पिछले कुछ समय से कोचिंग सैंटर्स की मनमानी के कारण बढ़े तनाव की वजह से छात्रों द्वारा आत्महत्या किए जाने के मामले बढ़े हैं. राजस्थान के कोटा में ही अक्तूबर से दिसंबर 2015 के बीच कोचिंग सैंटर्स में पढ़ने वाले 7 छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के मामले सामने आए हैं. 2014 की तुलना में 2015 में स्टूडैंट सुसाइड रेट में 60% की वृद्धि हुई है. मैडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करने कोटा आ रहे छात्रों का शैड्यूल इतना टाइट है कि वे ठीक से सो भी नहीं पाते. हर कोचिंग स्टूडैंट को रोज 5-6 घंटे क्लास में बिताने होते हैं. इस के अलावा उन का एक घंटा कोचिंग में ही डाउट क्लीयर करने में लग जाता है. इस के बाद, 4-10 घंटे तक स्टूडैंट घर पर पढ़ते हैं. ऐसे में उन के पास सोने के लिए भी पर्याप्त समय नहीं होता. सिर्फ कोटा में ही नहीं देशभर में कोचिंग ले रहे छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं में इजाफा हुआ है.
एक कोचिंग सैंटर के संचालक ने कोचिंग सिस्टम की खामियां स्वीकार की हैं. देशभर के युवाओं को यह गलतफहमी है कि वे अमुक कोचिंग सैंटर में ऐडमिशन लेंगे तो उन की सफलता तय है. हर मातापिता को अपने बच्चे की क्षमता और रुचि का पता होता है, लेकिन फिर भी वे अनावश्यक दबाव डाल कर उसे कोचिंग सैंटर भेजते हैं. छात्र जो पाना चाहते हैं वह नहीं मिलेगा तो उन में हताशा तो आएगी ही. जब छात्र वांछित सफलता प्राप्त नहीं कर पाते तो वे आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं.
कोचिंग एक कारोबार
कोचिंग एक कारोबार बन चुका है. 2014 में इस का कारोबार 1 हजार करोड़ रुपए के आसपास पहुंच गया था, जबकि 2015-2016 में इस के और अधिक बढ़ने का अनुमान है. कोचिंग सैंटर्स के खिलाफ संसद में भी आवाज उठी थी. एक सांसद ने तो ऐसे कोचिंग सैंटर्स को ऐजुकेशनल टैरेरिस्ट तक कहा. सरकार के पास कोचिंग सैंटर्स की जानकारी भी नहीं रहती. ऐसे कई सैंटर्स हैं जो बिना लाइसैंस व पंजीकरण के चल रहे हैं.
लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलकालेज में नहीं भेजना चाहते, लेकिन कोचिंग सैंटर जरूर भेजते हैं. दरअसल, अब देश की संस्कृति ‘सैकंड ओपीनियन’ संस्कृति बन गई है, जिस में पेरैंट्स को इस बात का डर रहता है कि अगर वे बच्चों को कोचिंग नहीं भेजेंगे, तो लोग क्या कहेंगे. कुछ कोचिंग इंस्टिट्यूट्स में 250 से 500 स्टूडैंट्स एकसाथ बैठते हैं. ज्यादातर कोचिंग सैंटर्स में जरूरत के मुताबिक टीचर्स नहीं होते. कोचिंग में टीचर्स सिर्फ लैक्चर दे कर चले जाते हैं. बच्चों को कुछ समझ नहीं आता तो वे बाहर जा कर काउंटर पर प्रौब्लम सौल्व कराते हैं.
कोचिंग सैंटर्स ने कक्षाओं के बाहर प्रौब्लम काउंटर्स बना दिए हैं. इन पर फ्रैशर स्टूडैंट्स बैठा दिए जाते हैं. छात्र को कक्षा में कुछ समझ नहीं आता तो उसे डाउट क्लीयर करने के लिए इन काउंटर्स पर भेज दिया जाता है यानी जिन मशहूर टीचर्स के नाम पर कोचिंग संस्थानों का नाम हो रहा है, वे छात्रों की समस्या हल करने के लिए उपलब्ध ही नहीं होते. प्रत्येक कोचिंग संस्थान में बैच में स्टूडैंट्स की संख्या तय होनी चाहिए तथा उस के अनुसार टीचर्स की संख्या तय होनी चाहिए. कुछ कोचिंग संस्थान छात्रों को आकर्षित करने के लिए लुभावने विज्ञापन देते हैं तथा अपनी उपलब्धियों का बखान करते हैं. इन में अधूरा सच होता है.
देशभर के कई मातापिता भले ही अपने बच्चों को आईआईटी या आईआईएम में पढ़ाने का सपना देखते हों, लेकिन कितने ही कोचिंग संचालकों के स्वयं के बच्चे जेईई या एआईपीएसटी में सलैक्ट नहीं हो पाते. कोचिंग सैंटर्स पर लगाम कसना बहुत जरूरी हो गया है वरना छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का सिलसिला थमने वाला नहीं है.
कोटा के कोचिंग संस्थानों में आत्महत्याओं की घटनाओं पर राजस्थान हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है और पूछा है कि वह इन हालात को सुधारने के लिए क्या कर रही है. हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अजित सिंह और ए एस ग्रेवाल ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोटा के कोचिंग संस्थान सुसाइड हब बन गए हैं.