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कुछ ही देर में सूरज आ गया था और मुनीमजी ने उसे कुछ रुपए दे भी दिए थे. मुनीमजी समझ गए थे कि अब वो सेठजी के यहां नौकरी नहीं कर पाएंगे. सुमन ने उन के साथ जो व्यवहार किया है, उस से वे नाराज होंगे. साथ ही, जब उन्हें पता चलेगा कि उस ने सूरज को पैसे दिए हैं, तो बहुत ही ज्यादा नाराज होंगे. वैसे वह खुद भी उन के यहां नौकरी नहीं करना चाह रहा था. उन्होंने भी तो उसे पुलिस की धमकी दी थी.

वैसे, मुनीमजी सेठजी का सारा राज जानते थे, इतने वर्षों से काम जो कर रहे थे और सेठजी के कहने पर वे ही तो सारा कालापीला करते थे. ‘‘सुमन, अब सेठजी मुझे तो काम पर रखने से रहे. तो हम सेठजी के पैसों से जैसे हम ने सूरज को पैसे दिए हैं, वैसे ही उन सभी कर्मचारियों का भुगतान भी कर देते हैं, जिन्हें सेठजी से पैसे लेने हैं... लौकडाउन में उन्हें भी तो पैसों की जरूरत होगी, सेठजी तो उन्हें देने से रहे. पिछली बार भी उन्होंने कर्मचारियों को पैसा नहीं दिया था. कहते थे, ‘‘लौकडाउन के कारण मुझे भारी नुकसान हो गया है, इसलिए मैं किसी को पैसे नहीं दूंगा. बाकी जो होगा देखा जाएगा."

सुमन को बात जमीं, ‘‘हां, ऐसा करने से वे हमारे साथ मिल जाएंगे और हमारा गुट मजबूत हो जाएगा...’’ सुमन के मुरझाए चेहरे पर आस की नई किरण जगमगाने लगी.मुनीमजी के मोबाइल में सारे कर्मचारियों के फोन नंबर थे ही. उसे तो सभी कर्मचारियों से बात करनी होती थी. एकएक कर उस ने सभी कर्मचारियों को फोन कर बता दिया कि वो उस के पास पैसे लेने आ जाएं. सभी इकट्ठे न आ जाएं, ऐसा सोच कर उस ने सभी को अलगअलग समय दिया और साथ में यह भी समझा दिया, ‘‘देखो भाई, लौकडाउन लगा है, इसलिए पुलिस से बचतेबचाते अपनी जिम्मेदारी पर ही आना.’’

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