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बदला नजरिया

दवा की दुकान से बैंडएड खरीद कर शिवानी घर की तरफ चल पड़ी. मौसम बहुत सुहावना था. किसी भी समय बारिश शुरू हो सकती थी. ठंडी हवा के झोंकों ने उस के तनमन को तरोताजा कर दिया.

कोठी तक पहुंचने में उसे करीब 15 मिनट लगे. अंदर घुसते ही उस की सास सुमित्रा ने उसे आवाज दे कर अपने कमरे में बुला लिया.

‘‘शिवानी, तुम कहां चली गई थीं?’’ सुमित्रा नाराज और परेशान नजर आईं.

‘‘मम्मीजी, केमिस्ट से बैंडएड लाने गई थी,’’ शिवानी डरीसहमी बोली, ‘‘सेब काटते हुए चाकू से उंगली कट गई थी.’’

‘‘देखो, सेब काट कर देने का काम कमला का है. हमारी सेवा करने की वह पगार लेती है. उस का काम खुद करने की आदत तुम्हें छोड़नी चाहिए.’’

‘‘जी,’’ सास की कही बातों के समर्थन में शिवानी के मुंह से इतना ही निकला.

‘‘बैंडएड लाने इतनी दूर तुम पैदल क्यों गईं? क्या ड्राइवर रामसिंह ने कार से चलने की बात तुम से नहीं कही थी?’’

‘‘कही थी, पर दवा की दुकान है ही कितनी दूर, मैं ने सोचा कार से जाने की अपेक्षा पैदल जा कर जल्दी लौट आऊंगी,’’ शिवानी ने सफाई दी.

‘‘इस घर की बहू हो तुम, शिवानी.किसी काम से बाहर निकलो तो कार से जाओ. वैसे खुद काम करने की आदत अब छोड़ दो.

‘‘जी,’’ शिवानी और कुछ न बोल सकी.

‘‘मैं समझती हूं कि तुम्हें मेरी इन बातों में खास वजन नजर नहीं आता क्योंकि तुम्हारे मायके में कोई इस तरह से व्यवहार नहीं करता. लेकिन अब तुम मेरे कहे अनुसार चलना सीखो. हर काम हमारे ऊंचे स्तर के अनुसार करने की आदत डालो, और सुनो, नेहा के साथ डा. गुप्ता के क्लीनिक पर जा कर अपनी उंगली दिखा लेना.’’

‘‘मम्मीजी, जख्म ज्यादा गहरा… ठीक है, मैं चली जाऊंगी,’’ अपनी सास की पैनी नजरों से घबरा कर शिवानी ने उन की हां में हां मिलाना ही ठीक समझा.

‘‘जाओ, नाश्ता कर लो और सारा काम कमला से ही कराना.’’

अपनी सास के कमरे से बाहर आ कर शिवानी कमला को सिर्फ चाय लाने का आदेश दे कर अपने शयनकक्ष में चली आई.

समीर की अनुपस्थिति उसे बड़ी शिद्दत से महसूस हो रही थी. वहसामने होता तो रोझगड़ कर अपने मन की बेचैनी जरूर कम कर लेती.

इन्हीं विचारों की उधेड़बुन में वह अतीत की यादों में खो गई.

समीर के साथ उस का प्रेम विवाह करीब 3 महीने पहले हुआ था. एक साधारण से घर में पलीबढ़ी शिवानी एक बेहद अमीर परिवार की बहू बन कर आ गई.

समीर और शिवानी एम.बी.ए. की पढ़ाई के दौरान मिले थे. दोनों की दोस्ती कब प्रेम में बदल गई उन्हें पता भी न चला पर कालिज के वे दिन बेहद रोमांटिक और मौजमस्ती से भरे थे. शिवानी को समीर की अमीरी का एहसास था पर अमीर घर की बहू बन कर उसे इस तरह घुटन व अपमान का सामना करना पड़ेगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.

शिवानी चाह कर भी ऐसे मौकों पर अपने मन की प्रतिक्रियाओं को नियंत्रण में न रख पाती. वह अजीब सी कुंठा का शिकार होती और बेवजह खुद की नजरों में अपने को गिरा समझती. ऐसा था नहीं पर उसे लगता कि सासससुर व ननद, तीनों ही मन ही मन उस का मजाक उड़ाते हैं. सच तो यह है कि उसे बहू के रूप में अपना कर भी उन्होंने नहीं अपनाया है.

हर 2-4 दिन बाद कोई न कोई ऐसी घटना जरूर हो जाती है जो शिवानी के मन का सुखचैन खंडित कर देती.

वह दहेज में जो साडि़यां लाई थी उन की खरीदारी उस ने बडे़ चाव से की थी. उस के मातापिता ने उन पर अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च किया था. पर यहां आ कर सिर्फ 2 साडि़यां पहनने की इजाजत उसे अपनी सास से मिली. बाकी सब को उन्होंने रिजेक्ट कर दिया.

‘बहू, साडि़यों में कोई बुराई नहीं है, पर इन की कम कीमत का अंदाजा मेरी परिचित हर औरत आसानी से लगा लेगी. तब मैं उन की मखौल उड़ाती नजरों व तानों का सामना नहीं कर सकूंगी. प्लीज, तुम इन्हें मत पहनना… या कभी मायके जाओ तो वहां जी भर कर पहन लेना.’

अपनी सास की सलाह सुन कर शिवानी मन ही मन बहुत दुखी हुई थी.

बाद में शिवानी ने गुस्से से भर कर समीर से पूछा था, ‘दूसरों की नजरों में ऊंचा बने रहने को क्या हमें अपनी खुशी व शौक दांव पर लगाने चाहिए?’

‘डार्लिंग, क्यों बेकार की टेंशन ले रही हो,’ समीर ने बड़े सहज भाव से उसे समझाया, ‘मां तुम्हें एक से एक बढि़या साडि़यां दिला रही हैं न? उन की खुशी की खातिर तुम ऐसी छोटीमोटी बातों को दिल से लगाना छोड़ दो.’

शादी के बाद समीर के प्रेम में जरा भी अंतर नहीं आया था. इसी बात का उसे सब से बड़ा सहारा था, वरना वह अपनी ससुराल वालों की अमीरी की दिखावट के कारण अपना बहुत ज्यादा खून फूंकती.

उस के ससुर रामनाथजी ने भी उस की इच्छाओं व भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं किया.

शिवानी समीर के बराबर की योग्यता रखती थी. दोनों ने एम.बी.ए. साथसाथ किया था. पढ़लिख कर आत्मनिर्भर बनने की इच्छा सदा ही उस के मन में रही थी.

समीर ने अपने खानदानी व्यवसाय में हाथ बंटाना शुरू किया. शिवानी भी वैसा ही करना चाहती थी और समीर को इस पर कोई एतराज न था. पर उस के ससुर रामनाथजी ने उस की बिजनेस में सहयोग देने की इच्छा जान कर अपना एकतरफा निर्णय पल भर में सुना दिया.

‘अपनी भाभी या बड़ी बहन की तरह से काम पर जाने की उसे न तो जरूरत है और न ही ऐसा करने की इजाजत मैं उसे दूंगा. अब वह मेरे घर की बहू है और उसे सिर्फ ठाटबाट व रुतबे के साथ जीने की कला सीखने पर अपना ध्यान लगाना चाहिए.’

एक बार फिर समीर उसे प्यार से समझाबुझा कर निराशा व उदासी के कोहरे से बाहर निकाल लाया था. अपने पति की गैरमौजूदगी में ससुराल की आलीशान कोठी में शिवानी लगभग हर समय घुटन व बेचैनी अनुभव करती. यद्यपि कभी किसी ने उस के साथ बदसलूकी या उस का अनादर नहीं किया था, फिर भी शिवानी को हमेशा लगता कि वह शादी कर के सोने के पिंजरे में कैद हो गई है.

कमला ने चाय की टे्र ले कर कमरे में प्रवेश किया तो शिवानी अतीत की यादों से उबर आई. उस के आदेश पर कमला चाय की टे्र मेज पर रख कर बाहर चली गई.

खराब मूड के चलते शिवानी ने कमरे में रखे स्टील के गिलास में चाय बनाई क्योंकि ठंडे मौसम में स्टील के गिलास में चाय पीने का उस का शौक वर्षों पुराना था.

पहली दफा उस की सास ने उसे स्टील के गिलास में चाय पीते देख कर फौरन टोका था, ‘‘बहू, वैसे तो चाय गिलास में भी पी जा सकती है… अपने मायके में तुम ऐसा करती ही रही हो, पर यहां की बात और है. अच्छा रहेगा कि कमला चाय की टे्र सजा कर लाए और तुम हमेशा कपप्लेट में ही चाय पीने की आदत बना लो.’’

आज बैंडएड वाली घटना के कारण शिवानी के मन में विद्रोह के भाव थे. तभी उस ने चाय गिलास में तैयार की और ऐसा करते हुए उसे अजीब सी शांति महसूस हो रही थी.

समीर फैक्टरी के काम से 3 दिन के लिए मुंबई गया था. उस की गैरमौजूदगी में शिवानी की व्यस्तता बहुत कम हो गई. चाय पीने के बाद उस ने कुछ देर आराम किया. फिर उठने के बाद वह अपने भैया के घर जन्मदिन पार्टी में शामिल होने गाजियाबाद जाने की तैयारी में लग गई.

सुमित्रा को जब पता चला कि बहू गाजियाबाद जाने की तैयारी कर रही है तो यह सोच कर वह भी पति रामनाथ सहित बहू के साथ हो लीं कि रास्ते में अपनी बहन सीमा से मिल लेंगी. मम्मी, पापा और भाभी को जाता देख कर नेहा भी उन के साथ हो ली.

सुमित्रा की बड़ी बहन सीमा की कोठी ऐसे इलाके में थी जहां का विकास अभी अच्छी तरह से नहीं हुआ था. रास्ता काफी खराब था. सड़क पर प्रकाश की उचित व्यवस्था भी नहीं थी. ड्राइवर रामसिंह को कार चलाने में काफी कठिनाई हो रही थी.

सुमित्रा जब अपनी बहन के घर पहुंचीं तो पता चला कि उन का लगभग पूरा परिवार एक विवाह समारोह में भाग लेने मेरठ गया हुआ था. घर में सीमा की छोटी बेटी अंकिता और नौकर मोहन मौजूद थे.

अंकिता ने जिद कर के उन्हें चाय पीने को रोक लिया. उन्हें वहां पहुंचे अभी 10 मिनट भी नहीं बीते थे कि अचानक हवा बहुत तेजी से चलने लगी और बिजली चली गई.

‘‘मैं मोमबत्तियां लाती हूं,’’ कहते हुए अंकिता रसोई की तरफ चली गई.

‘‘लगता है बहुत जोर से बारिश आएगी,’’ रामनाथजी की आवाज चिंता से भर उठी.

मौसम का जायजा लेने के इरादे से रामनाथजी उठ कर बाहर बरामदे की दिशा में चले. कमरे में घुप अंधेरा था, सो वह टटोलतेटटोलते आगे बढे़.

तभी एक चुहिया उन के पैर के ऊपर से गुजरी. वह घबरा कर उछल पड़े. उन का पैर मेज के पाए से उलझा और अंधेरे कमरे में कई तरह की आवाजें एक साथ उभरीं. मेज पर रखा शीशे का गुलदान छनाक की आवाज के साथ फर्श पर गिर कर टूट गया. रामनाथजी का सिर सोफे के हत्थे से टकराया. चोट लगने की आवाज केसाथ उन की पीड़ा भरी हाय पूरे घर में गूंज गई.

‘‘क्या हुआ जी?’’ सुमित्रा की चीख मेंनेहा और शिवानी की चिंतित आवाजें दब गईं.

रामनाथजी किसी सवाल का जवाब देने की स्थिति में ही नहीं रहे थे. उन की खामोशी ने सुमित्रा को बुरी तरह से घबरा दिया. वह किसी पागल की तरह चिल्ला कर अंकिता से जल्दी मोमबत्ती लाने को शोर मचाने लगीं.

अंकिता जलती मोमबत्ती ले भागती सी बैठक में आई. उस के प्रकाश में फर्श पर गिरे रामनाथजी को देख सुमित्रा और नेहा जोरजोर से रोने लगीं.

अपने ससुर के औंधे मुंह पड़े शरीर को शिवानी ने ताकत लगा कर सीधा किया. उन के सिर से बहते खून पर सब की नजर एकसाथ पड़ी.

‘‘पापा…पापा,’’ नेहा के हाथपांव की शक्ति जाती रही और वह सोफे पर निढाल सी पसर गई.

शिवानी के आदेश पर अंकिता ने मोमबत्ती सुमित्रा को पकड़ा दी.

मोहन भी घटनास्थल पर आ गया. शिवानी ने मोहन और अंकिता की सहायता से मूर्छित रामनाथजी को किसी तरह उठा कर सोफे पर लिटाया.

‘‘पापा को डाक्टर के पास ले जाना पड़ेगा,’’ शिवानी घाव की गहराई को देखते हुए बोली, ‘‘अंकिता, तुम बाहर खडे़ रामसिंह ड्राइवर को बुला लाओ.’’

सुमित्रा अपने पति को होश में लाने की कोशिश रोतेरोते कर रही थी और नेहा भयभीत हो अश्रुपूरित आंखों से अधलेटी सी पूरे दृश्य को देखे जा रही थी. अंकिता बाहर से आ कर बोली, ‘‘भाभी, आप का ड्राइवर रामसिंह गाड़ी के पास नहीं है. मैं ने तो आवाज भी लगाई, लेकिन उस का मुझे कोई जवाब नहीं मिला.’’

‘‘मैं देखती हूं. मम्मी, आप हथेली से घाव को दबा कर रखिए.’’

सुमित्रा की हथेली घाव पर रखवा कर शिवानी मेन गेट की तरफ बढ़ गई. अंकिता भी उस के पीछेपीछे हो ली.

‘‘पापा को डाक्टर केपास ले जाना जरूरी है, अंकिता. यहां पड़ोस में कोई डाक्टर है?’’

‘‘नहीं भाभी,’’ अंकिता ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘नजदीकी अस्पताल कहां है?’’

‘‘बाहर निकल कर मुख्य सड़क पर.’’

‘‘टैक्सी या थ्री व्हीलर कहां मिलेगा?’’

‘‘मेन रोड पर.’’

‘‘चल मेरे साथ.’’

‘‘कहां, भाभी?’’

‘‘टैक्सी या थ्री व्हीलर लाने. उसी में पापा को अस्पताल ले चलेंगे.’’

अंधेरे में डूबी गली में दोनों तेज चाल से मुख्य सड़क की तरफ चल पड़ीं. तभी बादल जोर से गरजे और तेज बारिश पड़ने लगी.

सड़क के गड्ढों से बचतीबचाती दोनों करीब 10 मिनट में मुख्य सड़क पर पहुंचीं. बारिश ने दोनों को बुरी तरह से भिगो दिया था.

एक तरफ उन्हें थ्री व्हीलर खड़े नजरआए तो वे उस ओर चल दीं.

शिवानी ने थ्री व्हीलर के अंदर बैठते हुए ड्राइवर से कहा, ‘‘भैया, अंदर कालोनी में चलो. एक मरीज को अस्पताल तक ले जाना है.’’

‘‘कौन से अस्पताल?’’ ड्राइवर ने रूखे स्वर में पूछा.

‘‘किसी भी पास के सरकारी अस्पताल में ले चलना है. अब जरा जल्दी चलो.’’

‘‘अंदर सड़क बड़ी खराब है, मैडम.’’

‘‘स्कूटर निकल जाएगा.’’

‘‘किसी और को ले जाओ, मैडम. मौसम बेहद खराब है.’’

‘‘बहनजी, आप मेरे स्कूटर में बैठें,’’ एक सरदार ड्राइवर ने उन की बातचीत में हस्तक्षेप करते हुए कहा.

‘‘धन्यवाद, भैया,’’ शिवानी ने अंकिता के साथ स्कूटर में बैठते हुए कहा.

सरदारजी सावधानी से स्कूटर चलाने के साथसाथ उन दोनों का हौसला भी अपनी बातों से बढ़ाते रहे. घर पहुंचने के बाद वह उन दोनों के पीछेपीछे बैठक में भी चले आए.

‘‘मम्मी, मैं थ्री व्हीलर ले आई हूं. पापा को अस्पताल ले चलते हैं,’’ शिवानी की आवाज में जरा भी कंपन नहीं था.

रामनाथजी होश में आ चुके थे पर अपने अंदर बैठने या बोलने की शक्ति महसूस नहीं कर रहे थे. चिंतित नजरों से सब की तरफ देखने के बाद उन कीआंखें भर आईं.

‘‘इन से चला नहीं जाएगा. पंजे में मोच आई है और दर्द बहुत तेज है,’’ घाव को दबा कर बैठी सुमित्रा ने रोंआसे स्वर में उसे जानकारी दी.

‘‘ड्राइवर भैया, आप पापाजी को बाहर तक ले चलने में हमारी मदद करेंगे,’’ शिवानी ने मदद मांगने वाली नजरों से सरदारजी की तरफ देखा.

‘‘जरूर बहनजी, फिक्र की कोई बात नहीं,’’ हट्टेकट्टे सरदारजी आगे बढ़े और उन्होंने अकेले ही रामनाथजी को अपनी गोद में उठा लिया.

थ्री व्हीलर में पहले सुमित्रा औरफिर शिवानी बैठीं. उन्होंने रामनाथजी को अपनी गोद में लिटा सा लिया.

सरदारजी ने अंकिता और नेहा को पास के सरकारी अस्पताल का रास्ता समझाया और रामसिंह के लौटने पर कार अस्पताल लाने की हिदायत दे कर स्कूटर अस्पताल की तरफ मोड़ दिया. बिजली की कौंध व बादलों की गड़गड़ाहट के साथ तेज बारिश थमी नहीं थी.

मुख्य सड़क के किनारे बने छोटे से सरकारी अस्पताल में व्याप्त बदइंतजामी का सामना उन्हें पहुंचते ही करना पड़ा. वहां के कर्मचारियों ने खस्ताहाल स्ट्रेचर सरदारजी को मरीज लाने के लिए थमा दिया.

अंदर आपातकालीन कमरे में डाक्टर का काम 2 कंपाउंडर कर रहे थे. डाक्टर साहब अपने बंद कमरे में आराम फरमा रहे थे.

डाक्टर को बुलाने की शिवानी कीप्रार्थना का कंपाउंडरों पर कोई असर नहीं पड़ा तो वह एकदम से चिल्ला पड़ी.

‘‘डाक्टर यहां सोने आते हैं या मरीजों को देखने? मैं उठाती हूं उन्हें,’’ और इसी के साथ शिवानी डाक्टर के कमरे की तरफ चल पड़ी.

एक कंपाउंडर ने शिवानी का रास्ता रोकने की कोशिश की तो सरदारजी उस का हाथ पकड़ कर बोले, ‘‘बादशाहो, इन बहनजी से उलझे तो जेल की हवा खानी पड़ेगी. यह पुलिस कमिश्नर की रिश्तेदार हैं. इनसान की पर्सनैलिटी देख कर उन की हैसियत का अंदाजा लगाना सीखो और अपनी नौकरी को खतरे में डालने से बचाओ.’’

एक ने भाग कर शिवानी के पहुंचने से पहले ही डाक्टर के कमरे का दरवाजा खटखटाया. डाक्टर ने नाराजगी भरे अंदाज में दरवाजा खोला. कंपाउंडर ने उन्हें अंदर ले जा कर जो समझाया, उस के प्रभाव में आ कर डाक्टर की नींद हवा हो गई और वह रामनाथजी को देखने चुस्ती से कमरे से बाहर निकल आया.

डाक्टर को जख्म सिलने में आधे घंटे से ज्यादा का समय लगा. रामनाथजीके पैर में एक कंपाउंडर ने कै्रप बैंडेज बड़ी कुशलता से बांध दिया. दूसरे ने दर्द कम करने का इंजेक्शन लगा दिया.

‘‘मुझे लगता नहीं कि हड्डी टूटी है पर कल इन के पैर का एक्स-रे करा लेना. दवाइयां मैं ने परचे पर लिख दी हैं, इन्हें 5 दिन तक खिला देना. अगर हड्डी टूटी निकली तो प्लास्टर चढे़गा. माथे के घाव की पट्टी 2 दिन बाद बदलवा लीजिएगा,’’ डाक्टर ने बड़े अदब के साथ सारी बात समझाई.

तभी रामसिंह, अंकिता और नेहा वहां आ पहुंचे. नेहा अपने पिता की छाती से लग कर रोने लगी.

रामसिंह ने सुमित्रा को सफाई दी, ‘‘साहब ने कहा था कि घंटे भर बाद चलेंगे. मैं सिगरेट लाने को दुकान ढूंढ़ने निकला तो जोर से बारिश आ गई. मुझ से गलती हुई. मुझे कार से दूर नहीं जाना चाहिए था.’’

स्टे्रचर पर लिटा कर दोनों कंपाउंडर रामनाथजी को कार तक लाए. शिवानी ने उन्हें इनाम के तौर पर 50 रुपए सुमित्रा से दिलवाए.

सरदारजी तो किराए के पैसे ले ही नहीं रहे थे.

‘‘अपनी इस छोटी बहन की तरफ से उस के भतीजेभतीजियों को मिठाई खिलवाना, भैया,’’ शिवानी के ऐसा कहने पर ही भावुक स्वभाव वाले सरदारजी ने बड़ी मुश्किल से 100 रुपए का नोट पकड़ा.

विदा लेने के समय तक सरदारजी ने शिवानी के हौसले व समझदारी की प्रशंसा करना जारी रखा.

इसी तरह का काम लौटते समय अंकिता भी करती रही. वह इस बात से बहुत प्रभावित थी कि अंधेरे और बारिश की चिंता न कर शिवानी भाभी निडर भाव से थ्री व्हीलर लाने निकल पड़ी थीं.

अंकिता को उस के घर छोड़ वह सब वापस लौट पड़े. सभी के कपड़े खराब हो चुके थे. रामनाथजी को आराम करने की जरूरत भी थी.

उस रात सोने जाने से पहले सुमित्रा और नेहा शिवानी से मिलने उस के कमरे में आईं, ‘‘बहू, आज तुम्हारी हिम्मत और समझबूझ ने बड़ा साथ दिया. हमारे तो उन की खराब हालत देख कर हाथपैर ही फूल गए थे. तुम न होतीं तो न जाने क्या होता?’’ शिवानी को छाती से लगा कर सुमित्रा ने एक तरह से उसे धन्यवाद दिया.

‘‘भाभी, मुझे भी अपनी जैसी साहसी बना दो. अपने ढीलेपन पर मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही है,’’ नेहा ने कहा.

‘‘बहू, तुम्हारे सीधेसादे व्यक्तित्व की खूबियां हमें आज देखने को मिलीं. मुसीबत के समय हम मांबेटी की सतही चमकदमक फीकी पड़ गई. हम बेकार तुम में कमियां निकालते थे. जीवन की चुनौतियों व संघर्षों का सामना करने का आत्मविश्वास तुम्हीं में ज्यादा है. तुम्हारा इस घर की बहू बनना हम सब के लिए सौभाग्य की बात है,’’ भावुक नजर आ रही सुमित्रा ने एक तरह से अपने अतीत के रूखे व्यवहार के लिए शिवानी से माफी मांगी.

नागिन से जहरीली औरत

घड़ी का अलार्म बजने के साथ ही संगीता सो कर उठ गई. उस समय सुबह के साढ़े 5 बजे थे. संगीता के उठने का रोज यही समय था. उस के पति मुकेश की लुधियाना की दुर्गा कालोनी स्थित अपने घर में ही किराने की दुकान थी. इस कालोनी में अधिकांश मजदूर तबके के लोग रहते थे, जो सुबह ही रोजमर्रा की चीजें दूध, चीनी, चायपत्ती आदि सामान लेने उस की दुकान पर आते थे, इसलिए वह सुबह जल्दी दुकान खोल लेता था. लेकिन उस दिन उस ने दुकान अभी तक नहीं खोली थी.

मुकेश छत पर सो रहा था. गैस चूल्हे पर चाय कापानी चढ़ाने के बाद संगीता ने पति को जगाने के लिए बड़ी बेटी को छत पर भेजा. दरअसल एक दिन पहले स्वतंत्रता दिवस का दिन होने की वजह से पूरे परिवार ने छत पर पतंगें उड़ाने के साथ हुल्लड़बाजी की थी.

उसी मोहल्ले में रहने वाला मुकेश का छोटा भाई रमेश भी अपनी पत्नीबच्चों के साथ वहां आ गया था, लेकिन रात को खाना खाने के बाद वह पत्नीबच्चों सहित अपने घर चला गया था. संगीता अपने बच्चों के साथ सोने के लिए नीचे गई थी. जबकि मुकेश छोटे बेटे करन के साथ छत पर ही सो गया था.

मुकेश को जगाने के लिए बेटी जब छत पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर उस की चीख निकल गई. बेटी के चीखने की आवाज सुन कर संगीता छत पर गई तो वह भी अपनी चीख नहीं रोक सकी. क्योंकि उस का पति मुकेश लहूलुहान पड़ा था. उस की मौत हो चुकी थी. संगीता रोने लगी. उस की और बेटी की रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. तभी किसी ने पुलिस को और मुकेश के भाई रमेश को यह खबर कर दी.

रमेश चूंकि उसी मोहल्ले में रहता था, इसलिए भाई की हत्या की खबर सुन कर वह तुरंत वहां पहुंच गया. बड़े भाई की लाश देख कर उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. क्योंकि रात को तो सब ने मिल बैठ कर खाना खाया था.कुछ ही देर में थाना फोकल पौइंट के इंसपेक्टर अमनदीप सिंह बराड़ दलबल के साथ दुर्गा कालोनी पहुंच गए.

इंसपेक्टर अमनदीप ने घटनास्थल का मुआयना किया. मुकेश की खून से लथपथ लाश एक चारपाई पर पड़ी थी. देख कर लग रहा था कि उस के सिर और चेहरे पर किसी भारी चीज से वार किए गए थे.

छत पर 3 कमरे बने थे. एक कमरे में मृतक का दोस्त शामजी पासवान अपनी पत्नी के साथ किराए पर रहता था. एक कमरे में मृतक का 7 वर्षीय बेटा करन सो रहा था और मृतक आंगन में बिछी चारपाई पर था.

जब मृतक पर वार किया गया होगा तो उस की चीख भी निकली होगी. यही सोच कर पुलिस ने शामजी पासवान से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गहरीनींद में सोने की वजह से उस ने कोई आवाज नहीं सुनी थी.

निरीक्षण करने पर इंसपेक्टर अमनदीप ने देखा कि छत पर जाने का केवल एक ही रास्ता था. उस दरवाजे में ताला लगाया जाता था. मृतक की पत्नी संगीता से पूछने पर पता चला कि सीढि़यों के दरवाजे पर ताला उस रात भी लगाया गया था. जब ताला लगा था तो वह किस ने खोला. इंसपेक्टर ने संगीता से पूछा तो वह कुछ नहीं बोली.

कुल मिला कर यह बात साबित हुई कि बिना ताला खोले या घर वालों की मरजी के बिना किसी का भी छत पर जाना संभव नहीं था.

बहरहाल घर वालों से प्रारंभिक पूछताछ के बाद अमनदीप सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और रमेश की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की तहकीकात शुरू कर दी. यह बात 16 अगस्त, 2018 की है.

पूछताछ करने पर रमेश ने इंसपेक्टर अमनदीप को बताया, ‘‘कल 15 अगस्त होने की वजह से भैया मुकेश ने हमें अपने घर बुला लिया था. दिन भर हम सब लोग मिल कर पतंगें उड़ाते रहे. शाम को संगीता भाभी ने खाना बनाया.

‘‘भैया और मैं ने पहले शराब पी फिर खाना खाया. बाद में मैं अपने बच्चों के साथ रात के करीब 9 बजे अपने घर चला गया था. सुबह होने पर मुझे भैया की हत्या की खबर मिली.’’

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. उस में बताया गया कि मुकेश की मौत सिर पर किसी भारी चीज के वार करने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद इंसपेक्टर अमनदीप अपने अधीनस्थों के साथ बैठे इस केस पर चर्चा कर रहे थे.

उन की समझ में यह नहीं आ रहा था कि कोई बाहर का आदमी मृतक की छत पर कैसे पहुंच सकता है. क्योंकि मृतक के मकान के साथ ऊंचेऊंचे मकान बने हुए हैं.

उन ऊंचे मकानों से नीचे वाले मकान पर उतरना बहुत खतरनाक था. मान लो अगर कोई किसी तरह नीचे उतर भी गया तो मुकेश की हत्या कर के वहां से कैसे गया. क्योंकि संगीता के अनुसार सीढि़यों वाला और घर का दरवाजा अंदर से बंद था. सुबह उस ने ही सीढि़यों का और घर का मुख्य दरवाजा खोला था.

संदेह करने वाली बात यह थी कि छत पर रहने वाले किराएदार शामजी को इस बात की तनिक भी भनक नहीं थी और ना ही उस ने कोई आवाज सुनी थी. यह हैरत की बात थी. यह सब देखनेसमझने के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि जो भी हुआ था, घर के अंदर ही हुआ था. इस मामले में बाहर के किसी आदमी का हाथ नहीं था.

क्योंकि मृतक या उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पड़ोसियों ने भी किसी को उस के यहां आतेजाते नहीं देखा था. इंसपेक्टर अमनदीप सिंह ने अपने खबरियों को इस परिवार की कुंडली निकलने के लिए कहा.

जल्द ही पुलिस को कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. इस के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने मृतक के छोटे भाई रमेश को थाने बुला कर उस से बड़ी बारीकी से पूछताछ की तो मुकेश की हत्या का कारण समझ में आ गया.

रमेश से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने पुलिस टीम के साथ संगीता के घर छापा मारा लेकिन तब तक वह और उस का किराएदार शामजी पासवान घर से फरार हो चुके थे.

थानाप्रभारी ने संगीता और शामजी को तलाश करने के लिए एसआई रिचा, एएसआई हरजीत सिंह, हवलदार विजय कुमार, हरविंदर सिंह, अनिल कुमार, बुआ सिंह और सिपाही परमिंदर की टीम को उन की तलाश के लिए लगा दिया.

पुलिस टीम ने सभी संभावित जगहों पर उन्हें तलाशा लेकिन वह नहीं मिले. फिर एक मुखबिर की सूचना पर इस टीम ने 22 अगस्त, 2018 को संगीता और शामजी पासवान को ढंडारी रेलवे स्टेशन से दबोच लिया.

दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने मुकेश की हत्या करने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसी दिन दोनों को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड में दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के दौरान मुकेश की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

संगीता बचपन से ही अल्हड़ किस्म की थी. अपने मांबाप की लाडली होने के कारण वह मनमरजी करती थी. मात्र 12 साल की उम्र में उस की शादी मुकेश के साथ कर दी गई. मुकेश बिहार के लक्खीसराय जिले के गांव महिसोनी का रहने वाला था. मुकेश अपने 3 भाइयों में सब से बड़ा था.

मांबाप का नियंत्रण न होने की वजह से संगीता पहले से ही बिगड़ी हुई थी. मुकेश से शादी हो जाने के बाद भी वह नहीं सुधरी. ससुराल में भी उस ने कई लड़कों से संबंध बना लिए. ससुराल वालों ने उसे ऊंचनीच और मानमर्यादा का पाठ पढ़ाया पर संगीता की समझ में किसी की कोई बात नहीं आती थी.

कई साल पहले मुकेश काम की तलाश में लुधियाना आ गया था. लुधियाना में काम सेट होने के बाद मुकेश संगीता को यह सोच कर अपने साथ ले आया कि गांव से दूर एक नए माहौल में शायद वह सुधर जाए. बाद में अपने दोनों भाइयों को भी उस ने लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना आने के बाद मुकेश ने कड़ी मेहनत कर के पैसापैसा बचाया और दुर्गा कालोनी में अपना खुद का मकान बना लिया.

करीब 3 साल पहले मुकेश ने फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी और अपने घर में ही किराने की दुकान खोल ली. अब घर रह कर ही उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. मकान के ऊपर एक कमरा उस ने शामजी पासवान को किराए पर दे रखा था. शामजी मुकेश का दोस्त था. कभी दोनों एक साथ फैक्ट्री में काम किया करते थे.

शामजी बड़ा चतुर था. उस की नजर शुरू से ही संगीता पर थी. मुकेश ने जब साइकिल पार्ट्स फैक्ट्री का काम छोड़ दिया, तब उस की जगह संगीता ने फैक्ट्री में जाना शुरू कर दिया था. संगीता और शामजी दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. यहीं से दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गए.

शामजी शादीशुदा था. लेकिन उस का कोई बच्चा नहीं था. उस की पत्नी साधारण और सीधीसादी थी. उसे अपने पति और संगीता के बींच संबंधों का पता नहीं चल पाया था.

एक दिन संगीता के बेटे ने अपनी मां शामजी को एक बिस्तर में देखा तो उस ने यह बात अपने पिता को बता दी. इस के बाद मुकेश सतर्क हो गया. एक दिन उस ने भी अपनी पत्नी को शामजी के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. उस ने शामजी को खरीखोटी सुनाई और उस से कमरा खाली करने के लिए कह दिया.

संगीता मुकेश पर हावी रहती थी उस ने पति से झगड़ा करते हुए कह दिया कि शामजी उसी मकान में रहेगा. अगर उसे निकाला गया तो वह भी उसी के साथ चली जाएगी. इस धमकी पर मुकेश डर गया. फलस्वरूप संगीता ने शामजी को कमरा खाली नहीं करने दिया.

इस बात को ले कर घर में हर समय कलह रहने लगी. मुकेश पत्नी से नौकरी छोड़ने को कहता था, जबकि वह नौकरी छोड़ने को तैयार नहीं थी.

मुकेश ने किसी तरह पत्नी को समझा कर साइकिल फैक्ट्री से नौकरी छुड़वा कर, के.एस. मुंजाल धागा फैक्ट्री में लगवा दी. अलग फैक्ट्री में काम करने से संगीता और शामजी की बाहर मुलाकात नहीं हो पाती थी.

इस से संगीता और शामजी दोनों परेशान रहने लगे. अंतत: दोनों ने मुकेश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. योजना बनाने के बाद संगीता ने पति से अपने किए पर माफी मांग ली और वादा किया कि भविष्य में वह शामजी से नहीं मिलेगी.

योजना को अंजाम देने के लिए शामजी ने 2 हथौड़े खरीद लिए थे. इस के बाद दोनों हत्या करने का मौका तलाशते रहे. संगीता के 5 बच्चे थे. वह अकसर घर पर रहते थे, जिन की वजह से उन्हें हत्या करने का मौका नहीं मिल पा रहा था. आखिर 15 अगस्त वाले दिन उन्हें मौका मिल गया.

मुकेश शराब पीने का आदी था. शाम को मुकेश ने अपने छोटे भाई रमेश के साथ शराब पी थी. खाना खा कर रमेश अपने घर चला गया था. संगीता ने पति से झगड़ा किया. संगीता जानती थी कि झगड़े के बाद पति छत पर ही सोएगा. हुआ भी यही.

मुकेश अपने छोटे बेटे के साथ छत पर सो गया. संगीता नीचे आ गई. इस के बाद जब रात गहरा गई तो रात 2 बजे संगीता छत पर पहुंची. शामजी भी अपने कमरे से बाहर निकल आया. बिना कोई अवसर गंवाए संगीता ने अपने पति के पैर कस कर पकड़े और पासवान ने उस के सिर पर हथौड़े के भरपूर वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

नशे में धुत होने के कारण उस की चीख तक नहीं निकल सकी. मुकेश की हत्या के बाद शामजी पासवान अपने कमरे में सोने चला गया. जबकि संगीता नीचे कमरे में आ गई. लेकिन उसे सारी रात नींद नहीं आई. सुबह जब बेटी ने छत पर जा कर खून देख कर शोर मचाया. जिस के बाद संगीता ने रोने का ड्रामा करना शुरू कर दिया. पुलिस को पहले से ही संगीता पर शक था. क्योंकि संगीता का रोना महज एक ढोंग दिखाई दे रहा था.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने उन दोनों की निशानदेही पर घर के पीछे खाली प्लौट में भरे पानी में फेंका गया हथौड़ा बरामद कर लिया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद संगीता और शामजी को फिर से अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर दोनों को न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

इस पूरे प्रकरण में दया की पात्र शामजी की पत्नी थी. वह इतनी साधारण और भोली थी कि उसे अभी तक यह भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उस के पति ने मकान मालिक की हत्या कर दी है. वह मृतक मुकेश के पांचों बच्चों का ध्यान रखे हुए है और सभी को सुबहशाम खाना बना कर खिला रही है.     ?

-पुलिस सूत्रों पर आधारित

कहीं आप भी तो नहीं है टौक्सिक रिलेशनशिप का शिकार, ऐसे लगाए पता

टौक्सिक रिलेशनशिप आपके अंदर की भावनाओं को पूरी तरह खत्म कर देता है जिसके कारण आप अपने साथी से दूर भागने लगते हैं. अगर आपको अपना रिश्ता एक टौक्सिक रिलेशनशिप लगने लगे तो आपको उस रिश्ते से दूर हो जाना ही बेहतर होता है क्योंकि ऐसे में आप अपने पार्टनर की भावनाओं को चोट पहुंचाने लगते हैं. आइए जानते हैं उन लक्षणों के बारे में जो आपके रिलेशनशिप को टौक्सिक बनाता है.

1 आपका साथी सिर्फ आपकी बुराई ढूंढता है:

जब आप एक अच्छे रिलेशनशिप में होते हैं तो आप खुश होते हैं और आपके अंदर हमेशा सकारात्मक भावनाएं रहती हैं जिसके कारण आपका रिश्ता गहरा होता है. लेकिन जब आप एक टौक्सिक रिलेशनशिप में होते हैं तो आप अपने साथी से खुलकर बातें नहीं कर पाते हैं. आपको हमेशा अपने साथी के सामने दिखावा करना पड़ता है. हमेशा आप इस बात की कोशिश करते हैं कि कैसे अपने साथी की छोटी-छोटी बातों पर उन्हें नीचा दिखाएं. किसी अच्छी चीज में भी आपको उसके अंदर बुराई ही दिखाई देती है.

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2 हमेशा अपने साथी से जीतने की कोशिश करते हैं:

जब भी आप और आपके पार्टनर के बीच कोई बहस होती है तो आप हमेशा चाहते हैं कि आप उस बहस में जीत जाएं. इसके बजाय की आप उस बहस को खत्म करें और अपन रिश्ते को बचाएं. टौक्सिक रिलेशनशिप में आप अपने साथी को किसी तरह का समर्थन नहीं देते हैं. हमेशा खुदको उसके आगे सर्वोत्तम रखने की कोशिश करते हैं. आप किसी भी लड़ाई में खुदको झुकाना नहीं चाहते हैं.

3 बात करने का तरीका बिल्कुल अगर हो जाता है:

इस तरह के रिलेशनशिप में आप कभी भी अपने पार्टनर की समस्याओं को सुनने की या उसका समाधान निकालने की कोशिश नहीं करते हैं. अगर आपका पार्टनर अपनी किसी परेशानी के बारे में बात करने की कोशिश भी करता है तो आप उसे अनदेखा कर देते हैं. इन कारणों की वजह से आप अपने साथी से जुड़ नहीं पाते हैं. ऐसी परिस्थिति में आप नहीं चाहते हुए भी आप अपने पार्टनर को दुख पहुंचा देते हैं.

मेरी शादी होने वाली है. मैं सैक्स को लेकर डरी हुई हूं…

4 आपके साथी में जलन की भावना होती है:

टौक्सिक रिलेशन में हमेशा एक-दूसरे के प्रति जलन भी भावना होती है. अक्सर अपने पार्टनर के लिए प्यार और चिंता दिखाते तो हैं लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है. यह आप दोनों के बीच विश्वास के अभाव को भी दर्शाता है, जो एक अच्छे रिश्ते में दूरी बढ़ाता है. आपका पार्टनर हमेशा आपको शक कि निगाहों से देखता है और हर बात के लिए आपको गलत ठहराता है. यह आपके रिश्ते को धीरे-धीरे टौक्सिक बना देता है.

 

आखिर क्यों नहीं करना चाहिए बेस्ट फ्रेंड से प्यार, जानें 4 कारण

ऐसा जरूरी नहीं है कि अगर आप अपने बेस्ट फ्रेंड से प्यार करते हैं तो वो भी आपसे प्यार करें. ऐसे में आपका दिल तो दुखता ही है साथ ही आपकी दोस्ती भी प्रभावित होती है. तो आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्यों अपने बेस्ट फ्रेंड से प्यार नहीं करना चाहिए.

1 आप एक-दूसरे के बारे में सब जानते हैं:

ये बहुत अच्छी बात है कि आप एक-दूसरे के बारे में सब जानते हैं. लेकिन इसकी वजह से आपके रिश्ते में कुछ नया नहीं रह जाता है. ऐसी कोई बात नहीं होती जो आप एक-दूसरे से बता सकें. आपकी पसंद के बारे में आपके बेस्ट फ्रेंड को पता होता है चाहे वह खाने को लेकर हो, पहनने को लेकर हो या फिर किसी और बारे में हो.

2 प्यार के कारण दोस्ती प्रभावित हो सकती है:

ऐसा जरूरी नहीं है कि जैसा आप अपने बेस्ट फ्रेंड के बारे में सोच रहे हैं, वह भी आपको लेकर वैसा ही महसूस कर रहा हो. अगर उन्हें किसी और से प्यार हो जाएगा तो यह भी आपके लिए एक दुख का कारण बन जाएगा. इसका सीधा प्रभाव आपकी दोस्ती पर पड़ेगा और शायद आपकी दोस्ती भी खराब हो सकती है.

3 आपको सलाह देने वाला कोई नहीं रहेगा:

अगर आपके बीच कोई परेशानी आएगी तो आपको सलाह देने वाला कोई नहीं रहेगा. आप दोनों के बीच हुई समस्या को सुलझाने वाला भी कोई नहीं रहेगा जिसकी वजह से आपका झगड़ा लंबे समय तक चल सकता है.

4 दोस्ती फिर पहले की तरह नहीं रहेगी:

एक बार अगर दोस्ती प्रभावित हो जाएगी तो फिर बहुत मुश्किल होगा उसे ठीक करना. तो अगर आप अपने बेस्ट फ्रेंड को गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड बनाने के बारे में सोच रहें हैं तो आपको उससे पहले अपनी दोस्ती के बारे में गहराई से सोचनी चाहिए क्योंकि प्यार की वजह से शायद आप अपने सबसे अच्छे साथी को अपने से दूर कर सकते हैं.

 

कैंसर का कारण बन सकती है गले की खराश

कैंसर एक जानलेवा बीमारी है, अगर समय रहते इसे पहचान ला जाए तो मरीज की जान बचाई जा सकती है. कैंसर के साथ परेशानी होती है कि शुरुआती समय में इसके लक्षण समाने नहीं आ पाते. पर हालिया स्टडी में बात सामने आई है कि कैंसर के लक्षण के बारे में बताया जा सकता है.

क्या कहती है स्टडी

स्टडी में कहा गया है कि लगातार गले में खराश या गला खराब रहना कैंसर का एक लक्षण हो सकता है. रिपोर्ट की माने तो गले की खराश के साथ साथ अगर कान में दर्द होता है, या कुछ खाने या सांस लेने में दिक्कत होती है तो ये लैरिंक्स कैंसर का लक्षण हो सकता है.

ब्रिटिश जर्नल औफ जरनल प्रैक्टिस में प्राकशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस स्टडी से कैंसर के शुरुआती समय में पहचान करने में मदद मिलेगी.

क्या कहते हैं जानकार

स्टडी में शामिल जानकारों की माने तो ये पहली ऐसी स्टडी है जिसमें लैरिंक्स कैंसर के लक्षण के बारे में जानकारी दी गई है. जानकारों ने आगे कहा कि गला बैठना लैरिंक्स कैंसर के अहम लक्षण है. स्टडी में ये भी बताया गया है कि बार-बार गले में खराश रहने से इस कैंसर का खतरा अधिक बढ़ जाता है.

कौन थे सैंपल

स्टडी में लगभग 800 से ज्यादा लैरिंक्स कैंसर से पीड़ित मरीजों को शामिल किया गया है. स्टडी की रिपोर्ट में सामने आया कि 5 फीसदी से ज्यादा लोगों को कैंसर लगातार गले में खराश रहने के कारण हुआ.

कोई बेवजह हाथ में पत्थर या बंदूक नहीं उठाता : सोनी राजदान

आज की यंग जेनरेशन उन्हे एक्ट्रेस आलिया भट्ट की मां के रूप में भी जानती हैं. पिछले साल रिलीज हुई फिल्म ‘‘राजी” में उन्होंने एक कश्मीरी मां के किरदार में नजर आयी थीं. हम बात कर रहे हैं टैलेंटेड एक्ट्रेस सोनी राजदान की जो मूलतः कश्मीरी पंडित हैं. लेकिन इंग्लैंड में पली बढ़ी हैं. इन दिनों वो डायरेक्टर अश्विन कुमार की फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ को लेकर चर्चा में है. जो 5 अप्रैल को रिलीज होगी. इस फिल्म में वो एक बार फिर वह कश्मीरी महिला के किरदार में नजर आएंगी.

पेश है सोनी राजदान के साथ ‘‘सरिता’’पत्रिका के लिए हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…

सवाल: फिल्म ‘‘36 चौरंगी लेन’’से लेकर ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’तक के सिनेमा में आपने क्या बदलाव देखा? आपको क्या लगता है कि 38 सालों में सिनेमा कहां से कहां पहुंचा?

जवाब: धीरे-धीरे काफी कुछ बदलाव आ गया है. मेरी राय में भारतीय सिनेमा में बदलाव की  शुरुआत फिल्म ‘‘रंग दे बसंती’’ से हुई थी. क्योकि मुझे याद है कि उस वक्त बौलीवुड के एक बहुत बड़े और फेमस फिल्म क्रिटिक (मैं उनका नाम लेकर उन्हें बेवजह शर्मिंदा नहीं करना चाहती) ने दावा किया था कि अगर फिल्म ‘रंग दे बसंती’ सफल हो गयी, तो वह अपना नाम बदल देंगे.

उसी वक्त मैंने अपने पति व फिल्मकार महेश भट्ट से कहा कि अब इस फिल्म आलोचक को 100 प्रतिशत अपना नाम बदलना पड़ेगा. क्योंकि यह फिल्म सफलता के झंडे जरूर गाड़ेगी. हुआ भी यही फिल्म ‘‘रंग दे बसंती’’ को मिली सफलता से पूरा बौलीवुड सकते में आ गया था. पहली बार बौलीवुड को अहसास हुआ था कि दर्शक बदल रहा है और उसे इस तरह की फिल्में दी जानी चाहिए.

इतना ही नहीं जब हमने ‘36 चौरंगी लेन’ या ‘सारांश’ की थी, तब भी हमें यकीन था कि यह फिल्में पसंद की जाएंगी. ‘सारांश’ तो सेमी कमर्शियल फिल्म थी. मगर ‘‘36 चौरंगी लेन’’ पूरी तरह से आर्ट फिल्म थी, लेकिन दर्शकों ने इन दोनों फिल्मों को पसंद किया था.

मैं मानती हूं कि उन दिनों इस तरह की फिल्मों को बनाना मुश्किल काम था. लेकिन आज भी कंटेंट बेस्ड सिनेमा बनाना आसान काम नहीं है. सच कह रही हूं, चाहे आज से 20 साल पहले का समय हो या आज का समय हो, जब भी फिल्मकार कुछ हट कर यानी कि एक अलग तरह के कौन्सेप्ट पर फिल्म बनाने की कोशिश करता है, तो उसे कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है. अगर किसी गंभीर विषय की फिल्म बना रहे हैं, तो और मुश्किल हो जाती है.

लेकिन मैं यह मानती हूं कि पिछले तीन चार सालों में सिनेमा बहुत तेजी से बदला है. ‘ए वेडनेस्डे’, ‘स्त्री’ जैसी फिल्में सफल हुई हैं. जबकि इनमें आम बौलीवुड मसाला फिल्मों की तरह गाने नहीं थे और ना ही प्रेम कहानी थी. तो अब सिनेमा उस दौर में पहुंच गया है, जहां कंटेंट का महत्व बढ़ गया है. अब कंटेंट ही किंग हो गया है. अब किसी भी फिल्म के लिए स्टार कोई मायने नहीं रखते. मगर पहले कहानी की बजाय स्टार कलाकार मायने रखते थे. उस वक्त हर फिल्म निर्माता और वितरक एक ही बात कहता था कि स्टार होगा, तभी फिल्म को बाक्स आफिस पर सफलता मिलेगी. उस वक्त नाच गाना इंपोरटेंट था. आपकी फिल्म की कहानी बकवास हो, लेकिन दो तीन अच्छे गाने हों, तो फिल्म चल जाती थी.

मेरे कहने का मतलब यह कि  एक समय वह था, जब कहानी की बजाय बेहतर म्यूजिक दर्शकों को बौक्स आफिस तक खींच लाता था. लेकिन अब हम सभी इस बात को गंभीरता के साथ महसूस कर रहे हैं कि स्टार या नाच गाना नहीं बल्कि कहानी और कंटेंट बहुत मायने रखता है. यही वजह है कि आज की तारीख में निर्माता निर्देशक से लेकर एक्टर तक फिल्म की स्टोरी को महत्व देने लगे हैं. आज की तारीख में स्टार्स के नाम पर किसी भी तरह की फिल्म नहीं बना सकते हैं. आज तो पहली शर्त है अच्छी स्क्रिप्ट. यही वजह है कि मैंने फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’की. क्योंकि इस फिल्म की स्टोरी बहुत सुंदर और जबरदस्त है. ये एक यूनिक फिल्म है. बहुत ही आउट स्टैडिंग स्क्रिप्ट है. अश्वनी कुमार की लिखावट की तारीफ करनी पड़ेगी.इस फिल्म को देखकर आप खुद फैसला दीजिएगा कि फिल्म कैसी है?

 जब आपको फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ का औफर मिला, तो इसकी स्क्रिप्ट में क्या खास बात थी, जिसके चलते आपने फिल्म स्वीकार की. वरना आप तो काफी कम फिल्में कर रही हैं?

पहली बात तो ये कि कम फिल्में करना मेरी च्वौइस नही है.मेरे पास लोग अपनी फिल्म का औफर लेकर नहीं आते, तो मैं क्या करुं? बहरहाल,हम ‘नो फादर्स इन कश्मीर’ की बात करते हैं. जब अश्वनी कुमार मेरे पास इस फिल्म का औफर लेकर आए, तो फिल्म की स्क्रिप्ट एक अंडर स्टैंडिंग के प्वाइंट से लिखी गयी है. स्क्रिप्ट को पढ़कर मुझे अहसास हुआ कि हम इसमें उस कश्मीर को देखने वाले हैं, जिसे सामान्यतः हम नही देखते हैं. इस स्क्रिप्ट को पढ़कर मैंने कश्मीर को लेकर कुछ सीखा, जो कि सामान्यतः हमें सीखने को नहीं मिलता. तो मुझे यह बात अच्छी लगी. मुझे अहसास हुआ कि फिल्म के डायरेक्टर अश्वनी कुमार कश्मीर को बेहतर तरीके से जानते हैं. उनकी वजह से मैं भी उसी दिशा में जा रही हूं, जिसके बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. कश्मीर को लेकर हम हमेशा एक पक्ष ही देखते हैं. दूसरा पक्ष देखने को नहीं मिलता. लेकिन मुझे स्क्रिप्ट में ये बात पसंद आयी कि ये स्क्रिप्ट/फिल्म उस दूसरे पक्ष की भी बात करती है. इतना ही नहीं, यह महज एक गंभीर फिल्म नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर विषयवस्तु पर है. इस फिल्म ने मुझे 2013 की ब्रायन पर्सीवल निर्देशित हौलीवुड फिल्म ‘‘बुक थीफ’ ’की याद दिला दी,जिसमें जियोफ्री रश, एमली वाट्सन और सोफी नेलिसे मुख्य भूमिका में थे. यह फिल्म दूसरे विश्व युद्ध के समय जर्मनी की पृष्ठभूमि पर है. लेकिन यह फिल्म फाइटर पायलट, हिटलर या बम बार्मिंग को लेकर नहीं है. यह फिल्म जर्मनी के छोटे से शहर की है, जिसमें दिखाया गया है कि दूसरे विश्व युद्ध ने छोटे शहर के जीवन को किस तरह प्रभावित किया है. बड़ी खूबसूरत फिल्म है.

फिल्म ‘‘बुक थीफ’’ की कहानी नाजी युग में जर्मन परिवार द्वारा गोद ली गई एक लड़की के बारे में है. जो अपने पालक माता पिता द्वारा दी गयी सीख के अनुसार अपनी किताबे यहूदी शरणार्थियों के साथ साझा करती है. इसमें मानवता के सूत्र की बात की गयी है.

तो फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ की स्क्रिप्ट पढ़कर मैंने सोचा कि यह फिल्म भी उसी तरह की है. यह फिल्म एक कौन्फिलिक्ट जोन की कहानी है. फिल्म में कश्मीर की पृष्ठभूमि में ढेर सारा ड्रामा चल रहा है. लेकिन इस बड़े कौन्फिलिक्ट से छोटे शहर के लोग प्रभावित हो रहे हैं, उनकी जिंदगी प्रभावित हो रही है. इस फिल्म में एक्टिंग करना मेरे लिए एक अलग अनुभव रहा.

फिल्म ‘‘नो फादर इन कश्मीर’’ में आपका अपना किरदार क्या है?

मैंने इसमें ‘हलीमा’ नामक कश्मीरी औरत का किरदार निभाया है, जिसने अपने बेटे अरशद को खोया है. उसे अपना बेटा नजर नही आ रहा है. मेरी ही तरह तमाम लोग अपने बेटे को खो चुके है. एक दिन मेरी पोती नूर, जो कि ब्रिटेन में रह रही है, वह अपने पिता की खोज में कश्मीर आती है. फिर कश्मीर की समस्याओं पर बात होती है. इस फिल्म में मेरे इमोशंस को बेहतर ढंग से दिखाया गया है.

 मुंबई में रहते हुए कश्मीर को लेकर आपकी एक समझ रही होगी. अब कश्मीर जाने के बाद वह समझ कितनी बदली है?

बहुत बदली है. हकीकत में हम मुंबई में बैठकर सही मायने में कश्मीर को समझ नही सकते. कश्मीर को समझने के लिए आपको बहुत कुछ पढ़ना और देखना पड़ेगा. बहुत कुछ शोध करना पड़ेगा. इसके बावजूद कश्मीर में जाकर वहां के गांव के लोगों से बात कर कश्मीर को सही मायनों में समझना पड़ेगा. जब आप कश्मीर के छोटे शहरों और गांव में जाएंगें, तो आपकी समझ में आएगा कि कश्मीरी कितने विनम्र, मेहमाननवाजी वाले प्यारे इंसान हैं. तहजीब के साथ जिंदगी जीने वाले शांत प्रिय लोग हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस तरह के परिवार के बच्चे क्यों हाथ में पत्थर उठाते हैं? या आतंकवाद की राह पकड़ लेते हैं? या बंदूक उठा लेते हैं? इसके पीछे कोई वजह होगी, जिसे हमें समझना पड़ेगा. कोई बेवजह तो हाथ में पत्थर या बंदूक नहीं उठाएगा. इसके पीछे कुछ न कुछ तो कारण हैं. इन कारणों को जानने की कोशिश देश के सभी लोगों को करनी चाहिए और उस सच को स्वीकार भी करना चाहिए. कश्मीरीयों  की समस्या को समझना भी चाहिए. वरना समस्या का हल नही निकल सकता.

 आप ‘‘राजी’’और ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ की शूटिंग के लिए कश्मीर जा चुकी हैं. वहां के लोगों से आपकी बात हुई होगी. क्या अनुभव रहें?

हां! मैने तमाम लोगों से बातचीत की. वहां की जो समस्या है, उसकी वजह शायद यह है  कि उन्हें न्याय नही मिला. उनकी समस्या को हल करने के लिए कोई सरकार आगे नहीं आती. वर्तमान राजनैतिक माहौल में कश्मीर के लोग अपने आपको बेसहाय पाते हैं. लेकिन इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण वजह यह है कि कश्मीर का नौजवान बेरोजगार है. उसके पास करने के लिए कुछ नही है. स्कूल के बाद युवा पीढ़ी अपने घर जाकर खाली बैठी रहती है. सिनेमा थिएटर भी नही है. मनोरंजन का भी कोई साधन नही है. नौकरी नही है. लेकिन वहां के लोग जो भी कर सकते हैं, वह कर रहे हैं. हां!जिस तरह से लोग मुंबई या दूसरे शहरों में संघर्ष करते हैं, उस तरह का संघर्ष उनका नहीं है. वह एक अलग तरह की जिंदगी जी रहे हैं. लेकिन उस तरह की जिंदगी वह जीना नहीं चाहते. उन्हें अपनी जिंदगी में आशा और उम्मीद चाहिए. उन्हें जिंदगी जीने का मकसद चाहिए, जो कि वहां की युवा पीढ़ी के लिए कुछ भी नही है. इस दिशा में बदलाव आना चाहिए. मुझे यकीन है कि यह बदलाव आएगा. लेकिन जितनी जल्दी बदलाव आएगा, उतना ही अच्छा है. क्योंकि कश्मीर की आज की युवा पीढ़ी आतंकवाद के दौरान पली बढ़ी है. उनके लिए आतंकवादी घटनाएं आम हैं. आतंकवादी घटनाओं के बीच जिंदगी जीना उनके लिए बहुत मामूली सी बात है. लेकिन इसके साथ वह कुछ न कुछ काम करना चाहते हैं. अगर कश्मीर की युवा पीढ़ी को नौकरी मिल जाए, मनोरंजन के कुछ साधन मिल जाएं, तो वहां हाथ पत्थरबाजी या  बंदूक की तरफ नहीं जाएगा.

 कश्मीर की यह जो मूलभूत समस्या है, उसके लिए दोषी सरकार है या फिर कोई औऱ?

एक नही कई दोषी हैं. पूरा सरकार तंत्र गड़बड़ है. कश्मीर के लोग भी कुछ हद तक इसके लिए जिम्मेदार हैं. सरकार, राजनीति,कश्मीर के लोग और दूसरों की दखलअंदाजी मिले-जुले रूप से कश्मीर के अंदर की समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं. जब लोग मदद की उम्मीद लगाए हों और मदद ना मिले, तो क्या होगा? इसलिए सबसे बड़ी जरुरत उनकी इन समस्याओं को सुनने की है. देखिए, यह कहना बहुत मूर्खतापूर्ण बात है कि वह डल झील में होटेल चला रहे हैं. हम यह क्यों भूल जाते हैं कि उन्हें मनोरंजन भी चाहिए. वह भी देश के दूसरे हिस्से के लोगों की तरह सामान्य जिंदगी जीना चाहते हैं.जब यह हो जाएगा, तो वहां की काफी समस्याएं अपने आप हल हो जाएंगी.

फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ के प्रदर्शन के बाद इस फिल्म का क्या असर होगा?

मैं सोचती हूं कि हमेशा परिस्थितियों की अच्छी समझ हर इंसान को होना जरूरी है. यह फिल्म लोगों को सोचने लेकिन मजबूर करेगी. मैं अपनी बात कहूं तो फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद कश्मीर को लेकर मेरे मन में उत्सुकता बढ़ी. मेरे अंदर इच्छा हुई कि मैं कश्मीर के बारे में और अधिक से अधिक जानकारी हासिल करूं. इस फिल्म के बाद कश्मीर को लेकर लोगों के अंदर एक उत्सुकता बढ़ेगी. यह फिल्म समस्या ग्रस्त कश्मीर को समझने में लोगों की मदद करेगी. मेरा मानना है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को यह फिल्म देखनी चाहिए.

आपने कुछ टीवी सीरियलों में भी अभिनय किया है. आज आपको टीवी कैसा नजर आ रहा है?

काफी समय पहले मैंने टीवी देखना बंद कर दिया था. मेरे अनुसार टीवी का पतन हो चुका है. टीवी पर जिस तरह की कहानी दिखायी जा रही हैं, उससे मैं रिलेट नहीं कर सकती. टीवी लेकिन जो कुछ परोसा जा रहा है, उसका मेरी जिंदगी से कोई ताल्लुक ही नही  है. लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि वह सीरीयलों से खुद को जोड़ पा रहे हैं. अब मैं तो किसी को टीवी देखने से मना नहीं कर सकती न.

गूगल प्लस 2 अप्रैल से हो रहा है बंद, जानिए पूरी खबर

गूगल अपनी सोशल नेटवर्किंग सर्विस गूगल+ को आज से यानि 2 अप्रैल से बंद होने जा रही है. जी हां सही सुना आपनें कंपनी गूगल+ के यूजर्स का डेटा 2 अप्रैल से डिलीट करना शुरू कर देगी. गूगल ने अपनी इस सर्विस को पूरी तरह बंद करने की घोषणा पिछले साल ही कर दी थी. 2019 में फरवरी से ही कंपनी ने गूगल+ के कई फीचर्स औफलाइन करना शुरू कर दिए हैं. कंपनी अब अपने यूजर्स का डेटा डिलीट करने की शुरुआत करने जा रही है, ऐसे में जरूरी है कि आप डेटा का बैकअप रख लें या फिर अकाउंट आर्काइव में सेव होने से पहले ही डिलीट कर दें.

क्यों बंद हो रहा है गूगल प्लस?

एक बड़ा सिक्योरिटी इश्यू सामने आने के बाद गूगल ने इस सर्विस को बंद करने का फैसला लिया था. गूगल का कहना था कि गूगल प्लस को बंद करने की वजह इसे यूजर्स की ओर से मिल रही प्रतिक्रिया भी रही. कंपनी का कहना है कि सोशल प्लैटफौर्म पर यूजर्स का इंगेजमेंट तेजी से घटता जा रहा था और इसपर ज्यादातर यूज सेशन पांच सेकंड्स तक सिमट गए थे.

साथ ही बताया जा रहा है कि एक सौफ्टवेयर गड़बड़ी के कारण 2015 से 2018 के बीच बाहरी डेवलपर्स ने गूगल प्लस प्रोफाइल के डेटा में सेंध लगाने की कोशिश की. गूगल के मुताबिक करीब 5 लाख लोगों के निजी डेटा में सेंध लगाई गई थी. हालांकि गूगल ने दावा किया है कि उस बग को ठीक कर लिया गया था. असुरक्षित डेटा में प्रोफाइल नेम, ईमेल ऐड्रेस, औक्युपेशन, जेंडर और ऐज जैसे डेटा शामिल थे. कंपनी का दावा है कि इसके अलावा और कोई भी डेटा इसमें शामिल नहीं था जिसे आपने गूगल प्लस पर पोस्ट किया हो.

समर टिप्स: अब नहीं पड़ेगी सनस्क्रीन लगाने की जरूरत…

गर्मियों में धूप से शरीर में डिहाइड्रेशन के साथ-साथ सूर्य की यूवी किरणों के प्रभाव में आने से स्किन में मैलानिन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे स्किन की रंगत पर भी असर पड़ता है. जब मैलानिन त्वचा के निचले हिस्सों में पैदा होने के बाद ऊपरी हिस्सों तक पहुंचता है तो स्किन काली पड़ जाती है. धूप में त्वचा की पूरी नमी खत्म हो जाती है, जिसके कारण स्किन  ड्राई और बेजान पड़नी शुरू हो जाती है. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसा उपाय जिसके बाद आपको कभी भी सनस्क्रीन लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

ओरल सनस्क्रीन टैबलेट Vs सनस्क्रीन लोशन

सूर्य की अल्ट्रावौयलेट किरणों से स्किन को बचाने के लिए नए विकल्प के रूप में ओरल सनस्क्रीन टैबलेट्स मौजूद हैं. स्कीनोवेशन के डायरेक्टर कल्पेश गावड़े ने भारत में हेलीओकेयर ओरल उत्पाद लांच किया है, जो पूरी तरह से रिसर्च और टेस्ट के बाद ही मार्केट में लाया गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि सन प्रोटेक्शन के पुराने तरीके पर्याप्त नहीं हैं, क्योंकि ज्यादातर महिलाएं बहुत कम सनस्क्रीन लोशन का इस्तेमाल करती हैं. महिलाएं शरीर के सभी दिखने वाले हिस्सों का कवर करना या तो भूल जाती हैं या फिर उन्हें लगता है कि सिर्फ फेस को कवर करना ही काफी है.

हानिकारक किरणों से बचने के लिए है बेहतर विकल्प

दूसरी ओर क्रीम या लोशन को अच्छी तरह से काम करने के लिए हर कुछ घंटों बाद दोबारा लगाने की जरूरत पड़ती है, मगर ज्यादातर महिलाओं के पास समय नहीं होता है. इसी वजह से महिलाएं इसे इस्तेमाल करने से कतराती हैं. सनस्क्रीन लोशन हर किसी की स्किन को सूट नहीं करता और इससे एलर्जी आदि की समस्या भी हो जाती है. ऐसे में सनस्क्रीन टैबलेट्स फायदेमंद हैं.

अगर कहीं बाहर जाने के लिए आपने मेकअप आदि किया है तो उस के साथ सनस्क्रीन लोशन लगाना किसी मुसीबत से कम नहीं है. ऐसे में टैबलेट एक अच्छा विकल्प है ताकि मेकअप भी ठीक रहे और स्किन भी सुरक्षित रहे.

टैबलेट में है क्या….

ओरल सनस्क्रीन टैबलेट्स में अनार, विटामिन सी, विटामिन ई, कैरोटीनोइड जैसी चीजें होती हैं. नई गोलियों में फर्न से निकाले गए पोलीपोडियम ल्यूकोटोमोस होते हैं. साथ ही इन में ऐंटीऔक्सीडेंट भी होता है. ये सभी मिल कर धूप से बचाव तो करते ही हैं साथ ही डैमेज हो चुकी त्वचा को भी सही करने का काम करते हैं.

स्किन को बचाने के अलावा यह सिर व पैरों को भी कवर करता है जहां सनस्क्रीन लोशन लगाना संभव नहीं है. साथ ही यह धूप में बालों को रंग उड़ने से भी रोकता है. स्वीमिंग और एक्सरसाइज के दौरान ओरल सनस्क्रीन टैबलेट ज्यादा फायदेमंद है, क्योंकि लोशन को दोबारा लगाना संभव नहीं होता.

ध्यान दें…………

वैसे तो इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है, लेकिन अगर आप को कोई गंभीर बीमारी है, तो इसे लेने से पहले डाक्टर से एक बार सलाह जरूर ले लें.

“ओरल सनस्क्रीन टैबलेट्स में ऐंटीऔक्सीडैंट, विटामिन सी, विटामिन डी, लाइकोडीन और अन्य कई चीजें पाई जाती हैं, जिनके कारण इसे मल्टीविटामिन हैल्थ सप्लीमेंट कह सकते हैं. लेकिन इसकी मेन प्रौपटी यूवी किरणों से प्रोटैक्ट करना ही है.” -ऐप्पल स्किन क्लीनिक की डर्मेटोलॉजिस्ट

(दीप्ति ढिल्लो से शिखा जैन द्वारा की गई बातचीत पर आधारित लेख)

छेना रबड़ी बनाने की रेसिपी

रबड़ी मालपुआ खाने में बेहद स्वादिष्ट होती है और ये बच्‍चों को भी पसंद आती है. और हां, रबड़ी मालपुआ  बनाने में भी बेहद आसान है. तो फिर सोच क्‍या रहे हैं, आप भी छेना रबड़ी बनाने की विधि ट्राई करके देखें.

सामग्री :

– पनीर 100 ग्राम (कद्दूकस किया हुआ),

– दूध ( 04 कप)

– शक्कर (08 बड़े चम्मच)

– सिंघाड़े का आटा ( 04 बड़े चम्मच)

– छोटी इलायची 02 (छीलकर पीस लें)

– काजू  02 छोटे चम्मच (कटे हुए)

– बादाम  02 छोटे चम्मच (कटे हुए)

छेना रबड़ी बनाने की विधि :

–  सबसे पहले 4 बड़े चम्मच दूध में सिंघाड़े का आटा मिलाकर उसका पेस्ट बना लें.

– बचे हुए दूध को उबाल लें.

– इसके बाद दूध में सिंघाड़े का पेस्ट मिला दें और आंच को मीडियम करके पकाएं.

– जब दूध की मात्रा आधी रह जाए, उसमें पनीर मिला दें.

– इसके बाद शक्कर मिलाएं और 5 मिनट तक चलाते हुए पकाएं.

– आंच बंद कर दें और इलायची का पाउडर तथा काजू-बादाम ऊपर से छिड़क दें.

– लीजिए छेना रबड़ी बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

कलावती और मलावती का दुखद अंत

27 जून, 2018 की उमस और गरमी भरी सुबह थी. इंसान तो इंसान, जानवरों तक की जान हलकान थी. बिहार के पूर्णिया जिले के थाना जलालगढ़ क्षेत्र के रामा और विनय नाम के दोस्तों ने तय किया कि वे बिलरिया ताल जा कर डुबकी लगाएंगे. वैसे भी वे दोनों रोजाना अपने मवेशियों को बिलरिया ताल के नजदीक चराने ले जाते थे.

रामा और विनय जलालगढ़ पंचायत के गांव चकहाट के रहने वाले थे. उन के गांव से बिलरिया ताल 2 किलोमीटर दूर था. ताल के आसपास घास का काफी बड़ा मैदान था. चरने के बाद मवेशी गरमी से राहत पाने के लिए ताल में घुस जाते थे. फिर वह 2-3 घंटे बाद ही ताल से बाहर निकलते थे. उस दिन जब उन के मवेशी ताल में घुसे तो दोनों दोस्त यह सोच कर घर की ओर लौटने लगे थे कि 2-3 घंटे बाद आ कर मवेशियों को ले जाएंगे.

रामा और विनय ताल से घर की ओर आगे बढ़े ही थे कि तभी रामा की नजर ताल के किनारे के झुरमुट की ओर चली गई. झुरमुट के पास 2 लाशें पड़ी थीं. उत्सुकतावश वे लाशों के पास पहुंचे तो दोनों के हाथपांव फूल गए. दोनों लाशों के सिर कटे हुए थे और वे लाशें महिलाओं की थीं. यह देख कर दोनों चिल्लाते हुए गांव की तरफ भागे. गांव में पहुंच कर उन्होंने लोगों को बिलरिया ताल के पास 2 लाशें पड़ी की बात बताई.

उन की बातें सुन कर गांव वाले लाशों को देखने के लिए बिलरिया ताल के पास पहुंचे. जरा सी देर में वहां गांव वालों का भारी मजमा जुट गया. यह खबर गांव के रहने वाले अशोक ततमा के बेटे मनोज कुमार ततमा को हुई तो वह भी दौड़ादौड़ा बिलरिया ताल जा पहुंचा.

दरअसल, 4 दिनों से उस की 2 सगी बुआ कलावती और मलावती रहस्यमय तरीके से गायब हो गई थीं. वे 23 जून की दोपहर में घर से जलालगढ़ बाजार जाने के लिए निकली थीं. 4 दिन बीत जाने के बाद भी वे दोनों घर नहीं लौटीं तो घर वालों को उन्हें ले कर चिंता हुई. उन का कहीं पता नहीं चला तो 24 जून को मनोज ने जलालगढ़ थाने में दोनों की गुमशुदगी की सूचना दे दी थी.

बहरहाल, यही सोच कर मनोज मौके पर जा पहुंचा. वह भीड़ को चीरता हुआ झाडि़यों के पास पहुंचा तो कपड़ों से ही पहचान गया कि वे लाशें उस की दोनों बुआ की हैं. लाशों को देख कर मनोज दहाड़ मार कर रोने लगा था.

इसी बीच गांव का चौकीदार देव ततमा भी वहां पहुंच गया था. उस ने जलालगढ़ थाने के एसओ मोहम्मद गुलाम शहबाज आलम को फोन से घटना की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसओ आलम मयफोर्स आननफानन में बिलरिया ताल रवाना हो गए. एसएसआई वैद्यनाथ शर्मा, एसआई अनिल शर्मा, कांस्टेबल अवधेश यादव, अशोक कुमार मेहता, जयराम पासवान और उपेंद्र सिंह उन के साथ थे.

एसओ मोहम्मद आलम ने बारीकी से लाशों का मुआयना किया. दोनों लाशें क्षतविक्षत हालत में थीं. लग रहा था जैसे लाशों को जंगली जानवरों ने खाया हो. लाशों के आसपास किसी तरह का कोई सबूत नहीं मिला. पुलिस आसपास की झाडि़यों में लाशों के सिर तलाशने लगी. लेकिन सिर कहीं नहीं मिले.

इस का मतलब था कि हत्यारों ने दोनों की हत्या कहीं और कर के लाशें वहां छिपा दी थीं. कातिल जो भी थे, बड़े चालाक और शातिर किस्म के थे. मौके पर उन्होंने कोई सबूत नहीं छोड़ा था. पुलिस के लिए थोड़ी राहत की बात यह थी कि लाशों की शिनाख्त हो गई थी.

इस के बाद एसओ मोहम्मद आलम ने एसपी विशाल शर्मा और एसडीपीओ कृष्णकुमार राय को घटना की सूचना दे दी थी. उन्होंने घटनास्थल का मुआयना किया तो जिस स्थान से लाशें बरामद की गई थीं, वह इलाका उन के थाना क्षेत्र से बाहर का निकला. वह जगह थाना कसबा की थी. लिहाजा उन्होंने इस की सूचना कसबा थाने के एसओ अरविंद कुमार को दे दी.

एसओ कसबा अरविंद कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे. लेकिन उन्होंने भी उस जगह को अपना इलाका होने से साफ मना कर दिया. इलाके को ले कर दोनों थानेदारों के बीच काफी देर तक बहस होती रही.

तब तक एसपी विशाल शर्मा और एसडीपीओ कृष्णकुमार राय भी मौके पर जा पहुंचे. दोनों अधिकारियों के हस्तक्षेप और मौके पर बुलाए गए लेखपाल की पैमाइश के बाद घटनास्थल कसबा थाने का पाया गया. एसपी शर्मा के आदेश पर थानेदार अरविंद कुमार ने मौके की काररवाई निपटा कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दीं.

चूंकि कलावती और मलावती की गुमशुदगी जलालगढ़ थाने में दर्ज थी, इसलिए जलालगढ़ एसओ मोहम्मद आलम ने यह मामला कसबा थाने को स्थानांतरित कर दिया. एसओ अरविंद कुमार ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर आगे की छानबीन शुरू कर दी.

चूंकि बात 2 सामाजिक कार्यकत्रियों की हत्या से जुड़ी थी, इसलिए यह मामला मीडिया में भी खूब गरमाया. पुलिस पर जनता का भारी दबाव बना हुआ था. पुलिस की काफी छीछालेदर हो रही थी. एसपी विशाल शर्मा ने एसडीपीओ कृष्ण कुमार राय के नेतृत्व में एक टीम गठित की.

इस टीम में जलालगढ़ के एसओ मोहम्मद गुलाम शहबाज आलम, थाना कसबा के थानेदार अरविंद कुमार, मुफस्सिल थाने के एसओ प्रशांत भारद्वाज, तकनीकी शाखा प्रभारी एसएसआई जलालगढ़ वैद्यनाथ शर्मा, एसआई अनिल शर्मा, कांस्टेबल अवधेश यादव, अशोक कुमार मेहता, जयराम पासवान और उपेंद्र सिंह को शामिल किया गया.

एसडीपीओ कृष्णकुमार राय ने घटना की छानबीन की शुरुआत मृतकों के घर से की. मनोज से पूछताछ पर जांच अधिकारियों को पता चला कि कलावती और मलावती दोनों पतियों द्वारा त्यागी जा चुकी थीं. पतियों से अलग हो कर दोनों मायके में ही रह रही थीं.

मायके में रह कर दोनों सोशल एक्टिविस्ट का काम कर रही थीं. कलावती और मलावती की नजरों पर गांव के कई ऐसे असामाजिक तत्व चढ़े थे, जिन के क्रियाकलाप से लोग परेशान थे. उन में 4 नाम वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा शामिल थे. दोनों बहनों ने इन चारों पर कई बार मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भी भिजवाया था.

जांच अधिकारियों को यह समझते देर नहीं लगी कि कलावती और मलावती की हत्या के पीछे इन्हीं चारों का हाथ है. फिलहाल पुलिस के पास उन के खिलाफ कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं था, जिसे आधार बना कर उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता. उन पर नजर रखने के लिए जांच अधिकारी ने मुखबिरों को लगा दिया कि वे कहां जाते हैं, किस से मिलते हैं, क्याक्या करते हैं?

इधर एसओ कसबा अरविंद कुमार ने दोनों बहनों के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और केस को समझने में जुट गए थे. काल डिटेल्स में कुछ ऐसे नंबर मिले, जो संदिग्ध थे. उन नंबरों से कलावती और मलावती देवी को कई दिनों से लगातार फोन किए जा रहे थे. पुलिस ने उन संदिग्ध नंबरों की पड़ताल की तो वे नंबर मृतका के गांव चकहाट के रहने वाले वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा और लक्ष्मीदास उर्फ रामजी के निकले.

काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने पूछताछ के लिए वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और थाने ले आई. इसी बीच मुखबिर ने एसडीपीओ कृष्णकुमार राय को एक ऐसी चौंकाने वाली बात बताई, जिसे सुन कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

मुखबिर ने बताया कि कलावती और मलावती की हत्या गांव के ही कई लोगों ने मिल कर की थी. उन में वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास के अलावा बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा भी शामिल थे.

इस से पुलिस को पुख्ता जानकारी मिलगई कि दोहरे हत्याकांड में कई लोग शामिल थे. हिरासत में लिए गए वीरेंद्र और लक्ष्मीदास से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही दोनों बहनों को मौत के घाट उतारा था.

‘‘लेकिन क्यों? ऐसा क्या किया था दोनों बहनों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था, जो इतनी बेरहमी से कत्ल कर दिया?’’ एसडीपीओ कृष्णकुमार राय ने सवाल किया.

‘‘साहब, मैं अकेला नहीं मेरे साथ लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र भी थे. क्या करते साहब, दोनों बहनों ने हमारा जीना मुश्किल कर दिया था.’’

इस के बाद वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास ने पूरी घटना विस्तार से बताई. दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने गांव चक हाट से बुद्धू और जितेंद्र शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. चारों आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने श्मशान घाट के तालाब के पास से जमीन में दबाए हुए दोनों महिलाओं के सिर भी बरामद कर लिए.

उसी दिन शाम को आननफानन में पुलिस लाइन के मनोरंजन कक्ष में प्रैस कौन्फ्रैंस किया गया. 7 दिनों से रहस्य बनी सोशल एक्टिविस्ट कलावती और मलावती हत्याकांड की गुत्थी सुलझा चुकी पुलिस जोश से लबरेज थी.

प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी विशाल शर्मा ने बताया कि कलावती और मलावती की हत्या उसी गांव के रहने वाले वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मी दास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा ने मिल कर की थी. इस मामले में गांव के 12 लोग और शामिल थे, जिन्होंने घटना को अंजाम देने में आरोपियों की मदद की थी. जिन में 4 आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए.

इस के बाद पुलिस ने चारों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. आरोपियों के बयान के आधार पर पुलिस ने 16 लोगों वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, दिलीप शर्मा, विनोद ततमा, प्रकाश ततमा, सोनू शर्मा, रामलाल शर्मा, विष्णुदेव शर्मा, पप्पू शर्मा, उपेन शर्मा, इंदल शर्मा, सुनील शर्मा, सतीश शर्मा और बेचन शर्मा के नाम पहली जुलाई के रोजनामचे पर दर्ज कर लिए. अभियुक्तों के बयान और पुलिस की जांच के बाद कहानी कुछ यूं सामने आई.

बिहार के पूर्णिया जिले के जलालगढ़ थानाक्षेत्र में एक गांव है— चक हाट. जयदेव ततमा इसी गांव के मूल निवासी थे. उन के 3 बच्चे थे, जिन में एक बेटे अशोक ततमा के अलावा 2 बेटियां कलावती ततमा और मलावती ततमा थीं. अशोक ततमा दोनों बेटियों से बड़ा था.

जयदेव ततमा का नाम चक हाट पंचायत में काफी मशहूर था. वह इलाके में बड़े किसान के रूप में जाने जाते थे. उन्होंने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाई. उन की दिली इच्छा थी कि बच्चे पढ़लिख कर योग्य बन जाएं.

कलावती और मलावती बड़े भाई अशोक से बुद्धि और कलाकौशल में काफी तेज थीं. दोनों बहनें पढ़ाई के अलावा सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थीं. उन का सपना था कि बड़े हो कर समाज की सेवा करें.

पिता की मदद से कलावती और मलावती ने समाजसेवा की जमीन पर अपने पांव पसारने शुरू कर दिए. गरीबों और मजलूमों की सेवा कर के उन्हें बहुत सुकून मिलता था. बेटियों की सेवा भाव से पिता जयदेव ततमा खुश थे. धीरेधीरे वे गांव इलाके में मशहूर हो गईं.

बचपन को पीछे छोड़ कर दोनों बहनें जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थीं. पिता को बेटियों की शादी की चिंता थी. थोड़े प्रयास और भागदौड़ से जयदेव ततमा को दोनों बेटियों के लिए अच्छे वर और घर मिल गए.

समय से दोनों बेटियों के हाथ पीले कर के वे अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए. इस के बाद ब्याहने के लिए एक बेटा अशोक ततमा शेष रह गया था. बाद में उन्होंने उस की भी शादी कर दी. अशोक और उस की पत्नी जयदेव की सेवा पूरी जिम्मेदारी से कर रहे थे.

जयदेव ततमा के जीवन की गाड़ी बड़े मजे से चल रही थी. न जाने उन की खुशहाल जिंदगी में किस की नजर लगी कि एक ही पल में सब कुछ मटियामेट हो गया. कलावती और मलावती के पतियों ने उन्हें हमेशा के लिए त्याग दिया. वे वापस आ कर मायके में रहने लगीं. यह बात जयदेव से सहन नहीं हुई और वे असमय काल के गाल में समा गए.

अचानक हुई पिता की मौत से घर का सारा खेल बिगड़ गया. दोनों बहनों की जिम्मेदारी भाई अशोक के कंधों पर आ गई थी. लेकिन दोनों स्वाभिमानी बहनें भाई पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं. वे खुद ही कुछ कर के अपना जीवनयापन करना चाहती थीं.

एक बात सोचसोच कर अशोक काफी परेशान रहता था कि उस की बहनों ने ससुराल में आखिर ऐसा क्या किया कि उन के पतियों ने उन्हें त्याग दिया. जबकि वह बहनों के स्वभाव से भलीभांति परिचित था. फिर उन के बीच ऐसी क्या बात हुई, यही जानने के लिए अशोक ने दोनों बहनों से बात की.

बहनों ने ईमानदारी से भाई को सब कुछ सचसच बता दिया. दोनों बहनों के सोशल एक्टिविस्ट होने वाली बात भाई अशोक को पहले से पता थी. अपनीअपनी ससुराल में रहते हुए कलावती और मलावती गृहस्थी संभालने के बावजूद दिल से समाजसेवा का भाव नहीं निकाल सकी थीं.

ससुराल में कुछ दिनों तक तो दोनों बहनें घूंघट में रहीं. लेकिन जल्दी ही घूंघट के पीछे उन का दम घुटने लगा. ये बहनें स्वच्छंद और स्वतंत्र विचारों वाली, न्याय के लिए संघर्ष करने वाली जुझारू महिलाएं थीं. वे जिस पेशे से जुड़ी हुई थीं, उस के लिए उन का घर की दहलीज से बाहर निकलना बहुत जरूरी था.

जब कलावती और मलावती घर से बाहर होती थीं तो उन्हें घर वापस लौटने में काफी देर हो जाया करती थी. दोनों के पतियों को उन का देर तक घर से बाहर रहना कतई पसंद नहीं था, उन का कामकाज भी. पति उन्हें समझाते थे कि वे समाजसेवा का अपना काम छोड़ दें और घर में रह कर अपनी गृहस्थी संभालें. समाजसेवा करने के लिए दुनिया में बहुत लोग हैं.

पतियों के साथ ही सासससुर भी उन के काम से खुश नहीं थे. वे उन के काम की तारीफ करने या उन की मदद करने के बजाय उन का विरोध करते थे. धीरेधीरे ससुराल वाले उन के कार्यों का विरोध करने लगे. उन की सोच में टकराव पैदा होता गया. कलावती और मलावती समाजसेवा के काम से पीछे हटने को तैयार नहीं थीं.

पतियों ने इस बात को ले कर ससुर जयदेव ततमा और साले अशोक से भी कई बार शिकायतें कीं. इस पर अशोक और उस के पिता ने कलावती और मलावती को काफी समझाया, पर अपनी जिद के आगे दोनों बहनों ने उन की बात भी नहीं मानी.

आखिर जयदेव ततमा और अशोक को जिस बात का डर था, वही सब हुआ. विचारों के टकराव और अहं ने पति और पत्नी के बीच इतनी दूरियां बना दीं कि वे एकदूसरे की शक्ल देखने को तैयार नहीं थे. एक छत के नीचे रहते हुए वे एकदूसरे से पराए जैसा व्यवहार करने लगे. रोज ही घर में पतिपत्नी के बीच झगड़े होने लगे थे.

रोजरोज के झगड़े और कलह से घर की सुखशांति एकदम छिन गई थी. पतियों ने कलावती और मलावती को अपने जीवन से हमेशा के लिए आजाद कर दिया. बाद में दोनों का तलाक हो गया. पते की बात यह थी कि कलावती और मलावती दोनों की जिंदगी की कहानी समान घटनाओं से जुड़ी हुई थी. दुखसुख की जो भी घटनाएं घटती थीं, दोनों के जीवन में समान घटती थीं.

यह बात सच है कि दुनिया अपनों से ही हारी हुई होती है. अशोक भी बहनों की कर्मकथा से हार गया था. पर वह कर भी क्या सकता था. वह उन्हें घर से निकाल भी नहीं सकता था.

सामाजिक लिहाज के मारे उस ने बहनों को अपना लिया और सिर छिपाने के लिए जगह दे दी. वे भाई के अहसानों तले दबी हुई थीं, लेकिन दोनों उस पर बोझ बन कर जीना नहीं चाहती थीं.

ऐसा नहीं था कि वे दोनों दुखी नहीं थीं. वे बहुत दुखी थीं. अपना दुख किस के साथ बांटें, समझ नहीं पा रही थीं. वे जी तो जरूर रही थीं, लेकिन एक जिंदा लाश बन कर, जिस का कोई वजूद नहीं होता. पति के त्यागे जाने से ज्यादा दुख उन्हें पिता की मौत का था.

कलावती और मलावती ने भाई से साफतौर पर कह दिया था कि वे उस पर बोझ बन कर नहीं जिएंगी. जीने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगी.

दोनों बहनें फिर से समाजसेवा की डगर पर चल निकलीं. अब उन पर न तो कोई अंकुश लगाने वाला था और न ही टीकाटिप्पणी करने वाला.

वे दोनों घर से सुबह निकलतीं तो देर रात ही घर वापस लौटती थीं. सोशल एक्टिविटीज में दिन भर यहांवहां भटकती फिरती थीं. अशोक बहनों के स्वभाव को जान चुका था. वह भी उन पर निगरानी नहीं रखता था. उसे अपनी बहनों और उन के चरित्र पर पूरा भरोसा था कि वे कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगी, जिस से समाज और बिरादरी में उसे शर्मिंदा होना पड़े.

लेकिन गांव के उस के पड़ोसियों खासकर वीरेंद्र सिंह उर्फ हट्टा, लक्ष्मीदास उर्फ रामजी, बुद्धू शर्मा और जितेंद्र शर्मा को कलावती और मलावती के चरित्र पर बिलकुल भरोसा नहीं था.

दोनों बहनों के चरित्र पर लांछन लगाते हुए वे उन्हें पूरे गांव में बदनाम करते थे. वे कहते थे कि ततमा की दोनों बेटियां पेट की आग बुझाने के लिए बाजार में जा कर धंधा करती हैं. धंधे की काली कमाई से दोनों के घरों में चूल्हे जलते हैं. धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल चुकी थी. उड़तेउड़ते कुछ दिनों बाद यह बात कलावती और मलावती तक आ पहुंची.

सुन कर दोनों बहनों के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई. सहसा उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्होंने जो सुना है, वह सच है. जबकि उन का चरित्र एकदम पाकसाफ था. अपने चरित्र को ले कर दोनों बहनों ने जब गांव वालों की बातें सुनीं, तो वे एकदम से परेशान हो गईं.

वैसे भी किसी चरित्रवान के दामन पर ये दाग किसी गहरे जख्म से कम नहीं थे. दोनों ने फैसला किया कि उन्हें नाहक बदनाम करने वालों को इस की सजा दिलवा कर दम लेंगी, चाहे वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो. उन्होंने पता लगा लिया कि उन्हें बदनाम करने वाले उन के पड़ोसी वीरेंद्र, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र थे.

जिद की आग में पकी कलावती और मलावती ने वीरेंद्र, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा की कुंडली तैयार की. गांव के चारों बाशिंदे ग्रामप्रधान के भरोसेमंद प्यादे थे. प्रधान के रसूख की बदौलत वे कूदते थे.

चारों ही प्रधान की ताकत के बल पर असामाजिक कार्यों को अंजाम देते थे. ये बातें दोनों बहनों को पता चल गई थीं. दोनों ने आरटीआई के माध्यम से ग्राम प्रधान और उन के चारों प्यादों के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर के वीरेंद्र सिंह और लक्ष्मीदास के खिलाफ जलालगढ़ थाने में मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

वीरेंद्र और लक्ष्मीदास को जेल भिजवाने के बाद दोनों बहनें शांत नहीं बैठीं. इस के बाद उन्होंने बुद्धू और जितेंद्र शर्मा को जेल भिजवा दिया. कुछ दिनों बाद वीरेंद्र और लक्ष्मीदास जमानत पर जेल से रिहा हुए तो दोनों बहनों ने फिर से उन के खिलाफ एक नया मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन लोगों को फिर से जेल जाना पड़ा. इंतकाम की आग में जलती कलावती और मलावती ने चारों के खिलाफ ऐसी जमीन तैयार की कि उन के दिन जेल की सलाखों के पीछे बीत रहे थे.

वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास, बुद्धू और जितेंद्र शर्मा बारबार जेल जाने से परेशान थे. समझ में नहीं आ रहा था कि कलावती और मलावती नाम की दोनों बहनों से कैसे छुटकारा पाया जाए. वे लोग खतरनाक योजना बनाने लगे. दिलीप शर्मा, विनोद ततमा, प्रकाश ततमा,सोनू शर्मा, रामलाल शर्मा, विष्णुदेव शर्मा, पप्पू शर्मा, उपेन शर्मा, इंदल शर्मा, सुनील शर्मा, सतीश शर्मा और बेचन शर्मा उन का साथ देने को तैयार हो गए.

वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास और उस के सहयोगियों ने फैसला कर लिया कि जब तक दोनों बहनें जिंदा रहेंगी, तब तक उन्हें चैन की सांस नहीं लेने देंगी. उन दोनों को मौत के घाट उतारने में ही सब की भलाई थी. घटना से करीब 5 दिन पहले सब ने योजना बना ली.

वीरेंद्र सिंह और उस के साथियों ने कलावती और मलावती के खिलाफ खतरनाक षडयंत्र रच लिया था. उन्होंने उन की रेकी करनी शुरू कर दी.

रेकी करने के बाद उन लोगों ने दोनों बहनों की हत्या करने की रूपरेखा तैयार कर ली. योजना में तय हुआ कि दोनों बहनों की हत्या के बाद उन के सिर धड़ से अलग कर के अलगअलग जगहों पर फेंक दिया जाएगा ताकि पुलिस आसानी से लाशों की शिनाख्त न कर सके.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. बात 23 जून, 2018 के अपराह्न 2 बजे की थी. वीरेंद्र ने अपने सहयोगियों को दोनों बहनों पर नजर रखने के लिए लगा दिया था. दोपहर 2 बजे के करीब कलावती और मलावती घर से जलालगढ़ बाजार जाने के लिए निकलीं.

दोनों ने अपने भतीजे मनोज से बता दिया था कि वे जलालगढ़ बाजार जा रही हैं. वहां से कुछ देर बाद लौट आएंगी. दोनों के घर से निकलते ही इस की सूचना किसी तरह वीरेंद्र सिंह तक पहुंच गई.

वीरेंद्र सिंह ने सहयोगियों को सतर्क कर दिया कि दोनों जलालगढ़ बाजार के लिए घर से निकल चुकी हैं. चक हाट से जलालगढ़ जाने वाले रास्ते में कुछ हिस्सा सुनसान और जंगल से घिरा हुआ था. कलावती और मलावती जब सुनसान रास्ते से जलालगढ़ बाजार की ओर जा रही थीं कि बीच रास्ते में वीरेंद्र सिंह, लक्ष्मीदास, बुद्धू शर्मा, जितेंद्र शर्मा सहित 12 और सहयोगियों ने उन का रास्ता घेर लिया.

वे सभी दोनों बहनों को जबरन उठा कर बिलरिया घाट ले गए. वीरेंद्र और उस के साथियों ने मिल कर दोनों बहनों को तेज धार वाले चाकू से गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया.

इस के बाद दोनों के सिर धड़ से काट कर अलग कर दिए गए. फिर दोनों के कटे सिर घाट के किनारे जमीन खोद कर दबा दिए. उस के बाद बाकी शरीर को वहां से करीब 500 मीटर दूर ले जा कर झाडि़यों में फेंक कर अपनेअपने घरों को चले गए.

वीरेंद्र और उस के साथियों ने बड़ी चालाकी के साथ घटना को अंजाम दिया, लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा दिनों तक नहीं बच सकता.

एक न एक दिन कानून के लंबे हाथ अपराधी के गिरेहबान तक पहुंच ही जाता है. इसी तरह वे सब भी कानून के हत्थे चढ़ गए. 4 आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस ने फरार 12 आरोपियों को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक गिरफ्तार 16 आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था. गिरफ्तार आरोपियों में से किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. वीरेंद्र और उस के साथियों ने अगर सूझबूझ के साथ काम लिया होता तो उन्हें ऐसे दिन देखने को नहीं मिलते.  ?

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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