तेलुगु अभिनेत्री श्री रेड्डी कास्टिंग काउच का विरोध करने के लिए सड़क पर टौपलेस हो गईं. यह तेलुगु अदाकारा सड़क पर उतरी तो विरोध करने के लिए थीं, लेकिन उनके तरीकों ने ही उन्हें मुश्किल में फंसा दिया. सूत्रों के मुताबिक विरोध प्रदर्शन के बाद श्री रेड्डी को उसके मकान मालिक ने घर खाली करने को कह दिया. इस बात की जानकारी खुद श्री रेड्डी ने अपने फेसबुक पेज पर दी है. रेड्डी ने कहा कि उसके मकान मालिक जो पेशे से आईएएस अधिकारी हैं उनकी सोच बेहद छोटी है. उन्होंने मुझे घर खाली करने का फरमान दिया है.
रेड्डी को न केवल मकान खाली करने को कहा गया बल्कि मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन (MAA) ने भी रेड्डी के कदम को गलत बताते हुए उन्हें मेंबरशिप न देने का फैसला किया है. मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन ने उनके खिलाफ सख्त एक्शन लेने की बात भी कही है. इतना ही नहीं एसोसिएशन से जुड़े 900 लोगों ने उनके साथ काम करने से मना कर दिया हैं. वहीं अभिनेत्री के इस प्रदर्शन को MAA के प्रेसिडेंट शिवाजी राजा ने ड्रामा बताया है. एसोसिएशन ने यह भी कहा कि अगर कोई अभिनेत्री की मदद करेगा तो एसोसिएशन उसे भी बैन कर देगा.
बता दें कि श्री रेड्डी ने शनिवार (7 अप्रैल) को कास्टिंग काउच के विरोध में मीडिया की मौजूदगी में हैदराबाद फिल्म चैंबर के बाहर टौपलेस होकर सड़क पर बैठ गईं. एक्ट्रेस रेड्डी को ऐसे देख भारी भीड़ जमा हो गई. प्रदर्शन की सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने अभिनेत्री को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने श्री रेड्डी के इस तरह सार्वजनिक तौर पर कपड़े उतारने के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 294 (किसी भी सार्वजनिक स्थल पर अश्लील कृत्यों) के तहत मामला दर्ज कर लिया था.
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तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच चल रहे कावेरी नदी जल विवाद की छाया आईपीएल पर पड़ती नजर आ रही है. कहा जा रहा है कि इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के 11वें संस्करण के कुछ मैचों को केरल स्थानांतरित किया जा सकता है. कावेरी विवाद के कारण अगर केरल आईपीएल के कुछ मैचों की मेजबानी करता है तो इसमें चेन्नई और बेंगलोर के मैच शामिल होंगे. चेन्नई सुपर किग्स और रायल चैलेंजर्स बेंगलोर के मैच चेन्नई और बेंगलोर में आयोजित होने हैं.
केरल क्रिकेट संघ के प्रमुख जयेश जौर्ज ने रविवार को मीडिया से कहा कि मैचों के इन बदलावों को लेकर पहले ही बातचीत शुरू हो चुकी है. जौर्ज ने कहा, “चेन्नई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के.एस. विश्वनाथन ने इस बारे में मुझसे बात की थी और आज बीसीसीआई और आईपीएल के वरिष्ठ अधिकारियों अमिताभ चौधरी और राजीव शुक्ला ने भी मुझसे बात की है.” जौर्ज ने कहा, “हमने आईपीएल के मैचों को तिरुवनंतपुरम और कोच्चि में आयोजित कराने की इच्छा जताई है. अगले कुछ दिन में वे हमें इस बारे में बताएंगे.”अगर केरल को आईपीएल मैचों की मेजबानी सौंपी जाती है तो कोच्चि मैचों की मेजबानी के लिए सही स्थान हो सकता है. कोच्चि 2011 में कोच्चि टस्कर्स का घरेलू मैदान था.
#IPL2018 matches in Chennai will be held as per the schedule. Adequate security measures have been taken. IPL should not be dragged into political controversies: Rajeev Shukla, IPL Chairman #CauveryWaterManagementpic.twitter.com/uQZZyDlLzC
अब इस मामले में आईपीएल कमिश्नर राजीव शुक्ला ने बयान जारी कर तमाम अटकलों पर विराम लगाया है. राजीव शुक्ला ने कहा कि चेन्नई में होने वाले सभी मैच तय कार्यक्रम के अनुसार ही होंगे. जो भी सुरक्षा के लिए जरूरी इंतजाम होंगे वह किए जाएंगे. आईपीएल को वैसे भी राजनीतिक विवादों में नहीं फंसना चाहिए.
इससे पहले तिरुवनंतपुरम में मैचों को कराने के पक्ष में एक बात कही जा रही थी कि तमिलनाडु से 8 घंटे से भी कम समय में तिरुवनंतपुरम पहुंचा जा सकता है. तिरुपवनंतपुरम में पिछले साल भारत और न्यूजीलैंड के बीच टी-20 मैच खेला गया था. गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने कावेरी नदी के जल के बंटवारे में तमिलनाडु के हिस्से का पानी घटा दिया और कर्नाटक का हिस्सा बढ़ा दिया था. इसके अलावा कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड का अभी गठन नहीं हुआ. इन बातों को लेकर तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन जारी है.
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डाटा लीक होने की खबरें लगातार अपना पैर पसार रही है. इन खबरों ने मार्क जुकरबर्ग को एक बड़ी मुसीबत में डाल दिया है. डाटा लीक के बाद फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने माफी भी मांगी और प्राइवसी पौलिसी भी बदली. लेकिन लगता है कि उसका लोगों पर कोई असर नहीं हो रहा है तभी तो एक के बाद एक कई जानी मानी हस्ती अपना फेसबुक अकाउंट डिलीट करते जा रहे हैं.
पहले स्पेसएक्स के फाउंडर ऐलन मस्क ने टेस्ला और स्पेसएक्स के फेसबुक पेज डिलीट कर दिया. इसके बाद पौपुलर लाइफस्टाइल और एंटरटेनमेंट मैगजीन प्ले ब्वाय और बौलीवुड अभिनेता फरहान अख्तर ने भी फेसबुक से विदा ले लिया. वहीं अब एप्पल के को-फाउंडर स्टीव वोज्निएक ने भी अपना फेसबुक अकाउंट डिऐक्टिवेट कर दिया है. उनका कहना है कि प्राइवसी को लेकर उन्होंने यह फैसला लिया है.
स्टीव वोज्निएक ने एक ई-मेल के जरिए कहा है कि यूजर्स फेसबुक को अपनी जिंदगी की सारी जानकारियां दे रहे हैं. फेसबुक हमारी सूचनाओं को बेचकर काफी पैसा कमा रहा है, जबकि बदले में यूजर्स को इससे कोई फायदा नहीं मिल रहा है. उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी एप्पल अच्छे प्रोडक्ट्स के जरिए पैसे कमाती है और फेसबुक अपने यूजर्स का डाटा बेचकर पैसे कमाता है.
सूत्रों के मुताबिक एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है, ‘मैं फेसबुक छोड़ने के प्रोसेस में हूं. यह मेरे लिए सकारात्मक से ज्यादा नकारात्मक रहा है. एप्पल के पास आपकी चीजें शेयर करने के लिए सिक्योर तरीके हैं. मैं अभी भी पुराने ईमेल और टेक्स्ट मैसेज पर निर्भर रह सकता हूं’ मैंने अभी अकाउंट डिलीट नहीं बल्कि डिऐक्टिवेट किया है, क्योंकि मैं अपने SteveWoz यूजरनेम को अपने पास ही रखना चाहते हैं. उन्होंने कहा है, ‘मैं नहीं चाहता कि मेरा यूजरनेम किसी दूसरे व्यक्ति के पास हो, चाहे वो कोई दूसरा स्टीव वोज्निएक ही क्यों न हो’
हाल ही में एप्पल के सीईओ टिम कुक ने फेसबुक के बिजनेस मौडल की जम कर आलोचना की और कहा कि फेसबुक अपने ही यूजर्स को प्रोडक्ट समझ कर मोटे पैसे कमाता है. स्टीव वोज्निएक और एलान मस्क के अलावा फेसबुक की ही कंपनी व्हाट्सऐप के को फाउंडर ब्रायन ऐक्टन ने लोगों से फेसबुक डिलीट करने को कहा था.
गौरतलब है कि फेसबुक के खिलाफ इस तरह की आवाज उठनी तब से शुरू हुई जब कैंब्रिज अनालिटिका डेटा लीक सामने आया. इस एजेंसी ने करोड़ों यूजर्स का डेटा फेसबुक से ही लेकर गलत तरीके से लीक किया जिसके बाद प्राइवसी को लेकर सवाल उठने लगे. यह धीरे धीरे इस कदर कंपनी के सीईओ मार्क जुकरबर्ग के सिए सिरदर्द बन गया कि उन्हें इसके लिए माफी तक मांगनी पड़ गई. समय समय पर आ रही खबरों सो ऐसा प्रतीत होता है कि फेसबुक अब तक इस सिरदर्द से निकलने का रास्ता नहीं तलाश पाया है. इसी के साथ लगातार जिसतरह से लोग फेसबुक अकाउंट डिलीट कर रहें हैं उसे देखकर लगता भी नहीं है कि वो इतना जल्दी इससे निजात पा सकेगा.
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होम लोन देने वाली कंपनी HDFC ने ब्याज दर में 0.20 प्रतिशत की वृद्धि की है. इससे आपका होम लोन महंगा हो जाएगा. यह अन्य कमर्शियल बैंकों के कदम के अनुरूप है. बैंक ने बताया है कि उसने अपनी कर्ज की ब्याज दरों (आरपीएलआर) में 0.20 फीसदी का इजाफा किया है. हाल ही ज्यादातर बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने अपनी कर्ज की दरों में बढ़ोत्तरी की है. बैंक ने बताया है कि कर्ज की नई दरें 1 अप्रैल से प्रभावी हो गई है.
कई तरह से बढ़ाईं ब्याज दरें
कंपनी के प्रवक्ता ने बताया है कि इन कर्ज की दरों को 0.05 फीसदी से लेकर 0.20 फीसदी तक बढ़ाया गया है. इसके अनुसार कंपनी ने छोटे लोन पर सबसे कम ब्याज दरों को बढ़ाया है. जो लोन 30 लाख रुपए तक हैं और महिलाओं के नाम हैं उनका ब्याज सबसे कम बढ़ाया गया है. अभी ऐसे लोन पर ब्याज की दरें 8.40 फीसदी थीं, जबकि इनको बढ़ा कर 8.45 फीसदी कर दिया गया है.
30 से 75 लाख रुपए के बीच के लोन की ब्याज दरें
प्रवक्ता के अनुसार 30 लाख रुपए से लेकर 75 लाख रुपए तक के कर्ज पर महिलाओं के लिए ब्याज दर 8.55 फीसदी और अन्य के लिए 8.60 प्रतिशत होंगी. वहीं, 75 लाख रुपए से अधिक के कर्ज पर महिलाओं के लिए ब्याज दर 8.65 फीसदी और अन्य के लिए 8.70 फीसदी होगी.
लगातार महंगा हो रहा कर्ज
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मौनीटरी पौलिसी और पौलिसी रेट में कोई बदलाव नहीं किया है, लेकिन फिर भी बैंक और वित्तीय संस्थान लगातार अपनी लोन की ब्याज दरों में इजाफा कर रहे हैं. लोन महंगा करने की यह प्रक्रिया 2017 के अंत से देखी जा रही है. इसकी शुरुआत निजी क्षेत्र के बैंकों एक्सिस बैंक, यस बैंक, कोटक महिन्द्र बैंक ने की थी. इसमें बाद सरकारी बैंक भी शामिल हो गए. एसबीआई भी अपनी कर्ज की दरें बढ़ा चुका है.
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होंडा ने भारत में अपनी बाइक Honda CBR1000RR की कीमत में 2 लाख रुपए की कटौती कर दी है. दरअसल सरकार ने पूरी तरह से विदेश में बनी बाइक को भारत लाने पर इंपोर्ट ड्यूटी को 75 फीसदी से घटाकर 50 फीसदी कर दिया है. कंपनी इस बाइक के भारत में दो वेरिएंट सेल करती है. कंपनी ने दोनों वेरिएटं की कीमत में कटौती की है.
होंडा CBR 1000RR की कीमत 18.68 लाख रुपए थी, अब इसे 16.68 लाख रुपए में खरीदा जा सकता है. इसके अलावा इसके दूसरे वेरिएंट होंडा CBR 1000RR SP की कीमत में 2.52 लाख रुपए की कटौती की गई है. अब इस बाइक को भारत में 18.68 लाख रुपए में खरीदा जा सकता है. यह कीमत दिल्ली में एक्स शोरूम है.
इसमें दमदार इंजन लगाया गया है, इसमें 999CC का इंजन दिया गया है. जो 13000 आरपीएम पर 189 बीएचपी और 11000 आरपीएम पर 114 एनएम का टौर्क जेनरेट करता है. इसमें सिक्स-स्पीड ट्रांसमिशन लगा है. इसके परफौर्मेंस को और बढ़ाने के लिए अब इसका वजन 16 किलोग्राम कम कर दिया गया है. इस बाइक में बौडीवर्क और सिंगल साइडेड रियर ट्रिम कार्बन फाइबर से बनाए गए हैं. इस बाइक का हगर, एयरबौक्स प्लेट्स, चेनगार्ड और हैंडलबार तक कार्बन फाइबर से बनाए गए हैं. इसी के साथ इस बाइक में कार्बन फाइबर फेंडर भी लगाए गए हैं. होंडा सीबीआर 1000RR के लेटेस्ट वेरिएंट को 2018 में लौन्च किया गया है. होंडा ने सबसे पहले इस बाइक को साल 2007 में लौन्च किया था.
कंपनी ने इसका एक फाइबर वेरिएंट भी लौन्च किया था. आपको बता दें कि होंडा सीबीआर 1000RR का कार्बन एडिशन होंडा नियो स्पोर्ट्स कैफे कौन्सेप्ट पर बेस्ड है. इस बाइक के लुक को बदला गया है, फीचर्स बदले गए हैं यहां तक कि इसके सिस्टम में भी बदलाव किए गए हैं. होंडा CBR 1000RR कार्बन एडिशन एक कस्टम बाइक है. इस बाइक को पहले वाले मौडल के मुकाबले काफी हल्का बनाया गया है.
होंडा CBR 1000R कार्बन एडिशन की चेसिस स्टील से बनी हुई है और एल्युमिनियम स्विंग आर्म भी लगाए गए हैं. इस बाइक को चार अलग-अलग तरीकों से चलाया जा सकता है. पहला स्टैंडर्ड दूसरा स्पोर्ट तीसरा रेन और चौथा यूजर है.
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अगर रास्ता नहीं पता हो लेकिन सही एड्रेस पता हो और स्मार्टफोन में इंटरनेट हो तो रात में भी किसी से रास्ता पूछने की जरूरत नहीं पड़ती है. यह सब गूगल मैप की सहायता से मुमकिन है, लेकिन इसमें सबसे बड़ी दिक्कत तब आती है जब आपके पास स्मार्टफोन तो होता है लेकिन इंटरनेट की स्पीड या तो कम होती है या खराब नेटवर्क होता है. इस दौरान जैसे ही आपके स्मार्टफोन में नेटवर्क की दिक्कत आएगी, तो गूगल मैप भी दिक्कत करने लगेगा. गूगल मैप के पास इस दिक्कत से बचने का भी एक तरीका है. चलिए आज हम आपको गूगल मैप के इस फीचर के बारे में बताते हैं.
एंड्रौयड में कैसे करें इस्तेमाल
सबसे पहले अपने स्मार्टफोन या टैबलेट में गूगल मैप ओपन करें
इस दौरान आपके स्मार्टफोन या टैबलेट में इंटरनेट होना चाहिए.
अब उस शहर या प्लेस को गूगल मैप पर सर्च करें.
सर्च होने के बाद आप उस शहर के मैप को डाउनलोड कर लें.
मैप डाउनलोड करने के लिए मैप सर्च करने के बाद नीचे आ रहे मोर इन्फो के औप्शन पर क्लिक करना होगा. इस पर क्लिक करते ही कई औप्शन आपके सामने आ जाएंगे. इनमें एक औप्शन डाउनलोड का भी होगा.
इसे डाउनलोड करें जिसकी सहायता से आप औफलाईन भी गूगल मैप का इस्तेमाल कर सकेंगे.
आईफोन में कैसे करें इस्तेमाल
ऐप्पल आईफोन में भी इसे इस्तेमाल करना बहुत आसान है. इसके लिए भी एंड्रौयड की तरह ही आईफोन में भी गूगल मैप खोलें. इसके बाद जगह या शहर सर्च करें. सर्च करने के बाद नीचे आ रहे मोर इंफो के औप्शन पर क्लिक करें. इस पर क्लिक करने के बाद आपको औफलाइन मैप डाउनलोड करने का औप्शन मिल जाएगा. इसके बाद इस मैप को डाउनलोड कर लें.
औफलाइन मैप डाउनलोड करने के बाद उस शहर या जगह के लिए यह वैसे ही काम करेगा जैसे कि औनलाइन मैप करता है. औफलाइन मैप डाउनलोड करने के बाद यह दिक्कत नहीं रहेगी कि आपके फोन में इंटरनेट है या नहीं. यह मैप इंटरनेट नहीं होने पर भी काम करेगा. इसके लिए फोन की लोकेशन औन रखनी पड़ेगी.
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पंचकूला के ऐतिहासिक नगर पिंजौर की वकील सुमन कुमारी प्रैक्टिस करने के साथसाथ जज बनने की तैयारी भी कर रही थीं. इस के लिए वह चंडीगढ़ के सेक्टर-24 स्थित ज्यूरिस्ट एकेडमी से कोचिंग ले रही
थीं. यह एकेडमी उन्होंने मई, 2017 में जौइन की थी. यहीं पर सुनीता और सुशीला नाम की युवतियां भी कोचिंग लेने आती थीं. सुशीला पंचकूला के सेक्टर-5 की रहने वाली थी, जबकि सुनीता चंडीगढ़ में ही रहती थी.
सुशीला और सुनीता पिछले कई सालों से सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रही थीं, लेकिन इन में से कोई भी नौकरी से संबंधित परीक्षा पास नहीं कर पा रही थी.
वैसे भी दोनों एवरेज स्टूडेंट की श्रेणी में आती थीं, कोचिंग सेंटर द्वारा लिए जाने वाले वीकली टेस्टों में दोनों के बहुत कम नंबर आते थे. इस के बावजूद इन का हौसला कभी पस्त नहीं हुआ था. दोनों अपने प्रयासों में निरंतर लगी हुई थीं. इन का सपना कोई बड़ी सरकारी नौकरी हासिल करना था.
रोजाना एक ही जगह आनेजाने की वजह से सुमन की इन लड़कियों से जानपहचान हो गई थी. तीनों ने अपने मोबाइल नंबर भी आपस में एक्सचेंज कर लिए थे. सुशीला वकील सुमन से ज्यादा मिक्सअप हो गई थी.
एकेडमी में कोचिंग कर रहे अन्य युवकयुवतियों की तरह ये तीनों भी अपनेअपने ढंग से तैयारी करते हुए सुनहरे भविष्य के सपने बुन रही थीं. वकील सुमन के साथ अब सुनीता और सुशीला का भी सपना जज की कुरसी पर बैठने का बन गया था.
हरियाणा की अदालतों में 109 जजों की नियुक्ति होनी थी. इस के लिए 20 मार्च, 2017 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा विभिन्न समाचारपत्रों में एक विज्ञापन छपवाया गया, जिस के हिसाब से 16 जुलाई, 2017 को प्रारंभिक परीक्षा होनी थी. वांछित औपचारिकताएं पूरी कर के हजारों आवेदकों के साथसाथ इन तीनों युवतियों ने भी इस परीक्षा के लिए आवेदन किया.
सब के रोल नंबर समय पर आ गए, जिन के साथ परीक्षा सेंटरों की सूची भी संलग्न थी. ये सेंटर चंडीगढ़ के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में थे.
वक्त के साथ जून का अंतिम सप्ताह आ गया. न्यायालय में जज नियुक्ति के प्रतिष्ठित एग्जाम एचसीएस (जुडिशियल) के परीक्षार्थी अपनी तैयारी में जीजान से जुटे थे. एकेडमी वाले भी इन की तैयारी करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. कानून के विद्वान जानकारों द्वारा तैयार करवाए गए रिकौर्डेड लेक्चर तक उपलब्ध करवाए जा रहे थे.
27 जून को सुमन किसी कारण से एकेडमी नहीं आ पाई थीं. अगले रोज उन्होंने सुशीला को फोन कर के कहा, ‘‘कल के लेक्चर की रिकौर्डिंग भिजवा दे यार.’’
‘‘नो प्रौब्लम, अभी भिजवाए देती हूं.’’ सुशीला ने बेपरवाह लहजे में कहा.
इस के बाद सुमन के वाट्सऐप पर एक औडियो क्लिप आ गई. खोलने पर मालूम हुआ कि वह कोई लेक्चर न हो कर एक ऐसा वार्तालाप था, जो 2 महिलाओं के बीच हो रहा था. इन में एक आवाज सुशीला की ही लग रही थी.
सुमन को लालच में फंसाने की कोशिश की गई
इस बातचीत को सुमन ने ध्यान से सुना तो यह बात सामने आई कि कोई महिला सुशीला को जज बनने का आसान और पक्का रास्ता बता रही थी. वह महिला कह रही थी कि उस ने पक्का इंतजाम कर रखा है. डेढ़ करोड़ रुपया खर्च करने पर उस के पास संबंधित प्रश्नपत्र परीक्षा से पहले ही पहुंच जाएगा. उस में दिए गए प्रश्नों की तैयारी कर के वह प्रारंभिक परीक्षा में अच्छी पोजीशन के साथ पास हो जाएगी. इस तरह वह मेन एग्जाम के लिए क्वालीफाइ कर लेगी.
बाद में समयसमय पर उसे शेष 5 परीक्षाओं के प्रश्नपत्र भी मुहैया करवा दिए जाएंगे, जिन की तैयारी करने के बाद वह मुख्य परीक्षा में भी अच्छे मार्क्स हासिल कर लेगी. इस के बाद इंटरव्यू में कैसे भी अंक मिलें, उसे नियुक्ति पत्र देने से कोई नहीं रोक सकेगा. इस तरह महज डेढ़ करोड़ रुपए खर्च कर के वह जज का प्रतिष्ठित पद हासिल कर लेगी. इस के बाद तो ऐश ही ऐश हैं.
बातचीत में इस महिला ने यह भी कहा कि महंगी कोचिंग ले कर दिनरात मेहनत करने का कोई फायदा नहीं, जजों के सभी पद पहले ही बिके होते हैं.
मैं तो यही सब करने जा रही हूं, तुम चाहो तो किसी भी तरह पैसों का इंतजाम कर के अपनी नौकरी पक्की कर सकती हो. बाद में जिंदगी भर कमाना. समाज में जो प्रतिष्ठा बनेगी सो अलग. इतना जान लो कि मिडल क्लास से अपर क्लास में शिफ्ट होने में देर नहीं लगेगी.
यह सब सुन कर सुमन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. अगर यह बात सच थी तो वह कभी जज नहीं बन सकती थीं. इतनी बड़ी रकम जुटा पाने की बात तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती थीं. न तो प्रैक्टिस से उन्हें इतनी कमाई हो रही थी और न ही वह किसी अमीर घराने से संबंध रखती थीं. वह केवल अपनी कड़ी मेहनत के बूते पर जज बनने का सपना संजोए थीं.
सुमन ने इस बारे में सुशीला को फोन किया. उन की बात सुनते ही सुशीला बोली, ‘‘ओह सौरी, यह औडियो गलती से चला गया. तुम इसे अभी के अभी डिलीट कर दो. मैं भी डिलीट कर रही हूं.’’
‘‘ठीक है, कर देती हूं, लेकिन तुम मुझे लेक्चर वाली औडियो भेज दो.’’
‘‘अभी भेजती हूं, चिंता मत करो.’’ कहने के तुरंत बाद सुशीला ने पिछले दिन के लेक्चर की औडियो भेज दी.
वांछित औडियो का क्लिप तो सुमन को मिल गया लेकिन सुशीला ने गलती से भेजी गई औडियो को अपने फोन से डिलीट नहीं किया. यह औडियो उन के फोन की गैलरी में सुरक्षित थी. बाद में उन्होंने उसे कई बार सुना. जितनी बार सुना, उतनी बार वह परेशान होती रहीं. उन के भीतर यह डर गहराता जा रहा था कि ऐसे तो वह कभी जज नहीं बन पाएंगी.
2 दिन बाद सुमन की मुलाकात सुशीला से हुई तो उन्होंने उस औडियो की चर्चा छेड़ दी. इस पर सुशीला ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘यह बात तो गलत है मैडम, जब मैं ने आप से कहा था कि गलती से चली गई औडियो को डिलीट कर दो तो आप को उसे डिलीट कर देना चाहिए था.’’
‘‘अरे नहीं नहीं,’’ बात संभालने का प्रयास करते हुए सुमन ने स्पष्टीकरण दिया, ‘‘तुम्हारे कहने के बाद मैं ने उसी समय वह औडियो डिलीट कर दी थी. लेकिन उसे डिलीट करने से पहले लेक्चर के मुगालते में मैं ने उस बातचीत को सुन ही लिया था.’’
‘‘सुन लिया तो कोई बात नहीं, लेकिन इस बारे में किसी को कुछ बताया तो नहीं न?’’
‘‘मैं ने इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया. लेकिन सुशीला, मैं तुम से एक बात की जानकारी चाहती हूं.’’
‘‘किस बात की?’’
‘‘यही कि क्या यह काम डेढ़ करोड़ दे कर ही हो सकता है, कुछ कम पैसे दे कर नहीं?’’
सुमन के इस सवाल का जवाब देने के बजाय सुशीला ने इधरउधर देखते हुए उल्टा उन्हीं से प्रश्न किया, ‘‘तुम इंटरेस्टेड हो क्या?’’
सुमन को अपनी मेहनत बेकार जाती लग रही थी
‘‘देखो सुशीला, सीधी सी बात है. इतनी बड़ी पोस्ट हासिल करने का सपना हजारों लोग देख रहे हैं. मैं भी उन्हीं में से एक हूं. लेकिन अगर उस औडियो में आई बातें सही हैं तो सच बता दूं कि मैं इतने पैसों का इंतजाम नहीं कर सकती. डेढ़ करोड़ रुपया बहुत होता है यार.’’
‘‘अब जब बात खुल ही गई है तो सीधेसीधे बता देती हूं कि यहां यही सब चल रहा है. फिर यह कोचिंग क्या मुफ्त में मिल रही है? मोटी फीस अदा करनी पड़ती है हर महीने. किताबों पर कितना खर्च हो रहा है. एकेडमी तक आनाजाना क्या फ्री में हो जाता है? सौ बातों की एक बात यह है कि सारी मेहनत और किया गया तमाम खर्च गड्ढे में चले जाना है.’’
‘‘मतलब?’’
‘‘मतलब यही कि जज की ऊंची कुरसी पर बैठना है तो यह इनवैस्टमेंट करना ही पड़ेगा. इस के बाद जिंदगी भर इस पोस्ट से कमाना ही है, बड़ा रुतबा मिलेगा, सो अलग. इतने बड़े काम के लिए डेढ़ करोड़ रुपया भला कौन सी बड़ी रकम है.’’
‘‘हमारे जैसे लोगों के लिए है न.’’ सुमन ने मायूस होते हुए कहा.
इस पर सुशीला चुप रह कर सोचने की मुद्रा में आ गई. कुछ देर सोचने के बाद उस ने सुमन का हाथ अपने हाथों में ले कर सधे हुए शब्दों में कहना शुरू किया, ‘‘देखो सुमन, तुम बहुत नाइस और मेहनती हो. मैं दिल से चाहती हूं कि अपने मकसद में कामयाब होते हुए जज की कुरसी तक पहुंचो. लेकिन तुम्हारी मजबूरी मुझे साफ दिख रही है. चलो, मैं कुछ करती हूं, तुम्हें रिलीफ दिलवाने के लिए.’’
इस के बाद इस बारे में दोनों के बीच होने वाली बात यहीं खत्म हो गई.
सुशीला के पति हरियाणा में सबइंसपेक्टर हैं. सुशीला पति को साथ ले कर 12 जुलाई को पिंजौर गई. मार्केट में एक जगह रुक कर उस ने सुमन को फोन कर के वहां बुलाया.
वह आ गईं तो सुशीला ने उन से सीधेसीधे कहा, ‘‘प्रश्नपत्र की कौपी सुनीता के पास है. उस ने यह कौपी डेढ़ करोड़ में खरीदी है. जो औडियो मैं ने गलती से तुम्हें भेज दिया था, उस में मेरी उसी से बात हो रही थी. सुनीता से मिल कर मैं ने तुम्हारे बारे में बात की है.’’
‘‘तो क्या कहा उस ने?’’ सुमन ने धड़कते दिल से पूछा.
‘‘देखो, मेरी बात का बुरा मत मानना, यह काम मुफ्त में तो होगा नहीं. आप 10-10 लाख कर के पैसे देती रहो. हर बार के 10 लाख पर तुम्हें प्रश्नपत्र में से 5-6 सवाल नोट करवा दिए जाएंगे. काम एकदम गारंटी वाला है, लेकिन बिना पैसों के होने वाला नहीं है. इतना जान लो कि इस तरह की सुविधा भी केवल तुम्हें दी जा रही है, वरना एकमुश्त डेढ़ करोड़ रुपया देने वालों की लाइन लगी है. पक्के तौर पर जज की पोस्ट उन्हीं लोगों से भरी जानी है.’’ सुशीला ने बताया.
‘‘ठीक है सुशीला, मैं सोचती हूं इस बारे में.’’ सुमन ने मायूस होते हुए कहा.
‘‘सोच लो, बस इस बात का ध्यान रखना कि टाइम बहुत कम है. एक बार मौका हाथ से निकल गया तो सिवाय पछताने के कुछ हासिल नहीं होगा.’’ एक तरह से चेतावनी देने के बाद सुशीला अपने पति के साथ वापस चली गई.
कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था सुमन को, पैसा उन के पास था नहीं
सुमन इस सब से काफी अपसेट सी हो गई थी. जितने जोशोखरोश से वह परीक्षा की तैयारी कर रही थी, अब उस तरह पढ़ाई कर पाना उस के लिए मुश्किल हो गया था. उस का मन यह सोचसोच कर अवसाद से भरता जा रहा था कि जब जजों की नियुक्ति पैसा दिए जाने के बाद ही होनी है तो फिर इस तरह जीतोड़ मेहनत करने का क्या फायदा. इस तरह 2 दिन का वक्त और निकल गया. 15 जुलाई को सुशीला ने सुमन को फोन कर के दोपहर 2, ढाई बजे चंडीगढ़ के सेक्टर-17 स्थित सिंधी रेस्टोरेंट पहुंचने को कहा.
निर्धारित समय पर सुमन वहां पहुंच गईं. वहां सुशीला के साथ सुनीता भी थी. इन लोगों ने रेस्टोरेंट के फर्स्ट फ्लोर पर बैठ कर बातचीत शुरू की. सुनीता ने कहा कि वह सुमन का काम डेढ़ करोड़ की बजाय केवल 1 करोड़ में कर देगी, सीधे 50 लाख का फायदा.
सुमन के लिए यह कतई संभव नहीं था. फिर भी उन्होंने जैसेतैसे 10 लाख रुपयों का इंतजाम कर के सुनीता से संपर्क किया, लेकिन उस ने एक भी प्रश्न दिखाने से मना कर दिया. सुमन ने सुशीला से मिल कर उसे बताया कि पता नहीं क्यों सुनीता उस पर शक करते हुए अजीब ढंग से बात कर रही थी.
अब टाइम नहीं बचा था. अगले रोज पेपर था. सुशीला व सुनीता के साथ सुमन ने भी परीक्षा दी.
सुमन पढ़ाई में होशियार थीं, वह पेशे से वकील भी थीं. फिर भी रिजल्ट घोषित होने पर जहां सुमन को निराशा मिली, वहीं सुशीला और सुनीता इस टफ एग्जाम को क्लीयर कर गईं. यह बात भी सामने आई कि सुनीता सामान्य वर्ग में और सुशीला रिजर्व कैटेगरी में न केवल प्रथम आई थीं, बल्कि दोनों इतने ज्यादा अंक हासिल किए थे, जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
सुमन को इस परीक्षा के उत्तीर्ण न होने का इतना दुख नहीं था, जितना अफसोस इस बात का था कि जैसा सुशीला ने कहा था, वैसा ही हुआ था. यह एक बड़ी ज्यादती थी, जिस के बल पर जिंदगी में ऊंचा उठने के काबिल लोगों के भविष्य से सरेआम खिलवाड़ किया जा रहा था.
सुमन ने इस मुद्दे पर काफी गहराई से सोचा. उन के पास न केवल सुशीला द्वारा गलती से भेजी गई औडियो क्लिप थी, बल्कि बाद में भी उस के साथ हुई बात की कई टेलीफोनिक काल्स थीं, जो उन्होंने रेकौर्ड की थीं. आखिर उन से रहा नहीं गया और जुटाए गए सबूतों के साथ उन्होंने इस संबंध में अपनी एक याचिका पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में दायर कर दी. यह याचिका हाईकोर्ट के वकील मंजीत सिंह के माध्यम से दाखिल की गई थी.
आखिर सुमन ने उठा ही लिया कानूनी कदम
हाईकोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए इस की गोपनीय तरीके से गहन जांच करवाई तो यह बात सामने आई कि इस घोटाले में मुख्यरूप से हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार डा. बलविंदर कुमार शर्मा शामिल थे. उन्हीं के पास परीक्षापत्र थे, जिन में से एक की कौपी करवा कर उन्होंने सुनीता को मुहैया करवा दी थी.
सुनीता सुशीला से मिल कर परीक्षार्थियों से संपर्क कर के डेढ़ करोड़ रुपयों में इस डील को अंतिम रूप देने लगी थी. रजिस्ट्रार का पद जज के पद के समानांतर होता है.
अपनी गहन छानबीन के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में डा. बलविंदर कुमार शर्मा, सुनीता और सुशीला के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर के इन्हें गिरफ्तार करने की संस्तुति दे दी.
इस तरह 19 सितंबर, 2017 को चंडीगढ़ के सेक्टर-3 स्थित थाना नौर्थ में भादंवि की धाराओं 409, 420 एवं 120बी के अलावा भ्रष्टाचार अधिनियम की धाराओं 8, 9, 13(1) व 13(2) के तहत तीनों आरोपियों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज हो गई.
हाईकोर्ट के आदेश पर ही इस केस की जांच के लिए चंडीगढ़ पुलिस के नेतृत्व में स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम का गठन कर दिया गया. इस एसआईटी में डीएसपी कृष्ण कुमार के अलावा थाना नौर्थ की महिला एसएचओ इंसपेक्टर पूनम दिलावरी को भी शामिल किया गया था. एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद डा. बलविंदर कुमार को उन के पद से हटा दिया गया. 28 दिसंबर, 2017 को उन के अलावा सुनीता को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
डा. बलविंदर जहां जज के पद का रुतबा हासिल किए हुए थे, वहीं सुनीता भी वकालत करती थी. लिहाजा पुलिस द्वारा इन से सख्त तरीके से पूछताछ करना संभव नहीं था. मनोवैज्ञानिक आधारों पर ही पूछताछ कर के इन्हें न्यायिक हिरासत में भिजवा दिया गया. सुशीला अभी तक पकड़ में नहीं आई थी.
14 जनवरी, 2018 को उसे भी उस के पंचकूला स्थित आवास से गिरफ्तार कर लिया गया. उसे अदालत में पेश कर के कस्टडी रिमांड में लिया गया. पुलिस ने उस से गहनता से पूछताछ की.
आज जहां हर केस की एफआईआर पुलिस की वेबसाइट पर उपलब्ध हो जाती है, इस मामले को सेंसेटिव केस की संज्ञा देते हुए इस की एफआईआर जगजाहिर नहीं की गई थी. पुलिस पत्रकारों से बचते हुए इस केस की छानबीन का काम निहायत होशियारी से करती रही. इस मामले में किस ने कितना पैसा लिया, किस ने दिया और किस से कितना रिकवर किया गया, आदि मुद्दों की जानकारी पुलिस ने सामने नहीं आने दी.
हाईकोर्ट के आदेश पर जज के पद की यह प्रारंभिक परीक्षा पहले ही रद्द कर दी गई थी. थाना पुलिस ने तीनों अभियुक्तों के खिलाफ अपनी 2140 पेज की चार्जशीट अदालत में पेश कर दी है. अन्य केसों के आरोपियों की तरह इस केस के आरोपी भी अपने को बेकसूर कह रहे हैं. किस का क्या कसूर रहा, इस घोटाले में किस की क्या भूमिका रही, इस का उत्तर तो केस का फैसला आने पर ही मिल पाएगा.
बहरहाल, जज जैसे अतिप्रतिष्ठित पद के साथ भ्रष्टाचार का ऐसा खिलवाड़ किसी त्रासदी से कम नहीं.
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परसराम महावर का परिवार हर तरह से खुशहाल था, जो भोपाल की सिंधी बाहुल्य बैरागढ़ स्थित राजेंद्र नगर के एक छोटे से मकान में रहता था. परसराम कपड़े की दुकान में काम करता था. बैरागढ़ का कपड़ा बाजार देश भर में मशहूर है, यहां देश के व्यापारी थोक और फुटकर खरीदारी करने आते हैं. परसराम सुबह 8-9 बजे दुकान पर चला जाता था और देर रात लौटना उस की दिनचर्या थी. घर में उस की 30 वर्षीय पत्नी कविता (बदला नाम) और 2 बच्चे 10 साल की कनक और 8 साल का बेटा कार्तिक था, जिसे भरत भी कहते थे.
सुबह के वक्त दोनों बच्चों को स्कूल भेज कर कविता घर के कामकाज में जुट जाती थी और दोपहर 12 बजे तक फारिग हो कर या तो पड़ोस में चली जाती थी या फिर अपने मोबाइल फोन पर गेम खेल कर वक्त गुजार लेती थी. दोपहर ढाई बजे बच्चे स्कूल से वापस आ जाते थे तो वह फिर उन के कामों में व्यस्त हो जाती थी. इस के बाद बच्चों के खेलने और ट्यूशन पढ़ने का वक्त हो जाता था.
एक लिहाज से परसराम और कविता का घर और जिंदगी दोनों खुशहाल थे, उस की पगार से घर ठीकठाक चल जाता था. शादी के 12 साल हो जाने के बाद पतिपत्नी का मकसद बच्चों को पढ़ालिखा कर कुछ बनाने भर का रह गया था. इन लोगों ने अपने बच्चों को नजदीकी क्राइस्ट स्कूल में दाखिल करा दिया था. हर मांबाप की तरह इन की इच्छा भी बच्चों को अंगरेजी स्कूल में पढ़ाने की थी, जिस वे फर्राटे से अंगरेजी बोलने लगें. कनक और कार्तिक जब स्कूल की यूनिफार्म के साथ टाई बेल्ट और जूते पहन कर जाते थे, तो परसराम के काम करने का उत्साह और बढ़ जाता था.
कपड़े की दुकान का काम कितना कठिन होता है, यह परसराम जैसे लोग ही बेहतर जानते हैं जो दिन भर ग्राहकों के सामने कपड़ों के थान और पीस खोल कर रखते हैं, फिर वापस तह बना कर उन्हें उन की जगह पर जमाते हैं. सीजन के दिनों में तो कर्मचारी कमर सीधी करने और बाथरूम जाने तक को तरस जाते हैं. सालों से कपड़े की दुकान में काम कर रहे परसराम को अपनी नौकरी से कोई शिकायत नहीं थी. रात को घर लौट कर उस की थकान बच्चों की बातों और खूबसूरत पत्नी के होंठों की मुसकराहट देख कर गायब हो जाती थी.
अच्छीभली गृहस्थी थी कविता और परसराम की
कविता कुशल गृहिणी थी, जो किफायत से खर्च कर के घर चला लेती थी. वह दूसरी औरतों की तरह फिजूलखर्ची नहीं करती थी. 12 साल के वैवाहिक जीवन में उस ने पति को किसी भी शिकायत का मौका नहीं दिया था. इस बात पर परसराम को गर्व भी होता था और पत्नी पर प्यार भी उमड़ आता था.
कुल जमा परसराम अपनी जिंदगी से खुश था, लेकिन बीती 8 जनवरी को उस की इन खुशियों को ऐसा ग्रहण लगा, जिस से शायद ही वह जिंदगी में कभी उबर पाए. उस दिन दोपहर करीब 3 बजे उस के पास कविता का फोन आया कि कनक तो आ गई है, लेकिन कार्तिक स्कूल से वापस नहीं लौटा है. फोन सुनते ही वह घबरा कर घर की तरफ भागा.
कनक और कार्तिक दोनों एक ही औटो से स्कूल आतेजाते थे. दोनों के आनेजाने का वक्त तय था, सुबह 8 बजे जाना और दोपहर ढाई बजे लौट आना. लेकिन उस दिन कविता जब रोजाना की तरह घर के दरवाजे पर आई तो कविता ने कनक के साथ कार्तिक को नहीं देखा.
‘‘भाई कहां है?’’ पूछने पर कनक ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि वह तो नहीं आया. क्यों नहीं आया, इस सवाल का कनक कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाई तो कविता घबरा उठी.
इस पर उस ने औटो वाले से पूछा तो उस ने भी हैरानी से बताया कि आज तो कार्तिक स्कूल में दिखा ही नहीं और जल्दबाजी में उस ने भी ध्यान नहीं दिया.
इन जवाबों पर कविता को गुस्सा तो बहुत आया कि कार्तिक को छोड़ने की लापरवाही क्यों की, पर इस गुस्से को रोक कर उस ने पहले पति को फोन किया, फिर यह सोच कर बेचैन निगाहों से सड़क को निहारने लगी कि शायद कार्तिक आता दिख जाए.
हो न हो, वह बच्चों के साथ खेलने के कारण औटो में बैठना भूल गया हो या फिर स्कूल में ही किसी काम से रुक गया हो. कई तरह की शंकाओं, आशंकाओं से घिरी कविता परसराम के आने तक बेटे की सलामती की दुआ मांगती रही.
कोई खास वजह थी, जिस से परसराम और कविता दोनों जरूरत से ज्यादा आशंकित हो उठे थे. परसराम ने घर आतेआते फोन पर अपने भाई दिलीप को यह बात बताई तो वह भी चंद मिनटों में राजेंद्रनगर आ पहुंचा.
दोनों भाई भागेभागे क्राइस्ट मेमोरियल स्कूल पहुंचे और कार्तिक के बारे में पूछताछ की. वहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड और स्कूल स्टाफ ने बताया कि कार्तिक तो वक्त रहते चला गया था. इस जवाब पर परसराम का झल्लाना स्वाभाविक था, लेकिन स्कूल वालों से बहस करने के बजाय उस ने कार्तिक को ढूंढना ज्यादा बेहतर समझा और दोनों भाई उसे इधरउधर ढूंढने लगे. उन्होंने स्कूल से घर तक का रास्ता भी छाना. कई लोगों से कार्तिक के बारे में पूछताछ भी की लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.
एक घंटे की खोजबीन के बाद परसराम ने बैरागढ़ थाने जा कर बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी, जो एक जरूरी औपचारिकता वाली बात थी. कार्तिक को जान से भी ज्यादा चाहने वाले परसराम को चैन नहीं मिल रहा था, इसलिए रिपोर्ट दर्ज करने के बाद वह फिर बेटे को तलाशने में लग गया. उस ने बैरागढ़ की कोई गली नहीं छोड़ी.
लाश बन कर मिला मासूम बेटा कार्तिक
बैरागढ़ थाने के टीआई सुधीर अरजरिया गुमशुदगी की रिपोर्ट पर कोई काररवाई कर पाते, उस के पहले ही उन के पास एक फोन आया. थाने से करीब 17 किलोमीटर दूर मुबारकपुर इलाके के टोल नाके के कर्मचारियों ने उन्हें फोन कर के बताया कि वहां संदिग्ध हालत में एक बोरी पड़ी है. बोरी के बारे में जो बताया गया था, उस से लग रहा था कि उस में किसी बच्चे की लाश है. मुबारकपुर, परवलिया थाना इलाके में आता है.
चूंकि परसराम ने कार्तिक के स्कूल से लापता होने की रिपोर्ट लिखाई थी, इसलिए पुलिस वालों को शक हुआ कि कहीं कार्तिक के साथ कोई हादसा न हो गया हो. पुलिस ने परसराम को फोन कर के तुरंत थाने बुलाया और जीप में बैठा कर मुबारकपुर की तरफ रवाना हो गए.
13 किलोमीटर का यह सफर परसराम के लिए 13 साल जैसा गुजरा. मन में आशंकाएं आजा रही थीं कि कार्तिक के साथ कहीं कोई अनहोनी न हुई हो.
मुबारकपुर पहुंच कर जब उन के सामने बोरी खोली गई तो परसराम की सांसें रुक सी गईं. बोरे में उन के मासूम बेटे कार्तिक की ही लाश थी. लाश स्कूल यूनिफार्म में ही थी और गले में आईकार्ड भी लटक रहा था. आईकार्ड में दर्ज पता देख कर ही परवलिया पुलिस ने बैरागढ़ थाने को इत्तला दी थी.
कार्तिक का कत्ल हुआ है, यह जान कर पूरे बैरागढ़ में हाहाकार मच गया. धीरेधीरे लोग बैरागढ़ थाने पहुंचने लगे. हर किसी की जुबान पर स्कूल प्रबंधन की लापरवाही की बात थी. थाने में कविता और परसराम का रोरो कर बुरा हाल था. ऐसे में उन से ज्यादा सवाल पूछा जाना मुनासिब नहीं था, लेकिन बढ़ती भीड़ और उस के गुस्से को देख कर जरूरी हो चला था कि मासूम के कत्ल की गुत्थी जल्द से जल्द सुलझे.
जब पतिपत्नी थोडे़ सामान्य हुए तो पुलिस ने उन से पूछा कि क्या उन्हें किसी पर शक है? इस पर कविता एकदम फट पड़ी और सीधे अपने पड़ोस में रहने वाले विशाल रूपानी उर्फ बिट्टू पर शक जता दिया.
कविता के बताए अनुसार, विशाल उस के दोनों बच्चों को घर पर ट्यूशन पढ़ाने के लिए आता था. धीरेधीरे कविता पर उस की नीयत खराब हो गई और वह उस के साथ गलत हरकतें करने लगा. यह बात जब परसराम को पता चली तो उस ने विशाल का घर आना बंद कर दिया. हादसे के 2 दिन पहले ही परसराम और उस का भाई दिलीप विशाल को ले कर थाने आए थे, जहां सुलह हो जाने पर मामला रफादफा हो गया था.
वजह कुछ और ही थी कार्तिक की हत्या की
पुलिस के सामने अब सारी कहानी आइने की तरह साफ थी, लेकिन हालात ऐसे नहीं थे कि कविता से विस्तार से पूछताछ की जाती. दूसरे दिन सुबह को गुस्साए लोगों ने स्कूल का घेराव किया. लेकिन भीड़ को किसी तरह समझाबुझा कर शांत कर दिया गया. पुलिस वालों ने बेहतर यही समझा कि पहले कार्तिक का अंतिम संस्कार हो जाए, उस के बाद छानबीन की जाए. एक तरह से यह साबित हो गया था कि हत्यारा विशाल ही है. पुलिस ने उसे हादसे की रात ही गिरफ्तार कर लिया था.
इधर सुबह व्हाट्सऐप पर एक मैसेज वायरल हुआ तो हकीकत से अंजान भीड़ का गुस्सा स्कूल पर उतरने लगा. 9 जनवरी की सुबह भीड़ ने क्राइस्ट मेमोरियल स्कूल को घेर कर प्रदर्शन किया. स्कूल के सामने प्रदर्शन कर रहे लोग इस बात का जवाब चाहते थे कि कार्तिक के मामले में लापरवाही क्यों बरती गई. इसी दौरान परसराम की कहासुनी प्रिंसिपल डाक्टर मैनिज मैथ्यूज से भी हुई.
परसराम का आरोप था कि स्कूल प्रबंधन की लापरवाही के चलते ही कार्तिक का अपहरण हुआ. आरोप गलत नहीं था, लेकिन तब तक सच का कुछ हिस्सा भी वायरल होने लगा था. कार्तिक के पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने पूरी छानबीन के बाद जो बताया वह इस लिहाज से चौंका देने वाला था कि कविता और विशाल के नाजायज संबंध थे.
दरअसल, विशाल बच्चों को पढ़ातेपढ़ाते खुद कविता से किसी और विषय की ट्यूशन लेने लगा था. यह विषय था एक नवयुवक और गृहिणी के बीच का दैहिक आकर्षण जो अकसर ऐसे हादसों की वजह बनता है.
विशाल और परसराम के परिवारों के बीच काफी घनिष्ठ संबंध थे. साल 1997 के आसपास विशाल की मां अपने पति को छोड़ कर पिता के पास आ कर रहने लगी थी. तब विशाल पेट में था. परसराम का घर पड़ोस में था और दोनों परिवारों के बीच संबंध घर जैसे थे. विशाल की मां का अपने पति से इतना गहरा विवाद था कि वह दोबारा कभी पति के पास नहीं गई. वह पिता के पास ही रही और गुजारे के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगी थी. तब परसराम खुद एक स्कूली छात्र हुआ करता था.
गहरे और पुराने रिश्ते थे परसराम और विशाल के परिवार के
विशाल बड़ा हुआ और स्कूल होते हुए बैरागढ़ के ही साधु वासवानी कालेज में पढ़ने लगा. नौकरी के नाम पर वह बैरागढ़ के ही कृष्णा कौंप्लेक्स की एक दुकान में नौकरी करने लगा था. इधर कनक और कार्तिक को पढ़ाने के लिए परसराम ने उसे बतौर ट्यूटर रख लिया, क्योंकि एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा था.
पहले तो परसराम के घर उस का कभीकभार ही आनाजाना होता था, लेकिन जब वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने आने लगा तो रोजरोज उस का सामना कविता से होने लगा. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी कविता का यौवन ढला नहीं था. विशाल रोजाना अपनी पड़ोसन भाभी को देखता तो उस के मन में कुछकुछ होने लगा.
यह प्यार था या शारीरिक आकर्षण, यह तय कर पाना मुश्किल है. 19 साल की उम्र आजकल के लिहाज से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं होती. विशाल की चाहत कविता के प्रति बढ़ने लगी. जब भी वह कनक और कार्तिक को पढ़ाने के दौरान भाभी को देखता था तो उस के नाजुक अंग देख कर रोमांचित और उत्तेजित हो जाता था.
इस के पहले विशाल कभी किसी महिला के इतने नजदीक नहीं आया था, जितना पिछले कुछ दिनों के दौरान कविता के करीब आ गया था. आखिर एक दिन उस ने कविता के सामने अपना प्यार जता ही दिया. उम्मीद के मुताबिक कविता गुस्सा नहीं हुई तो नए जमाने और माहौल में बड़े हुए विशाल को समझ आ गया कि दांव खाली नहीं गया है.
कविता सब कुछ समझते हुए भी मुंहबोले देवर के साथ नाजायज संबंधों की ढलान पर फिसली तो इस की वजह एक नया अहसास था, जो उस के तन और मन दोनों को झिंझोड़ रहा था.
परसराम रोज सैकड़ों ग्राहकों को डील करता था, लिहाजा पत्नी के नए हावभाव उस से छिपे नहीं रहे. पहले तो उस ने खुद को समझाने की कोशिश की कि यह उस की गलतफहमी और फिजूल का शक है, पर कुछ था जो उस के शक को बारबार कुरेद रहा था.
विशाल कुछ और सोचता था, कविता कुछ और
इधर विशाल की हालत खस्ता थी, जिसे वाकई कविता से प्यार हो गया था. वह चाहता था कि कविता पति को छोड़ कर उस से शादी कर ले. इस बचकानी पेशकश से कविता वाकिफ हुई तो सकते में रह गई. विशाल संबंधों को इतनी गंभीरता से लेगा, इस का अंदाजा या अहसास उसे नहीं था.
उस ने अपने इस नासमझ आशिक को समझाने की कोशिश की, पर यह खुल कर नहीं कह पाई कि तुम्हारे मेरे संबंध सिर्फ मौजमस्ती के हैं. एक 2 बच्चों की मां और किसी की जिम्मेदार पत्नी सुख और संतुष्टि के लिए शारीरिक संबंध तो बना सकती है, पर उम्र में 11 साल छोटे प्रेमी से शादी नहीं कर सकती.
विशाल कविता पर पति की तरह हक जमाने लगा था. उसे दुनियादारी से ताल्लुक रखने वाली बातों से कोई मतलब नहीं था. उस ने कविता को एक तरह से चेतावनी दे दी थी कि या तो वह उस से शादी कर ले, नहीं तो ठीक नहीं होगा. जबकि कविता अपने आप को चक्रव्यूह से घिरा पा रही थी, जिस से बाहर निकलने का एकलौता रास्ता उसे अपने उस पति में दिखा, जिस के साथ वह बेवफाई कर चुकी थी.
परसराम को शक हुआ या खुद कविता ने उस से अपनी तरफ से विशाल के बारे में कुछ शिकायत की, यह तो अब राज ही रहेगा, लेकिन परसराम ने सख्ती से विशाल के अपने घर आने पर पाबंदी लगा दी. इस से विशाल तिलमिला उठा. परसराम उसे अब रिश्ते का पड़ोस वाला बड़ा भाई नहीं, बल्कि दुश्मन नजर आने लगा था.
कविता ने अपनी चाल तो चल दी, लेकिन विशाल की मजबूत गिरफ्त वह भूल नहीं पा रही थी. लिहाजा अब वह दूसरी गलती चोरीछिपे विशाल से मिलने और फोन पर लंबीलंबी बातें करने तथा उस से फिर से संबंध बनाने की कोशिश कर रही थी.
काश! कविता अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगा लेती
एक पुरानी कहावत है कि चोरी के आम छांट कर नहीं खाए जाते, कविता की मंशा यह रहती थी कि विशाल उसे रौंदने के बाद चला जाए और विशाल था कि उस के साथ रोमांटिक बातें करता रहता था. मजबूरी में कविता को उस की रूमानी बातों की हां में हां मिलानी पड़ती थी.
इस से विशाल को लगा कि कविता उसे वाकई चाहती है, लिहाजा उस ने फिर अपनी शादी की पुरानी पेशकश दोहरा दी. दोनों कुछ तय कर पाते, इस के पहले ही परसराम ने दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया.
6 जनवरी को भी विशाल और कविता घर के पीछे के खेत में मिल रहे थे. तभी परसराम और उस का भाई दिलीप वहां आ गए और विशाल की पिटाई कर दी. दोनों उसे थाने भी ले गए, जहां विशाल की बेइज्जती हुई.
उस वक्त कविता का रोल और बयान अहम थे, जिस ने विशाल पर परेशान करने का आरोप लगा डाला तो प्यार की परिभाषा और भाषा न समझने वाला यह नौजवान आशिक तिलमिला उठा. उसे अब समझ आया कि कविता दरअसल उसे मोहरा बनाए हुए थी. वह उस का प्रेमी नहीं, बल्कि हवस पूरी करने वाली एक मशीन भर था.
अब उसे याद आ रहा था कि जबजब भी उस ने शादी की बात कही थी, तबतब कविता पतिबच्चों और गृहस्थी की दुहाई दे कर मुकर जाती थी. लेकिन आज तो उस ने अपनी असलियत ही दिखा दी थी.
थाने में खुद को बेइंतहा बेइज्जत महसूस कर के ही विशाल ने ठान लिया था कि कविता को सबक सिखा कर रहेगा. इधर विशाल की मां ने परसराम को सालों के पारिवारिक संबंधों का वास्ता दिया तो उस ने उस के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिखाई और माफ कर दिया.
पर विशाल ने कविता को माफ नहीं किया था. वह बुरी तरह खीझा हुआ था और बदले की आग में जल रहा था. 8 जनवरी को दोपहर में वह कार्तिक के स्कूल गया और उसे साथ ले आया. कार्तिक के मना करने की कोई वजह नहीं थी, क्योंकि उस मासूम को तो मालूम ही नहीं था कि क्याक्या हो चुका है.
विशाल का निशाना बना मासूम कार्तिक
कार्तिक को स्कूल से वह 200 मीटर की दूरी पर कृष्णा कौंप्लेक्स में ले आया. उस वक्त दुकान के मालिक सचिन श्रीवास्तव किसी जरूरी काम से गए हुए थे. विशाल के सिर पर इस तरह वहशीपन सवार था कि उसे बच्चे की मासूमियत पर कोई तरस नहीं आया. उस के दिलोदिमाग में तो कविता की बेवफाई और 2 दिन पहले थाने में किया गया उस का दोगलापन घूम रहे थे. इसी जुनून में उस ने अपने जूते का फीता खोला और उस से ही कार्तिक का गला घोंट दिया.
नन्ही सी जान फड़फड़ा कर शांत हो गई. अब समस्या उस की लाश को को ठिकाने लगाने की थी. सचिन के आने के पहले जरूरी था कि यह काम कर दिया जाए. लिहाजा उस ने कार्तिक की लाश को औफिस में पड़ी पार्सल की पुरानी बोरी में ठूंसा और उसे घसीटता हुआ औफिस से बाहर ले आया. लाश भरी बोरी को उस ने सामान की तरह मोटरसाइकिल पर बांधा और मुबारकपुर टोल नाके से कुछ दूर फेंक आया. यह सारा नजारा कौंप्लेक्स में लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद हो गया था.
पकडे़ जाने के बाद विशाल ने कुछ छिपाया नहीं. जब थाने में उस का सामना कविता से हुआ तो वह बड़े खूंखार और सर्द लहजे में बोला, ‘‘तूने मुझे अपने इश्क में फंसा कर बरबाद कर दिया.’’
इस पर कविता ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि सिर झुकाए रोती रही. शायद अपनी हरकत और जान से प्यारे बेटे की हत्या पर, जिस की जिम्मेदार वह भी थी.
शुरुआत में गुनाह से अंजान बनते रहे विशाल ने पुलिस को यह भी बताया कि कविता कई बार उस के साथ सीहोर घूमने गई थी और कई दफा खुद फोन कर उसे प्यार करने यानी शारीरिक संबंध बनाने के लिए बुलाती थी.
विशाल अब जेल में है और उसे सख्त सजा मिलना तय है, पर जुर्म की इस वारदात में कविता की भूमिका भी अहम है. ऐसे नाजायज संबंधों पर बारीकी से सोचने की जरूरत है कि औरत को भी अभियुक्त क्यों न माना और बनाया जाए. यह ठीक है कि उस का प्रत्यक्ष संबंध अपराध से नहीं, पर कहीं न कहीं अपराधी को उकसाने की वजह तो वह थी ही.
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कासगंज की आग ठंडी हो चुकी है. इस के साथ ही साथ चंदन गुप्ता के परिवार के साथ खड़े होने वालों की तादाद भी अब नहीं के बराबर है. दंगे के समय जिस चंदन के शव को तिरंगे में लपेट कर शहीद का दर्जा दिया गया, उस पर उत्तर प्रदेश सरकार चुप है. चंदन की मां को लगता है कि अगर कासगंज में सांप्रदायिक आग नहीं भड़की होती तो उस के घर का चिराग नहीं बुझा होता. देश कासगंज की घटना को भूल सकता है, पर चंदन के परिवार को कासगंज का दंगा कलंक बन कर जीवन भर याद रहेगा.
25 जनवरी को चंदन गुप्ता अपने कुछ साथियों के साथ घर के बाहर बैठा था. वह जुझारू किस्म का युवक था, राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के नाम पर कुछ भी कुरबान करने को तैयार रहने वाला था. 26 जनवरी की पूर्वसंध्या पर वह सोच रहा था कि तिरंगा यात्रा कैसे निकाली जाएगी. शहर में धारा 144 लागू थी. कासगंज में मंदिर के सामने बैरिकेडिंग की वजह से 2 समुदायों के बीच तनाव था. चंदन ने अपने साथियों को समझाते हुए कहा कि अब प्रदेश में हमारी सरकार है. हम तिरंगा यात्रा निकालेंगे. हर युवक के मन में अपने देश और राष्ट्रीय झंडे को ले कर सम्मान था. चंदन की बात पर सब तैयार हो गए.
कासगंज के अमापुर में सुशील गुप्ता का परिवार रहता था. उन का घर गली के अंदर था. सुशील गुप्ता के परिवार में पत्नी संगीता और बेटी वंदना सहित 22 साल का बेटा अभिषेक था. सुशील गुप्ता का अपना बिजनैस है. बेटा अभिषेक गुप्ता उर्फ चंदन गुप्ता ‘संकल्प’ नाम की संस्था चलाता था.
वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा हुआ था. हिंदूवादी विचारधारा का प्रबल समर्थक. उस की संस्था में 20 से 30 युवक सक्रिय रूप से जुडे़ थे. ये सभी शहर में तमाम तरह की सामाजिक गतिविधियां चलाते थे.
26 जनवरी, 2018 को चंदन गुप्ता और उस के साथियों ने मोटरसाइकिल से तिरंगा यात्रा निकालने का संकल्प लिया. शुक्रवार को दिन में करीब 10 बजे चंदन गुप्ता और उस के कुछ साथी युवकों ने हिंदूवादी संगठनों के साथ तिरंगा यात्रा निकालने की शुरुआत की. ये लोग पूरे कासगंज में तिरंगा यात्रा निकालना चाहते थे. सरकार का प्रभाव होने के कारण तिरंगा यात्रा निकालने के लिए प्रशासन से अनुमति लेने की जरूरत नहीं समझी गई.
असल में अनुमति न लेने के पीछे जिले में फैला तनाव भी था. कासगंज में ही चामुंडा मंदिर है. यहां पर बैरिकेडिंग लगाने को ले कर 22 जनवरी से विवाद चल रहा था, जिस के चलते दोनों पक्षों में तनाव बढ़ा हुआ था. कासगंज जिला प्रशासन ने इस तनाव को गंभीरता से नहीं लिया था.
ऐसे में जब 26 जनवरी को 40-50 मोटरसाइकिलों के साथ तिरंगा यात्रा निकाली गई और उस में उत्तेजक नारे लगाए गए तो बडुनगर में दूसरे पक्ष के साथ तकरार शुरू हो गई. तकरार के कारणों पर लोगों के अलगअलग मत थे. कुछ लोगों का कहना था कि तिरंगा यात्रा में शामिल युवकों का यहां के लोगों से नारेबाजी को ले कर विवाद हुआ. पथराव के बाद तिरंगा यात्रा वाले लोग वापस चले गए.
ये लोग बडुनगर मोहल्ले से 500 मीटर दूर जा कर रुक गए और वहां से आधे घंटे के बाद फिर वापस आए. इस बार ये 20-25 लोग थे. नारेबाजी करते इन युवकों पर हमला शुरू हो गया, जिस में चंदन के कंधे पर और नौशाद नामक युवक के पैर में गोली लगी. चंदन की अस्पताल ले जाते समय ही मौत हो गई.
खबरों की गरमी ने बिगाड़ा माहौल
इस खबर के फैलते ही माहौल गर्म हो गया. पूरे कासगंज और हाईवे पर आगजनी, तोड़फोड़ और हिंसा की घटनाएं बढ़ गईं. स्थानीय लोगों के अनुसार यहां इस से पहले कभी भी ऐसा भयानक दंगा नहीं हुआ था. राममंदिर आंदोलन के दौरान भी ऐसी हिंसक घटनाएं नहीं घटी थीं.
यहां के लोग 25 साल के इतिहास में इसे सब से बड़ा दंगा मानते हैं. चंदन के पोस्टमार्टम से पता चला कि गोली कंधे की तरफ से लगी थी, जो शरीर में धंस गई. गोली किडनी में धंसी मिली, इस से लगता था कि गोली छत जैसी किसी ऊंची जगह से चलाई गई थी.
कासगंज दंगों को ले कर 2 मुकदमे दर्ज हुए. पहला मुकदमा इंसपेक्टर कासगंज की तरफ से आईपीसी की धारा 147/148/149/307/336/436/295/427/323/504 व 7 सीएल एक्ट के तहत 4 नामजद और करीब 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज हुआ.
दूसरा मुकदमा फायरिंग में मारे गए चंदन गुप्ता के पिता सुशील गुप्ता की तरफ से आईपीसी की धारा 147/148/149/341/336/307/302/504/506/12ए व राष्ट्रीय ध्वज अधिनियम के तहत दर्ज कराया गया.
चंदन की हत्या में वसीम नामक युवक का नाम आया, जो समाजवादी पार्टी से जुड़ा था. वसीम के पिता भी बिजनैसमैन हैं. कासगंज पुलिस ने सलीम नाम के युवक को पकड़ा. उस के बारे में भी कहा जा रहा है कि चंदन की हत्या में वह शामिल था.
कासगंज उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा जिला है. 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 2 हजार वर्ग किलोमीटर वाले कासगंज में मिश्रित आबादी है. यहां पर 66 फीसदी हिंदू और 32 फीसदी मुसलिम आबादी है. कासगंज शहर में रहने वाले ज्यादातर लोग कारोबारी हैं.
कासगंज स्टेट हाइवे-33, आगरा बदायूं और बरेली राजमार्ग पर बसा है. लोकल बोली में इसे मथुरा बरेली हाइवे कहते हैं. 1992 और उस के बाद 1994 में यहां सांप्रदायिक तनाव की वजह से तोड़फोड़ और आगजनी हुई थी. 2010 में तहसील परिसर में प्रशासन के द्वारा एक मंदिर के तोड़े जाने से तनाव फैला था. तिरंगा यात्रा का तनाव इन सब पर भारी पड़ गया. इस की वजह चामुंडा मंदिर में भड़का विवाद था. विवाद की यह आग अंदर ही अंदर सुलग रही थी.
पुलिस और प्रशासन इस की लपटों को समझने में असफल रहे. दोनों ही पक्ष किसी अवसर की तलाश में थे. चामुंडा मंदिर विवाद का गुस्सा तिरंगा यात्रा में खुल कर बाहर आ गया. अगर जिला प्रशासन ने चामुंडा मंदिर विवाद को देखते हुए सतर्कता बरती होती तो तिरंगा यात्रा में हिंसक वारदात नहीं होती.
दंगे के बाद खूब दिखा राजनीतिक ड्रामा
तिरंगा यात्रा में चंदन गुप्ता की मौत के बाद भड़काऊ राजनीति का दूसरा दौर चला, जिस के तहत चंदन गुप्ता के शरीर को तिरंगे से लपेटा गया और इसे सोशल मीडिया पर वायरल किया गया और 26 जनवरी को अखबारों के औफिस बंद रहते हैं. ऐसे में कासगंज और बाहर के लोगों को इस समाचार के बारे में सोशल मीडिया और खबरिया चैनलों से खबरें मिलनी शुरू हुईं. इन में तमाम खबरें बिना किसी आधार के चल रही थीं.
जिला प्रशासन ने सोशल मीडिया पर देर से काबू किया. तब तक आग भड़क चुकी थी. खबरिया चैनलों ने भी अपने हिसाब से खबरों को दिखाना शुरू किया. सब से अहम बात यह थी कि हर निष्पक्ष खबर या संदेश को राष्ट्रवादी विचारधारा के खिलाफ जोड़ दिया गया. इस में कासगंज गए मीडियाकर्मियों से ले कर प्रशासनिक अधिकारियों के सोशल मीडिया पर दिए गए संदेश शामिल थे. कुछ लोगों ने सही बात को रखने का प्रयास भी किया तो उन की बात को सुना ही नहीं गया.
कासगंज के पड़ोसी जिले बरेली के डीएम राघवेंद्र विक्रम सिंह ने अपने फेसबुक एकाउंट पर अपना दर्द बयान करते हुए सामाजिक संदेश में लिखा, ‘अजीब रिवाज बन गया है. पहले मुसलिम मोहल्ले में पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते घुस जाओ. क्या वे पाकिस्तानी हैं? बरेली के अलीगंज खैलम में ऐसा ही हुआ. इस के बाद मुकदमे कायम हुए.’
डीएम बरेली का यह संदेश कट्टरपंथियों को रास नहीं आया. सत्तापक्ष से ले कर कट्टरवादी संगठनों तक ने इस का विरोध करना शुरू कर दिया. ऐसे में मजबूर हो कर डीएम बरेली को फेसबुक से अपना संदेश हटाना पड़ा.
हालांकि जो बात बरेली के डीएम राघवेंद्र विक्रम सिंह ने कही, उस से कहीं कठोर शब्दों में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने कासगंज के दंगे को कलंक बताया. राज्यपाल खुद भाजपा के हैं. ऐसे में कट्टरवादी संगठन उन का विरोध नहीं कर पाए. हर बार की तरह कासगंज में भी सत्ता और विपक्ष ने अपनीअपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी शुरू कर दीं.
राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए जुलूस निकाल कर लोगों को उकसाने का काम हुआ. इस तरह की घटनाओं में शामिल युवाओं को यह देखनासमझना चाहिए कि प्रशासन कुछ दिनों के बाद सब कुछ भूल जाता है.
कासगंज के दंगों को ले कर बरेली के डीएम से ले कर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने जो कहा, वह सच है. राज्यपाल ने कासगंज के दंगों को कलंक कहा तो कोई नहीं बोला लेकिन डीएम के खिलाफ सत्ता से ले कर कट्टरवादी संगठनों ने मोर्चा खोल दिया. देखा जाए तो उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की टिप्पणी कुछ वैसी ही है, जैसी गुजरात में हुए दंगों के समय भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘राजधर्म’ के पालन की बात कही थी.
भाजपा के लोग डीएम की टिप्पणी को ले कर मुखर थे. लेकिन वे सांसद राजवीर सिंह, साध्वी निरंजन और विनय कटियार के बयानों पर चुप्पी साध गए. कासगंज में हुए हादसे को राष्ट्रधर्म से जोड़ कर जिस तरह से प्रचारित किया गया, उस से भावनाओं को भड़काने में मदद मिली.
लखीमपुर में रहने वाले अकरम की पत्नी अलीगढ़ में रहती थी. उस की पत्नी को बच्चा होने वाला था. अकरम कार से अलीगढ़ जा रहा था. कासगंज हाइवे पर दंगाइयों ने अकरम की कार को घेर कर तोड़फोड़ शुरू कर दी. अकरम को खूब मारापीटा, जैसेतैसे वह चोट लगने के बाद अस्पताल पहुंचा तो पता चला कि उस की दाहिनी आंख की रोशनी चली गई.
कासगंज के कलंक को कभी नहीं भूल पाएंगे चंदन के घर वाले
ऐसे लोगों की संख्या काफी है, जिस में बेगुनाह लोगों से मारपीट कर उन की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया. कासगंज की घटना को सांप्रदायिक रंग दे कर वोट बैंक की राजनीति करने से पूरे समाज को नुकसान हो रहा है. देश प्रेम के प्रदर्शन में जोरजबरदस्ती का कोई स्थान नहीं होना चाहिए. तिरंगा यात्रा के दौरान कार्यकर्ताओं का रंगढंग मुसलिम मोहल्ले के लोगों को रास नहीं आया. छोटी सी यह घटना दंगे में बदल कर ‘कासगंज का कलंक’ बन गई.
कासगंज में मारे गए चंदन गुप्ता के मातापिता और बहन दुखी हैं. मां संगीता गुप्ता को यकीन ही नहीं होता कि चंदन नहीं रहा. बहन वंदना ने पिता से साफ कह दिया है कि अगर वह सरकारी सहायता के 25 लाख रुपए लेंगे तो वह आत्महत्या कर लेगी.
चंदन की तरह तमाम युवक धार्मिक प्रचार में झोंक दिए जाते हैं, जो धर्म के नाम पर दोनों समुदायों की तरफ से जीनेमरने को तैयार रहते हैं. ऐसे युवकों को समझना चाहिए कि धर्म की घुट्टी अफीम के नशे से कम नहीं होती. चंदन गुप्ता के परिवार के साथ दिखी संवेदनाएं धीरेधीरे खत्म हो गईं, जिस के बाद साल दर साल पूरा परिवार केवल चंदन की याद में अंदर ही अंदर सुलगता रहेगा.
चंदन गुप्ता की मौत पर रोटियां सेंकने वाले तो बहुत थे, पर असल में मदद करने वाले नहीं दिखे. घटना के 10 दिन के अंदर ही चंदन के घर जाने वाले लोगों की संख्या कम होने लगी थी. जो नेता सहानुभूति के लिए उस के दरवाजे पर हर सूरत में आने को तैयार थे, अब उन की बात तक सुनने को तैयार नहीं हैं.
चंदन की मां अपनी बेटी के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने गईं. मुख्यमंत्री के साथ उन दोनों की मीटिंग हुई तो चंदन की मां और बहन ने दो मांगें रखीं. एक उन के परिवार की सुरक्षा, दूसरे चंदन को शहीद का दर्जा दिया जाना. मुख्यमंत्री ने सुरक्षा का वादा तो किया पर शहीद का दर्जा देने के सवाल पर कुछ नहीं क हा. इसे ले कर चंदन की मां और बहन दुखी हैं.
चंदन की मां और बहन का मानना है कि चंदन ने अपनी किसी लड़ाई में जान नहीं दी है. उस ने राष्ट्र और तिरंगे के सम्मान में जान दी है. मरते समय भी उस ने तिरंगे को अपने बदन से लपेट रखा था. ऐसे में सरकार को उसे शहीद का दर्जा दे देना चाहिए. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से इस बात का कोई भरोसा नहीं दिया गया.
कासगंज की आग भले ही बुझ गई हो, पर एक मां के दिल में दर्द की आग जिंदगी भर धधकती रहेगी. उस के मन में जीवन भर चंदन की याद बनी रहेगी.
वह सोचती है कि कासगंज की आग की ही तरह नफरत की आग बुझ जाए तो किसी मां की कोख सूनी नहीं होगी, किसी के घर का चिराग नहीं बुझेगा.
VIDEO : हाउ टू फिल इन आई ब्रोज यूसिंग पेंसिल, पाउडर एंड क्रीम
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पेमैंट ऐप आप के पर्स की तरह होता है. जिस तरह से आप अपने पर्स में पैसा रखते और खर्च करते हैं उसी तरह पेमैंट ऐप में भी पैसा रख कर खर्च कर सकते हैं. पेमैंट ऐप के खोने, जेब कटने या पर्स लूटे जाने का खतरा नहीं रहता. इस के बाद भी पेमैंट ऐप का प्रयोग सावधानी से करने की जरूरत होती है.
नेहा को रेलवे टिकट बुक कराना था. उस ने पेमैंट ऐप के जरीए रेलवे टिकट बुक करा लिया. अच्छी बात यह थी कि उस ऐप ने उस समय रेलवे टिकट की बुकिंग के लिए कैश बैक का औफर भी रखा था. ऐसे में नेहा को अपने टिकट पर छूट भी मिल गई.
ऐप्स के जरीए छोटीबड़ी हर तरह की खरीदारी संभव हो गई है. औनलाइन शौपिंग में बड़ी रकम से खरीदारी होती थी. ऐप पेमैंट सिस्टम कम समय में ही इतना लोकप्रिय हो गया कि यह छोटीबड़ी हर दुकान में उपलब्ध है. सब्जी की खरीदारी से ले कर बड़ी शौपिंग तक पेमैंट ऐप से होने लगी.
नेहा कहती है, ‘‘पेमैंट ऐप के जरीए खरीदारी करना आसान हो गया है. सब से अहम बात यह है कि अब चेंज की परेशानी नहीं रहती. शौपिंग मौल से ले कर हर जगह इस का प्रयोग किया जाता है.’’
पेमैंट ऐप का प्रयोग
पेमैंट ऐप को सरदर्द समझने वाली प्रेरणा कहती है, ‘‘डैबिट कार्ड से पेमैंट के समय यह खतरा रहता था कि कहीं कोई बैंक के खाते से पैसा न निकाल ले. अब पेमैंट ऐप में हम उतना ही पैसा रखते हैं जितने की शौपिंग करते हैं. ऐसे में पैसों के औनलाइन फ्रौड होने का खतरा नहीं रहता है. जब ऐप में पैसा कम हो जाए तो फिर पैसा डलवाया जा सकता है.
‘‘अब सभी कुछ औनलाइन होने के बाद पैसों को इधर से उधर करना सरल हो गया है. पेमैंट ऐप का प्रयोग औनलाइन शौपिंग के लिए ही होता है. ऐसे में यह बहुत सरल और सुविधाजनक होता है. अब अलगअलग तरह के बिल जैसे बिजली, पानी, पैट्रोल, फोन और रेलवे टिकट का भुगतान पेमैंट ऐप से होने लगा है. ऐसे में लाइन लगाने और धक्के खाने की जरूरत नहीं रह गई है.’’
तरहतरह के पेमैंट ऐप
आज के समय में बैंक और मोबाइल कंपनियां ही नहीं सरकार तक अपनेअपने पेमैंट ऐप ले कर आ गए हैं. ये लोग अपने पेमैंट ऐप को लोकप्रिय बनाने के लिए तमाम तरह की योजनाएं ले कर आ रहे हैं. इस के लिए मोबाइल पर पेमैंट ऐप को डाउनलोड किया जाता है. मोबाइल का नंबर ही पेमैंट ऐप का नंबर होता है.
बैंक के खाते की तरह इसे खोलने के लिए बहुत लिखापढ़ी की जरूरत नहीं होती है. पेमैंट ऐप चलाने वाली कंपनियां अपनी मार्केट को बढ़ाने के लिए तरहतरह के पैकेज ले कर आ रही हैं. ऐसे में उपभोक्ता को कई तरह के कैशबैक औफर्स का लाभ मिल जाता है.
सुविधाजनक और आसान
उपभोक्ता के लिए ही नहीं कंपनियों के लिए भी पेमैंट ऐप का प्रयोग सरल और सुविधाजनक हो गया है. अब पेमैंट ऐप को बैंक खाते से जोड़ दिया गया है, जिस से उपभोक्ता द्वारा दी गई पेमैंट ऐप से सीधे कंपनी के खाते में चली जाती है. कंपनियों के लिए यह सुविधा होने लगी है कि उन्हें बैंक में पैसा जमा करने के लिए कर्मचारी रखने और पैसा गिनने की जरूरत नहीं. सरकार ने भी पेमैंट ऐप को सुविधाजनक और कानूनी बना दिया है.
नोटबंदी के समय पेमैंट ऐप से उपभोक्ताओं को बड़ी मदद मिली. उन्हें अपने खर्च के लिए कैश की परेशानी से नहीं जूझना पड़ा. धीरेधीरे यह चलन बढ़ गया है. आज बड़ी संख्या में गृहिणियां भी इस का प्रयोग करने लगी हैं.
VIDEO : हाउ टू फिल इन आई ब्रोज यूसिंग पेंसिल, पाउडर एंड क्रीम
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