भारतीय जनता पार्टी के दंभ और उस की मनमानी का जो जवाब जनता ने इस बार हरियाणा, महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों व 51 विधानसभा सीटों के उपचुनावों में दिया वह अप्रत्याशित था. पूरा देश तो इस बात को मन में लिख चुका था कि केंद्र सरकार कश्मीर के फैसले के बदले में जनता के वोट दान में वसूलेगी और जजमानों को खाली कर देगी. लेकिन, जनता ने कह दिया कि बस, इतना ही. यदि हर जगह वोट बंटते नहीं और दलित, मुसलमान व पिछड़े वोट एक को जाते, तो भाजपा औंधेमुंह गिरती.

भाजपा ने जब से कामकाज संभाला है, अर्थव्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ाने लगी है. इस बार दीवाली लोगों के लिए भी फीकी रही और व्यापार के लिए भी. हालांकि कृषि उपज में कमी नहीं हुई पर फिर भी गांवों में आय नहीं बढ़ी. इस से शहरी फैक्ट्रियों का सामान नहीं बिका. आज पूरा देश भयंकर मंदी का सामना कर रहा है.

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भाजपा सरकार के नोटबंदी और जीएसटी के तुगलकी फैसलों से कालाधन अगर कम भी हुआ तो अपने साथ वह सफेद धन भी ले डूबा है. व्यापारियों और आम आदमियों के पास पैसा ही नहीं बचा चाहे वह सफेद हो या काला. इस विधानसभा व उपचुनावों में ईवीएम मशीनों में यह साफ दिखा. जिस महाराष्ट्र में भाजपा 220 सीटों का आंकड़ा ले कर चल रही थी वहां 161 पर सिमट गई, पहले से 17 कम. वहीं, जिस हरियाणा में 75 पार करने का सपना पाल रही थी वहां 40 सीटों पर रह गई. दोनों राज्यों में सरकार तो बन गई पर बहुत लेनदेन के बाद. रामायण के नायक राम को सुग्रीव का साथ लेने के लिए वानर राजा बाली को मारना पड़ा था, वैसे ही कुछ पैतरे आज भाजपा को सत्ता की सीता हासिल करने के लिए लेने पड़े हैं.

भाजपा असल में इस गुमान में है कि वह मंदिर की अलख जगा कर, लोगों को तीर्थों, चारधामों, कांवड़ यात्राओं, देशभक्ति के नारों में उलझा कर सदा उन्हें बेवकूफ बनाती रहेगी. भाजपा गलत भी नहीं है क्योंकि यह देश हमेशा ही धर्म के इशारे पर चलता रहा है. अब तक देश का बड़ा कामगार वर्ग धर्म के भुलावे में ही सामाजिक स्तर कम मिलने पर भी सेवा कर खुश रहा. लेकिन, अब वह सक्षम व शिक्षित होने लगा है. वह सामाजिक स्तर पर अपनी पूरी बराबरी व पहचान चाहता है.

हरियाणा के खत्री मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के ब्राह्मण मुख्यमंत्री की मौजूदगी जनता को रास नहीं आई. मतदाता अब तक भ्रष्टाचार के नारों तक व देशभक्ति के भुलावों, संतोंमहंतों के चक्कर आदि में ही पड़े रहे. लेकिन, अब उन का इन सब से मोह भंग होने लगा है. भाजपा को अब सही फैसले लेने होंगे, जनता को बराबरी का एहसास कराना होगा. एकतरफा धार्मिक, जातीय धौंस से न ऊंचों का भला होगा, न औरों का.

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