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कोचिंग सेंटर्स का तनाव और सुसाइड के बढ़ते मामले

पिछले कुछ समय से कोचिंग सैंटर्स की मनमानी के कारण बढ़े तनाव की वजह से छात्रों द्वारा आत्महत्या किए जाने के मामले बढ़े हैं. राजस्थान के कोटा में ही अक्तूबर से दिसंबर 2015 के बीच कोचिंग सैंटर्स में पढ़ने वाले 7 छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के मामले सामने आए हैं. 2014 की तुलना में 2015 में स्टूडैंट सुसाइड रेट में 60% की वृद्धि हुई है. मैडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करने कोटा आ रहे छात्रों का शैड्यूल इतना टाइट है कि वे ठीक से सो भी नहीं पाते. हर कोचिंग स्टूडैंट को रोज 5-6 घंटे क्लास में बिताने होते हैं. इस   के अलावा उन का एक घंटा कोचिंग में ही डाउट क्लीयर करने में लग जाता है. इस के बाद, 4-10 घंटे तक स्टूडैंट घर पर पढ़ते हैं. ऐसे में उन के पास सोने के लिए भी पर्याप्त समय नहीं होता. सिर्फ कोटा में ही नहीं देशभर में कोचिंग ले रहे छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं में इजाफा हुआ है.

एक कोचिंग सैंटर के संचालक ने कोचिंग सिस्टम की खामियां स्वीकार की हैं. देशभर के युवाओं को यह गलतफहमी है कि वे अमुक कोचिंग सैंटर में ऐडमिशन लेंगे तो उन की सफलता तय है. हर मातापिता को अपने बच्चे की क्षमता और रुचि का पता होता है, लेकिन फिर भी वे अनावश्यक दबाव डाल कर उसे कोचिंग सैंटर भेजते हैं. छात्र जो पाना चाहते हैं वह नहीं मिलेगा तो उन में हताशा तो आएगी ही. जब छात्र वांछित सफलता प्राप्त नहीं कर पाते तो वे आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं.

कोचिंग एक कारोबार

कोचिंग एक कारोबार बन चुका है. 2014 में इस का कारोबार 1 हजार करोड़ रुपए के आसपास पहुंच गया था, जबकि 2015-2016 में इस के और अधिक बढ़ने का अनुमान है. कोचिंग सैंटर्स के खिलाफ संसद में भी आवाज उठी थी. एक सांसद ने तो ऐसे कोचिंग सैंटर्स को ऐजुकेशनल टैरेरिस्ट तक कहा. सरकार के पास कोचिंग सैंटर्स की जानकारी भी नहीं रहती. ऐसे कई सैंटर्स हैं जो बिना लाइसैंस व पंजीकरण के चल रहे हैं.

लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलकालेज में नहीं भेजना चाहते, लेकिन कोचिंग सैंटर जरूर भेजते हैं. दरअसल, अब देश की संस्कृति ‘सैकंड ओपीनियन’ संस्कृति बन गई है, जिस में पेरैंट्स को इस बात का डर रहता है कि अगर वे बच्चों को कोचिंग नहीं भेजेंगे, तो लोग क्या कहेंगे. कुछ कोचिंग इंस्टिट्यूट्स में 250 से 500 स्टूडैंट्स एकसाथ बैठते हैं. ज्यादातर कोचिंग सैंटर्स में जरूरत के मुताबिक टीचर्स नहीं होते. कोचिंग में टीचर्स सिर्फ लैक्चर दे कर चले जाते हैं. बच्चों को कुछ समझ नहीं आता तो वे बाहर जा कर काउंटर पर प्रौब्लम सौल्व कराते हैं.

कोचिंग सैंटर्स ने कक्षाओं के बाहर प्रौब्लम काउंटर्स बना दिए हैं. इन पर फ्रैशर स्टूडैंट्स बैठा दिए जाते हैं. छात्र को कक्षा में कुछ समझ नहीं आता तो उसे डाउट क्लीयर करने के लिए इन काउंटर्स पर भेज दिया जाता है यानी जिन मशहूर टीचर्स के नाम पर कोचिंग संस्थानों का नाम हो रहा है, वे छात्रों की समस्या हल करने के लिए उपलब्ध ही नहीं होते. प्रत्येक कोचिंग संस्थान में बैच में स्टूडैंट्स की संख्या तय होनी चाहिए तथा उस के अनुसार टीचर्स की संख्या तय होनी चाहिए. कुछ कोचिंग संस्थान छात्रों को आकर्षित करने के लिए लुभावने विज्ञापन देते हैं तथा अपनी उपलब्धियों का बखान करते हैं. इन में अधूरा सच होता है.

देशभर के कई मातापिता भले ही अपने बच्चों को आईआईटी या आईआईएम में पढ़ाने का सपना देखते हों, लेकिन कितने ही कोचिंग संचालकों के स्वयं के बच्चे जेईई या एआईपीएसटी में सलैक्ट नहीं हो पाते. कोचिंग सैंटर्स पर लगाम कसना बहुत जरूरी हो गया है वरना छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का सिलसिला थमने वाला नहीं है.

कोटा के कोचिंग संस्थानों में आत्महत्याओं की घटनाओं पर राजस्थान हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है और पूछा है कि वह इन हालात को सुधारने के लिए क्या कर रही है. हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अजित सिंह और ए एस ग्रेवाल ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोटा के कोचिंग संस्थान सुसाइड हब बन गए हैं.

अंधविश्वास का जाल, पंडे पुजारी हो रहे मालामाल

केस 1: समय: सुबह के 5-6 के बीच का. महिलाओं के लिए खासतौर पर फोन घनघनाने लगे. ये फोन दैवीय चमत्कार बताने के लिए थे. सूचना मिली कि घरों में रखे दैनिक उपयोग के पत्थरों से बने औजारों जैसे सिल व बट्टा तथा अनाज पीसने वाली चक्की के पाट अपनेआप किसी दैवीय शक्ति के बूते टंक गए हैं. बताया गया कि ऐसा प्रतीकात्मक रूप से पत्थर द्वारा निर्मित देवीदेवताओं की पूजा में अरुचि के कारण देवी की नाराजगी से हुआ है. जो व्यक्ति पूजाअर्चना नहीं करेगा वह गंभीर संकट से घिर जाएगा. बस फिर क्या था. महिलाएं झटपट पत्थर से बने उन औजारों को देखने भागीं. जिस के औजारों में थोड़ा भी परिवर्तन था वह इसे दैवीय शक्ति का प्रभाव मान बैठी और फिर तुरंत पूजाअर्चना शुरू कर दी. कुछ ही घंटों में यह बात जंगल में लगी आग की तरह कई जिलों में फैल गई और फिर कई हफ्तों तक बदस्तूर जारी रही. यह अंधविश्वास का एक नमूना भर है, जिसे पूर्वी एवं मध्य उत्तर प्रदेश के जनपदों खासकर इलाहाबाद, कौशांबी, प्रतापगढ़, फतेहपुर, कानपुर, रायबरेली, अमेठी आदि के ग्रामीण क्षेत्रों में खूब प्रसारित किया गया.

केस 2: स्थान: केस 1 के सभी क्षेत्र. समय: शाम के 7-8 बजे के बीच का. ग्रामीण महिलाओं के पास खबर आने लगी कि देवी सपने में आई और बोली कि मेरा पूजन करो, बहनबेटियों के यहां साडि़यां और पकवान बना कर भेजो, दानदक्षिणा दो. इस से घर में बरकत बढ़ेगी.

केस 3: उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद के अरखा गांव के निकट एक गाय ने विकृत आकृति वाला बच्चीनुमा बछड़ा जना. स्थानीय महिलाओं का भारी हुजूम उमड़ पड़ा. देखते ही देखते फूलमालाएं, प्रसाद और पैसा चढ़ने लगा. 2 दिनों के बाद गाय के बच्चे की मौत हो गई.

केस 4: इस बार उत्तर प्रदेश के ही कौशांबी जनपद के सराय अकिल थाने के अंतर्गत मायाराम का पुरवा गांव में मल्हू की पत्नी कौशल्या देवी ने विकृत आकृति का बच्चा जना. उसे देखने स्थानीय महिलाओं का हुजूम उमड़ पड़ा. प्रसाद, पैसों और फूलमालाओं का ढेर लग गया. कुछ ही दिनों में बच्चे की मौत हो गई.

केस 5: उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद में धमधमा गांव स्थित 2 बंदर भिड़ गए और किसी कारण दोनों की मौत हो गई. बस इसी को बालाजी का चमत्कार मान लिया गया और बंदरों की याद में एक मंदिर बना कर धर्म के नाम पर धंधेबाजी शुरूहो गई, जो अभी तक बदस्तूर जारी है. इन उदाहरणों को देख यह पता चलता है कि बड़े पैमाने पर पाखंड के नाम पर ठगी का यह नया तरीका है, जिसे निठल्ले एवं पाखंड फैलाने वालों ने निकाला है. इन का सब से आसान शिकार ग्रामीण महिलाएं हैं. दरअसल, इन दिनों पत्रपत्रिकाओं के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं में भी थोड़ी जागरूकता आई है, जिस से पूजापाठ और धर्म के नाम पर ठेकेदारी करने वालों का धंधा भी थोड़ा मंदा हो चला है. इसीलिए अब पाखंडी और निठल्ले लोगों ने पैतरा बदल कर गरीब जनता को इस तरह ठगने के नायाब तरीके ढूंढ़ लिए. पंडेपुजारियों की मौज: धर्म की आड़ में इस प्रकार के अंधविश्वासों को प्रसारित करने से धर्म के ठेकेदारों यानी पंडेपुजारियों का तो भला होता ही है, पूजन आदि की सामग्री बेचने वाले भी इस से मोटा फायदा पा रहे हैं. उधर गरीब जनता इन धंधेबाजों के जाल में फंस कर दिनबदिन कंगाल होती जा रही है.

ठगी का जाल: अगर इस तरह पूजापाठ करने, दानदक्षिणा देने से भला होता तो अब तक देश विकसित हो चुका होता. दान देने और पूजापाठ करने वाले कभी गरीब नहीं होते, कोई बेऔलाद न रहता, हर कोई बिना पढ़े पास हो जाता, कभी कोई बीमार न पड़ता यानी पूजापाठ करने वाले सभी लोग हर तरह के क्लेश से मुक्त हो जाते. मगर काबिलेगौर बात यह है कि लाखोंकरोड़ों लोगों के पूजा करने के बाद भी चारों तरफ गरीबी व्याप्त है. इस का सीधा मतलब है कि पंडेपुजारियों के झांसे में आ कर कुछ करना ठीक वैसे ही है जैसे अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारना. ऐसे ज्यादातर मामले गांवों से जुड़े होते हैं. चूंकि गांवों में अभी भी अशिक्षित महिलाओं की बड़ी संख्या है. इसीलिए भेड़चाल में सुनीसुनाई बातों में आ कर वे ठगी का शिकार हो जाती हैं. चूंकि ये सारी सूचनाएं वे अपने सगेसंबंधियों और पड़ोसियों से पाती हैं, इसलिए बाद में उन के पास पछताने के सिवा और कुछ नहीं बचता है. पत्थर से बने औजारों जैसे सिल व बट्टा आदि का अपनेआप दैवीय शक्ति के बूते टंक जाने के संदर्भ में इलाहाबाद स्थित मोती लाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफैसर डा. आर. सी. वैश्य का मानना है कि अत्यधिक गरमी के कारण अकसर स्टोन कमजोर हो जाते हैं जिस से वे टूट भी सकते हैं. स्टोन के कमजोर होने के ही कारण वे टंकाई जैसे प्रतीत हो रहे होंगे. अत: अफवाहों पर कभी भरोसा न करें.

इसी प्रकार जानवर या महिला द्वारा गणेश जैसे आकार में बच्चा जनने की बाबत रायबरेली के प्रभारी चिकित्साधिकारी एवं अंधविश्वास के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाले डा. आर.पी. मौर्य बताते हैं कि जीन उत्परिवर्तन, जैनेटिक स्ट्रक्चर की गड़बड़ी, जन्मजात विसंगति या विकासात्मक विसंगति बच्चे के विकृत आकृति में पैदा होने की वजह हो सकती है. विकासात्मक विसंगति के कारण कभीकभी कोई अंग कम या ज्यादा विकसित हो जाता है तो लोग उसे गणेश या अन्य किसी का अवतार मान बैठते हैं. समाज में व्याप्त अन्य प्रकार के अंधविश्वासों की बाबत डाक्टर मौर्य कहते हैं कि ग्रामीण महिलाओं को गुमराह करने में भारत की पुरोहिती व्यवस्था नंबर 1 पर है. गुमराह करने वाले यानी धर्म के धंधेबाज यह अच्छी तरह जानते हैं कि वे जितने लोगों को अंधविश्वास के जाल में जकड़ेंगे उतना ही ज्यादा उन का फायदा होगा. यह पूरा सिस्टम पैसों के लिए होता है. अगर पूजापाठ में पैसे का चलन बंद हो जाए तो अंधविश्वास भी बंद हो जाए. सरकारी अथवा गैरसरकारी संस्थानों को समयसमय पर फैलने वाले इस तरह के अंधविश्वासों के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए.

अनाथ हाथियों की शरणगाह : पिन्नावाला अनाथालय

यदि आप पशुप्रेमी हैं, खासतौर पर हाथीप्रेमी और आप हाथियों के समाज, रहनसहन, खानपान आदि से परिचित होना चाहते हैं तो श्रीलंका का पिन्नावाला हाथी अनाथालय आप के लिए बिलकुल उपयुक्त जगह है. समयसमय पर विश्व में बढ़ती जनसंख्या से प्रभावित पशुओं के संरक्षण के लिए अनाथालय बनाए जाते रहे हैं.

इसी क्रम में 1975 में श्रीलंका के वन्यजीव संरक्षण विभाग द्वारा श्रीलंका के जंगलों के आसपास घूमने वाले अनाथ, दुधमुंहें हाथियों की देखभाल एवं उन्हें संरक्षण देने के उद्देश्य से हाथी अनाथालय की स्थापना की गई थी. 1978 में यह अनाथालय श्रीलंका के डिपार्टमैंट औफ नैशनल जियोलौजिकल गार्डन को हस्तांतरित कर दिया गया.

सर्वप्रथम यह अनाथालय विलपट्टू नैशनल पार्क में अस्थायी तौर पर संचालित किया गया था, जहां से बाद में इसे बेनडोटा पर्यटन स्थल ले जाया गया. इस के बाद इसे देहीवाला जू द्वारा संचालित किया गया और अंत में इसे स्थायी तौर पर महा ओया नदी के पास हरेभरे गांव पिन्नावाला में 25 एकड़ क्षेत्र में स्थापित कर दिया गया.

हाथियों के संरक्षण की बेहतर व्यवस्था

पिन्नावाला हाथी अनाथालय की शुरुआत 5 हाथियों के साथ की गई थी. वर्तमान में यहां 3 पीढि़यों के लगभग 88 हाथियों की परवरिश की जा रही है. इन में 40% नर तथा 60% मादा हाथी हैं. इस अनाथालय का प्रमुख उद्देश्य जंगल में अनाथ हो चुके अथवा अपने मातापिता से बिछुड़ चुके शिशु हाथियों को भोजन एवं संरक्षण प्रदान करना है. प्राय: श्रीलंका के जंगलों में शिशु हाथी अपने झुंड के साथ पानी की तलाश में भटकते हुए गड्ढों में गिर जाते हैं या जंगलों में चल रही कई विकास परियोजनाओं के चलते अपने झुंड से बिछुड़ जाते हैं. ऐसे शिशु हाथियों के लिए पिन्नावाला एक सुरक्षित शरणगाह है.

वर्तमान में इस अनाथालय में हाथियों की देखभाल के लिए लगभग 48 महावत कार्यरत हैं. मादा एवं शिशु हाथी पिन्नावाला क्षेत्र के हरेभरे वन क्षेत्र में झुंड बना कर स्वतंत्र रूप से घूमते हैं. हाथियों के इस झुंड को दिन में 2 बार आधे किलोमीटर क्षेत्र में भोजन तथा नदी में नहाने के लिए ले जाया जाता है. रात होने पर मादा हाथियों को बांध दिया जाता है.

नर हाथियों को कुछ छोटे कामों के लिए परिवहन के रूप में व्यस्त रखा जाता है. पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए शिशु हाथियों को बोतल से दूध पिलाया जाता है. कुछ शुल्क दे कर पर्यटक खुद अपने हाथों से भी इन शिशुओं को बोतल से दूध पिला सकते हैं.

हाथियों को मिलता है प्राकृतिक आवास

पिन्नावाला हाथी अनाथालय का हमेशा यही प्रयास रहता है कि हाथियों को उन के प्राकृतिक आवास यानी जंगल में ही रखा जाए. इस दृष्टिकोण से हरेभरे नारियल के वृक्षों तथा अन्य जैवविविधताओं से भरा पिन्नावाला क्षेत्र हाथियों के लिए एकदम उपयुक्त स्थान है. यहां हाथियों को घास के अलावा उन के उचित पोषण के लिए कटहल, नारियल, खजूर तथा इमली का भी इंतजाम किया जाता है. प्रत्येक वयस्क हाथी को रोजाना लगभग 76 किलोग्राम हरा चारा तथा 2 किलोग्राम की भोजन की थाली दी जाती है, जिस में चावल की भूसी और मक्का शामिल होता है. 1982 से हाथी प्रजनन कार्यक्रम यहां के प्राकृतिक वातावरण तथा पोषण की उचित व्यवस्था के कारण सफलता से संचालित किया जा रहा है. प्रजनन कार्यक्रम की सफलता के चलते पिछले 29 वर्षों के दौरान यहां 84 से अधिक हाथी जन्म ले चुके हैं. सितंबर से अक्तूबर का समय प्रजननकाल का होता है. इस समय नरमादा झुंड में आकर्षित होते हैं अत: इन 3 महीनों के लिए सभी राष्ट्रीय उद्यान पर्यटकों के लिए बंद कर दिए जाते हैं. मादा 4 वर्ष में एक बार शिशु को जन्म देती है और अपने पूरे जीवन में सिर्फ 2 या 3 बच्चे ही पैदा करती है. 13 वर्ष की उम्र में मादा प्रजनन के लिए तैयार हो जाती है. शिशुओं की देखभाल मादा झुंड बना कर करती हैं.

पिन्नावाला और पर्यटन

वर्तमान में पिन्नावाला पर्यटन का एक प्रमुख आकर्षण बन गया है. यह अनाथालय पर्यटकों के लिए रोजाना खुलता है. पर्यटकों की आवाजाही से इस अनाथालय को जो धन प्राप्त होता है, उसे प्रबंधन द्वारा अनाथालय के हित में खर्च किया जाता है. यहां प्रवेश शुल्क की दरें श्रीलंका के पड़ोसी देशों के लिए लगभग 1 हजार रुपए  (श्रीलंकाई मुद्रा में) प्रति व्यक्ति तथा अन्य विदेशी पर्यटकों के लिए 2 हजार रुपए प्रति व्यक्ति निर्धारित की गई हैं.

हाथी विष्ठा (एलीफैंट डंग) से हस्तशिल्प

पिन्नावाला में हाथियों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए कार्यरत एक गैरसरकारी संगठन मिलेनियम एलीफैंट फाउंडेशन द्वारा रिसाइकिल पेपर बनाने वाली एक कंपनी से करार के तहत हाथियों की विष्ठा से रिसाइकिल पेपर बनाया जाता है. कागज बनाने केलिए विष्ठा को अलगअलग प्रक्रियाओं से साफ कर बड़ी मात्रा में रेशा प्राप्त किया जाता है. इस रेशे की लुगदी बना कर कागज तैयार किया जाता है. केवल कागज ही नहीं, हाथी की विष्ठा से तरहतरह का सजावटी सामान और खिलौनों का भी निर्माण किया जाता है. इस से कई लोगों को रोजगार मिलता है. मिलेनियम फाउंडेशन विश्व के अनेक देशों से आए स्वयंसेवकों को हाथी की दैनिक क्रियाओं तथा स्वास्थ्य से जुड़े कार्यों पर भी प्रशिक्षण देता है.

बनिए हाथी के मालिक

हाथी केवल पिन्नावाला तक ही सीमित न रहें बल्कि श्रीलंका के दूसरे भागों में भी लोग इन का अवलोकन करें, इस बात का ध्यान रखते हुए पिन्नावाला अनाथालय प्रबंधन द्वारा कुछ स्वस्थ एवं वयस्क हाथियों को वन्यजीव संस्थाओं, जीव संगठनों अथवा वन्यजीव प्रेमियों को दान में अथवा शुल्क ले कर दिया जाता है

कलाकार कभी खत्म नहीं होता : शिल्पा शेट्टी कुंद्रा

हिंदी के अलावा दक्षिण भारतीय सिनेमा में भी अपनी कला का हुनर दिखा चुकीं शिल्पा ब्रिटिश टैलीविजन शो ‘बिग ब्रदर’ में अपने ऊपर नस्लभेदी टिप्पणियों के कारण चर्चा में आईं. बिजनैसमैन राज कुंद्रा से शादी करने के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण से ले कर आईपीएल तक के काम का जिम्मा अपने कंधों पर लिया. अपने 4 साल के बेटे वियान के साथसाथ अपनी फिटनैस और बिजनैस को कैसे संभालती हैं जैसे कई सवालजवाब उन से हुए:

आप सफल बिजनैस वूमन हैं. व्यवसाय की प्रेरणा कहां से मिली व इस का सफर कैसा रहा?

मैं कुंद्रा से पहले शेट्टी हूं और हम शेट्टियों के खून में ही बिजनैस करना पाया जाता है. मेरे पापा बिजनैसमैन थे, तो बचपन से ही मैं इस माहौल में पलीबढ़ी हूं. मैं फिल्मों से पहले मौडलिंग करती थी. तब भी यही सोचा था कि अगर कुछ अच्छा हुआ तो आगे जा कर बिजनैस करूंगी. एक बिजनैसमैन से शादी कर के लगा कि मुझे भी कुछ करना चाहिए, इसलिए शुरुआत कर दी. मैं सिर्फ पैसा कमाने के लिए बिजनैस नहीं करती. अगर कोई आ कर मुझ से कहे कि इस प्रोजैक्ट में बहुत पैसा है, लेकिन वह मुझे पसंद न हो तो मैं उस में बिलकुल पैसा नहीं लगाऊंगी. पैसा तो दूर अपना नाम भी उस में नहीं आने दूंगी.

राज चाहते थे कि मैं कुछ अपने मन का करूं, इसलिए फिल्म प्रोडक्शन में आई, क्योंकि इंडस्ट्री से जुड़े होने के कारण इस से लगाव तो था ही. मैं जब फिल्मों में काम करती थी तभी सोच लिया था कि फिल्में तो मैं जरूर बनाऊंगी. पहली फिल्म उतनी नहीं चली जितनी आशा थी. फिर मैं ने फिटनैस सीडी निकाली, फिटनैस चैनल शुरू किया, हैल्थ पर एक किताब भी लिखी. औनलाइन बिजनैस भी कर रही हूं जहां से अच्छा रिस्पौंस आ रहा है.

अपने अंदर छिपे कलाकार को कितना मिस करती हैं?

कलाकार कभी खत्म नहीं होता. इसीलिए तो मैं टीवी पर अपनी मौजूदगी बनाए रखती हूं. हां, कुछ समय से फिल्मों से जरूर दूरी हो गई है. वह भी पहले वियान के कारण और अब बिजनैस की व्यस्तता के कारण. लेकिन जब मुझे लगेगा कि ऐक्टिंग करनी है तो जरूर करूंगी.

बिजनैस समय मांगता है. ऐसे में परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियां कैसे पूरी करती हैं?

मैं ने शुरू से ही परिवार को प्राथमिकता दी है. इसीलिए तो वियान के जन्म के बाद जब तक वह बड़ा नहीं हो गया उसी को समय दिया. मैं हमेशा यह तालमेल बनाए रखती हूं कि किसी को मेरी कमी महसूस न हो. बिजनैस भी जरूरी है, लेकिन उस के पहले परिवार के प्रति मेरी जिम्मेदारियां जरूरी हैं. इन दोनों के संतुलन में मेरे हब्बी मेरी बहुत हैल्प करते हैं. मेरे बिजनैस में वे दखलंदाजी नहीं करते. वही सलाह देते हैं, जो मेरे लिए उपयोगी होती है.

मां बनने के बाद आप ने कैसे अपने शरीर को फिट रखा?

वियान के जन्म के बाद मैं काफी इमोशंस से गुजरी हूं, क्योंकि उस समय मेरा वजन 32 किलोग्राम ज्यादा हो गया था. हैल्दी और फिट शरीर के लिए 70% डाइट और

30% ऐक्टिविटी या ऐक्सरसाइज का अहम रोल होता है. मैं ने सिर्फ ऐक्सरसाइज से ही अपना वजन घटाया है, ऐसा भी नहीं है. ऐसे कई दिन होते हैं जब मैं ऐक्सरसाइज नहीं कर पाती हूं. अगर आप सही डाइट लें, तो आधे से ज्यादा काम हो जाता है. मैं दिन की शुरुआत 1 गिलास गरम पानी में अदरक, नीबू और शहद से करती हूं और रात का खाना 8 बजे से पहले कर लेती हूं.

आज खुद को किस मुकाम पर देखती हैं?

ऐसा नहीं है कि मेरा जीवन बहुत आसान रहा हो. बौलीवुड में बने रहने के लिए मैं ने भी बहुत स्ट्रगल किया है. इंटरनैशनल शो में नस्लभेदी टिप्पणियां सहते हुए भी वह शो जीता, बिजनैस किया, फिल्म प्रोड्यूसर बनी और आज 1 बच्चे की मां भी हूं, तो इस का मतलब आज मेरे पास वह सब है, जो एक सफल महिला के पास होना चाहिए.

डेविड वौर्नर की यह तस्वीर कर देगी आपको भावुक

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तीसरे टेस्ट मैच में बौल टैंपरिंग स्कैंडल में डेविड वौर्नर को मुख्य षड्यंत्रकारी माना जा रहा है. औस्ट्रेलिया के पूर्व उप कप्तान डेविड वौर्नर और पूर्व कप्तान स्टीव स्मिथ के साथ एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया है. स्मिथ को भी इस षड्यंत्र में बराबर का भागीदार माना गया. गेंद से छेड़खानी करने वाले कैमरून बैंक्रौफ्ट पर 9 महीने का प्रतिबंध लगाया गया है. कैमरून को टीवी कैमरा में बौल के साथ छेड़छाड़ करते रंगे हाथों पकडा गया था. तीनों ही क्रिकेटरों पर क्रिकेट के किसी भी फौर्मेट में खेलने पर प्रतिबंध लगा हुआ है.

बता दें कि यह तीनों क्रिकेटर घरेलू क्रिकेट भी नहीं खेल सकते. हां, क्लब क्रिकेट खेलने की इन्हें इजाजत दी गई है. क्रिकेट के प्रति समर्पित खिलाड़ियों के लिए क्रिकेट के बिना जीवन सचमुच कठिन हो रहा है. कहते भी हैं कि पुरानी आदतें आसानी से नहीं छूटतीं और क्रिकेट इनकी आदत में शुमार है. हाल ही में डेविड वौर्नर को सिडनी में एक काल्पनिक बैट के साथ दिखाया गया. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह क्रिकेट को कितना मिस कर रहे हैं.

डेविड वौर्नर क्रिकेट के बिना जीना सीख रहे हैं और इसके लिए वह डांस और अन्य गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं. स्टीव स्मिथ और वौर्नर पर लगे प्रतिबंध के कारण इन दोनों को बड़ा आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. क्रिकेट औस्ट्रेलिया के साथ स्मिथ और वार्नर का क्रमशः 2 मिलियन और 1.4 मिलियन का सालाना अनुबंध था. यह पैसा उन्हें अब नहीं मिलेगा.

इसके साथ ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें डेविड वौर्नर एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करते नजर आ रहे हैं. यह सिडनी के मेलबर्न में है, जहां बौल टैम्परिंग विवाद में बैन होने के बाद वौर्नर काम कर रहे हैं. डेविड वौर्नर की पत्नी ने अपने औफिशियल इंस्टाग्राम पर यह तस्वीर शेयर की है.

आईपीएल में भी लोग डेविड वौर्नर को मिस कर रहे हैं. इस साल आईपीएल में वौर्नर हैदराबाद टीम का हिस्सा थे, लेकिन इस घटना के बाद बीसीसीआई ने भी इन दोनों खिलाड़ियों को आईपीएल में एक साल के लिए बैन कर दिया है.

यह है पूरा मामला

दक्षिण अफ्रीका और औस्ट्रेलिया के बीच केपटाउन में तीसरे टेस्ट मैच के तीसरे दिन जब अफ्रीकी पारी का 43वां ओवर चल रहा था और मार्करम और एबी डिविलियर्स खेल रहे थे, उसी समय औस्ट्रेलियाई बल्लेबाज बैनक्रौफ्ट एक चिप जैसी चीज के साथ कैमरे पर पकड़े गए. कहा गया कि ये गेंद की चमक उड़ाने वाली चिप है. इसे उन्होंने गेंद पर घिसा. हालांकि, मैदानी अंपायरों ने इस बारे में उनसे बातचीत की. अंपायरों के पास जाने से पहले बैनक्रौफ्ट को अपने अंत:वस्त्र में छोटी सी पीली चीज रखते हुए देखा गया था. जब अंपायर उनसे बात करने के लिए पहुंचे तो उन्होंने पैंट की जेब में हाथ डालकर दिखाया और यह कोई दूसरी चीज थी. वह धूप के चश्मे को साफ करने के लिए मुलायम कपड़े जैसा लग रहा था.

स्टीव स्मिथ ने स्वीकार की थी गलती

इसके बाद कप्तान स्टीव स्मिथ और बैनक्राफ्ट ने इस पूरे मामले में अपनी गलती मान ली थी. तीसरे दिन का जब खेल खत्म हुआ तो उसके बाद प्रेस कौन्फ्रेंस में औस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव स्मिथ ने इस बात को स्वीकार कर लिया था. वहीं, बैनक्रौफ्ट ने भी स्वीकार किया कि वह टेप से गेंद की शक्ल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे. औस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मेल्कोन टर्नबुल ने इस पूरी घटना को शर्मनाक बताया. उन्होंने कहा ये भरोसा करना मुश्किल है, कि औस्ट्रेलियाई टीम ने ये कृत्य किया.

बच्चों को शेयरिंग करना सिखाएं

छोटे बच्चों का अपनी छोटीछोटी चीजों से, खिलौनों से इतना जुड़ाव होता है कि वे उन्हें दूसरे बच्चों के साथ शेयर नहीं कर पाते. नतीजा आप का बच्चा लड़झगड़ कर समूह से बाहर अकेले बैठ जाता है. उदार हृदय होना एक अति आवश्यक सामाजिक गुण है, किंतु बच्चों को उदार बनाना या दूसरे शब्दों में कहें तो शेयरिंग सिखाना आसान नहीं. बच्चे जब 2 साल के होते हैं और स्कूल जाना या दूसरे दोस्तों में उठनाबैठना सीख रहे होते हैं तो उन का जुड़ाव उन के खिलौनों से बहुत अधिक होता है. उन के झगड़े अधिकांश उन से ही जुड़े होते हैं, झगड़ा चाहे दोस्तों से हो या मातापिता से. मिलबांट कर खेलने का गुण विकसित करने के लिए अभ्यास और समझ की आवश्यकता होती है. इस में कम से कम 1-2 साल तो लगते ही हैं और यह स्वाभाविक है.

मातापिता को चाहिए कि वे सब्र से काम लें. बच्चे को शेयरिंग सिखाने में मदद करने के लिए आप ये कर सकते हैं : मिल कर खेलने या खाने की खुशी: मेरी एक सहेली जब भी अपनी बिटिया को गार्डन ले कर जाती है तो वह अपने साथ कुछ अतिरिक्त खिलौने ले जाती है जिन्हें उस की बिटिया अपने दोस्तों को दे सकती है. जब वापस जाने का समय आता है तो वह बच्चों से खिलौने वापस एकत्रित कर लेती है. उस की बिटिया को शेयर करने से खुशी का अनुभव होता है और सारे खिलौने उसे वापस मिल भी जाते हैं. इसी तरह अगर आप बच्चों के टिफिन में कुछ स्नैक्स भेज रही हों जैसे कि पौपकौर्न या चिप्स, तो कुछ ज्यादा भेजें और उसे बच्चे को अपने दोस्तों में शेयर करने को कहें. इस से उसे देने की खुशी का अनुभव होगा और वह खुद ही शेयरिंग सीखने लगेगा.

बारीबारी से खेलना : यदि बच्चे मिलबांट कर नहीं खेलना चाहते तो उन्हें खिलौने से बारीबारी से खेलने को कहना चाहिए. शिखा के 2 बच्चे हैं, एक 5 साल का बेटा और दूसरी 2 साल की बेटी. जब वे दोनों एक ही खिलौने के लिए झगड़ते हैं तो शिखा यही तरकीब अपनाती है. इस से अनजाने ही वे अपने खिलौने शेयर करने लगते हैं.

मातापिता से ही सीखते हैं बच्चे : बच्चों के पहले आदर्श मातापिता ही होते हैं. यदि वे अपने मातापिता को शेयर करते देखेंगे तभी वे भी शेयरिंग सीखेंगे. रेस्टोरैंट में कभी आप सपरिवार जाएं तो टेबल पर किसी भी डिश के आने पर मातापिता को चाहिए कि वे सभी सदस्यों को औफर करें, उस के बाद वे खुद खाएं. चौकलेट्स, बिस्कुट, गुब्बारे जैसी चीजें, यदि घर पर दूसरे बच्चे हैं, तो उन के लिए भी लानी चाहिए और बच्चों से ही दूसरे बच्चों को देने के लिए कहना चाहिए  परिवार में या फ्रैंड्ससर्कल में देनेलेने से संबंधित मनमुटाव हो तो उसे बच्चों के सामने नहीं दर्शाना चाहिए. बड़ों का स्वार्थ या ईर्ष्या, राग, द्वेष बच्चों तक न ही पहुंचे तो अच्छा.

कहानी को माध्यम बनाएं : बच्चे कहानियों की दुनिया में रहते हैं. यदि कहानी सही तरह से सुनाई जाए तो उन से मिलने वाली सीख, बच्चों के हृदयपटल पर लंबे समय तक अंकित रहती है. आजकल बच्चों की कहानियों में कई कैरेक्टर्स आते हैं, जैसे बबल्स, पेपर आदि जिन के माध्यम से बच्चों का चरित्र निर्माण किया जा सकता है. इन में शेयरिंग से संबंधित किताबें भी मिलती हैं. बच्चों को हृदय से देने वाला व्यक्ति बड़ा होता है या दुनिया गोल है, जो देता है उसी को मिलता है आदि विचार कहानियों द्वारा स्थापित किए जा सकते हैं. 

प्रोत्साहन : तारीफ, प्रशंसा तो हम बड़ों को भी प्रेरित करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है तो बच्चों पर तो इस का अद्भुत ही असर होता है. यदि बच्चा कभी अपना खिलौना दूसरे बच्चे को खेलने के लिए दे तो आप उस के समक्ष उस की तारीफ जरूर करें. इस से बच्चे में शेयरिंग की आदत बढ़ेगी.

उदाहरण : यदि कोई दूसरे बड़े बच्चे शेयरिंग कर रहे हों तो बच्चों को दिखाना चाहिए. थोड़ी बड़ी उम्र के बच्चे, छोटी उम्र के बच्चों के लिए रोल मौडल होते हैं और वे उन का अनुसरण करने की कोशिश करते हैं. उस समय ऐसा बिलकुल नहीं कहना चाहिए कि देखो, तुम तो शेयरिंग करते ही नहीं, वे कैसे शेयरिंग कर रहे हैं. मेरी बिटिया दीया को मेरी सहेली की बिटिया वीरा दीदी बहुत पसंद है. वह उसी की तरह बाल बनाना चाहती है, कपडे़ पहनना चाहती है. हम जब भी उस सहेली के घर जाते हैं, वीरा अपने खिलौनों से दीया को खिलाती है तो मैं दीया के सामने वीरा से कहती, ‘‘वेरी गुड, वीरा, आप अपने खिलौने दीया के साथ शेयर करती हो. यह बहुत अच्छी बात है.’’ कुछ ही दिनों से दीया भी घर आने वाले बच्चों को अपने खिलौने देने लगी है.

बच्चा फिर भी शेयर न करे : बहुत समझाने के बाद भी बच्चा यदि अपनी चीजें या खिलौने शेयर न करना चाहे तो उस पर नाराज नहीं होना चाहिए. कुछ समस्याएं समय के साथ ही हल होती हैं. बच्चे को डांटने या चिल्लाने से हल नहीं निकलने वाला. आप अपने खाली समय में, जब बच्चे के साथ अकेली हों, उसे प्यार से मिलबांट कर खेलने के फायदे समझा सकती हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि खिलौने बच्चों को उतने ही प्रिय होते हैं जितने महिलाओं को गहने. उन्हें शेयर करने में थोड़ा वक्त तो लगेगा, इसलिए हमें सब्र से काम लेना चाहिए.

अमेजन लाया खास फीचर, किसी भी देश से खरीद सकते हैं समान

दुनिया की सबसे बड़ी ई-कौमर्स कंपनियों में से एक अमेजन ने अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को एक बड़ी सौगात दी है. कंपनी ने एक नया फीचर को पेश किया है, जिससे आप किसी भी देश से कोई भी सामान खरीद सकते हैं. अब ऐप आपको किसी भी समान पर लगने वाले शिपिंग कौस्ट, इंपोर्ट ड्यूटी के साथ उसकी कीमत के बारे में भी बताएगा. ऐप में कई भाषाओं के भी विकल्प दिए गए हैं. हम आपको बताने जा रहे हैं कि अमेजन के इस नए फीचर का इस्तेमाल कैसे करना है?

Step 1

अपने अमेजन शौपिंग ऐप पर जाएं. यहां ऊपर दाईं तरफ(लेफ्ट साइड) आपको मैन्यू औप्शन दिखेगा, यहा टैप करें.

Step 2

यहां आपको Settings औप्शन दिखेगा, जिसके सामने आपको उस देश का झंडा दिखेगा जिसे आपने चुन रखा होगा, इस पर टैप करें.

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Step 3

टैप करते ही आपको एक नया मैन्यू पौप दिखाई देगा. यहां ‘Country and Language’ औप्शन पर टैप करें और अपनी पसंद के देश और भाषा को चुनें.

Step 4

इसके बाद एक नया विंडो खुलेगा, जहां आपको उस देश का वेबसाइट चुनना होगा, जहां से आप खरीदारी करना चाहते हैं. यहां आपको भाषा चुनने का विकल्प मिलेगा.

Step 5

औस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, भारत, जापान, यूके और यूएस देखों के लिए इंग्लिश भाषा उपलब्ध है. जबकि ब्राजील, चीन, फ्रांस, इटली, मेक्सिको और स्पेन के लिए भाषा की सेटिंग्स बदल जाएगी. हालांकि जब आप इन देशों को चुनेंगे तक आपको एक मेल मिलेगा, जिसमें भाषा बदलने की जानकारी आपको दी हुई होगी.

Step 6

उस देश को चुनें जहां से आप शौपिंग करना चाहते हैं. इसके बाद Done बटन पर टैप कर दें.

Step 7

ऐसा करने पर ऐप आपको उस देश के स्टोर पेज पर ले जाएगा, जहां से आप खरीदारी करना चाहते हैं.

रेलवे टिकट बुक करते वक्त न करें ये गलती

रेलवे रिजर्वेशन के एक छोटे से नियम से कई बार यात्रियों को बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है. इसी तरह का एक नियम रेलवे ने हाल में शुरू किया है. इस प्रणाली में यदि एसी कोच में सीटें खाली हैं तो क्रमानुसार स्लीपर कोच के यात्रियों के कनफर्म टिकट पर इसमें बिना कोई अतिरिक्त चार्ज लिए अपग्रेड कर दिया जाता है. रेलवे का कहना है कि आरक्षण फार्म भरते वक्त यात्रियों से इस सुविधा का उपयोग करना है या नहीं पूछा जाता है, बिना सहमति के अपग्रेडेशन नहीं होता है. जागरूकता के अभाव में यात्री पूरा फार्म पढ़ते नहीं हैं और उनकी ये चूक कई बार भारी पड़ जाती है.

आजकल यात्रियों को हो रही बड़ी परेशानी

इस रेलवे रिजर्वेशन अपग्रेडेशन के कारण यात्रा के दौरान कई परिवार इस परेशान का सामना कर चुके है  और यात्रियों की एक ही क्रम में कंफर्म टिकट होने के बाद भी पति, पत्नी और बच्चे अलग-अलग कोच में बैठकर सफर करना पड़ा है.

ऐसे हो रही लोगों को परेशानी

रेलवे आरक्षण के अधिकारी के मुताबिक यात्रियों की सुविधा के लिए ही रेलवे ने अपग्रेडेशन प्रणाली शुरु की है और हम अपने स्तर पर ही यात्रियों से पूछ लेते हैं कि उसे ये सुविधा चाहिए या नहीं. समस्याएं आने के बाद हमनें कार्यालय में निर्देश दे दिए हैं कि वे यात्री से पूछ लें और उसका मोबाइल नम्बर जरूर फार्म में लिखवाएं.

ऑटो अपग्रेडेशन क्या है, क्यों शुरु हुई है यह स्कीम

रेलवे ने अपने सेकेंड क्लास में सफर करने वाले यात्रियों को एसी में सफर कराने की इच्छा से ये ऑटो अपग्रेडेशन योजना शुरु की थी. यदि सीट खाली जा रही हैं तो रेग्युलर यात्री उसी पैसे में एसी की यात्रा कर सके. हालांकि ये स्थिति सामान्य सीजन में लाभकारी होती है जब यात्रियों की भीड़ ट्रेनों में कम होती है.

इससे बचने के लिए करें ये काम

– रिजर्वेशन फार्म पूरी तरह पढ़े और खुद उसे भरे.

– फार्म पर ऊपर से तीसरे नम्बर पर रेलवे ने बोल्ड अक्षर में टिकट अपग्रेड सुविधा के बारे में लिखा है उसे जरूर पढे.

– यदि आप टिकटों का अपग्रेड चाहते हैं तो बाक्स में हां लिखें.

– यदि आप अपग्रेड सुविधा नहीं चाहते तो बाक्स में नहीं लिखें.

– यदि आपने इस बाक्स को खाली छोड़ दिया है तो ये स्वतः ही हां माना जाएगा, इसलिए सुविधा नहीं चाहिए तो नहीं जरूर लिखें.

– अपग्रेड सुविधा चाहते हैं तो फार्म पर आपका पर्सनल मोबाइल नम्बर लिखें, इसी पर एसएमएस से आपको रेलवे सूचना देगी.

– यदि एसएमएस नहीं भी आया है तो कोच में बैठने के पहले चार्ट जरूर देखें.

अब पता कर सकते हैं किसी भी PC का पासवर्ड

क्या आप अपने लैपटॉप/कंप्यूटर का पासवर्ड लगाकर भूल गए हैं? या फिर अपने दोस्त के लैपटॉप का पासवर्ड बदल उसे परेशान करना चाहते हैं. हम आज आपको एक ऐसी ट्रिक बताएंगे जिसके जरिए आप अपने साथ-साथ किसी और के भी लैपटॉप/कंप्यूटर को अनलॉक कर पाएंगे. इसके लिए आपको इन स्टेप्स को फॉलो करना होगा.

1. सबसे पहले आपको विंडोज डिस्क बूट करना होगा. इसे करने के लिए आपको Repair your computer पर क्लिक करना है. ये ऑप्शन आपको आपकी स्क्रीन के लेफ्ट कॉर्नर पर मिलेगा.

2. सिस्टम को बूट करने के लिए सिस्टम की इंस्टॉलेशन डिस्क इंसर्ट करनी होगी. इसके बाद सिस्टम को रिस्टार्ट कर दें. (ध्यान रहे कि ये प्रोसेस विंडोज 10 पर काम नहीं करेगा)

3. इसके बाद आपको win+R प्रेस करना होगा इससे आपकी स्क्रीन पर Command Prompt आ जाएगा.

4. Command Prompt में आपको copy c:windowssystem32sethc.exe c: ये टाइप करना होगा. इसके बाद एंटर प्रेस कर दें.

5. इसके बाद एक विंडो आपकी स्क्रीन पर ओपन होगी इसमें आपको copy c:windowssystem32cmd.exe c:windowssystem32sethc.exe ये कमांड टाइप करनी होगी.

6. इसके बाद आप अपने लैपटॉप/कंप्यूटर को रीबूट कर दें.

7. सिस्टम रिबूट होने के बाद आपके सामने लॉगइन स्क्रीन ओपन होगी. अब आपको 5 बार Shift key प्रेस करनी है. ऐसा करने से आपकी स्क्रीन पर एडमिनिस्ट्रेटर command prompt ओपन हो जाएगा.

8. इसके बाद पासवर्ड रीसेट करने के लिए net user कमांड को टाइप करें.

9. बस इसके बाद आप अपने सिस्टम को नए पासवर्ड से लॉगइन कर पाएंगे.

भ्रष्ट और भ्रष्टाचार

कांगे्रस सरकार के दौरान हुए भयंकर भ्रष्टाचार के मामलों में से ज्यादातर अब अदालतों में टांयटांयफिस साबित हो रहे हैं. एकएक कर के हर मामले में अभियुक्त बरी हो रहे हैं, लाखोंकरोड़ों रुपयों की रिश्वतों के आरोप केवल कागजी साबित हो रहे हैं. उस से ज्यादा बेईमानी तो बैंकरों और उद्योगपतियों के बीच नजर आ रही है जहां वास्तव में बैंकों का खरबों रुपया ले कर उद्योगपति मौज मना रहे हैं. दिल्ली की एक अदालत ने कौमनवैल्थ खेलों में हुए घोटाले के चल रहे एक मामले में अफसरों व प्राइवेट बिल्डरों को मुक्त कर दिया क्योंकि सीबीआई आवश्यक सुबूत नहीं जुटा पाई थी.

असल में आरोप लगाना आसान है पर उसे साबित करना मुश्किल है. कागजी काम पूरा हो तो भी यह पता करना कि बेईमानी कहां हुई थी, असंभव सा है. पिछले कंप्ट्रोलर ऐंड औडिटर जनरल विनोद राय ने स्पैक्ट्रम नीलामी में करोड़ों रुपयों के घोटाले का आरोप लगाया था, आज भाजपा सरकार ने उन्हें सम्मानित किया है, इस से साफ है कि आरोपों में राजनीति होती है. कांगे्रस दूध की धुली नहीं है. उसी के बनाए गए कानून व नियंत्रण रिश्वतखोरी की वजह हैं. हर कांगे्रसी 5-7 साल में चटखदार कपड़ों में, बड़ी गाड़ी में दिखने लगता था. कांगे्रस ने जानबूझ कर ऐसा तंत्र बनाया कि पगपग पर रिश्वत देनी पड़े. रिश्वत का हिस्सा ऊपर से नीचे तक सब को मिलता था, यह पक्का है.

पर यह भी पक्का है कि यह प्रक्रिया इस तरह की है कि किसी को सजा नहीं दिलाई जा सकती. पहली अदालत सजा दे भी दे तो दूसरी, तीसरी छोड़ देंगी जैसा लालू प्रसाद यादव और जयललिता के साथ हुआ है. इटली के हैलीकौप्टरों का हल्ला आजकल हो रहा है पर जब मामला अदालत में जाएगा तो बिना सुबूत टांयटांयफिस हो जाएगा क्योंकि हल्ला एक अपराधी के बयान पर आधारित है जिस का कानून में कोई मूल्य नहीं है. सब से बड़ी बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने ढाई सालों में ऐसा कुछ नहीं किया कि रिश्वत लेने के अवसर ही न मिलें. ढांचा वैसा का वैसा है. भाजपा नेता कहते हैं कि वे शुद्ध हैं पर उस का जनता को लाभ मिल रहा हो, इस तरह के दिव्य दर्शन तो नहीं हो रहे. देश वैसे का वैसा अस्तव्यस्त, मैलाकुचैला, सुस्त नजर आ रहा है, जहां समस्याओं के अंबार हैं. अपने गुण खुद गा लो तो बात दूसरी है वरना उपलब्धि के नाम पर कुछ नजर नहीं आता. रिश्वतखोरी या लूट का खाना हमारे जैविक गुण हैं. इन से मुक्ति मिल ही नहीं सकती.

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