उस दिन बस में बहुत भीड़ थी. कालिज पहुंचने की जल्दी न होती तो पुरवा वह बस जरूर छोड़ देती. उस ने एक हाथ में बैग पकड़ रखा था और दूसरे में पर्स. भीड़ इतनी थी कि टिकट के लिए पर्स से पैसे निकालना कठिन लग रहा था. वह अगले स्टाप पर बस रुकने की प्रतीक्षा करने लगी ताकि पर्स से रुपए निकाल कर टिकट ले सके. बस स्टाप जैसे ही निकट आया कि अचानक किसी ने पुरवा का पर्स खींचा और चलती बस से कूद गया. पुरवा जोरजोर से चिल्ला पड़ी, ‘‘मेरा पर्स, अरे, मेरा पर्स ले गया. कोई पकड़ो उसे,’’ उस के स्वर में बेचैनी भरी चीख थी.

पुरवा की चीख के साथ ही बस झटके से रुक गई और लोगों ने देखा कि तुरंत एक युवक बस से कूद कर चोर के पीछे भागा. ‘‘लगता है यह भी उसी चोर का साथी है,’’ बस में एकसाथ कई स्वर गूंज उठे. बस रुकी हुई थी. लोगों की टिप्पणी बस में संवेदना जता रही थी. एक यात्री ने कहा, ‘‘क्या पता साहब, इन की पूरी टोली साथ चलती है.’’ तभी नीचे हंगामा सा मच गया. बस से कूद कर जो युवक चोर के पीछे भागा था वह काफी फुर्तीला था. उस ने भागते हुए चोर को पकड़ लिया और उस की पिटाई करते हुए बस के निकट ले आया. ‘‘अरे, बेटे, इसे छोड़ना मत,’’ एक बुजुर्ग बोले, ‘‘पुलिस में देना, तब पता चलेगा कि मार खाना किसे कहते हैं.’’

उधर कुछ यात्री जोश में आ कर अपनेअपने हाथों का जोर भी चोर पर आजमाने लगे. पुरवा परेशान खड़ी थी. एक तो पर्स छिनने के बाद से अब तक उस का दिल धकधक कर रहा था, दूसरे, कालिज पहुंचने में देर पर देर हो रही थी. बस कंडेक्टर ने उस चोर को डराधमका कर उस की पूरी जेब खाली करवा ली और फिर कभी बस में सूरत न दिखाने की हिदायत दे कर बस स्टार्ट करवा दी.

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