Download App

Social Story In Hindi : छींकना भी हुआ मुहाल

Social Story In Hindi : सर्दी का मौसम और जुकाम का प्रकोप कोई अस्वाभाविक बात तो नहीं है लेकिन इस साल के सर्द मौसम में छींकना भी कठिन हो रहा है. वाह रे, स्वाइन फ्लू. तेरे भय ने तो सब लोगों की नींद ही उड़ा दी है. लोगों का बस, यही प्रयास है कि चाहे जो कुछ हो जाए लेकिन जुकाम न हो. सर्दी से बचने के लिए हर कोई इस कदर एहतियात बरत रहा है कि कहीं उसे भूल से भी जुकाम न हो जाए.

हमारे एक मित्र लाख कोशिशों के बाद भी जुकाम के शिकार बन गए. जुकाम हुआ तो छींक आनी भी स्वाभाविक थी, लेकिन छींक आते ही जैसे विस्फोट हो गया. उस दिन बस से अपने आफिस जा रहे थे कि न जाने कैसे भीड़ भरी बस में अचानक छींक आ गई.

उन का छींकना था कि सिटी बस में जैसे हड़कंप सा मच गया. उस समय का दृश्य तो वाकई बहुत डराने वाला लगा. बस के यात्रीगण हमारे मित्र को ऐसी शिकायत भरी नजरों से देख रहे थे जैसे उन्होंने कोई बेहद संगीन अपराध कर दिया हो. लोगों का छींक के प्रति डर ने बस में ऐसी अफरातफरी मचाई कि ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगा कर बस को रोका और एक स्वर में बस के यात्री हमें बस से तुरंत बाहर निकालने पर उतारू हो गए. सभी यात्रियों के विरोध के आगे हमारे मित्र को झुकना पड़ा और बस से उतर कर वे पैदल ही आफिस कूच कर गए. उन की हालत ऐसी थी जैसे समाज बहिष्कृत किसी अभागे की हो सकती है.

केवल छींकने मात्र से लोग यह मान बैठे थे कि ‘स्वाइन फ्लू’ का संक्रमण फैलाने का ठेका उन्होंने ही ले लिया हो. दूर भागते लोगों की अफरातफरी ऐसा दृश्य उपस्थित कर रही थी जैसे 26/11 के मुंबई के ताज होटल पर आतंकी घटना के समय रहा होगा. छींकने वाले शख्स को छींक आने की आशंका मात्र से लोग भाग खड़े होते हैं, भय के माहौल में उन की दौड़भाग दूरी बनाने के लिए स्वाभाविक है.

आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिक के बारे में 19वीं सदी में एक कहावत बड़ी प्रचलित थी कि जब मेटरनिक को जुकाम होता था तब पूरा यूरोप छींकता था. जुकाम आस्ट्रिया के चांसलर को और छींकना पूरे यूरोप का. है न वाकई विलक्षण उदाहरण, लेकिन यहां इस वाक्य का लाक्षणिक अर्थ इतना भर है कि मेटरनिक इतना महत्त्वपूर्ण व्यक्ति बन गया था कि वह जो कुछ भी करता था उस का सीधा असर संपूर्ण यूरोप की जनता पर पड़ता था.

आजकल जुकाम का खौफ छाया हुआ है. ‘स्वाइन फ्लू’ का डर हर तरफ दिख रहा है. डाक्टरों की चांदी हो रही है तो तथाकथित ‘झोलाछाप’ डाक्टर भी चांदी काटने में पीछे नहीं. अस्पताल, नर्सिंग होम में मरीजों का सैलाब उमड़ रहा है तो मेडिकल शौप भी ग्राहकों की आवाजाही से रौशन हो रही हैं. जुकाम न हो जाए, बस इसी चिंता में लोग एडवांस में ही उपचार कराते फिर रहे हैं. धड़ाधड़ दवाइयां खरीदीबेची जा रही हैं. बिना सोचेसमझे लोग दवाइयां ऐसे खा रहे हैं जैसे मिठाइयों की मुफ्त की लूट मची हो.

साधारण जुकाम से पीडि़त हमारे मित्र उस दिन जैसे ही आफिस तशरीफ लाए कि उन की हालत देखते ही आफिस में हड़कंप मच गया. आननफानन में स्टाफ सेक्रेटरी ने एक इमरजेंसी मीटिंग काल कर डाली. बौस पर दबाव डाल कर हमारे मित्र महोदय को फौरन आफिस से घर भेज दिया गया ताकि वे अच्छे से इलाज करा सकें. बौस जो छुट्टियां स्वीकृत करने में हमेशा आनाकानी करते हैं, उस दिन उन्होंने फौरन एक सप्ताह की छुट्टी स्वीकृत कर उन्हें यथाशीघ्र घर भिजवाने के लिए टैक्सी मंगवा दी. स्टाफ ने स्वयं ही टैक्सी का किराया भी एडवांस में चुकता कर दिया.

उस दिन इमरजेंसी मीटिंग में कुछ नए नियम भी निर्धारित हुए. अब आफिस में हाथ हिला कर अभिवादन करने पर तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया गया. जुकाम की क्षीण सी संभावना मात्र से ही आफिस आने पर रोक लगा दी गई. आफिस खर्चे से मास्क खरीदे गए और उन्हें धारण करना अनिवार्य बना दिया गया.

अगर देखा जाए तो आजकल ‘मास्क’ पहनना मजबूरी के साथसाथ फैशन भी बन गया है. अच्छे स्टैंडर्ड क्वालिटी के ‘मास्क’ धारण करने वाले लोग अब अपने को ‘हाईजेंट्री क्लास’ के ‘एक्टिव’ समझने लगे हैं. ‘मास्क’ नहीं खरीद पाने वाले बेचारे समाज के निम्न, गरीब, साधनविहीन की श्रेणी में आ गए हैं. उन्हें अब अपनी किस्मत पर शिकायत होने लगी है. वाकई उस ने दुनिया में 2 वर्ग के लोग पैदा किए हैं. कार्ल मार्क्स की ‘हैव्ज’ और ‘हैव्ज नाट’ की विचारधारा उन्हें चरितार्थ होती नजर आ रही है. मास्क लगाने वाले संपन्न वर्ग के पास सबकुछ है तो दूसरे वर्ग के पास कुछ नहीं.

मित्र महोदय अपने घर पहुंचे तो घर का माहौल भी बदल गया. उन्हें इस नई भूमिका में देख कर उन के परिजन भी मारे डर के उन से दूर भागने लगे थे. उन का गुनाह सिर्फ इतना सा था कि घर में पैर रखते ही उन्हें दोचार छींकें आ गई थीं. इतनी सी बात कालोनी और फिर मीडिया के द्वारा शहर भर में हौट न्यूज बन कर आग की तरह फैल गई. काम वाली बाई और आसपास के तमाम लोगों ने उन से अभेद्य दूरी बना ली. जैसे साक्षात में वे ‘स्वाइन फ्लू’ के लाइवड्रिस्ट्रीब्यूटर बन गए हों. जुकाम पीडि़त व्यक्तियों को 2 मोर्चों को एकसाथ फेस करना पड़ता है. एक तो अपने घर के परिजनों से तो दूसरे बाहरी लोगों से, जिन्हें समझाना बेहद मुश्किल होता है.

सर्दी की ऋतु में ब्याहशादी का सीजन भी जोर पकड़ने लगा है. धड़ल्ले से शादीब्याह निबटाए जा रहे हैं तो बेचारे दूल्हेदुलहनों को दूसरी ही चिंता सता रही है. उन के हनीमून भी मास्क पहन कर ही संपन्न हो रहे हैं. डाक्टरी सलाह दी जा रही है कि भीड़भाड़ वाले इलाकों से दूर रहें. अब भला ब्याहशादी से कैसे दूर रहा जा सकता है. कुछ अति समझदार दूल्हे व दुलहन मास्क पहन कर ही ब्याह रचा रहे हैं. दांपत्य जीवन भी खतरे में पड़ता जा रहा है. रोमांस, सुख की जगह डर पैदा करने लगा है.

स्कूलकालेज में छुट्टियां हो जाने से विद्यार्थी वर्ग आनंदित है. जहां छुट्टियां नहीं हैं वहां छोटेछोटे बच्चे भी स्कूल का टाइम होते ही छींकना शुरू कर देते हैं. पेरेंट्स बेचारे उन्हें स्कूल न भेज कर सीधे डाक्टरों के क्लीनिकों पर ले दौड़ते हैं. स्कूल से भागने का मन हो तो चालाक विद्यार्थी इस अचूक नुस्खे का प्रयोग कर के टीचरों से घर जाने की ससम्मान अनुमति पा लेते हैं. Social Story In Hindi 

Family Story : छोटू की तलाश – क्या पूरी हो पाई छोटू की तलाश?

Family Story : सुबह का समय था. घड़ी में तकरीबन साढे़ 9 बजने जा रहे थे. रसोईघर में खटरपटर की आवाजें आ रही थीं. कुकर अपनी धुन में सीटी बजा रहा था. गैस चूल्हे के ऊपर लगी चिमनी चूल्हे पर टिके पतीलेकुकर वगैरह का धुआं समेटने में लगी थी. अफरातफरी का माहौल था.

शालिनी अपने घरेलू नौकर छोटू के साथ नाश्ता बनाने में लगी थीं. छोटू वैसे तो छोटा था, उम्र यही कोई 13-14 साल, लेकिन काम निबटाने में बड़ा उस्ताद था. न जाने कितने ब्यूरो, कितनी एजेंसियां और इस तरह का काम करने वाले लोगों के चक्कर काटने के बाद शालिनी ने छोटू को तलाशा था.

2 साल से छोटू टिका हुआ, ठीकठाक चल रहा था, वरना हर 6 महीने बाद नया छोटू तलाशना पड़ता था. न जाने कितने छोटू भागे होंगे.

शालिनी को यह बात कभी समझ नहीं आती थी कि आखिर 6 महीने बाद ही ये छोटू घर से विदा क्यों हो जाते हैं?

शालिनी पूरी तरह से भारतीय नारी थी. उन्हें एक छोटू में बहुत सारे गुण चाहिए होते थे. मसलन, उम्र कम हो, खानापीना भी कम करे, जो कहे वह आधी रात को भी कर दे, वे मोबाइल फोन पर दोस्तों के साथ ऐसीवैसी बातें करें, तो उन की बातों पर कान न धरे, रात का बचाखुचा खाना सुबह और सुबह का शाम को खा ले.

कुछ खास बातें छोटू में वे जरूर देखतीं कि पति के साथ बैडरूम में रोमांटिक मूड में हों, तो डिस्टर्ब न करे. एक बात और कि हर महीने 15-20 किट्टी पार्टियों में जब वे जाएं और शाम को लौटें, तो डिनर की सारी तैयारी कर के रखे.

शालिनी के लिए एक अच्छी बात यह थी कि यह वाला छोटू बड़ा ही सुंदर था. गोराचिट्टा, अच्छे नैननक्श वाला. यह बात वे कभी जबान पर भले ही न ला पाई हों, लेकिन वे जानती थीं कि छोटू उन के खुद के बेटे अनमोल से भी ज्यादा सुंदर था. अनमोल भी इसी की उम्र का था, 14 साल का.

घर में एकलौता अनमोल, शालिनी और उन के पति, कुल जमा 3 सदस्य थे. ऐसे में अनमोल की शिकायतें रहती थीं कि उस का एक भाई या बहन क्यों नहीं है? वह किस के साथ खेले?

नया छोटू आने के बाद शालिनी की एक समस्या यह भी दूर हो गई कि अनमोल खुश रहने लग गया था. शालिनी ने छोटू को यह छूट दे दी कि वह जब काम से फ्री हो जाए, तो अनमोल से खेल लिया करे.

छोटू पर इतना विश्वास तो किया ही जा सकता था कि वह अनमोल को कुछ गलत नहीं सिखाएगा.

छोटू ने अपने अच्छे बरताव और कामकाज से शालिनी का दिल जीत लिया था, लेकिन वे यह कभी बरदाश्त नहीं कर पाती थीं कि छोटू कामकाज में थोड़ी सी भी लापरवाही बरते. वह बच्चा ही था, लेकिन यह बात अच्छी तरह समझता था कि भाभी यानी शालिनी अनमोल की आंखों में एक आंसू भी नहीं सहन कर पाती थीं.

अनमोल की इच्छानुसार सुबह नाश्ते में क्याक्या बनेगा, यह बात शालिनी रात को ही छोटू को बता देती थीं, ताकि कोई चूक न हो. छोटू सुबह उसी की तैयारी कर देता था.

छोटू की ड्यूटी थी कि भयंकर सर्दी हो या गरमी, वह सब से पहले उठेगा, तैयार होगा और रसोईघर में नाश्ते की तैयारी करेगा.

शालिनी भाभी जब तक नहाधो कर आएंगी, तब तक छोटू नाश्ते की तैयारी कर के रखेगा. छोटू के लिए यह दिनचर्या सी बन गई थी.

आज छोटू को सुबह उठने में देरी हो गई. वजह यह थी कि रात को शालिनी भाभी की 2 किट्टी फ्रैंड्स की फैमिली का घर में ही डिनर रखा गया था. गपशप, अंताक्षरी वगैरह के चलते डिनर और उन के रवाना होने तक रात के साढे़ 12 बज चुके थे. सभी खाना खा चुके थे. बस, एक छोटू ही रह गया था, जो अभी तक भूखा था.

शालिनी ने अपने बैडरूम में जाते हुए छोटू को आवाज दे कर कहा था, ‘छोटू, किचन में खाना रखा है, खा लेना और जल्दी सो जाना. सुबह नाश्ता भी तैयार करना है. अनमोल को स्कूल जाना है.’

‘जी भाभी,’ छोटू ने सहमति में सिर हिलाया. वह रसोईघर में गया. ठिठुरा देने वाली ठंड में बचीखुची सब्जियां, ठंडी पड़ चुकी चपातियां थीं. उस ने एक चपाती को छुआ, तो ऐसा लगा जैसे बर्फ जमी है. अनमने मन से सब्जियों को पतीले में देखा. 3 सब्जियों में सिर्फ दाल बची हुई थी. यह सब देख कर उस की बचीखुची भूख भी शांत हो गई थी. जब भूख होती है, तो खाने को मिलता नहीं. जब खाने को मिलता है, तब तक भूख रहती नहीं. यह भी कोई जिंदगी है.

छोटू ने मन ही मन मालकिन के बेटे और खुद में तुलना की, ‘क्या फर्क है उस में और मुझ में. एक ही उम्र, एकजैसे इनसान. उस के बोलने से पहले ही न जाने कितनी तरह का खाना मिलता है और इधर एक मैं. एक ही मांबाप के

5 बच्चे. सब काम करते हैं, लेकिन फिर भी खाना समय पर नहीं मिलता. जब जिस चीज की जरूरत हो तब न मिले तो कितना दर्द होता है,’ यह बात छोटू से ज्यादा अच्छी तरह कौन जानता होगा.

छोटू ने बड़ी मुश्किल से दाल के साथ एक चपाती खाई औैर अपने कमरे में सोने चला गया. लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी. आज उस का दुख और दर्र्द जाग उठा. आंसू बह निकले. रोतेरोते सुबकने लगा वह और सुबकते हुए न जाने कब नींद आ गई, उसे पता ही नहीं चला.

थकान, भूख और उदास मन से जब वह उठा, तो साढे़ 8 बज चुके थे. वह उठते ही बाथरूम की तरफ भागा. गरम पानी करने का समय नहीं था, तो ठंडा पानी ही उडे़ला. नहाना इसलिए जरूरी था कि भाभी को बिना नहाए किचन में आना पसंद नहीं था.

छोटू ने किचन में प्रवेश किया, तो देखा कि भाभी कमरे से निकल कर किचन की ओर आ रही थीं. शालिनी ने जैसे ही छोटू को पौने 9 बजे रसोईघर

में घुसते देखा, तो उन की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘छोटू, इस समय रसोई में घुसा है? यह कोई टाइम है उठने का? रात को बोला था कि जल्दी उठ कर किचन में तैयारी कर लेना. जरा सी भी अक्ल है तुझ में,’’ शालिनी नाराजगी का भाव लिए बोलीं.

‘‘सौरी भाभी, रात को नींद नहीं आई. सोया तो लेट हो गया,’’ छोटू बोला.

‘‘तुम नौकर लोगों को तो बस छूट मिलनी चाहिए. एक मिनट में सिर पर चढ़ जाते हो. महीने के 5 हजार रुपए, खानापीना, कपड़े सब चाहिए तुम

लोगों को. लेकिन काम के नाम पर तुम लोग ढीले पड़ जाते हो…’’ गुस्से में शालिनी बोलीं.

‘‘आगे से ऐसा नहीं होगा भाभी,’’ छोटू बोला.

‘‘अच्छाअच्छा, अब ज्यादा बातें मत बना. जल्दीजल्दी काम कर,’’ शालिनी ने कहा.

छोटू और शालिनी दोनों तेजी से रसोईघर में काम निबटा रहे थे, तभी बैडरूम से अनमोल की तेज आवाज आई, ‘‘मम्मी, आप कहां हो? मेरा

नाश्ता तैयार हो गया क्या? मुझे स्कूल जाना है.’’

‘‘लो, वह उठ गया अनमोल. अब तूफान खड़ा कर देगा…’’ शालिनी किचन में काम करतेकरते बुदबुदाईं.

‘‘आई बेटा, तू फ्रैश हो ले. नाश्ता बन कर तैयार हो रहा है. अभी लाती हूं,’’ शालिनी ने किचन से ही अनमोल को कहा.

‘‘मम्मी, मैं फ्रैश हो लिया हूं. आप नाश्ता लाओ जल्दी से. जोरों की भूख लगी है. स्कूल को देर हो जाएगी,’’ अनमोल ने कहा.

‘‘अच्छी आफत है. छोटू, तू यह

दूध का गिलास अनमोल को दे आ.

ठंडा किया हुआ है. मैं नाश्ता ले कर आती हूं.’’

‘‘जी भाभी, अभी दे कर आता हूं,’’ छोटू बोला.

‘‘मम्मी…’’ अंदर से अनमोल के चीखने की आवाज आई, तो शालिनी भागीं. वे चिल्लाते हुए बोलीं, ‘‘क्या हुआ बेटा… क्या गड़बड़ हो गई…’’

‘‘मम्मी, दूध गिर गया,’’ अनमोल चिल्ला कर बोला.

‘‘ओह, कैसे हुआ यह सब?’’ शालिनी ने गुस्से में छोटू से पूछा.

‘‘भाभी…’’

छोटू कुछ बोल पाता, उस से पहले ही शालिनी का थप्पड़ छोटू के गाल पर पड़ा, ‘‘तू ने जरूर कुछ गड़बड़ की होगी.’’

‘‘नहीं भाभी, मैं ने कुछ नहीं किया… वह अनमोल भैया…’’

‘‘चुप कर बदतमीज, झूठ बोलता है,’’ शालिनी का गुस्सा फट पड़ा.

‘‘मम्मी, छोटू का कुसूर नहीं था. मुझ से ही गिलास छूट गया था,’’ अनमोल बोला.

‘‘चलो, कोई बात नहीं. तू ठीक तो है न. जलन तो नहीं हो रही न? ध्यान से काम किया कर बेटा.’’

छोटू सुबक पड़ा. बिना वजह उसे चांटा पड़ गया. उस के गोरे गालों पर शालिनी की उंगलियों के निशान छप चुके थे. जलन तो उस के गालों पर हो रही थी, लेकिन कोई पूछने वाला नहीं था.

‘‘अब रो क्यों रहा है? चल रसोईघर में. बहुत से काम करने हैं,’’ शालिनी छोटू के रोने और थप्पड़ को नजरअंदाज करते हुए लापरवाही से बोलीं.

छोटू रसोईघर में गया. कुछ देर रोता रहा. उस ने तय कर लिया कि अब इस घर में और काम नहीं करेगा. किसी अच्छे घर की तलाश करेगा.

दोपहर को खेलते समय छोटू चुपचाप घर से निकल गया. महीने की 15 तारीख हो चुकी थी. उस को पता था कि 15 दिन की तनख्वाह उसे नहीं मिलेगी. वह सीधा ब्यूरो के पास गया, इस से अच्छे घर की तलाश में.

उधर शाम होेने तक छोटू घर नहीं आया, तो शालिनी को एहसास हो गया कि छोटू भाग चुका है. उन्होंने ब्यूरो में फोन किया, ‘‘भैया, आप का भेजा हुआ छोटू तो भाग गया. इतना अच्छे से अपने बेटे की तरह रखती थी, फिर भी न जाने क्यों चला गया.’’

छोटू को नए घर और शालिनी को नए छोटू की तलाश आज भी है. दोनों की यह तलाश न जाने कब तक पूरी होगी. Family Story 

Religion : ईश्वर होता तो दुनिया में समस्या न होती, ईश्वर, अल्लाह मनुष्य के रचे काल्पनिक नाम

Religion :  चप्पल पहन कर मंदिर को मत छुओ, भगवान नाराज हो जाएंगे और दंड देंगे. मधु ने अपने 4 साल के बालक को खेलतेखेलते घर में बने मंदिर को हाथ लगाते देखा तो चिल्ला उठी.
भगवान कहां हैं?
दिख नहीं रहा, वो मंदिर में विराजमान हैं.
वो तो स्टैच्यू है. वो दंड कैसे देगा? वो तो चल भी नहीं सकता.
बालक ने अपने निश्छल भोले मन ने सच उजागर कर दिया.
मगर मां ने भगवान का डर मन में बिठाने के लिए 4 साल के मासूम को थप्पड़ जड़ दिया. उस के बाद पिता ने भी डांटफटकार करते हुए मासूम के सामने भगवान का हौआ खड़ा किया.

धर्म और भगवान दोनों इंसान पर जबरदस्ती लादे गए हैं. इंसान अपने कुदरती रूप में ही बहुत अच्छा और शुद्ध पैदा होता है और बिना धर्म व भगवान के वह बहुत अच्छा इंसान बन सकता है. अब चूंकि धार्मिक और अंधविश्वासी लोगों की जनसंख्या इस धरती पर बहुत ज्यादा है लिहाजा वह हर नए बच्चे को अपनी तरह ही बना लेती है. हो सकता है एक जमाने में सोसायटी को चलनेचलाने के लिए लोगों ने धर्म बनाया हो. मगर अब हमारी सोसायटी को चलने के लिए एक अलग व्यवस्था है. और ऐसे में अब ये धर्म हमारी प्रगति में लंगड़ी मारने के सिवा किसी काम के नहीं हैं.

इस बात को क्या नकार सकते हैं कि धर्म के नाम पे ही धरती सब से ज्यादा लहूलुहान हुई है और हो रही है. ईश्वर यदि सबकुछ देख रहा होता तो गाजा में भूख और बम से मरने वालों की पीड़ा को क्यों नहीं देख पा रहा है? बम चलाने वालों को दंड क्यों नहीं दे रहा? एक मुट्ठी चावल के लिए कटोरा ले कर रोतेगिड़गिड़ाते मासूमों का दर्द उसे दिखाई नहीं दे रहा? वह सिंथेटिक दूध बना कर नन्हेनन्हे बच्चों की रगों में जहर भरने वालों को दंड क्यों नहीं दे पाता? अगर धर्म एक अच्छे इंसान होने का सर्टिफिकेट होता तो इस दुनिया में कोई समस्या ही न होती, धर्म के नाम पर या संप्रदाय के नाम पर की जाने वाली हत्याएं न होतीं. दरअसल, न तो वो कहीं है और न कुछ देख सकता है. भगवान, ईश्वर, अल्लाह सब मनुष्य के रचे काल्पनिक नाम और सब से ज्यादा विश्वास के साथ बोला जाने वाला झूठ है. Religion

Cloud Burst Incidents : खतरे के बादल

Cloud Burst Incidents : विगत वर्षों में बादल फटने की घटनाएं अकसर हो रही हैं. इस से जान व माल की हानि हो रही है. बादलों का प्रैशर बढ़ने से वे फट जाते हैं और वेग के साथ मलवा, पत्थर और विशाल शिलाएं अपने साथ ले कर आते हैं. मगर इन प्राकृतिक घटनाओं से बचा जा सकता है जो इंसानी लापरवाहियों के चलते हो नहीं पा रहा.

मैं उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में रहती हूं. गढ़वाल क्षेत्र में भी मेरा नियमित तौर पर भ्रमण रहता है क्योंकि मैं एक घुमक्कड़ हूं. घुमक्कड़ी मेरा महज शौक नहीं बल्कि अपने आसपास के भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिवेश के बारे में जानकारी हासिल करने का खास माध्यम भी है. बरसात में, जिसे स्थानीय भाषा में हम चौमास भी कहते हैं, पानी बरसना स्वाभाविक है लेकिन इस की निकासी का उचित प्रयास प्रशासन को ही करना होगा.

एक समय था जब आबादी कम थी तो किसी न किसी तरह पानी की निकासी हो जाती थी लेकिन आज, 2021 के आंकड़ों के अनुसार, हल्द्वानी की जनसंख्या 6,56,000 दर्ज है जो बीते 5 वर्षों में और बड़ी होगी. पहाड़ी क्षेत्र से जितना भी पलायन हुआ है, इस का सब से अधिक भार हल्द्वानी शहर पर ही पड़ा है. आज से लगभग 25-30 वर्षों पहले यह शहर रहने लायक नहीं माना जाता था. यह भाबर का इलाका है, जहां गरमी और मच्छर की वजह से परिस्थितियां प्रतिकूल थीं. धीरेधीरे जनसंख्या का घनत्व बढ़ा और शहर फैलता गया. महानगरों वाली संस्कृति धीरेधीरे यहां भी दिखाई दे रही है. बड़ेबड़े मौल हैं. और्डर करते ही 10 मिनट में पहुंच जाने वाला ब्लिंकिट भी है. सुविधाओं में इजाफा हुआ है लेकिन जलभराव की समस्या काफी बढ़ गई है.

शहर के आसपास बहने वाले रकसिया, कलसिया और शेर नाला उफान पर होने की वजह से कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. हल्द्वानी शहर में जल आपूर्ति करने वाली गोला नदी का जलस्तर बढ़ जाने से रेलवे के आसपास बनी असंख्य झुग्गीझोंपड़ियां खतरे में आ जाती हैं. सब से बड़ी गलती उन्हें यहां पर बसने की इजाजत देना और फिर उन के पुनर्वास की व्यवस्था न करना है. सामान्य दिनों में ही हल्द्वानी से महज 25-30 किलोमीटर दूर भीमताल तक पहुंचने में अकसर बहुत ज्यादा समय लग जाता है. बरसात में तो हाल और भी बुरा रहता है. अपने पुराने शहर नैनीताल और अल्मोड़ा जाने के लिए मुझे कई बार सोचना पड़ता है. कैंचीधाम की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से आगे जाने वाले लोगों के लिए भी बहुत मुश्किल हो गई है.

भीमताल, भवानी, मुक्तेश्वर, रामगढ़ इस के आसपास के पर्वतीय स्थल हैं जहां सालभर पर्यटकों की भरमार रहती है. इस जरूरत को पूरा करने के लिए वहां पर कई सारे गैस्टहाउस बने हैं. रिजौर्ट्स और एयरबीएनबी वैबसाइट के माध्यम से बुक होने वाले अनेक पर्यटक आवास बने हैं. छोटेछोटे भवन तो ज्यादा परेशानी पैदा नहीं करते लेकिन बड़ेबड़े रिजौर्ट्स के निर्माण के लिए पहाड़ियों के साथ छेड़छाड़ करनी पड़ती है जिस से वे कमजोर पड़ रही हैं. चूंकि ये संपत्तियां पूंजीपति लोगों की होती हैं इसलिए इन पर किसी तरह की कार्यवाही भी नहीं होती. पैसों के लेनदेन से ही सारा मामला सैट हो जाता है. जूनजुलाई के महीनों में मुक्तेश्वर-रामगढ़ नाम से प्रसिद्ध फलपट्टी देखने लायक होती है. सेव, नाशपाती, प्लम, आडू और खुबानी से लकदक पेड़ देख कर मन झूम जाता है. इसी इरादे से उधर की तरफ रुख करो तो कंक्रीट के जंगल दिखाई देते हैं.

कुछ स्थानीय लोग हैं जो अपने खेतों को बचाए हुए हैं लेकिन अधिकतर लोग अपनी जमीन बेच कर हल्द्वानी या दिल्ली जैसे शहरों में बस गए हैं. और लहलहाती जमीन अब बंजर हो गई है. इतने सारे रिजौर्ट और होटल के लिए पानी की आपूर्ति संभव नहीं है, इसलिए सभी जगह भालू गाढ़ नामक वाटरफौल से टैंकरों से पानी की सप्लाई होती है. पर्यटकों को लुभाने के लिए इन होटल को हिंदी, इंग्लिश, कुमाऊनी, जापानी और चीनी नाम दिए गए हैं.

शायद पहाड़ों में स्वास्थ्य और शिक्षा की बेहतर व्यवस्था होती तो लोग अपने घर और अपने खेतों को बेच कर बड़े शहरों का रुख न करते. प्रशासन की बेरुखी और खुद बड़े शहरों में रहने की उन की चाहत ने पहाड़ों को दुखों के समंदर में डुबो दिया है.

नैनीताल की मौल रोड तो काफी सालों से धंस रही है, बीते वर्षों में हल्द्वानी-नैनीताल राष्ट्रीय राजमार्ग के धंसने की भी खबरें आई थी. भवाली-अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग में क्वारब के पास लंबे समय से लगातार मलबा और बोल्डर आने से यह रास्ता अकसर बंद हो जाता है और यात्रियों को रानीखेत के रास्ते अल्मोड़ा पहुंचना पड़ता है. इस से समय और पैसे दोनों की हानि होती है. खैरना के पास सुयाल बाड़ी में सड़क धंसने से वहां पर स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय की लगभग एक दशक पहले बनी बिल्डिंग को भी खतरा बना हुआ है.

राजस्थान के झालावाड़ में छत गिरने से 8 बच्चों की मौत के बाद प्रशासन और संवाददाताओं ने भी आंखें खोलीं और स्कूलों का जायजा लिया. पता चला कि बहुत सारे स्कूल जर्जर अवस्था में चल रहे हैं जो बरसात में कभी भी ढह सकते हैं.

हल्द्वानी से लोग नौकरी के लिए आसपास के शहरों में अप-डाउन करते हैं बिलकुल जैसे दिल्ली और एनसीआर में. अभी हाल ही में मूसलाधार बारिश के कारण हल्द्वानी के पास ही स्थित बल्दिया खान-फतेहपुर मार्ग में ऐसे ही यात्रियों की कार आगे और पीछे दोनों तरफ सड़क धंसने के कारण फंस गई. बहुत कोशिश करने के बाद भी जब ये 5-6 लोग कार को निकालने में कामयाब नहीं हुए तो इन्होंने एक समाचारपत्र के कर्मचारियों को फोन किया.

उन्हीं के शब्दों में, “सर, प्लीज हमें बचा लीजिए. आगे भी सड़क धंस गई है और पीछे भी. हमारी कार बढ़ नहीं रही है. सुनसान इलाका है. हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा है.” संपादक के माध्यम से बात पुलिस तक पहुंची, तब इन यात्रियों को रेस्क्यू किया गया. समस्याएं बहुत सारी हैं, ये त्वरित समाधान मांगती हैं.

उत्तराखंड का अधिकतर पहाड़ी भाग चाहे वह कुमाऊं का हो या गढ़वाल का, बहुत ही सुंदर और मनमोहक है. 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग हो कर जब इस नए राज्य की स्थापना हुई तो इस का मूल उद्देश्य पहाड़ी क्षेत्र का समुचित विकास करना था. विकास की प्रक्रिया शुरू हुई लेकिन इतने अविकसित रूप में कि विकास विनाश का पर्याय बन गया. एक शांत सुंदर प्रदेश की जो परिकल्पना थी, वह अपराधों और प्राकृतिक आपदाओं का गढ़ बन कर रह गई. विकास ऐसा होना चाहिए जो विनाश से बचाए. पहाड़ की भौगोलिक स्थिति से अपरिचित लोग जब पहाड़ से संबंधित योजनाएं बनाएंगे तो यही होगा.

बीते 5 अगस्त, 2025 को आई भीषण आपदा इसी का परिणाम है जब खीर गंगा नदी के साथ 42 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से आए मलबे ने उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में भारी तबाही मचाई. मुखबा के सामने बसा गांव धराली धराशाई हो गया है. एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीटी, सेना सभी बचाव कार्य में लगे हुए हैं. राज्य में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया है. यात्रा सीजन चल रहा है. जोशीमठ, बद्रीनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव है. यह पहले से ही मकानों में दरार आने की घटना से संवेदनशील एरिया माना जा रहा है. अपनी जोशीमठ यात्रा के दौरान वहां पर स्थित काफी घरों में क्रौस के लाल निशान देखे थे. अब वर्तमान की इस घटना के बाद वहां भी लोगों से घर खाली करवाए जा रहे हैं. हरिद्वार, ऋषिकेश के घाट भी खाली करने के आदेश हुए हैं जो ऋषि गंगा आपदा की याद दिलाते हैं.

त्रासदियां हम ने पहले भी देखी हैं पर सबक नहीं लिया. घाटी में बसे गांव में अचानक मलबा आया. लोगों ने सीटी बजा कर सचेत किया पर ऐसी दुर्घटनाओं में संभलने का मौका नहीं मिल पाता. यह घटना 2013 की केदारनाथ त्रासदी की पुनरावृत्ति ही है. तीन स्थानों पर एकसाथ बादल फटने की घटना हुई है. पहाड़ से बह कर जब नदी नीचे उतर आती है तो उसे प्रवाह के लिए रास्ता चाहिए और जब उस के रास्ते पर हम कंक्रीट के जंगल खड़े कर देंगे तो कुपित हो कर अपने रास्ते में आए हुए हर व्यवधान को तहतनहस करती हुई वह आगे बढ़ जाती है. यह पानी का स्वभाव है.

कुमाऊं और गढ़वाल दोनों ही जगह भ्रमण के दौरान जगहजगह अवैध निर्माण ढांचे देखे जाते हैं. चूंकि अधिकतर नदियां गढ़वाल क्षेत्र से ही निकलती हैं सो तबाही भी पहले वहीं ज्यादा आती है. नदी का रास्ता अवरुद्ध कर वहां निर्माण करना आपदा का मुहाना तैयार कर बारबार विनाश को निमंत्रण देना है. चारधाम यात्रा, रेलवे और बिजली परियोजना की वजह से गढ़वाल क्षेत्र में अंधाधुंध दोहन हुआ है. कुमाऊं में भी यही ट्रैंड देखने को मिल रहा है. कुछ वर्षों पहले तक आदि कैलाश यात्रा पैदल की जाती थी पर अब पहाड़ों को काट कर सड़कमार्ग बन गया है. यात्रियों के ठहरने के लिए होटल, रिजौर्ट आदि बनाने की तैयारी है. ऐसे में विनाश तय है. आपदा की इस भयावहता को देख कर भी अगर नहीं संभले तो फिर पहाड़ों को कोई नहीं बचा सकता.

केदारनाथ आपदा के समय भी यही हुआ था. प्रशासन के आंकड़े कुछ और थे और असलियत कुछ और थी. कई सालों बाद तक भी रास्ते या इधरउधर मरे हुए लोगों के कंकाल मिलते रहे. पूरे पहाड़ी क्षेत्र में नदियों के किनारे कई होटल, रिजौर्ट और आवासीय परिसर अवैधानिक रूप से बनाए गए हैं. प्रशासन बेखबर है और न्यायालय भी इस बात का संज्ञान नहीं लेता.

विगत वर्षों में बादल फटने की घटनाएं अकसर हो रही हैं. बादलों का प्रैशर बढ़ने से वे फट जाते हैं और वेग के साथ मलबा, पत्थर और विशाल शिलाएं अपने साथ ले कर आते हैं.

हाल में हुई क्लाउड बर्स्ट की घटना के दौरान भी यही हुआ, वेग के साथ आता हुआ पानी पलभर में अपने रास्ते में आए मकानों को अपने साथ बहा ले गया. हर्षिल के पास स्थित सेना का कैंप भी ध्वस्त हो गया और एक हैलिपैड भी पूरी तरह से खत्म हो गया. हालांकि बद्रीनाथ मार्ग उत्तरकाशी में नहीं पड़ता, यह पौड़ी जिले में आता है पर इस बाढ़ का असर यहां तक भी हुआ है. भागीरथी का जलस्तर भी लगातार बढ़ रहा है और चमोली में मलारी के पास सड़क का 50-60 मीटर हिस्सा टूट कर गिर गया है और सड़क 2 भागों में बंट गई है जिस से आम जनता के साथसाथ सैनिक वाहनों को आनेजाने में भी दिक्कत होना स्वाभाविक है.

प्रशासन द्वारा प्रभावित लोगों को हर संभव मदद की बात हर आपदा के बाद की जाती है पर आपदा रोकने के सशक्त प्रयास नहीं किए जाने की वजह से दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहती है. हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से तबाही का जो हाल हुआ है वह किसी से छिपा नहीं है पर हम ने उस से भी सबक नहीं लिया. अंधाधुंध निर्माण कार्यों में खुद को झोंक दिया.

कुछ साल पहले तक 6-7 दिनों तक लगातार बारिश होती थी जिसे क्षेत्रीय भाषा में सतझड़ लगना कहते थे. आज स्थिति बिलकुल भिन्न है. इस तरह की बारिश नहीं होती लेकिन अचानक जब होती है तो रौद्र रूप धारण कर लेती है. दो-तीन दिन की बारिश ही भारी तबाही का कारण बन रही है. मध्य हिमालय में काफी हलचल देखी जा रही है. ग्लेशियर पिघल कर टूट रहे हैं जो पर्यावरण की दृष्टि से चिंता का कारण है.

हिमालय क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए जनता जागरूकता भी जरूरी है. प्राकृतिक टोपोग्राफी का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. पर्वतीय क्षेत्र के लिए अतिरिक्त बजट निर्धारित कर अनुकूल नीतियां बनाई जाना बहुत आवश्यक है. 2024 में भी 154 करोड रुपए का नुकसान और जानमाल की भारी हानि हुई थी. पिछले कई वर्षों से यह सिलसिला जारी है.

पहाड़ों और पेड़ों का अनियंत्रित कटाव इस क्षेत्र को कब्रिस्तान में बदलने में देर नहीं लगाएगा. सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों की अपेक्षा के कारण ही नए राज्य निर्माण का विचार आया था लेकिन यह दुखद है कि नीति नियंताओं ने सिर्फ देहरादून, हरिद्वार जैसे मैदानी क्षेत्रों की प्रगति पर ध्यान दिया लेकिन पहाड़ों में स्थित ग्रामीण क्षेत्रों को पूरी तरह से विसरा दिया. इन आपदाओं से बचने के उपाय और आपदा के बाद जानमाल की सुरक्षा के उपायों पर गंभीरता से विचार करना होगा. सिर्फ विकास का गीत गाना ही काफी नहीं है. यह तबाही मानव जनित है तो मानव को ही चेतना होगा. प्रकृति का रास्ता अवरुद्ध करोगे तो न वह शिकायत करेगी, न कोर्टकचहरी का रास्ता अपनाएगी, वह तो सीधे अपना रास्ता बनाएगी. Cloud Burst Incidents

Alimony : औरतों का गुजारा भत्ता मांगना भीख या अधिकार

Alimony : भारतीय समाज में शादी को बहुत ही पवित्र बंधन माना जाता है लेकिन यह पवित्र बंधन एकतरफा ही रहा है. कंस्टीट्यूशन के लागू होने से पहले तक मर्दों के लिए शादी के माने कुछ और थे और औरतों के लिए कुछ और. शादी एक पवित्र बंधन सिर्फ औरतें के लिए था. औरत अगर शादी से संतुष्ट न तो उस के पास इस पवित्र बंधन से आजाद होने का कोई विकल्प नहीं था लेकिन मर्द एक औरत के होते दूसरी व तीसरी ब्याह सकता था. पवित्रता के पाखंड में सिर्फ औरतें फंसती थीं, मर्द नहीं.

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के लागू होने के बाद, संवैधानिक पर तौर ही सही, औरत और मर्द बराबर हो गए. अब औरतें विवाह की पवित्रता के ढोंग को चुनौती दे सकती थीं और उस के बंधन से आजाद हो सकती थीं. हालांकि, 75 साल बाद आज भी संविधान की यह आजादी सामाजिक स्तर तक नहीं पहुंची है. ग्रामीण भारत की औरतें आज भी पतियों द्वारा छोड़ी जाती हैं और उन्हें पूछने वाला कोई नहीं होता लेकिन शहरी क्षेत्रों में हालात बदल रहे हैं.

पढ़ीलिखी औरतें अब शादी के पाखंड को झेलने को तैयार नहीं. यही कारण है कि भारत में हर साल तलाक के मामले बढ़ रहे हैं. आंकड़ों के अनुसार, 2023 में देशभर के फैमिली कोर्ट्स में लगभग 8.26 लाख मामलों का निबटारा हुआ था. इन में तलाक, सेपरेशन, एलिमनी, गुजारा भत्ता और बच्चे की कस्टडी जैसे मामले शामिल हैं. औसतन, हर दिन लगभग 2,265 मामले निबटाए गए. यह भी ध्यान देने योग्य है कि 2023 के अंत तक फैमिली कोर्ट्स में लगभग 11.5 लाख मामले पैंडिंग थे.

तलाक के बढ़ते मामलों के बीच कुछ ऐसे मामले भी आते रहते हैं जो कोर्ट के फैसले पर सोचने को मजबूर करते हैं. तलाक के केसेज में कोर्ट के कई मामले ऐतिहासिक बन जाते हैं तो कई मामलों में जजों कि पुरुषवादी मानसिकता उजागर हो जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक तलाक के मामले में फैसला सुनाया, जिस में वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान और सहायक अधिवक्ता प्रभजीत जौहर ने पति की ओर से दलीलें पेश की थीं. इस मामले में पत्नी ने अपने पति से 12 करोड़ रुपए और मुंबई में एक फ्लैट की मांग की थी. कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद तलाक को मंजूरी दी और पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पूर्व पत्नी को मुंबई के ‘कल्पतरु’ हाउसिंग कौम्प्लेक्स में एक फ्लैट सौंपे.

माधवी दीवान ने कोर्ट में तर्क दिया कि पत्नी की मांगें नाजायज और कानूनी अधिकारों से परे हैं, क्योंकि वह पढ़ीलिखी और काम करने में सक्षम है. कोर्ट ने पति की इनकम और प्रौपर्टी की जांच की और माना कि पत्नी ससुर की संपत्ति पर अधिकार नहीं जता सकती. आखिरकार कोर्ट ने पत्नी को दो विकल्प दिए- या तो बिना किसी विवाद के फ्लैट स्वीकार करे, या 4 करोड़ रुपए की एकमुश्त राशि ले. पत्नी ने फ्लैट चुनने का फैसला किया. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 और धारा 25 (स्थायी गुजारा भत्ता और रखरखाव) पर आधारित है. इस धारा के तहत क्रूरता, परित्याग, व्यभिचार आदि को आधार बना कर तलाक की मांग की जा सकती है. इस मामले में, कोर्ट ने दोनों पक्षों की सहमति और वैवाहिक रिश्ते के टूटने की स्थिति (इर्रिवर्सिवल ब्रेकडाउन औफ मैरिज) को आधार बनाया. हालांकि, विशिष्ट आधार (जैसे क्रूरता या परित्याग) का उल्लेख सार्वजनिक जानकारी में नहीं होने के कारण सहमति से तलाक को मंजूरी दी गई, जो धारा 13(1)(आई-बी) या धारा 13-बी(पारस्परिक सहमति से तलाक) के तहत नियम है.

कोर्ट ने पत्नी की गुजारा भत्ता और संपत्ति की मांग को धारा 25 के तहत जांचा, जो तलाक के बाद जीवनसाथी को वित्तीय सहायता प्रदान करने की व्यवस्था करता है. इस धारा के तहत, कोर्ट को यह सुनिश्चित करना होता है कि गुजारा भत्ता निष्पक्ष और उचित हो, जिस में दोनों पक्षों की वित्तीय स्थिति, जीवनशैली, और आत्मनिर्भरता की क्षमता को ध्यान में रखा जाता है.

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने औरतों को सलाह देते हुए कहा कि “पत्नी को गरिमा के साथ जीने के लिए स्वयं कमाना चाहिए. आधुनिक युग में, विशेष रूप से पढ़ीलिखी और सक्षम महिलाओं को ‘भीख’ (अत्यधिक गुजारा भत्ता) पर निर्भर नहीं रहना चाहिए.” इस मामले पर कोर्ट ने बेशक निष्पक्षतापूर्वक फैसला सुनाया लेकिन फैसले के बाद जजों की उपरोक्त टिप्पणी से उन की मानसिकता भी स्पष्ट जाहिर हो गई. गुजारा भत्ता हासिल करना भीख कैसे है? अगर संविधान औरतों को गुजारा भत्ता हासिल करने को उन का अधिकार समझता है तो कोई जज औरतों के इस संवैधानिक अधिकार को ‘भीख’ की संज्ञा कैसे दे सकता है? क्या यह संविधान का मजाक नहीं है? इस में दो राय नहीं कि कई औरतें लालच में ज्यादा गुजारा भत्ता की मांग करती हैं लेकिन यह तय करना तो कोर्ट का काम है और कोर्ट ने इस मामले में औरत को उस का हक दिलवाया भी है. फिर, कोर्ट को इस तरह की अनर्गल टिप्पड़ी करने की क्या तुक है? कोर्ट की यह टिप्पणी संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध ही नहीं बल्कि तलाक के लिए कचहरी के चक्कर काट रही तमाम औरतों के सम्मान के खिलाफ भी है. Alimony

Cooking With Love : किचन में खाना ही नहीं बल्कि प्यार भी पकाएं

Cooking With Love : किचन में रोमांस का अपना एक अलग रोमांच और मजा है लेकिन तभी जब पति कुकिंग में भी पत्नी का सहयोग करें. नए दौर के कपल्स किचन रोमांस से अछूते नहीं हैं क्योंकि अब यह परदे पर भी दिखता है और पन्नों पर भी नजर आने लगा है. इसे और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है, आइए देखें.

भाभी जी घर पर हैं टीवी सीरियल आमतौर फूहड़ कौमेडी के लिए कुख्यात है. यह और बात है कि इस में अकसर बौद्धिक कौमेडी के दृश्य और संवाद भी रहते हैं. इस धारावाहिक की लोकप्रियता की एक बड़ी वजह इस का रोमांटिक होना भी है जिस के 2 मुख्य पात्र विभु और अनीता रोमांस में नएनए प्रयोग करते रहते हैं. घर का कोई कोना ऐसा न होगा जिस में ये रोमांस करते न दिखाए गए हों. किचन इस का अपवाद नहीं है. विभु चूंकि नल्ला यानी बेरोजगार दिखाया गया है, इसलिए घर के सारे कामकाज उसे ही करने पड़ते हैं. झाड़ूपोंछा और कपड़े धोने से ले कर खाना भी वही बनाता है. एक तरह से वह हाउस हसबैंड है. किचन रोमांस टीवी धारावाहिकों में अब बेहद आम है और कुछ हिंदी फिल्मों में, प्रतीकात्मक तौर पर ही सही, दिखाया गया है.

इन फिल्मों में अकसर नायिका सुबह उठ कर खुले और गीले बालों में रसोई में चाय, नाश्ता या खाना बना रही होती है और पीछे से नायक आ कर उसे गुदगुदाने लगता है या बांहों में समेट कर बेडरूम में ले जाता है.

हौलीवुड की कई फिल्मों में खुलेआम न सिर्फ किचन में रोमांस दिखाया गया है बल्कि कुछ फिल्मों में तो सहवास के दृश्य भी दिखाए गए हैं. मसलन, 1987 में नायक माइकल डगलस और नायिका ग्लेन क्लोज अभिनीत फिल्म `फैटल अट्रैक्शन` में दोनों किचन में ही अंतरंग हो जाते हैं. हिंदी फिल्म निर्माता कभी इतनी हिम्मत नहीं कर पाए क्योंकि धर्म और संस्कृति के चलते दर्शक तो दर्शक, सैंसर बोर्ड भी शायद इस जुर्रत को बरदाश्त न करता और कट लगा ही देता.

भारतीय समाज से संयुक्त परिवारों का रिवाज अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है लेकिन अब हो रहा है, तो किचन में रोमांस को स्वीकृति मिलने लगी है. ‘भाभीजी घर पर हैं’ के अलावा ‘तारक मेहता का उलटा चश्मा’ में केंद्रीय पात्र जेठालाल भी पत्नी दया से किचन में छेड़छाड़ और रोमांस किया करता है. ‘चेन्नई एक्सप्रेस’, ‘बधाई हो’, ‘चीनी कम’, ‘बागबान’ और ‘लंचबौक्स’ सरीखी दर्जनभर फिल्मों में इसी तरह का हलकाफुलका किचन रोमांस दिखाया गया है तो साफतौर पर यह सामाजिक बदलाव का भी संकेत है.

दरअसल, सिनेमा, साहित्य और पत्रिकाएं अहम इसलिए होते हैं कि वे आप के अंदर की उन इच्छाओं को सामाजिक स्वीकृति दिलवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं जिन्हें पूरा करने में आप कोई दबाव महसूस कर रहे होते हैं. पारिवारिक जीवन में किचन रोमांस इन में से एक है.

शायद ही नहीं, बल्कि तय है इसीलिए दबाव से उबरते भारतीय कपल्स बेडरूम से निकल कर भी रोमांस करने लगे हैं क्योंकि घर के इस हिस्से यानी किचन में रोमांस का रोमांच ही अलग है. जहां अपनापन है, खाने की खुशबू है और रोमांस की अपनी सीमाएं भी हैं. हालांकि, नए दौर में किसी भाईभाभी, बहन या मांबाप के किचन में आने का खटका खत्म हो गया है. इस के बाद भी आमतौर पर कपल्स हदें पार नहीं करते और जब खुद पर काबू नहीं रख पाते तो बेडरूम का रुख कर लेते हैं. काबू न भी रख पाएं तो भी किचन में प्यार पकाना कतई हर्ज की बात नहीं. यानी, किचन स्वस्थ और हलकेफुलके से ले कर भारी रोमांस के लिए एक आदर्श जगह है जिस में रोमांस का एहसास और अनुभव ही अलग है जो ड्राइंगरूम और बाथरूम रोमांस से अलग है. इसे और अलग बनाता है पक रहा खाना और खाना बनाने में व्यस्त पत्नी जिस की झिड़कन और आमंत्रण में फर्क करना मुश्किल हो जाता है. यह एक पत्नी के अंदर की दबी इच्छा होती है कि पति किचन में उस के सामने रहे, उस का हाथ बंटाए, उस से बतियाए और साथसाथ रोमांस भी करता जाए. क्योंकि उस का अनुभव तो यही रहता है कि पिछली पीढ़ी तक के पति किचन में झांकना भी गुनाह समझते थे. वे सिर्फ और्डर चलाते थे और खाना खाना जानते थे. उस के बननेबनाने को एंजौय नहीं करते थे. फिर हाथ बंटाना तो उन के लिए तौहीन वाली बात होती थी. इस बदलते ट्रैंड में पति का रोल अहम हो चला है जो कुछ इस तरह से किचन रोमांस को परवान चढ़ा सकता है-

– रसोई पकाना अब सिर्फ पत्नी की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि पति की भी है, इसलिए वह किचन में पर्याप्त समय गुजारे.

– आजकल बड़ी तादाद में पतिपत्नी दोनों कामकाजी होते हैं, इसलिए आमतौर पर घर में कुक भी होता है और जिन घरों में नहीं होता वहां पति नाममात्र का भी काम करते नजर नहीं आता.

– सुबह की अपनी व्यस्तताएं होती हैं, भागादौड़ी रहती है, इसलिए किचन रोमांस और शेयरिंग का मुनासिब वक्त शाम का ही रहता है. वीकैंड इस के लिए और बेहतर साबित होगा क्योंकि अगले दिन काम और औफिस की चिंता नहीं रहेगी और बच्चे अगर हों तो उन के स्कूल जाने का झंझट भी न रहेगा.

– अगर आप की मंशा किचन में जा कर पत्नी को सिर्फ बांहों में उठा लेने, कमर में चिकोटी काट लेने, उसे किस कर लेने या हग करने की है तो यकीन मानें आप उस के लिए परेशानियां और झल्लाहट ही पैदा करेंगे. इसलिए पहले उस के काम में हाथ बंटाइए या एकाधदो कामों की जिम्मेदारी लीजिए और फिर इसी दौरान ये सब शरारतें करिए तो आप को बराबर रिस्पौंस मिलेगा.

– हाथ बंटाने का यह मतलब नहीं कि आप को कोई कुदाली-फावड़ा चलाना है बल्कि किचन के प्लेटफौर्म पर बैठ कर या फिर कुरसी डाल कर पत्नी की आंखों में आंखें डाले सब्जी काटना है और उस की खूबसूरती की तारीफ करते रहना है. इस दौरान आप को आटा गूंथने या सब्जी काटने जैसा कोई काम जो भी आता हो उसे करते रहना है. इस से काम तो आसान हो ही जाएगा, साथ ही, रोमांस में भी नईनई फीलिंग्स आप महसूस करेंगे.

– किचन में रोमांस के दौरान हलका रोमांटिक गीतसंगीत का भी तड़का लगाएं. इस से दोनों का मूड और बनेगा. मोबाइल फोन का साउंड अच्छा हो तो यूट्यूब पर गाने सुने जा सकते हैं नहीं तो आजकल बाजार में बजट वाले ब्लूटूथ स्पीकर इफरात से उपलब्ध हैं.

– किचन में कुछ वक्त गुजार कर ही किचन की परेशानियों और जरूरतों को समझा जा सकता है जैसे गरमी में वहां पंखा या एसी हो तो काम करने के साथसाथ रोमांस करने में भी आनंद आएगा.

– अपनेपन, लगाव और छुअन सहित जो दूसरे एहसास किचन में होंगे वे घर के किसी दूसरे हिस्से में नहीं होते क्योंकि ड्राइंगरूम में टीवी व मोबाइल में ध्यान बंटा रहता है. लिविंगरूम बड़ा होने के चलते रुकावटें पैदा करता है तो बाथरूम रोमांस की मियाद बेहद कम होती है. तो देर किस बात की, आज से ही किचन रोमांस शुरू करें जिस का सब से बड़ा फायदा पतिपत्नी में नजदीकियां बढ़ने का होगा. पत्नी को यह महसूस होगा कि नए दौर का पति किचन में भी उस का हाथ बंटाना चाहता है. खाना बनाना एक अलग अनुभव है, समझदार और बीवी को वाकई में प्यार करने वाले पति सारा भार पत्नी पर नहीं डालते. फिर, यहां तो कुकिंग के साथ रोमांस फ्री मिल रहा है. Cooking With Love

Family Story In Hindi : नामुराद गैजेट्स – अवि ने मम्मा से क्यों मांगा आईपैड ?

Family Story In Hindi : स्कूल से आते ही बेटा अवि मेरे गले से लटक गया और बोला, ‘‘माय मौम‘‘ और मुझे किस कर के कमरे में चला गया.

बेटा अवि 15 साल का हो गया था, लेकिन बिलकुल बच्चों की तरह लाड़ करता था. मेरे हाथ से खाना खाता था और खाते ही मेरी गोद में सो जाता था.

मैं उस पर खूब प्यार लुटाती और प्यार से धीरे से सिरहाने पर लिटा देती थी.  ऐसा रोज होता था.

मैं उसे रोजाना समझाती, ‘‘बड़े हो गए हो अब तुम. खुद खाना खाया करो.’’

‘‘कभी नहीं. आई लव माय फैमिली. मम्मा, मैं आप को देखे बिना नहीं रह सकता. हमेशा आप के हाथ से ही खाना खाऊंगा.‘‘

ऐसा कह कर वह जोरजोर से हंसने लगा.

एक दिन स्कूल से आ कर अवि बोला, ‘‘मम्मा, परसों मेरी बर्थडे पर मुझे आईपैड दिला दो. मेरे सब फ्रेंड्स के पास है.‘‘

‘‘बेटा दिला तो दूं, लेकिन तुम्हारी पढ़ाई? पापा नहीं मानेंगे.‘‘

‘‘पढ़ाई की चिंता मत करो मम्मा. वो मैं सब करूंगा और आप हां कर दो बस, पापा को तो मैं मना लूंगा.‘‘

बर्थडे वाले दिन सुबह सिरहाने के पास आईपैड का बौक्स देख कर अवि  खुशी से फूला न समाया और मुझे अपनी बांहों में उठा लिया.

‘‘पापामम्मा, यू बोथ आर अमेजिंग. आई लव यू. अपने सारे फ्रेंड्स को बताऊंगा कि मेरे पास भी अब अपना आईपैड है,‘‘ खुशी से उछलता हुआ अवि स्कूल चला गया.

मैं और मेरे पति रवि हम दोनों उसे खुश देख कर बहुत खुश थे.

स्कूल से आते ही अवि अपना आईपैड ले कर अपने कमरे में चला गया. खाना भी कमरे में ही मंगा लिया. अब ये सिलसिला रोज का ही हो गया था.

धीमेधीमे अपनी पढाई की जरूरत बता कर खरीदे गए या फ्रेंड्स की देखादेखी आईपैड के बाद अब मोबाइल, टैब और लैपटौप जैसे अनेकों गैजेट्स मिल कर ये ही उस की फैमिली हो गए थे.

हम दोनों से अब अवि कम ही बोलता था. मैं उसे बुलाबुला कर रह जाती थी. अब ज्यादा टोकने पर वह चिड़चिड़ा हो जाता था.

अचानक से उस की जिंदगी में हम दोनों की जगह अब उस की गैजेट फैमिली ही इंपोर्टेंट हो गई थी और मेरी ममता तड़प रही थी.

मैं सोच रही थी कि क्या इतनी पावर है इन गैजेट्स में कि बच्चों की जिंदगी में इन के सामने अपने मातापिता या परिवार की कोई अहमियत ही नहीं है. इन नामुराद गैजेट्स ने मुझ से मेरा बेटा छीन लिया.

सुबहसुबह रवि को औफिस भेज कर किचन के काम निबटाने लगी तभी मेरा मोबाइल बजा. मुझे प्राइवेट बैंक से नौकरी के लिए फोन आया था.

शाम को मैं ने रवि व बेटे अवि को बताया कि मैं यह नौकरी करना चाहती हूं, क्योंकि अवि भी अब बड़ा हो गया है और अपने गैजेट्स में ही बिजी रहता है और मैं भी सारा दिन बोर हो जाती हूं.

‘‘अवि, तुम मम्मा के बिना मैनेज कर लोगे, क्योंकि मम्मा को औफिस से आने में रात हो जाया करेगी,’’ रवि ने पूछा.

‘‘पापा, मैं थोड़ी देर आईपैड और मोबाइल फोन पर गेम खेल कर होमवर्क वगैरह कर लिया करूंगा. नो प्रोब्लम पापा.

‘‘हां… हां,  मम्मा आप ज्वाइन कर लो. कोई दिक्कत नहीं,‘‘ अवि ने खुशी से कहा.

‘‘तो ठीक है, मुझे भी कोई दिक्कत नहीं,‘‘ रवि ने कहा.

‘‘अच्छा बेटे, ये लो घर की चाबी और खाना बना कर रख दिया है. स्कूल से आ कर खा लेना,‘‘ अवि को घर की चाबियां दीं और मैं रवि के साथ ही औफिस के लिए निकल पड़ी और अवि चाबी ले स्कूल बस में चढ़ गया.

दोपहर को अवि ने ताला खोला और कमरे में जा कर बिस्तर पर पड़  गया और बिना कुछ खाएपिए ही उसे नींद आ गई.

दरवाजे पर घंटी बजने पर अचानक से नींद खुली और मुझे दरवाजे पर देख और घड़ी देख चिल्ला कर बोला, ‘‘मम्मी, मुझे तो एक जरूरी असाइनमेंट मेल करना था शाम 5 बजे तक. अब तो मुझे बहुत डांट पड़ेगी.’’ मेरी आंख लग गई और रोने लगा. रात के 8 बज रहे थे.

‘‘अच्छा चलो, पहले कपडे बदलो और खाना खा कर होमवर्क करो,’’ मैं ने प्यार से गले लगाते हुए कहा.

रोजाना ही औफिस से घर पहुंचते ही मुझे अवि किसी न किसी बात पर सुबकता हुआ ही मिलता. मैं ने नोटिस किया कि अब अवि मोबाइल और आईपैड पर कम ही टाइम बिता रहा था. एकदम चुपचाप सा हो गया था वह.

6 महीने हो चुके थे मुझे औफिस जाते हुए.
आज शनिवार था और हम तीनों की छुट्टी थी. मैं और रवि सुबह की चाय पी रहे थे, तभी अवि आया और बोला, ‘‘मम्मा, मैं सबकुछ खुद से मैनेज नहीं कर पा रहा. स्कूल से आ कर ताला खोलना, खुद से खाना लेना, कोरियर लेना वगैरह. मैं कुछ भी नहीं कर पाता और ऐसे ही रात के 8 बज जाते हैं. मैं आप को मिस करता हूं मम्मा,’’ कह कर वह मुझ से लिपट कर सुबकने लगा.

‘‘पर, जब मैं औफिस नहीं जाती थी और तुम्हारे साथ थी, तब भी तुम आईपैड, टैब, लैपटौप और मोबाइल में ही बिजी रहते थे. मेरे बुलाने पर भी नहीं आते थे तो अब क्यों तुम मुझे अपने पास चाहते हो बेटे ?‘‘ मैं ने कहा.

‘‘आप मुझ से सब वापस ले लो मम्मा. मुझे मम्मा चाहिए, आईपैड और मोबाइल नहीं. लेकिन, आप औफिस मत जाया करो प्लीज मम्मा. मैं आप के बिना नहीं रह सकता.

“मैं जब स्कूल से आता हूं तो आप घर पर ही मिला करो. मैं खाना भी खुद खाऊंगा. आप को तंग नहीं करूंगा. बस आप मेरे पास रहो प्लीज…प्लीज,‘‘ रोतेरोते वह मुझ से लिपट गया.

मैं ने और रवि ने उसे गले लगा लिया. अवि अपने कमरे में भाग कर गया और आईपैड, टैब, लैपटौप और मोबाइल ला कर रवि को वापस कर दिए.

अवि को गैजेट्स के चंगुल से बचाने के लिए मुझे अपनी नौकरी दांव पर लगानी पड़ी, पर रवि और मेरे लिए ये सौदा कतई महंगा नहीं था. Family Story In Hindi

Hindi Love Stories : जाना पहचाना – क्या था प्रतिभा के सासससुर का अतीत?

Hindi Love Stories : ‘उन की निगाहों में जाने कितने ही रंग समाए हैं….
पर हर रंग में मुझे अपना ही अक्स नजर आता है….’
अमर ने एकटक प्रतिभा को देखते हुए कहा तो वह हंस पड़ी.

“चलो आज तुम्हें अपने पैरंट्स से मिलवा दूं.” अमर ने प्रतिभा का हाथ थाम कर फिर से कहा. प्रतिभा खुशी से चीख पड़ी,
” सच”
उस के चेहरे पर शर्म की लाली बिखर गई.

माहौल में और भी रंग भरते हुए अमर ने कहा, “सोचता हूं लगे हाथ उन से हमारी शादी का दिन भी तय करवा लूं.”

प्रतिभा ने हौले से पलकें उठाते हुए कहा,” सीधे शब्दों में कहो न कि तुम मुझे प्रपोज कर रहे हो. इतने निराले अंदाज में तो कभी किसी ने प्रपोज नहीं किया होगा.”

प्रतिभा की बात सुन कर अमर हंस पड़ा फिर गंभीर होता हुआ बोला,” सच प्रतिभा बहुत प्यार करने लगा हूं तुम्हें और तुम से जुदा हो कर जीने की बात सोच भी नहीं सकता. इसलिए चाहता हूं जल्द से जल्द हमारे रिश्ते को घर वालों की भी स्वीकृति मिल जाए. ”

“जरूर मिल जाएगी स्वीकृति. तुम बताओ कब चलना है?”

“कल कैसा रहेगा? एक्चुअली कल सटरडे है. सुबह निकलेंगे तो शाम से पहले ही लखनऊ पहुंच जाएंगे. फिर संडे वापस दिल्ली.”

“वेरी गुड. मैं इंडियन ड्रैस पहन कर चलूंगी ताकि तुम्हारे पेरेंट्स को एक नजर में पसंद आ जाऊं. ” कह कर उस ने अपना सिर अमर के कंधों पर टिका दिया.

अमर और प्रतिभा एक ही ऑफिस में पिछले 4 सालों से साथ काम करते आ रहे हैं. प्रतिभा पटना की है और दिल्ली में पढ़ाई के साथ पार्टटाइम जॉब करती है. इधर अमर भी लखनऊ से अपने सपनों को पूरा करने दिल्ली आया हुआ है. दोनों इतने दिनों से साथ हैं. एकदूसरे को पसंद भी करते हैं. पर आज पहली दफा अमर ने साफ तौर पर प्रतिभा से दिल की बात कही थी. दोनों के दिल सुनहरे सपनों की दुनिया में खो गए थे.

अगले दिन सुबहसुबह ट्रेन थी. प्रतिभा ने एक सुंदर हल्के नीले रंग का फ्रॉकसूट पहना. उस पर गुलाबी रंग का काम किया हुआ दुपट्टा लिया. माथे पर नीले रंग की बिंदी लगाई. होठों पर हल्का गुलाबी लिपस्टिक लगा कर बालों को खुले छोड़ दिए. हाई हील्स पहन कर जब वह अमर के सामने आई तो वह आहें भरता हुआ बोला,” आज तो महताब जमीन पर उतर आया है…..  साथसाथ चलेगी रोशनी सारी रात …. ”

“मिस्टर शायर, आप कहें तो हम प्रस्थान करें?” मुसकुरा कर प्रतिभा ने कहा और दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़े आगे बढ़ गए.

पूरे रास्ते दोनों भावी जीवन के सपने देखते रहे. घर पहुंच कर अमर ने बेल बजाई तो प्रतिभा का दिल धड़क उठा. वह पहली बार अपनी भावी सासससुर से मिलने वाली थी. दरवाजा अमर की मां ने खोला. पीछे से उस के पिता भी आ गए. प्रतिभा ने जल्दी से दुपट्टा सिर पर रख कर सासससुर के पैर छूए और आशीर्वाद लिया. सास ने उसे गले से लगा लिया और प्यार से अंदर ले आई.

इधर प्रतिभा इस बात को ले कर चकित थी कि पहली बार मिलने के बावजूद उसे अमर के मातापिता का चेहरा जाना पहचाना सा लग रहा था. वह असमंजस की स्थिति में थी. थोड़ी देर की बातचीत के बाद आखिरकार उस ने अपने मन की बात बोल ही दी.

इस पर अमर के पिता एकदम हड़बड़ा से गए. मगर जल्द ही संभलते हुए बोले,” देखा होगा बेटी तुम ने कहीं आतेजाते.”

फिर बात बदलते हुए पूछने लगे,” तुम पटना में कहां रहती हो?”

जी कंकरबाग में. ”

जवाब दे कर प्रतिभा ने फिर सवाल किया,” पर अंकल आप दोनों तो लखनऊ में रहते हो और मैं दिल्ली में. आप कभी अमर से मिलने दिल्ली आए भी नहीं हो. फिर मैं ने आप दोनों को कहां देखा होगा?”

अमर की मां ने बात बात संभालने की कोशिश की और बोली,” बेटी एक जैसे चेहरे वाले भी बहुत से लोग होते हैं. वह सब छोड़ और यह बता कि तुझे पसंद क्या है वही बना देती हूं.”

प्रतिभा तुरंत उठ गई और बोली,” अरे आंटी आप बैठो मैं बनाती हूं न.”

इस के बाद प्रतिभा ने कोई सवाल नहीं किया. खातेपीते और बातें करते कब रात हो गई पता ही नहीं चला. सास ने प्रतिभा को अपने कमरे में सोने के लिए बुला लिया. प्रतिभा ने टेबल पर रखी तस्वीरें देखते हुए पूछा,” आंटी जी अपनी पुरानी तस्वीरें दिखाइए न और आप दोनों की शादी की तस्वीर भी.”

“अरे बेटी अब पुरानी तस्वीरें कौन निकाले. अंदर कहीं संदूक में पड़ी होगी और वैसे भी हम ने कोर्ट मैरिज की थी.”

“कोर्ट मैरिज, क्या बात है आंटी. उस जमाने में आप ने कोर्ट मैरिज कर ली.”

“अब चल सो जा प्रतिभा. पुरानी बातें याद करने से क्या फायदा?” कह कर सास करवट बदल कर सो गई. इधर प्रतिभा सोच में डूबी रही.

अगले दिन दोनों दिल्ली के लिए वापस रवाना हो गए. प्रतिभा के मन में अभी भी कुछ उलझनें थी मगर अमर बहुत खुश था. प्रतिभा को ले कर उस के मांबाप का रिस्पांस पॉजिटिव जो था. प्रतिभा ने अपने मन की बात अमर को नहीं बताई. वह उस की खुशी में कोई बाधा पहुंचाना जो नहीं चाहती थी.

दिल्ली पहुंच कर प्रतिभा ने नेट पर खोजखबर निकालने की कोशिश की. मगर कुछ पता नहीं चला. फिर उस ने अमर के मांबाप के साथ अपनी फोटो अपने पैरेंट्स को शेयर की और लिखा,” यह फोटो मेरे सब से अच्छे दोस्त के मम्मीपापा की है. उन से पहली बार मिलने के बावजूद उन का चेहरा जानापहचाना सा लगा. क्या आप इन्हें पहचानते हैं?

प्रतिभा के पिता ने जवाब दिया,”चेहरे पहचाने से लगते हैं पर याद नहीं आता कि कौन है.”

जवाब पढ़ कर प्रतिभा चुप रह गई. धीरेधीरे यह बात उस के दिलोदिमाग से उतरती गई.

कुछ दिन बाद गर्मी की छुट्टियों में प्रतिभा ने अपने घर पटना जाने की तैयारियां शुरू कर दी. पटना जाने को ले कर वह उत्साहित थी मगर अमर से बिछड़ने के अहसास से मन भारी भी हो रहा था. किसी तरह अमर से विदा ले कर वह ट्रेन में बैठ गई. सारे रास्ते वह अमर और अपने रिश्ते को ले कर सोचती रही. अब वह अमर के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. पिछले कुछ दिनों में अमर उस के दिल के बहुत करीब आ गया था.

पटना जंक्शन पर उतरते ही उस का दिमाग दिल्ली के गलियारों को भूल कर पटना की सड़कों पर आ टिका. अपने घर के आगे रुकते ही पुराना समय आंखों के आगे नाचने लगा जब स्कूल में पढ़ने वाली प्रतिभा अपने घरआंगन को गुलजार रखती थी. वह मम्मीपापा की इकलौती लाडली बिटिया जो थी. दरवाजा खोलते ही मां ने उसे गले से लगा लिया.

अपने कमरे का दरवाजा खोलते ही पुरानी यादों के साये फिर से उस के मन को छूने लगे.  बैग एक कोने में पटक कर वह बिस्तर पर लुढ़क गई. 2 दिन प्रतिभा ने जम कर आराम किया और मम्मीपापा को अपनी नई जिंदगी से जुड़े किस्से सुनाए. तीसरे दिन वह थोड़ी एक्टिव हुई और घर की सफाई करने लगी. सफाई के दौरान उसे जाले लगी एक पुरानी तस्वीर दिखी. तस्वीर करीब 30 -35 साल पहले की थी जब उस के मम्मीपापा कॉलेज में थे. जाले पोंछ कर प्रतिभा ध्यान से तस्वीर देखने लगी कि अचानक उसे तस्वीर में अमर के पिता दिखाई दिए हालांकि वे काफी बदले हुए नजर आ रहे थे मगर वह उन का चेहरा एक नजर में ही पहचान गई थी.

बगल में ही उसे अमर की मां भी दिख गई. प्रतिभा को अब सारी बात समझ आने लगी थी कि क्यों उसे उन दोनों के चेहरे जानेपहचाने लग रहे थे. बचपन में उस ने कई बार वह फोटो बहुत ध्यान से देखी थी. पर उसे अब तक यह समझ नहीं आया था कि उस के मम्मीपापा ने अमर के पैरंट्स की फोटो पहचानी क्यों नहीं जबकि वे कॉलेज में साथ थे.

काफी देर तक प्रतिभा यही सब सोचती रही. तभी उसे सरला काकी का ख्याल आया. उस के परिवार के साथ उन का रिश्ता बहुत पुराना था. प्रतिभा ने अपने साथ वह तस्वीर भी ले ली. सरला आंटी का बेटा सुजय उस का बचपन का साथी था.

सरला काकी ने उसे देखते ही गले से लगा लिया. कुछ देर बैठने के बाद प्रतिभा ने वह तस्वीर निकाली और काकी को दिखाई. काकी तुरंत तस्वीर पहचान गई. तब प्रतिभा ने अमर के पैरंट्स की तस्वीर दिखाई जिस में वह भी थी. इस तस्वीर को देख कर काकी चौंकी और फिर बोलीं,” अरे तुम मुकुंद और सुधा से कब मिली? वे दोनों कैसे हैं बेटा?”

“आप जानती हैं इन्हें?”

“हां मेरी बच्ची. वे तस्वीर दिखा अपने पापा वाली. उस में भी तो वे दोनों खड़े हैं न.”

“पर मम्मीपापा ने तो इन्हें पहचाना नहीं.”

प्रतिभा की बात सुन कर काकी थोड़ी गंभीर हो गई फिर बोली,” कैसे पहचानेंगे? उस का घर जो जलाया था तेरे पापा ने.”

“घर जलाया था पर क्यों काकी?”

“क्योंकि उस वक्त तेरे पापा की बुद्धि मारी गई थी. सरपंच के इशारों पर चलते थे. सरपंच ने आदेश दिया था कि उन की बिरादरी का लड़का एक दलित लड़की से शादी नहीं कर सकता. सुधा दलित थी न. सरपंच ने लठैतों को भेजा उन का घर जलाने को. बस तेरे पापा भी निकल लिए साथ. यह भी नहीं सोचा कि अपने दोस्त का घर जलाने जा रहे हैैं. उस की आंख तो तब खुली जब उन का पुश्तैनी घर पूरी तरह जलाने के बाद सरपंच के लड़कों ने मुकुंद के बूढ़ेमां बाप को भी मार डाला. छोटी बहन को घर में जिंदा जला दिया. यह सब देख कर तेरे बाप की रूह कांप उठी और उस ने उसी दिन से सरपंच का साथ पूरी तरह छोड़ दिया. इधर मुकुंद और सुधा किसी तरह अपनी जान बचा कर कहीं भाग गए. वे कहां गए, उन के साथ क्या हुआ यह कोई नहीं जानता.”

प्रतिभा चुपचाप काकी से यह बीती कहानी सुनती रही. उस की आंखों के आगे अब सब कुछ स्पष्ट हो चुका था.

“क्या आप मुझे उन का जला हुआ घर दिखा सकती हो?”

“बेटा उन का पुश्तैनी घर तो सालों पहले खंडहर में तब्दील हो चुका है और आज तक खंडहर ही है. कोई नहीं जाता उधर. तू कहती है तो मैं सुजय को भेजती हूं तेरे साथ.”

प्रतिभा सुजय के साथ उस खंडहरनुमा घर को देखने पहुंची. टूटीजली इमारतें, खाली पड़े आधेअधूरे कमरे, दरकी हुई दीवारें, दम घोंटता वीरानापन, सब चीखचीख कर उस स्याह काली रात का दर्द बयां करते दिखे. प्रतिभा ने मोबाइल से तसवीरें खींचीं. एकएक जगह जा कर उस दर्द को महसूस किया. फिर अपने घर लौट आई.

दिल्ली आ कर वह अमर के पिता से मिली और भरी आंखों से उन्हें धन्यवाद कहा तो उन्होंने चौंकते हुए प्रतिभा की ओर देखा.

प्रतिभा ने कहा,” अंकल मैं पटना के कंकड़बाग में उसी मोहल्ले में रहती हूं जहां कभी आप दोनों भी…… इतनी मुसीबतें आने के बाद भी आप ने आंटी का साथ नहीं छोड़ा. अपने प्यार को निभाया. इतनी हिम्मत दिखाई. यू आर ग्रेट अंकल …. ”

उस की बातें सुन कर अमर के पिता की आँखें भर आई. वे समझ गए थे कि जो राज उन्होंने बेटे से भी छुपाया वह सब बहू जान चुकी है. अमर के पिता ने प्रतिभा के सर पर आशीर्वाद का हाथ रखा और फिर हौले से मुस्कुरा दिए.

प्रतिभा ने फैसला कर लिया था कि अब वह जल्द ही अमर से शादी कर लेगी मगर अपने पिता को इस शादी में नहीं बुलाएंगी. अमर से भी सच्चाई छिपा कर रखेगी. इस बीच मम्मी ने फोन पर बताया कि अगले सप्ताह पापा का कैटरैक्ट का ऑपरेशन होने वाला है.

यह सुन कर उस ने अमर से बात की और उसे कोर्ट मैरिज के लिए तैयार कर लिया. कुछ खास लोगों की उपस्थिति में कोर्ट मैरिज कर के आर्य समाजी तरीके से शादी करना तय हुआ. प्रतिभा ने जानबूझ कर शादी की तारीख 15 दिन बाद की रखवाई जब उस के पापा का ऑपरेशन हो चुका हो और उस की शादी में केवल उस की मम्मी ही आ सकें.

शादी वाले दिन प्रतिभा की मम्मी ने अमर की मम्मी को देखा तो खुद को रोक नहीं सकी और सुधा कह कर एकदम से उन के गले लग गई. 30 साल पुरानी सहेलियां जो मिली थी. अमर के पिता भी प्रतिभा की मम्मी को देख कर चकित थे. तीनों भीगी पलकों से पुराने दिन याद करने लगे.

नियत समय पर शादी भी हो गई. सारा कार्यक्रम अच्छी तरह निबट गया.

प्रतिभा की मम्मी अब घर लौटने वाली थी. ट्रेन में बैठने से पहले उन्होंने प्रतिभा को गले लगाया और रोती हुई बोली,” बेटा मैं समझ गई हूँ कि तूने ऐसा इंतजाम क्यों किया ताकि केवल मुझे ही शादी में बुलाना पड़े. देख बेटा तेरे पापा के हाथों तेरे सासससुर के साथ गलत हुआ था मैं यह मानती हूं. मगर उसी दिन से तेरे पापा बिल्कुल बदल भी गए और उन्हें अपने किए पर बहुत पछतावा भी है. मुझ से शादी होने के बाद उन्हें प्यार की गहराई का एहसास भी हो चुका है. जानती है मैं जब आ रही थी तो तेरे पापा ने क्या कहा था?”

“क्या कहा था मम्मी ?”

“उन्होंने कहा, ‘मुझे लग रहा है मेरी बच्ची मेरा पाप धोने वाली है. वह उसी दलित लड़की के बेटे से शादी करने वाली है जिन के परिवार को मेरी आंखों के आगे मार दिया गया और मैं ने कोई विरोध भी नहीं किया. मैं सालों से यह दर्द और पछतावा दिल में लिए जी रहा था. मेरी बच्ची उन से रिश्ता जोड़ कर मेरी जिंदगी का दर्द थोड़ा कम कर देगी.”

“सच मम्मी, पापा सब कुछ समझ गए?” प्रतिभा की आंखें भर आईं.

“हां बेटा और वे तुझ से बात कर के आशीर्वाद देने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे थे. उन्हें लगता है कि तू उन्हें माफ नहीं कर पाएगी.”

“ऐसा नहीं है मम्मी. पापा को कहना हम जिंदगी की नई शुरुआत करेंगे.” कह कर उस ने मम्मी को गले से लगा लिया.

उस की आंखों में खुशी के आंसू थे. Hindi Love Stories

Romantic Story in Hindi : मैं यहीं रहूंगी

Romantic Story in Hindi : शादी के बाद सुरुचि ससुराल पहुंची. सारे कार्यक्रम खत्म होने के बाद 3-4 दिनों में सभी मेहमान एकएक कर के वापस चले गए. लेकिन, उस की ननद और उस के 2 बच्चे 2 दिनों के लिए रुक गए. उस के साससुसर ने तो बहुत पहले ही इस दुनिया से विदा ले ली थी, इसलिए उस की ननद ने, जितने दिन भी रहीं, सुरुचि को भरपूर प्यार दिया ताकि उस को सास की कमी न खले. भाई के विवाह की सारी जिम्मेदारी वे ही संभाल रही थीं. सुरुचि ने उन के सामने ही घर के कामों को सुचारु रूप से संभालना शुरू कर दिया था. उस ने अपने स्वभाव से उन का दिल जीत लिया था. ननद इस बात से संतुष्ट थीं कि उन के भाई को बहुत अच्छी जीवनसंगिनी मिली है. अब उन्हें भाई की चिंता करने की जरूरत नहीं है.

विदा लेते समय ननद ने सुरुचि को गले लगाते हुए कहा, ‘‘मेरा भाईर् दिल का बहुत अच्छा है, तुझे कभी कोई तकलीफ नहीं होने देगा, तू उस का ध्यान रखना और कभी भी मुझ से कोई सलाह लेनी हो तो संकोच नहीं करना. मैं आती रहूंगी, दिल्ली से सहारनपुर दूर ही कितना है.’’

‘‘दीदी, आप परेशान मत होइए, मैं इन का ध्यान रखूंगी,’’ सुरुचि ने झुक कर उन के पैर छुए. उस की ननद तो औटो में बैठ गई लेकिन बच्चे खड़े ही रहे. सुरुचि ने उन से कहा, ‘‘जाओ, ममा के साथ बैठो.’’

‘‘नहीं, अब तो तुम आ गई हो, इसलिए ये यहीं रहेंगे…’’ ननद आगे कुछ और कहतेकहते जैसे रुक सी गईं.

सुरुचि यह सुन कर अवाक रह गई. अभी विवाह को दिन ही कितने हुए हैं, इसलिए कोई भी सवाल करना उसे ठीक नहीं लगा. उन के जाने के बाद उस के दिमाग में सवालों ने उमड़ना शुरू कर दिया था, कहीं दीदी इसलिए तो मुझ पर इतना स्नेह नहीं उड़ेल रही थीं कि अपने बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर डाल कर आजाद होना चाह रही थीं. उन के छोटे से शहर में अच्छी पढ़ाई होती नहीं है, लेकिन एक बार मुझ से अपनी योजना के बारे में बता कर मेरी भी तो मरजी जाननी चाहिए थी. जल्दी से जल्दी अपने शक को दूर करने के लिए वह पति के औफिस से लौट कर आने का इंतजार करने लगी.

सुंदर के आते ही उस ने उसे चाय दी. उस के थोड़े रिलैक्स होते ही, यह सोच कर कि उसे यह न लगे कि उस की बहन के बच्चे रखने में उसे आपत्ति है, उस ने धीरे से पूछा, ‘‘दीदी के बच्चे यहीं रहेंगे क्या?’’

‘‘दीदी के नहीं, वे मेरे ही बच्चे हैं. पत्नी की मृत्यु के बाद दोनों बच्चों को अपने पास रख कर उन्होंने ही उन को पाला है. तुम्हें…’’

‘‘क्या तुम शादीशुदा हो? तुम ने हमें पहले क्यों नहीं बताया? हमें धोखा दिया…? अपने पति की बात पूरी होने से पहले ही वह लगभग चीखती हुई बोली. उसे लगा जैसे वह किसी साजिश की शिकार हुई है, इस स्थिति के लिए वह बिलकुल तैयार नहीं थी.

सुंदर भौचक सा थोड़ी देर तक उस की तरफ देखता रहा, फिर धीरे से बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारे भाई से सबकुछ बता दिया था. उन्होंने तुम्हें नहीं बताया? मैं ने तुम्हें धोखा नहीं दिया. फिर भी तुम मेरी ओर से आजाद हो, कभी भी वापस जा सकती हो.’’

अब चौंकने की बारी उस की थी. ‘तो क्या, मेरे अपने भाई ने मुझे छला है.’ उस को लगा उस के माथे की नसें फट जाएंगी, उस ने दोनों हाथों से जोर से सिर पकड़ लिया और रोतेरोते, धम्म से जमीन पर बैठ गई. कहनेसुनने को अब बचा ही क्या था. उस के सारे सपने जैसे टूट कर बिखर गए थे. शरीर से जैसे किसी ने सारी शक्ति निचोड़ ली हो, वह किसी तरह वहां से उठ कर सोफे पर निढाल हो कर लेट गई.

सुरुचि के दिमाग में विचारों ने तांडव करना शुरू कर दिया था, अतीत की यादों की बदली घुमड़घुमड़ कर बरसने लगी. उस के पिता तो बहुत पहले ही चले गए थे, उस की मां ने ही उसे और उस के भाई को नौकरी कर के पढ़ायालिखाया. जब वह कालेज में पढ़ती थी, उस के भविष्य के सपने बुनने के दिन थे, तभी अचानक हार्टअटैक से मां की मृत्यु हो गई. भाई उस से 5 साल बड़ा था, इसलिए उस का विवाह मां के सामने ही हो गया था.

मां के जाने के बाद भाईभाभी का उस के प्रति व्यवहार बिलकुल बदल गया. वे उसे बोझ समझने लगे थे. गे्रजुएशन के बाद उस की पढ़ाई पर भी उन्होंने रोक लगा दी थी. भाभी भी औफिस जाती थी. सुरुचि सुबह से शाम घर के काम में जुटी रहती थी. उस के विवाह के लिए कई प्रस्ताव आए, लेकिन ‘अभी जल्दी क्या है’ कह कर भाईभाभी टाल दिया करते थे, मुफ्त की नौकरानी जो मिली हुईर् थी.

इसी बीच, उन के 2 बच्चे हो गए थे. जब पानी सिर से गुजरने लगा और रिश्तेदारों ने उन्हें टोकना शुरू कर दिया, तो उन्होंने उस की शादी के बारे में सोचना शुरू किया, जिस की परिणति इस रिश्ते से हुई. जिस उम्र की वह थी, उस में बिना खर्च के इस से अच्छा रिश्ता क्या हो सकता था. उस का मन भाईभाभी के लिए घृणा से भर उठा.

अचानक, सुंदर को सामने खड़े देख कर उस के विचारों को झटका लगा. सुंदर ने उस के पास बैठते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे साथ जो भी हुआ, बहुत बुरा हुआ. लेकिन दुखी होने से बीता वक्त वापस नहीं आएगा. अभी उठो और शांतमन से इस का हल सोचो. जो तुम चाहोगी, वही होगा. तब तक तुम मेरी मेहमान हो. तुम कहोगी तो मैं तुम्हारे भाई के पास छोड़ आऊंगा.’’

‘‘भाई के पास जा कर क्या होगा. यदि, उन्हें मेरी खुशी की परवा होती तो ऐसा करते ही क्यों. मुझे नहीं जाना उन के पास,’’ वह बुदबुदाईर् और आंखों के आंसू पोंछ कर घर के काम में लग गई.

अगले दिन सुबहसुबह उस की ननद का फोन आया. सुरुचि समझ गई कि कल की घटना के बारे में वे जान चुकी हैं, इसीलिए उन का फोन आया है. उधर से आवाज आई, ‘‘सुरुचि बेटा, हम ने तुम्हारे भाई से कुछ भी नहीं छिपाया था. फिर भी यदि तुम्हें बच्चों से समस्या है, तो वे पहले की तरह मेरे पास ही रहेंगे, लेकिन मेरे भाई को मत छोड़ना, बहुत सालों बाद उस के जीवन में तुम्हारे रूप में खुशी आई है. बड़ी मुश्किल से वह विवाह के लिए राजी हुआ था.’’ वे भरे गले से बोलीं.

‘‘जी,’’ इस के अलावा वह कुछ बोल ही नहीं पाई. इस से पहले कि सुरुचि कुछ फैसला ले कर उन्हें बताए, उन्होंने ही उस की सोच को दिशा दे दी थी.

उस ने नए सिरे से सोचना शुरू किया कि भाई के घर वापस जा कर वह फिर से उस नारकीय दलदल में फंसना नहीं चाहती और बिना किसी सहारे के अकेली लड़की की इस दुनिया में क्या दशा होती है, यह सब जानते हैं. यदि उस का विवाह किसी कुंआरे लड़के से होता, तो क्या गारंटी थी वह सुंदर की तरह उसे समझने वाला होता. उस की कोई गलती नहीं है, फिर भी वह उसे आजाद करने के लिए तैयार है. इतना प्यार करने वाली मां समान ननद, कहां सब को मिलती है. भाईबहन का प्यार, जिस में दोनों एकदूसरे की खुशी के लिए कुछ भी त्याग करने के लिए तैयार हैं, जो उसे कभी अपने भाई से नहीं मिला.

बच्चे जो शुरू में उसे दूर से सहमेसहमे देखते थे, अब सारा दिन उस के आगेपीछे घूमते रहते हैं. इतने सुखी संसार को वह कैसे त्याग सकती है. जो खुशी प्यार और अच्छे रिश्तों से हासिल हो सकती है, बेशुमार धनदौलत या ऐशोआराम से नहीं मिल सकती. इतना प्यार, जिस की उस के जीवन में बहुत कमी थी, हाथ फैलाए उस के स्वागत के लिए तैयार है.

समाज में अधिकतर बहुओं को घर में निचला दर्जा दिया जाता है, वहां एक लड़की को विवाह के बाद इतना प्यार और मानसम्मान मिल जाए, तो उसे और क्या चाहिए. उसे अपने समय से समझौता कर लेने में ही भलाई लगी. शक व चिंता की स्थिति से वह उबर चुकी थी.

आत्मसंतुष्टि के लिए उस ने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया और पूछा, ‘‘बेटा, मैं जा रही हूं, तुम दोनों, पहले की तरह, अपनी बूआ के साथ रहोगे न?’’

‘‘नहींनहीं, वहां पापा नहीं रह सकते, हमें आप दोनों के साथ रहना है. आप हमें छोड़ कर मत जाइए, प्लीज. आप हमें बहुत अच्छी लगती हैं.’’ इतना कह कर दोनों सुबकने लगे.

सुरुचि ने दोनों को गले से लगा लिया. उस का भी दिल भर आया, इतना तो उसे कभी, उस के भतीजों ने महत्त्व नहीं दिया था, जिन को उस ने वर्षों तक प्यारदुलार दिया था.

सुरुचि ने अपनी ननद को अपने फैसले से अवगत कराने के लिए फोन मिलाया और बोली, ‘‘दीदी, मैं यहीं रहूंगी. कहीं नहीं जाऊंगी. दोनों बच्चे भी मेरे साथ रहेंगे.’’ अभी उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि उस की नजर पीछे खड़े, सुंदर पर पड़ी, जो उस की बात सुन कर मुसकरा रहा था. आंखें चार होने पर वह नवयौवना सी शरमा गई, भूल गई कि वह अपनी ननद से बात कर रही थी. Romantic Story in Hindi 

Social Story In Hindi : ऊंची उड़ान – आकाश और संगीता के बीच क्या रिश्ता था ?

Social Story In Hindi : रात के 12 बजे फोन की घंटी बजी. उस समय आकाश और संगीता शर्मोहया भूल कर एकदूसरे से लिपट कर शारीरिक संबंध बना रहे थे. दोबारा फोन की घंटी बजी. जब संगीता के कानों में घंटी की आवाज पड़ी, तो वह आकाश से बोली, ‘‘आकाश, तुम्हारा फोन बज रहा है.’’

‘‘बजने दो. मुझे डिस्टर्ब मत करो.’’

इस के बाद वे दोनों अपने काम में बिजी हो गए. कुछ समय बाद आकाश ने कहा, ‘‘बहुत मजा आया संगीता.’’ संगीता कुछ कहती, उस से पहले फोन की घंटी फिर बजी.

‘‘आकाश फोन…’’ संगीता बोली.

‘‘जाओ, तुम ही फोन उठा लो,’’ आकाश ने संगीता से कहा.

‘‘हैलो… कौन हो तुम? इतनी रात को बारबार फोन क्यों कर रहे हो?’’ संगीता ने पूछा.

‘क्यों… तुम दोनों के काम में रुकावट आ गई? मुझे मालूम है कि तुम सावंत की पत्नी हो, जो चंद रुपयों के लिए किसी का भी बिस्तर गरम करती हो,’ फोन पर किसी की आवाज आई.

‘‘क्या बकवास कर रही हो? कौन हो तुम?’’ संगीता ने पूछा.

‘बेशर्म औरत, आधी रात को जिस शादीशुदा मर्द के साथ तुम रंगरलियां मना रही हो, मैं उसी की पत्नी बोल रही हूं.’ यह सुन कर संगीता चौंक गई. ‘‘किस का फोन है? किस से बहस कर रही हो?’’ आकाश ने पूछा.

‘‘तुम्हारी पत्नी का फोन है…’’ संगीता इतना ही बोल पाई.

आकाश ने चौंकते हुए कहा, ‘‘क्या… कल्पना का फोन है? पहले क्यों नहीं बताया. लाओ, फोन दो… हैलो… कल्पना.’’

‘हैलो… मैं कल्पना…’ और कुछ बोलतेबोलते वह चुप हो गई.

आकाश चौंक पड़ा, ‘‘क्या बात है कल्पना? क्या हुआ? घर में सब ठीक है न? प्रतिमा और सुमन की तबीयत… जल्दी बताओ,’’ उस ने कई सवाल एकसाथ पूछ लिए. कल्पना की सांस फूली सी लग रही थी. वह धीरे से बोली, ‘आप जल्दी से घर आइए. अब मुझ में इतनी हिम्मत नहीं कि फोन पर बता सकूं.’ ‘ठीक है कल्पना, मैं सुबह होते ही घर पहुंचता हूं,’’ आकाश फोन रख कर सोच में डूब गया. 3 साल भी नहीं हुए थे आकाश को यहां आए हुए. अच्छीनौकरी और मुंहमांगी तनख्वाह ने आखिर उस के बरसों के बांध को तोड़ दिया था. पुरानी नौकरी के साथ पुराने शहर और घरपरिवार को छोड़ कर वह यहां आ बसा था.

पत्नी कल्पना ने कई बार समझाया, 2 जवान बेटियों के साथ भला वह नौकरीपेशा औरत कैसे संभाल पाएगी सब अकेले ही, लेकिन आकाश पर एक ही धुन सवार थी कि किसी भी तरह अमीर बनना है. आकाश के हुनर की वहां कोई कद्र न थी. वह ज्यादातर समय घर पर ही बिता देता था. नौकरी करने वाली पत्नी को उस का घर से जुड़े रहना बड़ी राहत देता है. बेटियों को स्कूल लाने व ले जाने की जिम्मेदारी आकाश की थी. साथसाथ सब्जीभाजी और राशन की जिम्मेदारी भी. कुलमिला कर एक खुशहाल परिवार था. लेकिन उस खुशहाल माहौल में पहला कंकड़ उसी दिन पड़ गया था, जिस दिन आकाश के पड़ोसी राजकुमार अपनी नई मोटरसाइकिल ले आए थे. राजकुमार एक ठेकेदार था. हर साल लाखों रुपए का मुनाफा और मुनाफे के साथसाथ मशहूर हो गया था उस का नाम.

राजकुमार की दौलत आकाश को अंदर ही अंदर कहीं चुभ गई थी. एक दिन आकाश अपनी सारी जमापूंजी जोड़ने बैठा, ‘कल्पना… कल्पना… कहां हो तुम?’

‘कपड़े सुखा रही हूं.’

‘कपड़े सुखा कर जल्दी आओ. हां सुनो… आज तक मैं ने तुम्हें जितने भी रुपए रखने को दिए हैं, वो सब ले कर आओ.’

‘अब इन पैसों से क्या करने का इरादा है तुम्हारा? किसी के बहकावे में आ कर ज्यादा मुनाफा जोड़ने के चक्कर में नहीं आइएगा.’

‘अमीर बन कर ऐशोआराम में अपनी जिंदगी बिताना मेरा सपना है.’

‘मैं तुम से बहस नहीं करना चाहती. तो तुम ने अपने मन में ठान लिया है, वह सब करो. लेकिन अपनी हद में रह कर.’

आज आकाश एक कंपनी का एमडी है. गाड़ी, आलीशान घर, चपरासी सबकुछ है उस के पास. लेकिन इन सुविधाओं का मजा उठाने के लिए उस का परिवार साथ नहीं है. जिन के लिए यह सब किया, वे अपनी जिंदगी के नियमों को लांघ कर उस के पास रहने नहीं आ सकते, सिवा तीजत्योहार के.

आकाश ने शहर के कुछ लोगों से धीरेधीरे अपना मेलजोल बढ़ाया और वह एक बीयरबार में पार्टनर बन गया. वहां रुपयों की बारिश होने लगी. आकाश अपनी सोच से बाहर निकला… आखिर घर में क्या दिक्कत हुई है, जो कल्पना उसे फोन पर बताने के लिए हिम्मत न कर सकी.

आकाश ने अपने मोहल्ले के एक करीबी दोस्त से वादा लिया था कि उस की गैरहाजिरी में वह उस के घर पर नजर रखेगा और बीवीबेटियों की खैरखबर लेता रहेगा. कहीं उस के दोस्त ने घर में कुछ गड़बड़ तो नहीं की होगी या बाहर का कोई? दूसरे दिन आकाश घर पहुंचा. घर पर नौकरानी के सिवा कोई नहीं था. उस ने बताया, ‘‘साहब, कल्पना मैडम और प्रतिमा बेटी किसी डाक्टर के पास गए हुए हैं. वे लोग आते ही होंगे.’’

कुछ देर बाद कल्पना और प्रतिमा घर पहुंचे. आकाश ने पूछा, ‘‘कल्पना, घर में सुमन भी नहीं है और तुम दोनों किसी डाक्टर के पास गई थीं. तुम सब की तबीयत तो ठीक है न?’’ ‘‘प्रतिमा, तू अपने कमरे में जा. मैं इस का चैकअप कराने गई थी,’’ कल्पना दुखी लहजे में बोली.

‘‘चैकअप कराने… क्यों?’’

‘‘सुनो इस की करतूत… कल 7 बजे जब मैं सब्जी लेने जा रही थी, तब मेरी नजर सोफे पर बैठी सुमन पर पड़ी. सिर पर हाथ रख कर देखा, तो उस को तेज बुखार था. डाक्टर के पास से लाई दवा सुमन को दी और उस के पास बैठेबैठे मेरी आंख लग गई. ‘‘आधी रात को मेरी नींद खुली. देखा तो सुमन का बुखार उतर गया था. सोचा, प्रतिमा को देखती चलूं. प्रतिमा अपने कमरे में तो थी, पर उस के साथ में था आप के दोस्त राजकुमार का बेटा. यह देख कर मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई.’’

‘‘राजकुमार का लड़का?’’ आकाश चिल्लाया.

‘‘रुको, अब दूसरों से लड़नाझगड़ना समझदारी की बात नहीं है. न ही किसी पराए पर आंख मूंद कर यकीन करना. सुमन और प्रतिमा मेरी एक बात नहीं सुनतीं. उलटा, तुम्हारी तरह मुझे डांट देती हैं. आजकल घर में जो कुछ भी हो रहा है, तुम्हारे बुरे काम का असर है. दोनों जवान बेटियां मेरे हाथ से निकल चुकी हैं. उन्हें सही राह पर लाना तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’ आकाश सिर पकड़ कर बैठ गया. वह पछता रहा था कि अपने परिवार से दूर रहना, किसी पराए पर यकीन करना और जिंदगी में ऊंची उड़ान भरना कभीकभी बेवकूफी भरा काम भी हो सकता है. Social Story In Hindi

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें