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खंडहर: भाग-1

हांफतेदौड़ते जब मैं रेलवे स्टेशन पहुंचा तो पता चला कि ट्रेन 2 घंटे विलंब से आएगी. प्रतीक्षा के क्षणों को बिताने के अतिरिक्त कोई विकल्प न था. इधरउधर दृष्टि दौड़ाई कि कहीं बैठने का स्थान मिल जाए. सीढि़यों के नीचे कपास के पार्सल के बड़ेबड़े गट्ठर रखे थे. मैं उसी पर बैठ कर प्रतीक्षा करने लगा. समय काटने के लिए अनायास ही दृष्टि पूरे प्लेटफौर्म पर घूमने लगी. प्लेटफौर्म मुझे एक प्रकार का चलायमान रंगमंच प्रतीत हो रहा था. कभी गायें किसी ठेले वाले की पूरियों पर मुंह मार लेतीं, कभी न जाने किस दिशा से बंदरों की टोली कूदतेफांदते आती और फल वालों के ठेले से केले आदि उठा कर भाग जाती. भोजन कर रहे यात्रियों से भी मांगने वाले बड़े ही ढीठ स्वरों में अपना हिस्सा मांगते.

मेरी दृष्टि कभी आतीजाती भीड़ पर जाती, कभी कुलियों की उद्दंडता पर और कभी टिकट परीक्षकों की कमाई पर जो वे प्लेटफौर्म पर यात्रियों से ऐंठ रहे थे. लेकिन मेरी दृष्टि बारबार एक ऐसे युगल पर जा कर ठहर जाती जो इन सभी कोलाहलों व उपद्रवों से दूर एक बैंच पर बैठा आपस में बातें कर रहा था. दोनों के हावभाव से प्रतीत होता था कि वे घनिष्ठ मित्र हैं या संभव हो कि उन का संबंध मित्रता से भी कहीं ऊपर हो. ऐसे दृश्यों को देख मुझे बरबस कविता की याद आ जाती थी. वैसे तो हम दोनों मित्र थे पर दिल से उसे मैं किसी और रूप में उस का बहुत सम्मान करता था. मैं अभी उन मीठी कल्पनाओं में खोया ही था कि हलचल मची कि टे्रन आ रही है.

मैं अपने सामान को ले कर एक योद्धा की तरह तैयार हो गया कि कब टे्रन आए और कब मैं अपनी बर्थ पर अधिकार कर लूं. यात्रियों में एकाएक सक्रियता बढ़ गई. पूरे प्लेटफौर्म पर गहमागहमी बढ़ गई. टे्रन आई और लोग टूट पड़े. क्या आरक्षित क्या अनारक्षित, सभी डब्बों में घुसने के लिए यात्री जूझ पड़े. मेरी बर्थ सब से नीचे वाली और खिड़की के पास थी. किसी तरह मैं भी अपनी बर्थ पा गया. मेरे सामने की बर्थ पर किसी ने एक बैग फेंक कर अपना अधिकार जताया.

कुछ ही देर में अफरातफरी की यह स्थिति शांत हो गई. मेरे सामने वाली बर्थ पर वही युवक आ कर बैठ गया और वह युवती प्लेटफौर्म पर खड़ीखड़ी उस युवक से बातें करने लगी. युवक बातें भी करता जाता और अपने अन्य सामानों को व्यवस्थित करने में भी लगा था. कभीकभी कुछकुछ बातें मुझे भी सुनाई दे जातीं, जैसे:‘देखो, सर्दी बहुत है, स्वेटर पहन लेना और पहुंचते ही फोन करना,’ युवती ने कहा.

‘बिलकुल, मैं पहुंच कर नौकरी ‘जौइन’ करते ही तुम्हें फोन करूंगा क्योंकि तभी तो तुम घर में मेरी चर्चा करोगी. क्यों, है न यही बात?’ युवक ने मुसकराते हुए कहा.

मैं ने देखा, युवती के मुख पर लज्जा और सहमति दोनों के ही भाव उभर आए. तभी गार्ड ने सीटी दी और टे्रन धीरेधीरे रेंगने लगी. साथसाथ युवती भी. वह बारबार कहती जाती, ‘स्वेटर पहन लेना और ‘जौइन’ करते ही फोन करना.’

टे्रन की गति बढ़ती जा रही थी और युवती के कदमों की गति भी. युवक के पास कहने के लिए केवल ‘हां’ था, युवती के पास कहने के लिए शायद बहुतकुछ था, लेकिन पर्याप्त समय और उचित स्थान नहीं था शायद. टे्रन की गति अब तीव्र हो चली और वह युवती धीरेधीरे पीछे छूटती चली गई. मैं चूंकि युवक के सामने वाली बर्थ पर था, इसलिए देख पा रहा था कि युवती रूमाल से अपनी आंखें पोंछ रही थी. ऐसा हमेशा ही हुआ है कि भावनाओं को संभालने में आंखें बहुधा धोखा दे ही जाती हैं.

टे्रन अब अपनी पूरी गति से चल रही थी. अभी वह युवक सामान आदि व्यवस्थित ही कर रहा था कि मोबाइल की घंटी बज उठी : ‘हां रचना, मैं स्वेटर पहन लूंगा भई और फोन भी करूंगा. तुम अभी प्लेटफौर्म पर ही हो? अरे, घर जाओ अब,’ युवक ने युवती को सांत्वना दी.

मैं समझ गया, युवती ने क्या कहा होगा. युवक 25-26 वर्ष की उम्र का होगा. न चाहते हुए भी मैं बारबार उस की गतिविधियों को देखने लगता. एक बैग में से उस ने पूरी बांह का स्वेटर निकाला और पहन लिया. मफलर निकाला, कान और सिर पूरी तरह से ढक लिए. दूसरे बैग से कोई पत्रिका निकाली और अपनी बर्थ पर व्यवस्थित हो कर बैठा ही था कि उस के मोबाइल की घंटी फिर बज उठी : ‘हां रचना, अरे हां भई हां, मैं ने स्वेटर भी पहन लिया और मफलर भी लपेट लिया है. विश्वास न हो तो सामने बैठे अंकल से पूछ लो.’ और उस ने फोन मुझे पकड़ा दिया.

मैं ने भी बिना सोचेसमझे फोन ले कान से सटा लिया. उधर से उस युवती ने पूछा, ‘अंकल नमस्ते, क्या सचमुच रजनीश ने स्वेटर पहन लिया है?’ युवती, मानो युवक के कथन की पुष्टि चाह रही थी.

‘हां बेटी, वह सच बोल रहा है,’ मैं ने शीघ्रता से कहा और फोन वापस रजनीश को पकड़ा दिया. उस ने मुझे कृतज्ञता से देखा, दबे स्वर में उस ने कुछ और बातें कीं, फिर फोन रख दिया.

‘‘कहां तक जाएंगे, अंकल?’’ रजनीश ने पूछा.

‘‘लखनऊ तक. और तुम?’’ मैं भी पूछ बैठा.

‘‘मुझे तो फैजाबाद तक ही जाना है. कल मुझे अपनी पहली नौकरी ‘जौइन’ करनी है. सरकारी नौकरी है.’’

रजनीश के चेहरे की खुशी मैं पढ़ सकता था. टे्रन रुकी, कोई स्टेशन था.

तभी 10-12 लोगों का एक झुंड डब्बे में घुसा और वे लोग पहले से बैठे यात्रियों से किंचित उद्दंडता से कहने लगे, ‘‘जरा सरको भाई, बैठने दो. अरे, इसी सीट पर 8-8 लोग बैठते हैं. जरा सिकुड़ कर बैठो भाई,’’ यों ही कुछकुछ कहतेकहते 4-5 लोगों ने बैठने की व्यवस्था कर ली. बाकी इधरउधर दृष्टि दौड़ा रहे थे. तभी एक ने रजनीश की बर्थ की ओर देखा, ‘‘किस का बैग है भाई? उधर टांग दो, हम भी बैठ जाएं.’’

‘‘मेरा है भाईसाहब. मेरा तो ‘रिजर्वेशन’ है. थका हूं. सोना चाहता हूं. कहीं और जगह देख लीजिए,’’ रजनीश ने कहा.

‘‘लो, सुनो, भाई ने रिजर्वेशन क्या करा लिया है. लगता है पूरा कंपार्टमैंट इन्हीं का है. अरे भाई, हम लोग ‘डेली पैसेंजरी’ करते हैं. रोज का आनाजाना है. बैग टांग दो वरना फेंक देंगे बाहर,’’ उस झुंड में से किसी ने ऊंची आवाज में धौंस दिखाई.

आगे पढ़ें- मैं अनिष्ट की आशंका से कांप उठा. इस के पहले…

देख लिया न दादू…

बाल सफेद हो गए, शरीर बूढ़ा हो चला, तबीयत नासाज रहती है लेकिन नहीं, मोहमाया नहीं छोड़ी जा रही. अरे भई, जिम्मेदारी संभालने के लिए छोटे अब बड़े हो चुके हैं, उन्हें भी तो मौका मिलना चाहिए अपनी काबिलीयत दिखाने का. लेकिन भला इस दादू को समझाए कौन?

दादू, देख लिया न अपनी जिद का नतीजा. अपनी तो फजीहत करवाई ही, हमारी भी बचीखुची नाक कटवा कर रख दी. लुटिया डुबोते तो सुना था पर आप ने तो लोटा ही डुबो दिया. अब देखो न, हमारे जैसे परिवार का गांव में क्या मैसेज गया. खैर, इज्जत तो हमारी पहले भी कहां थी गांव में. कभी घर से यह अलग होने की धमकी देता रहता है तो कभी वह. यह घर जैसे घर न हो कर कोई सराय हो. घर के जितने मैंबर, उतने ही स्वार्थ. सच तो यह है कि हमारा ही क्या, हमारे गांव का कोई भी परिवार किसी को सिर ऊंचा कर मुंह दिखाने लायक नहीं. किसी के पास नाक नाम की चीज नहीं. फिर भी पूरे गांव वाले शान से नाक ऊंची किए अकड़ कर चल रहे हैं.

दादू, सच कहूं, आप से इस उम्र में ऐसी उम्मीद कतई न थी. जवानी में यों डराते तो परदादा को अच्छा लगता. मैं ने तो सोचा था अब आप समझदारी दिखाते हुए अपनी पारी खत्म कर किसी भी दमदार चाचूवाचू के हाथ में जिम्मेदारी सौंप खुद काशी, मथुरा की ओर कूच कर लेंगे. पर आप ने तो हद ही कर दी. अपने किसी बेटे के सिर पर पगड़ी रख दुनियादारी छोड़ चैन की जिंदगी बिताने के बजाय आप तो उलटे नाराज हो इस्तीफा दे गए.

दादू, हूं तो मैं आवारा सा पर अगर आप की जगह मैं होता न, तो हंस कर पगड़ी उस के सिर रख देता जिस के सिर पगड़ी रखने को पूरा परिवार कह रहा था. दादू, पगड़ी जिस के सिर धरनी थी, धर दी गई. पर आप भी उस वक्त साथ होते तो मुझे अपने दादू पर गर्व होता.

दादू, पता नहीं आप से क्यों यह मोह नहीं छूटता. पता नहीं आप को क्यों यह भ्रम सा रहता है कि मेरे बिना यह घर नहीं चलेगा. मेरे बिना यह देश नहीं चलेगा. अरे दादू, किसी के बिना यहां कुछ रुका है क्या? दादू, तुम ने कहा कि तुम अस्वस्थ हो. यह तो तुम ही जानो, यह बहाना था या कि तुम सच्चीमुच्ची में बीमार थे. पर दादू, इन दिनों तुम ही क्या, पूरा देश ही अस्वस्थ है. भैया अस्वस्थ है, रुपया अस्वस्थ है. दादू, आप की जिद देख कर मैं तो डर ही गया था कि मेरे दादू यह क्या कर रहे हैं. यह तो शुक्र है कि लाजपत अंकल बीच में आ गए, वरना आप न घर के रहते न…इतने बरसों की कमाई पल में मिट्टी में मिल गई होती.

दादू, अब आप को कौन समझाए कि सब का अपनाअपना दौर होता है. एक समय के बाद भगवान भी आउटडेटेड हो जाते हैं और हम तो उस के बनाए बंदे हैं. वक्त रहते वक्त की धार को पहचानो और मौज करो, दादू. देखो न दादू, अब आप से अपने सहारे चला भी नहीं जाता. सहारा देने वाली लाठी तक आप से संभाली नहीं जाती. पर आप हैं कि घर को संभालने की जिद पाले हैं, देश को चलाने के सपने देख रहे हैं.

माना दादू, आप ने इस घर को अपने खूनपसीने की कमाई से बनाया है. आप ही क्या, हर दादू ऐसा ही करता है. उसे करना भी चाहिए. पर इस का मतलब यह तो नहीं कि आप की जगह कोई और न ले. बल्कि चाहिए तो आप को यह था कि आप हंस कर कहते कि अब मैं इस घर को चलाने लायक नहीं रहा, इसलिए चाचू को इस घर का मुखिया घोषित करता हूं.

अरे दादू, आप को कितनी बार कहा कि अब छोड़ो यह मोहमाया. आप को क्या लेना घर के फैसले से, चाचू ले या बापू. दादू, अब ये बच्चे नहीं रहे. सब घर के फैसले लेने लायक हो गए हैं. उन को घर के फैसले लेने दो. भलाई आप की और घर की इसी में है. आप मजे से जाओ तीर्थ करो, व्रत करो, चारों धाम की यात्रा करो. बीते दिनों को याद करते मौज करो, आराम करो. इस उम्र में तो दादू, औरों के दादू, हरि भजन करने का चाहे मन भी न करे तब भी दिखावे को ही सही, हरि भजन में गांव वालों को गालियां देते हुए लीन रहते हैं.

दादू, छोड़ो यह फोका गुस्सा, बेकार में क्यों हाइपर होते हो. चलो, बीती बिसार, लोकलाज के लिए ही सही, चाचू की पीठ थपथपाओ और पुण्य कमाओ. जनता के गुस्से के बदले उस से तनिक सहानुभूति पाओ. चौपाल पर बैठ बच्चों को अपनी जवानी के समय के देश और दुनिया के किस्से सुनाओ. बीते दिनों को याद कर खुद भी हंसो और गांव के बच्चों को भी हंसाओ.

दादू का काम इस उम्र में कुढ़ना नहीं, गुनगुनाना है, अपने बच्चों को अपने अनुभवों से चांद के पार ले जाना है.

खंडहर भाग-3

‘‘यह ‘रिट्रोगे्रड एम्नेशिया’ कैसी बीमारी है?’’ किसी ने पूछा.

‘‘यह एक प्रकार की भूलने की बीमारी है जो आमतौर पर मस्तिष्क में आघात लगने के कारण होती है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति आघात लगने के पूर्व की कुछ स्मृतियां भूल जाता है. कुछ समय बाद इन में से कुछ स्मृतियां लौट आती हैं. कुछ स्मृतियां लौटने में और अधिक समय लेती हैं. लेकिन आघात के बिलकुल पूर्व की स्मृतियों का वापस लौटना किंचित कठिन होता है. मुझे भी जब उन यात्रियों ने टे्रन से बाहर फेंका तो मस्तिष्क में आघात के कारण मुझे भी ऐसी ही स्मृतिलोप का शिकार होना पड़ा,’’ मैं इतना कहतेकहते कुछ भावुक सा हो गया.

‘‘फिर आप अपने घर कैसे पहुंचे? परिवार वालों से कैसे मिले? आप को पुरानी बातें कब याद आईं?’’ रजनीश पूछ बैठा.

‘‘हुआ यों कि अस्पताल वालों ने मेरी फोटो और मेरे बारे में समाचारपत्रों में प्रकाशित करवा दिया. विज्ञप्ति मेरे बाबूजी ने भी पढ़ी. वे और भैया मुझे वापस घर ले गए.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’ किसी यात्री का प्रश्न था.

‘‘मेरे बाबूजी ने कई ख्यातिप्राप्त चिकित्सकों से परामर्श किया. वे लोग कहते थे कि इस बीमारी का कोई निश्चित उपचार नहीं है. हां, कई बार यदि रोगी के सम्मुख पूर्व स्मृतियों को लगातार प्रस्तुत किया जाए तो सफलता मिल सकती है. लेकिन इस की भी कोई निश्चित समय सीमा नहीं कि कितना समय लग जाएगा. इस के उपचार में कई विधियां अपनाई जाती हैं, जिन में प्रमुख हैं परिवार और मित्रों का सहयोग व धैर्य. रोगी के सामने उस की पूर्व स्मृतियों की बारंबार प्रस्तुति भी सहायक हो सकती है. पहले की घटनाओं, यादों से मिलतीजुलती स्थितियों की पुनरावृत्ति भी स्मृति लाने में सहायक हो सकती है.’’

‘‘तो आप के परिवार वालों ने ऐसा ही कुछ किया होगा?’’ उन उद्दंड यात्रियों में से किसी का प्रश्न था.

‘‘हां, चिकित्सकों का सुझाव था कि इस प्रकार के प्रयासों में रोगी के जीवन से जुड़ी, पुरानी स्मृतियों के चित्रों, घटनाओं, गीतों, पत्रों, रिश्तेदार या परिवार वालों के फोटो या रोगी के व्यक्तिगत जीवन की सूचनाओं को रोगी के सम्मुख निरंतर प्रस्तुत किया जाए तो सफलता मिल सकती है. इसे अनुस्मारक प्रभाव या ‘रिमाइंडर इफैक्ट’ कहा जाता है. स्मृतियों की वापसी एक ‘स्पौंटेनियस रिकवरी’ की घटना होती है.’’

‘‘आप पुरानी बातें कब याद कर पाए?’’

मेरी कहानी अब कंपार्टमैंट के यात्रियों को एक फिल्म की कहानी की तरह लग रही थी.

‘‘बाबूजी कहते थे कि इन सारे प्रयासों से सफलता मिली और अनुमानत: 3-4 महीनों के बाद एक दिन जब मेरा मित्र कमलेश मुझे मेरे कालेज के मित्रों की फोटो दिखा रहा था, मैं ने अचानक ही कविता के फोटो पर हाथ रखा और बोल पड़ा, ‘यह कविता है.’ यही मेरी पूर्व स्मृतियों की ‘स्पौंटेनियस रिकवरी’ थी. करीबकरीब मुझे सबकुछ याद आ ही गया सिर्फ एक बात को छोड़ कर.’’

‘‘कौन सी बात, अंकल?’’ रजनीश पूछ बैठा.

‘‘बेटा, जिस शाम मैं टे्रन में बैठा उसी शाम मैं ने कविता को विश्वास दिलाया था कि नौकरी ‘जौइन’ कर लूंगा तो अपने घर वालों से विवाह की चर्चा करूंगा. कविता और मैं एकदूसरे को चाहते थे. केवल होंठों से नहीं बल्कि हृदय की गहराइयों से हम दोनों एकदूसरे के थे. लेकिन मुझे क्या मालूम था कि इस शाम जो विश्वास और वादा मैं कविता से कर रहा हूं वह मैं कभी पूरा नहीं कर पाऊंगा क्योंकि उसी रात तो वह दुर्घटना मेरे जीवन के लिए अभिशाप बन कर आई,’’ कहतेकहते मेरी वाणी अवरुद्ध हो गई.

‘‘क्या कविताजी आप के साथ हुई दुर्घटना को जान सकी थीं?’’ किसी ने पूछा.

‘‘हां, मेरे मित्र कमलेश ने उसे सबकुछ बता दिया था. कमलेश ने मुझे कविता से कई बार मिलवाया भी. कविता ने न जाने कितनी बार मुझे उस विश्वास और वादे की याद दिलाई किंतु अफसोस. मेरे जीवन की लुप्त सारी स्मृतियां लौट आईं किंतु कविता, जो मेरा जीवन थी, वह कभी न लौट पाई.’’

‘‘क्या कविताजी ने अपने परिवार वालों को यह बात नहीं बताई थी? उन्हें कुछ और प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए थी,’’ रजनीश ने कहा.

‘‘बेटा, शायद तुम भावनाओं की गहराई का अनुभव व्यक्त करने में चूक रहे हो. प्रेम होना और प्रेम व्यक्त करना, ये दोनों ही अनुभव कई संदर्भों में हमेशा एक जैसे नहीं होते. हां, पीड़ा को प्रकट करने का माध्यम कई बार एकसमान होता है. जैसे आंसू. मैं ने तुम्हारी मंगेतर को देखा था प्लेटफौर्म पर. तुम से विदा लेते समय उस की आंखों में जो आंसू थे, वैसे ही आंसू कविता की आंखों में भी थे जब मैं उस से विदा ले रहा था. यह सत्य है कि मेरे और कविता के प्रेम संबंध अटूट थे लेकिन इस के बावजूद कविता में यह साहस न था कि वह अपने परिवार से इस बात की चर्चा करती क्योंकि वह समय ऐसा न था.

‘‘कविता तो प्रतीक्षा कर ही रही थी कि मुझे सारी बातें याद आ जाएं और मैं कविता को उस के परिवार वालों से मांग लूं. कविता के परिवार वालों ने और प्रतीक्षा न की और उसे विवाह के लिए राजी कर लिया. कविता विवश थी. विवशता के इन क्षणों में वह विद्रोह तो नहीं कर पाई, हां, अपनी भावनाओं, उमंगों और उल्लासों का बलिदान अवश्य कर गई.’’

मैं चुप हो गया.

अब तक चुपचाप सुन रहे मेरे जीवन के इस विध्वंस की कहानी को सुन कर उन दैनिक यात्रियों में से किसी ने कहा, ‘‘ओह, सचमुच उन दैनिक यात्रियों को ऐसा निर्दयतापूर्ण व्यवहार नहीं करना चाहिए था. उन्हें सोचना चाहिए था कि टे्रन में यात्रा कर रहा प्रत्येक यात्री किसी न किसी रूप में अपने परिवार से जुड़ा रहता है, उस से किसी की जिंदगी, किसी का वर्तमान और किसी का भविष्य जुड़ा रहता है. उन यात्रियों की उद्दंडता ने आप के जीवन में जो शून्यता पैदा कर दी, उसे किसी भी तरह से भरा नहीं जा सकता.’’

‘‘बात तो आप ठीक कह रहे हैं किंतु यदि मैं आप लोगों के बैठने के लिए अपनी बर्थ न खाली करता तो वही शून्यता आज इस युवक और इस की मंगेतर के जीवन में भी पैदा हो गई होती,’’ मैं ने तुरंत उत्तर दिया उस यात्री को जिस से कि वह समझ सके कि कथनी और करनी में क्या अंतर होता है.

रजनीश ने कृतज्ञता से मेरी ओर देखा किंतु उन यात्रियों की आंखों में एक अपराधबोध झलक रहा था. शायद उन्हें यह आभास हो रहा था कि वे कितने गलत थे. किसी एक यात्री ने कहा, ‘‘अंकल, हमें क्षमा कीजिएगा. अब हम समझे कि हम कितनी नादानी कर रहे थे.’’

‘‘मेरी क्षमा यदि किसी और के जीवन को खंडहर होने से बचा सके तो मैं उन को भी क्षमा कर दूं जिन्होंने अपनी नादानी से मेरे और कविता के जीवन को खंडहर बना दिया था. किंतु मैं जानता हूं, अब भी ऐसी घटनाएं होती हैं और होती रहेंगी,’’ मैं आवेश और क्षोभ से भर उठा था.

तभी शोर उठा. स्टेशन आने वाला है. यात्रियों का वह समूह भी उठ खड़ा हुआ. एकएक कर सभी मेरे सामने से निकलते गए. सब ने एक बार मेरी ओर देखा और मैं ने देखा कि उन की आंखों में क्षमायाचना थी और मैं ने उन की आंखों की वह दृढ़ता भी देखी जो मुझे आभास दिला रही थी कि कम से कम ये सारे लोग अब ऐसी नादानी नहीं करेंगे जिस से किसी के जीवन में अंधेरा छा जाए.

वे सभी उतर गए. मैं अपनी बर्थ पर सोने का प्रयास करने लगा. रजनीश भी, बल्कि वह कुछ ही क्षणों में सो भी गया. मेरे हृदय में अद्भुत प्रसन्नता थी कि मैं रजनीश के आने वाले प्रभात को प्रकाश से भर सका और फिर मैं भी सो गया.

संतोष को बच्चे और पति नहीं प्यार चाहिए था

3 अक्तूबर, 2017 की बात है. सुबह पहाड़ों की ओट से सूरज ने झांका तो कविता की आंखें खुल गईं. उस ने घड़ी की ओर देखा, 6 बज चुके थे. सुबह उठते ही उसे चाय पीने की तलब लग जाती थी. मन में आया कि कोई चाय बना कर पिला दे. उस ने कमरे में पड़े पलंग की ओर देखा तो बेटा विनय अभी सो रहा था. जेठानी संतोष भी सोई हुई थी.

 

कविता को ज्यादा देर तक बिस्तर पर पड़ी रहना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह उठी और चाय बनाने के लिए सीढि़यां उतर कर भूतल पर बनी रसोई में आ गई. रसोई से ही उस ने भूतल पर बने कमरे की ओर देखा तो उस का दरवाजा आधा खुला था. कविता के मन में आया कि वह कमरे का दरवाजा खोल कर देखे कि उस का दूसरा बेटा निक्की, जेठ बनवारीलाल और उन के तीनों बच्चे जाग गए हैं या नहीं?

कविता दरवाजे के पास पहुंची तो उसे कमरे के अंदर से बाहर की ओर खून बहता हुआ दिखाई दिया. खून देख कर कविता परेशान हो गई. उस ने कमरे में झांका तो अंदर जो दिखाई दिया, उस से उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. कमरे के अंदर बैड पर उस के जेठ बनवारीलाल और एक बच्चा तथा 3 बच्चे जमीन पर लहूलुहान पडे़ थे. उन के शरीर से अभी भी खून रिस रहा था.

कविता अपने बेटे और जेठ समेत उन के तीनों बच्चों को इस हालत में देख कर सन्न रह गई. उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकली. वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो गया है?

जेठ और बच्चों को लहूलुहान देख कर चेतनाशून्य हुई कविता

पल भर वह चेतनाशून्य हो कर खड़ी यह सब देखती रही. उसे लगा कि वह जमीन पर गिर जाएगी तो उस ने दीवार का सहारा ले कर खुद को संभाला. दीवार का सहारा लेने से उस की चेतना लौटी तो वह जोरजोर से रोने और चिल्लाने लगी.

कविता के रोने और चिल्लाने की आवाज सुन कर ऊपर के कमरे में सो रही जेठानी संतोष भी नीचे आ गई. उस ने भी कमरे के अंदर का नजारा देखा तो फूटफूट कर रोने लगी. उस के पति और 3 बेटों के साथ देवर का भी एक बेटा मरणासन्न हालत में पड़ा था. देवरानी और जेठानी की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी भी आ गए. आने वाले लोग भी कमरे के अंदर का दृश्य देख कर रो पड़े.

यह घटना राजस्थान के अलवर शहर की शिवाजीपार्क कालोनी में घटी थी. आने वाले लोगों में से किसी ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. पुलिस के आने से पहले कुछ पड़ोसियों ने कमरे में लहूलुहान पड़े बनवारीलाल, उस के बच्चों और भतीजे की नब्ज टटोली तो उन में से 3 बच्चें में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए, लेकिन बनवारीलाल और एक बच्चे की सांस चलती महसूस हुई.

थोड़ी देर बाद थाना शिवाजी पार्क पुलिस मौके पर पहुंची तो कालोनी के लोगों की मदद से बनवारीलाल और उस बच्चे को राजीव गांधी सामान्य अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. इस के बाद अन्य 3 बच्चों की लाशों को भी एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया गया. वहीं से सारी काररवाई पूरी कर पांचों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

राजस्थान के शांत शहरों में गिने जाने वाले अलवर शहर में एक ही परिवार के 5 लोगों की हत्या से शहर में सनसनी फैल गई थी. इस घटना ने शहरवासियों को बेचैन कर दिया था. शिवाजी पार्क के जिस मकान में यह घटना घटी थी, उस के सामने आसपास के लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. घटना की जानकारी मिलने पर एसएसपी पारस जैन, एसपी राहुल प्रकाश सहित अन्य पुलिस अधिकारी और शहर के विधायक बनवारीलाल सिंघल, कांग्रेस जिलाध्यक्ष टीकाराम जूली तथा अन्य कई पक्षविपक्ष के नेता आ गए थे.

हत्यारे की तलाश में घटनास्थल से सबूत जुटाती पुलिस

एक ही परिवार के 5 लोगों को गला रेत कर बेरहमी से मारा गया था. उन का खून कमरे में फैला हुआ था. कमरे में खून से सने पैरों के निशान भी मिले थे. शुरुआती जांच में पुलिस को लगा कि पांचों हत्याएं रंजिश की वजह से की गई हैं. मारने से पहले पांचों को कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था, जिस से वे अचेत हो गए थे. इस के बाद उन की हत्याएं की गई थीं. जिस तरह हत्याएं हुई थीं, उस से साफ लग रहा था कि हत्या करने वाले परिवार के परिचित थे. उन की संख्या 2 या 3 रही होगी.

पुलिस ने डौग स्क्वौयड एवं एफएसएल की टीम को बुला लिया था, डौग स्क्वौयड से पुलिस को कोई खास सुराग नहीं मिला. एफएसएल टीम ने अपना काम कर लिया तो पुलिस जांच में जुट गई. घर में घुसने के 2 दरवाजे थे. एक दरवाजा कमरे से बाहर खुलता था तो दूसरा गैलरी में खुलता था.

पुलिस ने मृतक बनवारीलाल के छोटे भाई मुकेश की पत्नी कविता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में दरवाजों की कुंडी अंदर से बंद की गई थी. लेकिन सुबह जब वह नीचे आई तो गैलरी का दरवाजा खुला हुआ था.

पुलिस कविता से पूछताछ कर ही रही थी कि मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष बेहोश हो गई. उसे सामान्य अस्पताल ले जा कर भरती कराया गया. आगे की जांच में पुलिस अधिकारियों के सामने कुछ ऐसे सवाल खड़े हुए जिन के जवाब तुरंत नहीं मिले.

शिवाजी पार्क में 40-42 गज के छोटेछोटे और एकदूसरे से सटे हुए मकान बने हैं. इन मकानों में अगर प्रेशर कुकर की सीटी भी बजती है तो पड़ोसी को सुनाई देती है. लेकिन 5 लोगों को एकएक कर के मारा गया होगा, इस के बावजूद मकान में ऊपर की मंजिल पर सो रही संतोष और कविता को उन की चीखें सुनाई नहीं दी?

पड़ोसियों की कौन कहे, मकान में रहने वालों तक को घटना की भनक नहीं लगी. जब दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद थी तो कातिल मकान के अंदर कैसे आए? अगर दुश्मनी की वजह से पांचों लोगों की हत्या की गई तो ऊपर के कमरे में सो रही संतोष, कविता और उस के बेटे विनय को कातिलों ने क्यों जीवित छोड़ दिया?

मकान में लूटपाट या चोरी जैसी कोई बात नजर नहीं आई. वैसे भी बनवारीलाल छोटीमोटी नौकरी करता था. उस के पास कोई बड़ी पूंजी या धनदौलत नहीं थी, जिसे लूटने के लिए कोई आता. पूछताछ में यह जरूर पता चला था कि बनवारीलाल की स्कूटी गायब है.

पूछताछ में कविता ने पुलिस को यह भी बताया था कि उन का पैतृक गांव गारू है, जो अलवर जिले की कठूमर तहसील में पड़ता है. गांव में उन की 7-8 बीघा जमीन है, जिस के बंटवारे को ले कर चाचा व ताऊ ससुर से विवाद चल रहा है. इस के अलावा उन की किसी से कोई रंजिश नहीं है.

पूछताछ में यह भी पता चला था कि मृतक बनवारीलाल शर्मा अलवर के पास मत्स्य औद्योगिक क्षेत्र में स्थित हैवल्स कंपनी में इलेक्ट्रीशियन थे. शिवाजी पार्क के इस मकान में वह अपने छोटे भाई मुकेश के साथ करीब डेढ़ साल से किराए पर रह रहे थे. उन के परिवार में पत्नी संतोष के अलावा 3 बेटे, 17 साल का अमन उर्फ मोहित, 15 साल का हिमेश उर्फ हैप्पी और 12 साल का अज्जू उर्फ लोकेश था.

कैसे आया छोटा भाई मुकेश शक के दायरे में

बनवारीलाल के छोटे भाई मुकेश के परिवार में पत्नी कविता के अलावा 2 बेटे, 11 साल का निक्की उर्फ अखिलेश और 8 साल का विनय था. मुकेश भजन व जागरण मंडलियों में गाताबजाता था. वह घटना से 2 दिन पहले 1 अक्तूबर, 2017 को पाली जिले के जैतारण कस्बे में जाने की बात कह कर घर से गया था.

जाते समय मुकेश अपना मोबाइल फोन अपने पिता मुरारीलाल को दे गया था. उन दिनों मुरारीलाल पत्नी के साथ बेटों और पोतों से मिलने अलवर आए हुए थे. संयोग से 2 अक्तूबर को ही वह पत्नी के साथ गांव चले गए थे. बनवारीलाल की पत्नी संतोष और मुकेश की पत्नी कविता सगी बहनें थीं.

मुकेश के बड़े भाई, 3 भतीजों और एक बेटे की हत्या की गई थी. उस का कुछ अतापता नहीं था. ना ही वह घर वालों को कोई मोबाइल नंबर भी नहीं बता गया था कि उस से संपर्क किया जा सकता. बनवारीलाल के परिवार में मर्द के नाम पर केवल मुकेश का 8 साल का बेटा विनय बचा था.

इन हत्याओं की सूचना गांव गारू गए मुरारीलाल को दी गई तो वह भाग कर अलवर आ गए. बेटे और पोतों की लाशें देख कर 80 साल के मुरारीलाल सुधबुध खो बैठे. वह एक ही बात की रट लगाए थे कि अपने इन बूढे़ कंधों पर अपने बेटे और पोतों की लाशें कैसे उठाएंगे? उन की तो किसी से ऐसी दुश्मनी भी नहीं थी, फिर किसी ने उन के परिवार को इस तरह क्यों उजाड़ दिया.

पुलिस ने 4 डाक्टरों के पैनल से पांचों लाशों का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम में पता चला कि हत्या से पहले सभी को जहर दिया गया था. पांचों के गले पर 8 से 10 सेंटीमीटर गहरे घाव थे. जिस से उन की भोजन व श्वांस नली कट गई थी. घर वाले पांचों लाशों को गांव ले गए, जहां गमगीन माहौल में पांचों का एक ही चिता पर अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस घटना से गांव का हर आदमी दुखी था.

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए पड़ोसियों से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिस से 5 लोगों की जघन्य हत्या के कारणों का पता चलता. पुलिस ने शिवाजी पार्क और आसपास के इलाकों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाल कर खंगाली. इन में रात 12 बजे से डेढ़ बजे के बीच कालोनी की एक गली से एक मोटरसाइकिल निकलती दिखाई दी.

सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में कुछ नहीं मिला

इस से पुलिस को कोई मदद नहीं मिल सकी. पुलिस को बनवारीलाल की उस स्कूटी की तलाश थी, जो वारदात के बाद से गायब थी. रात तक पुलिस को उस स्कूटी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला. इस के अलावा भी कोई ऐसा सुराग नहीं मिला था, जिस से पुलिस कातिलों तक पहुंच पाती. पुलिस ने आसपास के पार्क, मकान और नालेनालियों में उस हथियार की तलाश की, जिस से पांचों लोगों की हत्या की गई थी. लेकिन काफी प्रयास के बाद भी हथियार नहीं मिले.

जमीनी रंजिश की आशंका को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने गारू गांव जा कर मुरारीलाल के घर वालों तथा रिश्तेदारों से गहन पूछताछ की. मृतक बनवारीलाल और पत्नी संतोष के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवा कर चेक की गई. पहले दिन की जांच में इस जघन्य हत्याकांड की शक की सुई परिवार वालों के आसपास ही घूमती नजर आई.

इस में जमीनी रंजिश के अलावा छोटे भाई मुकेश पर भी पुलिस को शक था. इस की वजह यह थी कि वह 2 दिन पहले ही घर से बाहर जाने की बात कह कर गया तो अभी तक लौट कर नहीं आया था. वह अपना मोबाइल फोन भी पिता को दे गया था.

अस्पताल में भरती मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष को छुट्टी मिल गई तो वह पहले वह गांव गारू गई. वहां से वह भरतपुर जिले के नगर कस्बे में रह रहे अपने एक रिश्तेदार के यहां चली गई और उसी दिन रात में कस्बे के ही सरकारी अस्पताल में भरती हो गई. आधी रात के बाद उसे वहां से छुट्टी दे दी गई तो वह अपने उसी रिश्तेदार के यहां चली गई.

अगले दिन यानी 4 अक्तूबर को पुलिस को बनवारीलाल की गायब स्कूटी शहर की कृषि उपज मंडी मोड़ के पास मिल गई. पुलिस ने स्कूटी से फिंगरप्रिंट उठा कर जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भिजवा दिए.

जिस जगह स्कूटी मिली थी, उस के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो एक स्कूटी पर रात को 2 लोग जाते दिखाई दिए.

जहां स्कूटी मिली थी, वहां से अलवर रेलवे स्टेशन पास ही था. इस के अलावा दिल्ली, भरतपुर, मथुरा और आगरा के लिए बसें भी उधर से ही जाती थीं. इस से अंदाजा लगाया कि हत्यारे स्कूटी को वहां छोड़ कर ट्रेन या बस से चले गए होंगे.

इस जघन्य हत्याकांड की जानकारी मिलने पर जयपुर से आईजी हेमंत प्रियदर्शी भी अलवर आए. उन्होंने घटनास्थल का तो निरीक्षण किया ही, एसपी निवास पर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग भी की, जिस में मामले की जांच के बारे में जानकारी ले कर खुलासे के लिए कुछ दिशानिर्देश भी दिए.

एसपी ने एक बार फिर किया घटनास्थल का निरीक्षण

दूसरी ओर एसपी राहुल प्रकाश को मृतक की पत्नी संतोष के भरतपुर जिले के नगर कस्बे में पहुंचने की जानकारी मिली तो उन्होंने वहां जा कर उस से और उस की छोटी बहन कविता से पूछताछ की.

वहां से लौट कर उन्होंने उसी दिन रात साढ़े 10 बजे एक बार फिर शिवाजी पार्क जा कर घटनास्थल का निरीक्षण किया.

तीसरे दिन पुलिस ने गारू गांव जा कर बनवारीलाल की पत्नी संतोष, मातापिता, चाचाताऊ और घर के अन्य लोगों से अलगअलग पूछताछ की. संतोष और कविता उसी दिन नगर से गारू पहुंची थीं.

राहुल प्रकाश ने रेलवे स्टेशन जा कर रात की ड्यूटी वाले रेल कर्मचारियों, स्टाल वालों, कुलियों और अन्य लोगों से पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में उन का कोई भला नहीं हुआ, इसलिए उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा.

उसी दिन राहुल प्रकाश ने एक बार फिर संतोष और उस की 2 बहनों को अलवर के पुलिस अन्वेषण भवन में बुला कर पूछताछ की. इस के अलावा पुलिस मुकेश के बारे में भी पता करती रही, क्योंकि 5 दिन बीत जाने के बाद भी उस का कुछ अतापता नहीं था.

काफी भागदौड़ और मुखबिरों से पुलिस को कुछ ऐसे सबूत मिले, जिन से इस जघन्य हत्याकांड की गुत्थी सुलझने की उम्मीद नजर आई. इस के बाद कडि़यां जोड़ते हुए पुलिस की कई टीमें बना कर विभिन्न जगहों पर भेजी गईं. एक पुलिस टीम संतोष को पूछताछ के लिए अलवर ले आई.

संतोष से गहन पूछताछ के बाद पुलिस को मंजिल मिलती नजर आई. 7 अक्तूबर, 2017 को पुलिस ने इस मामले का खुलासा करते हुए मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष शर्मा, उस के प्रेमी हनुमान प्रसाद जाट और भाड़े के 2 हत्यारों कपिल धोबी और दीपक धोबी को गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. वह छोटे से गांव की ऐसी महत्त्वाकांक्षी युवती की कहानी है, जिस ने परिवार के गुजरबसर और आत्मरक्षा के लिए ताइक्वांडो सीखा. इसी ताइक्वांडो की बदौलत कई देशों में घूमते हुए वह ऊंचे ख्वाब देखती रही.

सपने सच करने के लिए साड़ी और सलवार सूट पहनने वाली वह युवती शौर्ट शर्ट और पैंट पहन कर गले में टाई लगा कर सोसाइटी के एक वर्ग में उठनेबैठने लगी, जहां उस के दोस्त पर दोस्त बनते गए. पैसे भी आने लगे. लेकिन उस की यह आजादी पति और बेटे को पसंद नहीं आई. उन्होंने उसे रोकना चाहा तो उस ने परिवार को ही तबाह कर दिया.

अलवर जिले के रैणी के पास एक छोटे से गांव के रहने वाले ब्रजमोहन शर्मा की बेटी संतोष उर्फ संध्या शर्मा की शादी करीब 19 साल पहले गारू गांव के रहने वाले बनवारीलाल शर्मा से हुई थी. बनवारीलाल सीधासादा इंसान था. गांव में रह कर वह खेतीबाड़ी करता था, उसी से उस का गुजरबसर हो रहा था. जब संतोष की शादी हुई थी, वह मात्र 17 साल की थी. जबकि बनवारीलाल 27 साल का था.

इस तरह दोनों की उम्र में करीब 10 साल का अंतर था. संतोष ने भी अन्य लड़कियों की तरह हसीन ख्वाब देखे थे. संतोष पढ़ीलिखी थी, इसलिए उस के ख्वाब भी बड़े थे. वह सुंदर भी थी. शादी के बाद उस की सुंदरता में और निखार आ गया था.

गांव में पलीबढ़ी संतोष शर्मा की महत्त्वाकांक्षाएं

संतोष को बनवारीलाल से कोई परेशानी नहीं थी. बस, परेशानी थी तो यह कि वह भोलाभाला था. उसे दुनियादारी से ज्यादा मतलब नहीं रहता था. वह अपने घरपरिवार में ही रमा रहता था, जबकि संतोष चाहती थी कि वह उसे घुमाएफिराए, सिनेमा दिखाए, होटल में खाना खिलाए और उस की फरमाइशें पूरी करे. लेकिन बनवारीलाल को इन बातों से कोई मतलब नहीं था.

संतोष जैसी खूबसूरत और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर बनवारीलाल खुश था. उस के पिता मुरारीलाल और उन की पत्नी भी संतोष जैसी बहू पा कर खुश थीं. संतोष ने बूढे़ मुरारीलाल को जल्दी ही दूसरी खुशियां भी दे दी थीं. उसे लगातार 3 बेटे ही हुए थे. बच्चों के पैदा होने से मुरारीलाल खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.

पति और ससुराल वाले भले ही खुश थे, लेकिन गांव में रहते हुए संतोष को अपनी इच्छाएं दम तोड़ती नजर आ रही थीं. हालांकि उस की छोटी बहन कविता भी उसी घर में ब्याही थी. संतोष कभीकभी अपने मन की बात कविता से कह भी देती थी.

अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए संतोष ने पति बनवारीलाल को गांव छोड़ कर अलवर में चल कर रहने के लिए राजी कर लिया. कई सालों पहले बनवारीलाल संतोष और तीनों बच्चों के साथ अलवर आ गया और छोटामोटा काम करने लगा. बाद में उसे हैवल्स कंपनी में इलैक्ट्रीशियन की नौकरी मिल गई. गांव से शहर आ कर रहने के बाद बनवारीलाल के परिवार के खर्चे बढ़ गए तो संतोष ने आगे बढ़ कर ताइक्वांडो सीख कर लड़केलड़कियों को इस की ट्रेनिंग दे कर पैसे कमाने का विचार किया.

बनवारीलाल क्या कहता, वह तो खुद बढ़ते खर्चे से परेशान था. संतोष की इच्छा पर उस ने उसे ताइक्वांडो सीखने की इजाजत दे दी. ताइक्वांडो सीखने के दौरान ही संतोष की दोस्ती हनुमानप्रसाद जाट से हो गई.

25 साल का हनुमानप्रसाद अलवर जिले के बड़ौदामेव कस्बे के होलीचौक का रहने वाला था. वह ताइक्वांडो का अच्छा खिलाड़ी था. वह 2 बार नेशनल स्तर पर खेल चुका था. वह पढ़ाई में भी अच्छा था. संस्कृत से एमए करने के बाद वह उदयपुर की सुखाडि़या यूनिवर्सिटी से शारीरिक शिक्षक का कोर्स कर रहा था.

हनुमानप्रसाद से दोस्ती हुई तो वह संतोष को कई प्रतियोगिताओं में राजस्थान से बाहर भी खेलने के लिए ले गया. साथसाथ खेलने और दोस्ती होने से संतोष गठीले बदन के हनुमानप्रसाद की ओर आकर्षित होने लगी. उम्र में वह संतोष से 11 साल छोटा था, लेकिन जब प्यार होता है तो वह न जातिपांत देखता है और न ही उम्र या गरीबीअमीरी. यही संतोष के साथ भी हुआ. संतोष और हनुमानप्रसाद के बीच प्यार ही नहीं हुआ, बल्कि शारीरिक संबंध भी बन गए.

ताइक्वांडो सीख कर संतोष अलवर में लड़कियों को इस का प्रशिक्षण देने लगी. वह कई शिक्षण संस्थाओं में भी स्कूली बच्चों को ताइक्वांडो का प्रशिक्षण देती थी. 35-36 साल की संतोष शौर्ट शर्टपैंट व टाई पहन कर 20 साल की कालेज गर्ल से ज्यादा नहीं लगती थी. खूबसूरत वह थी ही, इसीलिए हनुमानप्रसाद उस पर जान छिड़कता था. करीब 5 महीने पहले संतोष ताइक्वांडो खेलने के लिए नेपाल और श्रीलंका भी गई थी.

हनुमानप्रसाद अपनी पढ़ाई करने उदयपुर चला गया तो संतोष 2 बार उदयपुर भी गई. हनुमानप्रसाद उदयपुर के आजादनगर में किराए का कमरा ले कर रहता था. संतोष जब भी उदयपुर जाती, वह उसे होटल में ठहराता और खुद भी उस के साथ होटल में रहता.

संतोष ने संध्या शर्मा नाम से फेसबुक पर अपनी प्रोफाइल बना रखी थी. इस में उस ने खुद को इंगलिश मीडियम स्कूल व अलवर के राजर्षि कालेज में पढ़ा बताते हुए स्टेटस सिंगल यानी अविवाहित डाल रखी थी. संध्या वाले फेसबुक पेज पर विजेताओं को पुरस्कार वितरित करती संतोष की टाई वाली कई फोटो व ताइक्वांडो खेलते हुए कई फोटो लगी हुई थीं.

जब घर वालों को पता चला संतोष के प्यार का

कहते हैं, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही संतोष के साथ भी हुआ. हनुमानप्रसाद से उस के संबंधों की जानकारी बनवारीलाल और बड़े बेटे अमन उर्फ मोहित को हो गई. बापबेटों ने इस का विरोध किया, तो घर में लगभग रोज ही कलह होने लगी. संतोष ने यह बात अपने प्रेमी हनुमानप्रसाद को बताई तो उस ने रोजाना की इस कलह से छुटकारा दिलाने के लिए संतोष के साथ मिल कर उस के पति बनवारीलाल और बच्चों को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली.

उसी योजना के तहत हनुमानप्रसाद ने अलवर के पास गुजूकी गांव के रहने वाले कपिल धोबी से संपर्क किया. कपिल ने मदद के लिए अपने परिचित दीपक उर्फ बगुला धोबी को साथ मिला लिया. इन दोनों को हनुमानप्रसाद ने पैसे का लालच दे कर बनवारीलाल की हत्या के लिए राजी किया था. हत्या के लिए हनुमानप्रसाद ने 12 सौ रुपए में एक चाकू औनलाइन खरीदा जिसे उदयपुर के अपने पते पर मंगाया था.

एक चाकू उस ने बाजार से खरीदा. फिंगरप्रिंट न आ सकें, इस के लिए हनुमानप्रसाद ने हाथ में पहनने वाले ग्लव्स भी बाजार से खरीदे. योजनाबद्ध तरीके से हनुमानप्रसाद जाट, कपिल धोबी और दीपक धोबी 2 अक्तूबर, 2017 की रात करीब 10 बजे शिवाजी पार्क पहुंचे. वे बनवारीलाल के मकान के पास पहुंचे तो संतोष ने छत से उन्हें इशारे से थोड़ी देर बाद आने को कहा.

इस के बाद संतोष ने पति और बच्चों को रात के खाने में दही और नमकीन के रायते में जहरीला पदार्थ मिला कर खिला दिया. इस से बनवारीलाल और चारों बच्चे अचेत हो गए. रात करीब एक बजे हनुमानप्रसाद भाड़े के दोनों हत्यारों कपिल और दीपक के साथ शिवाजी पार्क पहुंचा तो संतोष ने नीचे आ कर दरवाजा खोल दिया.

हनुमानप्रसाद और उस के दोनों साथियों ने कमरे में जा कर अपने साथ लाए चाकुओं से पहले बनवारीलाल का गला रेत दिया. उस के बाद एकएक कर के चारों बच्चों के गले काट दिए. बेहोश होने की वजह से कोई भी चीखाचिल्लाया नहीं.

जब हनुमानप्रसाद और उस के साथी बनवारीलाल और बच्चों के गले रेत रहे थे तो संतोष सीढि़यों पर खड़ी हो कर यह सब देख रही थी. 5 लोगों की हत्या कर के जब तीनों जाने लगे तो संतोष ने बनवारीलाल की स्कूटी की चाबी और 3 हजार रुपए हनुमानप्रसाद को दिए.

स्कूटी से हनुमानप्रसाद, कपिल और दीपक कृषि उपज मंडी के पास पहुंचे और वहीं मोड़ के पास उसे खड़ी कर के अपने कपड़े बदले और औटो पकड़ कर राजगढ़ चले गए. वे राजगढ़ से ट्रेन पकड़ कर जयपुर जाना चाहते थे.

लेकिन उन्हें वहां से ट्रेन नहीं मिली तो वे दूसरे औटो से राजगढ़ से बांदीकुई चले गए, जहां से सभी जयपुर चले गए. जयपुर से हनुमानप्रसाद तो उदयपुर चला गया, जबकि दीपक और कपिल अलवर आ कर अपने गांव गुजूकी चले गए.

संतोष ने खुद को बताया बेकसूर

5 दिनों तक पथराई आंखों से हर आनेजाने वाले को देख रहे मुरारीलाल को जब पता चला कि पुलिस ने बहू सहित 4 लोगों को बेटे और पोतों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है तो उन्होंने भर्राई आवाज में कहा, बहू समेत सभी हत्यारों को फांसी पर लटका देना चाहिए, इस से कम सजा उन्हें नहीं मिलनी चाहिए. हम ने उन का क्या बिगाड़ा था, जो मेरा परिवार इस तरह उजाड़ दिया.

गिरफ्तारी के बाद संतोष खुद को बेकसूर बता रही थी. उस का कहना था कि वह निर्दोष है. उसे फंसाया जा रहा है. उस का हनुमानप्रसाद से कोई संबंध नहीं है. हनुमानप्रसाद और उस के साथियों ने ही उस के पति और बच्चों की हत्या की है. उन की हत्या उन्होंने क्यों की, यह तो वही बताएंगे.

पुलिस का मानना है कि अगर संतोष के सासससुर एक दिन पहले गांव नहीं चले गए होते तो शायद उन की भी हत्या हो जाती. संतोष ने उन्हें रोकने की काफी कोशिश की थी, लेकिन वे नहीं रुके थे. पुलिस ने 8 अक्तूबर को संतोष, हनुमानप्रसाद, कपिल और दीपक को अतिरिक्त सिविल जज एवं न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर रिमांड की मांग की. मजिस्ट्रैट ने चारों आरोपियों को 13 अक्तूबर तक के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया.

रिमांड अवधि के दौरान आईजी हेमंत प्रियदर्शी ने भी अलवर आ कर आरोपियों से पूछताछ की. पुलिस हनुमान को ले कर उदयपुर गई, जहां आजादनगर स्थित उस के किराए के कमरे से स्कूटी की चाबी, उदयपुर आने का टिकट, कपडे़जूते आदि बरामद कर लिए गए. कमरे में औनलाइन शापिंग द्वारा मंगवाए गए चाकू का बिल भी मिला.

पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर राजगढ़ के रेलवे स्टेशन के पास एक गड्ढे में छिपा कर रखे 2 चाकू व तीन जोड़ी गलव्स भी बरामद किए. बहरहाल, प्यार में अंधी संतोष ने अपने परिवार को पूरी तरह तबाह कर दिया. उस के ऊंचे सपनों ने उसे जेल के सीखचों के पीछे पहुंचा दिया.

प्रेमी और भाड़े के कातिलों के हाथों पूरे परिवार को मरवाने के बाद संतोष अब चैन से नहीं रह सकेगी. उस की छोटी बहन कविता अपना दुख किसी से नहीं कह पा रही है उस के बेटे निक्की ने ताई का क्या बिगाड़ा था, जो उसे भी मरवा दिया.

कविता का दुख यह भी है कि उस का पति मुकेश कथा लिखे जाने तक घर नहीं लौटा था. लगता है, इस बात का उसे पता ही नहीं चला है कि उस की भाभी ने उस की बगिया उजाड़ दी है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रामजन्मभूमि ट्रस्ट में विहिप की छाया

राममंदिर का मुकदमा जब सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था उस समय राम की वंशावली पर चर्चा हुई तो क्षत्रिय समाज के तमाम राज परिवारों ने वंशावली पेश की. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अयोध्या में जब राममंदिर बनाने के लिये रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया गया तो राम की वंशावली पर कोई ध्यान नहीं रखा गया. रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में विश्व हिन्दू परिषद और सरकार के खास लोगो का प्रभाव साफतौर पर दिखता है. इसको लेकर अयोध्या और रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कुछ सदस्य में रोष झलक रहा है.

रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में विश्व हिन्दू परिषद यानि विहिप का प्रभाव सबसे अधिक दिखाई दे रहा है. रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष 83 साल के मंहत नृत्य गोपालदास को बनाया गया है. वह अयोध्या की मणिराम छावनी सेवा ट्रस्ट और श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष है. श्रीरामजन्मभूमि न्यास का गठन विश्व हिन्दू परिषद के द्वारा किया गया था. रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव पद पर चंपत राय को बिठाया गया है. चंपत राय विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी रहे है. इस तरह से रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के दो प्रमुख पदो पर विश्व हिन्दू परिषद ने अपने लोगों को स्थापित कर लिया है.

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हनुमानगढी के मंहत धर्मदास रामजन्मभूमि के मुकदमें को शुरू से पैरवी करते रहे है. वह खुद को इस ट्रस्ट में शामिल करने की मांग को लेकर दिल्ली भी पहुंचे पर उनको मीटिंग में शामिल नहीं किया गया. उनको मीटिंग से अलग दूसरे कक्ष में बैठाया गया. रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के न्यासी निर्मोही अखाडा के मंहत दिनेन्द्र दास ने अखाडे के सरपंच मंहत राजा रामचन्द्राचार्य के अलावा 5 अन्य पंचों को भी ट्रस्ट में शामिल करने का प्रस्ताव रखा था लेकिन इस प्रस्ताव को सरकार ने अभी स्वीकार नहीं किया है. इस बात को लेकर अध्योध्या के संत समाज में गुस्सा है.

रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को लेकर सरकार और भाजपा की तरफ से यह कहा गया कि पार्टी और सरकार के लोग इसमें शामिल नहीं होगे. जब रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन हुआ तो यह साफ हो गया कि इसमें विश्व हिन्दू परिषद के लोगों के साथ ही साथ सरकार और केन्द्र सरकार की पंसद के लोगों को ही प्रमुख रूप से रखा गया है. ट्रस्ट में उत्तर प्रदेश सरकार के 2 अफसरो अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी और जिलाधिकारी अयोध्या अनुज कुमार झा को पदेन सदस्य बनाया गया है. देखने में यह दोनो पद पदेन सदस्य के है पर सबसे महत्वपूर्ण पद है. इनके बिना ब्यूरोक्रेसी में एक पत्ता भी इधर से उधर नहीं होगा.

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रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के खाते का संचालन करने के लिये जिन तीन लोगों को अधिकार दिये गये है उनमें पहला नाम विश्व हिन्दू परिषद के चंपत राय का है. दो दूसरे नामों में गोविंददेव गिरी और ट्रस्ट के स्थाई सदस्य डाक्टर अनिल कुमार मिश्र का है. रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के प्रमुख नामों में ट्रस्ट प्रमुख के. पराशरण इस मामले के सुप्रीमकोर्ट के वकील रहे है. ट्रस्ट के चेयरमैन नृपेन्द्र मिश्र केन्द्र के चहेते असफर रहे है. स्थायी सदस्यों में विमलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्र अयोध्या के राज परिवार से आते है. यह ट्रस्ट के स्थायी सदस्य है. स्थायी सदस्यों में दूसरा नाम मंहत दिनेद्र दास, स्वामी परमानंद, माधवाचार्य और वासुदेवानंद है.

रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट निर्माण की शुरूआत में पहले मंहत नृत्य गोपालदास को भी शामिल नहीं किया गया था. इसका कारण यह था कि मंहत नृत्य गोपालदास 1990 के दशक के विहिप के समर्थक संतो में शामिल नहीं थे. उस समय श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्या मंहत परमहंस दास थे. महत परमहंसदास की मौत के बाद नृत्य गोपालदास को श्रीरामजन्मभूमि न्यास का अध्यक्ष बनाया गया था. इस कारण नृत्य गोपालदास को शुरूआत में रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में नहीे रखा गया. अयोध्या के सतों के दबाव में अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद भी उनको ट्रस्ट के खातों के संचालन का अधिकार नहीं दिया गया.

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मैं अपने किसी भी कदम को गलत नहीं मानता : विक्की कौशल

बहुत ही कम समय में फिल्म ‘‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार जीत लेने वाले अभिनेता विक्की कौशल ने लगातार  अलग अलग विषयों वाली फिल्में करते आ रहे हैं. बीच में उन्होंने ‘जुबान’ व रामन राघव 2’ जैसी असफल फिल्में भी की. पर उन्हें अपनी किसी भी फिल्म को करने का अफसोस नही है. अब वह पहली बार हौरर फिल्म ‘‘भूत पार्ट वन : द हंटेड शिप’’ में नजर आने वाले है, जो कि 21 फरवरी को रिलीज होगी.

फिल्म ‘‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पाकर खुश होंगे ?

बेहद खुश हूं. सच कहूं तो ‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ से हमने कोई उम्मीद नहीं की थी. मैं तो सिर्फ यह सोच रहा था कि लोग मेरी इस फिल्म को देख लें. क्योंकि पहली बार मुझे एक बड़ी फिल्म में मेनलीड किरदार निभाने का अवसर मिला था.मेरे कंधे पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी. फिल्म के निर्देशक नए थे. यह हमारे लिए बहुत बड़ी परीक्षा थी. पर उपर वाला और लोग हम पर मेहरबान रहे. बहुत प्यार मिला.फिल्म को लोगों ने सराहा. बाक्स आफिस पर भी फिल्म ने कमाल का व्यवसाय किया. लोगों के साथ एक ऐसा इमोशन जुड़ा कि लोगों ने हमें अपना लिया. फिर ‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ के लिए ही राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. यह मेरे सपनों से परे था. मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ इतनी जल्दी हो जाएगा.

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क्या अब आप ‘‘जुबान’’ और ‘‘रामन राघव 2’’ को करना गलती मानते हैं ?

बिलकुल सही था. मैं अपने किसी भी कदम को गलत नहीं मानता. मुझे मेरे किसी भी कदम का अफसोस नहीं है. बल्कि मैं तो इन फिल्मों के निर्माता व निर्देशकों का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे उस वक्त काम दिया, जिस वक्त मुझे कोई नहीं जानता था. मैं काम पाने के लिए संघर्ष कर रहा था. उस वक्त फिल्म ‘‘जुबान’’ के निर्देशक मोजेस सिंह ने मुझे इस फिल्म में अभिनय करने का मौका दिया. मुझे ‘मसान’ से पहले ‘जुबान’ में ही काम करने का अवसर मिला था. मेरे लिए यह बड़ी बात है कि उन्हे मेरे जैसे नए लड़के में कुछ बात नजर आयी और उन्होंने मुझ पर पैसा लगाने का निर्णय लिया. जबकि वह पहली बार फिल्म निर्देशित कर रहे थे. पहली बार फिल्म निर्देशित करते समय हर निर्देशक एक चर्चित चेहरे को अपनी फिल्म का हिस्सा बनाना चाहता है. जिससे उन्हें एक सुरक्षा मिले, पर उन्होंने रिस्क ली थी. उन्होंने मुझ पर यकीन कर, मुझ पर रिस्क ली,  इसके लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूं. मैंने उनके साथ मेहनत की. वैसे हर फिल्म की अपनी तकदीर होती है. मैं मानता हूं कि ‘‘जुबान’’ और ‘‘रामन राघव 2’’ दोनो सफल नही हुई. दर्शकों तक ठीक से नहीं पहुंची. हमें सिर्फ सच्चे मन और मेहनत के साथ काम करना होता है. ‘मसान’ के बाद जितनी के्रडीबिलिटी मिली थी, उसके चलते फिल्म इंडस्ट्री के हर इंसान ने इस फिल्म को देखा था और उनके दिमाग में मेरी ईमेज बन गयी थी कि यह उत्तर प्रदेश या बिहार का छोरा@ लड़का  है. मेरे पास उसी तरह के किरदार वाली फिल्में आ रही थी और मैंने तय कर लिया था कि मै उस तरह की फिल्में नही करुंगी अन्यथा में टाइपकास्ट होकर रह जाउंगा. परिणामतः ‘‘मसान’’ के बाद सात माह तक मैं घर पर बैठा रहा.

जब अनुराग कश्यप सर ने मुझे ‘‘रामन राघव 2’’आफर की थी, तो मुझे पता था कि यह एक डार्क फिल्म है. मुझे पता था कि दर्शकों के लिए इस फिल्म को स्वीकार करना आसान नहीं होगा. कम से कम पारिवारिक दर्शकों के लिए यह फिल्म नहीं है. पर मुझे अहसास हुआ कि अगर मुझे इसमें अपनी प्रतिभा को दिखाने का अवसर मिल गया,तो मेरे प्रति फिल्मकारों की सोच बदल जाएगी.एक सीधे साधे रोमांटिक लड़के से मैं एक ऐसा किरदार कर रहा था, जो कोकीन पीता है, ड्रग्स लेता है और एक गंदा पुलिस वाला है. एक डार्क फिल्म में एकदम विपरीत किरदार निभाने का अवसर मिलना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती और एक सुनहरा अवसर था. मेरी सोच यह थी कि फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को मेरी अभिनय की रेंज दिख जाएगी. फिर मैंने अनुराग सर से ही बहुत कुछ सीखा है. मैंने उनके साथ बतौर सहायक निर्देशक फिल्म ‘‘गैंग आफ वासेपुर’’ की थी और अब उनके निर्देशन में अभिनय करने का अवसर मिल रहा था. इस तरह मेरा एक सपना सच हो रहा था. इससे मुझे यह भी लगा कि अब मुझे दूसरे मौके मिल जाएंगे. एक तरह से यह फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के लिए मेरा औडीशन था.

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आपकी एक फिल्म ‘‘लव स्क्वायर फुट’’ सिनेमाघरों की बजाय ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’पर आ गयी.उसके बाद आपने नेटफिलक्स के लिए ‘लस्ट स्टोरी’ भी की. कलाकार के तौर पर आप इसे किस तरह से लेते हैं ?

कलाकार के तौर पर हमारे अभिनय में कोई फर्क नहीं आता. हमें एक इमोशन दिखाना होता है, तो हम उसे उसी सच्चाई के साथ निभाते हैं. उस वक्त हम यह नहीं सोचते कि सिनेमाघर के लिए अलग इमोशन होगा और ओटीटी प्लेटफार्म के लिए अलग इमोशन होगा. इसके अलावा अभी फिलहाल ओटीटी प्लेटफार्म बहुत अच्छे दौर से गुजर रहा है .इसके अपने दर्शक हैं. अच्छा कंटेंट परोसा जा रहा है. यह एक नया एवेन्यू खुला है. मेरे लिए भी यह बहुत नया है. मैं भी देखना चाहता था कि हां पर क्या है? ओटीटी प्लेटफार्म पर बाक्स आफिस का दबाव नहीं होता. यह दबाव नहीं होेता कि तीन दिन में फिल्म थिएटर से उतर जाएगी. एक बार ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्म आ गयी,तो आ गयी,फिर आप इसे उसी दिन देखें या छह माह बाद देखें.

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पर ओटीटी प्लेटफार्म पर बोल्ड सीन या बोल्ड कंटेंट को ज्यादा प्रधानता दी जा रही है ?

ऐसा आप कह सकते हैं.क्योंकि सेंसर का दबाव नही है.ऐसे मंे यदि किसी के पास ऐसा विषय है, जिसमें बोल्डनेस दिखाना है या अति हिंसा दिखानी है, तो उसके लिए उस विषय पर काम करना सहूलियत वाला हो रहा है.फिर चाहे गाली गलौज का मसला हो. तो फिल्मकार महसूस करता है कि यहां पर दर्शक हैं,और उसके लिए अपनी बात कहने में बंदिशें भी नही है. वह कहानी को सच्चाई से दिखा पाएगा,तो वह ओटीटी प्लेटफार्म की ओर रूख कर लेता है.

आपने पहली बार हौरर फिल्म ‘‘भूत पार्ट वन द हंटेड शिप’’ की है ?

कलाकार के तौर पर यह भूख मेरी रही है और हमेशा रहेगी कि हर बार कुछ अलग किया जाए.अब जैसे कि मैने एक हौरर फिल्म ‘‘भूत पार्ट वनः द हंटेड शिप’’की है,यह एक प्रयोग है. तो वहीं ‘‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’’के बाद मैंने हौरर जैसे जानर की फिल्म की है, जिस जानर की फिल्में लोगों ने कई वर्षों से नहीं बनायी है. लंबे समय से कोई भी स्थापित कलाकार इस जानर की फिल्म कर ही नहीं रहा है.मेरी राय में कलाकार और दर्शकों के लिए एक बेहतरीन दौर चल रहा है. हम नई सोच, नई तरह की फिल्मों को मौका दे रहे हैं. ऐसे में यदि ‘‘धर्मा प्रोडक्शंस’’ जैसा बड़ा बैनर हौरर जौनर की फिल्म की पटकथा पर यकीन कर फिल्म बना रहा हो, तो लोग अपनाएंगे या नह अपनाएंगे. ऐसे में मैंने सोचा कि फिल्म करके देखा जाए. अब एक तरफ दर्शक कुछ नया चाहता है,  और मैं फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ता हूं, मुझे स्क्रिप्ट पसंद आती है, तो फिर मैं बहुत ज्यादा कलकुलेशन नहीं करता. मेरा मन स्क्रिप्ट पर आ गया, तो फिर मैं उस पर कूद पड़ता हूं. मैंने मन की सुनी और बिना किसी कलकुलेशन के फिल्म ‘‘भूत पार्ट वनः द हंटेड शिप’’ की है.

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फिल्म ‘‘भूत पार्ट वनः द हंटेड शिप’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे ?

फिल्म का ट्रेलर देखकर आपकी समझ में तो आ गया होगा कि मैंने इसमें पृथ्वी चैहान का किरदार निभाया है. यह ‘सी बर्ड’ शिप का सर्वेयर है. आपको पता होगा कि 2011 में एक दिन अचानक ‘विस्डम’नामक शिप भटक कर मुंबई के जुहू चैपाटी पर आकर लगा था. इसमें कोई इंसान नहीं था.यह लोगों के लिए पिकनिक स्पौट हो गया था. उसी को लेकर निर्देशक ने हौरर कहानी रची है. किसी को नहीं पता कि यह शिप कहां से आई है और इसकी क्या स्थिति है. अमूमन जब इस तरह कोई शिप आ जाता है, तब एक सर्वेयर टीम जाकर परीक्षण करती है कि की शिप किस हालत में है? यह आगे भेजे जाने लायक है या नहीं? कहीं डीजल तो नही बह रहा? इसके सभी कल पुर्जे बराबर हैं?क्या इसे स्क्रैप करना है? इसकी जांच के लिए पृथ्वी  चैहान जब इस ‘सी बर्ड’ शिप के अंदर जाता है, तो उसके साथ शिप के अंदर क्या-क्या होता है, वह क्या-क्या अजीब सी चीजें महसूस करता है? उसी की कहानी है. इसमें पृथ्वी के जीवन की कहानी भी है. वह कभी मर्चेंट नेवी मे था. उसने भागकर मेघा से शादी की थी और एक बेटी का पिता भी बना था. पर आज पत्नी व बेटी दोनो इस संसार में नही है.

आने वाली दूसरी फिल्में कौन सी हैं?

‘‘तख्त’’,‘‘सरदार उधम सिंह’,‘‘अश्वत्थामा’’ जैसी फिल्में कर रहा हूं.

इनके लिए आपको रिसर्च भी काफी करना पड़ रहा होगा ?

जी हां ! कहानी व किरदार के अनुसार काफी रिसर्च करना पड़ता है.वह तो एक बहुत बड़ा प्रोसेस है, जो कि हमें हर फिल्म के लिए करना ही पड़ता है.

मेरे पति का यौनांग छोटा है, कोई ऐसी दवा बताएं जिससे लिंग की लंबाई बढ़ सके?

सवाल
मेरे विवाह को 1 वर्ष हो चुका है. लेकिन मुझे अपने पति से सहवास के दौरान वह सुख नहीं मिल रहा जो मैं चाहती हूं. मैं किसी और के बारे में सोचना भी नहीं चाहती, क्योंकि मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते हैं. दिक्कत यह है कि मेरे पति का यौनांग बहुत छोटा है और मैं यह बात उन से कह नहीं पा रही. कोई ऐसी दवा बताएं जिस से उन के लिंग की लंबाई बढ़ सके?

जवाब
यौनांग की लंबाई को बढ़ाने के लिए न तो कोई दवा है और न ही इस की आवश्यकता है, क्योंकि लिंग के आकार का सहवास के आनंद से कोई लेनादेना नहीं है. इसलिए सब से पहले अपने दिमाग से यह पूर्वाग्रह निकाल दें. सहवास में प्रवृत्त होने से पहले रतिक्रीड़ा यानी आलिंगन, चुंबन आदि करें. कामोत्तेजित होने के बाद संबंध बनाएंगे तो कोई कारण नहीं कि आप को आनंद प्राप्त न हो.

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वैजिनोप्लास्टी : कौमार्य पाने का नया ट्रैंड

पहले प्लास्टिक सर्जरी फिर कौस्मैटिक और उस के बाद कंस्ट्रक्टिव सर्जरी. ये सभी सौंदर्य में निखार के लिए हैं. ऐसिड अटैक मामले में प्लास्टिक और कौस्मैटिक सर्जरी किसी वरदान से कम नहीं हैं. लेकिन इन दिनों ऐसी ही एक नई सर्जरी की काफी चर्चा है और वह है वैजिनोप्लास्टी. जी हां, आप जो सोच रही हैं वही सच है. यह वैजिनोप्लास्टी यौनांग के सौंदर्य के लिए ईजाद की गई सर्जरी है. महानगरों का यह एक नया ट्रैंड है.

भले ही इस तरह की सर्जरी का विज्ञापन देखने को नहीं मिलता है, लेकिन कौस्मैटिक सर्जन इस तरह की सर्जरी बड़ेबड़े अस्पतालों में करते हैं. बड़े अस्पतालों में इस तरह की सर्जरी के लिए अलग विभाग हैं. कोलकाता के नामी निजी अस्पताल या कौस्मैटिक सर्जन की वैबसाइट में हार्ट सर्जरी के साथसाथ किडनी, स्किन, लिवर ट्रांसप्लांटेशन के पैकेज के साथ वैजिनोप्लास्टी का भी पैकेज देखने को मिल जाता है. वैजिनोप्लास्टी विभाग के अंतर्गत हाइमेनोप्लास्टी और लाबियाप्लास्टी भी शामिल हैं.

आखिर वैजिनोप्लास्टी क्या है? इन दिनों इस तरह की सर्जरी की मांग क्यों बढ़ रही है? किस आयुवर्ग की महिलाओं में यह अधिक लोकप्रिय है? इस तरह की सर्जरी की सफलता दर क्या है और इस में स्किल फैक्टर क्या क्या हैं?

वैजिनोप्लास्टी एक जैनिटल रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी है. लेकिन जैनिटल रिकंस्ट्रक्शन में लिंग परिवर्तन भी शामिल है, पर वैजिनोप्लास्टी से योनि में मनचाहा बदलाव पाया जा सकता है. कोलकाता के कौस्मैटिक सर्जन डा. सप्तऋषि भट्टाचार्य का कहना है कि यह एक तरह की रिकंस्ट्रक्टिव प्लास्टिक सर्जरी है. इसका उद्देश्य मन वैजाइना को डिजाइन करना या कह लीजिए रिकंस्ट्रक्ट करना यानी योनि का पुनर्निर्माण और वह भी जैसा चाहें वैसा. इस रिकंस्ट्रक्शन थ्यौरी के अंतर्गत भी बहुत तरह की सर्जरी शामिल हैं. हाइमेनोप्लास्टी, लाबियाप्लास्टी वगैरह. वैजिनोप्लास्टी लंबे विवाहित जीवन और बच्चे पैदा करने से ढीली पड़ी योनि की दीवार को टाइट करती है. यह सर्जरी दरअसल कमजोर मांसपेशियों को दुरुस्त भी कर देती है. इस के अलावा रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी के अंतर्गत हिप की मांसपेशियों को टाइट कर बढ़ती उम्र का प्रभाव भी कम किया जाता है.

डा. अरिंदम सरकार कहते हैं कि अधेड़ उम्र की ज्यादातर महिलाएं वैजाइना रिकंस्ट्रक्शन के लिए आती हैं. कम उम्र की लड़कियां आमतौर पर हाइमेनोप्लास्टी के लिए आती हैं. बहरहाल, जो भी इस तरह की सर्जरी के लिए उन के पास आती है वह इस बारे में थोड़ीबहुत जानकारी हासिल कर के ही आती है. इसलिए अलग से कुछ ज्यादा कहने की जरूरत नहीं पड़ती है. हां, अगर इस बारे में उन्हें कोई खास जानकारी अलग से चाहिए या सर्जरी को ले कर किसी तरह की आशंका हो तो पहली सिटिंग में उस का निवारण कर दिया जाता है.

इस सर्जरी की इतनी डिमांड है कि कोलकाता के कई छोटेबड़े निजी अस्पतालों में यह सर्जरी हो रही है. हालांकि सभी निजी अस्पतालों में इस के लिए अलग से विभाग नहीं हैं और न ही इस सर्जरी के लिए विज्ञापन दिए जा रहे हैं, बावजूद इस के इस विशेष अंतरंग सर्जरी का अच्छा बाजार जम चुका है.

वैजाइना सर्जरी की चाह क्यों?

विदेश में बार्बी वैजाइना की बहुत मांग है. इस का कारण यह है कि इन दिनों पूरी दुनिया पर खासतौर पर नई पीढ़ी के दिलोदिमाग में वर्चुअल वर्ल्ड का नशा सिर चढ़ कर बोल रहा है. अपने यौनांग में छुरी चलवा कर काटछांट से भी महिलाएं पीछे नहीं हटना चाह रही हैं. कई महिलाओं ने माना कि उन के पति या सैक्स पार्टनर के जोर देने पर इस के लिए वे तैयार हुईं. लेकिन संचिता दास (बदला हुआ नाम) ने अपने पति को सरप्राइज देने के लिए हाइमेनोप्लास्टी करवाने का मन बनाया. अपनी शादी की 10वीं सालगिरह पर वह अपने जीवनसाथी को यह उपहार देना चाहती है.

अब जहां तक हाइमेनोप्लास्टी का सवाल है, तो समाज में इन दिनों एक नया बदलाव भी देखा जा रहा है. पुराने जमाने में शादीब्याह के समय लड़कियों के कौमार्य को बहुत महत्त्व दिया जाता था. लेकिन बाद में खेलकूद में भाग लेने या साइकिल आदि चलाने जैसे विभिन्न कारणों की वजह से लड़कियों में कौमार्य की शर्त कम हुई. लेकिन आजकल फिर से समाज में कौमार्य को महत्त्व दिया जाने लगा है. लड़कियां शादी से पहले हाइमेनोप्लास्टी के लिए जा रही हैं. एक विशेषज्ञ सर्जन का दावा है कि उन के पास हाइमेनोप्लास्टी के बहुत सारे मामले आ रहे हैं. इस में कौमार्य झिल्ली का फिर से निर्माण किया जाता है. दावा यह है कि इस सर्जरी में ऊपरी तौर पर किसी तरह की सर्जरी का कोई निशान नहीं होता है. इसीलिए सैक्स पार्टनर को इस का पता नहीं चल पाता है. दावा यह भी है कि झिल्ली निर्माण के बाद संबंध बनाने पर शीलभंग का प्रमाण भी मिलता है. ऐसे मामले के लिए शादी की तारीख से 4 हफ्ते पहले सर्जरी का सुझाव दिया जाता है.

कल्याणी यूनिवर्सिटी से अंगरेजी साहित्य में पीएचडी करने वाली शुभा भट्टाचार्य (बदला हुआ नाम) वैजिनोप्लास्टी करा चुकी है. शुभा बताती है कि इस बारे में उस ने घर पर किसी को नहीं बताया है. 2 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. जैनिटल रिकंस्ट्रक्शन के बारे में मैं ने अपनी एक सहेली से सुना था. इसीलिए 15 दिन की सैर का बहाना बना कर वह कोलकाता चली आई और यह सर्जरी करवा ली. शुभा का कहना है कि इस विषय पर घर पर खुल कर बात करना असंभव था, इसलिए यह चोरीछिपे करवाई.

कोलकाता के एक निजी कालेज में होटल मैनेजमैंट का कोर्स करने वाली रितिका खन्ना (बदला हुआ नाम) ने भी इस सर्जरी का लाभ उठाया है. इस बारे में उस का कहना है कि यह उस का निजी मामला है. किसी डर या आशंका में उस ने यह सर्जरी नहीं करवाई. बस वह एक बार यह कर के देखना चाहती थी. इसीलिए करवाई.

बहरहाल, जिन्होंने भी इस तरह की सर्जरी के बारे में पहली बार सुना, जाहिर है उन के मन में अब इसे ले कर बहुत सारे सवाल उठेंगे. मसलन, आखिर इस तरह की सर्जरी की जरूरत क्यों पड़ रही है या फिर यह कहा जाए कि किसी मानसिकता के तहत इस किस्म की सर्जरी करवाई जाती है? दूसरे कई फैशन या लाइफस्टाइल ट्रैंड की तरह ही यह भी महज एक तरह का ट्रैंड है? किस तरह की महिलाएं यह सर्जरी करवा रही हैं? इस के फायदों के साथ किस तरह के नुकसान की आशंका है? सर्जरी के लिए कितने दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता है? सर्जरी के बाद स्वाभाविक जीवन में लौटने में कितना समय लगता है?

जोखिम कम नहीं

2007 में योनि संबंधित किसी भी तरह की सर्जरी का नाम डिजाइनर वैजाइना दिया गया. उस समय अमेरिकन कालेज औफ औबस्टेट्रिशियन ऐंड गाइनोकोलौजिस्ट ने इस बढ़ते ट्रैंड के खिलाफ चेतावनी दी थी. रौयल आस्ट्रेलियन कालेज औफ गाइनोकोलौजिस्ट भी इस ट्रैंड के खिलाफ रहा है. 2009 में ब्रिटिश मैडिकल जर्नल और 2013 में सोसाइटी औफ औबस्टेट्रिशियन ऐंड गाइनोकोलौजिस्ट औफ कनाडा ने इसे गैरजरूरत कौस्मैटिक सर्जरी बताते हुए इस ट्रैंड को रोके जाने पर जोर दिया था. बावजूद इस के 2015 में हुए सर्वे से साफ हो गया कि कोई भी चेतावनी काम न आई. दिनोंदिन यह ट्रैंड फूलाफला और इस का विस्तार हमारे यहां भी हो चुका है.

अब जहां तक जोखिम का सवाल है, तो विशेषज्ञों का मानना है कि इस सर्जरी के बहुत सारे जोखिम भी हैं. सब से पहले तो कुछ साइड इफैक्ट देखने को मिलते हैं. बहुत सारे मामलों में पाया गया कि खून का बहाव रोक पाना डाक्टर के लिए कठिन हो जाता है. वहीं संक्रमण भी एक समस्या है. इस तरह की सर्जरी में 1 से ले कर 3 घंटे तक का समय लग सकता है. यह पूरी तरह से निर्भर करता है योनिद्वार और उस के आसपास की मांसपेशियों पर. सर्जरी के 2 से 5 दिनों के भीतर कामकाज पर लौटा जा सकता है. वैसे 6 सप्ताह का समय लग सकता है. इस दौरान डाक्टर यौन संबंध बनाने से बचने की सलाह देते हैं. इस के अलावा सर्जरी के निशान धीरेधीरे ही जाते हैं. ऐसी सर्जरी बहुत ही अनुभवी सर्जन द्वारा करवाई जानी चाहिए.

अन्य जानकारियां

इस सर्जरी की सुविधा हर बड़े शहर में है. कोलकाता में अपोलो, आमरी, बेलव्यू, कोलंबिया एशिया हौस्पिटल, डीसान अस्पताल, चाणक्य अस्पताल, फोर्टिस जैसे निजी अस्पतालों के अलावा बहुत सारे कौस्मैटिक सर्जनों के क्लीनिकों में भी यह सर्जरी की जाती है. अगर कौस्मैटिक सर्जनों के पास इस के लिए पूरा सैटअप न हो तो वे निजी अस्पताल या नर्सिंगहोम में इस तरह की सर्जरी करते हैं.

अब जहां तक खर्च का सवाल है, तो यह अस्पताल और नर्सिंगहोम पर निर्भर करता है. वैसे औसतन इस सर्जरी में क्व35 से क्व50 हजार तक का खर्च आता है. यह सर्जरी दोनों तरह के लोकल ऐनेस्थीसिया और सामान्य ऐनेस्थीसिया के बाद की जा सकती है. ज्यादातर मामलों में सामान्य ऐनेस्थीसिया पसंद की जाती है, क्योंकि इस तरह की सर्जरी में 1 से 3 घंटे तक का वक्त लग जाता है. कुछ दिनों तक भारीभरकम काम न करने की बंदिश है. 2-4 दिनों में सामान्य चलनाफिरना संभव हो जाता है. लेकिन जहां तक दापंत्य संबंध का सवाल है, तो 2-4 हफ्ते का इंतजार करने की सलाह दी जाती है.

मनोविदों की राय

यह सही है कि अलगअलग कारणों से विभिन्न उम्र की महिलाएं इस तरह की सर्जरी करा रही हैं. वहीं अगर कोई महिला या लड़की पति या अपने सैक्स पार्टनर के दबाव में आ कर इस तरह की सर्जरी के लिए जाती है, तो यह जरूर सोचने वाली बात है. आखिर क्यों? इसे इस तरह देखा जाना चाहिए. शरीर की अंतरिक बनावट में छेड़छाड़ के लिए पति या सैक्स पार्टनर दबाव बना रहा है, तो मान लेना चाहिए कि इस बहुत ही करीबी व आपसी रिश्ते में सब कुछ ठीकठाक नहीं है. यह कहीं किसी तरह की समस्या की ओर ही इशारा करता है, क्योंकि दांपत्य का रिश्ता हो या और कोई भी रिश्ता केवल शरीर के बूते टिक नहीं पाता है. आतंरिकता जरूरी होती है और अगर आतंरिकता है, तो शरीर या उस की बनावट की अहमियत नहीं होती है. ऐसे रिश्ते मजबूत होते हैं.

भारत में वैजिनोप्लास्टी का ट्रैंड भले ही हाल ही में शुरू हुआ हो, लेकिन विदेशों में इस का ट्रैंड पुराना है. 2006-07 में इस की शुरुआत हुई थी और आम भाषा में यह बार्बी वैजाइना सर्जरी के नाम से जानी जाती रही है. लेकिन सर्जरी की भाषा में इस तरह की अंतरंग सर्जरी वैजिनोप्लास्टी, लाबियाप्लास्टी और हाइमेनोप्लास्टी के नाम से जानी जाती है. बहरहाल, इस ट्रैंड को लेकर 2015 में एक सर्वे भी कराया गया, जिसके अनुसार इस साल विश्व भर में करीब 1 लाख महिलाओं ने बार्बी वैजाइना हासिल करने के लिए लाबियाप्लास्टी करवाई. बताया जाता है कि लगभग 50 हजार महिलाओं ने किशोर उम्र की योनि प्राप्त करने के लिए हाइमेनोप्लास्टी का सहारा लिया.

प्यार का विसर्जन

प्यार का विसर्जन : भाग 2

इस मौसम में प्रकृति भी सौंदर्य बिखेरने लगती है. आम की मजरिया, अशोक के फल, लाल कमल, नव मल्लिका और नीलकमल खिल उठते हैं. प्रेम का उत्सव चरम पर होता है. कुछ ही दिनों में वैलेंटाइन डे आने वाला था और मैं ने सोच लिया था कि दीपक को इस दिन सब से अच्छा तोहफा दूंगी. इस दोस्ती को प्यार में बदलने के लिए इस से अच्छा कोई और दिन नहीं हो सकता.

आखिर वह दिन भी आ गया जब प्रकृति की फिजाओं के रोमरोम से प्यार बरस रहा था और हम दोनों ने भी प्यार का इजहार कर दिया. उस दिन दीपक ने मुझसे कहा कि आज ही के दिन मैं तुम से सगाई भी करना चाहता था. मेरे प्यार को इतनी जल्दी यह मुकाम भी मिल जाएगा, सोचा न था.

दीपक ने मेरे मांबाप को भी राजी कर लिया. न जैसा कहने को कुछ भी न था. दीपक एक अमीर, सुंदर और नौजवान था जो दिनरात तरक्की कर रहा था. आखिर अगले ही महीने हम दोनों की शादी भी हो गई. अपनी शादीशुदा जिंदगी से मैं बहुत खुश थी.

तभी 4 वर्षों के लिए आर्ट में पीएचडी के लिए लंदन से दीपक को स्कौलरशिप मिल गई. परिवार में सभी इस का विरोध कर रहे थे, मगर मैं ने किसी तरह सब को राजी कर लिया. दिल में एक डर भी था कि कहीं दीपक अपनी शोहरत और पैसे में मुझे भूल न जाए. पर वहां जाने में दीपक का भला था.

पूरे इंडिया में केवल 4 लड़के ही सलैक्ट हुए थे. सो, अपने दिल पर पत्थर रख कर दीपक  को भी राजी कर लिया. बेचारा बहुत दुखी था. मुझे छोड़ कर जाने का उस का बिलकुल ही मन नहीं था. पर ऐसा मौका भी तो बहुत कम लोगों को मिलता है. भीगी आंखों से उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने गई. दीपक की आंखों में भी आंसू दिख रहे थे, वह बारबार कहता, ‘स्वाति, प्लीज एक बार मना कर दो, मैं खुशीखुशी मान जाऊंगा. पता नहीं तुम्हारे बिना कैसे कटेंगे ये 4 साल. मैं ने अगले वैलेंटाइन डे पर कितना कुछ सोच रखा था. अब तो फरवरी में आ भी नहीं सकूंगा.’मैं उसे बारबार सम?ाती कि पता नहीं हम लोग कितने वैलेंटाइन डे साथसाथ मनाएंगे. अगर एक बार नहीं मिल सके तो क्या हुआ. खैर, जब तक दीपक आंखों से ओ?ाल नहीं हो गया, मैं वहीं खड़ी रही.

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अब असली परीक्षा की घड़ी थी. दीपक के बिना न रात कटती न दिन. दिन में उस से 4-5 बार फोन पर बात हो जाती. पर जैसे महीने बीतते गए, फोन में कमी आने लगी. जब भी फोन करो, हमेशा बिजी ही मिलता. अब तो बात करने तक की फुरसत नहीं थी उस के पास.

कभी भूलेभटके फोन आ भी जाता तो कहता कि तुम लोग क्यों परेशान करते हो. यहां बहुत काम है. सिर उठाने तक की फुरसत नहीं है. घर में सभी समझते कि उस के पास काम का बोझ ज्यादा है. पर मेरा दिल कहीं न कहीं आशंकाओं से घिर जाता.

बहरहाल, महीने बीतते गए. अगले महीने वैलेंटाइन डे था. मैं ने सोचा, लंदन पहुंच कर दीपक को सरप्राइज दूं. पापा ने मेरे जाने का इंतजाम भी कर दिया. मैं ने पापा से कहा कि कोईर् भी दीपक को कुछ न बताए. जब मैं लंदन पहुंची तो दीपक को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था. मैं पापा (ससुर) के दोस्त के घर पर रुकी थी. वहां मु?ो कोई परेशानी न हो, इसलिए अंकलआंटी मेरा बहुत ही ध्यान रखते थे.

वैसे भी उन की कोई संतान नहीं थी. शायद इसलिए भी उन्हें मेरा रुकना अच्छा लगा. उन का मकान लंदन में एक सामान्य इलाके में था. ऊपर एक कमरे में बैठी मैं सोच रही थी कि अभी मैं दीपक को दूर से ही देख कर आ जाऊंगी और वैलेंटाइन डे पर सजधज कर उस के सामने अचानक खड़ी हो जाऊंगी. उस समय दीपक कैसे रिऐक्ट करेगा, यह सोच कर शर्म से गाल गुलाबी हो गए और सामने लगे शीशे में अपना चेहरा देख कर मैं मन ही मन मुसकरा दी.

किसी तरह रात काटी और सुबहसुबह तैयार हो कर दीपक को देखने पहुंची. दीपक का घर यहां से पास में ही था. सो, मुझे ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ी.

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सामने से दीपक को मैं ने देखा कि वह बड़ी सी बिल्ंडिंग से बाहर निकला और अपनी छोटी सी गाड़ी में बैठ कर चला गया. उस समय मेरा मन कितना व्याकुल था, एक बार तो जी में आया कि दौड़ कर गले लग जाऊं और पूछूं कि दीपक, तुम इतना क्यों बदल गए. आते समय किए बड़ेबड़े वादे चंद महीनों में भुला दिए. पर बड़ी मुश्किल से अपने को रोका.

तब से मुझ पर मानो नशा सा छा गया. पूरा दिन बेचैनी से कटा. शाम को मैं फिर दीपक के लौटने के समय, उसी जगह पहुंच गई. मेरी आंखें हर रुकने वाली गाड़ी में दीपक को ढूं़ढ़तीं. सहसा दीपक की कार पार्किंग में आ कर रुकी तो मैं भौचक्की सी दीपक को देखने लगी. तभी दूसरी तरफ से एक लड़की उतरी. वे दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़े मंदमंद मुसकराते, एकदूसरे से बातें करते चले जा रहे थे. मैं तेजी से दीपक की तरफ भागी कि आखिर यह लड़की कौन है. देखने में तो इंडियन ही है. पांव इतनी तेजी से उठ रहे थे कि लगा मैं दौड़ रही हूं. मगर जब तक वहां पहुंची, वे दोनों आंखों से ओल हो गए थे.

अगले भाग में पढ़ें- मगर उस ने ऐसा कुछ नहीं किया. मगर क्यों…?

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