सुबह बाहर के पौधों में पानी देने और घास पर बिखरे पत्तों को उठाने के रोज के नियम के बाद मैं ने अखबार उठा कर सुर्खियां पढ़नी शुरू की ही थीं कि ‘छनाक...’ बरतन गिरने की आवाज सुन मैं चौंक पड़ी,
यह क्या?
‘‘रोजरोज तुम्हारे ताने सुनतेसुनते मैं पागल हो जाऊंगा...’’ मैं असमंजस में पड़ गई, अखबार पढ़ूं या पड़ोस का यह संवाद...परंतु पड़ोस का संवाद सुनने के अलावा कोई चारा न था, आवाज बहुत तेज जो थी. अखबार पढ़ना संभव न था.
पड़ोस से आती यह आवाज मेरे लिए नई नहीं थी. 6 महीने पहले आए मेरे किराएदार नवविवाहित तो नहीं पर मुश्किल से 4 वर्ष हुए थे शादी को, ढाई वर्ष का बेटा. पतिपत्नी दोनों नौकरी करते थे. जिस दिन बच्चे को संभालने वाली आया छुट्टी मारती, वह भी बिना बताए तो यह कार्यक्रम शुरू हो जाता था.
‘‘म...म्मी, आप रोओ मत,’’ कहता हुआ मोनू उन का बेटा, खुद भी सुबक रहा था.
‘‘कैसे न रोऊं, बेटा...’’ रीना रोतेरोते कह रही थी.
‘‘कह तो रहा हूं, ऐसे ताने सुनतेसुनते तंग आ गया हूं,’’ रोहित भी चिल्ला कर बोला, ‘‘ऐसा ही है तो पीछा छोड़ो, तुम भी खुश मैं भी खुश.’’
आगे क्या होगा, मुझे पता था क्योंकि यह सीरियल थोड़ेबहुत परिवर्तन के साथ हर 10-15 दिन में दोहराया जाता था. अब रोतेरोते रीना अपनी मां को फोन करेगी, वे 2 लंच बौक्स ले कर तुरंत आएंगी. उन्हें देख कर रोहित तेजी से अपनी कार ले कर निकल जाएगा, लंच बौक्स भी छोड़ जाएगा. रीना अपनी मां के गले लग कर थोड़ी सांत्वना पा कर स्कूल के लिए भागेगी और मां पूरे दिन मोनू की रखवाली कर शाम को वापस जाएंगी.
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