देश भर में हर दिन औसतन 86 बलात्कार होते हैं. इन में से अधिकतर आरोपी जानपहचान के होते हैं. लाज शर्म, समाज और लचर कानूनी प्रक्रिया के चलते औरतों को न्याय मिलना दूर की बात हो जाती है.
बलात्कार – दिनांक 19 . 11 . 2024
एक – मध्य प्रदेश के देवास में एक सीमेंट कारोबारी वीरेन्द्र को पुलिस ने गिरफ्तार किया उस पर एक महिला जिसे उस ने अपनी बहन बनाया था के यौन शोषण का आरोप था.
दो – विकासनगर ( देहरादून ) में एक नाबालिग लड़की का दुष्कर्म कर उस का वीडियो बनाने वाला आरोपी समद सहारनपुर से गिरफ्तार.
तीन – नोएडा में एक युवती को बहला फुसला कर होटल ले जा कर बलात्कार करने वाला आरोपी गिरफ्तार.
चार – हरियाणा के फरीदाबाद में अपनी ही 2 नाबालिग बेटियों से बलात्कार करना वाला नशेड़ी पिता गिरफ्तार, मां ने लिखाई थी रिपोर्ट.
पांच – नागपुर में एक बस स्टैंड के पास 26 वर्षीय कालेज छात्रा की बलात्कार के बाद हत्या पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया.
छह – मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की पिछोर तहसील के एक गांव की विवाहिता ने केन्द्रीय मंत्री और क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को चिट्ठी लिखते कहा कि उस के साथ गजेन्द्र गुर्जर, रुपेश गुर्जर, अरविन्द पाल व मातादीन कुशवाह ने सामूहिक बलात्कार किया लेकिन अमोला थाने वालों ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की.
सात – उत्तर प्रदेश के जालोन के उरई थाने में पीड़िता अपने मकान मालिक के खिलाफ दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखाने गई तो कार्रवाई के एवज या घूस कुछ भी समझ लें में दो सिपाहियों ने उस का अकेले में ले जा कर बलात्कार कर डाला. महिला ने उच्च अधिकारियों से शिकायत की तो आरोपियों ने उस पर समझौते के लिए दबाब डाला. अब अपर पुलिस अधीक्षक मामले की जांच कर रहे हैं. क्या पता ऐसी जांचें क्यों होती हैं. सीधेसीधे इन भक्षकों के खिलाफ बलात्कार का आरोप क्यों दर्ज नहीं किया गया.
बीती 19 नंवबर को हुए ये बलात्कार के चंद मामले हैं जिन में रिपोर्ट दर्ज हुई. यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि कितने मामलों में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई होगी. वैसे एक एजेंसी मिंट के अंदाजे के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के करीब 85 फीसदी मामले दर्ज नहीं किए जाते. मिंट ने यह अनुमान साल 2015 – 16 के नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की रिपोर्ट और एनसीआरबी के 2014 से 2016 के आंकड़ों के आधार पर लगाया था.
ऐसा क्यों इस सवाल का जवाब हर कोई जानता समझता है कि इस में बदनामी पीड़िता की ही होती है और समाज उसे ही दोषी मानता है. अलावा इस के पीड़िता और उस के परिवार जनों को इस बात का भी भरोसा नहीं रहता कि आरोपी को सजा होगी ही. बलात्कार के कितने मामलों में दोषियों को सजा होती है और कितने बाइज्जत बरी हो जाते हैं और अकसर कोई जानपहचान वाला ही बलात्कारी होता है यह भी आगे आंकड़ों की शक्ल में बताया जा रहा है. लेकिन उस के पहले एक नजर मोदी राज में महिलाओं के खिलाफ होने बाले अपराधों और बलात्कारों पर.
पिछले 10 सालों में यानी मोदी राज में महिलाओं के प्रति होने बाले अपराधों में लगभग 75 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इस आंकड़े से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश भर में महिलाएं किस कदर असुरक्षित हो चली हैं. ऐसा क्यों और इस का जिम्मेदार कौन इन सवालों का जबाब ढूंढने से पहले एक नजर आंकड़ों पर डालें तो समझ आता है कि इन 10 सालों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था को परोक्ष रूप से शह मिली है. किसी भी महिला के प्रति सब से गंभीर अपराध बलात्कार ही होता है इस के आंकड़े तो और भी चिंताजनक हैं.
नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश भर में महिलाओं के प्रति 4 लाख से भी ज्यादा अपराध दर्ज किए जाते हैं इन में बलात्कार के अलावा अपहरण, दहेज हत्या, एसिड अटैक, ट्रेफिकिंग सहित छेड़छाड़ भी शामिल है.
साल 2022 में बलात्कार के दर्ज मामलों की संख्या 31516 थी. जबकि 10 साल पहले 2012 में यह संख्या 24923 थी यानी हर दिन कोई 86 बलात्कार उस देश में होते हैं जहां यत्र नारी पूज्यन्ते तत्र… का हांका हर कभी गर्व से लगाया जाता है.
इस साल महिलाओं के प्रति होने बाले कुल दर्ज अपराधों की संख्या 2.44 लाख थी जो 2022 में बढ़ कर 4.45 लाख का आंकड़ा पार कर गई. क्या खा कर और किस मुंह से औरत को देवी कहा जाता है यह तो भगवान कहीं हो तो वही जाने.
आंकड़े बताते हैं कि बलात्कार के 95 फीसदी से भी ज्यादा मामलों में आरोपी परिचित होता है. एनसीआरबी के मुताबिक साल 2022 में 2324 मामलों में बलात्कारी पीड़िता के परिवार का सदस्य था. 14 हजार से भी ज्यादा मामलों में आरोपी कोई परिचित दोस्त औनलाइन फ्रैंड भूतपूर्व पति या फिर लिव इन पार्टनर था. 13 हजार मामलों में आरोपी एम्प्लायर, फैमिली फ्रैंड या फिर पड़ोसी था. महज 1062 मामलों में ही बलात्कार का आरोपी कोई अपरिचित था.
बलात्कार को शह मिलने की एक अहम वजह न्याय व्यवस्था भी है. इसे भी ये आंकड़े साबित करते हैं कि साल 2021 में पिछले साल यानी 2022 के लगभग 13 हजार मामले लम्बित थे. कोई 4 हजार मामलों में फाइनल रिपोर्ट गलत निकली. हैरानी की बात तो यह भी कि 1921 मामलों में दोष सच होते हुए भी पर्याप्त सबूत नहीं जुटाए जा सके.
साल 2022 की बात करें तो बलात्कार के लगभग 1 लाख 70 हजार से भी ज्यादा मामले अदालतों में लम्बित थे. इसी साल दोष सिद्धि की दर 27.4 फीसदी थी यानी 100 में से करीब 27 लोगों को ही सजा सुनाई गई. बाकी 73 मूंछों पर ताव देते समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए जबकि पीड़िताएं मुंह छिपाने बाध्य हुईं मानो खुद ही दोषी हों. और हों क्यों नहीं आखिर औरत जात जो ठहरीं.
बलात्कार और कितना घिनोना हो सकता है इस का अंदाजा इस हकीकत से भी लगाया जा सकता है कि आरोपियों ने 110 उन महिलाओं को भी नहीं बख्शा जो शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग थीं.
2022 में ही 34 गर्भवती महिलाओं के साथ भी बलात्कार हुआ था. यह जानकर और भी हैरानी हो सकती है कि 4681 मामले एक ही महिला के साथ बारबार बलात्कार करने के दर्ज हुए थे. हवस के पुजारियों ने मासूम बच्चियों और वृद्धाओं को भी नहीं छोड़ा. 87 मामलों में पीड़िताओं की उम्र 60 साल से ज्यादा थी तो 32 मामलों में पीड़िताओं की उम्र 6 साल से कम थी.
2022 में देश भर की जेलों में लगभग 73 हजार कैदी ऐसे थे जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ अपराध किए थे. इन में से भी 47 हजार यानी 64 फीसदी बलात्कार के आरोपी थे. और हैरान व चिंतित होने यह आंकड़ा पर्याप्त है कि 2022 में ही बलात्कार के 5 फीसदी मामलों में ही ट्रायल पूरा हो पाया था यानी 95 फीसदी मामले लम्बित थे.
इस पर भी देश की सबसे ताकतवर और असरदार कुर्सियों पर विराजे कर्णधार यह कहें कि बस बहुत हो चुका. नहीं अब और नहीं. अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं और पीड़ित डर के साए में रहते हैं तो लगता है यह सुप्रीम बेबसी बोल रही है. या यह भी कि महिलाओं के खिलाफ अपराध अक्षम्य हैं. दोषी कोई भी हो वो बचना नहीं चाहिए. उस को किसी भी रूप में मदद करने वाले बचने नहीं चाहिए, तब लगता है कि होना जाना कुछ नहीं है क्योंकि बलात्कार के दोषियों के सब से बड़े मददगार तो कानून, पुलिस, वकील और उन से भी उपर समाज होता है.
आंकड़े तो गवाही यह देते हैं कि होता वही है जो मंजूरे वकील होता है. छोटी बड़ी हर अदालत में हिंदी फिल्म का डिफेन्स लायर बोल रहा है जो आरोपी को चुटकियों में निकाल ले जाता है. बिलकुल बीआर चौपड़ा की फिल्म इंसाफ का तराजू के वकील श्रीराम लागु की तरह जो अपने मुवक्किल राज बब्बर को छुड़ा ले गए थे. तब इंसाफ पीड़िता जीनत अमान को भरी अदालत में राज बब्बर की हत्या करना पड़ा था.
वह फिल्म थी सो क्लाइमेक्स हर किसी को भाया था लेकिन हकीकत में पीड़िता अपने साथ हुई ज्यादती को छिपाने में ही भलाई समझती है या फिर मारे डर और शर्म के खुद ही ख़ुदकुशी कर लेती है क्योंकि वाकई में एक बलात्कार के बाद कई बलात्कार और होते हैं.