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एक मौका और : अच्छाई की हमेशा जीत होती है

कमाल खान के पिता स्क्रैप कारोबारी थे. कमाल अपने मांबाप की एकलौती संतान था इसलिए लाड़प्यार में वह पढ़ नहीं सका तो पिता ने उसे अपने धंधे में ही लगा लिया. कमाल ने जल्द ही अपने पिता के धंधे को संभाल लिया.

अपनी मेहनत और होशियारी से उस ने अपने पिता से ज्यादा तरक्की की. जल्दी ही वह लाखोंकरोड़ों में खेलने लगा. उस ने अपनी काफी बड़ी फैक्ट्री भी खड़ी कर ली. यह देख पिता ने उस की जल्द ही शादी भी कर दी. कमाल जिस तरह पैसा कमाता था, उसी तरह अय्याशी और अपने दूसरे शौकों पर लुटाता भी था. पिता ने उसे बहुत समझाया पर उस ने उन की बातों पर ध्यान नहीं दिया. इसी वजह से पत्नी से भी उस की नहीं बनती थी, जिस से वह बहुत तनाव में रहने लगी थी.

इस का नतीजा यह हुआ कि 10-12 साल बाद ही बीवी दुनिया ही छोड़ गई. कमाल के पिता दिल के मरीज थे, पर कमाल ने साधनसंपन्न होने के बावजूद न तो उन का किसी अच्छे अस्पताल में इलाज कराया और न ही उन की देखभाल की, जिस से उन की भी मौत हो गई.

पिता की मृत्यु के बाद कमाल पूरी तरह से आजाद हो गया था. अब वह अपनी जिंदगी मनमाने तरीके से गुजारने लगा. एक बार उसे ईमान ट्रस्ट के स्कूल में चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया गया था. वहां उस की नजर नूर नाम की छात्रा पर पड़ी जो सिर्फ 15 साल की थी और वहां 11वीं कक्षा में पढ़ती थी.

कमाल खान उस पर जीजान से फिदा हो गया. उस ने फैसला कर लिया कि वह नूर से शादी करेगा. जल्द ही उस ने पता लगाया तो जानकारी मिली कि वह रहमत की बेटी है. रहमत चाटपकौड़ी का ठेला लगाता था. इस काम से उस के परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था.

इसी बीच अचानक एक दिन रात को उस के ठेले को किसी ने आग लगा दी. वही ठेला उस की रोजीरोटी का सहारा था. रहमत बहुत परेशान हुआ. उस के परिवार की भूखे मरने की नौबत आ गई. ऐसे वक्त पर कमाल खान एक फरिश्ते की तरह उस के पास पहुंचा. उस ने रहमत की खूब आर्थिक मदद की. इतना ही नहीं, उस ने उसे एक पक्की दुकान दिला कर उस का कारोबार भी जमवा दिया.

रहमत हैरान था कि इतना बड़ा सेठ उस पर इतना मेहरबान क्यों है. लेकिन रहमत की अनपढ़ बीवी समझ गई थी कि कमाल खान की नजर उस की बेटी नूर पर है.

जल्दी ही कमाल खान ने नूर का रिश्ता मांग लिया. रहमत इतनी बड़ी उम्र के व्यक्ति के साथ बेटी की शादी नहीं करना चाहता था, पर उस की बीवी ने कहा, ‘‘मर्द की उम्र नहीं, उस की हैसियत और दौलत देखी जाती है. हमारी बेटी वहां ऐश करेगी. फौरन हां कर दो.’’

रहमत ने पत्नी की बात मान कर हां कर के शादी की तारीख भी तय कर दी. नूर तो वेसे ही खूबसूरत थी, पर उस दिन लाल जोड़े में उस की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ गई थी. मांबाप ने ढेरों आशीर्वाद दे कर नूर को घर से विदा किया.

कमाल खान उसे पा कर खुश था. अब नूर की किस्मत भी एकदम पलट गई थी. अभावों भरी जिंदगी से निकल कर वह ऐसी जगह आ गई थी, जहां रुपएपैसे की कोई कमी नहीं थी. नूर से निकाह करने के बाद कमाल खान में भी सुधार आ गया था.

उस ने अब बाहरी औरतों से मिलना बंद कर दिया. वह नूर को दिलोजान से प्यार करने लगा. उस के अंदर यह बदलाव नूर की मोहब्बत और खिदमत से आया था. कमाल ने सारी बुरी आदतें छोड़ दीं.

जिंदगी खुशी से बसर होने लगी. देखतेदेखते 5 साल कब गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला. उन के यहां 2 बेटे और एक बेटी पैदा हो गई. कमाल खान ने अपने बच्चों की अच्छी परवरिश की. इसी दौरान कमाल अपने आप को कमजोर सा महसूस करने लगा. पता नहीं उसे क्यों लग रहा था कि वह अब ज्यादा नहीं जिएगा. एक दिन उस ने नूर से कहा, ‘‘नूर, तुम अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दो.’’

पति की यह बात सुन कर नूर चौंकते हुए बोली, ‘‘यह आप क्या कह रहे हैं. मैं अब इस उम्र में पढ़ाई करूंगी? यह तो बेटे के स्कूल जाने का वक्त है.’’

‘‘देखो नूर, मेरे बाद तुम्हें ही अपना सारा बिजनैस संभालना है. तुम बच्चों पर कभी भरोसा मत करना. मुझे उम्मीद है कि मेरे बच्चे भी मेरी तरह ही खुदगर्ज निकलेंगे.’’ कमाल खान ने पत्नी को समझाया.

नूर को शौहर की बात माननी पड़ी और उस ने पढ़ाई शुरू कर दी. 4 साल में उस ने ग्रैजुएशन पूरा कर लिया. अब उस की बेटी भी स्कूल जाने लगी थी. नूर अपने बच्चों से बहुत प्यार करती थी. कालेज के बाद वह अपना सारा वक्त उन्हीं के साथ गुजारती थी. बच्चों की पढ़ाई भी महंगे स्कूलों में हो रही थी.

कमाल खान ने नूर के मायके वालों को भी इतना कुछ दे दिया था कि वे सभी ऐश की जिंदगी गुजार रहे थे. नूर के सभी भाईबहनों की शादियां हो गई थीं. नूर के ग्रैजुएशन के बाद कमाल खान ने उस का एडमिशन एमबीए की ईवनिंग क्लास में करा दिया था.

सुबह वह उसे अपने साथ नई फैक्ट्री ले जाता, जहां वह उसे कारोबार की बारीकियां बताता. नूर काफी जहीन थी. जल्दी ही वह कारोबार की सारी बारीकियां समझ गई.

उस का एमबीए पूरा होते ही कमाल ने उसे बोर्ड औफ डायरेक्टर्स का मेंबर बना दिया और कंपनी के एकतिहाई शेयर उस के नाम कर दिए. नूर समझ नहीं पा रही थी कि पति उसे फैक्ट्री के कामों में इतनी जल्दी एक्सपर्ट क्यों बनाना चाहते हैं.

इस के पीछे कमाल खान का अपना डर और अंदेशा था कि जिस तरह वह स्वार्थ और खुदगर्जी की वजह से अपने पिता की देखभाल नहीं कर पाया तो उस के बच्चे उस की सेवा नहीं करेंगे, क्योंकि स्वार्थ व लालच के कीटाणु उस के बच्चों के अंदर भी आ गए होंगे. इसलिए वह नूर को पूरी तरह से परफेक्ट बनाना चाहता था.

नूर ने फैक्ट्री का सारा काम बखूबी संभाल लिया था. एक दिन अचानक ही उस के शौहर की तबीयत खराब हो गई. उसे बड़े से बड़े डाक्टरों को दिखाया गया. पता चला कि उसे फेफड़ों का कैंसर है. पत्नी इलाज के लिए उसे सिंगापुर ले गई. वहां उस का औपरेशन हुआ. उसे सांस की नकली नली लगा दी गई.

औपरेशन कामयाब रहा. ठीक हो कर वह घर लौट आया. वह फिर से तंदुरुस्त हो कर अपना कामकाज देखने लगा. हालांकि वह पूरी तरह स्वस्थ था, इस के बावजूद भी उसे चैन नहीं था. उस ने धीरेधीरे कंपनी के सारे अधिकार और शेयर्स पत्नी नूर के नाम कर दिए. अपनी सारी प्रौपर्टी और बंगला भी नूर के नाम कर दिया.

इस के 2 साल बाद कैंसर उस के पूरे जिस्म में फैल गया. लाख इलाज के बावजूद भी वह बच नहीं सका. उस के मरते ही उस के रिश्तेदारों ने नूर के आसपास चक्कर काटने शुरू कर दिए. पर नूर ने किसी को भी भाव नहीं दिया, क्योंकि पति के जीते जी उन में से कोई भी रिश्तेदार उन के यहां नहीं आता था.

वैसे भी कमाल खान जीते जी पहले ही प्रौपर्टी का सारा काम इतना पक्का कर के गया था कि किसी बाहरी व्यक्ति के दखलंदाजी करने की कोई गुंजाइश नहीं थी. उस का मैनेजर भी मेहनती और वफादार था. इसलिए बिना किसी परेशानी के नूर ने सारा कारोबार खुद संभाल लिया.

नूर के बच्चे भी अब बड़े हो चुके थे. एक बार की बात है. कारोबार की बातों को ले कर नूर की अपने तीनों बच्चों से तीखी नोंकझोंक हो गई. उसी दौरान नूर की बेटी हुमा एक गिलास में जूस ले आई.

नूर ने जैसे ही जूस पिया तो उस का सिर चकराने लगा और आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह बिस्तर पर ही लुढ़क गई. जब होश आया तो उस ने खुद को एक अस्पताल में पाया.

नूर ने पास खड़ी नर्स से पूछा कि उसे यहां क्यों लाया गया है तो उस ने बताया कि आप पागलों की तरह हरकतें कर रही थीं, इसलिए आप का यहां इलाज किया जाएगा.

नूर आश्चर्यचकित रह गई क्योंकि वह पूरे होशोहवास में थी. तभी अचानक उसे लगा कि यह सब उस के बच्चों ने किया होगा. नूर ने नर्स को काफी समझाने की कोशिश की कि वह स्वस्थ है, लेकिन नर्स ने उस की एक नहीं सुनी. वह उसे एक इंजेक्शन लगा कर चली गई. इस के बाद नूर फिर से सो गई.

जब नूर की आंखें खुलीं तो उसे सामने वाले कमरे में एक आदमी दिखा, जिस की उम्र करीब 45 साल थी पर उस के बाल सफेद थे. बाद में पता लगा कि उस का नाम सोहेल है. उस ने सफेद कुरतापायजामा पहन रखा था. वह बेहद खूबसूरत और स्मार्ट था. सामने खड़ा फोटोग्राफर उस के फोटो खींच रहा था.

पता चला कि सोहेल को भी किसी ने इस पागलों वाले अस्पताल में भरती करा दिया था, जबकि वह भी पूरी तरह स्वस्थ था. वह अस्पताल डा. काशान का था. कुछ देर बाद डा. काशान वहां आया तो सोहेल चीख पड़ा, ‘‘यह गलत है. आप सब धोखा कर रहे हैं. सही इंसान को यहां क्यों भरती कर रखा है?’’

डा. काशान ने इत्मीनान से कहा, ‘‘ये देखो.’’

इस के बाद उस ने रिमोट से एक स्क्रीन औन कर दी. स्क्रीन पर एक स्लाइड चलने लगी, जिस में सोहेल पागलों की तरह चीख रहा था, चिल्ला रहा था. 2 नर्सें उसे बांध रही थीं. वह देख कर सोहेल फिर चीखा, ‘‘यह सरासर झूठ है.’’

उस के इतना कहते ही डाक्टर के इशारे पर नर्स ने फिर से सोहेल को इंजेक्शन लगा कर सुला दिया.

सोहेल को जब होश आया तो उस ने नूर को गौर से देखा. उसे याद आया कि यह लड़की तो वही है जो ईमान ट्रस्ट स्कूल में पढ़ती थी. सोहेल भी बीकौम करने के बाद स्कूल में मदद के तौर पर पढ़ाने जाता था. वैसे सोहेल भी एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखता था.

उस के पिता की एक फैक्ट्री थी. फैक्ट्री में अचानक लगने वाली आग ने सब कुछ बरबाद कर दिया था. उस में उस के पिता की भी मौत हो गई थी. उस समय सोहेल 19 साल का था. उन दिनों वह ईमान ट्रस्ट के स्कूल में पढ़ा रहा था.

सोहेल के लिए पिता की मौत बहुत बड़ा सदमा थी. उस ने अपने कुछ हमदर्दों की मदद से इंश्योरेंस का क्लेम हासिल किया. फिर से फैक्ट्री शुरू करने के बजाय उस ने वे पैसे बैंक में जमा कर दिए. फैक्ट्री की जमीन भी किराए पर दे दी, जिस से परिवार की गुजरबसर ठीक से होती रहे. उस के 2 और भाई थे जो उस से छोटे थे. एक था कामिल जिस की उम्र 15 साल थी, उस से छोटा था 12 साल का जमील.

भाइयों और मां की जिम्मेदारी सोहेल पर ही थी. यह जिम्मेदारी वह बहुत अच्छे से निभा रहा था. एमबीए के एडमिशन में अभी टाइम था, इसलिए वह ट्रस्ट के स्कूल में पढ़ाता रहा. इस स्कूल में ज्यादातर गरीब घरों के बच्चे पढ़ते थे. नूर को उस ने उसी स्कूल में देखा था. वह बेहद खूबसूरत थी. उस नूर को आज वह एक मेच्योर औरत के रूप में देख रहा था. वही बाल, वही आंखें, वही नैननक्श.

यह क्लिनिक शहर से बाहर सुनसान सी जगह पर था. चारदीवारी बहुत ऊंची थी. ऊपरी मंजिल की सब खिड़कियों में मोटीमोटी ग्रिल लगी हुई थीं. इंतजाम ऐसा था कि कोई भी अपनी मरजी से बाहर नहीं निकल सकता था.

पहले डा. काशान एक मामूली मनोचिकित्सक था. वह प्रोफेसर मुनीर के साथ काम करता था. फिर उस ने अपना खुद का क्लिनिक खोल लिया. लोगों को ब्लैकमेल करकर के वह कुछ ही दिनों में अमीर हो गया. इस के बाद उस ने शहर के बाहर यह क्लिनिक बनवा लिया.

इस इमारत में आनेजाने के खास नियम थे. एक अलग अंदाज में दस्तक देने से ही दरवाजे खुलते थे. काशान ने यहां 5 लोग रखे हुए थे. 2 नर्सें, 2 कंपाउंडर, एक मैनेजर कम फोटोग्राफर जिस का नाम राहिल था. सही मायनों में राहिल ही उस क्लिनिक का कर्ताधर्ता था.

डा. काशान उसे उस समय यतीमखाने से ले कर आया था, जब वह बहुत छोटा था. अपने यहां ला कर उस ने उस की परवरिश की. धीरेधीरे उसे क्लिनिक के सारे कामों में टे्रंड कर दिया. अब वह इतना सक्षम हो गया था कि काशान की गैरमौजूदगी में अकेला ही सारे मरीजों को संभाल लेता था. एक तरह से वह डा. काशान का दाहिना हाथ था.

एक दिन डा. काशान कुछ परेशान सा था. उस ने राहिल की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘राहिल, मुझे कुछ खतरा महसूस हो रहा है. शायद किसी को हमारे गोरखधंधे की खबर लग गई है. इसलिए मैं सोच रहा हूं कि सब कुछ खत्म कर दिया जाए.’’

राहिल घबरा कर बोला, ‘‘डाक्टर साहब, ऐसा कैसे हो सकता है? यह तो बहुत बड़ा जुल्म होगा.’’

‘‘तुम मेरे टुकड़ों पर पल कर यहां तक पहुंचे हो. तुम्हें सहीगलत की पहचान कब से हो गई. मैं जो कह रहा हूं, वही होगा. अगले हफ्ते यह काम हर हाल में करना है.’’ डाक्टर ने दहाड़ कर कहा.

नूर को ऐसा लगा जैसे कोई उस का नाम पुकार रहा है. उस ने दरवाजे की जाली की तरफ देखा तो वहां सोहेल के सफेद बाल दिखाई दे रहे थे. यह पहला मौका था जब किसी ने उसे पुकारा था. वरना वहां इतना सख्त पहरा था कि कोई किसी से बात तक नहीं कर सकता था. चोरीछिपे बात कर ले तो अलग बात है.

नूर को यहां आए दूसरा महीना चल रहा था. उसे अब लगने लगा था कि वह सचमुच ही पागल है. सोहेल ने फिर कहा, ‘‘नूर, मैं सोहेल हूं. याद है, जब मैं तुम्हें स्कूल में पढ़ाने आता था…’’

नूर ने कुछ याद करते हुए कहा, ‘‘हां, मुझे याद आ रहा है. आप हमारे स्कूल में पढ़ाते थे. मगर आप यहां कैसे?’’

‘‘मुझे एक साजिश के तहत यहां डाला गया है. मुझे लगता है कि तुम भी किसी साजिश का शिकार हो कर यहां पहुंची हो. इस बारे में मैं तुम से बाद में बात करूंगा.’’

नूर सोच में पड़ गई. उस के दिमाग में परिवार और कारोबार की पुरानी बातें घूमने लगीं. उस के दोनों बेटे सफदर और असगर के कालेज के जमाने से ही पर निकालने शुरू हो गए थे. दौलत के साथ सारी बुराइयां भी उन दोनों में आती गईं.

नूर उन्हें समझाने की बहुत कोशिश करती लेकिन उन पर कुछ असर नहीं हुआ. दूसरी तरफ उस का टेक्सटाइल मिल का बिजनैस भी आसान नहीं था. उस में भी उसे सिर खपाना पड़ता था. हालात बुरे से बुरे होते गए. अब दोनों बेटों ने घर पर शराब भी पीनी शुरू कर दी थी. रोज नईनई लड़कियां घर पर दिखाई देतीं.

नूर अगर ज्यादा जिरह करती या उन्हें कम पैसे देती तो घर की कीमती चीजें गायब होने लगतीं. अगर वह मेनगेट बंद करती तो पीछे के दरवाजे से निकल जाते. यहां तक कि उस के जेवर भी गायब होने लगे थे. जैसेतैसे उन दोनों ने ग्रैजुएशन किया और मां के सामने तन कर खड़े हो गए, ‘‘अम्मी, अब हम पढ़लिख कर इस काबिल हो गए हैं कि अपना बिजनैस संभाल सकें.’’

‘‘अच्छा, ठीक है. कल से तुम औफिस आओ. मैं देखती हूं कि तुम दोनों को क्या काम दिया जा सकता है.’’ नूर ने कहा.

बेटी हुमा भी भाइयों से किसी तरह पीछे न थी. उस ने भी भाइयों की देखादेखी मौडर्न कल्चर सीख लिया था. रोज उस के बौयफ्रैंड बदलते थे. नूर पति के बिना अपने को बेहद अकेला और कमजोर समझने लगी थी. अब हालात उस के काबू से बाहर होते दिख रहे थे. मजबूर हो कर वह बेटी से बोली, ‘‘बेटा, जिसे तुम पसंद करती हो, उसे मुझ से मिलवाओ. अगर वह ठीक होगा तो उसी से तुम्हारी शादी कर दूंगी.’’

हुमा दूसरे दिन ही एक लड़के को ले आई, जिस का नाम अहमद था. वह शक्ल से ही मक्कार नजर आ रहा था. उस के मांबाप नहीं थे, चचा के पास रहता था. बीकौम कर के नौकरी की तलाश में था. हुमा के दोनों भाई इस लड़के से शादी के खिलाफ थे. नूर कोई नया तमाशा नहीं करना चाहती थी. उस ने बेटों को समझाया. 4 लोगों को जमा कर के बेटी का निकाह अहमद से कर दिया.

बेटी ने गरीब ससुराल जाने से साफ मना कर दिया. इसलिए अहमद भी घरजंवाई बन कर रहने लगा. असगर और सफदर तो बराबर औफिस जा रहे थे. काम भी सीख रहे थे पर पैसे मारने में कोई मौका नहीं छोड़ते थे. धीरेधीरे असगर मैनेजर की पोस्ट पर पहुंच गया. इस के बाद तो वह बड़ीबड़ी रकमों के घपले करने लगा, जिस में सफदर उस का साथ देता था. हुमा के कहने पर अहमद को भी नौकरी देनी पड़ी. हालात दिनबदिन खराब हो रहे थे. कंपनी लगातार घाटे में चलने लगी.

तब एक दिन नूर ने असगर, सफदर, हुमा और अहमद चारों को बैठा कर बहुत समझाया. बिजनैस की ऊंचनीच बताईं. आमदनी के गिरते ग्राफ के बारे में उन से बात की. उन चारों ने सारा दोष नूर के सिर जड़ दिया. इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया, ‘‘आप का काम करने का तरीका गलत है. अभी तक आप पुरानी टेक्नोलौजी से काम कर रही हैं. एक बार नए जमाने के तकाजे के मुताबिक सब कुछ बदल दीजिए, फिर देखिए आमदनी में कैसी बढ़त होती है.’’

2-3 दिन तक इस मामले को ले कर उन के बीच खूब बहस होती रही. पुराने मैनेजर भी शामिल हुए. वे नूर का साथ दे रहे थे. चौथे दिन बड़े बेटे ने फैसला सुना दिया, ‘‘अम्मी, अब आप बिजनैस संभालने के काबिल नहीं रहीं. अब आप की उम्र हो गई है. लगता है, आप का दिमाग भी काम नहीं कर रहा. ऐसे में आप आराम कीजिए, बिजनैस हम संभाल लेंगे.’’

इतना सुनते ही नूर गुस्से से फट पड़ी, ‘‘तुम में से कोई भी इस काबिल नहीं है कि इस बिजनैस के एक हिस्से को भी संभाल सके. मैं ने सब कुछ तुम्हारे बाप के साथ रह कर सीखा था. तब कहीं जा कर मैं परफेक्ट हुई. जब तुम लोग भी इस लायक हो जाओगे तो मैं सब कुछ तुम्हें खुद ही सौंप दूंगी.’’

बच्चे इस बात पर राजी नहीं थे. माहौल में तनातनी फैल गई. फिर योजना बना कर बच्चों ने नूर को पागलखाने भेजने की योजना बनाई. इस संबंध में उन्होंने डा. काशान से बात की. वह मोटा पैसा ले कर किसी को भी पागल बना देता था. नूर के बच्चों ने नशीला जूस पिला कर उसे डा. काशान के क्लिनिक पहुंचा दिया.

सारी कहानी सुन कर सोहेल ने कहा, ‘‘यह सब एक साजिश है. तुम्हारे बच्चों ने बिजनैस हड़पने के लिए तुम्हें पागलखाने में दाखिल करा दिया और डाक्टर ने तुम्हें ऐसी दवाएं दीं कि तुम पागलों जैसी हरकतें करने लगीं. मैं डा. काशान को अच्छी तरह समझ गया हूं. तुम घबराओ मत. मैं जरूर कुछ करूंगा. मेरी कहानी भी कुछ तुम्हारे जैसी ही है, बाद में कभी सुनाऊंगा.’’

उस क्लिनिक में शमा नाम की 24-25 साल की एक खूबसूरत लड़की भी कैद थी. सोहेल ने उस के बारे में बताया कि यह एक बहुत बड़े जमींदार की बेटी है. एक दुर्घटना में इस के मांबाप का इंतकाल हो गया. मांबाप ने शमा की शादी तय कर दी थी. इस से पहले कि वह उस की शादी करते, दोनों चल बसे. उन की मौत के बाद चाचा ने उन की प्रौपर्टी पर कब्जा करने के लिए शमा को यहां भरती करा दिया.

वह जवान और मजबूत इच्छाशक्ति वाली थी. दवाएं देने के बाद भी जब उस पर पागलपन नहीं दिखा तो डा. काशान ने राहिल से कहा कि शमा को दवाएं देने के साथ बिजली के शाक भी दें.

ये सारे काम राहिल करता था. 2-4 बार शाक देने के बाद राहिल के दिल में शमा की बेबसी और मासूमियत देख कर मोहब्बत जाग उठी. उस ने उसे शाक देने बंद कर दिए.

राहिल ने शमा को बताया कि उस का सगा चाचा ही उसे नशे की हालत में यहां छोड़ गया था और उसे पूरी तरह पागल बनाने के उस ने पूरे 20 लाख दिए थे.

सारी बातें सुन कर शमा रो पड़ी. तनहाई की मोहब्बत और हमदर्दी ने रंग दिखाया और वह राहिल से प्यार करने लगी. राहिल के लिए यह मोहब्बत किसी अनमोल खजाने की तरह थी. उसे जिंदगी में कभी किसी का प्यार नहीं मिला था. उस की आंखों में एक अच्छी जिंदगी के ख्वाब सजने लगे. पर उस के लिए इस जिंदगी को छोड़ना नामुमकिन था.

वह डा. काशान को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता था. अगर जाता भी तो उसे ढूंढ कर मार दिया जाता. क्योंकि काशान के गुनाह के खेल के सारे राज वह जानता था. उस की जबान खुलते ही काशान बरबाद हो जाता. उस ने सोचा कि उसे तो मरना ही है, क्यों न शमा की जिंदगी बचा ली जाए. उस ने कहा, ‘‘सुनो शमा, मैं तुम्हें यहां से निकाल दूंगा. तुम अपने चाचा के पास चली जाओ.’’

शमा लरज गई. उस ने तड़प कर राहिल का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मैं अब आप के साथ ही जिऊंगी और मरूंगी.’’

राहिल को तो जैसे नई जिंदगी मिल गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक राज की बात बता रहा हूं. डा. काशान ने इस क्लिनिक को तबाह करने का हुक्म दिया है, यहां कोई नहीं बचेगा.’’

‘‘राहिल, तुम इतने पत्थरदिल नहीं हो सकते. तुम इस जुर्म का हिस्सा नहीं बनोगे. यह 17 लोगों की जिंदगी का सवाल है. तुम्हें मेरी कसम है. तुम ऐसा हरगिज नहीं करना.’’ वह बोली.

‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा कि यह काम न करूं, पर उस से पहले मैं तुम्हें एक महफूज जगह पहुंचा देना चाहता हूं. वहां पहुंचा कर मैं तुम से मिलता रहूंगा. फोन पर बात भी करता रहूंगा.’’ राहिल ने कहा.

दूसरे दिन ही मौका देख कर उस ने बहुत खामोशी से शमा को लांड्री के कपड़े ले जाने वाली गाड़ी में कपड़ों के नीचे छिपा कर क्लिनिक से निकाल दिया. साथ ही एक फ्लैट का पता बता कर उसे उस की चाबी दे दी.

शमा सब की नजरों से बच कर उस फ्लैट तक पहुंच गई. यह फ्लैट राहिल का ही था पर इस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. वहां खानेपीने का सब सामान था.

राहिल की दी हुई दवाओं से अब शमा की तबीयत भी ठीक हो रही थी. राहिल ने उसे बताया कि वह डा. काशान का क्लिनिक तबाह कर के बाहर जाने की फिराक में है. डा. काशान ने मरीजों के रिश्तेदारों को सब बता कर उन से काफी पैसे ऐंठ लिए हैं. किसी को भी उन की मौत से कोई ऐतराज नहीं है.

क्लिनिक से शमा के गायब हो जाने के बाद उस की गुमशुदगी की 1-2 दिन चर्चा रही. डा. काशान वैसे ही परेशान चल रहा था. पता चला कि शमा अपने घर नहीं पहुंची है. पर उस के चाचा के पास से कोई खबर न आने पर काशान निश्चित हो कर बैठ गया.

शमा की मोहब्बत ने राहिल को पूरी तरह बदल दिया था. बचपन से वह डा. काशान के साथ था. इस बीच उस के सामने 30 मरीज दुनिया से रुखसत हो चुके थे. जिस किसी को मारना होता था, उसे एक इंजेक्शन दे दिया जाता था, वह पागलों जैसी हरकतें करने लगता था. उस के 12 घंटे बाद डा. काशान मरीज को एक और इंजेक्शन लगाता. उस इंजेक्शन के लगाने के कुछ मिनट बाद ही मरीज ऐंठ कर खत्म हो जाता.

मौत इतनी भयानक होती थी कि राहिल खुद कांप जाता था. डा. काशान मरीज की लाश डेथ सर्टिफिकेट के साथ उस के रिश्तेदारों को सौंप देता था. जिस की एवज में वह उन से एक मोटी रकम वसूल करता था.

शमा की मोहब्बत ने राहिल के अंदर के इंसान को जगा दिया था. 17 लोगों को एक साथ मारना उस के वश की बात नहीं थी. उस ने सोचा कि अगर वह पुलिस को खबर करता है तो वह खुद भी पकड़ा जाएगा. यह दरिंदा तो पैसे दे कर छूट जाएगा.

डा. काशान ने क्लिनिक खत्म करने की सारी जिम्मेदारी राहिल को सौंप दी थी. राहिल और क्लिनिक में काम करने वालों को काशान ने अच्छीखासी रकम दे दी थी. उसी रात क्लिनिक उड़ाना था. डा. काशान ने अपनी पूरी तैयारी कर ली.

रकम वह पहले ही बाहर के बैंकों में भेज चुका था. 10 हजार डौलर वह अपने साथ ले जा रहा था. रात 2 बजे उस की फ्लाइट थी. वह बैठा हुआ बड़ी बेचैनी से तबाही की खबर मिलने का इंतजार कर रहा था. तभी 8 बजे उस के मोबाइल पर राहिल का फोन आया, ‘‘बौस, यहां एक बड़ा मसला हो गया है.’’

‘‘कैसा मसला? जो भी है तुम उसे खुद सौल्व करो.’’ डा. काशान ने उस से कहा.

‘‘मैं नहीं कर सकता. आप का यहां आना जरूरी है, नहीं तो आज रात के प्लान पर अमल नहीं किया जा सकेगा. मैं आप को फोन पर कुछ नहीं बता सकता.’’ राहिल ने बताया.

डा. काशान ने सोचा आज की रात क्लिनिक बरबाद होना जरूरी है, क्योंकि कुछ लोगों को इस की भनक मिल चुकी थी. कहीं कोई मसला न खड़ा हो जाए, सोचते हुए उस ने अपना एक सूटकेस कार में रखा और क्लिनिक की तरफ रवाना हो गया.

सूटकेस में 10 हजार डौलर और अहम कागजात थे. कार उस ने क्लिनिक के गेट पर ही खड़ी कर दी. वह राहिल के साथ क्लिनिक के औफिस में आया तो ठिठक गया. सामने नर्सें, कंपाउंडर और गार्ड नीचे फर्श पर पड़े थे. डाक्टर ने राहिल की तरफ मुड़ना चाहा तो उसे कमर में चुभन का अहसास हुआ. कुछ ही देर में वह बेहोश हो गया. उस के बाद राहिल बाहर आया. बाहर वाले गार्ड को भी वह बेहोश कर के अंदर ले गया.

प्लान के मुताबिक शमा भी वहां पहुंच गई. उस ने पूछा, ‘‘सब ठीक है?’’

राहिल ने जवाब दिया, ‘‘सब पूरी तरह काबू में हैं.’’

उस ने मास्क लगा कर लोगों को एक जगह जमा कर लिया. ये वे जालिम और कातिल लोग थे, जिन्होंने मजबूर और बेबस लोगों को तड़पातड़पा कर मारा था. शमा ने पूछा, ‘‘अब इन के साथ क्या करोगे?’’

‘‘वही, जो इन्होंने दूसरों के साथ किया है,’’ राहिल आगे बोला, ‘‘चलो शमा, जल्दी आओ. हमें बाकी लोगों को यहां से आजाद करना है.’’

चाबियां राहिल के पास थीं. पहले उस ने ऊपर के कमरों के लोगों को एकएक कर आजाद किया और उन्हें धीमी आवाज में सारे हालात समझा दिए. उन्हें सलाह दी कि अपने रिश्तेदारों से बच कर किसी टीवी चैनल में चले जाओ. जब चैनल वाले तुम्हारी कहानी प्रसारित करेंगे, पुलिस खुदबखुद मदद को आ जाएगी.

सभी 17 मरीज आजाद हो गए. इन में नूर और सोहेल भी थे. सारे मरीज डरेसहमे जरूर थे लेकिन आजादी पर खुश नजर आ रहे थे. फिर राहिल औफिस में आया, जहां डा. काशान और उस के साथी बेहोश पड़े थे. उस ने सब की तलाशी ली. उन के पास हजारों रुपए मिले. वह सब उस ने अपने पास रख लिए. डा. काशान के सूटकेस से 10 हजार डौलर निकले जो उस ने सुरक्षित रख लिए. बाकी की सारी लोकल करेंसी मरीजों में बांट दी.

सभी मरीजों के क्लिनिक से निकल जाने के बाद वह औफिस के पास वाले कमरे में आया, जहां बड़ेबड़े डिब्बे रखे थे, जिन से एक सुतली निकल कर बाहर जा रही थी. सुतली को आग दिखा कर राहिल शमा का हाथ पकड़ कर फौरन इमारत से बाहर आ गया. क्योंकि इमारत को जला कर खाक करने का इंतजाम वह पहले ही कर चुका था.

बाहर डा. काशान की कार खड़ी थी. उस ने सूटकेस उठा कर आग में फेंक दिया. कार की चाबी वह पहले ही ले चुका था. जैसे ही वे दोनों कार में बैठ कर कुछ दूर पहुंचे, बड़े जोर का धमाका हुआ. पूरी इमारत आग की लपटों में घिर गई.

नूर और सोहेल साथसाथ बाहर आए और एक तरफ चल पड़े. सोहेल ने नूर से कहा, ‘‘तुम अभी मेरे साथ चलो. दोनों सोचसमझ कर कोई कदम उठाएंगे.’’

बाकी के 15 लोग बस में बैठ कर एक टीवी चैनल के स्टूडियो की तरफ रवाना हो गए. सोहेल ने एक टैक्सी रोकी. रास्ते से कुछ खानेपीने का सामान लिया और एक शानदार बिल्डिंग के सामने उतरे. इस बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर सोहेल का एक शानदार फ्लैट था.

दरवाजे पर सोहेल ने कुछ नंबर बोल कर अनलौक कहा. दरवाजा क्लिक की आवाज के साथ खुल गया. यह आवाज से खुलने वाला दरवाजा था. दोनों ने फ्रैश हो कर खाना खाया. वहां पहुंच सोहेल ने नूर को अपनी कहानी सुनाई. पिता की जमीन पर सोहेल ने एक हौजरी की फैक्ट्री लगाई थी. धीरेधीरे उस का बिजनैस अच्छी तरह चल निकला. उस ने अपने दोनों भाइयों को भी पढ़ालिखा कर अपने साथ लगा लिया.

सोहेल आमदनी का एक चौथाई हिस्सा गरीब और मजबूर लोगों में बांट देता था और एक चौथाई अपने भाइयों को देता था, जो एक बड़ी रकम थी. पर भाइयों की नीयत बिगड़ गई. बिजनैस पर कब्जा करने के लिए उन्होंने सोहेल को नशीली चीज पिला कर उसे डा. काशान के क्लिनिक में भरती करा दिया.

उस दिन सोहेल ने इतने सालों के बाद नूर से अपनी मोहब्बत का इजहार किया. नूर ने शरमा कर सिर झुका लिया.

सारे मरीज टीवी चैनल के स्टूडियो पहुंचे और जब उन्होंने अपनी दास्तान सुनाई तो पूरे शहर में हंगामा मच गया. आईजी पुलिस ने मीडिया में खबर आते ही उन में से कुछ मरीजों के रिश्तेदारों के भागने से पहले ही दबिश डलवा कर हिरासत में ले लिया. हजारों की संख्या में लोग टीवी चैनल के स्टूडियो के सामने जमा हो गए.

आईजी ने वहां पहुंच कर वादा किया, ‘‘इन मजबूर और बेबस लोगों को जरूर इंसाफ मिलेगा. जो बीमार हैं, उन का इलाज कराया जाएगा. आरोपियों को हिरासत में लिया जा चुका है और उन के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी.’’

दूसरे दिन यह सारी कहानी आम हो गई. पुलिस डा. काशान के क्लिनिक पर भी पहुंची. वहां राख और हड्डियों के अलावा कुछ नहीं मिला. क्या हुआ? कैसे हुआ? क्यों हुआ? यह किसी भी मरीज को पता नहीं था.

नूर जब दूसरे दिन भी घर नहीं पहुंची तो सफदर, असगर और हुमा बेहद परेशान हो गए. डर से उन का बुरा हाल था. तीसरे दिन उन्हें नूर का फोन आया. उस ने उन्हें एक होटल में मिलने के लिए बुलाया.

नूर को सहीसलामत देख कर उन तीनों की हालत खराब हो गई. वे सब रोरो कर माफी मांगने लगे. नूर ने कहा, ‘‘तुम मेरी औलाद हो. मैं तुम्हें माफ करती हूं पर एक शर्त पर. कंपनी के 55 प्रतिशत शेयर मेरे पास रहेंगे और 45 प्रतिशत तुम तीनों के. अगर तुम्हें मंजूर है तो मैं घर भी तुम्हारे नाम कर देती हूं. नहीं तो अगली मुलाकात अदालत में होगी. सोचने के लिए 2 दिन का टाइम दे रही हूं.’’ यह सब सोहेल का प्लान था.

2 दिन बाद उन लोगों ने इनकार में जवाब दिया. क्योंकि 55 प्रतिशत शेयर नूर के पास होने से वह उन्हें किसी भी बात के लिए मजबूर कर सकती थी. नूर ने पूरी तैयारी की.

नूर ने सीनियर मनोचिकित्सक से दिमागी तौर पर सही होने का सर्टिफिकेट भी ले लिया. इस के बाद उस ने अदालत में केस डाल दिया. सोहेल पूरी तरह से उस के साथ था. उस के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. एक अच्छा वकील भी उस ने कर लिया.

उस दिन अदालत में बहुत हुजूम था. नूर बहुत अच्छे से तैयार हो कर आई थी. अदालत में एक घंटे बहस चलती रही. सबूतों और दलीलों पर जज ने फैसला सुनाया कि नूर पूरी तरह से सेहतमंद है और अपनी कंपनी बहुत अच्छे से चला सकती हैं. इसलिए तीनों औलादें फैक्ट्री से बेदखल की जाती हैं. एक बात और ध्यान रखी जाए कि नूर की शिकायत पर उन्हें जेल भेज दिया जाएगा.

तीनों नाकाम हो कर अदालत से बाहर निकले. पहले ही उन का इतना पैसा खर्च हो चुका था. वे पैसेपैसे को मोहताज हो गए. नूर सोहेल के साथ उस के फ्लैट में चली गई.

सोहेल ने भी अपने भाइयों को 5-5 करोड़ और घर दे कर अपने बिजनैस से अलग कर दिया. वे लोग तो इतने डरे हुए थे कि पता नहीं सोहेल उन के साथ क्या करेगा. पैसे ले कर खुशीखुशी वे अलग हो गए. दूसरे दिन शाम को चंद दोस्तों की मौजूदगी में नूर और सोहेल ने निकाह कर लिया. नूर और सोहेल की बरसों की आरजू पूरी हुई.

नूर को एक चाहने वाला जीवनसाथी मिल गया. नूर ने सोहेल से कहा, ‘‘सोहेल मेरे बच्चे अब बहुत भुगत चुके हैं. उन्हें बहुत सजा मिल चुकी है. इसलिए वह फैक्ट्री में उन के नाम कर के सुकून की जिंदगी जीना चाहती हूं.’’

फिर नूर ने उन्हें बुला कर फैक्ट्री उन के सुपुर्द कर दी. पुराने मैनेजर को बहाल कर दिया और शर्त लगा दी कि चौथाई आमदनी गरीब लोगों में बांटी जाएगी. अगर इस में जरा सी भी गलती हुई तो अंजाम के वे खुद जिम्मेदार होंगे. सारी बातें पक्के तौर पर लिखी गईं. नूर ने एक धमकी और दे दी कि कभी भी उस की और सोहेल की अननेचुरल डेथ होती है तो उस की जिम्मेदारी उन तीनों की ही होगी.

दूसरे दिन नूर और सोहेल हनीमून मनाने के लिए एक हिल स्टेशन की तरफ निकल गए. वहां पर नूर के मोबाइल में कुछ खराबी आ गई थी. माल रोड पर घूमते हुए दोनों एक मोबाइल की दुकान पर पहुंचे. दुकानदार को देख कर दोनों चौंक गए. दुकानदार का भी चेहरा उतर गया. वह जल्दी से बोला, ‘‘मैं आप की क्या खिदमत कर सकता हूं?’’

‘‘कोई अच्छा सा मोबाइल दिखाइए.’’ सोहेल ने कहा.

एक अच्छा सा मोबाइल पसंद कर के सोहेल ने पैसे देते हुए कहा, ‘‘आप हमारे एक पहचान वाले से बहुत मिल रहे हैं. क्या मैं आप नाम जान सकता हूं?’’

‘‘मेरा नाम नजीर हसन है.’’

नूर ने सोहेल का हाथ दबाते हुए कहा, ‘‘मेरा खयाल है यह वो नहीं है. आइए चलें. शायद आप को गलतफहमी हुई है.’’

सोहेल ने बाहर निकल कर कहा, ‘‘नूर वह राहिल था.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं. पर उसी ने तो हम सब को बचाया है. अब वह बहुत बदल गया है.’’ सोहेल ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘सच कह रही हो. उसे भी तो एक मौका मिलना चाहिए.’’

नूर और सोहेल पुरसकून हो कर वहां से चले गए एक लंबी और खुशहाल जिंदगी गुजारने के लिए.

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन  

सरकार राज : ये सरकारी राज है भैया, यहां सब चलता है

‘‘साहब ने कल 5 बजे पेयजल पर मीटिंग बुलाई है. नोट आज ही चाहिए, शाम को बात होगी,’’ पी.एस. का फोन था, जिसे सचिव महोदय ने उठाया था.

‘‘ठीक है, चीफ से बात कराओ,’’ उन्होंने अपने पी.ए. से कहा.

‘‘सर, लाइन पर हैं.’’

‘‘अरे, सुनो, सी.एम. को नोट चाहिए, लेटेस्ट, जो ग्राउंड वाटर गिरा है, जहां टे्रन लगानी पड़ेगी…वह जगह बताओ. कहां से पानी पहुंचाना होगा, रेलवे वालों से बात करनी है.’’

‘‘वह माथुर कहां है?’’

‘‘माथुर, बुलाता हूं, सर वह आज…’’

‘‘आज क्या…’’

‘‘इंडियाश्रीलंका मैच आ रहा है, सर. सब टी.वी. पर चिपके हैं.’’

‘‘यह दफ्तर है या घर. आप को चीफ रहना है या नहीं. लाइन में 7 हैं और यहां इस सीट पर 50. न आप रहेंगे न मैं. नोट ले कर तुरंत आइए,’’ और उन्होंने फोन रख दिया.

टीवी पर सहवाग खेल रहा था.

‘‘क्या हुआ? क्या चौका मारा…’’ उन्होंने सामने बैठे अपने सहयोगी सचिव भातखंडे से पूछा, जो आजकल अभाव अभियोग में अपनी यातना की अवधि को काट रहा था.

‘‘जले पर नमक इसे ही कहते हैं. क्या कह रहा था कि देशपांडे इस सीट पर 50 लगे हैं. वह मुझे भी शक की निगाह से देखता है,’’ वह बोले.

‘‘चलूं यार, उधर भी तो सी.एम. का मैसेज आ गया होगा.’’

‘‘वह शिकायतों पर नोट मंगा रहे होंगे,’’ उन्होंने उठते हुए कहा.

‘‘नहीं यार, यह तो सी.एम. की बैठक का चक्कर है. उधर बम भी फूटने लग गए हैं. जयपुर में फूटे, बंगलौर में फूटे, अब अहमदाबाद और दिल्ली में भी फूट गए हैं. फील गुड फैक्टर की तैयारी चल रही थी, लगता है कुछ नया सोचना होगा. गुड, बैड में बदल सकता है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, अभी से टेंपरेचर बहुत बढ़ गया है. जहां नार्थ में बाढ़ आ रही है, वहां साउथ के 2-3 जिलों में तो पानी की किल्लत अभी से आ गई है.’’

‘‘लेकिन तुम से पहले रमन ने तो सी.एम. को एडजस्ट कर रखा था, वह तो उस की बहुत तारीफ करते थे.’’

‘‘कौन से?’’

‘‘हो, हो…’’ रवि शंकर का आर्ट आफ लिविंग दोनों के चेहरे पर आ गया. पिछले ही दिनों तो भाषण सुन कर आए थे. दोनों नकली हंसी हंस रहे थे.

वह, सी.एम. भी गए और रमन भी. आजकल सतर्कता में जांच लिख रहा है.’’

‘‘पर तुम्हारी बात दूसरी है, तुम मेहनती हो.’’

‘‘शुक्रिया.’’

‘‘अरे, यह लो… फिर चौका लग गया, क्या कट था.’’

तभी पी.ए. अंदर आ गया.

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘वह पुराना नोट व फाइल जिसे आप ने ही अलमारी में रख छोड़ा?था. चाबी ड्राज में है, आप दे दें या मैं निकाल लूं.’’

‘‘यार, इसे तू ही रखा कर, रोजरोज अब तो यही चलेगा.’’

‘‘हां, बता, पहले यह काम कौन देख रहा था?’’ आत्मीयता से पूछा.

‘‘साहब, डी.एस. ही देखते थे, वह सीधे चीफ से बात कर फाइनल ड्राफ्ट  ले आते थे.’’

‘‘हां, तू जिस से काम से बचा रह… सामने से हट, इस समय सहवाग खेल रहा है… पर अब वह बात नहीं है,’’ तभी फोन की घंटी बजी.

‘‘अरे, तू लाइन सीधी दे आया क्या?’’

‘‘हां, साहब,’’ पी.ए. घबराया.

‘‘उधर और कोई नहीं है क्या?’’

‘‘सर, सब मैच देखने निकल गए हैं.’’

‘‘मरवाएगा क्या?’’

पी.ए. ने दौड़ कर फोन उठाया. उधर राजोरा था.

‘‘सी.एस. बात करेंगे.’’

‘‘सर, सी.एस. हैं.’’

‘‘अरे, टीवी की आवाज कम कर,’’ उन्होंने रिमोट का बटन दबाया.

‘‘हां, देशपांडे, नोट बन गया, मीटिंग 3 बजे रख लेते हैं. हां, तुम ने सहवाग का खेल देखा, तुम ठीक कह रहे थे, अब कुछकुछ दबादबा खेलता है.’’

‘‘सर…’’

‘‘क्या तुम मैच नहीं देख रहे? तुम्हारे कमरे में तो टी.वी. है. उस दिन चक्रवर्ती मुझ से बता रहा था.’’

‘‘सर, वह चीफ आफिस का था.’’

‘‘क्या, भेज दिया?’’

‘‘नहीं, सर.’’

‘‘ठीक है, ठीक है, काम करो, मैच देखोगे तो फिर नोट कैसे बनेगा… हां, तुम आज ही सी.ई., ग्रामीण को बार्डर डिस्ट्रिक्ट में भेज दो, वहां हैंडपंप ड्राइव शुरू कर दो, नोट में डाल देना, परिपत्र जारी करा दो.’’

‘‘सर, सहवाग बहुत अच्छा खेल रहा है, पर इस बार तो टीम लग रहा बम विस्फोटों से डर कर खेल रही है. सभी बहुत कांशियस हैं.’’

फोन कट गया था.

‘‘मैं चलता हूं यार,’’ भातखंडे उठते हुए बोला.

भातखंडे के बाहर जाते ही देशपांडे ने घंटी बजाई. चपरासी भीतर आया.

‘‘चाय ले आ, पर अब किसी को अंदर मत आने देना. कहना मीटिंग चल रही है और तू भी पी.ए. फाइल और नोट ले जा, कंप्यूटर पर सब भरा है, हेड आफिस से डाटा ले ले, फीड कर दे, प्रोगे्रस अपनेआप आ जाएगी. जो सी.ई. नोट लाएगा, उसे लगा दे, ज्यादा काम हुआ नहीं है. पिछली बार जो हैंडपंप ड्राइव चलाया था उस का सर्कुलर ले ले. डेट पहली तारीख की डाल दे. नीचे के जिले, जहां अभियान चल रहा है, यह भी डाल देना. ऐसा कर पुराने अभियान के परिपत्र में यह अभियान इन जिलों में आकस्मिकता प्लान के अंतर्गत आवश्यकता पड़ने पर जिला परिषद की तथा ग्राम पंचायतों की अभिशंसा पर आगे जारी रखा जा सकता है. पुराने परिपत्र में यह संशोधन अलग से निकाल दे.

‘‘ये तमाम आदेश पहले ही कंप्यूटर पर हैं, उस आदेश को जो संशोधित कर जारी करेगा, बस यहीं रोक कर देना. बाकी कापी यहीं रखना, भेजना मत, फाड़ देना. बस, वहीं जहां काम होना है. कापियों को जारी कर देना. डी.एस. से जारी करा देना. अपने यहां तो फाइल नंबर पड़ता है. वहां से चीफ इंजीनियर आएगा. वह पारी करता रहेगा. अब तू जा, तेरे चक्कर में कहीं मेरा मैच न निकल जाए. डी.एस. को यहां मत भेजना, तू ही चला जा…’’

देशपांडे ने रिमोट उठाया, कुरसी छोड़ी और दीवान पर आ कर पसर गए. तभी फोन की घंटी बजी.

‘‘अब कौन आ गया?’’

‘‘सर, छोेटे भैयाजी हैं.’’

‘‘हां, पुन्नू, क्या बात है?’’

‘‘पापा, शर्त लग रही है, आप तो ज्योतिषी हैं.’’

‘‘हां, अब यही काम बचा है, नौकरी तुम्हारे बाप करेंगे.’’

‘‘पापा, सौरी, वह तो आप कर ही रहे हैं? क्या मुरली 15 विकेट ले पाएगा?’’

‘‘बेटा आधों को हां…आधों को ना कह देना…’’

‘‘पापा, यह क्या?’’

‘‘बेटे, सब एकदूसरे का दिल जीत रहे हैं, तुम्हारी जयजय, हमारी जयजय. पर शर्त ज्यादा मत लगाना,’’ देशपांडे मैच देखने में व्यस्त हो गए.

3 बजने के पहले ही नोट कंप्यूटर से आ गया था. चीफ की रिपोर्ट भी थी तथा अभियान को आगे भी अभावग्रस्त क्षेत्रों में जारी रखने का परिपत्र भी लगा हुआ था. रेलवे से बात करने के लिए विशेष गाड़ी चलाने के लिए प्रस्ताव भी था. माथुर को इस काम के लिए लगा दिया है, आदेश भी था. माथुर खुद भी आ गया था. कमरे से बाहर आते ही देशपांडे ने डी.एस. के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘मरवा मत देना, पढ़ तो लिया है?’’

‘‘सर.’’

‘‘कोई टाइप की गलती तो नहीं?’’

‘‘नहीं, सर,’’ चीफ ने कहा, ‘‘मैं ने और माथुर ने पढ़ लिया है.’’

‘‘ठीक है,’’ तब तक सी.एस. का चैंबर आ गया था.

‘‘आज तुम्हारा मूड क्यों आफ है?’’ उन्होंने देशपांडे की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘नहीं, सर, काम तो काम ही है. सर…मैच तो आते हैं, अभी तो सीरीज चलेगी.’’

‘‘हां, हां…पर आज सहवाग बहुत कमजोर खेला, तुम घर पर जा कर चैनल पर देखना.’’

‘‘हां,’’ उन्होंने बजर दबाया, ‘‘चैंबर में पता करो. क्या स्कोर है? अब तो मैच हार गए होंगे,’’ उन्होंने पी.ए. को हिदायत दी.

‘‘चाय वहीं मंगा लेना, मैं जरा डिसकस कर उधर ही आता हूं. कुछ गरम भी मंगा देना…देशपांडे का आज मूड आफ है,’’ इतना कह कर वह महाराजा अंदाज में हंस रहे थे, ‘फील गुड फैक्टर, हो, हो, हो…’

‘‘नोट बहुत बढि़या है. सी.एम. पसंद करेंगे…उधर सी.ई. ग्रामीण है, अभियान चला रहा है, समाचारपत्रों में उस ने अच्छा कवरेज निकलवा दिया है. पुराना अफसर है. फाइनेंस से पैसा निकलवाने में दिक्कत नहीं आएगी.’’

‘‘सर, विधानसभा के सत्र के पहले ही न्यूज आ गई है, वहां भी हल्ला मचेगा, स्कीम मंजूर होने में दिक्कत नहीं आएगी. पर अब ला एंड आर्डर पर ही बहस रह गई है.’’

‘‘हां, कोई नया काम तो है नहीं. हम लोग 60 साल से यही तो करते आ रहे हैं. जब तापक्रम इतना बढ़ गया है तो पानी तो पिलाना ही होगा.’’

‘‘यस, यस देशपांडे, तुम ने मेहनत की है, गुड. हूं, बम विस्फोटों पर बहस होनी है, उस की भी मीटिंग है, तुम ने अच्छा याद दिलाया,’’ मुख्य सचिव कुछ सोचते हुए बोले.

सचिव ने डी.एस. की ओर देखा, उस ने फाइल समेटी, आंखों से सी.ई. को इशारा दिया, वे लोग बाहर निकल गए.

अंदर चैंबर में टीवी पर शोर मच गया था, नीचे गहरी लाल लाइन में ब्रेकिंग न्यूज आ रही थी. अहमदाबाद में मरने वालों की संख्या 40 हुई, घायलों की 100 से अधिक.

उधर शायद दिन भर की शर्मनाक हार के चित्र दिखाए जा रहे थे.

‘‘यार, ये हिंदुस्तानी खेलते ही क्यों हैं? ये लंबी पारी का खेल नहीं खेल सकते.’’

‘‘तभी तो हम वर्षों गुलाम रहे. वे आते हैं, बम फोड़ कर चले जाते हैं, हम कुत्ता ले कर पीछेपीछे दौड़ते हैं. दूसरे ही दिन फिर सब भूल जाते हैं,’’ बाहर दफ्तरी मूलचंद चपरासी पन्नालाल कह रहा था.

सरकारी डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के कारण भारत के करोड़ों यूजर्स साइबर फ्रौड के निशाने पर

सरकारी डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का जंजाल आम जनता के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है. आज के समय में सरकार ने पैन कार्ड और आधार कार्ड को एक जरूरी डाक्यूमेंट बना दिया है और कैशलैस पेमेंट कराने, बैंक अकाउंट खोलने, इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने, बीमा प्रीमियम जमा करने, , डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड बनवाने, 5 लाख से अधिक की गाड़ी, ज्वैलरी या प्रोपर्टी खरीदने, पेंशन और पीएफ, नौकरी, घर का रजिस्ट्रेशन हर जगह आधार कार्ड को मेंडेटरी बना दिया गया है और यह सरकारी नियम साइबर जालसाजों के लिए धोखाधड़ी का नया हथियार बन गया है.

जब भी किसी साइट या विभाग से आधार, पैन, अकाउंट नंबर मांग जाता है जनता उस पर विश्वास कर लेती है और जालसाजों के हाथ किसी के पैन कार्ड, आधार कार्ड की डिटेल्स के लगने का अर्थ है आइटेंडिटी की चोरी के साथसाथ सामने वाले के बैंक अकाउंट तक का सफाया हो जाना है जिस के लिए सरकार पूरी तरह से दोषी है.

ये सब ऐसे होता है

साइबर हैकर्स आप के पैन कार्ड आधार कार्ड की डिटेल्स का इस्तेमाल कर के खतरनाक एसएमएस भेजते हैं और पैनकार्ड से लोन लेने, बैंक अकाउंट खोलने, फर्जी क्रेडिट कार्ड बनवाने, औनलाइन टिकट बुक करवाने जैसे फ्रौड कर रहे हैं. साइबर ठग अपनी पहचान छिपाने के लिए आप के आधार कार्ड का गलत इस्तेमाल करते हैं. स्कैमर्स सरकारी अधिकारी, बैंक प्रतिनिधि या UIDAI (यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथौरिटी औफ इंडिया) का फर्जी अधिकारी बन कर लोगों को फोन कौल या टैक्सट मैसेज भेजते हैं और दावा करते हैं कि आप के आधार कार्ड में कुछ गलतियां हैं और आप से आप के आधार कार्ड का नंबर, बैंक डिटेल या OTP जैसी पर्सनल जानकारी मांगते हैं और आप की आइडेंटिटी या बैंकिंग संबंधी जानकारी का गलत इस्तेमाल कर के आप के बैंक अकाउंट को खाली कर देते हैं.

इस के अलावा स्कैमर्स नकली ईमेल भेज कर भी स्कैम करते हैं. साइबर ठग आप को नकली ईमेल भेजते हैं जो UIDAI सहित सरकारी वेबसाइट्स से मिलतीजुलती होती हैं और जनता उन साइट्स को सरकारी साइट्स समझ कर उन पर विश्वास कर लेती है और गलत सरकारी नीति और सरकार पर भरोसा उन्हें ले डूबता है.

आप ही सोचिए जब किसी व्यक्ति के पास आरबीआई से कोई कौल या मैसेज आएगा तो भोलीभाली जनता तो उस पर विश्वास करेगी ही. कैशलेस और पेपर लेस लेनदेन के चक्कर में जनता की जिंदगी भर की मेहनत की कमाई लूटी जा रही है.

आखिर किसी भी सरकारी वेबसाईट पर एड्रैस और नंबर दोनों क्यों नहीं है ? साथ ही सरकारी वेबसाइट्स पर ऐसे नंबर क्यों नहीं हैं जो सरकारी हों जिस से अगर जनता के पास कहीं और से किसी और नंबर से फ्रौड करने के उद्देश्य से कोई कौल या मैसेज आए तो बेचारी जनता अलर्ट रहे और फ्रौड से बच सके और अपनी जिंदगी भर की मेहनत की गाढ़ी कमाई लूटने से बचा सके.

और तो और जो नंबर साइट पर दिए जाते हैं वहां समय से कंप्लेन के बाद भी फ्रौड का पैसा वापिस नहीं मिलता और जनता की गाढ़ी कमाई साइबर फ्रौड की बलि चढ़ जाती है.

साइबर फ्रौड के डराने वाले आंकड़े

साइबर फ्रौड मामले में खुद भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी डेटा डराने वाला है. रिजर्व बैंक के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में औनलाइन पेमेंट फ्रौड के मामले 5 गुना बढ़े हैं. पिछले वित्त वर्ष में साइबर ठगों ने लोगों से 14.57 बिलियन यानी 1457 करोड़ रुपये की ठगी की है.

इंडियन साइबर क्राइम कोऔर्डिनेशन सेंटर (I4C) के मुताबिक साल 2024 में अप्रैल माह तक 7.40 लाख से ज्यादा साइबर फ्रौड की शिकायतें दर्ज की गईं हैं यानी कि हर दिन औसतन 7000 साइबर फ्रौड की शिकायतें मिली हैं और इन्हीं शुरुआती 4 महीनों में साइबर क्रिमिनल्स ने भारतीयों से 1750 करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी की है.

रजिस्टर्ड शिकायत कुल फ्रौड के मामलों का एक छोटा सा हिस्सा है. बहुत सारे लोग ऐसे भी होते हैं. जिन्हें यह जानकारी ही नहीं है कि उन्हें शिकायत कहां और किस तरह करनी है. साइबर फ्रौड के अधिकांश मामलों में ठग लोगों को आसानी से पैसे बनाने का लालच देते हैं

फ्रौड करने वाले करते हैं इन लोगों को टारगेट

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक लोगों में टैक्नोलौजी के इस्तेमाल की सही जानकारी नहीं होना भी साइबर अपराधियों की फ्रौड करने की राह को आसान बना रहा है. पिछले कुछ समय में डिजिटल ट्रांजैक्शन बहुत तेजी से बढ़ा है. शहरी इलाकों के साथ ही दूरदराज के गांवों में भी हर आयु वर्ग के बच्चे, बड़े और बुजुर्ग धड़ल्ले से डिजिटल बैंकिंग कर रहे हैं.

इन में से बहुत से लोगों को तकनीकी जानकारी नहीं होती और वे अनजाने में गोपनीय जानकारियां साझा कर देते हैं जिस के कारण साइबर फ्रौड का जोखिम ज्यादा बढ़ा है. साइबर अपराधी खास तौर पर उन लोगों को टारगेट करते हैं. जिन्हें टैक्नोलौजी की उतनी जानकारी नहीं होती है. ये लोग साइबर अपराधियों की जाल में आसानी से फंस जाते हैं और औनलाइन स्कैम के शिकार हो जाते हैं.

फर्जी एप्प से बढ़ रहे डिजिटल पेमेंट फ्रौड के मामले

भारत में लोग औनलाइन पेमेंट्स और इंटरनेट का इस्तेमाल तो खूब कर रहे हैं लेकिन अधिकांश लोगों को इस का सही इस्तेमाल करना नहीं आता है. यही वजह है कि लालच में आ कर लोग लोन ऐप्‍स, गेमिंग ऐप्स, डेटिंग ऐप्‍स, फर्जी ट्रेडिंग ऐप्‍स, इन्वेस्टमेंट एप्स जैसे फर्जी ऐप्स को डाउनलोड कर लेते हैं और साइबर क्रिमिनल्स के जाल में फंस जाते हैं.

अगर लोन एप्स की बात करें तो ये ऐप्स पहले लोगों को बेहद कम ब्याज पर रूपए उधार देते हैं फिर कुछ दिनों बाद ज्यादा ब्याज मांगते हैं और उन के मनमुताबिक ब्याज न देने पर आप का निजी डेटा लीक करने की धमकी देते हैं क्योंकि ऐप इंस्टाल करने के दौरान आप कैमरा, कान्टैक्ट, गैलरी और माइक्रोफोन जैसी पर्सनल जानकारी का एक्सेस उन्हें पहले ही दे चुके होते हैं. ब्याज रिकवरी के लिए ये ऐप्स गालीगलौज से ले कर ब्लैकमेलिंग करने तक कोई कसर नहीं छोड़ते.

यूपीआई फ्रौड के मामले

यूपीआई फ्रौड के मामलों में लोगों को पेमेंट एक्सैप्ट करने के लिए लिंक या क्यूआर कोड भेजे जाते हैं और सामने वाले के पास पास पेमेंट आने के बजाए उन के अकाउंट से ही पैसे काट लिए जा रहे हैं. 10 में से 4 लोगों के साथ ऐसे हो रहा है.

आमतौर पर निम्न कारणों की वजह से लोग ठगी का शिकार बनते हैं –

• किसी ऐप या फाइल को डाउनलोड कर मोटी कमाई का लालच दे कर
• लौटरी या गेम खेल कर आसानी से पैसे कमाने का झांसा दे कर
• महंगे सामानों पर भारी डिस्काउंट दिखा कर लिंक पर क्लिक करने का मैसेज भेज कर
• सस्ते दामों पर प्रोपर्टी खरीदने का लोगों को सपना दिखा कर
• क्रेडिट कार्ड या लोन देने के नाम पर लोगों से पर्सनल जानकारी ले कर
• सगे संबंधी या दोस्त बन कर OTP या बैंक डिटेल पूछ कर
• घर बैठे नौकरी का झांसा दे कर
• व्हाट्सऐप व टेलीग्राम पर व्यापार से जुड़ने का लिंक भेज कर

औनलाइन ठगी से कैसे बचें

• गुप्त ओटीपी व अपने 16 डिजीट के एटीएम नंबर को किसी को नहीं बताएं.
• व्हाट्सऐप ग्रुप में आए लिंक को कभी नहीं खोलें.
• भूलवश ओटीपी बता भी दिया तो 1930 नंबर पर तुरंत शिकायत दर्ज करवाएं.

आप के पसंदीदा फूड्स कहीं आप को बीमार न कर दे

क्या आप भी उन्हीं लोगों में से हैं जिन्हें अनहैल्दी फूड का स्वाद सब से ज्यादा अच्छा लगता है. अगर हां तो संभल जाएं क्योंकि अगर अपनी जीभ के स्वाद पर गए तो यह आप को पूरी तरह बीमार कर देगा. इन सभी चीजों को खाना अच्छा तो लगता है लेकिन सेहत की दृष्टि से परखे तो इन में पोषक तत्व जीरो के बराबर होते हैं.

इस से मोटापा, कैंसर, डायबिटीज, कोलेस्ट्रौल, पोषण की कमी, दिल के रोग, हाई ब्लड प्रेशर, कैल्शियम की कमी, खून की कमी, कुपोषण, त्वचा और बालों को नुकसान आदि गंभीर और जानलेवा बीमारियों का खतरा बढ़ता है. इसलिए आज हम आप को बता रहें हैं, उन अनहैल्दी फूड के बारे में जिन का सेवन कम से कम करना चाहिए ताकि हम स्वस्थ रह सकें.

चौकलेट आइसक्रीम मेरी सहेलियां

ये लाइनें बस किसी गाने में ही अच्छी लगती हैं असल जिंदगी में नहीं क्योंकि असल जिंदगी में इन्हें अपनी सहेलियां बनाना आप को काफी महंगा पड़ सकता है. इन चीजों में शुगर और कैलोरीज इतनी ज्यादा होती हैं कि न सिर्फ इस से वजन बढ़ेगा बल्कि ब्लड प्रेशर, शुगर जैसे कई बीमारियां भी आ कर घेर लेंगी. अगर आइसक्रीम का शौक है तो कभीकभार घर पर बना कर खा लें वो फिर भी कम नुकसान देगी.

केक, पेस्ट्री, कुकीज

यह चीजें मैदा और बहुत सारी शुगर को मिल कर बनी होती हैं. ये खाने में इतनी स्वादिष्ट होती हैं कि हम इन्हें बिना सोचेसमझे खाते ही जाते हैं और अपना वेट बढ़ाते जाते हैं. ये इतनी हलकी होती हैं कि एक साथ हम कई ज्यादा खा लेते हैं और पेट भी नहीं भरता. इस की जगह अगर खाना भी है तो खुद आटे या सूजी की कम शुगर वाली ये चीजें घर पर बना लीजिए.

शुगर ड्रिंक्स

गरमियों का मौसम आते ही लोग जम कर कोल्ड ड्रिंक्स पीते हैं. कोल्ड ड्रिंक्स से वजन तेजी से बढ़ता है. इस के अलावा पैक्ड जूस, फ्लैवर्ड ड्रिंक्स यहां तक कि फ्लैवर्ड एलोवेरा जूस जैसे ड्रिंक्स भी आप की सेहत के लिए अच्छे नहीं होते. इस से आप का वजन बढ़ना, इंसुलिन रेजिस्टेंस और फैटी लिवर का खतरा बढ़ जाता है.

व्हाइट चीनी का प्रयोग कम करें

बल्कि हम तो कहेंगे की दूध, चाय, आदि में व्हाइट चीनी को बिलकुल छोड़ दें क्योंकि यही सब से बड़ी बिमारियों की जड़ है. इस की जगह देसी खंड, गुड़, ब्राउन शुगर आदि चीजों का सेवन करें. ऐसा इसलिए क्योंकि चीनी में पोषण मूल्य जीरो के बराबर है और शुगर का खतरा बहुत ज्यादा है.

प्रोसेस्ड मीट

प्रोसेस्ड मीट से बनने वाली दूसरी चीजें जैसे हौट डोग, डेली मीट, बीफ जर्की, पेपरोनी और अन्य सभी चीजों से जितना संभव हो सके परहेज करना चाहिए. प्रोसेस्ड मीट में सोडियम और नाइट्रेट की मात्रा अधिक होती है, जो आप की सेहत के लिए काफी हानिकारक है. रिसर्च इंगित करता है कि इन मांसों का सेवन पेट के कैंसर के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि से जुड़ा हुआ है.

चाय के साथ ये न खाएं

चाय के शौकीन तो हम सभी हैं लेकिन मुश्किल तब हो जाती है जब हम चाय के साथ कुछ ऐसी चीजों का सेवन कर लेते हैं जो हमारी सेहत को नुकसान पहुंचाती है. चाय के साथ हल्दी का सेवन करना ठीक नहीं है. हल्दी को दूध में मिला कर पीना सही रहता है लेकिन उसे चाय में मिलाने से पेट में एसिडिटी की प्रौब्लम हो जाती है. चाय के तुरंत बाद ठंडा पानी या ठंडी चीजें नहीं खानी चाहिए. इस से डाइजेस्टिव प्रोसैस धीमा हो जाता है. कुछ लोग चाय में नीबू मिला कर पीते हैं लेकिन इस से चाय अम्लीय हो जाती है और शरीर में सूजन का कारण बनती है इसलिए ऐसा करने से बचें.

प्रोसेस्ड औयल का यूज न करें

प्रोसैस्ड औयल के प्रोसैस के दौरान उन्हें अधिक तापमान पर गरम किया जाता है, जिस से तेल औक्सीकरण हो जाता है. यही वजह है कि यह सेहत को काफी नुकसान पहुंचाता है. इस में सोडियम और फैट भी काफी ज्यादा होता है जिस से कई बिमारियों के हो जाने का खतरा रहता है जैसे कि मोटापा, हाई बीपी, कोलैस्ट्रौल का रिस्क हो सकता है.

रोज न खाएं ब्रेड

कई लोगों का हर रोज का नाश्ता ब्रेड ही होता है जोकि बिलकुल गलत है. व्हाइट ब्रेड तो वैसे भी मैदे की बनी होती है, जो न सिर्फ वजन बढ़ाती है बल्कि इस से पेट में भारीपन और एसिडिटी की समस्या भी होने लगती है. इसलिए हफ्ते में 2-3 बार ब्रेड खा सकते हैं हर रोज नहीं. साथ ही कोशिश करें कि मार्किट में मिलने वाली आटा, मल्टीग्रेन, ब्राउन ब्रेड खाएं, ये फिर भी व्हाइट ब्रेड की तुलना में ठीक होती हैं.

चिप्स और नमकीन का शौक है खतरनाक

कई लोग चिप्स और नमकीन के इस कदर शौकीन होते हैं कि वह लंच और डिनर तक में ये सब खा कर पेट भर लेते हैं. इन चीजों से पेट जितनी जल्दी भरेगा उतनी ही जल्दी खाली भी होगा. फिर जो ओवरईटिंग का दौर शुरू होगा उस से सिर्फ आप का नुकसान ही होगा. इन में फैट और सोडियम की मात्रा ज्यादा होती है, साथ ही कैंसर, ब्लड प्रेशर जैसे कई बिमारियों को भी न्योता दे देता है.

पास्ता, पेस्ट्री और पिज्जा

पास्ता, पेस्ट्री और पिज्जा जैसी चीजों ने हमारी डेली डाइट में दबे पांव अपनी जगह सिर्फ बना ही नहीं ली बल्कि फिक्स कर ली है. हफ्ते में एक दो बार तो हम इन्हें खा ही लेते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं इन में फाइबर बिलकुल नहीं होता, इस वजह से ये पेट में जा कर जम जाती है. जिस से कब्ज हो जाता है. यह सिर्फ और सिर्फ फैट बढ़ाने का काम करती है. अगर खाना भी है तो मल्टीग्रेन पास्ता और पिज्जा लाएं या फिर पिज्जा बेस घर पर आटे से बनाएं और इन में बहुत सारी वेजटेबल लगाएं. मात्रा में फाइबर हमारी बौडी में जाएं.

शराब

सभी जानते हैं कि शराब सेहत के लिए हानिकारक होती है. बहुत अधिक शराब कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है, जिस में लीवर सिरोसिस और लीवर फेलियर शामिल है. अत्यधिक शराब के सेवन से होने वाली अन्य समस्याओं में डिहाइड्रेशन, सिरदर्द और चिड़चिड़ापन शामिल हैं इसलिए इस का सेवन कर के खुद को बीमार न बनाएं.

प्लास्टिक की बोतल का पानी

हम सभी की आदत होती है की बाहर जाते ही बोतल बंद पानी खरीद कर पीने लगते हैं. लेकिन कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एक शोध में पाया गया है कि प्लास्टिक की बोतल में बिस्फेनोल ए नाम का बेहद हानिकारक कैमिकल होता है. जब प्लास्टिक की बातल गरम होती है तो इस में से बिस्फेनोल रिसने लगता है. इस तरह के पानी पीने से फर्टिलिटी कमजोर होने लगती है. इस से कई अन्य बीमारियों के साथ हार्ट की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. इसलिए प्लास्टिक की बोतल का पानी काम ही पिएं.

बहिष्कार : दलितों के घरों में भोजन करने का रिकौर्ड

‘‘महेश… अब उठ भी जाओ… यूनिवर्सिटी नहीं जाना है क्या?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘उठ रहा हूं…’’ इतना कह कर महेश फिर से करवट बदल कर सो गया.

दीपक अखबार को एक तरफ फेंकते हुए तेजी से बढ़ा और महेश को तकरीबन झकझोरते हुए चीख पड़ा, ‘‘यार, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है… रातभर क्या करते रहते हो…’’

‘‘ठीक है दीपक भाई, आप नाश्ता तैयार करो, तब तक मैं तैयार होता हूं,’’ महेश अंगड़ाई लेता हुआ बोला और जल्दी से बाथरूम की तरफ लपका.

आधा घंटे के अंदर ही दीपक ने नाश्ता तैयार कर लिया. महेश भी फ्रैश हो कर तैयार था.

‘‘यार दीपू, जल्दी से नाश्ता कर के क्लास के लिए चलो.’’

‘‘हां, मेरी वजह से ही देर हो रही है जैसे,’’ दीपक ने तंज मारा.

दीपक की झल्लाहट देख महेश को हंसी आ गई.

‘‘अच्छा ठीक है… कोई खास खबर,’’ महेश ने दीपक की तरफ सवाल उछाला.

दीपक ने कहा, ‘‘अब नेता लोग दलितों के घरों में जा कर भोजन करने लगे हैं.’’

‘‘क्या बोल रहा है यार… क्या यह सच?है…’’

‘‘जी हां, यह बिलकुल सच है,’’ कह कर दीपक लंबी सांस छोड़ते हुए खामोश हो गया, मानो यादों के झरोखों में जाने लगा हो. कमरे में एक अनजानी सी खामोशी पसर गई.

‘‘नाश्ता जल्दी खत्म करो,’’ कह कर महेश ने शांति भंग की.

अब नेताओं के बीच दलितों के घरों में भोजन करने के लिए रिकौर्ड बनाए जाने लगे हैं. वक्तवक्त की बात है. पहले दलितों के घर भोजन करना तो दूर की बात थी, उन को सुबह देखने से ही सारा दिन मनहूस हो जाता था. लेकिन राजनीति बड़ेबड़ों को घुटनों पर झुका देती है.

‘‘भाई, आप को क्या लगता है? क्या वाकई ऐसा हो रहा है या महज दिखावा है? ये सारे हथकंडे सिर्फ हम लोगों को अपनी तरफ जोड़ने के लिए हो रहे हैं, इन्हें दलितों से कोई हमदर्दी नहीं है. अगर हमदर्दी है तो बस वोट के लिए…’’

दीपक महेश को रोकते हुए बोला, ‘‘यार, हमेशा उलटी बातें ही क्यों सोचते हो? अब वक्त बदल रहा है. समाज अब पहले से ज्यादा पढ़ालिखा हो गया है, इसलिए बड़ेबड़े नेता दलितों के यहां जाते हैं, न कि सिर्फ वोट के लिए, समझे?’’

‘‘मैं तो समझ ही रहा हूं, आप क्यों ऐसे नेताओं का पक्ष ले रहे हैं. चुनाव खत्म तो दलितों के यहां खाने का रिवाज भी खत्म. फिर जब वोट की भूख होगी, खुद ही थाली में प्रकट हो जाएंगे, बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

दीपक बात को बीच में काटते हुए बोला, ‘‘सुन महेश, मुझे कल सुबह की ट्रेन से गांव जाना है.’’

‘‘क्यों? अचानक से… कौन सा ऐसा काम पड़ गया, जो कल जाने की बात कर रहा है? घर पर सब ठीक तो हैं न?’’ महेश ने सवाल दागे.

‘‘हां, सब ठीक हैं. बात यह है कि गांव के शर्माजी के यहां तेरहवीं है तो जाना जरूरी है.’’

महेश बोला, ‘‘दीपू, ये वही शर्माजी हैं जो नेतागीरी करते हैं.’’

‘‘सही पकड़े महेश बाबू,’’ मजाकिया अंदाज में दीपू ने हंस कर सिर हिलाया.

अगले दिन दीपक अपने गांव पहुंच गया. उसे देखते ही मां ने गले लगाने के लिए अपने दोनों हाथ बढ़ा दिए.

‘‘मां, पिताजी कहां हैं? वे घर पर दिख नहीं रहे?’’

‘‘अरे, वे तो शर्माजी के यहां काम कराने गए हैं. सुबह के ही निकले हैं. अब तक कोई अतापता नहीं है. क्या पता कुछ खाने को मिला भी है कि नहीं.’’

‘‘अरे अम्मां, क्यों परेशान हो रही हो? पिताजी कोई छोटे बच्चे थोड़ी हैं, जो अभी भूखे होंगे. फिर शर्माजी तो पिताजी को बहुत मानते हैं. अब उन की टैंशन छोड़ो और मेरी फिक्र करो. सुबह से मैं ने कुछ नहीं खाया है.’’

थोड़ी देर बाद मां ने बड़े ही प्यार से दीपक को खाना खिलाया. खाना खा कर थोड़ी देर आराम करने के बाद दीपक भी शर्माजी के यहां पिताजी का हाथ बंटाने के लिए चल पड़ा.

तकरीबन 15 मिनट चलने के बाद गांव के किनारे मैदान में बड़ा सा पंडाल दिख गया, जहां पर तेजी के साथ काम चल रहा था. पास जा कर देखा तो पिताजी मजदूरों को जल्दीजल्दी काम करने का निर्देश दे रहे थे.

तभी पिताजी की नजर दीपक पर पड़ी. दीपक ने जल्दी से पिताजी के पैर छू लिए.

पिताजी ने दीपक से हालचाल पूछा, ‘‘बेटा, पढ़ाई कैसी चल रही है? तुम्हें रहनेखाने की कोई तकलीफ तो नहीं है?’’

दीपक ने कहा, ‘‘बाबूजी, मेरी फिक्र छोडि़ए, यह बताइए कि आप की तबीयत अब कैसी है?’’

‘‘बेटा, मैं बिलकुल ठीक हूं.’’

दीपक ने इधरउधर देख कर पूछा, ‘‘सारा काम हो ही गया है, बस एकडेढ़ घंटे का काम बचा है,’’ इस पर पिता ओमप्रकाश ने हामी भरी. इस के बाद दोनों घर की तरफ चल पड़े.

रात को 8 बजे के बाद दीपक घर आया तो मां ने पूछा, ‘‘दीपू अभी तक कहां था, कब से तेरे बाबूजी इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘अरे मां, अब क्या बताऊं… गोलू के घर की तरफ चला गया था. वहां रमेश, जीतू, राजू भी आ गए तो बातों के आगे वक्त का पता ही नहीं चला.’’

मां बोलीं, ‘‘खैर, कोई बात नहीं. अब जल्दी से शर्माजी के यहां जा कर भोजन कर आ.’’

कुछ ही देर में गोलू के घर पहुंच कर दीपक ने उसे आवाज लगाई.

गोलू जोर से चिल्लाया, ‘‘रुकना भैया, अभी आया. बस, एक मिनट.’’

5 मिनट बाद गोलू हांफता हुआ आया तो दीपक ने कहा, ‘‘क्या यार, मेकअप कर रहा था क्या, जो इतना समय लगा दिया?’’

गोलू सांस छोड़ते हुए बोला, ‘‘दीपू भाई, वह क्या है कि छोटी कटोरी नहीं मिल रही थी. तू तो जानता है कि मुझे रायता कितना पसंद है तो…’’

‘‘पसंद है तो कटोरी का क्या काम है?’’ दीपक ने अचरज से पूछा.

गोलू थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, ‘‘दीपक, क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हम लोग हमेशा से ही ऊंची जाति वालों के यहां घर से ही अपने बरतन ले कर जाते हैं, तभी खाने को मिलता है.’’

‘‘हां पता है, लेकिन अब ये पुरानी बातें हो गई हैं. अब तो हर पार्टी के बड़ेबड़े नेता भी दलितों के यहां जा कर खाना खाते हैं.’’

गोलू ने बताया, ‘‘ऊंची जाति के लोगों के लिए पूजा और भोजन का इंतजाम बड़े पंडाल में है, ताकि छोटी जाति वालों को पूजापाठ की जगह से दूर बैठा कर खाना खिलाया जा सके, जिस से भगवान और ऊंची जाति वालों का धर्म खराब न हो.

‘‘दलितों को खाना अलग दूर बैठा कर खिलाया ही जाता है, इस पर यह शर्त होती है कि दलित अपने बरतन घरों से लाएं, जिस से उन के जूठे बरतन धोने का पाप ऊंची जाति वालों को न लगे,’’ इतना कहने के बाद गोलू चुप हो गया.

लेकिन दीपक की बांहें फड़कने लगीं, ‘‘आखिर इन लोगों ने हमें समझ क्या रखा है, क्या हम इनसान नहीं हैं.

‘‘सुन गोलू, मैं तो इस बेइज्जती के साथ खाना नहीं खाऊंगा, चाहे जो हो जाए,’’ दीपक की तेज आवाज सुन कर वहां कई लोग जमा होने लगे.

‘‘क्या बात है? क्यों गुस्सा कर रहे हो?’’ एक ने पूछा.

‘‘अरे चाचा, कोई छोटीमोटी बात नहीं है. आखिर हम लोग कब तक ऊंची जातियों के लोगों के जूते को सिर पर रख कर ढोते रहेंगे, क्या हम इनसान नहीं हैं? आखिर कब तक हम उन की जूठन पर जीते रहेंगे?’’

‘‘यह भीड़ यहां पर क्यों इकट्ठा है? यह सब क्या हो रहा है,’’ पिता ओमप्रकाश ने भीड़ को चीरते हुए दीपक से पूछा.

इस से पहले दीपक कुछ बोल पाता, बगल में खड़े चाचाजी बोल पड़े, ‘‘ओम भैया, तुम ने दीपू को कुछ ज्यादा ही पढ़ालिखा दिया है, जो दुनिया उलटने की बात कर रहा है. इसे जरा भी लाज नहीं आई कि जिन के बारे में यह बुराभला कह रहा है, वही हमारे भाग्य विधाता?हैं. अरे, जो कुछ हमारे वेदों और शास्त्रों में लिखा है, वही तो हम लोग कर रहे हैं.’’

‘‘चाचाजी…’’ दीपक चीखा, ‘‘यही तो सब से बड़ी समस्या है, जो आप लोग समझना नहीं चाहते. क्या आप को पता है कि ये ऊंची जाति के लोगों ने खुद ही इस तरह की बातें गढ़ ली हैं. जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उस का कोई धर्म या मजहब नहीं होता, वह मां के पेट से कोई मजहब या काम सीख कर नहीं आता.

‘‘सुनिए चाचाजी, जब बच्चे जन्म लेते हैं तो वे सब आजाद होते हैं, लेकिन ये हमारी बदकिस्मती है कि धर्म के ठेकेदार अपने फायदे के लिए लोगों को धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, संप्रदाय के नाम पर, भाषा के नाम पर बांट देते हैं.

‘‘क्या आप लोगों को नहीं पता कि मेरे पिताजी ने मुझे पढ़ाया है. अगर वे भी यह सोच लेते कि दलितशूद्रों का पढ़ना मना है, तो क्या मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा होता?

‘‘इसी छुआछूत को मिटाने के लिए कई पढ़ेलिखे जागरूक दलितों ने कितने कष्ट उठाए, अगर वे पढ़ेलिखे नहीं होते तो क्यों उन्हें संविधान बनाने की जिम्मेदारी दी जाती?’’

एक आदमी ने कहा, ‘‘अरे दीपक, तू तो पढ़ालिखा है, मगर हम तो जमाने से यही देखते चले आ रहे हैं कि भोज में बरतन अपने घर से ले कर जाने पड़ते हैं. जैसा चल रहा है वैसा ही चलने दो?’’

‘‘नहीं दादा, हम से यह न होगा, जिसे खाना खिलाना होगा, वह हमें भी अपने साथ इज्जत से खिलाए, वरना हम किसी के खाने के भूखे नहीं हैं. अब बहुत हो गया जुल्म बरदाश्त करतेकरते. मैं इस तरह से खाना नहीं खाऊंगा.’’

दीपक की बातों से गोलू को जोश आ गया. उस ने भी अपने बरतन फेंक दिए. इस से हुआ यह कि गांव के ज्यादातर दलितों ने इस तरह से खाने का बहिष्कार कर दिया.

‘‘शर्माजी, गजब हो गया,’’ एक आदमी बोला.

‘‘क्या हुआ? क्या बात है? सब ठीक तो है?’’

‘‘कुछ ठीक नहीं है. बस्ती के सारे दलित बिना खाना खाए वापस अपने घरों को जा रहे हैं. लेकिन मुझे यह नहीं पता कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं.’’

शर्माजी ने जल्दी से दौड़ लगा दी. दौड़ते हुए ही वे आवाज लगाने लगे, ‘‘अरे क्या हुआ, क्या कोई बात हो गई है, आप लोग रुकिए तो…’’

भीड़ में सन्नाटा छा गया. अब शर्माजी को कोई क्या जवाब दे.

‘‘देखिए शर्माजी…’’ दीपक बोला, ‘‘हम सब आप लोगों की बड़ी इज्जत करते हैं.’’

‘‘अरे दीपक, यह भी कोई कहने की बात है,’’ शर्माजी ने बीच में ही दीपक को टोका.

‘‘बात यह है कि अब से हम लोग इस तरह आप लोगों के यहां किसी भी तरह का भोजन नहीं किया करेंगे, क्योंकि हमारी भी इज्जत है. हम भी आप की तरह इनसान हैं, तो आप हमारे लिए अलग से क्यों कायदेकानून बना रखे हैं?

‘‘जब वोट लेना होता है तो आप लोग ही दलितों के यहां खाने को ले कर होड़ मचाए रहते हैं. जब चुनाव हो जाता है तो दलित फिर से दलित हो जाता है.’’

शर्माजी को कोई जवाब नहीं सूझा. वे चुपचाप अपना सा मुंह लटकाए वहीं खड़े रहे.

मिशन लव बर्ड्ज : दो दुखी प्रेमियों का क्या हो पाया मिलन

हम ने अपने दरवाजे के सामने खड़े अजनबी युवक और युवती की ओर देखा. दोनों के सुंदर चेहरों पर परेशानी नाच रही थी. होंठ सूखे और आंखों में वीरानी थी.

‘‘कहिए?’’ हम ने पूछा.

‘‘जी, आप के पास पेन और कागज मिलेगा?’’ लड़के ने थूक निगल कर हम से पूछा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. मगर आप कुछ परेशान से लग रहे हैं. जो कुछ लिखना है अंदर आ कर आराम से बैठ कर लिखो,’’ हम ने कहा.

दोनों कमरे में आ कर मेज के पास सोफे पर बैठ गए.

‘‘सर, हम आत्महत्या करने जा रहे हैं और हमें आखिरी पत्र लिखना है ताकि हमारी मौत के लिए किसी को जिम्मेदार न ठहराया जाए,’’ लड़की ने निराशा भरे स्वर में बताया.

‘‘बड़ी समझदारी की बात है,’’ हमारे मुंह से निकला…फिर हम चौंक पडे़, ‘‘तुम दोनों आत्महत्या करने जा रहे हो… पर क्यों?’’

‘‘सर, हम आपस में प्रेम करते हैं और एकदूसरे के बिना जी नहीं सकते. मगर हमारे मातापिता हमारी शादी कराने पर किसी तरह राजी नहीं हैं,’’ लड़के ने बताया.

‘‘और इसीलिए हम यह कदम उठाने पर मजबूर हैं,’’ लड़की निगाह झुका कर  फुसफुसाई.

‘‘तुम दोनों एकदूसरे को इतना चाहते हो तो फिर ब्याह क्यों नहीं कर लेते? कुछ समय बाद तुम्हारे मांबाप भी इस रिश्ते को स्वीकार कर  लेंगे.’’

‘‘नहीं, सर, हमारे मातापिता को आप नहीं जानते. वे हम दोनों का जीवन भर मुंह न देखेंगे और यह भी हो सकता है कि हमें जान से ही मार डालें,’’ लड़के ने आह भरी.

‘‘हम अपनी जान दे देंगे मगर अपने मातापिता के नाम पर, अपने परिवार की इज्जत पर कीचड़ न उछलने देंगे,’’ लड़की की आंखों में आंसू झिलमिला उठे थे.

‘‘अच्छा, ऐसा करते हैं…मैं तुम दोनों के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाऊंगा और मुझे भरोसा है कि इस मिशन में मैं जरूर कामयाब हो जाऊंगा. तुम मुझे अपनेअपने मांबाप का नामपता बताओ, मैं अभी आटो कर के उन के पास जाता हूं. तब तक तुम दोनों यहीं बैठो और वचन दो कि जब तक मैं लौट कर न आ जाऊं तुम दोनों आत्महत्या करने के विचार को पास न फटकने दोगे.’’

लड़के ने उस कागज पर अपने और अपनी प्रेमिका के पिता का नाम लिखा और पते नोट कर दिए.

हम ने कागज पर नाम पढ़े.

‘‘मेरे पिताजी का नाम ‘जी. प्रसाद’ यानी गंगा प्रसाद और इस के पिताजी ‘जे. प्रसाद’ यानी जमुना प्रसाद,’’ लड़के ने बताया.

‘‘और तुम्हारे नाम?’’ हम ने पूछा.

‘‘मैं राजेश और इस का नाम संगीता है.’’

राजेश ने अपनी जेब से पर्स निकाला और उस में से 500 का नोट निकाल कर हमारे हाथ पर रख दिया.

‘‘यह क्या है?’’ हम ने प्रश्न किया.

‘‘सर, यह आटो का भाड़ा.’’

‘‘नहींनहीं. रहने दो,’’ हम ने नोट लौटाते हुए कहा.

‘‘नहीं सर, यह नोट तो आप को लेना ही पड़ेगा. यही क्या कम है कि आप हमारे मम्मीडैडी से मिल कर उन्हें समझाबुझा कर राह पर लाएंगे,’’ लड़की यानी संगीता ने आशा भरी नजरों से हमारी आंखों में झांका.

हम ने नामपते वाला कागज व 500 रुपए का नोट जेब में रखा और घर के बाहर आ गए.

आटो में बैठेबैठे रास्ते भर हम राजेश और संगीता के मांबाप को समझाने का तानाबाना बुनते रहे थे.

उस कालोनी की एक गली में हमारा आटो धीरेधीरे बढ़ रहा था. सड़क के दोनों तरफ के मकानों पर लगी नेम प्लेटों और लेटर बाक्सों पर लिखे नाम हम पढ़ते जा रहे थे.

एक घर के दरवाजे पर ‘जी. प्रसाद’ की नेम प्लेट देख कर हम ने आटो रुकवाया.

‘‘जी. प्रसाद यानी गंगा प्रसाद… राजेश के डैडी का घर,’’ हम ने धीरे से कहा.

‘काल बैल’ के जवाब में एक 55-60 वर्ष के आदमी ने दरवाजा खोला. उन के पीछे रूखे बालों वाली एक स्त्री थी. दोनों काफी परेशान दिखाई दे रहे थे.

‘‘मैं आप लोगों से बहुत नाजुक मामले पर बात करने वाला हूं,’’ हम ने कहना शुरू किया, ‘‘क्या आप मुझे अंदर आने को नहीं कहेंगे?’’

दंपती ने एकदूसरे की ओर देखा, फिर हमें स्त्री ने अंदर आने का इशारा किया और मुड़ गई.

‘‘देखिए, श्रीमानजी, आप की सारी परेशानी की जड़ आप की हठधर्मी है,’’ हम ने कमरे में कदम रखते ही कहना शुरू किया, ‘‘अरे, अगर आप का बेटा राजेश अपनी इच्छा से किसी लड़की को जीवन साथी बनाना चाहता है तो आप उस के फटे में अपनी टांग क्यों अड़ा रहे हैं?’’

‘‘मगर मेरा बेटा…’’ अधेड़ व्यक्ति ने कहना चाहा.

‘‘आप यही कहेंगे न कि अगर आप का बेटा आप के कहे से बाहर गया तो आप उसे गोली मार देंगे,’’ हम ने बीच में उन्हें टोका, ‘‘आप को तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं. आप का बेटा और उस की प्रेमिका आत्महत्या कर के, खुद ही आप के मानसम्मान की पताका फहराने जा रहे हैं.’’

‘‘मगर भाई साहब, हमारा कोई बेटा नहीं है,’’ रूखे बालों वाली स्त्री ने रूखे स्वर में कहा.

‘‘मुझे मालूम है. आप गुस्से के कारण ऐसा बोल रही हैं,’’ हम ने महिला से कहा और फिर राजेश के डैडी की ओर मुखातिब हुए, ‘‘मगर जब आप अपने जवान बेटे की लाश को कंधा देंगे…’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा हरगिज न होगा… मुझे मेरे बेटे के पास ले चलो.. मैं उस की हर बात मानूंगा,’’ अधेड़ आदमी ने हमारा हाथ पकड़ा, ‘‘मैं उस की शादी उस की पसंद की लड़की से करा दूंगा.’’

‘‘जरा रुकिए, मैं भी आप के साथ चलूंगी,’’ रूखे बालों वाली स्त्री बिलख पड़ी, ‘‘आप अंदर अपने कमरे में जा कर कपड़े बदल आएं.’’

पति ने वीरान नजरों से अपनी पत्नी की ओर देखा फिर दूसरे कमरे में चला गया.

पतिपत्नी पर अपने शब्दों का जादू देख कर हम मन ही मन झूम पड़े.

‘सुनिए भैयाजी,’’ महिला ने हम से कहा, ‘‘सच ही हमारा कोई बेटीबेटा नहीं है. 30 वर्षों के ब्याहता जीवन में हम संतान के सुख को तरसते रहे. हम ने अपनेअपने सगेसंबंधियों में से किसी के बच्चे को गोद लेना चाहा मगर सभी ने कन्नी काट ली. सभी का एक ही खयाल था कि हमारे घर पर किसी डायन का साया है जो हमारे आंगन से उठने वाली बच्चे की किलकारियों का गला घोंट देगी.’’

‘‘आप सच कह रही हैं? हमें विश्वास नहीं हो रहा था.’’

महिला ने सौगंध खाते हुए अपने गले को छुआ और बोली, ‘‘इस  सब से मेरे पति का दिमागी संतुलन गड़बड़ा गया है. पता नहीं कब किस को मारने दौड़ पड़ें.’’

उधर दूसरे कमरे से चीजों के उलटनेपलटने की आवाजें आने लगीं.

‘‘अरे, तुम  ने मेरा रिवाल्वर कहां छिपा दिया?’’ मर्द की दहाड़ सुनाई दी, ‘‘मुझ से मजाक करने आया है…जाने न देना…मैं इस बदमाश की खोपड़ी उड़ा दूंगा.’’

हम ने सिर पर पांव रखने के बजाय सिर पर दोनों हाथ रख बाहर के दरवाजे की ओर दौड़ लगाई और सड़क पर खड़े आटो की सीट पर आ गिरे.

आटो एक झटके से आगे बढ़ा. यह भी अच्छा ही हुआ कि हम ने आटोरिकशा को वापस न किया था.

दूसरी सड़क पर आटो धीमी गति से बढ़ रहा था.

एक मकान पर जे. प्रसाद की पट्टी देख हम ने आटो रुकवाया.

‘‘जमुना प्रसादजी?’’ हम ने काल बैल के जवाब में द्वार खोलने वाले लंबेतगड़े मर्द से पूछा. उस के होंठ पर तलवार मार्का मूंछें और लंबीलंबी कलमें थीं.

‘‘जी,’’ उस ने कहा और हां में सिर हिलाया.

‘‘आप की बेटी का नाम संगीता है?’’

‘‘हां जी, मगर बात क्या है?’’ मर्द ने बेचैनी से तलवार मार्का मूंछों क ो लहराया.

‘‘क्या आप गली में अपनी बदनामी के डंके बजवाना चाहते हैं? मुझे अंदर आने दीजिए.’’

‘‘आओ,’’ लंबातगड़ा मर्द मुड़ा.

ड्राइंगरूम में एक सोफे पर एक दुबलीपतली सुंदर महिला बैठी टेलीविजन देख रही थी. हमें आया देख उस ने टीवी की आवाज कम कर दी.

‘‘कहो,’’ वह सज्जन बोले.

हमें संगीता के पिता पर क्रोध आ रहा था. अत: तमक कर बोले, ‘‘अपनी बेटी के सुखों को आग दिखा कर खुश हो रहे हो? अरे, जब बेटी ही न रहेगी तो खानदान की मानमर्यादा को क्या शहद लगा कर चाटोगे?’’

‘‘क्या अनापशनाप बोले जा रहे हो,’’ उस स्त्री ने टीवी बंद कर दिया.

‘‘आप दोनों पतिपत्नी अपनी बेटी संगीता और राजेश के आपसी विवाह के खिलाफ क्यों हैं. वे एकदूसरे से प्यार करते हैं, दोनों जवान हैं, समझदार हैं फिर वे आप की इज्जत को बचाने के लिए अपनी जान न्योछावर करने को भी तैयार हैं.’’

‘‘ए… जबान को लगाम दो. हमारी बेटी के बारे में क्या अनापशनाप बके जा रहे हो?’’ मर्द चिल्लाया.

‘‘सच्ची बात कड़वी लगती है. मेरे घर में तुम्हारी बेटी संगीता अपने प्रेमी के कांधे पर सिर रखे सिसकियां भर रही है. अगर मैं न रोकता तो अभी तक उन दोनों की लाशें किसी रेलवे लाइन पर कुचली मिलतीं.’’

‘‘ओ…यू फूल…शटअप,’’ मर्द ने हमारा कालर पकड़ लिया.

‘‘हमारी बेटी घर में सो रही है,’’ उस महिला ने कहा.

‘‘हर मां अपनी औलाद के कारनामों पर परदा डालने की कोशिश करती है और पिता की आंखों में धूल झोंकती है. लाइए अपनी बेटी संगीता को, मैं भी तो देखूं,’’ हम ने अपना कालर छुड़ाया.

सुंदर स्त्री सोफे से उठ कर दूसरे कमरे में चली गई और फिर थोड़ी देर बाद एक 8-9 साल की बच्ची की बांह पकड़े ड्राइंगरूम में लौटी. बच्ची की अधखुली आंखें नींद से बोझिल हो रही थीं.

‘‘यह आप की बेटी संगीता है?’’ हम ने फंसेफंसे स्वर में पूछा.

‘‘हां,’’ तलवार मार्का मूंछें हम पर टूट पड़ने को तैयार थीं.

‘‘और आप के घर का दरवाजा?’’ हमारे मुंह से निकला.

‘‘यह,’’ इतना कह कर लंबेतगडे़ मर्द ने हमें दरवाजे की ओर इस जोर से धकेला कि हम बाहर सड़क पर खड़े आटो की पिछली सीट पर उड़ते हुए जा गिरे.

कालोनी की बाकी गलियां हम खंगालते रहे. कालोनी की आखिरी गली के आखिरी मकान पर गंगा प्रसाद की नेम प्लेट देख हम ने आटो रुकवाया.

‘‘किस से मिलना है?’’ 10-12 वर्ष के लड़के ने थोड़ा सा दरवाजा खोल हम से पूछा.

‘‘राजेश के मम्मीपापा से,’’ हम ने छोटा सा उत्तर दिया.

‘‘आओ,’’ लड़के ने कहा.

ड्राइंगरूम में 60-65 वर्ष का मर्द पैंटकमीज पहने एक सोफे पर बैठा था. एक दूसरे सोफे पर सूट पहने, टाई बांधे एक और सज्जन विराजमान थे. उन के पास रखे बड़े सोफे पर 20-22 साल की सुंदर लड़की सजीधजी बैठी थी. उस के बगल में एक अधेड़ स्त्री और दूसरी ओर  एक ब्याहता युवती बैठी थी. इन सभी के चेहरों पर खुशी की किरणें जगमगा रही थीं. सभी खूब सजेसंवरे थे.

पैंटकमीज वाले सज्जन के चेहरे पर गिलहरी की दुम जैसी मूंछें थीं. सभी हंसहंस कर बातें कर रहे थे, केवल वह सजीधजी लड़की ही पलकें झुकाए बैठी थी.

‘‘पापा, यह आप से मिलने आए हैं,’’ लड़के ने गिलहरी की दुम जैसी मूंछों वाले से कहा.

सामने दरवाजे से 50-55 साल की भद्र महिला हाथों में चायमिठाई की टे्र ले कर आई और उस ने सेंटर टेबल पर टे्र टिका दी.

‘‘आप राजेश के पापा हैं?’’

‘‘हां, और यह राजेश के होने वाले सासससुर और उन की बेटी, यानी राजेश की होने वाली पत्नी…हमारी होने वाली बहू और साथ में…’’ गिलहरी की दुम जैसी मूंछों तले लंबी मुसकराहट नाच रही थी.

‘‘आप राजेश के पापा नहीं… जल्लाद हैं,’’ राजेश की मंगनी की बात सुन कर हमारा खून खौल उठा, ‘‘यह जानते हुए कि राजेश किसी और लड़की को दिल से चाहता है, आप उस की शादी किसी और से करना चाहते हैं? आप राजेश के सिर पर सेहरा देखने के सपने संजो रहे हैं और वह सिर पर कफन लपेटे अपनी प्रेमिका संगीता के गले में बांहें डाले किसी टे्रन के नीचे कट मरने या नदी में कूद कर आत्महत्या करने जा रहा है.’’

‘‘क्या बक रहे हो?’’ राजेश के पापा का चेहरा क्रोध से काला पड़ गया.

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो,’’ हम ने राजेश के पापा को कड़े शब्दों में जताया, ‘‘राजेश ने आप को सब बता रखा है कि वह संगीता से प्यार करता है और उस के सिवा किसी और लड़की को गले लगाने के बजाय मौत को गले लगा लेगा,’’ हम बिना रुके बोलते गए, ‘‘मगर आप की आंखों पर तो लाखों के दहेज की पट्टी बंधी हुई है.’’

हम थोड़ा दम लेने को रुके.

‘‘और आप,’’ हम राजेश के होने वाले ससुर की ओर पलटे, ‘‘धन का ढेर लगा कर क्या आप अपनी बेटी के लिए दूल्हा खरीदने आए हैं? आप की यह बेटी जिसे आप सुर्ख जोड़े और लाल चूड़े में देखने के सपने सजाए बैठे हैं, विधवा की सफेद साड़ी में लिपटी होगी.’’

‘‘भाई साहब, यह सब क्या है?’’ लड़की की मां ने राजेश के पापा से पूछा.

‘‘यह…यह…कोरी बकवास..कर रहा है,’’ राजेश के पापा ने होने वाली समधन से कहा.

‘‘हांहां… हमारा राजेश हरगिज ऐसा नहीं है…मैं अपने बेटे को अच्छी तरह जानती हूं,’’ चाय की टे्र लाने वाली महिला बोली, ‘‘यह आदमी झूठा है, मक्कार है.’’

‘‘आप लोग मेरे घर चल कर राजेश से स्वयं पूछ लें,’’ हम ने लड़की की मां से कहा फिर उस के पति की ओर देखा, ‘‘आप लोगों को पता चल जाएगा कि मैं झूठा हूं, मक्कार हूं या ये लोग रंगे सियार हैं.’’

‘‘राजेश तुम्हारे घर में है?’’ लड़की के डैडी ने पूछा.

‘‘जी हां,’’ हम ने गला साफ किया, ‘‘वह अपनी प्रेमिका संगीता के साथ आत्महत्या करने जा रहा था कि मैं ने उन्हें अपने घर में बिठा कर इन को समझाने चला आया.’’

‘‘मगर राजेश तो इस समय अपने कमरे में है,’’ राजेश के पिता ने अपने समधीसमधन को बताया.

‘‘बुलाइए…अभी दूध का दूध पानी का पानी हो जाता है,’’ हम ने राजेश के डैडी को चैलेंज किया.

‘‘राजेश,’’ राजेश के डैडी चिल्लाए.

‘‘और जोर से पुकारिए…आप की आवाज मेरे घर तक न पहुंच पाएगी,’’ हम ने व्यंग्य भरी आवाज में कहा.

‘‘क्या हुआ, डैडी?’’ पिछले दरवाजे की ओर से स्वर गूंजा.

एक 27-28 वर्ष का युवक, सूट पहने, एक जूता पांव में और दूसरा हाथ में ले कर भागता हुआ कमरे में आया.

‘‘आप इतने गुस्से में क्यों हैं, डैडी?’’ युवक ने पूछा.

‘‘राजेश, देखो यह बदमाश क्या बक रहा है?’’

‘‘क्या बात है?’’ नौजवान ने कड़े शब्दों में हम से पूछा.

‘‘त…तुम… राजेश?’’ हम ने हकला कर पूछा, ‘‘और यह तुम्हारे डैडी?’’

‘‘हां.’’

‘‘फिर उस राजेश के डैडी कौन हैं?’’  हमारे मुंह से निकला.

और फिर हम पलट कर बाहर वाले दरवाजे की ओर सरपट भागे.

‘‘पकड़ो इस बदमाश को,’’ राजेश के डैडी चिंघाड़े.

‘‘जाने न पाए,’’ राजेश के होने वाले ससुर ने अपने होने वाले दामाद को दुत्कारा.

राजेश एक पांव में जूता होने के कारण दुलकी चाल से हमारे पीछे लपका.

हम दरवाजे से सड़क पर कूदे और दूसरी छलांग में आटोरिकशा में थे.

आटो चालक शायद मामले को भांप गया था और दूसरे पल आटो धूल उड़ाता उस गली को पार कर रहा था.

अपने घर से कुछ दूर हम ने आटोरिकशा छोड़ दिया. हम ने 500 रुपए का नोट आटो ड्राइवर को दे दिया था. कुछ रुपए तो आटो के भाड़े में और बाकी की रकम 3 स्थानों पर जान पर आए खतरों से हमें बचाने का इनाम था.

हम भारी कदमों से अपने घर के दरवाजे पर पहुंचे. पूरा रास्ता हम राजेश और संगीता को अपने मिशन की नाकामी की दास्तान सुनाने के लिए उपयुक्त शब्द ढूंढ़ते आए थे. हमें डर था कि इतनी देर तक इंतजार की ताव न ला कर उन ‘लव बर्ड्ज’ ने आत्महत्या न कर ली हो.

धड़कते दिल से हम घर के बंद दरवाजे के सामने खड़े हो कर अंदर की आहट लेते रहे.

घर के अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी. मौत की सी खामोशी थी. जरूर उन प्रेम पंछियों को हमारी असफलता का भरोसा हो गया था और उन्होंने मौत को गले लगा लिया होगा.

धड़कते दिल से काल बेल का बटन पुश करने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो हम ने दरवाजे पर जोरदार टक्कर मारी और फिर औंधे मुंह हम कमरे में जा पड़े.

दरवाजा बंद न था.

हम ने उस प्रेमी जोड़े की तलाश में इधरउधर नजरें दौड़ाईं. मगर वे दोनों गायब थे. साथ ही गायब था हमारा नया टेलीविजन, वी.सी.आर. और म्यूजिक सिस्टम.

हम जल्दी से उठ खडे़ हुए और स्टील की अलमारी की ओर लपके. अलमारी का लाकर खुला हुआ था और उस में रखी हाउस लोन की पहली किस्त की पूरी रकम गायब थी…

हमारी आंखों तले अंधेरा छा गया. जरूर वह ठगठगनी जोड़ी बैंक से ही हमारे पीछे लग गई थी.

उस प्रेमी युगल की गृहस्थी बसातेबसाते हमें अपनी गृहस्थी उजड़ती नजर आ रही थी क्योंकि आज शाम की गाड़ी से हमारे नए मकान के निर्माण का सुपरविजन करवाने को लीना अपने बलदेव भैया को साथ ले कर आ रही थी.

स्वर्ग : अपराधबोध से आजादी

‘स्वर्ग’ के एयरपोर्ट से निकलते ही चारों तरफ बिखरी बर्फ ने मन मोह लेने वाला स्वागत किया. यदि मेरी जगह कोई और होता तो जरूर उस के मुख से विस्मय की चीख निकलती और वह इन नजारों को देख हतप्रभ रह जाता. लेकिन अफसोस, मेरी जगह मैं ही था और मेरे लिए इस जगह के माने कुछ और ही थे. मैं ने पहले ही हर विस्मित करने वाले दृश्य को सिरे से नकारने का फैसला कर लिया था.

कुछ जगहों की अप्रतिम सुंदरता भी वहां हुई दुर्घटनाओं को कभी ढक नहीं सकती.

हालांकि निश्चय तो मैं ने यह भी किया था कि कभी दोबारा कश्मीर नहीं आऊंगा पर मां की इच्छा थी कि फिर से कश्मीर देखना है. उन्होंने जब पहली बार यह बात कही तो मैं चौंक गया था और देर तक उन के चेहरे को पढ़ता रहा था. मुझे यकीन था कि इस बात का जिक्र करते वक्त मैं ने उन की आंखों में एक क्षणिक चमक देती थी, ऐसी चमक जो अवश्य किसी ऐसे कैदी की आंखों में होती होगी जिसे बीते कई अरसों से कोई बंधन जकड़े हो और बहुत जद्दोजेहद के बाद वह कैदी अपनी बेडिय़ां तोड़ आजाद होने को तैयार हुआ हो.

जिस जगह के नाम से हम इतने सालों बचते रहे और जिस का कोई जिक्र भी करे तो हम सब कांप जाते, उस जगह का नाम यों बेबाकी से, बिना विचलित हुए उन्हें लेते देख पूरे शरीर में एक बिजली सी कौंध गई थी. पर मां के सामने विरोध करने की हिम्मत मैं नहीं जुटा पाया पाया था.

वजह शायद यह कि इसे हम बीते काफी समय में मां द्वारा प्रकट की गई पहली इच्छा कहें तो गलत नहीं होगा क्योंकि मां ने पिताजी की मौत के बाद अपनी डिमांड रखना बंद कर दिया था, जोकि पहले उन की क्षमता का मानक और पिताजी के लिए उन का पूर्ण समर्पित प्रेम लगता था, पर समय के साथसाथ पहले यह उन को पहुंचे सदमे का संघर्ष, और फिर हम पांच भाईबहनों को अपनी विफलता नजर आने लगी.

सब से बड़ा बेटा होने के कारण मेरी जिम्मेदारियों का चोगा कुछ अधिक लंबा था, इसलिए मेरी नजर में यह भी था कि धीरेधीरे मां इंसान से अधिक हाड़मांस का बना एक व्यवस्थित और संतुलित पुतला नजर आने लगी हैं. उन के सारे भाव सतही होने लगे थे जिस बात से केवल मैं अनभिज्ञ नहीं था. घर के बाकी सभी सदस्य अब इस बाबत खुश थे कि मां ने आखिरकार अपनी कोई दिली ख्वाहिश जाहिर की थी. और क्योंकि मां की यह भी शर्त थी कि सफर में सिर्फ मां और मैं जाएंगे, इसलिए सभी मुझे बहलाफुसला कर मां के साथ जाने के लिए तैयार कर रहे थे. कौनकौन सी जगहें हैं जिन्हें हम देखेंगे, यह सब मां ने पहले ही सुयोजित कर लिया था.

हम एयरपोर्ट से सीधे पहलगाम गए, फिर वहां से सोनमर्ग. दिसंबर का महीना था. हर जगह ताजी बर्फ बिखरी थी. सफेदी में नहाए कश्मीर के जादू से मंत्रमुग्ध न होने वाले मेरे जैसे कोई बिरले ही होते होंगे.

हम ने दोनों ही जगहों पर केवल 2 काम किए थे- पहला, एक बैंच ढूंढना और उस पर बैठ पूरे दिन पहाड़ों को देखना हालांकि जैसे ही मुझे लगता कि नजारों की खूबसूरती मुझे चकाचौंध कर रही है, मैं अपने जेहन में पुरानी घटना को ताजा कर लेता. दूसरा, अपने आसपास तरहतरह के सैलानियों के झुरमुट को घोड़े वालों को स्लेजवालों से भावतोल करते देखना और उन की जिंदगियों के बारे में अनुमान लगाना. हां, मैं ने एक तीसरा काम भी किया था, दूर पहाड़ों के शून्य में देखतेदेखते कभी मैं यह भी अनुमान लगाने की कोशिश करता कि मां इस वक्त क्या सोच रही होगी, क्या वजह होगी कि वह कश्मीर आना चाहती थी, कहीं वह पिताजी की याद में यहां से…?

नहीं, मैं ने खुद को झकझोरा, मां यों हम सब को छोड़ कर थोड़ी… तीसरा और आखिरी दिन गुलमर्ग जाने का था. मैं ने तय किया कि मन में कुलबुला रहे सवाल को आज आवाज दी जानी चाहिए. सोनमर्ग से गुलमर्ग जाने का रास्ता लगभग साढ़े 3 घंटे का था. बीते दिनों की तरह गाड़ी में बैठ पहला आधा घंटा मां और मैं तरहतरह की बातें करते रहे. मां अपने बचपन के, परिवार के, पिताजी के कई किस्से सुनाती और फिर जब थक जाती तो खिडक़ी से बाहर चलते नजारों को देखने लगती. आज भी यही हुआ.

पर मैं सवाल करने के लिए सही मौके की तलाश में था. जरा हिम्मत होती तो शब्द जैसे भीतर ही जमे रह जाते. मैं मां को देखता तो अचानक एक रुलाई अंदर उमड़ती, बिना किसी कारणवश.

मैं सोचता रहा और हम गुलमर्ग पहुंच गए.

‘‘यहां हम केवल बैंच पर नहीं बैठेंगे, फेज टू तक का गोंडोला भी करेंगे,’’ मां ने कहा.

मैं आतंकित हो उठा. शायद मुझे जिस बात का संदेह था… मैं मां से इनकार करता कि मां ने फिर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो.’’

जैसे मां जानती थी मैं क्या सोच रहा हूं. वह सब कुछ जो मेरे भीतर चल रहा था, सारी ऊहापोह वह मेरे आरपार देख सकती थी जैसे मैं पारदर्शी था.

मां की इच्छा रखनी थी और अगले ही क्षण मैं ने खुद को गोंडोला में पाया.

फेज 2 तक का सफर बहुत हसीं था. स्वर्ग (जिस की कल्पना हम सब करते हैं) का नूर यहां बरसता था. मगर मेरे लिए नहीं.

नहीं, मैं ने नजारों को ललकारा- देखो, मैं तुम से प्रभावित नहीं हूं. मेरे लिए तुम स्वर्ग नहीं, नरक (जिस की कल्पना हम सब जैसी भी करते हैं) हो.

फेज 2 पर उतर कर अब मैं और मां फिर उस गहरी घाटी के आमनेसामने थे. इतना साहस मुझ में नहीं था कि मैं फिर वहीं कदम रखूं. वहीं जहां वह हृदयविदारक घटना हुई थी.

पर मां मेरा हाथ पकड़ मुझे वहां ले गई और कुछ पन्ने मुझे देने लगी. मां की आंखों में फिर वह चमक थी.

‘‘ये कमलजीत की अस्थियां हैं. इन्हें यहीं से घाटी की फिजाओं के सुपुर्द कर दो.’’

मैं नहीं समझा, मां का क्या मतलब था और इस से पहले कि मैं कोई सवाल करता, उन के फिर कहने पर मैं ने उन पन्नों को पढऩा शुरू किया.

‘‘मैं नहीं जानता तुम्हें यह खत कब मिलेगा, पर जब भी तुम इसे ढूंढ लो, तो पढऩे के बाद इस का क्या करना है, यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ता हूं.

“कोई खास तनाव नहीं है. वही रोजमर्रा की परेशानियां जो अमूमन सभी को झेलनी पड़ती हैं. पर एक बोझ है जिस का वजन इतने सालों उठा कर मेरे कंधे उक्ता गए हैं. हां, लेकिन खुशियां बहुत हैं. गिनूं तो शायद उंगलियां कम पड़ जाएं. शायद तुम हंसो कि यह कैसा सिरफिरापन है,

कोई अनगिनत खुशियों के कारण थोड़ी अपनी इच्छा से दुनिया छोड़ता है. पर तुम जानती हो मुझे हमेशा से इस बात से नफरत रही कि आत्महत्या को केवल दुनिया से हारे गुए लोगों से जोड़ा जाता है. देखो, मैं यह बात बदलने वाला हूं, ऐसा व्यक्ति और जी कर क्या करेगा जिस ने वह सब पा लिया हो जितना वह पा सकता है.

“और कहूंगा कि दुनिया में मुझ से बड़े सनकी भरे हैं. हां, चलो, तुम इसलिए तो मुसकराई कि मैं ने यह माना की मैं सनकी हूं.

“जब जिंदगी इतनी भरीपूरी रही हो, कामयाबी के उच्चतम शिखर पर मां ने मुझे देखा हो, कदम से कदम मिला कर चलने वाली पत्नी हो, 5 ऊंचे ओहदों पर पहुंची औलादें हों, उन की अपनी स्वस्थ औलादें हों तो दुनिया को हराने का पागलपन तो भीतर आ ही जाएगा.

“देखो, मैं ने फिर फुजूल बातें शुरू कर दीं. तुम्हारे सामने ये सब बातें दोहराना फुजूल ही तो है. तुम ने तो ये सारे दिन मेरे साथ देखे हैं, जिए हैं.

“पर अब जो मैं चला जाऊंगा, एक बात है जो मैं कन्फैस करना चाहता हूं. मुझे पता है, तुम्हें कई बार शक हुआ और शायद वह शक यकीन में भी बदला हो, पर तुम ने मुझ से कोई सवाल नहीं किया. मैं ने कई दफा सोचा था कि यदि तुम मुझ से पूछोगी तो मैं क्या जवाब दूंगा, कैसे अपनी मजबूरियां गिनाऊंगा, गिड़गिड़ाऊंगा, कितनी मिन्नतें करूंगा. पर तुम ने मुझे यह मौका नहीं दिया. मुझे इस बात का अंदाजा था कि तुम्हें लगता रहा कि सवाल के जवाब में मैं तुम्हें छोड़ दूंगा. पर नहीं, तुम मुझे इस से बेहतर जानती हो. मैं तुम्हें जीतेजी कभी नहीं छोड़ सकता था. पत्नी का दर्जा प्रेमिका से ऊंचा रहता है.

“और अब तुम्हारे सवाल न करने के बावजूद मैं तुम्हें जवाब देना चाहता हूं. परिवार, बच्चों, घरबार से परे केवल हम दोनों के हिस्से का जवाब.

तुम में कोई कमी नहीं है. कोई ऐसी बात नहीं जिस पर मैं उंगली रख सकूं और कहूं कि इस कारण मैं किसी दूसरी औरत के चक्कर में पड़ा.

तुम ने मुझे अपना परमेश्वर माना और मुझ से बेइन्तहा निश्च्छल प्रेम किया. यहां तक कि मुझे हैरत होती है कि  मेरी जिंदगी में तुम कैसे लिखी गईं. सब हमें देखते और रश्क करते कि शादी तो इन की तरह निभाई जाती है. और मुझे लगता, मैं भी उन देखने वालों का हिस्सा हूं और सिर्फ तुम से कह रहा हूं कि शादी तो इन की तरह निभाई जाती है.

“पर तुम जानती हो कि हम इतने सालों एक झूठ जीते रहे. मेरा झूठ. जिस ने तुम्हारे सच को भी मैला कर दिया. इस बोझ ने मेरे अंदर इतनी ग्लानि भर दी है कि मैं इस घाव को रोज कुरेदता रहा हूं और इस का खुरंट खुद पर मलता रहा.

“लेकिन अब मैं तुम्हें खुद से आजादी देना चाहता हूं, यह भी शायद मेरा ही स्वार्थ है और मैं तुम्हें नहीं, खुद को एक अपराधबोध से आजाद कर रहा हूं.

“पत्नी के रूप में मैं ने हमेशा तुम से प्रेम किया. और मैं हर जन्म में तुम सी पत्नी मांगा करता था, पर यह तुम्हारे साथ अन्याय है.

“इसलिए अब मैं अपनी आखिरी इच्छा में मांगता हूं. हर जन्म में तुम्हारे लिए ऐसा हमसफर जो तुम से इतना ही प्यार करे जितना तुम मुझ से करती हो, और सिर्फ तुम से ही प्यार करे.”

“मां, यह खत आप को कब और कहां मिला?

“आप और पिताजी तो एकसाथ हमेशा इतने खुश थे…

“यह दूसरी औरत…?”

ये सवाल बेमानी लगते हुए मेरे भीतर ही घुट गए और अचानक सबकुछ खुदबखुद सैंस बनाने लगा.

मेरे दिमाग ने मेरे साथ खेल किया और पुरानी यादें किसी चलचित्र की भांति सामने चलने लगीं.

लेकिन यह क्या? स्मृति कुछ उलट थी और मेरी आंखें मुझे धोखा दे रही थीं. पिताजी मेरे साथ बैठे थे पर मां कहीं नहीं थी जबकि आसपास के लोग चिल्ला रहे थे.

‘अरे, मैडम का पैर फिसल गया. बचाओ मैडम को. अरे, मैडम खाई में गिर रही है.’

मैं ने डर के कारण अपनी आंखें भींच लीं. और मां को अपना हाथ पकड़ते महसूस किया.

लेखिका – जूही

सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की होड़ में यूट्यूब पर अश्लील भोजपुरी गाने परोसते गायक

यूट्यूब पर भोजपुरी गानों में अश्लीलता परोसने वाले अगर गायकों और गीत के बोल की बात करें तो खेसारी लाल यादव का गीत निम्बू खरबूजा भईल, पलंग सागवान के और गायक पवन सिंह अपने गीतों छलकत ‘हमरो ई जवनिया राजा’, ‘चाची के बाची सपनवां में आती है’, ‘राते दिया बुता के पिया क्या क्या किया’ भोजपुरी गाने के लिए यूजर्स के निशाने पर आ चुके हैं और ट्रोल भी हो चुके हैं.

इसी लिस्ट में गायक राकेश मिश्रा अपने सुपरहिट गीत ‘राजा तनी जाई न बहरिया’ के लिए उन्हें ट्रोल किया गया और कहा गया था कि इस गाने के बोल अश्लील हैं.

गायिकाओं की बात करें तो अंतरा सिंह, प्रियंका की गिनती भी भोजपुरी इंडस्ट्री में अश्लील गाना गाने वाले लोगों में होती है और वह भी कई बार उन के गाने के बोल को ले कर ट्रोल हो चुकी हैं.

भोजपुरी युवा दिलों पर राज करने वाले सिंगर व एक्टर अरविंद अकेला कल्लू भी ‘गली में आज चांद नहीं माल आईल बा’ भी इसी लिस्ट का हिस्सा है.

इन अश्लील भोजपुरी गीतों को पसंद करने वालों में सब से नंबर वन पर ट्रक और ट्रैक्टर के ड्राइवर रहते हैं. ड्राइवर ऐसे गाने को खुद तो सुनते ही हैं. ट्रक-ट्रैक्टर पर लगे स्पीकर को तेज आवाज में बजा कर दूसरे को भी सुनाते हैं. इन की हरकतों से सब से अधिक महिलाएं और लड़कियां परेशान होती हैं. कई बार तो आटो वाले भी कम नहीं होते. वह भी महिला यात्रियों को देख गंदे गाने बजाने लगते हैं.

ऐसे ही होली के मौके पर अश्लील भोजपुरी गानों की यूट्यूब पर भरमार है. और तो और सिंगर खुद इन गीतों के लिंक लोगों के साथ शेयर कर रहे हैं. ये गायक भाभी से ले कर साली तक को जोड़ कर अश्लील गाना बनाते हैं. इन्हीं गानों के चलते भाभी और साली को सैक्सुअलाइज कर दिया गया है. इन्होंने जैसे परमिशन दे दी है कि कोई किसी की साली है या भाभी है तो उसे छेड़छाड़ करने का फ्री पास है.

कई गीतों के तो ऐसेऐसे बोल हैं कि सुन कर किसी का भी दिमाग चकरा जाए – जैसे ‘पटक के * देम’, ‘करुआ तेल’, ‘आग लग जाता * में’, ‘चाटा तो चाटा * से न काटा’. पुरुष सिंगर तो अश्लील गीत गाने में शुरू से ही आगे रहे हैं लेकिन अब महिला सिंगर भी पीछे नहीं हैं और वे भी जम कर अश्लील भोजपुरी गीत गा रही हैं. इन के गाने अकसर महिलाओं के गुप्तांगों पर केंद्रित होते हैं. गाने जिस में डोढ़ी, कमर, गाल, होंट, ब्लाउज, पेटीकोट, जांघ इत्यादि आते ही हैं. भाभी और साली के रिश्ते ऐसे घसीटे जाते हैं जैसे ये रिश्ते इसीलिए बने हैं.

दोषी सिर्फ निचला वर्ग नहीं

इन अश्लील गीतों को बढ़ावा देने में सिर्फ निचले वर्ग को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि इन गीतों को समाज का हर तबका देख रहा है. जैसे नम्रता मल्ला का गाना ‘चढ़ल जवानी रसगुल्ला’ को 19 करोड़ लोगों ने यूट्यूब पर देखा है. शिवानी सिंह और पारुल यादव का ‘सेंट गमकउआ’ गाने को लगभग 35 करोड़ लोगों ने देखा है. अब ये गाने हर कोई देख रहा है.

निचला तबका इन अश्लील गीतों को देखने के लिए सिर्फ इसलिए बदनाम होता है क्योंकि इन गीतों को वह सब के सामने खुलेपन में सुनता है लेकिन यूट्यूब पर इन फूहड़ और अश्लील भोजपुरी गीतों को करोड़ों की संख्या में लोग देखते हैं.

लोगों की पसंद हैं ये अश्लील गीत

भोजपुरी गीतों के अश्लील होने के पीछे पहला कारण है इसे सुनने वाला तबका, दूसरा ऐसे गीतों का चुनाव करने वाले लोगों की समझ. ऐसे गीतों को देखने वालों में ज्यादातर वे नौजवान होते हैं जो अनपढ़ या फिर कम पढ़ेलिखे होते हैं और जो ज्यादातर मजदूर श्रेणी का काम करते हैं, उन्हे गीतों के बोल से कोई भी मतलब नहीं होता. उन्हें बस कोई ऐसा गीत चाहिए होता है जिसे देख कर उन की सैक्स की भूख शांत हो जाए और वे अपने दिन भर की थकान भूल जाएं.

ये दर्शक तड़कतेभड़कते गीतों को शालीन गीतों के मुकाबले ज्यादा महत्व देते हैं. ऐसे गीतों की रचना करने वाले भी ऐसे ही तरह के गीत बनाते हैं जो इस कैटेगरी के लोगों को पसंद आए.

टैक्नोलौजी भी है दोषी

भोजपुरी सिंगर्स की इन दिनों हर रोज कोई नई एलबम रिलीज हो रही है और इस में उन की मदद करता है औटोट्यून सौफ्टवेयर. इस तकनीक में कंप्यूटर में पहले से ट्रैक के हिसाब से अश्लील और फूहड़ शब्दों को ले कर कुछ ही घंटे में गाना लिख दिया जाता है और औटोट्यून सौफ्टवेयर उसे ठीक कर देता है. इसी वजह से रोज स्टूडियो में 1000-2000 रुपए में दर्जनों गाने रिकौर्ड हो रहे हैं और इन का प्रचारप्रसार खुद बड़ेबड़े भोजपुरी के सिंगर कर रहे हैं और अपने अश्लील गानों को लोगों से अधिक से अधिक देखने और शेयर करने की भी अपील कर रहे हैं.

डबल मीनिंग, सैक्सिज़्म और हाइपर सैक्शुएलिटी परोसते गीत

ये अश्लील गाने भोजपुरी भाषा की गरिमा बिगाड़ रहे हैं और जब से देश में सस्ता इंटरनेट लोगों तक पहुंच गया है, तब से ऐसे फूहड़पने वाले गानों के यूट्यूब पर मिलियंस में व्यूज होते हैं. डबल मीनिंग, सेक्सिज़्म और हाइपर सैक्सुएलिटी वाले ये गीत लोगों की पसंद बन रहे हैं.

इन बेहूदा अश्लील भोजपुरी गीतों को बनाने वाले भोजपुरी गायक व्यूज पाने के लिए इस प्रकार के गाने रिलीज कर खुद तो पैसा बना लेते हैं लेकिन दर्शकों के मन में गंदे, काम वासना से भरे विचार दे देते हैं और आपराधिक घटनाओं को जन्म देते हैं. हालात तो ऐसे हैं कि हर आटो वाले, दुकान वाले इन गानों को धड़ल्ले से बजाते हैं.

गाने के बोलों को तो छोड़िये, गाने में दिखाए जाने वाले दृश्य तो फूहड़पने को पराकाष्ठा तक पंहुचा देते हैं. इन गीतों में साफ तौर पर अश्लीलता परोसी जाती है. ऐसे घटिया गानों ने महिलाओं को एक भोग-विलास की वस्तु के रूप में प्रकट कर के रख दिया है. आलम तो ये है कि लोग बड़े शौक से “लौलीपौप लागे लू” जैसे गाने अपनी शादीब्याह के कार्यक्रमों में भी बजवाने लगे हैं.Community-verified icon

सिरफिरे बौयफ्रेंड ने पिता को धमकी दे कर किया बेटी का कत्ल

प्रियंका और कृष्णा प्यार की पींगें भर रहे थे. दोनों का प्यार दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बन गया था. कृष्णा तिवारी की उम्र जहां 25 वर्ष थी, वहीं प्रियंका श्रीवास 21 साल की थी. दोनों अकसर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर की सड़कों पर एकदूसरे का हाथ थामे घूमते हुए दिख जाते.  कृष्णा उसे अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर भी घुमाता था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ रहा था.

कृष्णा तिवारी उर्फ डब्बू मूलत: कोनी, बिलासपुर का रहने वाला था और प्रियंका पास के ही बिल्हा शहर के मुढ़ीपार गांव की थी. वह बिलासपुर में अपने मौसा जोगीराम के यहां रह कर बीए फाइनल की पढ़ाई कर रही थी.

एक दिन कृष्णा ने शहर के विवेकानंद गार्डन में घूमतेघूमते प्रियंका से कहा, ‘‘प्रियंका, आज मैं तुम से एक बहुत खास बात कहने जा रहा हूं,जिस का शायद तुम्हें बहुत समय से इंतजार होगा.’’

‘‘क्या?’’ प्रियंका ने स्वाभाविक रूप से कहा.   ‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ कृष्णा बोला, ‘‘मैं चाहता हूं कि हम दोनों शादी कर लें या फिर घरपरिवार से कहीं दूर भाग चलें.’’

‘‘नहींनहीं, मैं भाग कर शादी नहीं कर सकती, वैसे भी अभी मैं पढ़ रही हूं. शादी होगी तो मेरे मातापिता की सहमति से ही होगी.’’

‘‘तब तो प्यार भी तुम्हें मम्मीपापा की आज्ञा ले कर करना चाहिए था.’’ कृष्णा ने उस की खिल्ली उड़ाते हुए मीठे स्वर में कहा.

‘‘देखो, प्यार और शादी में बहुत बड़ा फर्क है. तुम मुझे अच्छे लगे तो तुम से दोस्ती हो गई और फिर प्यार हो गया.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी कृपा की आप ने हुजूर.’’ कृष्णा ने विनम्र भाव से कहा, ‘‘अब कुछ और कृपा बरसाओ, मेरी यह इच्छा भी पूरी करो.’’

‘‘देखो डब्बू, तुम मेरे पापा को नहीं जानते. वह बड़े ही गुस्से वाले हैं. मैं मां को तो मना लूंगी मगर पापा के सामने तो बोल तक नहीं सकती. वो तो अरे बाप रे…’’ कहतेकहते प्रियंका की आंखें फैल गईं और चेहरा सुर्ख हो उठा.

‘‘प्रियंका, तुम कहो तो मैं पापा से बात करूं या फिर उन के पास अपने पापा को भेज दूं. मुझे यकीन है कि हमारे खानदान, रुतबे को देख कर तुम्हारे पापा जरूर हां कह देंगे. बस, तुम अड़ जाना.’’ कृष्णा ने समझाया.

‘‘देखो कृष्णा, हमारे घर के हालात, माहौल बिलकुल अलग हैं. मैं किसी भी हाल में पापा से बहस या सामना नहीं कर सकती. तुम अपने पापा को भेज दो, हो सकता है बात बन जाए.’’ प्रियंका बोली.

‘‘और अगर नहीं बनी तो?’’ कृष्णा ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘नहीं बनी तो हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे. इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ प्रियंका ने जवाब दिया.

एक दिन कृष्णा तिवारी के पिता लक्ष्मी प्रसाद तिवारी प्रियंका श्रीवास के पिता नारद श्रीवास से मिलने उन के घर पहुंच गए. नारद श्रीवास का एक बेटा और 2 बेटियां थीं. वह किराने की एक दुकान चलाते थे.

लक्ष्मी प्रसाद ने विनम्रतापूर्वक अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं आप से मिलने बिलासपुर से आया हूं. आप से कुछ महत्त्वपूर्ण बातचीत करना चाहता हूं.’’

कृष्णा के पिता ने की कोशिश 

नारद श्रीवास ने उन्हें ससम्मान घर में बिठाया और खुद सामने बैठ गए. लक्ष्मी प्रसाद तिवारी हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘मैं आप के यहां आप की बड़ी बेटी प्रियंका का अपने बेटे कृष्णा के लिए हाथ मांगने आया हूं.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास आश्चर्यचकित हो कर लक्ष्मी प्रसाद की ओर ताकते रह गए. उन के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. तब लक्ष्मी प्रसाद बोले, ‘‘भाईसाहब, मेरे बेटे कृष्णा को आप की बिटिया पसंद है. हालांकि हम लोग जाति से ब्राह्मण हैं, मगर बेटे की इच्छा को ध्यान में रखते हुए आप के पास चले आए. आशा है आप इनकार नहीं करेंगे.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास के चेहरे का रंग बदलने लगा. उन्होंने लक्ष्मी प्रसाद से कहा, ‘‘देखो तिवारीजी, आप मेरे घर आए हैं, ठीक है. मगर मैं अपनी बिटिया का हाथ किसी गैरजातीय लड़के को नहीं दे सकता.’’

‘‘मगर भाईसाहब, अब समय बदल गया है. मेरा आग्रह है कि आप घर में चर्चा कर लें. बच्चों की खुशी को देखते हुए अगर आप हां कर देंगे तो यह बड़ी अच्छी बात होगी.’’ लक्ष्मी प्रसाद ने सलाह दी.

‘‘देखिए पंडितजी, मैं समाज के बाहर बिलकुल नहीं जा सकता. फिर प्रियंका के लिए मेरे पास एक रिश्ता आ चुका है. वे लोग प्रियंका को पसंद कर चुके हैं. मैं हाथ जोड़ता हूं, आप जा सकते हैं.’’ नारद श्रीवास ने विनम्रता से कहा तो लक्ष्मी प्रसाद तिवारी अपने घर लौट गए.

घर लौट कर उन्होंने जब बात न बनने की जानकारी दी तो कृष्णा को गहरा धक्का लगा. अगले दिन कृष्णा ने अपनी बुलेट निकाली और नारद श्रीवास की दुकान पर पहुंच गया. उस समय नारद ग्राहकों को सामान दे रहे थे. दुकान के बाहर खड़ा कृष्णा नारद श्रीवास को घूरघूर कर देख रहा था. जब वह ग्राहकों से फारिग हुए तो उन्होंने कृष्णा की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘हां, क्या चाहिए?’’

कृष्णा ने उन से बिना किसी डर के अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘कल मेरे पापा आप के पास आए थे.’’

यह सुनते ही नारद श्रीवास के दिलोदिमाग में बीते कल का सारा वाकया साकार हो उठा, जिसे लगभग वह भुला चुके थे. उन्होंने कहा, ‘‘हां, तो?’’

कृष्णा तिवारी ने कहा, ‘‘आप ने मना कर दिया. मैं इसलिए आया हूं कि एक बार आप से मिल कर अपनी बात कहूं.’’

‘‘देखो, तुम चले जाओ. मैं ने तुम्हारे पिताजी को सब कुछ बता दिया है और इस बारे में अब मैं कोई बात नहीं करूंगा.’’

कृष्णा ने अपनी आंखें घुमाते हुए अधिकारपूर्वक कहा, ‘‘आप से कह रहा हूं, आप मान जाइए नहीं तो एक दिन आप खून के आंसू रोएंगे.’’

‘‘तो क्या तुम मुझे धमकाने आए हो?’’ नारद श्रीवास का पारा चढ़ गया.

‘‘धमकाने भी और चेतावनी देने भी. आप नहीं मानोगे तो अंजाम बुरा होगा.’’ कहने के बाद कृष्णा तिवारी बुलेट से घर वापस लौट गया.

नारद श्रीवास कृष्णा के तेवर देख कर अवाक रह गए. उन्होंने सोचा कि यह लड़का एक नंबर का बदमाश जान पड़ता है. मैं ने अच्छा किया कि इस के पिता की बात नहीं मानी.

उन्होंने उसी दिन अपने साढ़ू भाई जोगीराम श्रीवास को फोन कर के सारी बात बता दी. उन्होंने उन से प्रियंका पर विशेष नजर रखने की बात कही, क्योंकि प्रियंका उन्हीं के घर रह कर पढ़ रही थी.

नारद की बातें सुन कर जोगीराम ने उन से कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता मत करो. मैं खुद प्रियंका से बात कर के देखता हूं और आप लोग भी बात करो. इस के अलावा आप धमकी देने वाले कृष्णा के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दो.’’

‘‘नहींनहीं, पुलिस में जाने से हमारी ही बदनामी होगी. मैं अब जल्द ही प्रियंका की सगाई, शादी की बात फाइनल करता हूं.’’ नारद बोले.

21 अगस्त, 2019 डब्बू उर्फ कृष्णा ने प्रियंका को सुबहसुबह लवली मौर्निंग का वाट्सऐप मैसेज भेजा और लिखा, ‘‘प्रियंका हो सके तो मुझ से मिलो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं. जाने क्यों रात भर तुम्हारी याद आती रही, इस वजह से मुझे नींद भी नहीं आ सकी.’’

प्रियंका ने मैसेज का प्रत्युत्तर हमेशा की तरह दिया, ‘‘ठीक है, ओके.’’  मौसी ने समझाया था प्रियंका को

प्रियंका रोजाना की तरह उस दिन भी तैयार हो कर कालेज के लिए निकलने लगी तो मौसा और मौसी ने उसे बताया कि वह घरपरिवार की मर्यादा को ध्यान में रखे. कृष्णा से मेलमुलाकात उस के पापा को पसंद नहीं है. तुम्हें शायद यह पता नहीं कि कृष्णा ने मुढ़ीपार पहुंच कर धमकी तक दे डाली है. यह अच्छी बात नहीं है. अगर इस में तुम्हारी शह न होती तो क्या उस की इतनी हिम्मत हो पाती?

मौसी की बातें सुन कर प्रियंका मुसकराई. वह जल्दजल्द चाय पीते हुए बोली, ‘‘मौसी, आप जरा भी चिंता मत करना. मैं घरपरिवार की नाक नहीं कटने दूंगी. जब पापा मुझ पर भरोसा करते हैं, उन्होंने मुझे पढ़ने भेजा है, मेरी हर बात मानते हैं तो मैं भला उन की इच्छा के बगैर कोई कदम कैसे उठाऊंगी. आप एकदम निश्चिंत रहिए.’’

मौसी सीमा ने उसे बताया कि जल्द ही उस की सगाई एक इंजीनियर लड़के से होने वाली है, इसलिए वह कृष्णा से दूर ही रहे.

हंसतीबतियाती प्रियंका रोज की तरह सीपत रोड स्थित शबरी माता नवीन महाविद्यालय की ओर चली गई. वह बीए अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी.

कालेज में पढ़ाई के बाद प्रियंका क्लास से बाहर आई तो कृष्णा का फोन आ गया. दोनों में बातचीत हुई तो प्रियंका ने कहा, ‘‘मैं कालेज से निकल रही हूं और थोड़ी देर में तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगी.’’

प्रियंका राजस्व कालोनी स्थित कृष्णा के किराए के मकान में जाती रहती थी. वह मकान बौयज हौस्टल जैसा था. कृष्णा और प्रियंका वहां बैठ कर अपने दुखदर्द बांटा करते थे. प्रियंका ने उस से वहां पहुंचने की बात कही तो कृष्णा खुश हो गया.

कृष्णा घर का बिगड़ैल लड़का था. आवारागर्दी और घरपरिवार से बेहतर संबंध नहीं होने के कारण पिता ने एक तरह से उसे घर से निकाल दिया था. कृष्णा किराए का मकान ले कर रहता था. उस मकान में पढ़ाई करने वाले और भी लड़के रहते थे. उस के पास एक बुलेट थी. अपने खर्चे पूरे करने के लिए वह पार्टटाइम कार वाशिंग का काम करता था.

काफी समय बाद भी प्रियंका कृष्णा के कमरे पर नहीं पहुंची तो वह परेशान हो गया. वह झल्ला कर कमरे से निकला और प्रियंका को फोन किया. प्रियंका ने उसे बताया कि वह अपनी फ्रैंड के साथ है और उस के पास पहुंचने में कुछ समय लगेगा.

कृष्णा उस से मिलने के लिए उतावला था. काफी देर बाद भी जब वह नहीं पहुंची तो उस ने प्रियंका को फिर फोन किया. प्रियंका बोली, ‘‘आ रही हूं यार. मैं अशोक नगर पहुंच चुकी हूं.’’

इस पर कृष्णा ने झल्ला कर कहा, ‘‘मैं वहीं आ रहा हूं. तुम रुको, मैं पास में ही हूं’’  कृष्णा थोड़ी ही देर में अशोक नगर जा पहुंचा. प्रियंका वहां 2 सहेलियों के साथ खड़ी थी.

प्रियंका की बातों से कृष्णा को लगा कि आज उस का रंग कुछ बदलाबदला सा है. मगर उस ने धैर्य से काम लिया. प्रियंका को देख वह स्वाभाविक रूप से मुसकराते हुए बोला, ‘‘प्रियंका, तुम मुझे मार डालोगी क्या? तुम से मिलने के लिए सुबह से बेताब हूं और तुम कह रही हो कि आ रही हूं…आ रही हूं.’’

‘‘तो क्या कालेज भी न जाऊं? पढ़ाई छोड़ दूं, जिस के लिए मैं गांव से यहां आई हूं?’’ प्रियंका ने तल्ख स्वर में कहा.

‘‘मैं ऐसा कहां कह रहा हूं, मगर कालेज से सीधे आना था. 2 घंटे हो गए तुम्हारा इंतजार करते हुए. कम से कम मेरी हालत पर तो तरस खाना चाहिए तुम्हें.’’

‘‘और तुम्हें मेरे घर जा कर हंगामा करना चाहिए. पापा से क्या कहा है तुम ने, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?’’ प्रियंका ने रोष भरे स्वर में कहा.

प्रियंका को गुस्से में देख कर कृष्णा को भी गुस्सा आ गया. दोनों की अशोक नगर चौक पर ही नोकझोंक होने लगी, जिस से वहां लोगों का हुजूम जमा हो गया. तभी एक स्थानीय नेता प्रशांत तिवारी जो कृष्णा और प्रियंका से वाकिफ थे, वहां पहुंचे और उन्होंने दोनों को समझाबुझा कर शांत कराया.

कृष्णा प्रियंका को ले आया अपने कमरे पर  दोनों शांत हो गए. कृष्णा ने प्रियंका को बुलेट पर बिठाया और अपने कमरे की ओर चल दिया. रास्ते में दोनों ही सामान्य रहे. अपने कमरे पर पहुंच कर कृष्णा ने कहा, ‘‘प्रियंका, अब दिमाग शांत करो. मैं तुम्हारे लिए बढि़या चाय बनाता हूं.’’

यह सुन कर प्रियंका मुसकराई, ‘‘यार, मुझे भूख लग रही है और तुम बस चाय बना रहे हो.’’ इस के बाद कृष्णा पास के एक होटल से नाश्ता ले आया. दोनों प्रेम भाव से बातचीत करतेकरते कब फिर से तनाव में आ गए, पता ही नहीं चला. कृष्णा ने कहा, ‘‘तुम मुझ से शादी करोगी कि नहीं, आज मुझे साफसाफ बता दो.’’

प्रियंका ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘नहीं, मैं शादी घर वालों की मरजी से ही करूंगी.’’ हत्या कर कृष्णा हो गया फरार  दोनों में बहस होने लगी. उसी दौरान बात बढ़ने पर कृष्णा ने चाकू निकाला और प्रियंका पर कई वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया. खून से लथपथ प्रियंका को मरणासन्न छोड़ कर वह वहां से भाग खड़ा हुआ. घायल प्रियंका कराहती रही और वहीं बेहोश हो गई.

हौस्टल के राकेश वर्मा नाम के एक लड़के ने प्रियंका के कराहने की आवाज सुनी तो वह कमरे में आ गया. उस ने गंभीर रूप से घायल प्रियंका को बिस्तर पर पड़े देखा तो तुरंत स्थानीय सरकंडा थाने में फोन कर के यह जानकारी थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर राजस्व कालोनी के हौस्टल पहुंच गए. उन्होंने कमरे के बिस्तर पर खून से लथपथ एक युवती देखी, जिस की मौत हो चुकी थी.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एडीशनल एसपी ओ.पी. शर्मा एवं एसपी (सिटी) विश्वदीपक त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच गए. दोनों पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना करने के बाद उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजने के आदेश दिए.

अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने प्रियंका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. हौस्टल के लड़कों से पता चला कि जिस कमरे में प्रियंका की हत्या हुई थी, वह कृष्णा का है. प्रियंका के फोन से पुलिस को उस की मौसी व पिता के फोन नंबर मिल गए थे, लिहाजा पुलिस ने फोन कर के उन्हें अस्पताल में बुला लिया.

प्रियंका के मौसामौसी और मातापिता ने अस्पताल पहुंच कर लाश की शिनाख्त प्रियंका के रूप में कर दी. उन्होंने हत्या का आरोप बिलासपुर निवासी कृष्णा उर्फ डब्बू पर लगाया. पुलिस ने कृष्णा के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर उस की खोजबीन शुरू कर दी. उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. पुलिस को पता चला कि वह रायपुर से नागपुर भाग गया है.

पकड़ा गया कृष्णा 

थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता व महिला एसआई गायत्री सिंह की टीम आरोपी को संभावित स्थानों पर तलाशने लगी. पुलिस ने कृष्णा के फोटो नजदीकी जिलों के सभी थानों में भी भेज दिए थे.

सरकंडा से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित मुंगेली जिले के थाना सरगांव के एक सिपाही को 23 अगस्त, 2019 को कृष्णा तिवारी सरगांव चौक पर दिख गया. उस सिपाही का गांव आरोपी कृष्णा तिवारी के गांव के नजदीक ही था. इसलिए सिपाही को यह जानकारी थी कि कृष्णा मर्डर का आरोपी है और पुलिस से छिपा घूम रहा है.

लिहाजा वह सिपाही कृष्णा तिवारी को हिरासत में ले कर थाना सरगांव ले आया. सरगांव पुलिस ने कृष्णा तिवारी को गिरफ्तार करने की जानकारी सरकंडा के थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

उसी शाम सरकंडा थानाप्रभारी कृष्णा तिवारी को सरगांव से सरकंडा ले आए. उस से पूछताछ की गई तो उस ने प्रियंका की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से एक चाकू भी बरामद किया, जो 3 टुकड़ों में था.

कृष्णा ने बताया कि हत्या करने के बाद वह बुलेट से सीधा रेलवे स्टेशन की तरफ गया. उस समय उस के कपड़ों पर खून के धब्बे लगे थे. उस के पास पैसे भी नहीं थे. स्टेशन के पास अनुराग मानिकपुरी नाम के दोस्त से उस ने 500 रुपए उधार लिए और रायपुर की तरफ निकल गया.

कृष्णा तिवारी उर्फ दब्बू से पूछताछ कर पुलिस ने उसे 24 अगस्त, 2019 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, बिलासपुर के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कूड़े का ढेर हो गया है सोशल मीडिया

हमारे समाज में मुफ्त की सलाह देने वालों की कमी नहीं रही है. घर, चौपालों में इस तरह की सलाह कई बार बेहद घातक होती है. जीवन ले लेती है. 48 साल की बबिता को पेट में दर्द था. उस की माहवारी बंद हो चुकी थी. उस ने अपनी सास से यह बात बताई. सास ने कहा जब माहवारी बंद होने वाली होती है तो ऐसे ही होता है. परेशान न हो दर्द धीरेधीरे ठीक हो जाएगा. बबिता ने किसी डाक्टर से न सलाह ली न कोइ जांच कराई. धीरेधीरे 2 साल बीत गए. बबिता की माहवारी बंद हो गई. पेट में भारीपन और हल्का दर्द बना रहता था.

एक दिन अचानक उसे तेज माहवारी हुई. फिर लोगों ने समझाया कि कई बार बंद होने यानि मेनोपौज के पहले ऐसा एक दो बार हो जाता है. बबिता को रूकरूक कर माहवारी चल रही थी. 5वें दिन माहवारी इतनी बढ़ गई कि उस को संभालना कठिन हो गया. इमरजैंसी में परिवार के लोग बबिता को अस्पताल ले गए. जांच हुई तो पता चला कि बबिता को गर्भाशय का कैंसर है. अब इस की चौथी स्टेज है. 2 माह से अधिक का समय उस के पास नहीं है. अगर 2 साल पहले जांच और इलाज हो जाता तो बबिता को बचाया जा सकता था.

हमारे समाज में इस तरह का ज्ञान अब चैपाल के अलावा सोशल मीडिया पर भी मिलने लगा है. किसी भी विषय पर हजारोंलाखों लोग अपने सोशल मीडिया पर ज्ञान परोसते रहते हैं. इस बहाने यह लोग अपने फौलोवर्स और सब्सक्राइबर बढ़ाने का काम करते हैं. यह पूरी एक कड़ी है. जिस की कमान सोशल मीडिया साइट बनाने वालों के पास होती है. मुख्यतौर से कमाई वह करते हैं. कंटैंट क्रिएटर और इनफ्लूंएसर्स बन कर तमाम लोग पैसे मिलने की चाह में उन का काम कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर काम कर रहे 10 फीसदी लोग ही मेहनत के बराबर कमाई कर रहे हैं. बाकी लोग कमाई की अंधी दौड़ में भाग रहे हैं. उन को लगता है कि अब पैसा मिलने वाला है. लेकिन यह मिलता नहीं है.

एक से बढ़ कर एक सलाह

इंस्टाग्राम पर आनेस्ट आयुर्वेदा नाम के एकाउंट में स्टाफेनिया नामक एक पौधे को दिखाते हुए समझाया गया है कि यह पौधा हजारों साल रहता है. यह घर को हराभरा करने के लिए लगाया जाता है. इस का खास महत्व यह बताया गया है कि इस को घर में लगाने से लंबी आयु और बढ़ी हुई कृपा मिलती है. इस का रखरखाव आसान है. अब लोग इस को लंबी आयु और बढ़ी हुई कृपा के लिए ढूंढ रहे हैं.

बेस्ट किचन लाइट की सोशल मीडिया साइट पर फोल्डिंग फर्नीचर बहुत ही अच्छी तरह से दिखाए गए हैं, जिस में बेड दीवार के सहारे खड़ा हो जाता है. उस के कुछ हिस्से को बाहर निकाल कर अलमारी बना लिया जाता है. ऐसे कई प्रयोग हैं जिन को एक हाथ से उठा कर प्रयोग किया जा सकता है. फोल्डिंग फर्नीचर जब घर में आते हैं तो उन का प्रयोग उतना सरल नहीं होता जितना दिखाया जाता है.

एमपी औनलाइन न्यूज के इंस्टाग्राम पर एक खबर में बताया गया है कि एक महिला के जुड़वा बच्चे हुए. दोनों के डीएनए अलगअलग थे. क्योंकि महिला ने एक ही रात दो लोगों के साथ सैक्स किया था. ऐसे में बच्चों के पिता अलगअलग निकले. विज्ञान की नजर से यह पूरी तरह से गलत है. जब गर्भ में एक बार अंडाणु और शुक्राणु का निषेचन हो जाता है तो गर्भाशय इस के बाद के शुक्राणु को प्रवेश नहीं देता है. अगर 2 पुरूषों के शुक्राणु मिला कर अंडाणुओं के साथ मिला कर निषेचित किए जाएं तो अंडाणु उस को स्वीकार नहीं करता.

बांके बिहारी शास्त्रीजी महाराज के सोशल मीडिया साइट पर बताया गया है कि दोपहर के बाद नहाने वाले का जीवन खराब हो जाता है. उस के जीवन में दुख आते हैं. इन का प्रभाव उस के पिता और पुत्र पर पड़ता है. आज के दौर में कितने ही लोग दोपहर क्या रात तक नहाते हैं. ऐसे में इस तरह के वीडियोज कूड़े के जैसे हैं और केवल भ्रामक सूचना देने का काम करते हैं.

आई एम प्रिया सिन्हा अपने इंस्ट्राग्राम पर बताती है कि रोज नहाना हैल्थ के लिए ठीक नहीं होता है. ऐसे में आप के मातापिता या प्रेमिका कितना भी रोज नहाने के लिए कहें आप को रोज नहीं नहाना है. इस से गुड वैक्टीरिया मर जाते हैं. आप की बौडी की एंटीबाइटिक क्षमता खत्म हो जाती है. गरम पानी से नहाने पर यह और भी तेजी से प्रभावित होते हैं.

गिफ्ट बेबी इन के सोशल मीडिया साइट पर अखंड ज्योति दीये का प्रचार करते बताया गया है कि यह 9 से 11 दिन एक ही बाती से जल सकता है. इस के अंदर एक लंबी बाती होती है जो घर के कटोरे में डूबी होती है. इस को एक पीतल के छेद से उपर ले जा कर जला दिया जाता है. जलती बाती को बिना बुझाए स्क्रूपेच के द्वारा ऊपर खिसकाया जा सकता है. ऐसे में अंखड ज्योति का लाभ तब मिलेगा जब एक ही बाती 9 दिन या 11 दिन तक लगातार जल सके.

आमतौर पर महिलाएं आपने सामने के दो दांतों में गैप होने पर परेशान होती है. उन को लगता है कि इस से उन की मुसकान सुंदर नहीं होती है. यह इस गैप को बंद कराने के लिए डैंटिस्ट के पास जाती है. मेधा 3267 इंस्ट्राग्राम एकाउंट पर बताया जा रहा है कि जिन महिलाओं के दांतों में गैप होता है वह काफी समझदार और मुश्किलों को चुटकियों में सुलझाने वाली होती हैं. ऐसी भाग्यशाली महिलाएं 100 में से एक होती है. अब जनता डैंटिस्ट की बात माने या मेघा की.

लोग हो रहे सजग:

सोशल मीडिया गलत जानकारी देने का सब से बड़ा माध्यम बन गया है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि यहां कोई संपादक नहीं है. जिस का जो मन कर रहा है वह अपने वीडियोज में बोल रहा है. ज्यादातर लोग इधरउधर से सामाग्री ले कर वीडियो बना लेते हैं. इस के पीछे उन की अपनी मेहनत नहीं होती है. पहले लिखने के लिए लोग रिसर्च करते थे. पुस्तकालय जा कर किताबें पढ़ते थे. जिस विषय पर लिखना और बोलना होता था उस को पूरी तैयारी से लिखते थे. टीवी और रेडियो पर बोलने के लिए स्क्रिप्ट लिखते थे. जितने समय के लिए बोलना होता था उस के हिसाब से लिखते थे.

अब सोशल मीडिया पर लिखने के लिए यह जरूरी नहीं रह गया है. सोशल मीडिया सही और गलत का फर्क नहीं कर पाता है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर कुछ ऐसे नियम हैं उस के टूल्स पर कुछ शब्द पकड़ में आ जाता है. जैसे हिंसा, कत्ल, मारपीट, मर्डर, इन शब्दों का प्रयोग करने पर वह चेतावनी दे देता है. जिन के नियम तोड़ने पर सोशल मीडिया एकाउंट बंद हो जाता है. इस से भी कंटैंट क्रिएट करने वाले इनफ्लूएंसर्स को नुकसान होता है. बड़ी मेहनत से अगर अच्छे फौलोवर्स और सब्सक्राइबर्स बने तो एक ही झटके में वह खत्म भी हो सकते हैं.

सोशल मीडिया पर लग रहा प्रतिबंध

सोशल मीडिया का नुकसान केवल आंखों और सेहत पर हर नहीं पड़ रहा है. समाज की सेहत भी इस से बिगड़ रही है. कई देशों में इन पर प्रतिबंध लग रहा है. ब्राजील में सोशल मीडिया ‘एक्स’ को बंद कर दिया है. यूरोप के कई देश ‘टेलीग्राम’ को बंद करने का विचार कर रहे हैं. दुनिया भर में सोशल मीडिया को ले कर सेंसरशिप के मामले बढ़ते जा रहे हैं.

2015 से अब तक 62 देश किसी न किसी मुद्दे पर इस तरह का बैन लगा चुके हैं. एशिया के 48 में से 27 देशों में इंटरनेट या सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर सख्ती बढ़ी है. पिछले 5 साल में 62 देश ऐसे रहे हैं जिन्होंने इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सब से ज्यादा सख्ती दिखाई है. ऐसे देशों में इन की कुल हिस्सेदारी 30 फीसदी से ज्यादा है. इन में सब से ज्यादा सख्ती चीन, उत्तर कोरिया, ईरान, कतर जैसे देशों ने दिखाई है. चीन में तो विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर पूरी तरह रोक है. उस ने इस के लिए अपनी व्यवस्था बना रखी है.

2019 में इंटरनेट पर 121 बार बैन लगा कर भारत दुनिया में अव्वल रहा. जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 पर फैसले के बाद अगस्त 2019 में भारत में इंटरनेट पर दूसरा सब से लम्बा बैन लगाया गया था. इस के बाद जून 2020 में टिकटौक समेत चीन के 59 एप पर रोक लगाई गई. 2 साल में इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सब से लम्बा बैन अफ्रीकी देश चाड में रहा. यहां 2018 और 2019 के दौरान 472 दिन तक यह बैन लगा रहा, यानी लगभग हर दूसरे दिन. ऐसा इसलिए किया गया ताकि 1990 से राष्ट्रपति पद पर काबिज इदरिस डेबी 2033 तक इस पद पर बने रह सकें.

अलगअलग देशों ने इंटरनेट या सोशल मीडिया पर बैन लगाने के पीछे कई तरह की दलीलें दीं. इन में खास तौर पर परीक्षा के दौरान पेपर लीक होने का डर, सुरक्षा को खतरा, चुनाव और नेताओं के वीडियो वायरल होने से रोकने जैसी वजह बताई गई हैं. ज्यादातर सरकारों ने सुरक्षा का हवाला दे कर विरोधियों को रोकने के लिए ऐसा किया. अब कई देश इस तरह के प्रतिबंध ले कर आ रहे हैं कि सोशल मीडिया का प्रयोग किस उम्र तक के लोग कर सकते हैं. बच्चों को ले कर जल्द गाइडलाइन और कानून बनने वाला है.

बेहद खास है सोशल मीडिया का एल्गोरिदम

सोशल मीडिया पर गलत सूचनाएं जो वास्तविक लगती है लेकिन होती नहीं है. यह सोशल मीडिया के माध्यम से तेजी से प्रसारित होती है. जिस से समस्या और भी बदतर होती जाती है. 15 से 35 वर्ष के युवाओं के बीच, सोशल मीडिया सब से ज्यादा प्रचलित है. देश में 53 फीसदी लोग ऐसे हैं जो खबरों के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर होते हैं. अब एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब समाचार के साधन बन गए हैं.

सोशल मीडिया के चलते अब कोई भी पत्रकार बन सकता है. एक रिसर्च के अनुसार सोशल मीडिया पर सच्ची रिपोर्टिंग की तुलना में फर्जी खबरें 10 गुना तेजी से फैल सकती हैं. विस्फोटक, गलत सूचना देने वाली पोस्ट वायरल हो जाती हैं. सोशल मीडिया का एल्गोरिदम कंटैंट को क्यूरेट करता है. एल्गोरिदम का काम देखने वाले को यथासंभव लंबे समय तक औनलाइन रखना होता है. इस से सोशल मीडिया को चलाने वाले लाभ कमाते हैं.

एल्गोरिदम के चलते ही सोशल मीडिया यह तय कर लेता है कि देखने वाले को आगे क्या दिखाया जाए ? यदि देखने वाला किसी पोस्ट को पसंद करते हैं या साझा करते हैं, तो उस के जैसे और भी पोस्ट दिखाई देंगीं. एल्गोरिदम उन लोगों की पोस्ट को अधिक संख्या में सोशल फीड करते हैं, जिस से उन्हें अधिक व्यूज, लाइक, कमेंट और शेयर मिलते हैं.

सोशल मीडिया पर आने वाली पोस्ट कूड़े के ढेर की तरह से होती हैं. जिस तरह से कूड़े के ढेर से अपने मतलब की चीज निकालने की मेहनत करनी होती है. वैसे ही सोशल मीडिया पर भी अपने मतलब की चीज पाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. मेहनत से ही अपने मतलब की पोस्ट तक जा सकते हैं. हर पोस्ट को ज्ञान का खजाना समझ कर उस पर भरोसा करने वाले को धोखा ही मिलता है.

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