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Crime Story: आदित्य मर्डर केस, 5 साल की जद्दोजहद के बाद

केस फिरोजाबाद शहर के बड़े व्यापारी अतुल मित्तल के एकलौते बेटे आदित्य मित्तल के अपहरण के बाद हत्या का था. हाईप्रोफाइल मामला होने के कारण कोर्ट परिसर और आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. आरोपियों को न्यायालय में कड़ी सुरक्षा के बीच लाया गया था. फैसले को ले कर कोर्टरूम पत्रकारों, वकीलों व अन्य लोगों से भरा हुआ था. लेकिन जब कोर्ट की काररवाई शुरू हुई तो कोरोना के कारण अंदर आरोपी एवं पीडि़त पक्ष के वकीलों सहित कुछ अन्य वकील ही मौजूद रहे.

आने वाले फैसले पर उद्योग जगत की भी निगाहें लगीं थीं. कई उद्यमी दोपहर में फैसला आने से पहले कोर्टरूम के बाहर आ कर खड़े हो गए थे. आरोपियों के परिवार की महिलाएं भी वहां थीं.सभी को फैसले का बड़ी बेसब्री से इंतजार था. निर्धारित समय पर अदालत के विशेष जज आजाद सिंह कोर्टरूम में आ कर अपनी कुरसी पर बैठे तो वहां मौजूद सभी लोगों की नजरें उन पर जम गईं.

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आगे बढ़ने से पहले आइए हम इस चर्चित कांड को याद कर लें. यह अपहरण और हत्याकांड इतना दिल दहलाने वाला था कि इस की गूंज प्रदेश भर में सुनाई दी थी. इस घटना ने प्रदेश के कारोबारियों को स्तब्ध कर दिया था.

सुहागनगरी के नाम से प्रसिद्ध फिरोजाबाद शहर के चूड़ी कारोबारी अतुल मित्तल का 24 वर्षीय बेटा आदित्य मित्तल 22 अगस्त, 2016 को सुबह साढ़े 8 बजे हमेशा की तरह अपने घर शांति भवन से कार से थाना टूंडला क्षेत्र स्थित आर्चिड ग्रीन जिम के लिए निकला था. जिम के बाद आदित्य अपनी फैक्ट्री चला जाता था. लेकिन उस दिन जब वह फैक्ट्री नहीं पहुंचा, तब घर वालों को चिंता हुई.

.आदित्य ने बेंगलुरु की क्राइस्ट यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद सन 2014 में फिरोजाबाद वापस आ कर संभाला था. वह अपने पिता के साथ ओम ग्लास का कामकाज संभाले हुए थाआदित्य का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. कई घंटे तक जब आदित्य लौट कर नहीं आया, तब घर वालों ने उस की खोजबीन शुरू की. इस बीच आदित्य के ताऊ प्रदीप मित्तल के मोबाइल पर एक मैसेज आया. इस में लिखा था, ‘आदित्य का अपहरण हो गया है. किसी को पता नहीं चलना चाहिए, मेरे अगले फोन का इंतजार करना.’

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जवान बेटे के अपहरण की सूचना पा कर घर वाले परेशान हो गए. चूंकि अपहर्त्ताओं ने किसी को सूचना न देने की धमकी दी थी, इसलिए घर वालों ने पुलिस को खबर नहीं दी और वे अपहर्त्ता के फोन का इंतजार करने लगे. अपहर्त्ता ने उन से संपर्क किया और बताया कि आदित्य की कार थाना नारखी के नगला बीच में खड़ी है, उसे उठवा लो. उसी दिन आदित्य की कार नारखी थाना क्षेत्र से बरामद हो गई.

मांगी 10 करोड़ की फिरौती

रात में अपहर्त्ता ने फोन कर के उन से 10 करोड़ रुपए की फिरौती की मांग की. अपहर्त्ता इस से कम लेने पर राजी नहीं हुए, तब घर वालों ने इस की सूचना थाना टूंडला में दे दी. कारोबारी के बेटे के अपहरण की सूचना पर पुलिस सक्रिय हो गई. यह बात 22 अगस्त, 2016 की है.

पुलिस ने शहर की पौश कालोनी गणेश नगर निवासी आदित्य के दोस्तों बिल्डर रोहन सिंघल व कारोबारी अर्जुन से भी आदित्य के बारे में पूछा, लेकिन दोनों ने उस के बारे में कोई जानकारी होने से मना कर दिया.

घर वालों ने अपने स्तर पर आदित्य के सभी दोस्तों के साथ उसे सभी संभव जगहों पर तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. दूसरे दिन अपहर्त्ताओं का फोन आया, उन्होंने अब फिरौती के रूप में 10 करोड़ की जगह 30 किलोग्राम सोने की मांग किए जाने के साथ ही पुलिस में खबर करने पर आदित्य को मार डालने की धमकी दी.

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चूंकि रोहन सिंघल आदित्य का घनिष्ठ दोस्त था, इसलिए आदित्य के घर वालों ने रोहन सिंघल को फोन कर के आदित्य के बारे में पूछताछ की तो उस ने उन से सीधे मुंह बात न कर के टालमटोल करने की कोशिश की.

रोहन को शक था कि कहीं उस का फोन रिकौर्ड न किया जा रहा हो. इसी शक के चलते उस ने फोन  को जल्दबाजी में डिसकनेक्ट कर दिया. जबकि रोहन अपहरण से एक दिन पहले 21 अगस्त की रात आदित्य के घर गया था और उस की मां के सामने सुबह जिम जाने की बात की थी.

रोहन की इस हरकत पर घर वालों को उस पर शक हुआ. आदित्य के ताऊ प्रदीप मित्तल ने घटना के 2 दिन बाद बिल्डर रोहन सिंघल, उस के भाई पवन सिंघल व कारोबारी अर्जुन के विरुद्ध थाना टूंडला में आदित्य का अपहरण करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

आरोपी चढ़े हत्थे

अपहरण के 3 दिन बाद 25 अगस्त की शाम थाना शिकोहाबाद पुलिस ने शिकोहाबाद क्षेत्र की भूड़ा स्थित नहर में आदित्य का शव बरामद किया. शव के हाथपैर रस्सी से बंधे थे. घर वालों ने शिकोहाबाद आ कर आदित्य के शव की शिनाख्त कर ली. नहर किनारे से आदित्य की चप्पलें भी बरामद हुईं.

अपहृत आदित्य का शव मिलने के बाद पुलिस ने जांच करने के बाद रईसजादे रोहन सिंघल और उस के फार्महाउस के राजमिस्त्री पवन कुमार निवासी सरजीवन नगर को गिरफ्तार कर लिया. तत्कालीन एसएसपी अशोक कुमार शर्मा ने प्रैस कौन्फ्रैंस में अपहरण व हत्याकांड का खुलासा करते हुए घटना में शामिल 2 हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

दोनों हत्यारोपियों की निशानदेही पर तत्कालीन एसपी (सिटी) संजीव वाजपेई पुलिस बल के साथ कर्मयोगी अपार्टमेंट पहुंचे और वहां से रस्सी व सीरींज आदि बरामद कीं. इस के साथ ही अन्य आरोपियों पर शिकंजा कसने के लिए जांच अधिकारी टूंडला थानाप्रभारी राजीव यादव ने जांच आगे बढ़ाई.

कई राजनैतिक दलों व विभिन्न संगठनों ने इस घटना में शामिल सभी आरोपियों की गिरफ्तारी व उन्हें कड़ी सजा दिलाए जाने की पुरजोर मांग की. इस के साथ ही नगर में कैंडिल मार्च निकालने का सिलसिला शुरू हो गया. इलैक्ट्रौनिक और पिं्रट मीडिया में भी यह घटना सुर्खियों में थी. जब यह मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंचा तो अधिकारियों पर दवाब पड़ा. आखिर पुलिस ने सक्रियता दिखाई और शेष आरोपियों की गिरफ्तारी कर लिया.

पुलिस विवेचना में रोहन के दोस्त अर्जुन का नाम हट गया. तफ्तीश के दौरान पुलिस ने हत्या में शामिल राजमिस्त्री पवन कुमार के साथी गोपाल निवासी सरजीवन व फार्महाउस में काम करने वाले श्रमिक मुकेश निवासी मोतीलाल की ठार, आसफाबाद के साथ ही रोहन के भाई पवन सिंघल व उस की मां अनीता सिंघल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

आरोपियों से पूछताछ के बाद अपहरण की पूरी कहानी पुलिस के सामने आ गई. आदित्य के बचपन का एक दोस्त था अर्जुन. उस के पिता गत्ता कारोबारी थे. बिल्डर के धंधे की वजह से कर्ज में डूबे शहर के रईसजादे रोहन सिंघल ने तब एक घिनौनी साजिश रची. उस ने कौमन फ्रैंड अर्जुन के जरिए वारदात से 3 महीने पहले आदित्य से दोस्ती की और लगातार रैकी करता रहा. साथ ही उस के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया. आदित्य के परिवार का कारोबार देख उस ने कर्ज से मुक्ति पाने के लिए आदित्य के अपहरण की साजिश रची.

21 अगस्त को रोहन सिंघल आदित्य के घर आया और दूसरे दिन जिम जाने की प्लानिंग की. घटना के दिन 22 अगस्त को आदित्य अपनी कार से आर्चिड ग्रीन स्थित जिम जाने के लिए निकला.

लौटते समय वह आदित्य को आर्चिड ग्रीन कालोनी के गेट से अपनी रिवौल्वर से फायर कराने के बहाने अपने साथ जलेसर रोड स्थित निर्माणाधीन कालोनी कर्मयोगी अपार्टमेंट ले गया और वहां अपने राजमिस्त्री पवन कुमार की सहायता से उसे बंधक बना लिया.

डर की वजह से की हत्या रस्सी से आदित्य के हाथपैर बांध कर उसे नशे के इंजेक्शन लगाए गए ताकि वह बेहोश रहे. जब दूसरे दिन शहर में आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर लोगों ने कैंडिल मार्च निकाला तब रोहन डर गया. गुजरते वक्त के साथ उसे अपने पकड़े जाने का खतरा सताने लगा था.

हड़बड़ी में उस ने आदित्य को लगातार कई इंजेक्शन दिए, जिस से उस की मौत हो गई. अब वह लाश को ठिकाने लगाने के प्रयास में जुट गया.

24 अगस्त की रात में अन्य आरोपियों के साथ शव को ले जा कर शिकोहाबाद नहर में फेंक दिया गया, जो 25 अगस्त को नहर किनारे बबूल के पेड़ों में अटक गया, जिसे शिकोहाबाद पुलिस ने बरामद किया. फिरौती वसूलने से पहले ही उस ने आदित्य को मार डाला और अपने ही जाल में फंस गया.

इस बीच रोहन सिंघल ने बेहद चालाकी का परिचय दिया. आदित्य के घर वालों के शक से बचने के लिए वह अपहरण के बाद भी उन के संपर्क में रहा. वह जानना चाहता था कि परिजनों द्वारा क्या काररवाई की जा रही है.

आदित्य के अपहरण से पहले शातिर दिमाग रोहन ने फरजी नामों से 3 सिम खरीदे थे. इस के बाद उस ने वायस चेंजर ऐप के माध्यम से आदित्य के घर वालों से फिरौती मांगी. पहले 10 करोड़ मांगे. बाद में कैश की जगह 30 किलोग्राम सोने की डिमांड रख दी. घर वालों ने  कहा कि वे इतनी बड़ी फिरौती देने में असमर्थ हैं.

पुलिस पूछताछ में रोहन ने जानकारी दी कि उसे पकड़े जाने का डर था. फिरौती में सोना मांग कर वह पुलिस को भटकाना चाहता था, ताकि पुलिस को लगे कि आदित्य का अपहरण किसी बाहरी गैंग द्वारा किया गया है. पुलिस ने रोहन की लाइसैंसी रिवौल्वर भी जब्त कर ली.

पुलिस ने आदित्य के अपहरण व हत्या में 6 लोगों के विरुद्ध न्यायालय में चार्जशीट  दाखिल की थी. मामला सेशन के सुपुर्द हो कर सुनवाई के लिए पहुंचा.

भादंवि की धारा 120बी के आरोपी पवन सिंघल व उस की मां अनीता सिंघल की जमानत हाईकोर्ट से मंजूर हो गई थी और वे जेल से बाहर आ गए थे.

इस बहुचर्चित मामले की सुनवाई करीब पौने 5 साल तक फिरोजाबाद जिले के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (षष्टम) एवं विशेष जज आजाद सिंह के न्यायालय में चल रही थी. सत्र न्यायाधीश द्वारा 7 अप्रैल, 2021 को इस केस का फैसला सुनाया जाना था.

सुनवाई के दौरान न्यायालय में सरकारी गवाह सहित 15 गवाहों की पेशी हुई. पीडि़त परिवार की ओर से न्यायालय के समक्ष तमाम साक्ष्य प्रस्तुत किए गए. दोषियों को जल्दी सजा दिलाने के लिए हाईकोर्ट तक दौड़ लगाई.

आरोपियों को मिली सजा

हाईकोर्ट द्वारा भी 4 बार दिशानिर्देश जारी किए गए. आरोपियों ने अदालत में खुद को बेकसूर बताया. गवाहों के बयान और दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह सुनने के बाद विशेष जज आजाद सिंह ने सबूतों के आधार पर 7 अप्रैल, 2021 को अपना फैसला सुनाया.जज आजाद सिंह ने आरोपियों रोहन सिंघल, पवन कुमार, मुकेश व गोपाल को अपहरण व हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

न्यायाधीश ने रोहन पर 2.40 लाख रुपए व अन्य तीनों पर 2.3-2.30 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया. जुरमाना न देने पर दोषियों को एकएक वर्ष की अतिरिक्त सजा भुगतने का ऐलान किया गया. वहीं साक्ष्य के अभाव में न्यायाधीश ने पवन सिंघल व उस की मां अनीता सिंघल को बरी कर दिया.

अभियोजन पक्ष की ओर से न्यायालय में पैरवी विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा ने की. फैसला सुनाए जाने के बाद उन्होंने बताया कि पवन व अनीता को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी, जबकि शेष चारों आरोपी तभी से जेल में बंद थे.

जैसे ही दोषियों को सजा सुनाई गई तो उन के परिवार की महिलाएं बिलखने लगीं. दोषियों को कड़ी सुरक्षा के बीच ले जाया गया. जेल ले जाते समय परिवार की महिलाएं काफी दूर तक उन के पीछेपीछे गईं.

आदित्य मित्तल के पिता अतुल मित्तल को यह खबर मिली कि बेटे की हत्या के मामले में विशेष जज ने 4 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है तो उन के दिल को सुकून मिला.

आखिर इतनी मशक्कत के बाद दोषियों को सजा मिल गई. मित्तल परिवार आरोपियों को फांसी की सजा दिलाने तक पैरवी करेगा. गलत शख्स से दोस्ती ने आदित्य की जान ले ली. दोषियों को सजा जरूर मिल गई है, लेकिन बेटे को खोने का गम आज भी परिवार के सदस्यों की आंखों में झलकता है.

व्यंग्य: वधू चयनवा केमिस्ट्री से

फिल्म ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में तनु बनी कंगना रनौत स्टेडियम में लंबी कूद की प्रैक्टिस करते समय फिल्म के हीरो के अचानक सामने आ जाने से उस से टकरा जाती है. राज्य स्तर की हरियाणवी एथलीट का किरदार निभा रही कंगना गुस्से में अपनी सहेली से कहती है, ‘कोई अधेड़ बीच में आ गया था. उस ने टांग तुड़वा दी.’ अभी महीनेभर पहले अपन को बिना लौंग जंप के जंप करना पड़ा. वैसे, उस समय शरीर के साथसाथ दिल भी बल्लियों जंप कर गया था. हुआ यह था कि बंदा रोज की तरह एक पार्क में मौर्निंग वाक करने गया था. बंदा वाक काफी दुरुस्त गति से कर रहा था. ‘दुर्घटना से देर भली’ जैसे उपदेश अमल करने नहीं होते? इसलिए दुर्घटना हो ही गई. एक हसीना इतनी तेजी से हमारे बाजू से टकराते हुए निकली कि हम औंधेमुंह गिरते बचे. लेकिन उस ने न पीछे मुड़ कर देखा और न सौरी बोलने की तकलीफ की.

अपन ऐसे दोहरे धक्का गए कि एक ओर तो कमर व पैर में दर्द उठ गया, दूसरी ओर दर्द दिल में उठा था. यह बाद वाला जोर का था. वह बिजली की फुरती से वाक करती पुरुषों को भी पीछे छोड़ती चली जा रही थी. हम एक बैंच पर बैठ गए. अगले राउंड में जब उस से हमारी आंखें चार हुईं तो उस ने हमें खा जाने वाली नजरों से देखा. हमें लगा कि वह सोच रही होगी कि हम ने पूर्वानुमान लगा कर पीछे देख कर उस के लिए सुरक्षित मार्ग क्यों नहीं बनाया? उस की इन खा जाने वाली नजरों से हमारे खुराफाती दिमाग में एक दूसरा विचार कौंध गया. हाथ देख कर व्यक्तित्व बताने वाले तो हर चौराहे पर हैं, अंक ज्योतिष से भविष्यवाणी करने वाले भी कम नहीं हैं, लिखावट से व्यक्तित्व बताने वाले भी हैं. न जाने कितने और भी तरीके हैं. लड़केलड़कियों की अरेंज्ड मैरिज में गुण मिलाने वाला मामला बड़ा महत्त्वपूर्ण व पेचीदा होता है.

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आजकल सब को पहले दिन से ही आशंका बनी रहती है कि लड़के व लड़कियों में 7 फेरे लेनेदेने के बाद भी 7 महीने भी बनेगी कि नहीं. 7 साल तो थोड़ा ज्यादा हो जाएगा. अब हम ने पार्क में वाक के अलावा बकरबकर टाक करना बंद कर के बची ऊर्जा जितनी भी लड़कियां पार्क आतीं थीं उन की वाक पर केंद्रित कर दिया. ज्योंज्यों अपन इस पर बारीकी से गौर करते नजरें बचा कर, नहीं तो हमेशा इस तरह के काम में सैंडिलों की बरसात का भरपूर सूखे मौसम में भी खतरा रहता है, नएनए निष्कर्ष सामने आते गए. घूरना व पीछा करना अपराध होने के बावजूद अपन जोखिम उठा लगन से यह काम करते रहे. और रोज गगन की ओर देख कर प्रकृति से अपन तेरह हड्डी चौदह बोल्ट फेम काया को सहीसलामत रखने की अपील भी जरूर कर लेते. लड़कियों की चालढाल, गति, स्टाइल, मूड आदि औब्जर्व करते और रोज एक डायरी में नोट करते. अतिशय मेहनत के बाद 3 महीने में हम ने लगभग 50 से अधिक लड़कियों की वाक को बारीकी से औब्जर्व कर एक नए विज्ञान ‘वाकेमिस्ट्री’ का आविष्कार कर ही डाला.

इसे पढ़ेंगे तो आप मेरी तरह कन्ंिवस हो जाएंगे कि वाकई में वाक का तरीका हर व्यक्तित्व का एक रहस्य है, एक यूनीक गुण है. अब आप को रिश्ता तय करते समय कुछ और नहीं करना है, बस, लड़की की चाल यानी वाकेमिस्ट्री के आधार पर व्यक्तित्व का सही आकलन अपने सपूत या कपूत के हिसाब से कर, रिश्ते की हां या ना की चाल चल सकते हैं. पहला सूत्र: यदि लड़की की चाल बंदे से 3 माह पूर्व टकराने वाली हसीना जैसी है, तो लड़की बिंदास तबीयत की हो कर बोल्ड है. एनर्जी से भरपूर प्यार व नफरत दोनों करेगी. ईलूईलू के साथ ही ‘आई हेट यू’ कहने में पलभर नहीं लगाएगी. दूसरा सूत्र : यदि लड़की वाक के दौरान मोबाइल कान पर चिपकाए मुसकराते हुए जा रही है तो यह दीनदुनिया से बेखबर बातूनी तबीयत वाली है. यह दोस्ती व रिश्ते दोनों निभाने वाली शख्सियत है. काम से पहले यह अपने काम को करना जानती है. तीसरा सूत्र : यदि लड़की वाक के बीचबीच में स्ंिप्रट भी लगाती है तो इस का मतलब यह कैसी भी परिस्थतियों से हमेशा सामंजस्य बिठाने में सक्षम रहेगी.

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जरूरत पर ‘आराम हराम है’ रहेगा. इस का व्यक्तित्व संतुलित कहा जा सकता है. जैसे को तैसा फिलौसफी वाली शख्सियत है. लेकिन जरूरत पड़ने पर यह दुर्गा का रूप भी धारण कर सकती है. चौथा सूत्र : यदि यह बहुत धीरेधीरे वाक करती है कि जैसे कि वाक करने नहीं, तफरीह करने आई है तो मतलब सब काम काफी आरामतलबी से करने की आदी है. यदि टीवी के सामने बैठ गई तो बैठी ही रह जाए और यदि किसी के यहां बतोलेबाजी करने पहुंच जाए तो आने का नाम ही न ले. पांचवां : यदि कोई लड़की कभी वाक बिना साथ के न करे तो इस का मतलब है कि यह अकेलेपन से डरती है? इस में कभीकभी आत्मविश्वास की कमी हो जाती है. यदि आप का सपूत कहीं दूर देश में काम कर रहा है तो ऐसी वधू अकेलेपन में डिप्रैशन में जा सकती है. इस के विपरीत कोई लड़की अकेले ही घूमना पसंद करती है तो इस का मतलब है कि वह कैसी भी परिस्थिति से स्वयं निबटने में सक्षम है.

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यदि वाक करते समय कोई पूरे टाइम ईयरफोन लगाए रहती है यानी कोई भी काम को खुशनुमा तरीके से करना चाहती है तो मल्टीटास्ंिकग की खूबी वाली है यह. छठा सूत्र : यदि लड़की वाक के साथसाथ हाथों, पैरों, कंधों, गरदन की ऐक्सरसाइज भी करती चली जा रही हो तो यह क्रिएटिव पर्सनैलिटी टाइप की ओर इशारा करती है और यह भी ुएक के साथ दूसरा काम कर सकती है, जैसे किचन के काम के साथसाथ वाश्ंिग मशीन में कपड़े भी धोते रहना, मोबाइल पर बात भी करते जाना. सातवां सूत्र : यदि लड़की वाक करतेकरते उलटी दिशा में वाक करने लगे या आड़ी हो कर वाक करने लगे तो मान कर चलिए कि यह खतरों की खिलाड़ी है. नएनए प्रयोग हर क्षेत्र में करने की क्षमता रखती है. किचन में रहेगी तो नईनई डिशेज तैयार करने में दिमाग लगाएगी. औफिस में रहेगी तो नवाचार करेगी. ब्याह के समय 7 फेरे होते हैं, तो अभी इस नवीन वाकेमिस्ट्री विज्ञान में पहले चरण में 7 ही सूत्र काफी हैं. बहुत से सयानों की तरह हम सयाने भी इस पर एक ऐप बनाने की सोच रहे हैं.

अंतिम प्रहार -भाग 2: शिवानी का जीवन नीरस क्यों हो गया था

सबकुछ व्यस्थित हो गया तो एक पारिवारिक महिला शुभचिंतका ने शिवानी की मम्मी सुषमा को सलाह दी, ‘‘सुषमा बहन, बेटे को नौकरी मिल गई है. आप को पैंशन मिल रही है. बेटी ग्रेजुएशन कर के घर में बैठी है. अब उस की शादी कर दो.’’

सुषमा को शुभचिंतका की बात नागवार गुजरी, गहरी उसांस ले कर कहा, ‘‘अभी कहां से कर दें. बेटे की अभीअभी नौकरी लगी है. कुछ जमापूंजी हो तो करें.’’शुभचिंतिका ने हैरानी से कहा, ‘‘क्या बात करती हो बहन. पति का पैसा कहां चला गया?’’

‘‘उस को बेटी की शादी में खर्च कर देंगे तो बुढ़ापे में मु?ो कौन पूछेगा. बेटा और बेटी दोनों की शादी करनी है परंतु बेटा कुछ कमा कर जोड़ ले तो सोचूंगी. तब तक बेटी भी कोई न कोई नौकरी कर लेगी. आज के जमाने में एक आदमी की कमाई से घर कहां चलता है.’’

‘‘बात तो ठीक है परंतु जवान बेटी समय पर घर से विदा हो जाए तो मां की सारी चिंताएं खत्म हो जाती हैं. वरना हर समय लांछन का दाग लगने का भय सताता रहता है.’’

‘‘बहन, सच्ची बात कहूं,’’ सुषमा ने नाराजगी के भाव से कहा, ‘‘दूसरों की मैं नहीं जानती परंतु मेरी बेटी बहुत सीधी है. मैं ने उसे ऐसे संस्कार दिए हैं कि मरती मर जाएगी, परंतु गलत काम नहीं करेगी. मजाल है कि राह चलते किसी लड़के की तरफ निगाह उठा कर देख ले.’’

शुभचिंतिका ने मन ही मन सोचा, लगता है सुषमा ने जमाना नहीं देखा है. कितना बदल गया है. लड़कालड़की किस तरह खुलेआम इश्क फरमाते घूम रहे हैं. लगता है समाज में नैतिकता और मर्यादा की सारी सीमाएं टूट चुकी हैं. शिवानी कब तक जमाने की बदबूदार हवा से अपनी नाक बंद कर के रखेगी. जवानी की आग जब देह को जलाने लगती है तो बड़ेबड़े संतों की दृढ़ प्रतिज्ञा तिल के समान जल जाती है.

शुभचिंतिका ने सुषमा को आगे सम?ाना उचित नहीं सम?ा. शिवानी के पास कोई चारा नहीं था. भागदौड़ कर उस ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली. तनख्वाह बहुत ज्यादा नहीं थी परंतु घर में बैठने से तो यह बेहतर था कि वह काम कर रही थी. अनुभव प्राप्त कर रही थी. इधर उस ने बीएड का फौर्म भर रखा था. चयन होने पर एक साल की ट्रेनिंग पर चली गई. ट्रेनिंग पूरी होते ही उसे उसी स्कूल में अच्छी तनख्वाह पर अध्यापिका की नौकरी मिल गई.

शिवानी के जीवन में खुशियां थीं परंतु प्यार नहीं. उस का कोई प्रेमी नहीं था. इस की कोई चाहत भी उस के मन में नहीं थी. वह चाहती थी जल्दी से जल्दी विवाह बंधन में बंध जाए. पति के घर चली जाए. फिर उस के जीवन में प्यार और खुशी के अनमोल मोती बरसेंगे.

परंतु मां को जैसे उस के विवाह की कोई चिंता ही नहीं थी. उस के रिश्ते आते, तो अनमने ढंग से बात सुनती और मना कर देती. परंतु बेटे की शादी की चर्चा वह बहुत लगन से करती. कोई रिश्ता आता, तो खोदखोद कर जानकारी लेती. परिवार कैसा है? लड़की सुंदर है? पढ़ीलिखी है और सब से मुख्य बात पूछना न भूलती, दहेज कितना मिलेगा?

जब भी घर में कोई अड़ोसीपड़ोसी या रिश्तेदार आता, केवल गौरव की शादी की बात होती. वह तो जैसे घर की बेटी ही न थी. वह बस एक पैसा कमाने की मशीन और घर का काम करने वाली नौकरानी थी. घर के सारे खर्च भी उसी की तनख्वाह से चलते. बेटा अपने वेतन की एक पाई भी मां के हाथ पर न धरता, न कोई हिसाब देता. बस, अपने शौक पर खर्चा करता या बैंक में जमा करता. मां भी अपनी पैंशन का पैसा कभीकभार ही बैंक से निकालती. शिवानी मां और भाई के होते हुए भी अपने ही घर में एक उपेक्षित सा जीवन व्यतीत कर रही थी.

दहेज के लालच में मां ने गौरव की शादी एक धनी परिवार की लड़की के साथ तय कर दी. पता नहीं सुषमा के मन में क्या था? बड़ी बेटी कुंआरी बैठी थी और उस से 2 साल छोटे भाई की शादी तय कर दी थी क्योंकि अच्छाखासा दहेज ला रही थी. किसी खास ने सवाल किया तो सुषमा का दिल जला देने वाला जवाब था, ‘बेटा दहेज ला रहा है परंतु बेटी दहेज ले कर जाएगी. फिर क्यों न पहले बेटे की शादी करूं?’

शिवानी के दिल को बहुत चोट पहुंची. पहले वह घर की बातें किसी से नहीं कहती थी परंतु ये सारी बातें उस ने अपनी सहेलियों से कहीं, तो निकिता ने कहा, ‘यार, सम?ा में नहीं आता तुम्हारी मां सगी है कि सौतेली. अरे, सौतेली मां भी बहुत अच्छी होती है. सम?ाना बहुत मुश्किल है कि वह तुम्हारी शादी के खिलाफ क्यों है?’

‘मु?ो तो लगता है, या तो इस का भाई बहुत होशियार है या इस की मां बहुत लोभी और लालची जो बेटे के विवाह में लेना तो जानती है और बेटी के विवाह में कुछ भी खर्च नहीं करना चाहती,’ संजना ने कहा. ‘तुम्हारा भाई अपना बैंक बैलैंस बढ़ा रहा है. मां अपना पैसा खर्च नहीं कर रही है. शिवानी, तुम बहुत बड़ी बेवकूफ हो. कल तुम्हारी भाभी घर में आएगी, तो पूरे घर में उस का राज होगा. तुम्हारी हैसियत एक नौकरानी से भी बदतर हो जाएगी. मेरी सलाह मानो, तुरंत बैंक में अपना खाता खोल लो और बुरे दिनों के लिए कुछ बचा कर रखो.’ निकिता ने उसे उचित सलाह दी.

तभी दीप्ति ने कहा, ‘और मेरी मानो, तो यह सतीसावित्री का चोला उतार कर फेंक दो. आज के जमाने में नैतिकता, मर्यादा और पारिवारिक संस्कारों का आडंबर ओढ़ कर जीने से जीवन बहुत कठिन हो जाता है, खासकर, जब सगी मां और भाई तुम्हारे जीवन को बरबाद करने में जुटे हों. ऐसी स्थिति में तुम्हें स्वयं अपना रास्ता तलाश करना होगा. किसी लड़के को पसंद कर के उस के साथ घर बसा लो, वरना उम्र निकलने के बाद पछताने के सिवा और कुछ नहीं मिलेगा.’

 

अंतिम प्रहार -भाग 1: शिवानी का जीवन नीरस क्यों हो गया था

उस की सहकर्मी दीप्ति के शब्द उस के कानों में अभी तक गूंज रहे थे, ‘अब क्या करेगी यह शादी? सिर के बाल चांदी होने लगे. 30 को पार कर गई. यह शादी की उम्र थोड़ी है.’

लंच का समय था. स्कूल की सभी अध्यापिकाएं साथ में बैठ कर खाना खा रही थीं. सब एकदोचार के गु्रप में बंटी हुई थीं. शिवानी अपनी 3 सहेलियों के साथ एक गु्रप में थी. औरतों की जैसी आदत होती है, खाते समय भी चुप नहीं रह सकतीं. सभी बातें कर रही थीं. अपनी क्लास के बच्चों से ले कर पिं्रसिपल व सहकर्मी अध्यापिकाओं तक की, घर से ले कर पति, बच्चों और सास तक की बातें कर रही थीं. अंत में हमेशा की तरह बात घूम कर शिवानी के ऊपर आ कर टिक गई.

निकिता ने कहा, ‘‘शिवानी, तू कुछ नहीं बोल रही है?’’‘‘क्या बोले बेचारी? शादी तो की नहीं. न बच्चा, न पति, न सासननद. किस की बुराई करे बेचारी. पता नहीं कब करेगी शादी? उम्र तो निकली जा रही है,’’ संजना ने सहानुभूति दिखाते हुए कहा.

तभी दीप्ति ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा था, ‘अब क्या करेगी यह शादी…’ उस के ये वाक्य शिवानी के कानों में गरम लोहे की तरह घुसते चले गए थे. पहले ही कम बोलती थी. दीप्ति के वाक्यों ने तो उस के हृदय पर पत्थर रख कर मुंह पर ताला जड़ दिया था. उस के मुख पर हजार रेगिस्तानों की सी वीरानी और गरम धूल की परतें जम गई थीं. आंखें जड़ हो कर बस खाने की प्लेट पर जड़ हो गई थीं. दीप्ति की बात पर निकिता और संजना भी हैरान रह गई थीं. उसे ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए थी. शिवानी की अभी तक शादी नहीं हुई थी, तो उस में उस का क्या दोष था. सब की अपनीअपनी मजबूरियां होती हैं, शिवानी की भी थी. तभी तो अब तक उस की शादी नहीं हो पाई थी.

वे चारों हमउम्र थीं, सहकर्मी थीं. परंतु उन में अकेली शिवानी ही अविवाहिता थी. बाकी तीनों न केवल शादीशुदा थीं बल्कि तीनों के बच्चे भी थे. उन के बीच घरपरिवार और शादी को ले कर बातें होती ही रहती थीं. सभी शिवानी को शादी करने की सलाह देती रहती थीं परंतु इतनी तल्ख बात आज से पहले कभी किसी ने नहीं कही थी.

शिवानी अंतर्मुखी स्वभाव की थी. कम बोलती थी. अपना दुखदर्द भी किसी से नहीं बांटती थी. उस दिन भी दीप्ति की तल्ख बात का उस ने कोई जवाब नहीं दिया. परंतु उस का दिमाग सनसना गया था. क्या अब उस की शादी नहीं होगी? क्या वह बूढ़ी हो गई थी? बाल पकना क्या बुढ़ापे की निशानी है?

आज तक उस ने किसी लड़के से दोस्ती नहीं की, प्रेम करना तो बहुत दूर की बात थी. पारिवारिक संस्कारों और अंतर्मुखी स्वभाव के कारण वह लड़कों से खुल कर बात नहीं कर पाई. वह सुंदर थी. कई लड़के उस के जीवन में आए, उस से प्रेम निवेदन भी किया, उस ने उन का प्यार स्वीकार भी किया, परंतु जब लड़के एक सीमा से आगे बढ़ कर उसे बिस्तर पर लिटाना चाहते, वह भाग खड़ी होती. ‘यह सब शादी के बाद,’ वह कहती, तो लड़के उसे घमंडी, दकियानूसी और बेवकूफ लड़की सम?ा कर छोड़ देते.

लिहाजा, 30 वर्ष की उम्र तक उस का कोई स्थायी बौयफ्रैंड न बन सका, जिस के साथ वह घर बसाने की बात सोच सकती. अब तो कमउम्र के लड़के उस से दूर भागने लगे थे और उस की उम्र के दायरे वाले आदमी शादीशुदा थे. मां भी उस की शादी के बारे में नहीं सोचती थी. इस में मां का दोष नहीं था. वह डरती थी कि शादी के बाद शिवानी जब अपने घर चली जाएगी तो वह किस के सहारे जीवन व्यतीत करेगी. उन की जीविका का कोई साधन नहीं था. जबकि उन का लड़का था और उस की पत्नी थी. दोनों मां के साथ पुश्तैनी घर में रहते थे. उस के भाई को पिता की जगह पर अनुकंपा के आधार पर नौकरी भी मिली हुई थी. पिता के घर में मां के साथ रहता था परंतु अपनी तनख्वाह का एक पैसा भी मां को नहीं देता था. मां का गुजारा उन की पैंशन और शिवानी की कमाई से चलता था. एक ही घर में 2 परिवार रहते थे. मांबेटी और बेटाबहू. कैसी विडंबना थी?

मां किस तरह बेटी के साथ भेद करती है और बेटे को महत्त्व देती है, यह पहली बार शिवानी को तब पता चला जब उस के पिता की मृत्यु हुई. वह सरकारी सेवा में गु्रप बी औफिसर थे और सेवानिवृत्ति के पहले ही उन की मृत्यु हो गई थी. ग्रैच्युटी,  इंश्योरैंस, जीपीएफ आदि का कुल 20 लाख के लगभग मिला था. सारा पैसा मां ने एमआईएस (मंथली इंकम स्कीम) में डाल दिया था. 20 हजार के लगभग मां की पैंशन बंधी थी. कम नहीं थे.

बाप की जगह पर जब अनुकंपा के आधार पर नौकरी की बात आई, तो सब ने यही सलाह दी कि बेटी शिवानी यह नौकरी कर लेगी. वह 22 साल की थी और ग्रेजुएट थी. आसानी से उसे गु्रप ‘सी’ की नौकरी मिल जाती और उस का भविष्य संवर जाता. भाई छोटा था और उस का ग्रेजुएशन भी पूरा होने में एक साल बाकी था. ग्रेजुएशन के बाद भविष्य में वह कोई अच्छी नौकरी पा सकता था.

सब की बातें सुनने के बाद मां ने अपना निर्णय सुनाया, ‘‘बेटी बाप की जगह नौकरी करेगी तो हमें क्या मिलेगा? एक दिन वह शादी कर के ससुराल चली जाएगी. उस की तनख्वाह ससुराल वालों को जाएगी. बेटे को पढ़लिख कर भी नौकरी नहीं मिली तो उस का क्या होगा? सो, नौकरी बेटा ही करेगा, चाहे जो हो जाए.’’

लोगों ने बहुत सम?ाया परंतु मां अपने निर्णय से नहीं डिगी. विभाग में आवेदन किया तो उन्होंने बेटे की कम उम्र और शिक्षा को ले कर प्रश्न खड़े कर दिए. मां ने बड़े अधिकारी से मिल कर बात की, तो उन्होंने रास्ता सु?ाया कि वे बेटे के ग्रेजुएशन तक इंतजार कर सकते थे. लिहाजा, मामला एक साल तक अधर में लटका रहा. जब गौरव का ग्रेजुएशन हो गया और वह 21 साल का हो गया, तो उसे पिता के स्थान पर नौकरी मिल गई.

 

बच्चों का गुस्सा कैसे करें कम

गुस्सा एक प्रकार का भाव है जो व्यक्ति के अंतर्मन में रहता है. यह एक प्रकार का नकारात्मक भाव है जिस में अपराध बोध, आक्रोष, ईर्ष्या आदि बहुतकुछ शामिल होता है. गुस्सा आने से व्यक्ति की सकारात्मक सोच लगभग समाप्त हो जाती है.

चायनीज मैडिसिन में गुस्से को यकृत से जोड़ा गया है. जब आप को लिवर की बीमारी होती है, आप उत्तेजित और चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं लेकिन आज के बदलते परिवेश में इस नकारात्मक भाव का असर कुछ अधिक दिखाई पड़ने लगा है. गुस्से में व्यक्ति सहीगलत समझने की शक्ति खो देता है. कई बार तो गुस्से में लोग गलत काम भी कर बैठते हैं और जब उन्हें महसूस होता है तब पछताने के सिवा उन के पास कोई रास्ता नहीं रह जाता.

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मुंबई के हीरानंदानी अस्पताल के मनोरोग चिकित्सक डा. हरीश शेट्टी कहते हैं कि आजकल गुस्से की परिभाषा बदल चुकी है. आज के बच्चे नौर्मल तरीके से अपने अभिभावक और मातापिता से ऐसे बातचीत करते हैं जैसे गुस्से में हों. जबकि ऐसा होता नहीं. मित्रता की वजह से खुल कर बात करते हैं. अब दोस्ती का वातावरण आ चुका है. बच्चों और मातापिता के बीच की दूरी कम हो चुकी है. नौर्मल बातचीत में भी वे एकदूसरे को धक्का मारते हैं. ऐसा नहीं है कि वे मातापिता को प्यार या सम्मान नहीं करते. लेकिन देखना यह है कि ये बातचीत कितनी हद तक ठीक है? कहीं वह उन्हें किसी प्रकार की हानि तो नहीं पहुंचा रही? उन के स्वभाव में बदलाव तो नहीं आ रहा?

बदलते समय का दौर

आजकल के बच्चे स्कूल, ट्यूशन और मां के स्कूल को एकसाथ ‘अटैंड’ करते हैं. नींद कम लेते हैं, उन के खाने की सूची ठीक नहीं होती. इस से ‘शुगर’ कम हो जाती है जिस से गुस्सा आता है. उन्हें पढ़ाई अच्छी नहीं लगती. उन में चिड़चिड़ापन आ जाता है. अपनी बात को प्रकट करने के लिए वे उत्तेजित हो जाते हैं.

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क्या करें

एस्थेमेटिक, एपिलेप्सी, डायबिटीज वाले बच्चों को गुस्सा अधिक आता है. वे डिप्रैशन के शिकार भी होते हैं. इस के अलावा अगर बच्चा कम नंबर लाए, फेल हो जाए या स्कूल में उसे किसी प्रकार के अपमान का सामना करना पड़े या शिक्षकों का?व्यवहार ठीक न हो तो वह गुस्से के रूप में उसे बाहर निकालता है, इसलिए बच्चा जब चिड़चिड़ा हो गया हो, पढ़ाई पर ध्यान न दे रहा हो, बातबात पर गुस्सा कर रहा हो, शांत रहने लगे, पहले जैसा व्यवहार न कर रहा हो या अचानक व्यवहार में बदलाव आ गया हो, वह बहुत अधिक सो रहा हो या उसे नींद नहीं आती हो, उसे भूख न लगे, दिनोंदिन उस का वजन कम होने लगे, दूसरे बच्चों से मारपीट करने लगे या फिर आक्रोश को अधिक देर तक मन में बनाए रखता हो तो ऐसे में डाक्टर की सलाह अवश्य लें.

कुछ बच्चे हाइपर एक्टिव होते हैं. उन्हें हमेशा कुछ न कुछ गलत काम करने की इच्छा बनी रहती है. ऐसे बच्चों को मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए. गुस्सा वंशानुक्रम भी होता है. कुछ हद तक अगर मातापिता इस के शिकार हैं तो बच्चे को भी होने का अंदेशा होता है पर उन्हें बचपन से डाक्टरी परामर्श मिले तो वे सुधर सकते हैं.

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कुछ बातें, जो बच्चों में गुस्से को कम करती हैं, निम्न हैं :

1.    जो मातापिता बच्चों की बात सुनते हैं उन बच्चों को गुस्सा कम आता है.

2.    जो बच्चे खेलकूद में भाग लेते हैं वे शांत होते हैं.

3.    जिन बच्चों की नींद पूरी होती है उन में गुस्सा कम होता है.

4.    व्यायाम या आंसू के निकलने से गुस्सा कम हो जाता है.

5.    बच्चे के मानसिक और शारीरिक बदलाव को मातापिता समझेंगे तो उन्हें उन पर विश्वास हो सकेगा, वे उग्र नहीं बनेंगे.

बच्चों से बढ़ाएं नजदीकियां

मातापिता अपने बचपन को कभी अपने बच्चों से तुलना न करें. बच्चे गुस्से से कई बार आत्मक्षति या आत्महत्या का सहारा लेते हैं. उग्रता को बातचीत या दवा से कम किया जा सकता है. बच्चों पर विश्वास करना भी जरूरी है.

बच्चों के आक्रोश को कम करने के लिए मातापिता, शिक्षक, दोस्त साथ मिल कर काम करेंगे तो परिणाम जल्दी मिलेगा. गुस्सा होने पर बच्चा केवल ‘बैड’ नहीं ‘सैड’ भी हो सकता है. कोई बच्चा क्रिमिनल नहीं होता. बच्चे की मानसिक ताकत को बढ़ाने की आवश्यकता है. उन से भावनात्मक संपर्क रखें ताकि वे किसी बुरी बात को भी बोलने की हिम्मत रखें.

डा. शेट्टी कहते हैं कि बच्चा अगर कुछ गलत करे तो डांटने के बजाय उसे करीब लाएं, गले लगाएं. अपने से दूर न करें. किसी?भी गलत काम को खानदान का कलंक समझने के बजाय उस से बच्चे को निकालने की तरकीब सोचें. बच्चे में गुस्से की अधिकता की वजह कई बार मातापिता भी होते हैं जो जानेअनजाने में बच्चे की किसी भी इच्छा को तुरंत पूरी कर देते हैं. उन्हें रोने दें. उन्हें लगना चाहिए कि हर चीज जिसे वे मांगते हैं, उस के लिए धैर्य भी रखने की जरूरत है.

डा. शेट्टी कहते हैं कि बच्चे को बचपन में सिखाएं कि जब भी उसे गुस्सा आए तो कम से कम 5 मिनट रुके, फिर बात करे. इस के अलावा शावर लेने से भी गुस्सा कम होता है. मनोचिकित्सक की सलाह लेने से कभी घबराएं नहीं, वहां आप को समाधान मिलेगा. भूल कर भी किसी ओझा, झाड़फूंक और ज्योतिषी की शरण में न जाएं.

सुनहरी यादों के रंग Hyundai i20 iMT के संग

हर साल स्कूल के बाद जब गर्मियों की छुट्टियां होती है तो हमें बस राजस्थान जाने का इंतजार रहता है. हर साल छुट्टियों में सुनहरी यादें जमा करने हम लोग राजस्थान जाते थे. जिन यादों ने हमारे बचपन में रंग भरे उन्हें दोबारा जीने के लिए अब फिर हमने राजस्थान जाने का मन बनाया है. हमारे इस सफर का  हमसफर बना है नया Hyundai i20 जिसका  iMT गियरबॉक्स टर्बो GDI यूनिट के साथ वाकई कमाल है.

हम दिल्ली से करीब 110 किमी दूर आ चुके हैं, यहां से हमारी मंजिल ज्यादा दूर नहीं है. मंजिल तक पहुंचने के सफर में जैसे ही हम आगे बढ़े तो रेत के तूफान से हमारा पाला पड़ा जिसने सिंगल लेन को पूरी तरह रेत से ढक दिया. आसमान में चढ़ते सूरज की किरणों तले ये नजारा इतना अविस्मरणीय और अद्भुत लग रहा था, मानो राजस्थान के दूर तक फैले विशाल रेत ने सोने की चादर ओढ़ ली है. हमने भी इस नजारे का लुत्फ उठाने के लिए अपनी Hyundai i20 को बरगद के पेड़ के नीचे खड़ा किया और जी भर कर उस दृश्य का आनंद लिया.

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दिलचस्प बात है कि इस सफर में हमारा साथी बनने के लिए हमारे पास कई गाड़ियों के ऑप्शन थे लेकिन जब गाड़ी चुनने की बात आई तो सभी ने सर्वसम्मति से Hyundai i20 को चुना. हमारे नियमित पाठकों को लग रहा होगा कि ये Hyundai i20 वही है जिसे हम कुछ महीने पहले ग्रेट इंडिया ड्राइव पर ले गए थे. लेकिन बात तब की करें या अभी की Hyundai i20 का शानदार iMT गियरबॉक्स ही है जिसने हमें इसे चुनने के लिए मजबूर किया. ये कहना भी गलत नहीं होगा की Hyundai का iMT गियरबॉक्स हाल में हुआ ऑटोमोटिव सेक्टर में सबसे शानदार इनोवेशन है.

अलवर के पास स्थित दधिकर किले के लिए हम निकले हैं जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है लेकिन अब इसे आधुनिक रुप दे दिया गया है जिसमें ट्रेवलर्स की सुख-सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा गया है. ये ठीक वैसा है जैसे मेनुअल गेयरबॉक्स के जमाने में iMT. हम सभी को मेनुअल पसंद है और इस पुरानी तकनीक को आधुनिक युग में अपनी अहमियत बनाए रखने के लिए कुछ पुनर्विचार की जरुरत थी और नए iMT  के साथ पहले हिमालय और अब मैदानी इलाकों में ड्राइव के बाद हम ये कह सकते हैं कि ये तकनीक कमाल की है.

सफर के मजे लेते हुए कब हम किले तक पहुंच गए ये पता ही नहीं चला. एक छोटी पहाड़ी पर बने दधिकर किले के पीछे बड़ा सा पड़ाड है जिससे इस किले की भव्यता और बढ़ जाती है. दिन ढलने को था तो हमने भी अपने सफर के बाद डिनर किया और सो गए.

अगली सुबह हमने आसपास के एरिया में घूमने का सोचा तो दधिकर किले से कुछ दूर स्थित सरिस्का टाइगर रिजर्व का ख्याल मन में आया लेकिन हम टाइगर के सुबह का नाश्ता नहीं बनना चाहते थे तो हमने इस आइडिया को ड्रॉप किया. फिर हम बफर जोन में जाने के बजाए गांव के रास्ते निकले. कुछ ही देर में हम सिलीसेढ़ झील के किनारे थे.  अलवर के लोकप्रिय स्थानों में से एक सिलीसेढ़ लेक पर मौजूद टूरिस्टों की भीड़ के बावजूद, हम झील के किनारे ऐसी जगह खोजने में कामयाब रहे जहां हमने हमारे i20 के ट्रंक को पिकनिक टेबल बनाकर छाछ और कचौड़ियों का लंच किया.

कुछ घंटे झील के किनारे बिताने के बाद हम आस-पास की ओर जगह घूमने निकले. ऐसे में i20 हमारा बेहतरीन पार्टनर साबित हुआ क्योंकि ऐसा इलाका जहां दूर-दूर तक पेट्रोल पंप देखने को न मिलें ऐसे में i20 की फ्यूल एफिशिएंसी कमाल है. सफर के अधिकतर रास्ते हम गांव की सड़कों पर थे जिनकी हालत के बारे में आप बेहतर समझ सकते हैं लेकिन i20 के शानदार सस्पेंशन और आरामदायक सीट पर हमने बड़ी सहजता से खराब सड़कों को पार किया.

इस सफर में जब भी हमें मौका मिला हमने GDI टर्बो पेट्रोल इंजन की परफोर्मेंस को परखा, ऐसे में हैरान करने वाली बात ये थी इतने आराम से i20 ने वो स्पीड पकड़ी जिसका हम यहां जिक्र भी नहीं कर सकते. खैर आपको ऐसे ड्राइव करते हुए सावधान रहने की जरुरत है. जब हम कार के इंजन को परख रहे थे तब उसका iMT हमें मुस्कुराने की और वजह दे रहा था. बता दें कि ये सब वास्तविक है न कि सिर्फ ब्रांड ब्रोशर में डालने के लिए बनावटी विशेषता. Hyundai i20 को वैसे जितना शुक्रिया अदा करें कम होगा, इसी की बदौलत आज हम अपनी बचपन की यादों को जी पाएं हैं.

वैसे आप सभी को सलाह है अगर आपने अभी तक iMT गियरबॉक्स की टेस्ट ड्राइव नहीं की है तो अब जरुर करें. ये फीचर न सिर्फ i20 बल्कि Venue में भी उपलब्ध है. अगर आप मेन्युअल ट्रांसमिशन ही पंसद करते हैं तो भी आप इसके दिवाने हो जाएंगे और टेस्ट ड्राइव के बाद आप Hyundai के iMT की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे.

खैर बरगद के पेड़ के नीचे जो क्षण हमने सुनहरी रेत को देखते हुए बिताए उन्हीं लम्हों में हमने अपनी आत्मीय खुशी को पा लिया था बाकि तो सोने पर सुहागा वाले पल थे.

Shehnaaz Gill ने पूरा किया Sidharth Shukla से जुड़ा ये चैलेंज, देखें video

बिग बॉस 13 में शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला की जोड़ी को लोगों ने खूब पसंद किया था. ऐसे में शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला को एक नया नाम सिडनाज दे दिया गया था. जिसके बाद यह काफी ज्यादा लोकप्रिय भा हो गए थें.

बता दें कि शहनाज गिल ने हाल ही में एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वह सिद्धार्थ शुक्ला को हंसाने कि कोशिश कर रही हैं लेकिन सिद्धार्थ हंस नहीं रहे हैं, लेकिन दूसरी बार जब शहनाज ने सिद्धार्थ को हंसाया तो वह जोर- जोर से हंसने लगें शहनाज के आवाज को सुनकर.

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गौरतलब है कि शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला कई सारे म्यूजिक वीडियो में भी नजर आ चुके हैं. फैंस उन्हें काफी ज्यादा एक -दूसरे के साथ देखना पसंद करते हैं. शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला को लेकर कुछ दिनों पहले खबर आ रही थी कि वह दोनों जल्द एक-दूसरे के साथ शादी के बंधन में बंधने वाले हैं.

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जबकी इस बारे में शहनाज और सिद्धार्थ एक-दूसरे के साथ खुलकर बात करते नजर नहीं आएं हैं. शहनाज ने अपने घरवालों से भी कुछ वक्त पहले दूरी बना ली थी,सिद्धार्थ के लिए जो बात काफी ज्यादा मीडिया में आई थी.

खैर फैंस इन्हें एक-दूसरे के साथ देखना काफी ज्यादा पसंद करते हैं. फैंस इस बात कि भी उम्मीद लगाएं बैठे हैं कि जल्द दोनों शादी के बंधन में बंधेगे.

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वर्कफ्रंटकि बात करें तो ये दोनों कई सारे प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं लेकिन इन दिनों कोरोना कि वजह से इन लोगों ने ब्रेक लिया हुआ है.

हिना खान की कोरोना रिपोर्ट आई नेगेटिव, फैंस के सामने हुईं इमोशनल

टीवी एक्ट्रेस हिना खान इन दिनों मुश्किल दौर से गुजर रही हैं, कुछ दिनों पहले ही हिना ने अपने पापा को खोया है. जिसके सदमें से अभी बाहर नहीं आ पा रही हैं. इसी बीच हिना को कोरोना भी हो गया था.

बता दें कि हिना के पिता कि जिस वक्त मौत हुई थी, उस वक्त वह कश्मीर में किसी शूट के लिए गई थी, जहां पर उन्हें इस बुरी खबर का पता चला. जिसके बाद वह टूट गईं. हिना खान अपने पिता से बहुत ज्यादा करीब थीं. हिना अपने पिता के साथ आखिरी वक्त नहीं थी इसका उन्हें काफी ज्यादा मलाल है.

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कल रात हिना खान लाइव जुड़ी थी, जहां उनके फैंस कई दिनों से इंतजार कर रहे थें, जहां पर वहां आने के बाद उन्होंने बताया कि उनकी कोरोना रिपोर्ट अब निगेटीव आ चुकी हैं. वह लाइव आकर बताई कि उन्हें इस बात का काफी ज्यादा दुख है कि वह इस कठिन समय में अपने मां के पास मौजूद नहीं थीं.

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हिना खान के फैंस लगातार उन्हें सात्वना दे रहे थें कि हिना आप अकेली नहीं है हम सब आपके साथ हैं. ऐसे में हिनाा खान अपने फैंस के मैसेज को देखकर काफी ज्यादा इमोशनल हो गईं. हिना खान को लगातार फैंस मैसेज किए जा रहे थें, जिसके बाद हिना को काफी ज्यादा अच्छा लग रहा था.

हिना ने अपने सभी फैंस को लाइव के दौरान थैंक्यू कहा.बता दें कि हिना खान अपने पापा से बहुत ज्यादा करीब थीं, वह अपने पापा के साथ आएं दिन सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करती रहती थीं, जिसे देखऩा फैंस भी काफी ज्यादा पसंक करते थें.

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वहीं हिना के फैंस लगातार उनके लिए दुआ कर रहे हैं कि मुश्किल का वक्त है जल्द ही सब ठीक हो जाएगा. हिना को वह फिर से हंसते हुए देखऩा चाहते हैं.

हर साँस को संजीदगी से सहेजने की कोशिश में लगी उत्तर प्रदेश सरकार

लखनऊ . मार्च/अप्रैल में कोरोना की आयी दूसरी लहर की संक्रमण दर पहले की तुलना में 30 से 50 गुना संक्रामक थी. इसी अनुपात में ऑक्सीजन (सांस) की चौतरफा मांग भी निकली. मांग में अभूतपूर्व वृद्धि के नाते ऑक्सीजन की कमी को लेकर देश के अधिकांश राज्यों को परेशान होना पड़ा. उत्तर पदेश में भी ऑक्सीजन की कमी को लेकर हाहाकार मचा. लोग ऑक्सीजन के सिलिंडर को पाने के लिए परेशान हुए. और कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करने वाले अस्पताल भी मरीजों की साँस को सहेजने के लिए सरकार से ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की मांग करने लगे.

ऑक्सीजन रीफिलर के पास ऑक्सीजन के सिलिंडर लेने वालों की भीड़ लगने लगी तो ऑक्सीजन की इस भयावह कमी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दूर करने का बीड़ा उठाया. उन्होंने कोरोना संक्रमित हर मरीज की सांसों को सहेजने के लिए अपनी बीमारी की भी परवाह ना करते हुए ऑक्सीजन की उपलब्धता के लिए जो योजना तैयार की, उसके चलते आज यूपी में ऑक्सीजन की कहीं कोई कमी नहीं है. राज्य के हर जिले में मरीजों की सांसों को सहेजने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन के सिलेंडर मौजूद हैं.

ऑक्सीजन की इस उपलब्धता के चलते अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने होम आइसोलेशन में कोरोना संक्रमण का इलाज कर रहे लोगों को भी ऑक्सीजन सिलेंडर मुहैया कराये जाने का निर्देश दिया. यह काम शुरू भी हो गया और बीते 24 घंटे के दौरान होम आइसोलेशन में 3471 कोरोना संक्रमितों को 26.44 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उपलब्ध कराई गई.

ऑक्सीजन को लेकर चंद दिनों पहले ऐसा सकारात्मक माहौल नहीं था. अभी भी प्रदेश से सटी दिल्ली में ऑक्सीजन कमी बनी हुई है. फिर उत्तर प्रदेश ने ऑक्सीजन की कमी को कैसे दूर किया? तो इसका जवाब है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह पर टीम -9 के अफसरों का एक सैनिक की तरह अपने टास्क को पूरा करने का जुनून. जिसके चलते आज यूपी में ना सिर्फ ऑक्सीजन की कमी खत्म हुई है बल्कि अब ऐसी व्यवस्था की जा रही है, जिसके चलते यूपी में कभी भी किसी अस्पताल को ऑक्सीजन की कमी होने ही नहीं पायेगी.

आखिर वह क्या योजना थी, जिसके चलते यूपी में ऑक्सीजन की कमी खत्म हुई. इस बारे चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले यह जाना कि ऑक्सीजन की कमी क्यों हो रही है और इसे कैसे दूर करने के लिए क्या -क्या किया जाए? इस पर उन्हें बताया गया कि मेडिकल ऑक्सीजन विश्व स्वास्थ्य संगठन की आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल है. कोरोना वायरस मरीजों के फेफड़ों को क्षति पहुंचाता है, जिससे बॉडी में ऑक्सीजन लेवल गिर जाता है. तब जान बचाने के लिए पेशेंट को ऑक्सीजन देने की जरूरत पड़ती है.

कोरोना की दूसरी लहर में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग बहुत ज्यादा बढ़ी है और खपत भी. लेकिन आपूर्ति में बाधा से कई अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी सामने आ रही है. ऑक्सीजन के वितरण की व्यवस्था की कमी इसकी कमी का सबसे प्रमुख कारण है.

यह जानने के बाद मुख्यमंत्री ने भविष्य की जरूरतों को  ध्यान में रखते हुए सभी जिलों में ऑक्सीजन की उपलब्धता के लिए ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने का फैसला किया है. इसके लिए बजट भी सरकार ने जारी कर दिया है. इसके साथ ही भारत सरकार, राज्य सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा प्रदेश में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने की कार्यवाही भी शुरू की गई है. विभिन्न पीएसयू भी अपने स्तर पर प्लांट स्थापित करा रही हैं. इसके साथ ही गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग और आबकारी विभाग द्वारा ऑक्सीजन जनरेशन की दिशा में विशेष प्रयास किए जा रहे हैं. यह विभाग प्रदेश के सभी 75 जिलों में ऑक्सीजन जनरेटर लगाएगा. एमएसएमई इकाइयों की ओर से भी ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के मामले में सहयोग मिल रहा है. इसके अलावा सरकार ने सीएचसी स्तर से लेकर बड़े अस्पतालों तक में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्ध कराए हैं. यह सभी क्रियाशील रहें, इसे सुनिश्चित किया गया. और जिलों की जरूरतों के अनुसार और ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खरीदे जाने की अनुमति भी दी गई है. इसके अलावा उन्होंने तकनीक का इस्तेमाल कर ऑक्सीजन की मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाने का निर्देश दिया. और  ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए 24 घंटे साफ्टवेयर आधारित कंट्रोल रूम, ऑक्सीजन टैंकरों में जीपीएस और ऑक्सीजन के वेस्टेज को रोकने के लिए सात प्रतिष्ठित संस्थाओं से ऑडिट की व्यवस्था की गई है. इसके अलावा दूसरे राज्यों से ऑक्सीजन मंगाने के लिए ऑक्सीजन एक्सप्रेस और वायु सेना के जहाजों की भी सहायता ली.

प्रदेश में ऑक्सीजन की आपूर्ति को बेहतर करने के लिए उन्होंने टैंकरों की संख्या में इजाफा करने का भी फैसला किया. यूपी में ऑक्सीजन लाने के लिए 64 ऑक्सीजन टैंकर थे, जो अब बढ़कर 89 ऑक्सीजन टैंकर हो गए हैं. केंद्र सरकार ने भी प्रदेश को 400 मीट्रिक टन के 14 टैंकर दिए हैं. मुख्यमंत्री के प्रयासों से रिलायंस और अडानी जैसे निजी औद्योगिक समूहों की ओर से भी टैंकर उपलब्ध कराए गए हैं. इसे बाद भी ऑक्सीजन की उपलब्धता को लेकर चिकित्सा विशेषज्ञों ने टैंकरों की संख्या बढ़ाने की सलाह दी. तो सरकार ने क्रायोजेनिक टैंकरों के संबंध में ग्लोबल टेंडर करने की कार्यवाही ही है. जिसके चलते अब ऑक्सीजन की और बेहतर उपलब्धता के लिए देश में क्रायोजेनिक टैंकरों के लिए ग्लोबल टेंडर करने वाला पहला राज्य यूपी बन गया है.

अब यूपी में ऑक्सीजन की कमी को पूरी तरह दूर कर दिया गया है. बीती 11 मई को 1011 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का वितरण किया गया. इसमें रीफिलर को 632 मीट्रिक टन ऑक्सीजन और मेडिकल कालेजों तथा चिकित्सालयों को 301 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दी गई. जबकि 12 मई को प्रदेश में 1014.53 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का वितरण किया गया. जिसके तहत रीफिलर को 619.59 मीट्रिक टन ऑक्सीजन और मेडिकल कालेजों तथा चिकित्सालयों को 302.62 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दी गई. और होम आइसोलेशन में इलाज कर रहे 4105 कोरोना संक्रमितों को 27.9 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उपलब्ध कराई गई. इसी प्रकार 13 मई को प्रदेश में 1031.43 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का वितरण किया गया. जिसके तहत रीफिलर को 623.11 मीट्रिक टन ऑक्सीजन और मेडिकल कालेजों तथा चिकित्सालयों को 313.02 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दी गई. और होम आइसोलेशन में इलाज कर रहे 3471 कोरोना संक्रमितों को 26.44 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उपलब्ध कराई गई. प्राइवेट अस्पतालों को 95.29 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दी गई है.

जाहिर है कि लोगों की सांसों को संजीदगी से सहेजने को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ऑक्सीजन उपलब्धता की रणनीति कारगर साबित हो रही है.

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