प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस को धमकाने, डराने, भगाने के लिए देश भर में ताली-थाली पिटवाई. फिर अग्नि देवता का आह्वान भी किया और देश भर से दिया-बत्ती जलवाई मगर कोरोना का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है. प्रधानमंत्री समय-समय पर टीवी पर प्रकट होकर नए-नए टोटके बताते हैं और अंधभक्त सच से आँखें फिरा कर टोटकों को पूरा करने में जुट जाते हैं. टोटकों को पूरा करने के चक्कर में सोशल डिस्टेंसिंग की वाट लग गई. कहीं थाली-ताली के चक्कर में लोगों का हुजूम सड़कों पर उतर कर नाचा तो कही दिया-बत्ती से भी आगे बढ़ कर मशाल जुलूस निकले. उत्तर प्रदेश में तो एक भाजपा नेत्री ने बाकायदा बन्दूक दागी. अब इसने कोरोना को भगाया या पास बुलाया?
भक्तों को ऐसे सवालों से मिर्ची लग जाती हैं. वो नहीं जानना चाहते कि कोरोना से निपटने के लिए सरकार कोई मज़बूत कदम उठा भी रही है या नहीं ? वो नहीं जानना चाहते कि तेज़ी से पैर पसारते जा रहे कोरोना से निपटने के लिए डॉक्टर्स को ज़रूरी संसाधन हासिल हो रहे हैं या नहीं ? वे नहीं जानना चाहते कि एम्स, वेदांता जैसे नामी अस्पतालों में कितने नर्स और डॉक्टर दूसरों की जान बचाते बचाते खुद अपनी जान दांव पर लगा बैठे हैं.वो नहीं जानना चाहते कि अगर कोरोना थर्ड स्टेज में पहुंच गया और कम्युनिटीज में फैला तो हज़ारों लोगों का इलाज करने के लिए कितने अस्पताल तैयार हैं ? कितने बेड, कितने ऑक्सीजन सिलिंडर, कितने वेंटीलेटर, कितने डॉक्टर, कितनी नर्स, कितनी दवाइयां भारत के पास हैं? क्योंकि समय-समय पर टीवी पर प्रकट होकर नए-नए टोटकों का फरमान सुनाने वाले हमारे प्रधानमंत्री कभी ये ज़रूरी बातें तो बताते ही नहीं हैं. हाँ उनके टोटकों के खिलाफ अगर कोई बोला, किसी ने कुछ लिखा तो फिर उसकी खैर नहीं. ट्रोल आर्मी जोंक की तरह उससे चिपक जाएगी.उसकी खूब लानत-मलामत करेगी. उसको खूब उपदेश देगी.जाति सूचक, धर्मसूचक बाण मारेगी और इस तरह अपनी अंधभक्ति का परिचय देते हुए अपने अंधविश्वास से सच को ढांप देना चाहेगी.
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‘सरिता’ बार बार इस सच को उघाड़ कर सामने लाती थी और लाती रहेगी. ‘सरिता’ खुली आँखों से देख रही है कि किस तरह धीरे-धीरे गरीबों की उम्मीदों का दिया बुझता जा रहा है.भुखमरी उनके दरवाज़े पर आ खड़ी हुई है. रामधनी की बूढ़ी बीमार माँ खाट पर पड़ी है, खांस-खांस कर बेहाल हुई जा रही है, मगर दवा मयस्सर नहीं है क्योंकि डॉक्टर के पास नहीं जा सकते. घर के बाहर कर्फ्यू लगा है. पुलिस डंडे फटकारते घूम रही है.रामधनी तुलसी-अदरक का काढ़ा बना बना कर बार बार पिला रहा है कि किसी तरह माँ को आराम आ जाए. बेचारी का पुराना दमा उभर आया है.
कल रात मोती नगर सब्ज़ी मार्किट में पुलिस वालों ने गरीब सब्ज़ी विक्रेताओं के सब्ज़ी से भरे ठेले पलट दिए. गरीब सब्ज़ी वालों के दिल पर क्या गुज़री होगी सड़क पर बिखरी अपनी सब्ज़िया देख कर. किस मुसीबत से उधार सब्ज़ियां लाये थे मगर पुलिस का डंडा पड़ा तो ठेला और सब्ज़ी वही छोड़ कर भागना पड़ा. सरकारी आदेश का पालन होना है, गरीब कोरोना से पहले भूख से मर जाए तो फ़िक्र नहीं.
मध्यवर्ग की तकलीफें भी बढ़नी शुरू हो चुकी हैं. आम जनता को आने वाली तकलीफों के अंत की राह धुंधली पड़ती नज़र आ रही है. किसी को हार्ट अटैक पड़ा है, एम्बुलेंस के लिए हॉस्पिटल में फ़ोन पर फ़ोन किया जा रहा है मगर एम्बुलेंस नहीं आ रही है. कैंसर के मरीज़ रिज़वान को कीमोथेरपी के बाद हर महीने लखनऊ मेडिकल कॉलेज में जांच के लिए जाना होता है मगर दो महीने बीत चुके हैं वह नहीं गया। छोटा व्यवसाई चिंतित है.दुकाने बंद हैं, बिक्री बंद है मगर दूकान का किराया तो फिर भी देना है. दूकान में सामान भरा है, पता नहीं लॉक डाउन के बाद जब दूकान खोलेगा तो कितना सामान ख़राब हो चुका होगा. वो नुक्सान का अनुमान लगा कर हलकान हुआ जा रहा है.
इन लोगो के लिए सरकार के पास का क्या ‘राहत पैकेज’ है? शायद कुछ भी नहीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 3 अप्रैल को कोरोना को लेकर तीसरी बार देश को संदेश दिया तो उम्मीद जगी थी कि वे इस बीमारी से बचाव के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों और तैयारियों के बारे में बताएंगे, इस बीमारी से लड़ने में दिन रात जुटे हजारों लाखों, डॉक्टरों, नर्सों, मेडिकल स्टाफ, पुलिस कर्मी, सुरक्षा कर्मी, सफाई कर्मी और लोगों को रोजमर्रा की चीज़े मुहैया करा रहे लोगों केलिए कोई घोषणा होगी, कोई योजना होगी। लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभावित गरीब और वंचित तबके के लिए किसी नए रोडमैप का ऐलान होगा.
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मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ, वो आये और ‘ दिया जलाओ इवेंट’ का फरमान सुना कर चले गए.
प्रधानमंत्री ने जब कहा कि, “कोरोना महमामारी के अंधकार से हमें प्रकाश की तरफ जाना है. जो भी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं हमारे गरीब भाई बहन, उन्हें कोरोना संकट से आशा की तरफ ले जाना है. कोरोना से जो अंधकार और अनिश्चतता पैदा हुई है उसे प्रकाश के तेज से चारों दिशाओं में फैलाना है.“ पीएम के इस कथन से उम्मीद जगी कि शायद गरीबों के लिए कुछ घोषणा होने वाली है, गरीबों के लिए वे सामर्थ्यवान लोगों से कुछ मांगने वाले हैं, या किसी सरकारी योजना की घोषणा करने वाले हैं. लेकिन…???
लेकिन उन्होंने इसके बाद जो कहा, वहा अद्भुत था. उन्होंने कहा, “इस रविवार 5 अप्रैल को हम सबको मिलकर कोरोना के संकट के अंधकार को चुनौती देनी है, उसे प्रकाश की ताकत का परिचय कराना है, 5 अप्रैल को हमें 130 करोड़ देशवासियों की महाशक्ति का जागरण करना है…5 अप्रैल रविवार को रात 9 बजे मैं आप सबके 9 मिनट चाहता हूं, घर की सभी लाइटें बंद करके, घर के दरवाजे पर या बालकनी में खड़े रहकर 9 मिनट तक मोमबत्ती, दीया या मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाए टॉर्च जलाएं…”
अच्छा होता अगर प्रधानमंत्री कोरोना से लड़ाई के इस टोटके के बजाए देश को यह बताते कि चिकित्सा क्षेत्र में इस दौरान हमने क्या प्रगति की? हमने कितनी नई सुविधाएं तैयार कीं? हमने इस वायरस के कम्यूनिटी ट्रांसमिशन को रोकने के लिए कौन सी नई योजना पर काम किया?
उल्लेखनीय है कि जब चीन में इस वायरस की भयावहता सामने आई तो उसने 10 दिन के अंदर एक विशाल अस्पताल का निर्माण कर दिया, क्या हम ऐसी किसी योजना पर काम कर रहे हैं? आज चीन ने बहुत हद तक इस महामारी पर काबू पा लिए है. कितना अच्छा होता अगर हमारे भी प्रधानमंत्री बताते कि कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा है, छोटे-बड़े सभी धंधे ठप हो गए हैं, उन्हें उबारने के लिए किस स्तर पर सरकार तैयारी कर रही है। सरकार अस्पतालों तक क्या सुविधाएं पहुंचा रही है.निसंदेह कोरोना से लड़ाई के लिए सोशल डिस्टेंसिंग ही सबसे पहला उपाय है, ताकि इस वायरस का फैलाव एक दूसरे से न हो, और लोग इसका पालन भी कर रहे हैं, करना भी चाहिए, और जो भी इसका उल्लंघन कर रहे हैं उन्हें सिर्फ आइसोलेशन या क्वारंटाइन में भेजने की जरूरत नहीं, बल्कि उनके खिलाफ तय कानून के तहत सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन इसके अतिरिक्त सरकार की ओर से और क्या किया जा रहा है, ये बताना भी हमारे प्रधानमन्त्री का दायित्व है.
‘सरिता’ बार-बार ये सवाल पूछ रही है.मगर जवाब नदारद है. हाँ, ट्रोल आर्मी धड़ाधड़ कमेंट कर रही है. सत्ता का रक्षा कवच बन कर सवाल पूछने वाले पत्रकारों को निशाना बना रही है.सवालों को दबाने पर उतारू है. सच को छिपाने के जतन कर रही है. मगर हे मूरख, सच भी कभी छिपा है?