Download App

Industrialist Sanjay Kapoor : करिश्मा कपूर के पूर्व पति संजय कपूर का निधन

Industrialist Sanjay Kapoor :  अभिनेत्री करिश्मा कपूर के पूर्व पति व उद्योगपति संजय कपूर का 12 जून को इंग्लैंड में पोलो खेलते हुए निधन हो गया था. बताया जाता है कि जब संजय कपूर पोलो खेल रहे थे उसी वक्त एक मधुमक्खी ने पहले उन के गले में काटा और फिर वह उन के मुंह के अंदर चली गई, जिस से हार्ट अटैक के कारण 53 वर्ष की उम्र में संजय कपूर का निधन हो गया. उन का अंमिम संस्कार एक सप्ताह बाद लोधी रोड शमशान घाट पर किया गया, जहां करिश्मा कपूर अपने दोनों बच्चों बेटी समायरा और बेटे कियान के साथ मौजूद थीं.

संजय कपूर को मुखाग्नि करिश्मा कपूर के 15 साल के बेटे कियान ने दी. संजय कपूर के अंतिम संस्कार में देरी हुई, क्योंकि संजय कपूर के पास अमेरिकन नागरिकता थी. इसलिए उन के पार्थिव शरीर को भारत लाने के लिए इग्लैंड में पोस्टमार्टम के साथ ही कई तरह की कानूनी कार्रवाही भी करनी पड़ी. 22 जून को दिल्ली के ताज पैलेस में प्रेअर मीट रखी गई.

संजय कपूर ने 3 शादी की थी. उन की पहली पत्नी नंदिता महतानी से उन का शादी के 4 साल बाद ही तलाक हो गया था. इन का कोई बच्चा नहीं है. साल 2003 में संजय कपूर और करिश्मा कपूर शादी के बंधन में बंधे थे. इन के दो बच्चे हैं बेटी समायरा और बेटा कियान. हालांकि साल 2016 में इन का भी तलाक हो गया था.

साल 2017 में संजय ने प्रिया सचदेव से शादी की थी. इन का एक बेटा अजारियस है. यूं तो करिश्मा कपूर के पिता रणधीर कपूर को संजय कपूर संग करिश्मा का विवाह करना पसंद नहीं था. मगर सारे निर्णय करिश्मा की मां बबिता कपूर ले रही थी. सब से पहले करिश्मा की सगाई अभिषेक बच्चन के साथ हुई थी पर अंत में बबिता कपूर ने इसे तुड़वा कर संजय कपूर के साथ करिश्मा का विवाह कराया था, जो कि 13 साल ही चला.

15 अक्तूबर 1971 को दिल्ली में जन्मे संजय कपूर ने बकिंघम यूनिवर्सिटी से बैचलर औफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन से पढ़ाई की थी. वह ‘सोना बीएलडब्ल्यू प्रिसिजन’ के चेयरमैन थे, जो अब ‘सोना कौमस्टार’ है. यह कंपनी ईवी सहित औटोमोटिव सिस्टम और कंपोनेंट डिजाइन बनाती है. इस कंपनी की स्थापना 1997 में उन के दिवंगत पिता सुरिंदर कपूर ने की थी, जो भारत के औटो कंपोनेंट उद्योग में अग्रणी थे. संजय कपूर एसीएमए के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं. इतना ही नहीं वह द दून स्कूल के ट्रस्टी भी थे. उन का बिजनेस ईवी के अलावा पावरट्रेन, और गियर सिस्टम्स जैसे एडवांस्ड औटोमोटिव टैक्नोलौजी पर बेस्ड था.

संजय कपूर की संपत्ति को ले कर कई तरह की चर्चांए हैं. फोर्ब्स के मुताबिक, संजय कपूर की नेटवर्थ 1.2 बिलियन डौलर थी जबकि ब्लूमबर्ग एस्टीमेट ने उन की नेटवर्थ 1.15 बिलियन डौलर बताई और रियल टाइम बिलेनियर्स इंडैक्स की मानें तो संजय कपूर की नेटवर्थ 1.18 बिलियन थी. लेकिन सच यही है कि आलीशान जिंदगी जीने वाले संजय कपूर अपने निधन के बाद अपने बीवीबच्चों के लिए अकूत संपत्ति छोड़ गए हैं. उन के पास दिल्ली और मुंबई के साथसाथ लंदन में भी कई प्रीमियम प्रौपर्टीज थीं. संजय लग्जीरियस गाड़ियों के शौकीन थे और उन के पास महंगी गाड़ियों का बेहतरीन कलेक्शन भी है.

इस के अलावा उन्होंने रियल इस्टेट में भी मोटी रकम इन्वेस्ट की हुई थी. कुछ सूत्र दावा करते हैं कि वह दुनिया के 2703वें सब से धनी व्यक्ति थे. कुछ महीने पहले तक उन की सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनी का मूल्य 40,000 करोड़ रुपए था. जबकि वह निजी स्तर पर 12 हजार करोड़ रूपए के मालिक थे.

 

Raja Raghuvanshi Murder Case : बेवफा कौन? “सोनम या समाज”

Raja Raghuvanshi Murder Case : सोनम रघुवंशी को ले कर इन दिनों पुरुष खेमा काफी बेचैन है. सोशल मीडिया पर ‘सोनम बेवफा है’ ट्रेंड पर चल रहा है. मर्द परेशान हैं. मर्दों को अब शादी के साइड इफैक्ट्स नजर आने लगे हैं. कहीं पुरुष-आयोग बनाने की बात हो रही है तो कहीं शादी से दूर रहने के गुर सिखाए जा रहे हैं. इस तरह की कुछ घटनाओं को ले कर मेनस्ट्रीम मीडिया भी लगातार औरतों के खिलाफ माहौल तैयार करने में लगा है. टीवी चैनल के पैनल में धर्मगुरुओं को बैठा कर सोनम के मुद्दे पर डिबेट करवाई जा रही है. तथाकथित संतों की वाणी में औरतों को ले कर भयंकर नफरत निकल कर सामने आ रही है. कहीं यह सारा प्रोपेगेंडा औरतों को मिले कौंस्टिट्यूशनल राइट्स को छीनने का प्रयास तो नहीं?

सोशल मीडिया पर अनिरुद्धाचार्य का वीडियो है जिस में उन से एक महिला ने सोनम रघुवंशी वाले मामले को ले कर एक सवाल पूछा की महिलाएं ऐसा कदम क्यों उठा रही हैं तो अनिरुद्धाचार्य ने जवाब दिया, ‘नारी का असली श्रृंगार उस का पति है एक बार पति के नाम का सिंदूर मांग में पड़ जाए तो वह औरत उस की संपत्ति हो जाती है.’

इस तरह की घटिया मानसिकता से पूरा मर्द समाज ग्रसित है. औरतों को निजी संपत्ति मानने की यह सोच औरतों के खिलाफ एक गंभीर साजिश है. तमाम तरह के कौंस्टिट्यूशनल राइट्स के बावजूद भारत में औरतों की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ तो इस की वजह यही पुरुषवादी मानसिकता है.

औरतों को कैसे मिले अधिकार संवैधानिक अधिकार?

भारतीय संविधान लागू होने से पहले हिंदू समाज में पुरुष और महिलाओं को तलाक का अधिकार नहीं था. 1955 तक पुरूषों को एक से ज्यादा शादी करने की आजादी थी. हिंदू विधवाएं दोबारा विवाह नहीं कर सकती थीं. विधवाओं को कोई संपत्ति नहीं मिलती थी. 11 अप्रैल 1947 को डा. अंबेडकर ने संसद में हिंदू कोड बिल नाम से महिला अधिकारों से सम्बंधित बिल संसद में पेश किया.

इस विधेयक में विधवा औरत को बेटों के साथ संपत्ति में बराबर का अधिकार देने का प्रावधान था. इस के अतिरिक्त, पुत्रियों को उन के पिता की संपत्ति में हिस्सा देने की भी व्यवस्था थी, साथ ही विवाह संबंधी प्रावधानों में बदलाव किया गया था. यह दो प्रकार के विवाहों को मान्यता देता था, सांस्कारिक व सिविल. इस में हिंदू पुरूषों द्वारा एक से अधिक महिलाओं से शादी करने पर प्रतिबंध था. तलाक संबंधी प्रावधान भी थे. सब से बड़ी बात यह थी कि पत्नी अपने पति से किन्हीं शर्तों पर तलाक ले सकती थी.

भारत के इतिहास में यह पहली बार हो रहा था कि हिंदू महिलाएं अपने पति से तलाक ले सकती थीं. इस विधेयक में तलाक के लिए 7 आधार तय किए गए थे. परित्याग, धर्मांतरण, रखैल रखना या रखैल बनना, असाध्य मानसिक रोग, असाध्य व संक्रामक कुष्ठ रोग, संक्रामक यौन रोग व क्रूरता जैसे आधार पर कोई भी व्यक्ति तलाक ले सकता था.

1947 से पहले के मनुस्मृति वाले कानून में हिंदू औरत के पास कोई अधिकार नहीं था. विवाह के बाद यदि पति क्रूर हो, नपुंसक हो या उस में कोई भी दोष हो औरत को आजीवन पत्नी बन कर निभाना पड़ता था. पति या उस के घरवाले औरत के साथ मनचाहा व्यवहार कर सकते थे. पति चाहे कितनी भी औरतों को ले आए या वो मर जाए ऐसी किसी भी परिस्थिति में औरत के लिए दूसरा विवाह वर्जित था.

हिंदू कोड बिल हिंदू औरतों के लिए एक क्रांतिकारी विधेयक था जिस से भारतीय नारी की मुक्ति तय थी लेकिन कट्टरपंथी वर्ग को यह विधेयक मंजूर नहीं था. पुरोहितों ने नारी को गुलाम बनाए रखने के लिए हजारों वर्षों तक मेहनत की थी. धार्मिक प्रावधान बना कर औरतों की गुलामी को ईश्वरीय आदेश घोषित किया था. इस विधेयक के कानून बन जाने से औरतों की आजादी के रास्ते खुल जाते जिस से कट्टरपंथियों की शताब्दियों की मेहनत बेकार हो जाती.

देश के कोनेकोने से हिंदू संगठनों द्वारा इस बिल का जोरदार विरोध होना शुरू हुआ. भारी विरोध के कारण इस बिल को 9 अप्रैल 1948 को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया और 3 साल की देरी के बाद 1951 में डा. अंबेडकर ने दुबारा हिंदू कोड बिल को संसद में पेश किया. जैसे ही यह बिल संसद में पेश हुआ इसे ले कर संसद के अंदर और बाहर फिर हंगामा मच गया. हिंदू धर्माचार्य सड़कों पर आ गए और डा. अंबेडकर के खिलाफ लामबंद हो गए.

संसद में जहां जनसंघ समेत कांग्रेस का हिंदूवादी धड़ा इस का विरोध कर रहा था तो वहीं संसद के बाहर हरिहरानंद सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में बड़ा प्रदर्शन चल रहा था. अखिल भारतीय राम राज्य परिषद की स्थापना करने वाले करपात्री का कहना था कि यह बिल हिंदू धर्म के खिलाफ एक साजिश है और यह हिंदू रीतिरिवाजों, परंपराओं और धर्मशास्त्रों के विरुद्ध है. आरएसएस ने अकेले दिल्ली में दर्जनों विरोध-रैलियां आयोजित कीं. आज आरएसएस हिंदू महिलाओं के सांस्कृतिक उत्थान की बात करती है क्या आज आरएसएस यह बतायेगी की उस ने तब हिंदू महिलाओं को मिलने वाले संवैधानिक अधिकारों का विरोध क्यों किया था?

इन विरोधों के कारण ही हिंदू कोड बिल उस वक्त लागू न हो सका. जवाहरलाल नेहरू इस विधेयक को ले कर इतने संवेदनशील थे कि उन्होंने कहा था, ‘इस कानून को हम इतनी अहमियत देते हैं कि हमारी सरकार बिना इसे पास कराए सत्ता में रह ही नहीं सकती.’

डा. अंबेडकर ने कहा था, ‘मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से अधिक दिलचस्पी और खुशी हिंदू कोड बिल पास कराने में है.’

हिंदू संगठनों के विरोध के कारण जब यह बिल पारित न हो सका तब अंबेडकर ने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.

देश के पहले लोकसभा चुनाव के बाद नेहरू ने हिंदू कोड बिल को कई हिस्सों में तोड़ दिया और इस तरह 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट बनाया गया. जिस के तहत तलाक को कानूनी दर्जा मिला. अलगअलग जातियों के स्त्रीपुरूष को एकदूसरे से विवाह का अधिकार मिला और एक से ज्यादा शादी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. इस के अलावा 1956 में ही हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम और हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम लागू हुए. ये सभी कानून महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा देने के लिए लाए गए थे. इस कानून के तहत ही पहली बार महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिया गया.

औरतों के खिलाफ पुरोहितों के षड्यंत्रों को नाकाम कर भारतीय संविधान ने औरतों को आजादी दी. औरतों की आजादी से सभी धर्मों को बैर है. नारी को गुलाम बनाए रखने का जतन सभी धर्म के पुरोहितों ने किया. औरतों की आजादी के खिलाफ पुरोहितों का षड्यंत्र आज भी चल रहा है. आज के पुरोहित सीधे तौर पर महिलाओं को मिले संवैधानिक अधिकारों का विरोध नहीं कर पाते इसलिए मुस्कान और अतुल जैसे मामलों की आड़ में महिलाओं के विरुद्ध अपनी घृणित मानसिकता को सामने ले आते हैं.

औरतों की आजादी में सब से बड़ी रुकावट?

औरतों को क्या करना है? कैसे रहना है? यह तय करने वाली औरतें कौन होती हैं? यह मानसिकता धर्म से निकलती है. औरतों के मामले में सभी धर्म एक जैसे हैं. औरतें घर की इज्जत होती हैं. औरतों के गलत कदम से परिवार की नाक कटती है. शादीशुदा औरतों का गैरमर्द की ओर देखना भी पाप होता है. लड़कियों का शादी से पहले सैक्स करना पाप है. सैक्स के बारे में सोचना भी गुनाह होता है. यह सारी बातें सिर्फ लड़कियों के लिए ही स्थापित की गई हैं. लड़कों से न तो परिवार की नाक कटती है और न ही विवाहेत्तर संबंधों से मर्दों को पाप लगता है. ऐसे समाज में आज की पढ़ीलिखी लड़कियां कैसे सर्वाइव कर सकती हैं?

जीनत अभी शादी नहीं करना चाहती थी. वह ग्रेजुएशन फाइनल ईयर में थी और पड़ोस के एक लड़के से प्यार करती थी. घरवालों को उस ने सिकंदर से अपने रिलेशनशिप के बारे में बताया तो घर में बवाल मच गया. जीनत के बड़े भाई और अब्बू ने जल्दबाजी में जीनत के लिए लड़का ढूंढ लिया और उस का निकाह सलीम से करवा दिया. जीनत के पास कोई रास्ता नहीं था. शादी के कुछ सप्ताह बाद ही सलीम दुबई चला गया और ससुराल में जीनत को अपने परिवार के हवाले छोड़ गया. जीनत ने किसी तरह एक साल काटे इस बीच सिकन्दर से उस की बातें होने लगीं और चोरीछुपे शारिरिक संबंध भी बन गए. एक दिन सिकन्दर घर में पकड़ा गया और जीनत के घरवालों ने घर में ही सिकन्दर और जीनत की हत्या कर दी.

अगर किसी लड़की की शादी ऐसे घर में हो जाए जहां उस की इज्जत ही न हो या उसे अपने पति से शारिरिक संतुष्टि हासिल न हो पा रही हो तब वह क्या करे? वह कैसे और किस से कहे कि उसे अपने मर्द से जिस्मानी सुख प्राप्त नहीं हो रहा? वह किस से और कैसे कहे कि उसे किसी और से प्यार हो गया है? क्या जिस्मानी सुख की अभिलाषा रखना औरतों का अधिकार नहीं है? क्या किसी भी कारण से उसे दूसरा प्यार नहीं हो सकता?

अब इन्ही बातों को उल्टा कर के इस पर समाज के नजरिये को जांचने की कोशिश कीजिए. मर्द को अपनी पत्नी के अलावा दूसरा प्यार हो जाए तो समाज में मर्द कुलटा, बदचलन साबित नहीं होता. भारत में दो करोड़ वेश्याएं किस के लिए हैं? क्या देश में ऐसा कोई चकलाघर है जहां नामर्द पतियों से असंतुष्ट औरतें अपने जिस्म की प्यास बुझाने जाती हों? औरत और मर्द के प्रति इसी भेदभावपूर्ण मानसिकता को जस्टिफाई करने के लिए शादी की व्यवस्था बनाई गई. शादियों के नाम पर औरतें बंधी रहें और मर्द खुले सांड की तरह घूमते फिरें.

नेहा की शादी राकेश से तय हुई. शादी के बाद नेहा नौकरी जारी रखना चाहती थी लेकिन राकेश के घरवालों को नेहा का जौब करना पसंद नहीं था. शादी के साल भर में ही नेहा के लिए ससुराल कैदखाने सा हो गया. इस बीच राकेश का बर्ताव भी बदल गया था. नेहा ने अपने मायके वालों से बात की तो उन्होंने नेहा को समझाया कि भगवान पर भरोसा रखो सब ठीक हो जाएगा. नेहा ने किसी तरह 3 साल और काट लिए वह एक बेटी की मां बन गई लेकिन ससुराल के लोगों में कोई बदलाव नहीं आया. राकेश बातबात पर नेहा को गालियां देता और कभीकभी उसपर हाथ भी उठा देता था. नेहा के लिए इस टौक्सिक रिलेशनशिप से बाहर निकलना जरूरी हो गया लेकिन इन हालातों में भी मायके वालों का उसे कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा था.

नेहा अपने पति से तलाक का मन बना चुकी थी लेकिन इसके लिए उसे ससुराल छोड़ना जरूरी था. मायके में रह कर ही वह ऐसा कर सकती थी. वह अपनी बेटी को ले कर मायके पहुंची और एक वकील से बात कर उस ने राकेश को तलाक का नोटिश भिजवा दिया. नोटिस मिलते ही राकेश के अंदर का मर्द जाग गया और उस ने कोर्ट में तलाक देने से मना कर दिया और समझौते पर अड़ गया. नेहा को समझौता करना पड़ा और इस समझौते के कुछ दिनों बाद ही नेहा को सातवी मंजिल से नीचे फेंक दिया गया. उस की मौके पर ही मौत हो गई.

बड़ी आसानी से लोग कह देते हैं कि ऐसे में लड़की तलाक क्यों नहीं ले लेती? क्या साधारण परिवारों में तलाक का रिवाज है? खासकर लड़कियों के लिए तो तलाक का रास्ता बेहद कठिन है. एलीट क्लास की बात छोड़ दीजिए. वहां की लड़कियां सामाजिक बंधनों से मुक्त होती हैं इसलिए शादी न चल पाने पर तलाक लेने में उन्हें कोई दिक्कत पेश नहीं आती. लेकिन साधारण परिवारों में ऐसा नहीं होता.

लड़की का रिश्ता न चले तो उस के घरवाले ही उसे समझाते हैं कि बेटी किसी तरह दो चार साल झेल लो बाद में सब ठीक हो जाएगा. ससुराल से मोहभंग होने पर या पति के व्यवहार से दुखी होने पर लड़कियां अपने मांबाप से अपनी परेशानियों को कह नहीं पाती. किसी साधारण परिवार की लड़की के लिए कानून का रास्ता इतना भी आसान नहीं है. बिना परिवार के सपोर्ट के वह कानून के दरवाजे तक नहीं पहुंच सकती. अब यहां लड़कियों के लिए बस दो ही विकल्प रह जाते हैं या तो वह अपनी बेबसी को अपनी किस्मत मान कर ताउम्र झेलती रहे या फिर चोर दरवाजे से अपनी समस्याओं का हल ढूंढने का प्रयास करे. कई बार यही चोर दरवाजा औरतों को अपराधों की ओर ले जाता है.

इस में कोई दो राय नहीं कि सोनम ने जघन्यतम अपराध किया है और न्याय व्यवस्था में उसे उस के कुकर्मों की सजा मिल जाएगी. सोनम बेवफा थी तो उसे अपनी बेवफाई की सजा काटनी होगी लेकिन सोनम के अपराध में कहीं न कहीं समाज भी बराबर का दोषी है. समाज भी लड़कियों के प्रति बेवफा ही साबित होता है. उसे सजा कब मिलेगी?

लड़की मतलब किसी की प्रौपर्टी नहीं

पिछले एक दशक से समाज के दकियानूसी संस्कारों पर ठोकरें लगनी शुरू हुईं हैं तो सब उलट पलट सा गया है. लड़कियां पढ़ रही हैं. दुनिया को समझ रही हैं. वो अब अपना भविष्य खुद बनाना चाहती हैं ऐसे में लड़कियों को निजी प्रौपर्टी समझने वाले समाज के बनावटी उसूल गड़बड़ाने लगे हैं. समाज अभी लड़कियों को इतनी आजादी देने को तैयार नहीं है. लड़की मतलब घर की वो प्रौपर्टी हैं जिस का परिवार से अलग कोई अस्तित्व नहीं. आजाद ख्याल लड़की का कौन्सेप्ट हमारे समाज की सोच से भी बाहर की चीज है. ऐसे समाज में आजाद ख्याल लड़कियों को बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

लड़की भी अपने बारे में सोच सकती है. वो किसी लड़के से प्यार कर सकती है. अपनी मर्जी से शादी कर सकती है यह बातें भारतीय समाज के लिए स्वीकार करने योग्य कतई नहीं है. यहां कानून और समाज के बीच भयंकर टकराव है. कौन्स्टिट्यूशन के अनुसार 21 साल की लड़की आजाद है. वो अपने अनुसार जी सकती है. शादी कर सकती है. बिना शादी के अपने पार्टनर के साथ सैक्स कर सकती है लेकिन समाज की नजर में कोई औरत आजाद हो ही नहीं सकती. वो बिना शादी के सैक्स नहीं कर सकती. समाज की नजर में लड़की को सैक्स के लिए पार्टनर की नहीं पति की जरूरत होगी और लड़की का पति कौन होगा यह लड़की तय नहीं कर सकती. यहीं से समस्याएं खड़ी होती हैं. कानून और समाज के बीच मध्यम मार्ग कोई नहीं है और समाज के आगे कानून भी लाचार नजर आता है. कानून का काम तो तब शुरू होता है जब कोई उस के द्वार खटखटाता है. यह कानून की मजबूरी है लेकिन समाज तो हर वक्त लड़की पर नजर बनाए रखता है ऐसे में लड़की को अपनी मर्जी से शादी करनी हो तो वो क्या करे?

शहरों में हालात बदल रहे हैं लेकिन गांवों कस्बों में आज भी लड़कियों के लिए कोई रास्ता नहीं है. यहां बदलाव बस इतना ही हुआ है कि लड़कियों को स्कूल भेजा जाने लगा है. बाल विवाह में कमी आई है. लड़कियों की शादी में जल्दबाजी नहीं की जा रही. हर लड़का शादी के लिए औसत पढ़ीलिखी लड़की ढूंढ रहा है इसलिए मांबाप अपनी बेटियों को पढ़ा रहे हैं. स्कूल कालेज जाने से लड़कियों में आत्मविश्वास आने लगा है और यही आत्मविश्वास उन्हें सामाजिक बंधनों के खिलाफ खड़ा कर रहा है. गांव कस्बों की लड़कियां भी अब इतनी नादान नहीं रह गईं कि परिवार की मर्जी के आगे अपने जीवन को बलिदान कर दें. जवान होती हुई लड़की अपना भला और बुरा अच्छे से समझ रही है. अब वह किसी की भी प्रोपर्टी बन कर जीना नहीं चाहती. आज की लड़कियां रिश्तों के बंधनों से आजादी चाह रही हैं तो इस में गलत क्या है?

अपनी मर्जी से शादी करने वाली लड़कियां गलत क्यों?

लड़का अपनी मर्जी से शादी कर ले तो ज्यादा हो हल्ला नहीं मचता लेकिन लड़की ऐसा साहस करे तो समाज इसे लड़की का दुस्साहस समझता है. अपनी मर्जी से शादी करने वाली लड़की को बहुत कुछ झेलना पड़ता है इस के बावजूद समाज में उस के लिए कोई संवेदना पैदा नहीं होती जबकि लड़की समाज की वजह से ही ऐसा कदम उठाती है. लड़की भाग गई. लड़का भगा ले गया. लड़की ने नाक कटवा दी. यह सब ताने सिर्फ लड़कियों के लिए ही इजाद किए गए हैं. शहरों में स्थिति थोड़ी अलग है. शहरों में लड़कियां जौब करती हैं. नौकरी या कोई स्किल सीखने के लिए शहरों की लड़कियां अकेली घर से बाहर जाती हैं. प्रेम करती हैं. शहरों का समाज लड़कियों की आजादी को काफी हद तक स्वीकार कर चुका है. लड़कियों के मामले में शहर ज्यादा उदार हो चुके हैं इसलिए यहां लव मैरिज एक सामान्य सी बात हो गई है लेकिन देश के कस्बे और गांव आज भी लकड़ियों के लिए दड़बे बने हुए हैं इसलिए गांव और कस्बों में इस तरह के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.

कुछ समय पहले बिहार के तत्कालिक डीजीपी एसके सिंघल एक कार्यक्रम में समाज में बढ़ रहे अपराध पर भाषण दे रहे थे. उन्होंने मातापिता की इच्छा के खिलाफ घर से भाग कर शादी करने की प्रवृति के बढ़ने पर अफसोस का इजहार करते हुए कहा, “अभी बेटियों में घर से भाग कर शादी करने की प्रवृति तेजी से बढ़ी है. वे मातापिता को बिना बताए भाग कर शादी कर ले रही हैं. बाद में इस के बहुत ही बुरे परिणाम देखने को मिल रहे हैं. एक ओर जहां उन का अपने परिवार से दुराव हो रहा है वहीं दूसरी ओर कई लड़कियों को देह व्यापार के धंधे में उतार दिया जाता है. कई मामलों में लड़कियों का साथी अकेले छोड़ कर भाग जाता है जिस के कारण उन की भावी जिंदगी कष्टकारी हो जाती है. यह न केवल लड़कियों के लिए बल्कि उन के पूरे परिवार के लिए बहुत ही पीड़ा देने वाला होता है.”

हालांकि यह अलग बात है कि बिहार के अभिभावकों को अपनी बेटियों को नियंत्रण में रखने का शिष्टाचार सिखाने वाले डीजीपी एसके सिंघल खुद भ्रष्टाचार में पकड़े गए. वे सिपाही बहाली प्रश्नपत्र लीक मामले में दोषी पाए गए. डीजीपी साहब के भ्रष्टाचार का मामला अलग है. यहां बात उन संस्कारों की हो रही है जिस में लड़कियों को बांधे रखने की वकालत डीजीपी एसके सिंघल जैसे लोग करते हैं. इन्हीं संस्कारों में हजारों वर्षों तक लड़कियों को बांधे रखा गया. लड़की को क्या पहनना है. कहां जाना है. कितना हंसना है. किस से शादी करनी है. कब शादी करनी है. भारतीय समाज में लड़कियों के लिए यह कभी उस के निजी मामले नहीं थे. घरवालों ने जहां तय कर दिया उसे वहीं शादी करनी होती थी और जीवन पर्यंत उस शादी को निभाना भी लड़कियों की जिम्मेदारी थी. ससुराल कैसा भी हो, पति जैसा भी हो लड़की को ही झेलना पड़ता था.

बढ़ते अपराध, शादी के साइड इफेक्ट

इधर लगातार ऐसी खबरें सुर्खियों में रही जिन में औरतों ने अपने पतियों की बेरहमी से हत्याएं कर दी. अपराध की यह घटनाएं इस बात को जस्टिफाई नहीं करतीं कि औरतों को संस्कारों के दायरे में कैद रखना सही है. अगर पिछले एक साल के अपराधों पर नजर डालें तो 70 प्रतिशत मामलों में पतियों ने अपनी पत्नियों की हत्याएं की हैं इस से मर्दों को संस्कारों में बांधने की वकालत तो कोई नहीं कर रहा. ऐसे मामले में जहां पति या पत्नी अपने जीवनसाथी को रास्ते से हटाने के लिए कत्ल तक करने की हिमाकत कर हैं वहां सवाल तो यह उतना चाहिए कि समाज में तलाक की सहज स्वीकार्यता क्यों नहीं है? तलाक हमारी संस्कृति में शामिल क्यों नहीं है? लोगों को तलाक से आसान हत्या करना क्यों लग रहा है? सोनम, मुस्कान और शबनम जैसी औरतों ने तलाक का रास्ता क्यों नहीं चुना? अपराधी कोई भी हो सकता है. मर्द भी और औरत भी. लेकिन कुछ अपराधों में शामिल औरतों के उदाहरण ले कर आधी आबादी को कटघरे में खड़ा कर देना कहां तक उचित है?

1860 से 1910 के दशकों में यूरोप में सब से ज्यादा औनर किलिंग हुई. इस दौरान बड़ी तादात में पतियों ने अपनी पत्नियों को मारा और पत्नियों ने अपने पतियों की हत्याएं कीं. यूरोपीयन समाज ने इस से सबक लिया और लड़कियों को अपनी मर्जी से जीने की छूट दी. यूरोपियन समाज ने परंपरागत शादियों की जगह लव मैरिजेज को बढ़ावा देना शुरू किया. तलाक के नियमों को आसान बनाया गया इस से कुछ ही दशकों में यूरोपियन समाज में बड़ी क्रांति देखी गई. 1950 आतेआते यूरोप में कामगार औरतों का अनुपात आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गया. 1910 में जहां हैल्थ, एजुकेशन, इंडस्ट्रीज और हौस्पिटेलिटी में लड़कियां महज 9.3 प्रतिशत थीं वहीं 1950 तक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में औरतों की 37 प्रतिशत तक कि भागीदारी हो गई.

आधी आबादी की पूरी आजादी जरूरी क्यों?

यूरोप ने लड़कियों की क्षमताओं को समझा और उन्हें संस्कारों और परंपराओं की बेड़ियों से आजाद कर दिया क्योंकि संस्कारों और परंपराओं की आड़ में आधी आबादी को निष्क्रिय कर कोई भी समाज तरक्की नहीं कर सकता. औरत का अपना एक आस्तित्व है और इस अस्तित्व की गहराई में भावनाएं हैं, इच्छाएं हैं, प्रेम हैं, समर्पण है और वासना भी है. अगर औरत के अस्तित्व को ही कैद कर दिया जाए तो उस के अंदर की यह सारी वेदनाएं किसी न किसी रूप में बाहर जरूर निकलेंगी और सबकुछ उलट पलट देंगी इसलिए यह जरूरी है कि औरत को एक इंडिविजुअल के तौर पर भी स्वीकार किया जाए.

औरतों पर जुल्म जिन की रिपोर्टिंग नहीं होती

महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मामले में, भारत को दुनिया के सब से खतरनाक देशों में गिना जाता है. भारत में प्रतिदिन तकरीबन 90 रेप के केसेस दर्ज होते हैं देश की राजधानी दिल्ली में 2022 के डाटा अनुसार हर घंटे औसतन 3 बलात्कार की घटनाएं दर्ज हुईं. क्या यह सभी मामले सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरते हैं? क्या न्यूज चैनल्स इन खबरों पर चीख पुकार करते हैं?

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए थे.

2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सब से ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए. केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले NCRB के मुताबिक, साल 2022 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 65,743 मामले दर्ज हुए. यह देश के किसी भी राज्य की तुलना में सब से अधिक हैं, साथ ही साल दर साल यह आंकड़ा बढ़ा भी है. आंकड़ा यह भी बताता है कि ‘पाताल से अपराधियों को खोज लाने’ का दावा करने वाली सरकार 2021 तक लंबित मामलों की जांच तक नहीं करा पाई.

आमतौर पर उत्तर प्रदेश की सरकार कानून व्यवस्था का खूब ढोल पीटती है. यूपी सरकार में एनकाउंटर और बुलडोजर न्याय का पर्याय बने हुए हैं लेकिन यूपी में औरतों पर होने वाले अत्याचारों में लगातार बढ़ोतरी हुई है जिस पर मेनस्ट्रीम मीडिया, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया में कोई चर्चा तक नहीं होती.

उत्तर प्रदेश के बाद दिल्ली, हरियाणा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान महिलाओं के खिलाफ सर्वाधिक अपराध वाले राज्य हैं. 2021 के मुकाबले 2022 में महिलाओं के प्रति अपराध में 4 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. यही वजह है कि ‘महिला, शांति और सुरक्षा सूचकांक 2021’ में भारत 170 देशों में से 148 वें स्थान पर है.

नारी के खिलाफ अपराधों में नारी अस्मिता की बकवास करने वाले और नारी को पूजने वाले लोगों की हकीकत उजागर होती है. इस तरह की जघन्य घटनाओं में संस्कार मर्यादा और संस्कृति की घिसीपिटी दुहाई देने वाले समाज का घिनौना चेहरा भी पूरी तरह बेनकाब हो जाता है.

न्यूज़ चैनलों पर केवल “सिलेक्टिव” मामले ही सुर्खियों में आते हैं क्योंकि यह सिलेक्टिव विचारधारा की औब्जेक्टिव राजनीति का परिणाम है.

महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग और देश की महिला सांसदों का रवैया क्या है बताने की जरूरत नहीं. हर साल देश की हजारों बेटियां हवस का शिकार होती हैं. मंदिरमसजिद में मासूम बच्चियों संग गैंगरेप होता है लेकिन इस से शीर्ष पदों पर बैठी महिलाओं को कोई फर्क नहीं पड़ता.

साम्प्रदायिक मुद्दों पर गला फाड़फाड़ कर चिल्लाने वाली महिला एंकर्स के लिए बालात्कार जैसी घटनाएं भी राजनीति और टीआरपी का खेल बन जाती हैं. किसी बलात्कार पर तभी शोर मचता है जब मामले में साम्प्रदायिक पहलू शामिल हो वरना महिलाओं के खिलाफ जघन्यतम मामलों में भी कोई हो हल्ला नहीं मचता. जब तक किसी मामले में टीआरपी का ग्राफ ऊपर न उठे तब तक टीवी पर नजर आने वाली महिला एंकरों को नारी पर होने वाले किसी भी अपराध से कोई फर्क नहीं पड़ता.

भारत की महान संस्कृति का दर्शन करने आने वाली विदेशी नारियों के साथ भी रेप हुए लेकिन प्राइम टाइम में कोई शोर न हुआ क्योंकि ये घटनाएं उन राज्यों में घटित हुईं जहां राष्ट्रवादी सरकारें हैं. इन घटनाओं पर विदेशों में भारत की महान संस्कृति सुर्खियों में रही लेकिन देश की मीडिया और मीडिया में बैठी खूबसूरत बालाएं खामोश रहीं. इस कुसंस्कृति पर एक शब्द भी नहीं बोल पाईं लेकिन साम्प्रदायिक मामलों में टीवी पर बैठी यही नारी शक्ति चिल्लाती हुई दिखाई देती हैं.

15 मार्च 2025 में एक ब्रिटिश महिला का दिल्ली के एक होटल में रेप किया गया. 8 मार्च यानी महिला दिवस के दिन तेलांगना के के हम्पी में दो इजराइली औरतों का रेप हुआ. फरवरी में ही दिल्ली की एक अदालत ने एक आयरिश महिला के रेप और हत्या मामले में दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई. क्या इन में से कोई भी खबर सुर्खियां बटोर पाई? क्या इन खबरों पर देश में कोई शोर मचा?

पिछले दो महीनों में पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों की हत्या के 30 से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं. वहीं पत्नियों द्वारा पतियों की हत्या के मामले इस के आधे भी नहीं हैं लेकिन शोर केवल औरतों द्वारा किए गए अपराधों पर मच रहा है.

पत्नियों की हत्या के कुछ ताजा मामले

– मार्च 2025 सारंगढ़, बालोद और कोंडागांव में तीन पत्नियों की हत्या

– अप्रैल 2025 मामूली घरेलू विवादों में 10 जगहों पर पति पत्नियों का कत्ल

– मई 2025 चरित्र शक और मामूली विवाद में इस महीने भी 10 पत्नियों की हत्या

– 15 जून 2025 मामूली घरेलू विवाद में 6 जगहों पर पति ने पत्नियों को मार डाला

– इनमें शक के चलते 10 से ज्यादा मर्डर, 6 बार नशे की हालत में कत्ल

– 2 पत्नियों की हत्या. संबंध बनाने से इनकार पर, बाकी वजहें- दहेज और तनाव की वजह से की गईं.

यह सारे मामले भारत के केवल एक राज्य मध्य प्रदेश के हैं.

सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया दोनों पूरी तरह जातिवादी पुरुषों के हाथों में हैं जो औरतों पर होने वाले अत्याचारों और अपराधों को गम्भीरता से तभी लेते हैं जब विक्टिम ऊंची जाति की हो और अपराधी निचली जाति से हो या दूसरे धर्म का हो. अगर अपराधी और पीड़ित दोनों अपनी ही जाति से हों तो मामले को एक कोने में सरका दिया जाता है.

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के शोर में बहुत सी बेटियां खामोश कर दी जाती हैं. कुछ पेट में ही मार दी जाती हैं कुछ खाली पेट मर जाती हैं लेकिन यह लड़कियां प्राइम टाइम की खबरों में जगह नहीं बना पातीं.

मलाला हो या सबरीमाला औरत से दिक्कत सभी धर्मों को है क्योंकि औरत की शिक्षा से उस की आज़ादी से मजहब की बुनियादें हिलने लगती हैं. सतीप्रथा खत्म हो चुकी है लेकिन औरत को जिंदा जलाने की मानसिकता आज भी मौजूद है. जब मणिपुर की औरतों को सरेआम बीच चौराहे पर उस के जिस्म से आखिरी कपड़ा तक उतार कर उसे भरे बाजार नंगा घुमाया गया तब भी मीडिया में बैठी नारी शक्ति के आंख कान जुबान सब बन्द हो गए थे.

Love Story In Hindi : झूठे इश्‍क का इम्तिहान

Love Story In Hindi : मारिया की जिंदगी में कमी थी प्यार और रिश्तों की, इसलिए नौशाद का इजहारे मोहब्बत वह कुबूल कर बैठी. शादी कर वह अपना जीवन महकाना चाहती थी…

मारिया की ड्यूटी आईसीयू में थी. जब वह बैड नंबर 5 के पास पहुंची तो सुन्न रह गई. उस के पांव जैसे जमीन ने जकड़ लिए. बैड पर नौशाद था, वही चौड़ी पेशानी, गोरा रंग, घुंघराले बाल. उस का रंग पीला हो रहा था. गुलाबी होंठों पर शानदार मूंछें, बड़ीबड़ी आंखें बंद थीं. वह नींद के इंजैक्शन के असर में था.

मारिया ने खुद को संभाला. एक नजर उस पर डाली. सब ठीक था. वैसे वह उस के ड्यूटीचार्ट में न था. बोझिल कदमों से वह अपनी सीट पर आ गई. मरीजों के चार्ट भरने लगी. उस के दिलोदिमाग में एक तूफान बरपा था. जहां वह काम करती थी वहां जज्बात नहीं, फर्ज का महत्त्व था. वह मुस्तैदी से मरीज अटैंड करती रही.

काम खत्म कर अपने क्वार्टर पर पहुंची तो उस के सब्र का बांध जैसे टूट गया. आंसुओं का सैलाब बह निकला. रोने के बाद दिल को थोड़ा सुकून मिल गया. उस ने एक कप कौफी बनाई. मग ले कर छोटे से गार्डन में बैठ गई. फूलों की खुशबू और ठंडी हवा ने अच्छा असर किया. उस की तबीयत बहाल हो गई. खुशबू का सफर कब यादों की वादियों में ले गया, पता ही नहीं चला.

मारिया ने नर्सिंग का कोर्स पूरा कर लिया तो उसे एक अच्छे नर्सिंगहोम में जौब मिली. अपनी मेहनत व लगन से वह जल्द ही अच्छी व टैलेंटेड नर्सों में गिनी जाने लगी. वह पेशेंट्स से बड़े प्यार से पेश आती. उन का बहुत खयाल रखती. व्यवहार में जितनी विनम्र, सूरत में उतनी ही खूबसूरत, गंदमी रंगत, बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी होंठ. जो उसे देखता, देखता ही रह जाता. होंठों पर हमेशा मुसकान.

उन्हीं दिनों नर्सिंगहोम में एक पेशेंट भरती हुआ. उस का टायफायड बिगड़ गया था. वह लापरवाह था. परहेज भी नहीं करता था. उस की मां ने परेशान हो कर नर्सिंगहोम में भरती कर दिया. उस के रूम में मारिया की ड्यूटी थी. अपने अच्छे व्यवहार और मीठी जबान से जल्द ही उस ने मरीज और मर्ज दोनों पर काबू पा लिया.

मारिया के समझाने से वह वक्त पर दवाई लेता और परहेज भी करता. एक हफ्ते में उस की तबीयत करीबकरीब ठीक हो गईर्. नौशाद की अम्मा बहुत खुश हुई. बेटे के जल्दी ठीक होने में वह मारिया का हाथ मानती. वह बारबार उस के एहसान का शुक्रिया अदा करती. मारिया को पता ही नहीं चला कब उस ने नौशाद के दिल पर सेंध लगा दी.

अब नौशाद उस से अकसर मिलने आ जाता. शुक्रिया कहने के बहाने एक बार कीमती गिफ्ट भी ले आया. मारिया ने सख्ती से इनकार कर दिया और गिफ्ट नहीं लिया. धीरेधीरे अपने प्यारभरे व्यवहार और शालीन तरीके से नौशाद ने मारिया के दिल को मोम कर दिया. अगर रस्सी पत्थर पर बारबार घिसी जाए तो पत्थर पर भी निशान बन जाता है, वह तो फिर एक लड़की का नाजुक दिल था. वैसे भी, मारिया प्यार की प्यासी और रिश्तों को तरसी हुई थी.

मारिया ने जब मैट्रिक किया, उसी वक्त उस के मम्मीपापा एक ऐक्सिडैंट में चल बसे थे. करीबी कोई रिश्तेदार न था. रिश्ते के एक चाचा मारिया को अपने साथ ले आए. अच्छा पैसा मिलने की उम्मीद थी. चाचा के 5 बच्चे थे, मुश्किल से गुजरबसर होती थी.

मारिया के पापा के पैसों के लिए दौड़धूप की, उसे समझा कर पैसा अपने अकाउंट में डाल लिया. अच्छीखासी रकम थी. चाचा ने इतना किया कि मारिया की आगे की पढ़ाई अच्छे से करवाई. वह पढ़ने में तेज भी थी. अच्छे इंस्टिट्यूट से उसे नर्सिंग की डिगरी दिलवाई. उस की सारी सहूलियतों का खयाल रखा. जैसे ही उस का नर्सिंग का कोर्स पूरा हुआ, उसे एक अच्छे नर्सिंगहोम में जौब मिल गई.

जौब मिलते ही चाचा ने हाथ खड़े कर दिए और कहा, ‘हम ने अपना फर्ज पूरा कर दिया. अब तुम अपने पैरों पर खड़ी हो गई हो. तुम्हें दूसरे शहर में जौब मिल गई. तुम्हारे पापा का पैसा भी खत्म हो गया. इस से ज्यादा हम कुछ नहीं कर सकते हैं. हमारे सामने हमारे 5 बच्चे भी हैं.’

चाची तो वैसे ही उस से खार खाती थी, जल्दी से बोल पड़ी, ‘हम से जो बना, कर दिया. आगे हम से कोईर् उम्मीद न रखना. अपनी सैलरी जमा कर के शादीब्याह की तैयारी करना. हमें हमारी

3 लड़कियों को ठिकाने लगाना है. वहां इज्जत से नौकरी करना, हमारा नाम खराब मत करना. अगर कोई गलत काम करोगी तो हमारी लड़कियों की शादी होनी मुश्किल हो जाएगी.’

सारी नसीहतें सुन कर मारिया नई नौकरी पर रवाना हुई. वह जानती थी कि उस के पापा के काफी पैसे बचे हैं. पर बहस करने से या मांगने से कोई फायदा न था. चाचा सारे जहां के खर्चे गिना देते. उस का पैकेज अच्छा था. अस्पताल में नर्सों के लिए बढि़या होस्टल था. मारिया जल्द ही सब से ऐडजस्ट हो गई. अपने मिलनसार व्यवहार से जल्द ही वह पौपुलर हो गई.

एना से उस की अच्छी दोस्ती हो गई. वह उस के साथ काम करती थी. एना अपने पेरैंटस के साथ रहती थी. उस के डैडी माजिद अली शहर के मशहूर एडवोकेट थे. जिंदगी चैन से गुजर रही थी कि नौशाद से मुलाकात हो गई. नौशाद की मोहब्बत के जादू से वह लाख चाह कर भी बच न सकी. एना उस की राजदार भी थी. मारिया ने नौशाद के प्रपोजल के बारे में एना को बताया.

एना ने कहा, ‘हमें यह बात डैडी को बतानी चाहिए. उन दोनों ने नौशाद के प्रस्ताव की बात माजिद अली को बताई. माजिद अली ने कहा, ‘मारिया बेटा, मैं 8-10 दिनों में नौशाद के बारे में पूरी मालूमात कर के तुम्हें बताऊंगा. उस के बाद ही तुम कोई फैसला करना.’

कुछ दिनों बाद माजिद साहब ने बताया, ‘नौशाद एक अच्छा कारोबारी आदमी है. इनकम काफी अच्छी है. लेदर की फैक्टरी है. सोसायटी में नाम व इज्जत है. परिवार भी छोटा है. पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. एक बहन आस्ट्रेलिया में है. शादी के बाद वह वहीं सैटल हो गई है. घर में बस मां है. नौशाद घुड़सवारी व घोड़ों का शौकीन है. स्थानीय क्लब का मैंबर है. पर एक बुरी लत है कि शराब पीता है. वैसे, आजकल हाई सोसायटी में शराब पीना आम बात है. ये सब बातें देखते हुए तुम खुद सोचसमझ कर फैसला करो. मुझे तो रिश्ता अच्छा लग रहा है. बाकी तुम देख लो बेटा.’ मारिया ने खूब सोचसमझ कर रिश्ते के लिए हां कर दी.

शादी का सारा इंतजाम माजिद साहब ने किया. शादी में चाचाचाची के अलावा उस की सहेलियां व माजिद साहब के कुछ दोस्त शामिल हुए. बरात में कम ही लोग थे. नौशाद के बहनबहनोई और कुछ रिश्तेदार व दोस्त. शादी में चाचा ने एक चेन व लौकेट दिए.

मारिया शादी के बाद नौशाद के शानदार बंगले में आ गई. अम्मा ने उस का शानदार स्वागत किया. धीरेधीरे सब मेहमान चले गए. अब घर पर अम्मा और मारिया व एक पुरानी बूआ थीं. सर्वेंट क्वार्टर में चौकीदार व उस की फैमिली रहती थी. अम्मा बेहद प्यार से पेश आतीं. वे दोनों हनीमून पर हिमाचल प्रदेश गए. 2-3 महीने नौशाद की जनूनी मोहब्बत में कैसे गुजर गए, पता नहीं चला.

जिंदगी ऐश से गुजर रही थी. धीरेधीरे सामान्य जीवन शुरू हो गया. मारिया ने नर्सिंगहोम जाना शुरू कर दिया. घर का सारा काम बूआ करतीं. कभीकभार मारिया शौक से कुछ पका लेती. सास बिलकुल मां की तरह चाहती थीं.

मारिया अपनी ड्यूटी के साथसाथ नौशाद व अम्मा का भी खूब खयाल रखती. सुखभरे दिन बड़ी तेजी से गुजर रहे थे. सुखों की भी अपनी एक मियाद होती है. अब नौशाद के सिर से मारिया की मोहब्बत का नशा उतर रहा था.

अकसर ही नौशाद पी कर घर आता. मारिया ने प्यार व गुस्से से उसे समझाने की बहुत कोशिश की. पर उस पर कुछ असर न हुआ. ऐसे जनूनी लोग जब कुछ पाने की तमन्ना करते हैं तो उस के पीछे पागल हो जाते हैं और जब पा लेते हैं तो वह चाहत, वह जनून कम हो जाता है.

एक दिन करीब आधी रात को नौशाद नशे में धुत आया. मारिया ने बुराभला कहना शुरू किया. नौशाद भड़क उठा. जम कर तकरार हुई. नशे में नौशाद ने मारिया को धक्का दिया. वह गिर पड़ी. गुस्से में उस ने उसे 2-3 लातें जमा दीं. चीख सुन कर अम्मा आ गईं. जबरदस्ती नौशाद को हटाया. उसे बहुत बुराभला कहा. पर उसे होश कहां था. वह वहीं बिस्तर पर ढेर हो गया. अम्मा मारिया को अपने साथ ले गईं. बाम लगा कर सिंकाई की. उसे बहुत समझाया, बहुत प्यार किया.

दूसरे दिन मारिया कमरे से बाहर न निकली, न अस्पताल गई. नौशाद 1-2 बार कमरे में आया पर मारिया ने मुंह फेर लिया. 2 दिनों तक ऐसे ही चलता रहा. तीसरे दिन शाम को नौशाद जल्दी आ गया, साथ में फूलों का गजरा लाया. मारिया से खूब माफी मांगी. बहुत मिन्नत की और वादा किया कि अब ऐसा नहीं होगा. मारिया के पास माफ करने के अलावा और कोई रास्ता न था. नौशाद पीता तो अभी भी था पर घर जल्दी आ जाता था. मारिया हालात से समझौता करने पर मजबूर थी. वैसे भी, नर्सों के बारे में गलत बातें मशहूर हैं. सब उस पर ही इलजाम लगाते.

उस दिन मारिया के अस्पताल में कार्यक्रम था. एक बच्ची खुशी का बर्थडे था. उस की मां बच्ची को जन्म देते ही चल बसी. पति उसे

छोड़ चुका था. एक विडो नर्स ने

सारी कार्यवाही पूरी कर के उसे बेटी

बना लिया.

अस्पताल का सारा स्टाफ उसे बेटी की तरह प्यार करता था. उस का बर्थडे अस्पताल में शानदार तरीके से मनाया जाता था. मारिया उस बर्थडे में शामिल होने के लिए घर से अच्छी साड़ी ले कर गई थी. अम्मा को बता दिया था कि आने में उसे देर होगी. प्रोग्राम खत्म होतेहोते रात हो गई. उस के सहयोगी डाक्टर राय उसे छोड़ने आए थे. नौशाद घर आ चुका था.

सजीसंवरी मारिया घर में दाखिल हुई. वह अम्मा को प्रोग्राम के बारे में बता रही थी कि कमरे से नौशाद निकला. वह गुस्से से तप रहा था, चिल्ला कर बोला, ‘इतना सजधज कर किस के साथ घूम रही हो? कौन तुम्हें ले कर आया है? शुरू कर दीं अपनी आवारागर्दियां? तुम लोग कभी सुधर नहीं सकते.’

वह गुस्से से उफन रहा था. उस के मुंह से फेन निकल रहा था. उस ने जोर से मारिया को एक थप्पड़ मारा. मारिया जमीन पर गिर गई. उस ने झल्ला कर एक लात जमाई.

अम्मा ने धक्का मार कर उसे दूर किया. अम्मा के गले लग कर मारिया देर रात तक रोती रही. बर्थडे की सारी खुशी मटियामेट हो गई. 2-3 दिनों तक वह घर में रही. पूरे घर का माहौल खराब हो गया. मारिया ने उस से बात करनी छोड़ दी.

ऐसे कब तक चलता. फिर से नौशाद ने खूब मनाया, बहुत शर्मिंदा हुआ, बहुत माफी मांगी, ढेरों वादे किए. न चाहते हुए भी मारिया को झुकना पड़ा. पर इस बार उसे बड़ी चोट पहुंची थी. उस ने एक बड़ा फैसला किया, नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उसे घर बचाना था. उसे घर या नौकरी में से किसी एक को चुनना था. उस ने घरगृहस्थी चुनी. अब घर में सुकून हो गया. जिंदगी अपनी डगर पर चल पड़ी. फिर भी नौशाद कभी ज्यादा पी कर आता, तो हाथ उठा देता. मारिया हालात से समझौता करने को मजबूर थी.

शादी को 2 साल हो गए. उस के दिल में औलाद की आरजू पल रही थी. अम्मा ने खुले शब्दों में औलाद की फरमाइश कर दी थी. उस की आरजू पूरी हुई. मारिया ने अम्मा को खुशखबरी सुनाई. अम्मा बहुत खुश हुईं. उन्होंने मारिया को पूरी तरह आराम करने की हिदायत दे दी. नौशाद ने कोई खास खुशी का इजहार नहीं किया. अम्मा उस का खूब खयाल रखतीं. दिन अच्छे गुजर रहे थे.

उस दिन नौशाद जल्दी आ गया था. मारिया जब कमरे में गई तो वह पैग बना रहा था. मारिया खामोश ही रही. कुछ कहने का मतलब एक हंगामा खड़ा करना. नौशाद कहने लगा, ‘मारिया, तुम अपने अस्पताल में तो अल्ट्रासाउंड करवा सकती हो, ताकि पता चल जाए लड़का है या लड़की. मुझे तो बेटा चाहिए.’

मारिया ने अल्ट्रासाउंड कराने से साफ इनकार करते हुए कहा, ‘मुझे नहीं जानना है कि लड़की है या लड़का. जो भी होगा, उसे मैं सिरआंखों पर रखूंगी. मैं तुम्हारी कोई शर्त नहीं सुनूंगी. मैं मां हूं, मुझे हक है बच्चे को जन्म देने का चाहे वह लड़का हो या लड़की.’

बात बढ़ती गई. नौशाद को उस का इनकार सुन कर गुस्सा आ गया. फिर नशा भी चढ़ रहा था. मारिया पलंग पर लेटी थी. उस ने मारना शुरू कर दिया. एक लात उस के पेट पर मारी. मारिया बुरी तरह तड़प रही थी. पेट पकड़ कर रो रही थी. चीख रही थी. अम्मा व बूआ ने फौरन सहारा दे कर मारिया को उठाया. उसे अस्पताल ले गईं. वहां फौरन ही उस का इलाज शुरू हो गया. कुछ देर बाद डाक्टर ने आ कर बताया कि मारिया का अबौर्शन करना पड़ा. उस की हालत सीरियस है.

अम्मा और बूआ पूरी रात रोती रहीं. दूसरे दिन मारिया की हालत थोड़ी संभली. नौशाद आया तो अम्मा ने उसे खूब डांटा, मना करती थी मत मार बीवी को लातें. उस की कोख में तेरा बच्चा पल रहा है, तेरे खानदान का नाम लेवा. पर तुझे अपने गुस्से पर काबू कब रहता है? नशे में पागल हो जाता है. अब सिर पकड़ कर रो, बच्चा पेट में ही मर गया.

एना और माजिद साहब भी आ गए. वे लोग रोज आते रहे. मारिया की देखरेख करते रहे. नौशाद की मारिया के सामने जाने की हिम्मत नहीं हुई. हिम्मत कर के गया तो मारिया ने न तो आंखें खोलीं, न उस से बात की. उस का सदमा बहुत बड़ा था. मारिया जब अस्पताल से डिस्चार्ज हुई तो उस ने अम्मा से साफ कह दिया कि वह नौशाद के साथ नहीं रह सकती.

मारिया एना व माजिद साहब के साथ उन के घर चली गई. नौशाद ने मिलने की, मनाने की बहुत कोशिश की, पर मारिया नहीं मिली. अब माजिद साहब एक मजबूत दीवार बन कर खड़े हो गए थे.

नौशाद फिर आया तो मारिया ने तलाक की मांग रख दी. नौशाद ने खूब माफी मांगी, मिन्नतें कीं पर इस बार मारिया के मातृत्व पर लात पड़ी थी, वह बरदाश्त न कर सकी, तलाक पर अड़ गई. नौशाद ने साफ इनकार कर दिया. मारिया ने माजिद साहब से कहा, ‘‘अगर नौशाद तलाक देने पर नहीं राजी है तो आप उसे खुला (खुला जब पत्नी पति से अलग होना चाहती है, इस में उसे खर्चा व मेहर नहीं मिलता) का नोटिस दे दें.’’

माजिद साहब की कोशिश से उसे जल्दी खुला मिल गया. एना और उस की अम्मी ने खूब खयाल रखा. अम्मा 2-3 बार आईं. मारिया को समझाने व मनाने की बहुत कोशिश की. पर मारिया अलग होने का फैसला कर चुकी थी. धीरेधीरे उस के जिस्म के साथसाथ दिल के जख्म भी भरने लगे. 3 महीने बाद उसे इस अस्पताल में जौब मिल गई. यहां स्टाफक्वार्टर भी थे. वह उस में शिफ्ट हो गई.

माजिद साहब और एना ने बहुत चाहा कि वह उन के घर में ही रहे, पर वह न मानी. उस ने स्टाफक्वार्टर में रहना ही मुनासिब समझा. माजिद साहब और उन की पत्नी बराबर आते और उस की खोजखबर लेते रहे.

एना की शादी पर वह पूरा एक  हफ्ता उस के यहां रही. शादी का काफी काम उस ने संभाल लिया. शादी में इरशाद, माजिद साहब का भतीजा, दुबई से आया था. काफी स्मार्ट और अच्छी नौकरी पर था. पर मनपसंद लड़की की तलाश में अभी तक शादी न की थी. उसे मारिया बहुत पसंद आई. माजिद साहब से उस ने कहा कि उस की शादी की बात चलाएं. माजिद साहब ने उसे मारिया की जिंदगी की दर्दभरी दास्तान सुना दी. सबकुछ जान कर भी इरशाद मारिया से ही शादी करना चाहता था.

माजिद साहब ने जब मारिया से इस बारे में बात की तो उस ने साफ इनकार करते हुए कहा, ‘‘अंकल, मैं ने एक शादी में इतना कुछ भुगत लिया है. अब तो शादी के नाम से मुझे कंपकंपी होती है. आप उन्हें मना कर दें. अभी तो मैं सोच भी नहीं सकती.’’

माजिद साहब ने इरशाद को मारिया के इनकार के बारे में बता दिया. पर उस ने उम्मीद न छोड़ी.

डेढ़ साल बाद आज नौशाद को आईसीयू में यों पड़ा देख कर मारिया के पुराने जख्म ताजा हो गए. दर्द फिर आंखों से बह निकला. दूसरे दिन वह अस्पताल गई तो अम्मा बाहर ही मिल गईं. उसे गले लगा कर सिसक पड़ीं.

जबरदस्ती उसे नौशाद के पास ले गईं और कहा, ‘‘देखो, तुम पर जुल्म करने वाले को कैसी सजा मिली है.’’ यह कह कर उन्होंने चादर हटा दी. नौशाद का एक पांव घुटने के पास से कटा हुआ था. मारिया देख कर सहम गई. अम्मा रोते हुए बोलने लगीं, ‘‘वह इन्हीं पैरों से तुम्हें मारता था न, इसी लात ने तुम्हारी कोख उजाड़ी थी. देखो, उस का क्या अंजाम हुआ. नशे में बड़ा ऐक्सिडैंट कर बैठा.’’

नौशाद ने टूटेफूटे शब्दों में माफी मांगी. मारिया की मिन्नतें करने लगा. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. मारिया का दिल भर आया. वह आईसीयू से बाहर आ गई. अम्मा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘बेटा, मेरा बच्चा अपने किए को भुगत रहा है. बहुत पछता रहा है. तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी अहमियत का अंदाजा हुआ उसे. बहुत परेशान था. पर अब रोने से क्या हासिल था? मारिया, मेरी तुम से गुजारिश है, एक बार फिर उसे सहारा दे दो. तुम्हारे सिवा उसे कोई नहीं संभाल सकता. मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं. तुम लौट आओ. तुम्हारे बिना हम सब बरबाद हैं.’’

मारिया ने अम्मा के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘अम्मा, अब यह नामुमकिन है. मैं किसी कीमत पर उस राह पर वापस नहीं पलट सकती. जो कुछ मुझ पर गुजरी है उस ने मेरे जिस्म ही नहीं, जिंदगी को भी तारतार कर दिया है. मैं अब उस के साथ एक पल गुजारने की सोच भी नहीं सकती. आप से अपील है आप अपने दिल में भी इस बात का खयाल न लाएं. आप उस की दूसरी जगह शादी कर दें.’’

मारिया घर लौट कर उस बारे में ही सोचती रही. उसे लगा, अम्मा के आंसू और मिन्नतें वह कब तक टालेगी? इस का कोई स्थायी हल निकालना जरूरी है. कुछ देर में उस के दिमाग ने फैसला सुना दिया. मारिया ने माजिद साहब को फोन लगाया और कहा, ‘‘अंकल, मैं इरशाद से शादी करने के लिए तैयार हूं. आप उन्हें हां कर दें.’’ अब किसी नए इम्तिहान में पड़ने का उस का कोई इरादा न था, नौशाद से बचने का सही हल इरशाद से शादी करना था.

आज उस ने दिल से नहीं, दिमाग से फैसला लिया था. दिल से फैसले का अंजाम वह देख चुकी थी. Love Story In Hindi 

Emotional story : शादी का कार्ड

Emotional Story : रश्मि आंटी ई…ई…ई…’’ यह पुकार सुन कर लगा जैसे यह मेरा सात समंदर पार वैंकूवर में किसी अपने की मिठास भरी पुकार का भ्रम मात्र है. परदेस में भला मुझे कौन पहचानता है?  पीछे मुड़ कर देखा तो एक 30-35 वर्षीय सौम्य सी युवती मुझे पुकार रही थी. चेहरा कुछ जानापहचाना सा लगा. हां अरे, यह तो लिपि है. मेरे चेहरे पर आई मुसकान को देख कर वह अपनी वही पुरानी मुसकान ले कर बांहें फैला कर मेरी ओर बढ़ी.

इतने बरसों बाद मिलने की चाह में मेरे कदम भी तेजी से उस की ओर बढ़ गए. वह दौड़ कर मेरी बांहों में सिमट गई. हम दोनों की बांहों की कसावट यह जता रही थी कि आज के इस मिलन की खुशी जैसे सदियों की बेताबी का परिणाम हो.

मेरी बहू मिताली पास ही हैरान सी खड़ी थी. ‘‘बेटी, कहां चली गई थीं तुम अचानक? कितना सोचती थी मैं तुम्हारे बारे में? जाने कैसी होगी? कहां होगी मेरी लिपि? कुछ भी तो पता नहीं चला था तुम्हारा?’’ मेरे हजार सवाल थे और लिपि की बस गरम आंसुओं की बूंदें मेरे कंधे पर गिरती हुई जैसे सारे जवाब बन कर बरस रही थीं.

मैं ने लिपि को बांहों से दूर कर सामने किया, देखना चाहती थी कि वक्त के अंतराल ने उसे कितना कुछ बदलाव दिया.

‘‘आंटी, मेरा भी एक पल नहीं बीता होगा आप को बिना याद किए. दुख के पलों में आप मेरा सहारा बनीं. मैं इन खुशियों में भी आप को शामिल करना चाहती थी. मगर कहां ढूंढ़ती? बस, सोचती रहती थी कि कभी तो आंटी से मिल सकूं,’’ भरे गले से लिपि बोली.

‘‘लिपि, यह मेरी बहू मिताली है. इस की जिद पर ही मैं कनाडा आई हूं वरना तुम से मिलने के लिए मुझे एक और जन्म लेना पड़ता,’’ मैं ने मुसकरा कर माहौल को सामान्य करना चाहा.

‘‘मां के चेहरे की खुशी देख कर मैं समझ सकती हूं कि आप दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए कितनी बेताब रही हैं. आप अपना एड्रैस और फोन नंबर दे दीजिए. मैं मां को आप के घर ले आऊंगी. फिर आप दोनों जी भर कर गुजरे दिनों को याद कीजिएगा,’’ मिताली ने नोटपैड निकालते हुए कहा.

 

‘‘भाभी, मैं हाउसवाइफ हूं. मेरा घर इस ‘प्रेस्टीज मौल’ से अधिक दूरी पर नहीं है. आंटी को जल्दी ही मेरे घर लाइएगा. मुझे आंटी से ढेर सारी बातें करनी हैं,’’ मुझे जल्दी घर बुलाने के लिए उतावली होते हुए उस ने एड्रैस और फोन नंबर लिखते हुए मिताली से कहा.

‘‘मां, लगता है आप के साथ बहुत लंबा समय गुजारा है लिपि ने. बहुत खुश नजर आ रही थी आप से मिल कर,’’ रास्ते में कार में मिताली ने जिक्र छेड़ा.

‘‘हां, लिपि का परिवार ग्वालियर में हमारा पड़ोसी था. ग्वालियर में रिटायरमैंट तक हम 5 साल रहे. ग्वालियर की यादों के साथ लिपि का भोला मासूम चेहरा हमेशा याद आता है. बेहद शालीन लिपि अपनी सौम्य, सरल मुसकान और आदर के साथ बातचीत कर पहली मुलाकात में ही प्रभावित कर लेती थी.

‘‘जब हम स्थानांतरण के बाद ग्वालियर शासकीय आवास में पहुंचे तो पास ही 2 घर छोड़ कर तीसरे क्वार्टर में चौधरी साहब, उन की पत्नी और लिपि रहते थे. चौधरी साहब का अविवाहित बेटा लखनऊ में सर्विस कर रहा था और बड़ी बेटी शादी के बाद झांसी में रह रही थी,’’ बहुत कुछ कह कर भी मैं बहुत कुछ छिपा गई लिपि के बारे में.

रात को एकांत में लिपि फिर याद आ ग. उन दिनों लिपि का अधिकांश समय अपनी बीमार मां की सेवा में ही गुजरता था. फिर भी शाम को मुझ से मिलने का समय वह निकाल ही लेती थी. मैं भी चौधरी साहब की पत्नी शीलाजी का हालचाल लेने जबतब उन के घर चली जाती थी.

शीलाजी की बीमारी की गंभीरता ने उन्हें असमय ही जीवन से मुक्त कर दिया. 10 वर्षों से रक्त कैंसर से जूझ रही शीलाजी का जब निधन हुआ था तब लिपि एमए फाइनल में थी. असमय मां का बिछुड़ना और सारे दिन के एकांत ने उसे गुमसुम कर दिया था. हमेशा सूजी, पथराई आंखों में नमी समेटे वह अब शाम को भी बाहर आने से कतराने लगी थी. चौधरी साहब ने औफिस जाना आरंभ कर दिया था. उन के लिए घर तो रात्रिभोजन और रैनबसेरे का ठिकाना मात्र ही रह गया था.

लिपि को देख कर लगता था कि वह इस गम से उबरने की जगह दुख के समंदर में और भी डूबती जा रही है. सहमी, पीली पड़ती लिपि दुखी ही नहीं, भयभीत भी लगती थी. आतेजाते दी जा रही दिलासा उसे जरा भी गम से उबार नहीं पा रही थी. दुखते जख्मों को कुरेदने और सहलाने के लिए उस का मौन इजाजत ही नहीं दे रहा था.

मुझे लिपि में अपनी दूर ब्याही बेटी  अर्पिता की छवि दिखाई देती थी.  फिर भला उस की मायूसी मुझ से कैसे बर्दाश्त होती? मैं ने उस की दीर्घ चुप्पी के बावजूद उसे अधिक समय देना शुरू कर दिया था. ‘बेटी लिपि, अब तुम अपने पापा की ओर ध्यान दो. तुम्हारे दुखी रहने से उन का दुख भी बढ़ जाता है. जीवनसाथी खोने का गम तो है ही, तुम्हें दुखी देख कर वे भी सामान्य नहीं हो पा रहे हैं. अपने लिए नहीं तो पापा के लिए तो सामान्य होने की कोशिश करो,’ मैं ने प्यार से लिपि को सहलाते हुए कहा था.

पापा का नाम सुनते ही उस की आंखों में घृणा का जो सैलाब उठा उसे मैं ने साफसाफ महसूस किया. कुछ न कह पाने की घुटन में उस ने मुझे अपलक देखा और फिर फूटफूट कर रोने लगी. मेरे बहुत समझाने पर हिचकियां लेते हुए वह अपने अंदर छिपी सारी दास्तान कह गई, ‘आंटी, मैं मम्मी के दुनिया से जाते ही बिलकुल अकेली हो गई हूं. भैया और दीदी तेरहवीं के बाद ही अपनेअपने शहर चले गए थे. मां की लंबी बीमारी के कारण घर की व्यवस्थाएं नौकरों के भरोसे बेतरतीब ही थीं. मैं ने जब से होश संभाला, पापा को मम्मी की सेवा और दवाओं का खयाल रखते देखा और कभीकभी खीज कर अपनी बदकिस्मती पर चिल्लाते भी.

‘मेरे बड़े होते ही मम्मी का खयाल स्वत: ही मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया. पापा के झुंझलाने से आहत मम्मी मुझ से बस यही कहती थीं कि बेटी, मैं बस तुम्हें ससुराल विदा करने के लिए ही अपनी सांसें थामे हूं. वरना अब मेरा जीने का बिलकुल भी जी नहीं करता. लेकिन मम्मी मुझे बिना विदा किए ही दुनिया से विदा हो गईं.

 

‘पापा को मैं ने पहले कभी घर पर शराब पीते नहीं देखा था लेकिन अब पापा घर पर ही शराब की बोतल ले कर बैठ जाते हैं. जैसेजैसे नशा चढ़ता है, पापा का बड़बड़ाना भी बढ़ जाता है. इतने सालों से दबाई अतृप्त कामनाएं, शराब के नशे में बहक कर बड़बड़ाने में और हावभावों से बाहर आने लगती हैं. पापा कहते हैं कि उन्होंने अपनी सारी जवानी एक जिंदा लाश को ढोने में बरबाद कर दी. अब वे भरपूर जीवन जीना चाहते हैं. रिश्तों की गरिमा और पवित्रता को भुला कर वासना और शराब के नशे में डूबे हुए पापा मुझे बेटी के कर्तव्यों के निर्वहन का पाठ पढ़ाते हैं.

‘मेरे आसपास अश्लील माहौल बना कर मुझे अपनी तृप्ति का साधन बनाना चाहते हैं. वे कामुक बन मुझे पाने का प्रयास करते हैं और मैं खुद को इस बड़े घर में बचातीछिपाती भागती हूं. नशे में डूबे पापा हमारे पवित्र रिश्ते को भूल कर खुद को मात्र नर और मुझे नारी के रूप में ही देखते हैं.

‘अब तो उन के हाथों में बोतल देख कर मैं खुद को एक कमरे में बंद कर लेती हूं. वे बाहर बैठे मुझे धिक्कारते और उकसाते रहते हैं और कुछ देर बाद नींद और नशे में निढाल हो कर सो जाते हैं. सुबह उठ कर नशे में बोली गई आधीअधूरी याद, बदतमीजी के लिए मेरे पैरों पर गिर कर रोरो कर माफी मांग लेते हैं और जल्दी ही घर से बाहर चले जाते हैं.

‘ऊंचे सुरक्षित परकोटे के घर में मैं सब से सुरक्षित रिश्ते से ही असुरक्षित रह कर किस तरह दिन काट रही हूं, यह मैं ही जानती हूं. इस समस्या का समाधान मुझे दूरदूर तक नजर नहीं आ रहा है,’ कह कर सिर झुकाए बैठ गई थी लिपि. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी थी.

मैं सुन कर आश्चर्यचकित थी कि चौधरी साहब इतना भी गिर सकते हैं. लिपि अपने अविवाहित भाई रौनक के पास भी नहीं जा सकती थी और झांसी में उस की दीदी अभी संयुक्त परिवार में अपनी जगह बनाने में ही संघर्षरत थी. वहां लिपि का कुछ दिन भी रह पाना मुश्किल था.  घबरा कर लिपि आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण अंजाम का मन बनाने लगी थी. लेकिन आत्महत्या अपने पीछे बहुत से अनुत्तरित सवाल छोड़ जाती है, यह समझदार लिपि जानती थी. मैं ने उसे चौधरी साहब और रौनक के साथ गंभीरतापूर्वक बात कर उस के विवाह के बाद एक खुशहाल जिंदगी का ख्वाब दिखा कर उसे दिलासा दी. अब मैं उसे अधिक से अधिक समय अपने साथ रखने लगी थी.  मुझे अपनी बेटी की निश्चित डेट पर हो रही औपरेशन द्वारा डिलीवरी के लिए बेंगलुरु जाना था. मैं चिंतित थी कि मेरे यहां से जाने के बाद लिपि अपना मन कैसे बहलाएगी?

यह एक संयोग ही था कि मेरे बेंगलुरु जाने से एक दिन पहले रौनक लखनऊ से घर आया. मेरे पास अधिक समय नहीं था इसलिए मैं उसे निसंकोच अपने घर बुला लाई. एक अविवाहित बेटे के पिता की विचलित मानसिकता और उन की छत्रछाया में पिता से असुरक्षित बहन का दर्द कहना जरा मुश्किल ही था, लेकिन लिपि के भविष्य को देखते हुए रौनक को सबकुछ थोड़े में समझाना जरूरी था.  सारी बात सुन कर उस का मन पिता के प्रति आक्रोश से?भर उठा. मैं ने उसे समझाया कि वह क्रोध और जोश में नहीं बल्कि ठंडे दिमाग से ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचे जो लिपि के लिए सुरक्षित और बेहतर हो.

अगली सुबह मैं अकेली बेंगलुरु के लिए रवाना हो गई थी और जा कर अर्पिता की डिलीवरी से पूर्व की तैयारी में व्यस्त हो गई थी कि तीसरे दिन मेरे पति ने फोन पर बताया कि तुम्हारे जाने के बाद अगली शाम रौनक लिपि को झांसी भेजने के लिए स्टेशन गया था कि पीछे घर पर अकेले बैठे चौधरी साहब की हार्टअटैक से मृत्यु हो गई.

रौनक को अंदर से बंद घर में पापा टेबल से टिके हुए कुरसी पर बैठे मिले. बेचारे चौधरी साहब का कुछ पढ़ते हुए ही हार्ट फेल हो गया. लिपि और उस की बहन भी आ गई हैं. चौधरी साहब का अंतिम संस्कार हो गया है और मैं कल 1 माह के टूर पर पटना जा रहा हूं.’

चौधरी साहब के निधन को लिपि के लिए सुखद मोड़ कहूं या दुखद, यह तय नहीं कर पा रही थी मैं. तब फोन भी हर घर में कहां होते थे. मैं कैसे दिलासा देती लिपि को? बेचारी लिपि कैसे…कहां… रहेगी अब? उत्तर को वक्त के हाथों में सौंप कर मैं अर्पिता और उस के नवजात बेटे में व्यस्त हो गई थी.

3माह बाद ग्वालियर आई तो चौधरी साहब के उजड़े घर को देख कर मन में एक टीस पैदा हुई. पति ने बताया कि रौनक चौधरी साहब की तेरहवीं के बाद घर के अधिकांश सामान को बेच कर लिपि को अपने साथ ले गया है. मैं उस वक्त टूर पर था, इसलिए जाते वक्त मुलाकात नहीं हो सकी और उन का लखनऊ का एड्रैस भी नहीं ले सका.

लिपि मेरे दिलोदिमाग पर छाई रही लेकिन उस से मिलने की अधूरी हसरत इतने सालों बाद वैंकूवर में पूरी हो सकी.  सोमवार को नूनशिफ्ट जौइन करने के लिए तैयार होते समय मिताली ने कहा, ‘‘मां, मेरी लिपि से फोन पर बात हो गई है. मैं आप को उस के यहां छोड़ देती हूं. आप तैयार हो जाइए. वह आप को वापस यहां छोड़ते समय घर भी देख लेगी.’’

लिपि अपने अपार्टमैंट के गेट पर ही हमारा इंतजार करती मिली. मिताली के औफिस रवाना होते ही लिपि ने कहा, ‘‘आंटी, आप से ढेर सारी बातें करनी हैं. आइए, पहले इस पार्क में धूप में बैठते हैं. मैं जानती हूं कि आप तब से आज तक न जाने कितनी बार मेरे बारे में सोच कर परेशान हुई होंगी.’’

‘‘हां लिपि, चौधरी साहब के गुजरने के बाद तुम ग्वालियर से लखनऊ चली गई थीं, फिर तुम्हारे बारे में कुछ पता ही नहीं चला. चौधरी साहब की अचानक मृत्यु ने तो हमें अचंभित ही कर दिया था. प्रकृति की लीला बड़ी विचित्र है,’’ मैं ने अफसोस के साथ कहा.

‘‘आंटी जो कुछ बताया जाता है वह हमेशा सच नहीं होता. रौनक भैया उस दिन आप के यहां से आ कर चुप, पर बहुत आक्रोशित थे. पापा ने रात को शराब पी कर भैया से कहा कि अब तुम लिपि को समझाओ कि यह मां के गम में रोनाधोना भूल कर मेरा ध्यान रखे और अपनी पढ़ाई में मन लगाए.

‘‘सुन कर भैया भड़क गए थे. पापा के मेरे साथ ओछे व्यवहार पर उन्होंने पापा को बहुत खरीखोटी सुनाईं और कलियुगी पिता के रूप में उन्हें बेहद धिक्कारा. बेटे से लांछित पापा अपनी करतूतों से शर्मिंदा बैठे रह गए. उन्हें लगा कि ये सारी बातें मैं ने ही भैया को बताई हैं.

‘‘भैया की छुट्टियां बाकी थीं लेकिन वे मुझे झांसी दीदी के पास कुछ दिन भेज कर किसी अन्य शहर में मेरी शिक्षा और होस्टल का इंतजाम करना चाहते थे. वे मुझे झांसी के लिए स्टेशन पर ट्रेन में बिठा कर वापस घर पहुंचे तो दरवाजा अंदर से बंद था.

 

‘‘बारबार घंटी बजाने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो भैया पीछे आंगन की दीवार फांद कर अंदर पहुंचे तो पापा कुरसी पर बैठे सामने मेज पर सिर के बल टिके हुए मिले. उन के सीधे हाथ में कलम था और बाएं हाथ की कलाई से खून बह रहा था. भैया ने उन्हें बिस्तर पर लिटाया. तब तक उन के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. भैया ने डाक्टर अंकल और झांसी में दीदी को फोन कर दिया था. पापा ने शर्मिंदा हो कर आत्महत्या करने के लिए अपने बाएं हाथ की कलाई की नस काट ली थी और फिर मेरे और भैया के नाम एक खत लिखना शुरू किया था. ‘‘होश में रहने तक वे खत लिखते रहे, जिस में वे केवल हम से माफी मांगते रहे. उन्हें अपने किए व्यवहार का बहुत पछतावा था. वे अपनी गलतियों के साथ और जीना नहीं चाहते थे. पत्र में उन्होंने आत्महत्या को हृदयाघात से स्वाभाविक मौत के रूप में प्रचारित करने की विनती की थी.

‘‘भैया ने डाक्टर अंकल से भी आत्महत्या का राज उन तक ही सीमित रखने की प्रार्थना की और छिपा कर रखे उन के सुसाइड नोट को एक बार मुझे पढ़वा कर नष्ट कर दिया था.

‘‘हम दोनों अनाथ भाईबहन शीघ्र ही लखनऊ चले गए थे. मैं अवसादग्रस्त हो गई थी इसलिए आप से भी कोई संपर्क नहीं कर पाई. भैया ने मुझे बहुत हिम्मत दी और मनोचिकित्सक से परामर्श किया. लखनऊ में हम युवा भाईबहन को भी लोग शक की दृष्टि से देखते थे लेकिन तभी अंधेरे में आशा की किरण जागी. भैया के दोस्त केतन ने भैया से मेरा हाथ मांगा. सच कहूं, तो आंटी केतन का हाथ थामते ही मेरे जीवन में खुशियों का प्रवेश हो गया. केतन बहुत सुलझे हुए व्यक्ति हैं. मेरे दुख और एकाकीपन से उबरने में उन्होंने मुझे बहुत धैर्य से प्रेरित किया. मेरे दुख का स्वाभाविक कारण वे मम्मीपापा की असामयिक मृत्यु ही मानते हैं.

‘‘मैं ने अपनी शादी का कार्ड आप के पते पर भेजा था. लेकिन बाद में पता चला कि अंकल के रिटायरमैंट के बाद आप लोग वहां से चले गए थे. मैं और केतन 2 वर्ष पहले ही कनाडा आए हैं. अब मैं अपनी पिछली जिंदगी की सारी कड़ुवाहटें भूल कर केतन के साथ बहुत खुश हूं. बस, एक ख्वाहिश थी, आप से मिल कर अपनी खुशियां बांटने की. वह आज पूरी हो गई. आप के कंधे पर सिर रख कर रोई हूं आंटी. खुशी से गलबहियां डाल कर आप को भी आनंदित करने की चाह आज पूरी हो गई.’’

लिपि यह कह कर गले में बांहें डाल कर मुग्ध हो गई थी. मैं ने उस की बांहों को खींच लिया, उस की खुशियों को और करीब से महसूस करने के लिए.

‘‘आंटी, मैं पिछली जिंदगी की ये कसैली यादें अपने घर की दरोदीवार में गूंजने से दूर रखना चाहती हूं, इसलिए आप को यहां पार्क में ले आई थी. आइए, आंटी, अब चलते हैं. मेरे प्यारे घर में केतन भी आज जल्दी आते होंगे, आप से मिलने के लिए,’’ लिपि ने उत्साह से कहा और मैं उठ कर मंत्रमुग्ध सी उस के पीछेपीछे चल दी उस की बगिया में महकते खुशियों के फूल चुनने के लिए.  Emotional Story 

Kahani In Hindi : भ्रष्टाचार – ठंडे पड़ते रिश्ते

Kahani In Hindi : मोहिनी ने पर्स से रूमाल निकाला और चेहरा पोंछते हुए गोविंद सिंह के सामने कुरसी खींच कर बैठ गई. उस के चेहरे पर अजीब सी मुसकराहट थी.

‘‘चाय और ठंडा पिला कर तुम पिछले 1 महीने से मुझे बेवकूफ बना रहे हो,’’ मोहिनी झुंझलाते हुए बोली, ‘‘पहले यह बताओ कि आज चेक तैयार है या नहीं?’’

वह सरकारी लेखा विभाग में पहले भी कई चक्कर लगा चुकी थी. उसे इस बात की कोफ्त थी कि गोविंद सिंह को हिस्सा दिए जाने के बावजूद काम देरी से हो रहा था. उस के धन, समय और ऊर्जा की बरबादी हो रही थी. इस के अलावा गोविंद सिंह अश्लील एवं द्विअर्थी संवाद बोलने से बाज नहीं आता था.

गोविंद सिंह मौके की नजाकत को भांप कर बोला, ‘‘तुम्हें तंग कर के मुझे आनंद नहीं मिल रहा है. मैं खुद चाहता हूं कि साहब के दस्तखत हो जाएं किंतु विभाग ने जो एतराज तुम्हारे बिल पर लगाए थे उन्हें तुम्हारे बौस ने ठीक से रिमूव नहीं किया.’’

‘‘हमारे सर ने तो रिमूव कर दिया था,’’ मोहिनी बोली, ‘‘पर आप के यहां से उलटी खोपड़ी वाले क्लर्क फिर से नए आब्जेक्शन लगा कर वापस भेज देते हैं. 25 कूलरों की खरीद का बिल मैं ने ठीक कर के दिया था. अब उस पर एक और नया एतराज लग गया है.’’

‘‘क्या करें, मैडम. सरकारी काम है. आप ने तो एक ही दुकान से 25 कूलरों की खरीद दिखा दी है. मैं ने पहले भी आप को सलाह दी थी कि 5 दुकानों से अलगअलग बिल ले कर आओ.’’

‘‘फिर तो 4 दुकानों से फर्जी बिल बनवाने पड़ेंगे.’’

‘‘4 नहीं, 5 बिल फर्जी कहो. कूलर तो आप लोगों ने एक भी नहीं खरीदा,’’ गोविंद सिंह कुछ शरारत के साथ बोला.

‘‘ये बिल जिस ने भेजा है उस को बोलो. तुम्हारा बौस अपनेआप प्रबंध करेगा.’’

‘‘नहीं, वह नाराज हो जाएगा. उस ने इस काम पर मेरी ड्यूटी लगाई है.’’

‘‘तब, अपने पति को बोलो.’’

‘‘मैं इस तरह के काम में उन को शामिल नहीं करना चाहती.’’

‘‘क्यों? क्या उन के दफ्तर में सारे ही साधुसंत हैं. ऐसे काम होते नहीं क्या? आजकल तो सारे देश में मंत्री से

ले कर संतरी तक जुगाड़ और सैटिंग में लगे हैं.’’

मोहिनी ने जवाब में कुछ भी नहीं कहा. थोड़ी देर वहां पर मौन छाया रहा. आखिर मोहिनी ने चुप्पी तोड़ी. बोली, ‘‘तुम हमारे 5 प्रतिशत के भागीदार हो. यह बिल तुम ही क्यों नहीं बनवा देते?’’

‘‘बड़ी चालाक हो, मैडम. नया काम करवाओगी. खैर, मैं बनवा दूंगा. पर बदले में मुझे क्या मिलेगा?’’

‘‘200-400 रुपए, जो तुम्हारी गांठ से खर्च हों, मुझ से ले लेना.’’

‘‘अरे, इतनी आसानी से पीछा नहीं छूटेगा. पूरा दिन हमारे साथ पिकनिक मनाओ. किसी होटल में ठहरेंगे. मौज करेंगे,’’ गोविंद सिंह बेशर्मी से कुटिल हंसी हंसते हुए मोहिनी को तौल रहा था.

‘‘मैं जा रही हूं,’’ कहते हुए मोहिनी कुरसी से उठ खड़ी हुई. उसे मालूम था कि इन सरकारी दलालों को कितनी लिफ्ट देनी चाहिए.

गोविंद सिंह समझौतावादी एवं धीरज रखने वाला व्यक्ति था. वह जिस से जो मिले, वही ले कर अपना काम निकाल लेता था. उस के दफ्तर में मोहिनी जैसे कई लोग आते थे. उन में से अधिकांश लोगों के काम फर्जी बिलों के ही होते थे.

सरकारी विभागों में खरीदारी के लिए हर साल करोड़ों रुपए मंजूर किए जाते हैं. इन को किस तरह ठिकाने लगाना है, यह सरकारी विभाग के अफसर बखूबी जानते हैं. इन करोड़ों रुपयों से गोविंद सिंह और मोहिनी जैसों की सहायता से अफसर अपनी तिजोरियां भरते हैं और किसी को हवा भी नहीं लगती.

25 कूलरों की खरीद का फर्जी बिल जुटाया गया और लेखा विभाग को भेज दिया गया. इसी तरह विभाग के लिए फर्नीचर, किताबें, गुलदस्ते, क्राकरी आदि के लिए भी खरीद की मंजूरी आई थी. अत: अलगअलग विभागों के इंचार्ज जमा हो कर बौस के साथ बैठक में मौजूद थे.

बौस उन्हें हिदायत दे रहे थे कि पेपर वर्क पूरा होना चाहिए, ताकि कभी अचानक ऊपर से अधिकारी आ कर जांच करें तो उन्हें फ्लौप किया जा सके. और यह तभी संभव है जब आपस में एकता होगी.

सारा पेपर वर्क ठीक ढंग से पूरा कराने के बाद बौस ने मोहिनी की ड्यूटी गोविंद सिंह से चेक ले कर आने के लिए लगाई थी. बौस को मोहिनी पर पूरा भरोसा था. वह पिछले कई सालों से लेखा विभाग से चेक बनवा कर ला रही थी.

गोविंद सिंह को मोहिनी से अपना तयशुदा शेयर वसूल करना था, इसलिए उस ने प्रयास कर के उस के पेपर वर्क में पूरी मदद की. सारे आब्जेक्शन दूर कर के चेक बनवा दिया. चेक पर दस्तखत करा कर गोविंद सिंह ने उसे अपने पास सुरक्षित रख लिया और मोहिनी के आने की प्रतीक्षा करने लगा.

दोपहर 2 बजे मोहिनी ने उस के केबिन में प्रवेश किया. वह मोहिनी को देख कर हमेशा की तरह चहका, ‘‘आओ मेरी मैना, आओ,’’ पर उस ने इस बार चाय के लिए नहीं पूछा.

मोहिनी को पता था कि चेक बन गया है. अत: वह खुश थी. बैठते हुए बोली, ‘‘आज चाय नहीं मंगाओगे?’’

गोविंद सिंह आज कुछ उदास था. बोला, ‘‘मेरा चाय पीने का मन नहीं है. कहो तो तुम्हारे लिए मंगा दूं.’’

‘‘अपनी उदासी का कारण मुझे बताओगे तो मन कुछ हलका हो जाएगा.’’

‘‘सुना है, वह बीमार है और जयप्रकाश अस्पताल में भरती है.’’

‘‘वह कौन…अच्छा, समझी, तुम अपनी पत्नी कमलेश की बात कर रहे हो?’’

गोविंद सिंह मौन रहा और खयालों में खो गया. उस की पत्नी कमलेश उस से 3 साल पहले झगड़ा कर के घर से चली गई थी. बाद में भी वह खुद न तो गोविंद सिंह के पास आई और न ही वह उसे लेने गया था. उन दोनों के कोई बच्चा भी नहीं था.

दोनों के बीच झगड़े का कारण खुद गोविंद सिंह था. वह घर पर शराब पी कर लौटता था. कमलेश को यह सब पसंद नहीं था. दोनों में पहले वादविवाद हुआ और बाद में झगड़ा होने लगा. गोविंद सिंह ने उस पर एक बार नशे में हाथ क्या उठाया, फिर तो रोज का ही सिलसिला चल पड़ा.

एक दिन वह घर लौटा तो पत्नी घर पर न मिली. उस का पत्र मिला था, ‘हमेशा के लिए घर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘चलो, बड़ा अच्छा हुआ जो अपनेआप चली गई,’ गोविंद सिंह ने सोचा कि बर्फ की सिल्ली की तरह ठंडी औरत के साथ गुजारा करना उसे भी कठिन लग रहा था. अब रोज रात में शराब पी कर आने पर उसे टोकने वाला कोई न था. जब कभी किसी महिला मित्र को साथ ले कर गोविंद सिंह घर लौटता तो सूना पड़ा उस का घर रात भर के लिए गुलजार हो जाता.

‘‘कहां खो गए गोविंद,’’ मोहिनी ने टोका तो गोविंद सिंह की तंद्रा भंग हुई.

‘‘कहीं भी नहीं,’’ गोविंद सिंह ने अचकचा कर उत्तर दिया. फिर अपनी दराज से मोहिनी का चेक निकाला और उसे थमा दिया.

चेक लेते हुए मोहिनी बोली, ‘‘मेरा एक कहना मानो तो तुम से कुछ कहूं. क्या पता मेरी बात को ठोकर मार दो. तुम जिद्दी आदमी जो ठहरे.’’

‘‘वादा करता हूं. आज तुम जो भी कहोगी मान लूंगा,’’ गोविंद सिंह बोला.

‘‘तुम कमलेश से अस्पताल में मिलने जरूर जाना. यदि उसे तुम्हारी मदद की जरूरत हो तो एक अच्छे इनसान की तरह पेश आना.’’

‘‘उसे मेरी मदद की जरूरत नहीं है,’’ मायूस गोविंद सिंह बोला, ‘‘यदि ऐसा होता तो वह मुझ से मिलने कभी न कभी जरूर आती. वह एक बार गुस्से में जो गई तो आज तक लौटी नहीं. न ही कभी फोन किया.’’

‘‘तुम अपनी शर्तों पर प्रेम करना चाहते हो. प्रेम में शर्त और जिद नहीं चलती. प्रेम चाहता है समर्पण और त्याग.’’

‘‘तुम शायद ऐसा ही कर रही हो?’’

‘‘मैं समर्पण का दावा नहीं कर सकती पर समझौता करना जरूर सीख लिया है. आजकल प्रेम में पैसे की मिलावट हो गई है. पर तुम्हारी पत्नी को तुम्हारे वेतन से संतोष था. रिश्वत के चंद टकों के बदले में वह तुम्हारी शराब पीने की आदत और रात को घर देर से आने को बरदाश्त नहीं कर सकती थी.’’

‘‘मैं ने तुम से वादा कर लिया है इसलिए उसे देखने अस्पताल जरूर जाऊंगा. लेकिन समझौता कर पाऊंगा या नहीं…अभी कहना मुश्किल है,’’ गोविंद सिंह ने एक लंबी सांस ले कर उत्तर दिया.

मोहिनी को गोविंद सिंह की हालत पर तरस आ रहा था. वह उसे उस के हाल पर छोड़ कर दफ्तर से बाहर आ गई और सोचने लगी, इस दुनिया में कौन क्या चाहता है? कोई धनदौलत का दीवाना है तो कोई प्यार का भूखा है, पर क्या हर एक को उस की मनचाही चीज मिल जाती है? गोविंद सिंह की पत्नी चाहती है कि ड््यूटी पूरी करने के बाद पति शाम को घर लौटे और प्रतीक्षा करती हुई पत्नी की मिलन की आस पूरी हो.

गोविंद सिंह की सोच अलग है. वह ढेरों रुपए जमा करना चाहता है ताकि उन के सहारे सुख खरीद सके. पर रुपया है कि जमा नहीं होता. इधर आता है तो उधर फुर्र हो जाता है.

मोहिनी बाहर आई तो श्याम सिंह चपरासी ने आवाज लगाई, ‘‘मैडमजी, आप के चेक पर साहब से दस्तखत तो मैं ने ही कराए थे. आप का काम था इसलिए जल्दी करा दिया. वरना यह चेक अगले महीने मिलता.’’

मोहिनी ने अपने पर्स से 100 रुपए का नोट निकाला. फिर मुसकराते हुए पूछ लिया, ‘‘श्याम सिंह, एक बात सचसच बताओगे, तुम रोज इनाम से कितना कमा लेते हो?’’

‘‘यही कोई 400-500 रुपए,’’ श्याम सिंह बहुत ही हैरानी के साथ बोला.

‘‘तब तो तुम ने बैंक में बहुत सा धन जमा कर लिया होगा. कोई दुकान क्यों नहीं खोल लेते?’’

‘‘मैडमजी,’’ घिघियाते हुए श्याम सिंह बोला, ‘‘रुपए कहां बचते हैं. कुछ रुपया गांव में मांबाप और भाई को भेज देता हूं. बाकी ऐसे ही खानेपीने, नाते- रिश्तेदारों पर खर्च हो जाता है. अभी पिछले महीने साले को बेकरी की दुकान खुलवा कर दी है.’’

‘‘फिर वेतन तो बैंक में जरूर जमा कर लेते होंगे.’’

‘‘अरे, कहां जमा होता है. अपनी झोंपड़ी को तोड़ कर 4 कमरे पक्के बनाए थे. इसलिए 1 लाख रुपए सरकार से कर्ज लिया था. वेतन उसी में कट जाता है.’’

श्याम सिंह की बातें सुन कर मोहिनी के सिर में दर्द हो गया. वह सड़क पर आई और आटोरिकशा पकड़ कर अपने दफ्तर पहुंच गई. बौस को चेक पकड़ाया और अपने केबिन में आ कर थकान उतारने लगी.

मोहिनी की जीवन शैली में भी कोई आनंद नहीं था. वह अकसर देर से घर पहुंचती थी. जल्दी पहुंचे भी तो किस के लिए. पति देर से घर लौटते थे. बेटा पढ़ाई के लिए मुंबई जा चुका था. सूना घर काटने को दौड़ता था. बंगले के गेट से लान को पार करते हुए वह थके कदमों से घर के दरवाजे तक पहुंचती. ताला खोलती और सूने घर की दीवारों को देखते हुए उसे अकेलेपन का डर पैदा हो जाता.

पति को वह उलाहना देती कि जल्दी घर क्यों नहीं लौटते हो? पर जवाब वही रटारटाया होता, ‘मोहिनी… घर जल्दी आने का मतलब है अपनी आमदनी से हाथ धोना.’

ऊपरी आमदनी का महत्त्व मोहिनी को पता है. यद्यपि उसे यह सब अच्छा नहीं लगता था. पर इस तरह की जिंदगी जीना उस की मजबूरी बन गई थी. उस की, पति की, गोविंद सिंह की, श्याम सिंह की, बौस की और जाने कितने लोगों की मजबूरी. शायद पूरे समाज की मजबूरी.

भ्रष्टाचार में कोई भी जानबूझ कर लिप्त नहीं होना चाहता. भ्रष्टाचारी की हर कोई आलोचना करता है. दूसरे भ्रष्टचारी को मारना चाहता है. पर अपना भ्रष्टाचार सभी को मजबूरी लगता है. इस देश में न जाने कितने मजबूर पल रहे हैं. आखिर ये मजबूर कब अपने खोल से बाहर निकल कर आएंगे और अपनी भीतरी शक्ति को पहचानेंगे.

मोहिनी का दफ्तर में मन नहीं लग रहा था. वह छुट्टी ले कर ढाई घंटे पहले ही घर पहुंच गई. चाय बना कर पी और बिस्तर पर लेट गई. उसे पति की याद सताने लगी. पर दिनेश को दफ्तर से छुट्टी कर के बुलाना आसान काम नहीं था, क्योंकि बिना वजह छुट्टी लेना दिनेश को पसंद नहीं था. कई बार मोहिनी ने आग्रह किया था कि दफ्तर से छुट्टी कर लिया करो, पर दिनेश मना कर देता था.

सच पूछा जाए तो इस हालात के लिए मोहिनी भी कम जिम्मेदार न थी. वह स्वयं ही नीरस हो गई थी. इसी कारण दिनेश भी पहले जैसा हंसमुख न रह गया था. आज पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि जीवन का सच्चा सुख तो उस ने खो दिया. जिम्मेदारियों के नाम पर गृहस्थी का बोझ उस ने जरूर ओढ़ लिया था, पर वह दिखावे की चीज थी.

इस तरह की सोच मन में आते ही मोहिनी को लगा कि उस के शरीर से चिपकी पत्थरों की परत अब मोम में बदल गई है. उस का शरीर मोम की तरह चिकना और नरम हो गया था. बिस्तर पर जैसे मोम की गुडि़या लेटी हो.

उसे लगा कि उस के भीतर का मोम पिघल रहा है. वह अपनेआप को हलका महसूस करने लगी. उस ने ओढ़ी हुई चादर फेंक दी और एक मादक अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर से अलग खड़ी हुई. तभी उसे शरारत सूझी. दूसरे कमरे में जा कर दिनेश को फोन मिलाया और घबराई आवाज में बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

अचानक मोहिनी का फोन आने से दिनेश घबरा सा गया. उस ने पूछा, ‘‘खैरियत तो है. कैसे फोन किया?’’

‘‘बहुत घबराहट हो रही है. डाक्टर के पास नहीं गई तो मर जाऊंगी. तुम जल्दी आओ,’’ इतना कहने के साथ ही मोहिनी ने फोन काट दिया.

अब मोहिनी के चेहरे पर मुसकराहट थी. बड़ा मजा आएगा. दिनेश को दफ्तर छोड़ कर तुरंत घर आना होगा. मोहिनी की शरारत और शोखी फिर से जाग उठी थी. वह गाने लगी, ‘तेरी दो टकिया दी नौकरी में, मेरा लाखों का सावन जाए…’

गीजर में पानी गरम हो चुका था. वह बाथरूम में गई. बड़े आराम से अपना एकएक कपड़ा उतार कर दूर फेंक दिया और गरम पानी के फौआरे में जा कर खड़ी हो गई.

गरम पानी की बौछारों में मोहिनी बड़ी देर तक नहाती रही. समय का पता ही नहीं चला कि कितनी देर से काल बेल बज रही थी. शायद दिनेश आ गया होगा. मोहिनी अभी सोच ही रही थी कि पुन: जोरदार, लंबी सी बेल गूंजने लगी.

बाथरूम से निकल कर मोहिनी वैसी ही गीला शरीर लिए दरवाजे की ओर दौड़ पड़ी. आई ग्लास से झांक कर देखा तो दिनेश परेशान चेहरा लिए खड़ा था.

मोहिनी ने दरवाजा खोला. दिनेश ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया, उसे देख कर उस की आंखें खुली की खुली रह गईं, किसी राजा के रंगमहल में फौआरे के मध्य खड़ी नग्न प्रतिमा की तरह एकदम जड़ हो कर मोहिनी खड़ी थी. दिनेश भी एकदम जड़ हो गया. उसे अपनी आंखों पर भरोसा न हुआ. उसे लगा कि वह कोई सपना देख रहा है, किसी दूसरे लोक में पहुंच गया है.

2 मिनट के बाद जब उस ने खुद को संभाला तो उस के मुंह से निकला, ‘‘तुम…आखिर क्या कर रही हो?’’

मोहिनी तेजी से आगे बढ़ी और दिनेश को अपनी बांहों में भर लिया. दिनेश के सूखे कपड़ों और उस की आत्मा को अपनी जुल्फों के पानी से भिगोते हुए वह बोल पड़ी, ‘‘बताऊं, क्या कर रही हूं… भ्रष्टाचार?’’और इसी के साथ दोनों ही खिलखिला कर हंस पड़े. Kahani In Hindi 

Social Story : परिणाम – पाखंड या वैज्ञानिक किसकी हुई जीत?

Social Story : “हमारे बेटे का नाम क्या सोचा है तुम ने?” रात में परिधि ने पति रोहन की बांहों पर अपना सिर रखते हुए पूछा.

“हमारे प्यार की निशानी का नाम होगा अंश, जो मेरा भी अंश होगा और तुम्हारा भी,” मुसकराते हुए रोहन ने जवाब दिया.

“बेटी हुई तो?”

“बेटी हुई तो उसे सपना कह कर पुकारेंगे. वह हमारा सपना जो पूरा करेगी.”

“सच बहुत सुंदर नाम हैं दोनों. तुम बहुत अच्छे पापा बनोगे,” हंसते हुए परिधि ने कहा तो रोहन ने उस के माथे को चूम लिया.

लौकडाउन का दूसरा महीना शुरू हुआ था जबकि परिधि की प्रैगनैंसी का 8वां महीना पूरा हो चुका था और अब कभी भी उसे डिलीवरी के लिए अस्पताल जाना पड़ सकता था.

परिधि का पति रोहन इंजीनियर था जो परिधि को ले कर काफी सपोर्टिव और खुले दिमाग का इंसान था जबकि उस की सास उर्मिला देवी का स्वभाव कुछ अलग ही था. वे धर्मकर्म पर जरूरत से ज्यादा विश्वास रखती थीं.

प्रैगनैंसी के बाद से ही परिधि को कुछ तकलीफें बनी रहती थीं. ऐसे में उर्मिला देवी ने कई दफा परिधि के आने वाले बच्चे के नाम पर धार्मिक अनुष्ठान भी करवाए. मगर फिलहाल लौकडाउन की वजह से सब बंद था.

उस दिन सुबह से ही परिधि के पेट में दर्द हो रहा था. रात तक उस का दर्द काफी बढ़ गया. उसे अस्पताल ले जाया गया. महिला डाक्टर ने अच्छी तरह परीक्षण कर के बताया,” रोहनजी, परिधि के गर्भाशय में बच्चे की गलत स्थिति की वजह से उन्हें बीचबीच में दर्द हो रहा है. ऐसे में इन्हें ऐडमिट कर के कुछ दिनों तक निगरानी में रखना बेहतर होगा.”

“जी जैसा आप उचित समझें,” कह कर रोहन ने परिधि को ऐडमिट करा दिया.

इधर उर्मिला देवी ने डाक्टर की बात सुनी तो तुरंत पंडित को बुलावा भेजा.

“पंडितजी, बहू को दर्द हो रहा है. उसे स्वस्थ बच्चा हो जाए और सब ठीक रहे इस के लिए कुछ उपाय बताइए?”

अपनी भौंहों पर बल डालते हुए पंडितजी ने कुछ देर सोचा फिर बोले,” ठीक है एक अनुष्ठान कराना होगा. सब अच्छा हो जाएगा. इस अनुष्ठान में करीब ₹10 हजार का खर्च आएगा.”

“जी आप रुपयों की चिंता न करें. बस सब चंगा कर दें. आप बताएं कि किन चीजों का इंतजाम करना है?”

पंडितजी ने एक लंबी सूची तैयार की जिस में लाल और पीला कपड़ा, लाल धागे, चावल, घी, लौंग, कपूर, लाल फूल, रोली, चंदन, साबुत गेहूं, सिंदूर, केसर, नारियल, दूर्वा, कुमकुम, पीपल और तुलसी के पत्ते, पान, सुपारी आदि शामिल थे.

उर्मिला देवी ने मोहल्ले के परिचित परचून की दुकान से वे चीजें खरीद लीं. कुछ चीजें घर में भी मौजूद थीं.

सारे सामानों के साथ उर्मिला देवी पंडित को ले कर अस्पताल पहुंंचीं तो अस्पताल की नर्सें और कर्मचारी हैरान रह गए. उन्हें रिसैप्शन पर ही रोक दिया गया मगर उर्मिला देवी बड़ी चालाकी से पंडित को विजिटर बना कर अंदर ले आईं. उर्मिला देवी ने पहले ही परिधि को प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर लिया था. कमरा बंद कर के अनुष्ठान की प्रक्रिया आरंभ की गई.

बाहर घूम रहीं नर्सों को इस बाबत पूरी जानकारी थी कि अंदर क्या चल रहा है मगर उन के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस पाखंड को कैसे रोकें. दरअसल, अस्पताल में ऐसी घटना कभी भी नहीं हुई थी. सभी सीनियर डाक्टर के आने का इंतजार कर रहे थे. तब तक करीब 1 घंटे की के अंदर सारी प्रक्रियाएं पूरी कर उर्मिला देवी ने पंडित को विदा कर दिया.

नर्सें अंदर घुसीं तो देखा की परिधि के हाथ में लाल धागा बंधा हुआ है. माथे पर दूर तक सिंदूर लगा है. जमीन पर हलदी से बनाई गई एक आकृति के ऊपर चावल, लौंग, कुमकुम जैसी बहुत सी चीजें रखी हुई हैं. पास में नारियल के ऊपर एक पीला कपड़ा भी पड़ा हुआ है. और भी बहुत सी चीजें नजर आ रही थीं.

“स्टूपिड पीपुल्स…” कहते हुए एक नर्स ने बुरा सा मुंह बनाया और बाहर चली गई.

उर्मिला देवी चिढ़ गईं. नर्स को सुनाने की गरज से जोरजोर से चिल्ला कर कहने लगीं,” पूजा हम ने कराई है इस कलमुंही को क्या परेशानी है?”

इस बात को 4-5 दिन बीत गए. इस बीच परिधि को जुकाम और खांसी की समस्या हो गई. हलका बुखार भी हो गया था. अस्पताल वालों ने तुरंत उस का कोविड टेस्ट कराया.

उसी दिन रात में परिधि को दर्द उठा. आननफानन में सारे इंतजाम किए गए. सुबह की पहली किरण के साथ उस की गोद में एक नन्हा बच्चा खिलखिला उठा. घर वालों को खबर की गई. वे दौड़े आए.

तबतक कोविड-19 रिपोर्ट भी आ गई थी. परिधि कोरोना पोजिटिव थी. परिधि के पति और सास को जब यह खबर दी गई तो सास ने चिल्ला कर कहा,” ऐसा कैसे हो सकता है? हमारी बहू तो बिलकुल स्वस्थ हालत में अस्पताल आई थी. तुम लोगों ने जरूर सावधानी नहीं रखी होगी तभी ऐसा हुआ.”

“यह क्या कह रही हो अम्मांजी? हम ने ऐसा क्या कर दिया? हमारे अस्पताल में मरीजों की सुरक्षा का पूरा खयाल रखा जाता है. यहां पूरी सफाई से सारे काम होते हैं.”

नर्स ने कहा तो सास उसी पर चिल्ला उठीं,” हांहां… गलत तो हम ही कह रहे हैं. वह देखो मरीज बिना मास्क के जा रहा है.”

“अम्मांजी उस की कल ही रिपोर्ट आई है. उसे कोरोना नहीं है और एक बात बता दूं, इस अस्पताल में कई इमारते हैं. इस इमारत में केवल गाइनिक केसेज आते हैं. बगल वाली इमारत कोविड मरीजों के लिए है. वहां के किसी स्टाफ को भी इधर आने की परमिशन नहीं. वैसे भी हम मास्क, ग्लव्स और सैनिटाइजेशन का पूरा खयाल रखते हैं. हमें उलटी बातें न सुनाओ.”

“कैसे न सुनाऊं? मेरी बहू को इसी अस्पताल में कोरोना हुआ है. साफ है कि यहां का मैनेजमैंट सही नहीं. यहां आया हुआ स्वस्थ इंसान भी कोरोना मरीज बन जाता है.”

“आप तो हम पर इल्जाम लगाना भी मत. पता नहीं क्याक्या अंधविश्वास और पाखंड के चोंचले करती फिरती हो. अपनी बहू को देखिए. उस की तबीयत बिगड़ जाएगी. उस का फीवर अब ठीक है. आप अपने साथ ले जाइए. न्यू बोर्न बेबी को इस अस्पताल में छोड़ना उचित नहीं. इस वक्त छोटे बच्चे की कैसे केयर करनी है वह हम समझा देंगे.”

“नहीं इसे हम घर कैसे ले जा सकते हैं? इसे कोविड है. घर में किसी को हो जाएगा. इतनी तो समझ होनी चाहिए न आप को.”

“मां हम परिधि को घर में क्वैरंटाइन कर देंगे. बच्चे को कोविड से कैसे बचाना है वह नर्स बता ही देंगी.”

“नहीं हम बहू और बच्चे को घर नहीं ले जा सकते. खबरदार रोहन जो तू इन के चक्कर में आया. ये नर्स और डाक्टर ऐसे ही बोलते हैं. पर मैं कोई खतरा मोल नहीं ले सकती.”

“पर मां…”

तुझे कसम है चल यहां से..”

उर्मिला देवी रोहन का हाथ पकड़ कर उसे घसीटती हुई घर ले गईं. परिधि का चेहरा बन गया. डाक्टर और नर्स आपस में उर्मिला देवी के व्यवहार और हरकतों की बुराई करने लगे. उन लोगों ने मैनेजमैंट को भी उर्मिला देवी के गलत व्यवहार की खबर कर दी. 1-2 लोकल अखबारों में भी इस घटना का उल्लेख किया गया.

इस बात को करीब 4-5 दिन बीत चुके थे. एक दिन उर्मिला देवी ने पंडितजी को फोन लगाया. वह पूछना चाहती थीं कि आगे क्या करना उचित रहेगा और ग्रहनक्षत्रों के बुरे दोष कैसे दूर किए जाएं?

फोन पंडित के बेटे ने उठाया.

“बेटा जरा पंडितजी को फोन देना..” उर्मिला देवी ने कहा.

बेटे ने कहा,”पिताजी को कोरोना हो गया था. 1 सप्ताह पहले ही उन की मौत हो चुकी है.”

उर्मिला जी के हाथ से फोन छूट कर गिर पड़ा. खुद भी सोफे पर बैठ गईं. पंडितजी को कोरोना था, यह जान कर वह डर गई थीं. यानी जिस दिन पंडितजी धार्मिक अनुष्ठान कराने आए थे तब भी उन्हें कोरोना था. तभी तो परिधि को भी यह बीमारी हुई है.

परिधि के साथ उस दिन पंडितजी के साथ वह भी तो थीं यानी अब वह खुद भी कोरोना की चपेट में आ सकती हैं. उन्होंने गौर किया कि 2-3 दिनों से उन्हें भी खांसी हो रही थी.

उर्मिलाजी ने फटाफट अपना कोरोना टेस्ट करवाया. अब तक उन्हें बुखार भी आ चुका था. हजारीबाग में कोरोना का एक ही अस्पताल था इसलिए उन्हें उसी अस्पताल में जाना पड़ा. मगर वहां के मैनेजमैंट ने उर्मिला देवी को ऐडमिट करने से साफ इनकार कर दिया.

ऐंबुलैंस में पड़ीं उर्मिला देवी का दिमाग काम नहीं कर रहा था. वे जानती थीं कि इस के अलावा यहां कोई अस्पताल नहीं. अब या तो उन्हें 4 घंटे के सफर के बाद रांची ले जाया जाएगा और वहां बैड न मिला तो 12 घंटे का सफर कर के पटना जाने को तैयार रहना होगा. हताश रोहन अस्पताल से वापस निकल आया.

दोनों जानते थे कि उर्मिला देवी को अपनी करनी का फल ही मिल रहा था. उन की गलत सोच, अंधविश्वास और नकारात्मक रवैए का ही परिणाम था कि आज बहू और पोते के साथसाथ उन की अपनी जिंदगी भी दांव पर लग चुकी थी. Social Story 

Hindi Stories Love : फेसबुक – मीनाजी के मन में मोहित को लेकर क्या ख्याल आ रहे थे

Hindi Stories Love : जब से मीनाजी ने कंप्यूटर सीखा उन की दिनचर्या ही बदल गई है. अब तो सारा दिन वे कंप्यूटर के सामने ही बैठी रहती हैं. पहले सुबहशाम सैर पर जाती थीं. घंटा, आधा घंटा घर पर ही व्यायाम करती थीं. अब छत पर ही 15 मिनट टहल लेती हैं. व्यायाम तो मानो भूल ही गई हैं. 70 वर्षीया मीनाजी या तो ‘फेसबुक’ पर रहती हैं या ‘फूड गाइड’ पर. ‘चेन्नई फूड गाइड’ की तो वे मैंबर बन गई हैं. वे बहुत अच्छी कुक हैं और अब उन्होंने अपनी रैसिपीज इंटरनैट पर डालनी शुरू कर दी है. उन के हाथ में एक बहुत अच्छा मोबाइल आ गया, उस से अपनी बनाई सब रेसिपीज की वे फोटो खींचतीं और नैट पर डाल देतीं. आधे घंटे के अंदर ही 20-30 ‘लाइक’ पर टिक हो जाता और 2-4 कमैंट भी आ जाते. उन की ‘फ्रैंड रिक्वैस्ट’ की लिस्ट लंबी होती जा रही थी. उन के नैट फ्रैंड हजारों में हो गए.

मीनाजी की पोती नीता पढ़ने के लिए अमेरिका गई हुई थी. जब वह चेन्नई में थी तो दादीपोती की खूब जमती थी.

नीता जो बात मां को न बता पाती, वह बात बड़ी आसानी से दादी से शेयर करती थी. उस के अमेरिका जाने के बाद फोन पर ही बात होती थी.

बहू सीता कभीकभी स्काइप पर नीता को दिखा भी देती और बात भी करवा देती थी. इधर, 2 महीने में जब से वे ‘कंप्यूटर सेवी’ बनी हैं, नीता उन की फ्रैंड लिस्ट में शामिल हो चुकी है. अपनी फेसबुक पर अब वे दोनों हर बात शेयर करती हैं. किसी भी नई रेसिपी की फोटो को देखते ही नीता का कमैंट आता, ‘‘दादीमां, गे्रट, आप तो दुनिया की सब से बढि़या कुक और फोटोग्राफर बन गई हैं. जब मैं वापस आऊंगी तो मुझे सब खाना बना कर खिलाना होगा.’’

आज भी दोनों फेसबुक पर चैट कर रही थीं. नीता दादी की रेसीपी की तारीफ कर रही थी और मीनाजी खुश होहो कर रिप्लाई कर रही थीं.

‘‘जरूर, मैं तुझे सिखा भी दूंगी. शादी कर के घर बसाने की उम्र है, फिर खाना भी तो बनाना है.’’

‘‘मैं आप को अपने साथ ले चलूंगी. मुझे दहेज में आप चाहिए.’’

‘‘मुझे कितने दिन रखेगी अपने पास? मैं तो इंतजार में हूं कि कब इस दुनिया से कूच करूं.’’

‘‘बस, चुप. आप ऐसी बातें मत करिए. मैं अब कालेज जा रही हूं, वापस आ कर कल मिलती हूं,’’ और नीता की स्क्रीन कनवर्सेशन बंद हो गई.

मीनाजी नीता को याद कर के मुसकरा दीं. फिर उन की उंगलियां चलने लगीं और वे अपने नैट फ्रैंड्स के प्रोफाइल देखने में व्यस्त हो गईं. तभी उन की नजर एक फ्रैंड के प्रोफाइल पर रुक गई.

उस प्रोफाइल में नीता की भी फोटो थी. उत्सुकतावश वे उस प्रोफाइल को पढ़ने लगीं. उस में एक बहुत ही सुंदर लड़के का फोटो देखा. उस के बारे में पढ़ा भी. नाम था मोहित और क्वालिफिकेशन थी पीएचडी. भारतीय मूल का था वह और सिंगल था यानी कि अविवाहित. जाने क्यों वे कल्पना करने लगीं कि नीता और मोहित की शादी हो जाए तो बहुत सुंदर जोड़ी लगेगी. अब तो उन का मन योजना बनाने लगा कि किस तरह से दोनों को मिलाया जाए. उन्होंने अपनी उस नैट फ्रैंड से मोहित के बारे में पूरी जानकारी ले ली.

मोहित उत्तरभारतीय था और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था. पिछले 8 साल से अमेरिका में ही था. उस के मातापिता दिल्ली में रहते थे. दोनों परिवारों का स्तर मिलताजुलता था. उन्होंने सोचा कि वे बहू सीता को मना लेंगी.

अगले दिन मीनाजी नीता से औनलाइन मिलीं तो सीधेसीधे उस से पूछ बैठीं, ‘‘कोई बौयफ्रैंड है क्या?’’

‘‘दादी, आज बड़े अच्छे मूड में लग रही हो. क्या सवाल पूछा है.’’

‘‘हां, कल से ही अच्छे मूड में हूं. जब से मोहित की फोटो देखी है तब से मन रंगीन सपने देख रहा है.’’

‘‘अच्छा दादी, दोबारा शादी करने का इरादा है क्या?’’

‘‘रुक शैतान, मैं तेरी शादी के सपने देख रही हूं.’’

‘‘मैचमेकिंग की आप की पुरानी आदत है. पर मेरे को माफ करो, मैं शादी करने के मूड में नहीं हूं, समझीं क्या?’’

‘‘एक बार मोहित की फोटो तो देख ले.’’

‘‘देखी है. कल्पना मेरी भी तो फ्रैंड है. उसी के फेसबुक पर तो आप ने मोहित की फोटो देखी है.’’

‘‘तुझे कैसा लगा?’’

‘‘अच्छा है. पर मुझे क्या लेनादेना. अच्छा, यह बताओ, आज क्या पकाया? आज नैट पर कोई भी फोटो नहीं डाली.’’

‘‘नहीं, आज कुछ भी नहीं पकाया. आज मेरे 2 फेसबुक फ्रैंड घर आए थे और मुझे ‘इडली विला’ ले गए थे. वहां 30 तरह की इडलियां और 20 तरह के परांठे मिलते हैं. मुझे खूब मजा आया. कल हौर्लिक्स परांठा मैं भी बना कर देखूंगी.’’

‘‘हौर्लिक्स परांठा? वह कैसा होता है? मैं ने तो पहली बार नाम सुना है. चेन्नई बड़ा चिकप्लेस होता जा रहा है.’’

‘‘कल मेरी फेसबुक पर हौर्लिक्स परांठा की रैसिपी भी पढ़ लेना और फोटो भी देख लेना.’’

‘‘गुड नाइट, दादीमां, मैं सोने चली.’’

और नीता स्क्रीन से गायब हो गई. मीनाजी के कल्पना के घोड़े फिर से दौड़ने लगे.

उन्होंने मोहित को ही फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी और उस के उत्तर का इंतजार करने लगी. 2 दिन में ही उन की रिक्वैस्ट मोहित ने मान ली और वे मोहित की नैट फ्रैंड बन गईं. अब वे जबतब उस से भी चैट करने लगीं. धीरेधीरे उन्हें पता चला कि मोहित को भी खाना बनाने और खाने का शौक है. वह भी उन की तरह ‘फूडी’ है. अब तो रोज नईनई रेसिपीज की बातें होतीं और मीनाजी उस की गाइड बन गईं. बातोंबातों में पता चला कि मोहित की मां भी केरल प्रदेश से हैं.

मोहित के पिता नेवी में थे. जब वे कोचीन में पोस्टेड थे तब उन की मुलाकात लता से हुई और दोनों की दोस्ती हो गई, फिर दोनों की शादी हो गई. मोहित को केरल के व्यंजन भी बहुत पसंद थे. उपमा, नारियल की चटनी और पुट उसे बहुत अच्छे लगते थे.

कुछ समय के बाद मीनाजी ने मोहित और नीता की मुलाकात भी नैट पर करवा दी. दोनों की एकदम से मित्रता हो

गई. दोनों की रुचियां भी आपस में मिलतीजुलती थीं. दोनों की मित्रता करवा कर वे बीच से हट गईं. जबतब नीता से पूछतीं, ‘‘कहां तक बात पहुंची?’’

‘‘आप सपने देखने छोड़ दो. हम बस अच्छे दोस्त हैं.’’

कभी वे मोहित से पूछतीं, ‘‘आज क्या पकाया? कुछ नया बताऊं क्या?’’

‘‘आज रवा-इडली बनाई, मेरे दोस्तों को अच्छी लगती है. वे इसे ‘सफेद केक’ कहते हैं.’’

‘‘उन्हें एक बार रवा-उपमा बना कर खिलाओ. मैं रेसिपी बता दूंगी.’’

‘‘अगले रविवार को बनाऊंगा और फिर रिपोर्ट दूंगा. तब तक के लिए बाय.’’

समय यों ही गुजरता गया. एक दिन मीनाजी ने मोहित की फेसबुक पर नीता और मोहित की साथसाथ एक फोटो देखी. उस फोटो को देखते ही मीनाजी खुश हो गईं. अब उन्होंने फेसबुक पर दोनों के लिए संदेश छोड़ दिया, ‘मुझे पूरी रिपोर्ट दो.’

मोहित ने संदेश लिखा, ‘‘स्मार्ट दादी की पोती अच्छी लगी.’’

नीता ने लिखा, ‘‘मैचमेकर दादीमां की पसंद अच्छी लगी.’’

मीनाजी की तो जैसे लौटरी निकल आई. अब मुख्य काम था अपनी बहू सीता को मनाना, उसे जाति से बाहर शादी करना पसंद नहीं था.

उन्होंने नीता की ही ड्यूटी लगाई कि वह ही मां को बताए और मनाए. नीता ने जब मां को बताया कि मोहित की मां केरल से हैं तो वे जल्दी ही मान गईं. उन्होंने अपनी सासूमां से कहा, ‘‘मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी.’’ मोहित के मातापिता भी नीता के बारे में जान कर खुश हो गए. उन्हें नीता की फोटो पसंद आई. उन्हें मद्रासन बहू आने से कोई आपत्ति नहीं थी.

सीता से अब जब लोग पूछते कि नीता के लिए लड़का कैसे ढूंढ़ा तो वह बोलती, ‘‘अपनी सासूमां को कंप्यूटर सिखा कर मैं ने अपना ही भला कर लिया. दामाद ढूंढ़ने की कठिनाई से बच गई. वे कंप्यूटर पर इतना व्यस्त रहती हैं कि मेरी ओर उन का ध्यान ही नहीं जाता. इतने अधिक लोग उन की फेसबुक पर हैं कि वे बहू का फेस भी भूल गई हैं. मेरा तो बस अब यही नारा है, फेसबुक जिंदाबाद…’’ Hindi Stories Love 

Second Marriage : बड़ी उम्र में दूसरी शादी का फैसला लेने से पहले क्या सावधानी बरतें ?

Second Marriage : उम्र कोई भी हो साथी की जरूरत हर किसी को होती है, फिर चाहे वह बचपन हो, जवानी हो या बुढ़ापा हो, हर उम्र में हर किसी के दिल में एक चाह जरूर होती है बस इस सनम चाहिए आशिकी के लिए. अर्थात हमारी जिंदगी में भी कोई ऐसा हो जिससे हम अपना सुख-दुख बांट सके, दिल की बात कह सके जो हर किसी से नहीं कह सकते. कोई ऐसा हो, जो न सिर्फ हमारे साथ जीवन गुजारे बल्कि हमदर्द हो, परवाह करने वाला हो, बल्कि तारीफ करके आत्मविश्वास बढ़ाने वाला भी हो, उम्र कोई भी हो जब कोई आपकी तारीफ करता है तो मनोबल बढ़ने में आसानी हो जाती है, वरना तो मन में एक ही भावना रहती है जो गाने की पंक्तियों से बयान की गई है मेरा जीवन कोरा कागज कोरा ही रह गया, जो लिखा था आंसुओं के संग बह गया, अर्थात जब आपके जीवन में कोई अपना या प्यार करने वाला नहीं होता, सिर्फ निराशा ही निराशा होती है तो जीवन नीरस हो जाता है, जब आपके जीवन में यह सब कुछ सही समय पर या सही उम्र में होता है तो नॉर्मल लगता है , लेकिन अगर यही ख्वाहिश बुढ़ापे में या बड़ी उम्र में पैदा होती है तो वह कई बार आपके चरित्र पर उंगली उठा देती है, आप को लोग छिछोरा और ठरकी अपोजिट सेक्स के लिए क्रेज़ी समझने लगते है, ये बिना सोचे कि एक वक्त के बाद ऐसे बेसहारा लोगों को सेक्स की भूख से ज्यादा साथ की ज़रूरत होती है, जो उनका अकेलापन दूर कर सके. जैसे कि अगर एक विधवा 40 से 45 की उम्र में अगर किसी के प्यार में पड़ जाती है और दूसरी शादी करने के बारे में सोचती है तो उसके ही घर के ही लोग खासतौर पर उसके बच्चे अपनी ही मां को भला बुरा कहते हुए अपनी नाराजगी जाहिर करके उसके फैसले के खिलाफ होते हैं.

इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि इसी मां ने अपनी सारी खुशियां त्याग करके पति के मरने के बाद इन बच्चों को पाल पोस कर बड़ा किया, उन्हें अपनी मां से ज्यादा समाज की चिंता होती है, जो मौका पाते ही भला बुरा कह कर बेज्जती करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. कई बच्चे तो ऐसे भी होते हैं जो मां को अकेला इंडिया में छोड़कर खुद अपने परिवार के साथ विदेश में सेटल हो जाते हैं, और अकेली मां के साथ वीडियो कॉल पर या फोन कॉल पर संपर्क में रहते हैं, यह बच्चे साल में एक बार या दो-तीन साल में एक बार अपनी सहूलियत के हिसाब से अपनी मां से मिलने आते हैं. लेकिन अगर यही मां अपना अकेलापन दूर करने के लिए दूसरी शादी की बात करती है तो बच्चे जरा भी सहयोग नहीं देते, क्योंकि उन्हें डर होता है कि अगर कोई आदमी उनकी मां का पति बना और उसके भी बच्चे हुए तो प्रॉपर्टी में बटवारा हो जाएगा, दूसरी वजह यह भी होती है जो खास तौर पर लड़कों में पाई जाती है कि वह अपनी मां को किसी दूसरे पुरुष के साथ नहीं देखना चाहते.

लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिन्हें समाज और लालच से ज्यादा अपनी मां की खुशी प्यारी होती है और इसी के चलते मां के दूसरी शादी के डिसीजन में वह बच्चे उनका साथ भी देते हैं, लेकिन आज जिस तरह का माहौल चल रहा है, आज लालच के तहत आदमी अपने बारे में ज्यादा सोचता है, ऐसे में कई बार स्वार्थ के चलते वह किसी लालच के तहत अपने फायदे के लिए दूसरी शादी करने की योजना बनाता है और ऐसी औरतों को जो बड़ी उम्र में शादी करने की इच्छुक है उन्हें प्यार के जाल में फंसा कर अपना उल्लू सीधा करने की अर्थात अपने फायदे के लिए शादी करना चाहता है, ऐसे लोगों से सावधान रहना जरूरी है ऐसे इंसान आपकी जिंदगी पूरी तरह से बर्बाद कर सकते हैं, इसलिए बहुत जरूरी है कि जब आप दूसरी शादी का मन बनाए तो इन खास पहलुओं पर जरूर खोज खबर निकाले, क्योंकि हर आदमी का घर के बाहर और घर के अंदर अलग-अलग व्यवहार होता है, कई बार वह लालची भी होते हैं पैसों के चक्कर में शादी करने की प्लानिंग करते हैं, इसलिए बड़ी उम्र में शादी करने से पहले इन खास बातों का ध्यान जरूर रखें पेश है इसी पर एक नजर…

दूसरी बार प्रेम संबंध या शादी में पड़ने से पहले ध्यान देने वाली बातें…

बड़े बुजुर्गों का कहना है कि जब कोई इंसान प्यार में पड़ता है तो उसकी अच्छे बुरे की पहचान खत्म हो जाती है, क्योंकि उस वक्त वह सिर्फ दिल से सोचता है, दिमाग का इस्तेमाल न के बराबर करता है इसीलिए कहते हैं सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देता है, प्यार करना या किसी का साथ पाने की इच्छा करना गलत नहीं है लेकिन उससे पहले यह देखना जरूरी है कि सामने वाला इंसान सचमुच आपसे प्यार करता है क्या किसी स्वार्थ या लालच के तहत वह आपको प्रेम के जाल में फंसा रहा है या अपना फायदे के लिए झांसा दे रहा है.

इसकी परख करने के लिए जब आप अपने होने वाले पति या प्रेमी के साथ शॉपिंग या होटल में जाएं तो यह जरूर देखें कि वह आपके लिए पैसा खर्च कर रहा है, या की सारा खर्चा आप उठा रहे हो, या फिर चालाकी चलते हुए जहां पर कम पैसे देने हो वहां वह पेमेंट कर रहा है और जहां पर ज्यादा पैसे देने हो तो वह आपसे पेमेंट करवा रहा है, अगर ऐसा है तो आप सतर्क हो जाएं,

इसके अलावा उस इंसान की लाइफस्टाइल, कामकाज, घर बार पर भी जांच पड़ताल करें, जैसे की शादी के बाद कहीं वह आपके घर में आकर ही रहने के बारे में तो नहीं सोच रहा, पैसों को लेकर वह कितना मजबूत है, शादी के बाद क्या वह आपका खर्चा उठाने के काबिल है, कहीं उसकी योजना आपके खर्चे पर पलने की तो नहीं है. इस जांच पड़ताल से इतना तो पता चल जाएगा कि वह आपके साथ रिश्ता बनाने को लेकर कितना गंभीर है. क्या सचमुच वह आपका साथ चाहता है, या आपके सहारे अपना जीवन चलाने के लिए रास्ता बना रहा है.

इन सब बातों के अलावा हर रिश्ते की मजबूती तभी होती है जब उस रिश्ते में पैसा या प्रॉपर्टी बीच में नहीं आता. ऐसे में सबसे पहले अपनी प्रॉपर्टी को लेकर पूरी तरह सतर्क रहें जो कि सिर्फ आपकी आपके पहले पति और आपके बच्चों की अमानत है, ऐसे में इस पर अगर किसी का हक है तो वह आप खुद और आपके बच्चे हैं, आज दूसरी शादी करने से पहले इस बात को क्लियर कर दे कि आपके पहले पति की प्रॉपर्टी या पैसे में दूसरे पति का कोई लेना देना नहीं होगा. अगर संभव हो तो कानूनी तौर पर वसीयत बना ले, किसी दूसरे कानून से अपनी और अपने बच्चों की प्रॉपर्टी को सुरक्षित कर दे, अगर इन सब बातों के बावजूद आपके जीवन में आया मर्द आपसे शादी करना चाहता है. तो वह आपके लिए परफेक्ट पार्टनर है और आप बिना किसी टेंशन के दूसरी शादी की योजना बना सकती हैं. क्योंकि अगर प्रॉपर्टी या पैसे को लेकर बच्चों के मन में भी कोई डर है तो वह आपके दूसरे पति की ईमानदारी को देखते हुए पूरी तरह दूर हो जाएगा, ऐसे मौके पर बच्चे भी आपका सहयोग देंगे.

Hindi Kahani : घिनौना आरोप

Hindi Kahani : दामोदर के ऊपर कामिनी समेत 20 औरतों ने छेड़छाड़ करने का केस दायर किया था. प्रधानमंत्री ने सख्ती दिखाते हुए उन्हें मंत्री पद से हटा दिया. चूंकि वे वरिष्ठ मंत्री रहे हैं इसलिए उन से इस्तीफा लिया गया और अदालत के फैसले के आधार पर उन के ऊपर कार्यवाही होगी.

इस सब में प्रधानमंत्री का बयान आग में घी का काम कर रहा था, ‘मैं ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारियों का पालन करते हुए दामोदर से इस्तीफा ले कर मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया है. अदालत बिना किसी दबाव के इस मसले पर फैसला लेगी.’

‘‘बड़ा ईमानदार बनता है. सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली,’’ दामोदर गुस्से में बड़बड़ा रहे थे. वे राजनीति में 50 साल यों ही नहीं गुजार चुके थे. उस में भी वे 30 साल से ज्यादा पत्रकारिता जगत में गुजार चुके थे. कामिनी को वे ही पत्रकारिता में लाए थे.

शाम को अपनी सफाई में दी गई प्रैस कौंफ्रैंस में दामोदर वहां आए पत्रकारों पर फट पड़े, ‘‘मैं खुद पत्रकार के रूप में सालों से आप के साथ रहा हूं और काम कर रहा हूं. इन आरोपों में कोई दम नहीं है, पर पत्रकार के रूप में आप सब जांच में सहयोग दें और सच को छापें.

‘‘मैं ने भी मंत्री पद से इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि न्यायपालिका में मेरा पूरा विश्वास है कि वह सही जांच करेगी. दूसरी बात यह है कि जिस दिन की बात कामिनी बता रही हैं, उस दौरान मैं प्रधानमंत्री के श्रीलंका दौरे को कवर करने वहां गया था और एक वक्त में मैं 2 जगह नहीं रह सकता.’’

‘‘फिर कामिनी ने आप पर आरोप क्यों लगाया?’’ एक पत्रकार का यह सवाल था.

‘‘आरोप तो कोई भी किसी पर लगा सकता है, मेरे इतने साल के पत्रकारिता और राजनीति के कैरियर में जब कोई गलती नहीं दिखाई दी तो मेरा सीधा चरित्र हनन कर डाला,’’ दामोदर मानो सफाई देते हुए बोले.

मीटिंग खत्म कर के वे कमरे में लौटे तो उन का कामिनी की पुरानी बातों और यादों पर ध्यान चला गया.

‘कामिनी, आप क्या लिखती हैं?’ दामोदर उस की रचनाओं और बायोडाटा को देखते हुए बोले थे.

‘कुछ नहीं बस आज से जुड़े विषयों पर छिटपुट रचनाएं लिखी हैं.’

‘अभी तुरंत कुछ लिख कर दीजिए,’ दामोदर 4 पेज देते हुए बोले थे.

कामिनी ने थोड़ी ही देर में एक ज्वलंत विषय पर रचना लिख कर दे दी थी. इस के बाद इतिहास से एमए पास कामिनी अकसर लिखती और उस की रचना छपने लगी थी.

 

उस दिन भी कवरेज के लिए जब दामोदर कानपुर गए थे, तो कामिनी उन के साथ थी. बारिश हो रही थी. रात के 11 बजे जब वे कमरे में पहुंचे तो दोनों भीग चुके थे.

इस के बाद दामोदर ने कामिनी के साथ होटल में छक कर मजे लूटे थे. कामिनी ने भी भरपूर सहयोग दिया था. आग में घी तब पड़ा था, जब दामोदर कामिनी के बजाय राधा से शादी कर बैठे थे.

‘इतने दिनों तक मेरा इस्तेमाल किया, फिर…’ कामिनी बिफरते हुए बोली थी.

‘फिर क्या, हम दोनों ने एकदूसरे का इस्तेमाल किया है. तुम ने मेरे नाम का और मैं ने तुम्हारा. यह दुनिया ऐसे ही कारोबार पर चलती है,’ दामोदर सपाट लहजे में बोले थे.‘मैं आप को बदनाम कर दूंगी. आखिर उस राधा ने क्या दिया है आप को?’ कामिनी गुस्सा में बड़बड़ा रही थी.

‘तुम खुद टूट जाओगी. दूसरी बात यह कि मैं ने मंत्री की बेटी से शादी की है, तो अब सब अपनेआप मिल जाएगा,’ दामोदर सफाई देते हुए बोले थे.

फिर धीरेधीरे दोनों दूर हो गए थे. दामोदर ने सालों से कामिनी का चेहरा नहीं देखा था. इतने सालों के बाद वह न जाने कहां से टपक पड़ी थी.

अगर कामिनी ने अदालत में सुबूत पेश कर दिया तो उन्हें जेल होगी और हर्जाना भी देना पड़ेगा. सांसद की कुरसी भी छिन जाएगी.

‘क्या करूं…’ दामोदर सोच रहे थे कि उन्हें जग्गा याद आ गया. वे जग्गा के पास खुद पहुंचे थे.

‘‘आप जाइए, मैं इस का इलाज कर देता हूं. आप बस 20 औरतों के लिए 25 लाख रुपए का इंतजाम कर दें,’’ वह शराब पीता हुआ बोला.

‘‘पैसा कल तक पहुंच जाएगा. तुम काम शुरू कर दो,’’ दामोदर हामी भरते हुए बोले.

अगले दिन दोपहर के 12 बजे प्रैस कौंफ्रैंस कर उन सभी 20 औरतों ने नाम समेत माफी मांगी और आरोप वापस ले लिया.

अब तो दामोदर मंत्री पद पर दोबारा आ गए. इस मसले पर जब उन से पूछा गया तो वे झट बोल उठे, ‘‘वे सब

मेरी बहन जैसी हैं. मैं तो उन से कभी मिला नहीं, उन्हें जानता तक नहीं. बस राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल की गई मुहरें थीं. मुझे साजिश करने वाला चाहिए मुहरें नहीं.’’

‘‘मगर, वे सब औरतें कहां गईं?’’ एक पत्रकार ने पूछा.

‘‘यह सवाल आप उन से पूछिए जिन्होंने मुझ पर ऐसा घिनौना आरोप लगवाया है. वह तो भला हो उन बहनों का, जिन का जमीर जाग गया और आज मैं आप के सामने हूं. मेरे सामने खुदकुशी के सिवा कोई रास्ता नहीं था,’’ घडि़याली आंसू बहाते दामोदर के इस जवाब ने सब को चुप कर दिया था.

 

दामोदर दोबारा सही हो गए, तो झट रात में जग्गा को फोन लगाया.

‘आप चिंता मत करो, सारा काम ठीक से हो गया है,’ जग्गा ने कहा.

‘‘फिर भी कहीं कुछ…’’ दामोदर थोड़े शंकित थे.

‘कोई अगरमगर नहीं… जग्गा पूरे पैसे ले कर आधा काम नहीं करता है.’

अब दामोदर ने चैन की सांस ली. अब वे कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, ऐसा सोच कर वे हलका महसूस करने लगे और धीरेधीरे नींद के आगोश में चले गए. Hindi Kahani 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें