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Jammu Kashmir विधानसभा चुनाव : घाटी की सियासत में चूकी भाजपा

आखिरकार भाजपा घाटी की सियासत में बुरी तरह चूक गई. धारा 370 हटा कर ‘नया कश्मीर’ का वादा करने वाली भाजपा, कश्मीरी पंडितों को घर वापसी का सपना दिखाने वाली भाजपा और अराजकता और अशांति फैलाने के नाम पर क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं को लम्बे समय तक नजरबंद रखने वाली भाजपा कश्मीरी जन के मिजाज को भांपने में पूरी तरह असफल हुई.

 

जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को नकार कर अपना मत नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन की झोली में डाल दिया. वहीं क्षेत्रीय पार्टियों में किसी को दो तो किसी को चार सीटों पर विजय हासिल हुई है. पीडीपी और अवामी इत्तेहाद पार्टी जैसे दल इस बार किंगमेकर की भूमिका में आ गए हैं. जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में पीडीपी ने भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाई थी.

इलेक्शन कमीशन की वेबसाइट के अनुसार जम्मू कश्मीर में 42 सीटों पर नेशनल कांफ्रेस, 29 सीटों पर बीजेपी, 6 सीटों पर कांग्रेस 3 पर पीडीपी और 8 पर अन्यों को जीत हासिल हुई है. चुनाव से पहले नेशनल कांफ्रेस और कांग्रेस का गठबंधन था तो दोनों की सीटें मिला कर 48 का आंकड़ा बनता है जो बहुमत के 46 सीटों के आंकड़े को पार करता है. इस लिहाज से माना जा रहा है कि यह दोनों पार्टियां राज्य में सरकार बना लेंगी.

लेकिन इस चुनाव से यह समझ आया है कि भारत में अब चुनाव बाईपोलर हो रहे हैं. जनता 2 धड़ों के बीच ही चुनाव चाह रही है और इन दोनों को भाजपा और कांग्रेस लीड कर रही हैं. क्षेत्रीय पार्टियां सभी राज्यों में सिकुड़ती जा रही हैं. कहीं कहीं तो क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व ही समाप्त होता नजर आ रहा है. दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है, और वह बांटो और राज करो की नीति पर चलने वाली भाजपा को हर जगह कड़ी टक्कर दे रही है.

उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद जम्मू और कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य नाटकीय रूप से बदलता रहा है. जम्मू और कश्मीर की विधानसभा सीटें 1957, 1966, 1975 और 1995 में परिसीमन के कई दौर से गुजर चुकी हैं. आखिरी प्रक्रिया 1981 की जनगणना पर आधारित थी. उसने 1996 के राज्य चुनावों की नींव रखी थी. 2022 में हुए परिसीमन से विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ कर 90 हो गयी. जम्मू के सांबा, राजौरी और कठुआ जिलों में नए निर्वाचन क्षेत्र जोड़े गए. कश्मीर में कुपवाड़ा को एक अतिरिक्त सीट मिली. बीते एक दशक के राजनीतिक बदलाव के बाद, जम्मू और कश्मीर ने आखिरकार 2024 में एक बार फिर विधानसभा चुनाव का मुंह देखा. अब देश के अन्य राज्यों की तरह यहां की जनता भी कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व में अपनी नई सरकार, नई शासन व्यवस्था और उसमें अपनी जगह को देखने को बेताब है.

इस बात का विश्लेषण जरूर होना चाहिए कि जम्मू कश्मीर के लिए लम्बे समय से इतनी मशक्कत करने, इतनी उठापटक करने, लोगों को जेल भेजने, लम्बे समय तक नजरबंद रखने, आतंकवाद मुक्त नया कश्मीर गढ़ने का वादा करने के बाद भी आखिर भाजपा को वहाँ की जनता ने पटखनी क्यों दी?

गौरतलब है कि 2019 में केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 में तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक के कार्यकाल में (सत्यपाल मलिक ने अगस्त 2018 से 30 अक्टूबर, 2019 तक कार्य किया.) अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया था और इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था. इस महत्वपूर्ण बदलाव के बाद सभी प्रशासनिक और शासन संबंधित निर्णयों की देखरेख उप-राज्यपाल को सौंप दी गयी थी, जो इस क्षेत्र पर केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण को दर्शाता है. 2019 के बाद से उप-राज्यपाल के पास पुलिस और भूमि संबंधित निर्णयों सहित प्रमुख क्षेत्रों की कई अहम शक्तियां निहित हो गयीं. विशेष राज्य का दर्जा समाप्त होने के बाद गिरीश चंद्र मुर्मू पहले उप-राज्यपाल थे जिन्हें नए पुनर्गठित केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर का प्रबंधन करने के लिए नियुक्त किया गया. वे 31 अक्टूबर, 2019 से लेकर 6 अगस्त, 2020 तक कार्यरत रहे. उनके कार्यकाल ने एक नए प्रशासनिक युग की शुरुआत हुई. एलजी ने कई जिम्मेदारियां संभालीं जो पहले राज्य सरकार द्वारा प्रबंधित की जाती थीं. मुर्मू के जाने के बाद, मनोज सिन्हा को 7 अगस्त, 2020 को उप-राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया. लेकिन इन उप-राज्यपाल का काम घाटी के लोगों की समझ से परे रहा. उनकी अपनी रोजमर्रा की समस्याओं को सुनने और उनका निस्तारण करने वाला कोई नहीं था. अगर किसी की जमीन पर कब्जा हो गया या किसी की बात पुलिस नहीं सुन रही तो वह अपनी शिकायत लेकर सीधे उप-राज्यपाल के पास तो नहीं जा सकता. लिहाजा शासन से जनता का मोहभंग रहा.

Crime Story: रोटी के लिए मर्डर

सन 1974 में राजेश खन्ना मुमताज अभिनीत मनमोहन देसाई के निर्देशन में एक फिल्म आई थी ‘रोटी’. इस सुपरहिट फिल्म में राजेश खन्ना द्वारा निभाया गया पात्र मात्र एक रोटी की खातिर अपराधी बन गया था. इस रोटी फिल्म की तरह इस कहानी में भी एक नौकर रोटी के लिए रोजी नाम की अपनी मालकिन का कत्ल कर बैठा. इत्तफाक यह भी है कि रोटी फिल्म के नायक राजेश खन्ना की तरह इस नौकर का नाम भी राजेश ही है. प्रस्तुत कहानी पढ़ने के बाद पाठक यह तय करें कि फिल्म ‘रोटी’ या रोजी हत्याकांड में क्या ऐसा करना जरूरी था. क्या इस समस्या का कोई दूसरा समाधान या विकल्प नहीं हो सकता था?

राजेश उर्फ विलट पासवान गांव बथनी राम पट्टी, जिला मधुबनी, बिहार का रहने वाला था और पिछले लगभग डेढ़ साल से हरियाणा के जिला यमुनानगर के जगाधरी की न्यू जैन नगर कालोनी में रहने वाले राजिंदर सिक्का की कोठी पर काम कर रहा था.

राजिंदर सिक्का शहर के सब से बड़े उद्यमी और बालाजी स्टोन क्रेशर के मालिक थे. राजेश उस से पहले खिदराबाद स्थित आर.के. स्टोन क्रेशर में काम करता था.

 

वहां उसे कम तनख्वाह मिलती थी. इसलिए खिदराबाद से काम छोड़ कर वह राजिंदर सिक्का के यहां चला आया था. यहां उसे खानेपीने और रहने के अलावा 8 हजार रुपए मासिक वेतन मिलता था. राजिंदर सिक्का ने उसे अपनी कोठी के सामने वाले प्लौट में रहने  के लिए कमरा दे रखा था.

15 मई, 2019 की रात को राजेश को जल्दी सोना था. इस की वजह यह थी कि अगली सुबह यानी 16 तारीख को उसे जल्दी उठना था. क्योंकि 16 तारीख को राजिंदर सिक्का को पहले कचहरी और उस के बाद अपने क्रेशर पर जाना था. पिछले 20 दिनों से वह घर पर ही थे. वजह यह थी कि उन का औपरेशन हुआ था.

दरअसल राजिंदर सिक्का का वजन जरूरत से ज्यादा बढ़ रहा था, इसलिए डाक्टरों की सलाह पर उन्होंने अपना वजन कम करने के लिए औपरेशन करवाया था. बहरहाल 16 मई को राजेश 7 बजे उठ गया था.

सब से पहले उस ने कोठी में खड़ी कार धोई. उस के बाद राजेश ने राजिंदर सिक्का की ड्रेसिंग के बाद सब के लिए नाश्ता बनाया और परोसा. करीब पौने 11 बजे राजिंदर सिक्का अपने बेटे दीपांशु उर्फ मोंटी के साथ घर से निकल गए. घर पर राजेश के अलावा दीपांशु की पत्नी रोजी और उस का 7 महीने का बच्चा रह गए थे.

राजिंदर और दीपांशु के चले जाने के बाद राजेश ने पूरी कोठी की सफाई की, फिर वह छत के पंखों की सफाई करने लगा. यह सारा काम निपटाने के बाद वह सामने वाले प्लौट में कपड़े धोने चला गया. कपडे़ धो कर उन्हें मशीन में ड्राई कर सुखाना था. मशीन कोठी में रखी थी.

 

वह जब कपड़े ले कर कोठी पर पहुंचा, कोठी का दरवाजा अंदर से बंद था. दरवाजा खुलवाने के लिए उस ने रोजी को कई आवाजें दीं पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह काफी देर तक दरवाजा पीटता रहा. अंत में हार कर उस ने दीपांशु को फोन कर बताया कि मशीन में कपड़े सुखाने हैं पर भाभीजी दरवाजा नहीं खोल रही हैं.

दीपांशु ने उसे कहा कि वह रोजी को फोन करता है तब तक वह कपड़े कोठी के लौन में फैला दे. यह दोपहर डेढ़ बजे की बात है. इस के लगभग 10 मिनट बाद हिमांशु का फोन राजेश के फोन पर आया. दीपांशु ने कहा कि वह भी काफी देर से रोजी का फोन ट्राई कर रहा है पर वह फोन नहीं उठा रही. तुम कोठी में जा कर देखो, क्या बात है.

 

‘‘लेकिन मैं अंदर जाऊंगा कैसे,’’ राजेश ने कहा, ‘‘कोठी का गेट अंदर से बंद है. मैं ने इतना दरवाजा पीटा पर भीतर से कोई आवाज ही नहीं आई.’’

‘‘ठीक है, तुम किसी तरह दीवार फांद कर भीतर जाओ और जो बात हो मुझे तुरंत बताओ.’’ दीपांशु बोला.

दीपांशु के कहने पर राजेश कोठी की दीवार फांद कर भीतर गया. लेकिन भीतर का नजारा देख उस ने दीपांशु को फोन करने के साथसाथ शोर मचाना भी शुरू कर दिया. उस की चीखें सुन कर पड़ोसी दौड़े चले आए. पड़ोसियों ने जब भीतर झांक कर देखा तो उन के भी होश उड़ गए. उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम नंबर को 100 व एंबुलेंस कंट्रोल नंबर 102 पर 20 से ज्यादा बार फोन किया, लेकिन किसी ने भी फोन रिसीव नहीं किया.

तब तक राजिंदर सिक्का और दीपांशु भी वहां पहुंच गए थे. कंट्रोल रूम में जब किसी ने फोन नहीं उठाया तो वे लोग अर्जुन नगर पुलिस चौकी पहुंचे और मामले की जानकारी पुलिस को दे दी. मामला हाईप्रोफाइल फैमिली से जुड़ा होने के चलते एसपी कुलदीप यादव खुद मौके पर पहुंचे.

उन से पहले डीएसपी (हेडक्वार्टर) सुभाष, डीएसपी (जगाधरी) सुधीर व डीएसपी प्रदीप, जगाधरी सिटी एसएचओ राकेश, सीआईए-2 इंचार्ज श्रीभगवान यादव समेत अन्य पुलिस अधिकारियों के अलावा क्राइम टीम भी मौके पर पहुंच गई. यह घटना 16 मई, 2019 की है.

जगाधरी की न्यू जैन नगर कालोनी में रहने वाले स्टोन क्रेशर उद्यमी राजिंदर सिक्का के घर का दृश्य दिल दहला देने वाला था. किसी ने दीपांशु की पत्नी रोजी सिक्का की गला काट कर हत्या कर दी थी. फर्श पर चारों ओर खून ही खून फैला हुआ था. सोफे पर भी खून, यहां तक मृतका का गला काटते समय खून की धार दीवार से भी टकराई थी. जिस के ताजा छींटे इस बात की गवाही दे रहे कि हत्या हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है.

7 महीने का मासूम बच्चा अपनी मां की लाश के पास बैठ कर उस की छाती से लिपट कर रो रहा था. बाद में नौकर राजेश जब कमरे में आया तो उस ने बच्चे को संभाला.

 

घर के बाहर गली में भी खून बिखरा हुआ था. आशंका जताई जा रही थी कि हत्यारा वारदात को अंजाम देने के बाद दीवार फांद कर इसी रास्ते से बाहर भागा होगा, जिस से गली में खून के निशान बन गए थे. क्राइम टीम ने खून के छींटों की जांच की और जगहजगह से फिंगरप्रिंट उठाए.

हत्यारे का सुराग लगाने के लिए पुलिस ने घर में लगे सीसीटीवी कैमरों की भी जांच की. लेकिन सीसीटीवी कैमरे बंद मिले. जांच में पता चला कि सीसीटीवी कैमरे पिछले डेढ़ महीने से खराब थे.

इस के बाद पुलिस ने गली में घरों के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों  की जांच की. लेकिन अधिकतर कैमरे बंद मिले. हत्यारा किसी भी कैमरे में दिखाई नहीं दिया. राजिंदर सिक्का और उन के बेटे दीपांशु ने बताया कि उन्हें किसी प्रौपर्टी के पेपर बनवाने के लिए तहसील जाना था.

आज काम नहीं हुआ, तो आराम करने के लिए दोनों बापबेटे अपने क्रेशर चले गए थे. तभी नौकर राजेश का फोन आया था. बहरहाल जगाधरी सिटी पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रोजी के ब्लाइंड मर्डर की रिपोर्ट दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

इस केस को पुलिस हर छोटेबडे़ एंगल से देख रही थी. अब तक की तफ्तीश में जो सामने आया था, उस से यह माना जा रहा था कि इस घटना में किसी जानकार का हाथ हो सकता है, जिस ने घर में आसानी से घुस कर इत्मीनान से मर्डर किया और फरार हो गया.

सिक्का परिवार ने अब तक न तो किसी पर संदेह जताया था और न ही किसी के साथ अपनी निजी या कारोबारी दुश्मनी होना बताया था. दीपांशु और रोजी की शादी 28 फरवरी, 2018 को हुई थी. पुलिस इस में भी कोई पुराना ऐंगल ढूंढ रही थी.

एसपी कुलदीप यादव ने मामले की जांच के लिए सीआईए समेत 4 टीमें गठित कर दीं. लेकिन अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया था. घटनास्थल पर लूट या चोरी के चिह्न भी नहीं मिले थे.

प्रारंभिक जांच में मामला केवल रोजी की हत्या करने का ही सामने आया था. लेकिन जिस बेरहमी से हत्या की गई थी, उस से व्यक्तिगत रंजिश का होना साफ दिखाई दे रहा था. पुलिस टीमों ने क्राइम सीन को एक बार दोबारा बारीकी से चेक किया.

इस बार पुलिस ने सामने वाले उस प्लौट को भी चेक किया जिस में नौकर राजेश रहता था. पुलिस को वहां कुछ ऐसे सबूत मिले जिस की वजह से पुलिस सिक्का परिवार के नौकर राजेश को पूछताछ के लिए थाने ले गई.

 

दरअसल सीआईए-2 के इंचार्ज इंसपेक्टर श्रीभगवान यादव को पहले से ही नौकर राजेश पर कुछ शक था. यह शक उस के कमरे की तलाशी लेने के बाद और पुख्ता हो गया था.

पहला शक मर्डर के बाद जब उस के मालिक और पुलिस राजिंदर सिक्का की कोठी पर पहुंची तो नौकर राजेश भी दुखी होने का नाटक करते हुए जोरजोर से रोने लगा था. दूसरा शक दीपांशु से फोन पर बात करने के 10 मिनट बाद जब राजिंदर सिक्का ने उसे फोन पर कहा कि वह घर जा कर देखे, बहू फोन क्यों नहीं उठा रही.

इस पर राजेश ने बताया था कि वह जर्दा लेने के लिए आया है. अभी कोठी जा कर देख लेगा, क्या बात है. जबकि 10 मिनट पहले उस ने दीपांशु को बताया था कि वह कपड़े धो रहा है.

तीसरा शक और पुख्ता सबूत यह था कि जिस मकान में नौकर राजेश रहता था, वहां से कुछ ऐसे कपड़े बरामद हुए थे, जिन्हें उसी समय धोया गया था. वे पूरी तरह से गीले थे. शायद उन्हें जल्दी सुखाने के लिए ही राजेश को मशीन की जरूरत थी.

इस के अलावा पानी की टंकी के पास से एक साबुन भी बरामद हुआ था, जिस पर एक जगह हल्का खून लगा हुआ था. संभवत: उस साबुन से ही उस ने हाथ साफ किए थे. इंसपेक्टर भगवान सिंह यादव ने कपड़ों सहित बाकी सभी चीजों को कब्जे में ले कर लैब में भिजवा दिया था.

सीआईए स्टाफ-2 के कार्यालय में पूछताछ के दौरान नौकर राजेश पहले तो कई घंटे तक पुलिस वालों को घुमाता रहा. उस ने अपने एबनार्मल होने का ड्रामा भी किया. लेकिन पुलिस ने जब सख्ती दिखाई तो उस ने अपना गुनाह कबूल लिया.

उस ने रोजी सिक्का की हत्या की जो कहानी सुनाई उस पर विश्वास करना बहुत मुश्किल था. राजेश ने बताया कि उस ने रोजी की हत्या इसलिए की थी क्योंकि वह उसे कम खाना देती थी. यह सुन कर पुलिस अधिकारी चौंके. उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि क्या कोई रोटी के लिए किसी की इस तरह हत्या कर सकता है. बहरहाल राजेश से पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई इस प्रकार थी—

राजेश की मां का देहांत हो चुका था. उस के 5 भाईबहन थे. 3 भाई और 2 बहनें. उसे छोड़ कर बाकी सभी शादीशुदा थे. वह भी अपना घर बसाने के लिए पैसा कमाने अपने गांव से सैकड़ों किलोमीटर दूर जगाधरी आया था. वह पहले आर.के. क्रेशर खिदराबाद में नौकरी पर लगा था, इस के बाद वह राजिंदर सिक्का के पास नौकरी करने लगा.

सिक्का के यहां वह खुश था. यहां भरपेट खाने के साथ उसे अच्छा वेतन भी मिलता था. वह भी जीजान से सिक्का परिवार की सेवा करता था. नौकर और मालिकों के बीच सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक राजेश के जीवन में मुसीबतें किसी पहाड़ की तरह आ खड़ी हुई थीं.

एक दिन राजेश के पास उस के गांव से खबर आई कि उस के पिता का निधन हो गया है. वह अपने पिता से बहुत प्रेम करता था. 30 मार्च, 2019 को वह अपने पिता के निधन पर गांव गया और 19 अप्रैल को वह गांव से वापस अपनी नौकरी पर सिक्का परिवार में आ गया.

राजेश ने बताया कि दीपांशु साहब की शादी 28 फरवरी, 2018 को रोजी से हुई थी और उस की जिंदगी में असली समस्या उस घर में नई बहू के आने से ही शुरू हो गई थी. दीपांशु की शादी के पहले वह खुद कोठी में खाना बनाया करता था. पर शादी के दोढाई महीने बाद नई बहू रोजी ने खाना बनाना शुरू कर दिया था.

उसे रोजी के खाना बनाने से कोई एतराज नहीं था. उसे एतराज इस बात का था कि रोजी उसे कम खाना देती थी. उस ने इस बात की शिकायत राजिंदर और दीपांशु के अलावा रोजी से भी की थी.

लेकिन किसी ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और न उस की परेशानी को गंभीरता से समझा. अपने पिता की मौत के बाद गांव से वापस आने के बाद तो उस के खाने वाली समस्या ने और भी गंभीर रूप धारण कर लिया था.

रोजी उसे कम खानापीना देती थी. चाय भी छोटी सी प्याली में मिलती थी. उसे रात के खाने में अधिकांशत: दोपहर का बासी खाना दिया जाता था. खाना मांगने पर वह अकसर कहा करती थी, ‘तुम खाने के लिए जानवरों की तरह बोलते हो और जानवरों की तरह ही खाते हो.’

पिता के मरने के बाद राजेश के सामने यह समस्या आ खड़ी हुई थी कि रोजी उसे गिन कर 4-5 रोटियां देती थी, जिस में से एक रोटी वह अपने दिवंगत पिता के नाम की निकाल कर कुत्तों को खिला देता था. इसलिए उस की एक रोटी और कम होने लगी थी. पहले ही 4 रोटी से उस का पेट नहीं भरता था, अब तो उसे पता भी नहीं चलता था कि उस ने खाना खाया भी है या नहीं.

घटना वाले दिन 16 मई, 2019 को भी यही हुआ था. सुबह 7 बजे से काम करतेकरते दोपहर को जब उसे भूख लगी तो उस ने खाना मांगा. इस पर मालकिन रोजी ने उस से कहा, ‘‘खाना अभी बना नहीं है. दीपांशु के आने के बाद बनेगा. तभी मिलेगा.’’

इस पर राजेश ने हाथ जोड़ कर निवेदन करते हुए कहा, ‘‘भाभीजी, साहब लोग पता नहीं कब तक आएंगे, लेकिन भूख से मेरी जान निकल रही है. यदि आप खाना नहीं बना सकतीं तो मैं खुद बना कर खा लूंगा.’’

रोजी ने तब उसे रटेरटाए शब्द सुनाए कि तुम खाने के लिए जानवरों की तरह बोलते हो और जानवरों की तरह खाते हो. हर बार यह बातें सुनतेसुनते इस बार राजेश को गुस्सा आ गया था. बात उस की बरदाश्त से बाहर चली गई थी.

वह उसी समय रसाई में गया और वहां से सब्जी काटने वाला चाकू उठा लाया. उस समय रोजी कमरे में बैठी मोबाइल फोन पर गेम खेलने में व्यस्त थी. दबे पांव वह उस के पीछे पहुंचा और बाएं हाथ से उस का गला कस कर पकड़ लिया और दाहिने हाथ से गरदन पर वार चाकू से करने लगा.

अचानक हुए इस हमले से रोजी घबरा गई. फिर जल्द ही उस ने अपने आप को उस के चंगुल से छुड़ाने के प्रयास शुरू कर दिए. चीखनेचिल्लाने के साथ उस ने अपनी गरदन छुड़ाने के लिए राजेश के हाथ पर अपने दांतों से काटना शुरू कर दिया था. उस ने राजेश के हाथ की 2 अंगुलियों पर अपने दांत गड़ा दिए.

इस के बावजूद भी राजेश ने पकड़ ढीली नहीं की. अधिक देर तक संघर्ष न कर सकी. तब तक राजेश ने चाकू से उस की गरदन रेत दी. इस के बाद वह कटे हुए वृक्ष की तरह लहराते हुए फर्श पर गिरी और कुछ देर तड़पने के बाद हमेशा के लिए शांत हो गई.

रोजी की हत्या करने के बाद उस ने चाकू को धो कर रसोई में रख दिया और वहां से फरार हो गया. बड़े गेट पर खून के निशान न आएं इसलिए वह छोटे गेट के ऊपर से कूद कर बाहर अपने कमरे में पहुंच गया. उस ने खून से सने कपड़े भी धो दिए. किसी को उस पर शक न हो इस के लिए उस ने खुद ही रोजी के पति दीपांशु उर्फ मोंटी को फोन कर के बताया था कि उसे वाशिंग मशीन में कपड़े सुखाने हैं, लेकिन भाभी जी गेट नहीं खोल रही हैं.

नौकर राजेश ने रोजी की हत्या प्रोफेशनल हत्यारों जैसे तरीके से की थी. राजेश के बयान कलमबद्ध करने के बाद जगाधरी सिटी एसएचओ इंसपेक्टर राजेश और इंसपेक्टर श्रीभगवान यादव ने 18 मई, 2019 को आरोपी को एसीजेएम (जगाधरी) गगनदीप मित्तल की अदालत में पेश कर 5 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान उसे मनोरोग चिकित्सक को भी दिखाया पर किसी ने यह बात दावे के साथ नहीं कही कि वह साइको है या नहीं.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद 21 मई, 2019 को अभियुक्त राजेश को जब दोबारा अदालत में पेश किया गया तब अचानक इस मामले में एक चौंका देने वाला मोड़ सामने आया.

शहर के चर्चित हाईप्रोफाइल रोजी सिक्का मर्डर केस के आरोपी नौकर राजेश उर्फ विलट पासवान ने एक बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि उस ने रोजी की हत्या उस के ससुर राजिंदर सिक्का के कहने पर की थी. राजिंदर सिक्का ने उसे 50 हजार रुपए का लालच दे कर यह हत्या करवाई थी.

दोपहर बाद आरोपी को एसीजेएम गगनदीप मित्तल की अदालत में पेश किया गया. जब वह अदालत से बाहर निकला तो उस ने सीआईए-2 स्टाफ की मौजूदगी में पूरी मीडिया के सामने अपने मालिक पर कई गंभीर आरोप जड़े. उस ने कहा कि उस पर दबाव बनाया गया था कि वह रोजी की हत्या करे. यह सारी योजना हत्या से एक रात पहले ही बना ली गई थी.

नौकर राजेश के अनुसार राजिंदर सिक्का ने उस से कहा था कि घर में इतना पैसा आता है पर पता ही नहीं चलता कि वह जाता कहां है. उन्हें पैसों का कोई हिसाबकिताब नहीं मिलता.

राजेश के अनुसार उस ने रोजी की हत्या करने से मना कर दिया था. तब उन्होंने उसे धमकी दी कि यदि तू यह काम नहीं करेगा तो तू मरेगा. इसलिए अपनी सुरक्षा के लिए उस ने यह काम किया था.

राजिंदर सिक्का ने उसे विश्वास दिलाया था कि तुझे कुछ नहीं होगा. यदि कोई बात होती है तो तू रोजी द्वारा रोटी कम देने की बात बता देना. राजेश के अनुसार इस काम के लिए उसे कोई एडवांस धनराशि नहीं दी गई थी. यह कहा गया था कि अगले साल जब तुम शादी करोगे तो तुम्हें तुम्हारे 50 हजार रुपए मिल जाएंगे.

नौकर के इस सनसनीखेज बयान से केस में नया ट्विस्ट आ गया था. पुलिस जहां अब राजिंदर सिक्का को हिरासत में ले कर पूछताछ करेगी तो मृतका के पति दीपांशु उर्फ मोंटी ने सीधेसीधे पुलिस पर आरोप लगाया कि वह जानबूझ कर उस के पिता को फंसाने की कोशिश कर रही है.

उधर 4 जून, 2019 को रोजी के पिता जनकराज और मां सीमारानी ने एसपी को दी गई शिकायत में आरोप लगाया कि दीपांशु ने 9 मई, 2019 को उन्हें फोन कर के 10 लाख रुपए की मांग की थी. जिस पर उन्होंने उस से कहा कि उन्होंने अपनी जमीन का सौदा कर दिया है, जिस की रजिस्ट्री अभी नहीं हुई है. रजिस्ट्री होते ही वह पैसे दे देंगी.

16 मई यानी घटना वाले दिन दीपांशु ने फिर फोन कर के पैसे मांगे थे. मना करने पर कुछ घंटे बाद ही रोजी की हत्या की खबर आ गई. उन्होंने आरोप लगाया कि बेटी की हत्या में राजिंदर सिक्का और दीपांशु भी शामिल हैं. उन्होंने केस की सीबीआई जांच कराने की मांग की.

पुलिस की तरफ से नौकर राजेश द्वारा दिए गए बयानों की पुलिस ने जांच शुरू कर दी गई, पर कथा संकलन तक इस मामले में कुछ नया सामने नहीं आया था.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद अभियुक्त राजेश को न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया और पुलिस मामले की जांच कर रही थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फैस्टिवल के सीजन में करें Festival Theme Party

बर्थडे का मौका हो, पास होने की खुशी या फिर छोटीमोटी सफलता, पार्टी का निराला अंदाज देखने को मिलता है. इन पार्टियों में अगर theme का तड़का लगा दिया जाए तो उन का मजा कई गुना बढ़ जाता है. थीम रखने से हर आगंतुक खुद को पार्टी का खास हिस्सा समझता है.

ऐसे ही त्योहारों का भी हमारे जीवन में महत्त्व है. त्योहार आते ही मन मयूर नाच उठता है. त्योहारों को भी थीम से जोड़ दिया जाए तो त्योहारों का मजा भी दोगुना हो जाएगा. इसी को कहते हैं festival theme party . तो फैस्टिवल के इस सीजन में उठाइए फैस्टिवल थीम पार्टी का मजा.

इन्विटेशन हो जोरदार

पार्टी को जोरदार तरीके से आयोजित करना चाहते हो, लेकिन इन्विटेशन फीका हो तो मजा नहीं आता. ऐसे में आप इन्विटेशन का तरीका बदल कर पार्टी को ज्यादा मजेदार बना सकते हैं. जैसे, आप इन्वाइट करने के लिए कार्ड की जगह हैंकी का यूज करें. इस में खास बात यह हो कि हैंकीज का कलर डिफरैंट हो यानी जिस कलर का हैंकी उसी कलर की थीम ड्रैस. इस से जहां पार्टी में डिफरैंट रंगों की बहार होगी वहीं सब में पार्टी को ले कर ऐक्साइटमैंट रहेगा.

डौकोरेशन से लाएं पार्टी में जान

जब फैस्टिव थीम पार्टी है तो डैकोरेशन भी फैस्टिवल के हिसाब से ही होनी चाहिए. आप दीवाली के मौके पर रंगोली, झालर, लाइट्स व दीयों से डैकोरेशन कर हर किसी के मन में फैस्टिवल फील करवा सकते हैं. इस के लिए आप पार्टी से एक दिन पहले ही सभी फ्रैंड्स मिल कर इस की तैयारी करें ताकि पार्टी वाले दिन आप को बाकी चीजें मैनेज करने का टाइम मिल सके. इस से पार्टी में नयापन आ पाएगा.

ड्रैसेज हो थीम बेस्ड

थीम पार्टीज को ले कर युवा काफी क्रेजी रहते हैं क्योंकि इस में उन्हें थीम के अनुसार खुद को रैडी करने का मौका जो मिलता है और इसे वे बाकी पार्टीज से ज्यादा ऐंजौय भी कर पाते हैं. ऐसे में आप पहले से सभी फ्रैंड्स मिल कर किस थीम पर पार्टी और्गेनाइज करनी है, डिसाइड कर लें. जैसे फिल्मी थीम. इस में आप अपने फेवरिट ऐक्टर व ऐक्ट्रैस के लुक में खुद को पे्रजैंट कर रोमांचित हो सकते हैं. यही नहीं, आप डिस्को थीम, ग्लो इन द नाइट थीम भी रख सकते हैं.

केक हो खास

पार्टी हो और केक न हो तो पार्टी अधूरीअधूरी सी लगती है. और जब बात हो थीम पार्टी की, तो केक का स्टाइलिश और डिजाइनर होना तो बनता ही है. आप थीम बेस्ड केक डिजाइन करवा कर पार्टी को नया लुक दे सकते हैं.

पार्टी में डांस का तड़का

पार्टी में अगर हर चीज परफैक्ट हो लेकिन गानाबजाना न हो तो आने वाले को मजा नही आता. ऐसे में आप पार्टी में सभी की पसंद के फेवरिट गानों की लिस्ट बना कर उन्हें प्ले करवाएं. और अगर फिल्मी थीम पर पार्टी और्गेनाइज की गई है तो जिस ऐक्टरऐक्ट्रैस के कौस्ट्यूम्स पहने हैं उन्हीं के हिट गानों पर थिरकें.

खाने की हों डिफरैंट डिशेज

पार्टी में एकदो डिशेज रखने से बात नहीं बनेगी बल्कि ऐंटरटेनमैंट के साथसाथ डिशेज भी एक से बढ़ कर एक होनी चाहिए. इस के लिए अगर आज घर पर पार्टी का आयोजन कर रहे हैं तो हर एक फ्रैंड से एक डिश बना कर लाने को कहें. इस से वैराइटी भी बढ़ेगी और मजा भी डबल होगा.

बैस्ट परफौर्मर को दें गिफ्ट

पार्टी के दौरान जो भी फन रिलेटिड ऐक्टिविटीज हुई हैं उन में से बेस्ट परफौर्मर को गिफ्ट दें और साथ ही, जोक्स  एकदूसरे को गुदगुदाएं भी.

इन बातों को न करें इग्नोर

पार्टी में नशीले पदार्थों से दूर रहें.

गर युवतियां भी पार्टी में शामिल हैं उन्हें टाइम पर घर छोड़ें.

लेटनाइट तक पार्टी न करें.

पार्टी की सारी जानकारी अपने पेरैंट्स को दें.

सिर्फ फ्रैंड्स ही पार्टी में इन्वाइटेड हों.

बजट के भीतर ही पार्टी करें, ओवर खर्च न करें.

पार्टी में किसी भी फ्रैंड को नीचा दिखाने की कोशिश न करें. इस तरह आप पार्टी को अच्छे से ऐंजौय कर पाएंगे.

Diwali 2024: पटाखों के धुंए से होता है जान को खतरा

ज्यादातर लोगों का मानना है कि बिना पटाखों के दीवाली अधूरी होती है, लेकिन लोग यह नहीं समझते कि पटाखों से निकलने वाला धुआं न केवल हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बहुत हानिकारक है. पटाखे में भरा बारूद अस्थमा के रोगियों के लिए जानलेवा होता है. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हाल के फैसले में पटाखों का प्रयोग करने की इजाजत दीवाली की रात आठ से दस बजे के बीच दी है. मात्र दो घंटे. लेकिन अदालत का फैसला मानने वाले कम ही हैं. दशहरे के बाद से ही देश में पटाखे जलने शुरू हो जाते हैं. प्रदूषण के कारण फेस्टिव सीजन का सारा मजा खत्म हो जाता है. बाजारों में लोग नाक पर मास्क और रूमाल बांधे नजर आते हैं. बच्चे और बुजुर्ग खांस-खांस कर परेशान होते हैं.

रोशनी का त्योहार दीवाली अपने साथ बहुत सारी खुशियां लेकर आता है, लेकिन दमा, सीओपीडी या एलर्जिक रहाइनिटिस से पीड़ित मरीजों की समस्या इन दिनों काफी बढ़ जाती है. दमा के मरीज या आम व्यक्तियों पर पटाखों के धुएं का असर काफी बुरा होता है. पटाखों में मौजूद छोटे-छोटे बारूद के कण सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिसका असर फेफड़ों पर पड़ता है. पटाखों के धुंए से फेफड़ों में सूजन आ सकती है, जिससे फेफड़े अपना काम ठीक से नहीं कर पाते और हालात यहां तक भी पहुंच सकते हैं कि आर्गेन फेलियर और मौत तक हो सकती है. ऐसे में दमा और सांस के मरीज धुएं से बचने की कोशिश करें.

पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा या दमा का अटैक आ सकता है. हानिकारक विषाक्त कणों के फेफड़ों में पहुंचने से ऐसा हो सकता है, जिससे व्यक्ति को जान का खतरा भी हो सकता है. ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हों, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए.

 

पटाखों के धुएं से हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है. पटाखों में मौजूद लैड सेहत के लिए खतरनाक है, इसके कारण हार्टअटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है. जब पटाखों से निकलने वाला धुंआ सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में रुकावट आने लगती है. दिमाग को पर्याप्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है.

बच्चे और गर्भवती महिलाओं को तो पटाखों के शोर व धुएं से बचकर रहना चाहिए. पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों में सांस की समस्याएं पैदा करता है. पटाखों में हानिकारक रसायन होते हैं, जिनके कारण बच्चों के शरीर में टौक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है और उनके विकास में रुकावट पैदा करता है. पटाखों के धुंऐ से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को ऐसे समय में घर पर ही रहना चाहिए.

पटाखा व्यापारी पटाखे को रंग-बिरंगा बनाने के लिए इनमें रेडियोएक्टिव और जहरीले पदार्थ भरते हैं. ये पदार्थ जहां एक ओर हवा को प्रदूषित करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे कैंसर होने की आशंका भी रहती है. इस धुएं से हवा में पीएम बढ़ जाता है. जब लोग इन प्रदूषकों के संपर्क में आते हैं तो उन्हें आंख, नाक और गले में जलन पैदा हो सकती हैं. पटाखों का धुआं, सर्दी जुकाम और एलर्जी का कारण बन सकता है और इस कारण छाती व गले में कन्जेशन भी हो सकता है.

पटाखों के जलने से कई खतरनाक गैसें वातावरण में उत्सर्जित होती हैं. धूल के कणों पर कौपर, जिंक, सोडियम, लैड, मैग्निशियम, कैडमियम, सल्फर औक्साइड और नाइट्रोजन औक्साइड जमा हो जाते हैं. इन गैसों के बहुत हानिकारक प्रभाव होते हैं. इसमें कौपर से सांस की समस्याएं होती है तो वहीं कैडमियम खून की औक्सीजन ले जाने की क्षमता को कम करता है, जिससे व्यक्ति एनिमिया का शिकार हो सकता है. जिंक की वजह से उल्टी व बुखार व लेड से तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचता है. मैग्निशियम व सोडियम भी सेहत के लिए हानिकारक है.

दीवाली के दौरान पटाखों व प्रदूषण को लेकर बीमार व्यक्तियों को बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. छोटे बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों को अपने आप को बचा कर रखना चाहिए. दिल के मरीजों को भी पटाखों से बचकर रहना चाहिए. इनके फेफड़े बहुत नाजुक होते हैं. कई बार बुजुर्ग और बीमार व्यक्ति पटाखों के शोर के कारण दिल के दौरे का शिकार हो जाते हैं. कुछ लोग तो शॉक लगने के कारण मर भी सकते हैं. छोटे बच्चे, मासूम जानवर और पक्षी भी पटाखों की तेज आवाज से डर जाते हैं. पटाखे बीमार लोगों, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए खतरनाक हैं. इनसे ध्वनि प्रदूषण भी होता है. यह शोर मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है. शोर या आवाज हवा से फैलती है. इसे डेसिबल में नापा जाता है. 100 डेसिबल से ज्यादा आवाज का बुरा असर हमारी सुनने की क्षमता पर पड़ता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शहरों के लिए 45 डेसिबल की आवाज अनुकूल है, लेकिन भारत के बड़े शहरों में शोर का स्तर 90 डेसिबल से भी अधिक है. मनुष्य के लिए उचित स्तर 85 डेसिबल तक ही माना गया है. अनचाही आवाज मनुष्य पर मनोवैज्ञानिक असर पैदा करती है. शोर तनाव, अवसाद, उच्च रक्तपचाप, सुनने में परेशानी, टिन्नीटस, नींद में परेशानी आदि का कारण बन सकता है. तनाव और उच्च रक्तचाप सेहत के लिए घातक है, वहीं टिन्नीटस के कारण व्यक्ति की याददाश्त जा सकती है, वह अवसाद/डिप्रेशन का शिकार हो सकता है. ज्यादा शोर दिल की सेहत के लिए अच्छा नहीं है. शोर में रहने से रक्तचाप पांच से दस गुना बढ़ जाता है और तनाव बढ़ता है. ये सभी कारक उच्च रक्तचाप और कोरोनरी आर्टरी रोगों का कारण बन सकते हैं.

ऐसे में दीवाली के दौरान पटाखों व प्रदूषण से बचने की कोशिश करें. दीवाली जरूर मनाएं मगर कोशिश रहे कि पटाखें न जलाएं या कम पटाखे फोड़ें. प्रदूषित हवा से बचें, क्योंकि यह तनाव और एलर्जी का कारण बन सकती है. एलर्जी से बचने के लिए अपने मुंह को रूमाल या कपड़े से ढक लें. दमा आदि के मरीज अपना इन्हेलर अपने साथ रखें. अगर आपको सांस लेने में परेशानी हो तो तुरंत इसका इस्तेमाल करें और इसके बाद डौक्टर की सलाह लें. त्योहारों के दौरान स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं. किसी तरह असहजता महसूस हो तो तुरंत डौक्टर की सलाह लें.

जब बच्चे को पौर्न फिल्में और हस्तमैथुन की लत लग जाए

आज के समय में हर उम्र के लोगों के हाथ में स्मार्टफोन है. वे जब चाहें कुछ भी सर्च कर सकते हैं. आजकल इंटरनैट पर सबकुछ उपलब्ध है और ऐसे में बङों की तो छोङिए, छोटे बच्चे भी वे सब देखने लग जाते हैं जो उन को नहीं देखना चाहिए.

बढ़ती उम्र के बच्चों में कई सारे हारमोनल बदलाव होते हैं। ऐसे में वे इंटरनैट पर पौर्न वीडियोज सर्च कर देखने लगते हैं. न सिर्फ पौर्न वीडियोज बल्कि पौर्न वीडियोज देख कर मास्टरबेट यानि हस्तमैथुन भी करने लगते हैं। इस से उन का किसी और चीज में मन नहीं लगता.

आने लगते हैं गलत विचार

जिस उम्र में बच्चों को सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए उस उम्र में बच्चे खुद को अकेला पा कर पौर्न वीडियोज देखने लग जाते हैं. यों मास्टरबेट करना कोई गलत बात नहीं है बल्कि कई मामलों में इस कार्य को हैल्दी भी माना गया है पर जब कोई चीज हद से ज्यादा हो जाए तो नुकसानदायक भी साबित हो सकती है.

अधिक मास्टरबेट करने से बच्चों के मन में बहुत जल्दी गलत विचार आने लगते हैं और फिर वे लड़कियों को देख उन के साथ वही सब करने का सोचने लगते हैं जो उन्होंने पौर्न वीडियोज में देखा होता है.

बच्चों के दें सैक्स ऐजुकेशन

पेरैंट्स को इस बात की जानकारी जरूर होनी चाहिए कि उन का बच्चा अपने फोन में क्या क्या चीजें सर्च करता है या किस तरह की चीजें देखता है. भारतीय पेरैंट्स अपने बच्चों से खुल कर बात नहीं कर पाते जोकि काफी गलत है. उन्हें शुरुआत से ही बच्चों को सही और गलत के बारे में बताना चाहिए और खासतौर पर जब बच्चे अपनी टीनऐज में आ जाएं तब उन्हें सैक्स संबंधित जानकारी भी देनी चाहिए।

जानें अपने बच्चों के विचार

वैसे तो हस्तमैथुन की लत के बारे में हमारा दिमाग हमें खुद ही सावधान कर देता है क्योंकि अधिक हस्तमैथुन शरीर में कई सारे बदलाव लाता है. जल्दी थक जाना, सारा वक्त कमजोरी महसूस करना और किसी और चीज में ध्यान न लग पाना इस बात का संकेत देते हैं कि अधिक हस्तमैथुन नहीं करना चाहिए.

टीनऐज में पेरैंट्स को इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि उन के बच्चे का ध्यान पढ़ाई में लग भी पा रहा है या नहीं और पेरैंट्स को अकसर बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए जिस से कि वे जान सकें कि उन के बच्चों के मन में किस तरह के विचार आते हैं.

कुदरती प्रकिया है हस्तमैथुन

बच्चों को डराना या डांटना बिलकुल नहीं चाहिए क्योंकि यह सब चीजें इस उम्र में काफी सामान्य और कुदरती हैं. बच्चों को इन्हीं सब बातों के बारे में समझाना चाहिए कि उन के लिए इस समय क्या जरूरी है और क्या नहीं.

याद रखें, हस्तमैथुन एक सामान्य क्रिया जरूर है मगर हद से अधिक करना मानसिक बीमारियों की वजह भी बन जाता है.

अच्छा यही होगा कि बच्चों को सैक्स ऐजुकेशन के बारे में बताएं ताकि उन का ध्यान सैक्स से अधिक पढ़ाई पर हो. एक उम्र के बाद ही सैक्स लाइफ जीना उचित रहता है और उस समय तो कतई नहीं जब वक्त कैरियर बनाने की हो.

बौलीवुड का कारोबार : पिट गई जाह्नवी कपूर की देवरा और बिन्नी एंड फैमिली, मराठी मूवीज कर रहे हैं मोटी कमाई

27 सितंबर को एक साथ कई फिल्में रिलीज हुई. 20 सितंबर को रिलीज हुई सचिन पिलगांवकर की मराठी फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा 2’’ ने दूसरे सप्ताह में प्रवेश किया जबकि मराठी फिल्म ‘घात ’ और ‘धर्मवीर 2’ के साथ ही हिंदी फिल्म ‘‘बिन्नी एंड फैमिली’ और दक्षिण की फिल्म ‘देवरा एक ’’ का हिंदी वर्जन रिलीज हुई.

प्रोड्यूसर्स का दावा था कि ‘देवरा एक’ और ‘बिन्नी एंड फैमिली’ बौक्स आफिस पर सफलता के नए रिकार्ड बनाएगी लेकिन अफसोस ऐसा कुछ नही हुआ.

सितंबर माह के चौथे सप्ताह में रिलीज सचिन पिलगांवकर की हास्य प्रधान मराठी फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा’’ ने अपनी बढ़त बरकरार रखी. इस फिल्म ने दूसरे सप्ताह में भी सिर्फ महाराष्ट्र में लगभग 8 करोड़ रूपए कमा कर हिंदी के फिल्मकारों के मुंह पर जबरदस्त तमाचा मारते हुए इस बात पर जोर दिया कि औडियन्स को अच्छा कंटेंट व मनोरंजक फिल्म चाहिए.

सितंबर माह के चौथे सप्ताह,सत्ताइस सितंबर को मराठी फिल्म ‘‘धर्मवीर 2’’ एक पोलीटिकल फिल्म है,जिसका पहला भाग दो वर्ष पहले प्रदर्षित हुई थी और जबरदस्त कमायी की थी. यह फिल्म महाराष्ट् के मुख्यमंत्री एकनाथ षिंदे के राजनैतिक गुरू स्व.अनंत गिते की बायोपिक फिल्म है,जिसका बाक्स आफिस पर सफल होना तय था. तो ‘धर्मवीर 2’ ने सात दिन के अंदर साढ़े ग्यारह करोड़ रूपए कमाए.‘धर्मवीर 2’ को स्क्रीन्स/ सिनेमाघर देने के दबाव के चलते मराठी फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा’ के स्क्रीन्स कम हुए.जिसके चलते ‘नवरा माझा नवसाचा’ ने दूसरे सप्ताह केवल आठ करोड़ कमाए अन्यथा यह फिल्म इससे काफी अधिक कमा सकती थी.

सितंबर माह के चौथे सप्ताह तीसरी मराठी भाषा की फिल्म ‘‘घात’’ रिलीज हुई. बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में पुरस्कृत इस फिल्म को पूरे महाराष्ट्र में केवल पचास शो ही नसीब हुए और वह भी गलत समय पर. जिसका नुकसान भी हुआ.फिल्म ‘‘घात’’ सात दिन के अंदर केवल 40 लाख रूपए एकत्र कर सकी, इस तरह निर्माता को पूरा नुकसान हो गया. छत्रपाल निनावे निर्देशित फिल्म ‘‘घात’’ एक रियलिस्टिक फिल्म है, इसमें आदिवासियों को इंसान की तरह देखने की वकालत की गयी है.

एकता कपूर और महावीर जैन निर्मित तथा संजय त्रिपाठी निर्देशित फिल्म ‘बिन्नी एंड फैमिली’ प्रदर्शित हुई. इस फिल्म से वरूण धवन की भतीजी अंजिनी धवन ने अपने अभिनय करियर की शुरूआत की है. अफसोस, शुरूआत के साथ ही अंजिनी धवन के करियर पर विराम लग गया.और इसके लिए पूरी तरह से फिल्म के लेखक द्वय संजय त्रिपाठी व नमन त्रिपाठी तथा निर्देशक संजय त्रिपाठी ही जिम्मेदार हैं. फिल्म इंटरवल से पहले बेहद बेकार है और इंटरवल के बाद मेलोड्रामा ज्यादा है. इसके अलावा लेखक व निर्देशक दोनाें की समझ में नहीं आया कि वह फिल्म के माध्यम से पीढ़ियों के अंतराल को खत्म करने का संदेश क्या दे. इंटरवल के बाद फिल्म सही ढर्रे पर चलती है, मगर अचानक लेखक की मूर्खता के चलते क्लामेक्स में पहुचते ही पूरी फिल्म का बंटाधार हो गया.

परिणामतः पंकज कपूर व हिमानी शिवपुरी का सशक्त अभिनय भी इस फिल्म को डूबने से नही बचा पाया. पूरे सात दिन के अंदर यह फिल्म बौक्स औफिस पर पौने 2 करोड़ रूपए भी कमा नही पाई. निर्माता को बमुश्किल 50 लाख रुपए मिले,जिससे वह चाय का बिल जरूर चुका सकते हैं. फिल्म ‘बिन्नी एंड फैमिली’ से करियर की शुरू करने वाली अभिनेत्री अंजिनी धवन का करियर बनने से पहले ही खत्म हो गया ओर इसके लिए वह और उनकी पीआर टीम ही दोषी है. फिल्म के रिलीज से पहले अंजिनी धवन को अपना ज्यादा से ज्यादा प्रचार करना चाहिए था, ज्यादा से ज्यादा पत्रकारों से मिलकर इंटरव्यू देने चाहिए थे. पर वह तो अपने पीआरओ की सलाह पर चुनिंदा पत्रकारों से मिलने के अलावा अपने चाचा वरूण धवन व सोशल मीडिया के भरोसे जंग जीत लेने के घमंड में चूर रही..नतीजा उनके सामने है…

दक्षिण भारत के सुपर स्टार जूनियर एन टी आर ने सपने में भी नही सोचा होगा कि 27 सितंबर को तेलगू, मलयालम, तमिल व हिंदी में एक साथ रिलीज होने वाली उनकी चार सौ करोड़ रूपए के बजट की फिल्म ‘‘देवरा एक’’ की इतनी दुर्दशा होगी जबकि इस फिल्म में हिंदी के स्टार कलाकार सैफ अली खान के साथ ही जान्हवी कपूर व प्रकाश राज भी हैं. इस फिल्म को डुबाने में फिल्म के हिंदी के पीआर ने अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नही रखी तो वहीं फिल्म के लेखक व निर्देशक करताला शिवा भी कम जिम्मेदार नहीं है.फिल्म की कहानी व पटकथा पूरी तरह से बिखरी हुई है.फिल्म में ज्यूनियर एन टी आर की दोहरी भूमिका भी सही ढंग से पेश नही की गयी. जिससे जूनियर एन टी आर के फैंस काफी नाराज हुए और फिल्म के रिलीज वाले दिन ही जूनियर एन टी आर के फैंस ने हैदराबाद शहर में जूनियर एन टी आर के पोस्टर जलाकर अपना गुस्सा व्यक्त किया. निर्माता की बात माने तो ‘‘देवरा एक’ ने एक सप्ताह में 303 करोड़ रूपए कमा लिए,इसमें हिंदी भाषी क्षेत्रों से की गयी 25 करोड़ रूपए की कमाई भी शामिल है.इन 303 करोड़ में से निर्माता की जेब में 100 करोड़ ही आएंगे.

क्या करें जब नशा जब हद से गुजर जाए

सलीम जावेद की जोड़ी बाले जावेद अख्तर का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं जिन्होंने बालीबड की कई कामयाब फिल्मों की कहानिया लिखीं हैं. बहुमुखी प्रतिभा के धनी जावेद अपनी 71 साल की जिंदगी में जिन चीजों के लिए पछताते हैं शराब की लत उन में से एक है. हालांकि 1991 के बाद उन्होंने शराब से तौबा कर ली थी लेकिन आज भी एक कसक उन के मन में है कि अगर जवानी में शराब की लत न लगी होती तो जिंदगी में कुछ और भी सीख सकता था. एक ताजे इंटरव्यू में जावेद अख्तर ने स्वीकारा है कि शराब के नशे में वे शैतान बन जाते थे. बकौल जावेद जिंदगी में जो कुछ अच्छी चीजें उन्होंने की हैं शराब को छोड़ देना उन में से एक है. यानी दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो शराब की लत से छुटकारा पाया भी जा सकता है.

अव्वल तो शराब पीना ही दुनिया की सब से खराब लतों में से एक है लेकिन जब इस का नशा हद से गुजर जाता है तो आदमी वाकई आदमी नहीं रह जाता वह कैसे हैवान बन जाता है इस का एक अप्रिय ताजा उदाहरण हस्तिनापुर के एक गांव से सामने आया है. जहां शराब के नशे में चूर एक सौतेले पिता ने अपनी नाबालिग बेटी से रात भर बलात्कार किया. वह मासूम पापा पापा चिल्लाती रही लेकिन वहशी बन चुके बाप पर इस का कोई असर नहीं हुआ. 27 सितम्बर को आरोपी की पत्नी अपने मायके जानसठ गई थी. रात कोई 12 बजे यह दुष्कर्मी बेटी के कमरे में घुसा और बेटी की इज्जत के साथ साथ बाप बेटी का रिश्ता भी तार तार कर डाला. बेटी की मां ने घर लौट कर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है लेकिन पीड़ित मासूम जिंदगी भर इस हादसे को भूल पाएगी ऐसा लगता नहीं.

तो शराब का नशा आदमी से कुछ भी करवा सकता है जिस में अच्छा कुछ होने का तो सवाल ही नहीं उठता लेकिन बुराइयों की गिनती करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है लेकिन शराब के ज्यादा नशे जिसे हेंग ओवर भी कहा जाता है में पिद्दी से पिद्दी आदमी भी पहलवानों जैसी दमखम दिखाने लगता है और कई मर्तबा हट्टा कटता आदमी भी नाली में लुढ़का दिखाई देता है. शराब के नशे की यह खूबी ही है कि इसे पीने वाला दुनिया तो दुनिया खुद को भी भूल जाता है. कोई शराब क्यों पीता है इस की कोई वजह नहीं होती सिवाय इस के कि पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए रहता है.

अलबत्ता ऐसा कहने बालों की भी कमी नहीं कि शराब का नशा कुछ देर के लिए ही सही सारे दुख और गम भुला देता है जबकि हकीकत में ऐसा होता नहीं है. दुख और गम तो ज्यों के त्यों रहते हैं बस कुछ देर के लिए दब जाते हैं. जाहिर इस और ऐसी दलीलों में कोई दम नहीं होता लेकिन इन आंकड़ों में जरुर दम है कि देश की राज्य सरकारों की आमदनी का सब से बड़ा हिस्सा शराब पर लगे टैक्स से आता है. अलगअलग राज्यों में आबकारी दरें अलगअलग हैं जो कि उन के कुल राजस्व का 15 से 30 फीसदी होता है. यानी शराबखोरी को न केवल सरकारी प्रोत्साहन मिला हुआ है बल्कि संरक्षण भी प्राप्त है.

एक एजेंसी के मुताबिक देश भर में कोई 30 करोड़ लोग शराब पीते हैं. आबादी के लिहाज से सबसे ज्यादा शराब आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ में पी जाती है जहां 35.6 फीसदी लोग शराब पीते हैं. देश के टौप 10 राज्यों में शराबियों की तादाद कुछ इस तरह है –

– त्रिपुरा – 34.7
– आंध्रप्रदेश – 34.5
– पंजाब – 28.5
– गोवा – 26.4
– केरल – 19.9
– पश्चिम बंगाल – 14
– तमिलनाडु – 15 फीसदी
– कर्नाटक में 11 फीसदी लोग शराब पीते हैं.

लेकिन शराब से होने वाली आमदनी में उत्तर प्रदेश का नाम सब से ऊपर है. यहां शराब से मिलने वाला राजस्व एक लाख 75 हजार करोड़ रुपए है जो राज्य के कुल राजस्व का 21.8 फीसदी है. दूसरे नंबर पर कर्नाटक है जहां 20,950 करोड़ रुपए आबकारी कर से मिलते हैं. यह कुल राजस्व का 20.6 फीसदी है. महाराष्ट्र में एक्साइज से 17,477 करोड़ तो मध्य प्रदेश में शराब पर टैक्स से 11,873 करोड़ रुपए मिलते हैं. जिन राज्यों में शराबबंदी लागू है उन में गुजरात पहले नंबर पर है जहां एक्साइज से महज 0.20 फीसदी ही आमदनी होती है. बिहार में शराबबंदी के बाद 3500 करोड़ का घाटा हो रहा है. इस का फायदा सीधेसीधे उस के पड़ोसी राज्यों झारखंड और पश्चिम बंगाल को हो रहा है.

शराब और शराब घोटाले को ले कर लगातार विवादों और सुर्ख़ियों में रहने बाली दिल्ली को पिछले 3 साल से कम से कम 1500 करोड़ रुपए की सालाना आमदनी हो रही है. साल 2023 में दिल्ली सरकार को हर दिन कोई 19 करोड़ की आमदनी शराब बिक्री से हुई थी. 2022 – 23 में दिल्ली सरकार को 5548.48 करोड़ की रिकार्ड आमदनी हुई थी. बदलती शराब नीति के चलते यह आंकड़ा भी बदलता रहता है. लेकिन वहां औसतन 19 लाख शराब की बोतलें प्रतिदिन बिकती हैं और हैरानी की बात यह कि दिल्ली में महिला शराबियों की तादाद लगातार बढ़ रही है.

जाहिर है कोई भी राज्य सरकार शराब से मिलने वाले राजस्व का लालच छोड़ नहीं पाती. लौक डाउन के दिनों में जब शराब की बिक्री बंद थी तब देश भर के राज्यों को 7000 करोड़ प्रतिदिन का नुकसान हुआ था. लौक डाउन के बाद लोगों ने जो शराब पीना शुरु की तो राज्यों की चांदी हो आई.

शराब का ओवर डोज कितने हादसों की वजह बनता है इस की भी कोई गिनती नहीं, गिनती है तो मौतों की कि भारत में हर साल कोई 30 लाख लोग शराब के चलते मरते हैं. शराबी खुद का तो हर तरह से नुकसान करता ही है लेकिन नशे में दूसरों को भी परेशान कर डालता है. आमतौर पर शराब पी कर लड़खड़ाने बालों से हर कोई बचने की कोशिश करता है. क्योंकि उन का कोई भरोसा नहीं होता. वे बेखौफ होते आप को गाली भी बक सकते हैं और धक्का भी दे सकते हैं. इस स्थिति से कोई दो चार नहीं होना चाहता लेकिन इस के बाद भी हर किसी का इन से पाला पड़ ही जाता है. ऐसे में हर कोई इन से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझता है.

लेकिन शराबी के घर वालों की तो उन्हें झेलना मजबूरी हो जाती है. चूंकि उन की आदत पड़ी होती है इसलिए वे डरते नहीं बल्कि उस का नशा उतारने की कोशिश में लगे रहते हैं. शराब चूंकि सीधे नर्वस सिस्टम पर असर डालती है इसलिए नशा एकदम तो नहीं उतरता लेकिन इन उपायों से एक हद तक कम जरुर हो जाता है.

– शराबी को ज्यादा से ज्यादा पानी पिलाना चाहिए, हार्वर्ड मैडिकल कालेज की एक रिसर्च के मुताबिक ज्यादा शराब पीने से शराबी डिहाइड्रेट होने लगता है क्योंकि उसे पेशाब ज्यादा लगता है. अकसर कई शराबी अपनी पेंट गीली कर लेते हैं क्योंकि वे पेशाब रोक नहीं पाते. असल में ज्यादा शराब पीने से वैसोप्रेसिन नाम का हार्मोन ज्यादा रिलीज होता है जिस से किडनी में पेशाब बनने लगता है. ज्यादा पानी पिलाने से शराबी डिहाइड्रेट होने से बचता है और शराब की मात्रा तेजी से खून से निकलने लगती है.

– ज्यादा शराब पीने से ब्लड सुगर लेबल भी तेजी से कम होने लगता है जिस से शराबी का दिमाग से नियंत्रण हट जाता है. यहां तक कि वह अपने हाथ से खाना भी नहीं खा पाता. उसे सरदर्द होना और चक्कर आना भी आम बात होती है इसीलिए शराबी यहांवहां सहारा ढूंढा करते हैं और मिल भी जाए तो ज्यादा देर तक उसे थामे नहीं रह पाते. इसलिए अकसर गिरते हुए दिखाई देते हैं. ऐसी हालत में डाक्टर और वैज्ञानिक उन्हें फलों का रस पिलाने की सलाह देते हैं क्योंकि इस से खून में से एल्कोहल की मात्रा कम होती है.

– शराब के नशे में धुत लोगों को चाय या काफी पिलाने से भी नशा कम होता है क्योंकि उन में मौजूद केफीन नर्वस सिस्टम को सक्रिय करता है.

– शराबी को दर्द निवारक दवाएं खासतौर से एस्प्रिन देने से फायदा होता है. आइब्रुफेन भी दी जा सकती है जिस से सरदर्द और थकान में राहत मिलती है.

– विटामिन सी देने से भी शराब के नशे का असर कम होता है. अकसर जब शराबी धुत हो कर घर आता है तो घर वाले उसे नीबू का पानी पिलाते हैं. जर्नल औफ क्लिनिकल मैडिसिन की एक रिपोर्ट के मुताबिक नियमित विटामिन सी, विटामिन बी और जिंक लेने वालों को शराब का नशा कम चढ़ता है. हालांकि यह रिसर्च अभी शुरुआती दौर में है लेकिन नीबू पानी और संतरे मौसंबी का रस नशा कम करने में मददगार साबित होता है.

– इस के अलावा नारियल पानी और पुदीने के पानी से भी नशा कम होता है. शराबी को शहद चटाने से भी फायदा होता है क्योंकि इस से सुगर लेबल मेंटेन रहता है. केला दही और अदरक का सेवन भी नशा कम करने में मददगार होते हैं.

सोशल मीडिया पर हर बात को शो औफ करना सही नहीं

हाल ही में दुबई के अरबपति बिजनेसमैन जमाल अल नदाक ने अपनी बीवी सौदी अल के लिए 418 करोड़ रुपये का एक आइलैंड खरीदा. इसकी जानकारी उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर करते हुए दी. जिसके कैप्शन में लिखा ‘POV: आप बिकिनी पहनना चाहती थीं इसलिए आपके करोड़पति पति ने आपके लिए एक आइलैंड खरीद लिया.’ दरअसल,शेख नहीं चाहते कि बिकनी पहने उनकी बीवी को कोई और देखे इसलिए पूरा आइलैंड ही खरीद लिया ताकि उनकी पत्नी को प्राइवेसी मिल सके.

सोशल मीडिया पर उनका यह वीडियो काफी वायरल हो रहा है. शेख की बीवी ने कहा कि मेरे पति चाहते हैं कि मैं बीच पर सुरक्षित महसूस करूं, इसीलिए उन्होंने मेरे लिए एक आइलैंड खरीदा. यह वीडियो इंस्टाग्राम पर इस तरह वायरल हो गई है, कि एक सप्ताह से भी कम समय में 2.4 मिलियन से अधिक बार देखा गया है. लोग इस पोस्ट पर तरह तरह से अपनी प्रितिक्रिया दे रहें हैं और चाहे अनचाहे वह इन पति पत्नी की निजी जिंदगी का हिस्सा बन गए. बल्कि यू कहें कि बने नहीं बल्कि इस कपल के द्वारा बनाये गए हैं, तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी.

यहां यह खबर बताने का मकसद उस पति की तारीफ करना बिलकुल नहीं है बल्कि यहां कई सवाल है जिनक जवाब आपको खुद भी खोजना चाहिए.

क्या इस तरह अपनी निजी बातें सोशल मिडिया पर डालने से आपकी प्राइवेसी का हनन नहीं हो रहा?

कल को लोग उस पोस्ट पर गंदे और अश्लील कमेंट्स करेंगे, तो क्या ये शेख तब अपनी प्राइवेसी का ढोल नहीं पीटने लगेगा?

शेख को ऐसा करने के लिए क्या किसी मौलवी ने कहा था?

अगर नहीं भी कहा था तो पत्नी को परदे में रखने और हिज़ाब और बुरका पहनाने की बातें करने वाले ये मौलवी अब क्यों चुप हैं?

क्यों अब ये मौलवी इस शेख के नाम पर फ़तवा जारी करते, जिन्होंने खुद ही पति पत्नी के बीच की बातों को प्राइवेट कर दिया?

अपनी निजी चीजें इस तरह सोशल मीडिया पर प्राइवेट करना सही है?

क्या इन सब बातों का असर पति पत्नी के रिश्ते पर नहीं पड़ता?

कपल्स हर बात सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं, तो कैसे इससे रिश्ते की नींव कमजोर होती है

छोटी सी पर्सनल प्रोब्लम बड़ी हो जाती है

अगर पति पत्नी में किसी बात को लेकर कोई विवाद हो जाता है, तो वह बातचीत के जरिये सुलझ सकता है. लेकिन जब एक पार्टनर के द्वारा वह विवाद सोशल मीडिया पर डाल दिया जाता है और वह पब्लिक हो जाता है, तो उस पर आये हुए कमेंट्स और लोगों की बेफिजूल की राय से बात बनने के बजाये ईगो पर चली जाती है और रिश्ता टूटने के कगार पर पहुँच जाता है.

पर्सनल फोटो शेयर करना पार्टनर को अच्छा न लगे

कपल्स अपने हौलिडे या हैप्पी मूमेंट्स की तस्वीरें शेयर करते हैं. इसमें कोई बुराई भी नहीं है. लेकिन कई बार लोग अपने लाइक्स व व्यूज बढ़ाने के चक्कर में कुछ कोजी मूमेंट्स की तस्वीरें भी शेयर कर देते हैं. यह तस्वीरें काफी निजी होती हैं और पार्टनर को यह बात अच्छी नहीं लगती तो इस बात को लेकर उनमे तनाव बढ़ जाता है. हो सकता है कि इससे आपके पार्टनर को शर्मिन्दगी का अहसास हो या फिर उन्हें ऐसा लगने लगे कि आपको उनकी इज्जत की कोई परवाह नहीं है. कभी-कभी उन पर्सनल तस्वीरों का लोग गलत तरीके से इस्तेमाल भी कर लेते हैं, जिससे आपको बाद में काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

ब्रेकअप की बात शेयर करने में जल्दबाजी रिश्ता तोड़ देती है

हर बात सोशल मिडिया पर शेयर करते करते हम यह भी भूल जाते हैं कि हर बात मज़ाक नहीं होती. अगर दोनों के बीच लड़ाई चल रही है तो इसे सार्वजानिक करना जरुरी तो नहीं है. ब्रेकअप एक बहुत बड़ा डिसिजन होता है और उस स्थिति में आपके मन में भावनात्मक उथल-पुथल चलती है. यह भी संभव है कि ब्रेकअप के बाद आपका पैचअप भी हो जाए. लेकिन घर से निकली बात जब बाहर पहुँच जाती है तो फिर उसे संभालना नामुमकिन हो जाता है.

पर्सनल चैट शेयर करना मुसीबत बन सकता है

आजकल अपनी पर्सनल चाट या विडिओ शेयर करने का भी चलन बन गया है. यहां तक के लोग अपनी लड़ाई और प्यार के निजी पल को शेयर करने से बाज नहीं आते इससे सामाजिक रूप से कई बार लोग उस परिवार का बहिष्कार भी करते हैं की इनके परिवार की तो कोई इज़्ज़त नहीं है इनके घर में तो इतने लड़ाई झगड़े होते हैं. इससे कई बार बच्चों की शादियां और सोशल सर्कल बनाने में भी दिक्कत होती है. परसनल चाट का कोई गलत फायदा भी उठा सकता है.

सोशल मीडिया महज एक दिखावा है

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज के समय में सोशल मीडिया ने हमारे जीवन में अपनी पकड़ कुछ इस तरह बना ली है की हम जरुरी गैर जरुरी हर बात सोशल मिडिया पर शेयर कर रहे हैं. शेयर क्या कर रहे हैं बल्कि दिखावा कर रहे हैं. अगर हम घर से बाहर कुछ देर के लिए खाना खाने भी बाहर निकलते हैं तो उसका स्टेटस भी डालते हैं ताकि सबको पता चल जाये की हम कुछ देर के लिए बहार गए हैं और हमारी भी कोई सोशल लाइफ है. अगर घर में खाने में कुछ अच्छा बना है तो उसकी फोटो तक शेयर की जाती है.

अगर आप फिल्म देखने गए है तो इस बात को सोशल मिडिया पर डालना क्या जरुरी है? क्या बाकी लोगों ने कभी फिल्म नहीं देखि क्या? आप उन्हें ऐसा करके क्या बताना चाहते हैं?

हम कही भी बहार जाने से पहले पोस्ट करते हैं कि i am traveling to Delhi from Mumbai airport. ऐसा पोस्ट किये बिना क्या प्लान हवा में नही उड़ेगी क्या?

दिखावा इस कदर है कि लोग सोशल मीडिया में फ़ोटो पोस्ट करने के लिये लोन ले कर विदेश यात्रा पे जा रहे है.

क्यों करते हैं लोग यह दिखावा

दिखावा करने के भी कई कारण होते हैं. ये दिखावा ही आज सोशल स्टेटस बन गया है. जब हम बताएंगे की हमारा स्टेटस तो विदेश घूमने का है तब ही तो लोगों को पता चलेगा कि हम कितने अमीर हो गए हैं. हाई सोसाइटी में हम भी मूव कर पाएंगे.

कई बार हम अपनी तुलना दूसरों से करने लग जाते है, उसने ऐसा किया तो मैं भी करूंगा उससे बड़ा और उससे अच्छा और पोस्ट भी करूंगा केवल दिखावे के लिये, जितनी चादर है उतने ही फैलाना चाहिये.

ये सारा खेल कमेंट्स और लिखे का भी है. किस पोस्ट पर कितने लाइक आये यह इतना जरुरी हो गया है कि इसके पीछे लोगों ने अपनी नींद भी हराम कर रखी है. आज मूड सही है या ख़राब ये भी लाइक पर डिपेंड करते है. अगर लाइक ज्यादा हैं तो मतलब आज का दिन बन गया वार्ना दिन ही बुरा है.

कुछ ऐसे भी भाई बंदु होते है जो खुद की खुशी जाहिर करने के लिये सोशल मीडिया का सहारा लेते है ऐसे लोग सच्चे होते है और उनके पास अपनी ख़ुशी और गम बाँटने के लिए कोई नहीं होता तो वह इस आभासी दुनिया को हे जीवन का सच मान बैठते हैं.

कपल्स सोशल मीडिया पर रिश्ते निभाने के बजाए असलियत में निभाएं

आमतौर पर जब हम किसी के साथ एक रिश्ते में जुड़ते हैं, तो उस रिश्ते से उन दोनों व्यक्तियों को खुशी मिलनी चाहिए. लेकिन आज के समय में लोग अपने रिश्ते को वास्तविकता में कम और सोशल मीडिया पर ज्यादा निभाते हैं. देखने में लगता है की कपल बहुत खुश रहने वाला जोड़ा है लेकिन असलियत में दोनों की बन नहीं रही होती है. या फिर साथ में खुश भी हैं तो भी उनका उनका प्यार एक नुमाइश की चीज़ बनकर रह गया है. इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर हम सभी दूसरों के रिलेशनशिप को अपने रिश्ते के साथ कंपेयर करते हैं और इस होड़ में लगे रहते हैं कि किस कपल की तस्वीर को सबसे अधिक लाइट और कमेंट मिले हैं.

ऐसे में रिश्ते का वास्तविक प्यार और गहराई कहीं खोकर रह जाता है. पति पत्नी को अपनी बातें गुप्त ही रखनी चाहिए. अपनी प्राइवेसी का सम्मान आपको खुद ही करना है ताकि और लोगों को बोलने का मौका ही न मिले. आप मौका देंगे तो लोग आपकी जिंदगी में घुसपैठ करेंगे ही फिर बेकार की नाराजगी न दिखाएं क्यूंकि अपनी जिंदगी में घुसने और दखल देने की इजाजत आप उन्हें खुद ही दे रहें हैं. अब यह आपको तय करना है कि आपको अपना रिश्ता सच में निभाना है या फिर इस सोशल मिडिया की वर्चुअल आभासी दुनिया में निभाना है.Community-verified icon

एक और सच : अमिला के लिए क्या नहीं सुन पाया जितेंद्र

एक आदमी को सुख से जीने के लिए क्याक्या चाहिए? आदमी का आदमी पर भरोसा, संबंधों में सहानुभूति, एकदूसरे का लिहाज, ठीक से जीने लायक आमदनी, जीवन की सुरक्षा, चैन की सांस ले सकने की आजादी, भयमुक्त वातावरण. पर लूटमार, चोरीडकैती, हत्या, अपहरण, दंगाफसाद, बलात्कार और छलप्रपंच भरे इस वातावरण में क्या यह सब आम आदमी को नसीब है? लोग सुख से जिएं, इस की किसी को फिक्र है? नेता, जनप्रतिनिधि, अफसर सब के सब अपनेअपने जुगाड़ में जुटे हुए हैं. लोगों को जीने लायक मामूली सुविधाएं भी नहीं मिल रहीं. हबड़तबड़ में स्टेशन की तरफ भागती जा रही अमिला यही सब लगातार सोचे जा रही है. गाड़ी न निकल जाए. निकल गई तो गांव के स्कूल तक कैसे पहुंचेगी. अफसर आ रहे हैं.

अंबेडकर गांव में खानापूर्ति के लिए रोज अफसरों के दौरे होते रहते हैं. गांव पूरी तरह संतृप्त होना चाहिए. हुं, खाक संतृप्त होगा. कभी राजीव गांधी ने कहा था, सरकार गांवों के लिए 1 रुपया यानी 100 पैसा भेजती है पर वहां तक पहुंचतेपहुंचते वह 10 पैसे ही रह जाते हैं. 90 पैसे बीच की सरकारी मशीन खा जाती है. कैसे विकास हो देश का? पर इस के लिए जिम्मेदार कौन हैं? नेतागण, बिचौलिए, भ्रष्ट नौकरशाही और कहीं न कहीं हमसब. अजीब दिमाग होता है आदमी का. हर वक्त सोचविचार, मन में उठापटक, तर्कवितर्क. शहर से दूर इस गांव में तबादला कर दिया गया अमिला का. अफसरों से खूब गिड़गिड़ाई कि सर, बच्चा छोटा है. सास बहुत बूढ़ी हैं. कामकाज नहीं कर पातीं. ससुर को लकवा है. पति दूर के जिले में सरकारी सेवा में हैं. परिवार को देखने वाली मैं अकेली…मुझ पर रहम कीजिए, सर. लेकिन पैसा ऐंठू, रिश्वतखोरों को कहीं किसी पर रहम आता है?

झिड़क दिया अमिला को, ‘हर कोई शहर में रहना चाहता है. उस के लिए एक से एक बहाने. सब को यहीं, शहर में रखेंगे तो गांव में कौन जाएगा पढ़ाने? मैं जाऊं? तबादला न स्वीकार हो तो नौकरी छोड़ दीजिए. हम दूसरी अध्यापिका रख लेंगे. कोई कमी है क्या? सरकारी नौकरी के लिए हर कोई तैयार बैठा रहता है. बी.टी.सी. और बी.एड. वाले रोज धरनाप्रदर्शन कर रहे हैं कि उन्हें नौकरी नहीं दी जा रही, हम उन में से किसी को बुला लेंगे, आप अपना घरपरिवार संभालिए. हमें क्या फर्क पड़ता है?’ सच कह रहे हैं. अफसरों को क्या फर्क पड़ता है? फर्क तो काम करने वाले कर्मचारी को पड़ता है. तकलीफें तो उन्हें झेलनी पड़ती हैं. परेशान तो वे होते हैं. बाहर निकल आई थी दफ्तर से अमिला. रामकिशन चपरासी पीछेपीछे खैनी हथेली पर रगड़ता भागाभागा आया था, ‘क्या टीचरजी, आप भी बस…इतने सालों से मास्टरी कर रही हैं और सरकारी अफसरों के कायदे नहीं जान पाईं.

अरे, इन से काम कराने का एक ही तरीका है मैडम, इन्हें खुश करिए. और सरकारी देवता सिर्फ 2 प्रकार के भोग से ही खुश होते हैं, कैश या काइंड.’ जमीन में गड़ सी गई अमिला. कैश या काइंड. घर में कैश होता तो प्राइमरी स्कूल की इस अपमान भरी नौकरी में गांवगांव क्यों मारीमारी डोलती…घर- परिवार बरबाद करती…जीवन का जोखिम उठाती… और काइंड…उस जैसी जवान युवती से ये अफसर और क्या चाहेंगे? सुनीता ने अपना तबादला काइंड से ही रुकवाया था. दबे स्वर में उसी ने अमिला से भी कहा था, ‘कहो तो बात करें?’ ‘नहीं,’ स्पष्ट इनकार कर दिया था अमिला ने. सबकुछ मंजूर पर पति के प्रति ईमानदारी की कीमत पर कुछ भी मंजूर नहीं. औरत के पास और ऐसा होता ही क्या है जिस पर वह गर्व कर सके? एक यही तो. पति सुमेर 2 सप्ताह में 1 दिन को घर आते हैं. बाकी दिन उसी कसबे में किराए के एक कमरे में हाथ से खाना और चाय बनाते हैं. गैस का छोटा चूल्हा ले रखा है.

कभीकभार सड़क के ढाबे पर भी खा लेते हैं. सरकारी नौकरी है, छोड़ते भी नहीं बनती. परिवार है पर परिवार के सुख से वंचित. ‘कुछ करिए न…गांव तक टे्रन से सुबहसुबह जाने में बहुत परेशानी होती है. कभीकभी टे्रन लेट हो जाती है, राजधानी के कारण कहीं बीच के स्टेशन पर रोक दी जाती है. स्कूल लेट पहुंचने पर प्रधान आंखें तरेरता है,’ रात को अमिला ने सुमेर से कहा. अमिला ने बताया कि कसबे के स्टेशन से 4 किलोमीटर पैदल चल कर गांव पहुंचना पड़ता है. सीधा कोई रास्ता नहीं है. खेतों के बीच से पगडंडी जाती है. खेतों में बाजरा, ज्वार, अरहर, गन्ने की फसलों के बीच से निकलने में बहुत खतरा रहता है. आतेजाते कभी भी बदमाश दबोच कर खेतों में घसीट कर ले जा सकते हैं. कई केस हो चुके हैं. अकसर लड़कियों, युवतियों की लाशें मिलती हैं खेतों में क्षतविक्षत. आसपास के गांव अपहरण उद्योग के लिए बदनाम हैं. दबंग लोग अपने घरों में दूरदूर से पकड़ कर लाई गई ‘पकड़ें’ रखते हैं.

फिरौती मिल जाए तो छोड़ देते हैं न मिले तो मार कर कुएं में डाल देते हैं. पुलिस ही नहीं, आसपास के सब लोग जानते हैं पर सब का पैसा बंधा हुआ है. गांवों के लोग डर के कारण मुंह नहीं खोलते. नेता, पत्रकार और अफसर उन दबंगों के यहां दावत उड़ाने और ऐश करने आते रहते हैं. वे लोग उन की हर तरह की सेवा करते हैं. सुन कर सुमेर परेशान जरूर हुए पर कुछ कर सकने में लाचार ही रहे. सोच कर बोले, ‘किसी तरह यह साल तो निकालना ही पड़ेगा, किसी नेता या अफसर से जुगाड़ निकालने की कोशिश करूंगा, शायद अगले साल तक कुछ कर पाऊं.’ ‘और तब तक अगर मेरे साथ कुछ घट गया तो?’ अमिला परेशान हो उठी, ‘जब से उस खूनी कुएं के बारे में सुना है, सचमुच बहुत भय लगता है.’ झल्ला पड़े सुमेर, ‘15 दिन बाद घर आता हूं और तुम यही रोना ले कर बैठ जाती हो. ट्रेन से उस गांव जाने वाली तुम कोई अकेली तो हो नहीं. और भी सवारियां उतरती होंगी उस गांव की. सब के संगसाथ आयाजाया करो. ऐसे कौन खा जाएगा तुम्हें?’ कहने को कह तो गए सुमेर पर सोचते भी रहे, कहीं सचमुच अगर अमिला के साथ कुछ ऐसावैसा हो गया तो? कितनी बदनामी होगी. पर करें तो क्या करें?

ट्रेन में बैठी अमिला सारी स्थितियों पर सोचती रही. कुढ़ती और गुस्से से उबलती भी रही. सहसा उसे हेडमास्टर जितेंद्र की बात याद आई, ‘बहुत मत सोचा करो अमिला. यह दुनिया ऐसे ही चलेगी. हमारेतुम्हारे सोचने से कुछ नहीं होगा. मस्त रहा करो.’ जितेंद्र ही हैं जिन से वह अपने मन की बात कह लेती है. अपने भय और आतंक, अपनी आर्थिक परेशानियां, परिवार की कठिनाइयां बोलबता लेती है. पति तो 15 दिन में 1 दिन को आते हैं. उन से क्या कहे वह? ‘‘हम अध्यापकों को इस नौकरी में कितनी जलालत भोगनी पड़ती है. इस के बावजूद अगर हम इसे छोड़ें तो हजार हमारी जगह काम करने को तैयार हैं. इसी का लाभ उठाती है व्यवस्था,’’ जितेंद्रजी बोले, ‘‘हर सरकारी योजना को जनता के बीच पहुंचाना हमारा काम है. पोलियो ड्राप्स इतवार को पिलाइए, ‘स्कूल चलो’ आंदोलन हम चलाएं, ग्रामीणों को स्वच्छता का महत्त्व हम बताएं, वृक्षारोपण हम कराएं, साक्षरता अभियान चलाना हमारी जिम्मेदारी, मिड डे मील हमारी जिम्मेदारी, स्कूल की साफसफाई हमारी जिम्मेदारी, मुफ्त पुस्तकें बंटें हमारी जिम्मेदारी, बच्चे स्कूल न आएं तो घरघर जा कर उन्हें स्कूल में बुला कर लाएं, यह भी हमारा काम. गांधी जयंती हो या नेहरू दिवस, बुद्ध जयंती हो या अंबेडकर जयंती, हर मौके पर गण्यमान्य अतिथियों को बुला कर भाषण हमें कराने हैं.

उन के चायनाश्ते का प्रबंध करना हमारी जिम्मेदारी, पर पैसा कहां से आए? इस सवाल पर सब एकदूसरे पर टालते हैं. प्रधानजी पैसा नहीं देते. आता है तो अपने पास रख लेते हैं. उन से कौन लड़े? है हम में ताकत? अफसरों से शिकायत करो तो कहते हैं, हम क्या जानें, वह आप की समस्या है, आप जानिए.’’ सहसा रुक कर हेडमास्टर जितेंद्र फिर बोले, ‘‘अब बड़ेबड़े शिक्षाधिकारी इस अंबेडकर गांव में आ रहे हैं. हर तरह गांव संतृप्त हुआ या नहीं, इस का मुआयना करने…हम ने शिक्षा अधिकारी से जा कर कहा, ‘सर, प्रधानजी न तो इमारत की मरम्मत का पैसा दे रहे हैं न रंगाईपुताई के लिए. बच्चों को पीने के पानी तक की कोई व्यवस्था नहीं हो पा रही. स्कूल में श्यामपट्ट तक नहीं है. लिखने के लिए चौक या खडि़या मिट्टी तक नहीं मिलती. स्कूल के दरवाजे लोग उखाड़ कर ले गए हैं. आवारा जानवर रात को स्कूल में घुस कर बैठते हैं. उन का गोबर हमें पहले साफ करना पड़ता है तब स्कूल चल पाता है, इस पर बच्चों के मांबाप एतराज करते हैं, कहते हैं. बच्चे सफाई नहीं करेंगे…हमें चपरासी मिलता नहीं है. कौन करे यह सब…’ ‘‘जानती हो शहर के अफसर ने क्या कहा? बोले, ‘आप लोग जो वेतन पाते हैं वह किसलिए? उस में से करिए आप लोग. हम तो पैसा प्रधान को देते हैं, उस से मिलबैठ कर आप किसी तरह यह सब कराइए… और हां, मिड डे मील पर जरूर ध्यान दीजिए. किसी बच्चे ने शिकायत की तो समझ लीजिए…’ ’’ ‘‘लेकिन सर, मिड डे मील तो हम हफ्ते में 1-2 दिन ही दे पाते हैं.

प्रधान न सामग्री देते हैं न जलावन के लिए कुछ. न बर्तन देते हैं. क्या करें? ‘‘अफसर कहते हैं, हम कुछ नहीं जानते, हमें सबकुछ चाकचौबंद मिलना चाहिए.’’ जितेंद्र ने गुस्से से कहा, ‘‘आने दीजिए इस बार. सब कह देंगे बड़े अफसरों से. फिर जो होगा, देखा जाएगा,’’ उन का चेहरा क्रोध से तमतमा गया था. ‘‘नहीं, जितेंद्रजी, ऐसा हरगिज मत करिएगा,’’ अमिला घबरा गई थी. कुछ सोच कर बोली थी, ‘‘आप अपने गांव से उस गांव तक मोटरसाइकिल पर आते हैं. रास्ते में वह खूनी कुआं पड़ता है. आसपास के सारे गांव अपहरण उद्योग के लिए बदनाम हैं. आप को वह जालिम प्रधान कभी भी रास्ते में पकड़वा लेगा. आप को कुछ हो गया तो मैं इस गांव में किस के भरोसे नौकरी कर पाऊंगी? प्रधानजी की कैसी नजरें मुझे घूरती हैं, यह आप भी जानते हैं और मैं भी. किसी भी दिन अनहोनी घट सकती है.’’ ‘‘सब की ऐसी की तैसी,’’ जितेंद्रजी ने दिलासा दी, ‘‘अपने गांव में मेरी भी कुछ इज्जत है. अगर तुम पर जरा भी कोई आंच आई तो सैकड़ों लोगों को अपने गांव से ला कर यहां बवाल मचवा दूंगा.’’ ‘‘उस सब की नौबत ही क्यों आने दी जाए? अक्ल से काम लें हम लोग,’’ अमिला ने कहा. ‘‘अक्ल से क्या काम लें, बताओ? प्रधानजी के पास मिड डे का अनाज और सामग्री आती है. वह हमें बहुत कम देते हैं. मीनू के अनुसार एक दिन भी हम बच्चों को नहीं खिला पाते. स्कूल की मरम्मत के लिए पैसा आया, प्रधान ने हड़प लिया. न गिरती इमारत की मरम्मत हो सकी, न दरवाजेखिड़कियां लग सकीं और न रंगाईपुताई हो सकी. यहां तक कि बच्चों के लिए मुफ्त बांटने को जो किताबें आईं वे तक गांव की स्टेशनरी की दुकान पर बेच दी गईं.

‘‘हेडमास्टर का एकमात्र कमरा है. उस में प्रधान ने अपने जानवरों का भूसा भरवा दिया है. पाठशाला एक प्रकार से पशुशाला बन गई है. शिकायत नहीं करेंगे तो अफसर चेतेंगे कैसे? सारा दोष हम पर मढ़ दिया जाएगा कि हम नकारा हैं और पैसा खा गए. सरकारी अफसर किसी को नहीं नापेंगे…हम मास्टरों को नाप देंगे… सस्पेंड तो करेंगे ही, संभव है नौकरी से निकाल बाहर करें. शिकायत के अलावा और कौन सा रास्ता है?’’ अमिला को लगा, जितेंद्रजी कहते तो सच हैं पर सच का नतीजा वह भी जानते हैं और अमिला भी. जिस प्रधान के खिलाफ गांव में कोई चुनाव लड़ने तक की हिम्मत नहीं करता, जिस के पास हथियारबंद लोगों की पूरी फौज रहती है, जो आसपास के इलाके में कुख्यात है, जिस की चारों तरफ तूती बोलती है, जिस के खिलाफ कोई जबान तक नहीं खोलता, जिस के पास अफसर और नेताओं का जमावड़ा लगा रहता है, दावतें उड़ती रहती हैं, आसपास की लड़कियों को ला कर रात को ऐश और जश्न होते हैं, उस दबंग के खिलाफ अमिला या जितेंद्र जैसे मामूली लोगों की क्या हैसियत है कि वे कुछ कह पाएं. पर यह भी सच है कि यह अंबेडकर गांव है और सरकारी आदेश है कि गांव हर तरह से संतृप्त होना चाहिए.

अफसर मुआयने पर आ रहे हैं. क्या हो? स्कूल की सफाई और रंगाईपुताई जितेंद्रजी को अपने पैसे से करानी पड़ी. खाद और बीज का जो पैसा घर पर रखा था, उसे लगाना पड़ा. अमिला ने कहा, ‘‘सर, पूरे खर्चे का हिसाब लगाइए, कुछ मैं भी करूं, यह सिर्फ आप की ही जिम्मेदारी क्यों हो?’’ ‘‘तुम रहने दो, अमिला. मुझे तुम्हारी हालत अच्छी तरह पता है,’’ जितेंद्रजी मुसकराए, ‘‘कुछ भी हो, मैं इस बार अफसरों के आने पर पूरी स्थिति सब के सामने रख दूंगा, फिर चाहे मुझे नौकरी से ही हाथ क्यों न धोना पड़े,’’ उन की आवाज में जो दृढ़ता थी, उस से अमिला सचमुच सहम गई थी. अगर उन्होंने ऐसा किया तो नतीजे की वह कल्पना कर सकती थी. दबी जबान बोली, ‘‘अच्छी तरह सोच लीजिए…आएदिन प्रधानजी और गांव के छुटभैए नेता बेकसूर लोगों को सब के सामने बेइज्जत करते रहते हैं. हम लोगों की बेइज्जती करते उन्हें क्या देर लगेगी?’’ ‘‘जो होगा, देखा जाएगा, पर सहने की भी एक सीमा होती है, अमिला. हम कहां तक सहें? इस का प्रतिकार किसी न किसी को, एक न एक दिन करना ही पड़ेगा. फिर हम ही क्यों न करें? और इसी मौके पर क्यों न करें? रोजरोज मरने से एक दिन मरना ज्यादा अच्छा है, अमिला.

हमें हिम्मत से काम लेना चाहिए.’’ ‘‘जिस हिम्मत का परिणाम हमें पहले से पता हो उसे दिखाने का क्या औचित्य है जितेंद्रजी?’’ अमिला ने कहा जरूर पर जितेंद्र अपने गुस्से को भीतर ही भीतर दबाते रहने का प्रयत्न करते रहे. सफाई का प्रबंध, बच्चों के वस्त्रों की स्थिति, मिड डे मील, पीने के पानी की व्यवस्था, इमारत का रखरखाव, बच्चों की पढ़ाईलिखाई का स्तर सब की जांचपड़ताल की जाने लगी. बाहर से आए अफसर बिगड़ गए, ‘‘बहुत बुरी स्थिति है. आप लोग करते क्या रहते हैं?’’ जवाब में जितेंद्रजी ने सब के बीच सबकुछ कह दिया. अंत में उन्हीं लोगों से पूछा, ‘‘आप ही बताइए, इन स्थितियों में हम लोग क्या करें?’’ एक सहायक शिक्षाधिकारी तमक कर आगे बढ़ आए, ‘‘बहाने मत बनाइए मास्टर साहब, हम लोग सब जानते हैं, आप लोग क्या गुलगपाड़ा करते रहते हैं. स्कूल आते नहीं. अपने खेतों पर काम करते या करवाते रहते हैं. शिक्षामित्रों से काम चलाऊ पढ़ाई कराते रहते हैं या अपनी एवज में 500-700 रुपए में अध्यापक रख लेते हैं और उस से बच्चों को यह अधकचरा पढ़वाते रहे हैं. हमें सारी खबर रहती है आप लोगों की. प्रधानजी हमें एकएक खबर, एकएक सूचना लिख कर देते रहते हैं.’’

कुछ देर बाद जितेंद्रजी को भीतर अकेले में बुला लिया गया. प्रधानजी मुसकराए, ‘‘रात को गांव में अधिकारी यहां मौजमस्ती और खानेपीने के लिए रुकेंगे. अपनी मास्टरनी से कहो, उन की सेवा में रहे रात को.’’ ‘‘नहीं, अमिलाजी नहीं रुक सकेंगी यहां, सर…’’ जितेंद्र ने बारीबारी हर किसी चेहरे की तरफ देखा, ‘‘उन का बच्चा छोटा है और घर पर बूढ़ी सास उस बच्चे को नहीं संभाल सकतीं. पति बाहर दूसरे शहर में रहते हैं.’’ ‘‘हम कुछ नहीं सुनना चाहते,’’ प्रधानजी गरजे, ‘‘अगर उसे नौकरी करनी है तो रात को हमारे इन अफसरों और मेहमानों की सेवा के लिए रुकना ही पड़ेगा. तुम अकेले उस का स्वाद चखते रहे हो…हम लोगों को भी उस का मजा लेने दो.’’ पता नहीं जितेंद्र को अचानक क्या हो गया. एक झन्नाटेदार चांटा जड़ दिया प्रधान के चेहरे पर. बस, फिर क्या था.

जितेंद्र पर तमाम लोग एकदम टूट पड़े. उन्हें मारतेपीटते बाहर चबूतरे तक ले आए. वहां स्कूल के सारे बच्चे मौजूद थे. अमिला बुरी तरह घबरा गई. वे लोग लगातार लातघूंसे, थप्पड़मुक्के और जूतों से जितेंद्र की पिटाई कर रहे थे. अमिला तो एकदम हतबुद्ध. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि भीतर ऐसा क्या हुआ जो यह नौबत आ गई. सारे बच्चों के बीच उन लोगों ने जितेंद्र को मुरगा बना दिया. एक दबंग ने पीछे से ऐसी लात मारी कि वह मुंह के बल गिर पड़े. कुछ ही देर में अफसरों और नेताओं की गाडि़यां चली गईं. अमिला जितेंद्र के पास बैठी सिसकती रही.

क्वार्टर : धीमा को क्या मिल पाया सरकारी क्वार्टर

कुंजू प्रधान को घर आया देख कर धीमा की खुशी का ठिकाना न रहा. धीमा की पत्नी रज्जो ने फौरन बक्से में से नई चादर निकाल कर चारपाई पर बिछा दी. कुंजू प्रधान पालथी मार कर चारपाई पर बैठ गया. ‘‘अरे धीमा, मैं तो तुझे एक खुशखबरी देने चला आया…’’ कुंजू प्रधान ने कहा, ‘‘तेरा सरकारी क्वार्टर निकल आया है, लेकिन उस के बदले में बड़े साहब को कुछ रकम देनी होगी.’’ ‘‘रकम… कितनी रकम देनी होगी?’’ धीमा ने पूछा. ‘‘अरे धीमा… बड़े साहब ने तो बहुत पैसा मांगा था, लेकिन मैं ने तुम्हारी गरीबी और अपना खास आदमी बता कर रकम में कटौती करा ली थी,’’ कुंजू प्रधान ने कहा. ‘‘पर कितनी रकम देनी होगी?’’ धीमा ने दोबारा पूछा. ‘‘यही कोई 5 हजार रुपए,’’ कुंजू प्रधान ने बताया. ‘‘5 हजार रुपए…’’ धीमा ने हैरानी से पूछा, ‘‘इतनी बड़ी रकम मैं कहां से लाऊंगा?’’

‘‘अरे भाई धीमा, तू मेरा खास आदमी है. मुझे प्रधान बनाने के लिए तू ने बहुत दौड़धूप की थी. मैं ने किसी दूसरे का नाम कटवा कर तेरा नाम लिस्ट में डलवा दिया था, ताकि तुझे सरकारी क्वार्टर मिल सके. आगे तेरी मरजी. फिर मत कहना कि कुंजू भाई ने क्वार्टर नहीं दिलाया,’’ कुंजू प्रधान ने कहा. ‘‘लेकिन मैं इतनी बड़ी रकम कहां से लाऊंगा?’’ धीमा ने अपनी बात रखी. ‘‘यह गाय तेरी है…’’ सामने खड़ी गाय को देखते हुए कुंजू ने कहा, ‘‘क्या यह दूध देती है?’’ ‘‘हां, कुंजू भाई, यह मेरी गाय है और दूध भी देती है.’’ ‘‘अरे पगले, यह गाय मुझे दे दे. इसे मैं बड़े साहब की कोठी पर भेज दूंगा. बड़े साहब गायभैंस पालने के बहुत शौकीन हैं. तेरा काम भी हो जाएगा.’’ कुंजू प्रधान की बात सुन कर धीमा ने रज्जो की तरफ देखा, मानो पूछ रहा हो कि क्या गाय दे दूं? रज्जो ने हलका सा सिर हिला कर रजामंदी दे दी.

रज्जो की रजामंदी का इशारा पाते ही कुंजू प्रधान के साथ आए उस के एक चमचे ने फौरन गाय खोल ली. रास्ते में उस चमचे ने कुंजू प्रधान से पूछा, ‘‘यह गाय बड़े साहब की कोठी पर कौन पहुंचाएगा?’’ ‘‘अरे बेवकूफ, गाय मेरे घर ले चल. सुबह ही बीवी कह रही थी कि घर में दूध नहीं है. बच्चे परेशान करते हैं. अब घर का दूध हो जाएगा… समझा?’’ कुंजू प्रधान बोला. ‘‘लेकिन बड़े साहब और क्वार्टर?’’ उस चमचे ने सवाल किया. ‘‘मुझे न तो बड़े साहब से मतलब है और न ही क्वार्टर से. क्वार्टर तो धीमा का पहली लिस्ट में ही आ गया था. यह सब तो ड्रामा था.’’ कुंजू प्रधान दलित था. जब गांव में दलित कोटे की सीट आई, तो उस ने फौरन प्रधानी की दावेदारी ठोंक दी थी, क्योंकि अपनी बिरादरी में वही तो एक था, जो हिंदी में दस्तखत कर लेता था. उधर गांव के पहले प्रधान भगौती ने भी अपने पुराने नौकर लालू, जो दलित था, का परचा भर दिया था, क्योंकि भगौती के कब्जे में काफी गैरकानूनी जमीन थी.

उसे डर था, कहीं नया प्रधान उस जमीन के पट्टे आवंटित न करा दे. इस जमीन के बारे में कुंजू भी अच्छी तरह जानता था, तभी तो उस ने चुनाव प्रचार में यह खबर फैला दी थी कि अगर वह प्रधान बन गया, तो गांव वालों के जमीन के पट्टे बनवा देगा. जब यह खबर भगौती के कानों में पड़ी, तो उस ने फौरन कुंजू को हवेली में बुलवा लिया था, क्योंकि भगौती अच्छी तरह जानता था कि अगला प्रधान कुंजू ही होगा. कुंजू और भगौती में समझौता हो गया था. बदले में भगौती ने कुंजू को 50 हजार रुपए नकद व लालू की दावेदारी वापस ले ली थी. लिहाजा, कुंजू प्रधान बन गया था. आज धीमा के क्वार्टर के लिए नींव की खुदाई होनी थी. रज्जो ने अगरबत्ती जलाई, पूजा की. धीमा ने लड्डू बांट कर खुदाई शुरू करा दी थी. नकेलु फावड़े से खुदाई कर रहा था, तभी ‘खट’ की आवाज हुई. नकेलु ने फौरन फावड़ा रोक दिया.

फिर अगले पल कुछ सोच कर उस ने दोबारा उसी जगह पर फावड़ा मारा, तो फिर वही ‘खट’ की आवाज आई. ‘‘कुछ है धीमा भाई…’’ नकेलु फुसफुसाया, ‘‘शायद खजाना है.’’ नकेलु की आंखों में चमक देख कर धीमा मुसकराया और बोला, ‘‘कुछ होगा तो देखा जाएगा. तू खोद.’’ ‘‘नहीं धीमा भाई, शायद खजाना है. रात में खोदेंगे, किसी को पता नहीं चलेगा. अपनी सारी गरीबी खत्म हो जाएगी,’’ नकेलु ने कहा. ‘‘कुछ नहीं है नकेलु, तू नींव खोद. जो होगा देखा जाएगा.’’ नकेलु ने फिर फावड़ा मारा. जमीन के अंदर से एक बड़ा सा पत्थर निकला. पत्थर पर एक आकृति उभरी हुई थी. ‘‘अरे, यह तो किसी देवी की मूर्ति लगती है,’’ सड़क से गुजरते नन्हे ने कहा. फिर क्या था. मूर्ति वाली खबर गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई और वहां पर अच्छीखासी भीड़ जुट गई. ‘‘अरे, यह तो किसी देवी की मूर्ति है…’’ नदंन पंडित ने कहा, ‘‘देवी की मूर्ति धोने के लिए कुछ ले आओ.’’ नदंन पंडित की बात का फौरन पालन हुआ. जुगनू पानी की बालटी ले आया. बालटी में पानी देख कर नदंन पंडित चिल्लाया, ‘‘अरे बेवकूफ, पानी नहीं गाय का दूध ले कर आ.’’ नदंन पंडित का इतना कहना था कि जिस के घर पर जितना गाय का दूध था, फौरन उतना ही ले आया. गांव में नदंन पंडित की बहुत बुरी हालत थी.

उस की धर्म की दुकान बिलकुल नहीं चलती थी. आज से उन्हें अपना भविष्य संवरता लग रहा था. नंदन पंडित ने मूर्ति को दूध से अच्छी तरह से धोया, फिर मूर्ति को जमीन पर गमछा बिछा कर 2 ईंटों की टेक लगा कर रख दिया. उस के बाद 10 रुपए का एक नोट रख कर माथा टेक दिया. इस के बाद नंदन पंडित मुुंह में कोई मंत्र बुदबुदाने लग गया था. लेकिन उस की नजर गमछे पर रखे नोटों पर टिकी थी. गांव वाले बारीबारी से वहां माथा टेक रहे थे. धीमा और रज्जो यह सब बड़ी हैरानी से देख रहे थे. उन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा. ‘‘यह देवी की जगह है, यहां पर मंदिर बनना चाहिए,’’ भीड़ में से कोई बोला. ‘हांहां, मंदिर बनना चाहिए,’ समर्थन में कई आवाजें एकसाथ उभरीं. दूसरे दिन कुंजू प्रधान के यहां सभा हुई. सभा में पूरे गांव वालों ने मंदिर बनाने का प्रस्ताव रखा और आखिर में यही तय हुआ कि मंदिर वहीं बनेगा, जहां मूर्ति निकली है और धीमा को कोई दूसरी जगह दे दी जाएगी. धीमा को गांव के बाहर थोड़ी सी जमीन दे दी गई, जहां वह फूंस की झोंपड़ी डाल कर रहने लगा था.

धीमा अब तक अच्छी तरह समझ चुका था कि सरकारी क्वार्टर के चक्कर में उस की पुश्तैनी जमीन भी हाथ से निकल चुकी है. मंदिर बनने का काम इतनी तेजी से चला कि जल्दी ही मंदिर बन गया. गांव वालों ने बढ़चढ़ कर चंदा दिया था. आज मंदिर में भंडारा था. कई दिनों से पूजापाठ हो रहा था. नंदन पंडित अच्छी तरह से मंदिर पर काबिज हो चुका था. खुले आसमान के नीचे फूंस की झोंपड़ी के नीचे बैठा धीमा अपने बच्चों को सीने से लगाए बुदबुदाए जा रहा था, ‘‘वाह रे ऊपर वाले, इनसान की जमीन पर इनसान का कब्जा तो सुना था, मगर कोई यह तो बताए कि जब ऊपर वाला ही इनसान की जमीन पर कब्जा कर ले, तो फरियाद किस से करें?’’

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