12 जुलाई को अक्षय कुमार की नई फिल्म ‘सरफिरा’ के सिनेमाघरों में रिलीज होते ही सोशल मीडिया पर अक्षय कुमार को ले कर कई तरह की बातें की जाने लगी थीं,यह सिलसिला आज भी जारी है. कुछ लोग अक्षय को ले कर कह रहे हैं, ‘हम तो डूबेंगे सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे’.
सवाल यह है कि सोशल मीडिया पर अक्षय कुमार को ले कर इस तरह की बातें क्यों की जा रही हैं? यों तो अक्षय कुमार ने 1987 में फिल्म ‘आज’ में कराटे इंस्ट्रक्टर का किरदार निभाया था पर उन के अभिनय कैरियर की असली शुरुआत 1991 में राज एन सिप्पी निर्देशित फिल्म ‘सौगंध’ से हुई थी. तब से अब तक वह लगातार काम करते आ रहे हैं.
पिछले 33 वर्ष के अभिनय कैरियर में उन्होंने सफलता व असफलता का स्वाद भी चखा. 12 जुलाई को अक्षय कुमार के कैरियर की 150 वीं फिल्म ‘सरफिरा’ रिलीज हुई, जिस ने सप्ताह भर यानी कि 7 दिनों में महज 18 करोड़ 80 लाख रुपए ही कमाए. यह आंकड़े निर्माता ने ही दिए हैं. इस में से निर्माता के हाथ सिर्फ 7 करोड़ रुपए ही आने हैं. निर्माता के अनुसार इस फिल्म का बजट 80 करोड़ रुपए ही है. इस का अर्थ यह हुआ कि फिल्म ‘सरफिरा’ बौक्स औफिस पर डिजास्टर साबित हो चुकी है.
यह हालत तब है जब फिल्म ‘सरफिरा’ को सफल साबित कराने के लिए अक्षय कुमार जो कि इस फिल्म के सिर्फ अभिनेता ही नहीं बल्कि एक निर्माता भी हैं, ने सारे हथकंडे अपना लिए. अक्षय कुमार ने अपने फैंस को देश के 12 शहरों में ‘सरफिरा’ को मुफ्त में दिखाया. शनिवार 13 जुलाई और रविवार 14 जुलाई को पीवी आइनौक्स ने ‘सरफिरा’ देखने वालों को 2 समोसे और एक चाय मुफ्त में दी और बाकायदा इसे पीवीआर व आइनौक्स की तरफ से ट्वीट किया गया था. इस के बावजूद फिल्म शनिवार को 4 करोड़ 25 लाख रुपए और रविवार को 5 करोड़ 25 लाख रुपए ही एकत्र कर सकी. इस के बाद पीआर मल्टीप्लैक्स ने सोमवार 15 जुलाई तथा मंगलवार 16 जुलाई को एक टिकट पर एक टिकट मुफ्त का औफर दिया, तब भी सोमवार व मंगलवार दोनों दिन मिला कर ‘सरफिरा’ ने महज 3 करोड़ 40 लाख रुपए ही कमाए थे. इतना ही नहीं पहले दिन 12 जुलाई को भी हर दर्शक को घर ले जाने के लिए पीवीआर की तरफ से कुछ उपहार दिए गए थे.
फिल्म ‘सरफिरा’ ने पहले दिन शुक्रवार को महज ढाई करोड़ रुपए ही कमाए थे. हाल ही में करण जोहर ने कलाकार की फीस और उस की फिल्म की बौक्स औफिस पर ओपनिंग रकम को ले कर जो कुछ कहा था उस का सीधा मतलब था कि जिस कलाकार की फिल्म बौक्स औफिस पर साढ़े 3 करोड़ रुपए की ओपनिंग लेती हो, उसे 35 करोड़ रुपए की पारिश्रमिक राशि लेने का हक नहीं बनता. अब ‘सरफिरा’ ने तो ढाई करोड़ रुपए की ही ओपनिंग ली. जबकि अक्षय कुमार तो 100 करोड़ से अधिक फीस लेते हैं तो क्या इसीलिए सोशल मीडिया पर लोग अक्षय कुमार को ले कर कई बेतुकी बातें कर रहे हैं?
दर्शकों ने सिर्फ अक्षय कुमार को ही नहीं बल्कि दक्षिण के मशहूर निर्देशक एस शंकर निर्देशित कमल हासन की फिल्म ‘हिंदुस्तानी 2’ (दूसरी भाषाओं में ‘इंडियन 2’ ) को भी सिरे से नकार दिया. सभी जानते हैं कि 1996 में कमल हासन की फिल्म ‘हिंदुस्तानी’(दूसरी भाषाओं में ‘इंडियन’ ) आई थी. अब 28 वर्ष बाद एस शंकर ने कमल हासन के साथ सिद्धार्थ को ले कर फिल्म ‘हिंदुस्तानी 2’ (दूसरी भाषाओं में ‘इंडियन 2’ )का निर्माण किया, जिस की लागत 300 करोड़ रुपए बताई जा रही है.
हिंदी भाषा में फिल्म ‘हिंदुस्तानी’ ने 7 दिन में महज 5 करोड़ रुपए कमाए, जबकि हिंदी, तमिल, तेलुगु, मलयालम व कन्नड़ को मिला कर 7 दिन में सिर्फ 70 करोड़ ही कमाए. इन में से निर्माता की जेब में आएंगे लगभग 30 करोड़ रुपए. इस तरह जुलाई के दूसरे सप्ताह में प्रदर्शित दो स्टार कलाकारों की फिल्मों को दर्शक नहीं मिले. अक्षय कुमार को ‘सरफिरा’ की असफलता ने रूला दिया है. अब अक्षय कुमार ने एक अंग्रेजी यूट्यूब चैनल पर इंटरव्यू दे कर बौलीवुड पर अपने खिलाफ साजिश रचने, उन की फिल्में असफल होने पर जश्न मनाने का आरोप लगाते हुए काफी कुछ कहा है,जबकि कमल हासन चुप हैं.
इस बारे में लोगों के अलगअलग विचार हैं. कुछ का कहना है कि मेरा पार्टनर मुझ से ज्यादा अर्न करता है और यह मेरे लिए चैलेंज ले कर आता है. और कुछ कपल के लिए यह प्रेशर पोइंट भी होता है. कुछ का मानना है कि जिस सहजता से मेरा पार्टनर मेरे लिए एक अच्छी डेट प्लान कर लेता है, महंगे गिफ्ट अफोर्ड कर लेता है, वैसा मैं उस के लिए नहीं कर पाती.
सच तो यह है कि पार्टनर का ज्यादा कमाना हर किसी रिलेशन के लिए अलग सिचुएशन लाता है. बस जरूरत है उस सिचुएशन को अच्छी तरह बैलेंस करने की. जैसे की कभी अपने पार्टनर को ये न कहें की में तुम से ज्यादा कमाता हूं. ये शब्द किसी भी रिलेशनशिप में आग का काम करते हैं इसलिए सोचसमझ कर ही बोलें. ऐसे बहुत सी बाते हैं जिन का ख्याल रखा जाना चाहिए. आइए जाने कैसे इस के लिए ग्राउंड लेवल पर कुछ रूल्स बनाए और उन्हें हैंडल करें.
एक पार्टनर अगर ज्यादा कमाता है, तो साथ निभाने के कुछ ग्राउंड रूल्स होने चाहिए-
ये न सोचें कि पार्टनर ज्यादा कमा रहा है तो घर की पूरी जिम्मेदारी उस की है बल्कि अगर आप दोनों कहीं घूमने जा रहे हैं तो इक्वली खर्च करें. अगर आप दोनों घूमने के शौकीन हैं, तो किसी भी ट्रिप पर जाने से पहले घूमने, खाने, रहने और शौपिंग का बजट बनाएं और आधाआधा बांट लें
अगर एक पार्टनर की सैलेरी कम है तो आप को उसे उल्टा सीधा बोलने का सर्टिफिकेट नहीं मिल गया है. अगर उस की सैलेरी ज्यादा है, तो भी उस से न चढ़ें सोचे कि उस ने इस के लिए कितनी मेहनत की होगी, ये न भूलें.
जब एक पार्टनर ज्यादा कमाता है तो कहीं न कहीं उस के मन में एक अहम् की भावना आ जाती है. जिस के चलते वह खुद को सुपरियर समझने लगता है और इस का अहसास लगातार सामने वाले को करता है. इस से कुछ हासिल नहीं होगा बार रिश्ता ही खराब होगा.
कई बार पति को लगता है कि बीवी मुझे कमतर न समझें इसलिए वह उसे बातबात में याद दिलाता रहता है कि भले ही वह ज्यादा कमाएं पर घर में रोब तो मेरा ही चलेगा. वह खुद को पत्नी के सामने छोटा समझने लगता है. ऐसे में पत्नी को चाहिए की वह पति को बताए ऐसा कुछ नहीं है. उस के हर काम की सराहना करें, बताएं कि आप के बिना मेरा कुछ नहीं है और पति भी समझें कि ज्यादा या काम कमाने से नहीं बल्कि आपसी समझदारी और तालमेल से घर चलता है.
फाइनेंशियल प्लानिंग दोनों साथ में मिल कर करें. घर का बजट साथ में बनाएं और तय करें कि किस चीज पर कौन कितना खर्च करेगा. इस से घर के खर्च में दोनों की ही सामान रूप से भागीदारी होगी कोई किसी को काम नहीं समझेगा.
प्रेशर क्रिएट न होने दें
कई बार पार्टनर को ज्यादा कमाते हुए देख कर प्रेशर क्रिएट हो जाता है कि हमें भी ज्यादा कमाना चाहिए. तभी एक अच्छी लाइफ चल पाएगी. उसी प्रेशर में कई बार या तो हम अपनी क्षमता से ज्यादा कमाने की कोशिश करते हैं या फिर ज्यादा काम करते हैं और उस का असर संबंधों पर भी पड़ता है.
पार्टनर के ज्यादा कमाने का प्रेशर आप न लें. हो सकता है कि वह जिस प्रोफेशन में हो वहां पैकेज आदि काफी अच्छा मिलता हो. अगर इस बात को ले कर प्रेशर फील करेंगी तो जो जौब आप कर रही हैं उस में भी संतुष्ट होना मुश्किल हो जाएगा. हां, अगर आप को लगता है कि कोई कोर्स आदि कर के या जौब चेंज कर के आप ज्यादा कमा सकती हैं, तो वैसा करें. लेकिन तभी जब आप का दिल और दिमाग दोनों ऐसा करने के लिए कहें, किसी और को खुश करने के लिए अपने को तकलीफ न दें.
बातचीत से हर मसले का हल निकाला जा सकता है अगर लग रहा है कि एक पार्टनर दूसरे के ऊपर सैलेरी की वजह से हावी होने की कोशिश कर रहा है, तो आप ये न सही बल्कि खुल कर उन से बात करें की आप को इस तरह का व्यव्हार स्वीकृत नहीं है. आपस में बातचीत करें. अपने पार्टनर को इस बात का एहसास कराएं कि वो आप के लिए कितना खास है. अगर इन बातों से आप की समस्याएं हल नहीं हो रहीं है तो जरूरत है कि आप किसी रिलेशनशिप काउंसलर से मिल कर इसे सुलझाएं.
अगर बीवी कह रही है आज मुझे औफिस में जरुरी काम है तुम घर में बैठ सकते हो, क्यूंकि आज बच्चों को जल्दी घर आना है, तो ज्यादा कमाने वाला पति कहे की हां आज मैं पेड लीव ले लूंगा. वो उस को कोम्प्रोमाईज़ करना चाहिए. क्योंकि कम कमाने वाले को समझ है की आज मैं इसे अगर घर बैठा रही हूं, तो इस की जरुरत ज्यादा बड़ी है. फिर चाहे वह जरुरत किटी पार्टी की हो या घर के काम की हो. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कौन ज्यादा कमाता है है बल्कि किस की जरुरत ज्यादा बड़ी है ये मायने रखता है.
बहुत बार पुरूष की सोच रूढ़िवादी होती है, तो भी वो अपनी पत्नी से इस बात की जलन रखने लगता है कि वो उस की तुलना में ज्यादा सफल महिला है या उस से ज्यादा कमाती है. इस के अलावा कई बार पुरूषों में इस बात की जलन हो जाती है कि कहीं उस की पत्नी उसे छोड़ न दे. अपनी इस सोच को बदलें. दोनों घर में ही खर्च कर रहें है इस से क्या फर्क पड़ता है कि कौन ज्यादा कमा रहा है.
कुछ चीजों में बचत ज्वाइंट होनी चाहिए कुछ चीजों में अलग होनी चाहिए. दूसरे से छुप कर कुछ न रखें. छुपाने से शक होगा और दूरियां आएंगी.
हम पड़ोसी को भी तो सहन करते हैं. एक पड़ोसी के पास छोटी गाड़ी है और एक के पास बड़ी है, तो भी तो हम दोनों पड़ोसी का सम्मान करते हैं. समाज में तो ऊंचनीच होती ही है. अगर कमाई में भी है तो क्या मुसीबत है होने दें.
भारत में आजादी के आठवें दशक में भी हर मिनट 3 नाबालिग लड़कियों की शादी हो रही है. ‘चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया’ के एक अध्ययन के अनुसार, यह संख्या प्रति वर्ष 16 लाख तक पहुंच जाती है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो यानि एनसीआरबी की रिपोर्ट हो या समयसमय पर सरकार की ओर से जारी किए जाने वाले अन्य आंकड़े कोई भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि 2018 से 2022 के बीच 3,863 नाबालिग शादी के मामले दर्ज हुए थे.
इस के बाद ‘चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया’ की ‘इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन’ ने 2011 की जनगणना से जुड़े आंकड़ों के साथ एनसीआरबी और नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-5 (2019-21) की सूचनाओं को मिला कर उन का विश्लेषण किया. जिस के आधार पर बताया कि हर साल 16 लाख नाबालिग लड़कियों की शादी हो रही है. भारत में 1929 में ही नाबालिग शादी को प्रतिबंधित किया जा चुका है.
देश में कानून अपनी जगह रहता है पर समाज अपने ढंग से काम करता है. अपराध के आंकड़े बताते हैं कि जिन राज्यों में नाबालिग लड़कियों के साथ शादी की घटनाएं हो रही हैं वहां उन के साथ रेप के अपराध भी हो रहे हैं. इस के कई उदाहरणों में सब से प्रमुख दहेज लेने देने का उदाहरण है. दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध है. इस के बाद भी दहेज का लेनदेन चल रहा है. दूसरा उदाहरण भ्रष्टाचार का है. यह भी कानून अपराध है. इस के बाद भी समाज में यह चल रहा है.
इसी तरह से नाबालिग लड़कियों की शादी का मसला भी होता है. रेप से बचने के लिए या रेप होने के बाद समझौते के तहत दोनों की शादी करा दी जाती है. यह उन प्रदेशों में अधिक है जहां अपराध अधिक है. गरीबी है. ज्यादातर छोटी उम्र से ही लड़कियां मजदूरी करने लगती हैं. यही यह शोषण का शिकार होती है.
उडीसा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश से शादी करने के बाद ही कम उम्र में लड़कियों को मजदूरी करने बाहरी प्रदेश भेजा जाता है. पहले यह केवल ईंट भट्टे पर काम करती थी. या घर बनाने में मजदूरी करती थी. अब यह घरेलू नौकरानी, मौल, अस्पताल जैसी जगहों पर साफसफाई का काम करती हैं. ठेकेदार के जरीये यह काम पाती हैं. बाहर जा कर इन के साथ रेप न हो इस से बचने के लिए इन की कम उम्र में शादी कर दी जाती है. यह अपने पतियों के साथ ही मजदूरी करने बाहर प्रदेश में आती हैं.
नाबालिग लड़कियों के साथ रेप की बढ़ती घटनाएं बताती है कि कानून व्यवस्था की हालत खराब है. रेप की शिकार ज्यादातर लड़कियां गरीब तबके से आती हैं. यह दलित, अति पिछड़ा और आदिवासी समुदाय की होती हैं. जो रेप के शिकार होने के बाद अपनी शिकायत पुलिस ने भी दर्ज नहीं करा पाती. रेप करने वाले दंबग और मजबूत होते हैं. वह पुलिस और कचहरी भी संभाल लेते हैं और लड़की के परिवार वालों पर दबाव डाल कर समझौता भी करा लेते हैं. रेप के इस डर से मांबाप नाबालिग लड़कियों की शादी करना मजबूरी में करते हैं. रेप कानून व्यवस्था से जुड़ा मसला होता है अगर कानून मजबूत हो तो न रेप होंगे न नाबालिग लड़कियों की शादियां होगी.
इंदौर में नाबालिग लड़की अपने से 13 साल बड़े लड़के से शादी करना चाहती थी. नाबालिग लड़की अपनी उम्र से बड़े लड़के के साथ लिव इन में थी. उन के आपस में संबंध भी थे. अब लडका शादी करने से इंकार कर रहा था. लड़की का मानना था कि अब वह शादी इसी से करेगी. इस के बाद दोनों के परिवार वालों ने जब बात मान ली कुछ समय बाद उन की शादी करा देंगे तब लड़की तैयार हुई.
उज्जैन में 25 सितंबर को एक नाबालिक बच्ची से रेप का मामला सामने आया था. महाकाल थाने के इलाके में बड़नगर रोड पर दंडी आश्रम के पास यह बच्ची घायल अवस्था में मिली थी. उस के कपड़े खून से सने थे. यह बच्ची आधेअधूरे कपड़े में सांवराखेड़ी सिंहस्थ बाइपास की कालोनियों में करीब ढाई घंटे भटकती रही लेकिन स्थानीय लोगों से उसे कोई मदद नहीं मिली. पुलिस को सीसीटीवी फुटेज में दिखा कि यह नाबालिग लड़की 3 औटो ड्राइवर और दो लोगों के साथ बात करती दिखी. यह नाबालिग लड़की सतना की रहने वाली है. इस की उम्र 15 साल दर्ज थी.
राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश सरकार को ले कर कहा ‘प्रदेश सरकार बच्चियों की सुरक्षा करने में अक्षम है. मध्य प्रदेश में महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार के मामले सब से ज्यादा है. यह घटना प्रशासन और समाज के लिए कलंक है.’
दूसरी घटना झारखंड की राजधानी रांची के रातू थाना क्षेत्र की है. नाबालिग लड़की अपनी एक सहेली के साथ पास के गांव में ही सरहुल मेला मेला देखने गई थी. लौटने के समय नाबालिग के साथ 5 युवकों ने गैंगरेप किया. पीड़िता की सहेली किसी तरह दरिंदों के चुंगल से भागने में कामयाब रही.
राजस्थान के सिरोही जिले में गांव की रहने वाली एक 17 साल की लड़की के घर रात को 10 बजे 3 युवक पहुंचे. लड़की के घर पर कोई नहीं था. 3 लड़कों ने लड़की को घर से जबरन उठा लिया और उसे कार में ले कर चले गए. 3 दिन उस के साथ रेप हुआ. इस के बाद वह लड़की को मरा हुआ समझ कर सड़क किनारे छोड़ कर चले गए. लड़की को कुछ लोगों ने देखा. पुलिस आई लड़की को होश आया तो उस ने अपनी बात बताई. इस के बाद पुलिस ने लड़कों को पकड़ा.
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के जहांगीराबाद कोतवाली में 10 की लड़की को एक युवक बहला फुसला कर खेत में ले गया. उस के साथ रेप किया और बाद में उस की हत्या भी कर दी. पुलिस ने आरोपी को पकड़ कर जेल भेज दिया.
मुम्बई भिवंडी के शांतिनगर इलाके के गोविंद नगर में एक परिवार दो मंजिला चाली में रहता था. परिवार में मातापिता, दो बड़ी बहनें और एक भाई और सब से छोटी पीड़िता थी. पीड़िता के पिता एक करघा कारखाने में और मां एक गोदाम में काम करती हैं. मां अपनी दोनों बड़ी बेटियों को भी काम पर साथ ले जाती थी. जबकि भाई स्कूल जा पढ़ने जाता था.
परिवार रोज की तरह काम पर गया था. दोपहर को जब लड़का स्कूल गया तो उसी चाली की ऊपरी मंजिल पर अकेले रहने वाले युवक ने बच्ची को खाने का लालच दे कर अपने कमरे में बुलाया. जहां रेप कर के उस की हत्या कर दी. शाम को जब भाई स्कूल से घर आया तो कमरा बंद देख कर उस ने अपनी छोटी बहन की तलाश की लेकिन वह नहीं मिली. इस बीच, मां और बड़ी बहन भी काम से घर लौट आईं. जब उन्होंने इलाके में खोजबीन शुरू की तो इलाके के एक छोटे लड़के ने बताया कि उस ने पीड़िता को ऊपर के कमरे में जाते देखा था. बाद में जब परिवार वालों ने खोजबीन की तो एक बंद कमरे में मासूम का शव मिला.
एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2022 में देश में हर दिन कम से कम 90 नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया. यह मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और धारा 4 (पेनेट्रेटिव यौन हमले के लिए सजा) और 6 (गंभीर यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पौक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज किए गए. एक और रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में देश भर में 33,186 नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया था. 3,522 नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण की रिपोर्ट करने में मध्य प्रदेश पहले नम्बर पर था. उस के बाद महाराष्ट्र में 3,480, तमिलनाडु में 3,435 और उत्तर प्रदेश में 2,749 थे. ऐसी 2,093 घटनाओं के साथ कर्नाटक पांचवें स्थान पर रहा.
आज भी रेप से बचाव के लिए ही नाबालिग लड़कियों की शादी कर दी जाती है. यह आज के दौर की बात नहीं है. मराठा राज जिसे आखिरी हिंदू राज कहा जाता था वहां भी इसी तरह होता था. 1820-25 के मराठा राज में पंडे पुरोहितों का काम था कि वह यह देखें की 9 साल के 14 साल के बीच की कोई लड़की बिना शादी के न रह जाए. यह शादियां पंडित करा देते थे. यह लगभग अंतिम हिंदू राजाओं का दौर था जिस में ब्राह्मणवाद फिर से पेशवाओं के कारण पनपा. वर्ना तो भारत में बाल विवाह का इतिहास बहुत लंबे समय से रहा है. ऋग्वैदिक काल से ले कर आधुनिक काल तक किसी न किसी रूप में यह मौजूद रहा है. मुग़ल राजाओं को हिंदू जनता की सामाजिक सुधारों में कोई रुचि नहीं थी क्योंकि इस्लामी कानून भी वैसा ही सा था. अंगरेजों ने कुछ साल अपने प्रोटोस्टेंट और लिबरल विचार आने दिए पर फिर 1857 के बाद उन्होंने तभी कोई सुधार का कानून लागू किया जब हिंदू नेताओं ने जोर दिया.
आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू ने जिद करके हिंदू विवाह कानून बनवाया था 1955 में. वार्ना धार्मिक प्रतिबंधों के साथ बाल विवाह की प्रथा प्रचलित रही है.
मनुस्मृति में कहा गया है कि यदि पिता अपनी पुत्री की यौवन प्राप्ति के तीन वर्ष के भीतर शादी नहीं करा पाता है, तो वह स्वयं अपना जीवनसाथी ढूंढ सकती है. मनुस्मृति के सब से पुराने और आरंभिक टीकाकारों में से एक मेधातिथि के अनुसार, लड़की का विवाह करने की सही आयु 8 वर्ष है. ऋग्वेद में गर्भाधान का उल्लेख है. जिस का शाब्दिक अर्थ है गर्भ की संपत्ति प्राप्त करना. यह उन 16 संस्कारों में से पहला है जिसे एक हिंदू को करना चाहिए.
यूनानी यात्री मेगस्थनीज ने लिखा है कि उसे बताया गया था कि दक्षिण भारत में पांडियन साम्राज्य की महिलाएं 6 साल की उम्र में बच्चे पैदा करती थी. 7 शताब्दियों बाद फारसी विद्वान अल बिरूनी ने लिखा कि भारत में बाल विवाह बड़े पैमाने पर प्रचलित थे. विवाह कानूनों में सुधार का श्रेय अंगरेजों को दिया जाना चाहिए. 1861 और 1891 के एज औफ कंसेंट एक्ट ने वैवाहिक अधिकारों में सुधार लाया गया. यह बात और है कि कानून के साथ ही साथ समाज भी अपनी परंपरा को निभाता रहा.
1861 के अधिनियम में यौन संबंध के लिए न्यूनतम आयु 10 वर्ष निर्धारित की गई थी. सहमति की आयु अधिनियम, 1891, ब्रिटिश भारत में 19 मार्च 1891 को लागू किया गया एक कानून था, जिस के तहत सभी लड़कियों, चाहे वे विवाहित हों या अविवाहित, के लिए यौन संबंध बनाने की सहमति की आयु सभी अधिकार क्षेत्रों में 10 वर्ष से बढ़ा कर 12 वर्ष कर दी गई थी. इस का उल्लंघन बलात्कार के रूप में आपराधिक मुकदमा चलाने के अधीन था. इन सब कानूनों का हिंदू पंडितों ने विरोध किया था.
रुखमाबाई और फूलमनी दासी नामक दो युवा लड़कियों के कारण यह कानून बना था. 1884 में 20 वर्षीय रुखमाबाई को उस के पति भीकाजी ने बंबई उच्च न्यायालय में ले जा कर मुकदमा दायर किया, क्योंकि उस ने उस के साथ रहने से इनकार कर दिया था. 11 वर्ष की आयु में उस से विवाह करने के बाद, कभी वैवाहिक संबंध स्थापित न कर पाने तथा लगभग 8 वर्षों तक अलग रहने के कारण उस ने उस के साथ वापस जाने से इनकार कर दिया.
अदालत ने उन्हें आदेश दिया कि वे अपने पति के साथ रहें या फिर 6 महीने की जेल की सजा भुगतें. उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया और मुकदमे की बढ़ती लागत के कारण भीकाजी को जुलाई 1888 में 2000 रुपए के समझौते पर केस वापस लेना पड़ा.
दूसरी घटना 1889 की है. 11 वर्षीय बंगाली लड़की फूलमोनी दासी की उस के 35 वर्षीय पति हरि मोहन मैती द्वारा क्रूरतापूर्वक बलात्कार के बाद मृत्यु हो गई. हरि मोहन मैती को बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया गया, लेकिन उन्हें लापरवाही से अनजाने में हुई मौत का दोषी पाया गया. हिंदुओं के एक वर्ग ने इस आयु को 12 वर्ष करने का इस आधार पर विरोध किया कि यह गर्भाधान से संबंधित मानदंडों का उल्लंघन करता है. बाल गंगाधर राव तिलक इस अभियान में सब से आगे थे, जो सहमति की आयु अधिनियम का विरोध कर रहे थे.
इस के बाद विवाह सुधार के नएनए कानून बनते रहे. बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 को सारदा अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है. यह अधिनियम 28 सितंबर 1929 को पारित किया गया था. अधिनियम के अनुसार लड़कियों के लिए विवाह की आयु 14 वर्ष तथा लड़कों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई. इस को बनाने वाले न्यायाधीश और आर्य समाज के सदस्य हरबिलास सारदा थे. उन के नाम पर ही इस को सारधा अधिनियम कहा जाता है. यह अधिनियम सम्पूर्ण ब्रिटिश भारत पर लागू था. देशी रियासतों को इस अधिनियम के दायरे से छूट दी गई थी.
भले ही कानून बने हों लेकिन समाज अपने हिसाब से चलता रहा है. बाल विवाह और नाबालिग विवाह का कारण रेप से बचने के लिए विवाह को सही समझा जाता है. यह आज भी चल रहा है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि कानून व्यवस्था को सही किया जाए तो ही रेप रूकेगा और उस के बाद नाबालिग विवाह को रोका जा सकेगा.
धायं…धायं…धायं. 3 गोलियां मुझे ठीक पेट के ऊपर लगीं और मैं एक झटके से गिर पड़ा. गोली के झटके ने और जमीन की ऊंचीनीची जगह ने मुझे तेजी से वहां पहुंचाया, जिसे नो मैंस लैंड कहते हैं. मैं दर्द के मारे कराह उठा. पेट पर हाथ रखा तो देखा, खून रुकने का नाम नहीं ले रहा था. अपना ही खून देख कर, मेरी आंखें मुंदने लगीं. कोई चिल्लाया, ‘मेजर, हम आप को अस्पताल ले चलते हैं. देखा, तो मेरा दोस्त था. मेरे पास आ कर बोला, ‘‘चल यार, यहां क्यों मर रहा है, मरना है तो अस्पताल में मर.’’ मैं ने हंसने की कोशिश की. उस की आंखों से आंसू मेरे चेहरे पर गिरने लगे.
मेरी आंखें बंद हो गईं तो कई बिंब मेरे जेहन में तैरने लगे. मैं मुसकरा उठा, कहीं पढ़ा था कि मरने के ठीक 15 मिनट पहले सारी जिंदगी की रील फ्लैशबैक की तरह घूम जाती है. मैं ने एंबुलैंस की खिड़की से बाहर देखा, नो मैंस लैंड पीछे छूट रहा था. ‘यह भी अजीब जगह है यार’, मैं ने मन ही मन कहा, ‘दुनिया में सारी लड़ाई सिर्फ और सिर्फ जमीन के लिए है और यहां देखो तो कहते हैं नो मैंस लैंड.’
एक और चेहरा सामने आ रहा था. वह था मां का. एक हाथ से मेरा चेहरा थाम कर दूसरे हाथ से मुझे खाना खिला रही थीं और बारबार कह रही थीं कि मेरा राजा बेटा, सिपाही बनेगा. मुझे जोरों से दर्द होने लगा. अगला दृश्य मेरे स्कूल का था, जहां 15 अगस्त को मैं गा रहा था, ‘नन्हामुन्हा राही हूं, देश का सिपाही हूं…’ स्कूल के हैडमास्टर ने मेरे सिर पर हाथ फेरा. मैं ने मां को देखा वे अपने आंसू पोंछ रही थीं. मेरे पिताजी भी फौज में थे. जिंदगी का वीडियो बहुत ज्यादा फास्ट फौरवर्ड हुआ, अगले बिंब में सिर्फ युद्घ की फिल्में थीं जिन्होंने मेरे खून में और ज्यादा जलजला पैदा कर दिया.
फिर एक लड़की दिखने लगी जिस के बारे में मैं अकसर सोचता था. वह मुझे इंजीनियर के रूप में देखना चाहती थी. मैं आर्मी औफिसर बनना चाहता था. एक उलटी सी आई, और बहुत सा खून मेरे जिस्म से निकला. मेरे दोस्त ने मेरा हाथ थपथपाया, ‘‘कुछ नहीं होगा, यार.’’
अगले बिंब में थीं उस लड़की की चिट्ठियां और कुछ फूल जो सूख गए थे किताबों में रखेरखे, उन्हें उसे वापस करते हुए मैं राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी की ओर चल पड़ा. अगले बिंब में हम सारे दोस्त अपने देश की सरहद पर, दुश्मन की कल्पना कर रहे थे. क्या जज्बा था हम सब यारों में, हमारे लिए देश ही पहला लक्ष्य था, देश ही आखिरी लक्ष्य था और, मैं आप को बताऊं, हम सब सीमा पर अपने दुश्मनों की आहट का इंतजार कर रहे थे. अगले ही पल दिखने लगा कि मेरी मां की आंखों में आंसू थे गर्व के, 3 साल के बाद की परेड में वे मेरे साथ थीं और मैं उन के साथ था. हम ने एकसाथ आसमान को देख कर कहा, हम ने आप का सपना साकार किया.
अगला बिंब एक तार का आना था, जिस में मेरी मां के गुजरने की खबर थी. मेरी जिंदगी का सब से बड़ा और मुख्य स्तंभ गिर गया था. मुझे फिर उलटी आई. मेरे दोस्त के आंसू सूख गए थे. मुझे पकड़ कर उस ने कहा, ‘‘तेरे पीछे मैं भी आ रहा हूं. तू ऊपर अकेले मजे लेगा. ऐसा मैं होने नहीं दूंगा.’’ मैं ने किसी तरह मुसकराने की कोशिश की. सब से प्यारा दृश्य मेरे सामने आया, मेरी बेटी खुशी का. उसे मेरी फौज की बातें बहुत अच्छी लगती थीं. मेरी छुट्टियों का उसे और मुझे बेताबी से इंतजार रहता था. मेरी पत्नी का चित्र भी था, जो हमेशा सूखी आंखों से मुझे विदा करती थी. उसे डर लगता था कि मैं… मुझे कुछ हो जाएगा तो इस बार उस का डर सच हो गया था. मेरी बेटी की बातें, कितनी सारी बातें… मेरी आंखों में पहली बार आंसू आए, मुझे रोना आया. मैं ने आंखें खोल कर दोस्त से कहा, ‘‘यार, खुशी…काफी,’’ वह भी चुप बैठा था, वह भी रोने लगा.
अब कोई बिंब आंखों के सामने आकार नहीं ले पा रहा था. एक गाना याद आ रहा था, ‘कर चले हम फिदा…अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो…’ मैं ने दोस्त से कहा, ‘‘यार, ये सिविलियन कब हमारी तरह बनेंगे. हम देश को बचाते हैं, ये फिर वहीं ले आते हैं जिस के लिए हम अपनी जान…’’ और एक जोर से हिचकी आई, मैं ने दोस्त का हाथ जोर से दबाया और फिर एक घना अंधेरा. दूसरी सुबह, कोई बहुत ज्यादा बदलाव नजर नहीं आया. इस देश में जिस के लिए उस ने जान दे दी, सीमा पर दुश्मन अब भी मौजूद थे. अखबार में कहीं एक छोटी सी खबर थी उस के बारे में. राजनेता बेमतलब के बयान दे रहे थे. क्रिकेट मैच में किसी खिलाड़ी के क्षेत्ररक्षण की तारीफ की खबर थी. कोई यह भी तो जाने कि कैसे एकएक इंच जमीन का क्षेत्ररक्षण करते हुए कितने सैनिक जान दे देते हैं.
मीडिया का कोई राज उजागर हुआ था, किसी सैलिब्रिटी की मौत हुई थी जिसे मीडिया लगातार कवरेज दे रहा था. किसी रिऐलिटी शो में किसी लड़की के अफेयर की बात थी. मतलब कि सारा देश ठीकठाक ही था. समझ नहीं आ रहा था कि उस ने जान क्यों दी. उस की पत्नी चुप हो गई थी. अब उस के आंसू नहीं बह रहे थे. उस का दोस्त बारबार रो देता था. और खुशी… वह सब से पूछ रही थी, ‘‘पापा को क्या हुआ, कब उठेंगे, हमें खेलना है.’’
आज के दौर में सोशल मीडिया का यूज इतना बढ़ गया है कि अब आप सब चीज़ें घर बैठेबैठे अपने स्मार्ट फोन की मदद से कर सकते हो फिर चाहे वे औनलाइन शौपिंग हो या घर बैठेबैठे राशन का समान मंगवाना हो. ऐसे में आजकल के कई यूथ जो अपने पार्टनर से दूर रहते हैं या कभी-कभी ही मिल पाते हैं वे अपने स्मार्ट फोन की मदद से अपने पार्टनर को सैटिस्फाई भी कर सकते हैं.
आप सब ने सैक्स टैक्सटिंग के बारे में तो सुना ही होगा तो चलिए आप मैं अपको सैक्स टैक्सटिंग के कुछ ऐसे फायदे बताने जा रहा हूं जिससे की आपकी सैक्स लाइफ और भी ज्यादा दिल्चस्प और इंट्रस्टिंग बन सकती है.
अगर आप औफिस में या अपने काम पर गए हुए हैं और आपको बीच में कुछ समय अपने पार्टनर के लिए निकालना है तो ऐसे में आप कभी कभी उन से डर्टी टौक्स करें और साथ ही सैक्सी फोटोज भेज के अपने पार्टनर को सैड्यूस कर सकते हैं जिससे कि आपकी सैक्स लाइफ में थोड़ा फन आने लगेगा.
सैक्स टैक्टिंग में आप अपने पार्टनर को डर्टी टौक्स करके, सैक्सी फोटोज या वीडियोज़ भेज कर और यहां तक की अपनी और उनकी सैक्स फैंटेसीज़ के बारे में बात करके सैड्यूस कर सकते हैं. सैक्स टैक्सटिंग से आप दोनों के मन में एकदूसरे से मिलने की बेसब्री से इंतजार करेंगे और जब आप शाम को घर जाकर अपने पार्टनर के साथ सैक्स करेंगे तो दिन में की गई सैक्ट टैक्सटिंग आपके फोरप्ले का काम करेगी.
आज के कई युवा नौजवान लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप में रहते हैं और कभीकभी ही अपने पार्टनर से मिल पाते हैं तो इस कारण उनको ये शक रहता है कि उनका पार्टनर अपनी सैक्स डिजायर्स को पूरा करने के लिए किसी और के साथ संबंध ना बना ले. ऐसे लोगों को अपने पार्टनर के साथ ज्यादा से ज्यादा सैक्स टैक्सटिंग करनी चाहिए और अपने पार्टनर की सैक्स फैंटेसीज को समझ कर उन्हें वीडियो कौल या फिर सैक्स टैक्सटिंग से सैटिस्फाई करना चाहिए. इससे आपके पार्टनर के मन में किसी और के लिए कोई गलत विचार नहीं आएगा.
सैक्स टैक्सटिंग आपके सेक्स लाइफ के लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी है क्योंकि सैक्स टैक्सटिंग से आप अपने पार्टनर से फिजिकली कनैक्टिड रह सकते हैं और एक अच्छी सैक्स लाइफ के लिए इमोशनली और फिजिकली कनैक्टिड रहना बेहद जरूरी है.
‘‘चंपा, मैं तुम से मिलने कल फिर आऊंगा,’’ नरेश अपने कपड़े समेटते हुए बोला.
‘‘नहीं, कल से मत आना. कल मेरा आदमी घर आने वाला है. मैं किसी भी तरह के लफड़े या बदनामी में नहीं पड़ना चाहती,’’ चंपा नरेश से बोली.
‘‘अरे नहीं, सूरत इतना नजदीक नहीं है. उस के आने में कम से कम 2-3 दिन तो लग ही जाएंगे,’’ नरेश चंपा को अपनी बांहों में कसते हुए बोला.
चंपा बांह छुड़ा कर बोली, ‘‘2 दिन पहले ही बता चुका है कि वह गाड़ी पकड़ चुका है. कल वह घर भी पहुंच जाएगा.’’
नरेश मायूस होता हुआ बोला, ‘‘जैसी तेरी मरजी. दिन में एक बार तुझे देखने जरूर आ जाया करूंगा.’’
‘‘ठीक है, आ जाना,’’ चंपा हंस कर उस से बोली.
नरेश पीछे के दरवाजे से बाहर हो गया. अपने घर जाते समय नरेश चंपा के बारे में वह सब सोचने लगा, जो चंपा ने उसे बताया था.
चंपा के घर में सासससुर और पति के अलावा और कोई नहीं था. चंपा का पति संजय अकसर काम के सिलसिले में गुजरात की कपड़ा मिल में जाया करता था. वह वहां तब से काम कर रहा है, जब उस की चंपा से शादी भी नहीं हुई थी.
संजय को गुजरात गए 2 महीने बीत गए थे. कसबे में मेला लगने वाला था.
चंपा संजय को फोन पर बोली, ‘तुम घर पर नहीं हो. इस बार का मेला मैं किस के साथ देखने जाऊंगी मांपिताजी तो जा नहीं सकते.’
संजय ने चंपा को गांव की औरतों के साथ मेला देखने को कहा. यह सुन कर चंपा का चेहरा खुशी से खिल उठा.
एक रात गांव की कुछ औरतें समूह बना कर मेला देखने जा रही थीं. चंपा भी उन के साथ हो ली. घर पर रखवाली के लिए सासससुर तो थे ही.
मेले में रंगबिरंगी सजावट, सर्कस, झूले और न जाने मनोरंजन के कितने साजोसामान थे. उन सब को निहारती चंपा गांव की औरतों से बिछड़ गई.
अब चंपा घर कैसे जाएगी वह डर गई थी. मेले से उस का मन उचटने लगा था. उसे घर की चिंता सताने लगी थी. उस ने उन औरतों की बहुत खोजबीन की, पर उन का पता नहीं चल पाया.
रात गहराती जा रही थी. लोग धीरेधीरे अपने घरों को जाने लगे थे. चंपा भी डरतेडरते घर की ओर जाने वाले रास्ते पर चल दी.
चंपा की शादी को अभी 2 साल हुए थे. अभी तक उसे कोई बच्चा भी नहीं हुआ था. तीखे नाकनक्श, होंठ लाल रसभरे, गठीला बदन, रस की गगरी की तरह उभार, सब मिला कर वह खिला चांद लगती थी, इसलिए तो संजय मरमिटा था चंपा पर और उस को खुश रखने के लिए हर ख्वाहिश पूरी करता था.
चंपा के गदराए बदन को देख कर 2 मनचले मेले में ही लार टपका रहे थे. अकेले ही घर की ओर जाते देख वे भी अंधेरे का फायदा उठाना चाहते थे.
चंपा भी उन की मंशा भांप गई थी. घर की ओर जाने वाली पगडंडी पर वह तेज कदमों से चली जा रही थी. वे पीछा तो नहीं कर रहे, इसलिए पीछे मुड़ कर देख भी लेती.
मनचले भी तेज कदमों से चंपा की ओर बढ़ रहे थे. वह बदहवास सी तेजी से चली जा रही थी कि अचानक ठोकर खा कर गिर पड़ी.
तभी एक नौजवान ने सहारा दे कर चंपा को उठाया और पूछा, ‘आप बहुत डरी हुई हैं. क्या बात है ’
‘कुछ नहीं,’ चंपा उठते हुए बोली.
‘शायद मेला देख कर आ रही हैं कहां तक जाना है ’ नौजवान ने पूछा.
‘पास के सूरतपुर गांव में मेरा घर है. 2 मनचले मेरा पीछा कर रहे हैं. जिन औरतों के साथ मैं आई थी, वे पता नहीं कब घर चली गईं. मुझे मालूम नहीं चला,’ बदहवास चंपा ने एक ही सांस में सारी बातें उस नौजवान से बोल दीं.
जिस नौजवान ने चंपा को सहारा दिया, उस का नाम नरेश था. उस ने पीछे मुड़ कर देखा, तो वहां कोई नहीं था.
‘डरने की कोई बात नहीं है. मैं भी उसी गांव का हूं. मैं आप को घर तक छोड़ दूंगा.’
चंपा डर गई थी. डर के मारे वह नरेश का हाथ पकड़ कर चल रही थी. कभीकभार दोनों के शरीर भी एकदूसरे से टकरा जाते.
कुछ देर बाद नरेश ने चंपा को उस के घर पहुंचा दिया. चंपा ने शुक्रिया कहा और अगले दिन नरेश से घर आने को बोली.
नरेश उसी दिन से चंपा के घर आया करता था, उस से ढेर सारी बातें करता, मजाकमजाक में चंपा को छूता भी था. चंपा को भी अच्छा लगता था.
एक दिन नरेश चंपा के गाल चूमते हुए बोला, ‘आप बहुत सुंदर हैं. मेरा बस चले तो…’ चंपा मुसकरा कर पीछे हट गई.
इस के बाद नरेश ने चंपा को बांहों में जकड़ कर एक बार और गालों को चूम लिया.
चंपा कसमसाते हुए बोली, ‘यह अच्छा नहीं है. क्या कर रहे हो ’
संजय अकसर घर से बाहर ही रहता था, इसलिए चंपा की जवानी भी प्यासी मछली की तरह तड़पती रहती. छुड़ाने की नाकाम कोशिश कर नरेश के आगे वह समर्पित हो गई और वे दोनों एक हो गए. दोनों ने जम कर गदराई जवानी का मजा उठाया. चंपा खुश थी.
उस दिन के बाद से ही यह सिलसिला चल पड़ा. दोनों एकदूसरे के साथ मिल कर बहुत खुश होते.
एक दिन नरेश ने चंपा से पूछा, ‘तुम सारी जिंदगी मुझ से इसी तरह प्यार करती रहोगी न ’
‘नहीं,’ चंपा बोली.
‘क्यों लेकिन, मैं तो तुम से बहुत प्यार करता हूं.’
‘यह प्यार नहीं हवस है नरेश.’
‘आजमा कर देख लो,’ नरेश बोला.
‘नरेश, तुम अपने एहसानों का बदला चुकता कर रहे हो. जिस दिन मुझे लगेगा, तुम्हारा एहसान पूरा हो चुका है, मैं तुम से अलग हो जाऊंगी. और तुम भी अपनी अलग ही दुनिया बसा लेना,’ चंपा उसे समझाते हुए बोली.
आज नरेश को चंपा की कही हुई हर बात जेहन में ताजा होने लगी थी कि कल संजय के घर पहुंचते ही उस एहसान का कर्ज चुकता होने वाला है.
काफी जद्दोजेहद के बाद मोहन को नौकरी का जौइनिंग लैटर मिल ही गया. जहां वह ट्यूशन पढ़ाने जाता था, उन से पूछा, ‘‘यह जगह कहां है और वहां तक जाने के लिए कौन सा साधन मिलेगा ’’
‘‘अरे, बहुत सी डग्गामार गाड़ी मिल जाएंगी, किसी में भी बैठ जाना ’’ ट्यूशन सैंटर में एक शख्स ने बताया.
उस दिन बारिश भी हो रही थी. बताए मुताबिक मोहन एक डग्गामार गाड़ी में बैठ गया. ड्राइवर ने ठूंस कर अपनी गाड़ी भर ली.
अचानक एक औरत दौड़ते हुए आई, ‘‘अरे भैया, हमें भी ले चलो.’’
‘‘आप भी आ जाओ,’’ ड्राइवर ने दोटूक कहा.
‘‘अरे यार, अब कहां बिठाओगे ’’ मोहन ने झल्ला कर पूछा.
‘‘क्या बात करते हो भाई, अभी तो इस में 3 और सवारियां आ जाएंगी,’’ कह कर ड्राइवर ने उन्हें भी ठूंस लिया.
अचानक अंदर से एक आदमी बोला, ‘‘मेरी एक टांग तो भीतर ही नहीं आ रही है.’’
‘‘टांग हाथ में ले लो. बस, 40 मिनट की बात है.’’
‘‘टांग हाथ में ले लूं… तुम होश में तो हो…’’ वह आदमी गुस्से में चिल्लाया.
‘‘अरे, कहीं समेट लो,’’ ड्राइवर धीरे से बोला.
तभी अंदर से किसी बच्चे के रोने की आवाज आने लगी.
‘‘इसे चुप कराओ,’’ ड्राइवर ने कहा.
‘‘कैसे चुप कराएं तुम ने दरवाजा तो बंद कर लिया, ऊपर से शीशा भी बंद किया हुआ है.’’
ड्राइवर ने जैसे ही दरवाजा खोला, तभी एक आदमी धड़ाम से नीचे गिरा.
‘‘सही से नहीं बैठ सकते हो ’’ ड्राइवर बोला.
‘‘बैठे कहां पैसे वापस लाओ.’’
‘‘अरे भैया, गलती हो गई. क्यों पेट पर लात मार रहे हो बैठ जाओ.’’
‘‘मगर, कहां बैठ जाएं ’’
‘‘अरे, यह बच्चा गोदी में ले लो… अब बैठ गए ’’
‘‘बैठ नहीं गए, आधे बैठे और आधे खड़े हैं.’’
‘‘चिंता मत करो. जल्दी ही पहुंच जाओगे.’’
अब मोहन को लगने लगा कि यह गाड़ी पहुंचेगी भी या यही सब होता रहेगा.
गाड़ी अभी थोड़ी ही दूर चली थी कि अचानक फिर से एक शख्स दौड़ता हुआ आ गया और बोला,
‘‘अरे, गेहूं की 2 बोरी हैं, इन्हें भी साथ लिए जाते.’’
‘‘छत पर रख दो… लो भैया, अब सब ओके. अब चलते हैं.’’
खैर, 10 किलोमीटर तो पहुंच गए. दूसरी साइड से डग्गामार गाड़ी ले जा रहे एक ड्राइवर ने हमारे ड्राइवर को बताया, ‘‘आज आरटीओ घूम रहा है. हमारा तो चालान कट गया है… और वह इधर ही आ रहा है.’’
हमारे ड्राइवर ने गाड़ी उलटी दिशा में घुमाई.
‘‘अरे, कहां लिए जा रहे हो भाई ’’ एक सवारी ने पूछा.
‘‘तुम्हें अपनी पड़ी है. चालान कट गया तो…’’ कह कर ड्राइवर ने गाड़ी पुल के नीचे उतार दी.
अंदर से एक सवारी की आवाज आई, ‘‘क्या कर रहे हो भाई मार डालोगे क्या ’’
‘‘अरे भैया, हमारी भी तकलीफ समझो. अभी काट देगा वह हजार रुपए की परची,’’ ड्राइवर बोला.
डरीसहमी सवारियों को समझ में नहीं आ रहा था कि वे करें तो क्या करें.
अंदर से एक औरत बोली, ‘‘अगर मेरे बच्चे को कुछ हो जाता, तो हम तुम्हारा खून पी लेते.’’
गाड़ी में एक पुराने अध्यापक भी बैठे हुए थे. वे बोल पड़े, ‘‘पुल के नीचे गाड़ी ले जाना, यह तो मैं 10 साल से देख रहा हूं. चिंता मत करो, सब सहीसलामत पहुंच जाओगे.’’
गाड़ी का ड्राइवर बोला, ‘‘भैया, तुम जैसी सवारी मिल जाए, तो हम तो धन्य हो जाएं, नहीं तो रोज कोई मारने पर उतारू, तो कोई खून पीने को.
‘‘वैसे भी, टैंशन में पुडि़या खाखा कर सब खून सूख गया है. जो थोड़ाबहुत बचा है, वह तुम पी लो.’’
इस के बाद उस ड्राइवर ने किसी को फोन कर के पूछा, ‘‘रोड साफ है न ’’
दूसरी तरफ से उसे पता चला कि आगे एक गांव पड़ेगा, वहां से गाड़ी निकाल ले जाओ. लिहाजा, गाड़ी आगे चल दी.
‘‘लो भाई, आगे तो पानी भरा है,’’ ड्राइवर बोला, तभी अंदर से एक और सवारी की आवाज आई, ‘‘कालेज क्या शाम को पहुंचेंगे ’’
ड्राइवर बोला, ‘‘भाई लोगो, धक्का लगा दो.’’
कुछ मुसाफिर उतर गए और धक्का लगाने के बाद गाड़ी स्टार्ट हो गई.
इतने में ड्राइवर को तलब लगी. वह एक सवारी से बोला, ‘‘ओ भैया, जरा पुडि़या ले लेना.’’
इतना कह कर ड्राइवर ने गाना लगा दिया… ‘तुम तो ठहरे परदेशी, साथ क्या निभाओगे’.
‘‘अरे यार, इतना साथ निभाए पड़े हैं और क्या करें ’’
ड्राइवर कुछ सीरियस हो गया, ‘‘भाई लोग, हमें डग्गामार कहा जाता है. डग्गामार का मतलब समझते हो डग्गामार का मतलब है कि डग भर चलो, फिर मार.
‘‘मेरी बेटी बीमार है. अगर गाड़ी नहीं चलाऊंगा, तो इलाज के पैसे कहां से आएंगे ’’
‘‘ओह, शायद हर इनसान दर्द में ही जीता है,’’ एक सवारी ने कहा.
‘‘हां भैया, मेरे पिताजी ठेला लगाते थे. मैं ने लोन ले कर यह गाड़ी ली. घर का खर्चा भी इसी से चलाना है और बैंक का पैसा भी भरना है… सब लोग पैसे निकाल लो, चौराहा आने वाला है.’’
खैर, आखिरी पड़ाव आ ही गया. अचानक तेज बारिश होने लगी. मोहन के पास छाता नहीं था.
मोहन ने वहीं पड़ोस की दुकान से एक छाता खरीदा. अभी 8 किलोमीटर का सफर बचा था.
मोहन ने चौराहे पर खड़े एक आदमी से पूछा, ‘‘यह गांव कहां है ’’
‘‘यहां से यह गांव आप को 6 किलोमीटर पड़ेगा. तांगा पकड़ लो और कोई सवारी गाड़ी तो जाती ही नहीं. बारिश हो रही है, शायद वह भी न मिले, जो मिले उसी में बैठ जाना,’’ उस आदमी ने बताया.
एक ट्रैक्टर गुजरा. मोहन ने उस के ड्राइवर से कहा, ‘‘हमें भी बिठा लो.’’
‘‘भाई ट्रौली में बैठ जाओ.’’
ट्रौली में भूसा भरा था. मोहन ने उस में बैठने की कोशिश की, लेकिन वह ट्रौली के अंदर धड़ाम से गिरा और सारा भूसा उस के कपड़ों पर चिपक गया.
‘‘ओ भैया, संभल कर बैठो.’’
ट्रैक्टर से उतरने के बाद सामने गांव का स्कूल देख कर मोहन को बड़ी खुशी मिली. वहीं के एक आदमी से मोहन ने स्कूल का पता पूछा.
वह बोला, ‘‘भाई, आप गलत आ गए हो. यह तो नारायणपुर गांव है.’’
‘‘तो फिर यह गांव कहां है ’’
‘‘अभी आप को 2 किलोमीटर और आगे चलना पड़ेगा. सीधे चले जाना और सामने ही स्कूल होगा. कच्चा रास्ता है और कीचड़ बहुत है.’’
2 किलोमीटर चलने के बाद स्कूल मिल ही गया. पूरा स्कूल बारिश के पानी से टपक रहा था. हैडमास्टर एक कोने में दुबके बैठे थे.
मास्टर साहब ने जौइनिंग करा दी. स्कूल की छुट्टी के बाद दोबारा 2 किलोमीटर पैदल चलने के बाद सड़क मिली. दूर से ट्रक दिखाई पड़ा. मोहन ने उसे हाथ दिया.
‘‘10 रुपए किराया लगेगा.’’
‘‘बिठा लो भाई.’’
‘‘और भाई, स्कूल में मास्टर हो ’’
‘‘हां.’’
‘‘यह मेरा ड्राइविंग लाइसैंस है ट्रक का. मैं ने फार्म में इमरान भरा था और ड्राइविंग लाइसैंस में लिख दिया इमरान खान, यह कैसे सही होगा ’’
‘‘जिस ने तुम्हारा यह लाइसैंस बनाया है, उसी सरकारी मुलाजिम के पास जाना.
‘‘वह कहेगा खर्चापानी होगा, तो दे देना. सही हो जाएगा.
‘‘देखो, पहले फार्म से सरकार कमाती है और बाद में फार्म में गलती कर के सरकारी मुलाजिम कमाते हैं.’’
इमरान असली लोकतंत्र को समझने की कोशिश कर रहा था. उस ट्रक वाले को कहां तक समझ आया, यह तो उसी को पता होगा.
चौराहे पर आते ही मोहन ने तय कर लिया कि वह डग्गामार गाड़ी में नहीं बैठेगा. बसस्टैंड पहुंचा. थोड़ी देर में बस मिल गई.
बस में एक आदमी कोई चीज बेच रहा था. वह कह रहा था, ‘‘यह है इंडिया का पहला ऐसा चूरन, जिसे खाने के बाद हाजमा ठीक होगा. पेट में जमी गैस निकल जाएगी. भूख बढ़ाए. कीमत 10 रुपए.’’
पीछे से एक और आवाज आई, ‘‘यह है मुंबई का सुरमा. यह दूर करेगा आंख का जाला, मोतियाबिंद, रोशनी बढ़ेगी. चश्मा उतर जाएगा. कीमत है
10 रुपए. 10 रुपए…
‘‘भाई लोगो, आप के बगल वाले भाई ने खरीद लिया. आप भी खरीद लें. बस 10 शीशियां ही बची हैं मेरे पास.’’
इतने में एक औरत चढ़ी. उस के साथ शायद उस की बेटी थी.
‘‘मैं विधवा हूं. मदद कर दो बाबूजी. लड़की की शादी करनी है.’’
अचानक एक भाई साहब बोल पड़े, ‘‘10 साल से शादी कर रही है, अभी तक कर नहीं पाई ’’
वह औरत बोली, ‘‘तेरे कीड़े पड़ें. मेरी रोजी पर लात मार रहा है.’’
वह आदमी चुप. अब बस ने रफ्तार पकड़ ली. साथ ही, सारे मांगने वाले भी उतर लिए.
अपने शहर का बसअड्डा आ गया, लेकिन सामने खड़ी डग्गामार गाड़ी पर फिर मेरी नजर चली गई. कुछ यों भरी हुई, जैसे आगे वाली सीट पर शातिर कैदी ठुंसे हों और उस के पीछे जो
लोग बैठे थे, वे यही कोशिश कर रहे थे कि काश, इस पर बैठने से पहले हाथपैर घर पर ही रख आते. जो पीछे लटके हुए थे, उन्हें देख कर मन खुश हो गया कि कम से कम ये तो बाइज्जत बरी हो चुके हैं.
अपनी गली में आते ही मोहन को यों लगा कि बड़ी जबरदस्त कुश्ती लड़ कर आया है. लो तब तक कल्लू का लड़का बोल ही पड़ा, ‘‘भैया आज तो उजड़े चमन लग रहे हो.’’
मोहन ने उस से कहा, ‘‘क्यों उलटा बोल रहा है अब तो मेरी पक्की सरकारी नौकरी लग गई है.’’
वह मोहन को सवालिया नजरों से देखने लगा. मोहन का घर आ गया था और साथ ही बुखार भी.
मैंने जासूसी उपन्यास एक ओर रख दिया और किसी नवयौवना की तरह एफएम पर ‘क्रेजी सुशांत’ का प्रोग्राम शुरू होने का इंतजार करने लगी. मुझे क्रेजी सुशांत या उस के प्रोग्राम में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मुझे तो सिर्फ उस इनाम में दिलचस्पी थी, जो वह अपने प्रोग्राम में हिस्सा लेने वाले किसी एक खुशनसीब को दिया करता था. इनाम 30 हजार रुपए था. मेरे लिए उस वक्त 30 हजार रुपए बहुत बड़ी रकम थी.
मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव थी और खुद ही अपनी बौस थी यानी मैं सैल्फ इंप्लायमेंट पर निर्भर थी. सेल्फ इंप्लायमेंट में यही सब से बड़ी खराबी है कि यह किसी भी वक्त बेरोजगारी में बदल सकता है. मेरा काम काफी दिनों से मंदा चल रहा था, बिल न जमा होने से बिजली कंपनी वाले काफी दिनों से मेरी बिजली काटने की धमकी दे रहे थे. अब आप समझ सकते हैं कि मैं क्यों बेचैनी से क्रेजी सुशांत के प्रोग्राम का इंतजार कर रही थी.
अंतत: एफएम पर क्रेजी सुशांत की अजीबोगरीब आवाज उभरी. ऐसा मालूम होता था, जैसे वह नाक माइक पर रख कर बोलने का आदी था. सुशांत कह रह था, ‘क्रेजी सुशांत अपने प्रोग्राम के साथ आप की सेवा में हाजिर है. श्रोताओ, क्या मैं वास्तव में क्रेजी नहीं हूं. मेरे पागलपन का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि मैं हर रोज किसी न किसी की सेवा में 30 हजार रुपए पेश करता हूं. इस के लिए आप को सिर्फ इतना करना होगा कि एक एसएमएस भेज कर अपना नाम, पता और फोन नंबर मुझे भेज दें.’
इतना कह कर वह अपने विशिष्ट अंदाज में हंसा. उस की हंसी कुछ ऐसी थी, जैसे किसी लकड़बग्घे को हिचकियां आ रही हों. वह गधा हर एक को कितनी आसानी से इनाम मिलने की उम्मीद दिला रहा था. मैं खुद पिछले चंद हफ्तों में एक हल्की उम्मीद के सहारे उसे सैकड़ों एसएमएस भेज चुकी थी.
वह कह रहा था, ‘‘श्रोताओ, लौटरी के जरिए मैं इस हफ्ते के खुशनसीब का नाम अपने थैले से निकालूंगा.’’
मैं अपने जिस फोन पर एफएम सुन रही थी, उसे अनायास ही कान के पास कर लिया और मुट्ठियां भींच कर बड़बड़ाई, ‘‘कमीने, आज तो मेरा नाम निकाल दे.’’
वह कह रहा था, ‘‘लीजिए श्रोताओ, मैं ने नाम की पर्ची निकाल ली है. 30 हजार रुपए जीतने वाले भाग्यशाली हैं नोएडा सेक्टर-8 के रहने वाले राहुल पांडे.’’
मैं ने गुस्से में कालीन पर घूंसा रसीद किया, जिस से हवा में मिट्टी का एक छोटा सा बादल बन गया. मेरी उम्मीद भी उसी बादल में खो गई थी. क्रेजी सुशांत इनाम पाने वाले को संबोधित कर रहा था, ‘‘डियर राहुल, तुम्हें इनाम पाने का तरीका तो मालूम ही होगा.’’
पता नहीं कि राहुल को तरीका मालूम था या नहीं, लेकिन मुझे बहुत अच्छी तरह मालूम था. इनाम की घोषणा लगभग 3 बज कर 5 मिनट पर होती थी और इनाम के हकदार को ठीक 5 बजे तक रेडियो स्टेशन पहुंच कर इनाम प्राप्त करना होता था. वह रेडियो पर संक्षिप्त में अपना अनुभव व्यक्त करता या करती थी और इनाम का चैक उस के हवाले कर दिया जाता था. अगर विजेता 5 बजे तक रेडियो स्टेशन नहीं पहुंच पाता था तो सवा 5 बजे दूसरी लौटरी निकाली जाती थी और इनाम किसी और का हो जाता था.
मैं ने पहले से भी अधिक मद्धिम उम्मीद के सहारे सोचा कि शायद रास्ते में राहुल की गाड़ी का टायर पंक्चर हो जाए और वह रेडियो स्टेशन न पहुंच सके. क्या पता दूसरी लौटरी में मेरी किस्मत चमक जाए और…
अपने आप को हौसला देने के लिए मैं ने किचन में जा कर सैंडविच तैयार की और उसे खाते हुए उम्मीद के सहारे यह सोच कर मोबाइल की ओर देखने लगी कि हो सकता है, उस की घंटी बजे और दूसरी ओर से कोई क्लाइंट बोले. फिर मैं मम्मी को फोन करने के बारे में सोचने लगी. थोड़ी बहुत संभावना थी कि शायद वह मुझे इतनी रकम उधार दे दें कि खींच तान कर महीना गुजर जाए. लेकिन ऐसी जरूरत नहीं पड़ी.
मोबाइल की घंटी बजी और मैं ने बहुत धीरज और शांति से काम लेते हुए तीसरी घंटी पर काल रिसीव कर के बहुत ही सौम्य व गरिमापूर्ण अंदाज में कहा, ‘‘शालिनी इंवेस्टीगेशन एजेंसी.’’
‘‘शालिनी चौहान?’’ दूसरी ओर से पूछा गया. न जाने क्यों उस की आवाज सुन कर ही मुझे लगा कि वह आदमी जरूर दौलतमंद होगा.
‘‘जी हां, लेकिन आप मुझे केवल शालिनी भी कह सकते हैं.’’ मैं ने बहुत खुलेदिल का प्रदर्शन करते हुए कहा.
‘‘मेरा नाम अर्पित मेहता है. मुझे नकुल चौधरी ने तुम से बात करने की सलाह दी थी.’’ वह बोला.
नकुल चौधरी एक वकील था, जो कभीकभी मेहरबानी के तौर पर मेरे पास क्लाइंट भेज देता था.
‘‘मैं आप के लिए क्या कर सकती हूं मिस्टर अर्पित?’’ मैं ने पूछा.
‘‘मैं किसी के बारे में तहकीकात कराने के लिए तुम्हारी सेवाएं हासिल करना चाहता हूं, शालिनी.’’ वह थोड़ा बेचैनी भरे स्वर में बोला, ‘‘इस संबंध में फोन पर बात करना मुनासिब नहीं होगा. मैं शाम साढ़े 5 बजे तक खाली हो जाऊंगा. क्या इस के बाद किसी समय मेरे औफिस में आने की तकलीफ कर सकती हो? मैं इस मामले में जरा जल्दी में हूं.’’
मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती थी? मैं ने उस के औफिस का पता पूछ कर लिख लिया. मिलने का वक्त 5 बजे तय हुआ. अब मुझे क्रेजी सुशांत के प्रोग्राम में 30 हजार रुपए का इनाम न मिलने का कोई दुख नहीं था. इनाम मिलने से कैश मिलना बेहतर था. केस की बात ही कुछ और थी.
5 कब बज गए, पता ही नहीं चला. उस समय तक क्रेजी सुशांत के प्रोग्राम में लौटरी के जरिए इनाम का अधिकारी राहुल पांडे रेडियो स्टेशन पहुंच चुका था. चैक लेने से पहले उस ने प्रोग्राम के बारे में अपना अनुभव व्यक्त करते हुए सुशांत की हंसी भी उड़ाई थी.
मैं इस बीच तैयार हो चुकी थी. इनाम की घोषणा समाप्त होते ही मैं घर से निकली और अपनी पुरानी गाड़ी को उस की औकात से ज्यादा तेज रफ्तार से दौड़ाना शुरू कर दिया.
अर्पित मेहता का औफिस एक शानदार इमारत की तीसरी मंजिल पर था. उस का औफिस देख कर मेरे अनुमान की पुष्टि हो गई थी. अर्पित मेहता वाकई एक धनी आदमी था और उसे धन खर्च करने का तरीका भी आता था. उस की खूबसूरत सैके्रटरी ने मुझे उस के कमरे में पहुंचा दिया. उस का कमरा बहुत शानदार तरीके से सजाया गया था. वह एक बड़ी मेज के पीछे बैठा था. उस ने उठ कर मेरा स्वागत किया. वह व्यक्तित्व से ही कामयाब व्यक्ति नजर आ रहा था. उस की कनपटियों पर सफेदी झलक रही थी.
हम ने बैठ कर रस्मी बातें कीं. उस ने कहा, ‘‘शालिनी, मैं नहीं चाहता कि मेरी बात सुन कर तुम मेरे बारे में कोई गलत राय कायम करो. इसलिए समस्या बताने से पहले मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूं. मैं एक उसूल पसंद आदमी हूं. अगर मुझ से कोई गलती हो जाए तो मेरी यह कभी भी इच्छा या कोशिश नहीं होती कि मैं उस का नुकसान भुगतने से बचने की कोशिश करूं. मैं अपनी गलती का दंड अदा करने के लिए हर समय तैयार रहता हूं.’’
मैं ने सहमति में सिर हिलाया और अपने बैग से एक राइटिंग पैड और पेंसिल निकाल ली. एक क्षण रुकने के बाद वह बोला, ‘‘कुछ महीने पहले मेरी गाड़ी एक दूसरी गाड़ी से टकरा गई थी. बहुत मामूली सी दुर्घटना थी, जिस में मेरी गाड़ी को तो केवल चंद खरोंचें ही आई थीं. यह अलग बात है कि वह खरोंच दूर कराने पर जितनी रकम खर्च हुई थी, उतने में छोटीमोटी गाड़ी आ जाती.’’
अमीर लोगों को मूल्यवान चीजें रखने की अधिक कीमत चुकानी पड़ती है. मैं ठंडी सांस ले कर रह गई.
अर्पित ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘दूसरी गाड़ी में एक औरत और उस की बेटी सवार थी. उस समय तो यही लग रहा था कि दुर्घटना में उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा था. फिर भी मैं ने नैतिकता और कानूनपसंदी का प्रदर्शन करते हुए उन्हें अपनी गाड़ी की इंश्योरेंस पौलिसी का नंबर दे दिया, जैसा कि दुर्घटना की स्थिति में किया जाता है. दुर्घटना में कोई भी जख्मी नहीं हुआ था, इसलिए मेरा विचार था कि बात वहीं समाप्त हो जाएगी. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका. उन मांबेटी ने एक वकील की सेवाएं ले कर कुछ दिनों बाद मुझ पर सौ करोड़ रुपए के हरजाने का दावा कर दिया.’’
‘‘सौ करोड़ रुपए?’’ मेरी आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘यह तो बहुत बड़ी रकम है. वे दोनों किस हद तक शारीरिक नुकसान पहुंचने का दावा कर रही थीं?’’
‘‘मां का तो अस्पताल में रीढ़ की हड्डी की चोट का इलाज हो रहा था. यहां तक तो दावा मानने योग्य था.’’ अर्पित ठंडी सांस ले कर बोला, ‘‘लेकिन उस का कहना था कि दुर्घटना में भय के कारण उस की बेटी बोलने की शक्ति खो बैठी है. दुर्घटना के बाद से अब तक वह एक शब्द भी नहीं बोली है.’’
‘‘यह तो विचित्र बात है. डाक्टर क्या कहते हैं?’’ मैं ने पूछा.
‘‘हर एक की अलगअलग राय है,’’ अर्पित ने एक और ठंडी सांस ली, ‘‘मेरा एक दोस्त जो एक मशहूर मनोवैज्ञानिक था और 20 साल से प्रैक्टिस कर रहा था, उस का कहना था कि यह हिस्टीरियाई प्रतिक्रिया हो सकती है. लड़की जिस डाक्टर से इलाज करा रही है, उस के विचार में दुर्घटना में मस्तिष्क की वे कोशिकाएं प्रभावित हुई हैं, जो जुबान की शब्द भंडारण शक्ति को सुरक्षित रखती हैं. अर्थात उस में जुबान समझने और बोलने की योग्यता नहीं रही. वह डाक्टर अभी कुछ और टेस्ट कर रहा है.’’
‘‘आप को उस पर विश्वास नहीं है.’’ मैं ने पुष्टि करनी चाही.
‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं किस पर विश्वास करूं और किस पर नहीं,’’ अर्पित ने कहा, ‘‘मैं भी इस दुर्घटना में शामिल था. मेरे सिर में दर्द तक नहीं हुआ. मुझे बात कुछ जंच नहीं रही है.’’
‘‘आप चाहते हैं कि मैं खोजबीन करूं कि लड़की झूठमूठ तो गूंगी नहीं बन रही है?’’ मैंने पूछा.
वह बेचैनी से पहलू बदलते हुए बोला, ‘‘मैं बिना किसी जांच के उन मांबेटी को धोखेबाज कहना नहीं चाहता. लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वह मामले को बढ़ाचढ़ा कर पेश कर रही हों.’’
‘‘मेरे विचार में यह कुछ अधिक मुश्किल काम नहीं है,’’ मैं ने कहा, ‘‘2-4 दिनों लड़की पर नजर रखी जाए. होशियारी से उस का पीछा किया जाए तो पता चल जाएगा कि वह कहीं बोलती है या नहीं?’’
अर्पित गले को साफ करते हुए बोला, ‘‘यही तो समस्या है कि मैं तुम्हें 4 दिन तो क्या, 2 दिन का समय भी नहीं दे सकता. असल में मुझे विश्वास था कि यह मामला कोर्ट में नहीं जाएगा. इसलिए अंतिम क्षणों तक मैं ने किसी डिक्टेटिव या खोजी की तलाश शुरू नहीं की. इस बुधवार को 10 बजे अदालत में इस दावे की सुनवाई होनी है. हो सकता है पहली ही पेशी में निर्णय भी हो जाए.’’
इस का मतलब था कि मेरे पास केवल एक दिन का समय था, जिस में मुझे कोई ऐसा सबूत तलाश करना था, जिस की वजह से दावेदार अपना दावा वापस लेने पर विवश हो जाए.
‘‘सौरी मिस्टर अर्पित, एक दिन में भला क्या हो सकता है?’’ मैं ने कहा.
‘‘इस परिस्थिति में अगर कोई समझौता हो भी जाए तो वह भी मेरे लिए जीत की तरह ही होगा,’’ अर्पित ने कहा, ‘‘मैं कह चुका हूं कि मुझे अपनी गलती की भरपाई करने पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन इतनी सी बात पर मैं अपनी कुल संपत्ति का एक चौथाई उन मांबेटी को नहीं दे सकता.’’
एक बार फिर मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई. मतलब अर्पित की कुल संपत्ति का एक चौथाई 100 करोड़ था. इस का मतलब था कि अर्पित मेरे अनुमान से कहीं अधिक धनवान था. संभवत: उन मांबेटी को अंदाजा था कि वह कितना मोटा आसामी है. तभी उन्होंने ज्यादा गहराई तक दांत गड़ाने का प्रोग्राम बनाया था.
आखिर मैं ने अपनी पूरी कोशिश करने की हामी भरते हुए उसे अपनी फीस के बारे में बताया तो उस ने कहा, ‘‘मैं केवल एक ही दिन के लिए तुम्हारी सेवाएं ले रहा हूं और इस का भुगतान पेशगी दे रहा हूं. अगर तुम कोई सबूत तलाश करने में कामयाब हो गईं तो मैं सारे खर्चों के अलावा तुम्हें 5 लाख रुपए का इनाम दूंगा. अगर तुम असफल रहीं तो मेरे कानूनी सलाहकार इस मसले से अपने हिसाब से निपटेंगे.’’
बातचीत के बाद मैं लौट आई. सब से पहले मैं ने उन मांबेटी के बारे में सूचना इकट्ठी की. बेटी का नाम रूपा सरकार था और मां का नाम सुषमा सरकार. वे द्वारका के सिंगल बैडरूम के छोटे से फ्लैट में रह रही थीं. मैं ने अपनी गाड़ी एक ऐसी जगह पार्क की, जहां से मैं उन के फ्लैट पर नजर रख सकती थी.
अर्पित मुझे उन के नाम और ठिकाने से अधिक कुछ नहीं बता सका था. मैं ने अपने तौर पर जानकारियां एकत्र करने की कोशिश की तो पता चला कि सुषमा सरकार यानी मां और रूपा सरकार किसी न किसी तरह के दावे कर के माल बटोरने में लगी रहती थीं. अगर मामला केवल उस औरत का होता तो शायद मैं उसे दे दिला कर राजी करने की कोशिश करती, लेकिन मसला उस की बेटी के अजीबोगरीब और अविश्वसनीय नुकसान का था. मैं ने उस डाक्टर से बात की, जो उस का इलाज कर रहा था. ऐसा मालूम होता था कि उस ने भी मांबेटी के दावे को सही साबित करने की बात को अपनी प्रेस्टीज का मसला बना लिया था.
9 बजे तक मैं अपनी कार में बैठेबैठे न्यूजपेपर पढ़ती रही. जब थक गई तो मैं ने गाड़ी से निकल कर हाथपांव सीधे किए और बिल्डिंग के चारों ओर एक चक्कर लगाया. मांबेटी के ग्राउंड फ्लोर स्थित फ्लैट का नंबर 7 था. उस के पीछे की तरफ एक पुरानी सी मारुति कार खड़ी थी, जिस पर लगे चंद निशानों से पता चल रहा था कि हाल ही उस का मामूली एक्सीडेंट हुआ है.
फ्लैट नंबर 7 में झांकने का मेरा प्रयास सफल नहीं हो सका. खिड़कियां बंद थीं और उन पर परदे पड़े हुए थे. अंदर तेज आवाज में म्युजिक बज रहा था. अंतत: मायूस हो कर मैं दोबारा अपनी कार में जा बैठी.
आखिर 10 बजे मांबेटी फ्लैट से बाहर निकलीं और गाड़ी में बैठ कर बाजार की ओर चल दीं. उन्होंने एकदूसरे से बिलकुल भी बात नहीं की. मैं ने उचित दूरी बना कर उन का पीछा करना शुरू कर दिया.
पहले दोनों एक बहुत अच्छे डिपार्टमेंटल स्टोर पर रुकीं और अंदर जा कर आधे घंटे तक बिना किसी मकसद के घूमती रहीं. उन्होंने महंगे फर्नीचर से ले कर मंगनी की अंगूठी तक का जायजा लिया. वे यकीनन उस दौलत को खर्च करने के तरीके सोच रही थीं, जो उन के ख्याल में उन्हें छप्पर फाड़ कर मिलने वाली थी. वे एकदम साधारण जीवन व्यतीत कर रही थीं, लेकिन उन की पसंद ऊंची लगती थी.
कुछ देर की आवारागर्दी के बाद आखिरकार वे एक ब्यूटीपार्लर में जा घुसीं. वे रिसैप्शन पर रुकीं तो मैं पीछे मुडे़ बिना सुषमा की आवाज सुन रही थी. मोटी सुषमा बाल सैट कराने के लिए एक कुरसी पर जा बैठी, जबकि दुबलीपतली रूपा वेटिंग रूम में बैठ गई. मुझे कुछ उम्मीद नजर आई कि संभवत: मुझे भाग्य आजमाने का अवसर मिलने वाला है.
मैं ने रिसैप्शन पर मौजूद लड़की से अपने बाल शैंपू और सैट कराने की बात की तो उस ने बताया कि करीब 10 मिनट बाद हेयर डे्रसर फ्री हो जाएगी.
मैं वेटिंग रूम में रूपा के सामने जा बैठी. वह सच्चे प्रेमप्रसंग प्रकाशित करने वाली एक पत्रिका के पृष्ठों पर नजरें जमाए बैठी थी. मैं ने भी मेज पर पड़ी 2-3 मैगजीनें उलटपलट कर देखने के बाद साधारण लहजे में कहा, ‘‘ऐसी जगहों पर हमेशा पुरानी मैगजीनें ही पड़ी रहती हैं.’’
रूपा ने मैगजीन से नजर हटा कर मेरी तरफ देखा, लेकिन बोली कुछ नहीं. मैं ने मुसकराते हुए मित्रवत लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें शायद कोई अच्छी मैगजीन मिल गई है.’’
उस ने इनकार में सिर हिलाया तो मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘किसी खास ब्यूटीशियन के साथ अपाइंटमेंट है क्या?’’
उस ने कोई जवाब नहीं दिया और दोबारा उसी मैगजीन पर नजरें जमा कर बैठ गई. इतने में एक ब्यूटीशियन ने फ्री हो कर मुझे बुला लिया. जब इंसान को फास्ट सर्विस की कोई खास जरूरत नहीं होती तो उसे अनचाहे ही फास्ट सर्विस मिल जाती है.
मैं कुरसी पर जा बैठी. हेयरड्रेसर ने मेरे चारों ओर काला कपड़ा लपेटा और मैं ने शैंपू के लिए सिंक पर सिर झुका लिया. जब मेरे बाल संवारे जा रहे थे तो मैं ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘मैं ने किसी इतनी नौजवान लड़की को इतना रफटफ रहते हुए नहीं देखा.’’
हेयर ड्रेसर समझ गई कि मेरा इशारा किस ओर था. वह सिर घुमा कर रूपा की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मैं इस लड़की से दोस्ताना तरीके से बात करना चाहती थी. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. एक शब्द भी नहीं बोली.’’
हेयरड्रेसर मेरी ओर झुकते हुए बोली, ‘‘दरअसल, वह बेचारी बोल नहीं सकती. 2 महीने पहले एक अमीर आदमी ने अपनी कार से इन मांबेटी की कार में टक्कर मार दी थी. तब से इस बेचारी की बोलने की शक्ति चली गई है.’’
‘‘ओह… यह तो बड़ी अफसोसजनक बात है. मुझे यह बात मालूम नहीं थी?’’ मैं ने जल्दी से कहा. इस बीच सुषमा मुझ से कुछ दूर दूसरी कुरसी पर बाल सैट कराते हुए तेज रफ्तार से ब्यूटीशियन से बातें कर रही थी. ऐसा जान पड़ता था कि जैसे उसे आसपास का कुछ पता ही नहीं था.
‘‘मां की कमर में भी चोट आई थी,’’ ब्यूटीशियन ने कहा, ‘‘ये अमीर लोग समझते हैं, जो चाहे कर गुजरें, इन्हें कोई पूछने वाला नहीं.’’
इस का मतलब था कि इन लोगों की कहानी को और लोग भी जानते थे और कुछ लोगों की हमदर्दियां भी इन के साथ थीं. मेरे बाल सैट हो चुके तो मेरे पास वहां ठहरने का कोई बहाना नहीं रहा.
मैं ब्यूटीपार्लर से निकल आई और सामने सड़क किनारे एक बैंच पर बैठ गई. सड़क लगभग सुनसान थी. मैं सुबह 5 बजे की उठी थी. नींद मेरी आंखों में उतरने की कोशिश कर रही थी. मैं ने अपना सिर बैंच की बैक से टिका कर आंखें बंद कर लीं. कुछ देर में मुझे एक अजीबोगरीब सुखद अहसास हुआ. लेकिन उस अहसास का मैं ज्यादा देर आनंद नहीं उठा सकी.
‘‘शालिनी…’’ किसी की आवाज ने मुझे चौंका दिया. मैं हड़बड़ा कर सीधी हो गई.
एक घबराया हुआ सा युवक मेरे ऊपर थोड़ा सा झुका हुआ खड़ा था. उस की आंखों में शरारत साफ झलक रही थी. मुझे सड़क किनारे की एक बैंच पर ऊंघते देख कर संभवत: वह बहुत ही खुश हो रहा था.
मुझे केवल शालिनी के नाम से संबोधित कर के शायद उसे तसल्ली नहीं हुई थी. उस ने मेरा पूरा नाम लिया, ‘‘शालिनी चौहान…?’’ लेकिन यह मेरा शादी से पहले का नाम था. अब तो मुझे अपने पति से अलग हुए भी जमाना गुजर गया था. मैं हैरान हुए बिना न रह सकी कि यह कौन है, जो इस तरह मेरा नाम ले रहा है.
वह जैसे मेरी उलझन दूर करने के लिए अपने सीने पर हाथ रख कर बोला, ‘‘मैं सुशांत पाठक हूं, मिशन हाईस्कूल में तुम्हारे साथ पढ़ता था.’’
मेरी आंखें हैरत से फैल गईं. मुझे यकीन नहीं आ रहा था कि वह मेरा हाईस्कूल का क्लासमेट सुशांत था. कुछ समय के लिए वह मेरा बेहतरीन दोस्त भी रहा था. वह क्लास का सब से मूर्ख सा दिखने वाला लड़का था. कई बार आप ने देखा होगा कि छोटीछोटी घटनाएं कुछ लोगों को अचानक मिला देती हैं. सुशांत और मेरी यह मुलाकात कुछ इसी तरह थी.
सुशांत अब पहले की तरह दुबलापतला लड़का नहीं था, बल्कि भारीभरकम था. उस की भौहें आपस में लगभग जुड़ चुकी थीं और चेहरे पर मोटी मूंछें उग आई थीं.
‘‘तुम सुशांत पाठक हो?’’ मैंने अविश्वास से कहा.
‘‘हां.’’ वह कंधे उचका कर मुझे हैरत के दूसरे झटके से दोचार कराते हुए बोला, ‘‘और अब मुझे लोग क्रेजी सुशांत के नाम से जानते हैं. लेकिन पुराने दोस्तों के लिए मैं सुशांत ही हूं.’’
ओह माई गौड, पिछले एक महीने से मैं बाकायदा इस बेवकूफ का प्रोग्राम सुन रही थी और एसएमएस भेजभेज कर थक गई थी. मैं ने उसे अपने पास बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘तुम ने मुझे कैसे पहचाना?’’
‘‘तुम में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया है,’’ वह बोला, ‘‘और सुनाओ, तुम शौपिंग सेंटरों के सामने सोने के अलावा और क्या करती हो?’’
‘‘मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूं. यहां भी मैं काम के सिलसिले में आई हूं.’’ मैं ने कनखियों से ब्यूटीपार्लर की तरफ देखा. मैं नहीं चाहती कि जब वे मांबेटी बाहर आएं तो मैं यहां बातों में फंसी रह जाऊं.
‘‘यकीन तो नहीं आ रहा कि तुम प्राइवेट डिटेक्टिव हो.’’ ऐसा लग रहा था, जैसे वह हंसते हुए मेरी बातों का मजा ले रहा हो. लेकिन जल्दी ही शायद उस ने मेरी बेचैनी को महसूस कर लिया और अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर मुझे देते हुए बोला, ‘‘जब तुम्हें फुरसत हो, मुझे फोन कर लेना. शायद हम कहीं साथसाथ लंच वगैरह कर सकें.’’
‘‘जरूर.’’ मैं ने सिर हिलाते हुए कहा. वह वहां से चला गया. मैं भी उठ गई. तभी मैं ने देखा. मां बेटी ब्यूटीपार्लर से बाहर आ रही थीं. वे एक बार फिर शौपिंग सेंटर में घुस गईं. इस बार उन्होंने खानेपीने की कुछ चीजें खरीदीं. मैं उन की नजर में आए बिना उन पर निगाह रखे हुए थी.
यह बड़ी अजीब बात थी कि वैसे तो सुषमा की जुबान किसी और की मौजूदगी में एक पल को भी नहीं रुकती थी, लेकिन जब मांबेटी साथ होती थीं तो सुषमा बिलकुल खामोश रहती थी. बेशक रूपा जवाब नहीं दे सकती थी, लेकिन सुषमा आदत से मजबूर हो कर उस से कोई बात तो कर सकती थी.
ऐसा लगता था, जैसे वह जानबूझ कर खामोश रहती थी. मुझे लगा कि अर्पित का शक सही था. लेकिन अभी तक मेरे पास यह साबित करने के लिए कोई युक्ति नहीं थी.
मांबेटी अपना खरीदा हुआ सामान एक ट्रौली पर लाद कर बाहर जाने लगीं तो मैं उन के पीछे लग गई. शौपिंग सेंटर से निकल कर मांबेटी कार में बैठ कर रवाना हुईं और कुछ देर बाद एक पैट्रोल पंप पर जा रुकीं. यहां मुझे अपना भाग्य आजमाने का मौका मिला. सुषमा की गाड़ी के पीछे पैट्रोल लेने के लिए मुझ सहित 3-4 गाडि़यां और थीं.
उन में से एक को शायद बहुत जल्दी थी. वह हौर्न पर हौर्न बजा रहा था. सुषमा जल्दी में अपने पैट्रोल टैंक का ढक्कन छोड़ कर चल दी. मैं ने जल्दी से आगे बढ़ कर पैट्रोल पंप कर्मचारी से ढक्कन ले लिया कि मैं उन्हें रास्ते में दे दूंगी. मैं जब ढक्कन ले कर चली तो मेरे दिमाग में एक छोटी सी योजना जन्म ले रही थी.
जब मैं उन मांबेटी के फ्लैट पर पहुंची तो एक बार फिर पहले ही जैसा दृश्य मेरा इंतजार कर रहा था. खिड़कियों पर परदे गिरे हुए थे और एफएम पूरी आवाज से चल रहा था. मैं ने कालबैल बजाई तो दरवाजा सुषमा ने खोला. उस के एक हाथ में सिगरेट और दूसरे में बीयर का गिलास था. मैं ने ढक्कन उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह संभवत: आप का है?’’
उस ने आंखें सिकोड़ कर ढक्कन का निरीक्षण किया. फिर बोली, ‘‘हां, आप को कहां मिला?’’
‘‘आप इसे पैट्रोल पंप पर छोड़ आई थीं, मैं ने रास्ते में हौर्न बजा कर आप को ध्यान दिलाने की भी कोशिश की, लेकिन आप ने नहीं देखा. मुझे आप के पीछेपीछे यहां तक आना पड़ा.’’ मैं ने बताया.
‘‘थैंक्यू… असल में मेरे पीछे एक खबीस को पैट्रोल लेने की बहुत जल्दी थी,’’ वह आंखें मिचमिचा कर मेरा निरीक्षण करने लगी, ‘‘ऐसा लगता है, जैसे तुम्हें कहीं देखा है.’’
मैं ने मस्तिष्क पर जोर दे कर चौंकने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, ‘‘अरे हां, आप शायद पार्लर में मौजूद थीं. आप के साथ वह बच्ची भी थी, जो शायद…’’ मैं ने जल्दी से मुंह पर हाथ रख लिया.
वह हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘अगर आप उसे गूंगी कहने वाली थीं तो इस में शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं. यह बात अब कोई राज नहीं रही कि वह बोल नहीं सकती. आप अंदर आना चाहो तो आ सकती हो.’’
मैं भला क्यों इनकार करती. मैं अंदर पहुंची तो उस ने जोर से रूपा को पुकार कर एफएम की आवाज कम करने को कहा और मुझे बैठने का इशारा करते हुए बोली, ‘‘कुछ पियोगी?’’
मैं ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘सुना है, आप मांबेटी के साथ कोई दुर्घटना घट गई थी?’’
‘‘हां, एक व्यक्ति ने अंधों की तरह दिन की रोशनी में हमारी कार को पीछे से टक्कर मार दी थी. मुझे भी उस ने लगभग अपाहिज ही कर दिया था. सप्ताह में 2 दिन फिजियोथेरैपी के लिए जाती हूं, इसलिए जरा चलफिर लेती हूं.’’
‘‘आप को उस व्यक्ति पर हरजाने का दावा करना चाहिए था.’’ मैं ने कहा.
‘‘किया हुआ है,’’ वह जल्दी से बोली, ‘‘और उसे हरजाना देना ही पड़ेगा.’’ उस का चेहरा उस समय बिलकुल लालच की तसवीर बना हुआ था. कुछ देर बाद मैं ने महसूस किया कि मेरे वहां और बैठने का कोई औचित्य नहीं था. मैं ने इजाजत मांगी. इसी बीच एफएम पर वही जानीपहचानी हंसी उभरी, जैसे किसी लकड़बग्घे को हिचकियां लगी हों.
मैं ने चौंक कर उधर देखा, जहां एफएम बज रहा था. सुषमा ने जैसे मेरी जानकारी में इजाफा करते हुए कहा, ‘‘यह क्रेजी सुशांत का प्रोग्राम है. सुशांत रोजाना लौटरी के जरिए 30 हजार रुपए का इनाम देता है. रूपा प्रोग्राम में 50-60 बार मैसेज भेज चुकी है. आज तक तो इनाम नहीं निकला. मैं उसे समझाती रहती हूं कि इस तरह के इनामों आदि के चक्करों में नहीं पड़ना चाहिए. इस दुनिया में फ्री में कुछ नहीं मिलता.’’
मैं उठ कर बाहर आ गई. बाकी बातें मेरे मस्तिष्क से निकल गईं. सुषमा ने संभवत: मुझे वह रस्सी दे दी थी, जिस से मैं उस के गले में फंदा डाल सकती थी.
मैं ने तुरंत सुशांत को फोन मिलाया. उसे अपनी योजना पर अमल करवाने के लिए राजी करना मेरी सोच से कहीं ज्यादा आसान साबित हुआ. शायद हम दोनों ही अंतर्मन से झूठे और धोखेबाजों को पसंद नहीं करते थे और उन्हें पकड़वाने के लिए अपनी भूमिका अदा करना चाहते थे.
मैं रूपा और सुषमा के फ्लैट की निगरानी कर रही थी. ठीक 3 बजे मैं ने सुषमा को गाड़ी में बैठ कर अकेली जाते देख लिया था. यकीनी तौर पर वह फिजियोथेरैपी के लिए गई थी. कुछ देर बाद मैं ने रूपा को बहुत जल्दीजल्दी में घबराई हुई सी हालत में एक टैक्सी में बैठ कर रेडियो स्टेशन की तरफ जाते देखा.
उस के कुछ देर बाद मैं ने रेडियो पर उस की मिनमिनाती हुई सी आवाज सुनी. वह क्रेजी सुशांत से 30 हजार रुपए का चैक वसूल करने के बाद थैंक्स गिविंग के तौर पर उस के प्रोग्राम के बारे में अपने अनुभव बयान कर रही थी. रूपा शायद वास्तव में मान चुकी थी कि अर्पित मेहता या उस का कोई आदमी भला यह प्रोग्राम कहां सुनता होगा.
दूसरे उसे यह भी इत्मीनान हो गया होगा कि यह प्रोग्राम लाइव पेश होता था. इस की कोई रिकौर्डिंग नहीं होती थी. उस ने सोचा होगा कि उस की आवाज हवा की लहरों पर धूमिल हो जाएगी और बात वहीं समाप्त हो जाएगी. लेकिन उसे नहीं मालूम था कि मेरे कहने पर सुशांत ने उस की अपनी जुबान से उस के परिचय के साथ उस की आवाज रिकौर्ड करने का इंतजाम कर रखा था.
जैसे ही रूपा रेडियो स्टेशन से बाहर निकली, मैं ने अंदर जा कर सुशांत से वह टेप ले लिया, जिस पर रूपा का थैंक्स गिविंग मैसेज रिकौर्ड हो चुका था. मैं ने सुशांत को थैंक्स कहते हुए कहा, ‘‘आशा है, यह टेप सुनने के बाद रूपा सदमे से बेहोश हो जाएगी और अपना दावा वापस ले लेगी.’’
सुशांत हंसते हुए बोला, ‘‘आइंदा कभी मेरी जरूरत हो तो मैं हाजिर हूं. मैं हंगामी तौर पर काम करने में माहिर हूं.’’
‘‘नहीं, मेरे दूसरे क्लाइंटस की तरह अर्पित मेहता को हंगामे वाले अंदाज में मदद की जरूरत नहीं पड़ेगी,’’ मैं ने भी हंसते हुए कहा.
‘‘तुम उस अर्पित मेहता के लिए काम कर रही हो?’’ सुशांत के माथे पर लकीरें सी खिंच गईं, ‘‘वही जो मेहता इंटरप्राइजेज का मालिक है.’’
‘‘हां,’’ मैं ने उसे जवाब दिया, ‘‘लेकिन तुम इतनी नागवारी से क्यों पूछ रहे हो?’’
वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘खैर, तुम तो अपने काम का मुआवजा ले रही हो. वैसे वह आदमी ठीक नहीं है, अव्वल दर्जे का बदमाश है वह.’’
‘‘तुम उसे कैसे जानते हो?’’ मैं ने पूछा.
‘‘इस रेडियो स्टेशन का मालिक भी वही है.’’ सुशांत ने जवाब दिया.
अब मेरा रुख सुषमा के फ्लैट की ओर था. मैं सोच रही थी कि लोगों को अपना भ्रम बनाए रखने का मौका देना चाहिए. इसलिए मैं ने फैसला कर लिया कि रूपा और सुषमा को अदालत में जाने से पहले ही टेप सुना देनी चाहिए ताकि वे चाहें तो कोर्ट न जा कर अपमानित होने से बच जाएं.
मैं ने उन के फ्लैट पर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुषमा ने खोला. मुझे उसी क्षण अंदाजा हो गया कि कोई गड़बड़ थी. रूपा की आंखें लाल और सूजी हुई थीं. जैसे वह काफी रोई हो.
‘‘क्या बता है सुषमा?’’ मैं ने अनजान बनते हुए कहा.
‘‘बस कुछ मत पूछो,’’ वह टिश्यू पेपर से आंखें पोंछते हुए बोली. वह दमे की मरीज मालूम होती थी. फिर भी मौत की ओर अपना सफर तेज करने के लिए लगातार सिगरेट पीती रहती थी. मैं अंदर पहुंची.
चंद मिनट रोनेधोने और हांफने के बाद सुषमा ने मेरी निहायत बुद्धिमत्तापूर्वक और प्रेमभरी पूछताछ के जवाब में कहा, ‘‘हमें गरीबी की जिंदगी से निकलने का सुनहरा अवसर मिला था. मगर इस लड़की ने जरा सी गलती से उसे बर्बाद कर दिया.’’ उस ने क्रोधित नजरों से रूपा की ओर देखा, जो सिर झुकाए बैठी थी. ‘‘मैं ने कसम खाई थी कि मैं उस व्यक्ति से हिसाब बराबर करूंगी, मगर अब वह बच कर निकल जाएगा.’’
‘‘कौन आदमी?’’ मैं ने चेहरे पर मासूमियत बनाए रखते हुए पूछा.
‘‘सुषमा का बाप.’’ रूपा ने जवाब दिया.
‘‘तुम्हारा पति?’’ मैं ने बात पक्की करने के लिए पूछा. क्योंकि मैं यही समझ रही थी कि वह अर्पित मेहता की बात कर रही थी.
इस बीच रूपा ने रोना शुरू कर दिया. सुषमा हांफते हुए उसे चुप कराने का प्रयत्न करते हुए बोली, ‘‘देखो, मुझे याद है, मैं ने तुम्हारी मां से वादा किया था. लेकिन मैं जो कर सकती थी, वह मैं ने किया.’’
अब इस केस पर काम करतेकरते कोई और ही मामला मेरे सामने खुल रहा था. मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘तुम क्या कह रही हो सुषमा, मेरा तो विचार था कि तुम ही उस की मां हो?’’
वह एक बार फिर रोनेधोने लगी. ऐसा लगता था कि उस से काम की कोई बात मालूम करना मुश्किल ही होगा. मैं रूपा के पास जा पहुंची. वह मुश्किल से 18 साल की थी. वह बेशक काफी दुबलीपतली थी और गरीबों वाले हुलिया में थी, लेकिन उस का व्यक्तित्व गौरवमयी था. मैं ने रूपा की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम आज रेडियो स्टेशन पर जो कारनामा दिखा कर आई हो. उस की वजह से रो रही हो?’’
रूपा की आंखें फैल गईं और वह शायद गैरइरादतन बोल उठी, ‘‘आप को कैसे मालूम?’’
मैं ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘पहले तुम बताओ, तुम्हारी मां इतना क्यों रो रही हैं?’’
‘‘यह मेरी मां नहीं है, मेरी मां की एक नजदीकी सहेली हैं. मेरी मां तो मर चुकी है.’’ रूपा ने बताया. उस के लहजे में सालों की नाराजगी और गुस्सा था.
‘‘तुम मुझे सब कुछ बता कर दिल का बोझ हलका कर सकती हो?’’ मैं ने कहा.
‘‘बताने को इतना ज्यादा कुछ नहीं है.’’ रूपा कंधे उचका कर बोली, ‘‘मेरी मां की पिछले साल कैंसर से मृत्यु हो चुकी है. आंटी सुषमा उन की करीबी सहेली थीं. मेरी देखभाल उन्होंने अपने जिम्मे ले ली. हमारा वक्त किसी हद तक ठीक ही गुजर रहा था, लेकिन कुछ महीनों पहले एक दुर्घटना में उन की कमर में चोट लग गई. तब से हमारे हालात खराब हो गए और हमें अपने बड़े फ्लैट को छोड़ कर इस जगह आना पड़ा. इस माहौल में हम खुशी से नहीं रह रहे हैं.’’
‘‘लेकिन तुम्हारे पिता का क्या किस्सा है?’’
‘‘मेरे पिता ने मेरी मां से शादी नहीं की थी. मैं उन की बगैर शादी की औलाद हूं. छोटी ही थी, जब वे एकदूसरे से अलग हो गए. बहरहाल मेरी और मम्मी की गुजरबसर ठीक होती रही. मुझे कभी अपना बाप याद नहीं आया. जब मेरी मां बीमार हुई तो उसे आर्थिक हालत के बारे में फिक्र हुई.
‘‘उस ने अपनी खातिर नहीं, केवल मेरी वजह से मेरे बाप से आर्थिक मदद हासिल करने की गर्ज से कानूनी काररवाई करने का फैसला किया. मेरे बाप ने उस की खुशामद की कि अगर उस ने ऐसा किया तो वह तबाह हो जाएगा. क्योंकि तब तक वह अपनी बीवी की दौलत से तरक्की कर के बहुत दौलतमंद हो चुका था.
‘‘उस ने कहा कि अगर उस की बीवी को मालूम हो गया कि उस की कोई नाजायज औलाद भी है तो वह उस से तलाक ले लेगी. और सारी दौलत भी वापस हासिल कर लेगी. उस ने मेरी मां से कहा कि अगर वह यह लिख कर दे दे कि मैं उस की बेटी नहीं हूं तो वह मम्मी की मौत के बाद खुफिया तौर पर मेरा हरमुमकिन खयाल रखेगा. मेरी हर जरूरत पूरी करेगा.’’
रूपा की आंखों के आंसू उस के पीले गालों पर ढुलक आए. उस ने जल्दी से उसे पोंछ दिया और गहरी सांस ले कर बोली, ‘‘मम्मी की मौत के बाद पापा ने अपना इरादा बदल दिया और मेरी कोई खैरखबर नहीं ली. सुषमा आंटी ने मुझे अपनी बेटी बना लिया. तब से मैं उन्हीं के साथ रहती हूं.’’
मैं ने सुषमा की तरफ देखा तो वह सिगरेट का कश ले कर बोली, ‘‘मैं ने दुर्घटना का यह ड्रामा रचा था. मेरा विचार था कि रूपा के अमीर बाप से रकम हासिल करने का इस के सिवा और कोई तरीका हमारे लिए संभव नहीं है. यह ड्रामा रचना कोई आसान काम नहीं था. इस लड़की को 2 महीने तक मैं ने जिस तरह से चुप रखा है, मैं ही जानती हूं.’’
फिर उस ने पछतावे वाले अंदाज में सिर हिलाया, ‘‘और उस खबीस को देखो… उस ने अपने ही खून… अपनी ही बेटी को नहीं पहचाना.’’
‘‘तुम्हारा मतलब है अर्पित मेहता इस लड़की का बाप है?’’ मैं ने तसदीक करनी चाही. मेरा सिर घूम रहा था.
‘‘हां,’’ सुषमा ने जवाब दिया, ‘‘लेकिन तुम्हें उस का नाम कैसे मालूम?’’
मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और वहां से उठ कर आ गई.
अगली सुबह मैं अपने घर के सामने खड़ी थी. कूड़े का ट्रक गली में कूड़ा उठाने आया था. अर्पित से मिले पैसे से मेरे बिल तो अदा हो गए थे, लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि अगले महीने की मकान की किस्त कैसे अदा होगी और दूसरे खर्चे कैसे पूरे होंगे?
मुझे नहीं मालूम था कि रूपा के मुकदमे से संबंध रखने वाले किसी व्यक्ति ने एफएम पर उस की बातें सुनी थीं या नहीं? लेकिन मेरे हाथ में मौजूद सीडी में इस बात का एकमात्र सबूत था. इस के बगैर यह बात साबित नहीं की जा सकती थी कि रूपा बोल सकती है.
मैं वह सीडी अर्पित के सामने पेश कर के 5 लाख रुपए इनाम ही नहीं, इस से भी ज्यादा रकम हासिल कर सकती थी. वे 5 लाख रुपए मेरे कई महीने के विलासितापूर्ण जीवन के लिए काफी थे. लेकिन जब कूड़ा ले जाने वाला ट्रक मेरे सामने आया तो मैं ने वह सीडी उस में फेंक दी. अब किसी के पास इस बात का कोई सबूत नहीं था कि रूपा बोल सकती है?
बात सही है, आजकल शहरशहर गलीगली में भगवान होने लगे हैं. भोले बाबा उर्फ सूरज पाल भी खुद को भगवान कहता था. अब भला कोई दलित मनुस्मृति को ठेंगा दिखाते खुद के विष्णु का अवतार होने का दावा करने लगे, यह बात ब्राह्मण समुदाय के धर्माचार्य कैसे हजम कर लेते. यह तो सरासर पैर के मुंह पर पड़ने जैसी बात है. यह और बात है कि भगदड़ में मरे अपने भक्तों की जान यह दलित भगवान भी नहीं बचा पाया इसलिए अब वह भी ऊंची जाति वाले धर्मचार्यों की तरह कह रहा है कि जो आया है उसे जाना ही पड़ेगा.
यही वह ब्रह्म वाक्य है जिस से ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण संतों का धंधा चलता है कि आनेजाने की इस जर्नी से बचने यानी मोक्ष मुक्ति के लिए दानदक्षिणा देते रहो भगवान तुम्हारा भला करेंगे पर दिक्कत तब खड़ी होने लगी जब भला करने का यह ठेका नीचे इफरात से पसरे भगवान के दलाल लेने लगे.
आखिर क्या वजह है और क्या इस में आसाराम, राम रहीम और निर्मल बाबा जैसे गैर ब्राह्मण बाबा कहीं फिट होते हैं जो अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष रवीन्द्र पुरी को यह कहना पड़ा कि आजकल ऐसा ट्रेंड चला है कि हर कोई अपने आप को उपासक पुजारी नहीं, भगवान कह रहा है. खुद को ब्रह्मा, विष्णु, महेश और राम कहने वाले संतों पर कार्रवाई होना अति आवश्यक है. प्रयागराज कुम्भ में ऐसे व्यक्तियों को जमीन नहीं दी जाएगी. तीन अखाड़ों ने अपने 112 संतों को नोटिस दिया है.
वीन्द्र पुरी उज्जैन कुम्भ की तैयारियों का जायजा लेने आए तो उन्होंने यह भी कहा कि जो हमारी सनातन संस्कृति के विरोध में जाएगा उस पर भी कार्रवाई होगी. 112 संतों को नोटिस क्यों दिया गया है, इस सवाल के जवाब में वे गोलमोल बोल ये बोले कि यह गुप्त मामला है. अगर ये संत 30 सितम्बर तक नोटिस का संतोषजनक जवाब नहीं देंगे तो उन्हें महाकुम्भ 2025 में प्रवेश नहीं दिया जाएगा.
इस बयान के अपने अलग माने हैं जो यह बताते हैं कि धर्म के धंधे और साधुसंतों बाबाओं के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है. 4 जून के अप्रत्याशित नतीजों का फर्क कौर्पोरेट की तरह धर्म के धंधे पर भी पड़ा है. यह असर एडवांस में खुले तौर पर 22 जनवरी से ही देखने में आने लगा था जब अयोध्या के राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में शंकराचार्यों ने जाने से मना कर दिया था. इस बाबत उन की अपनी दलीलें थीं कि मंदिर आधा अधूरा बना है और गलत मुहूर्त में प्राण प्रतिष्टा हो रही है जो सनातन धर्म के मूलभूत उसूलों के खिलाफ है.
दरअसल में यह शैव और वैष्णवों की सनातनी लड़ाई है जो अभी भी जारी है. लड़ाई की जड़ में दानदक्षिणा की लूट खसोट के साथसाथ साधुसंतों का अहम ज्यादा है. जिस का कोई इलाज साधुसंतों की सब से बड़ी संस्था अखाड़ा परिषद् के पास भी नहीं है क्योंकि दोनों तरफ ब्राह्मण हैं इसलिए अखाड़ा परिषद् ने कमोवेश तटस्थ रूख अपनाना ठीक समझा.
अखाड़ा परिषद की दूसरी बड़ी दिक्कत वे साधुसंत हैं जिन्हें उन के भक्त भगवान की तरह पूजते हैं. इन में सब से बड़ा नाम राम कथावाचक मोरारी बापू का है. उन पर आरोप है कि वे शुद्ध सनातनी नहीं हैं और राम कथा के दौरान अल्लाह हू अल्लाह हू भी करते रहते हैं. गुजरात के महुआ में हर साल मुसलिम समुदाय याद ए हुसैन नाम का एक समारोह आयोजित करता है जिस में मोरारी बापू का शिरकत करना ब्राह्मण साधु संतों को रास नहीं आता.
अलावा इस के इन्हें तिलमिलाहट इस बात पर भी होती है कि मोरारी बापू गरीब मुसलिम लड़कियों की शादी अपने पैसे से करवाते हैं. सनातनी संतों की तो दुकान की बुनियाद ही हिंदूमुसलिम बैर, नफरत और फूट पर रखी है.
अकेले मोरारी बापू ही नहीं बल्कि अखाड़ा परिषद के निशाने पर वे संत भी हैं जो हैं तो ब्राह्मण लेकिन शैव हैं. मसलन मध्य प्रदेश के सीहोर के पंडित प्रदीप मिश्रा जिन्होंने राधा के जन्म स्थान को ले कर तथाकथित गलत बयानी की तो वैष्णवों ने उज्जैन से ले कर मथुरा तक आसमान सर पर उठा लिया था. नतीजतन प्रदीप मिश्रा को बतौर माफी और प्रायश्चित बरसाने जा कर मंदिर में नाक रगड़नी पड़ी थी.
प्रदीप मिश्रा वाला विवाद अभी ठंडा पड़ा ही था कि निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर ब्रह्मर्षि कुमारस्वामी ने कृष्ण को चरित्रहीन कह दिया. कुमारस्वामी की राजस्थान में बड़ी धाक और पूछ है. भक्त उन्हें गुरुदेव के संबोधन से पुकारते हैं. उन्होंने इतना भर कहा था कि भगवान श्रीकृष्ण की 16108 रानियां थीं. ये काम कोई चरित्रवान नहीं कर सकता. इस बयान पर भी वैष्णव सनातनी तिलमिला उठे थे.
उज्जैन के एक महामंडलेश्वर सुमनानंद ने रवींद्र पुरी से मांग की थी कि ब्रह्मर्षि कुमार स्वामी को अखाड़ा परिषद से बाहर किया जाए और उन्हें चारों कुम्भों में प्रवेश से रोका जाए. कुमार स्वामी भी उन 112 संतों में शामिल हैं जिन्हें नोटिस दिया गया है. प्रदीप मिश्रा और कुमार स्वामी दोनों के खिलाफ थानों में एफआईआर भी दर्ज कराई गई है जाने क्यों उपर वाले के नाम पर खाने कमाने वाले इन एजेंटों को अपनी ही कम्पनी यानी उपर वाले के अदालत के इंसाफ पर भरोसा नहीं है. ये चोंचले केवल भक्तों से पैसा एंठने के लिए बनाए गए हैं.
नोटिस पैसे ले कर साधु संतों को महामंडलेश्वर बनाने वाली महिला महामंडलेश्वर मंदाकिनी पूरी को भी दिया गया है जिस ने हाइटेक ड्रामा खड़ा कर दिया था ( इस मामले पर दिलचस्प रिपोर्ट आप इसी वैब साइट पर पढ़ सकते हैं जो 14 मई 2024 को प्रकाशित हुई थी इस का शीर्षक है – मंदाकिनी मामले से उजागर हुआ कि महामंडलेश्वर बनने के लिए मारामारी और घूसखोरी क्यों).
संतों को दिए गए नोटिस के मसौदे को रवीन्द्र पुरी गोपनीय बता रहे हैं. वे कहने को ही गुप्त हैं वर्ना तो चुनचुन कर चुनिंदा साधुसंतों को कुम्भ में आने से रोकने की साजिश रची जा रही है. इस से जाहिर है विवाद और बढ़ेंगे. अब अगर यही सनातन या हिंदू धर्म है कि भगवान का इकलौता ठेकेदार सिर्फ अखाड़ा परिषद है तो आप इसे किस नजरिए से देखेंगे.
आम पूजापाठी तो पूजापाठी गैर पूजापाठी, नास्तिक अनास्थावान और अज्ञेयवादी लोग भी आमतौर पर शैव और वैष्णव में फर्क नहीं कर पाते हैं. क्योंकि उन के घरों के पूजा घरों में शिव, राम, कृष्ण, दुर्गा, काली, गणेश और शनि सहित साईं बाबा जैसे दर्जनों देवीदेवताओं की मूर्तियां और फोटो वगैरह सजे रहते हैं और वे सभी का पूजन पूरी श्रद्धा से करते हैं.
इन्हीं भक्तों को यह समझ नहीं आता कि जब भगवान एक है तो साधुसंतों में आएदिन के ये झगड़े, फसाद और विवाद क्यों हुआ करते हैं. आखिर इन में थाने और अदालत जाने की हद तक मतभेद क्यों हैं. ऊपर बताए कुछ मामलों से सहज समझा जा सकता है कि यह सब ज्यादा से ज्यादा दानदक्षिणा समेटने के टोटके हैं. इसलिए बारबार राग सनातन धर्म का और उस के सिद्धांतों का अलापा जाता है जिस की नींव ही ब्राह्मणवाद पर रखी है.
मनुस्मृति से ले कर भगवद्गीता, रामायण, वेद, पुराण, उपनिषद, संहिताएं और स्मृतियां वगैरह यह कहती नहीं बल्कि आदेश और निर्देश देती हैं कि शूद्र पशु तुल्य और ब्राह्मण प्रभु तुल्य है इसलिए उसे ही पूजापाठ और पैर छुलाने का हक है बाकी सब फर्जी और सनातन विरोधी हैं इसलिए उन की दुकान या शो रूम पर मत जाओ.
प्रदीप मिश्रा जैसे नामी ब्राह्मण संत और धर्म के कारोबार में अपना अलग रसूख और ग्राहकी रखने वाले कथा वाचक मोरोरी बापू के अलावा कोई कुमारस्वामी या मन्दाकिनी उन के रास्ते यानी मुहिम और धंधे में आड़े आते हैं तो उन्हें नोटिस थमाए जाने लगते हैं.
पिछले 2 दशकों से धर्म की ग्राहकी जब बढ़ने लगी तो दलित पिछड़ों में भी संत होने लगे जो अपने समुदाय के लोगों को बरगला कर धर्म के धंधे के कारोबारी बन गए. इस की एक बड़ी वजह यह भी थी कि ब्राह्मण साधुसंतों ने इन्हें कभी मानव मात्र समझा ही नहीं. लेकिन जब उन की ग्राहकी बढ़ती दिखी तो अखाड़ा परिषद जैसी साधुसंतों की सब से बड़ी संस्था ने इन्हें भी महामंडलेश्वर की पदवी उपाधि देना शुरू कर दिया. ( इस विषय पर भी सरिता में पड़ताल करती विस्तृत रिपोर्ट 27 मई को पब्लिश हुई है जिस का शीर्षक है – एससी/एसटी महामंडलेश्वर बना कर अब दलित औरतों को घेरने की तैयारी).
सवर्ण औरतों का धर्म की आड़ में शोषण सनातन धर्म के मूलभूत उसूलों में से एक है. इस तबके की पढ़लिख गई और आत्मनिर्भर हो गई महिलाओं को कैसे अपनी ग्रिप में रखा गया है, सरिता के लेखों में इस की जम कर पोल खोली जाती रही है. दरअसल में धार्मिक शो बाजी औरतों से ही होती है. किसी भी धार्मिक आयोजन में वे बिना मौसम की परवाह किए कलश सर पर ढोते कहीं भी दिख जाती हैं. अब तो धार्मिक जलसों में उन्हें नाचने की भी छूट दे दी गई है जिस से वे अपना यह शौक पूरा करने इधरउधर या कहीं और न जाए.
तमाम व्रत औरतें ही रखती हैं. कभी संतान सप्तमी और पुत्रदा एकादशी के नाम पर तो कभी करवा चौथ जैसे कठिन और निर्जला उपवास के नाम पर, इन सभी का मकसद घर के मर्दों की सलामती की दुआ ऊपर वाले और नीचे वाले भगवानों से करने का रहता है. वे यह सब क्यों करती रहती हैं इस सवाल का जवाब भी बेहद साफ है कि आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से इतना असुरक्षित और भयभीत धर्म ने उन्हें कर रखा है कि उन का अपना वजूद इच्छाएं और पहचान सब इसी डर के नीचे दब कर रह गए हैं. पितृसत्तात्मक धर्म कैसे आधी आबादी को गुलाम बनाए हुए हैं इसे देखने कहीं दूर नहीं जाना पड़ता बल्कि अपने आसपास ही बारीकी से देखने से सच आंखों के सामने आ जाता है.