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दोपहर के एक बजे दरवाजे पर आहट हुई. मैं ने बेड से उठ कर देखने की कोशिश की, पर रोमरोम जैसे दर्द में जकड़ा था, ऐसा दर्द तो कभी भी नहीं हुआ था कि शरीर हिलते ही जान निकलने जैसा लगे. दरवाजे के पास जो स्टूल रखा है इन दिनों, उसी पर ही सीमा ने ग्लव्स पहने हुए हाथ से खाने की प्लेट रखी, कहा, ”कुछ और चाहिए तो फोन कर लेना. लिविंग रूम में ही बैठ कर टीवी देख रही हूं,‘’ मैं ने दर्द में जकड़ा हाथ उठा कर हिला दिया. सीमा चली गई. मेरे पास रखा फोन बजा तो मैं ने गरदन बड़ी मुश्किल से हिलाई. सुमन भाभी का फोन था. उन का नाम देखते ही मेरी आंखों के कोरों से आंसू बह निकले. जब से मुझे कोरोना हुआ है और मैं इस कमरे में बंद हूं, भाभी को चैन नहीं आ रहा. आंसू में डूबी उन की आवाज जैसे मेरे दिल की हर चोट को, मेरे तनमन के दर्द को एक आराम सा  पहुंचा जाती है. इस समय मेरी हिम्मत बात करने की नहीं थी, गला बहुत दुख रहा था, पर भाभी की आवाज सुनने का मोह न छोड़ पाया. मैं ने फोन उठा ही लिया, जैसे ही ‘हेलो’ कहा, भाभी का स्नेह से भरा स्वर जैसे मेरी आत्मा को ठंडक पहुंचा गया, ”बिट्टू, कैसे हो? बेटा, आज कुछ आराम हुआ?”

”भाभी, अभी तो नहीं.” ”आवाज से लग रहा है कि गला बहुत खराब है.‘’”हां भाभी,” कहते हुए मुझे खांसी शुरू हो गई, तो भाभी का भीगा सा स्वर सुन मुझे बहुत तेज रोने का मन हुआ. ”बिट्टू, कुछ भी मसालेदार मत खाना, गले में लगेगा. कुछ हलका ही खाना. लंच क्या किया?”

”अभी देखा नहीं, सीमा प्लेट तो रख कर गई है, अभी उठा नहीं देखने.‘’ ”अच्छा, तुम खाना खा लो, फिर बात करती हूं. और हां, तुम्हें दूध वाला दलिया पसंद है न, वह खा लेना. सीमा को बहुत देर से फोन कर रही हूं, उठा नहीं रही है, वो तो ठीक है न?”

”हां भाभी, वो ठीक है.‘’ भाभी ने फोन रख दिया. अभी तो वे कई बार मेरा हालचाल पूछती रहेंगी. और उन्हें याद है कि मुझे दलिया पसंद है, सीमा कैसे भूल गई.

मैं वाशरूम जाने के लिए उठा तो टांगें कांप गईं. शरीर का यह दर्द तो सहन ही नहीं हो रहा. महसूस हुआ कि मुझे फीवर भी है, मेरी नजर पानी के जग पर पड़ी, खाली हो गया था. मैं ने बेड पर बैठेबैठे सीमा का नंबर मिलाया, आवाज देने लायक तो मैं हूं ही नहीं. फोन नहीं उठा तो जरा सा दरवाजा खोला तो टीवी चल रहा था. सीमा और हमारे दोनों युवा बेटे अनिल और सुनील टीवी देख रहे थे. अनिल की नजर मुझ पर पड़ी, तो उस ने रिमोट से टीवी म्यूट किया और पूछा, ”पापा, कुछ चाहिए?”

”हां, पानी.‘’ सीमा ने कहा, ”अनिल, जग भर दो और तुम ने खाना खा लिया? कैसे लगे छोले?” ”अब खाऊंगा, भाभी का फोन आ गया था.”  मुझे खड़े होने में बहुत परेशानी हो रही थी. मैं अपने दरवाजे के पास रखी चेयर पर ही बैठ गया.

अनिल ने पानी से भरा जग दरवाजे के पास ही रख दिया था. सीमा ने मुंह बना कर कहा, ”अपने बहनभाई से बात करते हुए गला नहीं दुखता तुम्हारा? हम से तो बात भी नहीं की जा रही है तुम से.”

मैं ने एक ठंडी सांस ले कर कहा, ”तुम लोग इतने बिजी हो. तुम लोगों से उठउठ कर बात करने के लिए बारबार आ भी तो नहीं सकता. तुम लोग ही दरवाजे के बाहर से बात कर लिया करो. जरा अच्छा लगेगा.’’

वह बोली, ”मतलब, बाहर खड़े हो कर तुम से गपें मारते रहें? हमें और भी काम होते हैं, विनय. तुम्हें आराम ही तो करना है, फिर क्या परेशानी है.” पानी मिल गया तो मैं वापस दरवाजा बंद कर हाथ धो कर खाने बैठ गया. पहला टुकड़ा चखते ही तेज खांसी उठी. थोड़ाथोड़ा लगा कर किसी तरह एक रोटी खाई, खाना भी जरूरी था, क्योंकि दवाएं लेनी थीं, फिर सीमा को फोन किया, इस बार उस ने देख लिया और बाहर  खड़े हो कर पूछ लिया, ”खाया…?”

”हां.‘’ ”कैसे लगे छोले, तुम्हारे लिए रोटी बना दी थी. हम लोगों ने तो भठूरे खाए, अच्छा लगा खाना?””खाया नहीं गया, पता नहीं, कुछ टेस्ट तो आ नहीं रहा है आजकल.’’

”विजय, तुम्हारे नखरे कम नहीं हुए बीमारी में भी. हर वक्त तुम्हें कुछ न कुछ  चाहिए ही होता है…?” ”एक चम्मच कुछ  सौंफ ही दे दो.‘’ सीमा ने मुझे सौंफ का डब्बा ही दे दिया, ”अपने पास ही रख लो, बाद में तो सब सेनिटाइज होना ही है, अब तुम सो जाओ.‘’

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