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अस्वच्छता देश के हित में : इस में बुराई क्या है

आजकल जिसे देखो वही राष्ट्रहित में देश को अस्वच्छ बनाने में दिलोजान से जुटा है. कइयों ने तो इस कार्यक्रम की नब्ज और फायदे पहचान कर अपने पुराने सारे काम बंद कर देश को अस्वच्छ करने का नया काम शुरू कर दिया है. प्रोग्राम ताजाताजा है, इसलिए इस काम मेें अभी कमाई की अपार संभावनाएं हैं. वैसे भी, राष्ट्र स्तर पर जब कोई नया काम शुरू होता है तो उस में रोजगार के अपार अवसर हों या नहीं, पर कमाई की अपार संभावनाएं जरूर प्रबल रहती हैं. तब कमाई के हुनरी दाएंबाएं चोखी कमाई कर ही लेते हैं और हर नए प्रोग्राम से अपने बैंक खातों को ठीकठाक भर लेते हैं.

अस्वच्छता से भी कमाई निकल आएगी. किसी दिमागदार ने क्या सपने में भी ऐसा सोचा था? नहीं न? कम से कम मैं ने तो ऐसा नहीं सोचा था कि अपने देश का कूड़ा भी इनकम के उम्दा सोर्स पैदा करने का हुनर रखता है.

वे कल कई दिनों बाद मिले. सुना था कि उन्होंने देश को अस्वच्छ करने का ठेका भर रखा है. इसलिए दिख नहीं रहे. ठेका भरें क्यों न, वे कुशल ठेकेदार हैं. हर किस्म के ठेके उन के आगेपीछे घूमते हैं. वैसे इस देश में बिना ठेके के कोई भी काम पूरा नहीं होता. काम चाहे बनाने का हो, चाहे गिराने का. हर जगह ठेके की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. इसीलिए तो हर किस्म की सरकार को ठेकेदार पर अपने से भी अधिक भरोसा होता है. इस देश में विकास और विनाश के मामले में उतनी भूमिका प्रकृति की नहीं, जितनी ठेके वालों की है. उन के बिना अपना देश टस से मस नहीं हो सकता. देश के सारे काम मरने से ले कर जीने तक के ठेके पर ही चल रहे हैं. दूसरी ओर मरने वाले, जीने वाले दिनरात अपने हाथ मल रहे हैं.

बातों ही बातों में उन्होंने अपनी व्यस्तता व्यक्त करते हुए मेरी जेब से मेरा रूमाल निकाल अपना पसीना पोंछते कहा, ‘‘यार, जब से देश को अस्वच्छ करने का काम चला है, सिर खुजाने तक का वक्त नहीं निकाल पा रहा हूं. पता नहीं यह देश कब अस्वच्छ होगा? होगा भी या नहीं?’’ वाह, चेहरे पर क्या गंभीर आवरण. काश, ऐसा आचरण हमारा भी होता.

वे ठेकेदार वाले चेहरे का मूड छोड़, दार्शनिक वाले मूड में आए, तो मैं अपनी बगलें झांकने लगा. इस देश में कोई किसी मूड में हो या न हो, हर शख्स दार्शनिक वाले मूड में जरूर रहता है और अवसर न मिलने के बाद भी वह अपनी दार्शनिकता को झाड़ने का मौका निकाल ही लेता है. हम किसी और चीज में माहिर हों या नहीं, पर मौका निकालने में बड़े माहिर हैं. हमारी सब से बड़ी विशेषता भी यही है जो हमें दूसरों से अलग करती है.

‘‘जब तक हम रहेंगे, इस देश को स्वच्छ कोई नहीं कर सकता. मित्रो, अगर अफसरों के बदले भगवान के हाथ किन्हीं खाली हाथों में सौ झाड़ू पकड़ा दें और वे आगेआगे झाड़ू लगाते रहें तो दांत निपोरते उन के पीछेपीछे उन के ही खास बंदे कूड़ा डालते रहेंगे. अस्वच्छता का प्रोजैक्ट इस देश में कभी न खत्म होने वाला अनंतकालीन प्रोजैक्ट है. इसीलिए इस में कमाई की अपार संभावनाएं भी हैं,’’ मैं ने कहा तो उन्होंने अपने कंधे उचकाए, ‘‘नहीं, ऐसी तो बात नहीं, दोस्त. सरकार अस्वच्छता के प्रति पूरी तरह दृढ़संकल्प है. अब देखो न, सरकार ने पशुओं तक को तय कर दिया है कि वे सड़क पर एक तय वजन से अधिक गोबर नहीं कर सकेंगे. देखा, हमारी सरकार अस्वच्छता के प्रति कितनी वचनबद्ध है?’’

यह सुन कर न हंसा गया न रोया गया. वैसे किसी और जगह तो बंदा हंस सकता है, रो सकता है, पर जब अपनी ही चुनी सरकार के निर्णय पर बंदा हंसने लगे तो फजीहत सरकार की नहीं, डायरैक्टली-इनडायरैक्टली बंदे की ही होती है.

‘‘पर पशुओं के गोबर को तोल कर कौन पता लगाएगा कि उस ने तय मानकों के बराबर ही उस दिन का गोबर सड़क पर किया है?’’ मेरे लिए यह सवाल बहुत बड़ा था.

‘‘सरकारी मशीनरी काहे को है दोस्त? सारा दिन तो कुरसियों पर बैठ एकदूसरे को उल्लू ही बनाती रहती है. अब से सब तराजू ले कर हर पशु के पीछे…’’ इन दिनों वे इस सरकार के खास बंदे हैं, सो, सरकार की तरफ से फटाक से फाइनल फैसला दे डाला.

‘‘अपने यहां आदमी भले ही आदमी न हो, पर मान लो, जो समझदार पशु ने लाख रोकने के बाद भी निर्धारित सीमा से अधिक गोबर सड़क पर कर दिया तो?’’

‘‘अगर ऐसा पाया गया तो पशु के मालिक को सजा दी जाएगी,’’ एक और कड़ा फैसला.

‘‘पशु के मालिक को सजा…यह कहां का न्याय है, सर? गोबर करे कोई, और भरे कोई?’’

‘‘देखो जनाब, देश को अस्वच्छ रखने के लिए किसी को तो सजा देनी ही पड़ेगी न? अब पशु किस का है? मालिक का ही न? ऐसे में देश को अस्वच्छ बनाने के लिए या तो वह अपने पशु को समझाए या…’’

‘‘पर किसी के समझाने से इस देश में समझता ही कौन है, चाचा?’’

‘‘नहीं समझता, तो सजा भुगते.’’

‘‘पर पशु की सजा उस के मालिक को क्यों?’’

‘‘देखिए, सजा तो किसी न किसी को होनी ही है. सजा का काम हर हाल में होना है. उसे यह थोड़े ही देखना है कि वह किसे हो रही है. किसी को भी, बस, सजा हो जाए, ताकि कानून बना रहे…’’

वे अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि मैं ने साफ देखा कि सामने से लोग एक बंदे को गधे पर बैठा कर ला रहे थे. सोचा, किसी और के रंग के, रंगेहाथों पकड़ा गया होगा बेचारा. बिन पहुंच वालों के साथ अकसर ऐसा ही होता रहता है अपने समाज में. कमजोर के हाथ बिना रंग ही रंग दिए जाते हैं, उसे कोई भरोसा दे. और रंगे हाथों वाले पुलिस थाने के बाहर लगे नल में अपने हाथ उन्हीं का साबुन ले धोते रहते हैं.

‘‘यह क्या हो गया? क्या किया इस ने?’’

तो पास वाला मुसकराता बोला, ‘‘अरे, कुछ नहीं साहब, होना क्या?? इस का पशु दैनिक निर्धारित गोबर से अधिक गोबर कर देश को अस्वच्छ कर रहा था. पकड़ा गया, सो…पशु तो पशु है, सर. पर अगर कुछ समझदार को सजा दो तो वह सुधर जरूर जाता है. यही कानून का विधान है.’’

व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी की नौलेज का नमूना कंगना रानौत

कंगना कंट्रोवर्सी का इस्तेमाल कर के, बदनाम होंगे तो क्या नाम नहीं होगा, की तर्ज सोशल मीडिया की चर्चाओं में छाई रहती हैं. क्योंकि भाजपा पूरी सोशल मीडिया की देन है, राजनीति में एंट्री लेने और हिमांचल के मंडी से सांसद बनने का मौका भी उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल होने पर मिला था. यही कारण है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर बनी फिल्म ‘एमरजैंसी’ के प्रचार के दौरान उन के सामाजिक और राजनीतिक बयान फिर से विवादों में घिर गए हैं जो उन्होंने न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के पोडकास्ट पर जाजा कर दिए हैं.

 

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एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “सभी ने देखा जहां प्रदर्शन हुआ वहां क्या हुआ, प्रदर्शन के नाम पर हिंसा फैलाई गई. जहां किसान आंदोलन हुए, वहां रेप हुए, लोगों को मार कर लटकाया जा रहा था. पूरा देश चौंक गया. वो किसान आज भी वहां हैं, लौटे नहीं. उन्होंने वापस जाने का कभी सोचा ही नहीं. वे लंबी प्लानिंग से आए जैसी बांग्लादेश में हुई.”

इसी इंटरव्यू में वह आगे कहती हैं, “अमेरिका, चीन जैसी विदेशी ताकतें देश के खिलाफ काम कर रही हैं. फिल्मी लोगों को लगता है कि देश भाड़ में जाए, हमारी दुकान चलती रहेगी. ऐसा नहीं है… देश भाड़ में जाएगा तो आप भी साथ भाड़ में जाएंगे.”

इस बयान के बाद उन्हीं की पार्टी भाजपा ने हरियाणा में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए उन से पल्ला झाड़ लिया. पार्टी ने कहा, “पार्टी कंगना के बयान से असहमति व्यक्त करती है और पार्टी के नीतिगत विषयों पर बोलने के लिए कंगना को अनुमति नहीं है.”

मगर कंगना तो कंगना है, वह यहीं तक नहीं रुकीं. एक दूसरे इंटरव्यू में उन्होंने आरक्षण और जातीय जनगणना जैसे गंभीर विषयों पर विवादित बयान दिया. उन्होंने कहा, “जातिगत जनगणना पर मेरा वही स्टैंड है जो सीएम योगी आदित्यनाथ का है, साथ रहेंगे, नेक रहेंगे, बंटेंगे तो कंटेंगे. जातिगत जनगणना बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए. हमें अपने आसपास के लोगों की जाति की जानकारी नहीं है और ऐसे में जाति का पता लगाने की आवश्यकता क्यों है? आज तक जाति के आंकड़े नहीं जुटाए गए, तो अब क्यों इस प्रक्रिया की जरूरत महसूस की जा रही है?”

जब एंकर ने उन से कहा कि जातीय जनगणना के जुटाए आंकड़ों से सरकार देश कि नीतिगत फैसले तय कर सकेगी तो कंगना ने कहा, “अगर हमें विकसित भारत की तरफ जाना है तो गरीब, महिला और किसानों की ही बात होनी चाहिए. लेकिन अगर हमें देश को जलाना है, नफरत करना है या फिर एकदूसरे से लड़ना है तो जाति जनगणना होनी चाहिए.”

इन बयानों को ले कर तरहतरह की बातें होने लगी हैं. कोई इसे भाजपा का असली एजेंडा बता रहा है तो कोई कंगना का अपनी फिल्म को चर्चाओं में लाने का हथकंडा. यह दोनों बातें अपनी जगह सही हो सकती हैं मगर असली बात है कंगना को व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से लगातार मिल रहगी आधीअधूरी जानकारी. कंगना रानौत का रुझान जैसेजैसे राजनीति की तरफ होता गया है वैसेवैसे वह उन सोशल मीडिया ग्रुप्स व उस से जुड़े लोगों का हिस्सा बनती गई हैं जो सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाने का काम करते हैं.

कंगना की बातें सोशल मीडिया ट्रोलर की तरह जान पड़ती हैं. वह ट्रोलर जो हर बात को देशद्रोह, धर्म और राष्ट्रवाद से जोड़ता है. दिसंबर 2020 में बीबीसी ने 88 साल की बुजुर्ग महिला किसान महिंदर कौर का एक वीडियो पोस्ट किया था. महिंदर झुकी हुई कमर के बावजूद झंडा लिए पंजाब के किसानों के साथ मार्च करती नज़र आ रही थीं.

महिंदर कौर की इस तस्वीर के बाद किसान आंदोलन के विरोधी खासकर भाजपाई आईसेल द्वारा सोशल मीडिया पर उन की तुलना शाहीन बाग में प्रदर्शन की अगुवाई करने वाली बिलकीस दादी से भी की जाने लगी थी.

उस वक्त कंगना रनौत ने बिलकीस और महिंदर कौर दोनों की तस्वीरें एक साथ ट्वीट करते हुए तंज कसा था, “हा हा. ये वही दादी हैं, जिन्हें टाइम मैगज़ीन की 100 सब से प्रभावशाली व्यक्तियों की लिस्ट में शामिल किया गया था….और ये 100 रुपए में उपलब्ध हैं.”

सोशल मीडिया पर फेक नैरेटिव गढ़े जाते हैं. कंगना रानावत के बयान उन्ही नैरेटिव से मिलतेजुलते दिखाई देते हैं. जैसे, साल 2021 में एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कंगना रनौत ने कहा था कि ‘भारत को साल 1947 में भीख में आजादी मिली थी और देश को असली आजादी साल 2014 में मिली.’

यह ठीक उसी तरह की व्हाट्सऐप जानकारियां हैं जो सोशल मीडिया पर खूब सर्कुलेट होती हैं. ऐसी जानकारियों में पौराणिक परंपराओं का खूब बखान किया जाता है. कभीकभार तो सती प्रथा और दहेज़ प्रथा जैसी परम्पराओं का भी जस्टिफिकेशन मिलता है. इन जानकारियों में कोई तर्क नहीं होता. कोई तथ्य नहीं होते लेकिन यह सीधे और सिंपल होते हैं और प्राइड का एहसास करते हैं तो सोशल मीडिया पर रोज सुबहशाम गुड मोर्निंग गुड नाईट कि तरह पर खूब ठेले जाते हैं.

जाहिर है कंगना को अपनी फिल्म का प्रचार करना है मगर वह इस से सटीक और नपीतुली बात कह भी नहीं सकतीं क्योंकि उन के दिमाग में सोशल मीडिया कि व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी की जानकारी भरी पड़ी है.

 

पतिपत्नी विवाद, जब पत्नी के हाथों पिटते हैं पति और प्रेमिका

रमा का अपने पति रामकुमार के साथ झगड़ा चल रहा था. शादी के बाद से ही शुरू हुई अनबन के चलते रिश्ते बिगड़ते ही गए. पिछले 4 वर्षों से दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. मारपीट और पुलिस व कचहरी तक मामला गया. तलाक के लिए मुकदमा किया. तलाक मिलना सरल नहीं. पतिपत्नी दोनों अलग रहने लगे.

रमा अपने मायके में रहने लगी. रामकुमार की दोस्ती सपना से हो गई. सपना और रामकुमार में एक कौमन बात यह थी कि दोनों का अपनेअपने जीवनसाथी से विवाद चल रहा था. सपना का अपने पति से तलाक हो चुका था. वह अब पति से अलग रह रही थी.

एक दिन रामकुमार सपना के साथ अपने फ्लैट में मिल रहा था. अचानक उस की पत्नी रमा अपनी मां और भाई के साथ उस के फ्लैट पर आ धमकी. वह रामकुमार पर आरोप लगाने लगी कि वह सपना के साथ ऐश कर रहा है, जबकि उन का तलाक नहीं हुआ है. पूरे अपार्टमैंट में हंगामा खड़ा हो गया. लोग झगड़े का वीडियो बनाने लगे. इस बीच अपार्टमैंट का रखरखाव देखने वाली संस्था आरएडब्ल्यू के लोग भी आ गए. पुलिस को फोन किया गया. पुलिस आई, सपना और रामकुमार को पकड़ कर थाने ले गई.

रामकुमार और सपना दोनों बालिग थे. एकसाथ फ्लैट में थे, यह कोई कानूनी अपराध नहीं था. पुलिस को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस धारा में बंद करे. रमा और उस के परिवार वाले पुलिस पर दबाव डाल रहे थे. ऐसे में सपना के लिए तो यही सजा से कम नहीं था कि उसे थाने ला कर बेइज्जत किया गया. रामकुमार की पत्नी और ससुराल वालों ने जो मारपीट और बेइज्जती की वह पहले ही किसी सजा से कम नहीं था. पूरे शहर में बात दबी जबान से सब के पास पंहुच गई. पुलिस ने थाने में कुछ देर बैठाने के बाद रामकुमार को शांतिभंग करने के मुकदमे में जेल भेज दिया. पुलिस ने सपना को देररात निजी मुचलके पर छोड़ दिया.

रमा को रामकुमार के साथ रहना भी नहीं है और उसे आजादी से रहने भी नहीं देना चाहती. इस से उस का अपना तो जीवन बरबाद हो ही रहा है, रामकुमार का जीवन भी बरबाद हो रहा है. रमा को इस बात की ही खुशी है कि वह रामकुमार को अपने हिसाब से जीने नहीं दे रही है.

रामकुमार इस बात से बेहद परेशान हो चुका है. वह अब किसी सूरत में पत्नी के साथ रहना नहीं चाहता. दूसरी तरफ कोर्ट उन के तलाक का मुकदमा जल्दी नहीं निबटा रही. इस के चलते रमा, रामकुमार और सपना तीनों की जिंदगी बरबाद हो रही है.

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में प्रेमिका के साथ घूम रहे पति को पत्नी ने पकड़ कर बीच रोड पर जम कर पीटा. पति की प्रेमिका की भी पटकपटक कर पिटाई की. वहीं पुलिस मूकदर्शक बनी रही. मारपीट में घायल हुई प्रेमिका और पत्नी को अस्पताल में भरती करवाया गया है, जबकि पति को पुलिस थाने ले गई. सौहरवा तालाब का रहने वाला राहुल अपनी गर्लफ्रैंड के साथ शिवांशी रैस्टोरैंट के पास घूम रहा था. तभी राहुल की पत्नी सुमन ने उन दोनों को पकड़ लिया और फिर उस ने सड़क पर ही पति राहुल और उस की प्रेमिका की पिटाई करने लगी.
मारपीट के चक्कर में प्रेमिका और पत्नी घायल हो गई. बाद में दोनों को महिला पुलिस जिला अस्पताल में इलाज के लिए ले गई. अस्पताल पहुंचते ही पत्नी फिर पति पर टूट पड़ी और पिटाई करने लगी. मारपीट में पति ने पत्नी को पटक दिया जिस से उस के सिर पर चोट आ गई.

राहुल और सुमन की शादी 6 साल पहले हुई थी. पति राहुल अपनी पत्नी समेत परिवार के साथ लोकनगर चौधरी खजान सिंह महल्ले में किराए के मकान पर रहता था. राहुल हलवाई का काम करता है और पत्नी लोगों के घरों में साफसफाई का काम करती है. पत्नी का आरोप था कि पति राहुल ने चोरीछिपे अपनी प्रेमिका शिल्पी से शादी कर ली है और उस को ले कर वह गांधीनगर स्थित किराए के एक मकान में रहता है.

मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में अपनी पत्नी के साथ बंद कमरे में एक युवक को देख पति ने हंगामा खड़ा कर दिया. साथ ही, लोगों की भीड़ को मौके पर बुला लिया. महिला और प्रेमी ने कमरे के गेट की कुंडी लगा रखी थी. इस वजह से भीड़ अंदर नहीं घुस सकी. लेकिन इस पूरे मामले का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया. मामला विजयपुर के एक कसबे का है जहां एक महिला अपने पति के साथ किराए के कमरे में रहती है.

रात जब महिला का पति किसी काम से बाहर गया था, तभी रात करीब 9 बजे विजयपुर एसडीएम का रीडर जितेंद्र यादव अपने सरकारी आवास से निकल कर महिला के किराए के कमरे में पहुंच गया. उन्होंने अंदर से गेट की कुंडी भी लगा ली. तभी कुछ देर बाद महिला का पति वहां आ गया. उस ने दरवाजा खटखटाया तो महिला और उस के साथ मौजूद रीडर दंग रह गए. उन्होंने कुछ देर तक दरवाजा नहीं खोला और चुप हो गए. जब खिड़की को धक्का दे कर खोला गया तो उस में रीडर यानी सरकारी बाबू और महिला आपत्तिजनक हालत में दिखाई दिए. यह देख महिला के पति ने हल्ला मचा दिया. यह सुन कर वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई.

भीड़ ने डायल 112 कर के पुलिस बुला ली. मौके पर पहुंच कर पुलिस ने गेट खुलवाया. बाहर निकलते ही मारपीट शुरू हो गई. विजयपुर थाने के टीआई पप्पू सिंह यादव ने कहा, रात डायल 100 पर सूचना मिलने के बाद पुलिस पहुंची थी. लेकिन दोनों पक्षों के बीच सुलह हो गई, इसलिए कार्रवाई नहीं हुई.

लखनऊ के एक रैस्टोरैंट में एक आदमी अपनी गर्लफ्रैंड को ले कर डिनर करने पहुंचा था. दोनों खाना खा ही रहे थे कि उस की पत्नी वहां आ धमकी. पति को दूसरी महिला संग देख पत्नी का पारा चढ़ गया. फिर पत्नी ने भाई के साथ मिल कर पति और उस की गर्लफ्रैंड की जम कर पिटाई की. सड़क पर ले जा कर दोनों को पीटा. इस का वीडियो भी वायरल हुआ है. जब पुलिस वहां पहुंची, तब जा कर मामला शांत हुआ.

सीमित हैं पुलिस के अधिकार

इस तरह के मामले समाज में बढ़ते जा रहे हैं. पहले पत्नियां सारे दुख सहन कर लेती थीं. आज की लड़की आत्मनिर्भर हो रही है. उस के मातापिता भी उन की मदद को तैयार रहते हैं. ऐसे में वह पति के साथ दब कर नहीं रहती. कोई दिक्कत होती है तो वह सब से पहले पुलिस बुला लेती थी. पहले पुलिस बुलाने के लिए थाने जाना पड़ता था. सोर्ससिफारिश लगवानी पड़ती थी. अब केवल मोबाइल से 112 नंबर डायल करने की जरूरत होती है. पुलिस पहुंच जाती है. महिला उत्पीड़न की घटना हो तो पुलिस के साथ कई एनजीओ भी तत्पर हो जाते हैं.

पड़ोसी दुख में भले साथ न दे लेकिन वीडियो बनाने के लिए आ जाते हैं. अब सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियोज वायरल होने लगे हैं जिन में पति और उस के साथ मिली लड़की को प्रेमिका बता दिया जाता है. लोग सब से पहले पुलिस को बुला लेते हैं. पुलिस के आने के बाद मामला भड़क जाता है. पुलिस के पास घरेलू मामलों में मुकदमा दर्ज करने का अधिकार बहुत सीमित हो गया है. ऐसे में वह लोगों को थाने लाती है, फिर मारपीट या शांतिभंग जैसी धाराओं में चालान कर देती है. औरतों को ले कर पुलिस को सावधानी ज्यादा बरतनी पड़ती है. ऐसे में वह उन को लिखापढ़ी कर के थाने से ही जमानत दे देती है.

कोर्ट नहीं करते जल्दी फैसले

मुसलमानों में तलाक के जरिए जल्दी अलगाव हो जाता है. हिंदुओं में शादी कराने वाला पंडित तलाक कराने नहीं आता. हिंदू धर्म में पतिपत्नी का साथ सात जन्मों का माना जाता है. जबकि वह 7 कदम साथ चलने को तैयार नहीं होते. कानून अलग भी नहीं रहने देता. इस का कारण होता है कि पतिपत्नी हिंसक और अराजक हो जाते हैं. वे मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. दहेज हत्याएं इस का प्रमाण हैं. इस के साथ ही साथ दूसरी तरह की मारपीट की हिंसक घटनाएं होती हैं. इन के पीछे की वजह सैक्स बड़ा कारण होता है. पतिपत्नी के बीच झगड़े की शुरुआत से होती है. इस बात को कोई खुल कर बोल नहीं सकता. ऐसे में झगड़े के दूसरे कारण सामने आते हैं.

कई बार पतियों के बाहर अफेयर हो जाते हैं. कई बार पत्नियां भी बाहर चक्कर चलाने लगती हैं. इन पर लोग नजर रखने लगते हैं. जैसे ही यह पता चलता है कि दो लोग मिल रहे, तीसरा पहुंच जाता है. हंगामा, मारपीट वीडियो और पुलिस सीन में आ जाते हैं. कम कपड़ों में पिटते पति और उन की प्रेमिका के वीडियोज बनने लगते हैं. पूरा समाज इस को चटपटे अंदाज में देखता है. ऐसे मसलों में पुलिस के आने से समझौते की संभावना खत्म हो जाती है. अब कोर्ट को यह करना चाहिए कि तलाक जल्द से जल्द मिल सके, जिस से दूसरा पक्ष जल्द अपना नया जीवन शुरू कर सके.

इन घटनाओं का सारा प्रभाव औरतों पर पड़ता है. धर्म के बताए रास्ते पर चल कर वह या तो पति की प्रताड़ना झेलती रहे. करवाचौथ में उस की आरती उतारे. अपमान और मारपीट सहन कर के भी सात जन्मों वाला रिश्ता निभाए. अगर वह इस के विरोध में खड़ी होगी तो समाज उस को कुलटा बदचलन कहेगा. कोर्ट भी तलाक देने की जगह पर समझौता करने के लिए कहेगा. पुलिस तक मामला गया तो बात बनने की जगह बिगड़ जाएगी.

ऐसे में चाहे पत्नी के रूप में, चाहे प्रेमिका के रूप में बदनामी औरत की होती है. पुरुषवादी समाज में उस पर उंगली नहीं उठती है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि महिला की चाह पर कोर्ट उस का फैसला जल्द से जल्द करे. घर, परिवार और समाज को यह समझना चाहिए कि एक बार मामला पुलिस और कोर्ट तक गया तो इस का हल केवल तलाक ही है. समझौते की कोई गुजांइश नहीं रहती है. कोर्ट को समझौते की प्रक्रिया के बहाने मसले को लटकाने के बजाय जल्द तलाक देना चाहिए, जिस से दोनों आजाद हो कर अपना नया जीवन शुरू कर सकें.

(लेख में कानूनी सलाह के चलते पीड़ितों के नाम बदले गए हैं.)

लव बाइट्स : सैक्स में लाएं फैंटेसी

हर इंसान की सैक्स को ले कर कोई न कोई फैंटेसी तो जरूर होती है. किसी को सैक्स करते समय रोल प्ले करना पसंद होता है तो किसी को सैक्स के कुछ ऐसे प्रोडक्ट्स यूज करने का शौक होता है जिस से कि उस के पार्टनर को एक अलग ही सुख की प्राप्ति हो.

आप ने ऐसी कई फिल्म्स देखी या सुनी होंगी जिस में सैक्स फैंटेसीज के बारे में दिखाया गया है.

प्यार में लव बाइट्स हैं जरूरी

हम सब ने जानेअनजाने एक न एक बार तो अपने पार्टनर को लव बाइट्स तो जरूर दी होंगी या अपने पार्टनर से लव बाइट्स ली होंगी. अकसर आप ने देखा होगा कि लड़के या लड़की के गले पर लाल रंग का हलका सा निशान नजर आता है जिसे लव बाइट कहा जाता है.

कुछ लोग इसे छिपाने की कोशिश करते नजर आते हैं, तो वहीं कुछ लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन की लव बाइट किसी को दिख रही है या नहीं.

लव बाइट्स करती हैं कपल्स को उत्तेजित

ऐसा सुना और देखा गया है कि जब लड़के सैक्स या रोमांस करते समय लड़कियों के गले पर किस करना शुरू करते हैं तो इसे लड़कियां काफी ऐंजौय करती हैं. यह नहीं कि लड़के इस चीज का ऐंजौय नहीं करते बल्कि कई लड़कों को भी काफी पसंद आता है जब लड़कियां उन के गले पर किस करती हैं.

अकसर लव बाइट्स गले पर ही नजर आती हैं क्योंकि गले पर किस करने से कपल्स इतने उत्तेजित हो जाते हैं और उन्हें इतना मजा आने लगता है कि वे इस तरह किस करते हैं जिस से निशान पड़ जाता है.

हैल्दी सैक्स लाइफ की निशानी है लव बाइट्स

यह निशान ज्यादा समय तक नहीं रहता बल्कि 4-5 दिनों में चला जाता है पर इन 4-5 दिनों में वे जब भी आईने में अपनी लव बाइट देखते होंगे तो यह निशान उन्हें उस पल की याद जरूर दिलाता होगा जब उन के पार्टनर ने उन्हें यह लव बाइट दी होगी.

लव बाइट्स देना कोई गलत बात नहीं है बल्कि यह तो प्यार की वह निशानी है जिसे देख पता चलता है कि आप की लव लाइफ काफी अच्छी चल रही है.

कहीं भी दे सकते हैं लव बाइट्स

ऐसा जरूरी भी नहीं है कि आप अपने पार्टनर को सिर्फ उन के गले पर ही लव बाइट्स दे सकते हैं बल्कि आप अपने पार्टनर की बौडी के किसी भी पार्ट पर लव बाइट दे सकते हैं पर आप को ध्यान रखना होगा कि लव बाइट देते समय आप के पार्टनर को कोई तकलीफ न हो और वे आप के लव बाइट देने के तरीके को ऐंजौय करें.

रखें इस बात का खयाल

आप को खयाल रखना होगा कि आप लव बाइट देते समय इतना भी मदहोश न हो जाएं कि आप काफी जोर से अपने पार्टनर को किस करते चले जाएं जिस वजह से आप के पार्टनर को दर्द होने लगे और आप अनजाने में लव बाइट देने के बजाए अपने पार्टनर को जख्म दे बैठें.

अगस्त माह का चौथा सप्ताह कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार : विवादों के बावजूद ‘स्त्री 2’ डटी रही मैदान पर

अगस्त माह का चौथा सप्ताह नीरस ही रहा. अगस्त माह के चौथे सप्ताह यानी कि 23 अगस्त को एक भी फिल्म सिनेमाघरों में नहीं पहुंची, बल्कि तीसरे सप्ताह में रिलीज हुई फिल्मों के ही कुछ शो चलते रहे. ‘वेदा’, ‘डबल स्मार्ट’ और ‘खेल खेल में’ तो तीसरे सप्ताह ही दम तोड़ चुकी थीं, मगर ‘स्त्री 2’ जरुर चौथे सप्ताह में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही.

अगस्त माह के तीसरे लंबे सप्ताह में ‘स्त्री 2’ के निर्माताओं ने दावा किया था कि उन की फिल्म ने 290 करोड़ रूपए कमा लिए हैं. जबकि फिल्म का बजट 120 करोड़ रूपए है. (फिल्म को सफलता मिलते ही निर्माता ने अब फिल्म का बजट बता दिया, अन्यथा वह फिल्म का बजट बताने केा तैयार नहीं थे.) उस वक्त भी खबरें उड़ी थीं कि ‘स्त्री 2’ की कौरपोरेट बुकिंग कर के सफल बनाया गया. मगर ‘स्त्री 2’ के निर्माण से जुड़े लोगों के डर से या फिल्म को बौक्स औफिस पर मिल रही सफलता के डर से चौथे सप्ताह यानी कि 23 अगस्त को एक भी नई फिल्म रिलीज नहीं की गई.

हां! 23 अगस्त को एक हौलीवुड फिल्म ‘‘एलियन रोमुटुस’’ रिलीज हुई थी, जिस ने पानी नहीं मांगा. यह फिल्म 7 दिनों के अंदर केवल डेढ़ करोड़ रूपए ही कमा सकी. 23 अगस्त को ही हौलीवुड फिल्म ‘द क्रो’ प्रदर्शित होनी थी, पर इस का प्रदर्शन टाल दिया गया था और अब यह फिल्म पांचवे सप्ताह में 30 अगस्त को रिलीज की गई है.

15 अगस्त के दिन प्रदर्शित हुई फिल्म ‘‘स्त्री 2’’ ने 16 दिन में बौक्स औफिस पर 433 करोड़ रूपए कमाए. पर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े तमाम लोग यह तो मान रहे हैं कि फिल्म ‘स्त्री 2’ को जबरदस्त सफलता मिली है, मगर सभी का आरोप है कि ‘स्त्री 2’ के निर्माता अपनी फिल्म के बौक्स औफिस आंकड़े कम से कम 30 प्रतिशत बढ़ा कर बता रहे हैं. अब मुकेश अंबानी की कंपनी ‘जियो स्टूडियो’ ने जिस फिल्म का निर्माण दिनेश वीजन की कपंनी के साथ मिल कर किया हो, उस को ले कर सच जल्दी सामने नहीं आ सकता. पर हम यह नहीं कहते कि ‘स्त्री 2’ को दर्शक नहीं मिल रहे हैं, पर हवाबाजी ज्यादा है. हम आज भी यही कहेंगे कि ‘स्त्री 2’ को मिल रही सफलता चमत्कार ही है, अन्यथा इस फिल्म में दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित करने वाले तत्व नहीं हैं.

पिछले दो सप्ताह, बल्कि 16 दिन के अंदर अक्षय कुमार की फिल्म ‘खेल खेल में’ ने 26 करोड़ रूपए कमा लिए, जिस में से निर्माता की जेब में बामुश्किल 12 करोड़ रूपए ही जाएंगे. वहीँ निखिल अडवाणी निर्देशित जौन अब्राहम और शरवरी वाघ की फिल्म ‘वेदा’ ने 16 दिन में महज 20 करोड़ रूपए ही कमाए. इस में से निर्माता की जेब में केवल 8-9 करोड़ रुपए ही आएंगे.

पांचवें सप्ताह करीबन 10 छोटीछोटी फिल्में रिलीज हुई हैं, इन में से ज्यादातर के शो पहले दिन ही कैंसिल हो गए. अब पूरे सप्ताह यह फिल्में क्या कमाएंगी इस का हाल हम अगले सप्ताह बताएंगे.

जिन, ताबीज और बाबा : अंधविश्वास का शिकार होते युवाओं की कहानी

किशन अपने पड़ोसी अली के साथ कोचिंग सैंटर में पढ़ने जाता था. उस दिन अली को देर हो गई, तो वह अकेला ही घर से निकल पड़ा.

सुनसान सड़क के फुटपाथ पर बैठे एक बाबा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ बालक, तुझे पढ़ालिखा कहलाने का बहुत शौक है. पास आ और फकीर की दुआएं लेता जा. कामयाबी तेरे कदम चूमेगी.’’

किशन डरतेडरते बाबा के करीब आ कर चुपचाप खड़ा हो गया.

‘‘किस जमात में पढ़ता है?’’ बाबा ने पूछा.

‘‘जी, कालेज में…’’ किशन ने बताया.

‘‘बहुत खूब. जरा अपना दायां हाथ दे. देखता हूं, क्या बताती हैं तेरी किस्मत की रेखाएं,’’ कहते हुए बाबा ने किशन का दायां हाथ पकड़ लिया और उस की हथेली की आड़ीतिरछी लकीरें पढ़ने लगा, ‘‘अरे, तुझे तो पढ़नेलिखने का बहुत शौक है. इसी के साथ तू निहायत ही शरीफ और दयालु भी है.’’

तारीफ सुन कर किशन मन ही मन खुश हो उठा. इधर बाबा कह रहा था, ‘‘लेकिन तेरी किस्मत की रेखाएं यह भी बताती हैं कि तुझे अपनेपराए की समझ नहीं है. घर के कुछ लोग तुझे बातबात पर झिड़क दिया करते हैं और तेरी सचाई पर उन्हें यकीन नहीं होता.’’

किशन सोचने लगा, ‘बाबा ठीक कह रहे हैं. परिवार के कुछ लोग मुझे कमजोर छात्र होने के ताने देते रहते हैं, जबकि ऐसी बात नहीं है. मैं मन लगा कर पढ़ाई करता हूं.’

बाबा आगे बताने लगा, ‘‘तू जोकुछ भी सोचता है, वह पूरा नहीं होता, बल्कि उस का उलटा ही होता है.’’

यह बात भी किशन को दुरुस्त लगी. एक बार उस ने यह सोचा था कि वह गुल्लक में खूब पैसे जमा करेगा, ताकि बुरे समय में वह पैसा मम्मीपापा के काम आ सके, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

अभी किशन कुछ ही पैसे जमा कर पाया था कि एक दिन मोटे चूहे ने टेबल पर रखे उस की गुल्लक को जमीन पर गिरा कर उस के नेक इरादे पर पानी फेर दिया था.

इसी तरह पिछले साल उसे पूरा यकीन था कि सालाना इम्तिहान में वह अच्छे नंबर लाएगा, लेकिन जब नतीजा सामने आया, तो उसे बेहद मायूसी हुई.

बाबा ने किशन के मन की फिर एक बात बताई, ‘भविष्य में तू बहुत बड़ा आदमी बनेगा. तुझे क्रिकेट खेलने का बहुत शौक है न?’’

‘‘जी बहुत…’’ किशन चहक कर बोला.

‘‘तभी तो तेरी किस्मत की रेखाएं दावा कर रही हैं कि आगे जा कर तू भारतीय क्रिकेट टीम का बेहतरीन खिलाड़ी बनेगा. दुनिया की सैर करेगा, खूब दौलत बटोरेगा और तेरा नाम शोहरत की बुलंदी पर होगा,’’ इस तरह बाबा ने अपनी भविष्यवाणी से किशन को अच्छी तरह से संतुष्ट और खुश कर दिया, फिर थैले से एक तावीज निकाल कर उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह तावीज अपने गले में अभी डाल ले बालक. यह तुझे फायदा ही फायदा पहुंचाएगा.’’

‘‘तू जोकुछ भी सोचेगा, इस तावीज में छिपा जिन उसे पूरा कर देगा. यकीन नहीं हो रहा, तो यह देख…’’ इन शब्दों के साथ बाबा उस तावीज को मुट्ठी में भींच कर बुदबुदाने लगा, ‘‘ऐ तावीज के गुलाम जिन, मुझे 2 हजार रुपए का एक नोट अभी चाहिए,’’ फिर बाबा ने मुट्ठी खोल दी, तो हथेली पर उस तावीज के अलावा 2 हजार रुपए का एक नोट भी नजर आया, जिसे देख कर किशन के अचरज का ठिकाना नहीं रहा. वह बोला, ‘‘बड़ा असरदार है यह तावीज…’’

‘‘हां, बिलकुल. मेरे तावीज की तुलना फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ के बटुक महाराज से बिलकुल मत करना बालक. फिल्मी फार्मूलों का इनसानी जिंदगी की सचाई से दूरदूर का रिश्ता नहीं होता है.’’

‘‘बाबा, इस तावीज की कीमत क्या है?’’ किशन ने पूछा.

‘‘महज 5 सौ रुपए बेटा,’’ बाबा ने कहा.

तावीज की इतनी महंगी कीमत सुन कर किशन गहरी सोच में डूब गया, फिर बोला, ‘‘बाबा, 5 सौ रुपए तो मेरे पास जरूर हैं, लेकिन यह रकम पापा ने कोचिंग सैंटर की फीस जमा करने के लिए दी है. पर कोई बात नहीं, आप से तावीज खरीद लेने के बाद मैं इस के चमत्कार से ऐसे कितने ही 5 सौ रुपए के नोट हासिल कर लूंगा,’’ यह कह कर किशन ने 5 सौ रुपए का नोट निकालने के लिए जेब में हाथ डाला ही था कि तभी अली पीछे से आ धमका और बोला, ‘‘किशन, यह तुम क्या कर रहे हो?’’

‘‘तावीज खरीद रहा हूं अली. बाबा कह रहे हैं कि इस में एक जिन कैद है, जो तावीज खरीदने वाले की सभी मुरादें पूरी करता है,’’ किशन बोला.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो. ऐसी दकियानूसी बात पर बिलकुल भरोसा मत करो. क्या हम लोग झूठे अंधविश्वास की जकड़न में फंसे रहने के लिए पढ़ाईलिखाई करते हैं या इस से छुटकारा पा कर ज्ञान, विज्ञान और तरक्की को बढ़ावा देने के लिए पढ़ाईलिखाई करते हैं?’’ अली ने किशन से सवाल किया.

तभी बाबा गुर्रा उठा, ‘‘ऐ बालक, खबरदार जो ज्ञानविज्ञान की दुहाई दे कर जिन, तावीज और बाबा के चमत्कार को झूठा कहा. जबान संभाल कर बात कर.’’

‘‘चलो, मैं कुछ देर के लिए मान लेता हूं कि तुम्हारा तावीज चमत्कारी है, लेकिन इस का कोई ठोस सुबूत तो होना चाहिए,’’ अली बोला.

बाबा के बजाय किशन बोला, ‘‘अली, मेरा यकीन करो. यह तावीज वाकई चमत्कारी है. बाबा ने अभी थोड़ी देर पहले इस में समाए जिन को आदेश दे कर उस से 2 हजार रुपए का एक नोट मंगवाया था.’’

अली बोला, ‘‘अरे नादान, तेरी समझ में नहीं आएगा. यह सब इस पाखंडी बाबा के हाथ की सफाई है. तुम रोजाना घर से निकलते हो ट्यूशन पढ़ कर

ज्ञानी बनने के लिए, लेकिन यह क्या… आज तो तुम एक सड़कछाप बाबा से अंधविश्वास और नासमझी का पाठ पढ़ने लगे हो.’’

अली के तेवर देख कर बाबा को यकीन हो गया था कि वह उस की चालबाजी का परदाफाश कर के ही दम लेगा, इसलिए उस ने अली को अपने चमत्कार से भस्म कर देने की धमकी दे कर शांत करना चाहा, लेकिन अली डरने के बजाय बाबा से उलझ पड़ा, ‘‘अगर तुम वाकई चमत्कारी बाबा हो, तो

मुझे अभी भस्म कर के दिखाओ, वरना तुम्हारी खैर नहीं.’’

अली की ललकार से बौखला कर बाबा उलटासीधा बड़बड़ाने लगा.

‘‘क्या बाबा, तुम कब से बड़बड़ा रहे हो, फिर भी मुझे अब तक भस्म न कर सके? अरे, सीधी सी बात है कि तुम्हारी तरह तुम्हारा जंतरमंतर भी झूठा है.’’

अली की बातों से खिसिया कर बाबा अपना त्रिशूल हवा में लहराने लगा.

इस पर अली डरे हुए किशन को खींच कर दूर हट गया और जोरजोर से चिल्लाने लगा, ताकि सड़क पर चल

रहे मुसाफिर उस की आवाज सुन सकें, ‘‘यह बाबा त्रिशूल का इस्तेमाल हथियार की तरह कर रहा है…’’

अली की आवाज इतनी तेज थी

कि सादा वरदी में सड़क से गुजर रहे

2 कांस्टेबल वहां आ गए और मामले को समझते ही उन्होंने बाबा को धर दबोचा, फिर उसे थाने ले गए.

‘‘आखिर तुम इतने नासमझ क्यों

हो किशन?’’ भीड़ छंटने के बाद अली ने किशन पर नाराजगी जताई, तो वह बोला, ‘‘मैं हैरान हूं कि बाबा अगर गलत इनसान थे, तो फिर उन्होंने मेरे हाथ की लकीरें पढ़ कर मेरे मन की सच्ची बातें कैसे बता दीं?’’

अली बोला, ‘‘बाबा ने यह भविष्यवाणी की होगी कि तुम पढ़नेलिखने में तेज हो, तुम बहुत अच्छे बालक हो, लेकिन लोग तुम्हें समझने की कोशिश नहीं करते, तुम जोकुछ सोचते हो, उस का बिलकुल उलटा होता है.’’

‘‘कमाल है, मेरे और बाबा के बीच की बातें तुम्हें कैसे मालूम हुईं अली?’’ पूछते हुए किशन अली को हैरान नजरों से देखने लगा.

अली बोला, ‘‘यह कमाल नहीं, बल्कि आम बात है. बाबा जैसे पाखंडी लोग अपने शिकारी का शिकार करने के लिए इसी तरह की बातों का सहारा लिया करते हैं.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ अली, बाबा ने मुझ से कहा था कि मुझे क्रिकेट का खेल बेहद पसंद है. एक दिन मैं भारतीय क्रिकेट टीम का बेहतरीन खिलाड़ी बनूंगा और ऐसा मेरा दिल भी कहता है. लेकिन मेरे दिल की यह बात भी बाबा को कैसे मालूम हो गई?’’

‘‘दरअसल, भारत में क्रिकेट एक मशहूर खेल है. इसे बच्चे, बूढ़े, जवान सभी पसंद करते हैं. तभी तो उस पाखंडी ने तुम्हें यह सपना दिखाया कि एक दिन तुम भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी बनोगे.’’

किशन अली की बातें गौर से सुनतेसुनते बोला, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ दोस्त, क्या मैं वाकई कभी बड़ा आदमी नहीं बन सकूंगा?’’

‘‘क्यों नहीं बन सकते हो. बड़ा आदमी कोई भी बन सकता है, लेकिन सपने देख कर नहीं, बल्कि सच्ची मेहनत, लगन और ज्ञानविज्ञान के सहारे. आइंदा से तुम ऐसे धोखेबाज लोगों से बिलकुल खबरदार रहना.

‘‘किशन, तुम खुद सोचो कि अगर बाबा का तावीज चमत्कारी होता, तो फिर वह फुटपाथ पर बैठा क्यों नजर आता? तावीज के चमत्कार से पहले तो वह खुद ही बड़ा आदमी बन जाता.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो अली,’’ किशन ने अपनी नादानी पर शर्मिंदा होने के अलावा यह मन ही मन तय किया कि अब वह कभी किसी के झांसे में नहीं आएगा.

चोटीकटवा भूत : क्या थी उस भूत की असलियत

रामप्यारी सुबह से परेशान घूम रही है. आजकल उस के पति की दूधजलेबी की दुकान ठप पड़ी है. वहीं पीपल के नीचे रामू की दुकान के लड्डू ज्यादा बिकने लगे हैं. लोग अब इधर का रुख कम ही करते हैं.

दुलारी की परेशानी थोड़ी अलग है. उस का बेरोजगार शराबी पति और झगड़ालू सास उस की सारी कमाई हड़प जाते हैं, बदले में मिलती हैं उसे सिर्फ गालियां. बड़ीबड़ी कोठियों में उसे कुछ रुपए ऊपरी काम के भी मिल जाते हैं, जिसे वह घर वालों की नजर में आने नहीं देती और छिप कर अपने शौक पूरे करती है. उस का बड़ा मन होता है कि मेमसाहब की तरह वह भी ब्यूटीपार्लर से सज कर आए.

श्यामा 27 साल की गठीले बदन की लड़की है. छोटे भाईबहनों को पालने का जिम्मा उसी के कंधे पर है. मां टीबी की मरीज हैं.

श्यामा का अपने पड़ोसी ननकू के साथ जिस्मानी रिश्ता बना हुआ है. मगर एक डर भी है कि उस का भेद ननकू की बीवी पर खुल गया, तब क्या होगा? वह एक अजीब से तनाव में रहती है.

प्रेमा के सिर पर हीरोइन बनने का भूत सवार है. वह अपनी सारी कमाई सजनेसंवरने में लगा देती है, फिर भले ही अपनी मां से खूब मार खाती रहे. उस के पिता की पंचर की दुकान है, जिस से दालरोटी चल जाती है, मगर प्रेमा के शौक पूरे नहीं हो सकते. इसी के चलते उस ने स्कूल में आया का काम पकड़ रखा है.

इस छोटी सी बस्ती में ज्यादातर मजदूर, मिस्त्री और घरेलू कामगारों के परिवार हैं. शहर के इस बाहरी इलाके में सरकारी फ्लैट भी कम आमदनी वाले तबके के लोगों को मुहैया कराए गए हैं. उन्हीं के साथ लगी हुई जमीन पर गैरकानूनी कब्जा कर झुग्गीझोंपडि़यां भी बड़ी तादाद में बन गई हैं.

यहां चारों तरफ हमेशा चिल्लपौं मची रहती है. कभी सरकारी नल पर पानी का झगड़ा, कभी बच्चों की सिरफुटौव्वल, तो कभी नाजायज रिश्तों की सच्चीझूठी घटना पर औरतमर्द की मारपीट का तमाशा चलता रहता है. सभी लोगों का यही मनोरंजन का साधन है.

‘‘क्या सोच रही हो तुम? जरा इधर टैलीविजन तो देखो… आजकल कई जगह औरतों की चोटियां कट रही हैं. लगता है, किसी भूतप्रेत का साया है.

‘‘तुम जरा सब औरतों को सावधान कर दो कि सभी अपने घर के बाहर नीबूमिर्च, नीम की पत्तियां टांग दें,’’ खिलावन टैलीविजन पर आंखें गड़ाए हुए रामप्यारी से बोला.

‘‘यह सब छोड़ो और अपने फायदे की सोचो. हमें क्या फायदा हो सकता है?’’ रामप्यारी ने पूछा. उस का दिमाग इन सब खुराफातों में तेजी से चलता है.

‘‘देखो, इस बस्ती में कोई नीम का पेड़ तो है नहीं. मैं पहले पास के गांव से नीम की टहनियां ले कर आता हूं. तब तक तुम 20-25 नीबूमिर्च की माला बनाओ. हम नीम की टहनी के साथ ये मालाएं बेच कर कुछ कमाई कर लेंगे. अच्छा रुको, अभी किसी से कुछ मत कहना.’’

जब तक खिलावन बस्ती में लौटा, हाहाकार मच चुका था. वह सीधे अपने घर भागा तो देखा कि रामप्यारी ने नीबूमिर्च की मालाओं का ढेर बना रखा है.

खिलावन ने नीम की छोटीछोटी टहनियों से भरा झोला पटकते हुए कहा, ‘‘तुम यहां पर बैठी हो, पता भी है कि बाहर क्या चल रहा है?’’

‘‘तुम बिलकुल भी चिंता मत करो. अब फटाफट नीम की टहनियों को अलग कर नीबूमिर्च की माला के साथ बांधते जाओ और एक अपने दरवाजे पर टांग दो और बाकी दुकान पर रखो.

‘‘और हां, जलेबी का सामान भी दोगुना तैयार करना पड़ेगा कल से,’’ रामप्यारी इतमीनान से बोली.

‘‘तुम्हें तो कुछ पता नहीं है. बाहर टैलीविजन वाले, पुलिस वाले सब जमा हैं. पता नहीं, क्या चल रहा है उधर

और तुम्हें जलेबी बनाने की पड़ी है,’’ खिलावन घबरा कर बोला.

‘‘तुम चिंता मत करो, यहां भी चोटी कट गई है रधिया की. अरे वही, जो पिछली गली में रहती है.’’

‘‘क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा है? तुम्हारी चोटी भी कट सकती है? अब क्या करें?’’

‘‘चुप रहो. उस की चोटी तो मैं ने ही काटी है और वह कालू ओझा है न, उस से मिल कर भी आ गई हूं. मैं ने सारी बातें तय कर ली हैं,’’ रामप्यारी ने कहा.

‘‘तुम ने क्यों काटी? क्या तुझ पर भी भूत चढ़ गया था?’’ खिलावन बोला.

‘‘जब चोटी कटेगी, तभी तो ये लोग नीबूमिर्च की माला लेने दौड़ेंगे. तुझे तो पता ही है कि रधिया को तो वैसे भी जबतब चक्कर आते रहते हैं. अभी जब मैं थोड़ी देर पहले दुकान पर लहसुन लेने गई थी, तो उस का दरवाजा खुला देख अंदर चली गई. घर के अंदर वह बेहोश पड़ी थी. मैं ने भी आव देखा न ताव उस के बाल काट कर चलती बनी.’’

‘‘किसी ने देखा तो नहीं तुझे?’’

‘‘नहीं. अगर कोई देख भी लेता, तो मैं ने सोच रखा था कि कह दूंगी इस के बाल काट देती हूं, नहीं तो भूत परेशान करेगा. अच्छा हुआ किसी ने देखा ही नहीं.’’

‘‘तो फिर तू ओझा के पास क्यों गई थी?’’ खिलावन ने हैरानी से पूछा.

‘‘सैटिंग करने. अभी ओझा झाड़फूंक करेगा और उस को एक दोना जलेबी खिलाने को और एक किलो मजार पर चढ़ाने को भी बोलेगा. फिर देखना, कल से सब लोग जलेबी खाएंगे भी और चढ़ाएंगे भी. मैं अभी आई.’’

‘‘रुको, तुम कहीं मत जाओ. मैं अभी बाहर जा कर देख कर आता हूं,’’ कह कर खिलावन रधिया के घर की तरफ दौड़ पड़ा.

रधिया का इंटरव्यू कर के मीडिया व पुलिस दोनों वहां से जा चुके थे. अब केवल बस्ती के लोग जमा थे. तभी सामने से कालू ओझा रधिया के पति जगन के संग आता दिखा.

‘‘बाहर लाओ, उसे बाहर लाओ,’’ वह ओझा चीखा, ‘‘इसे बूढ़ी इमली के पेड़ का भूत चढ़ा है. वहां प्रीतम ने पेड़ से लटक कर खुदकुशी की थी. जाओ जल्दी जाओ, नीम ले कर आओ. हां, जलेबी भी ले कर आना.

‘‘प्रीतम जलेबी बहुत खाता था. जो जलेबी खाएगा, उस के सिर से भूत खुश हो कर उतर जाएगा. और जो भी नीम दरवाजे पर लगाएगा, वहां पर भूत फटकने न पाएगा,’’ ओझा ने सामने खड़ी रधिया पर मोरपंखी फेरते हुए कहा. खिलावन ने पलक झपकते ही ओझा के आगे नीबूमिर्च, नीम और जलेबी सजा के रख दी.

कालू ने भी तेजी दिखाते हुए नीमनीबू दरवाजे पर टांग दिए. थोड़ी जलेबी रधिया को खिलाई और बाकी जलेबी भीड़ में प्रसाद के तौर पर बंटवा दी.

झाड़फूंक से रधिया के कलेजे को ठंडक पड़ गई कि उस के सिर पर चढ़ा भूत उतर गया है. वह खुशी से ओझा के पैरों में गिर पड़ी. भीड़ जयजयकार कर उठी. खिलावन ने सब की नजर बचा कर सौ रुपए का नोट कालू की मुट्ठी में दबा दिया. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

तभी प्रेमा के घर से चीखपुकार आने लगी. किसी ने फिर मीडिया को खबर कर दी थी. वे थोड़ी देर पहले ही अपना मोबाइल नंबर बांट गए थे. पुलिस से पहले मीडिया वाले पहुंच गए.

प्रेमा अपनी कटी चुटिया दिखा कर पूरे फिल्मी अंदाज में बखान कर रही थी. उस ने चीखपुकार मचा कर भूत को अपने पीछे से दबोचने और फिर अपने बेहोश होने की बात कह दी.

लोगों में डर बैठ गया. जितने मुंह उतनी बातें. मगर प्रेमा मन ही मन बहुत खुश थी. आज उस का टैलीविजन पर आने का सपना जो पूरा हो गया था.

दूसरे दिन दुलारी के चीखनेचिल्लाने की आवाज के साथ सब की भीड़ उस के घर के आगे जमा हो गई. उस की चुटिया भी कट चुकी थी. वह अपने टेड़ेमेढ़े ढंग से कटे बालों को दिखा कर खूब चीखीचिल्लाई. फिर बाल सैट कराने के लिए ब्यूटीपार्लर चली गई.

मगर जब श्यामा को अपनी चोटी कटी हुई मिली, तो उसने सारा दोष ननकू की बीवी पर मढ़ दिया और उसे चुड़ैल घोषित कर मारने दौड़ पड़ी.

वहां बड़ा बवाल मच गया. पूरी बस्ती 2 हिस्सों में बंट गई. आधे दुलारी की तरफ, आधे ननकू की बीवी की तरफ. ईंटपत्थर सब चल गए. पुलिस को बीचबचाव करना पड़ा. 2 सिपाहियों की ड्यूटी ‘चोटीकटवा भूत’ को पकड़ने के लिए लगा दी गई.

रामप्यारी अब खुश थी कि उस की जलेबी की दुकान चल निकली है. प्रेमा, श्यामा, दुलारी सभी आजकल अपने अंदर एक अलग ही खुशी महसूस कर रही थीं.

लेकिन खिलावन तनाव में था कि रामप्यारी अगर पकड़ी गई, तो क्या होगा? उस ने डरतेडरते उस से कहा, ‘‘तुम चुटिया काटने का काम बंद कर दो. मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं किसी ने तुम्हें पकड़ लिया, तो चुड़ैल जान कर जान से ही मार देंगे.’’

‘‘मगर, मैं ने तो रधिया के सिवा किसी के भी बाल नहीं काटे. मुझे अब दुकान और घर से फुरसत ही कहां मिलती है कि मैं लोगों के घरों में घूमती फिरूं,’’ रामप्यारी ने शान से कहा. ‘तो फिर बाकी लोगों के बाल किस ने काटे?’ खिलावन सोच में पड़ गया.

जिया जले

शहर चाहे कोई भी हो, युवा चाहे जिस किसी भी प्रदेश के हों, वे अपनी पसंद से जीवनसाथी चुन लेते हैं. ऐसा होने पर समाज के कर्ताधर्ता परिवार वालों पर दोषारोपण करते हैं, कहते हैं, ‘परवरिश ठीक नहीं थी.’

दूसरी ओर धर्म के ठेकेदार, पाखंडी पंडित जोगाराम जैसे लोग लड़का या लड़की की खामियों को छिपा कर परंपरागत हिसाब से विवाह करवा देते हैं. ऐसे में भुगतना जिसे पड़ता है वही जानता है.

‘नलिनी, थोड़ा तो ड्रैसिंग सैंस रखा कर. यह क्या है, काली कुरती पर नीला दुपट्टा?’ कालेज के लिए निकलते वक्त बड़ी बहन दामिनी ने टोका.

‘हुंह, रहने दो न, दीदी. सब चलता है और मैं कालेज पढ़ने के लिए जाती हूं कोई…’

‘क्या मतलब है तुम्हारा?’ दामिनी तिलमिला उठी.

‘दामिनी नाम रख लेने से कोई मीनाक्षी शेषाद्रि नहीं बन जाती,’ नलिनी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘बसबस, फिर शुरू हो गईं तुम दोनों,’ मां ने रसोईघर से डांट लगाई.

मां की आवाज ने युद्ध को तत्काल के लिए विराम दे दिया.

‘अच्छा सुन दामो, शाम को तुझे देखने के लिए नीरज के परिवार वाले आ रहे हैं,’ बोलतेबोलते मां कमरे में आ गई.

‘अरे वाह, शाम को फिर से कुछ अच्छा खाने को मिलेगा,’ नलिनी नाचते हुए बोली.

‘अच्छा, तो तुझे अच्छा खाने की पड़ी है,’ दामिनी ने छोटी बहन की चोटी खींचते हुए कहा.

‘मां, देखो न,’ नलिनी ने मां से शिकायत की.

तब तक मां ने पंडित जोगाराम द्वारा दिखाई नीरज की फोटो को सामने ला कर रख दिया और सभी उसे देखने में व्यस्त हो गए. दामिनी ने भी चोर निगाहों से देख लिया, कमोबेश ऋषि कपूर जैसा लगा उसे. मन में फूटे लड्डू को दबाती हुई दूसरे कमरे में चली गई.

‘लड़का कैसा लगा, बता कर तो जाओ?’ मां ने आवाज लगाई.

‘बहुत अच्छा,’ नलिनी ने सैंडिल पहनते हुए कहा और दोनों बहनें कालेज के लिए निकल गईं.

रास्ते में निखिल मिला, आज दामिनी उसे देख कर न मुसकराई, न कोई इशारा किया. मां ने निखिल के साथ रिश्ते के लिए जब से मना कर दिया था तभी से दोनों तरफ से प्रेमालाप बंद हो चुका था. निखिल भी चोर निगाहों से देखता हुआ निकल गया.

इधर दामिनी के नसीब का फैसला पंडित जोगाराम कर रहे थे.

‘पंडितजी, आप चाहे जितनी दक्षिणा ले लीजिए लेकिन मेरे बेटे का विवाह करवा दीजिए, मरते हुए बेटे नीरज की भी यही इच्छा है,’ नीरज की मां ने आंचल से आंसू पोंछते हुए कहा.

‘यजमान, आप के सुपुत्र का विवाह तो मैं जब चाहूं तब करवा दूं लेकिन कैंसरग्रस्त दूल्हे को अपनी बेटी देगा कौन?’ पंडित जोगाराम ने दक्षिणा की पोटली को बेवजह खोलतेबंद करते हुए कहा.

‘आप से उम्मीद न करूं तो किस के आगे झोली फैलाऊं? आखिर आप ने ही तो इस खानदान के सभी लोगों का विवाह करवाया है,’ नीरज की मां ने पंडित जी के सामने नाश्ते की प्लेट रखते हुए कहा.

‘हेहेहे, सो तो है,’ पंडित जी ने 2 रसगुल्ले एकसाथ मुंह में रखते हुए खींसे निपोरे.

नीरज की मां ने आखिरी हथकंडा अपनाया और 10 हजार रुपए व एक जोड़े जनेऊ उन के सामने रख दिए. जिसे पंडित जी ने झट दक्षिणा वाली पोटली में सरका लिया.

‘समझ लीजिए आप के बेटे का विवाह हो गया. लड़की के सिंदूर के जोर से आप का पुत्र सौ बरस जिएगा,’ पंडित जी ने अपने पोथी के साथ बचीखुची खानेपीने की वस्तुओं को समेटते हुए कहा.

‘जैसी आप की कृपा महाराज,’ मां ने विदा करते हुए श्रद्धा से पैर छू लिए.

पाखंडी पंडित ने भी वादे के मुताबिक 10 हजार रुपए का मान रखते हुए बिना सोचेसमझे कैंसरग्रस्त नीरज के साथ दामिनी का विवाह करवा दिया. यही वजह थी कि शादी के बाद दामिनी ने मायके वालों की तरफ़ पलट कर भी नहीं देखा.

इस बार करीब 5 वर्षों के बाद दामिनी अपने मायके आई थी. बीमार मां ने अपनी सांसों की कसम दिलाई थी और यही वजह थी कि वह मना न कर सकी थी. मां को जीभर कोसना चाहती थी लेकिन कोस न सकी.

मामा जी के बेटी की शादी थी. चारों तरफ हंसीखुशी का माहौल था.

दामिनी रिक्शे उतर कर उसे पैसे दिए और निगाह नीची किए ही सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर के कमरे में जाने लगी. हड़बड़ाहट में निखिल से टकरातेटकराते बची, मुड़ कर देखा तो देखते ही रह गई, 5 साल पहले वाला दुबलापतला एक हड्डी का इंसान नहीं रह गया था बल्कि खातेपीते घर का हृष्टपुष्ट युवक बन चुका था वह.

निखिल ने भी दामिनी को गौर से देखा, सोचा, ‘क्या यह वही लड़की है जो अपने रंगरूप और फैशन के लिए महल्लेभर में जानी जाती थी, जिस की एक झलक पाने के लिए दिनभर परचून की दुकान के चक्कर लगाया करता था. यह क्या हाल कर लिया है इस ने अपना.’

निखिल दरअसल दामिनी से करीब 2 साल छोटा था, यही वजह थी कि दोनों परिवारों ने रिश्ते को नकार दिया था और निखिल का रिश्ता दामिनी की छोटी बहन नलिनी से कर दिया गया था. दामिनी शादी होते ही दुबई चली गई थी.

शुरूशुरू में तो सबकुछ बहुत अच्छा रहा. दामिनी अपने पति नीरज को पा कर निहाल हो गई थी. नीरज ने भी कोई कमी न रखी थी. सोने के गहनों से तो लद गई थी दामिनी. ऐसे में दुबलापतला निखिल कहां याद आता था. लेकिन दुबई में तेल के कुएं में बहुत दिनों तक काम करने के कारण नीरज कैंसरग्रस्त हो चुका था और यह बात पंडित जोगाराम जी रिश्ता करवाते वक्त 10 हजार रुपए की गड्डी के साथ ही दबा गए थे.

घर की जमापूंजी इलाज में घुलती जा रही थी और साथ ही, खोती रही थी दामिनी की खूबसूरती. निखिल को देखने के बाद अचानक से उसे अपने चेहरे की फिक्र होने लगी. जिसे उस ने पिछले कई सालों से संवारना तो दूर, निहारा भी नहीं था. दरअसल इन दिनों उसे आईने के सामने बैठने की या खुद को निहारने की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई थी. सुबहदोपहरशाम केवल नीरज की दवाइयों के समय का ध्यान रखते और सिलाई मशीन पर बैठेबैठे बीत जाता था. बाकी बचा समय और्डर मिले कपड़ों को लाने व पहुंचाने में चला जाता था. वही सब तो घर के आमदनी का जरिया था.

भारत आने के बाद उस ने किसी से भी बातचीत करने या मिलनेजुलने की कोशिश भी नहीं की थी. अगर फोन आता भी था तो टाल जाती या कोई न कोई बहाना देती थी. नीरज की बीमारी की खबर उस ने घर में किसी को नहीं बताई थी क्योंकि ससुराल वालों की तरह मायके वालों से भी नीरज के लिए बदनसीब पत्नी का तमगा नहीं पहनना चाहती थी. आईने में खुद को देखा. रूखा चेहरा, उदास आंखें, उम्र से कहीं ज्यादा की दिख रही थी. वह कुछ पल के लिए आईने के पास ही बैठ गई और अतीत उस के सामने आ खड़ा हो गया.

परचून की दुकान पर पहली बार मिली थी निखिल से. दोनों ही नमक खरीदने गए थे. अंतर बस इतना था की दामिनी ने टाटा नमक मांगा था और निखिल ने साधारण नमक. शायद आकर्षण ही था जो दामिनी निखिल को टाटा नमक के फायदे समझाने लगी और निखिल ने भी टाटा नमक के लिए दुकानदार से कह दिया था और इस नमकीन हादसे ने दोनों के मन में मिठास घोल दिया था. दोनों एक ही महल्ले में रहते थे, जब भी दामिनी सौदा लेने के लिए निकलती और निखिल की नजर पड़ जाती है तो वह भी कुछ न कुछ खरीदने के बहाने दुकान पहुंच जाता. वहीं थोड़ीबहुत बात भी हो जाती थी.

दोतीन मुलाकातों में ही पता चल गया था कि निखिल उसे पसंद करता है. बातों ही बातों में मोबाइल नंबर का लेनदेन भी हो गया था लेकिन सख्त हिदायत दी गई थी कि सिग्नल मिले तभी जा कर किसी प्रकार की कौल या मैसेज किया जाए, क्योंकि यह दामिनी का व्यक्तिगत मोबाइल नहीं है. निखिल ने भी सीमारेखा का उल्लंघन कभी नहीं किया था. निखिल साइकिल पर घूमघूम कर ट्यूशंस देता था, यही उस की आय का जरिया था.

कहते हैं न, शिक्षा कभी बेवफाई नहीं करती. देखतेदेखते निखिल सरकारी शिक्षक बन गया था. दामिनी की शादी के बाद भी निखिल दामिनी के घर जाता था शायद दामिनी के विषय में कोई जानकारी मिल जाए. नतीजा यह हुआ की दामिनी की मां ने उसे अपनी छोटी बेटी नलिनी के लिए पसंद कर लिया. जिसे निखिल और उस के परिवार वालों ने स्वीकार कर लिया. उस वक्त नलिनी देखने में एक साधारण सी लड़की थी.

श्यामला रंग, दो चोटी किए हुए, सलीकेदार या डिजाइन वाले कपड़े पहनने का कोई शौक नहीं. लाल कुरती के साथ नीला पजामा पहन लेती, सफेद ओढ़नी डाल लेती या फिर काले पजामे के साथ हरी ओढ़नी डाल लेती, चेहरे की रंगाईपुताई तो उस ने सीखा ही नहीं था. यह सब तो शादी के बाद निखिल ने उसे सिखाया था. और अब तो वह इतना कुछ सीख चुकी थी कि उस की वैनिटी में ब्रैंडेड लिपस्टिक से ले कर पैर के सैंडिल तक मैचिंग रहता था.

“बड़ी बूआ,” नन्हे दीपू ने कंधा पकड़ कर हिलाया. दामिनी वर्तमान में लौट आई.

“ऊपर के कमरे में चलिए न, सभी आप का इंतजार कर रहे हैं,” दीपू ने बाल को उछालते हुए कहा और कमरे से निकल गया. दामिनी ने खुद को एक बार फिर से निहारा और फिर समेटती, सकुचाती हुई सीढ़ियां चढ़ने लगी. एकएक कदम सावधानी से रखती हुई सीढ़ियां चढ़ रही थी क्योंकि दिमाग कहीं और उलझा हुआ था. तभी सामने से नलिनी ने झुक कर पैर छू लिए. उस के परफ्यूम की खुशबू ने उस की तरफ देखने के लिए मजबूर कर दिया. आंख फटी की फटी रह गईं. जिस नलिनी को उस के भद्दे कपड़ों के लिए, सांवले रंग के लिए मां कोसा करती थी वह आज खिलीखिली, फूलों सी महक रही थी.

“अपनी छोटी बहन की कभी याद नहीं आई, दीदी,” नलिनी ने गले लगते हुए कहा.

पहले निखिल, अब नलिनी, खुद को कहां तक संभाले दामिनी.

“परिस्थितियां ही कुछ ऐसी थीं,” केवल इतना ही कह पाई.

सामने रिश्तेदार बैठे थे, उस ने बारीबारी से सभी का आशीर्वाद लिया.

“दामाद जी नहीं आए?” मां ने पूछा.

शादी के वक्त नीरज को चुनने के लिए जिस मां का दिल से शुक्रिया किया था आज अचानक से वही मां निखिल के रिश्ते को अपने लिए ठुकराने की वजह से बुरी लग रही थी. काश, उम्र को नजरअंदाज कर के रिश्ते की बात आगे बढ़ गई होती तो आज जहां नलिनी खड़ी है वहां वह खड़ी होती.

“बरात आने तक आ जाएंगे,” मन के जज्बात को मचोड़ते हुए दामिनी ने जवाब दिया.

जितने लोग उतने प्रश्न, किसकिस का जवाब दे. इसीलिए सभी से कतराने लगी थी. लेकिन उस की नज़रें नलिनी को परखने में लगी हुई थीं. आखिर ऐसा कौन सा कुबेर का खाना खजाना इन के हाथ लग गया जो दोनों इतना दिखावा कर रहे हैं क्योंकि जब वह निखिल को जानती थी तब तक वह मामूली था, साइकिल पर घूमघूम कर घरघर जा कर बच्चों को पढ़ाने वाला शिक्षक हुआ करता था.

“अरी नलिनी, ऐसा कौन सा कुबेर का खजाना तुम दोनों के हाथ लग गया, जरा मैं भी तो सुनूं?” आखिरकार दामिनी ने पूछा ही लिया.

“कोई कुबेर का खजाना नहीं है, दीदी. हम दोनों की लगातार मेहनत का नतीजा है. इन की सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई और मैं ब्यूटीशियन का कोर्स कर के अपना पार्लर चला रही हूं,” नलिनी ने खुले बालों पर हाथ फेरते हुए कहा.

“हां, वह दिख रहा है वरना…तुम तो…,” दामिनी कुछ और बोलने ही वाली थी कि नलिनी ने बीच में टोका, “दीदी, जीजाजी कहां हैं, वे साथ नहीं आए,”

“बस, ठीक हैं,” बात आगे और बढ़ती, उस के पहले वह वहां से हट गई. उस की निगाहें निखिल का पीछा कर रही थीं. उस की जिज्ञासा जाग उठी कि उस के विवाह के बाद निखिल ने उसे याद किया या नहीं और कहीं न कहीं इस बात से परेशानी भी थी कि उस के जाने के बाद टूट कर बिखर क्यों न गया, सवंर कैसे गया?

रात को फेरे होने तक निखिल कहीं दिखाई नहीं दिया. इस बीच नलिनी जितनी बार भी मिली, दामिनी ने इस बात का एहसास करना जरूरी समझा कि निखिल को उस ने अपने लिए पसंद किया था और निखिल उस का छोड़ा हुआ कपड़ा है जिसे उस ने पहले पहना था जैसा कि अकसर बचपन में वह करती थी. शादी में नीरज को को न आना था, न वह आया. सुबह जब मेहमान जाने लगे तो दामिनी को छोड़ने का जिम्मा निखिल को मिला. दामिनी को तो बिन मांगी मूराद पूरी हो गई थी. जितना सजधज कर वह शादी में नहीं आई थी उस से कहीं ज्यादा सजधज कर वह जाने के लिए निकली.

दामिनी की कुटिल भावनाओं से दूर नलिनी इसे अपने दोनों का कर्तव्य समझ रही थी कि दीदी को सहीसलामत उन के घर पहुंचाया जाए.
रास्ते में झूठमूठ का पेटदर्द बहाना कर गाड़ी रुकवाई गई. दामिनी हर पल निखिल के क़रीब आने की कोशिश करती रही. निखिल अपना कर्तव्य निभाता गया और दामिनी का साथ देता गया. दामिनी ने निखिल से कुछ न छिपाया जहां वह अन्य लोगों से अपनी सचाई बयां करने से कतराती रही वहीं निखिल को उस ने बढ़ाचढ़ा कर बताया. रिश्ते के नाते निखिल भी हमदर्दी जताने में पीछे न रहा. जिसे दामिनी ने अपने प्रति पुराना प्यार जागता हुआ समझ लिया और उस को पाने की ललक में सीमाएं तोड़ने लगी.

दामिनी ने निखिल को जहां उतारने के लिए कहा था वहां से उस का घर थोड़ी दूरी पर था. वह नहीं चाहती थी कि निखिल उस के घर के हालात को देखे. रास्ते में उस ने अपना मेकअप पोंछ लिया, बाल बिखेर लिए और कमरे में दाखिल हुई, जहां बीमार नीरज उस का इंतजार कर रहा था. और इंतजार कर रहे थे घर के काम. विदाई में जो कुछ भी मिला था उसे दिखाने के अलावा दामिनी ने नीरज से कुछ न बताया. नीरज की बीमारी के कारण करीब 3 सालों से दामिनी अपना बिस्तर अलग कर चुकी थी. आज अपने बिस्तर के खालीपन में अचानक से निखिल की मौजूदगी देखने लगी. सालों बाद उस ने अपने अंगों को छूआ और सहलाया था. औरत के लिए शरमोहया जहां आभूषण होते हैं वहीं उस की जरूरत उसी गहने को बोझ बना देती है और बोझ तो ज़रूरत पड़ने पर उतार कर रख दिए जाते हैं.

कई दिनों की दिमागी हलचल के बाद दामिनी उस बोझ को अपने से अलग करने के लिए तैयार हो गई थी. वह निखिल से मिलने के बहाने ढूंढने लगी. गाड़ी में जब अपना दुखड़ा निखिल को सुना रही थी तो उसी दरमियान अपने परिवार की गोपनीयता की शपथ भी दिला दी थी, साथ ही, मोबाइल नंबर का आदानप्रदान भी कर चुकी थी.

दामिनी ने निखिल को कौल किया और मिलने की गुजारिश की. निखिल ने मददगार इंसान बनने की नीयत से मिलना स्वीकार कर लिया. करीब 2 घंटे के बाद वे दोनों एकदूसरे के आमनेसामने थे.

दामिनी ने उस की पसंद को ध्यान में रखते हुए हलके गुलाबी रंग का सूट पहना था. हलका मेकअप जैसा वह पहले किया करती थी, जिस का कभी निखिल दीवाना हुआ करता था. आज वह केवल निखिल की परीक्षा लेना चाहती थी. जबकि निखिल केवल हमदर्दी जताने के लिए उस के बुलाने पर आया था. जितनी भी देर बातें हुईं, उन बातों में दामिनी केवल यही ढूंढती रही कि कब निखिल उस की तारीफ करेगा और उन नज़रों से निहारेगा जिन से निहारा करता था.

“तुम आज भी लेडी डायना ही लगती हो,” निखिल ने कहा.

दामिनी की बांछें खिल गईं, निखिल को सबकुछ याद है, वह खुश हो गई. इस वाक्य ने दामिनी को एक मजबूत आधार दे दिया था. इसी आधार के सहारे वह अपने प्रेम की नैया को मझधार में ले जाने के लिए तैयार मान रही थी. दामिनी का विवेक उस के बोझ के तले चेतनाशून्य हो चुका था जिस में नलिनी का वजूद धूमिल हो चुका था.

मिलन का सिलसिला औपचारिकता की दीवार पार कर लगाव वाले घेरे में आ चुका था. जिस की शुरुआत आर्थिक मदद के नाम पर एक अच्छी कंपनी में नौकरी दिलवाने से हुई थी.

उधर, नलिनी विश्वास और भरोसे में बंधी पति में आ रहे बदलाव को नजरअंदाज कर रही थी और यही मानती रही कि व्यस्तता की वजह से निखिल ज्यादा बाहर रह रहे हैं. आखिर बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी भी तो है.

इधर, अपने शरीर से मजबूर नीरज ने तो अपने होंठ सालों पहले से सिल लिए थे. घर में आय का जरिया दामिनी ही थी. फर्क इतना ही पड़ा था कि पहले दामिनी जैसे घर में रहती थी वैसे अब बाहर निकल जाती थी लेकिन अब उस के निकलने के बाद भी कमरा लेडी डायना की खुशबू सा महकता रहता था.

नीरज शरीर से मजबूर था, दिमाग से नहीं लेकिन अपने हालात पर तरस खाने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा था. दामिनी तो अपनी सोचीसमझी योजना के तहत काम कर रही थी लेकिन निखिल पहला प्यार, जो कि इंसान कभी भूलता नहीं है’, की गिरफ्त में आ रहा था. धीरेधीरे उसे भी दामिनी में नमक वाला स्वाद आने लगा था, जिस के बगैर हर नमकीन व्यंजन अधूरा होता है.

“तुम केवल उम्र में मुझ से छोटे हो, बाकी हर क्षेत्र में मुझ से अव्वल,” एक दिन बातों ही बातों में दामिनी ने कहा.

“अपनी तारीफ भला किस को अच्छी नहीं लगती,” जवाब में निखिल ठहाका लगा कर हंसने लगा, साथ ही पूछ बैठा था, “वह कैसे?”

“बस, कह दिया जो सही लगा.”

“कुछ तो वजह होगी न.”

“हर बात की वजह नहीं होती.”

“ऐसे कैसे, होती है?”

“अच्छा, फिर यह बताओ कि हमारेतुम्हारे मिलने की वजह क्या है?” दामिनी अब अपनी सोच पर उस की इच्छा की मोहर लगाना चाहती थी.

“सच कहूं या झूठ?”

“क्यों, तुम झूठ भी बोलते हो?”

निखिल फिर हंसा, “अब तक तो नहीं बोलता था लेकिन अब बोलने लगा हूं. जब तुम से मिलने के लिए निकलता हूं तो घर में झूठ बोल कर आता हूं.” यह कहतेकहते संजीदा हो गया था निखिल.

दामिनी को निखिल के एकएक शब्द में अपनी जीत नज़र आ रही थी.

निखिल थोड़ी देर रुका, फिर बोला, “वैसे, अच्छा तो नहीं लगता लेकिन तुम्हारी बहन बहुत भोली है.”

“भोली नहीं, समय की बलवान है, यही वजह है कि जो कुछ मेरा था वह सब उस का हो चुका है. तुम भी तो पहले मेरे थे,” भावावेश में मन की बात कह गई दामिनी और निशान बिलकुल सही लगा.

बदले में निखिल ने उसे अपने सीने से लगा लिया था.

सीने से लगते ही दामिनी के अंदर सोई हुई औरत जाग गई जिस की वासना विगत कुछ वर्षों से अपूर्ण थी. उस ने पकड़ को और मजबूत कर लिया. कुछ देर यों ही दोनों लिपटे रहे, अलग होने का मन किसी का न था. तभी नलिनी के फोन ने दोनों को अलग होने की वजह दे दी. आज पहली बार पूछा गया था, “स्कूल की टाइमिंग तो 9 से 5 होती है न, 9 से 9 कब से हो गई?”

जवाब में निखिल की जबान लड़खड़ा गई और सच बाहर आ गया.

“दामिनी के साथ हूं.”

“क्यों, सब ठीक तो है न?” नलिनी ने चिंता जताते हुए पूछा.

“हां, कुछ दवाइयां खरीदवानी थीं, बाद में बात करता हूं.” फोन रख दिया गया.

मैसेज आया, ‘थैंक यू, टेक योर टाइम.’ लव वाला इमोजी भी था.

दोनों बेमन से अलग हुए और अपनीअपनी राह चले गए.

अब निखिल अपनी जिंदगी में दामिनी की कमी को महसूस करने लगा था और दामिनी तो पहले से ही घर में मनहूसियत और नीरसता को कोसती थी.

निखिल से लिपटने के बाद से ही मन में उठ रही तरंगों को दबा नहीं पा रही थी. 10 बजे के करीब घर आई. आज नीरज बिस्तर पर नहीं, दरवाजे पर उस का इंतजार कर रहा था. उसे देखते ही जलभुन गई. आंतों में आग लगी, तो मेरी याद आई होगी. मेरे तन में जो आग लगी है उस का क्या? लेकिन मन की आवाज मन में ही दम तोड़ गई.

“खाना बना देती हूं, बस 5 मिनट इंतजार करो,” दामिनी ने कंधे से औफिसबैग उतार कर रखते हुए कहा.

“नहीं, भूख नहीं लगी. बस, तुम्हारी चिंता सता रही थी,” नीरज ने मुसकराते हुए कहा.

“मेरी चिंता, तुम्हें कब से सताने लगी?” दामिनी बिफर पड़ी.

“ऐसा न कहो, जब तुम से शादी हुई थी, तुम ने भी देखा था मेरा रुतबा क्या था.”

“अच्छा, तो तुम भी मानते हो कि मैं मनहूस हूं और मैं ने आते ही तुम्हारी जिंदगी उजाड़ दी,” दामिनी ने मुड़ कर जवाब दिया.

“ऐसा मैं ने कब कहा?”

“मेरा मुंह न खुलवाओ.”

“तुम गुस्से में हो, हम बाद में बात करेंगे,” नीरज ने अपने कमरे की तरफ जाते हुए कहा.

“हुंह,” कहते हुए वह भी पैर पटकती रसोई में चली गई.

सब्जी धोते वक्त उंगलियों को सहलाया, निखिल की छुअन को महसूस किया. मन में हलचल मचने लगी. मन कर रहा था उस पल को फिर से जी ले. उस का जिया उस पल को जीने के लिए बेताब हो रहा था. एक घंटे के अंदर नीरज को खाना खिला कर दवाई खिला चुकी थी.

“थोड़ी देर मेरे पास बैठो न,” नीरज ने उसी हथेली को पकड़ा जिसे कुछ देर पहले निखिल ने छुआ था.

उस ने इस तरह खींचा कि जैसे निखिल के निशान मिट जाएंगे और ऐसा करते वक्त अंगूठी से नीरज के होंठों पर चोट लग गई, खून निकल आया. खून देख कर सारा प्यार जाता रहा.

“सौरीसौरी, गलती हो गई. मैं ने जानबूझ कर नहीं किया,” दामिनी ने खून पोंछते हुए कहा.

“हां, मुझे पता है,” नीरज रोंआसा हो मुंह फेर कर लेट गया.

दामिनी भी अपने बिस्तर पर आ कर लेट गई. वह बिस्तर पर आते ही निखिल के साथ बिताए पलों में खो गई. उस से लिपट कर अपनी प्यास बुझा लेना चाहती थी. उन्मादित हो रही थी लेकिन उस के उन्माद में नीरज के होंठों का खून फैल रहा था. दो अलगअलग चित्र एक के बाद एक आ-जा रहे थे. एक तरफ अपने निखिल से लिपट कर स्वयं में पूर्णता महसूस कर रही थी तो दूसरी तरफ अंगूठी की वजह से नीरज का खून. दोनों चित्र एकदूसरे से अलग कर रहे थे. जब किसी एक भावुक पल को जी न सकी तो रुलाई छुट गई.

पंडित को, मां को भरभर कोसा. तब भी शांति नहीं मिली, तो मेज़ पर रखा गिलासभर पानी स्वयं पर उड़ेल लिया.

निखिल से अलग हो कर लौटते समय उस ने मन बना लिया था कि अगले दिन वह अपने मन की बात बता देगी कि ‘अपना पुराना हक वापस पाना चाहती है, अपना पहला प्यार जीना चाहती है’ और उसे कहीं न कहीं यकीन था कि निखिल भी इस बात के लिए राजी हो जाएगा.

जिस तरह से निखिल ने उसे गले से लगाया था वह 5 साल पुराने एहसास पर भी भारी था. इसी सुखद एहसास में लेटेलेटे न जाने कब सपने में निखिल उस के पास आया. दामिनी सारी शरमोहया छोड़ कर उसे अपना बना लेने का आग्रह करने लगी. निखिल जाने लगा.

‘तुम मेरा पहला प्यार हो, मैं तुम्हें नहीं भूल सकती. तुम मुझे अपना लो.’

‘नहीं, मैं यह गलती नहीं कर सकता. तुम अब किसी और की हो.’

‘नहीं, निखिल नहीं. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी, मुझे अपना लो.’ और वह उस के कदमों में गिर जाती है. फिर उठ कर निखिल को बेतहाशा चूमने लगती है. निखिल विरोध करता है. दामिनी उसे पाने के लिए बेचैन हो रही थी. खुद से लड़ रही थी. पसीने से तरबतर हो चुकी थी.

“दामिनी, दामिनी,” नीरज ने झकझोर कर उठाया और गले से लगाने की कोशिश करने लगा, “कोई बुरा सपना देखा है तुम ने?” और उसे सहलाता रहा. नीरज खुद बुखार से तप रहा था.

“अरे, तुम्हें तो बुखार है,” दामिनी ने खुद को उस की पकड़ से दूर करते हुए कहा.

“यह तो हर रोज होता है लेकिन तुम, तुम क्यों परेशान हो?”

“पता नहीं,” दामिनी ने पानी पीते हुए कहा.

“मैं तो तुम्हारे सिंदूर के नाम पर जी रहा हूं वरना डाक्टर साहब ने तो कब का जवाब दे दिया है. मैं ने तुम्हें कभी नहीं बताया, मेरा तुम से विवाह करने का उद्देश्य केवल इतना था कि मैं कुंआरा नहीं मरना चाहता था. मैं जानता हूं कि तुम्हारे साथ नाइंसाफी हुई है, ऐसे व्यक्ति को विवाह करने का कोई हक नहीं जिस की झोली में चंद सांसें बची हों. लेकिन पंडित जी ने कहा था कि लड़की के सिंदूर के सहारे मैं जी सकता हूं, शायद इसीलिए मैं अब तक जिंदा हूं,” नीरज एक सांस में बोल गया.

“और तुम मान गए. इतना भी नहीं सोचा कि जब वह बिस्तर पर अपना हक मांगेगी तो क्या दूंगा,” दामिनी बोलती चली गई.

“मैं तुम्हारे सहारे जी रहा हूं, तुम मेरे लिए बहुत भाग्यशाली हो. तुम मुझे कभी छोड़ कर मत जाना, दामिनी,” कहते हुए नीरज दामिनी से लिपट गया.

“चलो, तुम्हें दवाई देती हूं,” दामिनी ने अलग करने की कोशिश करते हुए कहा.

“नहीं, ऐसे ही रहने दो न. तुम से लिपट कर अच्छा लग रहा है.”

“ठीक है, पहले दवा खा लो, फिर लिपट जाना,” दवा खिला व पानी पिला कर उसे लिटा दिया और उस की बगल में खुद भी लेट गई.

लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी. एक तरफ अनैतिकता थी लेकिन सुख था, दूसरी तरफ सुहाग लेकिन संभोग नहीं. निर्णय उसे ही लेना था.

उस के साथ धोखा हुआ था और धोखे का बदला धोखा से दे सकती थी. उस पंडित को जान से मार देना चाहती थी जिस ने नीरज को यह समझाया था कि अगर वह शादी कर लेगा तो उस की जान बच सकती है लेकिन वह भूल गया कि ऐसा कर के वह किसी और की खुशियों में आग लगा रहा था. दूसरी तरफ वह जिस के साथ धोखा करना चाहती थी वह उस की छोटी बहन थी. एक गलत कदम उस की बहन के घर को उजाड़ देगा. असमंजस में पड़ी दामिनी नीरज के बाल सहला रही थी. नीरज मीठी मुसकान लिए उस से लिपट कर सो रहा था.

40+ में ऐसे बनाएं सैक्स लाइफ मजेदार

जैसेजैसे उम्र बढ़ती है वैसेवैसे लोगों में सैक्स करने की ऐक्साइटमैंट खत्म होने लगती है. ऐसे में अकसर 40 की उम्र के बाद लोग अपनी सैक्स लाइफ पर ध्यान नहीं दे पाते और इस के कई कारण हो सकते हैं.

दरअसल, लोग इस उम्र में अपने बच्चों के कैरियर को ज्यादा गंभीरता से देखते हैं और अपना ज्यादातर समय बच्चों को समझाने में या उन की चिंता करने में लगा देते हैं.

ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप 40 की उम्र के बाद भी अपनी सैक्स लाइफ में ऐक्साइटेड फील करें. तो चलिए, हम आप को बताते हैं कुछ ऐसे टिप्स जिस से आप अपनी सैक्स लाइफ को बढ़ती उम्र के बाद भी रोमांच से भर सकते हैं.

ट्राई करें नईनई चीजें

अकसर शुरुआती दिनों में तो पतिपत्नी बहुत सी ऐसी चीजें ट्राई करते हैं जिस से कि उन की सैक्स लाइफ में रोमांच बना रहे पर धीरेधीरे वे यह सब ट्राई करना बंद कर देते हैं. ऐसे में जरूरी है कि पतिपत्नी को सैक्स में कुछ न कुछ नयापन जरूर लाना चाहिए जैसेकि नई पोजिशंस ट्राई करना, सैक्सी कपड़े पहनना, अपने पार्टनर की पसंद का ध्यान रखना और टूर पर जाना.

जरूरी है छेड़छाड़

पतिपत्नी की रिश्ता बेहद कमाल का होता है जिस में वे दोनों एकदूसरे के हमसफर के साथसाथ एकदूसरे के अच्छे दोस्त भी होते हैं. तो ऐेसे रिश्ते में एकदूसरे के साथ कभीकभी छेड़छाड़ भी जरूर करनी चाहिए जैसेकि अगर किचन में पत्नी कुछ काम कर रही है तो पीछे पति को जा कर उसे गले लगा लेना चाहिए या फिर चुंबनों की बौछार कर देनी चाहिए.

ऐसे ही अगर पति काम से घर आता है तो पत्नी को उस के लिए बढ़िया सी कोई डिश बनानी चाहिए और घर का माहौल रोमांटिक रखना चाहिए जिस से कि पति घर आते ही खुश हो जाए.

एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं

ऐसा देखा गया है कि 40 की उम्र के बाद पतिपत्नी एकदूसरे के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते बल्कि सिर्फ अपने बच्चों या अपने काम में लगे रहते हैं तो ऐसे में उन्हें इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि उन्हें एकदूसरे के साथ घूमने भी जाना चाहिए और अकेले में समय भी बिताना चाहिए.

ओरल सैक्स भी है जरूरी

हर इंसान का स्वभाव होता है कि उसे नई चीजें ट्राई करना बेहद अच्छा लगता है और शादी के कुछ सालों बाद अगर सैक्स में कुछ नयापन न आए तो सैक्स लाइफ बोरिंग होने लगती है. ऐसे में आप ओरल सैक्स को अपना कर अपनी सैक्स लाइफ में रोमांच का तड़का लगा सकते हैं.

सैक्स से ज्यादा फोकस रोमांस पर करना चाहिए और अपने पार्टनर के साथ जम कर किसिंग, कडलिंग, आदि करना चाहिए जिस से सैक्स लाइफ हमेशा रोमांटिक रहे.

बुराई में अच्छाई : धांसू आइडिया में अच्छाई का शहद

आवश्यकता आविष्कार की जननी है. बचपन में मास्टर साहब ने यह सूत्रवाक्य रटाया था मगर इस का अर्थ अब समझ में आया है. दरअसल, लोकतंत्र में बाबू, अफसर, नेता सभी आम जनता की सेवा कर मेवा खा रहे हैं. लेकिन बेचारे फौजी अफसर क्या करें? उन की तो तैनाती ही ऐसी जगह होती है जहां न तो ‘आम रास्ता’ होता है न ‘आम जनता’ होती है. ऐसे में बेचारे कैसे करें किसी की सेवा और कैसे खाएं मेवा? मगर भला हो उस वैज्ञानिक का जिस ने ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ नामक फार्मूला बनाया था. फौजियों के बीवीबच्चे भी खुशहाल जिंदगी जी सकें, इस के लिए जांबाजों ने मलाई जीमने के नएनए फार्मूले ईजाद कर डाले. ऐसेऐसे जो ‘न तो भूतो और न भविष्यति’ की श्रेणी में आएं.

एक बहादुर अफसर ने तो अपने ही जवानों को टमाटर का लाल कैचअप लगा कर लिटा दिया और फोटो खींचखींच कर अकेले दम दुश्मनों से मुठभेड़ का तमगा जीत लिया. वह तो बुरा हो उन विभीषणों का जिन्होंने चुगली कर दी वरना अब तक वीरता के सारे पुरस्कार अगले की जेब में होते. कुछ लोगों को इस मामले में बुराई नजर आती है. मगर मुझे तो इस में ढेरों अच्छाइयां नजर आती हैं (जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी वाला मामला). भारतीय जवानों की वीरता, अनुशासन, वफादारी और फरमांबरदारी के किस्से तो पुराने जमाने से मशहूर हैं. वे अपने अफसरों के हुक्म पर हंसतेहंसते प्राण निछावर कर देते हैं. कभी उफ नहीं करते. अब अफसर ने कहा, प्राण निछावर करने की जरूरत नहीं, बस, लाल कैचअप लगा कर मुरदा बन जाओ. बेचारों ने उफ तक नहीं की और झट से मुरदा बन फोटो खिंचवा ली. है किसी और सेना में अनुशासन की इतनी बड़ी मिसाल?

बालू से तेल निकालने के किस्से तो आप ने बहुत सुने होंगे लेकिन चाइना बौर्डर पर टाइमपास कर रहे कुछ अफसरों ने पानी से तेल निकाल ईमानदारी के सीने पर नए झंडे गाड़ दिए हैं. अगलों ने फौजी टैंकों के लिए पैट्रोल पहुंचाने वाले टैंकरों में शुद्ध जल सप्लाई कर दिया. बाकायदा हर चैकपोस्ट पर टैंकरों की ऐंट्री हुई ताकि कागजपत्तर पर हिसाब पक्का रहे. उस के बाद गश्त लगाते लड़ाकू टैंक कितने किलोमीटर चले, उन का प्रति लिटर ऐवरेज क्या है और वे कितना पैट्रोल पी गए, यह या तो ऊपर वाला जानता है या जुगाड़खोर अफसर. कुछ लालची ड्राइवरों के चलते हिसाबकिताब गड़बड़ा गया वरना सबकुछ रफादफा रहता और चारों ओर शांति छाई रहती.

कुछ लोगों को इस में भी बुराई नजर आती है. लेकिन, मुझे तो इस में भी ढेरों अच्छाइयां नजर आती हैं. ऊपर वाला न करे लेकिन अगर कभी दुश्मन की सेना आप के चैकपोस्ट पर कब्जा कर ले और वहां आप के डीजलपैट्रोल से भरे टैंकर खड़े हों तो क्या होगा? आप का ही तेल भर कर वह आप के सीने पर चढ़ी चली आएगी. लेकिन अगर टैंकरों में पानी

भरा हो तो बल्लेबल्ले हो जाएगी. गलतफहमी में दुश्मन मुफ्त का तेल समझ उन टैंकरों से पानी अपने टैंकों में भर लेंगे और थोड़ी दूर चलने के बाद उन के टैंक टें बोल जाएंगे. है न बिलकुल आसान तरीका दुश्मन को चित करने का.

ये सब तो हुई पुरानी बातें. हाल ही में प्रतिभाशाली फौजियों ने जन कल्याण का ऐसा फार्मूला ईजाद किया कि दांतों तले उंगलियां दबाई जाएं या उंगलियों से दांत दाबे जाएं, तय करना मुश्किल है. किसी भले आदमी ने कानून बना दिया कि कश्मीर में गोलाबारूद, विस्फोटक का पता बताने वालों को

30 से 50 हजार रुपए का इनाम दिया जाएगा. बस, लग गई लौटरी हाथ. अगलों ने खाली डब्बों में काले रंग की बालू भर दी और तारवार जोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर रखवा दिया. उस के बाद? अरे भैया, उस के बाद क्या पूछते हो? जानते नहीं कि इतनी बड़ी फौज का इतना बड़ा नैटवर्क चलाने के लिए मुखबिरों की टीम बनानी बहुत जरूरी है और उस से भी ज्यादा जरूरी है मुखबिरों को खुश रखना. बेचारे जान जोखिम में डाल कर फौज के लिए सूचनाएं लाते हैं. अब नियमानुसार तो नियम से ज्यादा रकम मुखबिरों को दी नहीं जा सकती और उतने में मुखबिर काम करने को राजी नहीं होते. इसीलिए अगलों ने अपने मुखबिरों से ही उन नकली विस्फोटकों के छिपे होने की सूचना दिलवा दी और फटाक से छापा मार उसे बरामद करवा दिया. बस, 30 से 50 हजार रुपए तक का इनाम पक्का. अब भैया, मुखबिर कोई बेईमान तो होते नहीं जो सारा माल खुद हड़प जाएं. सुना है बेचारे आधा इनाम पूरी ईमानदारी से हुक्मरानों को सौंप देते हैं ताकि उन के भी परिवार पलते रहें वरना खाली तनख्वाह में आजकल होता क्या है.

कुछ लोगों को इस में भी बुराई नजर आती है. (पता नहीं इस देश के लोग इतनी संकीर्ण मानसिकता वाले क्यों हैं?) मगर मुझे तो इस में अच्छाइयों का महासागर नजर आता है. कुछ अच्छाइयां गिनवा देता हूं. पहली बात ऐसी घटनाओं से मुखबिरों और उन के खास अफसरों के दिन बहुरे, ऊपर वाला करे ऐसे ही सब के दिन बहुरें.

दूसरी बात यह है कि इस से पाकिस्तान का असली चेहरा  सामने आ गया. वह कैसे? अरे भैया, इतना  भी नहीं समझे? देखो, एक जमाने से पूरी दुनिया आरोप लगा रही है कि इंडिया में जो बमवम दग रहे हैं उस के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, जबकि वहां के बेचारे निर्दोष हुक्मरान एक जमाने से दुहाई दे रहे हैं कि भारत में चल रहे आतंकवाद में उन का कोई हाथ नहीं है. अब इस घटना से यह साफ हो गया है कि बमवम हमारे ही फौजी रखवा रहे हैं. इस से पाकिस्तान का चेहरा बेदाग साबित हो गया. दुनिया वालों को उस पर तोहमत लगाना छोड़ देना चाहिए.

अगर थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि आईएसआई वालों ने बिना अपने मासूम हुक्मरानों की जानकारी के दोचार बम अपने एजेंटों से रखवा दिए होंगे तो उन में भी आपस में सिरफुटौव्वल हो जाएगी. वह कैसे? अरे भैया, आप तो कुछ भी नहीं समझते. सीधी सी बात है, भारतीय सेना जब दनादन विस्फोटक बरामद करेगी तो आईएसआई वाले अपने एजेंटों को हड़काएंगे कि तुम लोग एक भी काम ढंग से नहीं करते. ऐसी जगह बम लगाया जो बरामद हो गया. इस के अलावा हम ने बारूद दिया था 2 बम लगाने का और तुम लोगों ने आधाआधा लगा दिया 2 जगह. तभी एक भी ढंग से नहीं फटा. बेचारे एजेंट अपनी सफाई देते रहें लेकिन उन की सुनेगा कोई नहीं. ताव खा कर वे आपस में लड़ मरेंगे. आखिर वे भी महान तालिबानी गुरुओं के महान चेले हैं. कोई ऐरेगैरे नहीं. बताइए, अगर ऐसा हुआ तो मजा आ जाएगा या नहीं? खामखां दुश्मन आपस में लड़ मरेंगे और अपनी पौबारह हो जाएगी. इसी को कहते हैं कि हींग लगे न फिटकरी और रंग निकले चोखा.

तो भैया, देखा आप ने, फौजी जो भी करते हैं देशहित में करते हैं. देशहित में कई बार उन को अपनी असली योजना गुप्त रखनी पड़ती है. इसलिए उन के कामों को ऊपरी नजर से मत देखिए. गहराई में जा कर देखेंगे तो आप को भी उन की हर हरकत में अच्छाई नजर आएगी. जैसे, मुझे नजर आ रही है. इसलिए, अब जरा जोर से बोलिए, जयहिंद.

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