीटर का सफर तय कर सकेगी. इस साल मार्च में टाटा और जेयम औटोमोटिव ने विशेष प्रदर्शन वाले वाहन विकसित करने के लिए 50:50 फीसद हिस्सेदारी वाला संयुक्त उद्यम जेटी स्पेशल व्हीकल्स प्राइवेट लिमिटेड गठित किया है. जेयम ने इस बात की पुष्टि की है कि वह इलेक्ट्रिक कार नियो की पेशकश के साथ काफी आगे है.

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भारतीय रिसर्चर ने किया कारनामा, अब बिना आवाज निकाले कर सकेंगे बात

अक्सर आपके सामने जब कोई कुछ बुदबुदाता है तो आपको उसकी बात को समझने के लिए बहुत कोशिश करनी होती है, लेकिन अब ऐसी डिवाइस बनाई गई है, जिससे आप किसी के बुदबुदाने की भाषा के साथ ही सामने वाले के मन की बात भी आसानी से समझ सकेंगे.

जी हां, भारतीय मूल के रिसर्चर अरनव कपूर ने एक ऐसी डिवाइस बनाई है, जिसकी मदद से आप दूसरे के दिमाग में क्या चल रहा है यह जान सकेंगे. इससे आप सिनेमाघर में बैठकर फिल्म देखने के दौरान बिना किसी को डिस्टर्ब किए एक-दूसरे से बातचीत भी कर सकेंगे. अरनव कपूर मैसाचुएट्स इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी के भारतीय मूल के रिसर्चर हैं.

डिवाइस को नाम दिया अल्टरइगो हैंडसेट

इस डिवाइस को ‘अल्टरइगो हैंडसेट’ नाम दिया गया है. आपको बता दें कि यह एक माइंडरीडिंग डिवाइस नहीं है. एमआईटी मीडिया लैब ने बताया कि ‘यह डिवाइस आपके दिमाग को नहीं पढ़ सकती है. इस सिस्टम का दिमाग की एक्टिविटी से किसी तरह का सीधा या शारीरिक कनेक्शन नहीं है इसलिए यह यूजर के विचारों को नहीं पढ़ सकती.’ इसलिए प्राइवेसी को लेकर चिंतित रहने वाले लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है.

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सबवोक्लाइजेशन के आधार पर काम

अल्टरइगो सबवोक्लाइजेशन (बुदबुदाना या बिल्कुल धीमे बोलना) के आधार पर काम करती है. यह एक अदृश्य मूवमेंट होता है जब आप कोई शब्द बोलना चाहते हैं और यह आपके जबड़ों में होता है. यह सिस्टम इलेक्ट्रिक्ल इंप्लस को पढ़ता है और जब आप कोई शब्द या वाक्य बोलेते हैं तो चेहरे के निचले हिस्से और गर्दन में संवेग उत्पन्न होता है. यह डिवाइस कान के पास से लेकर हैंडसेट की तरह पहनते हैं, जो आपकी त्वचा से चिपका हुआ होता है.

इस छोटे से डिवाइस से उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं

सबवोक्लाइजिंग को स्पीच में बदलने का आइडिया नया नहीं है, लेकिन कपूर की टीम का सबसे बड़ा चैलेंज चेहरे की उस जगह को पहचानना था, जहां से वाइब्रेशन का पता चल सके. शुरुआत में उन्होंने 16 सेंसर के साथ काम किया, लेकिन अब वो सिर्फ 4 सेंसर पर निर्भर हैं. इस छोटे से डिवाइस से उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि यूजर्स हर समय इसे पहने रहना चाहते हैं.

सेनाओं में इस्तेमाल

एक बार जब डिवाइस इन सिग्नल को पकड़ लेती है तो कंप्यूटर को ट्रेंड किया जाता है कि वो उसे वापस शब्द में बदलें,  लेकिन अल्टरइगो शब्दों को श्रोता तक सीधे हवा के माध्यम से नहीं पहुंचाता है. कुछ और भी अणु चारों ओर वाइब्रेट करते हैं और यह वाइब्रेशन श्रोताओं के डायरेक्ट जबड़ों के कौन्टैक्ट की मदद से सुनाई देता है. सेनाओं में इसका इस्तेमाल काफी पहले से होता आ रहा है और अब कई कंपनी भी इसे लाइफस्टाइल गैजेट की तरह इस्तेमाल करती हैं.

अजीबोगरीब स्थिति से बच सकेंगे आप

इस टेक्नोलौजी का फायदा यह है कि शोरगुल वाली फैक्ट्री या एयरक्राफ्ट कैरियर का डेक जहां आवाज हो रही है वहां भी इसकी मदद से बिना किसी परेशानी के बात की जा सकती है. इस डिवाइस में यह क्षमता भी है कि आपको अजीबोगरीब स्थिति से बचा सकता है. जैसे कई बार लोग ओके, गूगल या एलेक्सा सार्वजनिक जगहों पर नहीं कहना चाहते हैं. हालांकि अल्टरइगो की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि डिवाइस कितनी शुद्धता के साथ शब्दों को ट्रांसलेट कर पाता है. मौजूदा समय में कपूर की टीम 92% शुद्धता का दावा करती है जो गूगल के वौयस ट्रांसक्रिप्शन से कम है, लेकिन कपूर का कहना है कि जब यह डिवाइस अधिक से अधिक वाइब्रेशन और शब्दों के संपर्क में आएगी तब सिस्टम और भी बेहतर होगा.

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रिश्ते में गरमाहट लाना चाहती हैं, तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें

अंजलि की पीठ पर किसी ने धौल जमाई. उस ने मुड़ कर देखा तो हैरान रह गई. उस की कालेज की फ्रैंड साक्षी थी. आज साक्षी अंजलि से बहुत दिनों बाद मिल रही थी.

अंजलि ने उलाहना दिया, ‘‘भई, तुम तो बड़ी शैतान निकली. शादी के 6 साल हो गए. घर से बमुश्किल 5 किलोमीटर दूर रहती हो. न कभी बुलाया और न खुद मिलने आई. मियां के प्यार में ऐसी रमी कि हम सहेलियों को भूल ही गई.

अंजलि की बात सुनते ही साक्षी उदास हो गई. बोली, ‘‘काहे का मियां का प्यार यार. मेरा पति केशव शुरूशुरू में तो हर समय मेरे आगेपीछे घूमता था, लेकिन अब तो लगता है कि उस का मेरे से मन भर गया है. बस अपने ही काम में व्यस्त रहता है. सुबह 10 बजे घर से निकलता है और रात 8 बजे लौटता है. लौटते ही टीवी, मोबाइल और लैपटौप में व्यस्त हो जाता है. दिन भर में एक बार भी कौल नहीं करता?’’

अंजलि बोली, ‘‘अरे, वह नहीं करता है तो तू ही कौल कर लिया कर.’’

साक्षी मुंह बना कर बोली, ‘‘मैं क्यों करूं. यह तो उस का फर्ज बनता है कि मुझे कौल कर के कम से कम प्यार के 2 शब्द कहे. मैं तो उसे तब तक अपने पास फटकने नहीं देती हूं जब तक वह 10 बार सौरी न बोले. मूड न हो तो ऐसी फटकार लगाती हूं कि अपना सा मुंह ले कर रह जाता है. मैं कोई गईगुजरी हूं क्या?’’

अंजलि साक्षी की बातें सुन कर हैरान रह गई. बोली, ‘‘बस यार, मैं समझ गई. यही है तेरे पति की उदासीनता की वजह. तू उसे पति या दोस्त नहीं अपना गुलाम समझती है. तू समझती है कि प्यारमुहब्बत करना, पैंपर करना या मनुहार करना सिर्फ पति का काम है. पति गुलाम है और पत्नी महारानी है. तेरी इसी मानसिकता के कारण तेरी उस से दूरी बढ़ गई है.’’

साक्षी जैसी मानसिकता बहुत सी महिलाओं की होती है. ऐसी महिलाएं चाहती हैं कि पति ही उन के  आगेपीछे घूमे, उन की मनुहार करे, उन के नखरे सहे. उन के रूपसौंदर्य के साथसाथ उन की पाककला या फिर दूसरे गुणों का भी बखान करे. ऐसी महिलाएं प्यार की पहल भी पति के द्वारा ही चाहती हैं. एकाध बच्चा होने के बाद उन्हें पति का सैक्सुअल रिलेशन बनाना, रोमांस करना या उस का रोमांटिक मूड में कुछ कहना भी चोंचलेबाजी लगने लगता है. जाहिर है, स्वाभिमान को चोट पहुंचने, बारबार दुत्कारे जाने या उपेक्षित महसूस किए जाने पर पति बैकफुट पर चला जाता है. तब वह भी ठान लेता है कि अब वह ऐसी पत्नी को तवज्जो नहीं देगा.

समझदार पत्नियां जानती हैं कि किसी भी संबंध का निर्वाह एकतरफा नहीं हो सकता. इस के लिए दोनों पक्षों को सचेष्ट रहना पड़ता है. अगर आप या आप की कोई सहेली साक्षी की तरह सोचती है, तो बात बिगड़ने से पहले ही संभल जाएं. अपने दांपत्य जीवन को सरस बनाए रखने के लिए आप भी पूरी तरह सक्रिय रहें. दांपत्य संबंधों को निभाने के लिए बस इन छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना है:

– जब भी आप को लगे कि आप का पति इन दिनों कम बोलने लगा है या उदास है, तो उस के मन की थाह लें कि कहीं वह बीमार, व्यापार या अपने प्रोफैशन में किसी प्रौब्लम के कारण दुखी या उदास तो नहीं या फिर पूछें कि वह आप से नाराज तो नहीं? यकीन मानिए आप का परवाह करना उसे भीतर तक खुश कर देगा.

– जरा सोच कर देखिए कि अंतिम बार आप ने अपने पति को खुश करने के लिए कुछ खास किया था? अगर जवाब नैगेटिव हो तो आप को आत्ममंथन करना होगा कि क्या विवाह संबंधों को निभाने की जिम्मेदारी सिर्फ पति की है? पति को सिर्फ पैसा कमाने की मशीन समझना आप की गलती है.?

सैलिब्रिटी जोड़ी का तजरबा

सैलिब्रिटी चेतन भगत और उन की पत्नी अनुषा की शादी को 9 वर्ष हो चुके हैं. आज ये जुडवां बच्चों के पेरैंट्स हैं. पति उत्तर है तो पत्नी दक्षिण. जी हां, अनुषा बंगलुरू में जन्मी तमिलियन हैं और चेतन दिल्ली के पंजाबी परिवार के बेटे. एक पत्रकार से अपने अनुभव बांटते हुए इन्होंने दांपत्य जीवन से जुड़ी कई अहम बातें शेयर कीं.

अनुषा ने बताया कि शादी को पावर का खेल न बनने दें. एकदूसरे को पावर दिखाने के बजाय प्यार से रिश्ते को नियंत्रित करें.

चेतन का कहना हैं कि अनुषा ने सही कहा. हम ताकत या पावर से संबंधों को कंट्रोल नहीं कर सकते. आज सभी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं, इसलिए नियंत्रण नहीं, समझदारी से रिश्ते निखरते हैं. एकदूसरे का खयाल रखना ही संबंधों के निभाव का मूलमंत्र है.

ऐसा न करें

– पति को स्पोर्ट्स या न्यूज चैनल देखने का शौक है, तो रोज की टोकाटाकी बंद करें.

– अपने पति की फैमिली से चिढ़ने और उन के बारे में उलटापुलटा बोलने की आदत न डालें. आखिर उसे अपने मांबाप से उतना ही प्यार होता है जितना आप को अपने मम्मीपापा से.

– सिर्फ पति से ही गिफ्ट की उम्मीद न करें. कभी आप भी उसे गिफ्ट दें.

– घर का हर काम सिर्फ पति से ही करवाने की न सोचें.

– पति की हौबी का मजाक न उड़ाएं, बल्कि सहयोग करें.

– रोमांस और सैक्स को चोंचला नहीं ऐंजौयमैट औफ लाइफ और जरूरत समझें.

– हर वक्त किचकिच करना और सिर्फ पति के व्यक्तित्व के कमजोर पक्ष को ले कर ताने देना छोड़ दें.

ऐसा करें

– पति को व्हाट्सऐप पर जोक्स व रोमांटिक मैसेज भेजना जारी रखें. कभीकभी कौंप्लिमैंट्स देने वाले मैसेज भी भेजें.

– पति औफिस से लौट कर कुछ बताए, तो उसे गौर से सुनें. उस पर ध्यान दें, उस के विचारों को तवज्जो दें. साथ ही, आप भी दिन भर के घटनाक्रम के विषय में संक्षिप्त चर्चा करें.

– शाम की चाय या नाश्ता पति के साथ बैठ कर लें. इस दौरान हलकीफुलकी बातें भी हो सकती हैं.

– पति आप के काम में हाथ बंटाए, आप को कोई गिफ्ट दे या आप की प्रशंसा करे तो उसे दिल से शुक्रिया करने की आदत डालें. उसे ‘टेकन फौर ग्रांटेड’ न लें.

– हफ्ते में 2-3 बार उस की कोई पसंदीदा डिश बनाएं. कई बार पूछ कर तो कई बार अचानक बना कर पति को सरप्राइज दें.

– पति की नजदीकियों को उस की मजबूरी या अपनी चापलूसी न समझें. इन नजदीकियों की आप दोनों को बराबर जरूरत है.

– शादी के 2-4 साल बीतते ही खुद की देखभाल करना बंद न कर दें. अपनी अपीयरैंस पर ध्यान दें, सलीके से रहें.

– कभीकभी पति को मनमानी करने की छूट भी दें. फिर बात चाहे घर में अपने वक्त को बिताने की हो या बाहर दोस्तों के साथ घूमनेफिरने की अथवा आप के साथ ऐंजौंय और हंसीमजाक की.

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