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J&K Terror Attack : पहलगाम आतंकी हमले से धर्म के ठेकेदारों की चांदी

J&K Terror Attack : कश्मीर के बहुत ही खूबसूरत इलाके पहलगाम के निकट एक पर्यटन क्षेत्र में 6 आतंकवादियों द्वारा बहुतों की मौजूदगी में नाम, धर्म पूछ कर 26 पर्यटकों को एकएक कर के गोलियों से भून डालना दिल को झकझोर देने वाली घटना है जिस की जितनी भर्त्सना की जाए, कम है. धर्म और स्वार्थ की राजनीति के लिए हिंसा का सहारा लेना है तो हमला उन पर किया जाए जो वास्तव में दुश्मन हैं, आम पर्यटकों को क्यों इस लपेटे में लिया जाए.

अफसोस यह है कि धर्म हो या राज्य, सब ने आम लोगों को ढाल बनाया है और हमेशा उन्हीं के बल पर धर्म या राजा की धौंस परवान चढ़ी है. देशभर में आज भी आम मुसलिमों को रातदिन बुराभला कहा जाता है ताकि हिंदू धर्म की दुकानें चलती रहें, वोट मिलते रहें. आतंकवादियों ने यही काम पहलगाम में किया कि आम लोगों को डरा व उन्हें सजा दे कर उन की सरकार को धमकाया जा सके.

आतंकवादी अच्छी तरह से जानते हैं कि जब उन्होंने अपनी पहचान ही छिपा रखी है तो इस तरह के कांड कर के वे कोई सीधा लाभ न उठा सकेंगे पर उन के धर्म को अपने भक्तों से अब ज्यादा कुरबानी देने को तैयार नौजवान मिलने लगेंगे और ज्यादा पैसा मिलने लगेगा.

ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका में न्यूयौर्क पर हमला करा कर 2,500 से ज्यादा लोगों को मरवा डाला जिस का बदला अमेरिका ने अफगानिस्तान, इराक, लीबिया पर हमला कर के और ओसामा बिन लादेन को मार कर लिया पर उस से क्या इन देशों की जनता को जन्नत मिल गई? आम अफगानिस्तानी, पाकिस्तानी, इराकी, लीबियाई खुद उन आतंकियों के शिकार हैं जिन्हें वे पालते हैं.

किसी आतंकवादी हमले को अंजाम देना मिनटों में तय नहीं होता. इस की लंबी तैयारी करनी पड़ती है. लोगों को म रने के लिए तैयार करना पड़ता है. गोलियों, गनों का इंतजाम करना होता है. रास्ते तय करने होते हैं. जानकारी जमा करनी होती है. सब किस के लिए? क्या इसलिए कि उस धर्म को मानने वालों को एक रोटी ज्यादा मिल जाए, एक कपड़ा ज्यादा मिल जाए, एक किताब पढऩे को और मिल जाए, एक दवा या इंजैक्शन और मिल जाए?

आतंकवादी घटना से 26 लोगों की जानें गईं. पूरा देश दहशत में आ गया. इस घटना से किसी का फायदा हुआ तो सिर्फ धर्मगुरुओं का. अब उन्हें ज्यादा चंदा मिलेगा. ज्यादा लोग धर्म की दुकान पर आएंगे चाहे और ज्यादा फटेहाल हों.

यह आतंकवादी हमला पाकिस्तान ने कराया, यह सच है जो भारत सरकार के निकम्मेपन की पोल खोलता है कि वह पहले पता नहीं कर पाई जैसे मुंबई अटैक पर पता नहीं कर पाई थी. अखबारों में हर 15 अगस्त और 26 जनवरी के पहले छपवाया जाता है कि पुलिस ने संदिग्ध आतंकवादियों के मंसूबे तोड़ डाले, 20-25 संदिग्धों की गिरफ्तारियां कर डालीं. तो यहां वह पुलिस कहां थी?

मतलब साफ है कि सरकार बीचबीच में आतंकवाद का हल्ला मचा कर वोट वसूलती रहती है, पैसा जमा करती रहती है और जिन्हें कुछ करना होता है वे 56 इंच के सीने वाली सरकार से बिना डरे अपना काम करते रहते हैं, सिर्फ अपने धर्म के दुकानदारों के कहने पर.

आतंकवाद के इस हमले में निर्दोषों की जो जानें गई, उन के घाव परिवारों को पूरे जीवन सहने पड़ेंगे. सरकार के सुरक्षा देने में असफल होने का खमियाजा विधवाएं, बिना बाप के बच्चे, बिन बेटों के बूढ़े होते मातापिता जीवनभर झेलेंगे.

इस आतंकवादी हमले से इसलाम को कोई लाभ नहीं होगा. हिंदू धर्म के धंधे पर असर न पड़ेगा. बल्कि, इस वजह से दोनों को ज्यादा चंदा मिलेगा. एक यह कहेगा कि देखो, विधर्मी जो सजा दे दी, दूसरा कहेगा कि विधर्मी से बचना है तो और मंदिर बनवाओ, और पूजापाठ करो, और दान दो. दोनों धर्मों के ठेकेदारों को अपनी जनता से वसूलने का और मौका मिलेगा. दोनों धर्म जनता को देंगे नहीं बल्कि लेंगे. धर्म जान और पैसा दोनों लेता है, देता कुछ नहीं.

Family Story : गलतफहमी – शिखा रितु को दोषी क्यों मानती थी?

Family Story : औफिस का समय समाप्त होने में करीब 10 मिनट थे, जब आलोक के पास शिखा का फोन आया.

‘‘मुझे घर तक लिफ्ट दे देना, जीजू. मैं गेट के पास आप के बाहर आने का इंतजार कर रही हूं.’’

अपनी पत्नी रितु की सब से पक्की सहेली का ऐसा संदेश पा कर आलोक ने अपना काम जल्दी समेटना शुरू कर दिया.

अपनी दराज में ताला लगाने के बाद आलोक ने रितु को फोन कर के शिखा के साथ जाने की सूचना दे दी.

मोटरसाइकिल पर शिखा उस के पीछे कुछ ज्यादा ही चिपक कर बैठी है, इस बात का एहसास आलोक को सारे रास्ते बना रहा.

आलोक ने उसे पहुंचा कर घर जाने की बात कही, तो शिखा चाय पिलाने का आग्रह कर उसे जबरदस्ती अपने घर तक ले आई.

उसे ताला खोलते देख आलोक ने सवाल किया, ‘‘तुम्हारे भैयाभाभी और मम्मीपापा कहां गए हुए हैं ’’

‘‘भाभी रूठ कर मायके में जमी हुई हैं, इसलिए भैया उन्हें वापस लाने के लिए ससुराल गए हैं. वे कल लौटेंगे. मम्मी अपनी बीमार बड़ी बहन का हालचाल पूछने गई हैं, पापा के साथ,’’ शिखा ने मुसकराते हुए जानकारी दी.

‘‘तब तुम आराम करो. मैं रितु के साथ बाद में चाय पीने आता हूं,’’ आलोक ने फिर अंदर जाने से बचने का प्रयास किया.

‘‘मेरे साथ अकेले में कुछ समय बिताने से डर रहे हो, जीजू ’’ शिखा ने उसे शरारती अंदाज में छेड़ा.

‘‘अरे, मैं क्यों डरूं, तुम डरो. लड़की तो तुम ही हो न,’’ आलोक ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘मुझे ले कर तुम्हारी नीयत खराब है क्या ’’

‘‘न बाबा न.’’

‘‘मेरी है.’’

‘‘तुम्हारी क्या है ’’ आलोक उलझन में पड़ गया.

‘‘कुछ नहीं,’’ शिखा अचानक खिलखिला के हंस पड़ी और फिर दोस्ताना अंदाज में उस ने आलोक का हाथ पकड़ा और ड्राइंगरूम  की तरफ चल पड़ी.

‘‘चाय लोगे या कौफी ’’ अंदर आ कर भी शिखा ने आलोक का हाथ नहीं छोड़ा.

‘‘चाय चलेगी.’’

‘‘आओ, रसोई में गपशप भी करेंगे,’’ उस का हाथ पकड़ेपकड़े ही शिखा रसोई की तरफ चल पड़ी.

चाय का पानी गैस पर रखते हुए अचानक शिखा का मूड बदला और वह शिकायती लहजे में बोलने लगी, ‘‘देख रहे हो जीजू, यह रसोई और सारा घर कितना गंदा और बेतरतीब हुआ पड़ा है. मेरी भाभी बहुत लापरवाह और कामचोर है.’’

‘‘अभी उस की शादी को 2 महीने ही तो हुए हैं, शिखा. धीरेधीरे सब सीख लेगी… सब करने लगेगी,’’ आलोक ने उसे सांत्वना दी.

‘‘रितु और तुम्हारी शादी को भी तो 2 महीने ही हुए हैं. तुम्हारा घर तो हर समय साफसुथरा रहता है.’’

‘‘रितु एक समझदार और सलीकेदार लड़की है.’’

‘‘और मेरी भाभी एकदम फूहड़. मेरा इस घर में रहने का बिलकुल मन नहीं करता.’’

‘‘तुम्हारा ससुराल जाने का नंबर जल्दी आ जाएगा, फिक्र न करो.’’

शिखा बोली, ‘‘भैया की शादी के बाद से इस घर में 24 घंटे क्लेश और लड़ाईझगड़ा रहता है. मुझे अपना भविष्य तो बिलकुल अनिश्चित और असुरक्षित नजर आता है. इस के लिए पता है मैं किसे जिम्मेदार मानती हूं.’’

‘‘किसे ’’

‘‘रितु को.’’

‘‘उसे क्यों ’’ आलोक ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि उसे ही इस घर में मेरी भाभी बन कर आना था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो ’’

‘‘मैं सच कह रही हूं, जीजू. मेरे भैया और मेरी सब से अच्छी सहेली आपस में प्रेम करते थे. फिर रितु ने रिश्ता तोड़ लिया, क्योंकि मेरे भाई के पास न दौलत है, न बढि़या नौकरी. उस के बदले जो लड़की मेरी भाभी बन कर आई है, वह इस घर के बिगड़ने का कारण हो गई है,’’ शिखा का स्वर बेहद कड़वा हो उठा था.

‘‘घर का माहौल खराब करने में क्या तुम्हारे भाई की शराब पीने की आदत जिम्मेदार नहीं है, शिखा ’’ आलोक ने गंभीर स्वर में सवाल किया.

‘‘अपने वैवाहिक जीवन से तंग आ कर वह ज्यादा पीने लगा है.’’

‘‘अपनी घरगृहस्थी में उसे अगर सुखशांति व खुशियां चाहिए, तो उसे शराब छोड़नी ही होगी,’’ आलोक ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘न रितु उसे धोखा देती, न इस घर पर काले बादल मंडराते,’’ शिखा का अचानक गला भर आया.

‘‘सब ठीक हो जाएगा,’’ आलोक ने कहा.

‘‘कभीकभी मुझे बहुत डर लगता है, आलोक,’’ शिखा का स्वर अचानक कोमल और भावुक हो गया.

‘‘शादी कर लो, तो डर चला जाएगा,’’ आलोक ने मजाक कर के माहौल सामान्य करना चाहा.

‘‘मुझे तुम जैसा जीवनसाथी चाहिए.’’

‘‘तुम्हें मुझ से बेहतर जीवनसाथी मिलेगा, शिखा.’’

‘‘मैं तुम से प्यार करने लगी हूं, आलोक.’’

‘‘पगली, मैं तो तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड का पति हूं. तुम मेरी अच्छी दोस्त बनी रहो और प्रेम को अपने भावी पति के लिए बचा कर रखो.’’

‘‘मेरा दिल अब मेरे बस में नहीं है,’’ शिखा बड़ी अदा से मुसकराई.

‘‘रितु को तुम्हारे इरादों का पता लग गया, तो हम दोनों की खैर नहीं.’’

‘‘उसे हम शक करने ही नहीं देंगे, आलोक. सब के सामने तुम मेरे जीजू ही रहोगे. मुझे और कुछ नहीं चाहिए तुम से… बस, मेरे प्रेम को स्वीकार कर लो, आलोक.’’

‘‘और अगर मुझे और कुछ चाहिए हो तो ’’ आलोक शरारती अंदाज में मुसकराया.

‘‘तुम्हें जो चाहिए, ले लो,’’ शिखा ने आंखें मूंद कर अपना सुंदर चेहरा आलोक के चेहरे के बहुत करीब कर दिया.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल, साली साहिबा,’’ आलोक ने उस के माथे को हलके से चूमा और फिर शिखा को गैस के सामने खड़ा कर के हंसता हुआ बोला, ‘‘चाय उबलउबल कर कड़वी हो जाएगी, मैडम. तुम चाय पलटो, इतने में मैं रितु को फोन कर लेता हूं.’’

‘‘उसे क्यों फोन कर रहे हो ’’ शिखा बेचैन नजर आने लगी.

‘‘आज का दिन हमेशा के लिए यादगार बन जाए, इस के लिए मैं तुम तीनों को शानदार पार्टी देने जा रहा हूं.’’

‘‘तीनों को  यह तीसरा कौन होगा ’’

‘‘तुम्हारी पक्की सहेली वंदना.’’

‘‘पार्टी के लिए मैं कभी मना नहीं करती हूं, लेकिन रितु को मेरे दिल की बात मत बताना.’’

‘‘मैं न बताऊं, पर इश्क छिपाने से छिपता नहीं है, शिखा.’’

‘‘यह बात भी ठीक है.’’

‘‘तब रितु से दोस्ती टूट जाने का तुम्हें दुख नहीं होगा ’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि मेरा इरादा तुम्हें उस से छीनने का कतई नहीं है.

2 लड़कियां क्या एक ही पुरुष से प्यार करते हुए अच्छी सहेलियां नहीं बनी रह सकती हैं ’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब रितु से पूछ कर दूंगा,’’ आलोक ने हंसते हुए जवाब दिया और फिर अपनी पत्नी को फोन करने ड्राइंगरूम की तरफ चला गया.

रितु और वंदना सिर्फ 15 मिनट में शिखा के घर पहुंच गईं. दोनों ही गंभीर नजर आ रही थीं, पर बड़े प्यार से शिखा से गले मिलीं.

‘‘किस खुशी में पार्टी दे रहे हो, जीजाजी ’’

‘‘शिखा के साथ एक नया रिश्ता कायम करने जा रहा हूं, पार्टी इसी खुशी में होगी,’’ आलोक ने शिखा का हाथ दोस्ताना अंदाज में पकड़ते हुए जवाब दिया.

शिखा ने अपना हाथ छुड़ाने का कोई प्रयास नहीं किया. वैसे उस की आंखों में तनाव के भाव झलक उठे थे. रितु और वंदना की तरफ वह निडर व विद्रोही अंदाज में देख रही थी.

‘‘किस तरह का नया रिश्ता, जीजाजी ’’ वंदना ने उत्सुकता जताई.

‘‘कुछ देर में मालूम पड़ जाएगा, सालीजी.’’

‘‘पार्टी कितनी देर में और कहां होगी ’’

‘‘जब तुम और रितु इस घर में करीब 8 महीने पहले घटी घटना का ब्योरा सुना चुकी होगी, तब हम बढि़या सी जगह डिनर करने निकलेंगे.’’

‘‘यहां कौन सी घटना घटी थी ’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘उस का ब्योरा मैं बताना शुरू करती हूं, सहेली,’’ रितु ने पास आ कर शिखा का दूसरा हाथ थामा और उस के पास में बैठ गई, ‘‘गरमियों की उस शाम को वंदना और मैं ने तुम से तुम्हारे घर पर मिलने का कार्यक्रम बनाया था. वंदना मुझ से पहले यहां आ पहुंची थी.’’

घटना के ब्योरे को वंदना ने आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ने घंटी बजाई तो दरवाजा तुम्हारे भाई समीर ने खोला. वह घर में अकेला था. उस के साथ अंदर बैठने में मैं जरा भी नहीं हिचकिचाई क्योंकि वह तो मेरी सब से अच्छी सहेली रितु का जीवनसाथी बनने जा रहा था.’’

‘‘समीर पर विश्वास करना उस शाम वंदना को बड़ा महंगा पड़ा, शिखा,’’ रितु की आंखों में अचानक आंसू आ गए.

‘‘क्या हुआ था उस शाम ’’ शिखा ने कांपती आवाज में वंदना से पूछा.

‘‘अचानक बिजली चली गई और समीर ने मुझे रेप करने की कोशिश की. वह शराब के नशे में न होता तो शायद ऐसा न करता.

‘‘मैं ने उस का विरोध किया, तो उस ने मेरा गला दबा कर मुझे डराया… मेरा कुरता फाड़ डाला. उस का पागलपन देख कर मेरे हाथपैर और दिमाग बिलकुल सुन्न पड़ गए थे. अगर उसी समय रितु ने पहुंच कर घंटी न बजाई होती, तो बड़ी आसानी से तुम्हारा भाई अपनी हवस पूरी कर लेता, शिखा,’’ वंदना ने अपना भयानक अनुभव शिखा को बता दिया.

‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है इस बात पर,’’ शिखा बोली.

‘‘उस शाम वंदना को तुम्हारा नीला सूट पहन कर लौटना पड़ा था. जब उस ने वह सूट लौटाया था तो तुम ने मुझ से पूछा भी था कि वंदना सूट क्यों ले गई तुम्हारे घर से. उस सवाल का सही जवाब आज मिल रहा है तुम्हें, शिखा,’’ रितु का स्पष्टीकरण सुन शिखा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम दोनों ने यह बात आज तक मुझ से छिपाई क्यों ’’ शिखा रोंआसी हो उठी.

‘‘समीर की प्रार्थना पर… एक भाई को हम उस की बहन की नजरों में गिराना नहीं चाहते थे,’’ वंदना भी उठ कर शिखा के पास आ गई.

‘‘मैं समीर की जिंदगी से क्यों निकल गई, इस का सही कारण भी आज तुम्हें पता चल गया है. मैं बेवफा नहीं, बल्कि समीर कमजोर चरित्र का इंसान निकला. उसे अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरे दिल ने साफ इनकार कर दिया था. वह आज दुखी है, इस बात का मुझे अफसोस है. पर उस की घिनौनी हरकत के बाद मैं उस से जुड़ी नहीं रह सकती थी,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तुम्हें कितना गलत समझती रही,’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

आलोक ने कहा, ‘‘मेरी सलाह पर ही आज इन दोनों ने सचाई को तुम्हारे सामने प्रकट किया है, शिखा. ऐसा करने के पीछे कारण यही था कि हम सब तुम्हारी दोस्ती को खोना नहीं चाहते हैं.’’

शिखा ने अपना सिर झुका लिया और शर्मिंदगी से बोली, ‘‘मैं अपने कुसूर को समझ रही हूं. मैं तुम सब की अच्छी दोस्त कहलाने के लायक नहीं हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों की सब से अच्छी, सब से प्यारी सहेली हो, यार,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तो तुम्हारे ही हक पर डाका डाल रही थी, रितु,’’ शिखा की आवाज भर्रा उठी, ‘‘अपने भाई को धोखा देने का दोषी मैं तुम्हें मान रही थी. इस घर की खुशियां और सुखशांति नष्ट करने की जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर डाल रही थी.

‘‘मेरे मन में गुस्सा था… गहरी शिकायत और कड़वाहट थी. तभी तो मैं ने आज तुम्हारे आलोक को अपने प्रेमजाल में फांसने की कोशिश की. मैं तुम्हें सजा देना चाहती थी… तुम्हें जलाना और तड़पाना चाहती थी… मुझे माफ कर दो, रितु… मेरी गिरी हुई हरकत के लिए मुझे क्षमा कर दो, प्लीज.’’

रितु ने उसे समझाया, ‘‘पगली, तुझे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि हम तुम्हें किसी भी तरह का दोषी नहीं मानते हैं.’’

‘‘रितु ठीक कह रही है, साली साहिबा,’’ आलोक ने कहा, ‘‘तुम्हारे गुस्से को हम सब समझ रहे थे. मुझे अपनी तरफ आकर्षित करने के तुम्हारे प्रयास हमारी नजरों से छिपे नहीं थे. इस विषय पर हम तीनों अकसर चर्चा करते थे.’’

‘‘आज मजबूरन उस पुरानी घटना की चर्चा हमें तुम्हारे सामने करनी पड़ी है. मेरी प्रार्थना है कि तुम इस बारे में कभी अपने भाई से कहासुनी मत करना. हम ने उस से वादा किया था कि सचाई तुम्हें कभी नहीं पता चलेगी,’’ वंदना ने शिखा से विनती की.

‘‘हम सब को पक्का विश्वास है कि तुम्हारा गुस्सा अब हमेशा के लिए शांत हो जाएगा और मेरे पतिदेव पर तुम अपने रंगरूप का जादू चलाना बंद कर दोगी,’’ रितु ने मजाकिया लहजे में शिखा को छेड़ा, तो  वह मुसकरा उठी.

‘‘आई एम सौरी, रितु.’’

‘‘जो अब तक नासमझी में घटा है, उस के लिए सौरी कभी मत कहना,’’ रितु ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया.

‘‘साली साहिबा, वैसे तो तुम्हें प्रेमिका बना कर भी मैं खुश रहता, पर…’’

‘‘शक्ल देखी है कभी शीशे में  मेरी इन सहेलियों को प्रेमिका बनाने का सपना भी देखा, तो पत्नी से ही हाथ धो बैठोगे,’’ रितु बोली.

आलोक मुसकराते हुए बोला, तो फिर दोस्ती के नाम पर देता हूं बढि़या सी पार्टी… हम चारों के बीच दोस्ती और विश्वास का रिश्ता सदा मजबूत बना रहे.

Hindi Kahani : मिसेज चोपड़ा, मीडिया और न्यूज

Hindi Kahani : लंबा कद, गोरा रंग, सलीके से   बंधा हुआ जूड़ा, कलफ लगी बढि़या सूती साड़ी और साड़ी के रंग से मेल खाते गहने पहने मिसेज चोपड़ा पूरे दफ्तर में अलग ही दिखती थीं. मैं जिस दफ्तर में काम करती थी वहां काम कम ही होता था. यों समझ लीजिए, अकसर लोग गरमगरम चाय और गरमागरम बहस से टाइम पास करते थे. कुछ ही दिनों में दफ्तर का यह माहौल देखदेख कर मेरा धैर्य जवाब दे गया.

मैं ने अपने एन.जी.ओ. के कोआर्डिनेटर से एक दिन बातों ही बातों में पूछ लिया, ‘‘यह मिसेज चोपड़ा मुझे आफिस में सब से अलग दिखती हैं, यह कैसा काम करती हैं. मैं अभी नई हूं इसलिए इन के बारे में ज्यादा जानती नहीं हूं.’’

सामने बैठे मिस्टर शर्मा बोले, ‘‘यह यहां पी.आर.ओ. के पद पर हैं. पब्लिक और प्रेस से डीलिंग करना ही इन का काम है. यह किसी मजबूरी में नौकरी नहीं कर रही हैं. मिसेज चोपड़ा जैसी हाइक्लास सोसाइटी की औरतें जब अपनी किटी पार्टियों से बोर हो जाती हैं और उन्हें अपना समय बिताना होता है तो वे किसी एन.जी.ओ. से जुड़ जाती हैं. समय भी बीत जाता है, नाम भी मिल जाता है. मिसेज चोपड़ा भी इसी रंग में रंगी हैं.’’

मैं थोड़ी देर में अपनी जगह पर वापस आ कर काम में जुट गई. चूंकि मेरे ऊपर अपनी विधवा मां की जिम्मेदारी थी इसलिए मैं अपना काम बड़ी ईमानदारी से करती थी. मैं कुछ दिनों से यह भी अनुभव कर रही थी कि मिसेज चोपड़ा मुझे पसंद नहीं करती हैं. मेरे हर काम में उन्हें सिर्फ कमी ही नजर आती थी.

मिसेज चोपड़ा ने धीरेधीरे मुझे सताना शुरू कर दिया. मेरी किसी भी रिपोर्ट को रद्द कर देतीं और फिर से नए ढंग से बनाने को कहतीं. कभी आफिस के काम से हटा कर फील्ड वर्क पर लगा देतीं तो कभी अचानक फील्ड वर्क से आफिस भेज देतीं.

एक दिन उन्होंने मुझ से पूछ ही लिया, ‘‘मिस बेला, आप इतना कम क्यों बोलती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘मैडम, ऐसा तो नहीं है. बस, मैं बोलने से ज्यादा काम करना पसंद करती हूं. फिर हम जो काम कर रहे हैं अगर उस में हम अपने बारे में ही सोचेंगे तो दूसरों के दुख कब शेयर करेंगे.’’

वह अचानक बौस के ढंग में बोलीं, ‘‘मिस बेला, इस केस की डिटेल्स पढि़ए. नेहा के घर वालों का बयान लीजिए और गवाहों से बात कीजिए. पुलिस से भी मिलिए. आजकल बहुत कंपीटीशन है. मैं मीडिया से बात कर के रखती हूं. हम पहले केस सुलझा लेंगे तो हमारा नाम होगा. हमारी बढि़या न्यूज तैयार होगी.’’

मैं सिर झुकाए बोली, ‘‘किसी के दुख पर सफलता की सीढ़ी लगाना अच्छा तो नहीं लगता, मैडम.’’

उन की नजरें मुझ पर जम गईं. अच्छा स्टेटस, पैसा और अच्छे संबंध यही दुनिया में जीने के उन के सिद्धांत थे.

मैं अपने गु्रप के साथ घटनास्थल पर जाने को निकल गई. वह एक बौस की तरह मेरे साथ थीं. मैं ने नेहा के घर वालों से बहुत से सवाल पूछे. नेहा को उस के ससुराल वालों ने जला कर मार दिया था. नशे की हालत में उस के पति ने उस पर तेल छिड़क कर आग लगा दी थी. मिसेज चोपड़ा बहुत खुश थीं कि अगर मीडिया यह न्यूज अच्छी तरह से पेश करता है तो उन का बहुत नाम होगा. उन्होंने प्रेस कान्फ्रेंस बुला कर मीडिया में इस मामले पर हलचल मचा दी.

उन की इस हरकत से मैं बहुत बेचैन थी. अपनी उस बेचैनी को कम करने के लिए मैं उन के केबिन में जा कर फट पड़ी, ‘‘मैडम, इस प्रेस कान्फ्रेंस से नेहा को क्या फायदा पहुंच रहा है? उस की मौत को भुना कर हमें क्या मिलेगा?’’

मेरे अंदर सवालों का ढेर लगा था. उन्हें मुझ पर गुस्सा आ गया, ‘‘मिस बेला, आप को क्या लगता है कि हमारी संस्था सिर्फ नाम कमाने के लिए दूसरों के दुख अपने पास जमा करती है? क्या हम उन के लिए कुछ नहीं करते? अगर किसी की मदद के साथ मीडिया वाले हमें भी कैमरे के सामने ला कर न्यूज बना देते हैं तो इस में बुरा क्या है?’’

मैं ने अपनी आवाज को संतुलित करते हुए जवाब दिया, ‘‘मैडम, हम क्या करते रहे हैं महिलाओं के लिए? जो बात सिर्फ घर वाले जानते हैं हम उन्हें सब के सामने ला कर दुखी लोगों को और दुखी कर देते हैं. थोड़ी सी जबानी सहानुभूति या कभीकभी कुछ आर्थिक सहायता. हमारी संस्था औरत को कभीकभी एक तमाशा बना देती है. मीडिया को तो खबरें ही चाहिए. मैडम, मैं यहां नौकरी नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘हां, यही अच्छा रहेगा. जहां काम में रुचि न हो वहां इनसान को काम नहीं करना चाहिए. आप जा सकती हैं.’’

मैं अपना बैग उठा कर आफिस से बाहर आ गई. मैं हर उस नौकरी को बुरा समझती हूं जिस में किसी के दुख को भुनाया जाता है.

मैं ने कुछ दिन बाद एक स्कूल में नौकरी ज्वाइन कर ली लेकिन मिसेज चोपड़ा और उन की संस्था के बारे में मुझे खबर मिलती रहती थी. नेहा का केस उन्होंने सुलझा लिया था, उन की संस्था की धूम मची हुई थी.

जीवन अपने ढर्रे पर चल रहा था कि एक दिन अचानक सुबह उठने पर पेपर पढ़ा तो रोंगटे खडे़ हो गए. मिसेज चोपड़ा की बेटी आकृति के साथ कुछ दरिंदों ने रेप किया था. वह अपने कालिज से घर आ रही थी कि सुनसान सड़क पर कुछ लड़के कार में उसे उठा कर ले गए थे.

इस खबर को पढ़ने के बाद मैं अपने को वहां जा कर उन से मिलने से रोक नहीं पाई. उन के घर पहुंची तो वह मासूम सी लड़की कमरे में बंद थी और बारबार बेहोश हो रही थी. बहुत ही हृदयविदारक दृश्य था. पूरा स्टाफ वहां था. सब को आकृति पर तरस आ रहा था. मिसेज चोपड़ा का विलाप दिल को चीर रहा था. चोपड़ा साहब विदेश में थे. उन मांबेटी से सब को सहानुभूति हो रही थी. कुछ देर वहां ठहर कर मैं वापस घर आ गई लेकिन अगले दिन भी उन दुखियारी मांबेटी के पास कुछ देर बैठने के लिए मैं गई. फिर कई दिनों तक रोज ही जाती रही. सब को आकृति के सामान्य होने का इंतजार था.

एक दिन अचानक एक प्रसिद्ध एन.जी.ओ. की महिलाएं मीडिया के साथ मिसेज चोपड़ा के घर पहुंच गईं. हर तरफ कैमरे की रोशनियां और उन की बेटी का रोना, मिसेज चोपड़ा बारबार उन लोगों से जाने की प्रार्थना करते हुए सिसक उठीं, लेकिन संस्था की महिलाएं, हाथ में पेपर, पैन लिए मीडिया के लोग, मांबेटी से सवाल पर सवाल पूछे जा रहे थे और अपनी संस्था की शान में कमेंट भी किए जा रहे थे कि हम आप की बेटी को न्याय दिलवाएंगे. मैडम, आप तो खुद एक संस्था चलाती थीं. आज आप आम आदमी की जगह खड़ी हैं. आप को कैसा लग रहा है? मैडम, आप कुछ जवाब दें. आप इस केस में क्या कहना चाहेंगी.

मिसेज चोपड़ा ने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन उन के शब्द अंदर ही रह गए और वे गिर पड़ीं.

आफिस के कुछ लोगों के साथ मैं उन को अस्पताल ले गई. आकृति को मैं ने अपनी मां के पास भेज दिया. मिसेज चोपड़ा को हार्टअटैक पड़ा था. उन की देखरेख मैं ने एक दोस्त की तरह की, क्योंकि मेरी मां ने मुझे यही सिखाया था. उन के दिए गए संस्कार मेरे अंदर खून बन कर बहते थे. स्कूल से मैं ने छुट्टियां ली हुई थीं. मिसेज चोपड़ा जब तक अस्पताल से घर आने लायक हुईं हम एक अच्छे दोस्त बन चुके थे.

घर आ कर वह अपने काम में व्यस्त हो गईं और मैं अपने में. जीवन निर्बाध गति से चल रहा था. एक दिन मैं ने टेलीविजन चलाया तो मिसेज चोपड़ा अपने साक्षात्कार में कह रही थीं, ‘‘अगर हम किसी बहन या बेटी की इज्जत करते हैं तो क्या हमें उस को हजारों लोगों के सामने खड़ा कर देना चाहिए. हमें यदि किसी की मदद करनी है तो क्या हम चुपचाप नहीं कर सकते. मैं एक नई संस्था बना रही हूं जिस का मीडिया से बहुत ही कम लेनादेना होगा. हम चुपचाप दुखी जनता के आंसू पोंछेंगे.’’

आज मुझे लगा कि मिसेज चोपड़ा ने अब जो रास्ता चुना है वह सही है. मुझे उन की इस बदली हुई सोच पर खुशी हुई और मैं उन को इस नए कदम के लिए शुभकामनाएं देने को फोन मिलाने लगी, साथ ही मुझे उन को यह भी बताना था कि मैं उन की नई संस्था में काम करने आ रही हूं.

Best Hindi Story : भाभी – नीम की तरह कड़वी पर घाव भरने वाली

Best Hindi Story : समय के दरीचे हर दर्रे की कहानी कह रहे हैं. उन्हीं में मैं अपने इश्क की निशानी तलाश रहा हूं. लंबे अंतराल के बाद आया हूं. एक पल को भी उसे भूला हूं, ऐसा कभी नहीं हुआ. हर इश्क की तरह ही हमारा इश्क भी धर्म के नाम पर ही कुरबान हुआ था. ठाकुर चाचा के साथ हमारे अब्बा की दांतकाटी रोटी थी. हम सब बच्चे एक ही आंगन में खेलते रहते थे. तब किसी ने नहीं कहा कि बिस्मिल, तुम तारा के साथ मत खेला करो. जब हम घरघर खेलते हुए घर सजाने के सपने संजोने लगे तब तारा की भाभी को न जाने क्या हो गया कि उन्होंने हम दोनों के मिलने पर रोक लगानी शुरू कर दी.

भाभी घर की बड़ी थीं. हम सब की भाभी थीं. मैं तो उन्हें बहुत पसंद भी करता था. बर्फ जैसे सफेद रंग की वे मुझे बहुत सुंदर लगती थीं. ईद में मिली ईदी से शिवालय जा कर मैं उन के लिए गुलाबी चुटीला भी लाया था. ऐसा नहीं कि वे मुझे प्यार नहीं करती थीं, बहुत प्यार करती थीं. फिर उन्हें हमारे इश्क से क्यों नफरत हुई, उस वक्त मैं समझ ही नहीं सका था. हमें एकसाथ देख कर वे तुरंत कहतीं, ‘बिस्मिल, आप अपने घर जाइए. बहुत रात हो चुकी है. तारा, आप भी चलिए या तो पढ़ाई करिए या फिर आइए रसोई में हमारा हाथ बंटाइए.’

भाभी लखनऊ की थीं. उन की भाषा हमारे कानपुर की भाषा से थोड़ी अलग थी. अभी मेरी दाढ़ीमूंछों में स्याह रंग फूटना शुरू ही हुआ था. सिर पर टोपी लगाना भी अब मुझे अच्छा लगने लगा था. समझ गया था कि हमारे मजहब में इस जालीदार टोपी की क्या खासीयत है. दिल में हर वक्त तारा के नाम की हिलोरें उठती रहती थीं. तारा भी मेरे लिए दिन में कईकई बार छत पर आती. वह अब सलवारकमीज के साथ दुपट्टा भी डालने लगी थी.

अब्बा की दुकान से ही पीला जरीवाला दुपट्टा ले कर मैं ने उसे जन्मदिन पर तोहफे में दिया था. अब्बा ने कहा भी था, ‘तेरी अम्मी उस के लिए पूरा सूट ले कर गई हैं. साहबजादे, फिर आप अपनी तरफ से दुपट्टा क्योंकर ले जाना चाहते हैं?’

मैं थोड़ा सा हकलाया तो अब्बा ने मेरे कान मरोड़ते हुए कहा, ‘बरखुरदार, क्या हमारी दोस्ती को रिश्ते में बदलवाना चाहते हो?’

मैं शर्म से लाल हो गया था. मेरे चेहरे पर आई सुरखी देख कर अब्बा थोड़ा चिंतित हुए, फिर बोले, ‘जनाब, यह इश्क बड़ी जालिम चीज है. इस की आतिश से खुद को बचा कर रखिए ताकि हमारे शीरीं रिश्ते की मिठास बची रहे.’

अगर उसी वक्त कह देता कि अब्बा, ठाकुर चाचा से आप मेरी खातिर बात कर लो तो कितना अच्छा होता. मुझे तो वैसे भी दुकान ही संभालनी थी. ‘भाईजी सलवारकमीज वाले’ कानपुर के जनरलगंज की मशहूर दुकान थी. आखिर बापदादा का बिजनैस बेटे को ही तो देखना था. यह बात मेरे दिमाग में बैठी हुई थी, तभी पढ़ाई में भी मेरा मन नहीं लगता था.

उस जन्मदिन पर भाभी ने मुझ से कहा, ‘बिस्मिल, आप और तारा अब बड़े हो रहे हो. अब आप को मर्यादा का खयाल रखना होगा. हमारे घरों में बहुत अच्छी दोस्ती है किंतु हमारे धर्म अलग हैं. हम अपनी बेटी ठाकुरों के घर ही ब्याहेंगे. बड़ों की दोस्ती में कोई दरार न आए, इसलिए आप दोनों को समझ रही हूं. मैं ने कई मर्तबा रिश्तों का खून होते देखा है, नहीं चाहती कि आप दोनों की वजह से ऐसा कुछ हो. अच्छा होगा तारा से दूरी बना कर रहिए.’

मैं सहम गया था. ऐसा लगा जैसे मैं ने कोई चोरी की हो. डबडबाई आंखें लिए बिना तारा से मिले बिना ही मैं वापस आ गया. उस पूरी रात मैं सो नहीं सका. दूसरी सुबह तारा भी छत पर नहीं आई.

मेरे भीतर पनपा इश्क सुलग उठा. उसे किसी भी तरह एक नजर देखने को मैं बेचैन होने लगा. छत और आंगन के कई चक्कर लगा लिए पर भाभी छोड़ तारा एक बार भी नहीं दिखी. भाभी मुझे टहलते देख कर बोली भी थीं, ‘जा कर पढ़ लीजिए. हाईस्कूल की परीक्षा जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए पहली सीढ़ी होती है.’

मैं समझ गया कि वह मेरी बेकरारी को समझ मुझे ताना मार रही हैं. जी किया छत पर पड़ी ईंटा उठा कर उन के ऊपर दे मारूं पर डबडबाई आंखें लिए नीचे आ गया.

दोपहर तक अचानक शहर ही जल उठा. नारे तकबीर और जय श्रीराम के नारों ने गलियों की गंगाजमुनी तहजीब को नंगा कर के रख दिया.
मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि हो क्या रहा है?

जनरलगंज से अब्बा को ठाकुर चाचा अपनी कार में छिपा कर ले कर आए. हम सब ठाकुर चाचा के घर में छिपा दिए गए. ठाकुर चाचा ने ही खबर दी कि हमारी दुकान जला दी गई है. आठ दिन हम उन के घर के नीचे बने तहखाने में छिपे रहे. उस वक्त भी भाभी ने हम सब का बहुत खयाल रखा था. ठाकुर चाचा बाहर के सभी लोगों से छिप कर हमारे लिए बहुत सारे इंतजाम करते रहे.

फिर अब्बा ने अपनी और मेरी टोपी बैग में रख कर चेन लगा दी. रात के अंधेरे में हमें अपना शहर और देश दोनों छोड़ कर विदेश जाना पड़ा था. कई बरसों तक अब्बा और ठाकुर चाचा का टैलीफोन पर संपर्क बना रहा. फिर वक्त ने दूरियों को गले लगा लिया.

बीते कई वर्षों के अंतराल के बाद इस साल कई बार भाभी का फोन आया कि उन की तबीयत बहुत खराब है, वे मिलना चाहती हैं. तब मुझे दुबई से आना ही पड़ा. भाभी का सफेद चेहरा पुराने कागज सा पीला पड़ा हुआ था.

मिलते ही भाभी ने हमें हमारे घर के कागज दिए और कहा, ‘‘बहुत सालों से आप की अमानत संभाली हुई थी. अब आप के हवाले करती हूं. बड़ों की दोस्ती में कोई दाग न लगे, इसीलिए अपनों से लड़ कर भी हवेली बचाती रही.’’

मुझ से रहा न गया, पूछ ही बैठा, ‘‘भाभी, आप इतनी अच्छी हो, फिर भी आप से एक बात पूछना चाहता हूं.’’

‘‘तारा के बारे में?’’

‘‘नहीं, आप बस यह बताइए जब आप ने हमारे परिवार का तब से ले कर अब तक इतना खयाल रखा तो आप को मेरा और तारा का मिलन क्यों मंज़ूर नहीं था?’’

‘‘आप अभी तक बात को दिल में गांठ बांध कर बैठे हैं.’’

‘‘जी, मुझे तारा कभी नहीं भूली यहां तक कि मैं ने अपनी बेटी का नाम भी तारा ही रखा है. जिंदगी में आगे भी बढ़ा. जितना खोया था उस से कहीं ज्यादा पाया पर तारा मेरी दुनिया में आज भी टिमटिमाती रहती है.’’

‘‘बिस्मिल, चंद सांसें बची हैं. आप से सच ही कहूंगी. मैं इश्क की दुश्मन नहीं थी. मैं तो खुद इश्क की मारी हुई थी. आप के भाईसाहब, जिन्हें मैं ब्याही गई थी, उम्र में मुझ से 10 साल बड़े थे. ऐसा नहीं था कि यह बात हमारी अम्मा और बाऊजी को अखरी न हो. वे चाहते तो मेरे लिए मेरा हमउम्र भी तलाश सकते थे किंतु उन्हें हमारे इश्क का पता चल गया था. बस, मेरी पढ़ाई छुड़वा कर बिना कुछ भी सोचेसमझे तुरंत हमारी शादी कर दी गई. हमारी सहेली ने ही हमें बताया था कि उस ने जहर खा कर अपनी जान दे दी थी. आप की ही तरह वह भी अपनी अम्मी का इकलौता ही था.’’

यह सब कहते हुए भाभी की आंखें भीग गईं. उन की गहराई जान कर मेरा सिर उन के लिए और झुक गया. उन का हाथ थाम कर मैं ने पूछा, ‘‘भाभी, तारा कैसी है?’’

भाभी ने आंखें मूंदते हुए कहा, ‘‘जैसी आप की यादों में है उसे वैसी ही रहने दीजिए.’’

भाभी गहरी नींद सो चुकी थीं. मैं छत पर चला आया. दरक चुकी दीवार के बीच भी नीम के नन्हेनन्हे 2 पौधे मुसकरा रहे थे. कड़वी नीम गहरी चोट पर भी ठंडा लेप ही देती है, बिलकुल भाभी की तरह.

Romantic Story : आसमान छूते अरमान : चंद्रवती क्या अपने अरमान पूरे कर पाई

Romantic Story : चंद्रो बस से उतर कर अपनी सहेलियों के साथ जैसे ही गांव की ओर चली, उस के कानों में गांव में हो रही किसी मुनादी की आवाज सुनाई पड़ी. ‘गांव वालो, मेहरबानो, कद्रदानो, सुन लो इस बार जब होगा मंगल, गांव के अखाड़े में होगा दंगल. बड़ेबडे़ पहलवानों की खुलेगी पोल, तभी तो बजा रहा हूं जोर से ढोल. देखते हैं कि मंगलवार को लल्लू पहलवान की चुनौती को कौन स्वीकार करता है. खुद पटका जाता है कि लल्लू को पटकनी देता है. मंगलवार शाम 4 बजे होगा अखाड़े में दंगल.’

‘‘देख चंद्रो, इस बार तो तेरा लल्लू गांव में ही अखाड़ा जमाने आ गया,’’ एक सहेली बोली.

‘‘धत्… चल, मैं तुझ से बात नहीं करती,’’ चंद्रो ने कहा. ‘‘अब तू हम से क्या बात करेगी चंद्रो. अब तो तू उस के खयालों में खो जाएगी,’’ दूसरी सहेली बोली. चंद्रो ने शरमा कर दुपट्टे में अपना मुंह छिपा लिया. तब तक उस का घर भी आ चुका था. वह अपनी सहेलियों को छोड़ कर तेजी से घर के दरवाजे की ओर बढ़ गई. चंद्रो का पूरा नाम चंद्रवती था. वह कभी छुटपन में लल्लू की सहपाठी रही थी, तभी उन के बीच प्यार का बीज फूट गया था. चंद्रवती को चंद्रो नाम देने वाला भी लल्लू पहलवान ही था. चंद्रवती को पढ़नेलिखने, गीतसंगीत और डांस में ज्यादा दिलचस्पी थी. उस के अरमान बचपन से ही ऊंचे थे. लल्लू पहलवानी का शौक रखता था. पढ़ाई में उस की इतनी दिलचस्पी नहीं थी, जितनी अखाड़े में जोरआजमाइश करने की. फिलहाज, चंद्रवती हिंदी साहित्य में एमए कर रही थी. यह उस का एमए का आखिरी साल था. उस का कालेज गांव से 14-15 किलोमीटर दूर शहर में था. अपनी सहेलियों के साथ वह रोज ही बस से कालेज जाती थी. उस के मातापिता उस के लिए अच्छे वर की तलाश कर रहे थे.

लल्लू पहलवान को कुश्ती लड़ने का शौक ऐसा चढ़ा था कि पढ़ाई बहुत पीछे छूट गई थी. लेकिन पहलवानी में उस ने अपनी धाक जमा ली थी. 40-50 किलोमीटर दूर तक के गांवों में उस की बराबरी का कोई पहलवान न था. अब वह पेशेवर पहलवान बन चुका था और अच्छी कमाई कर रहा था. चंद्रवती रातभर लल्लू की यादों में खोई रही. वे बचपन की यादें और अब अल्हड़ जवानी. चंद्रवती को लल्लू से मिले कई साल हो चुके थे, लेकिन उस का वह बचपन का मासूम चेहरा अभी भी आंखों में समाया हुआ था. मंगलवार को शाम 4 बजे तक अखाड़े में तिल धरने की भी जगह न बची थी. औरतों को बिठाने के लिए अखाड़ा समिति ने अलग से इंतजाम किया था. पहली कुश्ती मुश्किल से 5 मिनट चली. लल्लू ने कुछ देर तक तो पहलवान के साथ दांवपेंच दिखाए और फिर उसे कंधे पर उठा कर अखाड़े का जो चक्कर लगाया, तो तालियों की बरसात होने लगी.

कुछ देर बाद पांच मुकाबले हुए और सब का हाल पहले पहलवानों जैसा ही हुआ. अब लल्लू के चेहरे पर थकान साफ नजर आ रही थी. उसे सभी मुकाबलों में जीत मिलने का इनाम मिल चुका था. जब सब गांव वाले जाने लगे, तो चंद्रवती की सहेलियां उसे लल्लू से मिलाने के लिए जबरन पकड़ कर ले गईं. लल्लू भीड़ से घिरा हुआ था, फिर भी सहेलियां चंद्रवती को लल्लू से मिलाने पर आमादा थीं. यह काम किया चंद्रवती की सहेली मधु के भाई माधवन ने. उस ने लल्लू से कान में जा कर कहा, ‘‘तुम्हारी कोई रिश्तेदार उधर खड़ी है. वह एक मिनट के लिए तुम से मिलना चाहती है.’’ लल्लू उठ कर गया, तो वहां 5-6 लड़कियां खड़ी थीं. लेकिन उन में से उसे कोई भी अपनी रिश्तेदार नजर नहीं आई. उस ने पूछा, ‘‘कहां है मेरी रिश्तेदार?’’

‘‘पहलवानजी, अपनी रिश्तेदार को भी नहीं पहचानते. बड़े पहलवान हो गए हो, इसलिए बचपन के रिश्ते को ही भूल गए,’’ चंद्रवती की एक सहेली इंदू ने उलाहना देते हुए कहा. चंद्रवती का दिल जोरजोर से धड़क रहा था कि कहीं लल्लू उसे भूल ही न गया हो. तब मधु ने कहा, ‘‘किसी चंद्रो को जानते हो तुम? कोई चंद्रो पढ़ती थी तुम्हारे साथ बचपन में?’’

चंद्रो का नाम सुनते ही लल्लू का चेहरा खिल उठा. उस के मुंह से अनायास ही निकला, ‘‘अरे चंद्रो, हां, कहां है मेरी चंद्रो?’’ यह सुनते ही चंद्रो शरमा कर अपनेआप में ही मिसट गई. सहेलियां मुसकरा पड़ीं और लल्लू भी अपने उतावलेपन पर शर्मिंदा हो गया. कुछ ही दिनों में चंद्रवती लल्लू के घरआंगन को महकाने के लिए आ गई. कुछ दिन तक तो लल्लू चंद्रवती के प्यार में ऐसा खोया रहा कि पहलवानी के सारे दांवपेंच भूल गया. दोनों एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे. उन दोनों की गृहस्थी बड़े आराम से पटरी पर चल रही थी. उन्हीं दिनों गांव में पंचायत चुनाव आ गए. लल्लू की राजनीति में कोई दिलचस्पी न थी, लेकिन चंद्रवती को राजनीति विरासत में मिली थी. उस के दादा अपने गांव में कई साल प्रधान रहे थे और अब उस के चाचा राम सिंह अपने गांव के प्रधान थे. गांव वालों का लल्लू को प्रधान बनाने का इशारा था, लेकिन चुनाव आयोग ने उन के गांव के प्रधान का पद औरत के लिए रिजर्व कर दिया था. लल्लू को पूरा गांव अपने पक्ष में लग रहा था, इसलिए वह चाह कर भी मना नहीं कर सका और उस ने चंद्रवती को चुनावी मैदान में उतार दिया. चुनाव एकतरफा रहा और चंद्रवती मालिनपुर गांव की प्रधान बन गई.

शुरूशुरू में प्रधान के सारे काम लल्लू ही देखता था, लेकिन किसी कागज पर दस्तखत करने हों या फिर ग्राम प्रधानों की बैठक में जाना हो, तब चंद्रवती का जाना जरूरी हो जाता था. चंद्रवती पढ़ीलिखी थी, अफसरों से बात करना ठीक से जानती थी, ग्राम प्रधान के अपने हकों को भी वह अच्छी तरह समझती थी. धीरेधीरे ग्राम प्रधानी का कामकाज उस के हाथों में आने लगा और लल्लू किनारे लगने लगा. अब चंद्रवती पराए मर्दों से शरमाती न थी. उसे कहीं अकेले जाना पड़ता, तो वह लल्लू की बाट न जोहती थी. किसी को चंद्रवती से मिलना होता, तो वह उस से सीधा मिलता. लल्लू सिर्फ दरबारी बन कर रह गया था, सिंहासन पर चंद्रवती बैठी थी. प्रधानों के संघ में चंद्रवती जितनी खूबसूरत और पढ़ीलिखी कम ही औरतें थीं, इसलिए प्रधान संघ का सचिव पद पाने में वह कामयाब हो गई. चंद्रवती के अरमान अब आसमान छूने लगे थे. वह मर्दों को दुनिया में मुकाम हासिल करने के गुर सीखने लगी. लंगोट के कच्चे मर्द को एक ही मुसकान से कैसे पस्त किया जा सकता है, यह वह अच्छी तरह जान गई थी.अब चंद्रवती हमेशा बड़े नेताओं और अफसरों से मेलजोल बढ़ाने के मौके तलाशने लगी. यह वह सीढ़ी थी, जिस पर चढ़ कर वह अपनी इच्छाओं के आसमान पर पहुंच सकती थी.

एक बार प्रदेश सरकार का मंत्री भूरेलाल जिले के दौरे पर आया, तो उस की पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उस का दौरा मालिनपुर में ही लगा दिया. चंद्रवती अपने दबदबे से मालिनपुर में तरक्की के अनेक काम करवा चुकी थी. जिसे देखने के लिए मंत्री को ग्राम प्रधान से मिलने की इच्छा और बढ़ गई. चंद्रवती ने पहले से ही मंत्री के लिए नाश्ते का इंतजाम घर पर ही कर रखा था. भूरेलाल का स्वागत करने के लिए चंद्रवती सजीधजी दरवाजे पर ही खड़ी थी. वह खूबसूरती के भूखे इन मर्दों को अच्छी तरह से जानती थी. चंद्रवती के रूप को देख कर भूरेलाल की आंखें चौंधिया गईं. चंद्रवती ने बैठक को भी ऐसा सजाया था कि भूरेलाल देखता ही रह गया. जब चंद्रवती भूरेलाल के सामने बैठी, तो वह गांव की तरक्की के काम की बात भूल कर उस की खूबसूरती को देखने में मगन हो गया.

जब चंद्रवती ने अपने सुकोमल हाथों और एक मोहन मुसकान से उसे चाय की प्याली पकड़ाई, तब जा कर भूरेलाल की नींद टूटी. भूरेलाल गांव का दौरा कर के चला तो गया, पर उस का दिल मालिनपुर में ही अटक कर रह गया. शाम को ही मंत्री भूरेलाल ने फोन कर के चंद्रवती को उस की ‘अच्छी चाय’ के लिए धन्यवाद दिया. चंद्रवती जान गई थी कि तीर निशाने पर लगा है. उस ने योजनाएं बनानी शुरू कर दीं कि मंत्री भूरेलाल से क्याक्या काम करवाने हैं और आगे बढ़ने के लिए इस सीढ़ी का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है. अब मालिनपुर गांव में तरक्की का जो भी छोटाबड़ा काम होता, उस का उद्घाटन भूरेलाल के ही हाथों होता. भूरेलाल चंद्रवती को पार्टी के कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए बुलाने लगा. जल्दी ही भूरेलाल ने चंद्रवती की ताजपोशी खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष पद पर करवा दी. फिर तो चंद्रवती को नीली बत्ती की गाड़ी मिल गई.

ओहदा बढ़ते ही चंद्रवती आजाद पंक्षी हो गई. लल्लू पहलवान ने उसे घोंसले में ही कैद रखने के लिए उस के पर कतरने की काफी कोशिश की, लेकिन चंद्रवती के सामने उस की अब बिसात ही क्या थी. एक दिन भूरेलाल ने मौका देख कर कहा, ‘‘चंद्रवतीजी, आप खूबसूरत होने के साथसाथ काबिल भी हो. कोशिश करो, तो विधायक भी बन सकती हो.’’ चंद्रवती ने इतराते हुए कहा, ‘‘मंत्रीजी, ऐसे दिन हमारे कहां?’’ ‘‘हम तुम्हारे साथ हैं न. बस, तुम्हें साथ देने की जरूरत है,’’ भूरेलाल ने आखिरी शब्द चंद्रवती के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा. चंद्रवती मंत्री भूरेलाल के एहसानों से इतना दब चुकी थी कि वह कोई विरोध न कर सकी, सिर्फ अपना हाथ पीछे खींच लिया. भूरेलाल ने सकपकाते हुए कहा, ‘‘चंद्रवती, देखो राजनीति करने के लिए बहुतकुछ कुरबान करना पड़ता है. अब देखो विधायक का टिकट पाना है, तो अनेक नेताओं से मिलना ही पड़ेगा. अब मैं तुम्हें प्रदेश अध्यक्ष से मिलवाना चाहता हूं, उस के लिए तुम्हें लखनऊ तो चलना ही पड़ेगा. घर जा कर सोचना और ‘हां’ और ‘न’ में जवाब देना. वैसे तो तुम समझदार हो ही.’’

चंद्रवती इस ‘हां’ और ‘न’ का मतलब अच्छी तरह समझती थी. घर पहुंचने पर वह कुछ दुविधा में थी. लल्लू से जब उस ने लखनऊ जा कर प्रदेश अध्यक्ष से मिलने की बात कही, तो उस ने कहा, ‘‘चंद्रवती, धीरेधीरे चलो, तुम उड़ रही हो. हम जितना ऊंचे उड़ते हैं, उतना नीचे भी गिरते हैं.’’ लेकिन चंद्रवती को लल्लू की बात समझ में नहीं आई. उसे लगा कि पहलवानी करतेकरते लल्लू का दिमाग भी छोटा हो गया है. विधायक बनना है, तो कुछ कुरबानी तो देनी ही पड़ेगी. चंद्रवती प्रदेश अध्यक्ष से मिलने के लिए लखनऊ जाने की तैयारी करने लगी. बुझे मन से लल्लू भी उस के साथ लखनऊ गया. भूरेलाल ने उन के ठहरने का इंतजाम पहले से ही एक होटल में कर दिया था. अगले दिन भूरेलाल चंद्रवती को लेने होटल गया. चंद्रवती उस के साथ कार में बैठ कर प्रदेश अध्यक्ष से मिलने चली गई. लल्लू को यह बात नागवार गुजरी. प्रदेश अध्यक्ष भी चंद्रवती की खूबसूरती को निहारता रह गया. मंत्री भूरेलाल ने चंद्रवती की तारीफ के पुल बांध दिए. प्रदेश अध्यक्ष ने चंद्रवती को विधायक का टिकट देने के लिए विचार करने का आश्वासन दिया. चंद्रवती को लगा, जैसे उसे विधायकी का टिकट मिल ही गया.

इस के बाद तो चंद्रवती पार्टी के नेताओं और मंत्रियों के घर और दफ्तर के चक्कर काटने में ही मशगूल हो गई. मंत्री भूरेलाल ने उसे बता दिया था कि जितने नेता और मंत्री उस के टिकट की सिफारिश कर देंगे, उस का टिकट उतना ही पक्का. अब चंद्रवती अपना ज्यादा समय लखनऊ में ही बिताने लगी थी. उसे लल्लू की अब कोई चिंता नहीं थी. लल्लू भी इस बात को अच्छी तरह से समझ चुका था कि चिडि़या अब उस के हाथ से निकल चुकी है. भूरेलाल राजनीति का तो मंजा हुआ खिलाड़ी था ही, इश्कमिजाजी का भी वह शौकीन था. वह जानता था कि चंद्रवती उस के जाल में फंस चुकी है. उस ने खादी के विदेशों में प्रचारप्रसार के लिए यूरोपीय देशों का 20 दिन का टूर बनाया और चंद्रवती का नाम भी टूर में जाने वाले लोगों की लिस्ट में शामिल था. लल्लू के विरोध के बावजूद चंद्रवती भूरेलाल के साथ टूर पर गई. चंद्रवती को लगता था कि भूरेलाल ही वह सहारा और सीढ़ी है, जो उसे उस की मंजिल तक पहुंचाएगा. यूरोप के 20 दिन के टूर में चंद्रवती ने अपना सबकुछ भूरेलाल को सौंप दिया. इधर लल्लू इतना दुखी हो चुका था कि चंद्रवती से तलाक लेने के अलावा उसे और कोई रास्ता न सूझता था. उस ने तलाकनामा के लिए वकील से कागजात तैयार करा लिए. चंद्रवती इस के लिए खुशी से तैयार थी. न अब उसे गांव पसंद था और न लल्लू ही. चंद्रवती भूरेलाल के जरीए और मंत्रियों से मिली. अब उस की पौबाहर थी. सुबह से शाम तक न जाने कितने लोग उसे सैल्यूट मारते. एक फोन पर वह मंत्रियों और अफसरों से लोगों के काम करवाती. ऐसा लगता, जैसे चंद्रवती प्रदेश में अलग सरकार चला रही हो.

लेकिन राजनीति में किस का सूरज कब उग जाए और कब डूब जाए, कौन कह सकता है. चंद्रवती की हनक देख कई लोग उस के विरोधी हो गए. वे चंद्रवती को फंसाने की ताक में लग गए. मीडिया भी उस की हनक से हैरान था. एक दिन चंद्रवती और भूरेलाल की जरा सी लापरवाही से उन के अंतरंग संबंधों की तसवीरें विरोधियों के हाथ पड़ गईं. फिर मीडिया तक जाने में इसे कितनी देर लगती. अगले ही दिन 2 काम हो गए. खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष पद से चंद्रवती को बरखास्त कर दिया गया. कहां तो वह विधायक बनने का सपना देख रही थी, प्रदेश अध्यक्ष ने उस की पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ही रद्द कर दी. मंत्रियों, नेताओं और अफसरों ने उस का मोबाइल नंबर तक अपने मोबाइलों से निकाल दिया. भूरेलाल के मंत्री पद पर बन आई, तो उस ने चंद्रवती से अपने संबंधों को विरोधियों की साजिश और मीडिया के गंदे मन की उपज बताया. उस ने सार्वजनिक रूप से ऐलान किया कि वह चंद्रवती को केवल एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में जानता है, उस से ज्यादा उस का चंद्रवती से कोई लेनादेना नहीं है. चंद्रवती ने इतने दिनों में जो बेनामी दौलत कमाई थी, उस से उस ने लखनऊ में एक बंगला तो खरीद ही लिया था. लेकिन राजनीतिक रुतबा खत्म होते ही उस की सारी शानोशौकत पर रोक लग गई. अब उस का दरबार सूना हो चुका था.

जल्दी ही चंद्रवती को अर्श से फर्श पर गिरने का एहसास हो गया. इस बेकद्री और अकेलेपन के चलते वह तनाव की शिकार हो गई. नींद की गोलियां उस का सहारा बनीं. भूरेलाल उस के फोन को उठाता तक न था. तब एक दिन उस से मिलने वह उस के दफ्तर पहुंच गई. अर्दली ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह ‘मैडम’ ही कहता रह गया और वह उस के दफ्तर में पहुंच गई. उस के वहां पहुंचते ही भूरेलाल उस पर बिफर पड़ा, ‘‘तेरी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई?’’ ‘‘भूरेलाल, मैं ने तुझ पर अपना सबकुछ लुटा दिया और अब कहता है कि मेरी यहां आने की हिम्मत

कैसे हुई?’’

‘‘बकवास बंद कर. जो औरत अपने आदमी को छोड़ कर दूसरों के साथ हमबिस्तर हो, वह किसी की नहीं होती.’’ ‘‘और जो मर्द अपनी औरत को छोड़ दूसरी औरतों के साथ गुलछर्रे उड़ाए, वह किस का होता है?’’

‘‘दो कौड़ी की औरत… जबान लड़ाती है… गार्ड, बाहर निकालो इसे.’’ इस से पहले कि गार्ड चंद्रवती को बाहर निकालता, चंद्रवती ने पैर में से चप्पल निकाली और भूरेलाल के सिर पर दे मारी. भूरेलाल के गाल पर इतनी चप्पलें पड़ीं कि उस का चेहरा लाल हो गया. उस का कान और होंठ फट गया. नाक से भी खून बहने लगा. जब तक गार्ड और दूसरे लोग चंद्रवती को रोकते, भूरेलाल की काफी फजीहत हो चुकी थी. भूरेलाल ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की ऐयाशी का नतीजा इतना खतरनाक होगा. मामले को दबाए रखने के लिए पुलिस को कोई सूचना नहीं दी गई. कुछ दिन बाद खबर आई कि चंद्रवती की उस के घर पर ही मौत हो गई. पोस्टमार्टम के लिए लाश भेजी गई, लेकिन उस की मौत में नींद की दवाओं का ज्यादा सेवन करना बताया गया. जब चंद्रवती का दाह संस्कार किया जा रहा था, तब लल्लू को उस की लाश से अरमानों का धुआं उड़ता नजर आ रहा था.

Hindi Story : कोई शरारती फोटोग्राफर हमारी फोटो खींच कर भाग गया

Hindi Story : सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने लवलीन मुनरों को बांहों में भरा और एक जोरदार चुंबन उस के गाल पर जड़ा, फिर अपने होंठ उस के होंठों की तरफ बढ़ाए, तभी एक फ्लैशलाइट चमकी. दोनों ने सकपका कर सामने देखा, तभी दूसरी फ्लैशलाइट चमकी. फिर एक मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने और तेजी से जाने की आवाज.

‘‘क्या हुआ है यह?’’ अपनेआप को सरदार साहब की बांहों से छुड़ाती लवलीन ने पूछा.

‘‘कोई शरारती फोटोग्राफर हमारी फोटो खींच कर भाग गया.’’

‘‘वह क्यों?’’ लवलीन मुनरों, जो स्थानीय विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर कक्षा में पढ़ाती थी और जिस की उम्र मात्र 22 साल थी, ने पूछा.

‘‘ब्लैकमेल करने के लिए. हमारे पास नमूने के तौर पर इन तसवीरों का एक सैट आएगा. फिर हमारे पास फोन आएगा, हम से पैसा मांगा जाएगा. पैसा नहीं देने पर इन तसवीरों को अखबारों में छपवाने व इंटरनैट पर जारी करने की धमकी दी जाएगी,’’ सरदार साहब ने विस्तार से समझाया.

‘‘इस से तो मैं बदनाम हो जाऊंगी,’’ चिंतातुर स्वर में लवलीन ने कहा.

‘‘हौसला रखो, ऐसे शरारती फोटोग्राफर, जिन को पपाराजी कहा जाता है, हर बड़े नगर में होते हैं. मुझे इन से निबटना आता है.’’

दोनों की शाम का मजा खराब हो गया था. दोनों समुद्र तट से सड़क के किनारे खड़ी गाड़ी में बैठे. कार न्यूयार्क की तरफ चल पड़ी.

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी 60 बरस का था लेकिन तंदुरुस्ती के लिहाज से 40 साल का लगता था. वह न्यूयार्क में एक रैस्टोरेंट की शृंखला का मालिक था. वह कभी न्यूयार्क में टैक्सी चलाता था. फिर एक छोटा सा रैस्तरां खोला और धीरेधीरे तरक्की करता अब अनेक रैस्तराओं का मालिक था.

कारोबार अब दोनों बेटे देखने लगे थे. सरदार साहब के पास पैसा और समय काफी था. उस की पत्नी भी उसी की तरह 60 बरस की थी लेकिन वह एक बुढि़या नजर आती थी. वह अपना समय पोतेपोतियों को खिलाने में और घर की अन्य गतिविधियों में शिरकत कर बिताती थी. सरदारनी में यौन इच्छा नहीं रही थी लेकिन सरदार अब भी घोड़े के समान था. अपनी इच्छापूर्ति के लिए  वह कभी किसी कौलगर्ल, कभी किसी अन्य को बुलाता था. एक एजेंट के मारफत उस का संपर्क विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली अनेक श्वेतअश्वेत अमेरिकी छात्राओं से बन गया था. ऐसी बालाएं तफरीह और मौजमस्ती के लिए ऐसे जवां और ठरकी बूढ़ों के मनबहलाव के लिए आ जाती थीं. सरदार साहब शाम को ऐसी किसी लड़की को अपनी कार में ले कर किसी सुनसान समुद्र तट पर पहुंच जाता. समुद्र तट पर छितरे पाम के पेड़ों के पीछे, चट्टानों के पीछे, इधरउधर उन्हीं के समान चूमाचाटी, मौजमस्ती में लीन पड़े जोड़े होते थे.

अधिकांश जोड़े बेमेल होते थे. मर्द 60 साल का होता था जबकि लड़की  20-22 साल की. औरत 60 साल की होती थी, दिल बहलाने वाला छैला 25-30 का. अधिक उम्र वाला धनी होता था. कम उम्र वाला गरीब या मामूली हैसियत का. लवलीन मुनरों को उस के होस्टल के बाहर उतार कर ओंकार सिंह अपने घर, जो एक महल के समान बड़ी कोठी थी, में पहुंचा. वह चिंतातुर था. निकट भविष्य में स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहा था. कई साल स्थानीय निकाय का सदस्य चुना जाता रहा था. अब वह राज्य स्तर पर उभरना  चाहता था. बाद में सीनेटर बन अमेरिका की लोकसभा में जाना चाहता था.

कोई भी स्कैंडल अमेरिका में राजनीति के क्षेत्र में किसी का भविष्य एकदम बिगाड़ देता था. पपाराजी या शरारती फोटोग्राफर द्वारा खींची तसवीरें सार्वजनिक हो जाने पर सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी का राजनीतिक कैरियर एकदम तबाह कर सकती थीं.

डेनियल एक शरारती फोटोग्राफर या पपाराजी था. वह एक श्वेत अमेरिकी और नीग्रो मां की दोगली संतान था. उस का रंगरूप एक भारतीय जैसा था. पहले वह एक फोटोग्राफर के यहां असिस्टैंट था. बाद में उस ने अपना फोटोग्राफी का स्वतंत्र व्यवसाय आरंभ किया था. एक दफा एक कंपनी ने उस को विरोधी कंपनी की जासूसी के लिए कुछ तसवीरें खींचने को नियुक्त किया. तसवीरें कंपनी के डायरैक्टर की उस की प्रेमिका के साथ मौजमेले की थीं.

इस काम के बदले उस को मोटी धनराशि मिली थी. इस के बाद वह अपने साफसुथरे फोटोग्राफी के धंधे की आड़ में एक पपाराजी बन गया था. सुब्बा लक्ष्मी दक्षिण भारत से अमेरिका एक हाउस मेड के तौर पर आई थी. एक ही इलाके में रहते हुए उस की जानपहचान डेनियल से हो गई थी. दोनों में आंखें चार हो गई थीं. वह भी फोटोग्राफी सीख अब डेनियल के साथ फोटोग्राफी करती थी.

दोनों हर शाम कभी मोटरसाइकिल से, कभी कार द्वारा समुद्र तट पर व अन्य प्रेमालाप के लिए उपयुक्त दूसरे एकांत स्थलों पर पहुंच जाते थे. इन स्थलों पर अनेक बेमेल जोड़े प्रेमालाप में लीन होते थे. वे पहले उन की निगाहबानी करते थे. फिर अपना शिकार छांट कर उस जोड़े की अंतरंग तसवीरें इन्फ्रारैड कैमरे, जिन में फ्लैशलाइट की जरूरत नहीं पड़ती थी, से खींचते थे. फिर पार्टी को चौंकाने के लिए फ्लैशलाइट की चमक इधरउधर मारते और भाग जाते थे.

बाद में तसवीरें साधारण डाक से भेज कर फोन करते और ब्लैकमेल के तौर पर छोटीबड़ी रकम मांगते. पार्टी, जो आमतौर पर बूढ़ा धनपति या अमीर बुढि़या होती थी, बदनामी से बचने के लिए उन को चुपचाप पैसा दे देती थी.

‘‘यह सरदार सुना है काफी अमीर है,’’ आज डिजिटल कैमरे से खींची तसवीरों के पिं्रट देखते हैं,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘हां, यह एक रैस्तरां की एक बड़ी शृंखला का मालिक है.’’

‘‘लड़की कौन है?’’

‘‘पता नहीं, मेरा अंदाजा है, कोई स्टूडैंट है. पैसा और मौजमस्ती के लिए लड़कियों का ऐसे बूढ़े या अधेड़ों के साथ मस्ती करना आम बात है.’’

‘‘तसवीरें तो सरदार को ही भेजनी हैं.’’

सरदार ओंकार सिंह ने गहरी नजरों से तसवीरों के सैट को देखा. वह कभी फोटोग्राफी का शौकीन था. टैक्सी चालक रहा था. कई साल अविवाहित रहते इच्छापूर्ति के लिए कौलगर्ल्स या अन्य औरतों से समागम करता रहा था.

लेकिन अब एक सम्मानित शहरी बन जाने पर, खासकर नगरपालिका का मेयर होते हुए और स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिए ऐसी तसवीरों का सार्वजनिक होना शर्मनाक था.

‘‘सरदार साहब, तसवीरें मिलीं आप को?’’ लैंडलाइन फोन पर डेनियल ने फोन कर के पूछा.

‘‘हां, क्या चाहते हो?’’

‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘दिमाग खराब हुआ है. ज्यादा से ज्यादा 500 डौलर.’’

‘‘सरदार साहब, आप की जो हैसियत है उस के लिहाज से 10 लाख डौलर ज्यादा नहीं हैं, ऊपर से आप स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहे हैं,’’ डेनियल के शब्दों में कुटिलता थी.

सरदार तिलमिलाया. यह पपाराजी सामने होता तो वह उस को कच्चा चबा डालता. उस ने फोन के कौलर आइडैंटिटी पर नजर डाली. फोन सार्वजनिक टैलीफोन बूथ से किया जा रहा था. ब्लैकमेलर चालाक था.

‘‘देखो, तुम ज्यादा हवा मत लो. अमेरिका में पपाराजी अपराध है. पुलिस में रिपोर्ट करते ही तुम अंदर हो जाओगे.’’

‘‘यह सब होतेहोते होगा. लेकिन आप की तसवीरें सार्वजनिक होते ही आप का राजनीतिक कैरियर खत्म हो जाएगा. साथ ही, बदनामी भी होगी.’’

‘‘तेरी ऐसी की तैसी, फोटोग्राफर,’’ सरदार फुफकारा.

‘‘ज्यादा गुस्सा सेहत के लिए खतरनाक होता है, खासकर 60 साल की उम्र में.’’ सरदार खामोश रहा.

‘‘सरदार साहब, कल शाम तक आप 1 लाख डौलर दे देना. नहीं तो तसवीरें पहले अखबार वालों को, फिर इंटरनैट पर जारी हो जाएंगी.’’

‘‘इस बात की क्या गारंटी है, तुम भविष्य में तसवीरें सार्वजनिक नहीं करोगे और दोबारा ब्लैकमेल नहीं करोगे?’’

‘‘सरदार साहब, ऐसी सूरत में आप पुलिस को रिपोर्ट कर सकते हैं.’’

‘‘पैसा कहां देना है?’’

‘‘आप फटाफट मुझे अपना मोबाइल फोन नंबर बताओ.’’

सरदार साहब ने नंबर बताया.

‘‘ओके. कल शाम आप जैसे रोज सैरसपाटे के लिए निकलते हैं, निकलेंगे. तब मैं रास्ते में आप को फोन कर के कहीं भी पेमैंट ले लूंगा.’’

अगली शाम सरदार अपनी कार पर समुद्र तट को निकला. डेनियल हैल्मेट पहनेपहने बाइक पर सवार हो पीछेपीछे चला. एक सुनसान स्थान पर फोन आते ही सरदार ने कार रोकी. डेनियल हैल्मेट पहने सामने आया. सरदार ने खिड़की खोल एक लिफाफा उस को थमा दिया.

पहली बार एक लाख डौलर मिले थे. अब से पहले ज्यादा से ज्यादा 5 या 10 हजार डौलर ही मिले थे. डेनियल का हौसला और लालच बढ़ गया.

अभी तक वह समुद्र तट पर चट्टानों के पीछे, यहांवहां पाम के नीचे प्रेमालाप में लीन प्रेमी जोड़ों की तसवीरें खींचता था. अब उस की निगाह समुद्र के बीच खड़े छोटेछोटे समुद्री जहाज, जिन्हें आम भाषा में याट कहा जाता था, पर पड़ी.

ये याट अमीर लोगों के थे जो इन पर समुद्र विहार करते थे. कई याटों पर सुरक्षाकर्मी थे.

‘‘क्यों न आज किसी याट पर चलें?’’ मोटरसाइकिल को एक तरफ खड़ी करते डेनियल ने कहा.

‘‘पागल हुए हो, पकड़े गए तो?’’

‘‘देखेंगे, अमीर लोग छिपछिप कर इन में कैसी रंगरेलियां मनाते हैं.’’

समुद्र तट पर अनेक जगह कटाफटा स्थान था. रेतीले सपाट समुद्र तट के बजाय ऐसा कटाफटा तट किश्तियों को बांधने के लिए उपयुक्त था. इस तट पर कई अमीर लोगों ने निजी पायर यानी सीमेंट के चबूतरे बना कर अपनीअपनी मोटरबोटें या चप्पुओं से चलने वाली नौकाएं बांध रखी थीं.

शाम का अंधेरा गहरा रहा था. एक किश्ती की रस्सी खोल, दोनों उस पर सवार हो, बीच समुद्र में बढ़ चले. कई याटों पर सुरक्षाकर्मी डैक पर टहल रहे थे. एक बड़े लग्जरी याट के डैक पर कोई नहीं था.

एक प्लेटफौर्म समुद्र के पानी से थोड़ा ऊपर था. यह एक खुली लिफ्ट थी. इस पर 4 व्यक्ति एकसाथ ऊपर आजा सकते थे. रस्सियों वाली एक सीढ़ी साथ ही लटक रही थी. दोनों किश्ती को एक हुक से बांध सीढि़यां चढ़ते हुए ऊपर पहुंच गए. डैक सुनसान था. चालक कक्ष भी सुनसान था. डैक से सीढि़यां नीचे जा रही थीं. सारा याट सुनसान जान पड़ता था.

डैक से नीचे के तल पर एक बड़ा हाल था. उस में एक तरफ बार बना था. खुली दराजों में तरहतरह की शराब की बोतलें सजी थीं. कई छोटेछोटे केबिन एक कतार में बने थे. एक केबिन में रोशनी थी.

दरवाजे के ऊपर वाले हिस्से में एक गोलाकार शीशा फिट था. दबेपांव चलते दोनों ने दरवाजे के करीब पहुंच कर शीशे से अंदर झांका. दोनों के मतलब का दृश्य था.

अधेड़ अवस्था का एक पुरुष एक नवयौवना सुंदरी के साथ सर्वथा… अवस्था में मैथुनरत था. डेनियल ने सुब्बा लक्ष्मी की तरफ देखा, वह निर्लिप्त भाव से मुसकराई.

डेनियल ने अपना कैमरा निकाला और दक्षता से तसवीरें खींचने लगा. अभिसारग्रस्त जोड़ा उन्माद उतर जाने के बाद अलगअलग हो, गहरी सांसें भरने लगा.

थोड़ी देर बाद दोनों ने कपड़े पहने और बाहर को लपके. डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी तुरंत बार काउंटर के पीछे जा छिपे. प्रेमी जोड़ा सीढि़यां चढ़ता ऊपर को गया. डेनियल ने शराब की 2 बोतलें उठा कर अपनी जैकेट की जेब में डाल लीं. दोनों दबे पांव चलते सीढि़यां चढ़ते डैक पर पहुंचे.

प्रेमी जोड़ा लिफ्ट पर सवार हो रहा था. डेनियल ने उन की इस मौके की तसवीर भी ले ली. प्रेमी जोड़ा मोटरबोट पर सवार हो तट की तरफ चला. दोनों भी उतर कर किश्ती पर सवार हुए.

‘‘एक चक्कर इस याट के इर्दगिर्द लगाते हैं?’’

‘‘क्यों?’’ सुब्बा लक्ष्मी ने पूछा.

‘‘याट किस का है? यह पता लगाना जरूरी है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘हर किश्ती या छोटेबड़े जहाज पर उस का नाम व रजिस्ट्रेशन नंबर होता है. बिना पंजीकृत हुए कोई मोटरबोट, छोटाबड़ा समुद्री जहाज, स्टीमर कहीं भी समुद्र या नदी में नहीं चल सकता. पंजीकरण दफ्तर से इस याट के मालिक का नाम पता चल जाएगा,’’ डेनियल ने समझाया.

पंजीकरण रिकौर्ड में याट जैक स्मिथ नाम के बड़े व्यापारी के नाम दर्ज था. वह कई फैक्टरियों का मालिक था.

उस की निगहबानी करने से उस को उस की प्रेमिका का नाम भी पता चल गया. वह एक अन्य व्यापारी एंड्र्यू डैक की पत्नी मारलीन डैक थी.

‘‘तसवीरों का सैट किस को भेजना है?’’

‘‘इस मामले में प्रेमीप्रेमिका दोनों ही अमीर हैं. मेरे विचार में एकएक सैट दोनों को भेज देते हैं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘लेकिन पैसा एक ही पार्टी से मिलेगा. 2 किश्तियों की सवारी से नुकसान होता है.’’

‘‘इस में दोनों पक्ष ही पैसे वाले हैं.’’

‘‘ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता. आप इन से कितना पैसा मांगेंगे?’’

‘‘देखते हैं.’’

एंड्र्यू डैक अपनी फैक्टरी के दफ्तर जाने के लिए कार पर सवार हो रहा था कि उस को डाकिया एक लिफाफा थमा गया. लिफाफा उस की पत्नी के नाम था. लिफाफा एक पत्र के बजाय किसी और मैटर से भरा था.

उत्सुकतावश उस ने लिफाफा खोल डाला. मैटर देखते ही वह गंभीर हो उठा और चुपचाप कार में बैठ गया. उस के इशारे पर शोफर ने कार आगे बढ़ा दी.

एंड्र्यू डैक अपनी पत्नी की चरित्रहीनता से वाकिफ था. वह उस को तलाक देना चाहता था लेकिन उस को एकतरफा तलाक देने की कार्यवाही करने पर हरजाने के तौर पर काफी मोटी रकम देनी पड़ती.

बिना हरजाना दिए तलाक लेने के लिए या तो उस की पत्नी भी स्वेच्छा से तलाक लेती या फिर उस को चरित्रहीन साबित करने के लिए उस के खिलाफ कोई सुबूत होता.

उस ने कई महीनों तक एक प्राइवेट जासूसी फर्म से अपनी पत्नी की जासूसी करवाई थी लेकिन मारलीन डैक काफी चालाक थी. वह किसी पकड़ में नहीं आई.

अब संयोग से चरित्रहीनता को साबित करते फोटो उस के पास आ गए थे. एंड्र्यू डैक समझ गया कि यह किसी शरारती फोटोग्राफर यानी पपाराजी का काम था.

अभिसार करने वाले मर्द जैक स्मिथ को पहचानता था. जैक स्मिथ के खिलाफ एक बात यह थी कि वह अपने बूते पर अमीर नहीं बना था. वह घरजमाई था. उस की पत्नी धनी बाप की इकलौती संतान थी. उस ने जैक स्मिथ से प्रेमविवाह किया था.

ऐसी तसवीरें जैक स्मिथ की पत्नी और उस के ससुर के सामने आने पर उस का फौरन तलाक होना निश्चित था. इस तरह एंड्र्यू डैक के हाथ पत्नी और उस के प्रेमी दोनों को अर्श से फर्श पर लाने का सुबूत लग गया था.

वह अनुभवी था. उस को पता था कि बिना फोटो के नैगेटिव और उन को खींचने वाले फोटोग्राफर की गवाही के इन को अदालत में पक्का सुबूत साबित नहीं किया जा सकता था. अदालत में विरोधी पक्ष उन को ट्रिक फोटोग्राफी कह कर खारिज करवा सकता था.

‘‘कौन था यह पपाराजी?’’

जैक स्मिथ अपनी स्टेनो द्वारा लाई डाक देख रहा था. साधारण डाक अब कम आती थी.

‘‘सर, यह लिफाफा साधारण डाक से आया है.’’

किसी व्यावसायिक फोटोग्राफर द्वारा इस्तेमाल करने वाला लिफाफा था. तसवीरें देखते ही वह उछल पड़ा. उस के निजी याट पर इतनी सफाई से तसवीरें खींची गई थीं. उस को और मारलीन डैक को आभास तक न हुआ था.

तसवीरों के सार्वजनिक हो जाने के परिणाम के विचार से चिंतित हो उठा. उस की पत्नी और ससुर उस को बाहर निकाल एकदम सड़क पर खड़ा कर देंगे.

घबरा कर उस ने तुरंत मारलीन डैक को फोन किया.

‘‘क्या कह रहे हो? मैं ने तो हमेशा सावधानी बरती है. किसी जासूस को भी भनक तक नहीं हुई.’’

‘‘यह किसी जासूस का काम नहीं है. यह किसी प्रोफैशनल फोटोग्राफर का काम है, जिस का मकसद ऐसी तसवीरें खींच कर ब्लैकमेल करना होता है. मेरा अंदाजा है कि ऐसा लिफाफा तुम्हारे पास भी आया होगा,’’ जैक स्मिथ ने कहा.

‘‘मुझे तो नहीं मिला या पता नहीं, मेरे हसबैंड को डाकिया थमा गया हो,’’ मारलीन डैक ने चिंतित स्वर में कहा. पति को ऐसी तसवीरों का मिलना, मतलब बिना हरजाना दिए एकदम से तलाक.

‘‘यह शरारती फोटोग्राफर कौन है?’’ उस ने पूछा.

‘‘हौसला रखो, जल्द ही पैसे की मांग के लिए उस का फोन आएगा,’’ जैक स्मिथ ने धैर्य बंधाते हुए कहा जबकि वह खुद घबराया हुआ था.

उधर, सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने जल्दबाजी में ब्लैकमेलर को एक लाख डौलर दे तो दिए थे मगर बाद में उस को खुद पर गुस्सा आ रहा था. वह पाईपाई जोड़ कर अमीर बना था. पैसे की कीमत जानता था.

उस को उम्मीद थी कि पैसा लेने के लिए ब्लैकमेलर सामने आएगा. सारे न्यूयार्क के चप्पेचप्पे से वाकिफ होने के कारण वह हर व्यवसाय के प्रमुख व्यक्तियों को जानता था. शहर में फोटोग्राफर थे कितने? एक दफा ब्लैकमेलर का चेहरा सामने आ जाता, फिर वह पंजीकरण विभाग से उस की फोटो निकलवा उस को काबू कर लेता.

लेकिन डेनियल भी पूरा घाघ था. वह उस के सामने हैल्मेट पहने आया था और पैसे का पैकेट थामते ही ये जा, वो जा.

ओंकार सिंह अपने घनिष्ठ मित्र सरदार वरनाम सिंह, जो कभी उसी के समान टैक्सी चालक था और अब टैक्सियों का भारी बेड़ा रखता था और खुद टैक्सी न चला किराए पर देता था, के पास पहुंचा.

‘‘ओए, खोते दे पुत्तर, इस उम्र में लड़की जवानी दा चक्कर. कुछ तो शर्म कर,’’ सारा मामला जानने के बाद वरनाम सिंह ने उस को झिड़कते हुए कहा.

‘‘यार, तेरी भाभी सहयोग नहीं करती.’’

‘‘इस उम्र में परजाई क्या कर सकती है? तुझे चुम्माचाटी ही करनी थी तो बंद कमरे में करता, खुले समुद्र तट पर क्यों गया था? अब बता क्या चाहता है?’’

‘‘इस फोटोग्राफर को काबू करना है.’’

‘‘वह काबू आ भी जाए तब क्या करेगा. 1 लाख डौलर थमा दिए, अब चुपचाप गम खा ले. मामला सार्वजनिक हो गया तो तेरी बदनामी ही होगी.’’

लेकिन ओंकार सिंह पर इस नेक सलाह का कोई असर नहीं हुआ, वह यह नहीं भूल पा रहा था कि एक शरारती फोटोग्राफर ने इस तरह बदनामी करने की धमकी दे कर उस से 1 लाख डौलर झटक लिए हैं.

वह पुराना खिलाड़ी होते हुए भी मात खा गया था. अब वह हर हालत में उस को काबू करना चाहता था.

इधर, अब जैक स्मिथ के लैंडलाइन पर फोन आया.

‘‘क्या चाहते हो?’’‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘दिमाग खराब हुआ है.’’

‘‘जनाब, आप की माली हैसियत और सामाजिक हैसियत काफी ऊंची है, उस को देखते यह मामूली रकम है.’’

‘‘यों बदमाशी करते किसी की तसवीरें खींचना जुर्म है, पुलिस में रिपोर्ट कर दूं तो सीधे 10 साल के लिए नप जाओगे.’’

‘‘जनाब, ऐसी बातों में कुछ नहीं रखा. आप बताइए, रकम दे रहे हो या नहीं?’’

‘‘इतनी बड़ी रकम, ज्यादा से ज्यादा 10 हजार डौलर.’’

‘‘नहीं जनाब, पूरे 10 लाख डौलर. मैं कल फिर फोन करूंगा,’’ फोन कट गया.

जैक स्मिथ ने कौलर आइडैंटिटी की स्क्रीन पर नजर डाली. फोन किसी सार्वजनिक बूथ से किया गया था. उस ने टैलीफोन डायरैक्ट्री से नंबर खोजा. फोन जिस एरिया से आया था, उस को नोट कर लिया.

जैक स्मिथ के बाद डेनियल ने एंड्र्यू डैक को फोन किया. एंड्र्यू डैक जैसे उस के फोन का इंतजार कर रहा था. मरदाना आवाज सुनते डेनियल चौंका. उसे तो मारलीन डैक से बात करनी थी.

‘‘मुझे मैडम मारलीन डैक से बात करनी है.’’

‘‘मैं उस का पति बोल रहा हूं. तसवीरों का लिफाफा तुम ने ही भेजा था?’’

अब डेनियल उलझन में था. लिफाफा पत्नी के बजाय पति को मिल गया था. अब ब्लैकमेल कैसे करे. तसवीरें पति के सामने आ चुकी थीं. पत्नी अब पैसा किस बात का देगी?

‘‘हैलो, तुम ने ब्लैकमेल करने के इरादे से तसवीरें खींचीं. तुम कितना पैसा चाहते हो?’’ एंड्र्यू डेक के इस सीधे सवाल पर डेनियल सकपका गया. ऐसा सवाल मारलीन डैक करती तो समझ भी आता.

वह खामोश रहा.

‘‘देखो, अगर तुम इन तसवीरों के नैगेटिव और अदालत में गवाही देने को तैयार हो जाओ तो जो पैसा तुम मेरी पत्नी से चाहते हो वह मैं दूंगा.’’

‘‘गवाही, किस बात की गवाही?’’ उलझनभरे स्वर में डेनियल ने पूछा.

‘‘मुझे अपनी पत्नी को तलाक देना है. उस को चरित्रहीन साबित करने के लिए ऐसे फोटोग्राफ खींचने वाली गवाही चाहिए.’’

अब डेनियल को मामला समझ आ गया था. एंड्र्यू डैक काफी अधीर था. साधारण तरीके से तलाक का मुकदमा डालने पर उस को मोटा हरजाना देना पड़ता. लेकिन पत्नी के चरित्रहीन साबित हो जाने पर उस को बिना हरजाना दिए उस से तलाक मिल जाना था.

‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘पागल हुए हो. शरारती फोटोग्राफर को 500 डौलर, ज्यादा से ज्यादा 1 हजार मिल जाते हैं. यह एक अपराध है. मैं तुम्हें ज्यादा से ज्यादा 1 लाख डौलर दे सकता हूं.’’

‘‘ओके. मैं सोच कर तुम्हें दोबारा फोन करूंगा.’’

‘‘अब आप क्या करेंगे?’’ मारलीन डैक ने अपने प्रेमी जैक स्मिथ से पूछा.

‘‘इस पपाराजी का पता लगाऊंगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘अपने तरीके से. एक बार वह काबू में आ जाए.’’

अभी तक डेनियल ने जिन जोड़ों के अश्लील फोटो खींचे थे, वे किसी विशेष स्थिति में थे और खानदानी अमीर नहीं थे..

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी टैक्सी चालक से तरक्की करता अमीर बना था और अब मेयर होते हुए स्टेट काउंसिल का उम्मीदवार था. इसलिए बदनामी से बचना चाहता था. दूसरा जैक स्मिथ मामूली हैसियत का था. वह प्रेमविवाह होने से पत्नी के मायके से मिले धन से बना अमीर था. उस की ऐसी तसवीरें सामने आने से उस का सब चौपट हो सकता था.

डेनियल एक ब्लैकमेलर था. उस का लालच भविष्य में क्या गुल खिला दे, इसलिए सरदार के लिए और जैक स्मिथ के लिए उस को काबू करना जरूरी था. सरदार ओंकार सिंह अपने दोस्त वरनाम सिंह के पास पहुंचा.

‘‘वरनाम सिंह, मुझे एक टैक्सी और चालक की वरदी दे दे.’’

‘‘क्यों, क्या दोबारा टैक्सी चालक का धंधा करना चाहता है?’’

‘‘नहीं, उस शरारती फोटोग्राफर को काबू करना है. वह एक ब्लैकमेलर है, भविष्य में लालच में पड़ कर दोबारा पंगा कर सकता है.’’ वरनाम सिंह ने हरी झंडी दी. टैक्सी चलाता ओंकार सिंह अपने घर पहुंचा.

‘‘अरे, आप ने दोबारा टैक्सी चालक का धंधा शुरू कर दिया?’’ उस की पत्नी ने उस को टैक्सी चालक की वरदी में और टैक्सी को देख कर हैरानी से पूछा.

‘‘नहीं, थोड़ा मनबहलाव के लिए कुछ दिन अपना पुराना धंधा करना चाहता हूं. अमीरी भोगतेभोगते बोर हो चला हूं.’’ पत्नी और बेटीबहुओं ने बुढ़ापे में चढ़ आई सनक समझ कर उस को नजरअंदाज कर दिया. उस शाम ओंकार सिंह अपनी लग्जरी कार में सैर करने नहीं निकला. वह टैक्सी चालक बन टैक्सी चलाता समुद्र तट पर पहुंचा.

वह जानता था ब्लैकमेलर यानी शरारती फोटोग्राफर अपना धंधा करने ‘बीच’ पर जरूर आएगा. उस ने सैकड़ों बार ऐसे फोटोग्राफरों को प्रेमालाप में लीन जोड़ों की गुप्त तसवीरें खींचते देखा था. मगर जब तक उस पर यही शरारत न आ पड़ी, उस ने उन का कोई नोटिस नहीं लिया था. अब ऐसा पंगा पड़ जाने से उस का दिमाग चौकन्ना हो गया था.

जैक स्मिथ मामूली हैसियत का था. मारलीन डेक से प्रेम शुरू होने से पहले वह अपनी पत्नी की तरफ पूरा ध्यान देता था. मगर मारलीन डेक उस की पत्नी की तुलना में युवा थी. दोनों में सिलसिला ठीक चल रहा था कि यह पपाराजी का पंगा पड़ गया. जिस लाइन पर सरदार ओंकार सिंह सोच रहा था उसी पर जैक स्मिथ भी सोच रहा था.

उस ने भी अनेक पपाराजी को इस तरह तसवीरें खींचते देखा था. मगर उस को अंदाजा नहीं था कि कोई उस के याट में घुस कर इस तरह तसवीरें खींचने का दुसाहस कर सकता था. एक बार दुसाहस करने पर ब्लैकमेलिंग का पैसा मिलने पर ब्लैकमेलर दोबारा लालच कर सकता था. इसलिए उस को काबू करना जरूरी था. इस घटना के बाद मारलीन डेक ने उस से मिलनाजुलना बंद कर दिया था.

जैक स्मिथ छोटामोटा धंधा करता था. वह सभी वाहन चलाना जानता था. सामान्य तौर पर अमीर बनने के बाद वह लग्जरी कार में चलता था. काफी समय बाद उस ने साधारण कपड़े पहने. सिर पर नौजवान लड़कों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी और धूप का बड़ा चश्मा पहनने से उस का हुलिया बदल गया था. हैल्मेट पहने वह बाइक पर सवार हुआ और समुद्र तट पर जा पहुंचा.

सरदार ओंकार सिंह टैक्सी एक तरफ खड़ी कर टैक्सी चालक बना एक चट्टान पर बैठा था. उस की मुद्रा ऐसी थी मानो वह समुद्र तट पर सैरसपाटा करने आई अपनी सवारी के लौटने का इंतजार कर रहा हो. जैक स्मिथ ने बाइक एक पाम के पेड़ के समीप खड़ी कर दी. लौक कर के यों समुद्र तट पर टहलने लगा जैसे वह तनहाईपसंद हो और उस को अकेला घूमना पसंद हो.

पपाराजी की शरारत का शिकार हुए दोनों की लाइन एक ही थी. किसी पपाराजी, जो हमेशा अपने शिकार की खोज में रहता था और कभी यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि वह कभी किसी की खोजी निगाहों का शिकार हो सकता है, को शिकार बनाने को ये दोनों तत्पर थे. सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने सतर्क निगाहों से अपने चारों तरफ देखा. विशाल समुद्र तट पर दिखने वालों को अनदेखा किए कई मेल और बेमेल प्रेमी जोड़े खुद में लीन थे और उन की निगहबानी करते दर्जनों शरारती फोटोग्राफर अपना काम बिना फ्लैशलाइट जलाए फोटो खींचने वाले कैमरों से कर रहे थे.

जैक स्मिथ भी अपनी सतर्क निगाहों से यह सब क्रियाकलाप देख रहा था. तभी उस को बीच समुद्र में खड़ी अपनी याट का ध्यान आया. जिस तरह से शरारती फोटोग्राफर चुपचाप अपना काम कर गया था, उसी तरह अगर वह भी एक चोर की तरह अपनी याट पर जाए तो? शाम का अंधेरा गहरे अंधेरे में बदल गया था. समुद्र का नीला पानी अब काले हीरे के समान चमक रहा था. उभरता चांद पानी की चमक को बढ़ा रहा था.

पायर पर बंधी चप्पुओं वाली एक नौका खोल कर उस पर बैठ चप्पू चलाता जैक स्मिथ बीच समुद्र में खड़ी अपनी याट की तरफ बढ़ता गया.

कोई उन की निगहबानी या जासूसी कर सकता था. इस से बेखबर डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी मोटरसाइकिल खड़ी कर समुद्र तट पर टहलने लगे. उन के हावभाव ऐसे थे मानो शाम बिताने आए 2 प्रेमी हों. गले या कंधे पर कैमरा लटकाए घूमने आना आम था. इसलिए यह पता चलना आसान नहीं था कि कौन शौकिया तसवीर खींचने वाला था और कौन शरारती फोटोग्राफर.

एक बारगी सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी को लगा कि उस का इस तरह जासूसी करने आना बेकार है. मगर वह धैर्य रखे था. चुपचाप प्रेमी जोड़ों की तसवीरें खींच रहे पपाराजी में उस की तसवीरें खींचने वाला कौन सा था.

‘‘एक चक्कर बीच समुद्र का लगाएं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘उसी याट का?’’

‘‘उस में अब क्या मिलेगा? वह प्रेमी जोड़ा सावधान हो चुका है. वैसे भी एक जगह चोरी करने के बाद चोर दोबारा वहां चोरी करने नहीं जाता.’’

डेनियल की इस मजाकिया टिप्पणी पर सुब्बा लक्ष्मी खिलखिला कर हंस पड़ी. आज पायर पर कोई चप्पुओं वाली नौका नहीं थी. मोटरबोटों पर ताला लगी जंजीरें लगी थीं. डेनियल आखिर एक चोर ही था. उस ने अपनी जेब से एक ‘मास्टर की’ निकाली. ताला खोला.

मोटरबोट समुद्र में दौड़ पड़ी. जहांतहां छोटेबड़े याट, लग्जरी बोट लंगर डाले खड़े थे. इन में क्याक्या हो रहा था यह इन में प्रवेश करने पर ही पता चल सकता था.

चप्पुओं वाली किश्ती चलाता जैक स्मिथ अपनी याट के समीप पहुंचा. याट पर भ्रमण के दौरान 8-10 आदमियों का स्टाफ होता था. खड़ी अवस्था में 1 या 2 व्यक्ति ही होते थे. आमतौर पर याट एक लवनैस्ट ही था.

अमीर बनने के बाद, जैक स्मिथ को अमीरों की तरह पर-स्त्री से संबंध रखने व कैप्ट या रखैल रखने का शौक लग गया था. थोड़ेथोड़े अंतराल पर वह किसी नई प्रेमिका को यहां ले आता था. यह सिलसिला ठीक चल रहा था. मगर अब एक पपाराजी द्वारा यों लवनैस्ट में प्रवेश कर तसवीरें खींच लेने से यह सिलसिला थम गया था.

उस के याट के समान अन्य याट भी या तो लवनैस्ट थे या फिर अन्य अवैध कामों के लिए मिलनेजुलने के स्थल. शहर में अवैध कामों, खासकर नशीले पदार्थों को बेचने और सप्लाई करने वालों को पुलिस या नशीले पदार्थों को नियंत्रण करने वालों की निगाहों में आने से बचने के लिए बीच समुद्र में खड़े छोटेबड़े याट या लग्जरी याट काफी सुविधाजनक थे.

शाम ढलने के बाद, रात के अंधेरे में छोटेबड़े स्मगलर अपनेअपने ठिकानों पर आ जाते. अधिकांश याट प्रभावशाली अमीरों के थे. इन पर एकदम छापा मारना मुश्किल था. शक की बिना पर किसी प्रभावशाली अमीर के याट पर छापा मारना उलटा पड़ जाता था. लेकिन खुफिया पुलिस और मादक पदार्थ नियंत्रण करने वाला विभाग अपनी निगरानी चुपचाप जारी रखता था. सादे और छद्म वेश में जहांतहां भूमि, समुद्र और समुद्र तट पर तैनात जासूस अपना काम चुपचाप करते थे. वे प्रेमालाप में लीन मेल या बेमेल जोड़ों को और उन की तसवीरें खींच कर भाग जाने का शरारती फोटोग्राफरों को कोई आभास तक न होने देते और उन की निगरानी करने के साथ उन की तसवीरें भी चुपचाप नई तकनीक से कैमरों से खींच लेते थे.

डेनियल समेत अन्य सभी शरारती फोटोग्राफरों का पुराना रिकौर्ड खुफिया विभाग के पास था. और साथ ही बीच पर आने वाले बेमेल प्रेमी जोड़ों का भी लेकिन इस विभाग को नशीले पदार्थों की रोकथाम से काम था. इसलिए न प्रेमी जोड़ों के काम में दखल देता और न ही पपाराजियों के. हां, उन की रोजाना रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय में जरूर पहुंचती थी.

इन दिनों, जैक मारटीनो, जो एक अश्वेत अमेरिकी पुलिस अधिकारी था, इस विभाग का इंचार्ज था. जैक मारटीनो चुस्त अधिकारी था. वह अपनी कुरसी पर बैठा कौफी पी रहा था और साथ ही समुद्र तट पर छद्म वेश में तैनात व समुद्र में गश्त लगा रहे गश्ती दल की रिपोर्ट भी अपने कान पर लगे इयर फोन से सुन रहा था.

‘‘सर, आज समुद्र तट पर स्थानीय निकाय का मेयर सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी टैक्सी चलाता टैक्सी चालक की वरदी पहने आया है. वह एक चट्टान पर बैठा जैसे जासूसी कर रहा है,’’ जासूस ने रिपोर्ट दी.

‘‘वह पहले टैक्सी चालक था. कोई पंगा पड़ गया होगा, इसलिए यह छद्म रूप धारण किए है. आज उस के साथ कोई दिल बहलाने वाली नहीं आई?’’ जैक मारटीनो ने पूछा.

‘‘नहीं सर, कुछ दिन पहले एक पपाराजी इस की तसवीर खींच कर भागा था. उस के बाद इस का प्रेमालाप बंद है.’’

‘‘यह शायद उसी पपाराजी की फिराक में है. यह स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहा है. हो सकता है ब्लैकमेलिंग का चक्कर हो.’’

‘‘सर, वह पपाराजी जोड़ा भी समुद्र तट पर टहल रहा है.’’

‘‘उस पर भी नजर रखो.’’

‘‘सर, इन शरारती फोटोग्राफरों को काबू करने का और्डर क्यों नहीं करवाते.’’

‘‘अरे भाई, इन से ज्यादा कुसूरवार तो ये प्रेमी जोड़े हैं. इन में अधिकांश बूढ़े हैं और शहर की सम्मानित हस्तियां हैं. पपाराजी को पकड़ते ये सब भी उजागर होंगे तब बड़ा स्कैंडल बन जाएगा. हमारा काम तो नशीले पदार्थों की रोकथाम करना है.’’

‘‘ओके, सर.’’

चप्पुओं वाली किश्ती को अपनी याट के समीप रोक जैक स्मिथ ने पहले इधरउधर फिर याट के ऊपर देखा. जब भी वह आता था, मोबाइल फोन से स्टाफ को सूचना देता था. याट पर तैनात सुरक्षाकर्मी या केयरटेकर याट पर लगी लिफ्ट के प्लेटफौर्म को समुद्र के पानी के समतल कर देता था.

मगर आज जैक स्मिथ का इरादा चुपचाप आने का था. वह अपनी और मारलीन डेक की तसवीरें खींची जाने से क्षुब्ध था. किश्ती को एक हुक से बांधा. वह रस्सी वाली सीढ़ी की सीढि़यां चढ़ता ऊपर चला गया.

डेक सुनसान था. चालककक्ष में अंधेरा था. केयरटेकर और सुरक्षाकर्मी शायद नीचे थे. वह दबेपांव चलता नीचे जाने वाली सीढि़यों की तरफ बढ़ा. उस के कानों में अनेक लोगों के हंसनेखिलखिलाने की आवाज आई.

इतने सारे लोग, उस को क्रोध आने लगा. फिर अपने पर नियंत्रण रखता, वह दबेपांव सीढि़यां उतरता प्रथम तल पर पहुंचा. सीढि़यों की तरफ कूड़ाकरकट फेंकने का बड़ा ड्रम रखा था.

दबेपांव चलता वह उस ड्रम के पीछे बैठ गया और चोरनजरों से प्रथम तल के बड़े हाल में झांका. बार के लंबे काउंटर के सामने पड़ी ऊंची कुरसियों पर उस के दोनों मुलाजिम बैठे शराब के घूंट भर रहे थे. अन्य कुरसियों पर 6-7 हब्शी दिखने वाले आदमी बैठे थे. उन के हाथों में भी शराब के गिलास थे.

हाल के केंद्र में रखी मेज पर सफेद पदार्थ से भरी पौलिथीन की थैलियों का ढेर लगा था. वह उन का वार्त्तालाप सुनने लगा :

‘‘इस माल की पेमैंट कब मिलेगी?’’ एक नीग्रो ने पूछा.

‘‘अगली डिलीवरी के साथ,’’ दूसरे ने कहा.

‘‘अगली सप्लाई कब चाहते हो?’’

‘‘4 दिन बाद.’’

‘‘कहां?’’

‘‘इसी याट पर.’’

‘‘नो, नैवर, मैं एक ही जगह दोबारा नहीं आता,’’ सप्लाई करने वाले नीग्रो ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘ठीक है, इस याट को समुद्र में कहीं और ले आएंगे. कहां लाएं?’’

‘‘मैं फोन कर के बता दूंगा.’’

‘‘ओके,’’ फिर अपना गिलास खाली कर सब खड़े हुए. जैक स्मिथ दबेपांव सीढि़यां चढ़ता डेक पर पहुंचा. वह चालक केबिन में घुस कर एक तरफ खड़ा हो गया.

सभी ऊपर आए. लिफ्ट से बारीबारी से सब नीचे गए. सुरक्षाकर्मी और केयरटेकर डेक पर खड़े हो कर बातें करने लगे :

‘‘आज का माल क्या है?’’

‘‘शायद कोकीन है.’’

‘‘कितनी कीमत का है?’’

‘‘पता नहीं. हमें तो हर फेरे के 10 हजार डौलर मिलने हैं.’’

‘‘एक हफ्ते से सेठ नहीं आया?’’

‘‘उस की और उस की ‘वो’ की किसी ने यहां तसवीरें खींच ली थीं. वह सेठ को ब्लैकमेल कर रहा है.’’

‘‘तुम को किस ने बताया?’’

‘‘परसों मैं सेठ के दफ्तर गया था. तभी फोन आया, मैं दरवाजे पर ही था. उस की बात सुन ली थी.’’

‘‘तसवीरें कैसे खींची गईं?’’

‘‘क्या पता? इसे छोड़, बता, अंदर रखा माल कब जाएगा?’’

‘‘सुबह से पहले कभी भी.’’

‘‘अब क्या करें?’’

‘‘बीच पर चलते हैं. यहां किसे आना है.’’

दोनों नीचे उतर कर मोटरबोट में सवार हुए. उन के जाते ही जैक स्मिथ केबिन से बाहर निकला और गंभीर हो, सोचने लगा.

कितनी अजीब स्थिति थी कि अपने ही याट में उस को एक चोर की तरह प्रवेश करना पड़ा था. उस के लवनैस्ट को उस के हरामखोर नौकर नशीले पदार्थों के सौदागरों को एक वितरण स्थल का ट्रांजिट माउंट के रूप में इस्तेमाल करवा धन कमा रहे हैं. अमेरिका में अन्य देशों की भांति नशीले पदार्थों का धंधा एक गंभीर अपराध था. ऐसा करने वालों को 40 साल तक की सजा हो सकती थी. याट में नशीला पदार्थ पकड़े जाने पर जैक स्मिथ कितनी भी सफाई देता, पुलिस उस का कतई ऐतबार न करती कि वह इस धंधे में शामिल नहीं था.

अभी तक वह पपाराजी द्वारा खींची गई तसवीरों से घबराया था. अब यह पंगा, जिस की उसे कल्पना भी नहीं, सामने आ गया था. वह धीमेधीमे सीढि़यां उतरता नीचे हाल में पहुंचा. इधरउधर तलाशी लेने पर उस को एक बैग कोने में मिल गया. बैग ठसाठस सफेद पाउडर जैसे नशीले पदार्थ, जो शायद कोकीन था, से भरा था. तभी उस के दिमाग में कौंधा कि अगर यह माल यहां से गायब हो जाए तब क्या होगा?

उस के हरामखोर नौकरों की अपनेआप शामत आ जाएगी. उस ने सारा हाल भी तलाशा. सारे कमरे तलाशे. याट दोमंजिला था. प्रथम तल के बाद ग्राउंड फ्लोर भी तलाशा. इंजनरूम भी. कहीं कोई और नशीला पदार्थ नहीं था उस ने एअरबैग उठाया और जैसे सीढि़यां चढ़ते आया था वैसे ही उतरता नीचे किश्ती में पहुंच गया. चप्पू चलाता वह पायर पर पहुंचा. उस की किस्मत अच्छी थी. उस पर न किसी मौजमेला करने वाले की नजर पड़ी न खुफिया पुलिस की.

पायर से काफी आगे घनी झाडि़यों का झुरमुट था. उस ने एअर बैग एक झाड़ी में छिपा दिया. फिर सधे कदमों से चलता अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ और शहर की तरफ बढ़ चला. मोटरबोट से काफी देर विचरण करने के बाद डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी समुद्र में जहांतहां खड़े याटों की तरफ देखने लगे.

‘‘हर सुनसान दिखते याट में प्रेमी जोड़ा प्रेमालाप कर रहा हो, यह जरूरी तो नहीं है,’’ मोटरबोट का इंजन बंद कर के उस को समुद्र के पानी पर स्थिर करते सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात ठीक है. पिछली बार ऐडवैंचर से हमें नया नजारा देखने को मिला था. इस बार देखते हैं क्या होता है.’’

‘‘अगर यह ऐडवैंचर हमें उलटा पड़ गया तो?’’

‘‘देखेंगे,’’ फिर उस ने एक बड़े लग्जरी याट की तरफ इशारा किया.

‘‘मोटरबोट का इंजन शोर करता है, इस को किश्ती के समान चलाते हैं,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने एयरजैटसी के लिए रखे चप्पुओं को मोटरबोट के हुक से फिट कर दिया. किश्ती के समान चप्पू खेते वे दोनों सुनसान दिखते याट के समीप पहुंचे.

इस याट पर भी एक लिफ्ट लगी थी. साथ ही रस्सियों वाली सीढ़ी. दोनों डेक पर पहुंचे. डेक सुनसान था. चालक कक्ष में अंधेरा था. दोनों नीचे जाने वाली सीढि़यों की तरफ बढ़े. तभी ऊपर आते भारी कदमों की आवाज सुनाई पड़ी. दोनों लपक कर चालक केबिन के पीछे जा छिपे.

चुस्त वरदी पहने हाथ में छोटीछोटी बंदूकें लिए 2 अश्वेत सुरक्षाकर्मी ऊपर आ गए और डेक के केबिन की रेलिंग के साथ लग कर गपशप मारने लगे.

डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी ने एकदूसरे की तरफ देखा. कहां आ फंसे.

‘‘तुम सो जाओ, मैं 2 घंटे पहरा दूंगा. फिर तुम्हारी बारी,’’ एक ने दूसरे से कहा.

‘‘तुम भी सो जाओ. यहां कौन आता है.’’

दोनों, डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी, डेक पर बिछी लकड़ी की बैंचों पर लेट कर सोने की तैयारी करने लगे.

‘‘नीचे उतर कर वापस चलो,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘एक नजर नीचे मार आते हैं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘पंगा मत लो, मेरा कहना मानो,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने समझाया.

लेकिन डेनियल नहीं माना. विवश हो सुब्बा लक्ष्मी भी उस के पीछेपीछे सीढि़यां उतरती गई.

एक बड़े हाल में कुछ लोग, जिन में श्वेतअश्वेत दोनों थे, मेजों के गिर्द कुरसियों पर बैठे जुआ खेल रहे थे. एक बारबेक्यू एक तरफ बना था. उस पर मांस की बोटियां ग्रिल की जा रही थीं.

दोनों उस फ्लोर से उतर कर नीचे वाले फ्लोर पर पहुंचे. एक बड़े कमरे में कुछ लोग सफेद पाउडर को छोटेछोटे पाउचों में भर रहे थे. यहां नशीले पदार्थों का धंधा हो रहा था.

डेनियल ने सधे हाथों से उन के फोटो लिए. तभी ऊपर कुछ हल्लागुल्ला हुआ. डेक पर लेटे सुरक्षाकर्मी नीचे दौड़े आए. जुआ खेल रहे आपस में लड़ पड़े थे.

‘‘यहां हमारे मतलब का क्या है?’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा. दोनों सीढि़यां चढ़ डेक पर आ गए. तभी सुरक्षाकर्मी भी ऊपर चढ़ आए. दोनों फिर चालक केबिन के पीछे चले गए.

जैक स्मिथ समुद्र तट से शहर को जाते एक सार्वजनिक टैलीफोन बूथ पर रुका. 10 सेंट का एक सिक्का कौइन बौक्स में डाला. डायरैक्टरी देख कर नशीले पदार्थों की रोकथाम करने वाले विभाग का नंबर डायल किया. झाड़ी में छिपाए बैग के बारे में बताया. गुमनाम रहते याटों पर चल रहे नशीले पदार्थों के धंधे के बारे में बताया.

जैक मारटीन ने तुरंत गश्ती दल को फोन किया. बैग बरामद हो गया. एक के बाद एक याट पर धावा बोला गया. अनेक पर यौनाचार हो रहा था. नशीले पदार्थ पकड़े गए. डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी को बच निकलने का मौका नहीं मिला. उन का धंधा

भी सामने आ गया. सरदार ओंकार सिंह ने पुलिस को पैसा खिला कर अपनी तसवीरें दबा दीं. ऐसा ही जैक स्मिथ ने किया. साथ ही दोनों ने इस तरह के मौजमेलों से तौबा की. एंड्र्यू डेक ने भारी हरजाना दे पत्नी को तलाक दे दिया. थोड़े दिन डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी को हिरासत में रहना पड़ा. लेकिन चूंकि उन की वजह से नशीले पदार्थों का धंधा सामने आया था, इसलिए पुलिस ने उन को चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

दोनों थोड़े दिन शांत रहे, फिर इस निश्चय के साथ कि बड़ी मछली के चक्कर में न पड़ छोटामोटा शिकार ही पकड़ेंगे, दोनों का पपाराजी का धंधा फिर से चल पड़ा. बूढ़े, अधेड़ अपने मनबहलाव के लिए आते रहे, उन की तसवीरें खिंचती रहीं, ब्लैकमेलिंग का पैसा अदा होता रहा.

Love Story : दो रिश्तों में बंटकर मेरे पास नहीं आना

Love Story : ‘‘पहली नजर से जीवनभर जुड़ने के नातों पर विश्वास है तुम्हें?’’ सूखे पत्तों को पैरों के नीचे कुचलते हुए रवि ने पूछा.

कड़ककड़क कर पत्तों का टूटना देर तक विचित्र सा लगता रहा गायत्री को. बड़ीबड़ी नीली आंखें उठा कर उस ने भावी पति को देखा, ‘‘क्या तुम्हें विश्वास है?’’

गायत्री ने सोचा, उस के प्रेम में आकंठ डूब चुका युवा प्रेमी कहेगा, ‘है क्यों नहीं, तभी तो संसार की इतनी लंबीचौड़ी भीड़ में बस तुम मिलते ही इतनी अच्छी लगीं कि तुम्हारे बिना जीवन की कल्पना ही शून्य हो गई.’ चेहरे पर गुलाबी रंगत लिए वह कितना कुछ सोचती रही उत्तर की प्रतीक्षा में, परंतु जवाब न मिला.तनिक चौंकी गायत्री, चुप रवि असामान्य सा लगा उसे. सारी चुहलबाजी कहीं खो सी गई थी जैसे. हमेशा मस्त बना रहने वाला ऐसा चिंतित सा लगने लगा मानो पूरे संसार की पीड़ा उसी के मन में आ समाई हो.

उसे अपलक निहारने लगा. एकबारगी तो गायत्री शरमा गई. मन था, जो बारबार वही शब्द सुनना चाह रहा था. सोचने लगी, ‘इतनी मीठीमीठी बातों के लिए क्या रवि का तनाव उपयुक्त है? कहीं कुछ और बात तो नहीं?’ वह जानती थी रवि अपनी मां से बेहद प्यार करता है. उसी के शब्दों में, ‘उस की मां ही आज तक उस का आदर्श और सब से घनिष्ठ मित्र रही हैं. उस के उजले चरित्र के निर्माण की एकएक सीढ़ी में उस की मां का साथ रहा है.’एकाएक उस का हाथ पकड़ लिया गायत्री ने रोक कर वहीं बैठने का आग्रह किया. फिर बोली, ‘‘क्या मां अभी तक वापस नहीं आईं जो मुझ से ऐसा प्रश्न पूछ रहे हो? क्या बात है?’’

रवि उस का कहना मान वहीं सूखी घास पर बैठ गया. ऐसा लगा मानो अभी रो पड़ेगा. अपनी मां के वियोग में वह अकसर इसी तरह अवश हो जाया करता है, वह इस सत्य से अपरिचित नहीं थी.

‘‘क्या मां वापस नहीं आईं?’’ उस ने फिर पूछा.

रवि चुप रहा.‘‘कब तक मां की गोद से ही चिपके रहोगे? अच्छीखासी नौकरी करने लगे हो. कल को किसी और शहर में स्थानांतरण हो गया तब क्या करोगे? क्या मां को भी साथसाथ घसीटते फिरोगे? तुम्हारे छोटे भाईबहन दोनों की जिम्मेदारी है उन पर. तुम क्या चाहते हो, पूरी की पूरी मां बस तुम्हारी ही हों? तुम्हारे पिता और उन दोनों का भी तो अधिकार है उन पर. रवि, क्या हो गया है तुम्हें?’’

‘‘ऐसा लगता है, मेरा कुछ खो गया है. जी ही नहीं लगता गायत्री.  पता नहीं, मन में क्याक्या होता रहता है.’’

‘‘तो जा कर मां को ले आओ न. उन्हें भी तो पता है, तुम उन के बिना बीमार हो जाते हो. इतने दिन फिर वे क्यों रुक गईं?’’ अनायास हंस पड़ी गायत्री. धीरे से रवि का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाने लगी, ‘‘शादी के बाद क्या करोगे? तब मेरे हिस्से का प्यार क्या मुझे मिल पाएगा? अगर मुझे ही तुम्हारी मां से जलन होने लगी तो? हर चीज की एक सीमा होती है. अधिक मीठा भी कड़वा लगने लगता है, पता है तुम्हें?’’

रवि गायत्री की बड़ीबड़ी नीली आंखों को एकटक निहारने लगा.

‘‘मां तो वे तुम्हारी हैं ही, उन से तुम्हारा स्नेह भी स्वाभाविक ही है लेकिन वक्त के साथसाथ उस स्नेह में परिपक्वता आनी चाहिए. बच्चों की तरह मां का आंचल अभी तक पकड़े रहना अच्छा नहीं लगता. अपनेआप को बदलो.’’

‘‘मैं अब चलूं?’’ एकाएक वह उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘कल मिलोगी न?’’

‘‘आज की तरह गरदन लटकाए ही मिलना है तो रहने दो. जब सचमुच मिलना चाहो, तभी मिलना वरना इस तरह मिलने का क्या अर्थ?’’ एकाएक गायत्री खीज उठी. वह कड़वा कुछ भी कहना तो नहीं चाहती थी पर व्याकुल प्रेमी की जगह उसे व्याकुल पुत्र तो नहीं चाहिए था न. हर नाते, हर रिश्ते की अपनीअपनी सीमा, अपनीअपनी मांग होती है.

‘‘नाराज क्यों हो रही हो, गायत्री? मेरी परेशानी तुम क्या समझो, अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊं?’’

‘‘क्या समझाना है मुझे, जरा बताओ? मेरी तो समझ से भी बाहर है तुम्हारा यह बचपना. सुनो, अब तभी मिलना जब मां आ जाएं. इस तरह 2 हिस्सों में बंट कर मेरे पास मत आना.’’गायत्री ने विदा ले ली. वह सोचने लगी, ‘रवि कैसा विचित्र सा हो गया है कुछ ही दिनों में. कहां उस से मिलने को हर पल व्याकुल रहता था. उस की आंखों में खो सा जाता था.’   भविष्य के सलोने सपनों में खोए भावी पति की जगह एक नादान बालक को वह कैसे सह सकती थी भला. उस की खीज और आक्रोश स्वाभाविक ही था. 2 दिन वह जानबूझ कर रवि से बचती रही. बारबार उस का फोन आता पर किसी न किसी तरह टालती रही. चाहती थी, इतना व्याकुल हो जाए कि स्वयं उस के घर चल कर आ जाए. तीसरे दिन सुबहसुबह द्वार पर रवि की मां को देख कर गायत्री हैरान रह गई. पूरा परिवार समधिन की आवभगत में जुट गया.

‘‘तुम से अकेले में कुछ बात करनी है,’’ उस के कमरे में आ कर धीरे से मां बोलीं तो कुछ संशय सा हुआ गायत्री को.

‘‘इतने दिन से रवि घर ही नहीं आया बेटी. मैं कल रात लौटी तो पता चला. क्या वह तुम से मिला था?’’ ‘‘जी?’’ वह अवाक् रह गई, ‘‘2 दिन पहले मिले थे. तब उदास थे आप की वजह से.’’

‘‘मेरी वजह से उसे क्या उदासी थी? अगर उसे पता चल गया कि मैं उस की सौतेली मां हूं तो इस में मेरा क्या कुसूर है. लेकिन इस से क्या फर्क पड़ता है?

‘‘वह मेरा बच्चा है. इस में संशय कैसा? मैं ने उसे अपने बच्चों से बढ़ कर समझा है. मैं उस की मां नहीं तो क्या हुआ, पाला तो मां बन कर है न?’’ ऐसा लगा, जैसे बहुत विशाल भवन भरभरा कर गिर गया हो. न जाने मां कितना कुछ कहती रहीं और रोती रहीं, सारी कथा गायत्री ने समझ ली. कांच की तरह सारी कहानी कानों में चुभने लगी. इस का मतलब है कि इसी वजह से परेशान था रवि और वह कुछ और ही समझ कर भाषणबाजी करती रही.

‘‘उसे समझा कर घर ले आ, बेटी. सूना घर उस के बिना काटने को दौड़ता है मुझे. उसे समझाना,’’ मां आंसू पोंछते हुए बोलीं.

‘‘जी,’’ रो पड़ी गायत्री स्वयं भी, सोचने लगी, कहां खोजेगी उसे अब? बेचारा बारबार बुलाता रहा. शायद इस सत्य की पीड़ा को उसे सुना कर कम करना चाहता होगा और वह अपनी ही जिद में उसे अनसुना करती रही.

मां आगे बोलीं, ‘‘मैं ने उसे जन्म नहीं दिया तो क्या मैं उस की मां नहीं हूं? 2 महीने का था तब, रातों को जागजाग कर उसे सुलाती रही हूं. कम मेहनत तो नहीं की. अब क्या वह घर ही छोड़ देगा? मैं इतनी बुरी हो गई?’’

‘‘वे आप से बहुत प्यार करते हैं मांजी. उन्हें यह बताया ही किस ने? क्या जरूरत थी यह सच कहने की?’’

‘‘पुरानी तसवीरें सामने पड़ गईं बेटी. पिता के साथ अपनी मां की तसवीरें दिखीं तो उस ने पिता से पूछ लिया, ‘आप के साथ यह औरत कौन है?’ वे बात संभाल नहीं पाए, झट से बोल पड़े, ‘तुम्हारी मां हैं.’

‘‘बहुत रोया तब. ये बता रहे थे. बारबार यही कहता रहा, ‘आप ने बताया क्यों? यही कह देते कि आप की पहली पत्नी थी. यह क्यों कहा कि मेरी मां भी थी.’

‘‘अब जो हो गया सो हो गया बेटी, इस तरह घर क्यों छोड़ दिया उस ने? जरा सोचो, पूछो उस से?’’

किसी तरह भावी सास को विदा तो कर दिया गायत्री ने परंतु मन में भीतर कहीं दूर तक अपराधबोध सालने लगा, कैसी पागल है वह और स्वार्थी भी, जो अपना प्रेमी तलाशती रही उस इंसान में जो अपना विश्वास टूट जाने पर उस के पास आया था.उसे महसूस हो रहा होगा कि उस की मां कहीं खो गई है. तभी तो पहली नजर से जीवनभर जुड़ने के नातों में विश्वास का विषय शुरू किया होगा. कुछ राहत चाही होगी उस से और उस ने उलटा जलीकटी सुना कर भेज दिया. मातापिता और दोनों छोटे भाई समीप सिमट आए. चंद शब्दों में गायत्री ने उन्हें सारी कहानी सुना दी.

‘‘तो इस में घर छोड़ देने वाली क्या बात है? अभी फोन आएगा तो उसे घर ही बुला लेना. हम सब मिल कर समझाएंगे उसे. यही तो दोष है आज की पीढ़ी में. जोश से काम लेंगे और होश का पता ही नहीं,’’ पिताजी गायत्री को समझाने लगे.

फिर आगे बोले, ‘‘कैसा कठोर है यह लड़का. अरे, जब मां ही बन कर पाला है तो नाराजगी कैसी? उसे भूखाप्यासा नहीं रखा न. उसे पढ़ायालिखाया है, अपने बच्चों जैसा ही प्यार दिया है. और देखो न, कैसे उसे ढूंढ़ती हुई यहां भी चली आईं. अरे भई, अपनी मां क्या करती है, यही सब न. अब और क्या करें वे बेचारी?

‘‘यह तो सरासर नाइंसाफी है रवि की. अरे भई, उस के कार्यालय का फोन नंबर है क्या? उस से बात करनी होगी,’’ पिता दफ्तर जाने तक बड़बड़ाते रहे.

छोटा भाई कालेज जाने से पहले धीरे से पूछने लगा, ‘‘क्या मैं रवि भैया के दफ्तर से होता जाऊं? रास्ते में ही तो पड़ता है. उन को घर आने को कह दूंगा.’’

गायत्री की चुप का भाई ने पता नहीं क्या अर्थ लिया होगा, वह दोपहर तक सोचती रही. क्या कहती वह भाई से? इतना आसान होगा क्या अब रवि को मनाना. कितनी बार तो वह उस से मिलने के लिए फोन करता रहा था और वह फोन पटकती रही थी. शाम को पता चला रवि इतने दिनों से अपने कार्यालय भी नहीं गया.

‘क्या हो गया उसे?’ गायत्री का सर्वांग कांप उठा.

मां और पिताजी भी रवि के घर चले गए पूरा हालचाल जानने. भावी दामाद गायब था, चिंता स्वाभाविक थी. बाद में भाई बोला, ‘‘वे अपने किसी दोस्त के पास रहते हैं आजकल, यहीं पास ही गांधीनगर में. तुम कहो तो पता करूं. मैं ने पहले बताया नहीं. मुझे शक है, तुम उन से नाराज हो. अगर तुम उन्हें पसंद नहीं करतीं तो मैं क्यों ढूंढ़ने जाऊं. मैं ने तुम्हें कई बार फोन पटकते देखा है.’’

‘‘ऐसा नहीं है, अजय,’’ हठात निकल गया होंठों से, ‘‘तुम उन्हें घर ले आओ, जाओ.’’

बहन के शब्दों पर भाई हैरान रह गया. फिर हंस पड़ा, ‘‘3-4 दिन से मैं तुम्हारा फोन पटकना देख रहा हूं. वह सब क्या था? अब उन की इतनी चिंता क्यों होने लगी? पहले समझाओ मुझे. देखो गायत्री, मैं तुम्हें समझौता नहीं करने दूंगा. ऐसा क्या था जिस वजह से तुम दोनों में अबोला हो गया?’’

‘‘नहीं अजय, उन में कोई दोष नहीं है.’’

‘‘तो फिर वह सब?’’

‘‘वह सब मेरी ही भूल थी. मुझे ही ऐसा नहीं करना चाहिए था. तुम पता कर के उन्हें घर ले आओ,’’ रो पड़ी गायत्री भाई के सामने अनुनयविनय करते हुए.

‘‘मगर बात क्या हुई थी, यह तो बताओ?’’

‘‘मैं ने कहा न, कुछ भी बात नहीं थी.’’ अजय भौचक्का रह गया.

‘‘अच्छा, तो मैं पता कर के आता हूं,’’ बहन को उस ने बहला दिया.

मगर लौटा खाली हाथ ही क्योंकि उसे रवि वहां भी नहीं मिला था. बोला, ‘‘पता चला कि सुबह ही वहां से चले गए रवि भैया. उन के पिता उन्हें आ कर साथ ले गए.’’

‘‘अच्छा,’’ गायत्री को तनिक संतोष हो गया.

‘‘उन की मां की तबीयत अच्छी नहीं थी, इसीलिए चले गए. पता चला, वे अस्पताल में हैं.’’चुप रही गायत्री. मां और पिताजी का इंतजार करने लगी. घर में इतनी आजादी और आधुनिकता नहीं थी कि खुल कर भावी पति के विषय में बातें करती रहे. और छोटे भाई से तो कदापि नहीं. जानती थी, भाई उस की परेशानी से अवगत होगा और सचमुच वह बारबार उस से कह भी रहा था, ‘‘उन के घर फोन कर के देखूं? तुम्हारी सास का हालचाल…’’

‘‘रहने दो. अभी मां आएंगी तो पता चल जाएगा.’’

‘‘तुम भी तो रवि भैया के विषय में पूछ लो न.’’

भाई ने छेड़ा या गंभीरता से कहा, वह समझ नहीं पाई. चुपचाप उठ कर अपने कमरे में चली गई. काफी रात गए मां और पिताजी घर लौटे. उस समय कुछ बात न हुई. परंतु सुबहसुबह मां ने जगा दिया, ‘‘कल रात ही रवि की माताजी को घर लाए, इसीलिए देर हो गई. उन की तबीयत बहुत खराब हो गई थी. खानापीना सब छोड़ रखा था उन्होंने. रवि मां के सामने आ ही नहीं रहा था. पता नहीं क्या हो गया इस लड़के को. बड़ी मुश्किल से सामने आया.‘‘क्या बताऊं, कैसे बुत बना टुकुरटुकुर देखता रहा. मां को घर तो ले गया है, परंतु कुछ बात नहीं करता. तुम्हें बुलाया है उस की मां ने. आज अजय के साथ चली जाना.’’

‘‘मैं?’’ हैरान रह गई गायत्री.

‘‘कोई बात नहीं. शादी से पहले पति के घर जाने का रिवाज हमारी बिरादरी में नहीं है, पर अब क्या किया जाए. उस घर का सुखदुख अब इस घर का भी तो है न.’’

गायत्री ने गरदन झुका ली. कालेज जाते हुए भाई उसे उस की ससुराल छोड़ता गया. पहली बार ससुराल की चौखट पर पैर रखा. ससुर सामने पड़ गए. बड़े स्नेह से भीतर ले गए. फिर ननद और देवर ने घेर लिया. रवि की मां तो उस के गले से लग जोरजोर से रोने लगीं. ‘‘बेटी, मैं सोचती थी मैं ने अपना परिवार एक गांठ में बांध कर रखा है. रवि को सगी मां से भी ज्यादा प्यार दिया है. मैं कभी सौतेली नहीं बनी. अब वह क्यों सौतेला हो गया? तुम पूछ कर बताओ. क्या पता तुम से बात करे. हम सब के साथ वह बात नहीं करता. मैं ने उस का क्या बिगाड़ दिया जो मेरे पास नहीं आता. उस से पूछ कर बताओ गायत्री.’’ विचित्र सी व्यथा उभरी हुई थी पूरे परिवार के चेहरे पर. जरा सा सच ऐसी पीड़ादायक अवस्था में ले आएगा, किस ने सोचा होगा.

‘‘भैया अपने कमरे में हैं, भाभी. आइए,’’ ननद ने पुकारा. फिर दौड़ कर कुछ फल ले आई, ‘‘ये उन्हें खिला देना, वे भूखे हैं.’’

गायत्री की आंखें भर आईं. जिस परिवार की जिम्मेदारी शादी के बाद संभालनी थी, उस ने समय से पूर्व ही उसे पुकार लिया था. कमरे का द्वार खोला तो हैरान रह गई. अस्तव्यस्त, बढ़ी दाढ़ी में कैसा लग रहा था रवि. आंखें मींचे चुपचाप पड़ा था. ऐसा प्रतीत हुआ मानो महीनों से बीमार हो. क्या कहे वह उस से? कैसे बात शुरू करे? नाराज हो कर उस का भी अपमान कर दिया तो क्या होगा? बड़ी मुश्किल से समीप बैठी और माथे पर हाथ रखा, ‘‘रवि.’’

आंखें सुर्ख हो गई थीं रवि की. गायत्री ने सोचा, क्या रोता रहता है अकेले में? मां ने कहा था वह पत्थर सा हो गया है.

‘‘रवि यह, यह क्या हो गया है तुम्हें?’’ अपनी भूल का आभास था उसे. बलात होंठों से निकल गया, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझे तुम्हारी बात सुननी चाहिए थी. मुझ से ऐसा क्या हो गया, यह नहीं होना चाहिए था,’’ सहसा स्वर घुट गया गायत्री का. वह रवि, जिस ने कभी उस का हाथ भी नहीं पकड़ा था, अचानक उस की गोद में सिर छिपा कर जोरजोर से रोने लगा. उसे दोनों बांहों में कस के बांध लिया. उसे इस व्यवहार की आशा कहां थी. पुरुष भी कभी इस तरह रोते हैं. गायत्री को बलिष्ठ बांहों का अधिकार निष्प्राण करने लगा. यह क्या हो गया रवि को? स्वयं को छुड़ाए भी तो कैसे? बालक के समान रोता ही जा रहा था.

‘‘रवि, रवि, बस…’’ हिम्मत कर के उस का चेहरा सामने किया.

‘‘ऐसा लगता है मैं अनाथ हो गया हूं. मेरी मां मर गई हैं गायत्री, मेरी मां मर गई हैं. उन के बिना कैसे जिंदा रहूं, कहां जाऊं, बताओ?’’

उस के शब्द सुन कर गायत्री भी रो पड़ी. स्वयं को छुड़ा नहीं पाई बल्कि धीरे से अपने हाथों से उस का चेहरा थपथपा दिया.

‘‘ऐसा लगता है, आज तक जितना जिया सब झूठ था. किसी ने मेरी छाती में से दिल ही खींच लिया है.’’

‘‘ऐसा मत सोचो, रवि. तुम्हारी मां जिंदा हैं. वे बीमार हैं. तुम कुछ नहीं खाते तो उन्होंने भी खानापीना छोड़ रखा है. उन के पास क्यों नहीं जाते? उन में तो तुम्हारे प्राण अटके हैं न? फिर क्यों उन्हें इस तरह सता रहे हो?’’

‘‘वे मेरी मां नहीं हैं, पिताजी ने बताया.’’

‘‘बताया, तो क्या जुर्म हो गया? एक सच बता देने से सारा जीवन मिथ्या कैसे हो गया?’’

‘‘क्या?’’ रवि टुकुरटुकुर उस का मुंह देखने लगा. क्षणभर को हाथों का दबाव गायत्री के शरीर पर कम हो गया.

‘‘वे मुझ बिन मां के बच्चे पर दया करती रहीं, अपने बचों के मुंह से छीन मुझे खिलाती रहीं, इतने साल मेरी परछाईं बनी रहीं. क्यों? दयावश ही न. वे मेरी सौतेली मां हैं.’’

‘‘दया इतने वर्षों तक नहीं निभाई जाती रवि, 2-4 दिन उन के साथ रहे हो क्या, जो ऐसा सोच रहे हो? वे बहुत प्यार करती हैं तुम से. अपने बच्चों से बढ़ कर हमेशा तुम्हें प्यार करती रहीं. क्या उस का मोल इस तरह सौतेला शब्द कह कर चुकाओगे? कैसे इंसान हो तुम?’’ एकाएक उसे परे हटा दिया गायत्री ने. बोली, ‘‘उन्हें सौतेला जान जो पीड़ा पहुंची थी, उस का इलाज उन्हीं की गोद में है रवि, जिन्होंने तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया. मेरी गोद में नहीं जिस से तुम्हारी जानपहचान कुछ ही महीनों की है. तुम अपनी मां के नहीं हो पाए तो मेरे क्या होगे, कैसे निभाओगे मेरे साथ?’’

लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया रवि ने, ‘‘मैं अपनी मां का नहीं हूं, तुम ने यह कैसे सोच लिया?’’

‘‘तो उन से बात क्यों नहीं करते? क्यों इतना रुला रहे हो उन्हें?’’

‘‘हिम्मत नहीं होती. उन्हें या भाईबहन को देखते ही कानों में सौतेला शब्द गूंजने लगता है. ऐसा लगता है मैं दया का पात्र हूं.’’

‘‘दया के पात्र तो वे सब बने पड़े हैं तुम्हारी वजह से. मन से यह वहम निकालो और मां के पास चलो. आओ मेरे साथ.’’

‘‘न,’’ रवि ने गरदन हिला दी इनकार में, ‘‘मां के पास नहीं जाऊंगा. मां के पास तो कभी नहीं…’’

‘‘इस की वजह क्या है, मुझे समझाओ? क्यों नहीं जाओगे उन के पास? क्या महसूस होता है उन के पास जाने से?’’ एकाएक स्वयं ही उस की बांह सहला दी गायत्री ने. निरीह, असहाय बालक सा वह अवरुद्ध कंठ और डबडबाए नेत्रों से उसे निहारने लगा.

‘‘तुम्हें 2 महीने का छोड़ा था तुम्हारी मां ने. उस के बाद इन्होंने ही पाला है न. तुम तो इन्हें अपना सर्वस्व मानते रहे हो. तुम ही कहते थे न, तुम्हारी मां जैसी मां किसी की भी नहीं हैं. जब वह सच सामने आ ही गया तो उस से मुंह छिपाने का क्या अर्थ? वर्तमान को भूत में क्यों मिला रहे हो? ‘‘अब तुम्हारा कर्तव्य शुरू होता है रवि, उन्हें अपनी सेवा से अभिभूत करना होगा. कल उन्होंने तुम्हें तनमन से चाहा, आज तुम चाहो. जब तुम निसहाय थे, उन्होंने तुम्हें गोद में ले लिया था. आज तुम यह प्रमाणित करो कि सौतेला शब्द गाली नहीं है. यह सदा गाली जैसा नहीं होता. बीमार मां को अपना सहारा दो रवि. सच को उस के स्वाभाविक रूप में स्वीकार करना सीखो, उस से मुंह मत छिपाओ.’’

‘‘मां मुझे इतना अधिक क्यों चाहती रहीं, गायत्री? मेरे मन में सदा यही भाव जागता रहा कि वे सिर्फ मेरी हैं. छोटे भाईबहन को भी उन के समीप नहीं फटकने दिया. मां ने कभी विरोध नहीं किया, ऐसा क्यों, गायत्री? कभी तो मुझे परे धकेलतीं, कभी तो कहतीं कुछ,’’ रवि फिर भावुक होने लगा.

‘‘हो सकता है वे स्वाभाविक रूप में ही तुम्हें ज्यादा स्नेह देती रही हों. तुम सदा से शांत रहने वाले इंसान रहे हो. उद्दंड होते तो जरूर डांटतीं किंतु बिना वजह तुम्हें परे क्यों धकेल देतीं.’’

‘‘गायत्री, मैं इतना बड़ा सच सह नहीं पा रहा हूं. मैं सोच भी नहीं सकता. ऐ लगता है, पैरों के नीचे से जमीन ही सरक गई हो.’’

‘‘क्या हो गया है तुम्हें, इतने कमजोर क्यों होते जा रहे हो?’’कुछ ऐसी स्थिति चली आई. शायद उस का यही इलाज भी था. स्नेह से गायत्री ने स्वयं ही अपने समीप खींच लिया रवि को. कोमल बाहुपाश में बांध लिया.भर्राए स्वर में गिला भी किया रवि ने, यही सब सुनाने तुम्हारे पास भी तो गया था. सोचा था, तुम से अच्छी कोई और मित्र कहां होगी, तुम ने सुना नहीं. मैं कितने दिन इधरउधर भटकता रहा. मैं कहां जाऊं, कुछ समझ नहीं पाता?’’

‘‘मां के पास चलो, आओ मेरे साथ. मैं जानती हूं, उन्हीं के पास जाने को छटपटा रहे हो. चलो, उठो.’’

रवि चुप रहा. भावी पत्नी की आंखों में कुछ ढूंढ़ने लगा.

गायत्री तनिक गुस्से से बोली, ‘‘जीवन में बहुतकुछ सहना पड़ता है. यह जरा सा सच नहीं सह पा रहे तो बड़ेबड़े सच कैसे सहोगे? आओ, मेरे साथ चलो?’’ रवि खामोशी से उसे घूरता रहा.

‘‘देखो, आज तुम्हारी मां इतनी मजबूर हो गई हैं कि मेरे सामने हाथ जोड़े हैं उन्होंने. तुम्हें समझाने के लिए मुझे बुला भेजा है. तुम तो जानते हो, हम लोगों में शादी से पहले एकदूसरे के घर नहीं जाते. परंतु मुझे बुलाया है उन्होंने, तुम्हें समझाने के लिए. अपनी मां का और मेरा मान रखना होगा तुम्हें. मेरे साथ अपनी मां और भाईबहन से मिलना होगा और बड़ा भाई बन कर उन से बात करनी होगी. उठो रवि, चलो, चलो न.’’ अपने अस्तित्व में समाए बालक समान सुबकते भावी पति को कितनी देर सहलाती रही गायत्री. आंचल से कई बार चेहरा भी पोंछा.

रवि उधेड़बुन में था, बोला, ‘‘मां मेरे पास क्यों नहीं आतीं, क्यों नहीं मुझे बुलातीं?’’

‘‘वे तुम्हारी मां हैं. तुम उन के बेटे हो. वे क्यों आएं तुम्हारे पास. तुम स्वयं ही रूठे हो, स्वयं ही मानना होगा तुम्हें.’’

‘‘पिताजी मां को मेरे कमरे में नहीं आने देना चाहते, मुझे पता है. मैं ने उन्हें मां को रोकते सुना है.’’

‘‘ठीक ही तो कर रहे हैं. उन की भी पत्नी के मानसम्मान का प्रश्न है. तुम उन के बच्चे हो तो बच्चे ही क्यों नहीं बनते. क्या यह जरूरी है कि सदा तुम ही अपना अधिकार प्रमाणित करते रहो? क्या उन्हें हक नहीं है?’’

बड़ी मुश्किल से गायत्री ने उसे अपने शरीर से अलग किया. प्रथम स्पर्श की मधुर अनुभूतियां एक अलग ही वातावरण और उलझे हुए वार्त्तालाप की भेंट चढ़ चुकी थीं. ऐसा लगा ही नहीं कि पहली बार उसे छुआ है. साधिकार उस का मस्तक चूम लिया गायत्री ने. गायत्री पर पूरी तरह आश्रित हो वह धीरे से उठा, ‘‘तुम भी साथ चलोगी न?’’

‘‘हां,’’ वह तनिक मुसकरा दी.

फिर उस का हाथ पकड़ सचमुच वह बीमार मां के समीप चला आया. अस्वस्थ और कमजोर मां को बांहों में बांध जोरजोर से रोने लगा.

‘‘मैं ने तुम से कितनी बार कहा है, तुम मुझे छोड़ कर कहीं मत जाया करो,’’ उसे गोद में ले कर चूमते हुए मां रोने लगीं. छोटी बहन और भाई शायद इस नई कहानी से पूरी तरह टूट से गए थे. परंतु अब फिर जुड़ गए थे. बडे़ भाई ने मां पर सदा से ही ज्यादा अधिकार रखा था, इस की उन्हें आदत थी. अब सभी प्रसन्न दिखाई दे रहे थे.

‘‘तुम कहीं खो सी गई थीं, मां. कहां चली गई थीं, बोलो?’’

पुत्र के प्रश्न पर मां धीरे से समझाने लगीं, ‘‘देखो रवि, सामने गायत्री खड़ी है, क्या सोचेगी? अब तुम बड़े हो गए हो.’’

‘‘तुम्हारे लिए भी बड़ा हो गया हूं क्या?’’

‘‘नहीं रे,’’ स्नेह से मां उस का माथा चूमने लगीं.

‘‘आजा बेटी, मेरे पास आजा,’’ मां ने गायत्री को पास बुलाया और स्नेह से गले लगा लिया. छोटा बेटा और बेटी भी मां की गोद में सिमट आए. पिताजी चश्मा उतार कर आंखें पोंछने लगे.गायत्री बारीबारी से सब का मुंह देखने लगी. वह सोच रही थी, ‘क्या शादी के बाद वह इस मां के स्नेह के प्रति कभी उदासीन हो पाएगी? क्या पति का स्नेह बंटते देख ईर्ष्या का भाव मन में लाएगी? शायद नहीं, कभी नहीं.’

Hindi Kavita : जीवन के मायने

Hindi Kavita : हर सुबह एक नया सबक लेकर आती है,
ज़िन्दगी के रहस्यो को खोलती है।
कभी गमगीन तो कभी खुशी के पल ले आती है,
कभी बिना मांगे ही मुरादों के पूरे होने की बरसात दे जाती है।

सफ़ेद और काले रंग के बीच में भेद बता जाती है,
अपने ही जीवन के कितने रंग दिखा जाती है।
कभी गहरे सोच के समुद्र में ले आती है,
कभी नदी के किनारे पर खड़ा कर जाती है, जहाँ जीवन की धारा बहती है।

एक ही जीवन में कितने पाठ पढ़ा जाती है,
अपने ही जीवन के रहस्यों में से वक्त-बेवक्त कुछ न कुछ सिखा जाती है।
यह जीवन की किताब कुछ एक आदमी को ही मिल पाती है,
जो इसके रहस्यो को समझने की कोशिश करता है।

लेखिका : Anupana Arya

Hindi Poem : आज-कल फोन कम, कान ज्यादा बजते हैं

Hindi Poem : आज-कल फोन कम, कान ज्यादा बजते हैं
लगता जैसे बार-बार हमें पुकारा जा रहा हो
लेकिन ये महज भ्रम मात्र होता,
छोटी से छोटी बात पर हमें आवाज देने वाले
निकल पड़े है, भविष्य सवारने
जैसे हम निकले थे…!

मैं करछी तेज-तेज चलाने लगती हूँ
समझने की कोशिश करती हूं,
मनस्थिति अपनी…!
दिमाग समझदार ठहरा, सब समझता है
पर कान..? कान नहीं समझता
वह बजता रहता, मौका-मौका

उकताहट होती है, दिन भर में कई-कई बार
जानती हूँ, ये वक्त नहीं है, फोन के बजने का
फिर भी कभी भी कुछ भी हो सकता है,,
फोन को हमेशा पास रखने लगी हूँ
कि अब कुछ नहीं तो बच्चों के व्हाट्सएप की
डीपी देखकर ही खुश होती रहती,,,
सोशल मीडिया के नये नये एप्प डाउनलोड कर रखी है
कि वहां से देख सकूँ
अपने बच्चों के पोस्ट,,,

कह नहीं पाती के अब मन नहीं लगता
किसी कविता कहानी में
कि अब मेरी जिंदगी रोशन हो रही है
दूर किसी शहर में,,
सब अच्छा है…सुंदर है….खुश है….
पर मैं ठीक नहीं हूं….
यह सच है,,,,,पर इसे गणित की तरह
हेन्स प्रूफ नहीं होने दूंगी….

मन कसमसा के कहता
सब अच्छा तो मैं भी अच्छी
और शायद फिर फोन बजने
जैसा लगने लगता
दौड़ कर फोन लपकती हूँ
शायद बच्चों का कॉल है.

लेखिका : प्रतिभा

Social Media : डिजिटल अरेस्ट से भी बदतर है सोशल मीडिया का एडिक्शन

Social Media : यह कतई हैरानी की बात नहीं होगी अगर कल को नशा मुक्ति केंद्रों की तर्ज पर गलीगली सोशल मीडिया मुक्ति केंद्र खुले दिखाई दें. ऐसे `विशेषज्ञ` भी पैदा हो सकते हैं जो घंटों में शर्तिया सोशल मीडिया की लत से हमेशा के लिए छुटकारा दिलाने का दावा इश्तिहारों के जरिये करते दिखाई दें. जानकर हैरत होती है कि बेंगलुरु स्थित निम्हान्स यानी नैशनल इंस्टीटयूट फोर मेंटल हैल्थ में सोशल मीडिया एडिक्शन वार्ड संचालित होने लगा है.

देश में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों की तादाद इस साल बढ़ कर कोई 115 करोड़ हो जाने का सरकारी अनुमान इस लिहाज से चिंता की बात है कि इन में से अधिकतर स्मार्ट फोन का उपयोग करेंगे. जिस का इस्तेमाल आजकल बात करने के कम सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल करने के काम में ज्यादा लिया जाता है. यह बिलकुल शराब, सिगरेट, तम्बाकू, अफीम और गांजे सरीखी लत है. जिस की चपेट में परिवार के परिवार घोषित तौर पर हैं.

परिवारों की बदहाली का आलम तो यह है कि सदस्यों को एक दूसरे के नम्बर भी याद नहीं. बिना फोन बुक खोले 2 – 4 के अलावा कोई किसी को काल नहीं लगा सकता. एक तरह से याददाश्त पर लकवा है जिस की गिरफ्त में वे लोग भी आ गए हैं जिन्हें कुछ साल पहले ही दर्जनों नम्बर रटे रहते थे. उस से भी पहले लेंड लाइन फोन के युग में तो औपरेटर के नम्बर प्लीज कहते ही झट से सैकड़ों नम्बर में से वांछित नम्बर बता दिया करते थे. फोन नम्बर ही क्यों अब तो लोगों को अपने विभिन्न तरह के पास वर्ड भी याद नहीं रहते जिन में केप्चा लगाना अनिवार्य सा हो गया है. इसलिए पास वर्ड डालने में जरा सी भी देरी हो तो एक मैसेज फ्लेश होने लगता है ‘फोरगेट पासवर्ड’?

प्रिंट की यह खूबी है कि उस का प्रभाव लम्बे समय तक रहता है जबकि स्क्रीन के पढ़े की मियाद अल्पकालिक होती है. इस पर एक बार पढ़ा या देखा हुआ कोई दोबारा ढूंढना चाहे तो वह स्ट्रेस का शिकार हो जाता है और अपनेआप पर झल्लाता है. सोशल मीडिया के भूसे में सुई ढूंढना कोई आसान बात नहीं है.

इस नशे की एक खूबी यह भी है कि इस की खुमारी जिसे हेंगओवर भी कहा जा सकता है चौबीसों घंटे दिल दिमाग पर छाई रहती है. ऐसे लोगों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है जो सुबह उठ कर पेट हल्का करने टौयलेट का रुख बाद में करते हैं पहले फोन खोल कर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफौर्म चेक करते हैं मानो कोई ट्रेन छूट रही हो. कुछ से तो इतना भी सब्र नहीं होता कि जितनी देर टौयलेट में रहें कम से कम उतनी देर तो स्मार्ट फोन को चैन की सांस ले लेने दें.

आंकड़ों की जुबानी देखें तो दुनिया भर में कोई 65 फीसदी लोग वाशरूम में मोबाइल फोन ले कर जाते हैं. यह खुलासा वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर ने अपने एक सर्वे में किया है. इन में भी ज्यादातर युवा शामिल हैं. इलैक्ट्रौनिक्स ट्रेड-इन वेबसाइट बैंक माय सैल के मुताबिक अमेरिका में तो 90 फीसदी लोग टौयलेट में स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते हैं. तमाम डाक्टरों के मुताबिक ऐसे लोग बबासीर नामक तकलीफदेह बीमारी को न्योता दे रहे होते हैं. क्योंकि ये लोग फ्रेश होने यानी मल त्याग करने में 15 मिनिट से ज्यादा का वक्त लेते हैं जबकि यह 5 – 7 मिनट में हो जाता है.

ज्यादा देर टौयलेट शीट पर बैठने से मलद्वार यानी एनस पर दबाब बढ़ता है जिस से पाइल्स बाहर निकलने लगते हैं. पाचन संबंधी समस्याएं भी पैदा होती हैं और संक्रमण का खतरा भी बढ़ता है क्योंकि मोबाइल फोन में टौयलेट शीट के मुकाबले दस गुना ज्यादा बैक्टीरिया पाए जाते हैं. अमेरिका की एरिजोना यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में यह तथ्य बताया गया है.

इस लत पर बना एक जोक आएदिन वायरल भी होता रहता है. एक मुसाफिर ने स्टेशन पर उतरते सहयात्री से कहा यह व्हाट्सऐप वाकई में हमें आगे ले जा रहा है. सहयात्री के पूछने पर कि कैसे, तो वह बोला अब मुझे ही देख लीजिए 2 स्टेशन आगे आ गया हूं. लेकिन हकीकत में लोग आगे नहीं बढ़ रहे हैं बल्कि जिंदगी और दुनिया की रेस में पीछे खिसकते जा रहे हैं. आगे वे लोग बढ़ रहे हैं जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल ज्ञान व जानकारी बढ़ाने के लिए कर रहे हैं पर इन की तादाद 10 फीसदी भी नहीं है.

यह निश्चित ही पहला वैज्ञानिक अविष्कार है जिस का दुरूपयोग दुनिया भर में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. बंदर के हाथ में उस्तरा वाली कहावत सोशल मीडिया के नशैड़ियों पर पूरी तरह लागू होती है. खुद का नुकसान तो ये नशेड़ी करते ही हैं लेकिन साथ ही परिवार का समाज का और देश का भी कम नुकसान नहीं करते. कैसेकैसे करते हैं यह मीडिया इफरात से बताता रहता है. इस लत के लक्षण और छुटकारा पाने कि टिप्स से पत्र पत्रिकाएं और वेबसाइट्स भरी पड़ी हैं. यह सब बेअसर साबित हो रहा है. हैरत तो इस बात की भी है कि खुद इस के लती इस के नुकसान जानते हैं और ईमानदारी से मान भी लेते हैं कि क्या करें… अब पड़ गई आदत तो पड़ गई.

ईमानदारी से अपनी इस लत को स्वीकारने वाले यह भी स्वीकारते हैं कि अब लिखने की प्रेक्टिस तो रही ही नहीं मुद्दत से किसी को चिट्ठी पत्री नहीं लिखी. लोगों की भाषा का तो सत्यानाश हो ही चुका है साथ ही वे व्याकरण की संज्ञा सर्वनाम जैसे शुरुआती पाठ भी नहीं जानतेसमझते. 40 साल या उस से ज्यादा की उम्र के लोगों में गनीमत है भाषा की समझ है लेकिन उस की अहमियत अब नहीं रही. स्कूलों के हाल तो कहना क्या. भोपाल के एक प्राइवेट स्कूल में हिंदी की शिक्षिका सपना शुक्ला बताती हैं कि छोटेछोटे बच्चे अपनी भाषा न ढंग से बोल पाते और न ही लिख पाते. वजह घरों का माहौल है जहां भाषा में भी शौर्टकट चलने लगा है.

सपना के मुताबिक हिंदी की जितनी दुर्दशा पिछले 20 सालों में हुई है उतनी पहले कभी नहीं हुई होगी. बच्चे आवेदन पत्र और निबंध में भी अंगरेजी का इस्तेमाल कर रहे हैं. पर वह कचरा इंग्लिश है जिसे आप न हिंदी कह सकते न ही अंगरेजी कह सकते. हिंदी शिक्षिका होने के नाते मेरे लिए यह चिंता के साथ साथ तनाव का भी विषय बच्चों के भविष्य के मद्देनजर है कि इन का व्यक्तित्व ही दोहरापन लिए विकसित हो रहा है जिस में आत्मविश्वास नाम की चीज ही नहीं चिंता की बड़ी बात यह भी है कि बच्चे अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाते. अच्छी हिंदी के लिए मैं बच्चों को और उन के अभिभावकों को चम्पक पढ़ने की सलाह देती हूं जो बचपन में मैं ने भी पढ़ी है और मम्मी और सासु मां ने भी पढ़ी है.

सोशल मीडिया दरअसल में वन वे ट्रैफिक की तरह है जिस में इस लत के शिकार लोग सिर्फ पोस्ट ग्रहण करते हैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाते क्योंकि वे कमअक्ल होते हैं उन के पास कोई तर्क विचार या राय भी नहीं होती. लोचा यह है कि जो लोग, संगठन या राजनैतिक दल किसी खास मकसद से पोस्ट बना कर उसे पोस्ट करते हैं उन्हें फोरवर्ड कर खुद को अक्लमंद समझने वाले लालबुझक्कड़ों की तादाद कम नहीं.

विचारधारा के पैमाने पर देखें तो इन में दक्षिणपंथियों की तादाद वामपंथियों या तटस्थ यूजर्स से लगभग 10 गुनी है. यही वे लोग हैं जिन्होंने आसमान सर पर उठा रखा है. इन का खाना बगैर अपनी विचारधारा का प्रचार किए नहीं पचता. यही वे लोग हैं जो सुबह उठ कर कुल्ला ब्रश बाद में करते हैं पहले स्मार्ट फोन में पासवर्ड डालते हैं.

इन नासमझ फुरसतियों में से 90 फीसदी को भी नहीं मालूम रहता कि वे किस के इशारो पर नाच रहे हैं . यही लोग विकट के धर्मांध और अंधविश्वासी भी होते हैं जब तक ये सौ पचास लोगों को दिन के हिसाब से शंकर, राम, कृष्ण या हनुमान की फोटो नहीं भेज देते इन के पेट में मरोड़ तब तक उठती ही रहती है. इस रोग का कोई इलाज नहीं है. इन मरीजों का नोटिफिकेशन हमेशा अलर्ट मोड पर रहता है.

दिक्कत तो यह है कि इन्हें हतोत्साहित करने वाला कोई नहीं बल्कि प्रोत्साहित करने वालों की कमी नहीं. इन्हीं में से एक थे आजतक के एंकर सुधीर चौधरी जो अपनी स्टोरी, शो या रिपोर्ट कुछ भी कह लें बनाते ही सोशल मीडिया कंटेंट्स से चुराकर थे. उन का ब्लैक एंड व्हाइट नाम का शो फ्लौप इसीलिए जा रहा था कि उस में कोई नवीनता या विविधता नहीं थी. टीआरपी गिरते देख आजतक के कर्ताधर्ताओं ने फुर्ती दिखाते उन से यह शो छीन कर अंजना ओम कश्यप नाम की एंकर को थमा दिया. यह और बात है कि वे भी भाजपाई और संघी एजेंडों से खुद को पूरी तरह मुक्त नहीं रख पा रही हैं.

सोशल मीडिया के लती लोगों को यह ज्ञान दे दिया गया है कि जो जागरूकता दिख रही है वह सोशल मीडिया की मेहरबानी है. इस से पहले हम इतिहास जानते ही नहीं थे जिस से कांग्रेसी पाप उजागर नहीं हो पाते थे. मसलन यह कि अकबर महान था राणाप्रताप नहीं क्योंकि यह इतिहास वामपंथियों ने लिखा. सच भी है कि दक्षिणपंथियों ने तो कभी इतिहास लिखा ही नहीं उन्हें तो इस की तमीज ही नहीं थी. उन्हें आज भी पूजापाठ से ही फुर्सत नहीं मिलती जो उन की रोजीरोटी का बड़ा जरिया हमेशा से रहा है. अब नए सिरे से इतिहास गढ़ा जा रहा है जिस में सब जायज है

कोई भी धार्मिक या एतिहासिक विवाद होता है तो भक्त लोग आयातित ज्ञान को प्रवाहित करने लगते हैं. ताजा चर्चित उदहारण वक्फ का लें तो ये कहते हैं कि देखो मुसलमानों ने देश भर की जमीनों पर बेजा कब्जा कर रखा है. नेहरु ने वक्फ बोर्ड को शह इसलिए दी कि भारत को मुसलिम राष्ट्र बनाया जा सके. देश हम सनातनियों का है और उन्हीं का रहेगा. देखते जाओ मोदीजी अभी कैसेकैसे कांग्रेसी और वामपंथी कचरा साफ करते हैं. असली हिंदू हो तो इस पोस्ट को कम से कम इतने या उतने लोगों और ग्रुपों में भेजो.

यहां मकसद वक्फ के पचड़े में न पड़ कर यह जताना है कि ऐसे मसलों जिन से किसी को कुछ मिलता जाता नहीं उन के बारे में यह बताना है कि लत कैसे और क्यों पड़ती है. ये चूंकि तर्क नहीं हैं जूनून है इसलिए इन का जवाब देते कांग्रेसियों से देते नहीं बनता. एवज में वे यह बताने बैठ जाते हैं कि मोदीजी कैसेकैसे देश का नुकसान कर रहे हैं. उन का मकसद सिर्फ मुसलमानों को परेशान करना है. इस के बाद दलितों का नम्बर लगेगा. यह `स्क्रीन वार` थमता नहीं है जवाब में भाजपाई अपने दलित प्रेम के किस्सेकहानियां गिनाने लगते हैं. शबरी के बेर वाला प्रसंग इन का प्रमुख हथियार होता है.

इन से इतर भी यह रोग कुछ अलग ढंग से फैला है किसी को पोर्न फिल्मों की लत पड़ चुकी है तो कोई रील बनाने की बीमारी की गिरफ्त में आ चुका है. अपनी रील को वायरल करने के लिए ये तथाकथित क्रिएटर किसी भी हद तक जा सकते हैं. फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लड़कियां कूल्हे स्तन और नितम्ब तरहतरह से मटका कर लाइक्स और व्यूज इकट्ठा कर रही हैं. जाहिर है इन का कोई भविष्य नहीं है क्योंकि ये अपने वर्तमान से खिलवाड़ कर उसे बरबाद कर रही हैं.

इस जनून का एक बेहतर उदाहरण राजस्थान के जोधपुर का है जहां मीम्स और रील्स से तंग आ कर ठेले पर भंगार का कारोबार करने वाले रामप्रताप जो भंगार वाले बाबा के नाम से मशहूर हो गए थे. उन्होंने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी. यह मामला दिलचस्प भी है और चिंतनीय भी जो यह बताता है कि सोशल मीडिया के एडिक्ट लोग किस कदर क्रूर और संवेदनहींन होते जा रहे हैं. जब यह बाबा उस पर वीडियो बनाने वालों से परेशान हो कर सरेआम फांसी लगा रहा था तब भी लोग उस के वीडियो ही बना रहे थे जिस से ज्यादा लाइक्स और व्यूज मिलें

सोशल मीडिया को टू वे की तरह इस्तेमाल करने वाले जहां जरूरत हो प्रतिक्रिया भी देते हैं और गलत बात पर एतराज भी जताते हैं. क्योंकि ये किसी के गुलाम नहीं होते और न ही इन का कोई दृश्य अदृश्य बौस होता. ये वाकई में रियल क्रिएटर होते हैं जो सृजन करते हैं तुक की बात करते हैं. क्रिएटर विध्वंसक भी होते हैं जिन्हें मालूम होता है कि उन की बनाई पोस्ट करोड़ों लोगों तक पहुंचेगी. मूर्खो की फ़ौज स्क्रौल करने, टैग और फोरवर्ड करने मंदिर के सामने बैठे भिखारियों की तरह तैयार बैठी है. यह तबका पोस्ट या क्रिएशन के सच झूठ या तथ्यों की जांच नहीं करता. कई बार तो पूरी तरह से पढ़ता भी नहीं, इन्हें देख भेड़ों की ही याद आती है या फिर उस कुए की जिस में भंग पड़ी हो.

इन्हें लताड़ने वाला तो कोई नहीं लेकिन उकसाने और हांकने वाले कम नहीं जिन का एक खास मकसद होता है पर इन का नहीं होता ठीक वैसे ही जैसे दंगाई भीड़ का नहीं होता. यह उन्मादी भीड़ हिंसा और तोड़फोड़ करती है तो सोशल मीडिया वाली भीड़ जानेअनजाने में दंगों का माहौल बनाती है. दोनों ही गुनाह कर रहे हैं लेकिन अपने घरों में बैठे फुरसतियों यानी नशैलों का कुछ नहीं बिगड़ता.

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