आज की यंग जेनरेशन उन्हे एक्ट्रेस आलिया भट्ट की मां के रूप में भी जानती हैं. पिछले साल रिलीज हुई फिल्म ‘‘राजी” में उन्होंने एक कश्मीरी मां के किरदार में नजर आयी थीं. हम बात कर रहे हैं टैलेंटेड एक्ट्रेस सोनी राजदान की जो मूलतः कश्मीरी पंडित हैं. लेकिन इंग्लैंड में पली बढ़ी हैं. इन दिनों वो डायरेक्टर अश्विन कुमार की फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ को लेकर चर्चा में है. जो 5 अप्रैल को रिलीज होगी. इस फिल्म में वो एक बार फिर वह कश्मीरी महिला के किरदार में नजर आएंगी.

पेश है सोनी राजदान के साथ ‘‘सरिता’’पत्रिका के लिए हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश...

सवाल: फिल्म ‘‘36 चौरंगी लेन’’से लेकर ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’तक के सिनेमा में आपने क्या बदलाव देखा? आपको क्या लगता है कि 38 सालों में सिनेमा कहां से कहां पहुंचा?

जवाब: धीरे-धीरे काफी कुछ बदलाव आ गया है. मेरी राय में भारतीय सिनेमा में बदलाव की  शुरुआत फिल्म ‘‘रंग दे बसंती’’ से हुई थी. क्योकि मुझे याद है कि उस वक्त बौलीवुड के एक बहुत बड़े और फेमस फिल्म क्रिटिक (मैं उनका नाम लेकर उन्हें बेवजह शर्मिंदा नहीं करना चाहती) ने दावा किया था कि अगर फिल्म ‘रंग दे बसंती’ सफल हो गयी, तो वह अपना नाम बदल देंगे.

उसी वक्त मैंने अपने पति व फिल्मकार महेश भट्ट से कहा कि अब इस फिल्म आलोचक को 100 प्रतिशत अपना नाम बदलना पड़ेगा. क्योंकि यह फिल्म सफलता के झंडे जरूर गाड़ेगी. हुआ भी यही फिल्म ‘‘रंग दे बसंती’’ को मिली सफलता से पूरा बौलीवुड सकते में आ गया था. पहली बार बौलीवुड को अहसास हुआ था कि दर्शक बदल रहा है और उसे इस तरह की फिल्में दी जानी चाहिए.

इतना ही नहीं जब हमने ‘36 चौरंगी लेन’ या ‘सारांश’ की थी, तब भी हमें यकीन था कि यह फिल्में पसंद की जाएंगी. ‘सारांश’ तो सेमी कमर्शियल फिल्म थी. मगर ‘‘36 चौरंगी लेन’’ पूरी तरह से आर्ट फिल्म थी, लेकिन दर्शकों ने इन दोनों फिल्मों को पसंद किया था.

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