Hindu Women : सदियों से हिंदू धर्म ने महिलाओं की पहचान सिंदूर, मंगलसूत्र के इर्दगिर्द बुनी और आज भी इसी तक सीमित रखी. अब भी एक महिला की सफलता उस के पहनावे, वैवाहिक स्थिति या धार्मिक प्रतीकों से आंकी जाती है, न कि उस की मेहनत व काबिलीयत से. धर्म ने महिलाओं के लिए सिंदूर जैसे तमाम प्रतीक लाद दिए, उन्हें पुरुषों के अधीन बनाए रखने के लिए जंजीरें कस दीं.

सिंदूर की महिमा का गुणगान करना आज राजनीतिक हथियार चाहे बन गया हो पर असलियत यही है कि पुरुषों ने हमेशा से स्त्रियों को अपनी मुट्ठी में रखने की कोशिश की है. लेकिन अब वे जमाने लद गए जब स्त्रियां अनपढ़ थीं और आंख बंद कर हर बात को स्वीकार कर लेती थीं. बहुत अंधेरा देख लिया. अब उम्मीद की जाती है कि आज की पढ़ीलिखी लड़की की सोच में कहीं न कहीं तर्क हो.

लकीर के फकीर बने रहना कहां की सम झदारी है. विवेकशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाली महिलाओं का भी यह कर्तव्य होता है कि वे अपने से कमतर मानसिक सोच वाली महिलाओं के दृष्टिकोण को विकसित करने में सहयोग करें. खासकर, आज एक महिला को विरोध करना आना चाहिए. न कह पाने में बड़ी ताकत है.

जवानी की दहलीज में कदम रखती एक लड़की अपनी शादी के बाद के लिए न जाने कितने सपने मन में संजोती है. कभीकभी यह भी सोचती है कि अब वह आजाद पंछी बन कर मस्त गगन में उड़ पाएगी क्योंकि शादी से पहले तो मातापिता और परिवार के बहुत सारे बंधन होते हैं. बहुत सारे कंट्रोल और प्रतिबंध उस की राह रोके खड़े होते हैं. शादी के मंडप में पति द्वारा उस की मांग में सिंदूर भर कर उसे एक नए बंधन में बांध लिया जाता है जिस के तहत वह परपुरुष की तरफ नहीं देख सकती, उस से बात नहीं कर सकती और सिर्फ पति की अमानत बन कर उस के संरक्षण में रह जाती है. क्या यह संभव है? भारतीय महिलाओं ने हो सकता है इसे संभव किया हो लेकिन सवाल यह है कि क्या यह न्यायसंगत है?

सिंदूर से नुकसान

यों तो सिंदूर की रस्मअदायगी भी महिलाविरोधी एक साजिश है पर चलिए इसे यहीं तक सीमित रख लीजिए. विवाह के बाद एक स्त्री को मायके, ससुराल, पासपड़ोस, समाज सभी के द्वारा तरहतरह की हिदायतें दी जाती हैं. उस की मांग में सिंदूर भरा होना जरूरी माना जाता है. जबकि त्वचा विशेषज्ञ बताते हैं कि सिंदूर में मरक्यूरिक सल्फाइड जैसे हानिकारक तत्त्व होते हैं जो स्किन के लिए काफी नुकसानदायक होते हैं.

इस से जलन, खुजली और सिरदर्द जैसी कई परेशानियां उभर कर आ सकती हैं. चलिए माना सिंदूर को वैज्ञानिक पद्धति से बिना किसी कैमिकल के भी बना लिया जाए और उस से कोई नुकसान न हो तो क्या तब भी महिला को यह लगाना जरूरी होना चाहिए? क्या ओढ़नापहनना व्यक्तिगत फैसला नहीं होना चाहिए? इन जैसे कई सवाल मन में उथलपुथल मचाने को तैयार हैं.

‘ओम शांति ओम’ फिल्म का डायलौग ‘एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो, रमेश बाबू?’ खूब दोहराया जाता है. महिला सिंदूर को ईश्वर का आशीर्वाद मानती है. महिला के मुंह से ऐसे डायलौग कहलवा कर उसे भावनात्मक तौर पर कमजोर बनाना नहीं है तो और क्या है? एक महिला कितनी ही बड़ी ऐक्ट्रैस हो, राजनीतिज्ञ हो या विशेषज्ञ, इस बात को सम झती
ही नहीं.

संभव हो सकता है कि पढ़ीलिखी महिलाएं इन्हें केवल अपने कैरियर को चमकाने के लिए इस्तेमाल करती हों, जैसे बचपन में हम जिस कलाकार को जिस साबुन या तेल का विज्ञापन करते देखते थे तो सोचते थे कि यह इसी को इस्तेमाल करता होगा, मगर बड़े होने पर यह बात सम झ में आई कि यह केवल पैसे कमाने तक सीमित है.

महिलाओं की कमजोरी

फिल्मों का लोगों के जीवन में गहरा असर है. कलाकारों की तरह पहनना और व्यवहार करना समाज का शगल हो जाता है. अगर कोई बड़ा कलाकार तंबाकू या गुटके का विज्ञापन करता है तो जरूरी नहीं है कि वह इसे इस्तेमाल भी करता हो. संभव है कि वह अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत हो क्योंकि उसे पैसा कमाना है, इसलिए वह जनता को बेवकूफ बनाता है.

काल्पनिक बातों को सच मान लेना, किसी अज्ञात डर के वशीभूत हो कर आंख बंद कर रिवाज को मान लेना महिलाओं की बहुत बड़ी कमजोरी है. यही कमजोरी पितृसत्तात्मक समाज की जड़ों को सींचने का काम करती है. सदियों से पुरुषों ने यही चाहा है कि महिलाओं के ज्ञान के चक्षु बंद रहें तो वे किसी तरह का विरोध नहीं करेंगी, अपना अधिकार नहीं मांगेंगी.

सिंदूर का एक रूप सिनेबार भी है जिस का उपयोग 8000-7000 ईसा पूर्व का बताया जाता है और यह आधुनिक तुर्की के किसी गांव में पाया गया था. स्पेन में सिनेबार का खनन लगभग 5300 ईसा पूर्व से शुरू हुआ था. उसे रंगने के अलगअलग कामों में इस्तेमाल किया जाता था. उस में पारे की मात्रा होती है. 1500 से 500 ईसा पूर्व से सिंदूर लगाने की परंपरा बताई जाती है. शिवपुराण में भी इस बात का जिक्र है कि भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए पार्वती ने बहुत तपस्या की थी और जब शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया तो पार्वती की मांग में सिंदूर भरा गया.

सिंदूर का नाम ले कर एक महिला को डराया जाता है. पति के साथ होने वाली किसी अनहोनी की आशंका से वह घबरा जाती है और मांग भरभर कर सिंदूर लिए फिरती है.

सिंदूर शब्द खूब चर्चा में है. महिलाओं ने हमेशा से ही सुनीसुनाई बातों को सच मान कर सिंदूर को अपने शृंगार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बना लिया और अब तो सिंदूर महिलाओं को एक छिपा संदेश दे गया है. जिसे सम झ पाना हर महिला के बस की बात नहीं है. हमारे जीवन में कुछ विश्वास होते हैं, कुछ अंधविश्वास होते हैं. हमें विश्वास को ले कर चलना है और अंधविश्वास को पीछे छोड़ देना है. सोचिए, सिंदूर किसी की जान कैसे बचा सकता है. अगर यह सच होता तो पुरुषों को अमरत्व का वरदान मिला होता.

एक पुरुष अपनी स्त्री को सुरक्षित रखने के लिए कौन सा तावीज पहनता है? कोई नहीं न. मगर इस के बाद भी महिलाओं की औसत आयु पुरुषों से ज्यादा रही है. देखा जाता है कि महिलाएं पुरुषों से अधिक जीती हैं और स्वस्थ भी रहती हैं. हमें इस के पीछे के संकेतों और कारणों को ढूंढ़ना होगा.

महिलाओं के लिए बंदिशें क्यों

स्त्री व पुरुष एकदूसरे के पूरक हैं. दोनों की जिंदगी महत्त्वपूर्ण है. फिर पुरुष के जीवन की इतनी चिंता कि उस की स्त्री तरहतरह के प्रसाधनों से खुद को ढक ले. महिलाओं को तो यह कहने वाला पुरुष चाहिए कि उसे बिंदी व सिंदूर की कोई जरूरत नहीं है. उसे एक साथी के रूप में अपनी पत्नी के साथ उम्र बितानी है. आज के समय में कामकाजी लड़कियां और काफी घरेलू महिलाएं भी सौंदर्य प्रसाधन के नुकसान को सम झते हुए इन का प्रयोग सीमित करने लगी हैं.

हालांकि कई बार उन्हें परिवार के बड़े लोगों से इस बारे में फिक्रे भी सुनने को मिलते हैं पर वे ज्यादा परवा नहीं करतीं. लेकिन समस्या आधी आबादी के बड़े हिस्से की है जो इस बात को सम झने के लिए तैयार ही नहीं है.

यह कैसे संभव है कि एक शादीशुदा महिला किसी दूसरे आदमी से बात न करे, दोस्ती न करे जबकि पुरुष को समाज सारे अधिकार देता है. महिलाओं को रस्मोरिवाज की दुहाई देने वाला समाज दरअसल डबल स्टैंडर्ड मोरैलिटी में विश्वास करता है, जहां पुरुषों के लिए तो कोई नियमकानून नहीं पर महिलाओं के लिए कर्तव्य ही कर्तव्य हैं. विवेकहीन मान्यताओं में जकड़ा समाज कभी भी तरक्की नहीं कर सकता. हिंदू धर्म के अतिरिक्त किसी भी दूसरे धर्म में सिंदूर लगाने की परंपरा नहीं है.

तंदुरुस्ती और लंबी उम्र मिलती है पौष्टिक खाने से, मानसिक शांति से, अपने शौकों को पूरा करने की आजादी से, तनाव रहित रहने से. पुरुष के लिए सोचने के साथसाथ महिला को अपने बारे में भी सोचना जरूरी है.

एक पुरुष घर या घर से बाहर जा कर शराब पीता है, सिगरेट पीता है, कोई दूसरा व्यसन करता है या विवाहेतर संबंधों के तहत शारीरिक संबंध बनाता है और एचआईवी एड्स जैसी बीमारी उस के शरीर में प्रवेश कर जाती है तो सिंदूर उसे कैसे बचाएगा? सिंदूर नाम के कैमिकल में किसी के पाप को धोने की ताकत नहीं. अपने पाप का भागी तो उसे बनना ही होगा. सिंदूरी महिमा का दुष्प्रचार ठीक नहीं. यह पब्लिक है, सब जान जाएगी.

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