बाल सफेद हो गए, शरीर बूढ़ा हो चला, तबीयत नासाज रहती है लेकिन नहीं, मोहमाया नहीं छोड़ी जा रही. अरे भई, जिम्मेदारी संभालने के लिए छोटे अब बड़े हो चुके हैं, उन्हें भी तो मौका मिलना चाहिए अपनी काबिलीयत दिखाने का. लेकिन भला इस दादू को समझाए कौन?
दादू, देख लिया न अपनी जिद का नतीजा. अपनी तो फजीहत करवाई ही, हमारी भी बचीखुची नाक कटवा कर रख दी. लुटिया डुबोते तो सुना था पर आप ने तो लोटा ही डुबो दिया. अब देखो न, हमारे जैसे परिवार का गांव में क्या मैसेज गया. खैर, इज्जत तो हमारी पहले भी कहां थी गांव में. कभी घर से यह अलग होने की धमकी देता रहता है तो कभी वह. यह घर जैसे घर न हो कर कोई सराय हो. घर के जितने मैंबर, उतने ही स्वार्थ. सच तो यह है कि हमारा ही क्या, हमारे गांव का कोई भी परिवार किसी को सिर ऊंचा कर मुंह दिखाने लायक नहीं. किसी के पास नाक नाम की चीज नहीं. फिर भी पूरे गांव वाले शान से नाक ऊंची किए अकड़ कर चल रहे हैं.
दादू, सच कहूं, आप से इस उम्र में ऐसी उम्मीद कतई न थी. जवानी में यों डराते तो परदादा को अच्छा लगता. मैं ने तो सोचा था अब आप समझदारी दिखाते हुए अपनी पारी खत्म कर किसी भी दमदार चाचूवाचू के हाथ में जिम्मेदारी सौंप खुद काशी, मथुरा की ओर कूच कर लेंगे. पर आप ने तो हद ही कर दी. अपने किसी बेटे के सिर पर पगड़ी रख दुनियादारी छोड़ चैन की जिंदगी बिताने के बजाय आप तो उलटे नाराज हो इस्तीफा दे गए.
दादू, हूं तो मैं आवारा सा पर अगर आप की जगह मैं होता न, तो हंस कर पगड़ी उस के सिर रख देता जिस के सिर पगड़ी रखने को पूरा परिवार कह रहा था. दादू, पगड़ी जिस के सिर धरनी थी, धर दी गई. पर आप भी उस वक्त साथ होते तो मुझे अपने दादू पर गर्व होता.
दादू, पता नहीं आप से क्यों यह मोह नहीं छूटता. पता नहीं आप को क्यों यह भ्रम सा रहता है कि मेरे बिना यह घर नहीं चलेगा. मेरे बिना यह देश नहीं चलेगा. अरे दादू, किसी के बिना यहां कुछ रुका है क्या? दादू, तुम ने कहा कि तुम अस्वस्थ हो. यह तो तुम ही जानो, यह बहाना था या कि तुम सच्चीमुच्ची में बीमार थे. पर दादू, इन दिनों तुम ही क्या, पूरा देश ही अस्वस्थ है. भैया अस्वस्थ है, रुपया अस्वस्थ है. दादू, आप की जिद देख कर मैं तो डर ही गया था कि मेरे दादू यह क्या कर रहे हैं. यह तो शुक्र है कि लाजपत अंकल बीच में आ गए, वरना आप न घर के रहते न…इतने बरसों की कमाई पल में मिट्टी में मिल गई होती.
दादू, अब आप को कौन समझाए कि सब का अपनाअपना दौर होता है. एक समय के बाद भगवान भी आउटडेटेड हो जाते हैं और हम तो उस के बनाए बंदे हैं. वक्त रहते वक्त की धार को पहचानो और मौज करो, दादू. देखो न दादू, अब आप से अपने सहारे चला भी नहीं जाता. सहारा देने वाली लाठी तक आप से संभाली नहीं जाती. पर आप हैं कि घर को संभालने की जिद पाले हैं, देश को चलाने के सपने देख रहे हैं.
माना दादू, आप ने इस घर को अपने खूनपसीने की कमाई से बनाया है. आप ही क्या, हर दादू ऐसा ही करता है. उसे करना भी चाहिए. पर इस का मतलब यह तो नहीं कि आप की जगह कोई और न ले. बल्कि चाहिए तो आप को यह था कि आप हंस कर कहते कि अब मैं इस घर को चलाने लायक नहीं रहा, इसलिए चाचू को इस घर का मुखिया घोषित करता हूं.
अरे दादू, आप को कितनी बार कहा कि अब छोड़ो यह मोहमाया. आप को क्या लेना घर के फैसले से, चाचू ले या बापू. दादू, अब ये बच्चे नहीं रहे. सब घर के फैसले लेने लायक हो गए हैं. उन को घर के फैसले लेने दो. भलाई आप की और घर की इसी में है. आप मजे से जाओ तीर्थ करो, व्रत करो, चारों धाम की यात्रा करो. बीते दिनों को याद करते मौज करो, आराम करो. इस उम्र में तो दादू, औरों के दादू, हरि भजन करने का चाहे मन भी न करे तब भी दिखावे को ही सही, हरि भजन में गांव वालों को गालियां देते हुए लीन रहते हैं.
दादू, छोड़ो यह फोका गुस्सा, बेकार में क्यों हाइपर होते हो. चलो, बीती बिसार, लोकलाज के लिए ही सही, चाचू की पीठ थपथपाओ और पुण्य कमाओ. जनता के गुस्से के बदले उस से तनिक सहानुभूति पाओ. चौपाल पर बैठ बच्चों को अपनी जवानी के समय के देश और दुनिया के किस्से सुनाओ. बीते दिनों को याद कर खुद भी हंसो और गांव के बच्चों को भी हंसाओ.
दादू का काम इस उम्र में कुढ़ना नहीं, गुनगुनाना है, अपने बच्चों को अपने अनुभवों से चांद के पार ले जाना है.