आज कालेज का पहला दिन था. चारों तरफ चहलपहल और गहमागहमी का माहौल एहसास करा रहा था कि आज से कालेज का नया सत्र शुरू हो गया है. छात्रछात्राएं एकदूसरे का इंट्रोडक्शन लेने में व्यस्त थे. स्कूल से निकल कर कालेज लाइफ में प्रवेश करने पर जहां छात्रछात्राओं में एक अलग ही आत्मविश्वास और उत्साह नजर आ रहा था, वहीं पुराने छात्र खुद को सीनियर्स की श्रेणी में पा कर फूले नहीं समा रहे थे.

‘‘हाय, आई एम दिवाकर…दिवाकर सक्सेना… ऐंड यू?’’ उस ने एक खूबसूरत छात्रा की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा. ‘‘आई एम केपी… केपी, आई मीन कुनिका पांडे. फर्स्ट ईयर कौमर्स,’’ जवाब आया.

‘‘आई एम फर्स्ट ईयर इंगलिश औनर्स,’’ दिवाकर ने हाथ मिलाते हुए कहा. वहीं इसी कालेज के कुछेक छात्र पिछले 4-5 साल से सीनियर्स का तमगा गले में लटकाए अपनी सीनियौरिटी की धौंस जमाते फिर रहे थे, दरअसल, पढ़ाई से उन का कोई लेनादेना नहीं था. वे अमीरजादे

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थे इसलिए मांबाप की दौलत पर ऐश कर रहे थे. विशाल, कमल और मुन्ना की तिकड़ी ने अपने गैंग का नाम रखा था त्रिशंकु और तीनों के गले में टी आकार का लौकेट लटका रहता था. कालेज परिसर में मोटरसाइकिलें धड़धड़ाते हुए घुसना, छेड़छाड़ करना, मारपीट, छीनाझपटी, मुफ्तखोरी कर घर चले जाना यही इन का सिलेबस था.

कालेज प्रशासन, अभिभावक, छात्रछात्राएं, स्टाफ, कैंटीनकर्मी सभी इन से परेशान थे. चिकने घड़े पर गिरे पानी की तरह इन पर किसी की बात का असर ही नहीं होता था. आज कालेज का पहला दिन होने के कारण यह तिकड़ी रैगिंग के मूड में छटपटा रही थी. कालेज लौन में लगे बरगद के घने छायादार पेड़ के नीचे बैठे ये माहौल को कुछ गरमाने की ताक में थे. ये गिद्ध दृष्टि लगाए सोच रहे थे कि शुरुआत कहां और किस से की जाए.

त्रिशंकु के इन गिद्धों को पता नहीं था कि उन की टक्कर का और शायद उन से अधिक खुर्राट कोई और भी कालेज में आ चुका है. इसी साल तिकड़ी के सरकिट विशाल की छोटी बहन अनुष्का ने भी बीए फर्स्ट ईयर में ऐडमिशन लिया था. त्रिशंकु के कौमेडियन मुन्ना ने ठहाका लगाते हुए विशाल से कहा, ‘‘बौस, एक बात और भी है, जिस की तरफ अभी तक हमारा ध्यान ही नहीं गया.’’

‘‘वह क्या है?’’ विशाल ने अपने चिरपरिचित दादागीरी वाले अंदाज में पूछा. ‘‘बौस, इस साल हमें संभल कर चलना होगा, क्योंकि तुम्हारी बहन ने भी तो कालेज में ऐडमिशन लिया है.’’

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‘‘तो फिर?’’ विशाल उसे घूरता हुआ बोला. ‘‘यार, तुम समझते क्यों नहीं कि तुम्हारी हरकतों का आंखों देखा हाल तुम्हारे मम्मीपापा को अब हर शाम मिलेगा,’’ मुन्ना अचानक समझदार हो गया था.

‘‘अरे, तू घबरा मत, कुछ नहीं होगा. उन्हें सब पता है. अपना तो बस, एक ही फंडा है और रहेगा, खाओपीओ, मौज करो, पेमैंट करेंगे जूनियर्स,’’ खोखली सी हंसी हंसता हुआ वह बोला. उधर नए छात्र दिवाकर की भी 4 लोगों की एक टीम थी, जो स्कूल से ही उस के साथ आई थी यानी 5 का पंच. ये सभी पढ़ाकू, मेहनती, ईमानदार और मध्यवर्गीय परिवारों से आए थे, जिन का लक्ष्य था पढ़ाई के अलावा परिसर में किसी किस्म की बदतमीजी और गुंडागर्दी नहीं चलने देना और किसी के साथ हो रही ज्यादती को रोकना. पहले प्यार से और फिर मार से. इन्हें त्रिशंकु दल की खुराफातों के बारे में सबकुछ पता था.

दरअसल, त्रिशंकु की इस दादागीरी के पीछे एक राज था और वह यह कि विशाल के पिता कालेज के ट्रस्टीज में से एक थे, जिस का वह नाजायज फायदा उठा रहा था. तभी इंटरवल का सायरन बजा, जैसा होता आया था तिकड़ी कैंटीन में घुसी और एक टेबल पर बैठे फ्रैशर्स को देख कर हुक्म दिया, ‘‘अबे, देखते नहीं सीनियर्स आए हैं, टेबल खाली करो और हमारे लिए 3 कौफी और आमलेट ले कर आओ.’’

‘‘अरे, सीनियर्स हैं तो क्या हुआ, इन्होंने कैंटीन का फर्नीचर खरीद लिया है?’’ नए आए छात्र अशफाक ने कहा. ‘तड़ाक,’ उसे शायद थप्पड़ की उम्मीद नहीं थी. वह कुरसी से गिर पड़ा. बाकी बैठे छात्र भी टेबल छोड़ कर खड़े हो गए.

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‘‘अरे…अरे, खड़े क्यों हो गए बैठोबैठो. वाकई कैंटीन का फर्नीचर किसी के बाप की बपौती नहीं है. बैठ जाओ,’’ पीछे से आई रौबदार आवाज की ओर सभी का सिर घूमा. कैंटीन के दरवाजे पर दिवाकर अपने साथियों के साथ खड़ा था. उस ने आगे बढ़ कर अशफाक को सहारा दे कर उठाया और उसी टेबल पर बैठा दिया जहां न बैठने की धौंस तिकड़ी दे रही थी. वह विशाल की ओर देख कर मुसकराया. इस पर तिकड़ी आगबबूला हो गई. विशाल ने दिवाकर को ललकारते हुए कहा, ‘‘अबे, ओ चिकने, हम से मत उलझ, तू मुझे जानता नहीं.’’

बजाय उस की बात पर ध्यान देने के दिवाकर ने नए आए छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘आज के बाद या कहूं अभी से इन लफंगों को कोई अपनी सीट नहीं देगा, कोई इन के लिए कौफी, ठंडा या आमलेट नहीं लाएगा. अब तक जो होता आया है वह आगे नहीं होगा. आप सब लोग अपनीअपनी जगह पर बैठें और ऐंजौय करें. वैसे भी लंच टाइम के 15 मिनट बचे हैं,’’ दिवाकर ने समझाया. तभी तिकड़ी का कौमेडियन मुन्ना चहका, ‘‘बौस, इस ने तो आप का हुक्म मानने से इनकार कर दिया. कहो तो धो दूं.’’

इस से पहले कि कोई कुछ समझ पाता एक झन्नाटेदार थप्पड़ ने उसे 5 फुट दूर फेंक दिया. फिर क्या था, पंच ने तिकड़ी को जम कर धोया. ‘‘तू समझता है कि हाथ सिर्फ तेरे पास ही हैं. जो कुछ तू करता आया है, वह हम भी कर सकते हैं. मगर न तो ये हमारी फितरत है और न आदत. अपनी इज्जत का खयाल नहीं तो अपनी बहन की इज्जत का खयाल कर ले,’’ विशाल को कौलर से पकड़ कर उठाते हुए दिवाकर ने कहा.

विशाल की बहन अनुष्का यह सब दूर खड़ी देख रही थी. उस के चेहरे पर संतोष के भाव थे कि चलो, ‘सेर को कोई तो सवा सेर मिला.’ ‘‘कोई तेरी बहन को तंग करे तो तुझे कैसा लगेगा,’’ दिवाकर ने चुटकी लेते हुए कहा.

‘‘कोई उसे कुछ कह कर तो देखे, अपने पैरों से चल कर घर नहीं जा पाएगा,’’ पिट कर भी उस के तेवर ज्यों के त्यों थे. ‘‘अरे, तो इस में बड़ी बात क्या है, हम ही उसे कुछ कहे देते हैं,’’ कह कर दिवाकर ने अनुष्का को अपने पास बुलाते हुए कहा, ‘‘हैलो, अनु आई एम दिवाकर… दिवाकर सक्सेना, फ्रौम इंगलिश औनर्स,’’ दोनों ने हाथ मिलाया.

उस ने एक बार भाई की तरफ देखा और अपना हाथ खींच लिया. ‘‘घबराओ मत, मैं ऐंगेज्ड हूं, मेरी सगाई हो चुकी है. यों भी मुझे आप से दोस्ती या अफेयर में कोई दिलचस्पी नहीं है. ये सब इस सिरफिरे को सबक सिखाने के लिए जरूरी था. तुम मेरी भी बहन की तरह हो. मेरी तुम पर पूरे 3 साल नजर रहेगी. कोई प्रौब्लम हो तो बताना.’’

विशाल चुपचाप उठ कर कैंटीन से बाहर जाने लगा तो दिवाकर ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘विशाल, मेरी तुम से कोई दुश्मनी नहीं है, लेकिन ये समझ लो कि तुम्हारी दादागीरी के दिन लद गए. तुम पढ़ो या न पढ़ो, मुझे इस से कोई मतलब नहीं, मगर आज से सबकुछ बंद.’’ विशाल सचाई समझ चुका था. अगले 3 साल तिकड़ी और पंच दोस्त बन कर रहे. इस दौरान कालेज में न तो कोई मारपीट हुई और न ही रैगिंग.

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