Bihar Politics : बिहार को ले कर जब भी चर्चा होती है तो उस के पिछड़ेपन और गरीबी की होती है. सवाल यह कि इन समस्याओं का असल जिम्मेदार है कौन? आखिर क्यों बिहार की स्थिति में वे बदलाव नहीं आ पाए जो उस की इस छवि को बदल पाते.

बिहार, भारत का एक ऐसा राज्य जो ऐतिहासिक महत्त्व, सांस्कृतिक विरासत और अपनी उपजाऊ भूमि के लिए जाना जाता है. चंपारण सत्याग्रह, जिसे भारत में गांधीजी के पहले सत्याग्रह के रूप में जाना जाता है, 1917 में बिहार के चंपारण जिले में हुआ था, लेकिन आज देश को आजाद हुए दशकों बीत गए फिर भी बिहार और बिहारी आजाद नहीं हुए. ऐसा इसलिए क्योंकि न तो बिहार अशिक्षा से आजादी मिली, न बंधुआ मजदूरी से आजादी मिली और न गरीबी से.

वोट देने की मशीन

12 करोड़ बिहारीयों के भविष्य की चिंता सत्ता धारियों को बिलकुल भी नहीं है. वे बिहार की जनता को बस एक वोट देने की मशीन समझते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर भाजपा और उस के घटक दलों ने मिल कर 39 सीट जीतीं और साल 2024 के चुनाव में भाजपा ने 12, जनता दल यूनाइटेड को 12, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 5 सीटें मिली, लेकिन इस का कोई भी असर बिहार के मुलभूत विकास में तो बिल्कुल भी नजर नहीं आता.

सुदूर देहात में आज भी स्थति जस की तस बनी हुई है और मौडर्न बिहार में अरबोंखरबों की लागत में बन रहे पुल बनते बनते ही गिर जा रहे हैं और जो पुल या सड़क बन गई है वो इतनी जल्दी टूट रही है कि लगता है उसे पथ निर्माण विभाग का आदेश है कि भई! सड़क जितनी जल्दी टूटेगी तो उतनी जल्दी नया टेंडर फाइनल होगा, ‘तब ही न बिजनेस होगाजी बिहार में, इ हे तो बिहार का स्टार्टअप है’. इस के बावजूद बिहार की जनता अपनी मेहनत के बलबूते पर दिल्ली और मुम्बई जैसे बड़े शहरों में कई बड़ीबड़ी इमारत खड़ी कर देते हैं.

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