ताजा मामला सरकार द्वारा दवाओं और मेडिकल सामग्री के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने का है. जो काफी अचरज भरा फैसला है क्योंकि कोरोना संकट के बीच देश खुद मेडिकल सामग्रियों और दवाओं की किल्लत झेल रहा है.

प्रारम्भ में कोरोना के प्रति लापरवाह रही सरकार बहुत बाद में हरकत में आई और 3 मार्च 2020 को 26 दवा सामग्रियों (एपीआई) और उनके यौगिक दवाइयों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन सरकार की विदेश नीति इतनी बेबस और लाचार है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के एक धमकी भरे बयान के सामने देश ने घुटने टेक दिए और जरूरी दवाओं के निर्यात पर लगी रोक को हटा ली.
चंद दिनों पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जब फोन कर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात कर आवश्यक दवाओं के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने को कहा तो भारतीय मीडिया इसे भी सत्ता की चाटुकारिता का मसाला बना लिया.

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भारतीय मीडिया में कहा गया कि – “अमेरिका भी मोदी से कर रहा है मदद की गुहार।” जमकर दरबारी मीडिया ने मजमा लगाया। मीडिया में यहां तक कहा गया कि – “अमेरिका के दबाव के आगे नहीं झुकेगा भारत, दवाओं के निर्यात पर प्रतिबंध जारी रहेगा.

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इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का एक बयान मीडिया में आया जिसमें कोरोना के वायरस कोविड-19 पर प्रभावी ढंग से कार्य करने वाली मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन सहित अन्य आवश्यक दवाओं के निर्यात पर लगी रोक न हटाने पर चेतावनी भरे लहजे में भारत को धमकाया गया और दवा मुहैया न कराने पर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा गया.

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ट्रम्प के इस बयान के बाद भारत की बेबस विदेश नीति की भद्द पिट गई और आनन-फानन में सरकार ने आवश्यक दवाओं के निर्यात पर लगा बैन हटा लिया. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सरकार ने 12 जरूरी दवाओं और 12 एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट (API) के निर्यात पर लगी रोक हटा दी है.

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