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फांसी से बचाने के लिए सालान खर्च करते हैं 36 करोड़ रुपए

हर देश का अपना अलगअलग कानून होता है. कहींकहीं, खासतौर पर अरब देशों में कानून बहुत सख्त है. पाकिस्तान को ही ले लीजिए, वहां एक बच्ची से रेप और हत्या के दोषी को 2 महीने में फांसी की सजा सुना दी गई, लेकिन हमारे यहां देश के सब से चर्चित मामले निर्भया रेप और हत्या के मामले में दोषी साबित हो जाने के बाद भी मुजरिमों को जेल में पाला जा रहा है.

अगर ऐसा अरब देशों में हुआ होता तो मुजरिमों को अब से 6 साल पहले फांसी हो चुकी होती. सख्त कानून के चलते अरब देशों में यह भी कानून है कि अगर कोई व्यक्ति किसी की हत्या कर देता है और शरिया कानून के अंतर्गत उसे फांसी की सजा हो जाती है तो फांसी से बचने के लिए उस के पास एक ही उपाय होता है, पीडि़त परिवार से सौदेबाजी.

अगर पीडि़त परिवार उस से इच्छित रकम ले कर उसे माफ कर देता है तो अदालत फांसी की सजा को रद्द कर देती है. लेकिन सौदेबाजी की यह रकम इतनी बड़ी होती है, जिसे चुकाना आसान नहीं होता. इस रकम को वहां ब्लड मनी कहा जाता है.

दुबई में रहने वाले भारतीय मूल के बड़े बिजनैसमैन एस.पी.एस. ओबराय ऐसे व्यक्ति हैं, जो लोगों को फांसी से बचाने के लिए प्रतिवर्ष 36 करोड़ रुपए खर्च करते हैं. यानी फांसी पाए लोगों को बचाने के लिए ब्लड मनी खुद देते हैं. अब तक वह 80 से ज्यादा युवाओं को फांसी से बचा चुके हैं, जिन में से 50 से ज्यादा भारतीय थे. ये ऐसे लोग थे, जो काम की तलाश में सऊदी अरब गए थे और हत्या या अन्य अपराधों में फंसा दिए गए.

2015 में भारत के पंजाब से अबूधाबी जा कर काम करने वाले 10 युवकों से झड़प के दौरान पाकिस्तानी युवक की हत्या हो गई. अबूधाबी की अल अइन अदालत में केस चला, जहां 2016 में दसों युवकों को फांसी की सजा सुनाई गई. बाद में जब इस सिलसिले में याचिका दायर की गई तो अदालत ब्लड मनी चुका कर सजा को माफी में बदलने के लिए तैयार हो गई.

सौदेबाजी में मृतक का परिवार 6 करोड़ 50 लाख रुपए ले कर माफी देने को तैयार हुआ. यह ब्लड मनी चुकाई एस.पी.एस. ओबराय ने.

इस तरह दसों युवक फांसी से बच गए. ओबराय साहब यह काम सालों से करते आ रहे हैं और उन के अनुसार जीवन भर करते रहेंगे.

प्रीत किए दुख होए: भाग 2

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था:

काजल दलित थी और सुंदर ब्राह्मणों का लड़का. दोनों गांव के एक ही स्कूल में पढ़ते थे. छोटे स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद सुंदर बड़ी क्लास में पढ़ने के लिए न चाहते हुए भी अपने मामा के यहां चला गया. काजल गांव में ही पढ़ने लगी. वहां मामा सुंदर को पढ़ाने के नाम पर घर के सारे काम कराता था. उस के साथ मारपीट भी करता था. इस बात से सुंदर बहुत दुखी था. उसे काजल और अपने परिवार की बहुत याद आती थी.

अब पढ़िए आगे… 

मामा बबलू को आया देख आंसू पोंछ कर सुंदर ने चूल्हे पर पतीली चढ़ाई. देखते ही देखते एक साल बीत गया.

पंडिताइन ने सारे गहने बेच कर पैसा मामा बबलू को भेज दिया, क्योंकि सुंदर को हाकिम बनाने का झांसा जो दिया था. हर महीने फोन आता और डिमांड होती, कभी 2 हजार, कभी 5 हजार की.

एक दिन सुंदर को मौका मिल गया. यों तो मामा खुद जाता था सड़क पर पान खाने, पर पैर में बिवाई निकलने के चलते वह दर्द से चल नहीं पाता था, सो 10 का नोट दे कर सुंदर को ही भेजा. बस फिर क्या था, वह नोट रिकशे वाले को दे कर सुंदर वहां से पहुंच गया बेगुसराय स्टेशन.

एक ट्रेन खगडि़या के लिए चलने वाली थी, सो वह उस में चढ़ गया. पहुंच तो गया वह खगडि़या, लेकिन अब नंदीग्राम कैसे पहुंचे? पैसे नहीं थे, जो आटोरिकशा वाले को देता. चल पड़ा पैदल. रास्ते में एक गांव का तांगा मिला. चढ़ गया उस में. तांगे वाला गांव के चाचा लगते थे, जिन्होंने पैसे नहीं लिए.

सुंदर ज्यों ही घर पहुंचा कि मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘कल कहीं से जुगाड़ कर 2 हजार रुपए भेज दो भाई को. बड़ा स्कूल है. एक दिन की देर में बहुत फाइन लग जाता है.’’

तभी सुंदर रो पड़ा और उस ने पुकारा, ‘‘मां.’’

मां दौड़ कर आवाज की ओर भागीं. किवाड़ की आड़ में छिपे सुंदर को सिसकता देख वे पिघल गईं.

‘‘सुंदर, क्या स्कूल में छुट्टी हो गई? तू वहां से अकेला कैसे आया?’’

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‘‘अपने भरोसे. और स्कूल? वहां स्कूल ही नहीं है तो छुट्टी कैसी?’’ उस ने पीठ और हाथ दिखाए, जो मामा की मार से फफोले उठ कर चिपक गए थे.

‘‘देखो, देखो अपना सुंदर हाकिम बन कर आ गया,’’ मां इतना कह कर बेहोश हो कर गिर पड़ीं.

पंडितजी जो सोने वाले थे, एकदम उठे और पंडिताइन को पानी के छींटे मारे, तब कहीं वे होश में आईं और दहाड़ कर बोलीं, ‘‘भैया… नहीं छोड़ूंगी तुझे. तू भाई नहीं कसाई है. तू आ तो जरा,’’ और बेटे सुंदर को खिलानेपिलाने लगीं.

‘‘इस का नाम यहीं स्कूल में लिखा दूंगी. नहीं बनाना हाकिम,’’ मां बोलीं.

दूसरे दिन दोनों मांबेटे चले स्कूल, जिस में काजल भी पढ़ती थी. अब वह 10वीं जमात में थी.

‘‘मां, काजल मुझ से पढ़ने में आगे हो गई होगी?’’

‘‘क्यों नहीं? किसी मामा के फेर में पड़ी होगी क्या वह?’’

‘‘मां, मैं उस स्कूल में कभी नहीं जाऊंगा. वहां मुझे शर्म आएगी. काजल ताना कसेगी,’’ रुक कर सुंदर ठुनकने सा लगा.

‘‘मजाल है जो एक शब्द भी निकाले. चल मेरे साथ…’’

‘‘अरे सुंदर,’’ सुंदर को स्कूल में आया देख काजल चहक कर नजदीक आ गई, ‘‘तू तो शहर गया था न?’’

सुंदर ने कोई जवाब नहीं दिया और मां की आड़ में छिप गया.

‘‘चाची, सुंदर अब यहीं पढ़ेगा न?’’ काजल ने पूछा.

‘‘हां… क्यों? स्कूल तेरे बाप का है क्या? जा, अपनी सीट पर बैठ,’’ सुंदर की मां बोलीं.

बेचारी काजल अपना सा मुंह लिए सीट पर जा बैठी. सुंदर का भी दाखिला हो गया, वह भी उसी की क्लास में.

दूसरे दिन सुंदर स्कूल आया तो काजल से दूरी बना कर बैठा. काजल हारी नजरों से कभीकभार उसे देख लेती और अपनी किताब खोल कर उस में सुंदर को भूलने की कोशिश करती. छमाही इम्तिहान हुए. सब को नंबर मिले. जहां काजल सब से अव्वल थी, वहीं सुंदर सब से फिसड्डी.

इस बार पंडितजी चढ़े आए, ‘‘आप पढ़ाते हैं या खेल करते हैं?’’

‘‘क्या हुआ?’’ हैडमास्टर ने पूछा.

‘‘आप जानते हैं न कि सुंदर मेरा

बेटा है?’’

‘‘जी हां, अच्छी तरह.’’

‘‘फिर भी सभी बच्चेबच्चियां इस से बाजी मार गए. कैसे?’’

‘‘क्यों? इम्तिहान क्या आप ने दिया था या सुंदर ने?’’

‘‘मतलब?’’ पंडितजी गरम दिखे.

‘‘यह तो होना ही था. पिछली क्लास के छात्र को आगे की क्लास के इम्तिहान में बिठा दिया जाए तो क्या होगा? यही होगा न?’’

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‘‘नहीं, आप तो दलित टीचर हैं, इसलिए. क्या काजल से काबिल

कोई लड़का नहीं है बाबू लोगों के लड़कों में?’’

‘‘मैं तो कहूंगा कि नहीं.’’

‘‘समझ गया. चल सुंदर, नहीं पढ़ना दलितों के स्कूल में,’’ और वे सुंदर को अपने साथ ले गए.

पंडितजी ने सुंदर का दाखिला अपने गांव से 10 किलोमीटर दूर एक मिडिल स्कूल में करा दिया. वहां बाबू लोगों के बच्चे ही पढ़ा करते थे. गांव से एक आटोरिकशा जाता था.

एक दिन सुंदर के अंगरेजी के एक टीचर मिश्राजी की नजर उस पर पड़ी. वे पारखी नजर रखते थे. तुरंत अपनी बेटी मीनाक्षी की जोड़ी मन ही मन बिठा ली.

स्कूल में सुंदर की सीट मीनाक्षी के साथ ही थी. इस से मीनाक्षी को मिलने वाली सारी मदद सुंदर को भी मिलने लगी.

मिश्राजी ने पूछताछ कर के पता कर लिया था कि सुंदर एक ब्राह्मण का लड़का है. इसे पास रख कर बचपन से ही दोनों के बीच प्यार के बीज खिल सकते हैं. उन्होंने पंडित रमाकांत को बुलवाया और अपनी मंशा जाहिर की.

‘‘बाप रे बाप, घर में कुबेर आ जाए, और पूछे कि कितना पैसा चाहिए?’’ कह कर पंडितजी खुश हो कर उन के पैरों की ओर झुके, ‘‘मैं ने तो सिर्फ जन्म दिया है, बाकी सबकुछ तो आप ही देंगे सरकार.’’

‘‘आप ने हीरा पैदा किया है हीरा.’’

‘‘हीरा क्या खाक होगा? इस के सब साथी इस से 2 क्लास ऊपर हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं. स्कूल में जो पढ़े सो पढ़े. घर पर मैं इस के साथ मेहनत करूंगा. यह सब के बराबर हो जाएगा. मीनाक्षी भी पढ़ने में तेज है. वह उस की अच्छी मदद करेगी. आप को आगे के लिए कुछ नहीं सोचना है.’’

‘‘ठीक है माईबाप. जब भी आऊंगा तो खाली हाथ नहीं आऊंगा सरकार,’’ कह कर पंडितजी चलते बने.

‘‘सुदर की मां, उसे सही जगह पर दे आया हूं. समझो, देवता मिल गए हैं,’’ घर आते ही पंडितजी ने सारी बात पंडिताइन को सुनाई.

पंडिताइन के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया.

‘‘अरी भाग्यवान, तुम किस सपने में खोई हुई हो? कुछ सुना कि नहीं, जो मैं ने कहा?’’

‘‘सुन लिया. यहां काजल थी, वहां मीनाक्षी है. यही तो कह रहे थे तुम? बेटे को जानते हो न? छोटी सी उम्र में ही प्रेम रोग लगा बैठा है?’’

‘‘इसीलिए तो मैं ने वहां दे दिया. जगहंसाई की वजह तो न बनेगा. कम से कम मीनाक्षी तो ऊंची जाति की है.’’

‘‘तो यह कहो न कि सुंदर का सौदा कर दिया है. मैं तो कहती हूं, उस का मन जजमानी में लगाओ. ट्रेनिंग दो. आप के बाद क्या होगा, सोचा है कभी?’’

‘‘तुम दोनों कान की बहरी हो, कुछ नहीं सुनोगी,’’ कहते हुए पंडितजी कंधे पर गमछा डाल कर बाहर निकल गए. काजल ज्योंज्यों बड़ी होने लगी, त्योंत्यों उस के बदन का उभारनिखार भी बढ़ने लगा. इसी के चलते वह सभी लड़कों के ख्वाबों में बस गई थी. सभी उस का साथ पाने को बावले हो गए थे.

काजल ने पढ़ाई में ऐड़ीचोटी का जोर लगा दिया. कभीकभी सुंदर की याद आती तो वह सोचती कि पता नहीं, उस ने फार्म भरा भी है या नहीं. वैसे, एक क्लास तो वह चूक ही गया था.

इधर, सुंदर को टीचर मिश्राजी ने जीजान से पढ़ाना शुरू कर दिया. सुबहशाम उस पर इतना समय लगाया कि वह एक क्लास चूकने के बावजूद फार्म भरने के लायक हो गया.

मिश्राजी ने किसी दूसरे स्कूल से उसे भी मैट्रिक का छात्र बनवा दिया. सुंदर ने भी अपनी ओर से पढ़ाई करने में कोई कमी नहीं छोड़ी. कभीकभी वह मीनाक्षी से काजल की बातें करता तो मीनाक्षी कहती, ‘‘दिखाओ न एक दिन?’’

‘‘नहीं आएगी वह. ग्राम पंचायत का फैसला है कि कोई भी ऊंची जाति का शख्स उस से नहीं मिल सकता,’’ ऐसा कह कर सुंदर उदास हो गया.

‘‘क्यों?’’ मीनाक्षी ने पूछा.

‘‘क्यों, क्या? सारा गांव बाबुओं का है और वह दलित है.’’

‘‘काजल दलित है?’’

‘‘हां, लेकिन उस से क्या? यह कोई छूत की लाइलाज बीमारी तो है नहीं. दिल की बड़ी अच्छी है. देखने में भी सुंदर है,’’ कह कर सुंदर सिसक उठा.

मीनाक्षी ने प्यार से सुंदर की पीठ पर हाथ रखा, ‘‘अच्छा, मैं समझी. तुझे इसी बात का दुख है कि वह तुझ से आगे निकल जाएगी?’’ सुंदर बस हिचकियां भरता रहा.

‘‘फिर भी तू काजल से अच्छे नंबर लाएगा,’’ मीनाक्षी ने उस का हौसला बढ़ाया. सुंदर भी यह सोच कर खिल उठा कि अगर ऐसा हुआ तो काजल की हेकड़ी टूट जाएगी.

मैट्रिक का इम्तिहान हुआ. नतीजा आया तो काजल राज्य में 5वें नंबर पर आई. अखबार में उस के फोटो समेत छपा, ‘गुदड़ी की लाल, जिले में कमाल’.

मुख्यमंत्री ने टौप 10 छात्रा को 25-25 हजार रुपए व कलक्टर ने 10-10 हजार रुपए दे कर सम्मानित करने का ऐलान किया.

समारोह में जिले के डीईओ साहब बतौर मुख्य अतिथि पधारे थे. इन के ही हाथों काजल को कामयाबी की माला पहनानी थी और 10 हजार रुपए का चैक देना था. सो, दोनों मांबेटी को बुलाया गया.

आई तो बस काजल की मां और माइक थाम कर बोल गई, ‘‘अब काहे की काजल? काहे की माला? हुजूर, गांव में 2 ही घर दलितों के हैं. बाकी हैं बाबू लोग. इन लोगों ने अपने बच्चों को काजल से दूर रहने की हिदायद दे रखी है. सभी हिकारत की नजर से देखते हैं. आज उस के लिए ही माला? नहीं आएगी काजल, साहब,’’ उस ने डीईओ साहब को नमस्ते किया और मंच से उतर कर घर चली गई.

मंच पर ही कोलाहल मच गया. कानाफूसी होने लगी कि अब क्या होगा? डीईओ साहब खुद दलित थे. कहीं स्कूल की यूनिट खत्म कर दी तो बच्चे 10 किलोमीटर दूर जा कर पढ़ सकेंगे क्या?

डीईओ साहब खुद काजल के घर आए और पुचकार कर माला पहनाई और चैक दिया. फिर पूछा कि किस कालेज में दाखिला लोगी. जहां वह दाखिला लेना चाहेगी, वहां उस के लिए सीट रिजर्व रहेगी. यह सरकारी इंतजाम है.

‘‘नहीं साहब, मेरी मां अकेली रह जाएंगी. फिर ज्यादा पढ़लिख कर दलितों में शादीब्याह की भी समस्या आती है. पढ़ेलिखे लड़के मिलते ही नहीं. मिलते हैं तो दहेज में मोटी रकम चाहिए. मैं ठहरी गरीब लड़की.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई समस्या नहीं आएगी. तुम्हारे पीछे पूरी सरकार खड़ी है. शादीब्याह की जब बात आएगी तो लड़के भी मिलेंगे और वे भी बिना दहेज के. केवल तुम अपने पढ़ने की रफ्तार कम मत करो,’’ इतना समझा कर वे चले गए.

काजल को तो बस सुंदर की चिंता सता रही थी कि वह मैट्रिक में पास हुआ भी है या नहीं. उस ने तय किया कि अगर सुंदर फेल हो गया होगा तो वह भी आगे दाखिला नहीं लेगी.

काजल का फोटो अखबार में देख सुंदर चहक उठा, ‘‘यही है मेरी काजल. मीनाक्षी, यही है मेरी काजल…’’ और उस का गला भर्रा गया, ‘‘मीनाक्षी, काजल कितनी दूर चली गई? कटी पतंग की तरह बदलों के पार. मुझे मिल पाएगी या नहीं?’’ और गमछे से वह आंसू पोंछने लगा.

‘‘पागल… एक तो तुम कहते हो कि वह दलित है, दूसरे तुम से अव्वल. अब वह तुम्हें देखेगी भी क्या?’’

‘‘नहीं मीनाक्षी, वह मेरी बचपन की दोस्त है. हम ऊंची जाति वाले उसे भूल सकते हैं, पर वह नहीं भूलेगी.’’

तभी मिश्राजी गरजे, ‘‘चुप… जाति का ब्राह्मण हो कर दलित लड़की का नाम रटे बैठा है. तुझ पर मैं दिनरात मेहनत और खर्च कर रहा हूं. मैं अंधा हूं क्या?

(क्रमश:)

क्या काजल व मीनाक्षी कभी मिल पाईं? सुंदर की जिंदगी में काजल आई या मीनाक्षी? पढ़िए अगले अंक में…

मोदी सरकार के 4 साल : जस के तस सांसद आदर्श गांव

साल 2014 में नेता जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के दोनों सदनों के सांसदों को 3-3 गांवों को ‘सांसद आदर्श गांव’ के रूप में चुन कर देशभर से तकरीबन 6 लाख गांवों में से 2500 गांवों में बुनियादी सुविधाओं समेत उन्हें हाईटैक बनाने का टारगेट दिया था.

इन गांवों को चुनने के पीछे कुछ शर्तें भी रखी गई थीं जिन के तहत कोई भी सांसद खुद का या पत्नी के मायके का गांव नहीं चुन सकता था. गांव की आबादी 3 से 5 हजार के बीच होनी थी. इन गांवों में 80 से ज्यादा समस्याओं को ध्यान में रख कर तरक्की के काम किए जाने थे. सेहत, सफाई, पीने का साफ पानी, पढ़ाईलिखाई, ईलाइब्रेरी, कसरत, खेतीबारी, बैंकिंग, डाकघर समेत ऐसे तमाम मुद्दों पर तरक्की के काम होने थे.

इस से गांवों में शहरों की तरह सुविधाएं मिलना शुरू हो जातीं और वहां के लोगों को शहरों की तरफ नहीं भागना पड़ता. लेकिन सांसद आदर्श गांवों की हकीकत कुछ और ही है. अगर सांसद आदर्श गांवों में हुए तरक्की के कामों की हकीकत की बात करें तो देश में तकरीबन 6 लाख गांवों में से अब तक 3 चरणों में 2500 गांवों को चुन लिया जाना था. लेकिन अभी पहले चरण में लोकसभा के 543 सांसदों में से केवल 500 सांसदों ने ही गांवों को चुना है यानी 43 सांसद ऐसे हैं जिन्हें गांवों की तरक्की से कुछ लेनादेना नहीं है.

राज्यसभा के सांसद तो गांवों को ले कर और भी उदासीन हैं. पहले चरण में 253 सांसदों में से केवल 203 सांसदों ने ही गांवों को चुना जबकि बाकी के 50 सांसद चुनने की जहमत तक नहीं उठा सके.

अगर इस योजना के दूसरे चरण की बात की जाए तो इस के हालात तो और भी खराब हैं. इस में 545 लोकसभा सांसदों में से केवल 323 सांसदों ने ही गांवों को चुना जबकि 222 सांसद गांवों को चुनने में नाकाम रहे. राज्यसभा के 241 सांसदों में से केवल 120 सांसदों ने गांवों को चुना, बाकी सांसदों ने तो इस के बारे में सोचा तक नहीं.

जिन सांसदों ने दूसरे चरण में गांवों को चुना उन में से ज्यादातर सांसद तीसरे चरण के गांवों को चुनने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. अभी तक तीसरे चरण में लोकसभा के 543 सांसदों में से केवल 93 सांसदों ने ही गांवों को चुना है. बाकी के सांसदों को गांवों के चुनने में कोई दिलचस्पी नहीं. अगर राज्यसभा के सांसदों की बात की जाए तो 241 सांसदों में से केवल 24 सांसदों ने ही गांवों के चुनने में दिलचस्पी दिखाई यानी बाकी राज्यसभा सांसदों को गांव की तरक्की से कुछ भी लेनादेना नहीं है. कई सांसद आदर्श गांवों का दौरा करने पर पता चलता है कि ऐसे गांवों के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. ज्यादातर सांसद ऐसे हैं जिन्होंने गांवों को चुन तो लिया है लेकिन तरक्की के कामों में वे फिसड्डी साबित हुए. जो छोटेमोटे काम हुए भी हैं, उस का फायदा सिर्फ अगड़ों तक ही सिमट कर रह गया.

बस्ती लोकसभा क्षेत्र के सांसद हरीश द्विवेदी ने पहले चरण में गांव अमोढ़ा को चुना. इस गांव के उत्तरी छोर पर हरिजन बस्ती व सोनकर बस्ती यानी खटीक लोग रहते हैं जो आज भी बुनियादी सुविधाओं से दूर हैं. सरकार व प्रशासन बड़े जोरशोर से स्वच्छ भारत का राग अलाप रहे हैं और इस मुहिम के कामयाब होने का ढोल भी पीट रहे हैं, पर आज भी यहां के लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. यहां की पूरी दलित बस्ती ही खुले में शौच के लिए जाती है. तमाम औरतें अपनी जान जोखिम में डाल कर खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर हैं.

सीतारुन्निसा जैसी कई औरतें विधवा पैंशन पाने के लिए सैकड़ों बार सरकारी अफसरों की चौखट पर नाक रगड़ चुकी हैं, लेकिन आज तक उन्हें विधवा पैंशन नसीब नहीं हुई है. हरिजन बस्ती के लोग आज भी बिजली के लिए तरस रहे हैं, क्योंकि इस बस्ती में आज तक बिजली पहुंची ही नहीं है.

सड़कों पर बजबजाती नालियों का गंदा पानी व कूड़े का ढेर यहां की साफसफाई व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहा है. गांव के दलित परिवार आज भी फूस के घरों में रहने को मजबूर हैं. उत्तर प्रदेश में एक दिन के लिए मुख्यमंत्री की कुरसी संभालने वाले सिद्धार्थनगर जिले की डुमरियागंज सीट के सांसद जगदंबिका पाल द्वारा चुने गए सांसद आदर्श गांव तरक्की का भी यही हाल है.

यहां भी दलित पुरवा तरक्की की योजनाओं का फायदा लेने के लिए तरस रहा है. इस गांव के पश्चिमी छोर पर हरिजन टोले में पहुंचने पर सब से पहले सड़क किनारे खुले में किया गया शौच आप का स्वागत करता हुआ मिल जाएगा. मिश्रीलाल, रामफल शर्मा, मनोहर, मंजू देवी, नीरज, नंदू जैसे सैकड़ों परिवार हैं, जिन के पास रहने को घर तक नहीं हैं. शौचालय न होने के चलते ये लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं. गांव में शौचालय, घर, बिजलीपानी की समस्या जैसे पहले थी वैसे ही आज भी बनी हुई है. गांव के लोगों में सांसद जगदंबिका पाल के खिलाफ गुस्सा है. उन का कहना है कि जब गांव को पिछड़ेपन के दलदल में ही धकेलना था तो फिर इस गांव को सांसद आदर्श गांव के रूप में क्यों चुना गया?

लोग नहीं पहचानते सांसद को जिन सांसदों ने आदर्श गांवों को चुना, वे उस गांव में जाने की कोशिश ही नहीं करते. इस वजह से गांव के ज्यादातर लोग सांसदों को पहचानते ही नहीं हैं.

देश में ऐसे तमाम सांसद हैं जो सदन की बैठक तक में शामिल नहीं होते, ऐसे में गांवों में जाने की बात तो दूर की कौड़ी है. जिन गांवों की पड़ताल की गई वहां के ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि वे सांसद को नहीं पहचानते. क्रिकेटर रह चुके सचिन तेंदुलकर को ले कर सांसद आदर्श गांव के लिए बड़ी छीछालेदर हुई. इस के बाद वे पहली बार गोद लिए गांव में गए.

दलितों से वसूले जाते हैं पैसे सरकार दलितों के लिए ऐसी तमाम योजनाएं चलाती है जिन में उन्हें मुफ्त में बुनियादी सुविधाओं का फायदा मिलना चाहिए. लेकिन सांसद आदर्श गांव की हकीकत तो कुछ और है. यहां गरीबों को खाना पकाने के लिए मुफ्त में उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनैक्शन मिलना था लेकिन जिन दलितों को इस योजना का फायदा दिया गया उस में 1-1 कनैक्शन के लिए 1600 रुपए वसूले गए.

जो दलित परिवार पैसा दे पाने में नाकाम थे उन को कनैक्शन के कागज ही नहीं दिए जा रहे थे. कुछ परिवारों ने उधार के पैसे से कनैक्शन लिए. सोना देवी, गुडि़या, रेनू, आशा जैसी तमाम औरतों ने बताया कि उन से उज्ज्वला गैस कनैक्शन के नाम पर 1600 रुपए वसूले गए. 2 और क्यों चुन लिए

जिन सांसदों ने प्रधानमंत्री के दबाव में तीनों चरणों के गांवों को चुन भी लिया, अभी उन के द्वारा चुने गए पहले चरण के गांवों में ही तरक्की को रफ्तार नहीं मिल पाई है, ऐसे में जब अगले साल यानी 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं, तो सांसद आदर्श गांवों में तय किए गए तरक्की के कामों को अमलीजामा पहनाना मुश्किल दिख रहा है. आज जब देश और देश के 19 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, उस के बाद 3 गांवों को चुन पाना और उन गांवों की तरक्की करने में पूरी तरह फेल हो जाने से सरकार की गांवों के प्रति अनदेखी का पता चलता है.

सांसद आदर्श गांवों को ले कर लोग यहां तक कह रहे हैं कि ये गांव 4 साल बाद भी गोदी में ही खेल रहे हैं. इस से जाहिर होता है कि सरकार गांव के लोगों को बेवकूफ बना कर अपना चुनावी उल्लू सीधा करना चाहती है.

सांसद आदर्श गांवों को आईना दिखाता एक गांव

उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थनगर जिले के ब्लौक भनवापुर का हसुड़ी औसानपुर गांव अपनी तरक्की के कामों के चलते बड़ेबड़े शहरों तक को मात दे रहा है. यह सब सरकार, गांव के लोगों व ग्राम प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी की कोशिशों के चलते मुमकिन हुआ है. जिस समय दिलीप कुमार त्रिपाठी ने गांव की जिम्मेदारी संभाली थी, उस समय गांव में गंदगी थी. लोगों के घरों में शौचालय न होने के चलते हर कोई खुले में शौच करने को मजबूर था. गांव में बना प्राथमिक व जूनियर स्कूल बदहाली का शिकार था. बेरोजगारी के चलते लोग गांव से बाहर जाने को मजबूर थे.

ग्राम प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी ने पंचायत सदस्यों के साथ सलाहमशवरा कर गांव की तरक्की का खाका तैयार किया. लेकिन पता चला कि इस गांव के लिए सरकार के पास इतना भी बजट नहीं है जिस से एक भी काम पूरा किया जा सके. ऐसे में उन्होंने तय किया कि वे इस गांव को शहरों से भी ज्यादा सुविधाएं मुहैया कराएंगे. उन्होंने अपने मछलीपालन व सोलर के कारोबार से होने वाली कमाई को गांव की तरक्की में खर्च करने की ठान ली. गांव हुआ डिजिटल हसुड़ी औसानपुर गांव में बिजली के खंभों पर अब 23 सीसीटीवी कैमरे लग गए हैं. इन कैमरों से गांव में खुले में शौच रोकने की निगरानी किए जाने के साथसाथ दूसरी तमाम गलत हरकतों पर नजर रखी जाती है.

गांव वालों को फ्री में वाईफाई सुविधा देने के लिए बिजली के खंभों पर इंटरनैट राउटर लगाए गए हैं. हर खंभे पर लगे सिस्टम से उद्घोषक गांव वालों को जागरूक करने का काम करते हैं. गांव वालों को सरकार की औनलाइन सेवाओं के लिए शहर न जाना पड़े, इस के लिए गांव में कौमन सर्विस सैंटर बनाया गया है जहां से राशनकार्ड, जन्म प्रमाणपत्र, मृत्यु प्रमाणपत्र, खेतीबारी से जुड़े अनुदान, वृद्धावस्था पैंशन, विधवा पैंशन वगैरह की आवेदन सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं. यह प्रदेश का पहला ऐसा गांव है जहां की गांव से

जुड़ी 18 सूचनाओं समेत जमीनजायदाद की सूचनाएं जियोग्राफिकल इनफौर्मेशन सिस्टम के जरीए गांव की वैबसाइट से सार्वजनिक की गई हैं. हर घर में बिजली पहुंच चुकी है. गांव में बिजली की बचत के लिए एलईडी के बल्ब जलाए जाते हैं. बिजली के खंभों पर भी एलईडी की स्ट्रीट लाइटें लगाई गई हैं.

इस गांव को कैशलैस बनाने के लिए एक बैंक द्वारा गांव में ही ग्राहक सेवा केंद्र बनाने की कवायद की गई है. बैंक से जुड़े अफसर हिमांशु टंडन ने बताया कि गांव की तरक्की में भागीदारी करते हुए गांव के सरकारी स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए रंगबिरंगे बैंच व डिजिटल लाइब्रेरी समेत अनेक सुविधाएं देने की कवायद शुरू की गई है.

ग्राम प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी ने राजस्थान के जयपुर से प्रभावित हो कर इस गांव के घरों की सभी दीवारों को गुलाबी रंग में रंगवा दिया है. अब तो इस गांव को ‘पिंक विलेज’ के नाम से जाना जाने लगा है. इस गांव के स्कूल का ऐसा बदलाव किया गया है कि यह पढ़ाई और दूसरी सुविधाओं के मामले में प्राइवेट स्कूलों को भी मात दे रहा है. टाइल्स लगे फर्श, लड़केलड़कियों के लिए अलगअलग शौचालय, साफ पानी के लिए स्कूल में आरओ सिस्टम, बच्चों की सिक्योरिटी के लिए हर क्लास में सीसीटीवी कैमरे, प्रोजैक्टर और दूसरी तकनीकी सुविधाओं से लैस स्मार्ट क्लास, साफसुथरे भोजन का इंतजाम इस स्कूल को दूसरे स्कूलों से अलग बनाता है.

गांव में कोई बीमार न पड़े, इस के लिए सभी को सेहत व सफाई की आदतों को ले कर जागरूक किया गया है. गांव को चारों ओर से खूबसूरती बढ़ाने वाले पौधों के साथसाथ फलदार व औक्सिजन बढ़ाने वाले पौधों को रोपा गया है. गांव के अंदर सड़कों को इंटरलौकिंग ईंटों से पक्का किया जा चुका है और गांव को शहर से जोड़ने वाली सड़क को कंक्रीट का बनाया जा चुका है.

इस गांव में किसानों को मजबूत किए जाने की कोशिश की जा रही?है. उन्हें समयसमय पर ट्रेनिंग, जैविक खेती की तकनीक, उन्नत कृषि यंत्र व बीज वगैरह की जानकारी मुहैया कराई जाती है. गांव के किसानों को सस्ती सिंचाई के लिए 6 सोलर पंप मुहैया कराए गए हैं. कृषि विज्ञान केंद्र, सोहना के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को खेती के नुसखे दिए जाते हैं.

गांव के लोगों को मनरेगा के जरीए रोजगार भी दिया जा रहा है. गांव की लड़कियों, औरतों व नौजवानों के लिए कंप्यूटर व सिलाईकढ़ाई की मुफ्त ट्रेनिंग दी जा रही है. इस गांव में छुआछूत का नामोनिशान तक नहीं मिलेगा. गांव की लड़कियों की शादी में ग्राम प्रधान की तरफ से 11 हजार रुपए की मदद भी दी जाती है.

क्या यही लोकतंत्र है

श…श…श… कोई सुन न ले. अब यह भूल जाइए कि आप की कोई बात गुप्त है. आप की हर बात कोई भी सुन सकता है और कभी भी कहीं भी. आप का लिखा पढ़ सकता है, आप का फोटो देख सकता है. अगर मौजमस्ती मेंकोई अंतरंग फोटो खींचा है, तो उस का दुरुपयोग कर सकता है. आप के खाने की रैसिपी पढ़ कर आप को बेसन के विज्ञापन भेज सकता है. आप के मसूरी के प्रोग्राम के बारे में सहेली को लिखे मैसेज को जान कर आप को मसूरी के ट्रैवल एजैंटों के नाम भेजना शुरू कर सकता है. आप के बचपन की तसवीरें ढूंढ़ सकता है. बीसियों के गु्रप में आप को पहचान सकता है.

यह सब इसलिए हो सकता है, क्योंकि आप मोबाइल इस्तेमाल कर रही हैं और उसे अपना जीवन अमृत मानती हैं. इस में आप की आत्मा बसती है, इसी के सहारे आप जिंदा हैं.

मोबाइल कंपनियों के लिए मोबाइल और उस के मुफ्त ऐप असल में शेर का शिकार करने के लिए बांधे गए मेमने हैं, जिन के सहारे आप के पर्स पर कब्जा किया जा रहा है. कुछ शातिर लोग आप की निजी बातों को जान कर कब आप को ब्लैकमेल करने लगें, पता नहीं.

हम डरा नहीं रहे. फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग ने अमेरिकी संसद की संयुक्त समिति में एक हियरिंग में यह माना और कहा कि वे अपने यूजर्स के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, क्योंकि यूजर्स ने उन की मुफ्त सेवाएं लेते समय सब जान लेने की सहमति दी थी. यह सहमति आप ने एक बौक्स पर ‘हां’ का निशान लगाते समय दी थी, जिस के बिना आप फेसबुक अकाउंट खोल ही नहीं सकतीं.

कल्पना करिए कि आप की अविवाहित सहेली कहती है कि वह प्रैगनैंट है और यह बात कहीं से कहीं होती हुई उस तक पहुंच जाती है जो इस का दुरुपयोग कर सकता है. फेसबुक कंपनी मानती है कि उस के पास तो यह डेटा है ही पर सुरक्षित है. यह सुरक्षा कैसी है यह सब जानते हैं.

भारत सरकार ने भी बहुत सा डेटा आधार नंबर के जरीए जमा कर रखा है. आप का मोबाइल आधार से जुड़ा है और आप ने मोबाइल से ही लाल रंग की पैंटी खरीदी थी, यह अब सरकार को मालूम है. आप की निजी जिंदगी है ही नहीं. आप फेसबुक, व्हाट्सऐप, आधार के सामने बिना कपड़ों की हैं. सारे राज जगजाहिर हैं.

क्या यही लोकतंत्र है, जिस में आप कैदी की तरह हैं और जिस के चारों ओर कैमरे लगे हैं? निजता जीवन का अभिन्न अंग है. आप ने सही किया या गलत यह किसी को भी नहीं पता चलना चाहिए जब तक आप ने अपराध न किया हो. सरकार हर जने को जन्मजात अपराधी नहीं मान सकती.

आप के डेटा का दुरुपयोग करने वाला कौन है? कोई भी हो सकता है. सरकारी नौकरी है तो सरकार हो सकती है. निजी नौकरी में हैं तो कोई पैसा दे कर यह जानकारी ले सकता है. डिटैक्टिव ऐजेंसियां इस तरह की जानकारी जमा कर सकती हैं. बैंक आप को लोन देने से पहले आप का कच्चा चिट्ठा जमा कर सकते हैं. विवाहपूर्व जानकारी जमा करने का धंधा आधार और फेसबुक से डेटा चोरी करने वाले खोल सकते हैं. कैंब्रिज एनैलिटिका ने यही किया था और कई देशों में नेताओं के प्रचार में सही तरह से भरमाने का रास्ता सुझाया था. आप के छोटे से मोबाइल की सुविधा जंजीर भी हो सकती है आप की आजादी की.

आज खतरा मंडरा नहीं रहा. लोग पकड़े नहीं जा रहे, पर कल क्या होगा पता नहीं. मोबाइल छोड़ना आसान नहीं पर यह समझ लें कि यह वह टाइम बम है जो अगर फटा तो जीवन में हलचल मचा देगा.

बौलीवुड डेब्यू से पहले ही कानूनी पचड़े में फंसी सारा अली खान

सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान फिल्म ‘केदारनाथ’ से बौलीवुड में डेब्यू करने वाली हैं. लेकिन करियर की पहली फिल्म की रिलीज से पहले ही सारा कानूनी पचड़े में फंस गई हैं. ‘केदारनाथ’ के डायरेक्टर- प्रोड्यूसर अभिषेक कपूर ने फिल्म के कौन्ट्रैक्ट के उलंघन का आरोप लगाते हुए सारा को कानूनी नोटिस भेजा है. अभिषेक का कहना है कि सारा ने ‘केदारनाथ’ के कौन्ट्रैक्ट को नजरअंदाज करते हुए डायरेक्टर रोहित शेट्टी की फिल्म ‘सिम्बा’ को डेट्स दे दी हैं. केदारनाथ के प्रोड्यूसर ने कहा कि सारा ने एग्रीमेंट्स पर साइन किया था.

सारा से बहुत गुस्सा हैं अभिषेक

अभिषेक कपूर के एक बहुत करीबी सूत्र ने बताया कि वे इस बात को लेकर सारा से बहुत नाराज हैं कि पहली फिल्म की शूटिंग अभी बाकी है और उन्होंने दूसरी फिल्म (‘सिम्बा’) साइन कर ली. उनका कहना है कि एग्रीमेंट्स में ये साफ लिखा था फिल्म की शूटिंग के दौरान वह सभी डेट्स पर मौजूद रहेंगी लेकिन जब मेकर ने सारा को मई से 5 जुलाई तक शूटिंग के लिए मौजूद रहने को कहा तो उनके एजेन्ट ने बताया कि सारा जून में सिंबा की शूटिंग में बिजी हैं. अब प्रोड्यूसर की डिमांड है कि या तो सारा पहले अपनी कमिटमेंट्स पूरी करें या फिर 5 करोड़ का हर्जाना भरें.

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी

शुक्रवार को कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी. कोर्ट में अभिषेक की ओर से शरण जग्तियानी और सारा की ओर से गौरव जोशी ने अपना-अपना पक्ष रखा. जब कोर्ट ने दोनों पक्षों से सेटलमेंट करने को कहा तो वे तैयार नहीं हुए. कोर्ट अब मंगलवार को इस मामले में सुनवाई करेगा.

एंड्रायड टीवी समेत इन डिवाइस पर नहीं चलेगा ट्विटर

अगर आप भी एक ट्विटर का इस्तेमाल करते हैं तो यह खबर आपको परेशान कर सकती है. हाल ही में एप्पल के मैक के लिए सपोर्ट बंद करने के बाद ट्विटर ने अन्य कई डिवाइस पर भी अपने प्लेटफौर्म को बंद करने का फैसला लिया है. जी हां, यह सच है रोकु के टीवी ऐप्स, एंड्रायड टीवी और एक्सबौक्स पर पर यूजर्स ट्विटर नहीं चला सकेंगे. इसकी जानकारी ट्विटर ने खुद एक ट्वीट कर दी है.

हालांकि ट्विटर ने इस बात की जानकारी नहीं दी है कि उसके इतने बड़े फैसले लेने की वजह क्या है? इन प्लेटफौर्म से वह अपना सपोर्ट क्यों बंद कर रहा है?  वैसे आमतौर पर लोग मोबाइल या डेस्कटौप पर ही ट्विटर यूज करते हैं. ऐसे में ट्विटर के एडिक्ट यूजर्स ही टीवी पर इसे यूज करना पसंद करते होंगे.

वहीं कहा जा रहा है कि 25 मई से यूरोप में जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेग्यूलेशन (GDPR) लागू दिया गया है, जिसे देखते हुए ट्विटर ने यह फैसला लिया है. हालांकि एप्पल टीवी और अमेजौन फायर टीवी पर ट्विटर उपलब्ध रहेगा. बता दें कि Twitter ने रोकु ऐप के लिए 2017 में सपोर्ट दिया था, उससे पहले 2016 में कंपनी ने एप्पल TV, फायर टीवी और एक्सबॉक्स के लिए ट्विटर को पेश किया था.

नौकरीपेशा 5 करोड़ लोगों को ईपीएफओ की तरफ से झटका

अगर आप भी नौकरी करते हैं तो कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) का यह फैसला पढ़कर आपको झटका लग सकता है. ईपीएफओ के इस फैसले से 5 करोड़ नौकरीपेशा लोगों की जेब पर असर पड़ेगा. ईपीएफओ ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों से फाइनेंशियल ईयर 2017-18 के लिए 5 करोड़ अंशधारकों के खातों में 8.55 प्रतिशत ब्याज डालने को कहा है. यह वित्त वर्ष 2012-13 के बाद सबसे कम है.

आचार संहिता के कारण नहीं हुई थी लागू

ईपीएफओ की तरफ से 120 से अधिक क्षेत्रीय कार्यालयों को लिखे गए पत्र के अनुसार लेबर मिनिस्ट्री ने कहा है कि केंद्र सरकार ने 2017-18 के लिए अंशधारकों के भविष्य निधि खातों में 8.55 प्रतिशत ब्याज देने को मंजूरी दी है. आपको बता दें कि वित्त मंत्रालय ने पिछले वित्त वर्ष में ईपीएफ पर 8.55 प्रतिशत ब्याज देने को मंजूरी दी थी. लेकिन कनार्टक चुनाव के कारण आचार संहिता लगे होने से इसे लागू नहीं किया जा सका.

21 फरवरी को मिली थी मंजूरी

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श्रम मंत्री की अध्यक्षता वाला ईपीएफओ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड ने 21 फरवरी 2018 को हुई बैठक में 2017-18 के लिए 8.55 प्रतिशत ब्याज देने का फैसला किया था. मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय की मंजूरी के लिए यह सिफारिश भेजी थी. हालांकि वित्त मंत्रालय की सहमति से इसे क्रियान्वित नहीं किया जा सका और बाद में 12 मई को होने वाले कर्नाटक चुनाव से पहले आचार संहिता लगे होने के कारण इसमें और देरी हुई.

पीएफ अकाउंट के आधार पर लोन

इससे पहले ईपीएफओ ने 2016-17 के लिए 8.65 प्रतिशत ब्याज दिया था. वहीं 2015-16 में यह 8.8 प्रतिशत, 2014-15 और 2013-14 में 8.75 प्रतिशत था. वर्ष 2012-13 में ईपीएफओ ने 8.5 प्रतिशत ब्याज दिया था. इससे पहले महीने की शुरुआत में खबर आई थी कि नए प्लान अनुसार पीएफ अकाउंट के आधार पर आसान शर्तों पर होम लोन, औटो लोन और एजुकेशन लोन मिल सकता है.

दरअसल सेंट्रल बोर्ड औफ ट्रस्टीज (CBT) की बैठक में प्रस्ताव मिला कि ईपीएफओ फाइनेंशियल सर्विसेज एन्टिटी (FSE) की तरह काम कर सकता है. बैठक के दौरान ईपीएफओ को फाइनेंशियल संस्था बनाने का प्रस्ताव मिला था. उम्मीद की गई कि अगर ईपीएफओ ऐसा करता है तो इससे पीएफ अंशधारकों को ज्यादा रिटर्न मिल सकता है.

इंस्टाग्राम लेकर आया म्यूट फीचर

अगर आप भी इंस्टाग्राम इस्तेमाल करते हैं तो आपके लिए एक खुशखबरी है. इंस्टाग्राम आपके लिए एक नया फिचर लेकर आया है. इंस्टाग्राम ने एक लंबे इंतजार के बाद म्यूट का फीचर लौन्च कर दिया है. इंस्टाग्राम म्यूट की मदद से आप उन लोगों को म्यूट कर सकते हैं, जिन्हें आप अनफौलो नहीं करना चाहते हैं लेकिन उनके पोस्ट से परेशान हैं. म्यूट करने के बाद आप बिना अनफौलो किए अनचाहे पोस्ट से छुटकारा पा सकते हैं.

कई बार ऐसा होता है कि हम कुछ खास लोगों को चाहकर भी अनफौलो नहीं कर पाते हैं, उनके पोस्ट हमें अच्छे नहीं लगते. या परिवार, कौलेज या कुछ दोस्त ऐसे होते हैं, जो बार बार फालतू के पोस्ट करते हैं, जिन्हे देखने में आप जरा भी इंटरेस्टेड नहीं है. ऐसे में इंस्टाग्राम का यह म्यूट फीचर आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकता है.

इस फीचर की मदद से इंस्टाग्राम पर अपनी फीड को अपने हिसाब से पर्सनलाइज्ड कर सकते हैं. हालांकि यह फीचर अभी सभी को नहीं मिल रहा है. अगले सप्ताह तक म्यूट गोल्बली लौन्च हो जाएगा. इसे एक्टिव करने के लिए अकाउंट के राइट साइट में दिख रहे तीन (…) पर क्लिक करके आप किसी को म्यूट कर सकते हैं.

सभी फौर्मेट से डिविलियर्स ने लिया सन्यास

दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी एबी डिविलियर्स ने अपने संन्यास की खबर से पूरे क्रिकेट दुनिया को चौंका दिया है. दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट फैन को छोड़िए, इस समय भारत और दुनिया के दूसरे देशों में क्रिकेट फैन उनके इस फैसले से  निराश हैं. एबी डिविलियर्स इस समय सबसे कमाल की फौर्म में थे. इसका उदाहरण उन्होंने आईपीएल में दे दिया था. विराट के बाद वही ऐसे खिलाड़ी थे, जिसका बल्ला जमकर बोला. कई मैचों में उन्हीं की दम पर बेंगलुरु की टीम जीती.

हालांकि बेंगलुरु प्ले औफ में नहीं पहुंच पाई. लेकिन टीम के कप्तान विराट कोहली ने भले सभी बल्लेबाजों की क्लास लगाई हो, लेकिन उन्होंने एबीडी की तारीफ में जमकर कसीदे पढ़े थे. डिविलियर्स ने 12 मैचों में 480 रन बनाए. इस दौरान उनका स्ट्राइक रेट 174 से ज्यादा का रहा. इसमें सबसे शानदार पारी नाबाद 90 रनों की रही. डिविलियर्स लंबे समय से आईपीएल का हिस्सा रहे हैं. इस दौरान वह दिल्ली और बेंगलुरु टीम से खेले.

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अब उनके संन्यास के बाद ये सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या वह अगले साल आईपीएल का हिस्सा होंगे या नहीं. उनके भारतीय प्रशंसक ये जरूर चाहेंगे कि वह आईपीएल में खेलें. रिटायरमेंट की घोषणा करते हुए डिविलियर्स ने कहा है कि वह क्रिकेट के हर फौर्मेट से विदाई ले रहे हैं. वह सिर्फ घरेलू क्रिकेट खेलेंगे. इसमें वह अपनी टीम टाइटंस की ओर से खेलते दिखाई देंगे.

आईपीएल में वह खेलेंगे इस पर उन्होंने अभी कुछ भी साफ नहीं किया है. हालांकि उन्होंने इसे पूरी तरह नकारा भी नहीं है. ऐसे में भारतीय क्रिकेट फैंस चाहेंगे कि डिविलियर्स अगले साल भी आईपीएल का हिस्सा बनें और अपने शानदार शौट्स लोगों को दिखाएं.

IPL में रन बनाने में 10वें  नंबर पर हैं डिविलियर्स

आईपीएल के इतिहास में अब रन बनाने वाले खिलाड़ियों में एबी डिविलियर्स 10वें नंबर पर हैं. उन्होंने आईपीएल में अब तक 141 मैच खेले हैं. इसमें 129 पारियों में उन्होंने 3953 रन बनाए हैं. इसमें उन्होंने 3 शतक और 28 अर्धशतक जड़े हैं. उन्होंने 150.93 की स्ट्राइक रेट से रन बनाए हैं. गौर करने वाली बात ये है कि उनसे ऊपर जो 9 खिलाड़ी हैं, उन सभी की स्ट्राइक रेट डिविलियर्स से कम है.

‘संजू’ के नए पोस्टर में दिखा सोनम-रणबीर का क्रेजी अवतार

अभिनेता संजय दत्त की जिंदगी पर आधारित फिल्म ‘संजू’ इन दिनों काफी सुर्खियों में है. अब तक कई पोस्टर और एक टीजर रिलीज हो चुका है. फिल्म के हर एक पोस्टर में संजय दत्त के कई तरह के लुक को दिखाया गया है. इसमें रणबीर बिल्कुल संजय जैसे दिख रहे हैं, जिसे देखकर हर कोई हैरान है. इसी बीच अब ‘संजू’ का एक और पोस्टर रिलीज किया गया है.

इस पोस्टर को ‘संजू’ के निर्देशक राजकुमार हिरानी ने अपने औफिशियल ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है. यह पोस्टर फिल्म के बाकि पोस्टर से थोड़ा हटकर है. इसमें रणबीर कपूर के साथ सोनम कपूर रोमांटिक अंदाज में नजर आ रही हैं. इस पोस्टर को शेयर करने के साथ ही उन्होंने लिखा-  ‘संजू’ की लव स्टोरी की एक तस्वीर, संजू का ट्रेलर आउट होने में केवल पांच दिन बाकी.’

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो, फिल्म में सोनम टीना मुनीम का किरदार निभाती नजर आएंगी. बताया जाता है कि टीना संजय की सबसे पहली गर्लफ्रेंड थीं. दरअसल संजय की डेब्यू फिल्म ‘रौकी’ की शूटिंग के दौरान ही दोनों काफी करीब आ गए थे.

बता दें यह फिल्म विधु विनोद चोपड़ा फिल्म्स और फौक्स स्टार स्टूडियो के बैनर तले बनाई गई है. अगर इस पोस्टर की बात करें तो यह पहली बार है जब रणबीर के अलावा कोई अन्य स्टार नजर आया है. बता दें, सोनम और रणबीर अपनी डेब्यू फिल्म ‘सांवरिया’ के दशक भर बाद इस फिल्म के लिए साथ आए हैं. यहां बता दें इस फिल्म में रणबीर और सोनम के अलावा परेश रावल, मनीषा कोइराला, विकी कौशल और दिया मिर्जा ने भी काम किया है. यह फिल्म इस साल 29 जून को रिलीज होने वाली है.

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