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Love Story : दो रिश्तों में बंटकर मेरे पास नहीं आना

Love Story : ‘‘पहली नजर से जीवनभर जुड़ने के नातों पर विश्वास है तुम्हें?’’ सूखे पत्तों को पैरों के नीचे कुचलते हुए रवि ने पूछा.

कड़ककड़क कर पत्तों का टूटना देर तक विचित्र सा लगता रहा गायत्री को. बड़ीबड़ी नीली आंखें उठा कर उस ने भावी पति को देखा, ‘‘क्या तुम्हें विश्वास है?’’

गायत्री ने सोचा, उस के प्रेम में आकंठ डूब चुका युवा प्रेमी कहेगा, ‘है क्यों नहीं, तभी तो संसार की इतनी लंबीचौड़ी भीड़ में बस तुम मिलते ही इतनी अच्छी लगीं कि तुम्हारे बिना जीवन की कल्पना ही शून्य हो गई.’ चेहरे पर गुलाबी रंगत लिए वह कितना कुछ सोचती रही उत्तर की प्रतीक्षा में, परंतु जवाब न मिला.तनिक चौंकी गायत्री, चुप रवि असामान्य सा लगा उसे. सारी चुहलबाजी कहीं खो सी गई थी जैसे. हमेशा मस्त बना रहने वाला ऐसा चिंतित सा लगने लगा मानो पूरे संसार की पीड़ा उसी के मन में आ समाई हो.

उसे अपलक निहारने लगा. एकबारगी तो गायत्री शरमा गई. मन था, जो बारबार वही शब्द सुनना चाह रहा था. सोचने लगी, ‘इतनी मीठीमीठी बातों के लिए क्या रवि का तनाव उपयुक्त है? कहीं कुछ और बात तो नहीं?’ वह जानती थी रवि अपनी मां से बेहद प्यार करता है. उसी के शब्दों में, ‘उस की मां ही आज तक उस का आदर्श और सब से घनिष्ठ मित्र रही हैं. उस के उजले चरित्र के निर्माण की एकएक सीढ़ी में उस की मां का साथ रहा है.’एकाएक उस का हाथ पकड़ लिया गायत्री ने रोक कर वहीं बैठने का आग्रह किया. फिर बोली, ‘‘क्या मां अभी तक वापस नहीं आईं जो मुझ से ऐसा प्रश्न पूछ रहे हो? क्या बात है?’’

रवि उस का कहना मान वहीं सूखी घास पर बैठ गया. ऐसा लगा मानो अभी रो पड़ेगा. अपनी मां के वियोग में वह अकसर इसी तरह अवश हो जाया करता है, वह इस सत्य से अपरिचित नहीं थी.

‘‘क्या मां वापस नहीं आईं?’’ उस ने फिर पूछा.

रवि चुप रहा.‘‘कब तक मां की गोद से ही चिपके रहोगे? अच्छीखासी नौकरी करने लगे हो. कल को किसी और शहर में स्थानांतरण हो गया तब क्या करोगे? क्या मां को भी साथसाथ घसीटते फिरोगे? तुम्हारे छोटे भाईबहन दोनों की जिम्मेदारी है उन पर. तुम क्या चाहते हो, पूरी की पूरी मां बस तुम्हारी ही हों? तुम्हारे पिता और उन दोनों का भी तो अधिकार है उन पर. रवि, क्या हो गया है तुम्हें?’’

‘‘ऐसा लगता है, मेरा कुछ खो गया है. जी ही नहीं लगता गायत्री.  पता नहीं, मन में क्याक्या होता रहता है.’’

‘‘तो जा कर मां को ले आओ न. उन्हें भी तो पता है, तुम उन के बिना बीमार हो जाते हो. इतने दिन फिर वे क्यों रुक गईं?’’ अनायास हंस पड़ी गायत्री. धीरे से रवि का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाने लगी, ‘‘शादी के बाद क्या करोगे? तब मेरे हिस्से का प्यार क्या मुझे मिल पाएगा? अगर मुझे ही तुम्हारी मां से जलन होने लगी तो? हर चीज की एक सीमा होती है. अधिक मीठा भी कड़वा लगने लगता है, पता है तुम्हें?’’

रवि गायत्री की बड़ीबड़ी नीली आंखों को एकटक निहारने लगा.

‘‘मां तो वे तुम्हारी हैं ही, उन से तुम्हारा स्नेह भी स्वाभाविक ही है लेकिन वक्त के साथसाथ उस स्नेह में परिपक्वता आनी चाहिए. बच्चों की तरह मां का आंचल अभी तक पकड़े रहना अच्छा नहीं लगता. अपनेआप को बदलो.’’

‘‘मैं अब चलूं?’’ एकाएक वह उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘कल मिलोगी न?’’

‘‘आज की तरह गरदन लटकाए ही मिलना है तो रहने दो. जब सचमुच मिलना चाहो, तभी मिलना वरना इस तरह मिलने का क्या अर्थ?’’ एकाएक गायत्री खीज उठी. वह कड़वा कुछ भी कहना तो नहीं चाहती थी पर व्याकुल प्रेमी की जगह उसे व्याकुल पुत्र तो नहीं चाहिए था न. हर नाते, हर रिश्ते की अपनीअपनी सीमा, अपनीअपनी मांग होती है.

‘‘नाराज क्यों हो रही हो, गायत्री? मेरी परेशानी तुम क्या समझो, अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊं?’’

‘‘क्या समझाना है मुझे, जरा बताओ? मेरी तो समझ से भी बाहर है तुम्हारा यह बचपना. सुनो, अब तभी मिलना जब मां आ जाएं. इस तरह 2 हिस्सों में बंट कर मेरे पास मत आना.’’गायत्री ने विदा ले ली. वह सोचने लगी, ‘रवि कैसा विचित्र सा हो गया है कुछ ही दिनों में. कहां उस से मिलने को हर पल व्याकुल रहता था. उस की आंखों में खो सा जाता था.’   भविष्य के सलोने सपनों में खोए भावी पति की जगह एक नादान बालक को वह कैसे सह सकती थी भला. उस की खीज और आक्रोश स्वाभाविक ही था. 2 दिन वह जानबूझ कर रवि से बचती रही. बारबार उस का फोन आता पर किसी न किसी तरह टालती रही. चाहती थी, इतना व्याकुल हो जाए कि स्वयं उस के घर चल कर आ जाए. तीसरे दिन सुबहसुबह द्वार पर रवि की मां को देख कर गायत्री हैरान रह गई. पूरा परिवार समधिन की आवभगत में जुट गया.

‘‘तुम से अकेले में कुछ बात करनी है,’’ उस के कमरे में आ कर धीरे से मां बोलीं तो कुछ संशय सा हुआ गायत्री को.

‘‘इतने दिन से रवि घर ही नहीं आया बेटी. मैं कल रात लौटी तो पता चला. क्या वह तुम से मिला था?’’ ‘‘जी?’’ वह अवाक् रह गई, ‘‘2 दिन पहले मिले थे. तब उदास थे आप की वजह से.’’

‘‘मेरी वजह से उसे क्या उदासी थी? अगर उसे पता चल गया कि मैं उस की सौतेली मां हूं तो इस में मेरा क्या कुसूर है. लेकिन इस से क्या फर्क पड़ता है?

‘‘वह मेरा बच्चा है. इस में संशय कैसा? मैं ने उसे अपने बच्चों से बढ़ कर समझा है. मैं उस की मां नहीं तो क्या हुआ, पाला तो मां बन कर है न?’’ ऐसा लगा, जैसे बहुत विशाल भवन भरभरा कर गिर गया हो. न जाने मां कितना कुछ कहती रहीं और रोती रहीं, सारी कथा गायत्री ने समझ ली. कांच की तरह सारी कहानी कानों में चुभने लगी. इस का मतलब है कि इसी वजह से परेशान था रवि और वह कुछ और ही समझ कर भाषणबाजी करती रही.

‘‘उसे समझा कर घर ले आ, बेटी. सूना घर उस के बिना काटने को दौड़ता है मुझे. उसे समझाना,’’ मां आंसू पोंछते हुए बोलीं.

‘‘जी,’’ रो पड़ी गायत्री स्वयं भी, सोचने लगी, कहां खोजेगी उसे अब? बेचारा बारबार बुलाता रहा. शायद इस सत्य की पीड़ा को उसे सुना कर कम करना चाहता होगा और वह अपनी ही जिद में उसे अनसुना करती रही.

मां आगे बोलीं, ‘‘मैं ने उसे जन्म नहीं दिया तो क्या मैं उस की मां नहीं हूं? 2 महीने का था तब, रातों को जागजाग कर उसे सुलाती रही हूं. कम मेहनत तो नहीं की. अब क्या वह घर ही छोड़ देगा? मैं इतनी बुरी हो गई?’’

‘‘वे आप से बहुत प्यार करते हैं मांजी. उन्हें यह बताया ही किस ने? क्या जरूरत थी यह सच कहने की?’’

‘‘पुरानी तसवीरें सामने पड़ गईं बेटी. पिता के साथ अपनी मां की तसवीरें दिखीं तो उस ने पिता से पूछ लिया, ‘आप के साथ यह औरत कौन है?’ वे बात संभाल नहीं पाए, झट से बोल पड़े, ‘तुम्हारी मां हैं.’

‘‘बहुत रोया तब. ये बता रहे थे. बारबार यही कहता रहा, ‘आप ने बताया क्यों? यही कह देते कि आप की पहली पत्नी थी. यह क्यों कहा कि मेरी मां भी थी.’

‘‘अब जो हो गया सो हो गया बेटी, इस तरह घर क्यों छोड़ दिया उस ने? जरा सोचो, पूछो उस से?’’

किसी तरह भावी सास को विदा तो कर दिया गायत्री ने परंतु मन में भीतर कहीं दूर तक अपराधबोध सालने लगा, कैसी पागल है वह और स्वार्थी भी, जो अपना प्रेमी तलाशती रही उस इंसान में जो अपना विश्वास टूट जाने पर उस के पास आया था.उसे महसूस हो रहा होगा कि उस की मां कहीं खो गई है. तभी तो पहली नजर से जीवनभर जुड़ने के नातों में विश्वास का विषय शुरू किया होगा. कुछ राहत चाही होगी उस से और उस ने उलटा जलीकटी सुना कर भेज दिया. मातापिता और दोनों छोटे भाई समीप सिमट आए. चंद शब्दों में गायत्री ने उन्हें सारी कहानी सुना दी.

‘‘तो इस में घर छोड़ देने वाली क्या बात है? अभी फोन आएगा तो उसे घर ही बुला लेना. हम सब मिल कर समझाएंगे उसे. यही तो दोष है आज की पीढ़ी में. जोश से काम लेंगे और होश का पता ही नहीं,’’ पिताजी गायत्री को समझाने लगे.

फिर आगे बोले, ‘‘कैसा कठोर है यह लड़का. अरे, जब मां ही बन कर पाला है तो नाराजगी कैसी? उसे भूखाप्यासा नहीं रखा न. उसे पढ़ायालिखाया है, अपने बच्चों जैसा ही प्यार दिया है. और देखो न, कैसे उसे ढूंढ़ती हुई यहां भी चली आईं. अरे भई, अपनी मां क्या करती है, यही सब न. अब और क्या करें वे बेचारी?

‘‘यह तो सरासर नाइंसाफी है रवि की. अरे भई, उस के कार्यालय का फोन नंबर है क्या? उस से बात करनी होगी,’’ पिता दफ्तर जाने तक बड़बड़ाते रहे.

छोटा भाई कालेज जाने से पहले धीरे से पूछने लगा, ‘‘क्या मैं रवि भैया के दफ्तर से होता जाऊं? रास्ते में ही तो पड़ता है. उन को घर आने को कह दूंगा.’’

गायत्री की चुप का भाई ने पता नहीं क्या अर्थ लिया होगा, वह दोपहर तक सोचती रही. क्या कहती वह भाई से? इतना आसान होगा क्या अब रवि को मनाना. कितनी बार तो वह उस से मिलने के लिए फोन करता रहा था और वह फोन पटकती रही थी. शाम को पता चला रवि इतने दिनों से अपने कार्यालय भी नहीं गया.

‘क्या हो गया उसे?’ गायत्री का सर्वांग कांप उठा.

मां और पिताजी भी रवि के घर चले गए पूरा हालचाल जानने. भावी दामाद गायब था, चिंता स्वाभाविक थी. बाद में भाई बोला, ‘‘वे अपने किसी दोस्त के पास रहते हैं आजकल, यहीं पास ही गांधीनगर में. तुम कहो तो पता करूं. मैं ने पहले बताया नहीं. मुझे शक है, तुम उन से नाराज हो. अगर तुम उन्हें पसंद नहीं करतीं तो मैं क्यों ढूंढ़ने जाऊं. मैं ने तुम्हें कई बार फोन पटकते देखा है.’’

‘‘ऐसा नहीं है, अजय,’’ हठात निकल गया होंठों से, ‘‘तुम उन्हें घर ले आओ, जाओ.’’

बहन के शब्दों पर भाई हैरान रह गया. फिर हंस पड़ा, ‘‘3-4 दिन से मैं तुम्हारा फोन पटकना देख रहा हूं. वह सब क्या था? अब उन की इतनी चिंता क्यों होने लगी? पहले समझाओ मुझे. देखो गायत्री, मैं तुम्हें समझौता नहीं करने दूंगा. ऐसा क्या था जिस वजह से तुम दोनों में अबोला हो गया?’’

‘‘नहीं अजय, उन में कोई दोष नहीं है.’’

‘‘तो फिर वह सब?’’

‘‘वह सब मेरी ही भूल थी. मुझे ही ऐसा नहीं करना चाहिए था. तुम पता कर के उन्हें घर ले आओ,’’ रो पड़ी गायत्री भाई के सामने अनुनयविनय करते हुए.

‘‘मगर बात क्या हुई थी, यह तो बताओ?’’

‘‘मैं ने कहा न, कुछ भी बात नहीं थी.’’ अजय भौचक्का रह गया.

‘‘अच्छा, तो मैं पता कर के आता हूं,’’ बहन को उस ने बहला दिया.

मगर लौटा खाली हाथ ही क्योंकि उसे रवि वहां भी नहीं मिला था. बोला, ‘‘पता चला कि सुबह ही वहां से चले गए रवि भैया. उन के पिता उन्हें आ कर साथ ले गए.’’

‘‘अच्छा,’’ गायत्री को तनिक संतोष हो गया.

‘‘उन की मां की तबीयत अच्छी नहीं थी, इसीलिए चले गए. पता चला, वे अस्पताल में हैं.’’चुप रही गायत्री. मां और पिताजी का इंतजार करने लगी. घर में इतनी आजादी और आधुनिकता नहीं थी कि खुल कर भावी पति के विषय में बातें करती रहे. और छोटे भाई से तो कदापि नहीं. जानती थी, भाई उस की परेशानी से अवगत होगा और सचमुच वह बारबार उस से कह भी रहा था, ‘‘उन के घर फोन कर के देखूं? तुम्हारी सास का हालचाल…’’

‘‘रहने दो. अभी मां आएंगी तो पता चल जाएगा.’’

‘‘तुम भी तो रवि भैया के विषय में पूछ लो न.’’

भाई ने छेड़ा या गंभीरता से कहा, वह समझ नहीं पाई. चुपचाप उठ कर अपने कमरे में चली गई. काफी रात गए मां और पिताजी घर लौटे. उस समय कुछ बात न हुई. परंतु सुबहसुबह मां ने जगा दिया, ‘‘कल रात ही रवि की माताजी को घर लाए, इसीलिए देर हो गई. उन की तबीयत बहुत खराब हो गई थी. खानापीना सब छोड़ रखा था उन्होंने. रवि मां के सामने आ ही नहीं रहा था. पता नहीं क्या हो गया इस लड़के को. बड़ी मुश्किल से सामने आया.‘‘क्या बताऊं, कैसे बुत बना टुकुरटुकुर देखता रहा. मां को घर तो ले गया है, परंतु कुछ बात नहीं करता. तुम्हें बुलाया है उस की मां ने. आज अजय के साथ चली जाना.’’

‘‘मैं?’’ हैरान रह गई गायत्री.

‘‘कोई बात नहीं. शादी से पहले पति के घर जाने का रिवाज हमारी बिरादरी में नहीं है, पर अब क्या किया जाए. उस घर का सुखदुख अब इस घर का भी तो है न.’’

गायत्री ने गरदन झुका ली. कालेज जाते हुए भाई उसे उस की ससुराल छोड़ता गया. पहली बार ससुराल की चौखट पर पैर रखा. ससुर सामने पड़ गए. बड़े स्नेह से भीतर ले गए. फिर ननद और देवर ने घेर लिया. रवि की मां तो उस के गले से लग जोरजोर से रोने लगीं. ‘‘बेटी, मैं सोचती थी मैं ने अपना परिवार एक गांठ में बांध कर रखा है. रवि को सगी मां से भी ज्यादा प्यार दिया है. मैं कभी सौतेली नहीं बनी. अब वह क्यों सौतेला हो गया? तुम पूछ कर बताओ. क्या पता तुम से बात करे. हम सब के साथ वह बात नहीं करता. मैं ने उस का क्या बिगाड़ दिया जो मेरे पास नहीं आता. उस से पूछ कर बताओ गायत्री.’’ विचित्र सी व्यथा उभरी हुई थी पूरे परिवार के चेहरे पर. जरा सा सच ऐसी पीड़ादायक अवस्था में ले आएगा, किस ने सोचा होगा.

‘‘भैया अपने कमरे में हैं, भाभी. आइए,’’ ननद ने पुकारा. फिर दौड़ कर कुछ फल ले आई, ‘‘ये उन्हें खिला देना, वे भूखे हैं.’’

गायत्री की आंखें भर आईं. जिस परिवार की जिम्मेदारी शादी के बाद संभालनी थी, उस ने समय से पूर्व ही उसे पुकार लिया था. कमरे का द्वार खोला तो हैरान रह गई. अस्तव्यस्त, बढ़ी दाढ़ी में कैसा लग रहा था रवि. आंखें मींचे चुपचाप पड़ा था. ऐसा प्रतीत हुआ मानो महीनों से बीमार हो. क्या कहे वह उस से? कैसे बात शुरू करे? नाराज हो कर उस का भी अपमान कर दिया तो क्या होगा? बड़ी मुश्किल से समीप बैठी और माथे पर हाथ रखा, ‘‘रवि.’’

आंखें सुर्ख हो गई थीं रवि की. गायत्री ने सोचा, क्या रोता रहता है अकेले में? मां ने कहा था वह पत्थर सा हो गया है.

‘‘रवि यह, यह क्या हो गया है तुम्हें?’’ अपनी भूल का आभास था उसे. बलात होंठों से निकल गया, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझे तुम्हारी बात सुननी चाहिए थी. मुझ से ऐसा क्या हो गया, यह नहीं होना चाहिए था,’’ सहसा स्वर घुट गया गायत्री का. वह रवि, जिस ने कभी उस का हाथ भी नहीं पकड़ा था, अचानक उस की गोद में सिर छिपा कर जोरजोर से रोने लगा. उसे दोनों बांहों में कस के बांध लिया. उसे इस व्यवहार की आशा कहां थी. पुरुष भी कभी इस तरह रोते हैं. गायत्री को बलिष्ठ बांहों का अधिकार निष्प्राण करने लगा. यह क्या हो गया रवि को? स्वयं को छुड़ाए भी तो कैसे? बालक के समान रोता ही जा रहा था.

‘‘रवि, रवि, बस…’’ हिम्मत कर के उस का चेहरा सामने किया.

‘‘ऐसा लगता है मैं अनाथ हो गया हूं. मेरी मां मर गई हैं गायत्री, मेरी मां मर गई हैं. उन के बिना कैसे जिंदा रहूं, कहां जाऊं, बताओ?’’

उस के शब्द सुन कर गायत्री भी रो पड़ी. स्वयं को छुड़ा नहीं पाई बल्कि धीरे से अपने हाथों से उस का चेहरा थपथपा दिया.

‘‘ऐसा लगता है, आज तक जितना जिया सब झूठ था. किसी ने मेरी छाती में से दिल ही खींच लिया है.’’

‘‘ऐसा मत सोचो, रवि. तुम्हारी मां जिंदा हैं. वे बीमार हैं. तुम कुछ नहीं खाते तो उन्होंने भी खानापीना छोड़ रखा है. उन के पास क्यों नहीं जाते? उन में तो तुम्हारे प्राण अटके हैं न? फिर क्यों उन्हें इस तरह सता रहे हो?’’

‘‘वे मेरी मां नहीं हैं, पिताजी ने बताया.’’

‘‘बताया, तो क्या जुर्म हो गया? एक सच बता देने से सारा जीवन मिथ्या कैसे हो गया?’’

‘‘क्या?’’ रवि टुकुरटुकुर उस का मुंह देखने लगा. क्षणभर को हाथों का दबाव गायत्री के शरीर पर कम हो गया.

‘‘वे मुझ बिन मां के बच्चे पर दया करती रहीं, अपने बचों के मुंह से छीन मुझे खिलाती रहीं, इतने साल मेरी परछाईं बनी रहीं. क्यों? दयावश ही न. वे मेरी सौतेली मां हैं.’’

‘‘दया इतने वर्षों तक नहीं निभाई जाती रवि, 2-4 दिन उन के साथ रहे हो क्या, जो ऐसा सोच रहे हो? वे बहुत प्यार करती हैं तुम से. अपने बच्चों से बढ़ कर हमेशा तुम्हें प्यार करती रहीं. क्या उस का मोल इस तरह सौतेला शब्द कह कर चुकाओगे? कैसे इंसान हो तुम?’’ एकाएक उसे परे हटा दिया गायत्री ने. बोली, ‘‘उन्हें सौतेला जान जो पीड़ा पहुंची थी, उस का इलाज उन्हीं की गोद में है रवि, जिन्होंने तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया. मेरी गोद में नहीं जिस से तुम्हारी जानपहचान कुछ ही महीनों की है. तुम अपनी मां के नहीं हो पाए तो मेरे क्या होगे, कैसे निभाओगे मेरे साथ?’’

लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया रवि ने, ‘‘मैं अपनी मां का नहीं हूं, तुम ने यह कैसे सोच लिया?’’

‘‘तो उन से बात क्यों नहीं करते? क्यों इतना रुला रहे हो उन्हें?’’

‘‘हिम्मत नहीं होती. उन्हें या भाईबहन को देखते ही कानों में सौतेला शब्द गूंजने लगता है. ऐसा लगता है मैं दया का पात्र हूं.’’

‘‘दया के पात्र तो वे सब बने पड़े हैं तुम्हारी वजह से. मन से यह वहम निकालो और मां के पास चलो. आओ मेरे साथ.’’

‘‘न,’’ रवि ने गरदन हिला दी इनकार में, ‘‘मां के पास नहीं जाऊंगा. मां के पास तो कभी नहीं…’’

‘‘इस की वजह क्या है, मुझे समझाओ? क्यों नहीं जाओगे उन के पास? क्या महसूस होता है उन के पास जाने से?’’ एकाएक स्वयं ही उस की बांह सहला दी गायत्री ने. निरीह, असहाय बालक सा वह अवरुद्ध कंठ और डबडबाए नेत्रों से उसे निहारने लगा.

‘‘तुम्हें 2 महीने का छोड़ा था तुम्हारी मां ने. उस के बाद इन्होंने ही पाला है न. तुम तो इन्हें अपना सर्वस्व मानते रहे हो. तुम ही कहते थे न, तुम्हारी मां जैसी मां किसी की भी नहीं हैं. जब वह सच सामने आ ही गया तो उस से मुंह छिपाने का क्या अर्थ? वर्तमान को भूत में क्यों मिला रहे हो? ‘‘अब तुम्हारा कर्तव्य शुरू होता है रवि, उन्हें अपनी सेवा से अभिभूत करना होगा. कल उन्होंने तुम्हें तनमन से चाहा, आज तुम चाहो. जब तुम निसहाय थे, उन्होंने तुम्हें गोद में ले लिया था. आज तुम यह प्रमाणित करो कि सौतेला शब्द गाली नहीं है. यह सदा गाली जैसा नहीं होता. बीमार मां को अपना सहारा दो रवि. सच को उस के स्वाभाविक रूप में स्वीकार करना सीखो, उस से मुंह मत छिपाओ.’’

‘‘मां मुझे इतना अधिक क्यों चाहती रहीं, गायत्री? मेरे मन में सदा यही भाव जागता रहा कि वे सिर्फ मेरी हैं. छोटे भाईबहन को भी उन के समीप नहीं फटकने दिया. मां ने कभी विरोध नहीं किया, ऐसा क्यों, गायत्री? कभी तो मुझे परे धकेलतीं, कभी तो कहतीं कुछ,’’ रवि फिर भावुक होने लगा.

‘‘हो सकता है वे स्वाभाविक रूप में ही तुम्हें ज्यादा स्नेह देती रही हों. तुम सदा से शांत रहने वाले इंसान रहे हो. उद्दंड होते तो जरूर डांटतीं किंतु बिना वजह तुम्हें परे क्यों धकेल देतीं.’’

‘‘गायत्री, मैं इतना बड़ा सच सह नहीं पा रहा हूं. मैं सोच भी नहीं सकता. ऐ लगता है, पैरों के नीचे से जमीन ही सरक गई हो.’’

‘‘क्या हो गया है तुम्हें, इतने कमजोर क्यों होते जा रहे हो?’’कुछ ऐसी स्थिति चली आई. शायद उस का यही इलाज भी था. स्नेह से गायत्री ने स्वयं ही अपने समीप खींच लिया रवि को. कोमल बाहुपाश में बांध लिया.भर्राए स्वर में गिला भी किया रवि ने, यही सब सुनाने तुम्हारे पास भी तो गया था. सोचा था, तुम से अच्छी कोई और मित्र कहां होगी, तुम ने सुना नहीं. मैं कितने दिन इधरउधर भटकता रहा. मैं कहां जाऊं, कुछ समझ नहीं पाता?’’

‘‘मां के पास चलो, आओ मेरे साथ. मैं जानती हूं, उन्हीं के पास जाने को छटपटा रहे हो. चलो, उठो.’’

रवि चुप रहा. भावी पत्नी की आंखों में कुछ ढूंढ़ने लगा.

गायत्री तनिक गुस्से से बोली, ‘‘जीवन में बहुतकुछ सहना पड़ता है. यह जरा सा सच नहीं सह पा रहे तो बड़ेबड़े सच कैसे सहोगे? आओ, मेरे साथ चलो?’’ रवि खामोशी से उसे घूरता रहा.

‘‘देखो, आज तुम्हारी मां इतनी मजबूर हो गई हैं कि मेरे सामने हाथ जोड़े हैं उन्होंने. तुम्हें समझाने के लिए मुझे बुला भेजा है. तुम तो जानते हो, हम लोगों में शादी से पहले एकदूसरे के घर नहीं जाते. परंतु मुझे बुलाया है उन्होंने, तुम्हें समझाने के लिए. अपनी मां का और मेरा मान रखना होगा तुम्हें. मेरे साथ अपनी मां और भाईबहन से मिलना होगा और बड़ा भाई बन कर उन से बात करनी होगी. उठो रवि, चलो, चलो न.’’ अपने अस्तित्व में समाए बालक समान सुबकते भावी पति को कितनी देर सहलाती रही गायत्री. आंचल से कई बार चेहरा भी पोंछा.

रवि उधेड़बुन में था, बोला, ‘‘मां मेरे पास क्यों नहीं आतीं, क्यों नहीं मुझे बुलातीं?’’

‘‘वे तुम्हारी मां हैं. तुम उन के बेटे हो. वे क्यों आएं तुम्हारे पास. तुम स्वयं ही रूठे हो, स्वयं ही मानना होगा तुम्हें.’’

‘‘पिताजी मां को मेरे कमरे में नहीं आने देना चाहते, मुझे पता है. मैं ने उन्हें मां को रोकते सुना है.’’

‘‘ठीक ही तो कर रहे हैं. उन की भी पत्नी के मानसम्मान का प्रश्न है. तुम उन के बच्चे हो तो बच्चे ही क्यों नहीं बनते. क्या यह जरूरी है कि सदा तुम ही अपना अधिकार प्रमाणित करते रहो? क्या उन्हें हक नहीं है?’’

बड़ी मुश्किल से गायत्री ने उसे अपने शरीर से अलग किया. प्रथम स्पर्श की मधुर अनुभूतियां एक अलग ही वातावरण और उलझे हुए वार्त्तालाप की भेंट चढ़ चुकी थीं. ऐसा लगा ही नहीं कि पहली बार उसे छुआ है. साधिकार उस का मस्तक चूम लिया गायत्री ने. गायत्री पर पूरी तरह आश्रित हो वह धीरे से उठा, ‘‘तुम भी साथ चलोगी न?’’

‘‘हां,’’ वह तनिक मुसकरा दी.

फिर उस का हाथ पकड़ सचमुच वह बीमार मां के समीप चला आया. अस्वस्थ और कमजोर मां को बांहों में बांध जोरजोर से रोने लगा.

‘‘मैं ने तुम से कितनी बार कहा है, तुम मुझे छोड़ कर कहीं मत जाया करो,’’ उसे गोद में ले कर चूमते हुए मां रोने लगीं. छोटी बहन और भाई शायद इस नई कहानी से पूरी तरह टूट से गए थे. परंतु अब फिर जुड़ गए थे. बडे़ भाई ने मां पर सदा से ही ज्यादा अधिकार रखा था, इस की उन्हें आदत थी. अब सभी प्रसन्न दिखाई दे रहे थे.

‘‘तुम कहीं खो सी गई थीं, मां. कहां चली गई थीं, बोलो?’’

पुत्र के प्रश्न पर मां धीरे से समझाने लगीं, ‘‘देखो रवि, सामने गायत्री खड़ी है, क्या सोचेगी? अब तुम बड़े हो गए हो.’’

‘‘तुम्हारे लिए भी बड़ा हो गया हूं क्या?’’

‘‘नहीं रे,’’ स्नेह से मां उस का माथा चूमने लगीं.

‘‘आजा बेटी, मेरे पास आजा,’’ मां ने गायत्री को पास बुलाया और स्नेह से गले लगा लिया. छोटा बेटा और बेटी भी मां की गोद में सिमट आए. पिताजी चश्मा उतार कर आंखें पोंछने लगे.गायत्री बारीबारी से सब का मुंह देखने लगी. वह सोच रही थी, ‘क्या शादी के बाद वह इस मां के स्नेह के प्रति कभी उदासीन हो पाएगी? क्या पति का स्नेह बंटते देख ईर्ष्या का भाव मन में लाएगी? शायद नहीं, कभी नहीं.’

Hindi Kavita : जीवन के मायने

Hindi Kavita : हर सुबह एक नया सबक लेकर आती है,
ज़िन्दगी के रहस्यो को खोलती है।
कभी गमगीन तो कभी खुशी के पल ले आती है,
कभी बिना मांगे ही मुरादों के पूरे होने की बरसात दे जाती है।

सफ़ेद और काले रंग के बीच में भेद बता जाती है,
अपने ही जीवन के कितने रंग दिखा जाती है।
कभी गहरे सोच के समुद्र में ले आती है,
कभी नदी के किनारे पर खड़ा कर जाती है, जहाँ जीवन की धारा बहती है।

एक ही जीवन में कितने पाठ पढ़ा जाती है,
अपने ही जीवन के रहस्यों में से वक्त-बेवक्त कुछ न कुछ सिखा जाती है।
यह जीवन की किताब कुछ एक आदमी को ही मिल पाती है,
जो इसके रहस्यो को समझने की कोशिश करता है।

लेखिका : Anupana Arya

Hindi Poem : आज-कल फोन कम, कान ज्यादा बजते हैं

Hindi Poem : आज-कल फोन कम, कान ज्यादा बजते हैं
लगता जैसे बार-बार हमें पुकारा जा रहा हो
लेकिन ये महज भ्रम मात्र होता,
छोटी से छोटी बात पर हमें आवाज देने वाले
निकल पड़े है, भविष्य सवारने
जैसे हम निकले थे…!

मैं करछी तेज-तेज चलाने लगती हूँ
समझने की कोशिश करती हूं,
मनस्थिति अपनी…!
दिमाग समझदार ठहरा, सब समझता है
पर कान..? कान नहीं समझता
वह बजता रहता, मौका-मौका

उकताहट होती है, दिन भर में कई-कई बार
जानती हूँ, ये वक्त नहीं है, फोन के बजने का
फिर भी कभी भी कुछ भी हो सकता है,,
फोन को हमेशा पास रखने लगी हूँ
कि अब कुछ नहीं तो बच्चों के व्हाट्सएप की
डीपी देखकर ही खुश होती रहती,,,
सोशल मीडिया के नये नये एप्प डाउनलोड कर रखी है
कि वहां से देख सकूँ
अपने बच्चों के पोस्ट,,,

कह नहीं पाती के अब मन नहीं लगता
किसी कविता कहानी में
कि अब मेरी जिंदगी रोशन हो रही है
दूर किसी शहर में,,
सब अच्छा है…सुंदर है….खुश है….
पर मैं ठीक नहीं हूं….
यह सच है,,,,,पर इसे गणित की तरह
हेन्स प्रूफ नहीं होने दूंगी….

मन कसमसा के कहता
सब अच्छा तो मैं भी अच्छी
और शायद फिर फोन बजने
जैसा लगने लगता
दौड़ कर फोन लपकती हूँ
शायद बच्चों का कॉल है.

लेखिका : प्रतिभा

Social Media : डिजिटल अरेस्ट से भी बदतर है सोशल मीडिया का एडिक्शन

Social Media : यह कतई हैरानी की बात नहीं होगी अगर कल को नशा मुक्ति केंद्रों की तर्ज पर गलीगली सोशल मीडिया मुक्ति केंद्र खुले दिखाई दें. ऐसे `विशेषज्ञ` भी पैदा हो सकते हैं जो घंटों में शर्तिया सोशल मीडिया की लत से हमेशा के लिए छुटकारा दिलाने का दावा इश्तिहारों के जरिये करते दिखाई दें. जानकर हैरत होती है कि बेंगलुरु स्थित निम्हान्स यानी नैशनल इंस्टीटयूट फोर मेंटल हैल्थ में सोशल मीडिया एडिक्शन वार्ड संचालित होने लगा है.

देश में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों की तादाद इस साल बढ़ कर कोई 115 करोड़ हो जाने का सरकारी अनुमान इस लिहाज से चिंता की बात है कि इन में से अधिकतर स्मार्ट फोन का उपयोग करेंगे. जिस का इस्तेमाल आजकल बात करने के कम सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल करने के काम में ज्यादा लिया जाता है. यह बिलकुल शराब, सिगरेट, तम्बाकू, अफीम और गांजे सरीखी लत है. जिस की चपेट में परिवार के परिवार घोषित तौर पर हैं.

परिवारों की बदहाली का आलम तो यह है कि सदस्यों को एक दूसरे के नम्बर भी याद नहीं. बिना फोन बुक खोले 2 – 4 के अलावा कोई किसी को काल नहीं लगा सकता. एक तरह से याददाश्त पर लकवा है जिस की गिरफ्त में वे लोग भी आ गए हैं जिन्हें कुछ साल पहले ही दर्जनों नम्बर रटे रहते थे. उस से भी पहले लेंड लाइन फोन के युग में तो औपरेटर के नम्बर प्लीज कहते ही झट से सैकड़ों नम्बर में से वांछित नम्बर बता दिया करते थे. फोन नम्बर ही क्यों अब तो लोगों को अपने विभिन्न तरह के पास वर्ड भी याद नहीं रहते जिन में केप्चा लगाना अनिवार्य सा हो गया है. इसलिए पास वर्ड डालने में जरा सी भी देरी हो तो एक मैसेज फ्लेश होने लगता है ‘फोरगेट पासवर्ड’?

प्रिंट की यह खूबी है कि उस का प्रभाव लम्बे समय तक रहता है जबकि स्क्रीन के पढ़े की मियाद अल्पकालिक होती है. इस पर एक बार पढ़ा या देखा हुआ कोई दोबारा ढूंढना चाहे तो वह स्ट्रेस का शिकार हो जाता है और अपनेआप पर झल्लाता है. सोशल मीडिया के भूसे में सुई ढूंढना कोई आसान बात नहीं है.

इस नशे की एक खूबी यह भी है कि इस की खुमारी जिसे हेंगओवर भी कहा जा सकता है चौबीसों घंटे दिल दिमाग पर छाई रहती है. ऐसे लोगों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है जो सुबह उठ कर पेट हल्का करने टौयलेट का रुख बाद में करते हैं पहले फोन खोल कर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफौर्म चेक करते हैं मानो कोई ट्रेन छूट रही हो. कुछ से तो इतना भी सब्र नहीं होता कि जितनी देर टौयलेट में रहें कम से कम उतनी देर तो स्मार्ट फोन को चैन की सांस ले लेने दें.

आंकड़ों की जुबानी देखें तो दुनिया भर में कोई 65 फीसदी लोग वाशरूम में मोबाइल फोन ले कर जाते हैं. यह खुलासा वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर ने अपने एक सर्वे में किया है. इन में भी ज्यादातर युवा शामिल हैं. इलैक्ट्रौनिक्स ट्रेड-इन वेबसाइट बैंक माय सैल के मुताबिक अमेरिका में तो 90 फीसदी लोग टौयलेट में स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते हैं. तमाम डाक्टरों के मुताबिक ऐसे लोग बबासीर नामक तकलीफदेह बीमारी को न्योता दे रहे होते हैं. क्योंकि ये लोग फ्रेश होने यानी मल त्याग करने में 15 मिनिट से ज्यादा का वक्त लेते हैं जबकि यह 5 – 7 मिनट में हो जाता है.

ज्यादा देर टौयलेट शीट पर बैठने से मलद्वार यानी एनस पर दबाब बढ़ता है जिस से पाइल्स बाहर निकलने लगते हैं. पाचन संबंधी समस्याएं भी पैदा होती हैं और संक्रमण का खतरा भी बढ़ता है क्योंकि मोबाइल फोन में टौयलेट शीट के मुकाबले दस गुना ज्यादा बैक्टीरिया पाए जाते हैं. अमेरिका की एरिजोना यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में यह तथ्य बताया गया है.

इस लत पर बना एक जोक आएदिन वायरल भी होता रहता है. एक मुसाफिर ने स्टेशन पर उतरते सहयात्री से कहा यह व्हाट्सऐप वाकई में हमें आगे ले जा रहा है. सहयात्री के पूछने पर कि कैसे, तो वह बोला अब मुझे ही देख लीजिए 2 स्टेशन आगे आ गया हूं. लेकिन हकीकत में लोग आगे नहीं बढ़ रहे हैं बल्कि जिंदगी और दुनिया की रेस में पीछे खिसकते जा रहे हैं. आगे वे लोग बढ़ रहे हैं जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल ज्ञान व जानकारी बढ़ाने के लिए कर रहे हैं पर इन की तादाद 10 फीसदी भी नहीं है.

यह निश्चित ही पहला वैज्ञानिक अविष्कार है जिस का दुरूपयोग दुनिया भर में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. बंदर के हाथ में उस्तरा वाली कहावत सोशल मीडिया के नशैड़ियों पर पूरी तरह लागू होती है. खुद का नुकसान तो ये नशेड़ी करते ही हैं लेकिन साथ ही परिवार का समाज का और देश का भी कम नुकसान नहीं करते. कैसेकैसे करते हैं यह मीडिया इफरात से बताता रहता है. इस लत के लक्षण और छुटकारा पाने कि टिप्स से पत्र पत्रिकाएं और वेबसाइट्स भरी पड़ी हैं. यह सब बेअसर साबित हो रहा है. हैरत तो इस बात की भी है कि खुद इस के लती इस के नुकसान जानते हैं और ईमानदारी से मान भी लेते हैं कि क्या करें… अब पड़ गई आदत तो पड़ गई.

ईमानदारी से अपनी इस लत को स्वीकारने वाले यह भी स्वीकारते हैं कि अब लिखने की प्रेक्टिस तो रही ही नहीं मुद्दत से किसी को चिट्ठी पत्री नहीं लिखी. लोगों की भाषा का तो सत्यानाश हो ही चुका है साथ ही वे व्याकरण की संज्ञा सर्वनाम जैसे शुरुआती पाठ भी नहीं जानतेसमझते. 40 साल या उस से ज्यादा की उम्र के लोगों में गनीमत है भाषा की समझ है लेकिन उस की अहमियत अब नहीं रही. स्कूलों के हाल तो कहना क्या. भोपाल के एक प्राइवेट स्कूल में हिंदी की शिक्षिका सपना शुक्ला बताती हैं कि छोटेछोटे बच्चे अपनी भाषा न ढंग से बोल पाते और न ही लिख पाते. वजह घरों का माहौल है जहां भाषा में भी शौर्टकट चलने लगा है.

सपना के मुताबिक हिंदी की जितनी दुर्दशा पिछले 20 सालों में हुई है उतनी पहले कभी नहीं हुई होगी. बच्चे आवेदन पत्र और निबंध में भी अंगरेजी का इस्तेमाल कर रहे हैं. पर वह कचरा इंग्लिश है जिसे आप न हिंदी कह सकते न ही अंगरेजी कह सकते. हिंदी शिक्षिका होने के नाते मेरे लिए यह चिंता के साथ साथ तनाव का भी विषय बच्चों के भविष्य के मद्देनजर है कि इन का व्यक्तित्व ही दोहरापन लिए विकसित हो रहा है जिस में आत्मविश्वास नाम की चीज ही नहीं चिंता की बड़ी बात यह भी है कि बच्चे अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाते. अच्छी हिंदी के लिए मैं बच्चों को और उन के अभिभावकों को चम्पक पढ़ने की सलाह देती हूं जो बचपन में मैं ने भी पढ़ी है और मम्मी और सासु मां ने भी पढ़ी है.

सोशल मीडिया दरअसल में वन वे ट्रैफिक की तरह है जिस में इस लत के शिकार लोग सिर्फ पोस्ट ग्रहण करते हैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाते क्योंकि वे कमअक्ल होते हैं उन के पास कोई तर्क विचार या राय भी नहीं होती. लोचा यह है कि जो लोग, संगठन या राजनैतिक दल किसी खास मकसद से पोस्ट बना कर उसे पोस्ट करते हैं उन्हें फोरवर्ड कर खुद को अक्लमंद समझने वाले लालबुझक्कड़ों की तादाद कम नहीं.

विचारधारा के पैमाने पर देखें तो इन में दक्षिणपंथियों की तादाद वामपंथियों या तटस्थ यूजर्स से लगभग 10 गुनी है. यही वे लोग हैं जिन्होंने आसमान सर पर उठा रखा है. इन का खाना बगैर अपनी विचारधारा का प्रचार किए नहीं पचता. यही वे लोग हैं जो सुबह उठ कर कुल्ला ब्रश बाद में करते हैं पहले स्मार्ट फोन में पासवर्ड डालते हैं.

इन नासमझ फुरसतियों में से 90 फीसदी को भी नहीं मालूम रहता कि वे किस के इशारो पर नाच रहे हैं . यही लोग विकट के धर्मांध और अंधविश्वासी भी होते हैं जब तक ये सौ पचास लोगों को दिन के हिसाब से शंकर, राम, कृष्ण या हनुमान की फोटो नहीं भेज देते इन के पेट में मरोड़ तब तक उठती ही रहती है. इस रोग का कोई इलाज नहीं है. इन मरीजों का नोटिफिकेशन हमेशा अलर्ट मोड पर रहता है.

दिक्कत तो यह है कि इन्हें हतोत्साहित करने वाला कोई नहीं बल्कि प्रोत्साहित करने वालों की कमी नहीं. इन्हीं में से एक थे आजतक के एंकर सुधीर चौधरी जो अपनी स्टोरी, शो या रिपोर्ट कुछ भी कह लें बनाते ही सोशल मीडिया कंटेंट्स से चुराकर थे. उन का ब्लैक एंड व्हाइट नाम का शो फ्लौप इसीलिए जा रहा था कि उस में कोई नवीनता या विविधता नहीं थी. टीआरपी गिरते देख आजतक के कर्ताधर्ताओं ने फुर्ती दिखाते उन से यह शो छीन कर अंजना ओम कश्यप नाम की एंकर को थमा दिया. यह और बात है कि वे भी भाजपाई और संघी एजेंडों से खुद को पूरी तरह मुक्त नहीं रख पा रही हैं.

सोशल मीडिया के लती लोगों को यह ज्ञान दे दिया गया है कि जो जागरूकता दिख रही है वह सोशल मीडिया की मेहरबानी है. इस से पहले हम इतिहास जानते ही नहीं थे जिस से कांग्रेसी पाप उजागर नहीं हो पाते थे. मसलन यह कि अकबर महान था राणाप्रताप नहीं क्योंकि यह इतिहास वामपंथियों ने लिखा. सच भी है कि दक्षिणपंथियों ने तो कभी इतिहास लिखा ही नहीं उन्हें तो इस की तमीज ही नहीं थी. उन्हें आज भी पूजापाठ से ही फुर्सत नहीं मिलती जो उन की रोजीरोटी का बड़ा जरिया हमेशा से रहा है. अब नए सिरे से इतिहास गढ़ा जा रहा है जिस में सब जायज है

कोई भी धार्मिक या एतिहासिक विवाद होता है तो भक्त लोग आयातित ज्ञान को प्रवाहित करने लगते हैं. ताजा चर्चित उदहारण वक्फ का लें तो ये कहते हैं कि देखो मुसलमानों ने देश भर की जमीनों पर बेजा कब्जा कर रखा है. नेहरु ने वक्फ बोर्ड को शह इसलिए दी कि भारत को मुसलिम राष्ट्र बनाया जा सके. देश हम सनातनियों का है और उन्हीं का रहेगा. देखते जाओ मोदीजी अभी कैसेकैसे कांग्रेसी और वामपंथी कचरा साफ करते हैं. असली हिंदू हो तो इस पोस्ट को कम से कम इतने या उतने लोगों और ग्रुपों में भेजो.

यहां मकसद वक्फ के पचड़े में न पड़ कर यह जताना है कि ऐसे मसलों जिन से किसी को कुछ मिलता जाता नहीं उन के बारे में यह बताना है कि लत कैसे और क्यों पड़ती है. ये चूंकि तर्क नहीं हैं जूनून है इसलिए इन का जवाब देते कांग्रेसियों से देते नहीं बनता. एवज में वे यह बताने बैठ जाते हैं कि मोदीजी कैसेकैसे देश का नुकसान कर रहे हैं. उन का मकसद सिर्फ मुसलमानों को परेशान करना है. इस के बाद दलितों का नम्बर लगेगा. यह `स्क्रीन वार` थमता नहीं है जवाब में भाजपाई अपने दलित प्रेम के किस्सेकहानियां गिनाने लगते हैं. शबरी के बेर वाला प्रसंग इन का प्रमुख हथियार होता है.

इन से इतर भी यह रोग कुछ अलग ढंग से फैला है किसी को पोर्न फिल्मों की लत पड़ चुकी है तो कोई रील बनाने की बीमारी की गिरफ्त में आ चुका है. अपनी रील को वायरल करने के लिए ये तथाकथित क्रिएटर किसी भी हद तक जा सकते हैं. फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लड़कियां कूल्हे स्तन और नितम्ब तरहतरह से मटका कर लाइक्स और व्यूज इकट्ठा कर रही हैं. जाहिर है इन का कोई भविष्य नहीं है क्योंकि ये अपने वर्तमान से खिलवाड़ कर उसे बरबाद कर रही हैं.

इस जनून का एक बेहतर उदाहरण राजस्थान के जोधपुर का है जहां मीम्स और रील्स से तंग आ कर ठेले पर भंगार का कारोबार करने वाले रामप्रताप जो भंगार वाले बाबा के नाम से मशहूर हो गए थे. उन्होंने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी. यह मामला दिलचस्प भी है और चिंतनीय भी जो यह बताता है कि सोशल मीडिया के एडिक्ट लोग किस कदर क्रूर और संवेदनहींन होते जा रहे हैं. जब यह बाबा उस पर वीडियो बनाने वालों से परेशान हो कर सरेआम फांसी लगा रहा था तब भी लोग उस के वीडियो ही बना रहे थे जिस से ज्यादा लाइक्स और व्यूज मिलें

सोशल मीडिया को टू वे की तरह इस्तेमाल करने वाले जहां जरूरत हो प्रतिक्रिया भी देते हैं और गलत बात पर एतराज भी जताते हैं. क्योंकि ये किसी के गुलाम नहीं होते और न ही इन का कोई दृश्य अदृश्य बौस होता. ये वाकई में रियल क्रिएटर होते हैं जो सृजन करते हैं तुक की बात करते हैं. क्रिएटर विध्वंसक भी होते हैं जिन्हें मालूम होता है कि उन की बनाई पोस्ट करोड़ों लोगों तक पहुंचेगी. मूर्खो की फ़ौज स्क्रौल करने, टैग और फोरवर्ड करने मंदिर के सामने बैठे भिखारियों की तरह तैयार बैठी है. यह तबका पोस्ट या क्रिएशन के सच झूठ या तथ्यों की जांच नहीं करता. कई बार तो पूरी तरह से पढ़ता भी नहीं, इन्हें देख भेड़ों की ही याद आती है या फिर उस कुए की जिस में भंग पड़ी हो.

इन्हें लताड़ने वाला तो कोई नहीं लेकिन उकसाने और हांकने वाले कम नहीं जिन का एक खास मकसद होता है पर इन का नहीं होता ठीक वैसे ही जैसे दंगाई भीड़ का नहीं होता. यह उन्मादी भीड़ हिंसा और तोड़फोड़ करती है तो सोशल मीडिया वाली भीड़ जानेअनजाने में दंगों का माहौल बनाती है. दोनों ही गुनाह कर रहे हैं लेकिन अपने घरों में बैठे फुरसतियों यानी नशैलों का कुछ नहीं बिगड़ता.

Hindi Kahani : एक मां की अंतर्व्यथा – क्या था सुदीर्घ की बेहूदा हरकतों का कारण

Hindi Kahani : आटा खत्म हो गया था किंतु सुदीर्घ की भूख नहीं, वह उसी प्रकार थाली पर हाथ रखे टुकुरटुकुर देख रहा था. 16 रोटियां वह खा चुका था. मां हो कर भी मैं उस की रोटियां गिन रही थी. फिर आटा गूंध कर सुदीर्घ को खिलापिला कर जब मैं उठी तो रात के साढ़े 10 बज रहे थे.

सुदीर्घ वहीं थाली में हाथ धो कर जमीन पर औंधा पड़ा सो रहा था, उसे किसी तरह खींच कर बिस्तर पर लिटाया. उस की मसहरी लगाई. इस के बाद मैं भी लेट गई.

सुदीर्घ मेरा 20 वर्षीय अर्द्घ्रविक्षिप्त पुत्र था. लगभग 5 वर्ष तक वह सामान्य बच्चों की तरह रहा फिर उस का शरीर तो बढ़ता गया किंतु मानसिक क्षमता जस की तस ही बनी रही. वह हंस कर या क्रोधित हो कर अपनी बात समझा देता था, शरीर से बलवान था. उस से 4 वर्ष बडे़ उस के भाई सुमीर में ऐसी किसी भी तरह की अस्वाभाविकता के लक्षण न थे. वह तीक्ष्ण बुद्घि का स्मार्ट युवक था और बहुत कम उम्र में ही प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा बैंक की नौकरी पा गया था.

मेरे पति, 2 बेटे और ‘मैं’ इस छोटे से परिवार में मानसिक शांति और सुकून न था. सुदीर्घ की भूख अस्वाभाविक थी, हर 2 घंटे में वह खाने के लिए बच्चों की तरह उपद्रव करता. उम्र बढ़ने के साथ उस में उन्मत्तता भी बढ़ती गई. उन्मत्तता की स्थिति में वह चीखता, चिल्लाता, कपड़े फाड़ डालता और पकड़ने वाले पर हिंसक आक्रमण भी कर देता था. उस के पिता और भाई उसे पकड़ कर नींद का इंजेक्शन देते और कमरे में बंद कर देते.

1-2 वर्ष के बाद उस मेें एक समस्या और उत्पन्न हो गई थी. वह लड़कियों और औरतों के प्रति तीव्र आकर्षण महसूस करता एवं अशोभ- नीय हरकतें करने लगा था. कभी काम वाली बाई को परेशान करता. कभी महल्लेटोले की लड़कियों और महिलाओं को घूरता, उन्हें छूने का प्रयास करता. उस की इन आदतों की वजह से ही मैं उसे कहीं भी ले कर नहीं जाती थी.

दीदी के बेटे के विवाह की घटना तो मैं भूल ही नहीं सकती. उन के बहुत अनुरोध पर मैं मय परिवार वहां पहुंची. सुदीर्घ उन के महीनों के लिए बनाए लडडुओं, मठरियों को 2 ही दिन में चट कर गया, रिश्तों की बहनों के साथ भी वह अनापशनाप हरकतें करता, उन के करीब जाने की कोशिश करता, लोग उसे पागल समझ कर टाल जाते, उस पर हंसते और मैं खून का घूंट पी कर रह जाती.

विवाह की पूर्व रात्रि को तो उस ने हद ही कर दी, लड़कियों के बीच जा कर लेट गया. मना करने पर उपद्रव करने लगा. उसे दवा वगैरह दे कर हम उसी रात किराए की कार से लौट गए. उस के बाद मैं ने उसे ले कर कहीं न जाने की कसम खा ली.

मानसिक शांति के अभाव में सुमीर भी घर में कम ही रहता. उस के पिता भी पूरापूरा दिन बाहर बैठ कर अखबार पढ़ते रहते, केवल खाने और सोने को अंदर आते. सुदीर्घ का पूरा दायित्व मुझ पर था. वह मुझे भी धकिया देता, नोच लेता किंतु प्यार से समझाने पर केवल मेरी ही बात सुनता.

एक दिन काम वाली बाई ने मुझ से कहा, ‘माताजी, आप भैया की शादी क्यों नहीं कर देतीं?’

‘कौन लड़की देगा उस को?’ मैं ने उदासीनता से कहा.

‘अरे, गरीब घर की लड़कियां बहुतेरी मिलेंगी, शादी के बाद वह ठीक भी हो जाएंगे.’

मैं ने ‘हां, हूं’ कर दिया, गरीब घर की लड़की की क्या जिंदगी नहीं होती. गुस्से में कहीं उसे मार ही डाले तो कौन जिम्मेदार होगा.

उसी दिन शाम को सुदीर्घ ने काम वाली बाई पर आक्रमण कर दिया. मैं और सुदीर्घ के पापा बाहर बैठे चाय पी रहे थे. नींद का इंजेक्शन लिए सोते सुदीर्घ के प्रति हम निश्चिंत थे. अचानक चीख सुन कर अंदर गए, आंगन में बाई को पकड़ कर कमरे की ओर घसीटते सुदीर्घ को चीख कर मैं ने सावधान किया फिर बाई को छुड़ाने लगी तो उस ने मुझे दानव की तरह धकेल दिया.

हक्केबक्के खड़े उस के पिता ने पास रखी सुमीर की हाकी उठा ली और पागलों की तरह उस पर टूट पड़े. मैं उसे बचाने को आगे बढ़ी और लड़खड़ा कर गिरी और अचेत हो गई. आंखें खुलने पर सुमीर व उस के पिता को अपने पास बैठे पाया.

‘सुदीर्घ कहां है?’ मैं ने पूछा था.

‘यहीं है, घर के बाहर बैठा है,’ सुमीर के पिता ने कहा.

‘बाहर, अरे, कहीं भाग जाएगा?’

‘भाग जाने दो नालायक को. खानेपीने व आराम की खूब समझ है लेकिन अन्य बातों के लिए पागल बन जाता है.’ उस के पिता गुस्से से लाल थे.

मैं रोने लगी. सुमीर ने मुझे समझाया, ‘मां, आप परेशान क्यों हो रही हैं. वह यहीं दरवाजे के बाहर बैठा है. पापा ने उसे पीट कर बाहर निकाला है. सही और गलत की समझ उसे होनी चाहिए, यह सजा जरूरी है, कब तक लाड़प्यार में हम उस की भद्दी हरकतों को बरदाश्त करते रहेंगे.’

मुझे बाई वाली घटना का ध्यान आया, लज्जा आ गई. यह विवेकहीन, बुद्धिहीन, निरा पागल लड़का मेरी ही तो कोख की संतान था. रात में सब के सोने पर मैं धीरे से उठी, रात के 11 बज रहे थे. बेचारा, बिना खाएपिए बाहर बैठा था, किंतु दरवाजा खोलने पर वहां सुदीर्घ नहीं मिला.

सुमीर व उस के पिता को जगाया. दोनों स्कूटर ले कर आसपास का पूरा इलाका छान आए किंतु वह कहीं नहीं मिला. एक राहगीर ने बताया कि उन्होंने एक गोरे, स्वस्थ लड़के को ट्रक के पीछे लटक कर जाते देखा था. पुलिस को खबर की गई किंतु उस का कहीं अतापता न चला.

दिन के बाद महीने और अब साल बीतने को आ रहा था. सुदीर्घ न लौटा न उस का कोई सुराग मिला. हम भी रोरो कर थक चुके थे.

परिजनों की सलाह पर अब हम सुमीर के विवाह का सपना देखने लगे. घर में पायल और चूडि़यों की छनक गूंजेगी, जीने का एक बहाना मिल गया. जीवन में एक लय उत्पन्न हो गई किंतु तभी एक दिन पुलिस हमारे दरवाजे पर आ खड़ी हुई. बताया, सुदीर्घ का पता चल गया था, उस ने एक नशेड़ीगंजेड़ी साधु की संगत में पूरा साल बिता दिया था. निश्चय ही वह भी नशा करने लगा था.

पुलिस जीप में हम तीनों हैरान- परेशान बैठ गए, शहर से लगभग 50-55 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव में पुलिस हमें ले कर पहुंची. आगे जो दृश्य हम ने देखा उसे किस तरह सहन किया यह केवल हम ही जानते हैं.

वहां सुदीर्घ नहीं उस की क्षतविक्षत सड़ीगली देह पड़ी थी. तेज रफ्तार से जाते किसी ट्रक की चपेट में वह आ गया था और नशे में धुत उस के साथी को अपनी ही खबर नहीं थी तो उस की क्या होती.

कई दिन बाद गांव वालों की खबर पर पुलिस आई. उस के साथ सुदीर्घ की फोटो व पहचान का मिलान कर के हमें सूचित किया गया था.

सुदीर्घ के शव को जीप में डाल हम लौैट चले. उस का सिर उस के पिता की गोद में पड़ा था. वे पश्चात्ताप की आग में जलते रो रहे थे. उन्होेंने ही उसे घर से निकाला जो था.

मुझे याद आ रहा था कि उस के जन्म पर कितना जश्न मनाया गया था. वह था भी गोलमटोल, प्यारा सा. कितने सपने बुने थे उसे ले कर. लेकिन उस के बड़े होतेहोते सब टूट गए. वह विधि के विधान का एक ‘मजाक’ बन कर रह गया, आश्रित, बलिष्ठ पर बुद्धिहीन. सभ्य लोगों की दुनिया का असभ्य, हिंसक सदस्य, अपने सभी कर्म, कुकर्मों का लेखाजोखा छोड़ पंच तत्त्व में विलीन हो गया.

मैं हमेशा उस के बचपन की यादों में खोई रहती, पगपग पर सुमीर के पिता व सुमीर मुझे संभालतेसमझाते. उन्हीं कठिन परिस्थितियों में ‘इन की’ बड़ी बहन सुमीर के लिए ‘रम्या’ का रिश्ता ले कर आईं. हम ने ‘हां’ कर दी. चट मंगनी पट ब्याह हो गया.

सुंदर, कोमल, बुद्धिमान, शिक्षित ‘रम्या’ हमारे घर खुशियों का झोंका ले कर पहुुंची. टूटे हृदय वाले हम 3 लोगों को उस ने बखूबी संभाल लिया. आराम से बैठ कर रोटी खाने का क्या आनंद होता है वह तो अब हम ने जाना था. मैं और सुमीर के पिता टेलीविजन देखते हुए चाय की चुस्कियां लेते, बातें करते हुए शाम को झोला लिए बाजारहाट कर आते. लौटने पर घर साफसुथरा चमकता हुआ मिलता. गरमागरम भोजन मेज पर सजा रहता.

महल्ले की लड़कियों व औरतों का जमघट अब हमारे घर लगा रहता. पहले जो सुदीर्घ के कारण आसपास नहीं फटकती थीं अब रम्या के सुंदर स्वभाव के आकर्षण में बंधी चली आतीं. उन की चहचहाहटों, खिलखिलाहटों में हम अपने जीवन का लुत्फ उठाते. सुमीर आफिस के बाद अब हर समय घर पर ही बना रहता. जीवन की इन छोटीछोटी खुशियों में इतना आनंदरस होता है, यह हम ने अब जाना. महीने दो महीने में हम रिश्तेदारों के घर भी चक्कर लगा आते और वे भी चले आते. हमें अब जीवन से कोई शिकायत नहीं रह गई थी.

आज दोपहर को खाकी वरदी वाले पुन: ढेरों आशंकाएं लिए जीप में आए. और इन को सुदीर्घ की एक फोटो दिखाई, ‘‘यह आप का लड़का है?’’

‘‘हां, लेकिन इस की मृत्यु हो चुकी है?’’

‘‘नहीं, यह जिंदा है,’’ पुलिस अधिकारी हंस कर बोला.

‘‘मैं कैसे विश्वास करूं, अपने हाथों उस का दाहसंस्कार किया है मैं ने,’’ सुमीर के पिता परेशान थे.

‘‘क्या उस को देख कर आप को लगा था कि वह आप का ही बेटा है, मेरा मतलब सारे पहचान चिह्न आदि?’’

हम में से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. पहचानलायक शरीर तो था ही नहीं, वह तो इस कदर बुरी हालत में था कि उस में पहचान के चिह्न खोजना ही मुश्किल था. सच, किसी अपरिचित भिखारी की मृत देह को दुलारते, पुचकारते, आंसुओं की गंगा बहाते हम ने मुखाग्नि दे डाली थी.

अगले दिन अपने चिरपरिचित अंदाज में सुदीर्घ हमारे सामने खड़ा था. कुछ आवश्यक औपचारिकता पूरी कर के उसे हमें सौंप दिया गया था. इन डेढ़ सालों तक वह किसी अमीर व्यापारी के फार्म हाउस में पड़ा था. वहीं मजदूरों के बीच सुमीर के एक मित्र ने उसे पहचाना था जो वहीं नौकरी कर रहा था, जिस के चलते सुदीर्घ आज हमारी आंखों के सामने खड़ा था.

वह सभी कमरों में घूमता रहा. मेरे पास आया, पिता के पास गया फिर रम्या के पास जा कर ठिठक गया, उस के चारों ओर गोलगोल घूमते हुए वह हंसने लगा. उस के जोरजोर से हंसने से भयभीत हो कर रम्या अपने कमरे की ओर दौड़ी, पीछे वह भी दौड़ा, सुमीर उसे पकड़ कर उस के कमरे में ले गया.

बहुत दिनों बाद मैं ने रसोई में जा कर उस के लिए ढेर सारा खाना बनाया. शाम तक सुदीर्घ के आने की खबर आग की तरह महल्ले में फैल गई. काम वाली बाई ने न आने का समाचार भिजवा दिया. रम्या की सहेलियां बाहर से ही उलटे पांव लौट गईं. रात गहराने से पहले सुमीर, रम्या को अपना सामान पैक करते देख मैं सन्न रह गई.

‘‘मम्मी, अब रम्या का यहां रहना मुश्किल होगा. सुदीर्घ को या तो मानसिक अस्पताल में भरती करवा दो या उस की कहीं भी शादी करवा दो,’’ सुमीर ने कहा.

वह ठीक कह रहा था. मैं और उस के पिता आंखों में आंसू भरे उन्हें जाते विवशता से देखते रहे. हम हताश व निराश थे. अंदर कमरे से खापी कर सो रहे सुदीर्घ के खर्राटों की आवाज आ रही थी. घर में सन्नाटा छाया था. चलती हुई हवा की आवाज भी कान में शोर पैदा कर रही थी.

‘‘हम ने उसे जन्म दिया है, सड़क पर थोड़े ही न फेंक देंगे, उस की जिम्मेदारी तो हमें ही वहन करनी होगी. लेकिन कल तक कितने खुश थे न हम, आज सब हमें छोड़ कर चल दिए,’’ सुमीर के पिता धीरेधीरे कह रहे थे मानो खुद से बतिया रहे हों.

मन की सारी खिन्नता, क्षोभ, असंतोष, दुख और शायद तनिक स्वार्थ से प्रेरित, भरे मन से यह एक वाक्य निकला, ‘‘काश, जिस अपरिचित व्यक्ति का हम ने अंतिम संस्कार किया था वह सुदीर्घ ही होता.’’

सुमीर के पिता चौंक कर मुझे देखने लगे, क्या यह एक अपने कोख से जन्मे पुत्र के लिए मां के कथन थे?

Best Hindi Story : औनर किलिंग – आखिर क्या हुआ निधि के साथ

Best Hindi Story : निधि भागतेभागते थक चुकी थी. उस की सांसें बारबार उखड़ रही थीं. कपड़े झाडि़यों में उलझ कर कई जगह से फट गए थे. शुक्र है उस ने पैरों में स्पोर्ट्स शूज पहन रखे थे, वरना पांव तो कभी भी बेवफाई कर सकते थे. मगर शरीर तो आखिर शरीर ही है, उस की सहन करने की एक सीमा होती है. अब तो हिम्मत भी आगे बढ़ने से इनकार कर रही थी. मगर ‘नहीं, अभी कुछ देर और साथ दो मेरा…’ अपनी इच्छाशक्ति से रिक्वैस्ट करती हुई निधि ने अपनी अंदरूनी ताकत को जिंदगी का लालच दिया और एक बार फिर से अपना हौसला बढ़ा कर तेजी से भागने लगी उसी दिशा में आगे की ओर.

मगर इस बार हिम्मत उस की बातों में नहीं आई और उस ने आखिर दम तोड़ ही दिया. निधि ने एक पल ठहर कर भयभीत हिरणी की तरह इधरउधर देखा और पूरी तसल्ली करने के बाद एक पेड़ से अपनी पीठ टिका कर उखड़ी हुई सांसों को संयत करने लगी.

‘शायद सुबह होेने में अब ज्यादा देर नहीं है. मुझे सूरज निकलने से पहले ही कोई सुरक्षित ठिकाना तलाशना होगा वरना पता नहीं मैं फिर किसी सूरज का उगना देख भी सकूंगी या नहीं,’ मन ही मन यह सोचते हुए उस ने अंधेरे में देखने की कोशिश की तो उसे दूर कुछ रोशनी गुजरती हुई सी दिखाई दी. ‘शायद कोई सड़क है. मुझे किसी भी तरह वहां तक तो पहुंचना ही होगा, तभी किसी तरह की मदद की कोई उम्मीद जगेगी,’ सोचती हुई निधि ने फिर अपना सफर शुरू किया.

निधि का अनुमान सही निकला. यह सड़क ही थी. हरियाणा और राजस्थान को आपस में जोड़ता एक स्टेट हाईवे, कुछ ही दूरी पर एक छोटा सा टोल नाका भी बना हुआ था. निधि किसी तरह अपनेआप को ठेलती हुई वहां तक ले कर गई, मगर कुछ बोल पाती, इस से पहले ही गिर कर अचेत हो गई.

टोल कर्मचारियों ने उसे देखा तो वे घबरा गए. उस की हालत देख कर उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचित करना ही उचित समझा. कुछ ही देर में ऐंबुलैंस सहित पुलिस की गाड़ी वहां आ गई और महिला पुलिस की निगरानी में निधि को सिटी हौस्पिटल ले जाया गया.

डाक्टरों के थोड़े से प्रयास के बाद ही निधि को होश आ गया. खुद को पुलिस की निगरानी में पा कर निधि के मन में दबे हुए गुबार को शब्द मिले और वह महिला कौंस्टेबल से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी. इंस्पैक्टर सरोज ने उस की पीठ पर हाथ रखते हुए उसे भरोसे का एहसास दिलाया और कहा, ‘‘देखो, तुम हमारे पास पूरी तरह सुरक्षित हो. और तुम्हें घबराने या किसी से डरने की जरूरत नहीं है. तुम बेखौफ हो कर अपने साथ हुए हादसे के बारे में हमें बताओ. हम तुम्हारी मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे.’’

निधि कुछ भी नहीं बोली, बस, टकटकी लगाए छत की तरफ देखती रही. किस पर लगाए इलजाम, किसे ठहराए दोषी, किसे सजा दिलवाए, किसे भिजवाए सलाखों के पीछे. जो भी उस की इस हालत के जिम्मेदार हैं, वो उस के अपने, उस के सगे ही तो थे. वे, जिन के साथ उस का खून का रिश्ता है. हां, ये हैं उस के पापा, जो उस की एक जिद पर सारी दुनिया उस पर न्योछावर कर देते थे. ये है उस की मां, जो उस की जरा सी तकलीफ पर पूरी रात आंखों में बिता दिया करती थीं. उस का भाई राज, जो उस के लिए शहरभर से बैर मोल ले लेता था. और तो और, उस की छुटकी सी बहन शालू भी, जो सदा उस के आगेपीछे दीदीदीदी कहती घूमा करती थी. निधि के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल पाया. बस, उस की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

डाक्टर ने इंस्पैक्टर सरोज से कहा, ‘‘अभी पेशेंट काफी सदमे में है, इसे नौर्मल होने दीजिए, फिर आप लोग अपनी पूछताछ कीजिएगा.’’

इंस्पैक्टर सरोज निधि को डाक्टर की निगरानी में छोड़ कर अपनी टीम के साथ लौट गईं. हां, एक महिला कौंस्टेबल को उस की सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया था. सब के जाने के बाद निधि आंखें बंद कर लेट गई. रातभर भागते रहने के कारण उसे नींद आना स्वाभाविक था, मगर निधि सोना नहीं चाहती थी. वह तो यहां से भाग जाना चाहती थी अपने घर, अपने विनय के पास, उस की सुरक्षित बांहों के घेरे में जहां उसे किसी का डर नहीं, किसी की फिक्र नहीं. निधि के दिमाग में पिछले कई दिनों के घटनाक्रम चलचित्र की तरह घूमने लगे.

करीब 10 वर्षों पहले जब वह इंजीनियरिंग और एमबीए करने के बाद मुंबई में एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करने लगी थी तभी उस की मुलाकात विनय से हुई थी. मजबूत और स्वस्थ शारीरिक बनावट वाला विनय अपने नाम के अनुरूप मन से बहुत ही विनय था. कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि बाहर से एकदम शांत और सीधा सा दिखने वाला विनय अपने भीतर कवि हृदय भी रखता है. सब के साथ निधि को भी यह बात उस साल कंपनी की न्यू ईयर पार्टी में ही पता चली थी, जब उस ने वहां एक प्रेमगीत गाया था. उस की प्रेम कविताओं की धारा में बहतीबहती निधि कब उस के प्रेमपाश में बंध गई, उसे भान ही नहीं हुआ.

अब तो निधि जब देखो तब किसी न किसी बहाने से उस के आसपास ही बने रहने की कोशिश में लगी रहती थी. उस ने यह बात छुटकी शालू से शेयर की थी. शालू ने ही तो उसे इस रास्ते पर आगे बढ़ने का हौसला दिया था. उस ने कहा था, ‘कोई सामान्य पुरुष होता तो तुम्हारी नजदीकियों का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश करता मगर विनय तुम से एक सम्मानजनक दूरी बनाए रखता है और उस की यही खूबी उसे सारी पुरुष जमात से अलग करती है.’

‘छुटकी की बात में दम है,’ सोच कर निधि विनय के और भी करीब होने लगी थी. निधि ने जब कंपनी के रिकौर्ड में विनय का प्रोफाइल देखा तो उसे सुखद महसूस हुआ कि वह न केवल उस की जाति से संबंध रखता है बल्कि वे दोनों तो एक ही प्रदेश से भी हैं. ‘अगर घर वालों को मानने में थोड़ी सी मेहनत की जाए तो हमारी शादी हो सकती है,’ सोच कर निधि खुद ही शरमा गई. वह अपनी सोच को बहुत आगे तक ले जा चुकी थी.

जिस शालू ने घर वालों के विरोध के बावजूद विनय से शादी करने में उस का पूरा साथ दिया, वही बहन आज उसे विनय के कारण जान से मारने की साजिश में शामिल हो गई. निधि को इस बात पर अब भी यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘क्या आप ठीक महसूस कर रही हैं?’’ ड्यूटी पर तैनात डाक्टर ने आ कर पूछा तो निधि ने आंखें खोल दीं.

‘‘जी,’’ उस ने संक्षिप्त सा जवाब दिया और उठ कर बैड पर बैठ गई. उसे बैठा देख कर कौंस्टेबल ने इंस्पैक्टर सरोज को फोन कर दिया और 15 मिनट में वे भी वहां पहुंच गईं.

‘‘क्या आप अपने बारे में कुछ बताएंगी?’’ सरोज ने पूछा. निधि ने एक बार फिर चुप्पी साध ली. क्या बताती वह उन्हें कि वह अपनों की ही साजिश का शिकार हुई है. उसे जन्म देने वाले ही उसे मौत की नींद सुला देना चाहते हैं.

‘‘जी, मैं मुंबई की रहने वाली हूं. यहां किसी दोस्त से मिलने आई थी, मगर एक हादसे का शिकार हो गई. कुछ गुंडों ने मुझ पर हमला कर दिया था. मेरा बैग और मोबाइल छीन लिया. शायद किसी बुरी नीयत से वे मेरा पीछा कर रहे थे. मगर मैं किसी तरह उन के चंगुल से बच कर यहां तक आ गई,’’ निधि ने असली बात छिपा ली.

‘‘देखिए, आप हम से कुछ भी छिपाने की कोशिश न करें और न ही डरें. हम आप की मदद करना चाहते हैं. आप चाहें तो उन गुंडों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करवा सकती हैं,’’ सरोज ने उसे कुरेदा. मगर निधि ने एक बार फिर से चुप्पी साध ली और अपनी आंखें बंद कर के अपने दर्द को दिल के भीतर ही समेटने की कोशिश करने लगी.

रात हो चली थी. हौस्पिटल में भरती लगभग सभी मरीज नींद की आगोश में जा चुके थे. हां, कभीकभी कोई मरीज दर्द से कराह उठता था तो अवश्य ही वार्ड की शांति भंग हो जाती थी. ड्यूटी पर तैनात नर्स और कंपाउंडर भी उबासियां ले रहे थे मगर निधि की आंखों में दूरदूर तक नींद का नामोनिशान नहीं था.

वह उस वक्त को कोस रही थी जब उस ने शालू की बातों में आ कर घर लौटने का मन बनाया था. मौका भी तो कुछ ऐसा ही था. वह चाह कर भी इनकार नहीं कर सकी थी. उस की छुटकी की शादी जो तय हो गई थी. शालू ने जब चहकते हुए बताया था कि मम्मीपापा उसे विनय सहित अपनाने को राजी हो गए हैं तो उस के सिर से भी मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर शादी करने के अपराधबोध का भारी बोझा उतर गया था जिसे वह इतने सालों से ढो रही थी.

इधर, विनय को भी 2 महीने के लिए ट्रेनिंग पर आस्ट्रेलिया जाना था. निधि ने सोचा, एक पंथ दो काज हो जाएंगे. विनय के बिना यहां अकेले मुंबई में रहना किसी सजा से कम नहीं था. इसलिए उस ने कंपनी से एक महीने की लंबी छुट्टी ले ली और अपने पैतृक गांव सिरसा आ गई.

मां तो निधि को देखते ही उस से लिपट गई थी. पापा ने भी कलेजे से लगा लिया था अपनी लाड़ो को. राज शादी के किसी काम के सिलसिले में शहर गया हुआ था. शालू ने उसे बांहों में भींचा तो फिर छोड़ा ही नहीं…न जाने कितने गिलेशिकवे थे जिन्हें वह शब्दों में बयां नहीं कर सकी थी. बस, आंखों से आंसू बहे जा रहे थे. निधि के आने से शादी वाले घर में एक अलग ही रौनक आ गई थी.

रात में छुटकी ने उस से चिपटते हुए पूछा, ‘जीजी, एक बार फिर से बता न, तू ने जीजाजी जैसे विश्वामित्र को आखिर कैसे रिझाया?’

‘कितनी बार सुनेगी तू? आखिर तेरा मन भरता क्यों नहीं, एक ही किस्से को बारबार सुन कर तू बोर नहीं होती?’ निधि ने झूठे गुस्से से कहा.

‘अरे, अब तक तो फोन पर ही सुनती आई थी, आमनेसामने सुनने का मौका तो आज ही हाथ लगा है, सुना न. आज तो मैं तेरे चेहरे की लाली भी देखूंगी, जब तू बोलेगी,’ शालू ने जिद की तो निधि छुटकी की जिद नहीं टाल सकी और एक बार फिर से कूद पड़ी यादों की झील में डुबकी लगाने.

‘मुंबई की बरसात तो तू जानती ही है. बादलों का कोई भरोसा नहीं, जब जी चाहे बरस पड़ते हैं. हालांकि हम मुंबई वाले इस की ज्यादा परवा नहीं करते मगर उस दिन बात कुछ और ही थी. सुबह से ही बरसात हो रही थी. दोपहर होतेहोते तो सारे शहर में पानी ही पानी हो गया था.

‘मौसम विभाग ने भारी वर्षा की चेतावनी जारी कर के लोगों को घर में ही रहने की सलाह दी. मगर जो घर से बाहर थे उन्हें तो घर लौटना ही था. मैं भी अपने औफिस में बैठी बारिश के रुकने का इंतजार कर रही थी. लगभग सभी लोग अपने घर जाने की व्यवस्था कर चुके थे. बस, मैं और विनय ही बचे थे.

‘बारिश के थोड़ा सा हलके होने के आसार दिखे तो विनय ने मुझ से कहा, ‘आप को एतराज न हो तो मैं आप को अपनी बाइक पर घर छोड़ सकता हूं.’

‘मगर बाइक पर तो हम भीग जाएंगे…’ मैं ने कहा.

‘घर ही तो जाना है, किसी पार्टी में तो नहीं? घर पहुंच कर कपड़े बदल लेना,’ विनय ने मुसकराते हुए कहा.

‘मुसकराते हुए कितना प्यारा लगता है ये, पता नहीं मुसकराता क्यों नहीं है,’ मैं ने यह मन ही मन सोचा और खुद भी मुसकरा दी. अंत में मैं ने विनय से लिफ्ट लेना तय कर लिया.

‘जैसा कि मैं ने कहा था, घर पहुंचतेपहुंचते मैं और विनय पूरी तरह से भीग चुके थे. मैं ने विनय को एक कप अदरक वाली चाय पीने का औफर देते हुए अंदर आने को कहा. पहले तो उस ने मना कर दिया मगर अचानक ही उसे तेज छींकें आने लगीं तो मैं ने ही हाथ पकड़ कर उसे भीतर खींच लिया था. उसे छूने का यह मेरा पहला अनुभव था. मैं ने महसूस किया कि विनय भी मेरे छूने से थोड़ा सा नर्वस हो गया था.

‘मैं ने कपड़े बदल कर चाय का पानी चढ़ा दिया. तभी मुझे खयाल आया कि विनय भी तो भीगा हुआ है. मगर मेरे पास उसे देने के लिए जैंट्स कपड़े तो थे ही नहीं. मैं ने गैस धीमी कर के उसे तौलिया दिया और साथ ही बदलने के लिए अपना नाइट सूट भी. यह देख कर विनय सकपका गया. मगर फिर जोर से हंस पड़ा और कपड़े बदलने चला गया.

‘बाथरूम से बाहर आया तो उस का हुलिया देख कर मेरी भी हंसी छूट गई. विनय मेरे नाइट सूट में बहुत ही फनी लग रहा था. अभी हम दोनों चाय पी ही रहे थे कि बाहर बारिश फिर से बहुत तेज हो चली थी. मैं ने झिझकते हुए विनय से घर न जाने की जिद की. विनय को भी शायद यही ठीक लगा और वह मेरे पास ही रुक गया.

‘मेरी रूमपार्टनर आजकल छुट्टी पर अपने घर गईर् हुई थी और मेरा टिफिन भी बारिश के कारण नहीं आया था. खाने की बात आने पर विनय ने मुसकराते हुए रसोई संभाली और बहुत ही टैस्टी मटरपुलाव बना लिया. बातें करतेकरते हमारा आपसी संकोच काफी हद तक दूर हो चुका था.

‘हम देररात तक हंसीमजाक करते हुए एक ही सोफे पर बैठे टीवी देखते रहे. फिर न जाने कब हमें नींद आ गई और जब सुबह मैं उठी तो विनय की बांहों में थी. विनय अभी भी सो ही रहा था. पता नहीं क्या सम्मोहन था उस के मासूम चेहरे में कि मैं अपनेआप को रोक नहीं पाई और मैं ने झुक कर उस के होंठ चूम लिए. नींद में ही विनय ने मुझे बांहों में कस लिया और फिर हम दोनों…अब छोड़ न छुटकी. अब आगे बताते हुए मुझे शर्म आ रही है,’ निधि ने शर्माते हुए कहा तो छुटकी ने जोर से उसे गुदगुदी कर दी और दोनों बहनें खिलखिला उठीं.

दर्द में भी निधि के चेहरे पर एक मुसकान आ गई. मगर अचानक ही आंखों में फिर से डर की परछाइयां तैरने लगीं. उसे याद आ गया 10 दिनों पहले का वह मंजर जब शालू की शादी तय करवाने वाला बिचौलिया पंडित रामशरण शास्त्री शादी में होने वाले लेनदेन के सिलसिले में कुछ बात करने के लिए पापा से मिलने घर आया था. निधि को देख कर बोला, ‘यह आप की बड़ी बिटिया है क्या?’

‘हां जी, यह हमारी बड़ी बेटी निधि है और अपने पति के साथ मुंबई में रहती है. वो रेवाड़ी वाले चौधरीजी हैं न, उन के बेटे से ही शादी हुई है इस की,’ मां ने निधि की तरफ प्यार से देखते हुए शास्त्रीजी से उस का परिचय करवाया.

‘क्या बात करती हो भाभीजी? चौधरीजी और आप के पति दोनों एक ही गोत्र से संबंध रखते हैं. इस नाते तो यह शादी नाजायज हुई. यह तो भाईबहन का आपस में शादी करने जैसा ही पाप हुआ है,’ शास्त्रीजी ने अपने कानों को हाथ लगाते हुए कहा.

‘मगर हमारे परिवारों का आपस में तो कोई संबंध नहीं है,’ निधि के पापा ने अपनी सफाई देते हुए कहा.

‘उस से क्या फर्क पड़ता है? क्या हमारे पुरखों ने शादियों में गोत्र टालने का प्रावधान यों ही मजाक में किया था? नहीं साहब, हम चाहे कितने भी मौडर्न हो जाएं, लेकिन समाज की परिपाटी तो सभी को निभानी पड़ती है,’ शास्त्रीजी अब अपना यहां आने का मकसद भूल चुके थे और इस नई बहस में उलझ गए. पापामम्मी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की, मगर शास्त्रीजी ने किसी की एक न सुनी और आखिर में वे पापा से भुगतने को तैयार रहने की धमकी देते हुए चले गए.

किसी अनजानी आशंका से निधि का मन कांप गया और जैसा कि उसे डर था, शास्त्रीजी तीसरे ही दिन वापस आए तो उन के तेवर कुछ अलग ही थे. पापा और शास्त्रीजी बैठक में धीरेधीरे बातें कर रहे थे जोकि बीचबीच में तेज भी हो रही थीं. निधि के कान उधर ही लगे थे. उस ने सुना वे कह रहे थे, ‘पंचों की राय है कि निधि बिटिया की शादी को खारिज करार दिया जाए और वह पूरी पंचायत के सामने अपने पति को राखी बांध कर भाई बनाए,’ यह सुनते ही निधि के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह सांस रोके आगे का वार्त्तालाप सुनने लगी.

‘मगर यह कैसे संभव है? निधि की शादी को 5 साल हो चुके हैं, ऐसे में वह कैसे यह सब कर सकती है?’ पापा ने विरोध किया था.

‘तो फिर आप शालू की सगाई को टूटा हुआ समझें. आप के होने वाले समधी इस हालात में आप के साथ रिश्ता रखने के इच्छुक नहीं हैं. और सिर्फ वही नहीं, अब तो शालू को कोई भी गैरतमंद आदमी अपने परिवार की बहू नहीं बनाएगा. यह भी पंचायत ने ही तय किया है,’ शास्त्री ने अपना दोटूक फैसला सुनाया.

‘क्या इस के अलावा और कोई रास्ता नहीं है?’ पापा ने हारे खिलाड़ी की तरह हथियार डालते हुए विनती की.

‘है क्यों नहीं, रास्ता है न. मगर निर्णय तो आप को ही लेना पड़ेगा. हां, निधि के रहते शालू की शादी नहीं हो सकती, यह तो तय है. आप को 2 दिनों बाद पंचायत ने तलब किया है, आप वहां आ कर अपना पक्ष रख सकते हैं.’ शास्त्रीजी पापा को पंचायत का फरमान सुना कर कह कर चले गए.

उस दिन घर में मातम सा पसर गया था. खाना बना तो था मगर किसी से भी एक निवाला तक नहीं निगला गया. सब चुपचाप थे. अपनेअपने विचारों में गुम. हर दिमाग में मंथन चल रहा था. न जाने कौन क्या सोच रहा था.

2 दिनों बाद निधि के पापा चौपाल में बुलाई गई विशेष पंचायत में पहुंचे और जब वापस आए तो निधि ने महसूस किया कि पापा और भाई दोनों का मूड उखड़ा हुआ था. मां ने पूछा तो भी वे टाल गए.

रात को अचानक निधि की नींद खुली तो उस ने देखा कि शालू बिस्तर पर नहीं है. ‘शायद बाथरूम में होगी’ सोच कर निधि उस का इंतजार करने लगी. मगर जब वह काफी देर तक नहीं आई तो निधि कमरे से बाहर निकल आई. पापा के बैडरूम की लाइट जलती देख कर वह उधर चल दी. भीतर से बहुत धीमीधीमी आवाजें आ रही थीं. निधि के अलावा पूरा परिवार वहां मौजूद था. सब किसी गहन मंत्रणा में लगे थे. निधि ने कानाफूसी सुनने की कोशिश की, मगर पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकी. हां, इतना अंदाजा उसे हो गया था कि यह मीटिंग उसी को ले कर हो रही है.

भाई राज ने कहा, ‘समस्या की जड़ को ही खत्म कर देते हैं. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.’ यह सुनते ही निधि कांप उठी.

तभी पापा ने कहा, ‘समाज मेें अपनी इज्जत के लिए मैं ऐसी कई औलादें कुरबान कर सकता हूं.’

‘क्या कोई और रास्ता नहीं है जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे,’ इस बार मां की ममता ने विरोध किया मगर सब ने उसे सिरे से खारिज कर दिया.

निधि समझ गई कि यह मीटिंग उसे रास्ते से हटाने के लिए हो रही है. वह चुपचाप वहां से हट गई और वापस बिस्तर पर आ कर लेट गई. अब उस ने अपनेआप को यहां से सुरक्षित निकलने के बारे में सोचना शुरू किया. ‘विनय तो इतनी जल्दी यहां आ नहीं सकेगा. अपनी फ्रैंड राशि को मैसेज कर देती हूं ताकि वह कल किसी बहाने से आ कर मुझे घर से ले जाए. आगे तो मैं संभाल लूंगी.’ यह सोचते हुए निधि ने अपने मोबाइल की तरफ हाथ बढ़ाया. मोबाइल अपनी जगह पर न पा कर निधि समझ गई कि किसी सोचीसमझी साजिश के तहत उस का संपर्क बाहर की दुनिया से काट दिया गया है.

यानी कि यहां से निकलना इतना आसान नहीं होगा जितना वह सोच रही है. तो फिर अभी अनजान बने रहने में ही भलाई है. मुझे मौके का इंतजार करना होगा. निधि ने सोचा और चुपचाप लेट गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. तभी शालू भी आ कर बगल में लेट गई.

‘कहां चली गई थी?’ निधि ने उसे टटोला.

‘कहीं नहीं, यों ही नींद नहीं आ रही थी, तो छत पर टहल रही थी,’ शालू साफ झूठ बोल गई.

‘आ चल, मैं सुला दूं,’ कह हर निधि ने उस का सिर सहलाने की कोशिश की मगर शालू ने ‘रहने दो’ कह कर उस का हाथ? परे कर दिया.

निधि सारे घटनाक्रम से अनजान बने रहने का नाटक करती हुई घर की सारी गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए थी. उस ने अपने मोबाइल के बारे में भी सब से पूछताछ की मगर किसी ने भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया. ‘चलो, कोई बात नहीं, खो गया होगा. नया ले आएंगे,’ निधि ने भी बात को हवा में उड़ाने की कोशिश की.

आज निधि को वह मौका मिल ही गया जिस की उसे तलाश थी. वह इसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. मां तो पापा को ले कर अपने मायके गई हुई थीं शादी का निमंत्रण देने और राज गया था शादी के लिए कुछ पैसों का इंतजाम करने पापा के दोस्त के यहां. सभी लोग कल दोपहर तक ही आने वाले थे. घर में वह और शालू ही थे. निधि ने अपने सारे रुपए और गहने पर्स के हवाले किए और पर्स को सिरहाने छिपा कर रख लिया. उस ने अपने स्पोर्ट्स शूज भी सुरक्षित रख लिए.

रात को शालू ने घर के मुख्य दरवाजे पर ताला लगा दिया और चाबी अपनी तकिया के नीचे रख ली. मौका पा कर निधि ने सोई हुई शालू के बालों को सहलाने के बहाने धीरे से वह चाबी निकाल ली और जब शालू गहरी नींद में थी तो चुपके से दरवाजा खोल कर बाहर आ गई. घर से बाहर निकलने से पहले उस ने शालू के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और उस का मोबाइल बरामदे में ला कर रख दिया ताकि न तो निधि खुद दरवाजा खोल कर बाहर आ सके और न किसी से संपर्क साध सके. इतना समय काफी था निधि के पास अपनेआप को बचाने के लिए.

इस तरह निधि खुद को एक बार तो मौत के मुंह से निकाल कर ले आई, मगर जब तक वह वापस मुंबई नहीं पहुंच जाती, तब तक सुरक्षित नहीं थी.

रात लगभग बीत चुकी थी. मगर निधि ने अब तक अपनी पलकें भी नहीं झपकाई थीं. उसे डर था कि कहीं कोई उसे तलाश करता हुआ यहां तक न आ पहुंचे.

‘अब तक तो सभी घर वालों को मेरे भागने के बारे में यकीन हो ही गया होगा. मुझे 1-2 दिन और यहीं पुलिस की सुरक्षा में रहना चाहिए,’ सोचतेसोचते निधि ने एक बार फिर सोने की कोशिश की और इस बार उसे नींद आ ही गई.

सुबह जब उस की आंख खुली तो सूरज सिर पर चढ़ आया था. डाक्टर सुबह के राउंड पर आ गई थीं. निधि को देख कर मुसकराईं और उस की तबीयत के बारे में पूछा. तभी इंस्पैक्टर सरोज भी आ गईं और उन्होंने निधि का हाथ अपने हाथ में ले कर एक बार फिर से सहानुभूति से पूछताछ शुरू की. निधि ने भी अब सहयोग करनेकी सोच ली थी. उस ने पूरी बात इंस्पैक्टर को बता कर अनुरोध किया और कहा, ‘‘मुझे अपने घर वालों से जान का खतरा है. मेरे पति एक सप्ताह बाद इंडिया आएंगे. तब तक मुझे सुरक्षा उपलब्ध करवाएं. मगर मैं किसी के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं करवाना चाहती.’’ इंस्पैक्टर सरोज मानवता के नाते उसे अपने साथ अपने घर ले गईं. निधि ने फोन पर विनय से संपर्क साधा और उसे पूरी घटना की जानकारी दी. सप्ताहभर बाद विनय आ कर निधि को साथ ले गया.

‘‘निधि, तुम इस मुश्किल वक्त में मेरे मम्मीपापा के पास भी तो जा सकती थीं,’’ विनय ने प्यार से कहा.

‘‘जा तो सकती थी, और सब से पहले यही खयाल ही मेरे मन में आया था मगर मुझे समय पर भरोसा नहीं था. कितनी मुश्किल से मैं अपनी जान बचा कर भागी थी, मुझे डर था कि कहीं कुएं से निकल कर खाई में गिरने जैसी बात न हो जाए. कहीं वहां भी ऐसे ही हालात पैदा न हो जाएं. अगर मेरी आशंका सही निकलती तो फिर मैं आज यहां तुम्हारे पास न होती.’’ निधि अब तक भी डर के साए में ही थी.

विनय को भी उस की बात में दम लगा, इसलिए उस ने भी अपने मन का वहम निकाल लेना ही उचित समझा. विनय ने अपने पापा को फोन कर के पूरे घटनाक्रम का ब्योरा दिया और निधि के खिलाफ रची गई औनर किलिंग की साजिश के बारे में भी उन्हें बताया. सुनते ही पापा भड़क उठे, बोले, ‘‘हद हो गई. किस आदम युग में जी रहे हैं लोग आज भी, क्या हो रहा है यह सब…क्या न्यायपुलिस कुछ भी नहीं बचा? लेकिन तुम लोग फिक्र मत करो. मैं निधि के पापा से मिल कर उन्हें समझाने की कोशिश करता हूं. मुझे विश्वास है कि कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा.’’

और जैसा कि चौधरीजी ने कहा था, वे एक दिन विनय की मां को ले कर निधि के पापा से मिलने उन के घर गए. उन का परिचय जानने के बाद निधि के पापा सकपका गए. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे उन का सामना कैसे करें. दरअसल, वे लोग अब भी इसी मुगालते में थे कि निधि घर से भाग कर कहीं चली गई है और उस की ससुराल वाले उसे ढूंढ़ते हुए यहां तक आए हैं. लेकिन जब उन्हें पता चला कि निधि सहीसलामत अपने पति के पास पहुंच गई है तो उन्होंने भी राहत की सांस ली.

चौधरीजी के कुछ कहने से पहले ही निधि के पापा ने अपने किए पर शर्मिंदा हो कर उन से माफी मांग ली और अपनी दकियानूसी सोच को त्याग कर निधि और विनय को आदर के साथ घर लाने की बात कही.

‘‘मगर ऐसा करने से अगर शालू का रिश्ता टूट गया तो?’’ चौधरीजी ने एक बार फिर उन का मन टटोलने की कोशिश की.

‘‘टूटता है तो टूट जाए मगर मैं अब एक बेटी का घर बसाने के लिए दूसरी बेटी का बसाबसाया घर नहीं उजाड़ सकता. यह बात मेरी मोटी बुद्धि में बहुत अच्छी तरह से आ गई है,’’ निधि के पापा ने कहा तो चौधरीजी ने उन्हें प्यार से गले लगा लिया. निधि की मां अपने आंसू पोंछते हुए मेहमानों के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करने भीतर चली गईं.

लेकिन उस दिन के बाद निधि ने कभी उस घर में पैर न रखने का फैसला कर लिया था. जो मातापिता उसे मार डालने को तैयार हों उन के किसी वादे का वह भरोसा नहीं कर सकती. न जाने कब कौन पंडा या शास्त्री टपक पड़े, न जाने कब कौन सा खाप सरपंच आ धमके.

Hindi Story : टूटी चप्पल – शादी में क्या हुआ अंजलि के साथ

Hindi Story : खूबसूरत जौर्जेट की हलके वर्क की यलो साड़ी पर मैं ने मैचिंग ऐक्सैसरीज पहन खुद को आईने में देख गर्वीली मुसकान छोड़ी. फिर बालों से निकली लट को हलके से घुमाते हुए मन ही मन सब के चेहरे शिखा, नेहा, रूपा, आशा, अंजलि, प्रिया, लीना याद किए कि आज तो सब की सब जल मरेंगी.

मन ही मन सुकून, गर्व और संतुष्टि की सांस लेते हुए मैं आखिरी लुक ले रही थी कि तभी आवाज आई, ‘‘ओ ऐश्वर्या राय, अब बख्शो इस आईने को और चलो. हम रिसैप्शन में ही जा रहे हैं किसी फैशन परेड में नहीं.’’

‘‘उफ्फ,’’ गुस्से से मेरी मुट्ठियां भिंच गईं कि जरा सा सजनासंवरना नहीं सुहाता इन्हें. मेरे चुप रहने का तो सवाल ही नहीं था अत: बोली, ‘‘रिसैप्शन में भी जाएंगे तो ढंग से ही तो जाएंगे न… आप के जैसे फटीचरों की तरह तो नहीं… समाज में सहेलियों में इज्जत है मेरी… समझे?’’

इन्होंने भी क्यों चुप रहना था. अत: बोले, ‘‘इज्जत मेरी वजह से है तुम्हारे मेकअप की वजह से नहीं. कमाता हूं… 4 पैसे लाता हूं… समाज में 2 पैसे लगाता हूं, तो तुम्हारी इज्जत बढ़ती है… आई बड़ी इज्जत वाली.’’

मैं ने पलटवार किया, ‘‘हां तो यही समझ लो. आप की, अपने घर की इज्जत बनाए रखने, स्टेटस बचाए रखने के लिए ही तो तैयार हो कर जाती हूं.’’

‘‘तुम्हारे इस तरह बननेसंवरने के चक्कर में रिसैप्शन की पार्टी खत्म न हो जाए.’’

मैं भी तुनक कर बोली, ‘‘जब देखो तब जल्दीजल्दी… खुद को करना क्या पड़ता है… बस शर्ट डाली, पैंट चढ़ाई और हो गए तैयार… सिर पर इतने बाल भी नहीं हैं, जो उन्हीं को सैट करने में टाइम लगे.’’

ये चिढ़ गए. बोले, ‘‘तुम से तो बात करना ही बेकार है. चलना है तो चलो वरना रहने दो… ऐसे मूड में जाने से तो अच्छा है न ही जाएं.’’

मैं डर गई कि अगर नहीं गए तो सहेलियों के उतरे, जले मुंह कैसे देखूंगी. अपनी शान कैसे मारूंगी, ‘‘नहींनहीं, चलना तो है ही,’’ मैं ने फटाफट चप्पलें पहनते हुए कहा.

रिसैप्शन लौन के बाहर ही रूपा मिल गई. बोली, ‘‘हाय रिया, आ

गई? मुझे तो लगा कहीं मैं ही तो लेट नहीं हो गई. पर अच्छा हुआ तू मिल गई… और सब आ गए?’’

मैं हंस दी, ‘‘अरे, मुझे क्या पता आए कि नहीं. मैं तो अभी तेरे सामने ही आई हूं.’’

वह मुसकराई पर कुछ बोली नहीं. इधरउधर नजरें घुमाते हुए उस ने मुझ पर तिरछी नजर डाली.

मैं मन ही मन इतराई, ‘‘देख ले बेटा, अच्छे से देख और जल… जल रही है तभी तो कुछ बोल नहीं रही और बोले भी तो क्या. अब यहीं खड़ी रहेगी या अंदर भी चलेगी. चल जरा देखें अंदर कौनकौन आया है.’’

‘‘हांहां चल.’’

हम गेट पर स्वागत के लिए खड़े मेजबानों का अभिवादन स्वीकार कर अंदर गए. मंच पर सजेधजे खड़े दूल्हादुलहन को लिफाफा दिया. फिर चले खानेपीने के स्टाल की तरफ. वहां सब दिखीं. देखते ही सब हमारे पास लपकी आईं. ये अपने दोस्तों में बिजी हो गए और मैं अपनी सहेलियों में.

शिखा देखते ही बोली, ‘‘हाय. नीलम सैट तो बड़ा प्यारा लग रहा है. असली है?’’

मैं दर्प से बोली, ‘‘अरे, और नहीं तो क्या? तुझे तो पता ही है नकली चीज मुझे पसंद ही नहीं.’’

आशा ने व्यंग्य किया, ‘‘तो इस साड़ी पर वर्क भी असली है क्या?’’

मैं ने भी करारा जवाब दिया, ‘‘नहीं पर जौर्जेट असली है.’’

नेहा ने चूडि़यों पर हाथ घुमाया, ‘‘ये बड़ी प्यारी लग रही हैं. ये भी असली हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘पूरे क्वढाई लाख की हैं. अब तू ही सोच ले असली हैं या नकली.’’

निशी बोली, ‘‘अरे, अभी मेरी मौसी ने ली हैं. पूरे क्व4 लाख की हीरे की चूडि़यां… इतनी खूबसूरत डिजाइन है कि बस देखो तो देखते ही रह जाओ.’’

मैं ने अपनी चिढ़ दबाई, ‘‘पर हीरे की चूडि़यों में वह बात नहीं जो इस महीन नक्काशी में होती है. फिर आजकल हीरा पहनो तो पता ही नहीं चलता कि असली है या नकली. बाजार में डायमंड के ऐसेऐसे आर्टिफिशियल सैट्स मिल रहे हैं कि खराखोटा सब एक जैसे दिखते हैं. इसीलिए मैं तो डायमंड की ज्वैलरी लेती ही नहीं.’’

लीना बोली, ‘‘पर जो भी हो डायमंड तो डायमंड ही है. भले किसी को पता चले न चले पर खुद को तो सैटिस्फैक्शन रहती ही है कि अपने पास हीरा है.’’

मैं ने मुंह बनाया, ‘‘हुंह ऐसे हीरे का क्या फायदा जिस का बस खुद को ही पता हो. अरे चीज की असली कीमत तो तब वसूल होती है जब 4 लोग सराहें वरना क्या… खुद ही लाए, खुद ही पहना, खुद ही देखा और लौकर में रख दिया.’’

अंजली ने नेहा को देखा, ‘‘हां, सही तो है. चीज खरीदने का मजा तो

तभी है जब 4 लोग उसे देखें वरना क्या मतलब चीज लेने का… अब अगर आज रिया ये सब नहीं पहनती तो हमें क्या पता चलता इस के पास हैं कि नहीं.’’

नेहा बोली, ‘‘छोड़ो न, चलो देखते हैं खानेपीने में क्या है. सोनेहीरे की बातों से तो पेट नहीं भरेगा न.’’

‘‘हांहां चलो. देखें क्याक्या है,’’ कहती हुई सब की सब स्टाल की तरफ लपकीं. तभी किसी का पैर मेरी चप्पल पर पड़ा. चप्पल खिंची तो पटा टूट गया. अब चलूं कैसे? मैं रोंआसी हो गई कि अब तो इन सब को मजा आ जाएगा. उफ, क्या करूं कैसे इन की नजरों से बचाऊं. फिर सोचा यहीं खड़ी रहूं. पर तभी शिखा ने मुझे खींचा, ‘‘चल न खड़ी क्यों है?’’

मैं चलने लगी पर लंगड़ा गई, ‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ कह कर मैं थोड़ा और आगे बढ़ी पर फिर लंगड़ा गई.

अब सभी मुझे घेर कर खड़ी हो गईं, ‘‘अरे, क्या हुआ? कैसे हुआ? क्या टूटा? पैर में लगी क्या? चक्कर आया क्या?’’

अब उन्हें क्या बताती कि मेरी चप्पल टूट गई. बड़ी अजीब सी हालत हो गई.

शिखा बोली, ‘‘चप्पलें असली नहीं थीं क्या? ऐसे कैसे टूट गई?’’

मैं झल्ला कर बोली, ‘‘सोना नहीं मढ़वाया था इन में… चमड़े का ही सोल था निकल गया.’’

शिखा ने मंचूरियन मुंह में डाला, ‘‘अरे चिढ़ मत, मैं ने तो इसलिए पूछा कि तू कभी कोई चीज नकली पहनती जो नहीं.’’

अंजली ने हंसते हुए उस के हाथ पर ताली मारी, ‘‘अब तू एक काम कर, चप्पल कहीं कोने में उतार दे और ऐसे ही घूमफिर. कौन देखने वाला है कि तू ने पैर में चप्पलें पहनी हैं या नहीं.’’

सब हंसने लगीं. इच्छा तो हुई कि इन जलकुकडि़यों के मुंह पर 1-1 जमा दूं, पर मनमसोस कर रह गई.

अब न खाने में मन था न रिसैप्शन में रुकने का. मैं इन्हें ढूंढ़ने लगी. मोबाइल कर इन्हें बुलाया. ये आए.

इन्हें एक तरफ ले जा कर मैं ऐसे फटी जैसे बादल, ‘‘देखा… देखा आप ने… आप के जल्दीजल्दी के चक्कर में मेरी कितनी बेइज्जती हो गई… जरा 2 मिनट और मुझे ढंग से देख लेने देते तो जरा अच्छी चप्पलें निकाल कर पहन लेती. पर नहीं, मेरी इज्जत का जनाजा निकले तो आप को तो मजा ही आएगा न… अब हो लो खुश… करो ऐंजौय मेरी बेइज्जती को.’’

इन्होंने देखा. चप्पल को मेरे पैर सहित रूमाल से बांधा तो मैं थोड़ा चलने लायक हुई. पर अब वहां रुकने का तो सवाल ही नहीं था. मैं ने इन की बांह पकड़ी और घर की राह ली. पर सहेलियों की हंसती, व्यंग्य करती खिलखिलाहट मेरा पीछा कर रही थी.

मैं इन पर बरस रही थी, ‘‘घर से निकलते समय टोकना या झगड़ा करना आप की हमेशा की आदत है. इसी वजह से आज मेरी इतनी बेइज्जती हुई. जरा शांति से काम लेते तो मैं भी ढंग की चप्पलें पहन लेती.’’

मेरी आंखें बरस रही थीं, ‘‘अब अगली बार इन सहेलियों को क्या मुंह दिखाऊंगी और दिखाऊंगी तो मुंहतोड़ जवाब देना भी जरूरी है. मगर यह तभी संभव होगा जब ढाईतीन हजार की चप्पलें मेरे पैरों में आएंगी. समझे?’’

इन का जवाब सुने बिना मैं ने जोर से दरवाजा बंद किया और सोचने लगी, ‘कल ही सब से महंगे शोरूम में जा कर चप्पलें खरीदूंगी, पर इन लोगों को कैसे बताऊंगी, यह सोचविचार भी जारी है…’

Love Story : फौजी का प्यार

Love Story : मैं नहीं जानता कि यह मन की प्रवंचना थी. पर रज्जो इसे प्रवंचना ही कहती है. प्रवंचना का दूसरा नाम छिपाव है.’आप ने मुझे ब्याह से पहले अपने बारे में क्यों कुछ नहीं बताया? मुझे यह बताया गया था कि आप दिल्ली में स्टोर में हैं. मैं ने सोचा था, चलो, हम सारी उम्र दिल्ली में रहेंगे. मुझे नहीं पता था कि आप फौजी हैं और आप की बदली होती रहती है.’

‘‘मैं तुम्हें बताना चाहता था. पर मन के भीतर डर था कि फौजी जान कर तुम मना न कर दो. यह डर हर फौजी के मन में है. अस्थिर जीवन की वजह से अच्छी लड़कियां उन्हें पसंद नहीं करती हैं. तुम सुंदर और अच्छी लड़की हो. समझदार हो. तुम मेरी बात जल्दी समझ जाओगी. जल्दी समझ सकती हो.

“मैं मानता हूं कि मैं फौज में हूं, लेकिन लड़ाकू फौज में नहीं हूं. मुझे हैंड टू हैंड लड़ना नहीं पड़ता है. मैं स्टोर में रहूंगा. लड़ाई होगी तो भी स्टोर में रह कर काम करूंगा. लड़ने वाले जवानों को सामान देता रहूंगा.’’‘बस डर यही है कि फौजी बेमौत मारे जाते हैं.’

‘‘यह तुम्हारा वहम है. जिस की आई होती है, उसी की मौत होती है. क्या सिविल में लोग नहीं मरते हैं? दूसरी बात यह है कि मैं तम्हें यहां घर में रहने नहीं दूंगा. जब तक मैं छुट्ठी पर हूं, हम यहां रहेंगे. मैं ने क्वार्टर के लिए लिखा है. उम्मीद है कि छुट्टी खत्म होने से पहले ही क्वार्टर मिल जाएगा.’’‘उस के लिए पहले से ही टिकट बुक करवानी होेगी. पैसे हैं आप के पास, नहीं तो मैं बैंक से निकलवा लेती हूं.’

‘‘नहीं, उस की जरूरत नहीं है. क्वार्टर अलौटमेंट लैटर के साथ तुम्हारे लिए फ्री रेलवे वारंट आएगा. मेरा वापस जाने का फ्री वारंट है ही. हमारी रिजर्वेशन मिलिटरी कोटे से होगी. रेलवे स्टेशन के एक नंबर प्लेटफार्म पर एमसीओ औफिस है यानी मूवमेंट कंट्रोल औफिस. वह हमारी रिजर्वेशन करेगा. कोई बात नहीं. वारंट आने दो, मैं सब कर लूंगा.’’‘सच, हमारा कोई पैसा नहीं लगेगा?’

‘‘ नहीं. बिलकुल नहीं लगेगा. यही नहीं, जो 2 रूम सेट का क्वार्टर मिलेगा, उस में भी कोई किराया नहीं लगेगा. बिजलीपानी भी फ्री होगी.’’‘अच्छा, यह तो बहुत ही अच्छा है.’‘‘तुम चलो तो सही. और भी बहुत सारी सुविधाएं मिलेंगी वहां पर.‘अच्छाजी, मेरी एक बात मानेंगे?’ रज्जो ने बड़े प्यार से कहा. सारा प्यार उस की खूबसूरत आंखों में उतर आया था.

‘‘कहो,’’ मैं ने भी उसी मूड में जवाब दिया.‘आज हम यहीं मम्मीपापा के पास रह जाएं?’‘‘अच्छा, मैं भाई को फोन कर देता हूं. तुम्हें भी मेरी एक बात माननी पड़ेगी.’’‘क्या?’‘‘कान इधर करो, कान में कहूंगा. प्राइवेट है.’’मैं ने कान में जोकुछ कहा, उस का चेहरा लाल हो गया था. मैं ने कहा, ‘‘हूं?’’उस ने सिर झुका कर ‘हां’ में सिर हिला दिया था. मैं ने खुश हो कर कहा, ‘‘चलो, इसी बात पर कंपनी बाग में जा कर टिक्कियां खाते हैं.’’

‘ठीक है, साथ में शन्नो और पिंकी को साथ ले लें? वे भी खुश हो जाएंगी.’’‘‘ले लेते हैं.’’शन्नो रज्जो की सहेली थी, जिस ने मेरा रिश्ता करवाया था. पिंकी रज्जो की छोटी बहन थी. टिक्कियां खा कर हम लौटे तो रात के 10 बजने वाले थे. मम्मीपापा जल्दी खाना खा कर सो जाते थे.

शन्नो पिंकी के कमरे जा कर सो गई. रात को रज्जो ने अपना वादा निभाया. रातभर हम स्वर्ग में डूबते, उतरते रहे. प्यार करते रहे. पता ही नहीं चला कि कब सुबह के 4 बज गए. तब सोए. जीवन का यह सुख असीम था. सुबह उठने में देर हो गई.

रज्जो नहाधो कर जब बाहर निकली जो बहुत ही खिलीखिली थी. शरीर और मन से तृप्त थी. तृप्ति के बाद इतना सुख मिलता है, पहली बार अनुभव किया. मैं भी काफी खुश था.

इतने में बाहर से किसी ने मुझे पुकारा. देखा, डाकिया था. मैं ने लिफाफा ले कर खोला तो रज्जो का रेलवे वारंट था. साथ ही, एक लैटर भी था, जिस में सूचना थी कि मुझे बी-50/3 क्वार्टर अलौट किया गया है.रज्जो ने पूछा, ‘क्या लिखा है?’

उस ने पढ़ा और मुझे तुरंत कमरे में ले गई और एक लंबा आलिंगन लिया. वह चुम्बन लेना चाहती थी, लेकिन किसी के आने के डर से मैं ने रोक दिया. मेरा पूरा शरीर सिहर उठा था.मैं ने पुचकार कर कहा कि मैं रेलवे स्टेशन रिजर्वेशन के लिए जा रहा हूं.‘नाश्ता तो करते जाओ,’ रज्जो ने कहा.‘‘ठीक है, जल्दी से दे दो.’’दूसरी क्लास की एसी में बर्थ रिजर्वेशन हो गई थी. एक सप्ताह पहले जाने की रिजर्वेशन करवाई गई थी. हमें वहां सैटल होने में मदद मिलेगी. मां और भाई को अच्छा नहीं लगा. मां ने कहा, ‘घर का खर्चा कैसे चलेगा.’

‘‘मैं आप का अकेला बेटा नहीं हूं. मैं ने अपना दिमाग इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. मेरा ब्याह हो चुका है. मेरी पत्नी मेरे साथ जाएगी, साथ रहेगी.”मैं रज्जो के यहां से आई पेटियों को ताला लगाने लगा, तो भाई ने कहा, ‘तुम्हारा और रज्जो का काई सामान यहां नहीं रहेगा.’

“मैं आप से ऐसे ही जवाब की आशा कर रहा था. क्यों मां, आप का भी यही जवाब है?” मैं ने भाई और मां दोनों से कहा. पर वे दोनों चुप रहे.मुझे समझने में देर नहीं लगी. वैसे भी बहन और उस का पति सबकुछ लूट कर ले गए थे. मैं ने शन्नो से बात की. उस का भाई रेलवे में था. थोड़ी देर बाद शन्नो के भाई का फोन आया, ‘जीजू, आप कौन सी गाड़ी से दिल्ली जा रहे हैं?’

‘‘कल रात की फ्रंटियर मेल से.’’‘ठीक है जीजू, कल मैं अपने साथ कारपेंटर ले कर आ रहा हूं. वह सारा सामान पैक कर देगा. फ्रंटियर मेल ट्रेन की पारसल वैन में सामान चढ़़ा भी दिया जाएगा.’

‘‘थैंक्स राजू. मेरी सारी चिंता दूर हो गई.’’मेरे मामूजी के लड़के हमारी यूनिट में ही डिप्टी कमांडैंट थे, कर्नल दीपक साहब. मैं ने उन से बात की. सारी स्थिति बताई. उन्होंने कहा, ‘अच्छा हुआ, मांबहन, भाइयों के प्रति तुम्हारा मोह भंग हो गया. मैं ने तुम्हें समझाया भी था. तुम ने बेकार 12 साल घर में पैसा दिया. खैर, देर आए, दुरुस्त आए. तुम चिंता मत करो. मैं गाड़ी और 4 मजदूर समय पर भेज दूंगा. मैं ने तुम्हारे क्वार्टर को डिस्टैंपर करवा कर साफ करवा दिया है.’

‘‘थैक्स, सर.’’‘थैंक्स नहीं, भाई हूं तुम्हारा. बड़े दिनों बाद हम एक ही यूनिट में पोस्ट हुए हैं. कुछ मत सोचो. बस आ जाओ, सारे इंतजाम हो जाएंगे.’‘‘ठीक है, भाई साहब.’’मेरी सारी चिंताएं दूर हो चुकी थीं. राजू ने कारपेंटर भेज कर सारा सामान पैक करवा दिया था. गाड़ी चलने के 2 घंटे पहले स्टेशन पर बुलाया गया था. सामान की बुकिंग आराम से हो गई. मेरे और रज्जो के वारंट पर जितने किलो वेट लिखा था, सामान उस से कम निकला. राजू ने सामान पार्सल बोगी में चढ़ाने के लिए वहां के मजदूरों से पहले ही सैटिंग कर ली थी. फौजी था, वे रम की बोतल मुझ से चाहते थे. रम मैं हमेशा अपने पास रखता था. बोतल राजू को दे दी. उस ने कहा, ‘जीजू, आप चलें. गाड़ी प्लेटफार्म पर लग चुकी है. मैं सामान चढ़वा कर आता हूं.’

मैं प्लेटफार्म पर आया तो रज्जो, उस के मम्मीपापा, शन्नो, पिंकी डब्बे के सामने खड़े थे. मेरे घर से कोई नहीं आया था. जब तक पैसा देता रहा, उन के लिए सबकुछ था, पर अब कुछ नहीं. यह बात मुझे कचोटती रहेगी.‘सारा सामान चढ़ गया?’ रज्जो ने पूछा.‘‘चढ़ाने के लिए ले गए हैं. मजदूरों को रम की बोतल चाहिए थी. वह दे दी है. मैं ले कर गया था. जानता था, ऐसे कामों में यह बहुत काम आती है.”

इतने राजू आ गया और बोला, ‘जीजू, सारा सामान चढ़ा दिया है. गार्ड को बोल दिया है कि अंबाला से वे अगले गार्ड को बोल दें. सामान बिलकुल ठीक जाएगा. दिल्ली में मैं ने अपने दोस्त को कह दिया है कि वह आप की मदद करे. आप ने सामान पार्सल औफिस से लेना है, प्लेटफार्म से नहीं. मेरा दोस्त पार्सल औफिस में मिलेगा. उस का नाम अशोक है.’

‘‘थैक्स, राजू.’’‘क्या कहते हैं, जीजू. यह मेरे घर का काम था.’गाड़ी चली तो मैं और रज्जो सभी से विदा ले कर अपनी बर्थ पर आ गए. दोनों नीचे की बर्थें थीं.मैं मन से संतुष्ट था. रज्जो भी खुश थी. उस के मन में बहुत सी बातें थीं. दूसरी बर्थ पर मैं ने उस का बिस्तर लगा दिया था. वह मेरी बर्थ पर मेरे कंबल में आ कर बैठ गई. रज्जो अभी बात शुरू करने वाली थी कि टीटी आ गया.

टीटी के जाने के बाद रज्जो ने कहा, ‘अब रातदिन हमारे होंगे. किसी के आने का डर नहीं रहेगा.’‘‘हां, जब तक छुट्टी रहेगी, दिनरात हमारे होंगे. फिर दिन में डयूटी, रात में प्यार. है न?’’उस ने हां में सिर हिला दिया. वह फिर से लाल हो उठी थी. रज्जो की यह अदा हमेशा मुझे रोमांचित कर देती थी. मैं थोड़ा आगे बढ़ने लगा तो उस ने इशारों से मना कर दिया कि ट्रेन है, कोई भी आ सकता है. मैं ने प्यार से दोनों हाथ सहला दिए.

जालंधर आया तो हमारे ऊपर की बर्थों पर 2 लड़कियां आ गईं. वे भी दिल्ली जा रही थीं. मम्मी ने रास्ते के लिए खाना दिया था. भूख भी लग रही थी. दोनों ने खाना खाया और अपनीअपनी बर्थ पर लेट गए. दोनों की आंखों में नींद नहीं थी. हम प्यार करना चाहते थे, पर हालात ऐसे थे कि यह संभव नहीं था. दोनों मन मार कर रह गए.

रात को कब नींद आई, पता नहीं चला. सुबह 4 बजे नींद खुली. वासना जोर मार रही थी. साइड की दोनों बर्थें खाली थीं. ऊपर दोनों लड़कियों के खर्राटों की आवाज आ रही थी. मैं वाशरूम गया. सभी गहरी नींद सो रहे थे. टीटी भी वाशरूम के पास सीट पर ऊंघ रहा था. लौटा तो रज्जो उलटा लेटी हुई थी. मन में आया कि अभी प्यार करूं, लेकिन मैं किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था. इसलिए थोड़ा प्यार किया. गाल पर किस किया और अपनी बर्थ पर आ गया.

रज्जो की नींद खुल गई थी. शायद उसे मेरे किस लेने का एहसास हो गया था. पूछा, ‘दिल्ली आ गया क्या?’‘नहीं, दिल्ली आने में समय है. रज्जो वाशरूम गई. लौटी तो मेरे कंबल में आ गई. भविष्य की बातें करते रहे. जहां तक हो सका, ऊपरऊपर से प्यार भी किया.

सुबह 5 बजे पैंट्री वाला चाय ले कर आया. दोनों ने चाय ली. सर्दी में गरमागरम चाय बहुत अच्छी लगती है. मैं कप ले कर बाहर फैंकने लगा, तो अचानक मेरा हाथ खूबसूरत गोलाइयों पर लग गया. मैं सिहर उठा. उस ने कुछ नहीं पहना था. मैं ने पूछा, तो उस ने कहा, ‘‘रात को वह ऐसे ही सोती है. पहनने से नींद नहीं आती है.”यह सुन कर मैं मुसकरा दिया. मेरी आंखों में प्यार के साथ शरारत थी. रज्जो ने पूछा, ‘आप मुसकरा क्यों रहे हैं?’

मैं ने कहा, ‘‘जान कर अच्छा लगा. मजा आया करेगा.’’ऐसा सुन वह भी मुसकरा दी और खिड़की के बाहर जाने कहां खो गई. बाहर अभी अंधेरा ही था. सर्दीे में कहीं 7 बजे तक दिन चढ़ता है. गाड़ी आधा घंटा लेट थी. जब दिल्ली पहुंची तो 9 बज चुके थे. आगे कर्नल दीपक साहब का हेल्पर 4 मजदूर ले कर आया हुआ था.

रज्जो को एक मजदूर गाड़ी में बैठा कर पार्सल औफिस आ गया. सारा सामान लेने में एक घंटा लग गया. सामान सुरक्षित था. क्वार्टर पहुंचने में 12 बज गए. चारों मजदूर तब तक नहीं गए, जब तक सारा सामान सैट नहीं हो गया.कर्नल साहब ने दोपहर का खाना भिजवा दिया. खाना खा कर रज्जो सो गई. मैं ने जा कर गैस बुक कर दी और साथ में सिलेंडर भी ले आया. किचन सैट हो गया.

शाम 5 बजे कर्नल साहब ने गाड़ी भेज दी. मैं और रज्जो जा कर राशन और घर का सारा जरूरी सामान ले आए.कर्नल साहब भाभीजी के साथ शाम 7 बजे घर आए. घर सैट हो गया था. रज्जो ने अच्छी सी चाय बनाई. चाय पी कर कर्नल साहब और भाभीजी खुश हो कर गए. शाम का खाना भिजवाने की बात कर रहे थे, लेकिन रज्जो ने मना कर दिया.

उन के जाने के बाद हम दोनों अकेले थे. मैं ने कुंडी लगाई और दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. रज्जो ने कहा, ‘पहले नहा लेते हैं.’मैं ने कहा, ‘‘प्यार करते हैं, फिर इकट्ठे नहाएंगे.’’इस तरह एकदूसरे में समा गए, जैसे युगयुग से बिछड़े हों. अलग होने का नाम ही नहीं ले रहे थे. काफी देर बाद अलग हुए. रज्जो वाशरूम में घुसी तो मैं भी साथ घुस गया. खूब नहाया. दोनों वहां भी एकदूसरे को छेड़ते रहे. खूब संतुष्ट हो कर निकले.

रज्जो ने कहा, ‘कुछ रात के लिए भी रहने दो.’मैं मुसकरा कर बाहर निकल आया. थोड़ी देर बाद रज्जो भी बाहर आ गई. खिलीखिली मस्त. यह मस्ती, यह नशा बन गई और दिनरात चलती रही. जीवनभर.रज्जो ने वह किया, जो मैं कहता था. मैं ने वह किया, जो रज्जो चाहती थी. यह प्रवंचना नहीं प्यार है. सिर्फ प्यार.

Hindi Story : लौटते कदम – जीने का मौका

Hindi Story : जीवन में सुनहरे पल कब बीत जाते हैं, पता ही नहीं चलता है. वक्त तो वही याद रहता है जो बोझिल हो जाता है. वही काटे नहीं कटता, उस के पंख जो नहीं होते हैं. दर्द पंखों को काट देता है. शादी के बाद पति का प्यार, बेटे की पढ़ाई, घर की जिम्मेदारियों के बीच कब वैवाहिक जीवन के 35 साल गुजर गए, पता ही नहीं चला.

आंख तो तब खुली जब अचानक पति की मृत्यु हो गई. मेरा जीवन, जो उन के आसपास घूमता था, अब अपनी ही छाया से बात करता है. पति कहते थे, ‘सविता, तुम ने अपना पूरा वक्त घर को दे दिया, तुम्हारा अपना कुछ भी नहीं है. कल यदि अकेली हो गई तो क्या करोगी? कैसे काटोगी वो खाली वक्त?’

मैं ने हंसते हुए कहा था, ‘मैं तो सुहागिन ही मरूंगी. आप को रहना होगा मेरे बगैर. आप सोच लीजिए कि कैसे रहेंगे अकेले?’ किसे पता था कि उन की बात सच हो जाएगी. बेटा सौरभ, बहू रिया और पोते अवि के साथ जी ही लूंगी, यही सोचती थी. जिंदगी ऐसे रंग बदलेगी, इस का अंदाजा नहीं था.

बहू के साथ घर का काम करती तो वह या तो अंगरेजी गाने सुनती या कान में लीड लगा कर बातें करती रहती. मेरे साथ, मुझ से बात करने का तो जैसे समय ही खत्म हो गया था. कभी मैं ही कहती, ‘रिया, चल आज थोड़ा घूम आएं. कुछ बाजार से सामान भी लेना है और छुट्टी का दिन भी है.’

उस ने मेरे साथ बाहर न जाने की जैसे ठान ली थी. वह कहती, ‘मां, एक ही दिन तो मिलता है, बहुत सारे काम हैं, फिर शाम को बौस के घर या कहीं और जाना है.’ बेटे के पास बैठती तो ऐसा लगता जैसे बात करने को कुछ बचा ही नहीं है. एक बार उस से कहा भी था, ‘सौरभ, बहुत खालीपन लगता है. बेटा, मेरा मन नहीं लगता है,’ कहतेकहते आंखों में आंसू भी आ गए पर उन सब से अनजान वह बोला, ‘‘अभी पापा को गए 6 महीने ही तो हुए हैं न मां, धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी. तुम घर के आसपास के पार्क क्यों नहीं जातीं. थोड़ा बाहर जाओगी, तो नए दोस्त बनेंगे, तुम को अच्छा भी लगेगा.’’

सौरभ का कहना मान कर घर से बाहर निकलने लगी. पर घर आ कर वही खालीपन. सब अपनेअपने कमरे में. किसी के पास मेरे लिए वक्त नहीं. जहां प्यार होता है वहां खुद को सुधारने की या बदलने की बात भी खयाल में नहीं आती. पर जब किसी का प्यार या साथ पाना हो तो खुद को बेहतर बनाने की सोच साथ चलती है. आज पास्ता बनाया सब के लिए. सोचा, सब खुश हो जाएंगे. पर हुआ उलटा ही. बहू बोली, ‘‘मां, यह तो नहीं खाया जाएगा.’’

यह वही बहू है, जिसे खाना बनाना तो दूर, बेलन पकड़ना भी मैं ने सिखाया. इस के हाथ की सब्जी सौरभ और उस के पिता तो खा भी नहीं पाते थे. सौरभ कहता, ‘‘मां, यह सब्जी नहीं खाई जाती है. खाना तुम ही बनाया करो. रिया के हाथ का यह खाना है या सजा?’’

जब रिया के पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी तब उसे दर्द से संभलने में मैं ने उस का कितना साथ दिया था. तब मैं अपने पति से कहती, ‘रिया का ध्यान रखा करो. पिता को यों अचानक खो देना उस के लिए बहुत दर्दनाक है. अब आप ही उस के पिता हैं.’

मेरे पति भी रिया का ध्यान रखते. वे बारबार अपनी मां से मिलने जाती, तो पोते को मैं संभाल लेती. उस की पढ़ाई का भी तो ध्यान रखना था न. इतना कदम से कदम मिला कर चलने के बाद भी आज यह सूनापन…

एक दिन बहू से कहा, ‘‘रिया, कालोनी की औरतें एकदूसरे के घर इकट्ठी होती हैं. चायनाश्ता भी हो जाता है. पिछले महीने मिसेज श्वेता की बहू ने अच्छा इंतजाम किया था. इस बार हम अपने घर सब को बुला लें क्या?’’ सुनते ही रिया बोली, ‘‘मां, अब यह झमेला कौन करेगा? रहने दो न, ये सब. मैं औफिस के बाद बहुत थक जाती हूं.’’

मैं ने कहा, ‘‘आजकल तो सब की बहुएं बाहर काम पर जाती हैं, पर उन्होंने भी तो किया था न. चलो, हम नहीं बुलाते किसी को, मैं मना कर देती हूं.’’ उस दिन से मैं ने उन लोगों के बीच जाना छोड़ दिया. कल मिसेज श्वेता मिल गईं तो मैं ने उन से कहा, ‘‘मुझे वृद्धाश्रम जाना है, अब इस घर में नहीं रहा जाता है. अभी पोते के इम्तिहान चल रहे हैं, इस महीने के आखिर तक मैं चली जाऊंगी.’’

यह सुन कर मिसेज श्वेता कुछ भी नहीं कह पाई थीं. बस, मेरे हाथ को अपने हाथ में ले लिया था. कहतीं भी क्या? सबकुछ तय कर लिया था. फिर भी जाते समय हमारे बच्चे को हम से कोई तकलीफ न हो, हम यही सोचते रहे. वक्त भी बड़े खेल खेलता है. वृद्धाश्रम का फौर्म ला कर रख दिया था. सोचा, जाने से पहले बता दूंगी.

आज दोपहर को दरवाजे की घंटी बजी. ‘इस समय कौन होगा?’ सोचते हुए मैं ने दरवाजा खोला तो सामने बहू खड़ी थी. मुझे देखते ही बोली, ‘‘मां, मेरी मां को दिल का दौरा पड़ा है. वे अस्पताल में हैं. मुझे उन के पास जाना है. सौरभ पुणे में है, अवि की परीक्षा है, मां, क्या करूं?’’ कहतेकहते रिया रो पड़ी. ‘‘तू चिंता मत कर. अवि को मैं पढ़ा दूंगी. छोटी कक्षा ही तो है. सौरभ से बात कर ले वह भी वहीं आ जाएगा.’’

4 दिनों बाद जब रिया घर आई तो आते ही उस ने मुझे बांहों में भर लिया. ‘‘क्या हो गया रिया, तुम्हारी मां अब कैसी है?’’ उस के इस व्यवहार के लिए मैं कतई तैयार नहीं थी. ‘‘मां अब ठीक हैं. बस, आराम की जरूरत है. अब मां ने आप को अपने पास बुलाया है. भाभी ने कहा है, ‘‘आप दोनों साथ रहेंगी तो मां को भी अच्छा लगेगा. वे आप को बहुत याद कर रही थीं.’’

रिया ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘मां, इस घर को आप ने ही संभाला है. आप के बिना ये सब असंभव था. यदि आप सबकुछ नहीं संभालतीं तो अवि के एक साल का नुकसान होता या मैं अपनी मां के पास नहीं जा पाती.’’ ‘‘अपने बच्चों का साथ नहीं दिया तो यह जीवन किस काम का. चल, अब थोड़ा आराम कर, फिर बातें करेंगे.’’

अगले दिन सुबह जब रिया मेरे साथ रसोई में काम कर रही थी, तो हम दोनों बातें कर रहे थे. दोपहर में तो घर सूना होता है पर आज हर तरफ रौनक लग रही थी. सोचा, चलो, मिसेज श्वेता से मिल कर आती हूं. उन के घर गई तो उन्होंने बड़े प्यार से पास बिठाया और बोलीं, ‘‘कल रात को रिया हमारे घर आई थी. मुझ से और मेरी बहू से पूछ रही थी कि हम ने अपने घर कितने लोगों को बुलाया और पार्टी का कैसा इंतजाम किया. इस बार तुम्हारे घर सब का मिलना तय कर के गई है. तुम्हें सरप्राइज देगी. तुम्हारे दिल का हाल जानती हूं, इसलिए तुम्हें बता दिया. बच्चे अपनी गलती समझ लें, यही काफी है. हम इन के बगैर नहीं

जी पाएंगे.’’ ‘‘यह तो सच है, हम सब को एकदूसरे की जरूरत है. सब अपनाअपना काम करें, थोड़ा वक्त प्रेम को दे दें, तो जीवन आसान लगने लगता है.’’

मिसेज श्वेता के घर से वापस आते समय मुझे धूप बहुत सुनहरी लग रही थी. लगा कि आज फिर वक्त के पंख लग गए हैं.

Love Story : तुम्हारी रोजी – क्यों पति को छोड़कर अमेरिका लौट गई वो?

Love Story : उस का नाम रोजी था. लंबा शरीर, नीली आंखें और सांचे में ढला हुआ शरीर. चेहरे का रंग तो ऐसा जैसे मैदे में सिंदूर मिला दिया गया हो.

रोजी को भारत की संस्कृति से बहुत प्यार था और इसलिए उस ने अमेरिका में रहते हुए भी हिंदी भाषा की पढ़ाई की थी और हिंदी बोलना भी सीखा.

उस ने किताबों में भारत के लोगों की शौर्यगाथाएं खूब सुनी थीं और इसलिए भारत को और नजदीक से जानने के लिए वह राजस्थान के एक छोटे से गांव में घूमने आई थी.

अभी उस की यात्रा ठीक से शुरू भी नहीं हो पाई थी कि कुछ लोगों ने एक विदेशी महिला को देख कर आदतानुसार अपनी लार गिरानी शुरू कर दी और रोजी को पकड़ कर उस का बलात्कार करने की कोशिश की. पर इस से पहले कि वे अपने इस मकसद में कामयाब हो पाते, एक सजीले से युवक रूप ने रोजी को उन लड़कों से बचाया और उस के तन को ढंकने के लिए अपनी शर्ट उतार कर दे दी.

रूप की मर्दानगी और उदारता से रोजी इतना मोहित हुई कि उस ने रूप से चंद मुलाकातों के बाद ही शादी का प्रस्ताव रख दिया.

रोजी पढ़ीलिखी थी व सुंदर युवती थी. पैसेवाली भी थी इसलिए रूप को उस से शादी करने के लिए हां कहने मे कोई परेशानी नहीं हुई पर थोड़ाबहुत प्रतिरोध आया भी तो वह रूप के रिश्तेदारों की तरफ से कि एक विदेशी क्रिस्चियन लड़की से शादी कैसे होगी? न जात की न पात की और न देशकोस की…इस से कैसे निभ पाएगी?

पर रूप अपना दिल और जबान तो रोजी को दे ही चुका था इसलिए उस की ठान को काटने की हिम्मत किसी में नहीं हुई पर पीठ पीछे सब ने बातें जरूर बनाईं.

अंगरेजन बहू की पूरे गांव में चर्चा थी.

“भाई देखने में तो सुंदर है. पतली नाक और लंबा शरीर,” एक ने कहा.

“पर भाई, दोनों लोगों में संबंध भारतीय तरीके से बनते होंगे या फिर अंगरेजी तरीके से? या फिर दोनों लोग इशारोंइशारों मे ही सब काम करते होंगे,” दूसरे ने चुटकी ली.

“कुछ भी कहो, यार पर मुझे तो सारी अंगरेजन लड़कियों को देख कर तो बस एक ही फीलिंग आती है कि ये सब वैसी वाली फिल्मों की ही हीरोइनें हैं.”

इस पर सभी जोर के ठहाके लगाते हुए हंसते.

उधर औरतों की जमात में भी आजकल बातचीत का मुद्दा रोजी ही थी.

“सुना है रूप की बहू मुंह उघाड़ कर घूमती है,” पहली औरत बोली.

“न जी न कोई झूठ न बुलवाए. अभी कल ही उस से मिल कर आई हूं, बड़ी गुणवान सी लगी मुझे और कल तो उस ने घाघराचोली पहना था और अपने सिर को भी ढंकने की कोशिश कर रही थी पर अभी नईनई है न इसलिए पल्लू बारबार खिसक जा रहा था,”दूसरी औरत ने कहा.

“पर जरा यह तो बताओ कि दोनों में बातचीत किस भाषा में होती होगी ? रूप इंग्लिश सीखे या फिर अंगरेजन बहू को हिंदी सीखनी पड़ेगी,” तीसरी औरत ने कहा.

और उन की बात सच ही साबित हुई. रोजी को नया काम सीखने का इतना चाव था कि काफी हद तक घर का कामकाज भी सीखने लगी थी.

रोजी के गांव में आने से जवान तो जवान बल्कि बूढ़े भी उस की खूबसूरती के दीवाने हो गए थे और आहें भरा करते थे. कुछ युवक तो रोजी की एक झलक पाने के लिए रूप से बहाने से मिलने भी आ धमकते.

गांव के पुरुषों को लगता था कि एक विलायती बहू के लिए तो किसी से भी शारीरिक संबंध बना लेना बहुत ही सहज होता है.

रोजी के सासससुर को शुरुआत में तो अपनी विलायती बहू के साथ आंकड़ा बैठाने में समस्या हुई पर मन से न सही ऊपर मन से ही सास रोजी को मानने का नाटक करने ही लगी थीं.
दूसरों की क्या कही जाए रूप का चचेरा भाई शेरू भी अपनी रिश्ते की भाभी पर बुरी नजर लगाए हुए था.

रूप और शेरू का घर एकदूसरे से कुछ ही दूरी पर था इसलिए शेरू दिन में कई बार आता और बहाने से रोजी के आसपास मंडराता. ऐसा करने के पीछे भी उस की यही मानसिकता थी कि अंगरेजन तो कई मर्दों से संबंध  बना लेती हैं और इन के लिए
पति बदलना माने चादर बदलना होता है.

क्या पता कब दांव लग जाए और अपने पति की गैरमौजूदगी में कब रोजी का मूड बन जाए और शेरू को उस के साथ अपने जिस्म की आग निकालने का मौका मिल जाए.

पर रोजी बेचारी इन सब बातों से अनजान भारत में ही रह कर यहां के लोगों को समझ रही थी और रीतिरिवाज सीख रही थी.

इस सीखने में एक बड़ी बाधा तब आई जब रोजी को शादी के बाद माहवारीचक्र से गुजरना था. रोजी ने पढ़ रखा था कि इन दिनों में गांव में बहुत ही नियमों का पालन किया जाता है इसलिए उस ने इस बारे में अपनी सास को बता दिया.

रोजी की सास ने उसे कुछ नसीहतें दीं और यह भी बताया कि अभी वे लोग पास के गांव में एक समारोह में जा रहे हैं और चूंकि उसे अभी किचन में प्रवेश नहीं करना है इसलिए सासूमां ने उसे बाहर ही नाश्ता भी दे दिया और घर के लोग चले गए.

रोजी घर में अकेली रह गई. उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. नाश्ता शुरू करने से पहले रोजी की चाय ठंडी हो गई थी और चाय को गरम करने के लिए उसे किचन में जाना था.

‘सासूमां तो किचन में जाने को मना कर गई हैं. कोई बात नहीं बाहर से किसी बच्चे को बुला कर उसे किचन में भेज कर चाय गरम करवा लेती हूं,’ ऐसा सोच कर रोजी ने दरवाजा खोल कर बाहर की ओर झांका तो सामने ही आसपड़ोस के कुछ किशोर लड़के बैठेबैठे गाना सुन रहे थे.

“भैयाजी, जरा इधर आना तो… मेरा एक छोटा सा काम कर देना,” रोजी ने एक लड़के को उंगली से इशारा कर के बुलाया और खुद अंदर चली गई.

रोजी घर में अकेली है, यह उन बाहर बैठे हुए लड़कों को पता था हालांकि रोजी की नजर में वे लड़के अभी बच्चे ही थे पर उसे क्या पता कि ये बच्चे उस के बारे में क्या सोचे बैठे हैं…

“अबे भाई तेरी तो लौटरी लग गई. विलायती माल घर में अकेली है और तुझे इशारे से बुला रही है. जा मजे लूट.”

“हां, एक काम जरूर करना दोस्त, उस की वीडियो जरूर बना लेना,” एक ने कहा.

मन में ढेर सारी कामुक कल्पनाएं ले कर वह किशोर लड़का अंदर आया तो रोजी ने निश्छल भाव से उस से चाय गरम कर देने को कहा.

लड़का मन ही मन खुश हुआ और उस ने सोचा कि य. तो हंसीनाओं के अंदाज होते हैं. उस ने चाय गरम कर के रोजी को प्याली पकड़ाई और उस की उंगलियों को छूने का उपक्रम करते हुए उस के सीने को जोर से भींच लिया.

इस बदतमीजी से रोजी चौंक उठी और गुस्से में भर उठी. एक जोरदार तमाचा उस ने उस लड़के के गाल पर रसीद दिए. गाल सहलाता रह गया वह लड़का मगर फिर भी रोजी से जबरदस्ती करने लगा. रोजी ने उसे
धक्का दे दिया. तभी इतने में रूप खेतों पर से वापस आ गया. रोजी जा कर उस से लिपट गई और कहने लगी कि यह लड़का उसे छेड़ रहा है.

इस से पहले कि सारा माजरा रूप की समझ में आ पाता नीचे गिरा हुआ लड़का जोर से रोजी की तरफ मुंह कर के चिल्लाने लगा,”पहले तो इशारे से बुलवाती हो और जब कोई पीछे से आ जाता है तो छेड़ने का आरोप लगाती हो. अरे वाह रे त्रियाचरित्र…” वह लड़का चीखते हुए बोला.

“रूप इस का भरोसा नहीं करना. यह गंदी नीयत डाल रहा था मुझ पर. मेरा भरोसा करो.”

रोजी की बात पर रूप को पूरा भरोसा था इसलिए उस ने तुरंत ही उस लड़के के कालर पकङे और धक्का देते हुए दरवाजे तक ले आया.

तब घर के बाहर उस के पड़ोसियों की भीड़ जमा होते देख कर उस ने खुद ही मामला रफादफा कर दिया और उस लड़के को डांट कर भगा दिया.

उस दिन की घटना के बारे में भले ही लोग पीठ पीछे बातें करते रहे पर सामने कोई कुछ नहीं कह सका.

यह पहली दफा था जब रोजी को गांव में शादी कर के आना खटक रहा था. वह इस घटना से अंदर तक हिल गई थी पर जब रात को रूप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और जीभर कर प्यार किया तो उस के मन का भारीपन थोड़ा कम हुआ.

एक दिन की बात है. रूप किसी काम से शहर गया हुआ था तब मौका देखकर शेरू रोजी की सास के पास आया और आवाज में लाचारी भर कर बोला,”ताईजी, दरअसल बात यह है कि आप की बहू की तबीयत अचानक खराब हो गई है और मुझे शाम होने से पहले शहर
जा कर दवाई लानी है और अब आनेजाने का कोई साधन नहीं है, जो मुझे शाम से पहले शहर पहुंचा दे.”

“हां तो उस में क्या है शेरू, तू रूप की गाड़ी ले कर चला जा. खाली ही तो खड़ी है,”रोज़ी की सासूमां ने कहा.

“हां सो तो है ताईजी, पर आप तो जानती हो कि मैं गाड़ी चलाना नहीं जानता. अगर आप इजाजत दो तो मैं भाभी को अपने साथ लिए जाऊं? वे तो विदेशी हैं और गाड़ी तो चला ही लेती हैं. हम बस यों जाएंगे और बस यों आएंगे.”

शेरू की बात सुन कर रोजी की सास हिचकी, पर उस ने इतनी लाचारी से यह बात कही थी कि वे चाह कर भी मना नहीं कर पाईं.

“अरे बहू, जरा गाड़ी निकाल कर शेरू के साथ चली जा. शहर से कोई दवा लानी है इसे,” रोजी की सास ने कहा.

“जी मांजी, चली जाती हूं.”

“और सुन, जरा धीरे गाड़ी चलाना. यह गांव है हमारा, तेरा विदेश नहीं,” सासूमां ने मुस्कराते हुए कहा.

रोजी को क्या पता था कि शेरू की नीयत में ही खोट है. उस ने गाड़ी निकाली और शेरू कृतज्ञता से हाथ जोड़ कर बैठ गया. रोजी ने गाड़ी बढ़ा दी.

गांव से कुछ दूर निकल आने के बाद एक सुनसान जगह पर शेरू दांत चियारते हुए बोला,”भाभी, थोडा गाड़ी रोको… जरा पेशाब कर आएं.”

गाड़ी रुकी तो शेरू झाड़ियों के पीछे चल गया और उस के जाते ही शेरू के 3 दोस्त कहीं से आ गए और शेरू से बातचीत करने लगे और बातें करतेकरते गाड़ी मैं बैठ गए.

इससे पहले कि रोजी कुछ समझ पाती शेरू ने उस का मुंह तेजी से दबा दिया और एक दोस्त ने रोजी के हाथों को रस्सी से बांध दिया और शेरू गाड़ी के अंदर ही रोजी के कपड़े फाड़ने लगा.

रोजी अब तक उन लोगों की गंदी नीयत समझ गई थी. उस के हाथ जरूर बंधे हुए थे पर पैर अभी मुक्त थे. उस ने एक जोर की लात शेरू के मरदाना अंग पर मारी.

दर्द से बिलबिला उठा था शेरू. अपना अंग अपने हाथों से पकड़ कर वहीं जमीन पर लौटने लगा.

इस दौरान उस के एक दोस्त ने रोजी के पैरों को भी रस्सी से बांध दिया और रोजी के नाजुक अंगों से खेलने लगा.

“रुक जाओ, पहले इस विदेशी कुतिया को मैं नोचूंगा. कमीनी ने बहुत तेज मार दिया है. अब इसे मैं बताता हूं कि दर्द क्या होता है.”

एक दरिंदा की तरह वह टूट पङा रोजी पर. रिश्ते की मर्यादा को भी उस ने तारतार कर दिया था. उस के बाद उस के तीनों दोस्तों ने रोजी के साथ बलात्कार किया. चीख भी नहीं सकी थी वह.

बलात्कार करने के बाद उस के हाथपैरों को खोल दिया उन लोगों ने.
जब रोजी की चेतना लौटी तो पोरपोर दर्द कर रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? पुलिस में रिपोर्ट करे या अपना जीवन ही खत्म कर दे?

पर भला वह जीवन को क्यों खत्म करे? आखिर उस ने क्या गलत क्या किया है? बस इतना कि किसी झूठ बोल कर सहायता मांगने वाले की सहायता की है और फिर किसी के चेहरे को देख कर उस की
नीयत का अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता है न…

‘अगर मैं इसी तरह मर गई तो रूप क्या सोचेगा?’ परेशान रोजी ने पहले यह बात रूप को बताने के लिए सोची और उस के बाद ही कोई फैसला लेने का मन बनाया.

रोजी किसी तरह घर वापस पहुंची तो रूप वहां पहले से ही बैठा हुआ उस की राह देख रहा था. रोजी रूप से लिपट गई और रोने लगी.

“क्या हुआ रोजी? तुम्हारे बदन पर इतने निशान कैसे आए? क्या कोई दुर्घटना हुई है तुम्हारे साथ?” रूप ने रोजी के हाथों और चेहरे को देखते हुए कहा.

“हां, दुर्घटना ही तो हुई है. ऐसी दुर्घटना जिस के घाव मेरे जिस्म पर ही नहीं आत्मा पर भी पहुंचे हैं…”

“पर हुआ क्या है?” सब्र का बाँध टूट रहा था रूप का.

“शेरू ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर मेरे साथ बलात्कार किया है…” फफक पङी थी रोजी.

“क्या… उस ने तुम्हारे साथ ऐसा किया? मैं शेरू को ऐसी सजा दूंगा कि उस की पुश्तें भी कांप उठेंगी. मैं उस को जिंदा नहीं छोडूंगा.”

रूप ने रिवाल्वर पर मुट्ठी कसी, कुछ कदम तेजी से बढ़ाए और फिर अचानक रोजी की तरफ पलटा और बोला,”वैसे, एक बात मुझे समझ नहीं आती कि जब से मैं ने तुम्हें जाना है तब से तुम्हारे साथ कोई न कोई छेड़छाड़ होती ही रहती है. कहीं कोई तुम्हें देख कर घर में घुसता है और कहीं कोई तुम्हारे साथ गैंगरेप करता है. आखिर अपनी गाड़ी चला कर तुम
क्यों गई थीं शेरू को ले कर? सवाल तो तुम पर भी उठ सकते हैं न?”

शेरू के मुंह से निकले ये शब्द उसे बाणों की तरह लग रहे थे. कुछ भी न कह सकी रोजी. आंसुओं में टूट गई थी वह और अपने कमरे की तरफ भाग गई थी.

अगले दिन रोजी पूरे घर में कहीं नहीं थी. अलबत्ता, उस के बिस्तर पर एक कागज रखा जरूर मिला.

कागज में लिखा था-

मेरे रूप,

मैं जब से भारत आई, सब ने मेरी देह को ही देखा और सब ने मेरी देह को ही भोगना चाहा. कहीं किसी ने कुहनी मारी तो किसी ने पीछे से धक्का मारा. तुम्हारी आंखों में पहली बार मुझे सच्चा प्रेम दिखा तो मैं ने तुम से ब्याह रचाया पर अब मुझ पर तुम्हारा विश्वास भी डगमगा रहा है.

माना कि मैं यहां के लिए विदेशी हूं, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं सब के साथ सो सकती हूं. क्या सब लोग मुझे एक वेश्या भर समझते हैं?

मेरे जाने के बाद मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना, क्योंकि मैं अपने घर वापस जा रही हूं. मैं तो यहां की संस्कृति के बारे में जानने और समझने आई थी, पर अब मन भर गया है. अफसोस यह वह भारत नहीं जिस के बारे में मैं ने किताबों में पढ़ा था…

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