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आईएएस पूजा खेड़कर मामला : क्या दक्षिणपंथी अधिकारियों की हताशा का इशारा है मनोज सोनी का इस्तीफा

शायद ही कभी किसी ने उन्हें माथे पर बिना तिलक के देखा हो. कभीकभी तो यह टीका अंग्रेजी के यू अक्षर के आकार का हो जाता था जो आमतौर पर वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी लगाते हैं. यूपीएससी के तिलकधारी चेयरमेन मनोज सोनी ने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है जबकि उन का कार्यकाल अभी 5 साल और बचा था.

अब मनोज पूरे वक्त समाज और धार्मिक कार्य करेंगे. यह इस्तीफा ऐसे वक्त में दिया गया है जब एक आईएएस अधिकारी पूजा खेड़कर का विकलांगता और जाति प्रमाणपत्र शक और जांच के दायरे में है. जिस से कई सवाल और अंगुलियां स्वभाविकतौर पर मनोज सोनी पर भी उठ रहे हैं. हालांकि वे अपने फैसले का इस गंभीर प्रकरण से कोई वास्ता न होना बता रहे हैं लेकिन मात्र कह देने भर से कोई उन का भरोसा नहीं कर रहा है. राहुल गांधी प्रियंका गांधी, सहित कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इस मुद्दे पर सरकार को घेरे हुए हैं यानी दाल पूरी काली न सही पर उस में कुछ तो काला है. गौरतलब है कि पूजा का इंटरव्यू मनोज ने ही लिया था और उसे 275 में से 184 मार्क्स दिए थे.

मनोज सोनी की गिनती उन आईएएस अधिकारियों में शुमार होती है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कृपापात्र हैं. इन का काम महत्वपूर्ण प्राशासनिक पद पर रहते सरकार के राष्ट्रवादी एजेंडे को बढ़ावा देना होता है. इस के लिए जरुरी है कि अधिकारी पूजापाठी व कट्टर हिंदूवादी विचारधारा और मानसिकता का हो और उस की निष्ठां संविधान में कम मनु स्मृति में ज्यादा हो. इस पैमाने और शर्तों पर मनोज सोनी भी 100 फीसदी से ज्यादा फिट बैठ रहे थे इसलिए पिछले साल ही मई में यूपीएससी जैसी अहम एजेंसी का मुखिया बना दिया गया था. इस के पहले वे इस के यानी संघ लोक सेवा के सदस्य बनाए गए थे.

मनोज सोनी पर नरेंद्र मोदी की मेहरबानियों का सिलसिला अब से कोई 20 साल पहले ही शुरू हो गया था जब साल 2005 में उन्हें बड़ोदा के एसएसयू यानी महाराजा सायाजीराव विश्वविध्यालय का कुलपति बनाया गया था. तब इस बात की खूब चर्चा हुई थी कि शिक्षाविद डाक्टर मनोज सोनी देश के सब से कम उम्र के वाइस चांसलर बने. तभी उन की अभाव और संघर्ष भरे जीवन की भी चर्चा जम कर हुई थी.

इस चर्चा से लोग खासतौर से युवा काफी इंस्पायर हुए थे कि मनोज सोनी कभी अगरबत्तियां बेचा करते थे वगैरहवगैरह. लेकिन बड़ी दिलचस्प बात यह है कि उन के भगवा प्रेम के चलते एसएसयू में कई लोग उन्हें छोटा मोदी के संबोधन से भी नवाजते थे. बचपन से ही मनोज सोनी देश की सब से बड़ी धार्मिक संस्था स्वामीनारायण संप्रदाय और उस के अक्षरधाम मंदिरों से गहरे तक जुड़ गए थे. इस संप्रदाय से नरेंद्र मोदी के भी बेहद घनिष्ठ संबंध रहे हैं इस नाते ये दोनों गुरुभाई होते हैं.

मनोज सोनी इसी संस्था की ब्रह्म निर्झर मैगजीन का भी संपादन करते थे और स्वामीनारायण संप्रदाय की ही शाखा अनुपम मिशन से जुड़े थे. इस मिशन का मकसद भी दूसरे दुकानदारों की तरह साधक को जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाना यानी मोक्ष का कारोबार करना है. साल 2020 में उन्होंने निष्काम कर्म योग की भी दीक्षा ले ली थी यानी घोषित तौर पर साधु हो गए थे. अगर सच में ही हो गए थे तो क्यों अब तक यूपीएससी का अध्यक्ष पद संभाले रहे यह समझ से परे बात है.

जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो दिल्ली में उन्हें अपने भरोसेमंद आईएएस अफसरों की जरूरत पड़ी. लिहाजा उन्होंने मनोज सोनी को भी दिल्ली बुला लिया और यूपीएससी में फिट कर दिया. गुजरात में रहते मनोज ने कई बार मोदी भक्ति दिखाई थी. यहां तक कि कुख्यात गोधरा कांड पर एक किताब इन सर्च औफ ए थर्ड स्पेस भी लिख दी थी. जाहिर है इस में नरेंद्र मोदी के बचाव की ही बातें काल्पनिक तथ्यों के रूप में पेश की गईं थीं.

अब उन के इस्तीफे के बाद और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते यूपीएससी में कितने घपले घोटाले हुए. इस की सुगबुगाहट से ज्यादा चर्चा इस बात की हो रही है कि आखिर मनोज सोनी जैसे कट्टर हिंदूवादियों को ऊंचे और अहम पदों पर बैठाने के पीछे सरकार की मंशा क्या थी? दरअसल में हिंदुत्व का एजेंडा थोपना जरुरी था कि पूरी मशीनरी इस मुहिम में जुट जाए. ऐसा हुआ भी और सरेआम हिंदूवादी अधिकारियों को इनामों से नवाजा गया.

इस खेल में ज्युडीशियरी को भी शामिल कर लिया गया. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रंजन गोगोई इस की बेहतर मिसाल हैं. यह मामला बेहद दिलचस्प और चिंतनीय भी है. 14 दिसम्बर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में राफेल सौदे की जांच की मांग करने वाली याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया था जिसे मोदी सरकार को क्लीन चिट देने के तौर पर देखा गया था. गौरतलब है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी सार्वजनिक तौर पर फ्रांस के साथ हुए रक्षा सौदों में गड़बड़ी का आरोप लगाते रहे थे.

इस से पहले सुप्रीम कोर्ट परिसर में नरेंद्र मोदी और जस्टिस रंजन गोगोई की मुलाकात की तस्वीरें सामने आई थीं. इस से भी पहले 26 नवम्बर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने BIMSTEC देशों के जजों के लिए डिनर का आयोजन किया था. इस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खासतौर से मौजूद थे. ( BIMSTEC का मतलब बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड आर्थिक सहयोग हैं).

इस दिन भारत में संविधान दिवस और राष्ट्रीय कानून दिवस मनाया जाता है. ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट की इस तरह की किसी बैठक में शिरकत की थी. विपक्ष खासतौर से कांग्रेस ने इस मेलमिलाप पर स्वभाविक एतराज जताते सुप्रीम कोर्ट के निष्पक्ष रह जाने पर भी शंका और चिंता व्यक्त की थी.

लेकिन तब कांग्रेस आज जितनी मजबूत और भाजपा भी आज जितनी कमजोर नहीं थी. लिहाजा मोदी की मनमानी पर कोई असर नही पड़ा. जस्टिस रंजन गोगोई और नरेंद्र मोदी की बढ़ती अंतरंगता और मित्रता का असर राम मंदिर के मुकदमे पर भी पड़ा. 9 नवम्बर 2019 को जब इस चर्चित और विवादित मुकदमे का फैसला उम्मीद के मुताबिक हिंदुओं के पक्ष में आया तब रंजन गोगोई चीफ जस्टिस थे.

लेकिन इस फैसले के अगले ही सप्ताह रिटायर हुए जस्टिस रंजन गोगोई को महज 4 महीने बाद ही 16 मार्च 2020 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा के लिए नामित कर दिया. क्या यह एक सामान्य सी बात थी. इस सवाल का बेहद पारदर्शी जबाब यह है कि यह एक तरह की सरकारी घूस थी. अंगरेजी का गिव एंड टेक शब्द ऐसे मौकों पे एकदम सटीक और फिट बैठता है.

अकेले रंजन गोगोई ही नहीं बल्कि यह एतिहासिक फैसला सुनाने वाले लगभग सभी जजों को बख्शीश दी गई. इस पैनल में शामिल जस्टिस अशोक भूषण को रिटायरमैंट के बाद सरकार ने NCLAT यानी राष्ट्रीय कम्पनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. उन से बड़ा इनाम जस्टिस एस अब्दुल नजीर को रिटायरमैंट के 2 महीने बाद ही आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाते दिया गया.

इन दोनों जस्टिसों और मनोज सोनी के अलावा कट्टर हिंदुवादियों की लिस्ट बहुत लम्बी है. 2014 के बाद से ही बड़ी तादाद में प्रशासनिक अधिकारी भाजपा में गए हैं. कुछ ने चुनाव लड़ा भी है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के वक्त यह अफरातफरी ज्यादा मची थी लेकिन बात आज की नहीं है बल्कि आजादी के पहले और बाद में भी दक्षिणपंथी अधिकारी हिंदुत्व के एजेंडे को सुलगाए रखने में पीछे नही रहे थे. यह और बात है कि कांग्रेस के सत्ता में रहते उन के कुछ भी करने की सीमाएं थीं. इसलिए देश में कमोबेश शांति रही.

राम मंदिर विवाद को केवल आरएसएस या हिंदू महासभा ने ही हवा नहीं दी थी कि बल्कि 1949 में कई सरकारी अधिकारी भी अपने स्तर पर सक्रिय थे कि जैसे भी हो विवादित जमीन हिंदुओं को ही मिलना चाहिए. 1947 में फैजाबाद के डीएम केके नायर थे. वे भी मनोज सोनी की तरह कट्टरवादी हिंदू थे. जब 22 दिसम्बर 1949 की देर रात अयोध्या में रामलला की मूर्तियां कथित चमत्कारी ढंग से प्रगट हुईं थीं या की गई थीं तब खूब हल्ला मचा था और बड़ी तादाद में हिंदू वहां जा कर पूजापाठ भजनकीर्तन करने लगे थे. जिस से तनाव के बाद दंगे तक के हालत पैदा हो गए थे.

बात दिल्ली तक पहुंची तो प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को ये मूर्तियां हटाने के आदेश दिया. पंत ने तब के मुख्य सचिव भगवान सहाय को यह आदेश फौरवर्ड कर दिया उन्होंने भी इसे आगे बढ़ाते डीएम केके नायर से आदेश का पालन करने को कहा लेकिन हिंदूवादी नायर ने यह आदेश यह दलील देते नहीं माना कि इस से शांति और कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ जाएगी.

इस के बाद जो हुआ वह सब ने देखा कि कैसे हजारों लोगों की मौतों और दंगे फसादों के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला हिंदुओं के हक में आया. लेकिन 4 जून के नतीजों में भाजपा अयोध्या वाली लोकसभा सीट फैजाबाद एक दलित सपा उम्मीदवार अवधेश पासी के हाथों हार गई तो हिंदूवादियों के कसबल ढीले हो गए.

मनोज सोनी का इस्तीफा इसी हताशा की कड़ी है जो अब स्वामीनारायण सम्प्रदाय में सक्रिय रह कर फिर हिंदुत्व को मजबूत करेंगे लेकिन अपना कार्यकाल में हिंदुत्व को जो रायता वे लुढ़का गए हैं उसे समेटने और साफ करने में सालों लग जाना तय है.

भले घर की बहू-बेटियां ऐसा नहीं करतीं

एक तरफ हम डिजिटल इंडिया के साथ मंगल और चांद पर जाने की बात करते हैं लेकिन वहीं हमारे समाज ने आज भी महिलाओं को अंधविश्वासों, दकियानूसी रीतिरिवाजों, रूढि़वादी परंपराओं में कैद किया हुआ है. ‘भले घर की बहू बेटियां ऐसा नहीं करतीं’ के नाम पर ऐसे कई रिवाज हैं जिन्हें महिलाओं को सदियों से निभाने पर मजबूर किया जाता रहा है.

गैरजिम्मेदार ठहरा कर व्यर्थ की बंदिशों में बांधने की कोशिश

हमारे समाज में अगर कोई महिला अपने छोटे बच्चे को छोड़ कर नौकरी जौइन कर ले तो उसे गैरजिम्मेदार होने का ताना दे कर व्यर्थ के रीतिरिवाजों में बांधने की कोशिश की जाती है. अगर वास्तव में देखा जाए तो किसी भी बच्चे को 5 साल तक ही मां की जरूरत होती है या कहें तो बच्चे केवल 5 साल तक ही तंग करते हैं, उस के बाद बच्चे अपनेआप संभल सकते हैं. वैसे भी, आजकल 5 साल का बच्चा स्कूल जाने लगता है तो कोई मां आराम से नौकरी या अपना कोई काम कर सकती है, इसलिए उस को गैरजिम्मेदार ठहरा कर व्यर्थ की बंदिशों में बांधने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए.

अगर देखा जाए तो कोई भी महिला 25 से 70 साल तक अपनी काबिलीयत के अनुसार कोई भी काम कर सकती है और घरपरिवार में अपना योगदान दे सकती है. इसलिए उसे जिम्मेदारी के नाम पर बच्चों के ऊपर अपना समय और अपना कैरियर बरबाद नहीं करना चाहिए.

पूजापाठ, व्रत का जाल

धर्म का उद्देश्य स्त्रियों को नकारा बनाना, अपनी सोचने समझने की शक्ति का प्रयोग न करने देना है. महिलाएं व्यर्थ के व्रतत्योहारों में उलझी रहें, इसीलिए हर पर्व को मनाने के लिए उस की पूरी तैयारी की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ महिलाओं के कंधों पर होती है.

त्योहारों में पूजा, व्रत, त्योहार की तैयारी और पकवान बनाने की पूरी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ महिलाओं के हिस्से आती है चाहे होली की गुझिया हो या दीवाली की पूजा. ऐसे में रोजमर्रा के काम के अलावा त्योहारों का दोहरे कामों का भार उन्हें औरों की तरह सुकून व आराम देने के बजाय थका देता है. आखिर क्यों औरतें पूजा, व्रत, त्योहार रीतिरिवाजों के नाम पर पूरे घर की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेती हैं और अपने तन व मन के साथ खिलवाड़ करती हैं.

धर्म में केवल महिलाओं को ही पति, पुत्र और पूरे परिवार की सलामती के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है और उन्हें व्यर्थ के पूजापाठ, व्रत के जाल में फंसाया जाता है और धर्म का डर दिखाया जाता है. कई बार पढ़ीलिखी सशक्त महिलाएं भी धर्म के डर के आगे घुटने टेकने को मजबूर होती हैं. कई बार किसी व्रतपूजन में हुई चूक के बाद अगर घर में कोई छोटीबड़ी घटना होती है तो इस के लिए सीधे महिलाओं को ज़िम्मेदार भी बताया जाता है, जो महिलाओं में धर्म के डर को मज़बूत करने का काम करता है.

‘भले घर की बहूबेटियां ऐसा नहीं करतीं’

कहीं न कहीं महिलाओं की उड़ान को रोकने के लिए यह एक ऐसी टैगलाइन है जिस को सुन कर महिलाएं खुद ही गिल्ट में आ जाती है. यह महिलाओं को इमोशनली ब्लैकमेल करने का उन्हें दकियानूसी बंधन में बांधने और उन की ख़्वाहिशों को दबाने की एक साजिश है.
अगर भले घर की कोई बहू या बेटी रात 10 बजे के बाद घर आती है तो समाज द्वारा यह दुहाई दी जाती है कि ये हमारे संस्कार नहीं हैं. घर की बहुओं, ख़ासकर गांवों में रहने वाली बहुओं, का घूंघट थोड़ा सा चेहरे से हट जाए तो उन्हें चरित्रहीन और संस्कारविहीन ठहरा दिया जाता है. व्यर्थ के ये दकियानूसी रीतिरिवाज स्त्रियों को मानसिक, आर्थिक व सामाजिक रूप से बंधन में बांधने की साजिश लगते हैं.

अपने नए रीतिरिवाज बनाएं

बदलते समय के साथ उन रीतिरिवाजों, जो महिलाओं के लिए सही नहीं हैं, को त्याग कर देना चाहिए और नए रीतिरिवाज जो उन के खुद के लिए सुविधजनक, तार्किक और प्रैक्टिकल हों, बनाए जाने चाहिए, जो उन्हें खुशी दें, कुढ़कुढ़ कर जीने को मजबूर न करें. अगर पत्नी वर्किंग है और उसे अपने कलीग्स के साथ कंपनी के काम से ट्रैवलिंग पर जाना पड़े तो बेकार के दकियानूसी रीतिरिवाजों, जो उसे ऐसा करने से, आगे बढ़ने से रोकें, को त्याग कर नए रीतिरिवाज बनाने चाहिए.

यह बंधन तो प्यार का बंधन है, इसे टूटने से बचाना सीखें

सात जन्मों के शादी के रिश्ते को हमारे समाज का सब से पवित्र और अहम रिश्ता माना जाता है, लेकिन आज के समय में यह रिश्ता अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. शादी जो प्यार, अपनेपन और विश्वास का रिश्ता होता था, आज की मौडर्न लाइफ में लोगों की इस रिश्ते को ले कर सोच बदल रही है. जो कपल शादी के फेरों के वक्त हमेशा एकदूसरे के साथ रहने, हर सुखदुख में साथ देने की कसमें खाते हैं वही शादी के कुछ समय बाद ही छोटीछोटी वजहों से अपनी शादी को अलविदा कह रहे हैं और तलाक के काफी ज्यादा केस देखने को मिल रहे हैं. आज स्थिति ऐसी हो गई है कि मन का खाना न खिलाने, घूमने न ले जाने और शौपिंग न करवाने जैसी छोटीछोटी बातों पर लड़ाइयां शुरू हो जाती हैं और उन्हें सुलझाने की जगह बहस की चिनगारी को हवा दी जाती है और फिर बात रिश्ते को खत्म करने तक आ जाती है.

पहले के जमाने में ऐसा नहीं हुआ करता था. पहले के पुरुषों और महिलाओं दोनों में धैर्य व एकदूसरे के लिए प्यार हुआ करता था. लेकिन अब रिश्तों में सहनशीलता खत्म होती जा रही है. अब रिश्ता तोड़ने से पहले अपने रिश्ते को एक चांस देने का सब्र तक भी लोगों में नहीं बचा है. वर्तमान में कोई किसी के सामने झुकना पसंद नहीं करता. अब जब तक दोनों एकदूसरे के मनमुताबिक चलते हैं तब तक उन का रिश्ता टिकता है. जिस दिन दोनों में से कोई भी एक पार्टनर दूसरे की मरजी के खिलाफ उस से अलग जाता है, सामने वाले को वह बरदाश्त नहीं होता और रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच जाता है.

दो लोग एकजैसे नहीं हो सकते

जब एक घर के दो बच्चे एकजैसे नहीं हो सकते तो शादी के रिश्ते में एक होने वाले दो अलगअलग परिवारों के कोई भी दो इंसान एकजैसे कैसे हो सकते हैं. दोनों की आदतें, सोचने और जीने का तरीका अलग हो सकता है. ऐसे में एकदूसरे में मीनमेख निकालने के बजाय एकदूसरे में खूबियां ढूंढना सही रास्ता है. एक पार्टनर को दूसरे को बदलने के बजाय उस की अच्छाइयों को देखते हुए उसे उसी रूप में स्वीकारना चाहिए जैसा वह है. इस से रिश्ते में अपेक्षाएं कम होती हैं और रिश्ते की उम्र बढ़ती है.

उम्मीदों पर लगाएं लगाम

किसी भी पतिपत्नी में अलगाव की सब से बड़ी वजह एकदूसरे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें करना होता है. जब उम्मीदें इतनी बढ़ जाती हैं कि उन्हें पूरा कर पाना संभव नहीं हो पाता, तो कपल का एकसाथ रहना मुश्किल हो जाता है. इस के अलावा शादी के रिश्ते में जब दोनों ही खुद को सही और दूसरे साथी को गलत साबित करने की होड़ में लग जाते हैं तो भी रिश्ते में खटास बढ़ने लगती है और रिश्ता तलाक या अलगाव की चौखट तक पहुंचने लगता है.

शादी का रिश्ता कैसे निभाएं, यह कोई नहीं सिखा रहा

आज शादी के रिश्तों के टूटने की सब से बड़ी वजह यह है कि शादी का रिश्ता कैसे निभाएं, यह कोई नहीं सिखा रहा- न लड़की के परिवारवाले, न लड़के के परिवारवाले, न समाज, न सोशल मीडिया ही. अगर पहले की बात करें तो यह सिखाने का काम पत्रपत्रिकाएं करती थीं.

हम हाथ पकड़ कर जैसे एबीसीडी अल्फाबेट सीखते हैं वैसे ही अपनी शादी को बचाना भी सीखना चाहिए. आज पति यह तो चाहते हैं कि पत्नियां उन की आर्थिक जिम्मेदारी शेयर करें लेकिन वे घर की जिम्मेदारी में हाथ बंटाने से झिझकते हैं जो कि गलत है. जब लड़कियां दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हैं तो लड़कों को भी घर के कामों में हाथ बंटाना सीखना होगा. इसी तरह अब लड़कियां जैसे जीवन की बाकी स्किल्स को सीख रही हैं तो उन्हें वैवाहिक जीवन कैसे चलाएं, यह भी सीखना होगा. वैवाहिक रिश्ते को बचाने के लिए अगर जरूरत पड़े तो मैरिज काउंसलर के पास भी जाएं. शादी कैसे चलाएं, यह शिक्षा दोनों पार्टनरों को मिलनी चाहिए.

अपने रिश्ते को बचाने की हर संभव कोशिश करें

पति हो या पत्नी, रिश्ता तोड़ने से पहले उन्हें एक बार इस बारे में जरूर सोचना चाहिए कि अगर उन्होंने शादी तोड़ी या उसे बचाने की कोशिश नहीं की तो उन्हें ही भुगतना पड़ेगा. तलाक के बाद आसानी से उन्हें कोई दूसरा मिलने वाला नहीं है. इसलिए पतिपत्नी दोनों एकदूसरे को संभाल कर रखें. कई बार जल्दबाजी में लिए गए फैसले से बाद में पछतावे के सिवा कुछ हासिल नहीं होता.

मेरे पति पोर्न वीडियोज देख कर मेरे साथ अननैचुरल सेक्स करते हैं. मुझे क्या करना चाहिए ?

सवाल –

मेरी शादी को अभी कुछ ही समय हुआ है और मेरे पति को सेक्स करना बेहद पसंद है. वे जब भी अपने औफिस से घर आते हैं तब वे खाना खा कर अपने फोन में पोर्न वीडियोज़ देखने लग जाते हैं और पोर्न वीडियोज़ में वे जो कुछ भी देखते हैं उसे वे मेरे साथ करने की सोचते हैं. उन्हें अलग अलग पोजिशन्स में सेक्स करना बेहद अच्छा लगता है. ऐसे में कुछ चीज़ें तो मुझे भी आनंद देती हैं पर कुछ ऐसी ची़ज़ें भी होती है जिसमें मुझे बिल्कुल मज़ा नहीं आता पर मैं यह बात उन्हें चाह कर भी नहीं बोल पाती. कभी-कभी वे अननैचुरल तरीके से मेरे साथ सेक्स करने लगते हैं जिसमें मुझे मज़ा तो दूर काफी तकलीफ भी होती है. ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

कई लोगों को नई नई चीज़ें करना बेहद अच्छा लगता है और ऐसे में अपनी सेक्स लाइफ को दिलचस्प बनाने के लिए वे अनोखे आईडियाज़ सोचते रहते हैं जिससे कि उन्हें लगता है कि उनकी सेक्स लाइफ रंगीन बन जाएगी. जैसा कि आपने बताया कि वे पोर्न वीडियोज़ देख कर अलग-अलग चीज़ें ट्राई करते हैं ऐसे में उन्हें इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि उन्हें केवल वही चीज़ ट्राई करनी चाहिए जो कि आप दोनों को प्लेज़र दे.

आज के समय में कई ऐसी मूवीज़ आ गई हैं फिर चाहे वे हौलीवुड हो या बौलीवुड जिससे अननैचुरल सेक्स को बढ़ावा मिल रहा है. अननैचुरल सेक्स में ओरल सेक्स भी आता है पर हमें यह समझना चाहिए कि सेक्स लड़के और लड़की के प्लेज़र के लिए बना है ना कि अपने प्लेज़र के लिए अपने पार्टनर को तकलीफ पहुंचाने कि के लिए. अलग-अलग पोजीशन्स में सेक्स करना अच्छा होता है पर सेक्स पोजीशन ट्राई करते समय अपने पार्टनर का खास खयाल रखना चाहिए कि उस पोजीशन में आपके पार्टनर को किसी प्रकार का कोई दर्द या फिर उनके प्राइवेट पार्ट में कोई चोट तो नहीं पहुंच रही.

अगर आपके पति आपके साथ अननैचुरल सेक्स करते हैं तो आपको उन्हें खुल कर बोलना चाहिए. सेक्स हमेश दोनों की रजामंदी से होता है तो ऐसे में सेक्स में जो कुछ भी हम करते हैं वे सब भी दोनों की रजामंदी से ही होना चाहिए. आपको उन्हें समझाना चाहिए कि आपके शरीर के लिए अननैचुरल सेक्स सही नहीं है और उन्हें सेक्स को एक प्लेजर की तरह लेकर अच्छे से सेक्स करना चाहिए ना कि पोर्ट वीडियोड की कौपी करनी चाहिए.

अफसर की नाजों पली बीवी

एक आला अफसर की नाजों पली बीवी देवी ठाकुर ने आज एक बार फिर पति की थाली में जली हुई दालरोटी के साथसाथ रात की बासी सब्जी परोस दी. अफसर पति ने कहा, ‘‘देवीजी, कुछ तो मेरी अफसरी का खयाल कर के ताजा भोजन खिला दिया होता. जली हुई दालरोटी खाते देख कर क्या तुम्हें नहीं लगता कि मैं अफसर नहीं, बल्कि कोई चपरासी हूं?’’ देवी ठाकुर बोलीं, ‘‘अफसरी का इतना ही रुतबा है, तो घर में काम करने वाले एक चपरासी का इंतजाम क्यों नहीं करते? तुम्हें पता है न कि अफसरों की बीवियां किटी पार्टियों में जाती हैं. क्या तुम नहीं चाहते कि मैं भी उन पार्टियों में जाऊं?’’

‘‘दफ्तर में एकाध दिन में कोई नया चपरासी आ जाएगा. समझ लो, वह तुम्हारा और तुम्हारे घर का सारा काम करेगा, मगर फिलहाल कुछ दिनों तक तो अपने हाथ से ढंग का खाना खिला दो. आखिर मैं पति हूं तुम्हारा,’’ बहुत ही खुशामद वाले अंदाज में अफसर पति ने कहा.

देवी ठाकुर निराले अंदाज में पति से बोलीं, ‘‘तुम्हें पता है, हम बीवियां पति की इज्जत बढ़ाने के लिए दूसरों से कभी पीछे नहीं रहतीं. खाना बनाने जैसा छोटा काम भी तो चपरासियों का ही है.’’ इज्जत बढ़ाने की बात पर अफसर पति पूछ बैठा, ‘‘आप लोग पार्टियों में हमारी इज्जत कैसे बढ़ाती हैं?’’ देवी ठाकुर बोल उठीं, ‘‘चाय के बदले कौफी, पकौड़ों के बदले समोसे, जलेबी के बदले कलाकंद का आर्डर दे कर पार्टियों में हम पतियों की तारीफ करती हैं और सब को बताती फिरती हैं कि मेरे पति बड़े अफसर हैं, जिन में जरा भी कंजूसी नहीं है.

‘‘बड़े अफसरों की बीवियां इतना हक तो रखती ही हैं कि दूसरों को मनचाहा खिलापिला सकें.’’ बीवी के मुंह से अफसरी रुतबे का इतिहास सुन कर मूड खराब होने के डर से जब अफसर पति दफ्तर चले गए, तो देवी ठाकुर किटी पार्टी में जाने के लिए तैयार होने लगीं. होंठों पर लिपस्टिक और चेहरे पर पाउडर लगा कर वे साड़ी लपेट ही रही थीं कि तभी एक आदमी आया और बोला, ‘‘मैडम, मैं रघुनाथ हूं. अभीअभी दफ्तर में चपरासी बन कर आया हूं. साहब ने जौइन करते ही कहा कि मैं आप की सेवा में रहूं और घर में खानेपीने का अच्छा बंदोबस्त करूं.’’

देवी ठाकुर तो मानो फूली न समाईं. वे खुश हो कर बोलीं, ‘‘ठीक है रघु, मेरे साथ बाजार चलो और सामान खरीद कर साहब के लिए खाना बना कर रखना. मैं भी तब तक किटी पार्टी से आ जाऊंगी.’’ देवी ठाकुर चपरासी पा कर खिले गुलाब की तरह मुसकरा रही थीं. वे रघु को ले कर बाजार गईं और कुछ पैसे दे कर उसे समझा दिया कि क्याक्या लेना है. फिर वे पार्टी के लिए चल पड़ीं. रघु बोला, ‘‘मैडम, घर की चाबी तो आप के पास है. खाना बनाने के लिए मुझे तो घर वापस जाना पड़ेगा.’’ मैडम यानी देवी ठाकुर ने चौंक कर कहा, ‘‘अरे हां, ठीक कह रहे हो रघु. लो चाबी, मगर खाना अच्छा व सफाई से बनाना. कुछ ऐसा कि तुम्हारे साहब दांतों तले उंगली दबा लें.’’

रघु ने कहा, ‘‘मैडम, आप बेफिक्र रहें. मैं ऐसा खाना बनाऊंगा कि आप दोनों ही हैरान रह जाएंगे.’’ देवी ठाकुर किटी पार्टी में शेखी बघारते हुए बोलीं, ‘‘देखा मेरे प्यारे अफसर पति को. आखिर उन्होंने मुझे चपरासी दे ही दिया. मुझ से इतना प्यार करते हैं कि घर का कोई कामकाज करने ही नहीं देते. इतना खयाल रखते हैं कि दफ्तर के चपरासी को ही मेरी सेवा के लिए भेज दिया.’’

देवी ठाकुर की फूली छाती देख कर उन की सहेलियां मीना, लीना, रीता व गीता कुछ झेंप सी गईं. रीता ने कहा, ‘‘इस खुशी में तो आज चाय हो ही जाए.’’ देवी ठाकुर बोलीं, ‘‘चाय क्यों… मेरी ओर से समोसा, कलाकंद और कौफी की शानदार पार्टी लो.’’ एक बड़ा सा आर्डर दे कर देवी ठाकुर ने अपना सीना ऐसे तान लिया, मानो उन्हें चपरासी नहीं कोई गड़ा हुआ खजाना मिला हो. पार्टी के बाद शाम को जब देवी ठाकुर घर लौटीं, तो अफसर पति को उदास बैठा देख कर पूछा, ‘‘कहां है रघु, दिखाई नहीं दे रहा है? खाना तो खा लिया होगा आप ने?’’

उन के सवालों पर चकरा कर अफसर पति ने पूछा, ‘‘कौन रघु? कैसा रघु? मुझे किसी रघु का पता नहीं.’’

यह सुन कर देवी ठाकुर का माथा ठनका. झट से कमरे में जा कर उन्होंने तिजोरी देखी. तिजोरी के रुपयों का कहीं अतापता न था. वे रोने लगीं. रघु चकमा दे कर चंपत हो गया था. वे रोतेरोते बोलीं, ‘‘रघु रुपए ले कर रफूचक्कर हो गया है.’’ ‘‘देवी, छोड़ो भी रघु का चक्कर और खाना खा लो. मैं होटल से ले आया हूं,’’ अफसर पति ने टूटे दिल से अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा.

मेरे दोस्त अक्सर बिल देते वक्त मेरे पैसे खर्च करवाते हैं मना नहीं कर पाता. क्या करूं ?

सवाल –

मैं एक मल्टी नैशनल कंपनी में जौब करता हूं और वहां मेरे कुछ दोस्त मेरे साथ ही काम करते हैं. मेरे दोस्तों की सैलेरी भी मेरे जितनी ही है और कुछ की तो मुझसे थोड़ी ज्यादा भी है. जब भी हम कहीं बाहर कुछ खाने-पीने या घूमने जाते हैं तो वे सब अपने पैसे ना खर्च के मेरे ही फोन के वौलेट से पेमेंट कर देते हैं. पहले तो मैं चाहकर भी मना नहीं कर पाता था पर मैंने एक बार उन्हें अपनी पेमेंट करने को कहा तो उन सब ने कहा कि वे औनलाइन फ्रौड के डर से डिजिटल वौलेट का इस्तेमाल नहीं करते. मैने उन्हें डिजिटल वौलेट का सही से इस्तेमाल करना भी सिखाया जिससे वे औनलाइन फ्रौड से बच सकते हैं पर मेरे समझाने के बाद भी वे नहीं माने और हर जगह मुझे ही पेमेंट करने को कहते हैं और बाद में हिसाब करके वापस दे देंगे कहकर कभी वापस नहीं करते. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

मैं आपकी बात अच्छे से समझ गया हूं. ऐसे कई लोग होते हैं जिन्हें अपने पैसे बचा कर दूसरों के पैसे खर्च करवाने में बहुत मज़ा आता है. अगर वे औनलाइन फ्रौड के डर से अपने फोन में डिजिटल वौलेट का इस्तेमाल नहीं करते तो उनके पास पेमेंट करने के और भी कई औपशंस हैं जैसे कि अगर वे सच में अपना बिल खुद पे करना चाहें तो वे कैश का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर वे कभी ऐसे नहीं करते तो आपको भी सावधान हो जाना चाहिए.

अगर आप अपनी दोस्ती बचाना चाहते हैं और अपको इस छोटे-मोटे बिल्स से फर्क नहीं पड़ता फिर आप इन सब चीजों को इग्नोर कर सकते हैं और जैसा चल रहा है चलने दें. पर अगर आपको लगता है कि इन सब चीज़ो से आपके घर का बजट डिस्टर्ब हो रहा है और वे सब मिल कर जान बूझ के आपके पैसे खर्च करवा रहे हैं तो ऐसे में बेहतर यही होगा कि आप ऐसे लोगों से कोई रिश्ता ना रखें और साफ शब्दों में उन्हें समझा कर दोस्ती तोड़ दें.

उनको समझना चाहिए कि आपकी भी फैमिली है और अगर ऐसे ही आप उन लोगों पर फिजूल खर्च करते रहेंगे तो अपनी और अपनी फैमिली के लिए सेविंग्स नहीं कर पाएंगे जिससे कि आपको भविष्य में काफी दिक्कतों का सामने करना पड़ सकता है. दोस्ती का मलतब होता है एक दूसरे को समझना और एक दूसरे के दुख-सुख में काम आना पर अगर कुछ लोग दोस्ती के नाम पर आपका इस्तेमाल करने लग जाएं तो ऐसे लोगों से दोस्ती तोड़ना ही ठीक होगा.

सबक

कल्पना से मेरी शादी 2 साल पहले हुई थी. उस की छोटी बहन शालिनी उस समय 16 साल की थी. वह कल्पना से ज्यादा खूबसूरत थी, चंचल भी बहुत थी. कल्पना से शादी तय होने से पहले मैं अगर उसे देख लेता, तो उसी से शादी करता. मैं ने कल्पना से शादी तो कर ली थी, मगर शालिनी को पाने की इच्छा मन में रह गई थी. वैसे भी कहावत है कि साली आधी घरवाली होती है. मेरे 2 दोस्तों ने इस की पुष्टि भी की थी. उन्होंने मुझे बताया था कि उन के भी अपनी सालियों से नाजायज रिश्ते हैं. मैं ने तय कर लिया था कि कोशिश करूंगा, तो मैं भी शालिनी को पा लूंगा. शालिनी ने शादी के दिन मेरी खातिरदारी में कोई कमी नहीं की थी. मेरे साथ वह बराबर बनी रहती थी. वह कभी हंसीमजाक करती थी, तो कभी छेड़छाड़. शालिनी ने बातोंबातों में यह भी कह दिया था, ‘‘आप इतने हैंडसम हैं कि मैं आप पर फिदा हो गई हूं. अगर मैं आप को पहले देख लेती, तो झटपट आप से शादी कर लेती. दीदी को पता भी नहीं चलने देती.’’

मैं ने भी झट से कह दिया था, ‘‘चाहो तो अब भी तुम मुझे अपना बना सकती हो. तुम्हारी दीदी को पता भी नहीं चलेगा.’’

उस ने भी मुसकराते हुए कह दिया था, ‘‘ऐसी बात है, तो किसी दिन आप को अपना बना लूंगी.’’ पता नहीं, शालिनी ने मजाक में यह बात कही थी या दिल से, मगर मैं ने उस की यह बात दिल में बैठा ली थी.

एक पत्नी से जो सुख मिलने चाहिए, वे तमाम सुख कल्पना से मुझे मिले. वह मेरी छोटीछोटी जरूरतों का भी खयाल रखती थी. इस के बावजूद मैं शालिनी को पाने की तमन्ना जेहन से निकाल नहीं पाया.

एक बार फोन पर मैं ने कहा था कि किसी बहाने से तुम से मिलने मुंबई आ जाऊं? तो उस ने जवाब दिया था, ‘‘आ जाते तो अच्छा होता, मेरे दिल को करार मिल जाता.

‘‘मगर, ऐसे में मामा मामी को शक भी हो सकता है, इसलिए थोड़ा इंतजार कीजिए. मौका देख कर मैं खुद ही कोलकाता आ जाऊंगी?’’

उस के बाद मैं ने कभी मुंबई जाने का विचार नहीं किया. दरअसल, मैं नहीं चाहता था कि मेरे चलते शालिनी की बदनामी हो.

इसी तरह 2 साल बीत गए. एक दिन अचानक शालिनी ने फोन पर कहा, ‘जीजाजी, अब आप के बिना रहा नहीं जाता. हफ्तेभर बाद मैं आप के पास आ रही हूं.’

मैं खुशी से खिल उठा. शालिनी 12वीं पास कर कालेज में चली गई थी. वह गरमी की छुट्टियों में कोलकाता आ रही थी. एक हफ्ते बाद शालिनी आई. उसे रिसीव करने मैं अकेले ही रेलवे स्टेशन पहुंच गया था. वह पहले से ज्यादा गदरा गई थी. उस की खूबसूरती देख कर मेरे मुंह से लार टपक गई. मुझ से रहा नहीं गया, तो उस से कह दिया, ‘‘तुम तो पहले से ज्यादा खूबसूरत हो गई हो. तुम्हें चूम लेने का मन करता है.’’

‘‘रास्ते पर ही चूमेंगे क्या…? पहले घर तो पहुंचिए,’’ कह कर शालिनी ने मुसकान बिखेर दी. घर पहुंचने के बाद उस से अकेले में मिलने का मौका नहीं मिला. वह अपनी बहन के साथ चिपक सी गई थी.

उस रात मुझे ठीक से नींद नहीं आई. रातभर यही सोचता रहा कि जब शालिनी के साथ हमबिस्तरी करूंगा, तो वह कितना सुखद पल होगा. रातभर जगे रहने के चलते मेरी आंखें लाल हो गई थीं. सुबह बाथरूम से बाहर आया, तो शालिनी से सामना हो गया. मेरी तरफ देखते हुए उस ने कहा, ‘‘क्या बात है जीजाजी, आप की आंखें लाल हैं. क्या रात में नींद नहीं आई?’’

‘‘नहीं?’’

‘‘क्यों?’’

‘‘रातभर तुम्हारी याद आती रही?’’

‘‘मेरी क्यों? दीदी तो आप के साथ थीं. आप मुझ से जो चाहते हैं, वह दीदी भी तो दे ही सकती हैं. फिर मेरे लिए क्यों परेशान हैं?’’

‘‘देखो शालिनी, फालतू की बात मत करो. तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुम्हें पाना चाहता हूं. जब तक तुम्हें पा नहीं लूंगा, मुझे चैन नहीं मिलेगा.’’ मैं ने शालिनी को बांहों में लेना चाहा, तो वह बिजली सी तेजी के साथ बाथरूम में चली गई और झट से भीतर से दरवाजा बंद कर लिया. फिर अंदर से वह बोली, ‘‘मुझे पाने के लिए सही मौका आने दीजिए जीजाजी. मैं खुद अपनेआप को आप के हवाले कर दूंगी.’’ 2 दिन बाद कल्पना की तबीयत कुछ खराब थी, तो उस ने खाना बनाने के लिए शालिनी को रसोई में भेज दिया. मौका ठीक देख कर मैं रसोई में गया. शालिनी खाना बनाने में बिजी थी. उस की पीठ दरवाजे की तरफ थी. पीछे से एकबारगी मैं ने उसे बांहों में भर लिया. पहले तो वह घबराई, मगर मुझे देखते ही सबकुछ समझ गई. वह जोर लगा कर मेरी बांहों से अलग हो गई, फिर बोली, ‘‘अगर दीदी ने देख लिया होता, तो मेरा जीना मुश्किल कर देतीं. कहीं ऐसा किया जाता है क्या?

‘‘मुझे पाने के लिए जिस तरह आप बेकरार हैं, मैं भी आप को पाने के लिए उसी तरह बेकरार हूं. मगर उस के लिए सही मौका चाहिए न.’’ कुछ सोचते हुए शालिनी ने कहा, ‘‘आप ऐसा कीजिए कि रात में जब दीदी गहरी नींद में सो जाएं, तो मेरे कमरे में आ जाइए.

‘‘दीदी जल्दी से गहरी नींद में सो जाएं, इसलिए उन के दूध में नींद की दवा मिला दूंगी. आप जा कर कैमिस्ट से नींद की दवा ले आइए.’’

शालिनी की बात मुझे जंच गई. कुछ देर बाद नींद की दवा ला कर मैं ने उसे दे दी. नींद की दवा ले कर शालिनी पहले मुसकराई, फिर बोली, ‘‘आप सो मत जाइएगा, नहीं तो रातभर जल बिन मछली की तरह मैं तड़पती रह जाऊंगी.’’

‘‘कैसी बात करती हो. तुम्हें पाने के लिए मैं खुद तड़प रहा हूं, फिर सो कैसे जाऊंगा. तुम दरवाजा खोल कर रखना. मैं हर हाल में आऊंगा.’’ रात का भोजन करने के बाद मैं अपने कमरे में जा कर बिस्तर पर लेट गया. कल्पना 10 बजे के बाद बिस्तर पर आई और बोली, ‘‘आज मुझे तंग मत कीजिएगा. न जाने क्यों नींद से मेरी आंखें बंद होती जा रही हैं.’’ मैं समझ गया कि शालिनी ने नींद की दवा वाला दूध उसे पिला दिया है.

कुछ देर बाद ही कल्पना गहरी नींद में सो गई. थोड़ी देर बाद बिस्तर से उठ कर मैं यह जानने के लिए मां के कमरे में गया कि वे भी सो गई हैं या जगी हुई हैं?

मां भी गहरी नींद में थीं. जब मैं शालिनी के कमरे में गया, उस समय रात के 11 बज गए थे. शालिनी मेरा इंतजार कर रही थी. वह फुसफुसाई, ‘‘आप ने अच्छी तरह देख लिया है न कि दीदी गहरी नींद में सो गई हैं?’’

‘‘मैं ने उसे हिलाडुला कर देखा है. वह गहरी नींद में है.’’ अचानक मुझे कुछ खयाल आया और मैं ने शालिनी से कहा, ‘‘आज हम दोनों के बीच जो कुछ भी होगा, वह तुम भूल से भी दीदी को मत बताना.’’

‘‘अगर बता दूंगी तो क्या होगा?’’ पूछ कर शालिनी मुसकरा उठी. ‘‘तुम बेवकूफ हो क्या? हमबिस्तरी की बात किसी को नहीं बताई जाती. अगर तुम्हारी दीदी को पता चला गया, तो तुम्हारी तो बेइज्जती होगी ही, मुझे भी नहीं छोड़ेगी.

वह पूरे महल्ले में मुझे बदनाम कर देगी. मैं सिर उठा कर चल नहीं पाऊंगा,’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की. ‘‘ऐसी बात है तो मुझ से हमबिस्तरी क्यों करना चाहते हैं? पत्नी के वफादार बन कर रहिए,’’ उस ने मुझे सीख देने की कोशिश की. उस की बात से मैं चिढ़ गया और कहा, ‘‘तुम तो नाहक में बात बढ़ा रही हो. मैं तुम्हें हर हाल में पाना चाहता हूं और आज पा कर रहूंगा. वैसे भी तुम मेरी साली हो और साली पर जीजा का हक होता ही है.’’

‘‘तुम दीदी या किसी और को बताओगी तो बता देना. तुम्हें पाने के लिए मैं बदनामी सह लूंगा.’’

‘‘मैं ने तो ऐसे ही कहा था. आप नाराज क्यों हो गए? मैं जानती हूं कि ऐसी बातें किसी को नहीं बताई जाती हैं. मैं तो खुद आप को पाना चाहती हूं, फिर किसी को क्यों बताऊंगी.’’

मैं समय बरबाद नहीं करना चाहता. दरवाजा बंद करने लगा, तो शालिनी ने रोक दिया. कहा, ‘‘दरवाजा बंद करने से पहले मेरी एक बात सुन लीजिए.’’

‘‘बोलो?’’

‘‘बात यह है कि मैं पहली बार आप से संबंध बनाऊंगी, इसलिए मुझे शर्म आएगी.

‘‘मैं चाहती हूं कि हमबिस्तरी के समय कमरे में अंधेरा हो और हम दोनों में से कोई किसी से बात न करे. जो कुछ भी हो चुपचाप हो.’’ शालिनी का बेलिबास शरीर देखने की बहुत इच्छा थी. मुझे उस की इच्छा का भी ध्यान रखना था, इसलिए उस की बात मैं ने मान ली. वह खुश हो कर बोली, ‘‘अब आप पलंग पर जा कर बैठिए. मैं बाथरूम हो कर तुरंत आती हूं.’’ लाइट बंद कर और दरवाजा बंद कर शालिनी चली गई. मैं उस के लौटने का इंतजार करने लगा.

कुछ देर बाद ही शालिनी आ गई. दरवाजा अंदर से बंद कर वह पलंग पर आई, तो मेरा दिल खुशी से बल्लियों उछलने लगा. मेरा 2 साल का सपना पूरा होने जा रहा था. उसे बांहों में भर कर मैं ने खूब चूमा. उस के बाद… घुप अंधेरा होने के चलते भले ही उस का शरीर नहीं देख पाया, मगर उसे भोगने का मौका तो मिला था. मैं ने पूरे जोश के साथ उस के साथ हमबिस्तरी की. मंजिल पर पहुंचते ही मुंह से निकल गया, ‘‘मजा आ गया शालिनी.’’ शालिनी कुछ बोली नहीं.

कुछ देर बाद बिस्तर से उठ कर उस ने अपने कपड़े ठीक कर लिए. मैं ने भी अपने कपड़े दुरुस्त कर लिए, तो उस ने लाइट जला दी. फिर तो मेरी बोलती बंद हो गई. आंखों के आगे अंधेरा छा गया. शालिनी समझ कर अंधेरे में जिस के साथ मैं ने हमबिस्तरी की थी, वह शालिनी नहीं, बल्कि पत्नी कल्पना थी. वह मुसकरा रही थी. उस की मुसकान देख कर मैं शर्म से पानीपानी हो गया. मैं कुछ कहता, उस से पहले कल्पना बोली, ‘‘आप तो मुझे प्यार करने का दावा करते थे. कहते थे कि किसी पराई औरत से नाजायज संबंध बनाने से बेहतर मर जाना पसंद करूंगा, फिर यह क्या था?’’

मैं चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था. सिर उठा कर मैं उसे देख भी नहीं पा रहा था. अचानक दरवाजे पर किसी ने हौले से दस्तक दी. कल्पना ने दरवाजा खोल दिया. दरवाजे पर शालिनी थी. वह झट से अंदर आ गई. फिर मुसकराते हुए मुझ से बोली, ‘‘क्यों जीजाजी, मजा आया?’’

मेरे कुछ कहने से पहले कल्पना बोली, ‘‘तुम्हारे जीजाजी को बहुत मजा आया शालिनी.’’

‘‘सच जीजाजी?’’

मैं कुछ बोल नहीं पाया. मगर यह समझ गया कि सब शालिनी और कल्पना की मिलीभगत है. मेरे नजदीक आ कर शालिनी बोली, ‘‘आप तो साली को आधी घरवाली समझते थे, फिर आप ने शर्म से सिर क्यों झुका लिया?’’ फिर वह मुझे समझाते हुए बोली, ‘‘देखिए जीजाजी, साली को आधी घरवाली समझ कर उस के साथ नाजायज संबंध बनाने की सोच छोड़ दीजिए. ‘‘पत्नी को इतना प्यार कीजिए कि उसी में आप को हर दिन एक नया शरीर मिलने का एहसास होगा, जैसा कि आज आप ने महसूस किया.’’ कुछ देर चुप रह कर शालिनी ने कहा, ‘‘मैं ने दीदी के साथ मिल कर आप को जो सबक सिखाया, उस के लिए माफ कर दीजिएगा.

‘‘दरअसल बात यह थी कि जब मुझे एहसास हो गया कि आप मेरा जिस्म पाना चाहते हैं, तो एक दिन मैं ने आप का इरादा दीदी को बताया.

‘‘दीदी को मेरी बात पर यकीन नहीं हुआ. उन्हें आप पर पूरा यकीन था. उन्होंने मुझ से कहा कि आप मर जाएंगे, मगर किसी पराई औरत से संबंध नहीं बनाएंगे. ‘‘उस के बाद मैं ने दीदी को सुबूत देने का फैसला कर लिया. यह बात साबित करने के लिए ही मुझे मुंबई से कोलकाता आना पड़ा.’’ मैं सबकुछ समझ गया था. गलती के लिए पत्नी और साली से माफी मांगनी पड़ी. पत्नी का मैं ने विश्वास तोड़ा था, इसलिए वह मुझे माफ नहीं करना चाहती थी, मगर शालिनी के समझाने पर माफ कर दिया. मुझे माफी मिल गई, तो शालिनी से पूछा, ‘‘मैं यह नहीं समझ पाया कि कमरे में तुम्हारी दीदी कब और कैसे आईं?’’

‘‘मैं ने दीदी को अपनी सारी योजना बता दी थी. उन्हें नींद की दवा नहीं दी गई थी. ‘‘जब आप दीदी को छोड़ कर मेरे पास आए थे, उस समय वे जगी हुई थीं. ‘‘आप को कमरे में बैठा कर मैं बाथरूम के बहाने गई और दीदी को भेज दिया. ‘‘अंधेरा होने के चलते आप को जरा भी शक नहीं हुआ कि साली है या घरवाली.’’ उम्र में शालिनी मुझ से छोटी थी, मगर उस ने मुझे ऐसा सबक सिखाया कि उस की चतुराई पर मैं गर्व किए बिना न रह सका. शालिनी की सूझबूझ से मैं अपने चरित्र से गिरने से बच गया था.

वह अनजान लड़की

दिनेश नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ‘राजधानी ऐक्सप्रैस’ टे्रन के इंतजार में कुरसी पर बैठा था, तभी जींसटौप, सैंडल पहने और मौडल सी दिखने वाली खूबसूरत सी लड़की दनदनाती हुई आई और उस के दोनों हाथ पकड़ कर ‘जीजूजीजू…’ कहते हुए उस के बगल की कुरसी पर बैठ गई. वह लड़की लगातार बोले जा रही थी, ‘‘पूरे 2 साल बाद आप मिल रहे हैं. इस बीच आप ने अपनी हैल्थ को काफी मेंटेन कर लिया है. सुषमा दीदी कैसी हैं  प्रेम और बिपाशा की क्या खबर है ’’ दिनेश हैरान था, फिर भी इतनी खूबसूरत लड़की से बात करने का लालच वह छोड़ नहीं पा रहा था. वह भी उस की हां में हां मिलाने लगा. सच कहें, तो उसे भी उस लड़की से बात करने में मजा आने लगा था.

तकरीबन 45 मिनट तक वह लड़की दिनेश से बात करती रही. बीचबीच में वह एकाध शब्द बोल लेता था.

उस लड़की ने पूछा, ‘‘जीजू, आप कहां जा रहे हैं ’’

दिनेश ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘मैं पटना जा रहा हूं.’’

फिर वह लड़की बोली, ‘‘जीजू, मुझे मुंबई की ट्रेन पकड़नी है. क्या आप मुझे ट्रेन में बिठाने में मदद कर देंगे  प्लीज…’’

दिनेश ने घड़ी देखी. उस की ट्रेन आने में तकरीबन एक घंटे की देरी थी. उस ने लड़की से पूछा, ‘‘तुम्हारी ट्रेन कितने बजे की है ’’

उस ने कहा, ‘‘बस, 10 मिनट में आने वाली है.’’

कुछ देर बाद ही उस लड़की की ट्रेन आ गई. दिनेश ने उस का बैग संभाल लिया और एसी बोगी में उसे बर्थ पर बिठा कर उस का सामान रख दिया. कुछ पल के बाद लड़की के चेहरे पर बेफिक्री का भाव आया. उस ने दिनेश के दोनों हाथ पकड़ लिए, फिर बोली, ‘‘सर, मैं आप की मदद के लिए सचमुच दिल से आभारी हूं. मेरा नाम प्रिया है. मैं मुंबई में रहती हूं. मैं एक मौडल हूं. ‘‘दरअसल, मैं एक जरूरी काम के सिलसिले में दिल्ली आई थी. आज होटल से निकलते वक्त ही कुछ गुंडेमवाली किस्म के लोग मेरी टैक्सी का पीछा कर रहे थे. उस के बाद वे मेरे पीछेपीछे प्लेटफार्म पर भी घुस आए. फिर आप से मुलाकात हुई और वे गुंडे तितरबितर हो कर लौट गए.

‘‘मैं आप की मदद के लिए सचमुच एहसानमंद हूं. यह रहा मेरा विजिटिंग कार्ड. कभी मुंबई आना हुआ, तो आप मुझे काल कर लेना.’’ दिनेश ने उठतेउठते पूछ ही लिया, ‘माफ कीजिएगा प्रियाजी, मैं भी एक मर्द ही हूं. मुझ पर आप ने कैसे भरोसा कर लिया ’’ प्रिया ने बड़ी शोख अदा से मुसकराते हुए कहा, ‘‘सर, मैं एक राज की बात बताती हूं, लड़कियां किसी जैंटलमैन को पहचानने में कभी भूल नहीं करतीं.’’ प्रिया की यह बात सुन कर दिनेश ने एक लंबी राहत भरी सांस ली, उसे ‘हैप्पी जर्नी’ कहा और ट्रेन से उतर गया.

हैलोवीन की कहानी

गौरव जब सुबह सो कर उठा तो देखा, बड़े पापा गांव जाने को तैयार हो चुके थे. वे गौरव को देखते ही बोले, ‘‘क्यों बरखुरदार, चलोगे गांव और खेत देखने? दीवाली इस बार वहीं मनाएंगे.’’

दादी बोलीं, ‘‘अरे, उस बेचारे को सुबहसुबह क्यों परेशान कर रहा है. थक जाएगा वहां तक आनेजाने में.’’

गौरव हंस कर बोला, ‘‘नहीं दादी, मैं जाऊंगा गांव. मैं तो यहां आया ही इसलिए हूं. मुझे अच्छा लगता है, वहां की हरियाली देखने में और आम के बगीचे घूमने में.’’

‘‘आम तो बेटा इस मौसम में नहीं होंगे, हां, खेतों में गेहूं की फसल लगी मिलेगी. दीवाली पर नई फसल आती है न.’’

‘‘तब फिर चाय पी कर और नाश्ता कर के जाना,’’ दादी बोलीं.

‘‘अच्छा गौरव, तुम्हारे यहां दीवाली कैसे मनाई जाती है?’’ बड़े पापा ने पूछा. ताईजी तब तक सब के लिए चाय ले आई थीं, वे भी वहीं बैठ गईं.

‘‘दीवाली तो हम सब क्लब में मनाते हैं, लेकिन बड़े पापा अमेरिका में एक त्योहार सब मिल कर मनाते हैं, वह है हैलोवीन डे.’’

‘‘अच्छा, हमें भी तो बताओ क्या है हैलोवीन?’’ सौरभ भी निकल कर बाहर आ गया. ताईजी ने उसे भी चाय दी.

गौरव बोला, ‘‘जिस तरह हमारे देश में दीवाली का त्योहार मनाया जाता है उसी तरह अमेरिका में 31 अक्तूबर की रात को हैलोवीन का त्योहार मनाया जाता है. इस को मनाने की तैयारी भी दीवाली की तरह कई दिन पहले से शुरू कर दी जाती है.’’

‘‘अच्छा, यह क्या अमेरिका में ही मनाया जाता है?’’ दादी ने पूछा.

‘‘नहीं दादी, हैलोवीन डे आयरलैंड गणराज्य, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया सहित समस्त पश्चिमी देशों में मनाया जाता है. कहा जाता है कि बुरी आत्माओं को घरों से दूर रखने के लिए इसे मनाया जाता है इसलिए लोग कई दिन पहले से ही घर के बाहर एक बड़ा सा कद्दू ला कर रख देते हैं साथ ही घर के बाहर चुड़ैल, भूत, झाड़ू, मकड़ी और मकड़ी के जाले आदि खिलौने रख देते हैं.’’

‘‘कद्दू? कद्दू तो सब्जी के काम आता है?’’ सौरभ ने कहा.

‘‘नहीं सौरभ, ये कद्दू खाने वाले कद्दू नहीं होते बल्कि बीज बनने को छोड़े हुए बड़ेबड़े कद्दू होते हैं जो पके व सूख चुके होते हैं. कद्दू के अंदर का सारा गूदा निकाल कर उसे खोल बना देते हैं फिर ऊपर से खूबसूरत तरीके से चाकू से काट कर उस की आंखें, मुंह इत्यादि बनाते हैं और इस के अंदर एक दीपक जला कर रख देते हैं. दूर से देखने में ऐसा लगता है मानो किसी का चेहरा हो, जिस में से आंखें चमक रही हैं. बाजार में इन कद्दुओं के अंदर छेद करने और आंख इत्यादि बनाने के लिए कई औजार भी मिलते हैं. बच्चों के लिए इन हैलोवीन कद्दुओं की प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं.’’

‘‘पर जब भूतप्रेत होते ही नहीं, तो उन के लिए ये कद्दू क्यों?’’ दादी बोलीं.

‘‘नहीं दादी, दरअसल, हजारों साल पहले केल्ट जाति के लोग यहां आए थे. जो फसलों की खुशहाली के लिए प्रकृति की शक्तियों को पूजा करते थे. मूलत: यह त्योहार अंधेरे की पराजय और रोशनी की जीत का उत्सव है. नवंबर की पहली तारीख को केल्ट जाति का नया साल शुरू होता था. नए साल में कटी हुई फसल की खुशी मनाई जाती थी. उस के एक दिन पहले यानी 31 अक्तूबर को ये लोग ‘साओ इन’ नामक त्योहार मनाते थे. इन का मानना था कि इस दिन मरे हुए लोगों की आत्माएं धरती पर विचरने आती थीं और उन्हें खुश करने के लिए उन की पूजा होती थी. इस के लिए वे ‘द्रूइद्स’ नामक पहाड़ी पर जा कर आग जलाते थे. फिर इस आग का एकएक अंगारा लोग अपनेअपने घर ले जाते थे और नए साल की नई आग जलाते थे.’’

‘‘नए साल की आग का क्या मतलब हुआ?’’ बड़े पापा ने पूछा.

‘‘बड़े पापा, उस जमाने में माचिस का आविष्कार नहीं हुआ था. घर में जली आग को लगातार बचा कर रखना पड़ता था. इस रोज पहाड़ी पर अलाव जलाया जाता था और उस में कटी फसल का भाग जलाया जाता था. इस अलाव की आग का अंगारा घर तक ले जाने के लिए तथा हवा बारिश में बुझने से बचाने के लिए उसे किसी फल में छेद कर के उस में सहेज कर ले जाया जाता था. आग को हाथ में देख कर बुरी आत्माएं वार नहीं करेंगी ऐसी मान्यता थी. इस के लिए कद्दू के खोल में जलता दीया रख कर ले जाया जाता था. रात के अंधेरे में कद्दू में आंखें और मुंह काट कर दीया रखने से एकदम राक्षस के सिर जैसा लगता था. कहीं पर इसे पेड़ पर टांग दिया जाता था और कहीं खिड़की पर रख दिया जाता था. आजकल घर के बाहर रख देते हैं.

‘‘जिस तरह से हमारे देश में बहुरूपिए बनते हैं ठीक उसी तरह से यहां लोग हैलोवीन पर बहुरूपिया बनते हैं. 31 अक्तूबर की रात को बच्चेबड़े सभी तरहतरह की ड्रैसेज पहनते हैं और चेहरे पर मुखौटे लगाते हैं. ये ड्रैसेज और मुखौटे काल्पनिक या भूतप्रेतों के होते हैं जो काफी डरावने दिखते हैं. ये ड्रैसेज व मुखौटे बाजारों में कई दिन पहले से बिकने शुरू हो जाते हैं, कई लोग मुखौटा पहनने की जगह चेहरे पर ही पेंट करा लेते हैं.

‘हैलोवीन के दिन बच्चे घरघर जाते हैं. हर बच्चा अपने साथ एक बैग या पीले रंग का कद्दू के आकार का डब्बा लिए रहता है. ये बच्चे घरों के अंदर नहीं जाते बल्कि लोग घरों के बाहर बहुत सारी चौकलेट्स एक बड़े से डब्बे में रख कर इन के आने का इंतजार करते हैं. हर बच्चा बाहर बैठे व्यक्ति के पास आता है और कहता है, ‘ट्रिक और ट्रीट’ उसे जवाब मिलता है ‘ट्रीट’ (ट्रिक यानी जादू और ट्रीट यानी पार्टी), बच्चे जोकि हैलोवीन बन कर आते हैं वे घर वालों को डरा कर पूछते हैं कि आप मुझे पार्टी दे रहे हो या नहीं? नहीं तो मैं आप के ऊपर जादू कर दूंगा.

‘‘घर वाले हंस कर ‘ट्रीट’ कहते हुए उन के आगे चौकलेट का डब्बा बढ़ा देते हैं. बच्चे खुश हो कर बाउल में से एकएक चौकलेट उठाते हैं और थैंक्स कह कर आगे बढ़ जाते हैं. देर रात तक बच्चों के बैग में बहुत सी चौकलेट्स इकट्ठी हो जाती हैं.’’

‘‘वाह गौरव, तुम ने तो आज बड़ी रोचक कहानी सुनाई और एक नए त्योहार के बारे में भी बताया, मजा आ गया,’’ दादी बोलीं तो सब ने उन की हां में हां मिलाई.

गौरव हंस पड़ा, सब चाय भी पी चुके थे. ताईजी लंबी सांस लेती हुई बोलीं, ‘‘बस, अब जल्दी से नाश्ता बनाती हूं, खा कर गांव जाना और सुनो, वहां से कद्दू मत ले आना,’’ उन्होंने कहा तो सब जोरजोर से हंसने लगे.

हिंदुस्तानी 2 (इंडियन 2 ): खोदा पहाड़ ,निकला चूहा

1996 में कमल हासन अभिनीत और शंकर निर्देशित फिल्म ‘इंडियन’ प्रदर्शित हुई थी,जिस में स्वतंत्रता सेनानी से समाज सुधारक बने सेनापती उर्फ इंडियन देश से भ्रष्टाचार खत्म करने की मुहिम पर काम करते हैं. उन की वीरता के सामने कोई नहीं टिक पाता. अब 28 वर्ष बाद उसी का सीक्वल निर्देशक शंकर ले कर आए हैं. तमिल में इस फिल्म का नाम ‘इंडियन 2’तथा हिंदी में ‘हिंदुस्तानी 2’ है. अफसोस की बात यह है कि 28 वर्ष बाद देश में भ्रष्टाचार नासूर बन चुका है. मगर इस फिल्म में कुछ भी नयापन नहीं है. कहानी के नाम पर पूरी फिल्म शून्य है. दर्शक जो कुछ ‘गब्बर इज बैक’ और ‘जवान’ फिल्मों में देख चुके हैं, वही इस फिल्म में भी है.

सेनापति (कमल हासन ) एक स्वतंत्रता सेनानी जो भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ कर अब ताइवान में बैठे हुए हैं और वहां पर वह भारत देश छोड़ कर भागे भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने में व्यस्त हैं. वह अपना रूप बदलते रहते हैं. इधर भारत में समाज में भ्रष्टाचार बढ़ गया है. हर कोई परेशान है और इस भ्रष्टाचार से नजात पाना चाहता है. खैर,कहानी शुरू होती है नए जमाने के एक युवा चित्रा अरविंदन (सिद्धार्थ) से जिस ने अपने तीन अन्य दोस्तों के साथ मिल कर इंटरनैट पर वीडियोज के जरिए भ्रष्ट राजनेताओं और अफसरों के खिलाफ जंग छेड़ रखा है. सड़क पर गलत काम होते देख उस का एक अलग तरह का वीडियो बना कर पोस्ट करता रहता है. सब से पहले उस का साबा उस शिक्षक से पड़ता है,जोकि घूस की पूरी रकम न दे पाने के चलते आत्महत्या कर लेती है. कुछ अन्य घटनाएं भी घटती हैं. पर चित्रा रवींद्रन और उस के साथी खुद को असहाय पाते हैं. तब हिंदुस्तानी को याद करते हुए इंटरनैट पर उस की वापसी की मुहिम चलते हैं. यह चार युवा सोशल मीडिया पर कम बैक इंडियन हैशटैग चलाते हैं. नतीजतन काफी अरसे से ताइपे (ताइवान) में जिंदगी बिता रहा सेनापति इस जंग को आगे बढ़ाने हिंदुस्तान आ पहुंचता है.
सेनापती आते हैं तो कई लोगों की जिंदगी में तूफान आ जाता है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. सेनापति उर्फ इंडियन उर्फ हिंदुस्तानी कइयों को मौत के घाट उतारते हैं.

बेसिरपैर की कहानी, बेतुकी पटकथा, बेतुके व अविश्वसनीय दृश्य से भरपूर इंटरवल से पहले फिल्म केवल इंडियन/सेनापति का महिमामंडन इस तरह से करती है कि दर्शक बोर हो कर सो जाता है. इंटरवल के बाद उम्मीद बनती है कि कुछ कहानी होगी, मगर 15 मिनट के बाद पूरी फिल्म पटरी से उतर जाती है. पूरी फिल्म 3 घंटे का दिमागी टोर्चर के अलावा कुछ नहीं है. शंकर की यह लगभग 300 करोड़ की लागत में बनी अति महंगी फिल्म है, कुछ विज्युअल्स भी अच्छे हैं. कुछ लोकेशन अच्छे हैं. कैमरामैन का काम अच्छा है. मगर दर्शकों का आकर्षित करने वाला एक भी दृश्य  नहीं है. फिल्म में कमल हासन का प्रोस्थेटिक मेकअप भी अति घटिया है. कुछ भड़कीले सेट, जिन में हिंदुस्तानी अपनी तेज बंदूकों के साथ गुंडों और साथ ही पुलिस के बेड़े से मुकाबला करते हैं, रोमांचित करने के लिए हैं.
एक में गुलशन ग्रोवर ने विजय माल्या जैसा दिखने वाला किरदार निभाया है, जो ऊंचे समुद्र में एक नाव में कम कपड़े पहने महिलाओं के साथ घूम रहा है. तो वहीं एक गुजराती सेठ है जिस के पास अकूट दौलत है, जिस का शौचालय भी सोने का बना है. पर कोई भी दर्शक का ध्यान नहीं खींचता. यहां तक कि भ्रष्टाचार की यह मुहीम उन राज्यों में ही चलती है, जहां भाजपा की सरकार नहीं है. सिर्फ सूरत के एक सोने के व्यपारी को छोड़ कर.
हंसी तो इस बात पर आती है कि फिल्म में जिन भ्रष्टाचारियों का खात्मा किया जा रहा है, उन में से हर दिन सौ दो सौ रुपए घूस लेने वाले कर्मचारी या मछली के मुंह में कंचे डाल कर उस का वजन ज्यादा बता कर खरीदार से ज्यादा पैसे वसूलने वाली मछली विक्रेता महिला है. फिल्म में कमल हासन के मुंह से बारबार ‘वर्मा कलई’ का जिक्र होता है, जिस से एहसास होता है कि यह फिल्म ‘वर्मा कलई’ को प्रमोट करने के लिए बनाई गई है.
फिल्म को देख कर यही बात कौंधती है कि फिल्म चलाने के लिए उंगलियों का कमाल नहीं बल्कि मजबूत कहानी चाहिए होती है. रकुल प्रीत सिंह के किरदार को काट दें, तो भी कहानी पर असर नहीं होता. रकुल प्रीत सिंह का किरदार जबरन ठूंसा हुआ नजर आता है. निर्देशक के तौर पर शंकर को देख कर एहसास ही नहीं होता कि वह इस से पहले ‘इंडियन’, ‘जींस’, ‘नायक’ व ‘रोबोट’ जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. मजेदार बात यह है कि फिल्म के निर्माता ने इस फिल्म के लिए टिकट के दाम भी बढ़ाए हैं. नतीजा यह रहा है कि मुंबई में सभी मल्टीप्लैक्स में सुबह व दोपहर के दो शो पूरी तरह से रद्द हो गए. बांदरा के गेईटी थिएटर में 1100 दर्शक बैठ सकते हैं. यहां पर पहले दिन पहला शो देखने लगभग हजार दर्शक पहुंच जाते हैं. मगर आज ‘हिंदुस्तानी 2’ के लिए सिर्फ 3 दर्शक ही पहुंचे थे.

जहां तक अभिनय का सवाल है, सेनापति उर्फ इंडियन के किरदार में कमल हासन ने सब से ज्यादा निराश किया है. कमल हासन का इतना ज्यादा मेकअप हो चुका है कि ज्यादा एक्सप्रेशन नजर नहीं आते हैं और कई बार तो ऐसा लगता है कि मुंह नहीं हिल रहा है. रकुल प्रीत सिंह, प्रिया भवानी शंकर और सिद्धार्थ एवरेज हैं.

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