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‘‘जब लौकडउान खुल जाएगा और वे दुकान आएंगे तब सारा हिसाब हो जाएगा.’’‘‘ऐसा थोड़े ही न होता है... आप उन से बोलो कि वह तुरंत पैसे ले कर आए.’’ ‘‘नहीं आएंगे... आप तो पुलिस में रिपोर्ट कराने वाले थे, अब आप वही करा लो...’’ कह कर सुमन ने फोन काट दिया.

मुनीमजी के हाथपैर कांप रहे थे. दूसरे दिन सुबहसुबह किसी ने घर का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुमन ने ही खोला, ‘‘कहिए...’’ ‘‘मैं मुनीमजी से मिलने आया हूं... वे मेरी ही दुकान पर काम करते हैं.’’ ‘‘इतनी सुबह किसी भले आदमी के घर आने में आप को जरा भी शर्म नहीं आई.’’ ‘‘लौकडाउन लगा है... पुलिस गश्त कर रही है. तो मैं दोपहर में कैसे आता?’’

‘‘आप तो मुनीमजी को कह रहे थे कि दोपहर में ही आ जाओ... उन के लिए लौकडाउन नहीं है क्या...’’ सुमन की आवाज में अजीब सा रोबीलापन था. ‘‘हां... हां, ठीक है. मुनीमजी को बुलाओ और मेरे पैसे दे दो...’’

‘‘अभी तो मुनीमजी सो रहे हैं. आप दोपहर में आना,’’ कह कर सुमन दरवाजा बंद करने को हुई. ‘‘पैसा मेरा है और मुझे चाहिए.’’‘‘हां, दे देंगे. आप दोपहर में आएं...’’‘‘नहीं, मुझे अभी चाहिए. मैं किस तरह बचतेबचाते यहां आया हूं. दोपहर में तो बिलकुल नहीं आ सकता... आप मुनीमजी को बुलाएं. मैं उन से ही बात करूंगा.’’

‘‘आप से बोल दिया न कि मुनीमजी सो रहे हैं... आप चले जाएं, वरना मैं पुलिस को बुलाऊं क्या," सुमन आज सेठजी से सारा बदला ले लेना चाहती थी.सेठजी कुछ नहीं बोले. वे पुलिस का नाम सुनते ही चले गए.सेठजी का फोन दोपहर को आया. फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘महाराजजी सो कर उठ गए होंगे. जरा मेरी बात करा दो.’’सेठजी का व्यंग्य सुमन समझ चुकी थी. वह बोली, ‘‘उठ तो गए हैं, पर आप मुझ से बात करो. बताएं, फोन क्यों किया है?’’

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