लेखक- अमित अरविंद जोहरापुरकर
इला चैन की सांस लेते हुए बोली, “बापू, इन बच्चों को हम बंदूकबाजी सीखने राइफल क्लब ले जाते हैं. वहीं शायद इन्हें मिली होगी. “इला, यह तो खराब हो गई थी. मैं विपिन भाई से पूछ कर दूसरी ले आया था, हमारे नाटक में इस्तेमाल करने के लिए,” जिगर ने बताया
.”तुम लोग नाटक भी खेलते हो?” महंत ने पूछा. “हां बापू, और सारा काम खुद ही करते हैं. सेट भी बनाते हैं. इस साल हम ने इन का एक शो टैगोर हाल में भी रखा था,” इला बोली. महाराज कुछ बोले नहीं. उन का इशारा समझ इला कमला को नीचे ले गई. महाराज काफी वक्त कमला के बेटे जिगर से उस के नाटक की बातें पूछते रहे.
वह भी बड़े चाव से वहां पड़ा नाटक का और भी सामान निकाल कर उन्हें समझाता रहा. वह दोनों नीचे आए, तब वहां बैठ कर चिंता कर रही कमला उठ कर खड़ी हो गई और बोली, “बापू, अब क्या होगा. मेरे बच्चे ने कुछ नहीं किया है. लेकिन, हमें यह बस्ती छोड़नी पड़ेगी?”
महाराज बोले, “कमला, भरोसा रखो. खून किसी बस्ती वाले ने नहीं किया है. लेकिन, मुझे कुछ काम है, इसलिए मैं जिगर को अपने साथ ले जा रहा हूं.” ऐसा कह कर वह जिगर को साथ ले कर चल पड़े. तभी उन्हें रास्ते के दूसरी ओर से एक पुलिस जीप दिखाई दी. दूर से ही उस में बैठे झाला को देख वह संभल कर देखने लगे. वह लोग उन पर नजर रख रहे हैं, ये अब उन्हें पता चल गया.
उन्होंने अपना फोन उठाया और कुछ नंबर लगाते हुए वह अपने कमरे में चले गए. आधे घंटे बाद जब वह नीचे लौटे, तब उन का भगवा कुरतापजामा छोड़ उन्होंने टीशर्ट और जर्किन पहन रखी थी. पुलिस जीप अभी भी वहीं खड़ी थी. उन्होंने रास्ते पर नजर घुमाई, तब होटल से सट कर जो गली थी, उस की छोर पर गोरधन खड़ा एक कांस्टेबल से बात कर रहा था. उन के साथ और भी 2 लोग थे.
गोरधन ने महाराज को देखा और कुछ इशारा किया. वैसे, महाराज झट से रास्ता पार कर पुलिस जीप की ओर चले गए. झाला अब उस जीप में अकेला ही ड्राइवर की बगल की सीट पर सुस्ताया हुआ बैठ कर सिगरेट पी रहा था. उसे कुछ ध्यान में आए, उस के पहले ही महाराज जीप में बैठ गए और जीप चलानी शुरू की. वह कुछ बोले, उस के पहले ही उसे ध्यान आया कि जीप में पीछे और 3 लोग बैठे हुए हैं. और उस में से एक बंदे ने झाला की पीठ पर बंदूक तान रखी थी.
“यह तुम लोगों को बहुत भारी पड़ेगा,” झाला बोला. उस ने अपनी पिस्तौल निकालने के लिए ज्यों ही हाथ बढ़ाया, वैसे ही महाराज हंस कर बोले, “उस की कोई जरूरत नहीं है झाला. वैसे भी तुम्हारी बंदूक में गोलियां नहीं हैं. हम कुछ सोचसमझ कर ही यह कर रहे हैं. तुम सिर्फ मेरे सवालों के जवाब देते जाओ.”
झाला गरूर से बोला, “देखो, हम तो ऊपर से आए आदेश का पालन करते हैं.” “बस वही आदेश अब मेरा सुनो, मुझे अच्छे से पता है कि कल क्या हुआ था. बस, मुझे तुम्हारे मुंह से सुनना है,” जीप की रफ्तार और बढ़ाते हुए महंत बोले. “तुम क्या बक रहे हो?” झाला बोला. “मैं क्या बोल रहा हूं, यह तुम्हें अच्छे से पता है. इंस्पेक्टर जड़ेजा दीवार की बगल में खड़ा था. कोई भी गोली बस्ती से आ कर उन्हें छू नहीं सकती थी. फिर भी उन्हें सिर पर गोली लगी और खून बहने लगा.”
“मैं उन के सामने ही खड़ा था, तुम लोग मुझे झट से दूर ले गए,” हकलाते हुए झाला ने कहा, “मतलब…?” “मतलब यही कि इंस्पेक्टर जड़ेजा का खून तुम लोगों का रचाया नाटक था. वह जिंदा है, और हम उस से मिलने जा रहे हैं. बस तुम्हें तो हमारी जानकारी कन्फर्म करनी है,” महाराज बोले. महाराज जीप चलाते हुए रिंग रोड पार कर काफी दूर एक खेत के पास आ गए. तब तक झाला के पीछे लगी बंदूक वैसी ही लगी थी.
खेत जहां से शुरू था, वहीं कुछ बावरा लड़के खड़े थे. जीप देख कर वे सभी छुप गए और फिर दौड़ते हुए जीप के पीछे आ गए. उस खेत के अंत में एक छोटा सा घर था. उस के काफी पहले जीप बंद कर महाराज आगे बढ़ चले और झट से उन्होंने दरवाजा खटखटाया. उन के कपडों से उन्हें पहचानना मुश्किल ही था.
जैसे ही दरवाजा खुला, वैसे ही खोलने वाले को जोर से मुक्का मार कर उन्होंने नीचे गिराया और उस नीचे गिरे हुए इंस्पेक्टर जड़ेजा से बोले, “ज्यादा होशियारी मत करना, वरना तुम्हारा असल में खून हो जाएगा.” इंस्पेक्टर जड़ेजा संभल कर उठने की कोशिश करते हुए चिल्लाया, “झाला, तू ने क्यों मुंह खोला? अब एसपी नागर हमें छोड़ेगा नहीं.”
“मैं ने कुछ नहीं किया. उसे पहले से सब पता था,” झाला बोला. पीछे से अंदर घुसे 4-5 नौजवानों ने उसे और जड़ेजा को कस कर बांधा और जीप में बिठा दिया. “मुझे तो तभी शक हुआ. तुम्हें ऐसे अचानक गोली कैसे लग सकती है. मैं ने अपने तरीके से तहकीकात की, तब पता चला कि यह गोली बस्ती से तो नहीं आई थी. फिर मैं ने तुम्हारे बारे में पता किया.
“गोरधन की बातों से मुझे तुम्हारे शराब के कारोबार के बारे में पता चला. तुम बावरा लोगों को डराधमका कर उन का गलत इस्तेमाल करते थे. तुम्हारे डिपार्टमेंट के ही काफी लोग इस वजह से नाराज थे. और तुम्हारी इन्क्वायरी भी चल रही थी. उन लोगों की मदद से ही मुझे इस जगह का पता चला. और हमारे बावरा बच्चे तो काम में आ गए. “बावरा बस्ती हटाने के लिए तुम लोगों ने यह षड़यंत्र रचा है, यह मुझे अच्छे से पता चल गया है इंस्पेक्टर जड़ेजा.
“बस्ती तो अब एसपी नागर हटा कर ही रहेगा,” इंस्पेक्टर जड़ेजा हंस कर बोला. “तुम दोनों की बरात पहले वहां ले चलते हैं, फिर देखेंगे कि कौन क्या करता है,” महाराज हंसते हुए बोले. पुलिस जीप में उन दोनों को जकड़ कर बिठा कर महाराज वहां पहुंचे, तब तक शाम काफी हो चुकी थी. वहां काफी भीड़ जमा हो गई थी.
पुलिस जीप का हार्न बजा कर महाराज भीड़ को हटा कर दीवार के पास पहुंचे. बस्ती के शुरुआत में पुलिस और मिलिटरी के कुछ जवान हाथ में बैरिकेड ले कर खड़े थे. बस्ती के अंदर बावरा लोग इकठ्ठा हो कर खड़े थे, इला और उस के कुछ साथी भी उन के साथ ही खड़े थे. पुलिस जीप की वजह से महाराज बेरोकटोक वहां पहुंच गए. लेकिन वह जैसे ही गाड़ी से उतरे, वैसे ही उन्हें पहचान कर एसपी नागर उन के पास आ गए.
“अब हमें हमारा काम करना पड़ेगा. हमारे सब्र की सीमा समाप्त हो गई है. आप गुनाहगारों को बचाने की कोशिश कर रहे हो,” एसपी नागर गुस्से से बोले. महाराज बोले, “गुनाहगारों को ले कर ही आए हैं हम. और उन्हें बचाने वाले भी आप ही हो, यह भी हमें अच्छे से पता है. और तभी सामने से उन्हें देख कर उन की तरफ आए एक सूट पहने अधिकारी ने आ कर उन्हें प्रणाम किया.
“तुम्हारी वजह से ही आज यह मुमकिन हो सका है,” महाराज उस से बोले. “बापू, क्या आप ने हमें इसीलिए इस काबिल बनाया कि हम वक्त पर काम न आएं? शर्मिंदा मत कीजिए. आप सिर्फ अब यहां के लोगों को समझाइए और उन की भीड़ हटाइए. और पीछे कुछ और अधिकारी आ गए थे. उन्हें बोला, “चलिए,” और वह एसपी नागर और जड़ेजा जहां खड़े किए थे, वहां गया. तब तक वहां पहुंचे गोरधन ने सभी को क्याक्या हुआ है, वह समझाया.
इंस्पेक्टर जड़ेजा को जिंदा देख कर वह जो भय और शोक का वातावरण था, पल में ही वहां खुशी की लहर छा गई. “हम तुम्हें छोड़ेंगे नहीं,” एसपी नागर और जड़ेजा दोनों ही महाराज की ओर देख कर विषैली नजरों से बोले. पुलिस उन्हें हथकड़ियां पहना कर ले जाने लगी, तब उस अधिकारी की पहचान कराते हुए महाराज बोले, “यह मेरा भांजा हरेन है. यह केंद्र शासन में…” उन की बात को बीच में ही काट कर हरेन बोले, “बापू, वह जाने दीजिए न.” और वह इला से बोले, “कभीकभी कुछ काम गुमनामी से करो तो ही अच्छा होता है.”
इला उन की ओर देख कर मुसकराई. 2 दिन बाद इंद्रपुरी महाराज बस्ती को विदा कहने वहां आए, तब उन के पास काफी अच्छी खबरें थीं. केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने सीधा हस्तक्षेप कर यह दीवार शुरू करा दी. इतना ही नहीं, इस बस्ती के लोगों को, चूंकि वह यहां दशकों से रह रहे थे, दूसरी जगह पर पर्याप्त जगह दे कर बसने के लिए कार्यवाही शुरू कर दी थी. गैरकानूनी तरीके से शराब बनाने और बेचने का जो काम एसपी नागर, जड़ेजा, और उन का नेटवर्क कर रहा था, उस का परदाफाश होने से अब वह बुरे फंस गए थे.
इसी दौरान इंस्पेक्टर जड़ेजा की झूठी हत्या दिखा कर उस बहाने बावरा बस्ती उजाड़ने का षड्यंत्र जांचने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करने का ऐलान सरकार की ओर से किया गया. “आप की बदौलत यह बस्ती आबाद रही बापू, और यह दीवार भी टूट रही है,” इला ने कहा.
“यह दीवार तो टूटेगी. लेकिन ऐसी कितनी और दीवारें हमें तोड़नी हैं, इलाबेन,” महाराज बोले. “वही तो हमारा काम है,” इला ने हंस कर जवाब दिया.