कांगे्रस सरकार के दौरान हुए भयंकर भ्रष्टाचार के मामलों में से ज्यादातर अब अदालतों में टांयटांयफिस साबित हो रहे हैं. एकएक कर के हर मामले में अभियुक्त बरी हो रहे हैं, लाखोंकरोड़ों रुपयों की रिश्वतों के आरोप केवल कागजी साबित हो रहे हैं. उस से ज्यादा बेईमानी तो बैंकरों और उद्योगपतियों के बीच नजर आ रही है जहां वास्तव में बैंकों का खरबों रुपया ले कर उद्योगपति मौज मना रहे हैं. दिल्ली की एक अदालत ने कौमनवैल्थ खेलों में हुए घोटाले के चल रहे एक मामले में अफसरों व प्राइवेट बिल्डरों को मुक्त कर दिया क्योंकि सीबीआई आवश्यक सुबूत नहीं जुटा पाई थी.

असल में आरोप लगाना आसान है पर उसे साबित करना मुश्किल है. कागजी काम पूरा हो तो भी यह पता करना कि बेईमानी कहां हुई थी, असंभव सा है. पिछले कंप्ट्रोलर ऐंड औडिटर जनरल विनोद राय ने स्पैक्ट्रम नीलामी में करोड़ों रुपयों के घोटाले का आरोप लगाया था, आज भाजपा सरकार ने उन्हें सम्मानित किया है, इस से साफ है कि आरोपों में राजनीति होती है. कांगे्रस दूध की धुली नहीं है. उसी के बनाए गए कानून व नियंत्रण रिश्वतखोरी की वजह हैं. हर कांगे्रसी 5-7 साल में चटखदार कपड़ों में, बड़ी गाड़ी में दिखने लगता था. कांगे्रस ने जानबूझ कर ऐसा तंत्र बनाया कि पगपग पर रिश्वत देनी पड़े. रिश्वत का हिस्सा ऊपर से नीचे तक सब को मिलता था, यह पक्का है.

पर यह भी पक्का है कि यह प्रक्रिया इस तरह की है कि किसी को सजा नहीं दिलाई जा सकती. पहली अदालत सजा दे भी दे तो दूसरी, तीसरी छोड़ देंगी जैसा लालू प्रसाद यादव और जयललिता के साथ हुआ है. इटली के हैलीकौप्टरों का हल्ला आजकल हो रहा है पर जब मामला अदालत में जाएगा तो बिना सुबूत टांयटांयफिस हो जाएगा क्योंकि हल्ला एक अपराधी के बयान पर आधारित है जिस का कानून में कोई मूल्य नहीं है. सब से बड़ी बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने ढाई सालों में ऐसा कुछ नहीं किया कि रिश्वत लेने के अवसर ही न मिलें. ढांचा वैसा का वैसा है. भाजपा नेता कहते हैं कि वे शुद्ध हैं पर उस का जनता को लाभ मिल रहा हो, इस तरह के दिव्य दर्शन तो नहीं हो रहे. देश वैसे का वैसा अस्तव्यस्त, मैलाकुचैला, सुस्त नजर आ रहा है, जहां समस्याओं के अंबार हैं. अपने गुण खुद गा लो तो बात दूसरी है वरना उपलब्धि के नाम पर कुछ नजर नहीं आता. रिश्वतखोरी या लूट का खाना हमारे जैविक गुण हैं. इन से मुक्ति मिल ही नहीं सकती.

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