लेखक- धीरज कुमार

ट्रेन से उतर कर टैक्सी की और घर पहुंच गया. महीनों बाद घर वापस आया था, क्योंकि मुझे कारोबार के सिलसिले में अकसर बाहर रहना पड़ता है. आज कई महीनों बाद घर में दाखिल हुआ था. मैं लंबे सफर के चलते थका हुआ था, इसलिए आदतन सब से पहले नहाधो कर फ्रैश हुआ. तभी पत्नी आंगन में चायनाश्ता ले आई. चाय पीते हुए मैं मां से बातें कर रहा था. अगर मैं घर से बाहर रहूं और कुछ दिन बाद वापस आता हूं तो मां घर की समस्याएं और गांवघर की बातें ले कर बैठ जाती हैं, यह उन की पुरानी आदत है, इसलिए उन की बातें सुनता हूं. कुछ बातों पर ध्यान नहीं देता हूं, पर इस तरह अपने गांवघर के बारे में बहुतकुछ जानकारी मिल जाती है.

मां ने बातोंबात में बताया, ‘‘उस ने डंडे से पीटपीट कर अपने बिसेसर चाचा की हत्या दी है. उसे जेल हो गई है.’’ ‘‘कौन मां? तुम किस के बारे में कह रही हो?’’ मैं ने हत्या और जेल के बारे में सुन कर चौकन्ना होते हुए पूछा. ‘‘घाना… घाना के बारे में बता रही हूं,’’ मां जोर देते हुए बोलीं. ‘‘घाना ने किस की हत्या कर दी मां?’’ मैं ने जरा हैरानी से पूछा. ‘‘अरे, अपने बिसेसर चाचा की,’’ मां मजबूती से बोली थीं. यह सुन कर मुझे यकीन ही नहीं हुआ. एक पल को लगा, शायद यह झूठ है. पर सच तो सच होता है न, इसलिए कई दिनों तक घाना के बारे में मेरे मन में विचार उमड़तेघुमड़ते रहे. मुझे आज भी याद है.

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हम दोनों एकसाथ बचपन में खेलते थे. साथसाथ बगीचे से आम चुराते थे. खेतों से मटर की फलियां तोड़ना, एकसाथ पगडंडियों पर दौड़ना… दोनों साथसाथ खेलते हुए बड़े हुए थे. आज मैं कारोबार के सिलसिले में अपने गांव से दूर रहता हूं और कभीकभार ही आ पाता हूं. आज समय की कमी के चलते हम दोनों का मिलनाजुलना कम हो गया था. पर आज भी हम दोनों की पटती?है. जब भी मैं गांव आता हूं, हम दोनों की घंटों बातें होती हैं. घाना के परिवार के लोगों की बिसेसर चाचा से पुरानी रंजिश थी, क्योंकि वे उस के गोतिया थे. मैं एक बार किसी काम से उस के घर जा रहा था. उस की चाची से मां की तूतूमैंमैं हो रही थी. उस की मां जोर से गालियां दे रही थी. उस की चाची और उस की चचेरी बहनें भी उस की मां को गालियां देने लगीं. घाना की मां जोरजोर से चिल्लाने लगी, ‘दौड़ रे घाना…’ इतना सुनते ही घाना अंदर से दौड़ पड़ा था. ऐसा लग रहा था, कभी वह चाची पर टूट पड़ेगा. वह भी मां की तरह से अनापशनाप बोलने लगा. मैं ने उसे डांटा और शांत किया. वह मेरी बात मानता था.

मैं ने उस को समझाया, ‘छोटीछोटी बातों पर गुस्सा क्यों करते हो? आखिर वह भी तुम्हारी चाची ही है.’ कुछ देर बाद मामला रफादफा हो गया था. कुछ दिन बाद घाना ने बताया, ‘चाचा के परिवार से मैं काफी परेशान हो गया हूं. वे लोग जमीनजायदाद के बंटवारे को उलझा कर रखे हुए हैं. ‘वे बंटवारे में ज्यादा जमीन रख लिए हैं, इसलिए हम दोनों परिवारों में झगड़ा और तनाव रहता है. वे दोबारा बंटवारे के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं.’ मैं ने घाना को समझाया, ‘क्यों नहीं तुम लोग सहूलियत से ही मांग लेते हो?’ ‘वे कभी नहीं देंगे. वे बहुत अडि़यल हैं,’ घाना अफसोस से बोला था.

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इस कांड के बाद गांव के लोगों से मालूम हुआ कि जब घाना केस हार गया और उसे सजा मिल गई, तो उस ने अपने मांबाबूजी से भी मिलने से इनकार कर दिया. सभी लोग उसे अपराधी मान रहे थे. लेकिन मेरा मन नहीं मान रहा था, इसलिए मैं ने समय निकाल कर उस से मिलने के लिए सोचा. मैं जेल के सामने खड़ा था. वह कुछ देर बाद सलाखों के पीछे आ चुका था. मुझे देखते ही उस की आंखों में आंसू आ गए. उस के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. ‘‘घाना, मैं तुम से जानने आया हूं कि आखिर यह सब कैसे हो गया?’’ मैं ने उस से सीधा सवाल किया था. घाना बहुत देर तक अपने आंसुओं पर काबू पाने की कोशिश करता रहा. जब वह चुप हुआ तो बोलना शुरू किया, ‘‘भैया, आप जानते तो हैं…’’ मैं उस की उम्र से थोड़ा बड़ा हूं और गांवघर के रिश्ते में भाई भी लगता हूं, इसलिए वह मुझे भैया ही कहता है.

फिर भी वह मेरा दोस्त है. एक बार फिर रुक कर घाना ने बोलना शुरू किया, ‘‘मैं गुस्से में ऐसा कर गया. वहां मांबाबूजी और मेरी बहन भी थीं. मां मारोमारो की आवाज लगा रही थी. मेरी बहन ने आग में घी डालने का काम कर दिया. मैं आगेपीछे नहीं सोच पाया. उस समय सामने मांबाबूजी भी थे, लेकिन वे लोग एक बार भी मुझे यह नहीं बोले कि मत मारो. शायद किसी ने एक बार भी रोका होता, तो मैं यह हत्या नहीं करता और जेल की सजा नहीं मिलती.’’ मैं ने तसल्ली देने की कोशिश की, ‘‘अब जो हो गया सो हो गया, पछताने से कोई फायदा नहीं है.’’ घाना मुझ से नजरें नहीं मिला पा रहा था. अपना चेहरा इधरउधर घुमा रहा था. वह खुद को अपराधी महसूस कर रहा था. घाना कुछ सोचते हुए अपना हाथ मलने लगा था. वह बारबार अपनी उन हथेलियों को देख रहा था, जिन से उस ने हत्या की थी. भले ही वह हत्या के लिए पछता रहा था, पर यह बात तो साफ थी कि वह गुनाहगार और अपराधी तो बन ही गया.

मैं ने कुछ देर तक गांवघर के बारे में इधरउधर की बात की और उस का मन बहलाता रहा. ‘‘मैं ने सुना है कि तुम अपने मांबाबूजी से अब नहीं मिलते हो. शायद, तुम ने उन को मिलने से मना कर दिया है. लेकिन क्यों?’’ मैं ने सवाल किया. उस का चेहरा कठोर हो गया था. उस ने बताया, ‘‘भैया, आप जानते हैं, मांबाबूजी की इच्छाओं के चलते ही तो यह महाभारत हुआ है. अब मैं जिंदगीभर जेल में रहूंगा. इस के पीछे मेरे मांबाबूजी ही जिम्मेदार हैं. वे जमीन के कुछ टुकड़ों के लिए जिंदगीभर जहर भरते रहे. वे लोग एक बार भी रोकते, तो शायद मैं जेल में नरक नहीं भोगता.’’ सचाई सुन कर मुझे घाना के प्रति हमदर्दी हो रही थी. लेकिन ऐसे हालात में मदद भी नहीं कर पा रहा था. मैं ने महसूस किया कि इस हमदर्दी का भी कोई फायदा नहीं है. मैं भारी मन से फिर मिलने का वादा कर के वहां से निकल गया. घाना ने कहा, ‘‘आते रहिएगा भैया, आप के सिवा अब मेरा कोई अपना नहीं है. अब मेरे मांबाबूजी भी अपने नहीं रहे, जिन्होंने मुझे गुनाह के रास्ते पर धकेल दिया है.’’ ‘‘ऐसा नहीं कहते मेरे भाई, वे तुम्हारे ही मांबाबूजी हैं. वे तुम्हारे ही रहेंगे,’’ मैं ने समझाने की कोशिश की. लेकिन घाना की आंखों में नफरत और पछतावे के आंसू साफ दिख रहे थे.

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