लेखिका – डा. रंजना जायसवाल
औरत के संघर्ष को औरत ही बेहतर ढंग से समझ सकती है और आज अम्माजी ने भी इस बात को अच्छी तरह सम?ा लिया था.
‘‘म म्मी, मैं कालेज जा रही हूं. आज थोड़ा लेट जाऊंगी, सैमिनार है.’’
‘‘ठीक है, अनु. जरा संभल कर जाना,’’ जया बोली.
‘‘क्या मम्मी, आप भी न आज भी मुझे छोटी सी बच्ची ही समझती हो, यहां मत जाया कर, वहां मत जाया कर.’’
‘‘हांहां, जानती हूं कि तू बहुत बड़ी हो गई है पर मेरे लिए तो तू आज भी वही गोलमटोल सी मेरी प्यारी सी अनु है.’’
अनु के चेहरे पर मासूम सी मुसकराहट तैरने लगी.
‘‘अच्छाअच्छा, अब जल्दी भी कर, ज्यादा बातें न बना, कालेज पहुंचने में देर हो जाएगी.’’
मांबेटी में मधुर नोकझोंक चल ही रही थी कि तब तक अम्माजी प्रकट हुईं.
‘‘कहां चली सवारी इतनी सुबहसुबह?’’
‘‘दादी, मेरी एक्स्ट्रा क्लासेस हैं, बस, कालेज के लिए निकल रही हूं.’’
‘‘ठीक है, ठीक है, पढ़ाईलिखाई तो होती रहेगी पर कभीकभी अपनी दादी के पास भी बैठ जाया कर, तेरी दादी का भी क्या भरोसा, कब प्रकृति के यहां से बुलावा आ जाए.’’
अम्माजी ने दार्शनिकों की तरह कहा. यह रोज का ही किस्सा था. जब तक दादी दोचार ऐसी बातें न बोल दें तब तक उन को चैन नहीं मिलता था. अनु ने दादी के गले में हाथ डाल कर कर कहा, ‘‘मेरी प्यारी दादी, अभी आप इतनी जल्दी मुझे छोड़ कर नहीं जा रहीं. अभी तो आप को मेरी शादी में तड़कताभड़कता डांस भी करना है.’’
‘‘चल हट, तू भी न, जब देखो तब.’’
अनु की बात सुन कर अम्मा लजा गईं. तभी अनु ने मां की तरफ रुख किया, ‘‘मम्मी, मैं सोच रही हूं कि मैं भी कंप्यूटर की क्लासेस जौइन कर लूं. इधर पढ़ाई का लोड भी थोड़ा कम है.’’
‘‘अरे, यह सब छोड़ अब चौके में मां का हाथ बंटाया कर. तुझे दूसरे घर भी जाना है. कंप्यूटरसंप्यूटर कुछ काम नहीं आने वाला. मां के साथ घर का काम करना सीख, नहीं तो ससुराल वाले उलाहना देने लगेंगे.’’
‘‘क्या दादी, आप भी न, किस जमाने की बात कर रही हैं?’’
दादी ने अनु के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, तू कुछ भी कर ले, कुछ भी सीख ले पर चौके का काम नहीं सीखा तो सब बेकार है. यह समाज औरतों के लिए कभी नहीं बदलता.’’
और भी न जाने क्या सोच कर अम्मा की आंखें भर आईं. जया भी अम्मा को इस तरह से भावुक देख कर आश्चर्य में पड़ गई. आज सुबहसुबह ही बाबूजी से अम्मा की किसी बात पर नोक?ांक हो गई थी. बाबूजी ने अम्माजी से कह दिया था कि तुम दिनभर करती क्या हो? यह बात शायद उन के दिल को चुभ गई थी. जया अम्माजी से कुछ कहना चाह रही थी पर शब्द उस के गले में ही अटक गए. अम्मा ने अपनेआप को संभाला और जया की तरफ रुख कर कहा, ‘‘अब इस को अपने साथ चौके में भी काम सिखाया करो. पढ़ाईलिखाई तो होती रहेगी और अनु, यह जो कंप्यूटरसंप्यूटर का भूत है न, इसे अपने घर जा कर पूरा करना.’’
जया सोच में पड़ गई. अपना घर अम्माजी की नजर में अपना घर आखिर कौन सा था. जहां अनु रहती थी क्या वह घर उस का अपना घर नहीं था. शादी के पहले जब उस ने अपनी मां से कत्थक सीखने के लिए जिद की थी तो बाबूजी कितना नाराज हुए थे. अच्छे घर की लड़कियां यह सब नहीं सीखतीं. जब तुम अपने घर जाना तब यह सब नाटक करना. मेरे घर यह सब चोंचलेबाजी नहीं चलेगी. जया सोचने लगी, वक्त बदल गया, पीढि़यां बदल गईं पर आज भी यह निर्णय नहीं हो पाया कि बेटियों का असली घर कौन सा होता है. अनु कालेज चली गई और जया घर के कामों में लग गई.
दिनभर काम करतेकरते उस की कमर अकड़ गई थी. न जाने क्यों उस का मन बारबार विचलित हो रहा था. कल रात में ही अम्मा ने एक तसवीर दिखाई थी. अनु अब शादी लायक हो गई है. अब जल्दी से जल्दी इस के हाथ पीले करने हैं. तुम्हारे बाबूजी की यही अंतिम इच्छा है कि मरने से पहले वे पोती को विदा कर दें. जया अम्मा का मुंह आश्चर्य से देखती रह गई. अभी अनु की उम्र ही क्या है, अभी तो उस का कालेज भी पूरा नहीं हुआ है और अभी से शादी, उस ने न जाने कितने सपने देखे हैं, उस के उन मासूम सपनों का क्या.
‘अम्माजी, अभी तो अनु बहुत छोटी है, अभी से शादी की बातें?’
‘अरे, मैं ने ऐसा क्या कह दिया. लड़की जब कंधे के बराबर आने लगे तो उस के हाथ पीले कर देने चाहिए. वक्त का क्या पता न जाने कोई ऊंचनीच हो जाए तो. क्या तुम किसी ऊंचनीच का इंतजार कर रही हो?’
जया अम्मा का मुंह देखती रह गई, क्या उन्हें अपनी परवरिश पर जरा भी भरोसा नहीं है. बाबूजी की अंतिम इच्छा के लिए अनु की बलि देना कहां तक सही है. आनंद हमेशा की तरह अपनी मां के सामने मुंह नहीं खोल पाए. आज भी वही हुआ, जया आखिर कहां तक अनु की पैरवी करती. आनंद ने तसवीर पर निगाह डाली, लड़का सुंदर, सजीला और संभ्रांत लग रहा था.
‘अम्मा, लड़का तो देखने में काफी अच्छा लग रहा है.’
‘मैं भी तो यही कह रही हूं खातापीता परिवार है, अपनी अनु खुश रहेगी. अपनी मैडम को समझ लो, इन्हीं को न जाने क्या दिक्कत है?’
अम्मा की तीर सी चुभती बातों ने जया को बेचैन कर दिया. आनंद चुपचाप अम्मा की बातों को सुनते रहे. जया को इस से ज्यादा आनंद से कोई उम्मीद भी न थी.
‘अनु को यह तसवीर दिखा देना, कल यह न हो कि तुम्हारी लाड़ली कहे कि बिना पूछे शादी कर दी.’
जया कसमसा कर रह गई. तभी किसी आवाज से उस की आंखें खुल गईं, सामने अम्माजी खड़ी थीं. वह हड़बड़ा कर पलंग पर बैठ गई.
‘‘क्या हुआ अम्माजी, किसी चीज की जरूरत थी क्या? मुझे आवाज दे दी होती, मैं आ गई होती.’’
‘‘ठीक है, ठीक है. सारे घर की चिंता तो मुझे ही करनी है, फिर मुझे मिलने आना ही पड़ता. अपनी बिटिया को फोटो दिखाई कि नहीं कि वैसे ही दराज में पड़ी हुई है?’’
जया के पास उन की बात का जवाब न था.
‘‘समझ गई, अभी तक तुम ने कोई बात नहीं की होगी अपनी लाडो से. एक काम ठीक से नहीं करती. लाओ वह तसवीर मुझे दे दो, मैं ही बात कर लूंगी.’’
‘‘नहींनहीं अम्माजी, ऐसी कोई बात नहीं है. काम की व्यस्तता में मैं भूल गई थी.’’
‘‘भूल गई थी?’’
अम्मा ने तिरछी निगाह से जया को देखा जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. सच में जब जया ही इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थी, वह अनु से क्या कहती. ऐसा नहीं था कि उसे लड़का पसंद नहीं था पर वह इतनी जल्दी अनु की शादी नहीं करना चाहती थी. उस के भी कुछ सपने थे. कुछ अरमान थे. वह नहीं चाहती थी कि घर वालों की इच्छाओं के आगे उस के सपने दम तोड़ दें.
‘‘मैं आज जरूर पूछ लूंगी.’’
‘‘तुम तो रहने ही दो, तुम से कोई काम ठीक से नहीं होता. मुझे फोटो दे दो, मैं ही पूछ लूंगी.’’
‘‘नहींनहीं अम्माजी, ऐसी कोई बात नहीं है, आज शाम तक का समय दीजिए, मैं उस से जरूर पूछ लूंगी.’’
‘‘ठीक है, ठीक है. आज जरूर पूछ लेना और अगर तुम से न हो पाए तो मुझे बता देना, मैं यह काम भी कर लूंगी.’’
जया चुपचाप अम्मा की बातों को सुनती रही. अम्मा कमरे से बाहर चली गई, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. शाम हो गई थी, लगता है अनु कालेज से वापस आ गई. जया ने साड़ी के पल्लू को ठीक किया और दरवाजे की ओर बढ़ी. अनु के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ रही थी.
‘‘मम्मीमम्मी, मैं आज बहुत खुश हूं. पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था. हर व्यक्ति की आंखों में मेरे लिए प्रशंसा का स्वर था. जानती हो मम्मी, आर के सर ने कहा, ‘तुम बहुत अच्छा बोलती हो, इसी तरह पढ़ाई पर ध्यान दो, एक न एक दिन तुम कुछ न कुछ जरूर करोगी.’ मम्मी. तुम जानतीं नहीं, मैं आज कितनी खुश हूं.’’
जया उस के मासूम चेहरे पर खुशी देख कर मन ही मन भावुक हो रही थी, कैसे सम?ाए घर वालों को और कैसे बताए अनु को कि उस की खुशियों को, उस के सपनों को तोड़ने की तैयारी शुरू हो चुकी थी. अनु न जाने कितनी देर तक बोलती रही. जया सम?ा नहीं पा रही थी कि वह अपनी बात कहां से शुरू करे, कैसे इस मासूम सी बच्ची के अरमानों का गला घोंट दे.
‘‘क्या हुआ मां, कुछ कहना चाहती हो?’’
‘‘नहीं बेटा, ऐसी तो कोई बात नहीं.’’
अनु ने बड़े ही लाड़ से उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘मां, मैं इतनी बड़ी तो हो ही गई हूं कि तुम्हारे दिल की बातों को समझ सकूं.’’
जया का दिल भर आया, ‘‘अनु, तुम्हारी दादी तुम्हारे लिए एक रिश्ता ले कर आई हैं, बहुत ही अच्छा रिश्ता है, एक बार फोटो देख लो.’’ जया ने धीरे से तसवीर अनु की तरफ सरका दी. अनु का हाथ कांप गया. उस के हाथ के कंपन को जया ने भी महसूस किया.
‘‘मां, इतनी जल्दी भी क्या है. अभी तो मुझे जिंदगी में बहुतकुछ करना है और आप सब अभी से शुरू हो गए.’’
‘‘एक बार तसवीर तो देख लो, हो सकता है लड़का तुम्हें पसंद आ जाए.’’
अनु गुस्से से बिफर उठी, ‘‘बात पसंद या नापसंद की नहीं है, बात मेरे जीवन की है. सच बताओ मां, क्या तुम भी यही चाहती हो?’’
जया के पास अनु की किसी भी बात का कोई जवाब नहीं था. अनु ने बड़े ही संजीदा स्वर में कहा, ‘‘मां, क्या तुम भी यही चाहती हो जो सारी दुनिया चाहती है तो मैं तुम्हारी बात नहीं टालूंगी?’’
जया अनु को देखती रह गई. उस छोटे से वाक्य ने न जाने कितनाकुछ कह दिया. जया चुपचाप तसवीर को उठा कर अपने कमरे में चली आई पर बात वहीं खत्म नहीं हुई थी. बात तो अब शुरू हुई थी. दादी ने दूसरे दिन जया को रोक कर पूछ लिया, ‘‘जया, अनु से कोई बात हुई, उसे तसवीर दिखाई?’’
‘‘जी, वह…’’
‘‘अगर तुम से नहीं हो सकता तो मुबताओ, मैं अभी अनु से पूछती हूं. अनु अनु…’’
अनु कालेज जाने के लिए तैयार हो रही थी. अम्मा की आवाज सुन कर आनंद, बाबूजी और अनु कमरे से बाहर आ गए, ‘‘क्या हुआ दादी, आप इतनी जोरजोर से क्या चिल्ला रही हैं?’’
‘‘अनु, मु?ो लागलपेट कर बात करनी नहीं आती. तुम्हारी शादी के लिए बहुत अच्छा रिश्ता आया है. तुम्हारी मां ने शायद उस की तसवीर दिखाई होगी. हम सब को रिश्ता बहुत पसंद है. तुम भी तसवीर देख लो, लड़के वालों को जवाब देना है.’’
‘‘दादी, ऐसी क्या जल्दी है, अभी मेरी उम्र ही क्या है, अभी तो मेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई और आप सब मुझे विदा करने के लिए तैयार बैठे हुए हैं.’’
‘‘हर चीज का एक वक्त होता है. शादी की उम्र निकल जाएगी तो हाथ मलते रह जाओगी.’’
‘‘पर दादी.’’
‘‘परवर कुछ नहीं, मैं ने जो कह दिया, सो कह दिया. तुम्हारे दादाजी की भी यही इच्छा है.’’
ड्राइंगरूम में अजीब सा सन्नाटा पसर गया. तभी एक गंभीर सी आवाज ने इस सन्नाटे को तोड़ा, ‘‘अम्माजी, अगर अनु नहीं चाहती है कि उस की शादी अभी न हो तो हमें उस की शादी अभी नहीं करनी चाहिए.’’
अम्माजी ने जलती हुई निगाह से जया की तरफ देखा, ‘‘देख रहे हैं आनंद के पापा, इन के भी पर निकल आए हैं. कैसी मां हो तुम, अपनी बेटी को सम?ाना चाहिए, उलटे तुम उस के गलत फैसले में उस को बढ़ावा दे रही हो?’’
‘‘नहीं अम्माजी, यह उस की जिंदगी है, उस की जिंदगी के फैसले भी उसी के होंगे. हम सब उस की जिंदगी के फैसले नहीं लेंगे.’’
‘‘वाहवाह, क्या बात कही,’’ अम्माजी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘इस का मतलब यह है कि हमारे मांबाप और उन के मांबाप ने अब तक अपनी बेटियों के लिए जो फैसले लिए वे गलत थे. जय हो, यही सुनना बाकी था.’’
जया ने बड़े ही संजीदा स्वर में कहा, ‘‘काश, मेरे पापा ने भी मु?ा से शादी करने से पहले सिर्फ एक बार पूछा होता.’’
आनंद जया को आश्चर्य से देख रहे थे.
‘‘क्या कमी है तुम्हारी जिंदगी में, सबकुछ तो है, आनंद जैसा पति, इतना अच्छा घर, संतान का सुख और क्या चाहिए औरत को?’’ अम्माजी ने अपनी बात की पैरवी की.
‘‘अम्माजी, क्या औरत को सिर्फ पति का प्यार, पैसा और एक अच्छा घर ही चाहिए होता है? क्या औरत सिर्फ यही चाहती है, सोच कर देखिए. जिस उम्र में हमारी शादी हुई तब उस नाजुक उम्र में गृहस्थी का बोझ सहने लायक हमारी उम्र थी क्या पर बहू के तौर पर मुझे वह सबकुछ करना पड़ा जो मैं करना नहीं चाहती थी. बात सिर्फ कमी की नहीं है, अम्माजी. बात आत्मसम्मान की है.
‘‘शादी की वजह से मेरी पढ़ाई बीच में ही छूट गई, यह आप सब जानते हैं. मेरे भी बहुत सारे सपने थे, मैं भी चाहती थी औरों की तरह कि पढ़लिख सकूं और अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं पर यह सपना, सपना ही रह गया. हम बेटी को पढ़ाने की बात तो कहते हैं पर उसे सपने देखने और फैसले लेने का अधिकार नहीं देते. सो, फिर ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा.
‘‘मुझे अपने पति से कोई शिकायत नहीं है पर जब किसी मुद्दे पर मेरी उन से बहस होती है तो अकसर वे मुझ से कह देते हैं, ‘तुम चुप रहो, तुम्हें
समझ में नहीं आएगा.’ आप की गृहस्थी को देखने वाली, आप के बच्चों को पालने वाली, आप के मातापिता की सेवा करने वाली आप की पत्नी आप से सिर्फ इसलिए कम है क्योंकि वह आप की तरह पढ़ीलिखी नहीं है. यह अफसोस मु जीवनभर रहा और आगे भी रहेगा कि काश, मैं ने अपने पिता के फैसले का विरोध किया होता, काश, मेरे पिता ने मुझ से मेरी राय मांगी होती तो शायद मेरा जीवन और भी खुशहाल होता और मैं आप सभी को आत्मसम्मान के साथ स्वीकार कर पाती.’’
बाबूजी एकटक जया को देख रहे थे, उन्होंने जया के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘दूसरे के सुखदुख को समझने वाली मेरी बहू के दर्द को इस घर ने कभी नहीं समझ. पर बेटा, मुझ तुम पर गर्व है कि तुम ने हमें एक बहुत बड़े गलत काम को करने से बचा लिया. मैं बहुत शर्मिंदा हूं. मुझे फख्र है कि मुझे तुम्हारी जैसी बहू मिली.’’
अम्मा की आंखों से भी झर झर आंसू बह रहे थे, शायद एक औरत के संघर्ष को एक औरत ही बेहतर ढंग से समझ सकती है और आज अम्माजी ने भी इस बात को अच्छी तरह समझ लिया था. सभी की आंखों में आंसू भरे हुए थे और चेहरे पर एक सहज मुसकान. आज सूरज दिलों के अंधेरों को दूर कर एक नए प्रकाश के साथ आसमान में दैदीप्यमान था, आज मन की मुंडेर पर उम्मीद का दीया टिमटिमा रहा था.