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किस चेहरे पर जंचता है कौन सा हेयरस्टाइल, हम बताते हैं

आप जब बालों का स्टाइल कट कराने जाती हैं तो आप के लिए सिर्फ यही जानना काफी नहीं है कि आप के बालों का टैक्स्चर कैसा है और आप को कितने लंबे या छोटे बाल चाहिए. कोई भी हेयरकट लेने से पहले अपने चेहरे के आकार को भी ध्यान में रखना चाहिए. ऐसा करने से हेयरस्टाइल आप पर हर तरह से जंचेगी, क्योंकि आप ऐसा तो चाहेंगी नहीं कि आप का चौड़ा माथा और चौड़ा लगे या आप का गोल चेहरा और गोल लगे. आखिर अपने बैस्ट फीचर्स को हाईलाइट करना ही तो ब्यूटीफुल दिखने का सीक्रेट है. कौन से फेस शेप पर किस तरह का हेयरस्टाइल सूट करता है, आइए जानते हैं:

हार्ट शेप फेस: ऐसे चेहरे पर क्राउन पर टौप नौट सुंदर दिखती है. सैंटर फ्लिक और सैंटर पार्टिंग भी ऐसे चेहरे पर जंचती हैं. गालों के दोनों तरफ ऊंचे कर्ल या फ्लिक (जो चिन को कवर न करें) ऐसे फेस पर जंचते हैं और चेहरा ओवल नजर आता है. जहां सैंटर पार्टिंग यानी बीच की मांग चौड़े फोरहैड पर ध्यान ले जाती है, वहीं बिना फेस फ्रेमिंग लेयर्स के लंबे बाल पतली चिन को हाईलाइट करते हैं, इसलिए इन से दूर रहें.

ओवल फेस: यह एक परफैक्ट फेस है. ऐसे चेहरे पर कोई भी हेयरस्टाइल अपनी पसंद के अनुसार किया जा सकता है. अगर आप एजी क्रौप हेयरकट कराने की सोच रही हैं तो बेझिझक ट्राई करिए. आप लौंग या शौर्ट कट में लेयर्स, बैंग्स, ब्लंट जैसा कोई भी स्टाइल कैरी कर सकती हैं. इस के अलावा हेयरस्टाइलिंग के लिए पोनी, कर्ल्स को भी अपना सकती हैं. फ्रैंच नौट, मैसी बन, डच ब्रेड और साइड पोनी बना कर आप जहां एक तरफ अपने चेहरे के फीचर्स को खूबसूरती के साथ हाईलाइट कर सकती हैं, वहीं दूसरी तरफ हर दिन एक नए अवतार में नजर भी आ सकती हैं.

राउंड फेस: ऐसे चेहरे की लंबाई और चौड़ाई एकसमान होती है और कानों और गालों की तरफ का एरिया काफी ब्रौड होता है, ऐसे में फेस को लंबा और पतला दिखाने के लिए आप को जरूरत है कम वौल्यूम वाले हेयर कट की. सौफ्ट लेयर्स में कंधों तक कटे हुए बाल इस फेस पर काफी फबते हैं.

इस के अलावा इनवर्ड कर्ल में ब्लो ड्रायर भी कर सकती हैं. फ्रंट पर ऊंचा पफ बना कर भी आप अपने चेहरे को लंबाई दे सकती हैं. राउंड शेप चेहरे पर बहुत छोटा हेयरकट न लें. स्ट्रेट बौक्स फ्रिंज और ब्लंट कट राउंड शेप फेस पर अधिक नहीं जंचते. हां, लोब आप पर फबेगा और अगर आप बहुत छोटा हेयरकट ही चाहती हैं तो बहुत सारी चोप्पी व स्पाइकी लेयर्स के साथ पिक्सी कट आप के चेहरे पर अच्छा लगेगा. अपने बालों को एकदम टाइट और स्लीक पोनीटेल में न बांधें, बल्कि कुछ बाल आगे की तरफ खुले छोड़ दें ताकि वे आप के चेहरे को फ्रेम कर सकें.

ओबलौंग फेस: यह फेस काफी हद तक ओवल फेस की तरह दिखता है, लेकिन ओवल से ज्यादा लंबा होता है. ऐेसे चेहरे पर जरूरत होती है एक ऐसे हेयरस्टाइल की, जो चेहरे की चौड़ाई को बढ़ा कर लंबाई को कम कर दे. लो साइड बन या बिना पार्टिंग की फ्रैंच चोटी ऐसे फेस पर सूट करती है. इस के अलावा रेजर या फैदर कट भी इस फेस पर काफी फबता है.

डायमंड फेस: इस चेहरे पर जरूरत होती है वौल्यूम को ऐड करने की. ऐसे में बालों को लेयर्स फौर्म में कटवा सकती हैं. इस से बाल घने नजर आते हैं और चीकबोंस कम नजर आने लगती है. इस के साथ ही लेयर कट और डिस्कनैक्शन कट भी ऐसे चेहरे के लिए अच्छे औप्शन हैं. मल्टीपल लेयर कट से फेस पर सौफ्टनैस नजर आती है और डिस्कनैक्शन कट से बालों की लैंथ बनी रहती है. फेस शेप के अनुसार छोटेछोटे फ्लिक भी मिल जाते हैं और चेहरे पर एक नया स्टाइल नजर आता है. फेस फ्रेमिंग लेयर्स के साथ शोल्डर लैंथ स्टाइल इस चेहरे पर शानदार लगते हैं. फ्रिंज और गर्ली ब्राइड्स स्ट्रौंग फीचर्स को सौफ्ट करने के लिए बहुत बढि़या स्टाइल्स हैं.

स्क्वेयर फेस: फोरहैड और जौ लाइन आमतौर पर एकसमान ही होती हैं. ऐेसे में कानों के नीचे से दिए गए वेव्स जौ लाइन की चौड़ाई को हलका कर देते हैं. इस के अलावा कर्ल्स, मैसी बन, शौर्ट स्पाइकी कट इस चेहरे के लिए परफैक्ट सलैक्शन होते हैं. चिन के आसपास लौंग फ्लिक या बौब कट अपना कर भी आप अपनी जौ लाइन पर जा रहे अटैंशन को खींच सकती हैं. बहुत छोटे हेयरस्टाइल्स आप के चेहरे के फीचर्स को बहुत अप्रिय दिखाएंगे और स्क्वेयर फेस शेप को और भी हाईलाइट करेंगे.

– इशिका तनेजा, ऐग्जीक्यूटिव डाइरैक्टर, एल्प्स कौस्मैटिक क्लीनिक

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ये आसान टिप्स अपनाकर चांदी की चमक ऐसे लाएं वापिस

अगर आप के घर में चांदी या तांबे की डैकोरेटिव आइटम्स हैं या फिर गहने, जो काले पड़ गए हैं और उन्हें पहनने को आप का मन नहीं करता, तो हम बता रहे हैं कि कैसे आप उन्हें घर में ही साफ कर एकदम नए जैसे बना सकती हैं.

सब से पहले क्या करें

सब से पहले आप घर में रखी तांबे की सभी डैकोरेटिव आइटम्स और चांदी के गहने को एक जगह इकट्ठा कर लें. फिर एक बाउल में नमक मिला गरम पानी लें. गरम पानी गहनों के हिसाब से लें. पानी न काम हो और न ही ज्यादा. नमक थोड़ा ज्यादा डालें. फिर काले पड़े गहनों और अन्य आइटम्स को गरम पानी में कुछ देर तक डाले रखें. उस के बाद किसी पुराने ब्रश से गहनों को रगड़ें. अच्छी तरह साफ करने के बाद गहनों को वापस उसी में डाल दे. थोड़ी देर बाद कपड़े से गहनों को अच्छी तरह पोंछ लें. आप के गहने नए गहनों की तरह चमक उठेंगे.

गहनों को चमकाने वाली पौलिश

अगर आप घर में ज्यादा मेहनत नहीं करना चाहती हैं तो बाजार से पौलिश भी खरीद सकती हैं. चांदी या फिर तांबे को चमकाने के लिए आजकल बाजार में कई तरह की पौलिश मिलती है. बस ध्यान रहे कि पौलिश अच्छी क्वालिटी की ही खरीदें.

अन्य तरीके

घर में बेकिंग सोडा तो रखा ही होगा. उसे गहनों को चमकाने के लिए इस्तेमाल करें. 1 लिटर पानी में 1 चम्मच बेकिंग सोडा डाल उस में सभी गहने डाल कर फौइल पेपर से साफ कर लें.

अपने गहनों को आप डिटर्जैंट से भी साफ कर सकती हैं. अगर डिटर्जैंट से साफ कर रही हैं तो गहनों को ब्रश से रगड़े. ऐसा गहने चमक उठेंगे.

इस के अलावा आप टोमैटो सौस का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. जी जां, वहीं टोमैटो सौस जिसे आप बड़े चाव से खाती हैं. टोमैटो सौस से गहने काफी अच्छी तरह साफ हो जाते हैं. काले पड़े गहनों में सौस लगाएं और फिर उन्हें रगड़ कर साफ करें. कुछ देर के लिए छोड़ दें. गहने चमक उठेंगे.

हैंड सैनेटाइजर और नीबू सोडा से भी आप गहनों की खोई चमक वापस पा सकती हैं. नीबू गहनों को साफ करने में काफी कारगर साबित होता है. इस से काफी हद तक गंदगी आसानी से साफ हो जाती है.

चांदी के गहनों की सही देखरेख

सभी गहनों को एक ही जगह साफ बैक्स में रखें. चांदी दूसरी धातुओं की तुलना में ज्यादा नर्म और संवदेनशील होती है. थोड़ी सी भी लापरवाही से यह काले पड़ सकते हैं, इसलिए चांदी के गहनों को रुई में लपेट कर साफ बौक्स में ही रखें. चांदी के गहनों को थोड़ेथोड़े अंतराल पर साफ करती रहें. जब भी गहनों को साफ कर लेंगे तो उन्हें मुलायम कपड़े से ही साफ करें.

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ऊंची जातियों की वजह से चारों ओर गंदगी

सफाई मुहिम के नाम पर चल रहा ‘स्वच्छ भारत अभियान’ बीते 3 साल में तकरीबन 6 अरब, 33 करोड़, 98 लाख रुपए खर्च कर चुका है. इस के अलावा ‘निर्मल गांव स्कीम’ में खरबों रुपए गंवई इलाकों में खप चुके हैं. इस के बावजूद गंदगी की समस्या जस की तस है. जहांतहां गंदगी के बड़ेबड़े अंबार दिखाई देते हैं. चंद जगहों को छोड़ कर ज्यादातर सार्वजनिक इलाकों में फैली गंदगी हमें आईना दिखाती है.

बसअड्डे, रेलवे स्टेशन, कचहरी,  सिनेमाहाल, सरकारी दफ्तर, गलीमहल्ले, फुटपाथ, फलसब्जी की मंडी वगैरह में धूलपत्थर, कीचड़ व कूड़ाकचरा फैला मिलता है. सार्वजनिक शौचालयों का तो बहुत ही बुरा हाल रहता है.

हम हिंदुओं को साफसुथरा दिखना तो भाता है, लेकिन खुद साफसफाई करने में शर्म महसूस होती है. गंदगी साफ करना तो दूर ज्यादातर लोगों को काम करने तक की आदत नहीं है.

गंदगी से है प्यार

साधुसंत, पंडेपुजारी और भिखारी जानबूझ कर गंदे बने रहते हैं. बदन पर राख लपेटना, सिर पर जटाएं रखना, दाढ़ीमूंछ बढ़ाना उन की पहचान बन गया है. हालांकि साफ रहना मुश्किल या महंगा नहीं है, लेकिन कारीगर, मिस्त्री, हलवाई, रिकशाठेली वाले और मजदूर गंदे रहने के आदी हैं. गंदी जगहों पर लगे खोमचों पर लोग खाते रहते हैं. सभी इस के आदी हो चुके हैं.

लोगों पर निकम्मापन इतना हावी है कि उन्हें गंदगी में रहना मंजूर है, लेकिन वे अपने आसपास सफाई नहीं करते.

धर्म और जाति के नाम पर सदियों तक ऊलजुलूल पट्टी पढ़ाने का नतीजा है कि ज्यादातर अगड़े, अमीर व पढ़ेलिखे लोग भी सफाई के कामों से बचते हैं और हुक्म दे कर कमजोर दलितों व मातहतों का जबरन शोषण करते रहते हैं.

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सफाई के दुश्मन

उन लोगों की गिनती कम नहीं है जो खुद गंदगी साफ करने को अपनी शानोशौकत के खिलाफ समझते हैं. जाति व्यवस्था के हिसाब से हमारे समाज में गंदगी साफ करने व सेवाटहल का जिम्मा उन जातियों को सौंपा गया जो सदियों से नीचे व पीछे रही हैं. ऊपर से जुल्म यह है कि वे लोग अगड़ों की गंदगी तो साफ करें, लेकिन खुद साफ न रहें.

दलितों को साफ रहने की कोई सहूलियत नहीं दी गई. उन्हें अपढ़, गंदा व अछूत बनाए रखने की मंशा से उन के पढ़नेलिखने, नहाने व साफ कपड़े पहनने तक पर पाबंदियां लगाई गईं. वे चारपाई पर नहीं बैठ सकते थे. उन्हें कुओं व नल से पीने या नहाने का साफ पानी तक नहीं भरने दिया गया. वे बैंडबाजे के साथ बरात नहीं निकाल सकते थे.

धर्म की आड़ में…

गंदा बनाए रखने की गरज से दलितों को बस्ती से बाहर ऐसी जगहों पर रहने को मजबूर किया गया, जहां इलाके का कूड़ा व मैला इकट्ठा होता था ताकि वे खराब आबोहवा में रह कर गंदे, बीमार और कमजोर बने रहें. पहले अगड़े व पंडेपुजारी ऐसा चाहते थे, अब नेता ऐसा चाहते हैं ताकि वोट पाने के लिए कमजोर तबकों को भेड़बकरी की तरह हांका जा सके.

पंडेपुजारी कहते हैं कि शूद्र जाति में जन्म लेना पिछले जन्मों में किए गए पापों का नतीजा है, इसलिए यह फल तो उन्हें भोगना ही पड़ेगा. उन्हें दबाए रखने के लिए उन से बेगारी कराई जाती थी और फिर बड़े अहसान के साथ उन्हें खाने के लिए बचीखुची जूठन, रहने के लिए जानवरों का तबेला व पहनने को फटीपुरानी उतरन थमा दी जाती थी.

यह सब इसलिए किया गया ताकि निचले तबके के लोग गंदगी व गुरबत में जीने के आदी हो जाएं. उन का जमीर मर जाए, खुद पर से यकीन उठ जाए और वे खुद को दूसरों के रहमोकरम पर छोड़ दें.

पिछड़ों के खिलाफ यह साजिश थी ताकि वे कमजोर रहें. चूंचपड़ करने की हिम्मत न करें. चुपचाप अगड़ों की गंदगी साफ करने के अलावा उन की खिदमत करें.

ऊंची जाति वाले एक ओर जल, वायु व अग्नि को देवता, धरती, गाय व गंगा को माता व पत्थर को भगवान कहते हैं, चूहे, कुत्ते व बैल को देवताओं का वाहन बता कर पूजते हैं, सब में भगवान व सब को बराबर मानने की दुहाई देते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसानों को शूद्र, चांडाल व नीच कह कर उन के साथ गैरबराबरी का शर्मनाक बरताव करते हैं. यह पाखंड है.

देश की गलत इमेज

चंद बड़े शहरों की चमचमाती सड़कों व अमीरों की पौश कालोनियों की बात अलग है, लेकिन सिर्फ उन से ही तो पूरे हिंदुस्तान की तसवीर नहीं बन सकती. गरीब लोग तो कम जगह व भारी गंदगी के चलते बदबूदार सीलन से भरे माहौल में सांस लेते हैं, जीते, खाते व रहते ही हैं, लेकिन गंदगी की एक बड़ी वजह यह भी है कि वे सफाई के बारे

में जागरूक दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए घरेलू, खेतीबारी व कलकारखानों से निकले कूड़ेकचरे का निबटारा सही नहीं होता.

ऊंची जाति के लोग आज भी यही मानते हैं कि सफाई के काम से उन का कोई लेनादेना नहीं है. गंदगी साफ करना सिर्फ दलितों की जिम्मेदारी है. अमीर मुल्कों में ऐसा नहीं है. सिंगापुर में कुत्ता घुमाने वाले लोग अपने साथ 2 पौलीथिन लाते हैं. एक हाथ में पहनते हैं और दूसरे में सड़क पर की गई कुत्ते की गंदगी उठा कर साथ ले जाते हैं.

अपने देश में उलटा चलन है. यहां दिल्ली सरकार के रैनबसेरों में मुफ्त में रात गुजारने वाले लोग बिना सोचेसमझे कहीं भी पेशाब या शौच करने बैठ जाते हैं. बेघर, बेकार, मुफ्तखोरों को सोने के साथ नाश्ते की सहूलियतें देने वाली सरकार को उन से कम से कम उस जगह के आसपास की गंदगी तो साफ करानी चाहिए जहां वे रहते व सोते हैं. ओहदेदारों को सफाई के मुद्दे पर झाड़ू हाथ में ले कर फोटो खिंचवाने का तो शौक है, लेकिन इस बारे में नया सोचने की फुरसत नहीं है.

बदइंतजामी का आलम

आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी इस बात से वाकिफ नहीं है कि गंदगी को दूर करने के लिए कचरे का निबटान कैसे किया जाना चाहिए? अमीर मुल्क कूड़ेकचरे को रीसाइकिल कर के बिजली, खाद व दूसरी कई चीजें बनाते हैं. नई तकनीक से कचरे को दोबारा इस्तेमाल करना जरूरी है, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं देता. नगरपालिका की गाडि़यां जब कचरा ढोती हैं तो अकसर वह पूरे रास्ते में बिखरता हुआ चला जाता है.

हमारे देश में एक ओर सुपर कंप्यूटर व मंगलयान की बातें होती हैं, वहीं दूसरी ओर बहुत से लोग साफसफाई के मामले में भी धार्मिक अंधविश्वासों के शिकार हैं. मसलन, हज्जाम के पास जाने के लिए भी दिन तलाशे जाते हैं. बहुत से लोग मंगल व शनिवार को बाल व नाखून कटाने से परहेज करते हैं.

तमाम औरतें गुरुवार को इसलिए सिर व कपड़े नहीं धोतीं कि ऐसा करने से पैसे का नाश होता है. ऐसी बातें सफाई से जुड़ी हमारी पिछड़ी सोच की बानगी हैं.

गंदगी की समस्या की जड़ में निकम्मापन तो है ही, हमारे धार्मिक अंधविश्वास भी इस की बड़ी वजह हैं. नतीजतन, नदियों में कलकारखानों के गंदे पानी के अलावा अधजली लाशें, पूजा का सामान व मूर्तियों का विसर्जन करने का चलन आज भी आम है.

लेकिन गंदगी की समस्या को दूर करना नामुमकिन नहीं है, बशर्ते सभी लोग मानें कि तरक्की के लिए खुद साफ रहना व अपने आसपास सफाई रखना जरूरी है.

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राजस्थान हाईकोर्ट में मनु की मूर्ति, इंसाफ के दरवाजे पर निशाना

राजस्थान देश का अकेला ऐसा राज्य है जिस के हाईकोर्ट में ‘मनुस्मृति’ लिखने वाले मनु की मूर्ति लगी हुई है. गौरतलब है कि ‘मनुस्मृति’ में औरतों व शूद्रों के बारे में बेहद गलत बातें लिखी गई हैं.

डाक्टर भीमराव अंबेडकर के मुताबिक, ‘मनुस्मृति’ जाति की ऊंचनीच भरी व्यवस्था को मजबूत करती है, इसलिए उन्होंने 25 दिसंबर, 1927 को सरेआम ‘मनुस्मृति’ को जलाने की हिम्मत दिखाई थी.

मगर यह बेहद दुख की बात है कि औरतों और दलितों के विरोधी और इनसानी बराबरी के दुश्मन मनु की मूर्ति कोर्ट में लगी हुई है, जबकि उसी कोर्ट के बाहर अंबेडकर की मूर्ति लगाई गई है जो अनदेखी का शिकार है.

मनु की इसी मूर्ति को ले कर राज्य में 28 साल बाद एक बार फिर से बवाल शुरू हो गया है. राज्य के दलित और महिला संगठनों ने मनु की मूर्ति को हाईकोर्ट से हटाने के लिए राज्यभर में आंदोलन का ऐलान किया है. इस बीच राजस्थान सरकार ने हाईकोर्ट में मनु की मूर्ति के बाहर भारी फोर्स तैनात की हुई है.

दलित और महिला संगठनों का कहना है कि जिस मनु ने औरतों और जाति व्यवस्था के बारे में एतराज वाली बातें कही हैं, उस की मूर्ति की छाया में हाईकोर्ट बिना किसी का पक्ष लिए फैसला कैसे दे सकता है?

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साल 1989 में न्यायिक सेवा संगठन के अध्यक्ष पदम कुमार जैन ने राजस्थान हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस एमएम कासलीवाल की इजाजत से मनु की इस बड़ी मूर्ति को लगवाया था.

तब राज्यभर में हंगामा मचा था और राजस्थान हाईकोर्ट की प्रशासनिक पीठ ने इसे हटाने के लिए रजिस्ट्रार के जरीए न्यायिक सेवा संगठन को कहा था, लेकिन तभी हिंदू महासभा की तरफ से आचार्य धर्मेंद्र ने मनु की मूर्ति हटाने के खिलाफ हाईकोर्ट में स्टे और्डर की याचिका लगा दी थी कि एक बार लगाई गई मूर्ति हटाई नहीं जा सकती.

तब से ले कर आज तक केवल 2 बार ही इस मामले की सुनवाई हुई है. जब भी सुनवाई होती है कोर्ट में टकराव का माहौल बन जाता है और मामला बंद कर दिया जाता है.

इस मामले में कोर्ट ने गृह विभाग के सचिव के जरीए नोटिस भेज कर भारत सरकार को भी पक्षकार बनाने को कहा था, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार खुद को इस विवाद से दूर रखे हुए है.

इनसानियत के माथे का कलंक

हाईकोर्ट के बिल्डिंग प्लान में ऊंचनीच व छुआछूत की जहरीली व्यवस्था के जनक मनु की मूर्ति लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं था. पर भारतीय सनातनी समाज के मन में मनु बहुत गहरे समाया रहा है, इसलिए जाति और वर्ण की ऊंचनीच भरी व्यवस्था को सही बताने वाले मनु को कभी महर्षि कहा जाता है, तो कभी वह भगवान मनु के रूप में इज्जत पाता है.

अंबेडकरवादी और प्रगतिशील मानवतावादी लोगों व दूसरे संगठनों ने मनु की मूर्ति के अनावरण के कार्ड छप कर बंट जाने के बावजूद 28 जून, 1989 को तब के कार्यवाहक चीफ जस्टिस मिलापचंद जैन के हाथों होने वाले अनावरण समारोह को नहीं होने दिया था. कुछ ‘भीम सैनिक’ तो रात के वक्त छैनीहथौड़े भी ले कर पहुंच गए थे लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके थे.

जब जयपुर हाईकोर्ट में लगाई गई मनु की मूर्ति का विरोध बढ़ा तो न केवल अनावरण रुका, बल्कि राजस्थान हाईकोर्ट की फुल बैंच ने प्रशासनिक मीटिंग में एक प्रस्ताव पास किया कि ‘मनु के प्रति कोई अनादर भाव रखे बिना ही इस मामले के विवाद को देखते हुए यह प्रस्तावित किया जाता है कि मूर्ति को राजस्थान हाईकोर्ट परिसर से हटा लिया जाए.’

अपने इस प्रस्ताव की पालना के लिए हाईकोर्ट की फुल बैंच ने राजस्थान हाईकोर्ट न्यायिक सेवा संगठन व लौयंस क्लब से गुजारिश की थी कि वे मूर्ति को हटा लें.

वे मूर्ति हटाते इस से पहले ही विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के सदस्य आचार्य धर्मेंद्र अपने पुरखे संघप्रिय मनु को बचाने के लिए इस मामले में कूद पड़े. आर्यसमाजी सामवेदी भी आ गए और अपनी लाश पर मूर्ति हटने की बात करने लगे.

मिलीभगत की मिसाल यह है कि जिस दिन स्टे के लिए याचिका लगी, उस के दूसरे ही दिन कोर्ट से स्टे भी मिल गया. तब से मनु की मूर्ति बिना लोकार्पित हुए ही यहां खड़ी है.

तमाम मनुवादी आज भी मनु के पक्ष में खुल कर खड़े हैं. पिछली सुनवाई 13 अक्तूबर, 2016 को हुई थी. राजस्थान हाईकोर्ट का नजारा देखने लायक था. बार तक जाति के आधार पर बंटा नजर आया. मनु समर्थक वकीलों ने विरोधी पक्ष के वकीलों को बोलने तक नहीं दिया था.

मनु विरोधियों का कहना है कि रोजरोज चिढ़ाते मनु का हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि मनुवाद फिर से बेहद मजबूत रूप से दोबारा उभर रहा है. इस की वजह यह है कि दलित बहुजनों को मनु, मनुस्मृति, मनुमूर्ति और मनुवाद से अब कोई तकलीफ नहीं लगती है. अब वे वारत्योहार बतौर रस्म ‘जय भीम’ व ‘जयजय भीम’ चिल्लाते हैं, मोटी तनख्वाह, तगड़ा फंड या बड़ा पद पाते हैं. उन के लिए अंबेडकर का दर्शन महज प्रदर्शन की चीज है. अब वे बाबा साहब अंबेडकर के नाम पर अपना मतलब साधने से नहीं चूकते हैं. यह अपराध पहले भी किया गया था और अब भी किया जा रहा है.

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क्या पत्रकारिता बन रही है पत्थरकारिता

न स्याही के हैं दुश्मन न सफेदी के हैं दोस्त,

हम को आईना दिखाना है दिखा देते हैं.

पत्रकारिता को ले कर कहा गया यह शेर देश के जानेमाने पत्रकारों द्वारा बड़ी शान के साथ अकसर उन के भाषणों में पढ़ा जाता रहा है. पर आज यही लाइनें अपने वजूद पर ही सवाल उठा रही हैं.

आज चारों तरफ यह सवाल किया जा रहा है कि क्या पत्रकार, संपादक, मीडिया ग्रुपों के मालिक व पत्रकारिता से जुड़े लेखक, स्तंभकार, समीक्षक वगैरह अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी के साथ निभा रहे हैं? क्या वाकई आज के दौर का मीडिया सरकार, शासनप्रशासन व सिस्टम को आईना दिखाने का काम ईमानदारी से कर रहा है?

क्या आज अपनी लेखनी, अपनी आवाज, अपनी नेकनीयती व पूरी जिम्मेदारी के साथ पत्रकारों द्वारा दर्शकों या पाठकों को ऐसी सामग्री परोसी जा रही है जिस से जनता को फायदा हो सके?

क्या लोकतंत्र का चौथा खंभा पूरी तरह से पक्षपाती तो नहीं हो चुका है? क्या ज्यादातर मीडिया ग्रुपों के मालिक पैसा कमाने की गरज से सत्ता की गोद में जा बैठे हैं? क्या आजकल एक अच्छे पत्रकार की कसौटी उस की काबिलीयत या पत्रकारिता की अच्छी जानकारी होने के बजाय उस का अच्छा दिखना, उस की खूबसूरती, उस के चीखनेचिल्लाने का ढंग व अपने मालिक के प्रति उस की वफादारी ही रह गया है?

आजकल टैलीविजन के खबरिया चैनलों को ही देखा जाए तो अनेक चैनलों के अनेक एंकर व खबरें पढ़ने वाले गंभीरता से अपना कार्यक्रम पेश करने के बजाय जानबूझ कर चीखनेचिल्लाने का नाटक करते देखे जा सकते हैं. किसी गंभीर बहस या किसी साधारण से मुद्दे को चीखचिल्ला कर व उस कार्यक्रम में भड़काऊ किस्म के सवाल दाग कर ये नए जमाने के एंकर महज अपने कार्यक्रम की टीआरपी बढ़ाना चाहते हैं. टीआरपी का बढ़ना या घटना अच्छी पत्रकारिता के लिए जरूरी नहीं है बल्कि यह कारोबार व मार्केटिंग से जुड़ी चीज है. पर टैलीविजन एंकरों के भड़काऊ व आगलगाऊ अंदाज ने इन दिनों जनता को अपनी ओर इस तरह खींच रखा है कि दर्शक दूसरे मनोरंजक कार्यक्रमों से ज्यादा अब टैलीविजन की खबरें सुनने व देखने लगे हैं. यही वजह है कि खबरें पेश करने के दौरान इन टैलीविजन चैनलों की मुंहमांगी मुराद पूरी हो रही है और बढ़ती टीआरपी की वजह से ही खबरें दिखाने के दौरान या किसी गरमागरम बहस के बीच उन्हें भरपूर इश्तिहार हासिल हो रहे हैं.

दूसरी ओर इन दिनों यह भी देखा जा रहा है कि ज्यादा से ज्यादा लेखक व पत्रकार सत्ता की खुशामद करने या उसे खुश करने में लगे हुए हैं. इन में से कई तो ऐसे भी हैं जो खुद को समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष या वामपंथी या मध्यमार्गी विचारधारा का लेखक तो बताते हैं, पर अगर आप उन की टैलीविजन पर बहस सुनें या उन की लेखनी पढ़ें तो आप को यही पता चलेगा कि ऐसे कई लोग किसी अवार्ड या दूसरे लालच में सत्ता की भाषा बोलते दिखाई देने लगते हैं.

पत्रकारों के इसी लालच व मीडिया ग्रुपों के मालिकों की सौ फीसदी होती जा रही कारोबारी सोच ने ही ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि अब पत्रकारिता को ‘पत्थरकारिता’ कहना ही ज्यादा ठीक लगता है.

अगर आप को उकसाऊ व भड़काऊ पत्रकारिता के कुछ जीतेजागते उदाहरण देखने हों तो अनेक टैलीविजन चैनलों के कार्यक्रमों के शीर्षक से ही यह पता चल जाएगा कि फलां कार्यक्रम में क्या पेश किया जाने वाला है. उदाहरण के तौर पर ‘हल्ला बोल’, ‘सनसनी’, ‘दंगल’, ‘टक्कर’, ‘ताल ठोंक के’ जैसे कार्यक्रमों के शीर्षक क्या पत्रकारिता के उसूलों पर खरा उतरते हैं? या फिर नमकमिर्च लगे हुए ऐसे शीर्षक केवल टीआरपी बढ़ाने के लिए बनाए जाते हैं?

जाहिर है कि जब शीर्षक ऐसे होंगे तो कार्यक्रम पेश करने वाला इस शीर्षक व अपने मालिक की टीआरपी बढ़ाने के मकसद से अपनी बात शालीनता के साथ कहने के बजाय गरजता और बरसता हुआ ही दिखाई देगा.

सूत्र तो यह भी बताते हैं कि टैलीविजन पर होने वाली कई बहसों खासतौर पर मंदिरमसजिद, हिंदूमुसलिम, तीन तलाक के मुद्दे के अलावा दूसरे धार्मिक मुद्दों जैसे गाय, गंगा, लव जिहाद, गौरक्षक वगैरह में एंकरों द्वारा जानबूझ कर कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों से ऐसे सवाल किए जाते हैं जिस से उन्हें गुस्सा आए और वे ऐसे जवाब दे डालें जो झगड़े की वजह बन सकें.

टैलीविजन पर जब कभी 2 पक्ष आपस में किसी मुद्दे पर बहस में भिड़ जाते हैं उस समय एंकर की ओर से उन्हें और ढील दे दी जाती है, जबकि अगर एंकर चाहे तो उसी समय उन का माइक बंद कर सकता है और दूसरे मेहमान की ओर रुख कर सकता है. पर एंकर जानबूझ कर 2 लोगों में बहस कराता है ताकि दर्शकों को उस चटकारेबाजी में मजा आ सके.

इन दिनों पूरे देश में ऐसे ही एक टैलीविजन शोमैन रोहित सरदाना के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा देखा जा रहा है. उस के खिलाफ सैकड़ों एफआईआर दर्ज होने की खबरें हैं. कई जगह हिंदूमुसलिम सभी ने मिल कर रोहित सरदाना के खिलाफ ज्ञापन दिए हैं.

फिल्म ‘पद्मावत’ को ले कर खड़े हुए बवाल के बारे में भी ऐसी ही बातें कही जा रही हैं. अगर आज पत्रकारिता भी इसी फार्मूले का सहारा ले कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है तो यह देश का सब से बड़ा नुकसान है. आज हमारे समाज में एकदूसरे के लिए बैर का ऐसा ही माहौल बनता दिखाई दे रहा है.

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तिकड़म से अमीरी

देश में जो भी अमीरी दिख रही है, वह साफसाफ गरीबों, मेहनतकश किसानों, छोटेमझोले व्यापारियों व उद्योगपतियों से लूटपाट कर जमा किए गए पैसों की है. 10-15 करोड़ के फ्लैट, 100 करोड़ के मकान, पर्सनल जैट, फाइवस्टार कल्चर, करोड़ों के जेवर पहने बीवियां अमीरों की सूझबूझ की देन कम, उन के संपर्कों की देन ज्यादा हैं. इस देश में सत्ताधारियों की आय जनता को कुछ नया, अनूठा, विलक्षण देने की नीयत नहीं है, बल्कि उसे लूटने के नए, अभिनव, उलझे हुए तरीके ढूंढ़ने की है.

देश में शुद्ध अमीर वे हैं जो जानते हैं कि अमीरी का रास्ता धर्म या राजनीति की देन है. नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विक्रम कोठारी, सुब्रत राय, यूनिटैक, किंगफिशर, आईपीएल, 2जी स्कैम, कौमनवैल्थ स्कैम, कोल स्कैम, व्यापमं स्कैम सभी घरघर मोदी की तरह घरघर की पहचान बने हुए हैं. दरअसल, सत्ता और श्रद्धा दोनों का पूरा उपयोग कर के  गैरकानूनी तरीके से पैसा बनाया जा रहा है, जनता को कुछ दे कर नहीं.

आम उत्पादक या व्यापारी सीमित पैसा ही कमा पाता है इस देश में. उस पर सरकार, बैंकों, इंस्पैक्टरों की इस बुरी तरह जकड़न रहती है कि वह न कुछ नया कर पाता है न संभल पाता है. उस के पास न नेताओं पर उड़ाने के लिए कुछ होता है, न बाबाओं पर. इन को मोटी आमदनी खास तिकड़मबाजों के माध्यम से होती है जो सिस्टम को अपने हिसाब से चला कर जनता की कमाई लूट लेते हैं. अगर 4-5 वर्षों में 100-200 में से एकदो पकड़े भी जाएं तो इसे आवश्यक रिस्क फैक्टर मान कर भुला दिया जाता है. मिलिट्री की भाषा में इसे कोलैट्रल डैमेज कहा जाता है. यह सिस्टम के उपयोग की खराबी नहीं, यह किसी के गड़्ढे में भूल से गिर जाने का मामला है.

वित्त मंत्री, प्रधानमंत्री चाहे चुप रहें, उपदेशात्मक या धमकीभरे शब्दों में कुछ कह दें, इस देश में यह चलता रहेगा क्योंकि हमारी संस्कृति में लूट, बेईमानी और भेदभाव रगरग में भरा है. यहां पूजा उन्हीं की होती है जो प्रपंचों से विजय पाते हैं. उन्हीं के नाम पर झगड़ा हो रहा है. हाल के ऐसे नाम पौराणिक युग के नामों की तरह के ही हैं.

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सोनिया गांधी के डिनर के बाद खुशी कम, गम ज्यादा

13 मार्च की रात सोनिया गांधी ने तमाम विपक्षी नेताओं को एक मंच पर लाने के लिए डिनर दिया था. सपा और बसपा ने भी इस रात्रिभोज में दूत भेजे थे. यह डिनर बंगाली बाबाओं के चमत्कारों सा साबित हुआ, चंद घंटों बाद ही उत्तर प्रदेश और बिहार से भाजपा नाम की बला छू हो गई, लेकिन इस में कांग्रेस के योगदान का जिक्र कहीं नहीं हुआ जिस ने भी उम्मीदवार उतारे थे. इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस अब, दौड़ तो दूर की बात है, घिसटने में भी नहीं है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भाजपा की हार पर खुश भी हो सकते हैं और दुखी भी. खुश इसलिए कि भाजपा अजेय नहीं है और दुखी इसलिए कि अब अगर कभी विपक्षी एकता को ले कर कोई डिनर या लंच हुआ तो मायावती और अखिलेश यादव की प्लेट में ज्यादा परोसना पड़ेगा खासतौर से मध्य प्रदेश में जहां सपा और बसपा दोनों 10-15 सीटें और इतने फीसदी ही वोट ले जाती हैं.

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भाईजान को मिली जमानत

बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान को आखिरकार काला हिरण शिकार मामले में जमानत मिल गई है. मामले की सुनवाई से पहले सत्र न्‍यायाधीश रवींद्र कुमार जोशी और सलमान को सजा सुनाने वाले सीजेएम देव कुमार खत्री के बीच चैंबर में बातचीत भी हुई. जिसके बाद सेशंस कोर्ट के जज रवींद्र जोशी ने ट्रांसफर होने के बावजूद सलमान की जमानत याचिका पर सुनवाई की.

बता दें कि सलमान पर यह फैसला आज (शनिवार 7 अप्रैल) लंच के बाद आने वाला था लेकिन लंच खत्म होने के बाद जज रविंद्र जोशी ने संदेश भिजवाया कि अब वो 3 बजे फैसला सुनाएंगे. इससे पहले कोर्ट रूम में सलमान के वकील और सरकारी वकील ने अपनी-अपनी दलीलें पेश की थीं.

खबरो के मुताबिक सलमान की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे जज साहब कोर्ट रूम में आए और उन्होंने पहले चारों तरफ देखा, छत को निहारा और कुछ देर चुप रहे. उन्हें इस तरह देख पूरे कोर्ट रूम में सन्नाटा पसर गया और इस बीच जज जोशी ने एक लाइन में कहा बेल ग्रांटेड. जज के इस फैसले के साथ ही कोर्ट रूम में बैठे सलमान के वकीलों सहित उनकी बहन अर्पिता और अल्विरा के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. फैसले के बाद बाहर आए सलमान के वकील हस्तीमल सारस्वत ने मीडिया से कहा कि हमें इंसाफ की उम्मीद थी, जो मिल गया है.

सलमान और सरकारी वकीलों की दलीलें

इससे पहले सुबह 10.30 बजे कोर्ट लगने के साथ ही जज ने दोनों ही पक्षों को फिर से अपनी दलीलें रखने के लिए कहा. इस दौरान सलमान के वकीलों ने अपनी बात दोहराते हुए कहा कि उन्हें गलत फंसाया जा रहा है. सलमान हर पेशी पर आए हैं आर्म्स एक्ट मामले में भी उन्हें निर्दोष ठहराया गया था ऐसे में उनकी सजा सस्पेंड की जाए.

वकीलों ने कहा कि अन्य आरोपियों की तरह सलमान खान को भी संदेह का लाभ मिलना चाहिए. इसके अलावा उनके वकील का कहना था कि इस फैसले को आने में 20 साल का समय लगा, ऐसे में उनके ये 20 साल भी सजा से कम नहीं थे. सलमान के वकीलों ने कोर्ट में पेश हुए गवाहों पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि वे भरोसे के लायक नहीं हैं. उन्होंने कहा कि सलमान के कमरे से हथियार नहीं मिले हैं, साथ ही उनकी जिप्सी को लेकर भी सवाल उठाए हैं.

वहीं सरकारी वकील ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मामला अन्य केसेस से अलग है और इसमें प्रत्यक्षदर्शी भी हैं ऐसे में सलमान को जमानत ना दी जाए क्योंकि वो दोषी हैं.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद जज रविंद्र जोशी ने कुछ देर रूककर कहा कि उनका ट्रांसफर हो चुका है ऐसे में वो केस को लेकर कोई फैसला नहीं दे सकते लेकिन जमानत को लेकर फैसला लंच के बाद सुनाएंगे.

मालूम हो राजस्थान में शुक्रवार रात एक साथ 87 जजों के तबादले कर दिए गए. इनमें जोधपुर सेशन कोर्ट के जज रवींद्र कुमार जोशी भी हैं. उनकी जगह चंद्रशेखर शर्मा को सेशन जज बनाया गया है. जज के ट्रांसफर के बाद सस्पेंस बना हुआ था कि क्या जज रविंद्र जोशी ही सलमान के केस पर फैसला देंगे या फिर किसी अन्य जज को केस ट्रांसफर करेंगे.

उल्लेखनीय है कि सलमान को जोधपुर के निकट कांकणी गांव में एक अक्टूबर, 1998 की रात दो काले हिरण की गोली मारकर हत्या करने के अपराध में दोषी ठहराया गया था. यह घटना “हम साथ साथ हैं” फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई थी. मामले में सलमान के साथी कलाकार सैफ अली खान, तब्बू, नीलम, सोनाली बेंद्रे और एक स्थानीय व्यक्ति दुष्यंत सिंह भी आरोपित थे, जिन्हें “संदेह का लाभ” देते हुए बरी कर दिया गया था.

मालूम हो कि इस मामले में सलमान को पांच साल जेल और दस हजार जुर्माने की सजा सुनाई गई थी. गौरतलब है कि जज जोशी ने जमानत पर शुक्रवार को फैसला शनिवार तक के लिए सुरक्षित कर लिया था. इसके बाद सलमान खान के वकील और सरकारी वकीलों की तमाम दलीलो के बाद सलमान को जमानत दे दी गई.

8 साल बाद फिर बड़े पर्दे पर दिखेगी अक्षय और ऐश की जोड़ी

बौलीवुड के खिलाड़ी अक्षय कुमार और खूबसूरत अदाकारा ऐश्वर्या राय बच्चन 8 सालों के बाद एक साथ बड़े पर्दे पर दिखने वाले हैं. खबरों के अनुसार बताया जा रहा है कि अक्षय और ऐश फिल्म ‘रोबोट’ के सीक्वल में नजर आएंगे. बता दें कि पहले ऐश्वर्या ने फिल्म ‘रोबोट’ में रजनीकांत के अपोजिट काम किया था.

लिहाजा, खबरों के मुताबिक रोबोट की सीक्वल 2.0 में भी ऐश एक खास कैमियो निभाने वाली हैं. सूत्रों के अनुसार, ऐश ने अपना कैमियो शूट भी कर लिया है. इस फिल्म में अक्षय कुमार मुख्य विलेन की भूमिका निभा रहे हैं. फिल्म में रजनी कांत भी मुख्य भूमिका में है. बताया जा रहा है कि 2.0 भारत की सबसे मंहगी फिल्म है.

एस शंकर के निर्देशन में बन रही यह फिल्म 450 करोड़ के भारी भरकम बजट पर तैयार हो रही है. अक्षय कुमार, रजनीकांत, एमी जैक्सन स्टारर यह फिल्म 2018 में ही रिलीज होने वाली है. हालांकि अभी तक रिलीज डेट की घोषणा नहीं की गई है.

खास बात यह है कि अक्षय और ऐश को दोबारा एक साथ बड़े पर्दे पर देखना काफी रोमांचक होगा. गौरतलब है कि अक्षय और ऐश्वर्या आखिरी बार 8 साल पहले फिल्म ‘एक्शन रिप्ले’ में नजर आए थे. इस फिल्म में नेहा धूपिया, किरण खेर, ओम पुरी, आदित्य राय कपूर, रणविजय, राजपाल यादव, रणधीर कपूर जैसे बड़े कलाकरो ने काम किया था.

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42 की उम्र में भी इतनी फिट और सेक्सी हैं सुष्मिता सेन

एक कहावत है कि खूबसूरती की न कोई सीमा होती है और न ही कोई उमर. यह लाइन भले ही सदियों पुरानी हो, लेकिन आज यह लाइन सुष्मिता सेन के ऊपर बिल्कुल फिट बैठती है. बौलीवुड अदाकारा सुष्मिता सेन की उम्र कहने को 42 वर्ष हो चुकी है लेकिन उनकी पर्सनैलिटी के हिसाब से देखा जाए तो उनके लिए उनकी उम्र सिर्फ एक नंबर भर है. इस उम्र में भी खुद को खूबसूरत और जवान रखना वह बखूबी जानती हैं. तभी तो 50 की दहलीज की तरफ बढ़ रहीं सुष्मिता हर बढ़ते दिन के साथ और ज्यादा फिट होती चली जा रही हैं.

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सुष्मिता ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर कुछ तस्वीरें और वीडियो शेयर किए हैं. इनमें वह वर्कआउट करती नजर आ रही हैं.सुष्मिता के इस तस्वीरों को शेयर करते ही उनके फैंस के कमेंट और शेयर की तो जैसे बाढ़ सी आ गई.

सुष्मिता ने जो तस्वीरें शेयर की हैं उसमें 6 पैक एब्स को बखूबी देखा जा सकता है. इस उम्र में भी सुष्मिता ने अपने 6 पैक एब्स को जिस तरह से मेनटेन किया हुआ है उसे देखकर किसी भी न्यूकमर अभिनेत्री के पसीने छूट जाएंगे.

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बता दें कि सुष्मिता अपनी फिटनेस को लेकर काफी अवेयर रहती हैं. फिगर मेटेंन करने के लिए वह अपने इन हाउस जिम में जमकर वर्क आउट करती हैं. उनकी एब्स को देख कर कहा जा सकता है कि सुष्मिता भले ही पिछले काफी वक्त से फिल्मी पर्दे से दूर क्यों ना हो लेकिन वह आज भी किसी भी फिल्मी प्रोजेक्ट के लिए पूरी तरह से फिट हैं.

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